Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2951, दिनांक 24.07.2019
VCD 2951, dated 24.07.2019
प्रातः क्लास 01.12.1967
Morning Class dated 01.12.1967
VCD-2951-Bilingual
समय- 00.01-29.58
Time- 00.01-29.58
प्रातः क्लास चल रहा था पहली दिसम्बर, 1967. शुक्रवार को पांचवीं लाइन में बात चल रही थी – जो साहूकार राजे होते हैं उनकी गद्दी पाते हैं। क्या इसने ऐसे राजगद्दी पाई? जैसे कर्म किया पूर्व जन्म में वैसे ही इनको ये धन मिला। नहीं? बाबा का तुमको कर्म सिखलाना बिल्कुल ही न्यारा है। अभी गाया जाता है। इनकी करम की गति न्यारी। करम, अकर्म, विकर्म हैं। वो अक्षर क्लीयर हैं। ये ठीक लिखे हैं ना अक्षर। कहते हैं ना आटे में लून मिसल। तुम कोई श्लोक या उनका ऐसा है जिनसे अर्थ निकल सकते हैं। माना सब झूठ नहीं होती है। जैसे वो लोग कहते हैं भई प्रलय होती है। देखो, सब प्रलय होती है? तो कहेंगे ना भई। आटे में लून मिसल है। क्योंकि देखो तो सही। और कहां 500 आदमी ये इस समय में और कहां बाकि नौ लाख। तो क्या परसेन्टेज हुआ? अरे, कहेंगे क्वार्टर परसेन्ट भी नहीं हुआ। तो इसको फिर कहा जाता है आटे में लून अर्थात् पूरी दुनिया विनाश नहीं होती है। कोई जरूर रहते हैं। इनको ही कहा जाता है आटे में लून। माना बहुत थोड़े रहते हैं। पीछे तो वृद्धि तो बहुत पाते हैं ना? तो ये कैसे होते हैं ये पुराने? कि जाते हैं, यहीं रहते हैं, संगम के समय। नहीं। संगम के समय दोनों रहते हैं। वो भी रहते हैं, वो भी रहते हैं।
तो कहा जाता है ना कि भई ये मर गया, ये शरीर छोड़ दिया। जाकर कहां आके रहा। भई क्यों गया? कि ये रिसीव करने के लिए गया। समझा ना? एक दो को रिसीव करना है। तो रिसीव करने गया। क्योंकि वो भी ज्ञानी। यहां के भी जो आत्मा वो भी ज्ञानी। तो रिसीव कौन करेगा? तो ज्ञानी आत्मा होगी वो ही दूसरे ज्ञानी आत्मा को रिसीव करेगी। कोई पतित आत्मा नहीं होगी तो कोई थोड़ेही उनको करेगी? नहीं। बाबा समझाया ना जो भी यहां के बच्चे हैं नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार जो बिल्कुल ही अच्छे। हम कहते हैं ना कभी-कभी जैसे वो मुगली गई तो अच्छी थी ना? तो उसने जन्म कहां लिया होगा? बिल्कुल अच्छे घर में। है ना? नंबरवार जैसे-जैसे जो जाते हैं ऐसे नंबरवार वहां जाकरके जन्म लेते हैं। और सुख में क्योंकि वो सुख तो उनको देखना ही है। फिर थोड़ा दुख भी होगा। वो तो जरूर होगा क्योंकि सब तो कर्मातीत अवस्था तो हुई नहीं है ना किसी की। तो इसलिए जनम जो लेते हैं वो बच्ची बड़े घर में जन्म होते हैं। ऐसे नहीं कहेंगे कि स्वर्ग में जाकरके जन्म लिया। नहीं। बड़े सुखी घर में जन्म लेते हैं।
यहां कोई तो ऐसे मत समझो तो यहां कोई सुखी घर नहीं हैं इस दुनिया में। नहीं। परिवार ऐसे-ऐसे हैं बात मत पूछो बच्चे। वो तो यहां के बच्चों ने हज़ार बार क्योंकि बाबा का अनुभव कहते हैं देखा हुआ है। अरे, शांति एकदम। आपस में मेल रहता है। हैं बहुत कुटुंबी जिनका बहुत मेल रहता है। और 6-6, 5-5 बहुएं। समझा ना? मैंने खुद आँखों से जाकरके देखे हैं। वो तो बहुत बड़े आदमियों के घर जाते थे। गरीबों के घर तो जाते ही नहीं थे। किसकी बात हुई? हँ? ब्रह्मा बाबा की बात हुई। हाँ, गरीबों के घर भी शायद होवे ऐसा कोई कि बड़ा मकान, बहुत बड़ा मकान और एक-एक थंबला। और बाहर में ऐसे-ऐसे ओपेन-ओपेन थांबले के बाजू में और एक-एक देखो तो बस। है ही एक थंबले में बैठे हुए हैं। गीता पढ़ रही है और अपने-अपनी भक्ति में ही बैठे रहते हैं एकदम। बाबा पूछा – सब इकट्ठे रहते हो? हाँ, इकट्ठे रहते हैं। तो क्या कोई झगड़ा-वगड़ा नहीं होता है? बोला हमारे पास तो ऐसे जैसे स्वर्ग है। हमारे पास यहां स्वर्ग है। हम कभी भी आपस में लड़ते-झगड़ते नहीं हैं। हम सब इकट्ठे रहते हैं। और कभी झगड़ा होता ही नहीं है। शांत। ऐसी फर्स्टक्लास।
तो बाप कहेंगे ना बच्ची जिसके घर में जाओ और देखो कि वहां सभी बच्चे शांत हैं। और बहुत आराम से। तो देखेंगे यहां तो स्वर्ग लगा पड़ा है। जब वहां स्वर्ग लगा पड़ा है तो स्वर्ग तो कोई और चीज़ भी होगी ना? वो पास्ट हो गई ना? तो कहते हैं यहां तो जैसे स्वर्ग लगा पड़ा है। वहां राजधानी स्थापन होती है। इतनी राजधानी स्थापन होती। थोड़ी यहां आती है। बाकि शांतिधाम, शांतिधाम में रहते हैं। तो वो तो पीछे आने वाली है। तो ये सभी ज्ञान अभी तुम बच्चों को मिलता है। क्या ज्ञान मिला? कि जो भी देवी-देवता सनातन धर्म की पक्की सूर्यवंशी आत्माएं होंगी ना, हँ, नौ कुरियों में से पहले नंबर की कुरी के, वो तो अंतिम जन्मों में भी बड़े सुख-शांति से रहते हैं।
तो अभी तुम बच्चों को मिलते हैं कि कैसे ये स्वर्ग स्थापन होता है। कैसे वो जो भी नहीं आते हैं, ब्राह्मण नहीं बनते हैं वो तो खतम ही हो जाएगा। 1.12.67 का प्रातः क्लास, पांचवां पेज, शुक्रवार, दूसरी लाइन। बाकि ये ब्राह्मण जो बनते हैं कोई थोड़े थोड़ेही बनेंगे। नहीं, जो भी दैवी घराने में आने वाले हैं वो सभी ब्राह्मण घराने में आने वाले हैं ही हैं। परन्तु अवस्था जैसे बाबा ने बताया है ना कोई की बिल्कुल अच्छी फर्स्टक्लास, चलता रहेगा शांत, बिल्कुल मीठा, एकदम मीठा। सबको प्यार करने वाला। उनकी बात कोई को भी छिदेगा नहीं। समझा ना? कि छिद देने से दूसरों को कुछ होता है ना? तो वो जिसको दुख देने वाला वो तो कभी यहां बैठकरके बोले ना? दीदी पूछती ना कि कोई ने किसी को दुख दिया है? हाँ, कभी हाथ नहीं उठाएंगे। और रोज दुख देते हैं ना कोई-कोई को। जरूर देखेंगे। देते हैं। तो ये बाबा अनुभव की बातें बताते हैं। कोई न कोई को, कोई न कोई को दुख जरूर देंगे। मनसा से, वाचा से। अच्छा, मनसा का भी छोड़ो। जबकि वाचा में आवे, पर वाचा से दुख जरूर देगा। ऐसे-ऐसे करेगा ना? दुख जरूर देंगे। तो कहते ही हैं पुण्यात्मा, पापात्मा। तो फिर क्या कोई शरीर का नाम लेते हैं क्या? हँ? शरीर पाप, ऐसे तो नहीं कहते। पुण्य, पुण्य शरीर। नहीं। तो है वास्तव में बात ये कि बरोबर पुण्यात्मा, पापात्मा। तो ये बच्चों को मालूम है कि सभी पापात्मा कोई एक जैसे नहीं होते हैं। कभी भी नहीं होते हैं एक जैसे। और सभी पुण्यात्मा भी कोई एक जैसे नहीं होते। देखते हो। ब्राह्मण बनेंगे सभी एक जैसे? नहीं बनेंगे। हँ? अगर यहां एक जैसे ब्राह्मण बन जावें तो दुनिया में ये इतने धरम फैले हुए हैं ये बनेंगे? हँ? नहीं बनेंगे।
तो सब नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार और वो भी वो समझते हैं कि यहां क्योंकि पढ़ाई में क्या कोई समझते होंगे कि मेरा कैरेक्टर कैसा है? अच्छा, मेरी अवस्था कैसी है? क्या कोई स्टूडेन्ट समझता नहीं होगा? नहीं समझ सकता? सब समझते हैं। बिल्कुल अच्छी तरह से समझते हैं। तो बाप बोलते हैं ये समझते सब कुछ हैं कि हम कैसे चलते हैं, हमारी अवस्था कैसी है? हँ? हम कैसे मीठे बनते हैं। हम कोई भी कुछ कहे तो हम उनको कभी भी कोई उल्टा-पुल्टा, सुल्टा जवाब नहीं देते हैं। है ना? सबको प्यार करते हैं बच्चे। तो बच्चे बहुत कहते हैं बाबा हमको तो गुस्सा लगता है। इन बच्चों को चमाट मार देते हैं। तो बाबा कहते हैं जितना हो सके उतना प्यार से चलाओ। फिर भी ये छोटे बच्चे हैं ना? हँ? कौनसी दुनिया की बात बताई? हँ? यहां की बात बताई? लौकिक दुनिया की बात नहीं बताई? हाँ, वहां की भी बात बताई। और वहां की बात इसलिए बताई कि यहां से टैली हो जाए। तो यहां भी छोटे बच्चे कौन हुए? हँ? जिनमें समझदारी नहीं है, ज्ञान कम है, तो छोटे बच्चे हैं। श्रीमत को नहीं पकड़ सकते हैं।
तो बताया - जितना हो सके इतना प्यार से उनकी भलाई के लिए थोड़ा सा कान पकड़ सकते हो। तो इसलिए दृष्टांत है ना बच्ची? कृष्ण को तो कभी कोई कुछ कह नहीं सके। बिल्कुल नहीं। क्यों? फिर ओखली से क्यों बांधते थे? तो वो बात तो यहां की है ना? हँ? कहां की? हँ? वो बात ब्राह्मणों की दुनिया की है ना? समझने-समझाने की बात है। तो बाबा कहते हैं कोई भी छोटा होवे एकदम तो उनको चलो, हाँ, जो खटिया की पाइयां हैं ना उनसे बांध दियो। या तो कोई कोठी, कोठरी में बंद कर दियो। हँ? या कोई झाड़ से बंद कर दियो रस्सी से। बाकि थप्पड़ नहीं मारो। क्योंकि जो कुछ भी तुम करेंगे वो, वो ही करना सीख जाते हैं। अभी ऐसा तो नहीं है कि बड़ा होगा तो मां-बाप को बैठकरके बोलेगा कोई चीज़ से। नहीं। वो सीखेगा ही नहीं ना? बड़ा होता जाएगा, वो बड़ों को थोड़ेही बैठकरके। ये तो छोटों के लिए शिक्षा है। तो पूछते हैं। और वो करता है। हर्जा नहीं है। तो कान से पकड़ सकते हो। वो भी बिल्कुल तंग करे तो। तो ऐसे बच्चे होते हैं। नाक में दम कर देते हैं एकदम। चोरी-चकारी, वगैरा-3। हँ? तो चोरी-चकारी करते हैं तो फिर वो निर्मोही भी बनना चाहिए ना?
शिक्षाएं भी सभी मिलती हैं। और ये भी समझते हैं कि तुमको ऐसा ज़रूर बनना है। हँ? क्योंकि तुम्हारे लिए तो बच्ची है। क्या? एम-आब्जेक्ट है। ये खड़े हैं ना? उसमें कोई स्कूल वगैरा में कोई खड़े नहीं होते हैं एम-आब्जेक्ट। तो ये तो एम-आब्जेक्ट तुमको यहीं दिखाई जाती है। और एकदम हाइएस्ट एम-आब्जेक्ट है। इनसे ऊँची तो एम-आब्जेक्ट तो कोई होती नहीं। क्यों? क्योंकि पढ़ाने वाला ही हाइएस्ट। तो एम-आब्जेक्ट भी हाइएस्ट। तो हाइएस्ट में तो सब गुण गाते हैं ना? कृष्ण के गुण ऐसा कौन होगा जो नहीं गाते होंगे? गाते हैं - सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसा देवी-देवता परमोधर्म। तो ये सभी गुण उनको हैं। अच्छा, वो उनकी है ना जो महिमा गाते हैं। बरोबर गाते हैं। अभी बच्चों को मालूम पड़ा। तो जो उनकी महिमा गाने वाले हैं जो वो थे वो खुद श्री कृष्ण अभी तुम बन रहे हो।
देखो, तुमको बाबा कैसे सिखलाते हैं तुम यहां क्यों आए हो? तुम यहां आए ही हो ये बनने के लिए। एम-आब्जेक्ट सिर्फ एब्सोल्यूटली ये है। क्योंकि कथा ही है तुम्हारी सत्य नारायण की। हँ? सत्य नर से नारायण बनने की कथा है। अमरकथा भी है। अमरपुरी में जाने के लिए ये कथा है ना? तीसरा नेत्र, तीजरी की कथा। त्रिकालदर्शी बनने की कथा। तो तुमको तीनों ही प्रकार की कथाएं मिलती हैं। 1.12.67 की प्रातः क्लास का छठा पेज। मिलती तो हैं तीनों प्रकार की कथाएं। और ऐसे तो कोई सुनाएगा भी नहीं। कोई सन्यासी-वन्यासी तो वो जानते भी नहीं हैं इन बातों को। कोई भी नहीं जानते हैं। क्यों? कोई भी मनुष्य मात्र को ऐसे नहीं कहेंगे। क्या? क्या नहीं कहेंगे? ज्ञान का सागर है। पतित-पावन है। सबको थोड़ेही कहेंगे पतित? यहां किसको कह सकेंगे पतित-पावन? जबकि सारी सृष्टि पतित है। तो हम किसको कहें पतित-पावन? ये सारी सृष्टि पतित है ना बच्ची? तो पतित सृष्टि के या भ्रष्टाचारी सृष्टि को, हम किसको कहें श्रेष्ठाचारी? क्योंकि श्रेष्ठाचारी अक्षर आने से हमको सतयुग की बहुत याद आती है। और फिर ये याद पड़ते हैं। जब पुण्यात्मा तभी भी ये याद पड़ते हैं। अब इस दुनिया में यहां कहां से आए पुण्यात्माएं? तो बाप आकरके ये सब बातें बच्चों को समझाते हैं। ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated first December, 1967 was being discussed. The topic being discussed in the fifth line on Friday was – The prosperous kings obtain their thrones. Did this one achieve throne in this manner? As were the actions they performed in the previous birth, they got the wealth accordingly. No? Baba’s way of teaching you actions is completely strange. Now it is sung. The dynamics of the actions of these is strange. There is karma, akarma and vikarma. Those words are clear. These words have been rightly written, haven’t they been? It is said, isn’t it that it is like salt in wheat flour. You can interpret meaning from any shlok (verse) or any such thing of theirs’. It means that everything is not false. For example, those people say that brother ‘pralai’ (inundation of world with water or destruction of the world) takes place. Look, does entire destruction take place? So, it will be said, will it not be said brother? It is like salt in wheat flour. It is because have a look. And on the one side are 500 [crore] men at this time and on the other side are nine lakhs. So, what is the percentage? Arey, it will be said it is not even a quarter percent. So, this is then called salt in wheat flour, i.e. the entire world is not destroyed. Some definitely live. These are only called salt in wheat flour. It means that very few live. Later they grow a lot in numbers, don’t they? So, how are these old ones? They go, they live here only at the time of confluence. No. Both live at the time of confluence. They too live and they too live.
So, it is said, isn’t it that brother, this one died, this one left his body. He went and then came and where did he stay? Brother, why did he go? He went to receive you. You have understood, haven’t you? You have to receive each other. So, he went to receive. It is because he is also knowledgeable. The souls of this place are also knowledgeable. So, who will receive? So, the soul which is knowledgeable will only receive another knowledgeable soul. If a soul is not sinful, then will it receive it? No. Baba had explained, hadn’t He that all the children here are numberwise as per their purusharth, completely nice. We say, don’t we that sometimes, for example, that Mugli went, so, she was good, wasn’t she? So, where must she have got birth? In a completely good house. Is it not? Numberwise, as and when those who go, similarly they go and get birth there. And in happiness because they have to witness that happiness without fail. Then there will be a little sorrow also. That will definitely be there because all have not achieved karmaateet stage. So, this is why those who get birth, daughter, they get birth in a prosperous house. It will not be said that they went to heaven and got birth. No. They get birth in a very prosperous home.
Here, nobody should think that here there is no happy home in this world. No. Children, there are such families that just do not ask. The children of this place have a thousand times because Baba’s experience says that he has seen. Arey, complete peace. There is unity among them. There are many family members who love each other. And there are six, five daughters-in-law. You have understood, haven’t you? I have gone and seen with my own eyes. He used to go to the houses of many prosperous persons. He did not used to go to the houses of poor people at all. Whose topic was mentioned? Hm? Brahma Baba’s topic was mentioned. Yes, even at the homes of poor people perhaps there must be someone with a big house, a very big house and one courtyard each. And outside beside such open, open courtyards and if you observe each one, that is it. They are sitting in the same courtyard. She is reading the Gita and they keep on sitting in their Bhakti (devotion to God) only. Baba asked – Do all of you live together? Yes, we live together. So, don’t you have fights? He said – Our place is like heaven. Our place here is a heaven. We never fight with each other. We all live together. And we never fight at all. Peaceful. Such first class.
So, the Father will say, will He not daughter that if you go to someone’s house and look that all the children there are calm. And very comfortable. So, you will observe that there is heaven here. When there is heaven there, then heaven will be something else also, will it not be? That became past, didn’t it? So, they say it is as if there is heaven here. The kingdom is established there. Such a kingdom is established. It comes here a little. The rest live in the abode of peace, shaantidhaam. So, that is going to come later on. So, you children get all this knowledge now. What knowledge did you get? That all those who are firm Suryavanshi souls of the ancient deity religion, aren’t they, belonging to the first number category among the nine categories, they live in a lot of happiness and peace in the last births also.
So, now you children understand as to how this heaven is established. How those who do not come, do not become Brahmins, then they will indeed perish. Fifth page of the morning class dated 1.12.67, Friday, second line. As regards those who become Brahmins, will very few become? No, all those who are to come in the divine clan, all those are definitely going to come in the Brahmin clan. But just as Baba has narrated that the stage of some will be completely nice, first class; he will keep on treading peacefully, completely sweetly, completely sweetly. The one who loves everyone. His words will not hurt anyone. You have understood, haven’t you? If they hurt, then others feel something, don’t they? So, the one who gives sorrows to others, will he ever sit here and speak? Didi asks, doesn’t she that has anyone given such sorrows to anyone? Yes, they will never raise their hands. And they give sorrows to someone or the other everyday. You will definitely observe. They give [sorrows]. So, this Baba narrates the topics of experience. They will give sorrows to someone or the other, someone or the other. Through the mind, through the words. Achcha, leave the mind also. If they come in words, they will definitely give sorrows through words. He will do such things, will he not? They will definitely give sorrows. So, they are called punyatma (noble souls), papatma (sinful souls). So, then does anyone take the name of the body? Hm? They don’t say sinful body. Noble, noble body. No. So, actually it is correct – noble soul, sinful soul. So, children know that all the sinful souls are not alike. They are never alike. And all the noble souls are not alike. You observe. Will everyone become Brahmins alike? They will not become. Hm? If they become similar Brahmins here, then will all these religions that are spread in the world, will they be established? Hm? They will not be established.
So, everyone is numberwise as per purusharth and they too understand that here because in studies does anyone understand as to how my character is? Achcha, how is my stage? Doesn’t any student understand? Can’t he understand? They understand everything. They understand very nicely. So, the Father says that they understand everything as to how we tread, what is our stage? Hm? How sweet we become! If anyone says anything to us, then we don’t give them any inappropriate reply any time. Is it not? Children love everyone. So, children say many times – Baba, we feel angry. We slap these children. So, Baba says – Manage them with love as much as possible. However they are young children, aren’t they? Hm? A topic of which world was mentioned? Hm? Was a topic of this place mentioned? Wasn’t a topic of the lokik world mentioned? Yes, a topic of that place was also mentioned. And a topic of that place was mentioned so that it can tallywith this place. So, who are the young children here as well? Hm? Those who do not have wisdom, those who have less knowledge, they are young children. They cannot grasp Shrimat.
So, it was told – As much as possible, with love, you can catch hold of their ears a little for their benefit. So, this is why there is an example, isn’t it daughter? Nobody can ever say anything to Krishna. Not at all. Why? Then why did he used to be tied with an okhli (a pounder)? So, that topic is of this place, isn’t it? Hm? Of which place? Hm? That topic is of the world of Brahmins, isn’t it? It is a topic to understand and explain. So, Baba says – If anyone is very young, then okay, yes, you can tie them to the legs of the cot. Or you can lock them inside a house, a room. Hm? Or you can tie them with a rope to a tree. But do not slap. It is because whatever you do, they, they start learning the same thing. Well, it is not that when he grows up, then he will sit and speak to the parents with something. No. He will not learn at all; will he? He will keep on growing; will he sit and do that to the elders? This is a teaching for the young ones. So, they ask. And he does. It doesn’t matter. So, you can catch his ears. That too when he troubles you a lot. So, there are such children. They make your life very hard. Stealing, etc. Hm? So, when they steal, then you should become detached as well, will you not?
You get all the teachings as well. And you also understand that you have to definitely become like this. Hm? It is because it is for you daughter. What? You have an aim-object. These are standing, aren’t they? In that, in the schools, etc. the aim-object is not standing. So, this aim-object is shown to you here only. And it is a completely highest aim-object. There is no aim-object higher than these. Why? It is because the teacher Himself is highest. So, the aim-object is also highest. So, all the virtues are sung in the highest, aren’t they? Who is there who doesn’t sing the virtues of Krishna? They sing – Perfect in all the virtues, perfect in 16 celestial degrees, completely viceless, Maryadas Purushottam (highest among all the souls in following the code of conduct), non-violence – the highest dharma of deities. So, all these virtues belong to them. Achcha, the praises that are sung belong to them, don’t they? Rightly they sing. Now children have come to know. So, those who sing their praises, which they were, you yourself are becoming that Shri Krishna now.
Look, how Baba teaches you as to why you have come here? You have come only to become this. The aim-object is absolutely this. It is because your story itself is of the true Narayan. Hm? It is the story of becoming Narayan from true nar (man). It is a story of eternity (amarkatha) as well. This is a story to go to the abode of eternity (amarpuri), isn’t it? It is the story of the third eye, the story of Teejri. The story of becoming Trikaaldarshi (the one who knows the past, present and future). So, you get all the three types of stories. Sixth page of the morning class dated 1.12.67. You do get all the three kinds of stories. And nobody will narrate like this. None of those sanyasis, etc. knows about these topics. Nobody knows. Why? No human being will be called like this. What? What will they not be called? He is an ocean of knowledge. He is a purifier of the sinful ones. Will everyone be called sinful? Will you be able to call anyone a purifier of the sinful ones? While the entire world is sinful? So, whom should we call purifier of the sinful ones? This entire world is sinful, isn’t it daughter? So, whom should we call righteous – this sinful world or the unrighteous world? It is because when we use the word ‘righteous’, then we remember the Golden Age a lot. And then these come to the mind. These come to the mind also when we become noble souls. Well, where will noble souls emerge from in this world? So, the Father comes and explains all these topics to the children. Om Shanti. (End) ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2951, दिनांक 24.07.2019
VCD 2951, dated 24.07.2019
प्रातः क्लास 01.12.1967
Morning Class dated 01.12.1967
VCD-2951-Bilingual
समय- 00.01-29.58
Time- 00.01-29.58
प्रातः क्लास चल रहा था पहली दिसम्बर, 1967. शुक्रवार को पांचवीं लाइन में बात चल रही थी – जो साहूकार राजे होते हैं उनकी गद्दी पाते हैं। क्या इसने ऐसे राजगद्दी पाई? जैसे कर्म किया पूर्व जन्म में वैसे ही इनको ये धन मिला। नहीं? बाबा का तुमको कर्म सिखलाना बिल्कुल ही न्यारा है। अभी गाया जाता है। इनकी करम की गति न्यारी। करम, अकर्म, विकर्म हैं। वो अक्षर क्लीयर हैं। ये ठीक लिखे हैं ना अक्षर। कहते हैं ना आटे में लून मिसल। तुम कोई श्लोक या उनका ऐसा है जिनसे अर्थ निकल सकते हैं। माना सब झूठ नहीं होती है। जैसे वो लोग कहते हैं भई प्रलय होती है। देखो, सब प्रलय होती है? तो कहेंगे ना भई। आटे में लून मिसल है। क्योंकि देखो तो सही। और कहां 500 आदमी ये इस समय में और कहां बाकि नौ लाख। तो क्या परसेन्टेज हुआ? अरे, कहेंगे क्वार्टर परसेन्ट भी नहीं हुआ। तो इसको फिर कहा जाता है आटे में लून अर्थात् पूरी दुनिया विनाश नहीं होती है। कोई जरूर रहते हैं। इनको ही कहा जाता है आटे में लून। माना बहुत थोड़े रहते हैं। पीछे तो वृद्धि तो बहुत पाते हैं ना? तो ये कैसे होते हैं ये पुराने? कि जाते हैं, यहीं रहते हैं, संगम के समय। नहीं। संगम के समय दोनों रहते हैं। वो भी रहते हैं, वो भी रहते हैं।
तो कहा जाता है ना कि भई ये मर गया, ये शरीर छोड़ दिया। जाकर कहां आके रहा। भई क्यों गया? कि ये रिसीव करने के लिए गया। समझा ना? एक दो को रिसीव करना है। तो रिसीव करने गया। क्योंकि वो भी ज्ञानी। यहां के भी जो आत्मा वो भी ज्ञानी। तो रिसीव कौन करेगा? तो ज्ञानी आत्मा होगी वो ही दूसरे ज्ञानी आत्मा को रिसीव करेगी। कोई पतित आत्मा नहीं होगी तो कोई थोड़ेही उनको करेगी? नहीं। बाबा समझाया ना जो भी यहां के बच्चे हैं नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार जो बिल्कुल ही अच्छे। हम कहते हैं ना कभी-कभी जैसे वो मुगली गई तो अच्छी थी ना? तो उसने जन्म कहां लिया होगा? बिल्कुल अच्छे घर में। है ना? नंबरवार जैसे-जैसे जो जाते हैं ऐसे नंबरवार वहां जाकरके जन्म लेते हैं। और सुख में क्योंकि वो सुख तो उनको देखना ही है। फिर थोड़ा दुख भी होगा। वो तो जरूर होगा क्योंकि सब तो कर्मातीत अवस्था तो हुई नहीं है ना किसी की। तो इसलिए जनम जो लेते हैं वो बच्ची बड़े घर में जन्म होते हैं। ऐसे नहीं कहेंगे कि स्वर्ग में जाकरके जन्म लिया। नहीं। बड़े सुखी घर में जन्म लेते हैं।
यहां कोई तो ऐसे मत समझो तो यहां कोई सुखी घर नहीं हैं इस दुनिया में। नहीं। परिवार ऐसे-ऐसे हैं बात मत पूछो बच्चे। वो तो यहां के बच्चों ने हज़ार बार क्योंकि बाबा का अनुभव कहते हैं देखा हुआ है। अरे, शांति एकदम। आपस में मेल रहता है। हैं बहुत कुटुंबी जिनका बहुत मेल रहता है। और 6-6, 5-5 बहुएं। समझा ना? मैंने खुद आँखों से जाकरके देखे हैं। वो तो बहुत बड़े आदमियों के घर जाते थे। गरीबों के घर तो जाते ही नहीं थे। किसकी बात हुई? हँ? ब्रह्मा बाबा की बात हुई। हाँ, गरीबों के घर भी शायद होवे ऐसा कोई कि बड़ा मकान, बहुत बड़ा मकान और एक-एक थंबला। और बाहर में ऐसे-ऐसे ओपेन-ओपेन थांबले के बाजू में और एक-एक देखो तो बस। है ही एक थंबले में बैठे हुए हैं। गीता पढ़ रही है और अपने-अपनी भक्ति में ही बैठे रहते हैं एकदम। बाबा पूछा – सब इकट्ठे रहते हो? हाँ, इकट्ठे रहते हैं। तो क्या कोई झगड़ा-वगड़ा नहीं होता है? बोला हमारे पास तो ऐसे जैसे स्वर्ग है। हमारे पास यहां स्वर्ग है। हम कभी भी आपस में लड़ते-झगड़ते नहीं हैं। हम सब इकट्ठे रहते हैं। और कभी झगड़ा होता ही नहीं है। शांत। ऐसी फर्स्टक्लास।
तो बाप कहेंगे ना बच्ची जिसके घर में जाओ और देखो कि वहां सभी बच्चे शांत हैं। और बहुत आराम से। तो देखेंगे यहां तो स्वर्ग लगा पड़ा है। जब वहां स्वर्ग लगा पड़ा है तो स्वर्ग तो कोई और चीज़ भी होगी ना? वो पास्ट हो गई ना? तो कहते हैं यहां तो जैसे स्वर्ग लगा पड़ा है। वहां राजधानी स्थापन होती है। इतनी राजधानी स्थापन होती। थोड़ी यहां आती है। बाकि शांतिधाम, शांतिधाम में रहते हैं। तो वो तो पीछे आने वाली है। तो ये सभी ज्ञान अभी तुम बच्चों को मिलता है। क्या ज्ञान मिला? कि जो भी देवी-देवता सनातन धर्म की पक्की सूर्यवंशी आत्माएं होंगी ना, हँ, नौ कुरियों में से पहले नंबर की कुरी के, वो तो अंतिम जन्मों में भी बड़े सुख-शांति से रहते हैं।
तो अभी तुम बच्चों को मिलते हैं कि कैसे ये स्वर्ग स्थापन होता है। कैसे वो जो भी नहीं आते हैं, ब्राह्मण नहीं बनते हैं वो तो खतम ही हो जाएगा। 1.12.67 का प्रातः क्लास, पांचवां पेज, शुक्रवार, दूसरी लाइन। बाकि ये ब्राह्मण जो बनते हैं कोई थोड़े थोड़ेही बनेंगे। नहीं, जो भी दैवी घराने में आने वाले हैं वो सभी ब्राह्मण घराने में आने वाले हैं ही हैं। परन्तु अवस्था जैसे बाबा ने बताया है ना कोई की बिल्कुल अच्छी फर्स्टक्लास, चलता रहेगा शांत, बिल्कुल मीठा, एकदम मीठा। सबको प्यार करने वाला। उनकी बात कोई को भी छिदेगा नहीं। समझा ना? कि छिद देने से दूसरों को कुछ होता है ना? तो वो जिसको दुख देने वाला वो तो कभी यहां बैठकरके बोले ना? दीदी पूछती ना कि कोई ने किसी को दुख दिया है? हाँ, कभी हाथ नहीं उठाएंगे। और रोज दुख देते हैं ना कोई-कोई को। जरूर देखेंगे। देते हैं। तो ये बाबा अनुभव की बातें बताते हैं। कोई न कोई को, कोई न कोई को दुख जरूर देंगे। मनसा से, वाचा से। अच्छा, मनसा का भी छोड़ो। जबकि वाचा में आवे, पर वाचा से दुख जरूर देगा। ऐसे-ऐसे करेगा ना? दुख जरूर देंगे। तो कहते ही हैं पुण्यात्मा, पापात्मा। तो फिर क्या कोई शरीर का नाम लेते हैं क्या? हँ? शरीर पाप, ऐसे तो नहीं कहते। पुण्य, पुण्य शरीर। नहीं। तो है वास्तव में बात ये कि बरोबर पुण्यात्मा, पापात्मा। तो ये बच्चों को मालूम है कि सभी पापात्मा कोई एक जैसे नहीं होते हैं। कभी भी नहीं होते हैं एक जैसे। और सभी पुण्यात्मा भी कोई एक जैसे नहीं होते। देखते हो। ब्राह्मण बनेंगे सभी एक जैसे? नहीं बनेंगे। हँ? अगर यहां एक जैसे ब्राह्मण बन जावें तो दुनिया में ये इतने धरम फैले हुए हैं ये बनेंगे? हँ? नहीं बनेंगे।
तो सब नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार और वो भी वो समझते हैं कि यहां क्योंकि पढ़ाई में क्या कोई समझते होंगे कि मेरा कैरेक्टर कैसा है? अच्छा, मेरी अवस्था कैसी है? क्या कोई स्टूडेन्ट समझता नहीं होगा? नहीं समझ सकता? सब समझते हैं। बिल्कुल अच्छी तरह से समझते हैं। तो बाप बोलते हैं ये समझते सब कुछ हैं कि हम कैसे चलते हैं, हमारी अवस्था कैसी है? हँ? हम कैसे मीठे बनते हैं। हम कोई भी कुछ कहे तो हम उनको कभी भी कोई उल्टा-पुल्टा, सुल्टा जवाब नहीं देते हैं। है ना? सबको प्यार करते हैं बच्चे। तो बच्चे बहुत कहते हैं बाबा हमको तो गुस्सा लगता है। इन बच्चों को चमाट मार देते हैं। तो बाबा कहते हैं जितना हो सके उतना प्यार से चलाओ। फिर भी ये छोटे बच्चे हैं ना? हँ? कौनसी दुनिया की बात बताई? हँ? यहां की बात बताई? लौकिक दुनिया की बात नहीं बताई? हाँ, वहां की भी बात बताई। और वहां की बात इसलिए बताई कि यहां से टैली हो जाए। तो यहां भी छोटे बच्चे कौन हुए? हँ? जिनमें समझदारी नहीं है, ज्ञान कम है, तो छोटे बच्चे हैं। श्रीमत को नहीं पकड़ सकते हैं।
तो बताया - जितना हो सके इतना प्यार से उनकी भलाई के लिए थोड़ा सा कान पकड़ सकते हो। तो इसलिए दृष्टांत है ना बच्ची? कृष्ण को तो कभी कोई कुछ कह नहीं सके। बिल्कुल नहीं। क्यों? फिर ओखली से क्यों बांधते थे? तो वो बात तो यहां की है ना? हँ? कहां की? हँ? वो बात ब्राह्मणों की दुनिया की है ना? समझने-समझाने की बात है। तो बाबा कहते हैं कोई भी छोटा होवे एकदम तो उनको चलो, हाँ, जो खटिया की पाइयां हैं ना उनसे बांध दियो। या तो कोई कोठी, कोठरी में बंद कर दियो। हँ? या कोई झाड़ से बंद कर दियो रस्सी से। बाकि थप्पड़ नहीं मारो। क्योंकि जो कुछ भी तुम करेंगे वो, वो ही करना सीख जाते हैं। अभी ऐसा तो नहीं है कि बड़ा होगा तो मां-बाप को बैठकरके बोलेगा कोई चीज़ से। नहीं। वो सीखेगा ही नहीं ना? बड़ा होता जाएगा, वो बड़ों को थोड़ेही बैठकरके। ये तो छोटों के लिए शिक्षा है। तो पूछते हैं। और वो करता है। हर्जा नहीं है। तो कान से पकड़ सकते हो। वो भी बिल्कुल तंग करे तो। तो ऐसे बच्चे होते हैं। नाक में दम कर देते हैं एकदम। चोरी-चकारी, वगैरा-3। हँ? तो चोरी-चकारी करते हैं तो फिर वो निर्मोही भी बनना चाहिए ना?
शिक्षाएं भी सभी मिलती हैं। और ये भी समझते हैं कि तुमको ऐसा ज़रूर बनना है। हँ? क्योंकि तुम्हारे लिए तो बच्ची है। क्या? एम-आब्जेक्ट है। ये खड़े हैं ना? उसमें कोई स्कूल वगैरा में कोई खड़े नहीं होते हैं एम-आब्जेक्ट। तो ये तो एम-आब्जेक्ट तुमको यहीं दिखाई जाती है। और एकदम हाइएस्ट एम-आब्जेक्ट है। इनसे ऊँची तो एम-आब्जेक्ट तो कोई होती नहीं। क्यों? क्योंकि पढ़ाने वाला ही हाइएस्ट। तो एम-आब्जेक्ट भी हाइएस्ट। तो हाइएस्ट में तो सब गुण गाते हैं ना? कृष्ण के गुण ऐसा कौन होगा जो नहीं गाते होंगे? गाते हैं - सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसा देवी-देवता परमोधर्म। तो ये सभी गुण उनको हैं। अच्छा, वो उनकी है ना जो महिमा गाते हैं। बरोबर गाते हैं। अभी बच्चों को मालूम पड़ा। तो जो उनकी महिमा गाने वाले हैं जो वो थे वो खुद श्री कृष्ण अभी तुम बन रहे हो।
देखो, तुमको बाबा कैसे सिखलाते हैं तुम यहां क्यों आए हो? तुम यहां आए ही हो ये बनने के लिए। एम-आब्जेक्ट सिर्फ एब्सोल्यूटली ये है। क्योंकि कथा ही है तुम्हारी सत्य नारायण की। हँ? सत्य नर से नारायण बनने की कथा है। अमरकथा भी है। अमरपुरी में जाने के लिए ये कथा है ना? तीसरा नेत्र, तीजरी की कथा। त्रिकालदर्शी बनने की कथा। तो तुमको तीनों ही प्रकार की कथाएं मिलती हैं। 1.12.67 की प्रातः क्लास का छठा पेज। मिलती तो हैं तीनों प्रकार की कथाएं। और ऐसे तो कोई सुनाएगा भी नहीं। कोई सन्यासी-वन्यासी तो वो जानते भी नहीं हैं इन बातों को। कोई भी नहीं जानते हैं। क्यों? कोई भी मनुष्य मात्र को ऐसे नहीं कहेंगे। क्या? क्या नहीं कहेंगे? ज्ञान का सागर है। पतित-पावन है। सबको थोड़ेही कहेंगे पतित? यहां किसको कह सकेंगे पतित-पावन? जबकि सारी सृष्टि पतित है। तो हम किसको कहें पतित-पावन? ये सारी सृष्टि पतित है ना बच्ची? तो पतित सृष्टि के या भ्रष्टाचारी सृष्टि को, हम किसको कहें श्रेष्ठाचारी? क्योंकि श्रेष्ठाचारी अक्षर आने से हमको सतयुग की बहुत याद आती है। और फिर ये याद पड़ते हैं। जब पुण्यात्मा तभी भी ये याद पड़ते हैं। अब इस दुनिया में यहां कहां से आए पुण्यात्माएं? तो बाप आकरके ये सब बातें बच्चों को समझाते हैं। ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated first December, 1967 was being discussed. The topic being discussed in the fifth line on Friday was – The prosperous kings obtain their thrones. Did this one achieve throne in this manner? As were the actions they performed in the previous birth, they got the wealth accordingly. No? Baba’s way of teaching you actions is completely strange. Now it is sung. The dynamics of the actions of these is strange. There is karma, akarma and vikarma. Those words are clear. These words have been rightly written, haven’t they been? It is said, isn’t it that it is like salt in wheat flour. You can interpret meaning from any shlok (verse) or any such thing of theirs’. It means that everything is not false. For example, those people say that brother ‘pralai’ (inundation of world with water or destruction of the world) takes place. Look, does entire destruction take place? So, it will be said, will it not be said brother? It is like salt in wheat flour. It is because have a look. And on the one side are 500 [crore] men at this time and on the other side are nine lakhs. So, what is the percentage? Arey, it will be said it is not even a quarter percent. So, this is then called salt in wheat flour, i.e. the entire world is not destroyed. Some definitely live. These are only called salt in wheat flour. It means that very few live. Later they grow a lot in numbers, don’t they? So, how are these old ones? They go, they live here only at the time of confluence. No. Both live at the time of confluence. They too live and they too live.
So, it is said, isn’t it that brother, this one died, this one left his body. He went and then came and where did he stay? Brother, why did he go? He went to receive you. You have understood, haven’t you? You have to receive each other. So, he went to receive. It is because he is also knowledgeable. The souls of this place are also knowledgeable. So, who will receive? So, the soul which is knowledgeable will only receive another knowledgeable soul. If a soul is not sinful, then will it receive it? No. Baba had explained, hadn’t He that all the children here are numberwise as per their purusharth, completely nice. We say, don’t we that sometimes, for example, that Mugli went, so, she was good, wasn’t she? So, where must she have got birth? In a completely good house. Is it not? Numberwise, as and when those who go, similarly they go and get birth there. And in happiness because they have to witness that happiness without fail. Then there will be a little sorrow also. That will definitely be there because all have not achieved karmaateet stage. So, this is why those who get birth, daughter, they get birth in a prosperous house. It will not be said that they went to heaven and got birth. No. They get birth in a very prosperous home.
Here, nobody should think that here there is no happy home in this world. No. Children, there are such families that just do not ask. The children of this place have a thousand times because Baba’s experience says that he has seen. Arey, complete peace. There is unity among them. There are many family members who love each other. And there are six, five daughters-in-law. You have understood, haven’t you? I have gone and seen with my own eyes. He used to go to the houses of many prosperous persons. He did not used to go to the houses of poor people at all. Whose topic was mentioned? Hm? Brahma Baba’s topic was mentioned. Yes, even at the homes of poor people perhaps there must be someone with a big house, a very big house and one courtyard each. And outside beside such open, open courtyards and if you observe each one, that is it. They are sitting in the same courtyard. She is reading the Gita and they keep on sitting in their Bhakti (devotion to God) only. Baba asked – Do all of you live together? Yes, we live together. So, don’t you have fights? He said – Our place is like heaven. Our place here is a heaven. We never fight with each other. We all live together. And we never fight at all. Peaceful. Such first class.
So, the Father will say, will He not daughter that if you go to someone’s house and look that all the children there are calm. And very comfortable. So, you will observe that there is heaven here. When there is heaven there, then heaven will be something else also, will it not be? That became past, didn’t it? So, they say it is as if there is heaven here. The kingdom is established there. Such a kingdom is established. It comes here a little. The rest live in the abode of peace, shaantidhaam. So, that is going to come later on. So, you children get all this knowledge now. What knowledge did you get? That all those who are firm Suryavanshi souls of the ancient deity religion, aren’t they, belonging to the first number category among the nine categories, they live in a lot of happiness and peace in the last births also.
So, now you children understand as to how this heaven is established. How those who do not come, do not become Brahmins, then they will indeed perish. Fifth page of the morning class dated 1.12.67, Friday, second line. As regards those who become Brahmins, will very few become? No, all those who are to come in the divine clan, all those are definitely going to come in the Brahmin clan. But just as Baba has narrated that the stage of some will be completely nice, first class; he will keep on treading peacefully, completely sweetly, completely sweetly. The one who loves everyone. His words will not hurt anyone. You have understood, haven’t you? If they hurt, then others feel something, don’t they? So, the one who gives sorrows to others, will he ever sit here and speak? Didi asks, doesn’t she that has anyone given such sorrows to anyone? Yes, they will never raise their hands. And they give sorrows to someone or the other everyday. You will definitely observe. They give [sorrows]. So, this Baba narrates the topics of experience. They will give sorrows to someone or the other, someone or the other. Through the mind, through the words. Achcha, leave the mind also. If they come in words, they will definitely give sorrows through words. He will do such things, will he not? They will definitely give sorrows. So, they are called punyatma (noble souls), papatma (sinful souls). So, then does anyone take the name of the body? Hm? They don’t say sinful body. Noble, noble body. No. So, actually it is correct – noble soul, sinful soul. So, children know that all the sinful souls are not alike. They are never alike. And all the noble souls are not alike. You observe. Will everyone become Brahmins alike? They will not become. Hm? If they become similar Brahmins here, then will all these religions that are spread in the world, will they be established? Hm? They will not be established.
So, everyone is numberwise as per purusharth and they too understand that here because in studies does anyone understand as to how my character is? Achcha, how is my stage? Doesn’t any student understand? Can’t he understand? They understand everything. They understand very nicely. So, the Father says that they understand everything as to how we tread, what is our stage? Hm? How sweet we become! If anyone says anything to us, then we don’t give them any inappropriate reply any time. Is it not? Children love everyone. So, children say many times – Baba, we feel angry. We slap these children. So, Baba says – Manage them with love as much as possible. However they are young children, aren’t they? Hm? A topic of which world was mentioned? Hm? Was a topic of this place mentioned? Wasn’t a topic of the lokik world mentioned? Yes, a topic of that place was also mentioned. And a topic of that place was mentioned so that it can tallywith this place. So, who are the young children here as well? Hm? Those who do not have wisdom, those who have less knowledge, they are young children. They cannot grasp Shrimat.
So, it was told – As much as possible, with love, you can catch hold of their ears a little for their benefit. So, this is why there is an example, isn’t it daughter? Nobody can ever say anything to Krishna. Not at all. Why? Then why did he used to be tied with an okhli (a pounder)? So, that topic is of this place, isn’t it? Hm? Of which place? Hm? That topic is of the world of Brahmins, isn’t it? It is a topic to understand and explain. So, Baba says – If anyone is very young, then okay, yes, you can tie them to the legs of the cot. Or you can lock them inside a house, a room. Hm? Or you can tie them with a rope to a tree. But do not slap. It is because whatever you do, they, they start learning the same thing. Well, it is not that when he grows up, then he will sit and speak to the parents with something. No. He will not learn at all; will he? He will keep on growing; will he sit and do that to the elders? This is a teaching for the young ones. So, they ask. And he does. It doesn’t matter. So, you can catch his ears. That too when he troubles you a lot. So, there are such children. They make your life very hard. Stealing, etc. Hm? So, when they steal, then you should become detached as well, will you not?
You get all the teachings as well. And you also understand that you have to definitely become like this. Hm? It is because it is for you daughter. What? You have an aim-object. These are standing, aren’t they? In that, in the schools, etc. the aim-object is not standing. So, this aim-object is shown to you here only. And it is a completely highest aim-object. There is no aim-object higher than these. Why? It is because the teacher Himself is highest. So, the aim-object is also highest. So, all the virtues are sung in the highest, aren’t they? Who is there who doesn’t sing the virtues of Krishna? They sing – Perfect in all the virtues, perfect in 16 celestial degrees, completely viceless, Maryadas Purushottam (highest among all the souls in following the code of conduct), non-violence – the highest dharma of deities. So, all these virtues belong to them. Achcha, the praises that are sung belong to them, don’t they? Rightly they sing. Now children have come to know. So, those who sing their praises, which they were, you yourself are becoming that Shri Krishna now.
Look, how Baba teaches you as to why you have come here? You have come only to become this. The aim-object is absolutely this. It is because your story itself is of the true Narayan. Hm? It is the story of becoming Narayan from true nar (man). It is a story of eternity (amarkatha) as well. This is a story to go to the abode of eternity (amarpuri), isn’t it? It is the story of the third eye, the story of Teejri. The story of becoming Trikaaldarshi (the one who knows the past, present and future). So, you get all the three types of stories. Sixth page of the morning class dated 1.12.67. You do get all the three kinds of stories. And nobody will narrate like this. None of those sanyasis, etc. knows about these topics. Nobody knows. Why? No human being will be called like this. What? What will they not be called? He is an ocean of knowledge. He is a purifier of the sinful ones. Will everyone be called sinful? Will you be able to call anyone a purifier of the sinful ones? While the entire world is sinful? So, whom should we call purifier of the sinful ones? This entire world is sinful, isn’t it daughter? So, whom should we call righteous – this sinful world or the unrighteous world? It is because when we use the word ‘righteous’, then we remember the Golden Age a lot. And then these come to the mind. These come to the mind also when we become noble souls. Well, where will noble souls emerge from in this world? So, the Father comes and explains all these topics to the children. Om Shanti. (End) ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2952, दिनांक 25.07.2019
VCD 2952, dated 25.07.2019
प्रातः क्लास 01.12.1967
Morning class dated 01.12.1967
VCD-2952-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-13.53
Time- 00.01-13.53
प्रातः क्लास चल रहा था 1.12.1967. शुक्रवार को छठे पेज के मध्यादि में बात चल रही थी – श्रेष्ठाचारी अक्षर बुद्धि में आने से हमको सतयुग याद पड़ता है। और ये याद पड़ते हैं जब पुण्यात्मा हैं। तभी भी याद पड़ते हैं। अब यहां इस दुनिया में पुण्यात्माएं कहा से आए? बाप आकरके बच्चों को सब बातें समझाते हैं तुम बच्चे यहां पतित हैं। भले ये सन्यासी पवित्र हैं परन्तु इनको कोई ये पुरुष ये श्रेष्ठाचारी थोड़ेही कहेंगे। क्यों नहीं कहेंगे? हँ? क्योंकि इनकी पैदाइश ही भ्रष्ट इन्द्रियों से होती है। जैसे सबकी होती है। तो श्रेष्ठाचारी कैसे हुए? देवताएं तो श्रेष्ठाचार से पैदा होते हैं। ज्ञानेन्द्रियां श्रेष्ठ हैं ना? तो श्रेष्ठ इन्द्रियों के आचरण से जन्म होता है। ये तो बाप ने समझाया ये तो जनम बाइ जनम सन्यास लेंगे, पुनर्जन्म लेंगे। अच्छा, बाबा के लिए कोई कहेंगे। ये बाबा तुम्हारा पुनर्जन्म लेंगे? कोई तो बतावे बाबा के लिए। कोई नहीं बताय सकेगा। कि बाप ने बताय दिया, अव्वल नंबर वाले का नाम बताय दिया। उससे अव्वल तो और कोई हो नहीं सकता दूसरा। हँ? उससे किसके लिए बोला? उससे माना दूर किया ना? सन्मुख भी नहीं। बाजू में भी नहीं।
श्री कृष्ण के पहले अव्वल तो कोई है ही नहीं। हँ? ब्रह्मा बाबा क्या समझेंगे? हाँ, ये तो बिल्कुल सही बात। श्री कृष्ण से पहले नंबर में अव्वल तो कोई और होता ही नहीं। और तुम बच्चों को बुद्धि में क्या आएगा? हँ? तो किसका नाम बताएंगे? किसका बताएंगे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) अरे, कृष्ण की बात हो रही है। कृष्ण से पहले तो अव्वल नंबर कोई होता ही नहीं। कृष्ण की बात हो रही है, नारायण को बताय रहे। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, संगमयुगी कृष्ण। जब बाप आते हैं क्योंकि जो भी यादगार हैं, त्यौहार हैं, मन्दिर हैं; देवताओं के नाम देवी-देवियों के हैं वो कहां की यादगार हैं? संगमयुग की यादगार हैं ना? तो कृष्ण की बात हो रही है तो श्री कृष्ण जरूर संगमयुग में हुआ होगा।
तो बाप तो अव्वल नंबर में बताय रहे हैं कि श्री कृष्ण और फिर वो ही भूल निकालते हैं कि श्री कृष्ण भगवानुवाच। हँ? वो ही माने कौन? हँ? ये भूल को निकालते भी कौन हैं जो हुई है? बड़े ते बड़ी भूल हुई है जो गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया। वो ही कौन निकालते हैं भूल? हँ? अरे, वो श्री कृष्ण जो अव्वल नंबर बताया प्रैक्टिकल में पार्ट बजाने वाला है ना? हाँ। तो वो संगमयुगी श्री कृष्ण बच्चा ही बना रहेगा क्या? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। तो भूल निकालते हैं कि श्री कृष्ण भगवानुवाच वो कैसे हो सकता है? बच्चा कैसे ज्ञान सुनाएगा? कैसे राजयोग सिखाएगा? क्योंकि ये भगवानुवाच। अरे, वो भगवान तो जनम-मरण रहित है ना? और वो तो एक ही है। बरोबर गाया ही ऐसे जाता है। कैसे? शिव परमात्माय नमः। हँ? शिव को परमात्माय कहें या परमपिता कहें? हँ? शिव निराकार ज्योति बिन्दु आत्मा को तो कहेंगे कि आत्माओं का बाप परमपिता। परन्तु नमन करने की बात जब आती है, हँ, तो कब? कब नमन? जब प्रवेश करे। तो जो परमात्म पार्टधारी है; परम माने बड़ा। बड़े ते बड़ा। कैसी आत्मा? ऊँच ते ऊँच सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने वाला हीरो पार्टधारी। तो उसमें प्रवेश करते हैं। इसलिए कहा जाता है शिव परमात्माय नमः। तो तुम बता तो सकते हो ना सबको। जबकि तुम ब्रह्मा को देवता कहते हो। और विष्णु को देवता कहते हो। शंकर को देवता कह देते हो। शंकर को देवताय नमः कहकरके फिर आखरीन शिव परमात्माय नमः कह देते हो।
फिर उस परमात्मा को फिर तुम ऐसे क्यों कहते हो कि परमात्मा सर्वव्यापी है? तभी ब्रह्मा में भी व्यापी है, सर्वव्यापी है; तभी ब्रह्मा के, हाँ, ब्रह्मा देवताय नमः क्यों कहते हो? हँ? ब्रह्मा में आता है। जैसे गीता में लिखा है ना मैं प्रवेष्टुम। मैं प्रवेश करने योग्य हूँ। तो ब्रह्मा में आता है तो वो ही हुआ ना सबसे श्रेष्ठ जो ब्रह्मा के अंदर आता है। और वो कोई देवता थोडेही है। वो देवता बनता है क्या? नहीं। न वो श्रेष्ठ बनता है, न भ्रष्ट बनता है। जो श्रेष्ठ बने उसको भ्रष्ट भी बनना पड़े। ऊँच जाएगा तो नीचे भी जाएगा। तो है ना तुम बच्चों के पास। क्या? ये समझ। अच्छी तरह से समझ मिलती रहती है बहुत। और दिन-प्रतिदिन प्वाइंट्स मिलते रहते हैं। और है एक ही प्वाइंट। सभी बाबा बाबा कहते हैं। हँ? किसको भी समझाओ, कभी भी समझाओ। तो पहले बाबा के पास, हँ, बाबा ये कहते हैं, बाबा वो कहते हैं। समझा ना? भगवानुवाच है। तो बाबा एक है ना? बाबा तो ग्रांडफादर को कहा जाता है ना? बच्चा कैसे ग्रांड फादर हो जावे?
ये है ना शिव परमात्माय नमः। ये ब्रह्मा, ये विष्णु, शंकर, ये देवताएं हैं। हैं ना? तो इन तीनों देवताओं से ऊपर तो भगवान हुआ ना? भगवान ऊँचा या देवताएं ऊँचे? अरे, भगवान तो है ही नर को नारायण बनाने वाला। तो जो बनाने वाला है तो ऊँचा हुआ ना? अच्छा। तो शिव को तो परमात्मा कहें ना? हँ? सबका बाप। हाँ, ये तो है कि वर्सा तो बाप से ही मिलेगा। सर्वव्यापी तो कोई, कोई से वर्सा तो मिल ही नहीं सकता। तो बाप से तो वो बाप को ही देखना पड़े। क्या? कौनसे बाप को? वो बाप को ही देखना पड़े। और बाप वर्सा जो देते हैं स्वरग का, तो स्थापन करने वाला है ना? तो जो स्थापन करते हैं स्वर्ग का वर्सा ही देंगे। तो ये स्वरग का वर्सा देखो नंबरवन। तो तुम बच्चों को अभी मालूम हुआ कि ये पढ़ाई से मिलता है। आगे कभी किसी को पता था कि पढाई से, योग से, हँ, ये स्वर्ग का वर्सा मिलता है? अभी प्राचीन योग तो बहुत मशहूर है भारत का। अभी प्राचीन भारत का योग क्यों नहीं मशहूर होगा जिससे मनुष्य पतित से पावन बनें? और पावन बनके ये बनें। क्या? विश्व के मालिक। तो उनका नाम, बस उनका ही तो नाम होगा ना बड़े ते बड़ा? तो वो हुआ ना? प्राचीन भारत का सहज योग और सहज ज्ञान। (क्रमशः)
A morning class dated 1.12.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the sixth page on Friday was – When the word ‘shreshthachari’ (righteous) comes to our intellect, then we remember the Golden Age. And you remember this when you are noble souls (punyatma). Only then do you remember. Well, here in this world where will the noble souls emerge from? The Father comes and explains all the topics to the children that you children are sinful here. Although these sanyasis are pure, but will these men be called righteous? Why will they not be called? Hm? It is because their birth itself takes place through the unrighteous organs. Just as all are born. So, how can they be righteous? Deities are born through righteousness. The sense organs are righteous, aren’t they? So, they are born through the acts of the righteous organs. The Father has explained that these will take sanyas (i.e. renounce the household) birth by birth and get rebirth. Achcha, someone may say for Baba. Will your Baba get rebirth? Someone should tell about Baba. Nobody will be able to tell. That the Father has revealed; He has revealed the name of the number one. Nobody else can be numberone when compared to him. Hm? For whom was ‘him’ (us se) said? ‘Us se’ means that he was made distant, wasn’t he? Not even face to face. Not even beside.
Nobody is number one before Shri Krishna at all. Hm? What will Brahma Baba think? Yes, this is absolutely correct topic. Nobody else is number one before Shri Krishna at all. And what will come to the intellect of you children? Hm? So, whose name will you tell? Whose will you tell? Hm? (Someone said something.) Arey, the topic of Krishna is being discussed. Nobody is number one before Krishna at all. The topic of Krishna is being discussed, Narayan is being mentioned. (Someone said something.) Yes, Confluence-Age Krishna. When the Father comes, because whatever memorials are there, whatever festivals, temples are there, whatever names of female or male deities are there, they are memorials of which time? They are memorials of the Confluence Age, aren’t they? So, the topic of Krishna is being discussed. So, Shri Krishna must definitely have existed in the Confluence Age.
So, the Father is telling about the number one that Shri Krishna and then the same mistake emerges that Shri Krishna Bhagwanuvaach (God Shri Krishna speaks). Hm? ‘The same’ refers to whom? Hm? Who makes this mistake which has been committed to emerge? The biggest mistake that has been committed is that the name of Krishna has been inserted in the Gita. Who is ‘the same’ who makes the mistake to emerge? Hm? Arey, the same Krishna who was mentioned to be number one in playing the part in practical, isn’t he? Yes. So, will that Confluence Age Shri Krishna remain a child only? (Someone said something.) Yes. So, the mistake is made to emerge that how can it be ‘God Shri Krishna speaks’? How will a child narrate knowledge? How will he teach rajyog? It is because this Bhagwaanuvaach. Arey, that God is beyond birth and death, isn’t He? And He is only one. It is rightly sung like this only. How? Shiv Parmaatmaay namah. Hm? Should Shiv be called Paramaatmaay (Supreme Soul) or Parampita (Supreme Father)? The incorporeal point of light Shiv soul will be called the Father of souls, the Supreme Father. But when the topic of bowing comes, so, when? When do you bow? It is when He enters. So, the Supreme actor; Supreme means big. The biggest one. What kind of a soul? The hero actor, who plays the highest on high part on the world stage. So, He enters in him. This is why it is said – Shiv Parmaatmaay namah. So, you can tell everyone, can’t you? When you call Brahma as a deity; And you call Vishnu as a deity. You call Shankar a deity. You call Shankar as ‘Devtaay namah’ (I bow to the deity) and then ultimately you say ‘Shiv Parmaatmaay namah’ (I bow to Shiv, the Supreme Soul).
Then why do you say for that Supreme Soul that the Supreme Soul is omnipresent? That is why He is present in Brahma also, He is omnipresent; That is why Brahma, yes, why do you say Brahma Devataay Namah (I bow to Brahma, the deity)? Hm? He comes in Brahma. For example, it is written in the Gita, hasn’t it been that I enter Praveshtum? I am capable of entering. So, when He comes in Brahma then He Himself is the most righteous one who comes in Brahma. And He is not a deity. Does He become a deity? No. Neither does He become righteous nor does He become unrighteous. The one who becomes righteous will have to become unrighteous as well. If He goes high, then He will also go down. So, you children do have, don’t you? What? This wisdom. You keep on getting a lot of wisdom nicely. And day by day you keep on getting points. And there is only one point. Everyone keeps on telling Baba, Baba. Hm? Whomsoever you explain, whenever you explain. So, first with Baba, hm, Baba says this, Baba says that. You have understood, haven’t you? It is Bhagwaanuvach (God’s words). So, Baba is one, isn’t He? Grandfather is called Baba, isn’t he? How can a child be a grandfather?
This is Shiv Parmaatmaay namah, isn’t it? This Brahma, this Vishnu, Shankar, these are deities. They are [deities], aren’t they? So, God is above these three deities, isn’t He? Is God higher or are the deities higher? Arey, God is the one who transforms nar (man/human being) to Narayan. So, the maker is higher, isn’t He? Achcha. So, Shiv will be called Parmatma (Supreme Soul), will He not be? Hm? Everyone’s Father. Yes, it is correct that the inheritance will be received from the Father only. As regards omnipresence, one cannot get inheritance from anyone at all. So, from the Father; that Father will only have to see. What? Which Father? That Father will only have to see. And the inheritance of heaven that the Father gives, so, He is the one who establishes it, isn’t He? So, the one who establishes will give the inheritance of heaven only. So, look this inheritance of heaven is number one. So, you children have now come to know that this is received through studies. Earlier did anyone know that you get the inheritance of heaven through studies, through Yoga? Well, the ancient Yoga of Bhaarat(India) is very famous. Well, why will the ancient Yoga of Bhaarat not be famous through which human beings become pure from sinful? And they become this by becoming pure. What? The masters of heaven. So, His name, that is it, His name alone will be the biggest one, will it not be? So, that is, isn’t it? The easy Yogaand easy knowledge of ancient India. (Continued)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2952, दिनांक 25.07.2019
VCD 2952, dated 25.07.2019
प्रातः क्लास 01.12.1967
Morning class dated 01.12.1967
VCD-2952-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-13.53
Time- 00.01-13.53
प्रातः क्लास चल रहा था 1.12.1967. शुक्रवार को छठे पेज के मध्यादि में बात चल रही थी – श्रेष्ठाचारी अक्षर बुद्धि में आने से हमको सतयुग याद पड़ता है। और ये याद पड़ते हैं जब पुण्यात्मा हैं। तभी भी याद पड़ते हैं। अब यहां इस दुनिया में पुण्यात्माएं कहा से आए? बाप आकरके बच्चों को सब बातें समझाते हैं तुम बच्चे यहां पतित हैं। भले ये सन्यासी पवित्र हैं परन्तु इनको कोई ये पुरुष ये श्रेष्ठाचारी थोड़ेही कहेंगे। क्यों नहीं कहेंगे? हँ? क्योंकि इनकी पैदाइश ही भ्रष्ट इन्द्रियों से होती है। जैसे सबकी होती है। तो श्रेष्ठाचारी कैसे हुए? देवताएं तो श्रेष्ठाचार से पैदा होते हैं। ज्ञानेन्द्रियां श्रेष्ठ हैं ना? तो श्रेष्ठ इन्द्रियों के आचरण से जन्म होता है। ये तो बाप ने समझाया ये तो जनम बाइ जनम सन्यास लेंगे, पुनर्जन्म लेंगे। अच्छा, बाबा के लिए कोई कहेंगे। ये बाबा तुम्हारा पुनर्जन्म लेंगे? कोई तो बतावे बाबा के लिए। कोई नहीं बताय सकेगा। कि बाप ने बताय दिया, अव्वल नंबर वाले का नाम बताय दिया। उससे अव्वल तो और कोई हो नहीं सकता दूसरा। हँ? उससे किसके लिए बोला? उससे माना दूर किया ना? सन्मुख भी नहीं। बाजू में भी नहीं।
श्री कृष्ण के पहले अव्वल तो कोई है ही नहीं। हँ? ब्रह्मा बाबा क्या समझेंगे? हाँ, ये तो बिल्कुल सही बात। श्री कृष्ण से पहले नंबर में अव्वल तो कोई और होता ही नहीं। और तुम बच्चों को बुद्धि में क्या आएगा? हँ? तो किसका नाम बताएंगे? किसका बताएंगे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) अरे, कृष्ण की बात हो रही है। कृष्ण से पहले तो अव्वल नंबर कोई होता ही नहीं। कृष्ण की बात हो रही है, नारायण को बताय रहे। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, संगमयुगी कृष्ण। जब बाप आते हैं क्योंकि जो भी यादगार हैं, त्यौहार हैं, मन्दिर हैं; देवताओं के नाम देवी-देवियों के हैं वो कहां की यादगार हैं? संगमयुग की यादगार हैं ना? तो कृष्ण की बात हो रही है तो श्री कृष्ण जरूर संगमयुग में हुआ होगा।
तो बाप तो अव्वल नंबर में बताय रहे हैं कि श्री कृष्ण और फिर वो ही भूल निकालते हैं कि श्री कृष्ण भगवानुवाच। हँ? वो ही माने कौन? हँ? ये भूल को निकालते भी कौन हैं जो हुई है? बड़े ते बड़ी भूल हुई है जो गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया। वो ही कौन निकालते हैं भूल? हँ? अरे, वो श्री कृष्ण जो अव्वल नंबर बताया प्रैक्टिकल में पार्ट बजाने वाला है ना? हाँ। तो वो संगमयुगी श्री कृष्ण बच्चा ही बना रहेगा क्या? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। तो भूल निकालते हैं कि श्री कृष्ण भगवानुवाच वो कैसे हो सकता है? बच्चा कैसे ज्ञान सुनाएगा? कैसे राजयोग सिखाएगा? क्योंकि ये भगवानुवाच। अरे, वो भगवान तो जनम-मरण रहित है ना? और वो तो एक ही है। बरोबर गाया ही ऐसे जाता है। कैसे? शिव परमात्माय नमः। हँ? शिव को परमात्माय कहें या परमपिता कहें? हँ? शिव निराकार ज्योति बिन्दु आत्मा को तो कहेंगे कि आत्माओं का बाप परमपिता। परन्तु नमन करने की बात जब आती है, हँ, तो कब? कब नमन? जब प्रवेश करे। तो जो परमात्म पार्टधारी है; परम माने बड़ा। बड़े ते बड़ा। कैसी आत्मा? ऊँच ते ऊँच सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने वाला हीरो पार्टधारी। तो उसमें प्रवेश करते हैं। इसलिए कहा जाता है शिव परमात्माय नमः। तो तुम बता तो सकते हो ना सबको। जबकि तुम ब्रह्मा को देवता कहते हो। और विष्णु को देवता कहते हो। शंकर को देवता कह देते हो। शंकर को देवताय नमः कहकरके फिर आखरीन शिव परमात्माय नमः कह देते हो।
फिर उस परमात्मा को फिर तुम ऐसे क्यों कहते हो कि परमात्मा सर्वव्यापी है? तभी ब्रह्मा में भी व्यापी है, सर्वव्यापी है; तभी ब्रह्मा के, हाँ, ब्रह्मा देवताय नमः क्यों कहते हो? हँ? ब्रह्मा में आता है। जैसे गीता में लिखा है ना मैं प्रवेष्टुम। मैं प्रवेश करने योग्य हूँ। तो ब्रह्मा में आता है तो वो ही हुआ ना सबसे श्रेष्ठ जो ब्रह्मा के अंदर आता है। और वो कोई देवता थोडेही है। वो देवता बनता है क्या? नहीं। न वो श्रेष्ठ बनता है, न भ्रष्ट बनता है। जो श्रेष्ठ बने उसको भ्रष्ट भी बनना पड़े। ऊँच जाएगा तो नीचे भी जाएगा। तो है ना तुम बच्चों के पास। क्या? ये समझ। अच्छी तरह से समझ मिलती रहती है बहुत। और दिन-प्रतिदिन प्वाइंट्स मिलते रहते हैं। और है एक ही प्वाइंट। सभी बाबा बाबा कहते हैं। हँ? किसको भी समझाओ, कभी भी समझाओ। तो पहले बाबा के पास, हँ, बाबा ये कहते हैं, बाबा वो कहते हैं। समझा ना? भगवानुवाच है। तो बाबा एक है ना? बाबा तो ग्रांडफादर को कहा जाता है ना? बच्चा कैसे ग्रांड फादर हो जावे?
ये है ना शिव परमात्माय नमः। ये ब्रह्मा, ये विष्णु, शंकर, ये देवताएं हैं। हैं ना? तो इन तीनों देवताओं से ऊपर तो भगवान हुआ ना? भगवान ऊँचा या देवताएं ऊँचे? अरे, भगवान तो है ही नर को नारायण बनाने वाला। तो जो बनाने वाला है तो ऊँचा हुआ ना? अच्छा। तो शिव को तो परमात्मा कहें ना? हँ? सबका बाप। हाँ, ये तो है कि वर्सा तो बाप से ही मिलेगा। सर्वव्यापी तो कोई, कोई से वर्सा तो मिल ही नहीं सकता। तो बाप से तो वो बाप को ही देखना पड़े। क्या? कौनसे बाप को? वो बाप को ही देखना पड़े। और बाप वर्सा जो देते हैं स्वरग का, तो स्थापन करने वाला है ना? तो जो स्थापन करते हैं स्वर्ग का वर्सा ही देंगे। तो ये स्वरग का वर्सा देखो नंबरवन। तो तुम बच्चों को अभी मालूम हुआ कि ये पढ़ाई से मिलता है। आगे कभी किसी को पता था कि पढाई से, योग से, हँ, ये स्वर्ग का वर्सा मिलता है? अभी प्राचीन योग तो बहुत मशहूर है भारत का। अभी प्राचीन भारत का योग क्यों नहीं मशहूर होगा जिससे मनुष्य पतित से पावन बनें? और पावन बनके ये बनें। क्या? विश्व के मालिक। तो उनका नाम, बस उनका ही तो नाम होगा ना बड़े ते बड़ा? तो वो हुआ ना? प्राचीन भारत का सहज योग और सहज ज्ञान। (क्रमशः)
A morning class dated 1.12.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the sixth page on Friday was – When the word ‘shreshthachari’ (righteous) comes to our intellect, then we remember the Golden Age. And you remember this when you are noble souls (punyatma). Only then do you remember. Well, here in this world where will the noble souls emerge from? The Father comes and explains all the topics to the children that you children are sinful here. Although these sanyasis are pure, but will these men be called righteous? Why will they not be called? Hm? It is because their birth itself takes place through the unrighteous organs. Just as all are born. So, how can they be righteous? Deities are born through righteousness. The sense organs are righteous, aren’t they? So, they are born through the acts of the righteous organs. The Father has explained that these will take sanyas (i.e. renounce the household) birth by birth and get rebirth. Achcha, someone may say for Baba. Will your Baba get rebirth? Someone should tell about Baba. Nobody will be able to tell. That the Father has revealed; He has revealed the name of the number one. Nobody else can be numberone when compared to him. Hm? For whom was ‘him’ (us se) said? ‘Us se’ means that he was made distant, wasn’t he? Not even face to face. Not even beside.
Nobody is number one before Shri Krishna at all. Hm? What will Brahma Baba think? Yes, this is absolutely correct topic. Nobody else is number one before Shri Krishna at all. And what will come to the intellect of you children? Hm? So, whose name will you tell? Whose will you tell? Hm? (Someone said something.) Arey, the topic of Krishna is being discussed. Nobody is number one before Krishna at all. The topic of Krishna is being discussed, Narayan is being mentioned. (Someone said something.) Yes, Confluence-Age Krishna. When the Father comes, because whatever memorials are there, whatever festivals, temples are there, whatever names of female or male deities are there, they are memorials of which time? They are memorials of the Confluence Age, aren’t they? So, the topic of Krishna is being discussed. So, Shri Krishna must definitely have existed in the Confluence Age.
So, the Father is telling about the number one that Shri Krishna and then the same mistake emerges that Shri Krishna Bhagwanuvaach (God Shri Krishna speaks). Hm? ‘The same’ refers to whom? Hm? Who makes this mistake which has been committed to emerge? The biggest mistake that has been committed is that the name of Krishna has been inserted in the Gita. Who is ‘the same’ who makes the mistake to emerge? Hm? Arey, the same Krishna who was mentioned to be number one in playing the part in practical, isn’t he? Yes. So, will that Confluence Age Shri Krishna remain a child only? (Someone said something.) Yes. So, the mistake is made to emerge that how can it be ‘God Shri Krishna speaks’? How will a child narrate knowledge? How will he teach rajyog? It is because this Bhagwaanuvaach. Arey, that God is beyond birth and death, isn’t He? And He is only one. It is rightly sung like this only. How? Shiv Parmaatmaay namah. Hm? Should Shiv be called Paramaatmaay (Supreme Soul) or Parampita (Supreme Father)? The incorporeal point of light Shiv soul will be called the Father of souls, the Supreme Father. But when the topic of bowing comes, so, when? When do you bow? It is when He enters. So, the Supreme actor; Supreme means big. The biggest one. What kind of a soul? The hero actor, who plays the highest on high part on the world stage. So, He enters in him. This is why it is said – Shiv Parmaatmaay namah. So, you can tell everyone, can’t you? When you call Brahma as a deity; And you call Vishnu as a deity. You call Shankar a deity. You call Shankar as ‘Devtaay namah’ (I bow to the deity) and then ultimately you say ‘Shiv Parmaatmaay namah’ (I bow to Shiv, the Supreme Soul).
Then why do you say for that Supreme Soul that the Supreme Soul is omnipresent? That is why He is present in Brahma also, He is omnipresent; That is why Brahma, yes, why do you say Brahma Devataay Namah (I bow to Brahma, the deity)? Hm? He comes in Brahma. For example, it is written in the Gita, hasn’t it been that I enter Praveshtum? I am capable of entering. So, when He comes in Brahma then He Himself is the most righteous one who comes in Brahma. And He is not a deity. Does He become a deity? No. Neither does He become righteous nor does He become unrighteous. The one who becomes righteous will have to become unrighteous as well. If He goes high, then He will also go down. So, you children do have, don’t you? What? This wisdom. You keep on getting a lot of wisdom nicely. And day by day you keep on getting points. And there is only one point. Everyone keeps on telling Baba, Baba. Hm? Whomsoever you explain, whenever you explain. So, first with Baba, hm, Baba says this, Baba says that. You have understood, haven’t you? It is Bhagwaanuvach (God’s words). So, Baba is one, isn’t He? Grandfather is called Baba, isn’t he? How can a child be a grandfather?
This is Shiv Parmaatmaay namah, isn’t it? This Brahma, this Vishnu, Shankar, these are deities. They are [deities], aren’t they? So, God is above these three deities, isn’t He? Is God higher or are the deities higher? Arey, God is the one who transforms nar (man/human being) to Narayan. So, the maker is higher, isn’t He? Achcha. So, Shiv will be called Parmatma (Supreme Soul), will He not be? Hm? Everyone’s Father. Yes, it is correct that the inheritance will be received from the Father only. As regards omnipresence, one cannot get inheritance from anyone at all. So, from the Father; that Father will only have to see. What? Which Father? That Father will only have to see. And the inheritance of heaven that the Father gives, so, He is the one who establishes it, isn’t He? So, the one who establishes will give the inheritance of heaven only. So, look this inheritance of heaven is number one. So, you children have now come to know that this is received through studies. Earlier did anyone know that you get the inheritance of heaven through studies, through Yoga? Well, the ancient Yoga of Bhaarat(India) is very famous. Well, why will the ancient Yoga of Bhaarat not be famous through which human beings become pure from sinful? And they become this by becoming pure. What? The masters of heaven. So, His name, that is it, His name alone will be the biggest one, will it not be? So, that is, isn’t it? The easy Yogaand easy knowledge of ancient India. (Continued)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
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- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2952, दिनांक 25.07.2019
VCD 2952, dated 25.07.2019
प्रातः क्लास 01.12.1967
Morning class dated 01.12.1967
VCD-2952-Bilingual-Part-2
समय- 13.54-33.14
Time- 13.54-33.14
तो अभी बच्चे समझते हैं ना? बहुत समझ है बिल्कुल ही। है तो सहज। ज्ञान तो सहज है। बाकि योग है। कहने में बहुत सहज आते हैं। और यूं तो सहज ही कहें। क्योंकि इस एक ही जनम में जो बच्चों को अपनी प्राप्ति करनी है तो एक ही जनम में हो जाती है। भक्तिमार्ग में तो देखो कितने जन्म-जन्मान्तर बीत गए। हँ? तो भक्तिमार्ग में जो ज्ञान चलता है वो कठिन या ये कठिन? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, वो कठिन हो गया। ये एक ही जन्म में प्राप्ति होती है। हँ? तो फिर इसे, हाँ, सहज क्यों नहीं कहेंगे? वो भक्ति में जनम बाई जनम भक्तिमार्ग की, हँ, ठोकरें खाई और अभी भी खाते रहते हैं। और मिलता तो कुछ भी नहीं है। तो ये तो एक ही जनम में मिल सकता है ना? तो इसलिए उनको सहज तो कहेंगे। फिर सहज भी कहकरके फिर बोलते हैं, हँ, कितना सहज? एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति।
ये सेकण्ड का भी तो हिसाब चाहिए ना बच्ची? नहीं तो तुम बच्चों को क्या मालूम, हँ, कि एक सेकण्ड में बस बच्चा बाहर आया और पता चल गया ये मेल है या फीमेल है? ये वारिस बनेगा। कौन? मेल कि फीमेल? मेल वारिस बनेगा। समझे ना? ऐसे होता है ना? जब बाप का ये वारिस बच्चा पैदा हुआ। अब होते तो हैं ठीक। अरे, अभी थोड़ी भी तुम ठहरो। तो ये वो ऐसे बनाएंगे औजार जो अंदर से बच्चा है या बच्ची है ये भी बताय देंगे। समझे? तो ऐसे औजार बनाएंगे। हँ? सडसठ में तो ऐसी बात नहीं थी, हँ, कि डॉक्टर लोग बताय सकें कि बच्चा पैदा होगा या बच्ची पैदा होगी? बाबा ने भविष्य की बात बताय दी कि ऐसे ये औजार बनाएंगे। हाँ। परन्तु न बनाय सकें क्योंकि अभी तो साइंस में ही लगे हैं ना? दूसरे धंधे में लगे हैं। इस धंधे में नहीं लगे हैं। नहीं तो धंधा तो ये होना चाहिए। क्या? कि बच्चा है या बच्ची है? हाँ। ऐसा इम्तेहान कोई पास करे। तो हम बताय सकते हैं। तो साहूकार क्या करें? भई हमको बताओ। हाँ, बताऊंगा, तुमको 50000 रुपया चार्ज करूंगा। तो हम बताय देऊंगा। और एक्यूरेट बताऊंगा। समझा ना? कभी भी भूल नहीं होगी क्योंकि औजारों से देख लेते हैं सब कुछ। देखो, आजकल क्या नहीं देख सकते हैं? कितना वंडर है इस सर्जरी में! तो जैसे सब बातों में वंडर ही वंडर है। ये बत्तियां, ये प्लेन्स, ये साइंस का है। है ना बच्चे? तो ये साइंस का वंडर वरी फिर देखो कैसा है? देखने में कुछ भी नहीं आता है। और वो तो देखने में आता है ना अरे, अरे, प्लेन आया। यहां कुछ कोई गया, कोई कहां गया, कुछ भी नहीं। कोई गया क्या? कुछ भी नहीं।
देखो, शांत करके तुम यहां बैठे हो। उठते हो, जाते हो, नौकरी करते हो, धंधा करते हो, सब कुछ करते हो। तो कम कार डे। बाबा कहते हैं ना कर्मेन्द्रियों से कर्म करो। वहां तक जो कुछ कर्म करते रहते हो करो। कम कार डे और आत्मा की दिल यार डे अपने आशिक के लिए। तो अभी ये कोई नई बात थोड़ेही है। हँ? ये आशिक माशूक तो गाए गए हैं ना? तो बहुत तो नहीं गाए हुए हैं ना? मैं तो समझता हूँ 10, 15, 20 होगा जो मालूम होगा। 50 हो। तो देखो, ये भी कितने हैं और कितने होते हैं पास विद आनर। देखो, पहले से कह देते हैं। कितने? आठ। तो ये आठ तो बिल्कुल ही पास विद आनर होते हैं? हँ? तो उसमें भी इतने ही थोड़े होंगे। वो वरी फिर ऐसे होते हैं। क्योंकि वहां नई दुनिया में विकार तो हैं नहीं। तो उनकी निंदा भी नहीं होती है। नहीं, नहीं। वो बस शिकल के ऊपर। इस दुनिया में शिकल के ऊपर आशिक-माशूक होते हैं। होते हैं ना? वो कोई ऐसे नहीं है कि सुहैनी या वो होते हैं। नहीं। बाकि दिल लग जाती है। समझा ना? पीछे एक दो को देखने के बिगर रह नहीं सकते हैं। घड़ी-घड़ी तलफ होती रहती है। क्या? इनको देखूं। इनसे बात करूं। तो उन लोग को तो योग होते हैं। बैठते हैं। हँ? रोटी पर बैठेंगे तभी भी याद आ जाएगा। सामने आकरके खड़ा हो जाएगा। तो फिर उनको देखते भी रहेंगे। रोटी भी खाते रहेंगे। समझा? हो सकते हैं कि तुम्हारा भी ऐसी अवस्था बन जावे पिछाड़ी में। नहीं तो अभी तो क्या होता है? हँ? खाने बैठते तो भी याद नहीं आता। सारा खाना खा जाते फिर भी याद नहीं आता। कभी-कभी याद आ जाता है।
तो बाबा कहते हैं पिछाड़ी में तुम्हारी अवस्था हो जावेगी जैसे वो माशूक आशूक होते हैं। हैं ना? पर ऐसे ही जैसे थोड़े गाए जाते हैं। क्या? बहुत थोड़े। हां। अरे, वो हो सकते हैं। तुमको सामने हो सकते हैं। वो जो छोटा साक्षात्कार तो होते हैं ना बच्चे? जबकि आत्मा का साक्षात्कार होते हैं। तो परमात्मा का भी होता है। आत्मा का तो होता है। वो तो बाबा ने समझाया था कि वो जो रामकृष्ण परमहंस उनका वो जो चेला था विवेकानंद, वो बैठा हुआ था। उसके उसमें लिखा हुआ है उसकी वॉल्यूम में। अब बाबा तो पढ़े हुए हैं सब। तो वो भी है। और बाबा को भी अनुभव है। तो आत्माएं बहुत देखने में आती हैं। और एक सेकण्ड जो लगता है ऐसे-ऐसे ही, हँ, भले आँखें खुली हुई हों, तो भी एक सेकण्ड में देख लेते हैं। देख लेते हैं और गुम हो जाती है। और कुछ नहीं। तो वो तो हम जानते हैं कि आत्मा वो है। अभी देखा तो क्या हुआ? अब ये तो सिवाय पढ़ाई के, योग के तो कोई दर्जा तो मिल ही नहीं सकता ना? देखने से कोई फायदा होता ही नहीं बच्चे। देखते हैं कि देखो ये भी तो देखते हो ना भई? अभी तो तुमको प्रैक्टिकल में बनना है ना? कि सिर्फ देखना है?
ऐसे और ही विचित्र जो हैं ना ये बच्चे भूल करते हैं एक। क्योंकि चित्र जब बनाते हैं लक्ष्मी-नारायण का तो भई वो एक ही फीचर वाला चित्र चलाना चाहिए। बार-बार फीचर्स बदलने क्यों चाहिए? कभी भी फर्क नहीं बनाना चाहिए। अगर कृष्ण का भी बनाते हैं तो फिर एक ही कृष्ण का चित्र चलना चाहिए। हँ? फीचर्स एक ही चलना चाहिए। कभी बदली नहीं करना होगा। नहीं तो वो बोलेगा इनके कृष्ण भी तो बहुत ही बहुत देखने में आते हैं। भले बहुत हैं। ऐसे नहीं कि फीचर्स बहुत नहीं हैं। किसके? श्री कृष्ण के फीचर्स बहुत हैं। क्यों हैं बहुत? हँ? क्योंकि कम, कम कलाओं वाले कृष्ण बच्चे पैदा होते रहते हैं ना? बड़े होते हैं तो फिर वो नारायण कहे जाते हैं, टाइटल मिल जाता है। बाकि कम कलाओं वाले जो होते हैं वो दूसरे धर्म में कन्वर्ट हो जाते हैं। परन्तु नहीं। हम जो बैठकरके ये चित्र पहले वो तो पहले का ही बनाते हैं। क्यों? क्योंकि हमारा तो एम-आब्जेक्ट पहले नंबर की पीढ़ी में जाने का है कि बाद वाली पीढ़ी में?
तो चित्र जो बनाने होते हैं ना तो वो फीचर्स एक जैसा होना चाहिए। सबकी शिकल एक जैसी बनानी चाहिए। सबकी माने? हँ? जो भी चित्रों में श्री कृष्ण या नारायण का फीचर बनाएं उन सबका एक ही चित्र बने। नहीं तो कोई वक्त में डोरापा देंगे। जरूर डुरापा देंगे - ये क्या? तुम्हारा वहां जब बनते हैं कृष्ण सो भी क्या भिन्न-भिन्न रूप थोड़ेही होते हैं? तुम्हारा तो जरूर एक ही होगा। तुम बनाते हो यहां। कैसे बनाते हो? तो टेढ़ा बनाते हो या मुरली देते हो या क्या करते हो? या शिकल गोरी देते हो या पतली देते हो। ये सब क्या करते हो? तो ये भी तो ज्ञान की बातें हैं ना? ये सारी समझ की बातें हैं। तो फीचर्स तो पहले-पहले नंबर का जो हम रखते हैं; हँ? क्यों रखते हैं? हँ? कि हमको तो पहली पीढ़ी में ही जाना है ना? हाँ। तो रखते हैं। तो भई, ये बाबा भी तो पहला नंबर बनेगा? जो बाबा का पहला नंबर का जो तुम फीचर्स बनाते हो, सभी एक तो बनाओ ना? तुम फर्क, फर्क क्यों बनाते हो? हँ? सतयुग में भी जो कृष्ण पैदा होगा पहले जनम में वो एक ही फीचर होंगे या गिरगिट की तरह रंग बदलता रहेगा? हाँ। तो देखो बाबा क्यों समझाते हैं? कि वो सुनते तो रहते हैं कि फीचर्स भई एक ही दफा फोटो मिला। बस उसी के ऊपर ये विष्णु का भी बनना है। नारायण का भी बनना है। बड़ा होते हैं तो फीचर्स भी तो चलाना चाहिए ना? परन्तु यहां तो देखो भिन्न-भिन्न बनाय देते हैं। ओमशान्ति। (समाप्त)
So, now the children understand, don’t they? They have a lot of understanding really. It is indeed easy. The knowledge is easy. But there is Yoga. It is said to be very easy. And in a way it will be called easy only. It is because the attainments that children have to achieve in the same birth, it is achieved in a single birth only. Look, on the path of Bhakti so many births have passed. Hm? So, is the knowledge that is narrated on the path of Bhakti difficult or is this one difficult? (Someone said something.) Yes, that is difficult. This attainment is achieved in a single birth. Hm? So, then this one, yes, why will it not be called easy? You stumbled on the path of Bhakti birth by birth in Bhakti and even now you keep on stumbling. And you don’t get anything. So, this you can get in a single birth, can’t you? So, this is why it will be called easy. Then, even after calling it easy, then you say, hm, how easy? Jeevanmukti (liberation in life) in a second.
Daughter, a calculation of this second is also required, isn’t it? Otherwise, what do you children know that a child came out in just a second and you got to know if it is a male or a female? This one will become an inheritor. Who? Male or female? Male will become an inheritor. You have understood, haven’t you? It happens like this, doesn’t it? It is when this inheritor child of the Father was born. Well, it is correct. Arey, you just wait a little. So, they will make such instruments that they will also tell if there is a son or a daughter inside. Did you understand? So, they will make such instruments. Hm? There was no such thing in sixty seven that the doctors could reveal whether a son will be born or a daughter will be born. Baba revealed a topic of the future that they will make such instruments. Yes. But they cannot make because they are now busy in science only, aren’t they? They are engaged in another business. They are not engaged in this business. Otherwise, the business should be this. What? That if it is a son or a daughter. Yes. Someone should pass such an examination. So, we can tell. So, what should the rich do? Brother, tell us. Yes, I will tell; I will chargeRs.50,000 from you. So, I will tell. And I will reveal in an accurate way. You have understood, haven’t you? They will never commit a mistake because they see everything through instruments. Look, what can’t they see now-a-days? There is so much wonder in this surgery! So, there is just wonder and only wonder in all the topics. These lights, these planes, this is of science. It is, isn’t it son? So, then look how this wonder of science is! Nothing is visible. And that is visible, isn’t it? Arey, arey, a plane arrived. Here something, someone went, someone went somewhere, nothing. Did anyone go? Nothing.
Look, you are sitting here calmly. You get up, you go, you work, you do business, you do everything. So, work through your hands. Baba says, doesn’t He that perform actions through the organs of action. Until then, whatever actions you perform, keep on performing. Let the hands do the work and the soul’s heart be with the friend, for your lover. So, now this is not a new topic. Hm? This lover and beloved are praised, aren’t they? So, many are not praised, are they? I think 10, 15, 20 must be there who are known. It could be 50. So, look, these are also so many and how many pass with honour? Look, it is told beforehand. How many? Eight. So, these eight pass with honour completely. Hm? So, even among them, there will be these many only. They then are like this. It is because there is no vice there in the new world. So, they are not defamed as well. No, no. They just look at the face. In this world people become lover and beloved just on the basis of the face. They do become, don’t they? It is not as if they are beautiful or that. No. They lose their hearts [to each other]. You have understood, haven’t you? Later they cannot live without seeing each other. They long [to meet or see] every moment. What? I should see him/her. I should talk to him/her. So, those people have Yoga. They sit. Hm? Even when they sit to eat roti, he/she will come to the mind. He/she will come and stand in front of them. So, then they will also keep on looking at them. They will also keep on eating roti. Did you understand? It is possible that you also develop such a stage in the end. Otherwise, what happens now? Hm? Even when you sit to eat, you don’t get the thoughts [of Baba]. You eat the entire meals, even then you don’t remember [Him]. Sometimes you remember.
So, Baba says that later your stage will become like those lovers and beloveds. Is it not? But very few are praised. What? Very few. Yes. Arey, that can be possible. He can come in front of you. Children, you have small visions, don’t you? You have visions of the soul. So, you have [vision] of the Supreme Soul as well. You indeed have that of the soul. Baba had explained that Ramkrishna Paramhansa’s disciple Vivekananda was sitting. It is written in his Volume. Well, Baba has read everything. So, that is also there. And Baba also has an experience. So, many souls are visible. And it takes just a second, just like this, hm, although the eyes are open, yet they see in a second. They see and vanish. Nothing else. So, we know that it is a soul. Well, what happened if you saw? Well, you cannot get any position without studies, without Yoga at all; can you? Children, there is no benefit in just seeing. It is observed that look, brother you see this also, don’t you? Now you have to become in practical, will you not? Or do you have to just see?
Similarly, children commit one of the much more stranger mistakes, don’t they? It is because when the pictures of Lakshmi-Narayan are prepared, then brother, the picture with same feature should be used. Why should you change the features again and again? You should never make changes. Even if you make [picture] of Krishna, then the same picture of Krishna should be used. Hm? The same features should be used. It should never be changed. Otherwise, they will say that their Krishnas are also seen to be numerous. Although they are many. It is not as if the features are not many. Whose? There are many features of Krishna. Why are they many? It is because child Krishnas with fewer, fewer celestial degrees keep on getting birth, don’t they? When they grow up, then they are called Narayans; they get the title. As regards those who have fewer celestial degrees convert to other religions. But no. We sit and first prepare this picture of the first one only. Why? It is because is our aim-object to go into the number one generation or to the latter generations?
So, the pictures that you have to prepare, their features should be similar. The faces of all should be similar. What is meant by ‘everyone’? Hm? In whichever picture you prepare the features of Shri Krishna or Narayan, their pictures should be similar. Otherwise, they will complain any time. They will definitely complain – What is this? When your Krishna becomes [Krishna] there, then does he have different forms? Yours will be definitely one only. You make here. How do you make? So, do you make him inclined or do you give him a Murli or what do you do? Either you give him a fair face or a slim one. What is all this that you do? So, these are also topics of knowledge, aren’t they? All these are topics to be understood. So, the features of the number one that we keep; Hm? Why do we keep? Hm? We have to go to the first generation only, don’t we have to? Yes. So, you keep. So, brother, this Baba will also become number one, will he not? The features of the number one of Baba that you make, you should make all of them similar, will you not? Why do you create changes? Hm? The Krishna who will be born in the Golden Age in the first birth, will he have same features or will he keep on changing colours like a chameleon? Yes. So, look, why does Baba explain? He keeps on listening that brother, you got the photo of the features only once. That is it; Vishnu’s [photo] also should be produced based on that only. Narayan’s [photo] is also to be prepared. When they grow up, then the features should also continue, shouldn’t they? But here, look, they make varieties. Om Shanti. (End)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2952, दिनांक 25.07.2019
VCD 2952, dated 25.07.2019
प्रातः क्लास 01.12.1967
Morning class dated 01.12.1967
VCD-2952-Bilingual-Part-2
समय- 13.54-33.14
Time- 13.54-33.14
तो अभी बच्चे समझते हैं ना? बहुत समझ है बिल्कुल ही। है तो सहज। ज्ञान तो सहज है। बाकि योग है। कहने में बहुत सहज आते हैं। और यूं तो सहज ही कहें। क्योंकि इस एक ही जनम में जो बच्चों को अपनी प्राप्ति करनी है तो एक ही जनम में हो जाती है। भक्तिमार्ग में तो देखो कितने जन्म-जन्मान्तर बीत गए। हँ? तो भक्तिमार्ग में जो ज्ञान चलता है वो कठिन या ये कठिन? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, वो कठिन हो गया। ये एक ही जन्म में प्राप्ति होती है। हँ? तो फिर इसे, हाँ, सहज क्यों नहीं कहेंगे? वो भक्ति में जनम बाई जनम भक्तिमार्ग की, हँ, ठोकरें खाई और अभी भी खाते रहते हैं। और मिलता तो कुछ भी नहीं है। तो ये तो एक ही जनम में मिल सकता है ना? तो इसलिए उनको सहज तो कहेंगे। फिर सहज भी कहकरके फिर बोलते हैं, हँ, कितना सहज? एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति।
ये सेकण्ड का भी तो हिसाब चाहिए ना बच्ची? नहीं तो तुम बच्चों को क्या मालूम, हँ, कि एक सेकण्ड में बस बच्चा बाहर आया और पता चल गया ये मेल है या फीमेल है? ये वारिस बनेगा। कौन? मेल कि फीमेल? मेल वारिस बनेगा। समझे ना? ऐसे होता है ना? जब बाप का ये वारिस बच्चा पैदा हुआ। अब होते तो हैं ठीक। अरे, अभी थोड़ी भी तुम ठहरो। तो ये वो ऐसे बनाएंगे औजार जो अंदर से बच्चा है या बच्ची है ये भी बताय देंगे। समझे? तो ऐसे औजार बनाएंगे। हँ? सडसठ में तो ऐसी बात नहीं थी, हँ, कि डॉक्टर लोग बताय सकें कि बच्चा पैदा होगा या बच्ची पैदा होगी? बाबा ने भविष्य की बात बताय दी कि ऐसे ये औजार बनाएंगे। हाँ। परन्तु न बनाय सकें क्योंकि अभी तो साइंस में ही लगे हैं ना? दूसरे धंधे में लगे हैं। इस धंधे में नहीं लगे हैं। नहीं तो धंधा तो ये होना चाहिए। क्या? कि बच्चा है या बच्ची है? हाँ। ऐसा इम्तेहान कोई पास करे। तो हम बताय सकते हैं। तो साहूकार क्या करें? भई हमको बताओ। हाँ, बताऊंगा, तुमको 50000 रुपया चार्ज करूंगा। तो हम बताय देऊंगा। और एक्यूरेट बताऊंगा। समझा ना? कभी भी भूल नहीं होगी क्योंकि औजारों से देख लेते हैं सब कुछ। देखो, आजकल क्या नहीं देख सकते हैं? कितना वंडर है इस सर्जरी में! तो जैसे सब बातों में वंडर ही वंडर है। ये बत्तियां, ये प्लेन्स, ये साइंस का है। है ना बच्चे? तो ये साइंस का वंडर वरी फिर देखो कैसा है? देखने में कुछ भी नहीं आता है। और वो तो देखने में आता है ना अरे, अरे, प्लेन आया। यहां कुछ कोई गया, कोई कहां गया, कुछ भी नहीं। कोई गया क्या? कुछ भी नहीं।
देखो, शांत करके तुम यहां बैठे हो। उठते हो, जाते हो, नौकरी करते हो, धंधा करते हो, सब कुछ करते हो। तो कम कार डे। बाबा कहते हैं ना कर्मेन्द्रियों से कर्म करो। वहां तक जो कुछ कर्म करते रहते हो करो। कम कार डे और आत्मा की दिल यार डे अपने आशिक के लिए। तो अभी ये कोई नई बात थोड़ेही है। हँ? ये आशिक माशूक तो गाए गए हैं ना? तो बहुत तो नहीं गाए हुए हैं ना? मैं तो समझता हूँ 10, 15, 20 होगा जो मालूम होगा। 50 हो। तो देखो, ये भी कितने हैं और कितने होते हैं पास विद आनर। देखो, पहले से कह देते हैं। कितने? आठ। तो ये आठ तो बिल्कुल ही पास विद आनर होते हैं? हँ? तो उसमें भी इतने ही थोड़े होंगे। वो वरी फिर ऐसे होते हैं। क्योंकि वहां नई दुनिया में विकार तो हैं नहीं। तो उनकी निंदा भी नहीं होती है। नहीं, नहीं। वो बस शिकल के ऊपर। इस दुनिया में शिकल के ऊपर आशिक-माशूक होते हैं। होते हैं ना? वो कोई ऐसे नहीं है कि सुहैनी या वो होते हैं। नहीं। बाकि दिल लग जाती है। समझा ना? पीछे एक दो को देखने के बिगर रह नहीं सकते हैं। घड़ी-घड़ी तलफ होती रहती है। क्या? इनको देखूं। इनसे बात करूं। तो उन लोग को तो योग होते हैं। बैठते हैं। हँ? रोटी पर बैठेंगे तभी भी याद आ जाएगा। सामने आकरके खड़ा हो जाएगा। तो फिर उनको देखते भी रहेंगे। रोटी भी खाते रहेंगे। समझा? हो सकते हैं कि तुम्हारा भी ऐसी अवस्था बन जावे पिछाड़ी में। नहीं तो अभी तो क्या होता है? हँ? खाने बैठते तो भी याद नहीं आता। सारा खाना खा जाते फिर भी याद नहीं आता। कभी-कभी याद आ जाता है।
तो बाबा कहते हैं पिछाड़ी में तुम्हारी अवस्था हो जावेगी जैसे वो माशूक आशूक होते हैं। हैं ना? पर ऐसे ही जैसे थोड़े गाए जाते हैं। क्या? बहुत थोड़े। हां। अरे, वो हो सकते हैं। तुमको सामने हो सकते हैं। वो जो छोटा साक्षात्कार तो होते हैं ना बच्चे? जबकि आत्मा का साक्षात्कार होते हैं। तो परमात्मा का भी होता है। आत्मा का तो होता है। वो तो बाबा ने समझाया था कि वो जो रामकृष्ण परमहंस उनका वो जो चेला था विवेकानंद, वो बैठा हुआ था। उसके उसमें लिखा हुआ है उसकी वॉल्यूम में। अब बाबा तो पढ़े हुए हैं सब। तो वो भी है। और बाबा को भी अनुभव है। तो आत्माएं बहुत देखने में आती हैं। और एक सेकण्ड जो लगता है ऐसे-ऐसे ही, हँ, भले आँखें खुली हुई हों, तो भी एक सेकण्ड में देख लेते हैं। देख लेते हैं और गुम हो जाती है। और कुछ नहीं। तो वो तो हम जानते हैं कि आत्मा वो है। अभी देखा तो क्या हुआ? अब ये तो सिवाय पढ़ाई के, योग के तो कोई दर्जा तो मिल ही नहीं सकता ना? देखने से कोई फायदा होता ही नहीं बच्चे। देखते हैं कि देखो ये भी तो देखते हो ना भई? अभी तो तुमको प्रैक्टिकल में बनना है ना? कि सिर्फ देखना है?
ऐसे और ही विचित्र जो हैं ना ये बच्चे भूल करते हैं एक। क्योंकि चित्र जब बनाते हैं लक्ष्मी-नारायण का तो भई वो एक ही फीचर वाला चित्र चलाना चाहिए। बार-बार फीचर्स बदलने क्यों चाहिए? कभी भी फर्क नहीं बनाना चाहिए। अगर कृष्ण का भी बनाते हैं तो फिर एक ही कृष्ण का चित्र चलना चाहिए। हँ? फीचर्स एक ही चलना चाहिए। कभी बदली नहीं करना होगा। नहीं तो वो बोलेगा इनके कृष्ण भी तो बहुत ही बहुत देखने में आते हैं। भले बहुत हैं। ऐसे नहीं कि फीचर्स बहुत नहीं हैं। किसके? श्री कृष्ण के फीचर्स बहुत हैं। क्यों हैं बहुत? हँ? क्योंकि कम, कम कलाओं वाले कृष्ण बच्चे पैदा होते रहते हैं ना? बड़े होते हैं तो फिर वो नारायण कहे जाते हैं, टाइटल मिल जाता है। बाकि कम कलाओं वाले जो होते हैं वो दूसरे धर्म में कन्वर्ट हो जाते हैं। परन्तु नहीं। हम जो बैठकरके ये चित्र पहले वो तो पहले का ही बनाते हैं। क्यों? क्योंकि हमारा तो एम-आब्जेक्ट पहले नंबर की पीढ़ी में जाने का है कि बाद वाली पीढ़ी में?
तो चित्र जो बनाने होते हैं ना तो वो फीचर्स एक जैसा होना चाहिए। सबकी शिकल एक जैसी बनानी चाहिए। सबकी माने? हँ? जो भी चित्रों में श्री कृष्ण या नारायण का फीचर बनाएं उन सबका एक ही चित्र बने। नहीं तो कोई वक्त में डोरापा देंगे। जरूर डुरापा देंगे - ये क्या? तुम्हारा वहां जब बनते हैं कृष्ण सो भी क्या भिन्न-भिन्न रूप थोड़ेही होते हैं? तुम्हारा तो जरूर एक ही होगा। तुम बनाते हो यहां। कैसे बनाते हो? तो टेढ़ा बनाते हो या मुरली देते हो या क्या करते हो? या शिकल गोरी देते हो या पतली देते हो। ये सब क्या करते हो? तो ये भी तो ज्ञान की बातें हैं ना? ये सारी समझ की बातें हैं। तो फीचर्स तो पहले-पहले नंबर का जो हम रखते हैं; हँ? क्यों रखते हैं? हँ? कि हमको तो पहली पीढ़ी में ही जाना है ना? हाँ। तो रखते हैं। तो भई, ये बाबा भी तो पहला नंबर बनेगा? जो बाबा का पहला नंबर का जो तुम फीचर्स बनाते हो, सभी एक तो बनाओ ना? तुम फर्क, फर्क क्यों बनाते हो? हँ? सतयुग में भी जो कृष्ण पैदा होगा पहले जनम में वो एक ही फीचर होंगे या गिरगिट की तरह रंग बदलता रहेगा? हाँ। तो देखो बाबा क्यों समझाते हैं? कि वो सुनते तो रहते हैं कि फीचर्स भई एक ही दफा फोटो मिला। बस उसी के ऊपर ये विष्णु का भी बनना है। नारायण का भी बनना है। बड़ा होते हैं तो फीचर्स भी तो चलाना चाहिए ना? परन्तु यहां तो देखो भिन्न-भिन्न बनाय देते हैं। ओमशान्ति। (समाप्त)
So, now the children understand, don’t they? They have a lot of understanding really. It is indeed easy. The knowledge is easy. But there is Yoga. It is said to be very easy. And in a way it will be called easy only. It is because the attainments that children have to achieve in the same birth, it is achieved in a single birth only. Look, on the path of Bhakti so many births have passed. Hm? So, is the knowledge that is narrated on the path of Bhakti difficult or is this one difficult? (Someone said something.) Yes, that is difficult. This attainment is achieved in a single birth. Hm? So, then this one, yes, why will it not be called easy? You stumbled on the path of Bhakti birth by birth in Bhakti and even now you keep on stumbling. And you don’t get anything. So, this you can get in a single birth, can’t you? So, this is why it will be called easy. Then, even after calling it easy, then you say, hm, how easy? Jeevanmukti (liberation in life) in a second.
Daughter, a calculation of this second is also required, isn’t it? Otherwise, what do you children know that a child came out in just a second and you got to know if it is a male or a female? This one will become an inheritor. Who? Male or female? Male will become an inheritor. You have understood, haven’t you? It happens like this, doesn’t it? It is when this inheritor child of the Father was born. Well, it is correct. Arey, you just wait a little. So, they will make such instruments that they will also tell if there is a son or a daughter inside. Did you understand? So, they will make such instruments. Hm? There was no such thing in sixty seven that the doctors could reveal whether a son will be born or a daughter will be born. Baba revealed a topic of the future that they will make such instruments. Yes. But they cannot make because they are now busy in science only, aren’t they? They are engaged in another business. They are not engaged in this business. Otherwise, the business should be this. What? That if it is a son or a daughter. Yes. Someone should pass such an examination. So, we can tell. So, what should the rich do? Brother, tell us. Yes, I will tell; I will chargeRs.50,000 from you. So, I will tell. And I will reveal in an accurate way. You have understood, haven’t you? They will never commit a mistake because they see everything through instruments. Look, what can’t they see now-a-days? There is so much wonder in this surgery! So, there is just wonder and only wonder in all the topics. These lights, these planes, this is of science. It is, isn’t it son? So, then look how this wonder of science is! Nothing is visible. And that is visible, isn’t it? Arey, arey, a plane arrived. Here something, someone went, someone went somewhere, nothing. Did anyone go? Nothing.
Look, you are sitting here calmly. You get up, you go, you work, you do business, you do everything. So, work through your hands. Baba says, doesn’t He that perform actions through the organs of action. Until then, whatever actions you perform, keep on performing. Let the hands do the work and the soul’s heart be with the friend, for your lover. So, now this is not a new topic. Hm? This lover and beloved are praised, aren’t they? So, many are not praised, are they? I think 10, 15, 20 must be there who are known. It could be 50. So, look, these are also so many and how many pass with honour? Look, it is told beforehand. How many? Eight. So, these eight pass with honour completely. Hm? So, even among them, there will be these many only. They then are like this. It is because there is no vice there in the new world. So, they are not defamed as well. No, no. They just look at the face. In this world people become lover and beloved just on the basis of the face. They do become, don’t they? It is not as if they are beautiful or that. No. They lose their hearts [to each other]. You have understood, haven’t you? Later they cannot live without seeing each other. They long [to meet or see] every moment. What? I should see him/her. I should talk to him/her. So, those people have Yoga. They sit. Hm? Even when they sit to eat roti, he/she will come to the mind. He/she will come and stand in front of them. So, then they will also keep on looking at them. They will also keep on eating roti. Did you understand? It is possible that you also develop such a stage in the end. Otherwise, what happens now? Hm? Even when you sit to eat, you don’t get the thoughts [of Baba]. You eat the entire meals, even then you don’t remember [Him]. Sometimes you remember.
So, Baba says that later your stage will become like those lovers and beloveds. Is it not? But very few are praised. What? Very few. Yes. Arey, that can be possible. He can come in front of you. Children, you have small visions, don’t you? You have visions of the soul. So, you have [vision] of the Supreme Soul as well. You indeed have that of the soul. Baba had explained that Ramkrishna Paramhansa’s disciple Vivekananda was sitting. It is written in his Volume. Well, Baba has read everything. So, that is also there. And Baba also has an experience. So, many souls are visible. And it takes just a second, just like this, hm, although the eyes are open, yet they see in a second. They see and vanish. Nothing else. So, we know that it is a soul. Well, what happened if you saw? Well, you cannot get any position without studies, without Yoga at all; can you? Children, there is no benefit in just seeing. It is observed that look, brother you see this also, don’t you? Now you have to become in practical, will you not? Or do you have to just see?
Similarly, children commit one of the much more stranger mistakes, don’t they? It is because when the pictures of Lakshmi-Narayan are prepared, then brother, the picture with same feature should be used. Why should you change the features again and again? You should never make changes. Even if you make [picture] of Krishna, then the same picture of Krishna should be used. Hm? The same features should be used. It should never be changed. Otherwise, they will say that their Krishnas are also seen to be numerous. Although they are many. It is not as if the features are not many. Whose? There are many features of Krishna. Why are they many? It is because child Krishnas with fewer, fewer celestial degrees keep on getting birth, don’t they? When they grow up, then they are called Narayans; they get the title. As regards those who have fewer celestial degrees convert to other religions. But no. We sit and first prepare this picture of the first one only. Why? It is because is our aim-object to go into the number one generation or to the latter generations?
So, the pictures that you have to prepare, their features should be similar. The faces of all should be similar. What is meant by ‘everyone’? Hm? In whichever picture you prepare the features of Shri Krishna or Narayan, their pictures should be similar. Otherwise, they will complain any time. They will definitely complain – What is this? When your Krishna becomes [Krishna] there, then does he have different forms? Yours will be definitely one only. You make here. How do you make? So, do you make him inclined or do you give him a Murli or what do you do? Either you give him a fair face or a slim one. What is all this that you do? So, these are also topics of knowledge, aren’t they? All these are topics to be understood. So, the features of the number one that we keep; Hm? Why do we keep? Hm? We have to go to the first generation only, don’t we have to? Yes. So, you keep. So, brother, this Baba will also become number one, will he not? The features of the number one of Baba that you make, you should make all of them similar, will you not? Why do you create changes? Hm? The Krishna who will be born in the Golden Age in the first birth, will he have same features or will he keep on changing colours like a chameleon? Yes. So, look, why does Baba explain? He keeps on listening that brother, you got the photo of the features only once. That is it; Vishnu’s [photo] also should be produced based on that only. Narayan’s [photo] is also to be prepared. When they grow up, then the features should also continue, shouldn’t they? But here, look, they make varieties. Om Shanti. (End)
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- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2953, दिनांक 26.07.2019
VCD 2953, dated 26.07.2019
प्रातः क्लास 01.12.1967
Morning Class dated 01.12.1967
VCD-2953-extracts-Bilingual
समय- 00.01-20.12
Time- 00.01-20.12
प्रातः क्लास चल रहा था 1.12.1967. शुक्रवार को आठवें पेज की चौथी, पांचवीं लाइन में बात चल रही थी कि बाबा समझाते हैं कि वो सुनते तो रहते हैं बच्चे कि फीचर्स एक ही तरह के होने चाहिए। एक ही दफा फोटो मिला। बस उसी के ऊपर विष्णु का भी बनना है और नारायण का भी बनना है। माने एक ही हुए या अलग हुए? बड़ा होते हैं और फीचर्स वो ही चलना चाहिए। विष्णु पहले या नारायण पहले? पहले कौन? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, पहले नारायण कि पहले विष्णु? (किसी ने कुछ कहा।) पहले विष्णु? अच्छा? पहले विष्णु। (किसी ने कुछ कहा।) पहले नारायण। अरे, ये तो झगड़ा हो गया। हँ? अच्छा नारायण का अर्थ क्या हुआ? नार माने ज्ञान जल। अयन माने घर। जो ज्ञान जल के घर में रहता हो। बाहर नहीं। तो अब बताओ नारायण पहले या विष्णु पहले? (किसी ने कुछ कहा।) नारायण? अच्छा? अभी विष्णु कह रहे थे अभी नारायण हो गया? अच्छा? कौन? पहले कौन? (किसी ने कुछ कहा।) नारायण? अरे?
अच्छा, नारायण जब तक विष्णु न बने तब तक लगातार 24 घंटे ज्ञान जल में रहेगा कि ज्ञान जल से बाहर निकल पड़ता होगा? बताओ। बाहर निकल पड़ता है। तो फिर विष्णु हुआ या नारायण हुआ? क्या हुआ? (किसी ने कुछ कहा।) नारायण। 24 घंटे कहां रहता है अयन में? नारायण। नार माने ज्ञान जल। अयन माने घर। 24 घंटे ज्ञान जल में रहता है? पक्का नारायण है कि कच्चा नारायण? अरे, क्या है? क्या कहें? कच्चा है कि पक्का? कच्चा ही हुआ ना? पक्का कहें तो भई बिल्कुल पक्का। अटल, अखंड, अडोल। बाहर ही न निकले। तो कब बनता है? जब; कब बनता है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जब लक्ष्मी आकरके मिल जाती है प्रैक्टिकल में तो क्या हो जाता है? विष्णु हो जाता है। है ना? तो बताओ, पहले नारायण कि पहले विष्णु? पता नहीं? अरे भई, स्वर्ग पहले बनेगा या पहले विष्णुलोक बनेगा? विष्णुलोक बनेगा। स्वर्ग में तो नारायण तो होते ही हैं। अव्वल नंबर हों, बाद वाले हों, कम कला के हों। लेकिन विष्णु कब कहा जाएगा? आदि में या अंत में? आदि में है तो विष्णु। क्योंकि आदि नारायण के साथ आदि नारायणी भी चाहिए। नहीं तो सृष्टि का आदि होगा? होगा ही नहीं। तो नारायण का भी बनना है। बड़ा होते हैं तो नारायण।
फीचर्स वो ही चलना चाहिए। बदलना नहीं चाहिए। परन्तु ये तो देखो यहां ब्राह्मणों की दुनिया में अलग-अलग ढ़ेर सारे नारायण के और कृष्ण के फीचर्स बनाय देते हैं। तो इसलिए आज इनको वार्निंग देते हैं। किनको? इनको। इनको माने किनको? इन ब्रह्मा बाबा को भी और बाबा के जो बच्चे हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियां, इनको भी वार्निंग देते हैं। क्या वार्निंग देते हैं? वार्निंग जिनको देते हैं वो सुनते तो सभी बच्चे हैं। अच्छा, अगर न सुनेंगे टेप और न सुनेंगे वाणी और ये अक्षर नहीं सुनेंगे तो चलते रहेंगे। अब फिर क्या करते रहेंगे? सुनेंगे नहीं। और चलते रहेंगे ज्ञान में। तो क्या होगा रिजल्ट? फिर भी ऐसे ही उल्टे-सुल्टे फीचर्स बनाते रहेंगे। क्या? अरे, बात को ध्यान देके सुने तो कि क्यों कहते हैं कि फीचर्स चेंज नहीं होना चाहिए, एक ही रहना चाहिए? परन्तु जो दूसरे धर्मों में कन्वर्ट होके रहेंगे; कन्वर्ट होंगे ना द्वापरयुग से; तो उनके अंदर संस्कार कौनसे आ जाएंगे? पलटने के संस्कार आ जाएंगे ना? हाँ।
तो फीचर्स बदल देते हैं। यहां ही शूटिंग कर लेते हैं। इसलिए बाप कहते हैं कि जो बाप बैठकरके पढ़ाते हैं। हाँ। कौनसे बाप? ऐसे नहीं 84 जनम के बाप कोई। या धरमपिताओं में से कोई बाप। नहीं। जो बाप यहां बैठकरके पढ़ाते हैं तो वो सुनना चाहिए। जरूर रोज सुनना चाहिए। ये जो टेप की वाणी है ना, वो भी तो सुननी चाहिए। और टेप बहुतों को सुनाना चाहिए। क्यों? क्योंकि वाणी से डायरेक्ट तो बहुत नहीं सुनेंगे ना? हाँ। और टेप तो? टेप तो कहीं भी ले जाओ। कितनों को भी सुनाओ। तो बहुतों को सुनाना चाहिए। समझे ना? टेप से भी सर्विस कराय सकते हैं ना? हाँ। ऐसे नहीं कि कोई टेप खराब हो जाते हैं। नहीं। कार में ले जावें टेप, बहुतों की सेवा करके चले आवें। अरे, टेप खराब हो जाए तो ठीक नहीं कराय सकते? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, कराय सकते, रिपेयर कराओ। एक अपने ऊपर रखें जो खराब भी न होवे। माने डबल रखें। टेप डबल रखें। एक अपने ऊपर। और एक? जो खराब? खराब न हो। हाँ। एक ऐसा होवे जिसको दूसरी सर्विस-वर्विस, भले सर्विस भी हो तो जाकरके कभी सुबह, कभी शाम टेप में सुनने से टाइम तो वो ही लगता है। जितना लंबा यहां लगेगा; वाणी सुनेंगे डायरेक्ट, जितना लंबा यहां लगेगा, उतना लंबा टेप से सुनाएंगे वहां भी लगेगा। पौना घंटा, एक घंटा।
तो कोशिश करेंगे। अब पुरुषार्थ कोई करेंगे। सब तो नहीं करेंगे। ऐसे तो बहुत हैं ना जो बच्चे यही सर्विस करते हैं। क्या? टेप में भरके ले जाएंगे। और सुनाएंगे। बहुतों की सर्विस करते हैं। वो बच्चे पूछते हैं कि क्या सर्विस करें? बाबा बोलता है ये सर्विस करती है क्या? रोज टेप संभाल से ले जाकरके और कोई कार में या किसमें भी; कार हो, मोटर साइकिल हो या जो कुछ भी हो। खराब नहीं होती। जाओ। जो भी सुनने चाहते हैं, सुनने के बहुत शौकीन हैं, आशिक हैं, और जो घोषणा करते हैं, जो सर्विस भी ऐसे ही करते हैं। क्या? घोषणा करना माने? जोर से घोषणा की जाती है ना? हाँ, उनको जाकरके, सुनाकरके भी आओ। जो न कोई आ सकते हैं उनको सुनाओ।
बाहर में भी तुम जाते हो आजकल तो बाबा कहते हैं प्रदर्शनी ले जाते हो? हाँ, ये भी ले जाना चाहिए साथ में। ‘भी’ क्यों लगाया? भई टेप भी ले जाओ और? और प्रदर्शनी? वो भी ले जाओ। तो बहुत अच्छी तरह से एक्यूरेट सुनेंगे। हाँ, क्योंकि आँखों से देखेंगे भी और कानों से सुनेंगे। भले बाबा कहते हैं कि सन्मुख और इस टेप में सुनने में और वाणी में सुनने में; कौन-कौनसी बातें? एक डायरेक्ट टेप में सुनो। इस टेप में। और दूसरा, सन्मुख सुना। हाँ। तो टेप में तो वाणी तो कान से सुनने को मिलेगी। लेकिन आँखों से देखने में तो नहीं मिलेगी। तो तीन बातें हुईं। एक सन्मुख; उनमें आँखों से भी देखेंगे और कानों से भी सुनेंगे। और जो वायब्रेशन हैं। सन्मुख में वायब्रेशन भी मिलेंगे ना? हाँ। हाव-भाव सब कुछ सन्मुख देखने में आवेंगे ना? तो तीनों में बहुत फर्क है। भले टीवी है। क्या है? टीवी। उसमें भी हाव-भाव तो आँखों से, हाथों से देखने में तो आते हैं। परन्तु वायब्रेशन आएंगे? वायब्रेशन तो नहीं आएंगे। टीवी के अन्दर मन-बुद्धि रखी है क्या जो वायब्रेशन छोड़ेगी? नहीं। और सन्मुख में तो वायब्रेशन भी होते हैं।
तो बताया - बहुत फर्क है सन्मुख सुनने में और टेप में सुनने में। और फिर जो वाणी पढ़ करके सुनाते हैं; टेप भी नहीं जो बिल्कुल एक्यूरेट सुनाए। होगा? नहीं। और सन्मुख भी नहीं है। तो कागज़ की मुरली में बैठकरके वाणी सुनाएंगे तो और ज्यादा अंतर पड़ेगा कि नहीं? हाँ। और ज्यादा अंतर पड़ेगा। क्योंकि जो कागज़ में सुनाने वाला वाणी सुनाएगा वो बाबा जितना जैसा जो कुछ बोलते हैं बिना मिक्स किये वैसा ही सुनाएगा? कुछ न कुछ, कुछ न कुछ एक-दो शब्द की भी मिक्सिंग तो कर ही देगा। तो अंतर पड़ेगा कि नहीं? एक घड़े का, दूध का भरा घड़ा हो और उसमें एक बूंद सांप का विष डाल दो तो सारा क्या हो जाएगा? विष ही हो जाएगा ना? हाँ। तो वो टेप से जो सुनते हैं वो फिर सेकण्ड क्लास। सन्मुख सुनते हैं सो फर्स्टक्लास। और कागज़ के पत्ते में बैठकरके सुनते हैं, पढ़ते हैं, दूसरों को सुनाते हैं वो तो हो गया, क्या? थर्ड क्लास। क्यों? क्यों हो गया? क्योंकि न तो वो ओरिजिनल सुनाने वाला सुना रहा है, सुना तो दूसरा डुप्लिकेट कोई दूसरा सुनाय रहा है, मिक्स करने वाला। और टेप में भी है तो एक्यूरेट तो सुनाय रहा है। कोई एक दो अक्षर घटेगा नहीं, बढ़ेगा नहीं। उतना ही टाइम लगेगा, सन्मुख में जितना टाइम लगा है और टेप में जो सुनेगा उतना ही टाइम लगेगा। लेकिन अंतर क्या पड़ेगा? अंतर ये पड़ेगा कि जो सन्मुख में आँखों से मिलते हैं, वायब्रेशन मन-बुद्धि से कैच करते हैं वो पकड़ में नहीं आवेंगे।
तो तीनों में बहुत अंतर है, बहुत फर्क है। क्योंकि यहां तो एक्सप्रेशन्स भी देखते हो। कहां? एक्सप्रेशन माने? इशारेबाजियां करते हैं ना कुछ? हाँ। तो देखते हो। और वहां टेप में? टेप में तो वो कुछ नहीं देख पाएंगे। और वहां एक्सप्रेशन नहीं देखेंगे। जब तलक तुम्हारा वो टेलिविजन निकले तब तक नहीं देख सकेंगे। टेलिविजन निकलेगा तो तुम उसमें एक्शन भी, एक्सप्रेशन भी देख सकेंगे। ठीक है। तो टेलिविजन बढ़िया हुआ या टेप बढ़िया हुआ या कागज़ में मुरली पढ़ना बढ़िया हुआ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, सन्मुख बढ़िया हुआ। टेप में तो फिर एक्सप्रेशन तो देखने को मिलेंगे नहीं। सिर्फ वाणी जयों की त्यों सुनने को मिलेगी। पीछे तो देख सकते हो। परन्तु वो तो बहुत ही फिर महंगा हो जाता है। क्या? हाँ, जो टीवी है वो तो फिर बहुत ही महंगा हो जाता है। हो जाता है। क्या मतलब? माने उस समय वर्तमान की बात बताई। आगे चलके तो भले सस्ते हो जाएं। लेकिन उस समय तो बहुत महंगाई की बात थी ना? हँ।
तो बहुत महंगे हो जाते हैं। उनको थोड़ेही कहां उठायकरके ले जाएंगे। टेप रिकार्ड तो छोटा होता है। उठायकरके ले जाओ, सुनाओ। हाँ। तो वो बड़ी कीमती चीज़ भी होती है। अभी वर्तमान में कीमती है कि नहीं? नहीं? कितना लगता है पैसा? वर्तमान में कीमती कहें कि सस्ती कहें? 5000 में मिल जाता है। बताओ। हां। कौनसा टीवी? रंगीन कि ब्लैक एंड व्हाइट? कौनसा मिल जाता है? कलर्ड मिल जाता है। तो इसका मतलब ब्लैक एंड व्हाइट तो और सस्ता मिल जाता होगा। वो तो कोई पूछता भी नहीं। इसलिए ऐसे ही उठाय लेते हैं। ले जाओ भाई हज़ार रुपये में ले जाओ। टेप रिकार्डर तुम्हें नया नहीं मिलेगा हज़ार रुपये में। मिलेगा? नहीं। तो देखो बड़ी कीमती चीज़ होती है। “है’ क्यों लगाय दिया? उस समय वर्तमान की सन् 67 की बात बताई। परन्तु हो सकते हैं ऐसे नहीं कि नहीं कुछ हो सकते हैं। नहीं। हो सकते हैं। हाँ।
जैसे तुम बैठकरके सुनते हो तैसे बाबा यहां गद्दी पे बैठा होगा। क्या कहा? जैसे तुम यहां बैठके सन्मुख सुनते हो ना? ऐसे बाबा यहां गद्दी पर बैठा होगा। होगा। क्या कहा? बाबा देखेगा। हाँ। बाबा बैठकरके सुनाते हैं। बच्चे बाबा को, बच्चा बाबा को देखेगा कि बाबा बैठकर सुनाते हैं। ये भी वंडर है ना बच्ची। देखो। अरे, ये साइंस का आज की दुनिया में कितना मज़ा है। वो मज़ा स्वर्ग का मज़ा कहेंगे? नहीं। लेकिन देखने को मिलेगा स्वर्ग का मज़ा? अभी इस दुनिया में स्वर्ग का मज़ा देखने को मिलेगा? स्वर्ग का मज़ा तो नहीं देखने को मिलेगा। वो तो पास्ट हो गया। पास्ट हो गया। फिर ये भी पता है कि अब आएगा जरूर। हिस्ट्री रिपीट्स इटसैल्फ। फिर आएगा। तो ये भी वंडर है ना बच्ची। देखो, कितना हमको साइंस मदद देती है!
The morning class dated 01.12.1967 was going on. We were discussing the topic on the fourth-fifth line of page eight on Friday: Baba explains that the children certainly keep listening that the features should be the same. We received a photo just once; based on that alone we have to make [the picture] of Vishnu as well as Narayan. It means, are they the same or are they different? [Even if] they grow up, there should be the same features. Is Vishnu first or is Narayan first? Who is first? (Someone said something.) Yes. Is Narayan first or is Vishnu first? (Someone said something.) Is Vishnu first? Accha! Vishnu is first. (Someone said something.) Narayan is first. Arey, a dispute has begun! Accha, what is the meaning of Narayan? Naarmeans the water of knowledge [and] ayan means house; the one who resides in the house of the water of knowledge, not outside. So now, tell me, is Narayan first or is Vishnu first? (Someone said something.) Narayan? Accha! Just now you were saying Vishnu and now you have switched over to Narayan? Accha? Who? Who is first? (Someone said something.) Narayan? Arey!
Accha, until Narayan becomes Vishnu, will he continuously remain in the water of knowledge for 24 hours or will he [sometimes] be coming out of the water of knowledge? Tell Me. He [sometimes] comes out of it. Then, is he Vishnu or Narayan? What is he? (Someone said something.) Narayan? Where does he remain in the house for 24 hours? Narayan. ‘Naar’ means the water of knowledge [and] ‘ayan’ means house. Does he remain in the water of knowledge for 24 hours? Is he the perfect Narayan or the imperfect Narayan? Arey! What is he? What will he be called? Is he imperfect or perfect? He is certainly imperfect, isn’t he? If we call him perfect, he should be fully perfect; unshakable, indestructible, immovable who doesn’t come out of it at all. So, when does he become that? When…When does he become that? (Someone said something.) Yes, when Lakshmi comes and unites with him in practical, what does he become? He becomes Vishnu, doesn’t he? So, tell Me: Is Narayan first or is Vishnu first? I don’t know? Arey brother! Will heaven be established first or will the Abode of Vishnu (Vishnulok) be established first? The Abode of Vishnu will be established [first]. There are certainly Narayans in heaven, whether it is number one [Narayan] or [the Narayans] those that come later, those with fewer celestial degrees but when will he be called Vishnu? Is it in the beginning or the end? If he is in the beginning, he is Vishnu. It is because Adinarayani (the first Narayani [Lakshmi]) is also required along with Adinarayan (the first Narayan). Otherwise, will there be the beginning of the world? There certainly won't be. So, [the picture] of Narayan is also to be made. When he grows up, he becomes Narayan.
The features should be the same. They shouldn't change. But look in the Brahmin world here, they make various, numerous features of Narayan and Krishna. This is why, these are given a warning today. Who? 'Inko' (these). 'These' means who? This Brahma Baba and also the children of Baba, the Brahmakumar-kumaris are given a warning. What warning are they given? Those who are given a warning, all the children certainly listen to it. Accha, if they don't listen to the tape [recorder], if they don't listen to the Vani, if they don't listen to these words [and] keep following [the knowledge]; What will they keep doing then? If they don’t listen [to the Vani] and continue following the knowledge, what will be the result? They will still keep making such wrong features. What? Arey, they should at least listen to what has been said carefully, why He says that the features shouldn't change, they should remain the same. But those who convert to the other religions… they will convert from the Copper Age, won't they? So, what sanskaars will come in them? The sanskaars of turning will come in them, won't they? Yes.
So, they change the features. They perform the shooting here itself. This is why, the Father says: the Father who sits and teaches; Yes. Which Father? It isn’t about any of the fathers of the 84 births or any Father from among the founders of religions. No. We should listen to what the Father teaches while sitting here; we should certainly listen to it every day. We should also listen to the Vanithrough the tape [recorder]. And we should make many listen to the tape. Why? It is because not many will listen to the Vani directly, will they? Yes. And what about the tape? You may take the tape anywhere. You may make as many people listen to it as you like. So, you should make many to listen [to the tape]. You did understand, didn’t you? You can have service done even through the tape, can’t you? Yes. It isn’t that the tape doesn’t work. No. You can carry the tape in a car and return after serving many. Arey! Can’t you get the tape repaired if it doesn’t work? (Someone said something.) Yes, you can. Have it repaired. You should keep one for yourself so that it doesn’t become non-functional. It means you should keep double [tapes]. Keep double tapes, one for yourself and the other? That doesn’t stop working; that it doesn’t stop working. Yes. There should be one for other service etc. Even if you have [other] service, if you go and listen to it from the tape, either in the morning or in the evening, it takes the same amount of time. As much time it takes here, while listening to the direct Vani, it will take the same amount of time while listening through the tape. It may take forty-five minutes or an hour.
So, you will try. Now, some will make purusharth, not everyone will do. There are many such children who do this very service. What? They record [the Vani] in the tape, take it with them and make [others] listen to it. They serve many. The children ask: What service should we do? Baba asks: Do you do this service? Carry the tape carefully everyday and... in a car or in anything... whether it is a car, a motor cycle or whatever it is. It doesn’t become non-functional. Go. Whoever wants to listen to it, if they are fond of listening, if they are lovers and those who declare... and those who also do such service. What? What does ‘to declare’ mean? A declaration is made loudly, isn’t it? Yes. Go and make them listen to it. Those who can’t come [here], make them listen to it.
Nowadays, you also go outside, so Baba asks: Do you carry the exhibition [with you]? Yes, you should also carry this with you. Why did he add ‘also’? Brother, carry the tape as well as the exhibits. So, they will listen to it very well, accurately. It is because they will see through the eyes also and listen through the ears. Although Baba says: [Listening] sanmukh (face to face), listening from this tape and listening from the Vani (paper Murli)…Which all topics? One is to listen directly from this tape and the second is to listen sanmukh. Yes. You will certainly get to listen to the Vani through the ears from the tape but you won’t be able to see [anything] through the eyes. So, three things are involved: One is [to be] sanmukh; in that [case], you can see through the eyes as well as listen through the ears. And the vibrations; You will also receive the vibrations in sanmukh [class], won’t you? Yes. You will be able to see gestures, expressions, everything face to face, won’t you? So, there is a great difference between all the three [methods]. Though, there is the TV. What is there? Even in that, you can certainly see the gestures of the eyes and hands but will there be the vibrations? There certainly won’t be the vibrations. Is there a mind and intellect inside the TV, so that it gives out vibrations? No. And in sanmukh [class], the vibrations are also present.
So, it was said: There is a vast difference between listening face to face and listening through the tape. And then, those who read out the Vani... It isn’t even the tape which would play [the Vani] accurately. Will it be [accurate]? No. It isn’t sanmukh either. So, they will sit and narrate the Vani through the paper Murli. Then, will there be even more difference or not? Yes, there will be even more difference. It is because the narrator who narrates the Vani from the paper, will he narrate it just as Baba narrates, without mixing anything [in it]? He will definitely mix one or two words to some extent or the other. So, will there be a difference or not? If you put a drop of snake poison in a pot full of milk, what will the whole [thing] turn [into]? It will turn into poison alone, won’t it? Yes. So, those who listen through the tape are second class and those who listen sanmukh are the first class. And those who listen, read or narrate to others from sheets of paper are - what? - Third class. Why? Why is it [third class]? It is because the original narrator isn’t narrating it; some other person, a duplicate (replacement), someone who mixes [his opinion] is narrating it. As regards the tape, it will certainly play accurately. There won’t be one or two words extra or less. It will take the same amount of time as much time it took for [the Vani] to play face to face and it will take the same amount of time if you listen from the tape but what will be the difference? The difference will be that those who meet face to face through the eyes, the vibrations that they catch through the mind and intellect, you won’t be able to catch them.
So, there is a vast difference between all the three [methods]. It is because you also see the expressions here. Where? What does expression mean? He makes some gestures, doesn’t He? Yes. So, you see them. And there, in the tape? You won’t be able to see anything in the tape. And there you won’t see the expressions. You won’t be able to see [the expressions] until your television emerges. When television emerges, you will be able to see the actions as well as the expressions in it. Alright, is television better, is the tape better or is reading the paper Murli better? (Someone said something.) Yes. [Listening] face to face is the best. You won’t be able to see the expressions in the tape at all. You will just get the accurate Vani to listen. Later, you will be able to see it but that becomes very expensive. What? (Someone said something.) Yes, the TV becomes very expensive. It becomes. What does mean? It means, it was said about that time, the present time [of that time]. It may become cheap in future but it was very expensive at that time, wasn’t it? Yes.
So, it becomes very costly. We can’t carry it wherever we want. A tape record is small; you can carry it [with you] and make people listen to it. Yes. So, that (TV) is also very costly. Is it costly now at present or not? No? How much does it cost? Will it be said to be costly or cheap at present? You get it in five thousand rupees. Speak up. Yes. Which TV? Colour or black and white? Which one do you get? You get a coloured one. It means black and white will be much cheaper. Nobody even asks for it. This is why, they pick it up just like that. [The seller says] Take it brother. Take it for thousand rupees. You won’t get a new tape recorder for thousand rupees. Will you? No. So look, it is a very costly thing. Why did He use ‘is’? It was said about that present time, the topic of the year 1967. But it is possible. It isn’t that it is impossible. No. It is possible. Yes.
Just like you sit and listen, similarly Baba will be sitting on the gaddi here. What was said? Just like you sit and listen face to face here, don’t you? Similarly, Baba will be sitting on the gaddi here. ‘He will be’. What was said? You will see Baba. Baba sits and narrates [the Vani]. The child will see Baba, the child will see Baba that Baba sits and narrates [the Vani]. Daughter, this is also a wonder, isn’t it? Look! Arey, there is so much enjoyment of science in today's world! Will that enjoyment be called the enjoyment of heaven? No. But will you be able to see the enjoyment of heaven? Will you be able to see the enjoyment of heaven in this world now? You certainly won’t be able to see the enjoyment of heaven. That has become past. It has become past. Then we also know that it will now certainly arrive. History repeats itself. It will come once again. So, this is also a wonder, is not it daughter? Look, how much science helps us!
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2953, दिनांक 26.07.2019
VCD 2953, dated 26.07.2019
प्रातः क्लास 01.12.1967
Morning Class dated 01.12.1967
VCD-2953-extracts-Bilingual
समय- 00.01-20.12
Time- 00.01-20.12
प्रातः क्लास चल रहा था 1.12.1967. शुक्रवार को आठवें पेज की चौथी, पांचवीं लाइन में बात चल रही थी कि बाबा समझाते हैं कि वो सुनते तो रहते हैं बच्चे कि फीचर्स एक ही तरह के होने चाहिए। एक ही दफा फोटो मिला। बस उसी के ऊपर विष्णु का भी बनना है और नारायण का भी बनना है। माने एक ही हुए या अलग हुए? बड़ा होते हैं और फीचर्स वो ही चलना चाहिए। विष्णु पहले या नारायण पहले? पहले कौन? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, पहले नारायण कि पहले विष्णु? (किसी ने कुछ कहा।) पहले विष्णु? अच्छा? पहले विष्णु। (किसी ने कुछ कहा।) पहले नारायण। अरे, ये तो झगड़ा हो गया। हँ? अच्छा नारायण का अर्थ क्या हुआ? नार माने ज्ञान जल। अयन माने घर। जो ज्ञान जल के घर में रहता हो। बाहर नहीं। तो अब बताओ नारायण पहले या विष्णु पहले? (किसी ने कुछ कहा।) नारायण? अच्छा? अभी विष्णु कह रहे थे अभी नारायण हो गया? अच्छा? कौन? पहले कौन? (किसी ने कुछ कहा।) नारायण? अरे?
अच्छा, नारायण जब तक विष्णु न बने तब तक लगातार 24 घंटे ज्ञान जल में रहेगा कि ज्ञान जल से बाहर निकल पड़ता होगा? बताओ। बाहर निकल पड़ता है। तो फिर विष्णु हुआ या नारायण हुआ? क्या हुआ? (किसी ने कुछ कहा।) नारायण। 24 घंटे कहां रहता है अयन में? नारायण। नार माने ज्ञान जल। अयन माने घर। 24 घंटे ज्ञान जल में रहता है? पक्का नारायण है कि कच्चा नारायण? अरे, क्या है? क्या कहें? कच्चा है कि पक्का? कच्चा ही हुआ ना? पक्का कहें तो भई बिल्कुल पक्का। अटल, अखंड, अडोल। बाहर ही न निकले। तो कब बनता है? जब; कब बनता है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जब लक्ष्मी आकरके मिल जाती है प्रैक्टिकल में तो क्या हो जाता है? विष्णु हो जाता है। है ना? तो बताओ, पहले नारायण कि पहले विष्णु? पता नहीं? अरे भई, स्वर्ग पहले बनेगा या पहले विष्णुलोक बनेगा? विष्णुलोक बनेगा। स्वर्ग में तो नारायण तो होते ही हैं। अव्वल नंबर हों, बाद वाले हों, कम कला के हों। लेकिन विष्णु कब कहा जाएगा? आदि में या अंत में? आदि में है तो विष्णु। क्योंकि आदि नारायण के साथ आदि नारायणी भी चाहिए। नहीं तो सृष्टि का आदि होगा? होगा ही नहीं। तो नारायण का भी बनना है। बड़ा होते हैं तो नारायण।
फीचर्स वो ही चलना चाहिए। बदलना नहीं चाहिए। परन्तु ये तो देखो यहां ब्राह्मणों की दुनिया में अलग-अलग ढ़ेर सारे नारायण के और कृष्ण के फीचर्स बनाय देते हैं। तो इसलिए आज इनको वार्निंग देते हैं। किनको? इनको। इनको माने किनको? इन ब्रह्मा बाबा को भी और बाबा के जो बच्चे हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियां, इनको भी वार्निंग देते हैं। क्या वार्निंग देते हैं? वार्निंग जिनको देते हैं वो सुनते तो सभी बच्चे हैं। अच्छा, अगर न सुनेंगे टेप और न सुनेंगे वाणी और ये अक्षर नहीं सुनेंगे तो चलते रहेंगे। अब फिर क्या करते रहेंगे? सुनेंगे नहीं। और चलते रहेंगे ज्ञान में। तो क्या होगा रिजल्ट? फिर भी ऐसे ही उल्टे-सुल्टे फीचर्स बनाते रहेंगे। क्या? अरे, बात को ध्यान देके सुने तो कि क्यों कहते हैं कि फीचर्स चेंज नहीं होना चाहिए, एक ही रहना चाहिए? परन्तु जो दूसरे धर्मों में कन्वर्ट होके रहेंगे; कन्वर्ट होंगे ना द्वापरयुग से; तो उनके अंदर संस्कार कौनसे आ जाएंगे? पलटने के संस्कार आ जाएंगे ना? हाँ।
तो फीचर्स बदल देते हैं। यहां ही शूटिंग कर लेते हैं। इसलिए बाप कहते हैं कि जो बाप बैठकरके पढ़ाते हैं। हाँ। कौनसे बाप? ऐसे नहीं 84 जनम के बाप कोई। या धरमपिताओं में से कोई बाप। नहीं। जो बाप यहां बैठकरके पढ़ाते हैं तो वो सुनना चाहिए। जरूर रोज सुनना चाहिए। ये जो टेप की वाणी है ना, वो भी तो सुननी चाहिए। और टेप बहुतों को सुनाना चाहिए। क्यों? क्योंकि वाणी से डायरेक्ट तो बहुत नहीं सुनेंगे ना? हाँ। और टेप तो? टेप तो कहीं भी ले जाओ। कितनों को भी सुनाओ। तो बहुतों को सुनाना चाहिए। समझे ना? टेप से भी सर्विस कराय सकते हैं ना? हाँ। ऐसे नहीं कि कोई टेप खराब हो जाते हैं। नहीं। कार में ले जावें टेप, बहुतों की सेवा करके चले आवें। अरे, टेप खराब हो जाए तो ठीक नहीं कराय सकते? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, कराय सकते, रिपेयर कराओ। एक अपने ऊपर रखें जो खराब भी न होवे। माने डबल रखें। टेप डबल रखें। एक अपने ऊपर। और एक? जो खराब? खराब न हो। हाँ। एक ऐसा होवे जिसको दूसरी सर्विस-वर्विस, भले सर्विस भी हो तो जाकरके कभी सुबह, कभी शाम टेप में सुनने से टाइम तो वो ही लगता है। जितना लंबा यहां लगेगा; वाणी सुनेंगे डायरेक्ट, जितना लंबा यहां लगेगा, उतना लंबा टेप से सुनाएंगे वहां भी लगेगा। पौना घंटा, एक घंटा।
तो कोशिश करेंगे। अब पुरुषार्थ कोई करेंगे। सब तो नहीं करेंगे। ऐसे तो बहुत हैं ना जो बच्चे यही सर्विस करते हैं। क्या? टेप में भरके ले जाएंगे। और सुनाएंगे। बहुतों की सर्विस करते हैं। वो बच्चे पूछते हैं कि क्या सर्विस करें? बाबा बोलता है ये सर्विस करती है क्या? रोज टेप संभाल से ले जाकरके और कोई कार में या किसमें भी; कार हो, मोटर साइकिल हो या जो कुछ भी हो। खराब नहीं होती। जाओ। जो भी सुनने चाहते हैं, सुनने के बहुत शौकीन हैं, आशिक हैं, और जो घोषणा करते हैं, जो सर्विस भी ऐसे ही करते हैं। क्या? घोषणा करना माने? जोर से घोषणा की जाती है ना? हाँ, उनको जाकरके, सुनाकरके भी आओ। जो न कोई आ सकते हैं उनको सुनाओ।
बाहर में भी तुम जाते हो आजकल तो बाबा कहते हैं प्रदर्शनी ले जाते हो? हाँ, ये भी ले जाना चाहिए साथ में। ‘भी’ क्यों लगाया? भई टेप भी ले जाओ और? और प्रदर्शनी? वो भी ले जाओ। तो बहुत अच्छी तरह से एक्यूरेट सुनेंगे। हाँ, क्योंकि आँखों से देखेंगे भी और कानों से सुनेंगे। भले बाबा कहते हैं कि सन्मुख और इस टेप में सुनने में और वाणी में सुनने में; कौन-कौनसी बातें? एक डायरेक्ट टेप में सुनो। इस टेप में। और दूसरा, सन्मुख सुना। हाँ। तो टेप में तो वाणी तो कान से सुनने को मिलेगी। लेकिन आँखों से देखने में तो नहीं मिलेगी। तो तीन बातें हुईं। एक सन्मुख; उनमें आँखों से भी देखेंगे और कानों से भी सुनेंगे। और जो वायब्रेशन हैं। सन्मुख में वायब्रेशन भी मिलेंगे ना? हाँ। हाव-भाव सब कुछ सन्मुख देखने में आवेंगे ना? तो तीनों में बहुत फर्क है। भले टीवी है। क्या है? टीवी। उसमें भी हाव-भाव तो आँखों से, हाथों से देखने में तो आते हैं। परन्तु वायब्रेशन आएंगे? वायब्रेशन तो नहीं आएंगे। टीवी के अन्दर मन-बुद्धि रखी है क्या जो वायब्रेशन छोड़ेगी? नहीं। और सन्मुख में तो वायब्रेशन भी होते हैं।
तो बताया - बहुत फर्क है सन्मुख सुनने में और टेप में सुनने में। और फिर जो वाणी पढ़ करके सुनाते हैं; टेप भी नहीं जो बिल्कुल एक्यूरेट सुनाए। होगा? नहीं। और सन्मुख भी नहीं है। तो कागज़ की मुरली में बैठकरके वाणी सुनाएंगे तो और ज्यादा अंतर पड़ेगा कि नहीं? हाँ। और ज्यादा अंतर पड़ेगा। क्योंकि जो कागज़ में सुनाने वाला वाणी सुनाएगा वो बाबा जितना जैसा जो कुछ बोलते हैं बिना मिक्स किये वैसा ही सुनाएगा? कुछ न कुछ, कुछ न कुछ एक-दो शब्द की भी मिक्सिंग तो कर ही देगा। तो अंतर पड़ेगा कि नहीं? एक घड़े का, दूध का भरा घड़ा हो और उसमें एक बूंद सांप का विष डाल दो तो सारा क्या हो जाएगा? विष ही हो जाएगा ना? हाँ। तो वो टेप से जो सुनते हैं वो फिर सेकण्ड क्लास। सन्मुख सुनते हैं सो फर्स्टक्लास। और कागज़ के पत्ते में बैठकरके सुनते हैं, पढ़ते हैं, दूसरों को सुनाते हैं वो तो हो गया, क्या? थर्ड क्लास। क्यों? क्यों हो गया? क्योंकि न तो वो ओरिजिनल सुनाने वाला सुना रहा है, सुना तो दूसरा डुप्लिकेट कोई दूसरा सुनाय रहा है, मिक्स करने वाला। और टेप में भी है तो एक्यूरेट तो सुनाय रहा है। कोई एक दो अक्षर घटेगा नहीं, बढ़ेगा नहीं। उतना ही टाइम लगेगा, सन्मुख में जितना टाइम लगा है और टेप में जो सुनेगा उतना ही टाइम लगेगा। लेकिन अंतर क्या पड़ेगा? अंतर ये पड़ेगा कि जो सन्मुख में आँखों से मिलते हैं, वायब्रेशन मन-बुद्धि से कैच करते हैं वो पकड़ में नहीं आवेंगे।
तो तीनों में बहुत अंतर है, बहुत फर्क है। क्योंकि यहां तो एक्सप्रेशन्स भी देखते हो। कहां? एक्सप्रेशन माने? इशारेबाजियां करते हैं ना कुछ? हाँ। तो देखते हो। और वहां टेप में? टेप में तो वो कुछ नहीं देख पाएंगे। और वहां एक्सप्रेशन नहीं देखेंगे। जब तलक तुम्हारा वो टेलिविजन निकले तब तक नहीं देख सकेंगे। टेलिविजन निकलेगा तो तुम उसमें एक्शन भी, एक्सप्रेशन भी देख सकेंगे। ठीक है। तो टेलिविजन बढ़िया हुआ या टेप बढ़िया हुआ या कागज़ में मुरली पढ़ना बढ़िया हुआ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, सन्मुख बढ़िया हुआ। टेप में तो फिर एक्सप्रेशन तो देखने को मिलेंगे नहीं। सिर्फ वाणी जयों की त्यों सुनने को मिलेगी। पीछे तो देख सकते हो। परन्तु वो तो बहुत ही फिर महंगा हो जाता है। क्या? हाँ, जो टीवी है वो तो फिर बहुत ही महंगा हो जाता है। हो जाता है। क्या मतलब? माने उस समय वर्तमान की बात बताई। आगे चलके तो भले सस्ते हो जाएं। लेकिन उस समय तो बहुत महंगाई की बात थी ना? हँ।
तो बहुत महंगे हो जाते हैं। उनको थोड़ेही कहां उठायकरके ले जाएंगे। टेप रिकार्ड तो छोटा होता है। उठायकरके ले जाओ, सुनाओ। हाँ। तो वो बड़ी कीमती चीज़ भी होती है। अभी वर्तमान में कीमती है कि नहीं? नहीं? कितना लगता है पैसा? वर्तमान में कीमती कहें कि सस्ती कहें? 5000 में मिल जाता है। बताओ। हां। कौनसा टीवी? रंगीन कि ब्लैक एंड व्हाइट? कौनसा मिल जाता है? कलर्ड मिल जाता है। तो इसका मतलब ब्लैक एंड व्हाइट तो और सस्ता मिल जाता होगा। वो तो कोई पूछता भी नहीं। इसलिए ऐसे ही उठाय लेते हैं। ले जाओ भाई हज़ार रुपये में ले जाओ। टेप रिकार्डर तुम्हें नया नहीं मिलेगा हज़ार रुपये में। मिलेगा? नहीं। तो देखो बड़ी कीमती चीज़ होती है। “है’ क्यों लगाय दिया? उस समय वर्तमान की सन् 67 की बात बताई। परन्तु हो सकते हैं ऐसे नहीं कि नहीं कुछ हो सकते हैं। नहीं। हो सकते हैं। हाँ।
जैसे तुम बैठकरके सुनते हो तैसे बाबा यहां गद्दी पे बैठा होगा। क्या कहा? जैसे तुम यहां बैठके सन्मुख सुनते हो ना? ऐसे बाबा यहां गद्दी पर बैठा होगा। होगा। क्या कहा? बाबा देखेगा। हाँ। बाबा बैठकरके सुनाते हैं। बच्चे बाबा को, बच्चा बाबा को देखेगा कि बाबा बैठकर सुनाते हैं। ये भी वंडर है ना बच्ची। देखो। अरे, ये साइंस का आज की दुनिया में कितना मज़ा है। वो मज़ा स्वर्ग का मज़ा कहेंगे? नहीं। लेकिन देखने को मिलेगा स्वर्ग का मज़ा? अभी इस दुनिया में स्वर्ग का मज़ा देखने को मिलेगा? स्वर्ग का मज़ा तो नहीं देखने को मिलेगा। वो तो पास्ट हो गया। पास्ट हो गया। फिर ये भी पता है कि अब आएगा जरूर। हिस्ट्री रिपीट्स इटसैल्फ। फिर आएगा। तो ये भी वंडर है ना बच्ची। देखो, कितना हमको साइंस मदद देती है!
The morning class dated 01.12.1967 was going on. We were discussing the topic on the fourth-fifth line of page eight on Friday: Baba explains that the children certainly keep listening that the features should be the same. We received a photo just once; based on that alone we have to make [the picture] of Vishnu as well as Narayan. It means, are they the same or are they different? [Even if] they grow up, there should be the same features. Is Vishnu first or is Narayan first? Who is first? (Someone said something.) Yes. Is Narayan first or is Vishnu first? (Someone said something.) Is Vishnu first? Accha! Vishnu is first. (Someone said something.) Narayan is first. Arey, a dispute has begun! Accha, what is the meaning of Narayan? Naarmeans the water of knowledge [and] ayan means house; the one who resides in the house of the water of knowledge, not outside. So now, tell me, is Narayan first or is Vishnu first? (Someone said something.) Narayan? Accha! Just now you were saying Vishnu and now you have switched over to Narayan? Accha? Who? Who is first? (Someone said something.) Narayan? Arey!
Accha, until Narayan becomes Vishnu, will he continuously remain in the water of knowledge for 24 hours or will he [sometimes] be coming out of the water of knowledge? Tell Me. He [sometimes] comes out of it. Then, is he Vishnu or Narayan? What is he? (Someone said something.) Narayan? Where does he remain in the house for 24 hours? Narayan. ‘Naar’ means the water of knowledge [and] ‘ayan’ means house. Does he remain in the water of knowledge for 24 hours? Is he the perfect Narayan or the imperfect Narayan? Arey! What is he? What will he be called? Is he imperfect or perfect? He is certainly imperfect, isn’t he? If we call him perfect, he should be fully perfect; unshakable, indestructible, immovable who doesn’t come out of it at all. So, when does he become that? When…When does he become that? (Someone said something.) Yes, when Lakshmi comes and unites with him in practical, what does he become? He becomes Vishnu, doesn’t he? So, tell Me: Is Narayan first or is Vishnu first? I don’t know? Arey brother! Will heaven be established first or will the Abode of Vishnu (Vishnulok) be established first? The Abode of Vishnu will be established [first]. There are certainly Narayans in heaven, whether it is number one [Narayan] or [the Narayans] those that come later, those with fewer celestial degrees but when will he be called Vishnu? Is it in the beginning or the end? If he is in the beginning, he is Vishnu. It is because Adinarayani (the first Narayani [Lakshmi]) is also required along with Adinarayan (the first Narayan). Otherwise, will there be the beginning of the world? There certainly won't be. So, [the picture] of Narayan is also to be made. When he grows up, he becomes Narayan.
The features should be the same. They shouldn't change. But look in the Brahmin world here, they make various, numerous features of Narayan and Krishna. This is why, these are given a warning today. Who? 'Inko' (these). 'These' means who? This Brahma Baba and also the children of Baba, the Brahmakumar-kumaris are given a warning. What warning are they given? Those who are given a warning, all the children certainly listen to it. Accha, if they don't listen to the tape [recorder], if they don't listen to the Vani, if they don't listen to these words [and] keep following [the knowledge]; What will they keep doing then? If they don’t listen [to the Vani] and continue following the knowledge, what will be the result? They will still keep making such wrong features. What? Arey, they should at least listen to what has been said carefully, why He says that the features shouldn't change, they should remain the same. But those who convert to the other religions… they will convert from the Copper Age, won't they? So, what sanskaars will come in them? The sanskaars of turning will come in them, won't they? Yes.
So, they change the features. They perform the shooting here itself. This is why, the Father says: the Father who sits and teaches; Yes. Which Father? It isn’t about any of the fathers of the 84 births or any Father from among the founders of religions. No. We should listen to what the Father teaches while sitting here; we should certainly listen to it every day. We should also listen to the Vanithrough the tape [recorder]. And we should make many listen to the tape. Why? It is because not many will listen to the Vani directly, will they? Yes. And what about the tape? You may take the tape anywhere. You may make as many people listen to it as you like. So, you should make many to listen [to the tape]. You did understand, didn’t you? You can have service done even through the tape, can’t you? Yes. It isn’t that the tape doesn’t work. No. You can carry the tape in a car and return after serving many. Arey! Can’t you get the tape repaired if it doesn’t work? (Someone said something.) Yes, you can. Have it repaired. You should keep one for yourself so that it doesn’t become non-functional. It means you should keep double [tapes]. Keep double tapes, one for yourself and the other? That doesn’t stop working; that it doesn’t stop working. Yes. There should be one for other service etc. Even if you have [other] service, if you go and listen to it from the tape, either in the morning or in the evening, it takes the same amount of time. As much time it takes here, while listening to the direct Vani, it will take the same amount of time while listening through the tape. It may take forty-five minutes or an hour.
So, you will try. Now, some will make purusharth, not everyone will do. There are many such children who do this very service. What? They record [the Vani] in the tape, take it with them and make [others] listen to it. They serve many. The children ask: What service should we do? Baba asks: Do you do this service? Carry the tape carefully everyday and... in a car or in anything... whether it is a car, a motor cycle or whatever it is. It doesn’t become non-functional. Go. Whoever wants to listen to it, if they are fond of listening, if they are lovers and those who declare... and those who also do such service. What? What does ‘to declare’ mean? A declaration is made loudly, isn’t it? Yes. Go and make them listen to it. Those who can’t come [here], make them listen to it.
Nowadays, you also go outside, so Baba asks: Do you carry the exhibition [with you]? Yes, you should also carry this with you. Why did he add ‘also’? Brother, carry the tape as well as the exhibits. So, they will listen to it very well, accurately. It is because they will see through the eyes also and listen through the ears. Although Baba says: [Listening] sanmukh (face to face), listening from this tape and listening from the Vani (paper Murli)…Which all topics? One is to listen directly from this tape and the second is to listen sanmukh. Yes. You will certainly get to listen to the Vani through the ears from the tape but you won’t be able to see [anything] through the eyes. So, three things are involved: One is [to be] sanmukh; in that [case], you can see through the eyes as well as listen through the ears. And the vibrations; You will also receive the vibrations in sanmukh [class], won’t you? Yes. You will be able to see gestures, expressions, everything face to face, won’t you? So, there is a great difference between all the three [methods]. Though, there is the TV. What is there? Even in that, you can certainly see the gestures of the eyes and hands but will there be the vibrations? There certainly won’t be the vibrations. Is there a mind and intellect inside the TV, so that it gives out vibrations? No. And in sanmukh [class], the vibrations are also present.
So, it was said: There is a vast difference between listening face to face and listening through the tape. And then, those who read out the Vani... It isn’t even the tape which would play [the Vani] accurately. Will it be [accurate]? No. It isn’t sanmukh either. So, they will sit and narrate the Vani through the paper Murli. Then, will there be even more difference or not? Yes, there will be even more difference. It is because the narrator who narrates the Vani from the paper, will he narrate it just as Baba narrates, without mixing anything [in it]? He will definitely mix one or two words to some extent or the other. So, will there be a difference or not? If you put a drop of snake poison in a pot full of milk, what will the whole [thing] turn [into]? It will turn into poison alone, won’t it? Yes. So, those who listen through the tape are second class and those who listen sanmukh are the first class. And those who listen, read or narrate to others from sheets of paper are - what? - Third class. Why? Why is it [third class]? It is because the original narrator isn’t narrating it; some other person, a duplicate (replacement), someone who mixes [his opinion] is narrating it. As regards the tape, it will certainly play accurately. There won’t be one or two words extra or less. It will take the same amount of time as much time it took for [the Vani] to play face to face and it will take the same amount of time if you listen from the tape but what will be the difference? The difference will be that those who meet face to face through the eyes, the vibrations that they catch through the mind and intellect, you won’t be able to catch them.
So, there is a vast difference between all the three [methods]. It is because you also see the expressions here. Where? What does expression mean? He makes some gestures, doesn’t He? Yes. So, you see them. And there, in the tape? You won’t be able to see anything in the tape. And there you won’t see the expressions. You won’t be able to see [the expressions] until your television emerges. When television emerges, you will be able to see the actions as well as the expressions in it. Alright, is television better, is the tape better or is reading the paper Murli better? (Someone said something.) Yes. [Listening] face to face is the best. You won’t be able to see the expressions in the tape at all. You will just get the accurate Vani to listen. Later, you will be able to see it but that becomes very expensive. What? (Someone said something.) Yes, the TV becomes very expensive. It becomes. What does mean? It means, it was said about that time, the present time [of that time]. It may become cheap in future but it was very expensive at that time, wasn’t it? Yes.
So, it becomes very costly. We can’t carry it wherever we want. A tape record is small; you can carry it [with you] and make people listen to it. Yes. So, that (TV) is also very costly. Is it costly now at present or not? No? How much does it cost? Will it be said to be costly or cheap at present? You get it in five thousand rupees. Speak up. Yes. Which TV? Colour or black and white? Which one do you get? You get a coloured one. It means black and white will be much cheaper. Nobody even asks for it. This is why, they pick it up just like that. [The seller says] Take it brother. Take it for thousand rupees. You won’t get a new tape recorder for thousand rupees. Will you? No. So look, it is a very costly thing. Why did He use ‘is’? It was said about that present time, the topic of the year 1967. But it is possible. It isn’t that it is impossible. No. It is possible. Yes.
Just like you sit and listen, similarly Baba will be sitting on the gaddi here. What was said? Just like you sit and listen face to face here, don’t you? Similarly, Baba will be sitting on the gaddi here. ‘He will be’. What was said? You will see Baba. Baba sits and narrates [the Vani]. The child will see Baba, the child will see Baba that Baba sits and narrates [the Vani]. Daughter, this is also a wonder, isn’t it? Look! Arey, there is so much enjoyment of science in today's world! Will that enjoyment be called the enjoyment of heaven? No. But will you be able to see the enjoyment of heaven? Will you be able to see the enjoyment of heaven in this world now? You certainly won’t be able to see the enjoyment of heaven. That has become past. It has become past. Then we also know that it will now certainly arrive. History repeats itself. It will come once again. So, this is also a wonder, is not it daughter? Look, how much science helps us!
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शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2954, दिनांक 27.07.2019
VCD 2954, dated 27.07.2019
प्रातः क्लास 01.12.1967
Morning class dated 01.12.1967
VCD-2954-Bilingual
समय- 00.01-20.13
Time- 00.01-20.13
प्रातः क्लास चल रहा था 1.12.1967. शुक्रवार को नौ पेज की तीसरी, चौथी लाइन में बात चल रही थी कि जब लगन लग जाती है तो भले खाना खाते हैं, हँ, खाना खाएंगे, बाबा की याद में खाएंगे। उठेंगे, बैठेंगे, प्रण करेंगे तो इतना कड़ा एकदम प्रण करेंगे। ऐसे बैठेंगे तो फिर बाबा की मदद जरूर मिलेगी। हाँ, ये सब कुछ होने का है। पिछाड़ी में पुरुषार्थ जरूर होते हैं। और पिछाड़ी में मजे भी बहुत होते हैं क्योंकि जैसे शुरुआत में मजा था साक्षात्कार का ऐसे तुमको पिछाड़ी में है। आदमी वो ही होंगे क्योंकि वहां भी ऐसे ही हम मलूक बनते थे। पर हमको कोई किसी की परवाह थोड़ेही रहती थी? अरे, कत्ले आम होते थे। हम क्या कर सकते हैं? कोई भी फिकर की बात नहीं थी। पिछाड़ी में तो ऐसे ही होंगे। समझा ना? क्योंकि एक बार तो देख लिया ना कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान की पार्टिशन हुई तो क्या होते थे? तो पीछे भी तो ये लड़ाई देखी ना? कैसे मारते हैं एक दो को बात मत पूछो। समझा ना? उन लोगों को क्यास-व्यास नहीं पड़ता है किसी के ऊपर। अरे, बात मत पूछो। बस, वो तो माइयां और वो छोकरियां और देखा और समझा काल आया है। हे भगवन, बस। और गला चट्ट या टांगें चट्ट या फलाना चट्ट। देखो, बहुत-बहुत खराब हुआ था।
तो वो तो कोई प्रलय तो नहीं थी। और ये जो अभी विनाश होने वाला है ये विनाश तो नहीं था ना? ये तुमको साक्षात्कार कराने के लिए तो कैसे विनाश होते हैं? ये तो तुम बच्चे जानते हो कि बिल्कुल अच्छी तरह से कि ये विनाश होने का है। और ऐसे में भी हमको बड़ा महावीर बनना है। जरा भी कहीं भी हिचकिचाना नहीं है। समझा ना? ये सब देखकरके भी हिचना-करना नहीं है। नहीं तो तुम बच्चों को मालूम है कोई को आपरेशन सिर्फ करने वाला कोई देखे तो वो हार्टफेल होकरके गिर जाते हैं। और ये-3. कौन ये? हाँ, ये खुद भी गिरा हुआ है। ये सब बाबा अनुभव की बातें सुनाते हैं। ये किसका आपरेशन होता था, देखते-देखते ये-ये गिर गया एकदम। उठाकरके खटिया, खटिया के ऊपर डाल दिया। 15 मिनट तो बेशक पड़े थे। तो है ना बरोबर।
यहां खूनी-नाहक खेल है। इसमें इतना मजबूत हो जाना चाहिए बिल्कुल ही। एकदम मजबूत। जैसे महावीर। अरे, दृष्टांत भी तो पूरा दिया हुआ है ना? और खेल भी तो यही है। ये रावण का और ये राम का। और-और दृष्टांत भी उन्हीं का दिया हुआ है। तो भई उनको कितना भी तूफान आवें, कोई भी बात होवे तो वो एकदम अडोल बैठे रहेंगे। हिलेंगे नहीं। तो ऐसे तो नहीं है कोई पैर आकरके उठाएगा। हँ? पैर उठाने तो ऐसी बात वरी पैर उठाकरके घिसकरके ले जावे। नहीं। ये बाप बैठकरके समझाते हैं कि कितना भी तूफान माया का आवे, संकल्प जैसे तुम कहते हो ना बाबा स्वप्न आते हैं, ये आते हैं, वो आते हैं। ढ़ेर और अथाह और दिन प्रतिदिन वृद्धि को पाते जाएंगे। क्योंकि तुम पहलवान बनते जाएंगे तो माया भी पहलवान बनती जाएगी। ये तो समझते हो ना पहलवान पहलवान से लड़ेंगे, सेकण्ड सेकण्ड से, थर्ड थर्ड से। तो ये सुनते हो, अखबार में भी सुनते हो। और ये भी ऐसे ही है। जितना तुम पहलवान बनेंगे माया भी पहलवान बनेगी। तो पिछाड़ी को देखो ना? एक का ये दृष्टांत दे दिया कि भई अचल-अचल, अडोल रहा। है ना? और आग भी लग गई। समझे ना?
तो देखो, कितना अच्छा दृष्टांत बनाया है! परन्तु कोई समझे ना? बाप बैठकरके समझाते हैं अच्छी तरह से कि क्या होता है पिछाड़ी में? तो तुमको भी ऐसा महावीर बनना है। और उनकी यादगार यहां खड़ी है। ये यादगार तो एक्यूरेट है बिल्कुल ही। तो महावीर का ही तो चित्र दिया है ना? तो महावीर वो ही तो ब्रह्मा है ना? हँ? दूसरी तो कोई चीज़ नहीं है। वो ही आदि देव है। नाम ढ़ेर रख दिये हैं। जैसे शास्त्रों में लिख दिया है। हँ? क्या? एको सद्विप्रा बहुधा वदन्ती। है एक ही। तो वो ही आदि देव है। नाम ढ़ेर रखा है। अच्छा, आओ बच्ची। ये तभी तो गाया जाता है ना ज्ञान का सागर है। जनम बाई जनम कहते आए हो ज्ञान का सागर। एक दिन तो जरूर वो ज्ञान का सागर पढ़ाएंगे ना? पढ़ाएंगे जो बंद हो जावे मूथ। हँ? कहने का भी, स्तुति करने का भी। जिसमें, जिसमें गुण हैं। तुम्हारे में भी अच्छा लगता है। वो जो किसको बैठकरके और, और सिखलाते हैं। ये तो ठीक है ना? मीठा लगेगा बहुत। और बाबा भी यहां देखते रहेंगे ये कौन हैं जो बहुतों को जाकरके ये, ये सुनाते हैं। और बहुत अच्छा-अच्छा करके बनाकरके ले आते हैं। साथ में ले आते हैं। तो जितना साथ में ले आएंगे उतना बाबा कहेंगे अच्छी मेहनत करती है। बाबा ऐसे नहीं कहते हैं कि जो ले आती है वो अच्छी मेहनत करती है। वो नहीं करते हैं। नहीं। जिनको फिर ले आती है वो फिर उनसे भी अच्छे चले जाते हैं। हाँ। ये ऐसे-ऐसे बहुत-बहुत हैं ऐसे जो सीखते हैं। तो वो सिखलाने वाले से भी तीखे हो जाते हैं। कहते हैं ना गुरु गुड़ रह गए चेला शक्कर हो गए।
तो ये बातें सिर्फ तुम जानते हो। रमेश, ऊषा, अरे, ये अभी तो आए हैं। हँ? तो देखो, कितनों से तीखा जाते हैं। उनकी पुकार पड़ती है। हँ? उनको भेज दियो। उनको भेज दियो। होते हैं ना बच्ची। नए-नए को, भई सुदेश है, फलाना है। ये तो नए हैं ना सब। अब ये भी तो नया है। इनको कितने बुलाते हैं। मेल को भी। फलाने को भेज दियो। क्यों भई? ये आकरके सर्विस करेगी। हँ। दोनों मिलकरके सजाएंगे। तो वो सजाने का काम भी करेंगे। तो आलराउंड सर्विस वाला चाहिए। कौन दोनों की बात हो रही है? हँ? ऊषा- रमेश की बात हो रही है। हँ? बाबा तो हद में भी बोलते हैं तो बेहद में भी बोलते हैं। हँ? बेहद में क्या? हँ? बेहद में ऊषा कहते हैं जब सूरज निकलता है तो पहले लाल-लाल लालिमा ऊषा निकलती है। फिर बताया रमेश साथ में। रमा का ईश। रमा माने? पार्वती। और उसका ईश माने स्वामी। कौन? शंकरजी। तो शंकर-पार्वती की बात बताय रहे हैं, नाम लिया रमेश ऊषा का। हँ? हाँ। कहां के हैं? हाँ, सभी समझेंगे हां बाम्बे के हैं। तो बेहद में भी तो हर-हर बम-बम लगा हुआ है ना? नहीं लगा है? लगा है।
तो ऐसे आलराउंड सर्विस वाले चाहिए। ऐसे बहुत भाषाएं सीखने वाले का मान देते हैं। ऐसे आलराउंड सर्विस करने के बाद जो काम आए। बाड़े का काम आए तो बाड़े का लगाय दिया। तो आलराउंड। इन बच्चों से पूछो कि आलराउंड मम्मा-बाबा भी काम करते थे ना? हँ? क्या? हां, ये लोग क्या करते थे? मम्मा-बाबा इस्त्री करते थे। हाँ, कपड़ों पे प्रेस की जाती है ना? हँ। पहले मम्मा-बाबा जाते थे। बर्तन भी मांजते थे। तो मम्मा-बाबा जाते थे। तो वो जाकरके करते थे। क्यों? क्यों करते थे ऐसे? कि जैसे हम कर्म करेंगे हमें देख और बच्चे भी फालो करेंगे। और भी करने लग पड़ेंगे। तो ये करना पड़े ना बच्चे। सिखलाना भी होता है। तो इनको भी देखो सिखलाते हैं ना? जैसा कर्म इनकी मां या इनको सिखलाएंगे। अभी कल इनको देंगे थाली। या आपे ही लेकरके, जाकरके सबको देंगे। और पीछे एक दफा नहीं तो दूसरी दफा ट्राइ करेंगे। पर देखने में ऐसे आते हैं क्योंकि बच्चे-बच्चे भी होते हैं ना? कोई तो फट से सीख जाते हैं। कोई को फिर लंबा टाइम लगता है। कोई तो सीखते ही नहीं। अच्छा, मीठे-मीठे, रूहानी, सीकिलधे बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का दिल व जान, सिक और प्रेम से यादप्यार, गुडमार्निंग। बच्चों प्रति रूहानी बाप की नमस्ते। ओमशान्ति। 27 तारीख हो गई? (समाप्त)
A morning classdated 1.12.1967 was being narrated. The topic being discussed in the third, fourth line of the ninth page on Friday was that when one develops devotion, then although you eat, hm, when you eat, you will eat in Baba’s remembrance. When you stand, when you sit, when you take a vow, then you will take such a strong vow. When you sit like this, then you will definitely get Baba’s help. Yes, all this is going to happen. In the end purusharth definitely takes place. And in the end there will be a lot of enjoyment also because just as there was enjoyment of visions (saakshaatkaar) in the beginning, similarly you will have in the end. The persons will be the same because there also we used to become hunters (malook) like this only. But did we used to care for anyone? Arey, there used to be mass bloodshed. What can we do? There was no topic of worry. In the end it will be like this only. You have understood, haven’t you? It is because you have seen once, haven’t you that when the partition of Hindustan-Pakistan took place, then what used to happen? So, you have seen this fight in the past also, haven’t you? How they kill each other, just don’t ask. You have understood, haven’t you? Those people don’t feel pity on anyone. Arey, just don’t ask. That is it; those mothers and those virgins and when they saw, they thought that our death has arrived. O God! That is it. And they cut the throat or cut the legs or cut some other organ. Look, very, very bad things happened.
So, that was not pralai (inundation of the world). And this destruction that is going to take place now, it was not this destruction, was it? You are made to have visions of how destruction takes place. You children know very nicely that this destruction is to take place. And in such situations also we have to become very brave (Mahaveer). You should not hesitate even a little anywhere. You have understood, haven’t you? You should not hesitate even after seeing all this. Otherwise, you children know if anyone just sees an operation (surgery) being conducted, he falls down due to heart failure. And this, this, this; who this? Yes, this one himself has also fallen. Baba narrates all these topics of experience. If anyone’s operation is taking place, then he used to fall just on watching. He used to be lifted and put on a cot. He was lying [unconscious] certainly for 15 minutes. So, it is right, isn’t it?
Here it is an unnecessary bloodshed. You should become so strong in this completely. Completely strong. Just like Mahavir. Arey, an example has also been given completely, hasn’t it been? And the drama is also this only. Of this Ravan and of this Ram. And, and the example is also given about them only. So, brother, howevermuch storm he faces, whatever thing happens, he will sit completely unshakeable. They will not shake. So, it is not as if someone will come and lift your leg. Hm? The topic of lifting the leg that someone will lift your leg and pull it away. No. This Father sits and explains that howevermuch storms, thoughts of Maya you may face, for example you say, don’t you that Baba, we get dreams, we face this, we face that. Numerous and immeasurable and day by day they will go on increasing. It is because you will go on becoming strong (pehelwaan), then Maya will also go on becoming strong. You understand that a wrestler (pehelwaan) will fight with a wrestler, second one with the second one, third one with the third one. So, you hear this, you hear from the newspapers also. And this is also like this only. Maya will also become as strong as you become. So, look at the end, will you not? An example of one [Angad, a character from the epic Ramayana] was given that brother he remained unshakeable, immovable. Is it not? And he was set on fire as well. You have understood, haven’t you?
So, look, such a nice instance has been made! But someone should understand, shouldn’t they? The Father sits and explains nicely as to what happens in the end. So, you too have to become such Mahavirs (bravest ones). And their memorial is standing here. This memorial is completely accurate. So, Mahavir’s picture has only been given, hasn’t it been? So, Mahavir himself is Brahma, isn’t he? Hm? It is no other thing. It is the same Aadi Dev (the first deity). Numerous names have been coined. For example, it has been written in the scriptures. Hm? What? Eko sadvipra bahudha vadanti. He is only one. So, he alone is Aadi Dev. Numerous names have been coined [for him]. Achcha, come daughter. That is why it is sung, isn’t it that He is the ocean of knowledge? You have been calling the ocean of knowledge birth by birth. One day that ocean of knowledge will definitely teach, will He not? He will teach so that the mooth closes. Hm? That of saying as well as praising. The one, the one in whom there are virtues. Even among you it looks nice. Those who sit and, and explain to someone. This is correct, isn’t it? It will appear very sweet. And Baba will also keep on seeing here as to who are these who go and narrate this, this to many. And they make them very nice ones and bring them. They bring them with themselves. So, the more they bring with themselves, Baba will say that she works hard. Baba does not say that the one who brings works hard nicely. They don’t do. No. Those whom she brings, they then become better than them [the teachers]. Yes. There are many, many such persons who learn. So, they become sharper [cleverer] than the teachers. It is said, isn’t it that the guru remained jaggery and the disciple became sugar.
So, you alone know these topics. Ramesh, Usha, arey, they have come just now. Hm? So, look, they go faster than so many people. They are called. Hm? Send them [to us for service]. Send them. It happens, doesn’t it daughter? New ones, there is Sudesh, there is such and such person. All these are new ones, aren’t they? Well, this one is also new. So many call this one. Even the male. Send such and such person. Why brother? She will come and do service. Hm. Both will together decorate. So, they will perform the task of decorating also. So, a person fit for all-round service is required. The topic of which two persons is being discussed? Hm? The topic of Usha and Ramesh is being discussed. Hm? Baba speaks in a limited sense as well as in an unlimited sense. Hm? What in an unlimited form? Hm? Usha in unlimited sense is said to be when the Sun rises then initially the red light called laalima emerges. Then it was told that Ramesh is with her. Rama’s Eesh (lord). What is meant by Rama? Parvati. And her Eesh, i.e. Lord (husband). Who? Shankarji. So, the topic of Shankar Parvati is being told that the name of Ramesh and Usha was mentioned. Hm? Yes. They belong to which place? Yes, everyone will understand that yes, they belong to Bombay. So, even in an unlimited sense, Har-Har, Bam-Bam is attached, isn’t it? Isn’t it attached? It is attached.
So, such persons who can do all-round service are required. People who learn many languages are given respect. After doing all-round service, whichever task arrives. If the task of cattle enclave is there then they are engaged in that task. So, all-round. Ask these children that Mama and Baba also used to do all-round work, didn’t they? Hm? What? Yes, what did these people used to do? Mama Baba used to iron (press) the clothes. Yes, clothes are pressed, aren’t they? Hm. Earlier Mama-Baba used to go. They even used to clean the utensils. So, Mama-Baba used to go. So, they used to go and do. Why? Why did they used to do like this? So that whatever kind of actions we perform, other children will also observe us and follow us. Others will also start doing. So, children, you will have to do this, will you not? You also have to teach. So, look at these, they are also taught, aren’t they? Whatever action her mother or she is taught. Well, tomorrow they will be given a plate. Or they will go and pick-up on their own and give to everyone. And later if not once, they will try another time. But it is observed like this because there are children, children also, aren’t they there? Some learn immediately. Some take a long time. Some don’t learn at all. Achcha, remembrance, love and good morning of the spiritual Father and Dada from their heart and life, love and affection to the sweet, sweet, spiritual, seekiladhey (children reunited with parents after a long gap) children. Spiritual Father’s namaste to the children. Om Shanti. Is it 27th? (End)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2954, दिनांक 27.07.2019
VCD 2954, dated 27.07.2019
प्रातः क्लास 01.12.1967
Morning class dated 01.12.1967
VCD-2954-Bilingual
समय- 00.01-20.13
Time- 00.01-20.13
प्रातः क्लास चल रहा था 1.12.1967. शुक्रवार को नौ पेज की तीसरी, चौथी लाइन में बात चल रही थी कि जब लगन लग जाती है तो भले खाना खाते हैं, हँ, खाना खाएंगे, बाबा की याद में खाएंगे। उठेंगे, बैठेंगे, प्रण करेंगे तो इतना कड़ा एकदम प्रण करेंगे। ऐसे बैठेंगे तो फिर बाबा की मदद जरूर मिलेगी। हाँ, ये सब कुछ होने का है। पिछाड़ी में पुरुषार्थ जरूर होते हैं। और पिछाड़ी में मजे भी बहुत होते हैं क्योंकि जैसे शुरुआत में मजा था साक्षात्कार का ऐसे तुमको पिछाड़ी में है। आदमी वो ही होंगे क्योंकि वहां भी ऐसे ही हम मलूक बनते थे। पर हमको कोई किसी की परवाह थोड़ेही रहती थी? अरे, कत्ले आम होते थे। हम क्या कर सकते हैं? कोई भी फिकर की बात नहीं थी। पिछाड़ी में तो ऐसे ही होंगे। समझा ना? क्योंकि एक बार तो देख लिया ना कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान की पार्टिशन हुई तो क्या होते थे? तो पीछे भी तो ये लड़ाई देखी ना? कैसे मारते हैं एक दो को बात मत पूछो। समझा ना? उन लोगों को क्यास-व्यास नहीं पड़ता है किसी के ऊपर। अरे, बात मत पूछो। बस, वो तो माइयां और वो छोकरियां और देखा और समझा काल आया है। हे भगवन, बस। और गला चट्ट या टांगें चट्ट या फलाना चट्ट। देखो, बहुत-बहुत खराब हुआ था।
तो वो तो कोई प्रलय तो नहीं थी। और ये जो अभी विनाश होने वाला है ये विनाश तो नहीं था ना? ये तुमको साक्षात्कार कराने के लिए तो कैसे विनाश होते हैं? ये तो तुम बच्चे जानते हो कि बिल्कुल अच्छी तरह से कि ये विनाश होने का है। और ऐसे में भी हमको बड़ा महावीर बनना है। जरा भी कहीं भी हिचकिचाना नहीं है। समझा ना? ये सब देखकरके भी हिचना-करना नहीं है। नहीं तो तुम बच्चों को मालूम है कोई को आपरेशन सिर्फ करने वाला कोई देखे तो वो हार्टफेल होकरके गिर जाते हैं। और ये-3. कौन ये? हाँ, ये खुद भी गिरा हुआ है। ये सब बाबा अनुभव की बातें सुनाते हैं। ये किसका आपरेशन होता था, देखते-देखते ये-ये गिर गया एकदम। उठाकरके खटिया, खटिया के ऊपर डाल दिया। 15 मिनट तो बेशक पड़े थे। तो है ना बरोबर।
यहां खूनी-नाहक खेल है। इसमें इतना मजबूत हो जाना चाहिए बिल्कुल ही। एकदम मजबूत। जैसे महावीर। अरे, दृष्टांत भी तो पूरा दिया हुआ है ना? और खेल भी तो यही है। ये रावण का और ये राम का। और-और दृष्टांत भी उन्हीं का दिया हुआ है। तो भई उनको कितना भी तूफान आवें, कोई भी बात होवे तो वो एकदम अडोल बैठे रहेंगे। हिलेंगे नहीं। तो ऐसे तो नहीं है कोई पैर आकरके उठाएगा। हँ? पैर उठाने तो ऐसी बात वरी पैर उठाकरके घिसकरके ले जावे। नहीं। ये बाप बैठकरके समझाते हैं कि कितना भी तूफान माया का आवे, संकल्प जैसे तुम कहते हो ना बाबा स्वप्न आते हैं, ये आते हैं, वो आते हैं। ढ़ेर और अथाह और दिन प्रतिदिन वृद्धि को पाते जाएंगे। क्योंकि तुम पहलवान बनते जाएंगे तो माया भी पहलवान बनती जाएगी। ये तो समझते हो ना पहलवान पहलवान से लड़ेंगे, सेकण्ड सेकण्ड से, थर्ड थर्ड से। तो ये सुनते हो, अखबार में भी सुनते हो। और ये भी ऐसे ही है। जितना तुम पहलवान बनेंगे माया भी पहलवान बनेगी। तो पिछाड़ी को देखो ना? एक का ये दृष्टांत दे दिया कि भई अचल-अचल, अडोल रहा। है ना? और आग भी लग गई। समझे ना?
तो देखो, कितना अच्छा दृष्टांत बनाया है! परन्तु कोई समझे ना? बाप बैठकरके समझाते हैं अच्छी तरह से कि क्या होता है पिछाड़ी में? तो तुमको भी ऐसा महावीर बनना है। और उनकी यादगार यहां खड़ी है। ये यादगार तो एक्यूरेट है बिल्कुल ही। तो महावीर का ही तो चित्र दिया है ना? तो महावीर वो ही तो ब्रह्मा है ना? हँ? दूसरी तो कोई चीज़ नहीं है। वो ही आदि देव है। नाम ढ़ेर रख दिये हैं। जैसे शास्त्रों में लिख दिया है। हँ? क्या? एको सद्विप्रा बहुधा वदन्ती। है एक ही। तो वो ही आदि देव है। नाम ढ़ेर रखा है। अच्छा, आओ बच्ची। ये तभी तो गाया जाता है ना ज्ञान का सागर है। जनम बाई जनम कहते आए हो ज्ञान का सागर। एक दिन तो जरूर वो ज्ञान का सागर पढ़ाएंगे ना? पढ़ाएंगे जो बंद हो जावे मूथ। हँ? कहने का भी, स्तुति करने का भी। जिसमें, जिसमें गुण हैं। तुम्हारे में भी अच्छा लगता है। वो जो किसको बैठकरके और, और सिखलाते हैं। ये तो ठीक है ना? मीठा लगेगा बहुत। और बाबा भी यहां देखते रहेंगे ये कौन हैं जो बहुतों को जाकरके ये, ये सुनाते हैं। और बहुत अच्छा-अच्छा करके बनाकरके ले आते हैं। साथ में ले आते हैं। तो जितना साथ में ले आएंगे उतना बाबा कहेंगे अच्छी मेहनत करती है। बाबा ऐसे नहीं कहते हैं कि जो ले आती है वो अच्छी मेहनत करती है। वो नहीं करते हैं। नहीं। जिनको फिर ले आती है वो फिर उनसे भी अच्छे चले जाते हैं। हाँ। ये ऐसे-ऐसे बहुत-बहुत हैं ऐसे जो सीखते हैं। तो वो सिखलाने वाले से भी तीखे हो जाते हैं। कहते हैं ना गुरु गुड़ रह गए चेला शक्कर हो गए।
तो ये बातें सिर्फ तुम जानते हो। रमेश, ऊषा, अरे, ये अभी तो आए हैं। हँ? तो देखो, कितनों से तीखा जाते हैं। उनकी पुकार पड़ती है। हँ? उनको भेज दियो। उनको भेज दियो। होते हैं ना बच्ची। नए-नए को, भई सुदेश है, फलाना है। ये तो नए हैं ना सब। अब ये भी तो नया है। इनको कितने बुलाते हैं। मेल को भी। फलाने को भेज दियो। क्यों भई? ये आकरके सर्विस करेगी। हँ। दोनों मिलकरके सजाएंगे। तो वो सजाने का काम भी करेंगे। तो आलराउंड सर्विस वाला चाहिए। कौन दोनों की बात हो रही है? हँ? ऊषा- रमेश की बात हो रही है। हँ? बाबा तो हद में भी बोलते हैं तो बेहद में भी बोलते हैं। हँ? बेहद में क्या? हँ? बेहद में ऊषा कहते हैं जब सूरज निकलता है तो पहले लाल-लाल लालिमा ऊषा निकलती है। फिर बताया रमेश साथ में। रमा का ईश। रमा माने? पार्वती। और उसका ईश माने स्वामी। कौन? शंकरजी। तो शंकर-पार्वती की बात बताय रहे हैं, नाम लिया रमेश ऊषा का। हँ? हाँ। कहां के हैं? हाँ, सभी समझेंगे हां बाम्बे के हैं। तो बेहद में भी तो हर-हर बम-बम लगा हुआ है ना? नहीं लगा है? लगा है।
तो ऐसे आलराउंड सर्विस वाले चाहिए। ऐसे बहुत भाषाएं सीखने वाले का मान देते हैं। ऐसे आलराउंड सर्विस करने के बाद जो काम आए। बाड़े का काम आए तो बाड़े का लगाय दिया। तो आलराउंड। इन बच्चों से पूछो कि आलराउंड मम्मा-बाबा भी काम करते थे ना? हँ? क्या? हां, ये लोग क्या करते थे? मम्मा-बाबा इस्त्री करते थे। हाँ, कपड़ों पे प्रेस की जाती है ना? हँ। पहले मम्मा-बाबा जाते थे। बर्तन भी मांजते थे। तो मम्मा-बाबा जाते थे। तो वो जाकरके करते थे। क्यों? क्यों करते थे ऐसे? कि जैसे हम कर्म करेंगे हमें देख और बच्चे भी फालो करेंगे। और भी करने लग पड़ेंगे। तो ये करना पड़े ना बच्चे। सिखलाना भी होता है। तो इनको भी देखो सिखलाते हैं ना? जैसा कर्म इनकी मां या इनको सिखलाएंगे। अभी कल इनको देंगे थाली। या आपे ही लेकरके, जाकरके सबको देंगे। और पीछे एक दफा नहीं तो दूसरी दफा ट्राइ करेंगे। पर देखने में ऐसे आते हैं क्योंकि बच्चे-बच्चे भी होते हैं ना? कोई तो फट से सीख जाते हैं। कोई को फिर लंबा टाइम लगता है। कोई तो सीखते ही नहीं। अच्छा, मीठे-मीठे, रूहानी, सीकिलधे बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का दिल व जान, सिक और प्रेम से यादप्यार, गुडमार्निंग। बच्चों प्रति रूहानी बाप की नमस्ते। ओमशान्ति। 27 तारीख हो गई? (समाप्त)
A morning classdated 1.12.1967 was being narrated. The topic being discussed in the third, fourth line of the ninth page on Friday was that when one develops devotion, then although you eat, hm, when you eat, you will eat in Baba’s remembrance. When you stand, when you sit, when you take a vow, then you will take such a strong vow. When you sit like this, then you will definitely get Baba’s help. Yes, all this is going to happen. In the end purusharth definitely takes place. And in the end there will be a lot of enjoyment also because just as there was enjoyment of visions (saakshaatkaar) in the beginning, similarly you will have in the end. The persons will be the same because there also we used to become hunters (malook) like this only. But did we used to care for anyone? Arey, there used to be mass bloodshed. What can we do? There was no topic of worry. In the end it will be like this only. You have understood, haven’t you? It is because you have seen once, haven’t you that when the partition of Hindustan-Pakistan took place, then what used to happen? So, you have seen this fight in the past also, haven’t you? How they kill each other, just don’t ask. You have understood, haven’t you? Those people don’t feel pity on anyone. Arey, just don’t ask. That is it; those mothers and those virgins and when they saw, they thought that our death has arrived. O God! That is it. And they cut the throat or cut the legs or cut some other organ. Look, very, very bad things happened.
So, that was not pralai (inundation of the world). And this destruction that is going to take place now, it was not this destruction, was it? You are made to have visions of how destruction takes place. You children know very nicely that this destruction is to take place. And in such situations also we have to become very brave (Mahaveer). You should not hesitate even a little anywhere. You have understood, haven’t you? You should not hesitate even after seeing all this. Otherwise, you children know if anyone just sees an operation (surgery) being conducted, he falls down due to heart failure. And this, this, this; who this? Yes, this one himself has also fallen. Baba narrates all these topics of experience. If anyone’s operation is taking place, then he used to fall just on watching. He used to be lifted and put on a cot. He was lying [unconscious] certainly for 15 minutes. So, it is right, isn’t it?
Here it is an unnecessary bloodshed. You should become so strong in this completely. Completely strong. Just like Mahavir. Arey, an example has also been given completely, hasn’t it been? And the drama is also this only. Of this Ravan and of this Ram. And, and the example is also given about them only. So, brother, howevermuch storm he faces, whatever thing happens, he will sit completely unshakeable. They will not shake. So, it is not as if someone will come and lift your leg. Hm? The topic of lifting the leg that someone will lift your leg and pull it away. No. This Father sits and explains that howevermuch storms, thoughts of Maya you may face, for example you say, don’t you that Baba, we get dreams, we face this, we face that. Numerous and immeasurable and day by day they will go on increasing. It is because you will go on becoming strong (pehelwaan), then Maya will also go on becoming strong. You understand that a wrestler (pehelwaan) will fight with a wrestler, second one with the second one, third one with the third one. So, you hear this, you hear from the newspapers also. And this is also like this only. Maya will also become as strong as you become. So, look at the end, will you not? An example of one [Angad, a character from the epic Ramayana] was given that brother he remained unshakeable, immovable. Is it not? And he was set on fire as well. You have understood, haven’t you?
So, look, such a nice instance has been made! But someone should understand, shouldn’t they? The Father sits and explains nicely as to what happens in the end. So, you too have to become such Mahavirs (bravest ones). And their memorial is standing here. This memorial is completely accurate. So, Mahavir’s picture has only been given, hasn’t it been? So, Mahavir himself is Brahma, isn’t he? Hm? It is no other thing. It is the same Aadi Dev (the first deity). Numerous names have been coined. For example, it has been written in the scriptures. Hm? What? Eko sadvipra bahudha vadanti. He is only one. So, he alone is Aadi Dev. Numerous names have been coined [for him]. Achcha, come daughter. That is why it is sung, isn’t it that He is the ocean of knowledge? You have been calling the ocean of knowledge birth by birth. One day that ocean of knowledge will definitely teach, will He not? He will teach so that the mooth closes. Hm? That of saying as well as praising. The one, the one in whom there are virtues. Even among you it looks nice. Those who sit and, and explain to someone. This is correct, isn’t it? It will appear very sweet. And Baba will also keep on seeing here as to who are these who go and narrate this, this to many. And they make them very nice ones and bring them. They bring them with themselves. So, the more they bring with themselves, Baba will say that she works hard. Baba does not say that the one who brings works hard nicely. They don’t do. No. Those whom she brings, they then become better than them [the teachers]. Yes. There are many, many such persons who learn. So, they become sharper [cleverer] than the teachers. It is said, isn’t it that the guru remained jaggery and the disciple became sugar.
So, you alone know these topics. Ramesh, Usha, arey, they have come just now. Hm? So, look, they go faster than so many people. They are called. Hm? Send them [to us for service]. Send them. It happens, doesn’t it daughter? New ones, there is Sudesh, there is such and such person. All these are new ones, aren’t they? Well, this one is also new. So many call this one. Even the male. Send such and such person. Why brother? She will come and do service. Hm. Both will together decorate. So, they will perform the task of decorating also. So, a person fit for all-round service is required. The topic of which two persons is being discussed? Hm? The topic of Usha and Ramesh is being discussed. Hm? Baba speaks in a limited sense as well as in an unlimited sense. Hm? What in an unlimited form? Hm? Usha in unlimited sense is said to be when the Sun rises then initially the red light called laalima emerges. Then it was told that Ramesh is with her. Rama’s Eesh (lord). What is meant by Rama? Parvati. And her Eesh, i.e. Lord (husband). Who? Shankarji. So, the topic of Shankar Parvati is being told that the name of Ramesh and Usha was mentioned. Hm? Yes. They belong to which place? Yes, everyone will understand that yes, they belong to Bombay. So, even in an unlimited sense, Har-Har, Bam-Bam is attached, isn’t it? Isn’t it attached? It is attached.
So, such persons who can do all-round service are required. People who learn many languages are given respect. After doing all-round service, whichever task arrives. If the task of cattle enclave is there then they are engaged in that task. So, all-round. Ask these children that Mama and Baba also used to do all-round work, didn’t they? Hm? What? Yes, what did these people used to do? Mama Baba used to iron (press) the clothes. Yes, clothes are pressed, aren’t they? Hm. Earlier Mama-Baba used to go. They even used to clean the utensils. So, Mama-Baba used to go. So, they used to go and do. Why? Why did they used to do like this? So that whatever kind of actions we perform, other children will also observe us and follow us. Others will also start doing. So, children, you will have to do this, will you not? You also have to teach. So, look at these, they are also taught, aren’t they? Whatever action her mother or she is taught. Well, tomorrow they will be given a plate. Or they will go and pick-up on their own and give to everyone. And later if not once, they will try another time. But it is observed like this because there are children, children also, aren’t they there? Some learn immediately. Some take a long time. Some don’t learn at all. Achcha, remembrance, love and good morning of the spiritual Father and Dada from their heart and life, love and affection to the sweet, sweet, spiritual, seekiladhey (children reunited with parents after a long gap) children. Spiritual Father’s namaste to the children. Om Shanti. Is it 27th? (End)
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2955, दिनांक 28.07.2019
VCD 2955, dated 28.07.2019
रात्रि क्लास 01.12.1967
Night Class dated 01.12.1967
VCD-2955-extracts-Bilingual
समय- 00.01-14.52
Time- 00.01-14.52
आज का रात्रि क्लास है - 1.12.1967. आते हैं ओपनिंग करने। कौन आते हैं? कौन आते हैं ओपनिंग करने? अरे? कोई आते हैं? कीड़े-मकोड़े, देव, दैत्य? (किसी ने कुछ कहा।) शिवबाबा ओपनिंग करने आते हैं? अच्छा? करवाते नहीं हैं? शिवबाबा कुछ करते हैं? करता है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) सदा? सदा कायम है? हम कर्ता की बात पूछ रहे हैं वो कायम की बात कर रहे। शिवबाबा कुछ करता है? (किसी ने कुछ कहा।) सदा कायम है। (बोलने वाले को कहाः) कहां बुद्धि रहती है? शिवबाबा कायम है। अरे, संगमयुग में, कम से कम पुरुषोत्तम संगमयुग में तो सुप्रीम सोल को याद करो। वो सदाकाल रहता है इस सृष्टि पर? रहता है? (किसी ने कुछ कहा।) फिर? सदा कायम? अरे, वो जब चला जाए तो आप समान जिसको बनाय देता है उसको कहेंगे सदा कायम। तो वो डुप्लिकेट चीज़ हुई या असली हुई? डुप्लिकेट हुई। तो कौन आते हैं ओपनिंग करने? नहीं पता। अरे, दुनिया के बड़े-बड़े आदमी आते हैं ओपनिंग करने। हद की प्रदर्शनी हो, हद का म्यूजियम हो, हद का सेंटर हो। बीके में आते थे ना? हाँ। एडवांस में तो दुनियादारी वालों को घास नहीं डालते। घास डालते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। बुलाते हैं? कि भई प्राइम मिनिस्टर आइयो, हँ, कॉन्फ्रेन्स की ओपनिंग कराइयो। बुलाते हैं? बिल्कुल नहीं बुलाते।
तो दुनिया के जो बड़े-बड़े आदमी हैं ब्रह्मा बाबा की दृष्टि में वो ओपनिंग करने आते हैं। और तुम्हारी दृष्टि में कौन ओपनिंग करने आएगा? हम तो बेहद के बच्चे हैं। बेहद का बाप है। तो ओपनिंग करने कौन आते हैं? फिर बताया – या ओपिनियन लिखने। ओपनिंग करने आते हैं या फिर उनसे लिखवाओ। हां। लिखने के लिए आते हैं। ओपिनियन लिखने। लिखो भई। लिखेंगे ये? ये लिखेंगे? (किसी ने कुछ कहा।) अरे, तो फिर काहे के लिए लिख दिया? दुनियावी लोग? बड़े-बड़े आदमियों की बात की। उसका सब नाम चाहिए। किसका? जो भी बड़ा आदमी ओपनिंग करने आए, ओपिनियन लिखने आए उसका सब नाम चाहिए। सब नाम माने? टाइटल नेम भी चाहिए। और जो असली नेम है वो भी चाहिए। और आईडी प्रूफ सारा चाहिए कि नहीं? हाँ। सब नाम चाहिए। उसके ऊपर। किसके ऊपर? अरे, ओपिनियन के ऊपर सब कुछ चाहिए उनका आईडी प्रूफ। और चित्र तो कल दे देना तुमको। हँ? हाँ। तो जो बाजे वाला है ना, हँ, अलबम। हां। तो बाजा भी सुनेंगे। अलबम भी देखेंगे। परन्तु जब लगा होवे तो देखेंगे। तब ये कौन खोलते हैं? जो भी खोलते हैं ओपनिंग करने वाले सब नाम उसके ऊपर चित्र के हरेक के नीचे लिखो, लिखवाओ। जैसे अखबार में डालते हैं ना? डालते हैं ना? हाँ। फ्रम लेफ्ट टू राइट। है ना? लेफ्ट टू राइट डालते हैं या फ्रम लेफ्ट टू राइट कौन-कौन हैं उसे डालते हैं। नंबरवार हैं ना? हँ।
तो म्यूजियम का किताब अगर छप जाए; बहुत दफा बाबा ने लिखा है। तो कहां भी जहां विरोधी बहुत हैं ना? हाँ। और विरोधी तो इस दुनिया में बाबा आते हैं, जो ज्ञान सुनाते हैं, नई बातें सुनाते हैं ना? तो विरोधी तो दुनिया में होते ही हैं कि नहीं? होते हैं। और एक-दो विरोधी नहीं होते हैं। क्या कहा? कितने होते हैं विरोधी? कुछ पता है? नहीं पता? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, सारी दुनिया विरोधी है। सारी दुनिया में कितने आ गए? (किसी ने कुछ कहा।) 750 लोग? (किसी ने कुछ कहा।) 7500? (किसी ने कुछ कहा।) 7500? अरे? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, 750 करोड़। माना 500-700 करोड़ जितने भी मनुष्य मात्र इस दुनिया में हैं सारी दुनिया विरोधी है। अरे, ये क्या कह दिया? सारी दुनिया में बीके, पीबीके नहीं हैं क्या? वो सब विरोधी हैं? (किसी ने कुछ कहा।) वो विरोधी नहीं? बाबा झूठ बोलता है। झूठ बोलता है क्या? (किसी ने कुछ कहा।) फिर? क्यों ऐसे कह दिया सब विरोधी हैं, सारी दुनिया विरोधी है?
और विरोधी, विरोध किसका? विरोधी है, विरोध करते हैं, तो किसका विरोध करते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जिसमें प्रवेश करते हैं उसका विरोध करते हैं। भई निराकार को तो सब मानते हैं। मानते कि नहीं? दूसरे धरम वाले भी निराकार और भारतवासी भी निराकार को मानते हैं कि नहीं? मानते हैं। बाकि विरोध किसका? सारी दुनिया विरोधी है। हाँ, समझ गए कि नहीं? किसका? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जो मुकर्रर रथधारी है उसका सारी दुनिया विरोधी बनती है। हाँ। बाप के साथ। कौनसे बाप के साथ? अरे, मुकर्रर रथ में कोई है कि नहीं और? कि मुकर्रर रथधारी आत्मा ही है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, शिव है ना सुप्रीम सोल? परमपिता है ना? उससे ऊँचा कोई पिता है? नहीं। तो वो परमपिता के साथ, उस मुकर्रर रथधारी का सारी दुनिया विरोधी बनती है। आगे या पीछे। माया किसी को छोड़ती है? माया किसी को छोड़ती नहीं है।
हाँ, ये कहेंगे कि ब्राह्मणों के बिगर सारी दुनिया विरोधी है। फिर कौन हुए ब्राह्मण? और ब्राह्मणों में भी दो तरह के बता दिये। कौन-कौन? मुख वंशावली और कुख वंशावली। तो जो कोख की याद छोड़ते नहीं हैं, गोद में बैठने का उनका बड़ा नशा है। अरे, हमने बाबा की गोद ली है। तुम आए कल के छोकरे। तुम क्या जानो क्या होता है? ऐसे नशे से कहते हैं ना? तो वो तो अपन को ऊँच समझते हैं। कौन? कुख वंशावली या मुख वंशावली? कुख वंशावली। तो उनकी बात नहीं। अच्छा, मुख वंशावली की बात है? तो मुख वंशावली में जितने भी हैं मुख वंशावली, मुख से सामने बैठकरके सुनते हैं वो विरोधी नहीं बनते? अरे, बनते हैं कि नहीं? हाँ, वो भी विरोधी बनते हैं। तो फिर ‘ब्राह्मणों बिगर’ क्यों कह दिया? ब्राह्मणों बिगर। वो कौन ब्राह्मण?
(किसी ने कुछ कहा।) सच्चे ब्राह्मण? उनकी कोई संख्या-वंख्या है? (किसी ने कुछ कहा।) एक ही सच्चा ब्राह्मण है? अच्छा? और उसकी ब्राह्मणी सच्ची नहीं है? वो झूठी है? वाह भैया। आज तो ये क्या लिख दिया इसने? वो झूठी है? तो वो विरोधी बनेगी? ब्राह्मण नहीं है? ब्राह्मण है। तो उसको बाबा ने ब्राह्मणों की लिस्ट में लिया कि नहीं लिया? (किसी ने कुछ कहा।) साढ़े चार लाख; क्या? विरोधी? (किसी ने कुछ कहा।) साढ़े चार लाख ब्रह्माकुमार, ब्राह्मण? साढ़े चार लाख ब्राह्मण हैं, वो विरोधी नहीं बनते? अच्छा, ये छोड़-छोड़के जा रहे हैं वो? वो उसमें नहीं है साढ़े चार लाख की लिस्ट में? (किसी ने कुछ कहा।) अरे, वो भी हैं? तो फिर साढ़े चार लाख में से घटाओ फिर? साढ़े चार लाख क्यों लिख दिया? झूठी बात तो नहीं लिखना चाहिए। हाँ। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, सत्य नारायण गाया हुआ है। ब्राह्मण। लेकिन बाबा ने तो बोला ब्राह्मणों बिगर। एक ब्राह्मण बोला या ज्यादा बोले? कम से कम दो तो होना चाहिए ना? हाँ। ये तो बिल्कुल ही भूल गया अम्मा को। अरे, कौनसे ब्राह्मण? कोई गिनती में आएंगे कि नहीं? कि एक ही आएगा? तो एक ही लिखा तुमने। ब्राह्मणों बिगर सारी दुनिया विरोधी। यानि विपरीत बुद्धि। बुद्धि से प्रीति बुद्धि नहीं। क्या? सारी दुनिया में आज नहीं तो कल। कोई लंबे समय तक अपने को संभाल के रखते और कोई फिर माया के चंबे में आखरीन आ ही जाते। आ जाते तो विरोध करेंगे कि नहीं? जो दुनिया के लोग हैं उनके साथी बन जाएंगे कि नहीं? हाँ।
तो विरोधी माना विपरीत बुद्धि। तो विपरीत बुद्धि के लिए क्या बोला स्लोगन? क्या बोला? कुछ बोला कि नहीं बोला? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, विपरीत बुद्धि विनश्यते। हाँ। बाबा के शब्दों में विनश्यंती। हाँ। जो विपरीत बुद्धि होते हैं उनका विनाश हो जाता है। तो जो प्रीत बुद्धि हैं ब्राह्मणों की जिनकी बात बताई ‘ब्राह्मणों बिगर’ वो कौनसे ब्राह्मण हुए? अरे, उनकी कोई संख्या-वंख्या है कि नहीं? (किसी नो कुछ कहा।) आठ है? वो उनको माया नहीं खाएगी? तो उनके नंबर कैसे बनेंगे? अगर उनको माया नहीं खाएगी तो उनके नंबर बनेंगे? बनेंगे? नंबर तो नहीं बनेंगे। नंबर तो बनने हैं। (किसी नेकुछ कहा।) हाँ। तो फिर? ब्राह्मणों बिगर बोला वो कौन-कौनसे ब्राह्मण? (किसी नो कुछ कहा।) लक्ष्मी और नारायण। वो तो बहुत होते हैं लक्ष्मी-नारायण। बाबा ने तो हमें बताय दिया सतयुग में कोई एक लक्ष्मी-नारायण होता है क्या? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, संगमयुगी लक्ष्मी-नारायण। हाँ। या तो लिखो आदि लक्ष्मी और आदि नारायण जिनसे ज्यादा पहले कोई बनते ही नहीं। हाँ। तो वो ब्राह्मण हैं। उन ब्राह्मणों के बिगर सारी दुनिया विरोधी कही जाती है।
Today’s night class is of the 01.12.1967. They come to do an opening (inauguration). Who comes? Who comes for the opening? Arey? Does anyone come? Insect, spider, deity or demon? (Someone said something.) ShivBaba comes to do the opening? Achcha? Doesn’t He have it done? Does ShivBaba do anything? Does He? (Someone said something.) Forever? Is He present forever? I am asking about the doer, [and] you are speaking about His presence. Does ShivBaba do anything? (Someone said something.) He is present forever. (To the student:) Where does [your] intellect remain? ShivBaba is present [forever]. Arey, remember the Supreme Soul at least in the Confluence Age, in the Elevated Confluence Age! Does He stay in this world forever? Does He? (Someone said something.) Then? He is present forever! Arey, when He goes away, the one whom He makes equal to Himself will be said to be present forever. So, is he duplicate or the real one? He is duplicate. So, who comes to do the opening? You don’t know. Arey! Prominent people of the world come to do the opening. Be it the limited exhibition, the limited museum or the limited centre. They used to come [for it] in the BK, didn’t they? Yes. In the Advance [party], they don’t give importance to the people of the world. Do they give them any importance? (Someone said something.) Yes. Do they invite [them saying:] Prime minister, do come [and] perform the opening the conference‟? Do they invite him? They certainly don’t invite him.
So, prominent people of the world, from Brahma Baba’s point of view, come to do the opening (inauguration). And from your point of view, who will come to do the opening? We are the unlimited children [and He] is the Unlimited Father, so, who comes to do the opening? Then it was said: “Or to write their opinion.” They come to do the opening or make them write (their opinion). Yes. They come to write [it], to write their opinion. Write brother. Will they write it? Will they write it? (Someone said something.) Arey! Then why did you write it? The worldly people? He spoke about the prominent people. His full name is required. Whose? Whichever prominent person comes to do the opening [or] to write his opinion, his full name is required. What does full name mean? [His] title name (surname) is required as well as his true name is required. And are all the ID proofs [details] required or not? Yes, the full name is required on it. On what? Arey! All the ID proof [details] are required on his opinion. And you should give him the picture tomorrow. So, there is a musical album, isn’t there? Yes. So they will listen to the music also and see the album too. But they will see it only when it is put on display. Then, who does this inauguration? Whoever does the opening, mention his full name on it, under each of the picture. Have it written. Just like, they put it in the newspapers, don’t they? They do, don’t they? Yes. [They write:] ‘From left to right’. They do, don’t they? They write: From left to right or mention who [the people] from left to right are. They are number wise (one after the other), aren’t they? Hm.
So, if the book of the museum is published; Baba has written about it many times. So, wherever there are a lot of opponents; Yes. And speaking of opponents, when Baba comes to this world and narrates the knowledge, He narrates new points, doesn’t He? So, certainly there are opponents in the world, aren't they there? They’re there. And there aren’t just one or two opponents. What was said? How many opponents are there? Do you have any idea? Don’t you? (Someone said something.) Yes, the entire world are opponents! How many are included in the whole world? (Someone said something.) 750 people? (Someone said something.) 7,500? (Someone said something) 7500? Arey? (Someone said something.) Yes, 7.5 billion. It means all the five to seven billion human beings in the world, [the people of] the entire world are opponents. Arey! What did He say? Aren’t BKs and PBKs included in the whole world? Are they all opponents? (Someone said something.) They aren’t opponents? Baba lies. Does He lie? (Someone said something.) Then? Why was it said that all, [the people of] the whole world are opponents?
And who do the opponents oppose? If there are opponents, if they oppose, who do they oppose? (Someone said something.) Yes, they oppose the one in whom He enters. Brother, everyone does believe in the Incorporeal One. Do they or don’t they? The people of the other religions as well as the Bharatvaasis believe in the Incorporeal One or not? They do. Well then, who do they oppose? The entire world is an opponent. Yes, did you understand or not? Whose? (Someone said something.) Yes, [people of] the entire world become the opponents of the permanent Chariot-holder; Yes, [they become opponents] of the Father. Of which Father? Arey, is there someone else in the permanent Chariot or not? Or is there just the soul of the permanent Chariot? (Someone said something.) Yes, there is Shiva, the Supreme Soul, isn’t He there? He is the Supreme Father, isn’t He? Is there any Father higher than Him? No. So, the entire world becomes the opponent of that permanent Chariot along with the Supreme Father. Sooner or later. Does Maya spare anyone? Maya doesn’t spare anyone.
Yes, it will be said: Except the Brahmins, the entire world is an opponent. Then, who are Brahmins? And even among the Brahmins, two kinds [of Brahmins] were mentioned. Which ones? The mukhvanshavali (mouth born progeny) and the kukhvanshavali (womb-born progeny). So, those who don’t leave the remembrance of the lap, they have great intoxication of sitting on the lap. [They think:] “Arey! We have experienced the lap of Baba. You are a child who came yesterday, how would you know what it is like?” They say this with intoxication, don’t they? So, they consider themselves to be great. Who? The kukhvanshavali or the mukhvanshavali? The kukhvanshavali. So, it is not about them. Achcha, is it about the mukhvanshavali? So, among the mukhvanshavali, all the mukhvanshavali who sit in front and listen [to the knowledge] from the mouth, don’t they become opponents? Arey, do they become [opponents] or not? Yes, they too become opponents. Then why was it said, ‘except the Brahmins’? Except the Brahmins. Who are those Brahmins?
(Someone said something.) True Brahmins? What is their population? (Someone said something.) Is there just one true Brahmin? Achcha? And isn’t his Brahmini true? She is a liar? (To the student:) Wow brother! What did he write today? Is she a liar? Then, will she become an opponent? She a Brahmin. Did Baba include her in the list of Brahmins or not? (Someone said something.) 450,000; what? Opponents? (Someone said something.) 450,000 Brahmakumar… Brahmins? The 450,000 [souls] are Brahmins? Don’t they become opponents? Achcha, those who are going away leaving [the Yagya], what about them? Aren’t they in the list of the 450,000 [souls]? (Someone said something.) Arey, are they too included in it? Then subtract them from the 450,000 [souls]. Why did you write 450,000? You shouldn’t write something false. Yes. (Someone said something.) Yes, Satyanarayan has been praised. Brahmin. But Baba has said: Except the Brahmins. Did He say one Brahmin or did He mention many? There should at least be two, shouldn’t they be there? Yes. (To the student:) This one completely forgot amma (mother). Arey, which Brahmins? Will some [souls] be counted or not? Or will just the one be counted? You wrote just one. Except the Brahmins [the people of] the entire world are opponents, it means they have an opposite intellect. They don’t have a loving intellect. What? If not today, tomorrow, [everyone] in the entire world; Some keep themselves safe for a long time and some come in the clutches of Maya ultimately. When they come in [Maya’s clutches], will they oppose [Him] or not? Will they become a companion of the people of the world or not? Yes.
So, virodhi (opponent) means vipriit buddhi (someone with an intellect turned away from God). So, which slogan was mentioned for those who have an opposite intellect? What was said? Was anything said or not? (Someone said something.) Yes, ’Vipriit buddhi vinashyate’ (The one whose intellect remains opposite to God is destroyed). Yes, in Baba‟s words, it is: vinashyanti. Those who have an opposing intellect are destroyed. So, those who have a loving intellect, the Brahmins for whom it was said ‘except the Brahmins’, who are those Brahmins? Arey, do they have any numbers or not? (Someone said something.) Is it the eight [deities]? Won’t Maya devour them? Then how will their numbers (ranks) be determined? If Maya doesn’t devour them, will their numbers (ranks) be determined? Will they? Their numbers (ranks) certainly won’t be determined. Their number (rank) has to be determined. (Someone said something.) Yes. So then? It was said ‘except the Brahmins’; who are those Brahmins? (Someone said something.) Lakshmi and Narayan. There are in fact many Lakshmi-Narayans. Baba has already told us: Is there only one Lakshmi-Narayan in the Golden Age? (Someone said something.) Yes. The Confluence Age Lakshmi–Narayan. Yes. Or you should write Adilakshmi (first Lakshmi) Adinarayan (first Narayan), no one else become [Lakshmi-Narayan] before them at all. Yes. So, they are the Brahmins. Except those Brahmins, [the people of] the entire world is said to be an opponent.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2955, दिनांक 28.07.2019
VCD 2955, dated 28.07.2019
रात्रि क्लास 01.12.1967
Night Class dated 01.12.1967
VCD-2955-extracts-Bilingual
समय- 00.01-14.52
Time- 00.01-14.52
आज का रात्रि क्लास है - 1.12.1967. आते हैं ओपनिंग करने। कौन आते हैं? कौन आते हैं ओपनिंग करने? अरे? कोई आते हैं? कीड़े-मकोड़े, देव, दैत्य? (किसी ने कुछ कहा।) शिवबाबा ओपनिंग करने आते हैं? अच्छा? करवाते नहीं हैं? शिवबाबा कुछ करते हैं? करता है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) सदा? सदा कायम है? हम कर्ता की बात पूछ रहे हैं वो कायम की बात कर रहे। शिवबाबा कुछ करता है? (किसी ने कुछ कहा।) सदा कायम है। (बोलने वाले को कहाः) कहां बुद्धि रहती है? शिवबाबा कायम है। अरे, संगमयुग में, कम से कम पुरुषोत्तम संगमयुग में तो सुप्रीम सोल को याद करो। वो सदाकाल रहता है इस सृष्टि पर? रहता है? (किसी ने कुछ कहा।) फिर? सदा कायम? अरे, वो जब चला जाए तो आप समान जिसको बनाय देता है उसको कहेंगे सदा कायम। तो वो डुप्लिकेट चीज़ हुई या असली हुई? डुप्लिकेट हुई। तो कौन आते हैं ओपनिंग करने? नहीं पता। अरे, दुनिया के बड़े-बड़े आदमी आते हैं ओपनिंग करने। हद की प्रदर्शनी हो, हद का म्यूजियम हो, हद का सेंटर हो। बीके में आते थे ना? हाँ। एडवांस में तो दुनियादारी वालों को घास नहीं डालते। घास डालते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। बुलाते हैं? कि भई प्राइम मिनिस्टर आइयो, हँ, कॉन्फ्रेन्स की ओपनिंग कराइयो। बुलाते हैं? बिल्कुल नहीं बुलाते।
तो दुनिया के जो बड़े-बड़े आदमी हैं ब्रह्मा बाबा की दृष्टि में वो ओपनिंग करने आते हैं। और तुम्हारी दृष्टि में कौन ओपनिंग करने आएगा? हम तो बेहद के बच्चे हैं। बेहद का बाप है। तो ओपनिंग करने कौन आते हैं? फिर बताया – या ओपिनियन लिखने। ओपनिंग करने आते हैं या फिर उनसे लिखवाओ। हां। लिखने के लिए आते हैं। ओपिनियन लिखने। लिखो भई। लिखेंगे ये? ये लिखेंगे? (किसी ने कुछ कहा।) अरे, तो फिर काहे के लिए लिख दिया? दुनियावी लोग? बड़े-बड़े आदमियों की बात की। उसका सब नाम चाहिए। किसका? जो भी बड़ा आदमी ओपनिंग करने आए, ओपिनियन लिखने आए उसका सब नाम चाहिए। सब नाम माने? टाइटल नेम भी चाहिए। और जो असली नेम है वो भी चाहिए। और आईडी प्रूफ सारा चाहिए कि नहीं? हाँ। सब नाम चाहिए। उसके ऊपर। किसके ऊपर? अरे, ओपिनियन के ऊपर सब कुछ चाहिए उनका आईडी प्रूफ। और चित्र तो कल दे देना तुमको। हँ? हाँ। तो जो बाजे वाला है ना, हँ, अलबम। हां। तो बाजा भी सुनेंगे। अलबम भी देखेंगे। परन्तु जब लगा होवे तो देखेंगे। तब ये कौन खोलते हैं? जो भी खोलते हैं ओपनिंग करने वाले सब नाम उसके ऊपर चित्र के हरेक के नीचे लिखो, लिखवाओ। जैसे अखबार में डालते हैं ना? डालते हैं ना? हाँ। फ्रम लेफ्ट टू राइट। है ना? लेफ्ट टू राइट डालते हैं या फ्रम लेफ्ट टू राइट कौन-कौन हैं उसे डालते हैं। नंबरवार हैं ना? हँ।
तो म्यूजियम का किताब अगर छप जाए; बहुत दफा बाबा ने लिखा है। तो कहां भी जहां विरोधी बहुत हैं ना? हाँ। और विरोधी तो इस दुनिया में बाबा आते हैं, जो ज्ञान सुनाते हैं, नई बातें सुनाते हैं ना? तो विरोधी तो दुनिया में होते ही हैं कि नहीं? होते हैं। और एक-दो विरोधी नहीं होते हैं। क्या कहा? कितने होते हैं विरोधी? कुछ पता है? नहीं पता? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, सारी दुनिया विरोधी है। सारी दुनिया में कितने आ गए? (किसी ने कुछ कहा।) 750 लोग? (किसी ने कुछ कहा।) 7500? (किसी ने कुछ कहा।) 7500? अरे? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, 750 करोड़। माना 500-700 करोड़ जितने भी मनुष्य मात्र इस दुनिया में हैं सारी दुनिया विरोधी है। अरे, ये क्या कह दिया? सारी दुनिया में बीके, पीबीके नहीं हैं क्या? वो सब विरोधी हैं? (किसी ने कुछ कहा।) वो विरोधी नहीं? बाबा झूठ बोलता है। झूठ बोलता है क्या? (किसी ने कुछ कहा।) फिर? क्यों ऐसे कह दिया सब विरोधी हैं, सारी दुनिया विरोधी है?
और विरोधी, विरोध किसका? विरोधी है, विरोध करते हैं, तो किसका विरोध करते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जिसमें प्रवेश करते हैं उसका विरोध करते हैं। भई निराकार को तो सब मानते हैं। मानते कि नहीं? दूसरे धरम वाले भी निराकार और भारतवासी भी निराकार को मानते हैं कि नहीं? मानते हैं। बाकि विरोध किसका? सारी दुनिया विरोधी है। हाँ, समझ गए कि नहीं? किसका? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जो मुकर्रर रथधारी है उसका सारी दुनिया विरोधी बनती है। हाँ। बाप के साथ। कौनसे बाप के साथ? अरे, मुकर्रर रथ में कोई है कि नहीं और? कि मुकर्रर रथधारी आत्मा ही है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, शिव है ना सुप्रीम सोल? परमपिता है ना? उससे ऊँचा कोई पिता है? नहीं। तो वो परमपिता के साथ, उस मुकर्रर रथधारी का सारी दुनिया विरोधी बनती है। आगे या पीछे। माया किसी को छोड़ती है? माया किसी को छोड़ती नहीं है।
हाँ, ये कहेंगे कि ब्राह्मणों के बिगर सारी दुनिया विरोधी है। फिर कौन हुए ब्राह्मण? और ब्राह्मणों में भी दो तरह के बता दिये। कौन-कौन? मुख वंशावली और कुख वंशावली। तो जो कोख की याद छोड़ते नहीं हैं, गोद में बैठने का उनका बड़ा नशा है। अरे, हमने बाबा की गोद ली है। तुम आए कल के छोकरे। तुम क्या जानो क्या होता है? ऐसे नशे से कहते हैं ना? तो वो तो अपन को ऊँच समझते हैं। कौन? कुख वंशावली या मुख वंशावली? कुख वंशावली। तो उनकी बात नहीं। अच्छा, मुख वंशावली की बात है? तो मुख वंशावली में जितने भी हैं मुख वंशावली, मुख से सामने बैठकरके सुनते हैं वो विरोधी नहीं बनते? अरे, बनते हैं कि नहीं? हाँ, वो भी विरोधी बनते हैं। तो फिर ‘ब्राह्मणों बिगर’ क्यों कह दिया? ब्राह्मणों बिगर। वो कौन ब्राह्मण?
(किसी ने कुछ कहा।) सच्चे ब्राह्मण? उनकी कोई संख्या-वंख्या है? (किसी ने कुछ कहा।) एक ही सच्चा ब्राह्मण है? अच्छा? और उसकी ब्राह्मणी सच्ची नहीं है? वो झूठी है? वाह भैया। आज तो ये क्या लिख दिया इसने? वो झूठी है? तो वो विरोधी बनेगी? ब्राह्मण नहीं है? ब्राह्मण है। तो उसको बाबा ने ब्राह्मणों की लिस्ट में लिया कि नहीं लिया? (किसी ने कुछ कहा।) साढ़े चार लाख; क्या? विरोधी? (किसी ने कुछ कहा।) साढ़े चार लाख ब्रह्माकुमार, ब्राह्मण? साढ़े चार लाख ब्राह्मण हैं, वो विरोधी नहीं बनते? अच्छा, ये छोड़-छोड़के जा रहे हैं वो? वो उसमें नहीं है साढ़े चार लाख की लिस्ट में? (किसी ने कुछ कहा।) अरे, वो भी हैं? तो फिर साढ़े चार लाख में से घटाओ फिर? साढ़े चार लाख क्यों लिख दिया? झूठी बात तो नहीं लिखना चाहिए। हाँ। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, सत्य नारायण गाया हुआ है। ब्राह्मण। लेकिन बाबा ने तो बोला ब्राह्मणों बिगर। एक ब्राह्मण बोला या ज्यादा बोले? कम से कम दो तो होना चाहिए ना? हाँ। ये तो बिल्कुल ही भूल गया अम्मा को। अरे, कौनसे ब्राह्मण? कोई गिनती में आएंगे कि नहीं? कि एक ही आएगा? तो एक ही लिखा तुमने। ब्राह्मणों बिगर सारी दुनिया विरोधी। यानि विपरीत बुद्धि। बुद्धि से प्रीति बुद्धि नहीं। क्या? सारी दुनिया में आज नहीं तो कल। कोई लंबे समय तक अपने को संभाल के रखते और कोई फिर माया के चंबे में आखरीन आ ही जाते। आ जाते तो विरोध करेंगे कि नहीं? जो दुनिया के लोग हैं उनके साथी बन जाएंगे कि नहीं? हाँ।
तो विरोधी माना विपरीत बुद्धि। तो विपरीत बुद्धि के लिए क्या बोला स्लोगन? क्या बोला? कुछ बोला कि नहीं बोला? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, विपरीत बुद्धि विनश्यते। हाँ। बाबा के शब्दों में विनश्यंती। हाँ। जो विपरीत बुद्धि होते हैं उनका विनाश हो जाता है। तो जो प्रीत बुद्धि हैं ब्राह्मणों की जिनकी बात बताई ‘ब्राह्मणों बिगर’ वो कौनसे ब्राह्मण हुए? अरे, उनकी कोई संख्या-वंख्या है कि नहीं? (किसी नो कुछ कहा।) आठ है? वो उनको माया नहीं खाएगी? तो उनके नंबर कैसे बनेंगे? अगर उनको माया नहीं खाएगी तो उनके नंबर बनेंगे? बनेंगे? नंबर तो नहीं बनेंगे। नंबर तो बनने हैं। (किसी नेकुछ कहा।) हाँ। तो फिर? ब्राह्मणों बिगर बोला वो कौन-कौनसे ब्राह्मण? (किसी नो कुछ कहा।) लक्ष्मी और नारायण। वो तो बहुत होते हैं लक्ष्मी-नारायण। बाबा ने तो हमें बताय दिया सतयुग में कोई एक लक्ष्मी-नारायण होता है क्या? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, संगमयुगी लक्ष्मी-नारायण। हाँ। या तो लिखो आदि लक्ष्मी और आदि नारायण जिनसे ज्यादा पहले कोई बनते ही नहीं। हाँ। तो वो ब्राह्मण हैं। उन ब्राह्मणों के बिगर सारी दुनिया विरोधी कही जाती है।
Today’s night class is of the 01.12.1967. They come to do an opening (inauguration). Who comes? Who comes for the opening? Arey? Does anyone come? Insect, spider, deity or demon? (Someone said something.) ShivBaba comes to do the opening? Achcha? Doesn’t He have it done? Does ShivBaba do anything? Does He? (Someone said something.) Forever? Is He present forever? I am asking about the doer, [and] you are speaking about His presence. Does ShivBaba do anything? (Someone said something.) He is present forever. (To the student:) Where does [your] intellect remain? ShivBaba is present [forever]. Arey, remember the Supreme Soul at least in the Confluence Age, in the Elevated Confluence Age! Does He stay in this world forever? Does He? (Someone said something.) Then? He is present forever! Arey, when He goes away, the one whom He makes equal to Himself will be said to be present forever. So, is he duplicate or the real one? He is duplicate. So, who comes to do the opening? You don’t know. Arey! Prominent people of the world come to do the opening. Be it the limited exhibition, the limited museum or the limited centre. They used to come [for it] in the BK, didn’t they? Yes. In the Advance [party], they don’t give importance to the people of the world. Do they give them any importance? (Someone said something.) Yes. Do they invite [them saying:] Prime minister, do come [and] perform the opening the conference‟? Do they invite him? They certainly don’t invite him.
So, prominent people of the world, from Brahma Baba’s point of view, come to do the opening (inauguration). And from your point of view, who will come to do the opening? We are the unlimited children [and He] is the Unlimited Father, so, who comes to do the opening? Then it was said: “Or to write their opinion.” They come to do the opening or make them write (their opinion). Yes. They come to write [it], to write their opinion. Write brother. Will they write it? Will they write it? (Someone said something.) Arey! Then why did you write it? The worldly people? He spoke about the prominent people. His full name is required. Whose? Whichever prominent person comes to do the opening [or] to write his opinion, his full name is required. What does full name mean? [His] title name (surname) is required as well as his true name is required. And are all the ID proofs [details] required or not? Yes, the full name is required on it. On what? Arey! All the ID proof [details] are required on his opinion. And you should give him the picture tomorrow. So, there is a musical album, isn’t there? Yes. So they will listen to the music also and see the album too. But they will see it only when it is put on display. Then, who does this inauguration? Whoever does the opening, mention his full name on it, under each of the picture. Have it written. Just like, they put it in the newspapers, don’t they? They do, don’t they? Yes. [They write:] ‘From left to right’. They do, don’t they? They write: From left to right or mention who [the people] from left to right are. They are number wise (one after the other), aren’t they? Hm.
So, if the book of the museum is published; Baba has written about it many times. So, wherever there are a lot of opponents; Yes. And speaking of opponents, when Baba comes to this world and narrates the knowledge, He narrates new points, doesn’t He? So, certainly there are opponents in the world, aren't they there? They’re there. And there aren’t just one or two opponents. What was said? How many opponents are there? Do you have any idea? Don’t you? (Someone said something.) Yes, the entire world are opponents! How many are included in the whole world? (Someone said something.) 750 people? (Someone said something.) 7,500? (Someone said something) 7500? Arey? (Someone said something.) Yes, 7.5 billion. It means all the five to seven billion human beings in the world, [the people of] the entire world are opponents. Arey! What did He say? Aren’t BKs and PBKs included in the whole world? Are they all opponents? (Someone said something.) They aren’t opponents? Baba lies. Does He lie? (Someone said something.) Then? Why was it said that all, [the people of] the whole world are opponents?
And who do the opponents oppose? If there are opponents, if they oppose, who do they oppose? (Someone said something.) Yes, they oppose the one in whom He enters. Brother, everyone does believe in the Incorporeal One. Do they or don’t they? The people of the other religions as well as the Bharatvaasis believe in the Incorporeal One or not? They do. Well then, who do they oppose? The entire world is an opponent. Yes, did you understand or not? Whose? (Someone said something.) Yes, [people of] the entire world become the opponents of the permanent Chariot-holder; Yes, [they become opponents] of the Father. Of which Father? Arey, is there someone else in the permanent Chariot or not? Or is there just the soul of the permanent Chariot? (Someone said something.) Yes, there is Shiva, the Supreme Soul, isn’t He there? He is the Supreme Father, isn’t He? Is there any Father higher than Him? No. So, the entire world becomes the opponent of that permanent Chariot along with the Supreme Father. Sooner or later. Does Maya spare anyone? Maya doesn’t spare anyone.
Yes, it will be said: Except the Brahmins, the entire world is an opponent. Then, who are Brahmins? And even among the Brahmins, two kinds [of Brahmins] were mentioned. Which ones? The mukhvanshavali (mouth born progeny) and the kukhvanshavali (womb-born progeny). So, those who don’t leave the remembrance of the lap, they have great intoxication of sitting on the lap. [They think:] “Arey! We have experienced the lap of Baba. You are a child who came yesterday, how would you know what it is like?” They say this with intoxication, don’t they? So, they consider themselves to be great. Who? The kukhvanshavali or the mukhvanshavali? The kukhvanshavali. So, it is not about them. Achcha, is it about the mukhvanshavali? So, among the mukhvanshavali, all the mukhvanshavali who sit in front and listen [to the knowledge] from the mouth, don’t they become opponents? Arey, do they become [opponents] or not? Yes, they too become opponents. Then why was it said, ‘except the Brahmins’? Except the Brahmins. Who are those Brahmins?
(Someone said something.) True Brahmins? What is their population? (Someone said something.) Is there just one true Brahmin? Achcha? And isn’t his Brahmini true? She is a liar? (To the student:) Wow brother! What did he write today? Is she a liar? Then, will she become an opponent? She a Brahmin. Did Baba include her in the list of Brahmins or not? (Someone said something.) 450,000; what? Opponents? (Someone said something.) 450,000 Brahmakumar… Brahmins? The 450,000 [souls] are Brahmins? Don’t they become opponents? Achcha, those who are going away leaving [the Yagya], what about them? Aren’t they in the list of the 450,000 [souls]? (Someone said something.) Arey, are they too included in it? Then subtract them from the 450,000 [souls]. Why did you write 450,000? You shouldn’t write something false. Yes. (Someone said something.) Yes, Satyanarayan has been praised. Brahmin. But Baba has said: Except the Brahmins. Did He say one Brahmin or did He mention many? There should at least be two, shouldn’t they be there? Yes. (To the student:) This one completely forgot amma (mother). Arey, which Brahmins? Will some [souls] be counted or not? Or will just the one be counted? You wrote just one. Except the Brahmins [the people of] the entire world are opponents, it means they have an opposite intellect. They don’t have a loving intellect. What? If not today, tomorrow, [everyone] in the entire world; Some keep themselves safe for a long time and some come in the clutches of Maya ultimately. When they come in [Maya’s clutches], will they oppose [Him] or not? Will they become a companion of the people of the world or not? Yes.
So, virodhi (opponent) means vipriit buddhi (someone with an intellect turned away from God). So, which slogan was mentioned for those who have an opposite intellect? What was said? Was anything said or not? (Someone said something.) Yes, ’Vipriit buddhi vinashyate’ (The one whose intellect remains opposite to God is destroyed). Yes, in Baba‟s words, it is: vinashyanti. Those who have an opposing intellect are destroyed. So, those who have a loving intellect, the Brahmins for whom it was said ‘except the Brahmins’, who are those Brahmins? Arey, do they have any numbers or not? (Someone said something.) Is it the eight [deities]? Won’t Maya devour them? Then how will their numbers (ranks) be determined? If Maya doesn’t devour them, will their numbers (ranks) be determined? Will they? Their numbers (ranks) certainly won’t be determined. Their number (rank) has to be determined. (Someone said something.) Yes. So then? It was said ‘except the Brahmins’; who are those Brahmins? (Someone said something.) Lakshmi and Narayan. There are in fact many Lakshmi-Narayans. Baba has already told us: Is there only one Lakshmi-Narayan in the Golden Age? (Someone said something.) Yes. The Confluence Age Lakshmi–Narayan. Yes. Or you should write Adilakshmi (first Lakshmi) Adinarayan (first Narayan), no one else become [Lakshmi-Narayan] before them at all. Yes. So, they are the Brahmins. Except those Brahmins, [the people of] the entire world is said to be an opponent.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2956, दिनांक 29.07.2019
VCD 2956, dated 29.07.2019
रात्रि क्लास 01.12.1967
Night Class dated 01.12.1967
VCD-2956-extracts-Bilingual
समय- 00.01-22.28
Time- 00.01-22.28
रात्रि क्लास चल रहा था - 1.12.1967. पहले पेज के मध्यादि में बात चल रही थी कि अपन को आत्मा समझ बाप को; अब बताया कि बाप तो दो हैं बेहद के। मनुष्य सृष्टि का बाप और आत्माओं का बाप। तो बाप तो, आत्माओं का बाप भी तो प्रवृत्तिमार्ग स्थापन करने के लिए आते हैं ना? तो ऐसे कैसे कि एक को याद करो? किसको याद करो? कहते हैं टू इन वन। किसको याद करो? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। एक ही व्यक्तित्व में दो हैं। तो उनको कहा जाता है प्रवृत्तिमार्ग। शिवबाबा को याद करो। इसलिए बताया। हाँ। जिसके द्वारा विकर्म विनाश हो जाते हैं। द्वारा है माने मीडिया क्या हुआ? आत्माएं मीडिया हुईं या शरीर मीडिया हुआ? शरीर की इन्द्रियां मीडिया हुईं। शरीर के जो तत्व हैं ज्ञानेन्द्रियां, कर्मेन्द्रियां, मन, बुद्धि, अहंकार, ये सबका जो समुच्चय है उसके द्वारा विकर्म विनाश हो जाते हैं। उसको कहा जाता है प्रीतिबुद्धि। किसको? जिसके द्वारा विकर्म विनाश हो जाते हैं, उसको कहा जाता है प्रीतिबुद्धि। क्योंकि समझानी देने बिगर तो ये पत्थरबुद्धि मनुष्य नहीं समझेंगे।
इन पत्थरबुद्धियों को पारसबुद्धि में ले आने के लिए मेहनत चाहिए बहुत। क्यों पत्थरबुद्धि बने? जो द्वैतवादी दुनिया द्वापरयुग से शुरू हुई तो दूसरे-दूसरे धर्म और दूसरी-दूसरी भाषाएं, दूसरे-दूसरे मत, इनके संग के रंग में आकरके देवात्माएं भी पत्थरबुद्धि बनीं। किस बात में? वो द्वैतवादी आत्माएं जो भी आती हैं द्वापर से वो निराकार को सिर्फ मानती हैं कि साकार को भी मानती हैं? सिर्फ निराकार को मानती हैं। और फिर बोलते हैं अल्ला मियां ने जमीन बनाई, अल्ला मियां ने आफताब बनाया माना सूरज बनाया। अल्ला मियां ने समुंदर बनाया। अरे, कैसे बनाया? वो तो बुद्धि से समझना चाहिए ना? तो वो नहीं समझेंगे। इसलिए बाबा ने कहा पत्थरबुद्धि हैं जो सिर्फ एक को मानते हैं। एक से ये सृष्टि थोड़ेही चलती है? चलती है? नहीं। तो उनको पारसबुद्धि बनाने के लिए बहुत मेहनत चाहिए। बादशाही स्थापन करने में तो, हँ, मेहनत चाहिए क्योंकि बादशाह कौन बनेंगे? पत्थरबुद्धि? नहीं। पारसबुद्धि बनेंगे तो बादशाह बनेंगे। पारस शब्द बिगड़ा हुआ है। असली शब्द है स्पर्श। स्पर्श माने छूना, कनेक्शन में आना। वो तो कनेक्शन में आए बिगैर, संग के रंग में आए बिगैर कैसे सुधरेंगे? संग के रंग में आने से बिगड़े और संग के रंग में आने से ही सुधरते हैं।
तो एक में लिख देना चाहिए कि प्रीतिबुद्धि का अर्थ और विपरीत बुद्धि का अर्थ। विपरीत बुद्धि का; किस बात में विशेष विपरीत बुद्धि? जो कहते हैं सर्वव्यापी है। हाँ। ठिक्कर में है, भित्तर में है। कण-कण में है। तो उनको कहते हैं विपरीतबुद्धि विनश्यंते। अरे, सर्वव्यापी है कि एकव्यापी है? अरे, आत्मा पुरुष कही जाती है। और अकेला पुरुष सृष्टि बनाएगा क्या? नहीं। तो ऐसे ही आत्माओं का बाप भी आत्मा है ना? वो अकेला सृष्टि बनाएगा क्या? नहीं। तो बताया कि वो एक आता है तो उसे सृष्टि रचने के लिए समान चाहिए, हँ, कि असमान चाहिए? दुनिया में भी परिवार बढ़ाने के लिए बच्चों की शादी करते हैं तो बच्चा हाथी की तरह डौल-डील वाला, और जिससे सट्टाजोरी करनी है वो चींटी के समान गंटी-दुबली-पतली, तो ये मेल चलेगा? नहीं चलेगा ना?
तो बताया वो एकव्यापी है। एक है। और एक को ही चुनता है। हाँ। तो, तो प्रवृत्ति हो गई। प्रवृत्ति कैसे हो गई? प्रवृत्ति के लिए एंटी सेक्स चाहिए ना? हाँ। एक मेल चाहिए तो एक फीमेल चाहिए। अब आत्माएं तो सभी क्या हैं? मेल हैं। आत्माओं का बाप भी मेल है। तो उसे क्या चाहिए? फीमेल चाहिए ना? तो वो परमपिता है, हैविनली गॉड फादर कहते हैं। तो फादर को क्या चाहिए? माता चाहिए। तो जिस तन में भी प्रवेश करते हैं उसका नाम देते हैं ब्रह्मा। क्या? परमपिता है तो अम्मा भी कैसी चाहिए? परम चाहिए या छोटी-मोटी? परम माता चाहिए। तो परम ब्रह्मा। कैसा? कैसी माताओं के बीच में कैसी माता हो? परम। हां। जैसे कहते हैं गुड, बैटर, बेस्ट। तो बेस्ट को परम कहा जाता है ना? हँ। वो तो एक ही होता है।
तो ये बात बुद्धि में बैठाना है कि सर्वव्यापी नहीं है। एकव्यापी है। और हर एक अपनी जाति को प्रिफरेन्स देता है या दूसरी जाति को प्रिफरेन्स देता है? अपनी जाति को देता है ना? हाँ। तो सुप्रीम सोल बाप भी जाति क्या है? मेल की जाति है या फीमेल की जाति है? क्या जाति है? मेल है ना? आत्मा है तो आत्मा को ही प्रिफरेंस देगा कि दूसरी जाति वालों को पहले प्रिफरेंस देगा? नहीं। तो प्रिफरेंस तो देगा अपनी जाति को। भाई-भाई को सपोर्ट करता है ना? तो करेगा। वो तो ठीक है। लेकिन सृष्टि तो आत्मा-आत्मा के मेल से, मेल-मेल के मेल से ये सृष्टि नहीं चल सकती। तो कहते हैं, मुझे क्रियेट करना पड़ता है। क्या क्रियेट करना पड़ता है? मेहनत करनी पड़ती है। क्या मेहनत? जिस आत्मा में जो स्वभाव-संस्कार हैं वो मेल के न रहें। कैसे हो जाएं? फीमेल के स्वभाव-संस्कार। और फीमेल के भी वो नहीं कि सामान्य फीमेल जैसे। नहीं। सबसे उच्च कोटि की फीमेल। हाँ। क्योंकि प्रवृत्ति में तो जिन दो की प्रवृत्ति होती है ना तो वो एक दूसरे से क्या चाहते हैं? कि हमको जितना प्यार करे उतना और किसी दूसरे को न करे। ऐसे ही ना? हाँ। तो, तो वो सुप्रीम सोल बाप भी जिस आत्मा में, आत्मा को प्रिफरेंस देते हैं जिसमें आत्मा के संस्कार विशेष हैं; आत्मा माने? मेल के संस्कार विशेष हैं। लेकिन उसको क्या करना है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, वो स्थिति लानी है जिसमें वो प्रवृत्ति बन सके मेल, फीमेल की।
तो वो मेहनत करनी पड़ती है। क्या मेहनत करनी पड़ती है? सुप्रीम सोल तो सदा ही मेल है कि कभी फीमेल, फीमेल बनता है? प्रवेश भी करेगा तो भी, मेल में प्रवेश करता है कि फीमेल में? (किसी ने कुछ कहा।) मेल में? फीमेल में प्रवेश नहीं करता? करता है कि नहीं? करता तो है, फीमेल में भी प्रवेश करता है, लेकिन जिनमें संस्कार जो हैं पक्के संस्कार होंगे पुरुष वृत्ति के उनमें प्रत्यक्ष होगा। और फीमेल में प्रत्यक्ष नहीं होगा। तो तुम सब क्या हो? सीताएं हो, फीमेल हो कि मेल हो? क्या हो? सब सीताएं हो। तो तुम सब सीताएं हो और मैं जिसमें प्रवेश करता हूँ वो क्या है? वो सीता है? सीता है या राम है? कहते राम है एक और बाकि सब हैं सीताएं। राम बाप को कहा जाता है। सीता को बाप कहेंगे? सीता को बाप नहीं कहेंगे।
तो वो बाप को भी वो पढ़ाई पढ़ानी पड़ती है। क्या? कि ये जो अंदर-अंदर; तुम तो आत्मा भोगी आत्मा हो ना? तुम सब क्या हो? तुम सब हो तो सीताएं ए टू ज़ेड। क्या? जो मनुष्य सृष्टि का बीज रूप बाप है वो आत्मा वो भी क्या है? वो आत्मा भी आत्मा है ना? है तो मेल के संस्कार। बाप के संस्कार हैं। लेकिन फिर भी वो बनता (बन्ना) नहीं बनती है बाप की। क्या? क्योंकि सांड-सांड तो आपस में क्या करेंगे? टकराय जाएंगे कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। टकराय जाएंगे। तो बात बिगड़ जाएगी। बाप को तो अव्यभिचारी सृष्टि बनानी है कि व्यभिचारी सृष्टि बनानी है? बाप तो आते हैं अव्यभिचारी सृष्टि बनाने के लिए। इसलिए जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करते हैं उसके द्वारा ही प्रत्यक्ष होते हैं पहले-पहले। और किसी के द्वारा प्रत्यक्ष? प्रत्यक्ष नहीं। प्रत्यक्ष होना माने? जन्म लेना। बच्चा जन्म लेता है ना, तो कहते हैं प्रत्यक्ष हुआ कि अप्रत्यक्ष हुआ, अव्यक्त हुआ? बाहर आया ना? हाँ।
तो बताया कि मैं मेल में प्रवेश करता हूँ, आत्मा में प्रवेश करता हूँ फिर भी उसको कैसी आत्माएं? आत्माएं तो सब भोगी हैं। इस सृष्टि पर पार्ट बजाने वाली रंगमंच पर सदाकाल पार्ट बजाने वाली जो भी आत्माएं हैं, नंबरवार हैं तो, लेकिन भोगी हैं कि अभोक्ता हैं? सब भोगी हैं। ए टू ज़ेड। जो मनुष्य सृष्टि का बाप है वो भी भोगी है कि अभोक्ता है? वो भी तो भोगी है। भले मैं आता हूँ तो मेरा विरुद ये है कि मैं जिसमें आऊंगा उसको आप समान बनाऊंगा। तो खुद क्या है? अभोक्ता है ना? तो वो खुद अभोक्ता है इसलिए जिसमें प्रवेश करता है उसको भी क्या बनाएगा? अभोक्ता। अभोक्ता माने? भोगी आत्मा से कौनसी स्टेज लानी है? अभोक्ता की स्टेज लानी है। अभोक्ता माने? उसके लिए मिसाल दे दिया अहमदाबाद वाले साधु का। क्या? न खाता है; खाना माने भोगना; भोगी हुआ कि नहीं? न पीता है, न हगता है। अरे, कुछ भी इन्द्रियों से भोग नहीं भोगता। तो उसको क्या कहेंगे? अभोक्ता या भोक्ता? अभोक्ता। शिव बाप भी जैसे प्रवेश करते हैं जिस तन में भी प्रवेश करेंगे मुकर्रर रथ हो चाहे नॉन मुकर्रर हो, हँ, वो टेम्परेरी रथ हो, तो भी अभोक्ता बनके रहता है कि जिस तन में प्रवेश करता है उन इन्द्रियों से भोगता है? सुख लेता है? नहीं लेता है।
तो बताया कि जिसमें भी प्रवेश करूंगा, मुकर्रर रथ में, उसको पहले क्या बनाऊंगा? आप समान अभोक्ता आत्मा बनाऊंगा। तो आप समान अभोक्ता आत्मा बनेगी तो 100 परसेन्ट मेल बन जाएगी या नहीं बनेगी? कि कुछ फीमेल के संस्कार रह जाएंगे? फीमेल माने? मेल में ज्यादा पावर कि फीमेल में ज्यादा पावर? तन की भी, मन की भी, हर तरह की जो पावर है वो किसमें आती है ज्यादा? कहते हैं, जैसे आज की दुनिया में कहते हैं इंदिरा गांधी जो है वो बड़ी पावरफुल थी। लेकिन पावरफुल थी कि उसके आसपास जो थे, हाँ, चाटुकार, वो उसे अपने प्रभाव में लेके रहते थे? प्रभाव में लेके रहते थे ना? वैसे भी आज की दुनिया में जो प्रजातंत्र गोर्मेन्ट है ना उसमें कहते हैं मुख से; क्या? कि मेल-फीमेल दोनों की एक जैसी स्थिति है। और जो मेल को सत्ता चाहिए, जो अधिकार चाहिए, वो फीमेल को भी होने चाहिए। होने चाहिए कि नहीं होने चाहिए? नहीं होने चाहिए? अरे, कहते कितना भी कुछ हैं, कोई भी देश में प्रजातंत्र सरकार चल रही है सबको नियम यही बनाया हुआ है कि मेल-फीमेल में एक जैसा रहे; सिर्फ मुसलमानों को छोड़के; क्या? मुसलमान माने इस्लामी। पहला जो देवता धर्म के बाद पहला धर्म कौनसा आता है दुनिया में द्वैतवादी? इस्लाम धर्म। तो कुछ न कुछ अंश तो आएगा ना देवताई का? हाँ, आता है।
तो बताया कि वो पावर जो है मेल की वो खत्म नहीं होती है। किसी मनुष्य के द्वारा, मनुष्यात्मा के द्वारा उसमें चेंज नहीं आ सकता प्रयास करने से। कोई कितना भी मेहनत करे। देख लो आज की गोर्मेन्ट में। भले ढ़ेर सारी माताएं हैं, गद्दियों पे बैठी हुई हैं ऊँची-ऊँची गद्दियों में, मिनिस्टर बनी हैं, प्राइम मिनिस्टर बनी हैं। लेकिन वो प्रभाव में आती हैं कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, आसपास की जो है जेन्ट्री उनके प्रभाव में जरूर आ जाती है। तो बताया कि ये सिर्फ कहने मात्र है; क्या? कि सत्ता जो है कन्याओं-माताओं के हाथ में होनी चाहिए। अरे, हिस्ट्री इतनी तुम्हारी इकट्ठी की हुई है ढ़ाई हज़ार वर्ष की हिस्ट्री में। कहीं शासन करने वाले जो हैं वो मेल बने हैं या फीमेल बने हैं? अरे, एक्का-दुक्का जैसे रजिया सुल्ताना का दिया। तो वो कंट्रोल में रह सकी? क्या? कैसा कंट्रोल? मन-बुद्धि को इन्द्रियों से कंट्रोल में रह सकी अपनी इन्द्रियों से? नहीं। आधीन हुई। और ज्यादा राज्य चल ही नहीं सका।
तो बताया पहली शर्त है; क्या? कि जो दुनिया में कोई नहीं कर सकता; क्या? मेल को फीमेल बनाना; और फीमेल को मेल बनाना ये बाप का काम है। तो मेल को फीमेल बनाने के लिए मुकर्रर रथ को बाप को ये बड़ी लंबी-चौड़ी पढ़ाई पढ़ानी पड़ती है। मिसाल तो दिया ना? क्या? क्या मिसाल दिया? अहमदाबादी साधु का मिसाल दिया; भोग भोगने की जो इच्छा है वो फीमेल की तो खत्म हो ही नहीं सकती। और तुम सब फीमेल हो। सब सीताएं हो। उनमें एक है मनुष्य सृष्टि का बाप। तो उसी को चुन लिया। जो मनुष्य सृष्टि का बाप है उसी को चुना और चुनकरके उसमें ये संस्कार डाले, ऐसी पढ़ाई पढ़ाकरके; क्या? कि तुमको भी क्या बनना है? मेल फीमेल में अंतर न रहे, ऐसे स्वभाव-संस्कार धारण करने हैं। मेल में सामना करने की ताकत ज्यादा होती है। हाँ। और फीमेल में? समाने की ताकत ज्यादा होती है कि सामना करने की ताकत ज्यादा होती है? समाने की ज्यादा ताकत होती है। तो सहन शक्ति ज्यादा होती है। कन्याओं-माताओं का जो सहनशक्ति का गुण है वो जब उसमें आ जाए तो बाप की प्रवृत्ति का काम चालू हो जाए नई दुनिया बनाने का। तो उससे पहले बन सकती है? नहीं बन सकती।
The night class dated 1.12.1967 was being discussed. The topic being discussed in the beginning of the middle part of the first page was that consider yourself a soul and [remember] the Father; Well, it was said that there are two unlimited fathers. The Father of the human world and the Father of the souls. The Father, the Father of the souls certainly comes to establish the path of household, doesn’t He? So, how is it that [He says:] ‘Remember the One?’ Whom should you remember? It is said, “Two in one”. Whom should you remember? (Someone said something.) Yes. There are two [souls] in a single personality. So, that is called the path of household. This is why, it was said, remember ShivBaba, through whom the vikarma (sinful actions) are destroyed. ‘Through’ means who is the media? Are the souls the media or is the body the media? The indriyaan (organs) of the body are the media. Through the combination of the elements of the body, [i.e.] the gyaanendriyaan (sense organs), the karmendriyaan (organs of action), the mind, the intellect [and] ego, the vikarma are destroyed. He is called the one with a loving intellect (preetibuddhi). Who? The one through whom the vikarma are destroyed is called the one with a loving intellect. It is because, these human beings with a stone like intellect won’t understand without an explanation.
A lot of hard work is required to transform these ones with a stone like intellect into the ones with a paaras (elixir) like intellect. Why did they become the ones with a stone like intellect? When the dualistic world began from the Copper Age, the deity souls also became the ones with a stone like intellect by coming in the colour of the company of the other religions, other languages and other opinions. About what? All the dualistic souls which come from the Copper Age, do they just believe in the Incorporeal One or do they believe in the corporeal one as well? They just believe in the Incorporeal One. And then they say that Allah Miyaan (God, the Supreme Lord) created the land, Allah Miyaan created aftaab, meaning the sun, Allah Miyaan created the ocean; arey, how did He create [them], they will have to understand this through the intellect, won’t they? So, they don’t understand this. That is why Baba has said that those who just believe in the One are the ones with a stone like intellect. This world doesn’t function through [just] one [soul]. Does it? No. So, a lot of hard work is required to make them into the ones with a paaras like intellect. Hard work is required to establish the emperorship. It is because, who will become emperors? Those who have a stone like intellect? No. When they become the ones with a paaras like intellect, they will become emperors. The word ‘paaras’ is the altered form; the actual word is ‘sparsh’. ‘Sparsh’ means to touch, to come in connection. So, how will they reform without coming in connection, without coming in the colour of the company [of the Father]? They became spoilt by coming in the colour of the company and they reform only by coming in the colour of the company.
So, the meaning of [having] a loving intellect and [having] an opposing intellect should be written in one [picture]. Of an opposing intellect; an opposing intellect especially in which topic? For [the topic] that they say, [God is] omnipresent. Yes. [They say] that [God] is in lumps of soil (thikkar), in walls (bhittar) [and] in every particle. So, it is said for them: “those with an opposing intellect are destroyed (vipariit buddhi vinashyanti).” Arey, is He omnipresent or is He present in one [being]? Arey, the soul is called purush, and will a purush alone create the world? No. Similarly, the Father of the souls is also a soul, isn’t He? So, will He create the world alone? No. So, it was said that when that One comes, does He require someone equal [to Him] or someone unequal to create the world? In the world too, people get their children married to expand the family. So, if the child is well-built like an elephant and the one with whom he is to be paired is dwarf, thin and frail like an ant, will this match work? It won’t, will it?
So, it was said that He is present in one [being]. He [Himself] is single and He chooses just one [soul]. Yes. So, it became a household. How did it become a household? For a household, an anti-sex (someone of an opposite sex) is required, isn’t it? Yes. A male and a female are required. Well, what are all the souls? They are males. The Father of the souls is also a male. So, who does He require? He requires a female, doesn’t He? He is the Supreme Father. He is called Heavenly God Father. So, what does the Father need? He needs a mother. So, whichever body He enters, He names him Brahma. What? He is the Supreme Father, so what kind of mother does He need? Supreme or an insignificant one? He needs a supreme mother; so, Param Brahma. How? What kind of mother should she be among all the mothers? Param (supreme). Yes. Just like it is said, good, better [and] the best. So the best one is called param, isn’t it? That is just one.
So, you have to make this point sit in the intellect that [God] isn’t omnipresent; [He] is present in one [being]. And does everyone give preference to [those of] his own category or to [those of] the other category? He gives [preference] to [those of] his own category, doesn’t he? Yes. So, what is the category of the Supreme Soul, the Father? Is it the category of a male or a female? What is [His] category? He is a male, isn’t He? He is a soul, so, He will just give preference to a soul only; or will He give preference to those of the other category first? No. So, He will certainly give preference to [those of] His own category. A brother supports his brother, doesn’t he? So, He will. That is correct; but this world can’t function by the combination of a soul with [another] soul, the combination of a male with [another] male. So, He says, “I have to create”. What do I have to create? I have to work hard. What hard work? There shouldn’t be the nature and sanskaars of a male in that soul. How should they become? [They should become] the nature and sanskaars of a female. And as regards a female as well, they shouldn’t be like that of [any] ordinary female. No. The female of the highest category, yes, because, in a household, what do the two [people] who are in a companionship (pravritti) want from each other? He shouldn’t love anyone else as much as he loves me‟. It is just like this, isn’t it? Yes. So, the Supreme Soul, the Father too gives preference to the soul which especially has the sanskaars of a soul. What does a soul mean? It especially has the sanskaars of a male. But what does it have to do? (Someone said something.) Yes. He has to bring the stage through which the companionship of a male and a female can be formed.
So, He has to work hard. What hard work does [He] have to do? Is the Supreme Soul always a male or does He ever become a female, female? Even when He enters, does He enter a male or a female? (Someone said something.) In a male? Doesn’t He enter a female? Does He or not? He certainly does. He enters a female too but He will be revealed through those who have firm sanskaars of being a male. And He won’t be revealed through a female. So, what are you all? Are you Sitas; are you females or males? What are you? You all are Sitas. So, you are all Sitas and what is he in whom I enter? Is he Sita? Is he Sita or is he Ram? It is said, Ram is one and all others are Sitas. The Father is called Ram. Will Sita be called the Father? Sita won’t be called the Father.
So, the Father also has to teach that teaching. What? That within [yourself], you, the souls are bhogi souls, aren’t you? What are you all? A to Z, you all are certainly Sitas. What? What is the soul, the seed form Father of the human world as well? That soul is also a soul, isn’t it? He certainly has the sanskaars of a male. He has the sanskaars of the Father. Still, he doesn’t become the husband of the Father. What? Because, what will two bulls do with each other? Will they confront [each other] or not? (Someone said something.) Yes, they will confront, then the plan will fail (baat bigarna). Does the Father have to create an unadulterated world or an adulterated world? The Father certainly comes to establish an unadulterated world. This is why, He is revealed first of all through the very permanent Chariot He enters. He isn’t revealed through anyone else. ‘To be revealed’ means? To be born. When a child is born, it is said, was he revealed or concealed, became Avyakt (unmanifest)? [He] came out [of the mother’s womb], didn’t he? Yes.
So, it was said, I enter a male, I enter a soul, still what kind of a souls? All the souls are bhogi. All the souls who play a part in this world, who always play a part on [this] stage, they are certainly number wise, but are they bhogi (pleasure-seeker) or are they abhogtaa (non-pleasure seeker)? A to Z, everyone is a bhogi. Is the Father of the human world too a bhogi or is he abhogtaa? He too is a bhogi. Although I come, My promise is that the one in whom I come, I will make him equal to Me. So, what is He Himself? He is abhogtaa, isn’t He? He Himself is abhogtaa, so what will He make the one whom He enters too? Abhogtaa. What does abhogtaa mean? Which stage has to be attained from the [stage] of [being] a bhogi soul? The stage of an abhogtaa. What does abhogtaa mean? The example of a sage of Ahmedabad was given for him. What? He neither eats - to eat means to experience. Is he a bhogi or not? Nor does he drink and he doesn’t defecate either. Arey, he doesn’t experience any pleasure through the indriyaan (organs). So, what will he be called? Abhogtaa or bhogtaa? Abhogtaa. Just like when the Father Shiva also enters, whichever body He enters, whether it is the permanent Chariot or the non-permanent [i.e.] temporary Chariot, does He remain Abhogtaa or does He experience [pleasure] through the organs of the body He enters? Does He experience pleasure? He doesn’t.
So, it was said, “whomsoever I enter, the permanent Chariot, what will I make him first? I will make him an abhogta soul like Me.” So, when his soul becomes abhogtaa like Him, will it become 100% male or not? Or will any sanskaars of female remain [in him]? What does a female mean? Does a male have more power or does a female have more power? Who has more power of every kind, [i.e. the power] of the body as well as the mind? They [just] say, just like in today’s world they say, Indira Gandhi was very powerful. But was she [really] powerful or did the flatterers around her, yes, used to keep her under their influence? They kept her under their influence, didn’t they? Anyway, in the democratic government of today’s world, they do say through the mouth; what? That the status of both, the males and the females is equal, and the females should also have the authority and rights that the males want. Should they have them or not? Shouldn’t they? Arey, no matter how much and whatever they say, in any country where the democratic government is functioning, this very rule has been made for everyone that there should be equality between the males and females, except the Muslims. What? The Muslims means, the Islamic people. Which first dualistic religion comes first in this world after the Deity Religion? Islam. So, some trace of divinity will certainly come [in them], won’t it? Yes, it does.
So, it was said that the power of the male doesn’t exhaust. No human being, human soul can bring a change in it despite making effort; no matter how much someone works hard [for it]. Look at today’s government; though there are many mothers sitting on seats, very high seats, they have become ministers, Prime Minister, but do they get influenced or not? (Someone said something.) Yes. They are definitely influenced by the gentry around them. So, it was said that they just say, what? That the authority should be in the hands of the maidens and mothers. Arey, you have gathered so much history, in the history of 2500 years, have the males or the females been rulers? Arey, one or two like Razia Sultana were given. Was she able to keep the control? What? What kind of control? Was she able to take control of the organs, of her organs through the mind and intellect? No. She became subordinate and her rule couldn’t last long at all.
So, it was said that the first condition is, what? The task that no one in the world can do; what? To make a male into a female and a female into a male is the task of the Father. So, in order to make the male, the permanent Chariot into a female the Father has to teach this extensive knowledge. An example was given, wasn’t it? What? What example was given? The example of the sage from Ahmedabad was given. The desire of experiencing pleasure can never end in a female at all. And you all are females, you all are Sitas. One among them is the Father of the human world, so [He] selected that very one. He selected the Father of the human world himself and after selecting him He laid such sanskaars in him by teaching this knowledge; what? What do you too have to become? You have to assimilate such nature and sanskaars that there shouldn’t be any difference between the male and the female. A male has more power to face. Yes. And what about a female? Does she have more power to accommodate or more power to face? She has more power to accommodate. She has more power to tolerate. When the quality of the power of tolerance of the maidens and mothers come in him, the Father’s task of the household, of making the new world will begin. Or can it become before that? It can’t.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2956, दिनांक 29.07.2019
VCD 2956, dated 29.07.2019
रात्रि क्लास 01.12.1967
Night Class dated 01.12.1967
VCD-2956-extracts-Bilingual
समय- 00.01-22.28
Time- 00.01-22.28
रात्रि क्लास चल रहा था - 1.12.1967. पहले पेज के मध्यादि में बात चल रही थी कि अपन को आत्मा समझ बाप को; अब बताया कि बाप तो दो हैं बेहद के। मनुष्य सृष्टि का बाप और आत्माओं का बाप। तो बाप तो, आत्माओं का बाप भी तो प्रवृत्तिमार्ग स्थापन करने के लिए आते हैं ना? तो ऐसे कैसे कि एक को याद करो? किसको याद करो? कहते हैं टू इन वन। किसको याद करो? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। एक ही व्यक्तित्व में दो हैं। तो उनको कहा जाता है प्रवृत्तिमार्ग। शिवबाबा को याद करो। इसलिए बताया। हाँ। जिसके द्वारा विकर्म विनाश हो जाते हैं। द्वारा है माने मीडिया क्या हुआ? आत्माएं मीडिया हुईं या शरीर मीडिया हुआ? शरीर की इन्द्रियां मीडिया हुईं। शरीर के जो तत्व हैं ज्ञानेन्द्रियां, कर्मेन्द्रियां, मन, बुद्धि, अहंकार, ये सबका जो समुच्चय है उसके द्वारा विकर्म विनाश हो जाते हैं। उसको कहा जाता है प्रीतिबुद्धि। किसको? जिसके द्वारा विकर्म विनाश हो जाते हैं, उसको कहा जाता है प्रीतिबुद्धि। क्योंकि समझानी देने बिगर तो ये पत्थरबुद्धि मनुष्य नहीं समझेंगे।
इन पत्थरबुद्धियों को पारसबुद्धि में ले आने के लिए मेहनत चाहिए बहुत। क्यों पत्थरबुद्धि बने? जो द्वैतवादी दुनिया द्वापरयुग से शुरू हुई तो दूसरे-दूसरे धर्म और दूसरी-दूसरी भाषाएं, दूसरे-दूसरे मत, इनके संग के रंग में आकरके देवात्माएं भी पत्थरबुद्धि बनीं। किस बात में? वो द्वैतवादी आत्माएं जो भी आती हैं द्वापर से वो निराकार को सिर्फ मानती हैं कि साकार को भी मानती हैं? सिर्फ निराकार को मानती हैं। और फिर बोलते हैं अल्ला मियां ने जमीन बनाई, अल्ला मियां ने आफताब बनाया माना सूरज बनाया। अल्ला मियां ने समुंदर बनाया। अरे, कैसे बनाया? वो तो बुद्धि से समझना चाहिए ना? तो वो नहीं समझेंगे। इसलिए बाबा ने कहा पत्थरबुद्धि हैं जो सिर्फ एक को मानते हैं। एक से ये सृष्टि थोड़ेही चलती है? चलती है? नहीं। तो उनको पारसबुद्धि बनाने के लिए बहुत मेहनत चाहिए। बादशाही स्थापन करने में तो, हँ, मेहनत चाहिए क्योंकि बादशाह कौन बनेंगे? पत्थरबुद्धि? नहीं। पारसबुद्धि बनेंगे तो बादशाह बनेंगे। पारस शब्द बिगड़ा हुआ है। असली शब्द है स्पर्श। स्पर्श माने छूना, कनेक्शन में आना। वो तो कनेक्शन में आए बिगैर, संग के रंग में आए बिगैर कैसे सुधरेंगे? संग के रंग में आने से बिगड़े और संग के रंग में आने से ही सुधरते हैं।
तो एक में लिख देना चाहिए कि प्रीतिबुद्धि का अर्थ और विपरीत बुद्धि का अर्थ। विपरीत बुद्धि का; किस बात में विशेष विपरीत बुद्धि? जो कहते हैं सर्वव्यापी है। हाँ। ठिक्कर में है, भित्तर में है। कण-कण में है। तो उनको कहते हैं विपरीतबुद्धि विनश्यंते। अरे, सर्वव्यापी है कि एकव्यापी है? अरे, आत्मा पुरुष कही जाती है। और अकेला पुरुष सृष्टि बनाएगा क्या? नहीं। तो ऐसे ही आत्माओं का बाप भी आत्मा है ना? वो अकेला सृष्टि बनाएगा क्या? नहीं। तो बताया कि वो एक आता है तो उसे सृष्टि रचने के लिए समान चाहिए, हँ, कि असमान चाहिए? दुनिया में भी परिवार बढ़ाने के लिए बच्चों की शादी करते हैं तो बच्चा हाथी की तरह डौल-डील वाला, और जिससे सट्टाजोरी करनी है वो चींटी के समान गंटी-दुबली-पतली, तो ये मेल चलेगा? नहीं चलेगा ना?
तो बताया वो एकव्यापी है। एक है। और एक को ही चुनता है। हाँ। तो, तो प्रवृत्ति हो गई। प्रवृत्ति कैसे हो गई? प्रवृत्ति के लिए एंटी सेक्स चाहिए ना? हाँ। एक मेल चाहिए तो एक फीमेल चाहिए। अब आत्माएं तो सभी क्या हैं? मेल हैं। आत्माओं का बाप भी मेल है। तो उसे क्या चाहिए? फीमेल चाहिए ना? तो वो परमपिता है, हैविनली गॉड फादर कहते हैं। तो फादर को क्या चाहिए? माता चाहिए। तो जिस तन में भी प्रवेश करते हैं उसका नाम देते हैं ब्रह्मा। क्या? परमपिता है तो अम्मा भी कैसी चाहिए? परम चाहिए या छोटी-मोटी? परम माता चाहिए। तो परम ब्रह्मा। कैसा? कैसी माताओं के बीच में कैसी माता हो? परम। हां। जैसे कहते हैं गुड, बैटर, बेस्ट। तो बेस्ट को परम कहा जाता है ना? हँ। वो तो एक ही होता है।
तो ये बात बुद्धि में बैठाना है कि सर्वव्यापी नहीं है। एकव्यापी है। और हर एक अपनी जाति को प्रिफरेन्स देता है या दूसरी जाति को प्रिफरेन्स देता है? अपनी जाति को देता है ना? हाँ। तो सुप्रीम सोल बाप भी जाति क्या है? मेल की जाति है या फीमेल की जाति है? क्या जाति है? मेल है ना? आत्मा है तो आत्मा को ही प्रिफरेंस देगा कि दूसरी जाति वालों को पहले प्रिफरेंस देगा? नहीं। तो प्रिफरेंस तो देगा अपनी जाति को। भाई-भाई को सपोर्ट करता है ना? तो करेगा। वो तो ठीक है। लेकिन सृष्टि तो आत्मा-आत्मा के मेल से, मेल-मेल के मेल से ये सृष्टि नहीं चल सकती। तो कहते हैं, मुझे क्रियेट करना पड़ता है। क्या क्रियेट करना पड़ता है? मेहनत करनी पड़ती है। क्या मेहनत? जिस आत्मा में जो स्वभाव-संस्कार हैं वो मेल के न रहें। कैसे हो जाएं? फीमेल के स्वभाव-संस्कार। और फीमेल के भी वो नहीं कि सामान्य फीमेल जैसे। नहीं। सबसे उच्च कोटि की फीमेल। हाँ। क्योंकि प्रवृत्ति में तो जिन दो की प्रवृत्ति होती है ना तो वो एक दूसरे से क्या चाहते हैं? कि हमको जितना प्यार करे उतना और किसी दूसरे को न करे। ऐसे ही ना? हाँ। तो, तो वो सुप्रीम सोल बाप भी जिस आत्मा में, आत्मा को प्रिफरेंस देते हैं जिसमें आत्मा के संस्कार विशेष हैं; आत्मा माने? मेल के संस्कार विशेष हैं। लेकिन उसको क्या करना है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, वो स्थिति लानी है जिसमें वो प्रवृत्ति बन सके मेल, फीमेल की।
तो वो मेहनत करनी पड़ती है। क्या मेहनत करनी पड़ती है? सुप्रीम सोल तो सदा ही मेल है कि कभी फीमेल, फीमेल बनता है? प्रवेश भी करेगा तो भी, मेल में प्रवेश करता है कि फीमेल में? (किसी ने कुछ कहा।) मेल में? फीमेल में प्रवेश नहीं करता? करता है कि नहीं? करता तो है, फीमेल में भी प्रवेश करता है, लेकिन जिनमें संस्कार जो हैं पक्के संस्कार होंगे पुरुष वृत्ति के उनमें प्रत्यक्ष होगा। और फीमेल में प्रत्यक्ष नहीं होगा। तो तुम सब क्या हो? सीताएं हो, फीमेल हो कि मेल हो? क्या हो? सब सीताएं हो। तो तुम सब सीताएं हो और मैं जिसमें प्रवेश करता हूँ वो क्या है? वो सीता है? सीता है या राम है? कहते राम है एक और बाकि सब हैं सीताएं। राम बाप को कहा जाता है। सीता को बाप कहेंगे? सीता को बाप नहीं कहेंगे।
तो वो बाप को भी वो पढ़ाई पढ़ानी पड़ती है। क्या? कि ये जो अंदर-अंदर; तुम तो आत्मा भोगी आत्मा हो ना? तुम सब क्या हो? तुम सब हो तो सीताएं ए टू ज़ेड। क्या? जो मनुष्य सृष्टि का बीज रूप बाप है वो आत्मा वो भी क्या है? वो आत्मा भी आत्मा है ना? है तो मेल के संस्कार। बाप के संस्कार हैं। लेकिन फिर भी वो बनता (बन्ना) नहीं बनती है बाप की। क्या? क्योंकि सांड-सांड तो आपस में क्या करेंगे? टकराय जाएंगे कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। टकराय जाएंगे। तो बात बिगड़ जाएगी। बाप को तो अव्यभिचारी सृष्टि बनानी है कि व्यभिचारी सृष्टि बनानी है? बाप तो आते हैं अव्यभिचारी सृष्टि बनाने के लिए। इसलिए जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करते हैं उसके द्वारा ही प्रत्यक्ष होते हैं पहले-पहले। और किसी के द्वारा प्रत्यक्ष? प्रत्यक्ष नहीं। प्रत्यक्ष होना माने? जन्म लेना। बच्चा जन्म लेता है ना, तो कहते हैं प्रत्यक्ष हुआ कि अप्रत्यक्ष हुआ, अव्यक्त हुआ? बाहर आया ना? हाँ।
तो बताया कि मैं मेल में प्रवेश करता हूँ, आत्मा में प्रवेश करता हूँ फिर भी उसको कैसी आत्माएं? आत्माएं तो सब भोगी हैं। इस सृष्टि पर पार्ट बजाने वाली रंगमंच पर सदाकाल पार्ट बजाने वाली जो भी आत्माएं हैं, नंबरवार हैं तो, लेकिन भोगी हैं कि अभोक्ता हैं? सब भोगी हैं। ए टू ज़ेड। जो मनुष्य सृष्टि का बाप है वो भी भोगी है कि अभोक्ता है? वो भी तो भोगी है। भले मैं आता हूँ तो मेरा विरुद ये है कि मैं जिसमें आऊंगा उसको आप समान बनाऊंगा। तो खुद क्या है? अभोक्ता है ना? तो वो खुद अभोक्ता है इसलिए जिसमें प्रवेश करता है उसको भी क्या बनाएगा? अभोक्ता। अभोक्ता माने? भोगी आत्मा से कौनसी स्टेज लानी है? अभोक्ता की स्टेज लानी है। अभोक्ता माने? उसके लिए मिसाल दे दिया अहमदाबाद वाले साधु का। क्या? न खाता है; खाना माने भोगना; भोगी हुआ कि नहीं? न पीता है, न हगता है। अरे, कुछ भी इन्द्रियों से भोग नहीं भोगता। तो उसको क्या कहेंगे? अभोक्ता या भोक्ता? अभोक्ता। शिव बाप भी जैसे प्रवेश करते हैं जिस तन में भी प्रवेश करेंगे मुकर्रर रथ हो चाहे नॉन मुकर्रर हो, हँ, वो टेम्परेरी रथ हो, तो भी अभोक्ता बनके रहता है कि जिस तन में प्रवेश करता है उन इन्द्रियों से भोगता है? सुख लेता है? नहीं लेता है।
तो बताया कि जिसमें भी प्रवेश करूंगा, मुकर्रर रथ में, उसको पहले क्या बनाऊंगा? आप समान अभोक्ता आत्मा बनाऊंगा। तो आप समान अभोक्ता आत्मा बनेगी तो 100 परसेन्ट मेल बन जाएगी या नहीं बनेगी? कि कुछ फीमेल के संस्कार रह जाएंगे? फीमेल माने? मेल में ज्यादा पावर कि फीमेल में ज्यादा पावर? तन की भी, मन की भी, हर तरह की जो पावर है वो किसमें आती है ज्यादा? कहते हैं, जैसे आज की दुनिया में कहते हैं इंदिरा गांधी जो है वो बड़ी पावरफुल थी। लेकिन पावरफुल थी कि उसके आसपास जो थे, हाँ, चाटुकार, वो उसे अपने प्रभाव में लेके रहते थे? प्रभाव में लेके रहते थे ना? वैसे भी आज की दुनिया में जो प्रजातंत्र गोर्मेन्ट है ना उसमें कहते हैं मुख से; क्या? कि मेल-फीमेल दोनों की एक जैसी स्थिति है। और जो मेल को सत्ता चाहिए, जो अधिकार चाहिए, वो फीमेल को भी होने चाहिए। होने चाहिए कि नहीं होने चाहिए? नहीं होने चाहिए? अरे, कहते कितना भी कुछ हैं, कोई भी देश में प्रजातंत्र सरकार चल रही है सबको नियम यही बनाया हुआ है कि मेल-फीमेल में एक जैसा रहे; सिर्फ मुसलमानों को छोड़के; क्या? मुसलमान माने इस्लामी। पहला जो देवता धर्म के बाद पहला धर्म कौनसा आता है दुनिया में द्वैतवादी? इस्लाम धर्म। तो कुछ न कुछ अंश तो आएगा ना देवताई का? हाँ, आता है।
तो बताया कि वो पावर जो है मेल की वो खत्म नहीं होती है। किसी मनुष्य के द्वारा, मनुष्यात्मा के द्वारा उसमें चेंज नहीं आ सकता प्रयास करने से। कोई कितना भी मेहनत करे। देख लो आज की गोर्मेन्ट में। भले ढ़ेर सारी माताएं हैं, गद्दियों पे बैठी हुई हैं ऊँची-ऊँची गद्दियों में, मिनिस्टर बनी हैं, प्राइम मिनिस्टर बनी हैं। लेकिन वो प्रभाव में आती हैं कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, आसपास की जो है जेन्ट्री उनके प्रभाव में जरूर आ जाती है। तो बताया कि ये सिर्फ कहने मात्र है; क्या? कि सत्ता जो है कन्याओं-माताओं के हाथ में होनी चाहिए। अरे, हिस्ट्री इतनी तुम्हारी इकट्ठी की हुई है ढ़ाई हज़ार वर्ष की हिस्ट्री में। कहीं शासन करने वाले जो हैं वो मेल बने हैं या फीमेल बने हैं? अरे, एक्का-दुक्का जैसे रजिया सुल्ताना का दिया। तो वो कंट्रोल में रह सकी? क्या? कैसा कंट्रोल? मन-बुद्धि को इन्द्रियों से कंट्रोल में रह सकी अपनी इन्द्रियों से? नहीं। आधीन हुई। और ज्यादा राज्य चल ही नहीं सका।
तो बताया पहली शर्त है; क्या? कि जो दुनिया में कोई नहीं कर सकता; क्या? मेल को फीमेल बनाना; और फीमेल को मेल बनाना ये बाप का काम है। तो मेल को फीमेल बनाने के लिए मुकर्रर रथ को बाप को ये बड़ी लंबी-चौड़ी पढ़ाई पढ़ानी पड़ती है। मिसाल तो दिया ना? क्या? क्या मिसाल दिया? अहमदाबादी साधु का मिसाल दिया; भोग भोगने की जो इच्छा है वो फीमेल की तो खत्म हो ही नहीं सकती। और तुम सब फीमेल हो। सब सीताएं हो। उनमें एक है मनुष्य सृष्टि का बाप। तो उसी को चुन लिया। जो मनुष्य सृष्टि का बाप है उसी को चुना और चुनकरके उसमें ये संस्कार डाले, ऐसी पढ़ाई पढ़ाकरके; क्या? कि तुमको भी क्या बनना है? मेल फीमेल में अंतर न रहे, ऐसे स्वभाव-संस्कार धारण करने हैं। मेल में सामना करने की ताकत ज्यादा होती है। हाँ। और फीमेल में? समाने की ताकत ज्यादा होती है कि सामना करने की ताकत ज्यादा होती है? समाने की ज्यादा ताकत होती है। तो सहन शक्ति ज्यादा होती है। कन्याओं-माताओं का जो सहनशक्ति का गुण है वो जब उसमें आ जाए तो बाप की प्रवृत्ति का काम चालू हो जाए नई दुनिया बनाने का। तो उससे पहले बन सकती है? नहीं बन सकती।
The night class dated 1.12.1967 was being discussed. The topic being discussed in the beginning of the middle part of the first page was that consider yourself a soul and [remember] the Father; Well, it was said that there are two unlimited fathers. The Father of the human world and the Father of the souls. The Father, the Father of the souls certainly comes to establish the path of household, doesn’t He? So, how is it that [He says:] ‘Remember the One?’ Whom should you remember? It is said, “Two in one”. Whom should you remember? (Someone said something.) Yes. There are two [souls] in a single personality. So, that is called the path of household. This is why, it was said, remember ShivBaba, through whom the vikarma (sinful actions) are destroyed. ‘Through’ means who is the media? Are the souls the media or is the body the media? The indriyaan (organs) of the body are the media. Through the combination of the elements of the body, [i.e.] the gyaanendriyaan (sense organs), the karmendriyaan (organs of action), the mind, the intellect [and] ego, the vikarma are destroyed. He is called the one with a loving intellect (preetibuddhi). Who? The one through whom the vikarma are destroyed is called the one with a loving intellect. It is because, these human beings with a stone like intellect won’t understand without an explanation.
A lot of hard work is required to transform these ones with a stone like intellect into the ones with a paaras (elixir) like intellect. Why did they become the ones with a stone like intellect? When the dualistic world began from the Copper Age, the deity souls also became the ones with a stone like intellect by coming in the colour of the company of the other religions, other languages and other opinions. About what? All the dualistic souls which come from the Copper Age, do they just believe in the Incorporeal One or do they believe in the corporeal one as well? They just believe in the Incorporeal One. And then they say that Allah Miyaan (God, the Supreme Lord) created the land, Allah Miyaan created aftaab, meaning the sun, Allah Miyaan created the ocean; arey, how did He create [them], they will have to understand this through the intellect, won’t they? So, they don’t understand this. That is why Baba has said that those who just believe in the One are the ones with a stone like intellect. This world doesn’t function through [just] one [soul]. Does it? No. So, a lot of hard work is required to make them into the ones with a paaras like intellect. Hard work is required to establish the emperorship. It is because, who will become emperors? Those who have a stone like intellect? No. When they become the ones with a paaras like intellect, they will become emperors. The word ‘paaras’ is the altered form; the actual word is ‘sparsh’. ‘Sparsh’ means to touch, to come in connection. So, how will they reform without coming in connection, without coming in the colour of the company [of the Father]? They became spoilt by coming in the colour of the company and they reform only by coming in the colour of the company.
So, the meaning of [having] a loving intellect and [having] an opposing intellect should be written in one [picture]. Of an opposing intellect; an opposing intellect especially in which topic? For [the topic] that they say, [God is] omnipresent. Yes. [They say] that [God] is in lumps of soil (thikkar), in walls (bhittar) [and] in every particle. So, it is said for them: “those with an opposing intellect are destroyed (vipariit buddhi vinashyanti).” Arey, is He omnipresent or is He present in one [being]? Arey, the soul is called purush, and will a purush alone create the world? No. Similarly, the Father of the souls is also a soul, isn’t He? So, will He create the world alone? No. So, it was said that when that One comes, does He require someone equal [to Him] or someone unequal to create the world? In the world too, people get their children married to expand the family. So, if the child is well-built like an elephant and the one with whom he is to be paired is dwarf, thin and frail like an ant, will this match work? It won’t, will it?
So, it was said that He is present in one [being]. He [Himself] is single and He chooses just one [soul]. Yes. So, it became a household. How did it become a household? For a household, an anti-sex (someone of an opposite sex) is required, isn’t it? Yes. A male and a female are required. Well, what are all the souls? They are males. The Father of the souls is also a male. So, who does He require? He requires a female, doesn’t He? He is the Supreme Father. He is called Heavenly God Father. So, what does the Father need? He needs a mother. So, whichever body He enters, He names him Brahma. What? He is the Supreme Father, so what kind of mother does He need? Supreme or an insignificant one? He needs a supreme mother; so, Param Brahma. How? What kind of mother should she be among all the mothers? Param (supreme). Yes. Just like it is said, good, better [and] the best. So the best one is called param, isn’t it? That is just one.
So, you have to make this point sit in the intellect that [God] isn’t omnipresent; [He] is present in one [being]. And does everyone give preference to [those of] his own category or to [those of] the other category? He gives [preference] to [those of] his own category, doesn’t he? Yes. So, what is the category of the Supreme Soul, the Father? Is it the category of a male or a female? What is [His] category? He is a male, isn’t He? He is a soul, so, He will just give preference to a soul only; or will He give preference to those of the other category first? No. So, He will certainly give preference to [those of] His own category. A brother supports his brother, doesn’t he? So, He will. That is correct; but this world can’t function by the combination of a soul with [another] soul, the combination of a male with [another] male. So, He says, “I have to create”. What do I have to create? I have to work hard. What hard work? There shouldn’t be the nature and sanskaars of a male in that soul. How should they become? [They should become] the nature and sanskaars of a female. And as regards a female as well, they shouldn’t be like that of [any] ordinary female. No. The female of the highest category, yes, because, in a household, what do the two [people] who are in a companionship (pravritti) want from each other? He shouldn’t love anyone else as much as he loves me‟. It is just like this, isn’t it? Yes. So, the Supreme Soul, the Father too gives preference to the soul which especially has the sanskaars of a soul. What does a soul mean? It especially has the sanskaars of a male. But what does it have to do? (Someone said something.) Yes. He has to bring the stage through which the companionship of a male and a female can be formed.
So, He has to work hard. What hard work does [He] have to do? Is the Supreme Soul always a male or does He ever become a female, female? Even when He enters, does He enter a male or a female? (Someone said something.) In a male? Doesn’t He enter a female? Does He or not? He certainly does. He enters a female too but He will be revealed through those who have firm sanskaars of being a male. And He won’t be revealed through a female. So, what are you all? Are you Sitas; are you females or males? What are you? You all are Sitas. So, you are all Sitas and what is he in whom I enter? Is he Sita? Is he Sita or is he Ram? It is said, Ram is one and all others are Sitas. The Father is called Ram. Will Sita be called the Father? Sita won’t be called the Father.
So, the Father also has to teach that teaching. What? That within [yourself], you, the souls are bhogi souls, aren’t you? What are you all? A to Z, you all are certainly Sitas. What? What is the soul, the seed form Father of the human world as well? That soul is also a soul, isn’t it? He certainly has the sanskaars of a male. He has the sanskaars of the Father. Still, he doesn’t become the husband of the Father. What? Because, what will two bulls do with each other? Will they confront [each other] or not? (Someone said something.) Yes, they will confront, then the plan will fail (baat bigarna). Does the Father have to create an unadulterated world or an adulterated world? The Father certainly comes to establish an unadulterated world. This is why, He is revealed first of all through the very permanent Chariot He enters. He isn’t revealed through anyone else. ‘To be revealed’ means? To be born. When a child is born, it is said, was he revealed or concealed, became Avyakt (unmanifest)? [He] came out [of the mother’s womb], didn’t he? Yes.
So, it was said, I enter a male, I enter a soul, still what kind of a souls? All the souls are bhogi. All the souls who play a part in this world, who always play a part on [this] stage, they are certainly number wise, but are they bhogi (pleasure-seeker) or are they abhogtaa (non-pleasure seeker)? A to Z, everyone is a bhogi. Is the Father of the human world too a bhogi or is he abhogtaa? He too is a bhogi. Although I come, My promise is that the one in whom I come, I will make him equal to Me. So, what is He Himself? He is abhogtaa, isn’t He? He Himself is abhogtaa, so what will He make the one whom He enters too? Abhogtaa. What does abhogtaa mean? Which stage has to be attained from the [stage] of [being] a bhogi soul? The stage of an abhogtaa. What does abhogtaa mean? The example of a sage of Ahmedabad was given for him. What? He neither eats - to eat means to experience. Is he a bhogi or not? Nor does he drink and he doesn’t defecate either. Arey, he doesn’t experience any pleasure through the indriyaan (organs). So, what will he be called? Abhogtaa or bhogtaa? Abhogtaa. Just like when the Father Shiva also enters, whichever body He enters, whether it is the permanent Chariot or the non-permanent [i.e.] temporary Chariot, does He remain Abhogtaa or does He experience [pleasure] through the organs of the body He enters? Does He experience pleasure? He doesn’t.
So, it was said, “whomsoever I enter, the permanent Chariot, what will I make him first? I will make him an abhogta soul like Me.” So, when his soul becomes abhogtaa like Him, will it become 100% male or not? Or will any sanskaars of female remain [in him]? What does a female mean? Does a male have more power or does a female have more power? Who has more power of every kind, [i.e. the power] of the body as well as the mind? They [just] say, just like in today’s world they say, Indira Gandhi was very powerful. But was she [really] powerful or did the flatterers around her, yes, used to keep her under their influence? They kept her under their influence, didn’t they? Anyway, in the democratic government of today’s world, they do say through the mouth; what? That the status of both, the males and the females is equal, and the females should also have the authority and rights that the males want. Should they have them or not? Shouldn’t they? Arey, no matter how much and whatever they say, in any country where the democratic government is functioning, this very rule has been made for everyone that there should be equality between the males and females, except the Muslims. What? The Muslims means, the Islamic people. Which first dualistic religion comes first in this world after the Deity Religion? Islam. So, some trace of divinity will certainly come [in them], won’t it? Yes, it does.
So, it was said that the power of the male doesn’t exhaust. No human being, human soul can bring a change in it despite making effort; no matter how much someone works hard [for it]. Look at today’s government; though there are many mothers sitting on seats, very high seats, they have become ministers, Prime Minister, but do they get influenced or not? (Someone said something.) Yes. They are definitely influenced by the gentry around them. So, it was said that they just say, what? That the authority should be in the hands of the maidens and mothers. Arey, you have gathered so much history, in the history of 2500 years, have the males or the females been rulers? Arey, one or two like Razia Sultana were given. Was she able to keep the control? What? What kind of control? Was she able to take control of the organs, of her organs through the mind and intellect? No. She became subordinate and her rule couldn’t last long at all.
So, it was said that the first condition is, what? The task that no one in the world can do; what? To make a male into a female and a female into a male is the task of the Father. So, in order to make the male, the permanent Chariot into a female the Father has to teach this extensive knowledge. An example was given, wasn’t it? What? What example was given? The example of the sage from Ahmedabad was given. The desire of experiencing pleasure can never end in a female at all. And you all are females, you all are Sitas. One among them is the Father of the human world, so [He] selected that very one. He selected the Father of the human world himself and after selecting him He laid such sanskaars in him by teaching this knowledge; what? What do you too have to become? You have to assimilate such nature and sanskaars that there shouldn’t be any difference between the male and the female. A male has more power to face. Yes. And what about a female? Does she have more power to accommodate or more power to face? She has more power to accommodate. She has more power to tolerate. When the quality of the power of tolerance of the maidens and mothers come in him, the Father’s task of the household, of making the new world will begin. Or can it become before that? It can’t.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2957, दिनांक 30.07.2019
VCD 2957, dated 30.07.2019
रात्रि क्लास 01.12.1967
Night Class dated 01.12.1967
VCD-2957-extracts-Bilingual
समय- 00.01-20.45
Time- 00.01-20.45
रात्रि क्लास चल रहा था- 1.12.1967. पहले पेज के मध्यादि में बात चल रही थी विपरीत बुद्धि विनश्यंती। कौन? जो कहते हैं कि सर्वव्यापी है। ठिक्कर में है, भित्तर में है, कण-कण में है। वो विपरीत बुद्धि विनश्यंती। और वो फिर विनश्यंती अर्थात् नई दुनिया में नहीं जाय सकेंगे। ये सूर्यवंशी राजधानी में या विजयंती माला में माना विष्णु की माला में नहीं जाय सकेंगे। क्योंकि रुद्र की माला में विजय तो होती नहीं है। वैजयंती माला में विजय होती है। क्यों होती है? विष्णु की माला में विजय क्यों होती है? क्योंकि विष्णु की माला में कन्याओं-माताओं की संख्या बहुत है। स्वभाव-संस्कार से भी कन्याएं-माताएं। रुद्रमाला में? रुद्रमाला में स्वभाव-संस्कार से जन्म-जन्मान्तर के स्वभाव-संस्कार पुरुष वृत्ति के हैं। और ये द्वैतवादी द्वापरयुग से तो पुरुषों को बताय दिया; क्या? सब पुरुष दुर्योधन-दुःशासन हैं। तो उनकी विजय होगी? हो ही नहीं सकती। बाबा तो बताय दिया विश्व पर विजय कौन पाय सकते हैं? इन्द्रिय जीते जगतजीत। तो वो तो विश्व के विजय की बात हुई। बाकि जन्म-जन्मान्तर जो राजयोग से राजाई बाप आकर सिखाते हैं उस राजाई की प्राप्ति में विजयंती कौन होंगे? वो रुद्रमाला के जो भी रौद्र रूप, तामसी रूप धारण करने वाले; कौन? पुरुष वृत्ति के लोग हैं वो तो विजय नहीं पाय सकते जब तक विजय माला में एड न हों।
तो ऐसा किलियर लिखा हुआ होवे जो कोई भी समझ सके। तो बिल्कुल अर्थ राइट निकाला है इन बच्चों ने। अब ये नोट तो, हाँ, सब बातों का नोट, न समझें तो बाबा से फिर पूछ भी सकते हैं – बाबा, फिर से रिपीट करो। तो बाबा समझाएगा कि प्रीत बुद्धि विजयंती। अंत में कौन विजय पाएंगे? जो प्रीतिबुद्धि होंगे वो विजय पाएंगे। किससे प्रीतिबुद्धि? हँ? प्रीति किससे होती है? निराकार से या साकार शरीरधारी से प्रीति होती है? साकार शरीरधारी से प्रीति होती है। आत्मा सिर्फ अकेली वो तो निराकार; शरीर में प्रवेश न करे तो न कोई प्रीति होगी न कोई द्वेष होगा। हाँ। तो ये अर्थ है प्रीतिबुद्धि विजयते। पीछे नीचे में उनका अर्थ लिख देना चाहिए। अब ये जो अर्थ है ये ज़रूरी है लिखना। ये तो जहां प्रदर्शनी भी होती है या म्यूजियम है वहां बाबा कहते रहते हैं ना?
तो देखो ये भी याद आया कि ये भी वहां लिख देना चाहिए कि कोई भी समझ जाए क्योंकि तुम्हारा ये जो कोर्ट आफ आर्म्स है ना? हँ? क्या है कोर्ट आफ आर्म्स? उस गोर्मेन्ट का तो कोर्ट आफ आर्म्स है तीन शेर दिखाय दिये हैं, हँ, जंगल में रहने वाले। हाँ। तुम्हारा कोर्ट आफ आर्म है त्रिमूर्ति का, त्रिदेव का। और उस कोर्ट आफ आर्म्स के ऊपर लिखा हुआ है विनाशकाले विपरीतबुद्धि। तो फिर वो बिगड़ते हैं। क्योंकि ये तो कौरवों के लिए लिखते थे ना विनाशकाले विपरीतबुद्धि? तो भी बिगड़ते हैं। परन्तु नहीं। वो तो हैं ही कौरव और पांडव। पांडवों की तरफ साक्षात् स्वयं परमपिता परमात्मा। ऐसे लिखा हुआ है। वास्तव में वो परमपार्टधारी परमात्मा का पार्ट कृष्ण का नहीं है। लिखा ही है वो परमपिता परमात्मा। परमपिता माना जिसका और कोई पिता नहीं। वो सबका पिता है। और फिर बाद में परमात्मा। कैसी आत्मा? ऐसी परम पार्टधारी आत्मा, हीरो पार्टधारी कि उससे जास्ती और कोई पार्ट बजाने वाला, आलराउंड पार्टधारी सृष्टि रूपी रंगमंच के ड्रामा पर कोई हो ही नहीं सकता। तो उन्हीं की विजय होगी ना? हँ? और छोटी-मोटी विजय नहीं। विश्व विजय।
विश्व विजय करके दिखलावे चिल्लाते तो हैं। हँ? झंडा गान गाते हैं ना? हाँ। तो गाते हैं। विश्वविजय करके दिखलावे तब होवे प्रण पूर्ण हमारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा। अरे, कपड़े के झंडे ने कोई भी देश में विश्व विजय प्राप्त की है? आज तक हिस्ट्री में किसी ने की? हँ? ये तो झूठी बात हो गई। और शास्त्रों में लिखा हुआ है, हँ, शरीर को वस्त्र कहा जाता है। किसका वस्त्र? आत्मा का वस्त्र है। तो शरीर की बात नहीं है। क्या? कि सिर्फ शरीर की बात हो। नहीं। आत्मा प्लस ऐसी आत्मा जो ऐसा शरीर धारण करे जो कालों का काल महाकाल गाई हुई है जिसको कोई काल खा ही नहीं सकता। महाविनाश में भी उसको कोई काल खा ही नहीं सकता। तो उसके लिए गायन है। क्या? कि उसका न जन्म है, न मृत्यु है। न उसको किसी ने जन्म लेते देखा न उसकी किसी ने मृत्यु? मृत्यु देखी।
तो देखो, ये अक्षर लिखे हुए हैं ना? तो वो जो अक्षर हैं किलियर करके लिख दियो। क्योंकि तुम स्थापना तो ये कर रहे हो ना? तो स्थापना का अक्षर जब आते हैं कि दैवी धर्म की स्थापना। आसुरी हिंसक धर्म की स्थापना नहीं। हँ? हिंसा से कोई भी धर्म वाला या उसके फालोअर्स ने या धरमपिता ने विश्व पर विजय नहीं पाई। ये तो देवताएं ही हुए हैं; देवताएं कोई हिंसक थोड़ेही होते हैं? ये तो शास्त्रों में ऐसे ही दिखाय दिया है; क्या? कि हिंसा देवताएं भी करते थे। अरे, फिर देवताओं में और राक्षसों में क्या अंतर हुआ? तो ये स्वर्ग की स्थापना होती ही तब है जब देव आत्माएं आत्मिक स्थिति में टिक जाती हैं।
स्थापना ही का ही वहां से तो ऐसे निकालकरके ये जो चित्र हैं उनके ऊपर ले आना चाहिए। जैसे ये तीन मूर्ति है ना इसमें? इसमें स्थापना; किसके द्वारा? ये ब्रह्मा द्वारा स्थापना। ये ब्रह्मा के द्वारा ये स्थापना; कौनसे ब्रह्मा के द्वारा क्या स्थापना? अरे, ‘ये’ कहके किस तरफ इशारा किया? ‘ये’ माना ये जो बाजू में बैठे हैं इनके द्वारा स्थापना। काहे की स्थापना? हँ? अरे, ब्राह्मण धर्म की स्थापना। ब्रह्मा से कौन? ब्रह्मा से पैदा होते हैं ब्राह्मण। कहते हैं ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मणों ने जन्म लिया। तो वो तो समझते हैं कि कोई ब्रह्मा के मुख में मशीन रखी हुई थी तो ब्राह्मण बन-बन के निकल पड़े। अब ऐसी कोई बात नहीं है। ये तो परमपिता परमात्मा आकरके, प्रवेश करके ब्रह्मा के मुख से जो ज्ञान सुनाते हैं उस ज्ञान के आधार पर शूद्र से क्या बनाते? ब्राह्मण बनाते हैं। तो ऐसे इनके ऊपर भी आना चाहिए। हाँ, समझा ना? वो तो बाबा कहते हैं ना बड़े-बड़े चित्रों में लगाओ ये जो मुख्य बातें हैं। वहां नई दुनिया में।
और ये जरूर है जो कुछ भी करेंगे वो मिस्टेक्स तो जरूर निकलेगी। क्यों? ये भूलें, ये गल्तियां कब तक निकलती रहेंगी? तब तक निकलती रहेंगी जब तक तुम बच्चे संपूर्ण आत्मा नहीं बनेंगे। जब संपूर्ण आत्मा बन जाएंगे, आत्मिक स्थिति में पक्के हो जाएंगे तो फिर भूलें होना, मिस्टेक्स होना बंद हो जाएंगी। तो एक्यूरेट तो सभी बने नहीं हैं ना? इसलिए मिस्टेक्स जरूर निकलेंगी। और करेक्शन होती जाएगी।
ये जो भी बड़े-बड़े चित्र हैं, ये सभी जब करेक्शन होगी; अब ये करेक्ट नहीं हैं। सडसठ की वाणी है ना? ये जो चित्र हैं ये करेक्ट? करेक्ट नहीं। इधर मुरली में ही बोल दिया ना; क्या बोला? ये त्रिमूर्ति का चित्र है, यथार्थ नहीं है। तुम बच्चों को यथार्थ चित्र निकालना चाहिए। तो, तो बिगर करेक्शन के नहीं जाएगा। वो चेंज तो करना होगा लिखने में। या तो पता लगे ये मिस्टेक है इन चित्रों में तो इन्हें डिस्ट्राय कर देना चाहिए। क्या? त्रिमूर्ति के चित्र में अयथार्थ क्या है जो डिस्ट्राय कर देना पड़ेगा? क्या है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जो ब्रह्मा का चेहरा दिया हुआ है ना वो दाढ़ी-मूंछ वाला दिया है। हाँ। अब 33 करोड़ देवताओं में सबसे ऊँचे ते ऊंचे तीन देवताएं माने जाते हैं। तो वो देवताएं दाढ़ी-मूंछ वाले थोड़ेही होते हैं? दाढ़ी-मूंछ तो विकारी मनुष्यों को होती है। ढ़ाई हज़ार साल पहले से जो द्वापरयुग से ऋषि-मुनि आए द्वैतवादी द्वापरयुग से उन्होंने अपने, अपनी-अपनी अकल के अनुसार वो शास्त्र लिखे। और उन शास्त्रों में तो, बहुतों ने लिखे, तो मिक्सचर्टी तो होगी ना? अनेकों ने लिखे या एक ने? अनेकों ने लिखे। अब ज्ञान तो एक से आता है ना? ज्ञान माने? सच्चाई। तो सत्य तो एक ही है। बाकि तो सब? सब असत्य। गीता में लिखा है ना? नासते विद्यते भावो। मतलब जो असत्य है वो इस दुनिया में सदाकाल रह ही नहीं सकता। जो सत्य है वो इस दुनिया में वो आत्मा सदाकाल पार्ट बजाएगी। तो अभी-अभी बताया ना? कौन? वो ही कालों का काल महाकाल जिसे कहा जाता है; हाँ।
तो वो चित्र में, अभी जो त्रिमूर्ति का चित्र रखा हुआ है सन् 67 में, है ना, था ना, तो उसमें क्या गलत बात है? उसमें गलत बात है कि जो फीचर है विष्णु का और शंकर का वो कौनसा दिखाय दिया? दादा लेखराज ब्रह्मा का दिखाय दिया। हँ? तो उनके द्वारा होती है नई दुनिया की स्थापना? नहीं। उनके द्वारा तो सिर्फ ब्राह्मण की स्थापना होती है। वो भी अव्वल नंबर कुरी के नहीं कि सारे सूर्यवंशी ब्राह्मण हों। नहीं। मुख वंशावली हों। नहीं। कुख वंशावली ब्राह्मणों की नंबरवार अनेक कुरियों वाले जो दूसरे-दूसरे धर्मों में कन्वर्ट होते रहते हैं द्वापरयुग से; अरे, भारतवासी ही कन्वर्ट होते हैं? तो कोई दूसरे देश के कन्वर्ट होते हैं? नहीं। भारतवासी जो देवताएं थे वो ही देव आत्माएं द्वैतवादी द्वापरयुग से इब्राहिम के इस्लाम धर्म में, बुद्ध धर्म में, क्रिश्चियन धर्म में और उनके फालोअर्स के सहयोगी धर्मों में कन्वर्ट होती आई।
तो ये तो त्रिमूर्ति का चित्र जो वर्तमान में था, 67 में, वो तो झूठा हुआ ना? उसको सच्चा बनाना पड़े। क्या सच्चा बनाना पड़े? वो ओरिजिनल चित्र रखना चाहिए जो यज्ञ के आदि में थे। आदि में सो अंत में। वो ही आत्माएं फिर अंत में प्रत्यक्ष होंगी। भल शरीर चोला बदल जाएगा। क्या? ये रथ बदल जाएगा। वस्त्र बदल जाएगा। लेकिन आत्माएं तो वो ही होंगी ना? हाँ। तो जो भी वो आत्माएं होंगी और जो भी उनका संपन्न रूप का चोला होगा तो वो ही त्रिमूर्ति में देना पड़े। क्या? ब्रह्मा भी, विष्णु भी और शंकर भी।
A night class dated 1.12.1967 was being discussed. The topic being discussed in the mid-beginning of the first page was – vipreet buddhi vinashyanti (those whose intellect turns opposite to God are destroyed). Who? Those who say that He is omnipresent. He is in lumps of mud, in stones, in every particle. Those persons with an opposite intellect are destroyed. And they then are destroyed, i.e. they will not be able to go to the new world. They will not be able to go to the Suryavanshi capital or in the rosary of victory, i.e. the rosary of Vishnu. It is because victory is not achieved by the rosary of Rudra. Victory is achieved by the rosary of victory (Vaijayanti mala). Why is it achieved? Why is victory achieved by the rosary of Vishnu? It is because the number of virgins and mothers is more in the rosary of Vishnu. They are virgins and mothers even through their nature and sanskars. In the Rudramala? In the Rudramala, through their nature and sanskars, they have a male-attitude in nature and sanskars since many births. And from the dualist Copper Age, the men have been described as; what? All men are Duryodhans and Dushasans. But will they achieve victory? They cannot achieve at all. Baba has told as to who can achieve victory over the world? Those who conquer their organs will conquer the world. So, that is about the victory of the world. As regards the kingship of many births that the Father comes and teaches through rajyog, who will become victorious in achieving that kingship? All those who assume a fierce form, degraded form in the Rudramala; who? People with a male attitude cannot achieve victory unless they are added to the rosary of victory (Vijaymala).
So, it should be written in such a clear manner that anyone can understand. So, these children have made the completely right meaning to emerge. Well, to notethis, yes, if you note all the topics, if you don’t understand, then you can also ask Baba – Baba, please repeat. So, Baba will explain that preetbuddhi vijayanti (those who love God in their intellects achieve victory). Who will gain victory in the end? Those who love God in their intellects will achieve victory. Love in the intellect for whom? Hm? Whom does one love? Does one love the incorporeal or the corporeal bodily being? Love is for the corporeal bodily being. If the soul is alone, it is incorporeal; if it doesn’t enter in a body, then neither will there be love for anyone nor hatred for anyone. Yes. So, this is the meaning of preetibuddhi vijayate. Later, its meaning should be written below. Well, this meaning is necessary to be written. Wherever exhibitions are organized or wherever museums exist, Baba keeps on telling there, doesn’t He?
So, look, this also came to the mind that it should also be written there so that anyone could understand because this is your Court (Coat) of Arms, isn’t it? Hm? What is Court of Arms? In the Court of Arms of that government they have depicted three lions who live in the jungle (forest). Yes. Your Court of Arms is of Trimurti, of Tridev (the three deities). And it is written on that Court of Arms – Vinaashkaale vipreetbuddhi (those who have an intellect opposite to God at the time of destruction). So, then they become angry. It is because this ‘vinaashkaale vipreetbuddhi’ used to be written for the Kauravas, wasn’t it? However, they get angry. But no. They are indeed Kauravas and Pandavas. On the side of the Pandavas is the Supreme Father Supreme Soul Himself in practical. It is written like this. Actually, that part (role) of the actor playing the supreme part, the Supreme Soul is not of Krishna. It is written – Supreme Father Supreme Soul. Supreme Father means the one who doesn’t have any Father. He is everyone’s Father. And then later the Supreme Soul. What kind of a soul? Such soul playing the supreme part, such hero actor that there cannot be anyone else playing a part more than him, playing an allround part in the drama on the world stage at all. So, they alone will achieve victory, will they not? Hm? And not a small victory. World victory.
They do shout that it [the Indian tricolour flag] should conquer the world. Hm? They sing the flag hoisting song, don’t they? Yes. So, they sing. Our vow shall be fulfilled when it conquers the world; may our flag remain high. Arey, did the cloth flag in any country conquer the world? Did anyone conquer in the history till date? Hm? This is a false topic. And it has been written in the scriptures that the body is called cloth. Whose cloth? It is the cloth of the soul. So, it is not about the body. What? That it is just the topic of the body. No. Soul plus such a soul which assumes such a body which is sung as the ‘kaalon ka kaal mahaakaal’, who cannot be devoured by any death (kaal) at all. No death can devour him even in the mega-destruction (mahaavinaash). So, it is famous for him. What? That he neither has birth nor death. Neither did anyone see him getting birth nor did anyone see his death.
So, look, these words are written, aren’t they? So, write those words in a clear manner. It is because you are establishing this, aren’t you? So, when the word of establishment comes up that the establishment of the divine religion. Not the establishment of the demoniac violent religion. Hm? Person of no religion or its followers or its founder could conquer the world through violence. It was the deities alone; are deities violent? It has been just been depicted in the scriptures; what? That deities also used to indulge in violence. Arey, then what is the difference between the deities and the demons? So, heaven is established only when the deity souls become constant in soul conscious stage.
You should bring out that of establishment from there and bring it above these pictures. For example, there are the three personalities in this, aren’t they there? In it the establishment; through whom? Establishment through this Brahma. This establishment through this Brahma. What establishment through which Brahma? Arey, in which direction was a gesture made by uttering ‘this’? ‘This’ means the one who is sitting besides, establishment through him. Establishment of what? Hm? Arey, establishment of Brahmin religion. Who from Brahma? Brahmins are born from Brahma. It is said that the Brahmins got birth through the mouth of Brahma. So, they think that a machine must have been placed inside Brahma’s mouth; so, Brahmins emerged from it. Well, there is no such topic. It is the Supreme Father, Supreme Soul who comes and enters and the knowledge that He narrates through the mouth of Brahma, on the basis of that knowledge what does He make you from Shudra? He makes you Brahmins. So, similarly, you should come on this one also. Yes, you have understood, haven’t you? Baba says, doesn’t He that display these main topics in the big pictures? There in the new world.
And it is certain that whatever you do, mistakes will definitely occur. Why? How long will these mistakes, these errors keep on occurring? They will keep on occurring as long as you children don’t become a complete soul. When you become a complete soul, when you become firm in soul conscious stage, then the occurrence of errors, mistakes will stop. So, everyone has not become accurate, have they? This is why mistakes will definitely occur. And corrections will keep on taking place.
All these big pictures, when all these corrections take place; now they are not correct. It is a Vani dated sixty-seven, isn’t it? Are these pictures correct? They are not correct. It has been said here in the Murli itself, hasn’t it been? What has been said? This picture of Trimurti is not accurate. You children should bring out the accurate picture. So, so, it will not go without correction. You will have to change it in writing. Or when you come to know that this is the mistake in these pictures then they should be destroyed. What? What is inaccurate in the picture of Trimurti that you will have to destroy it? What is [the mistake in] it (Someone said something.) Yes, the face of Brahma that has been depicted, hasn’t it been? It has been depicted with beard and moustache. Yes. Well, three deities are considered to be highest of all among 33 crore deities. So, do those deities have beard and moustache? It is the vicious human beings who have beard and moustache. 2500 years ago, from the Copper Age onward the sages and saints who arrived from the dualist Copper Age, they wrote those scriptures as per their individual wisdom. And in those scriptures, when they were written by many, then mixturity will take place, will it not? Did many people write or did one person write? Many persons wrote. Well, knowledge comes from one, doesn’t it? What is meant by knowledge? Truth. So, truth is only one. All the rest? Everything [else] is untruth. It has been written in the Gita, hasn’t it been? Naasate vidyate bhavo. It means that untruth cannot remain in this world forever. The truth, that soul will play that part forever in this world. So, it was told just now, wasn’t it? Who? The same who is called ‘kaalon ka kaal Mahaakaal’. Yes.
So, in that picture, the picture of Trimurti that is placed now in 67; it is there, isn’t it? It was there, wasn’t it? So, what is the wrong thing in it? The wrong thing in that is that which feature of Vishnu and of Shankar has been depicted? The one of Dada Lekhraj Brahma has been depicted. Hm? So, does the establishment of the new world take place through him? No. Only the establishment of Brahmins takes place through him. That too not of the number one category that all will be Suryavanshi Brahmins. No. They will be mouth born progeny. No. Those belonging to numberwise different categories of womb-born Brahmins who convert to other religions from the Copper Age; arey, do the residents of India alone convert? So, do people of other countries convert? No. The residents of India who were deities, the same deity souls have been converting to Islam religion of Ibrahim, to Buddhist religion, to Christian religion and the helper religions of their followers from the dualist Copper Age.
So, this picture of Trimurti, which was in present, in 67, is false, isn’t it? It has to be made true. What should be made true? Those original pictures should be placed which existed in the beginning of the Yagya. Whatever was in the beginning will be in the end. The same souls will be revealed in the end again. Although the body-like dress will change. What? This Chariot will change. The dress will change. But the souls will be the same, will they not be? Yes. So, all those souls and whatever will be their body of the perfect form, so, that alone will have to be depicted in the Trimurti. What? Brahma also, Vishnu also and Shankar also.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2957, दिनांक 30.07.2019
VCD 2957, dated 30.07.2019
रात्रि क्लास 01.12.1967
Night Class dated 01.12.1967
VCD-2957-extracts-Bilingual
समय- 00.01-20.45
Time- 00.01-20.45
रात्रि क्लास चल रहा था- 1.12.1967. पहले पेज के मध्यादि में बात चल रही थी विपरीत बुद्धि विनश्यंती। कौन? जो कहते हैं कि सर्वव्यापी है। ठिक्कर में है, भित्तर में है, कण-कण में है। वो विपरीत बुद्धि विनश्यंती। और वो फिर विनश्यंती अर्थात् नई दुनिया में नहीं जाय सकेंगे। ये सूर्यवंशी राजधानी में या विजयंती माला में माना विष्णु की माला में नहीं जाय सकेंगे। क्योंकि रुद्र की माला में विजय तो होती नहीं है। वैजयंती माला में विजय होती है। क्यों होती है? विष्णु की माला में विजय क्यों होती है? क्योंकि विष्णु की माला में कन्याओं-माताओं की संख्या बहुत है। स्वभाव-संस्कार से भी कन्याएं-माताएं। रुद्रमाला में? रुद्रमाला में स्वभाव-संस्कार से जन्म-जन्मान्तर के स्वभाव-संस्कार पुरुष वृत्ति के हैं। और ये द्वैतवादी द्वापरयुग से तो पुरुषों को बताय दिया; क्या? सब पुरुष दुर्योधन-दुःशासन हैं। तो उनकी विजय होगी? हो ही नहीं सकती। बाबा तो बताय दिया विश्व पर विजय कौन पाय सकते हैं? इन्द्रिय जीते जगतजीत। तो वो तो विश्व के विजय की बात हुई। बाकि जन्म-जन्मान्तर जो राजयोग से राजाई बाप आकर सिखाते हैं उस राजाई की प्राप्ति में विजयंती कौन होंगे? वो रुद्रमाला के जो भी रौद्र रूप, तामसी रूप धारण करने वाले; कौन? पुरुष वृत्ति के लोग हैं वो तो विजय नहीं पाय सकते जब तक विजय माला में एड न हों।
तो ऐसा किलियर लिखा हुआ होवे जो कोई भी समझ सके। तो बिल्कुल अर्थ राइट निकाला है इन बच्चों ने। अब ये नोट तो, हाँ, सब बातों का नोट, न समझें तो बाबा से फिर पूछ भी सकते हैं – बाबा, फिर से रिपीट करो। तो बाबा समझाएगा कि प्रीत बुद्धि विजयंती। अंत में कौन विजय पाएंगे? जो प्रीतिबुद्धि होंगे वो विजय पाएंगे। किससे प्रीतिबुद्धि? हँ? प्रीति किससे होती है? निराकार से या साकार शरीरधारी से प्रीति होती है? साकार शरीरधारी से प्रीति होती है। आत्मा सिर्फ अकेली वो तो निराकार; शरीर में प्रवेश न करे तो न कोई प्रीति होगी न कोई द्वेष होगा। हाँ। तो ये अर्थ है प्रीतिबुद्धि विजयते। पीछे नीचे में उनका अर्थ लिख देना चाहिए। अब ये जो अर्थ है ये ज़रूरी है लिखना। ये तो जहां प्रदर्शनी भी होती है या म्यूजियम है वहां बाबा कहते रहते हैं ना?
तो देखो ये भी याद आया कि ये भी वहां लिख देना चाहिए कि कोई भी समझ जाए क्योंकि तुम्हारा ये जो कोर्ट आफ आर्म्स है ना? हँ? क्या है कोर्ट आफ आर्म्स? उस गोर्मेन्ट का तो कोर्ट आफ आर्म्स है तीन शेर दिखाय दिये हैं, हँ, जंगल में रहने वाले। हाँ। तुम्हारा कोर्ट आफ आर्म है त्रिमूर्ति का, त्रिदेव का। और उस कोर्ट आफ आर्म्स के ऊपर लिखा हुआ है विनाशकाले विपरीतबुद्धि। तो फिर वो बिगड़ते हैं। क्योंकि ये तो कौरवों के लिए लिखते थे ना विनाशकाले विपरीतबुद्धि? तो भी बिगड़ते हैं। परन्तु नहीं। वो तो हैं ही कौरव और पांडव। पांडवों की तरफ साक्षात् स्वयं परमपिता परमात्मा। ऐसे लिखा हुआ है। वास्तव में वो परमपार्टधारी परमात्मा का पार्ट कृष्ण का नहीं है। लिखा ही है वो परमपिता परमात्मा। परमपिता माना जिसका और कोई पिता नहीं। वो सबका पिता है। और फिर बाद में परमात्मा। कैसी आत्मा? ऐसी परम पार्टधारी आत्मा, हीरो पार्टधारी कि उससे जास्ती और कोई पार्ट बजाने वाला, आलराउंड पार्टधारी सृष्टि रूपी रंगमंच के ड्रामा पर कोई हो ही नहीं सकता। तो उन्हीं की विजय होगी ना? हँ? और छोटी-मोटी विजय नहीं। विश्व विजय।
विश्व विजय करके दिखलावे चिल्लाते तो हैं। हँ? झंडा गान गाते हैं ना? हाँ। तो गाते हैं। विश्वविजय करके दिखलावे तब होवे प्रण पूर्ण हमारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा। अरे, कपड़े के झंडे ने कोई भी देश में विश्व विजय प्राप्त की है? आज तक हिस्ट्री में किसी ने की? हँ? ये तो झूठी बात हो गई। और शास्त्रों में लिखा हुआ है, हँ, शरीर को वस्त्र कहा जाता है। किसका वस्त्र? आत्मा का वस्त्र है। तो शरीर की बात नहीं है। क्या? कि सिर्फ शरीर की बात हो। नहीं। आत्मा प्लस ऐसी आत्मा जो ऐसा शरीर धारण करे जो कालों का काल महाकाल गाई हुई है जिसको कोई काल खा ही नहीं सकता। महाविनाश में भी उसको कोई काल खा ही नहीं सकता। तो उसके लिए गायन है। क्या? कि उसका न जन्म है, न मृत्यु है। न उसको किसी ने जन्म लेते देखा न उसकी किसी ने मृत्यु? मृत्यु देखी।
तो देखो, ये अक्षर लिखे हुए हैं ना? तो वो जो अक्षर हैं किलियर करके लिख दियो। क्योंकि तुम स्थापना तो ये कर रहे हो ना? तो स्थापना का अक्षर जब आते हैं कि दैवी धर्म की स्थापना। आसुरी हिंसक धर्म की स्थापना नहीं। हँ? हिंसा से कोई भी धर्म वाला या उसके फालोअर्स ने या धरमपिता ने विश्व पर विजय नहीं पाई। ये तो देवताएं ही हुए हैं; देवताएं कोई हिंसक थोड़ेही होते हैं? ये तो शास्त्रों में ऐसे ही दिखाय दिया है; क्या? कि हिंसा देवताएं भी करते थे। अरे, फिर देवताओं में और राक्षसों में क्या अंतर हुआ? तो ये स्वर्ग की स्थापना होती ही तब है जब देव आत्माएं आत्मिक स्थिति में टिक जाती हैं।
स्थापना ही का ही वहां से तो ऐसे निकालकरके ये जो चित्र हैं उनके ऊपर ले आना चाहिए। जैसे ये तीन मूर्ति है ना इसमें? इसमें स्थापना; किसके द्वारा? ये ब्रह्मा द्वारा स्थापना। ये ब्रह्मा के द्वारा ये स्थापना; कौनसे ब्रह्मा के द्वारा क्या स्थापना? अरे, ‘ये’ कहके किस तरफ इशारा किया? ‘ये’ माना ये जो बाजू में बैठे हैं इनके द्वारा स्थापना। काहे की स्थापना? हँ? अरे, ब्राह्मण धर्म की स्थापना। ब्रह्मा से कौन? ब्रह्मा से पैदा होते हैं ब्राह्मण। कहते हैं ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मणों ने जन्म लिया। तो वो तो समझते हैं कि कोई ब्रह्मा के मुख में मशीन रखी हुई थी तो ब्राह्मण बन-बन के निकल पड़े। अब ऐसी कोई बात नहीं है। ये तो परमपिता परमात्मा आकरके, प्रवेश करके ब्रह्मा के मुख से जो ज्ञान सुनाते हैं उस ज्ञान के आधार पर शूद्र से क्या बनाते? ब्राह्मण बनाते हैं। तो ऐसे इनके ऊपर भी आना चाहिए। हाँ, समझा ना? वो तो बाबा कहते हैं ना बड़े-बड़े चित्रों में लगाओ ये जो मुख्य बातें हैं। वहां नई दुनिया में।
और ये जरूर है जो कुछ भी करेंगे वो मिस्टेक्स तो जरूर निकलेगी। क्यों? ये भूलें, ये गल्तियां कब तक निकलती रहेंगी? तब तक निकलती रहेंगी जब तक तुम बच्चे संपूर्ण आत्मा नहीं बनेंगे। जब संपूर्ण आत्मा बन जाएंगे, आत्मिक स्थिति में पक्के हो जाएंगे तो फिर भूलें होना, मिस्टेक्स होना बंद हो जाएंगी। तो एक्यूरेट तो सभी बने नहीं हैं ना? इसलिए मिस्टेक्स जरूर निकलेंगी। और करेक्शन होती जाएगी।
ये जो भी बड़े-बड़े चित्र हैं, ये सभी जब करेक्शन होगी; अब ये करेक्ट नहीं हैं। सडसठ की वाणी है ना? ये जो चित्र हैं ये करेक्ट? करेक्ट नहीं। इधर मुरली में ही बोल दिया ना; क्या बोला? ये त्रिमूर्ति का चित्र है, यथार्थ नहीं है। तुम बच्चों को यथार्थ चित्र निकालना चाहिए। तो, तो बिगर करेक्शन के नहीं जाएगा। वो चेंज तो करना होगा लिखने में। या तो पता लगे ये मिस्टेक है इन चित्रों में तो इन्हें डिस्ट्राय कर देना चाहिए। क्या? त्रिमूर्ति के चित्र में अयथार्थ क्या है जो डिस्ट्राय कर देना पड़ेगा? क्या है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जो ब्रह्मा का चेहरा दिया हुआ है ना वो दाढ़ी-मूंछ वाला दिया है। हाँ। अब 33 करोड़ देवताओं में सबसे ऊँचे ते ऊंचे तीन देवताएं माने जाते हैं। तो वो देवताएं दाढ़ी-मूंछ वाले थोड़ेही होते हैं? दाढ़ी-मूंछ तो विकारी मनुष्यों को होती है। ढ़ाई हज़ार साल पहले से जो द्वापरयुग से ऋषि-मुनि आए द्वैतवादी द्वापरयुग से उन्होंने अपने, अपनी-अपनी अकल के अनुसार वो शास्त्र लिखे। और उन शास्त्रों में तो, बहुतों ने लिखे, तो मिक्सचर्टी तो होगी ना? अनेकों ने लिखे या एक ने? अनेकों ने लिखे। अब ज्ञान तो एक से आता है ना? ज्ञान माने? सच्चाई। तो सत्य तो एक ही है। बाकि तो सब? सब असत्य। गीता में लिखा है ना? नासते विद्यते भावो। मतलब जो असत्य है वो इस दुनिया में सदाकाल रह ही नहीं सकता। जो सत्य है वो इस दुनिया में वो आत्मा सदाकाल पार्ट बजाएगी। तो अभी-अभी बताया ना? कौन? वो ही कालों का काल महाकाल जिसे कहा जाता है; हाँ।
तो वो चित्र में, अभी जो त्रिमूर्ति का चित्र रखा हुआ है सन् 67 में, है ना, था ना, तो उसमें क्या गलत बात है? उसमें गलत बात है कि जो फीचर है विष्णु का और शंकर का वो कौनसा दिखाय दिया? दादा लेखराज ब्रह्मा का दिखाय दिया। हँ? तो उनके द्वारा होती है नई दुनिया की स्थापना? नहीं। उनके द्वारा तो सिर्फ ब्राह्मण की स्थापना होती है। वो भी अव्वल नंबर कुरी के नहीं कि सारे सूर्यवंशी ब्राह्मण हों। नहीं। मुख वंशावली हों। नहीं। कुख वंशावली ब्राह्मणों की नंबरवार अनेक कुरियों वाले जो दूसरे-दूसरे धर्मों में कन्वर्ट होते रहते हैं द्वापरयुग से; अरे, भारतवासी ही कन्वर्ट होते हैं? तो कोई दूसरे देश के कन्वर्ट होते हैं? नहीं। भारतवासी जो देवताएं थे वो ही देव आत्माएं द्वैतवादी द्वापरयुग से इब्राहिम के इस्लाम धर्म में, बुद्ध धर्म में, क्रिश्चियन धर्म में और उनके फालोअर्स के सहयोगी धर्मों में कन्वर्ट होती आई।
तो ये तो त्रिमूर्ति का चित्र जो वर्तमान में था, 67 में, वो तो झूठा हुआ ना? उसको सच्चा बनाना पड़े। क्या सच्चा बनाना पड़े? वो ओरिजिनल चित्र रखना चाहिए जो यज्ञ के आदि में थे। आदि में सो अंत में। वो ही आत्माएं फिर अंत में प्रत्यक्ष होंगी। भल शरीर चोला बदल जाएगा। क्या? ये रथ बदल जाएगा। वस्त्र बदल जाएगा। लेकिन आत्माएं तो वो ही होंगी ना? हाँ। तो जो भी वो आत्माएं होंगी और जो भी उनका संपन्न रूप का चोला होगा तो वो ही त्रिमूर्ति में देना पड़े। क्या? ब्रह्मा भी, विष्णु भी और शंकर भी।
A night class dated 1.12.1967 was being discussed. The topic being discussed in the mid-beginning of the first page was – vipreet buddhi vinashyanti (those whose intellect turns opposite to God are destroyed). Who? Those who say that He is omnipresent. He is in lumps of mud, in stones, in every particle. Those persons with an opposite intellect are destroyed. And they then are destroyed, i.e. they will not be able to go to the new world. They will not be able to go to the Suryavanshi capital or in the rosary of victory, i.e. the rosary of Vishnu. It is because victory is not achieved by the rosary of Rudra. Victory is achieved by the rosary of victory (Vaijayanti mala). Why is it achieved? Why is victory achieved by the rosary of Vishnu? It is because the number of virgins and mothers is more in the rosary of Vishnu. They are virgins and mothers even through their nature and sanskars. In the Rudramala? In the Rudramala, through their nature and sanskars, they have a male-attitude in nature and sanskars since many births. And from the dualist Copper Age, the men have been described as; what? All men are Duryodhans and Dushasans. But will they achieve victory? They cannot achieve at all. Baba has told as to who can achieve victory over the world? Those who conquer their organs will conquer the world. So, that is about the victory of the world. As regards the kingship of many births that the Father comes and teaches through rajyog, who will become victorious in achieving that kingship? All those who assume a fierce form, degraded form in the Rudramala; who? People with a male attitude cannot achieve victory unless they are added to the rosary of victory (Vijaymala).
So, it should be written in such a clear manner that anyone can understand. So, these children have made the completely right meaning to emerge. Well, to notethis, yes, if you note all the topics, if you don’t understand, then you can also ask Baba – Baba, please repeat. So, Baba will explain that preetbuddhi vijayanti (those who love God in their intellects achieve victory). Who will gain victory in the end? Those who love God in their intellects will achieve victory. Love in the intellect for whom? Hm? Whom does one love? Does one love the incorporeal or the corporeal bodily being? Love is for the corporeal bodily being. If the soul is alone, it is incorporeal; if it doesn’t enter in a body, then neither will there be love for anyone nor hatred for anyone. Yes. So, this is the meaning of preetibuddhi vijayate. Later, its meaning should be written below. Well, this meaning is necessary to be written. Wherever exhibitions are organized or wherever museums exist, Baba keeps on telling there, doesn’t He?
So, look, this also came to the mind that it should also be written there so that anyone could understand because this is your Court (Coat) of Arms, isn’t it? Hm? What is Court of Arms? In the Court of Arms of that government they have depicted three lions who live in the jungle (forest). Yes. Your Court of Arms is of Trimurti, of Tridev (the three deities). And it is written on that Court of Arms – Vinaashkaale vipreetbuddhi (those who have an intellect opposite to God at the time of destruction). So, then they become angry. It is because this ‘vinaashkaale vipreetbuddhi’ used to be written for the Kauravas, wasn’t it? However, they get angry. But no. They are indeed Kauravas and Pandavas. On the side of the Pandavas is the Supreme Father Supreme Soul Himself in practical. It is written like this. Actually, that part (role) of the actor playing the supreme part, the Supreme Soul is not of Krishna. It is written – Supreme Father Supreme Soul. Supreme Father means the one who doesn’t have any Father. He is everyone’s Father. And then later the Supreme Soul. What kind of a soul? Such soul playing the supreme part, such hero actor that there cannot be anyone else playing a part more than him, playing an allround part in the drama on the world stage at all. So, they alone will achieve victory, will they not? Hm? And not a small victory. World victory.
They do shout that it [the Indian tricolour flag] should conquer the world. Hm? They sing the flag hoisting song, don’t they? Yes. So, they sing. Our vow shall be fulfilled when it conquers the world; may our flag remain high. Arey, did the cloth flag in any country conquer the world? Did anyone conquer in the history till date? Hm? This is a false topic. And it has been written in the scriptures that the body is called cloth. Whose cloth? It is the cloth of the soul. So, it is not about the body. What? That it is just the topic of the body. No. Soul plus such a soul which assumes such a body which is sung as the ‘kaalon ka kaal mahaakaal’, who cannot be devoured by any death (kaal) at all. No death can devour him even in the mega-destruction (mahaavinaash). So, it is famous for him. What? That he neither has birth nor death. Neither did anyone see him getting birth nor did anyone see his death.
So, look, these words are written, aren’t they? So, write those words in a clear manner. It is because you are establishing this, aren’t you? So, when the word of establishment comes up that the establishment of the divine religion. Not the establishment of the demoniac violent religion. Hm? Person of no religion or its followers or its founder could conquer the world through violence. It was the deities alone; are deities violent? It has been just been depicted in the scriptures; what? That deities also used to indulge in violence. Arey, then what is the difference between the deities and the demons? So, heaven is established only when the deity souls become constant in soul conscious stage.
You should bring out that of establishment from there and bring it above these pictures. For example, there are the three personalities in this, aren’t they there? In it the establishment; through whom? Establishment through this Brahma. This establishment through this Brahma. What establishment through which Brahma? Arey, in which direction was a gesture made by uttering ‘this’? ‘This’ means the one who is sitting besides, establishment through him. Establishment of what? Hm? Arey, establishment of Brahmin religion. Who from Brahma? Brahmins are born from Brahma. It is said that the Brahmins got birth through the mouth of Brahma. So, they think that a machine must have been placed inside Brahma’s mouth; so, Brahmins emerged from it. Well, there is no such topic. It is the Supreme Father, Supreme Soul who comes and enters and the knowledge that He narrates through the mouth of Brahma, on the basis of that knowledge what does He make you from Shudra? He makes you Brahmins. So, similarly, you should come on this one also. Yes, you have understood, haven’t you? Baba says, doesn’t He that display these main topics in the big pictures? There in the new world.
And it is certain that whatever you do, mistakes will definitely occur. Why? How long will these mistakes, these errors keep on occurring? They will keep on occurring as long as you children don’t become a complete soul. When you become a complete soul, when you become firm in soul conscious stage, then the occurrence of errors, mistakes will stop. So, everyone has not become accurate, have they? This is why mistakes will definitely occur. And corrections will keep on taking place.
All these big pictures, when all these corrections take place; now they are not correct. It is a Vani dated sixty-seven, isn’t it? Are these pictures correct? They are not correct. It has been said here in the Murli itself, hasn’t it been? What has been said? This picture of Trimurti is not accurate. You children should bring out the accurate picture. So, so, it will not go without correction. You will have to change it in writing. Or when you come to know that this is the mistake in these pictures then they should be destroyed. What? What is inaccurate in the picture of Trimurti that you will have to destroy it? What is [the mistake in] it (Someone said something.) Yes, the face of Brahma that has been depicted, hasn’t it been? It has been depicted with beard and moustache. Yes. Well, three deities are considered to be highest of all among 33 crore deities. So, do those deities have beard and moustache? It is the vicious human beings who have beard and moustache. 2500 years ago, from the Copper Age onward the sages and saints who arrived from the dualist Copper Age, they wrote those scriptures as per their individual wisdom. And in those scriptures, when they were written by many, then mixturity will take place, will it not? Did many people write or did one person write? Many persons wrote. Well, knowledge comes from one, doesn’t it? What is meant by knowledge? Truth. So, truth is only one. All the rest? Everything [else] is untruth. It has been written in the Gita, hasn’t it been? Naasate vidyate bhavo. It means that untruth cannot remain in this world forever. The truth, that soul will play that part forever in this world. So, it was told just now, wasn’t it? Who? The same who is called ‘kaalon ka kaal Mahaakaal’. Yes.
So, in that picture, the picture of Trimurti that is placed now in 67; it is there, isn’t it? It was there, wasn’t it? So, what is the wrong thing in it? The wrong thing in that is that which feature of Vishnu and of Shankar has been depicted? The one of Dada Lekhraj Brahma has been depicted. Hm? So, does the establishment of the new world take place through him? No. Only the establishment of Brahmins takes place through him. That too not of the number one category that all will be Suryavanshi Brahmins. No. They will be mouth born progeny. No. Those belonging to numberwise different categories of womb-born Brahmins who convert to other religions from the Copper Age; arey, do the residents of India alone convert? So, do people of other countries convert? No. The residents of India who were deities, the same deity souls have been converting to Islam religion of Ibrahim, to Buddhist religion, to Christian religion and the helper religions of their followers from the dualist Copper Age.
So, this picture of Trimurti, which was in present, in 67, is false, isn’t it? It has to be made true. What should be made true? Those original pictures should be placed which existed in the beginning of the Yagya. Whatever was in the beginning will be in the end. The same souls will be revealed in the end again. Although the body-like dress will change. What? This Chariot will change. The dress will change. But the souls will be the same, will they not be? Yes. So, all those souls and whatever will be their body of the perfect form, so, that alone will have to be depicted in the Trimurti. What? Brahma also, Vishnu also and Shankar also.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
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शिवबाबा की मुरली
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VCD 2958, dated 31.07.2019
रात्रि क्लास 01.12.1967
Night Class dated 01.12.1967
VCD-2958-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.55
Time- 00.01-15.55
रात्रि क्लास चल रहा था – 1 दिसम्बर, 1967. दूसरे पेज के मध्य में बात चल रही थी कि जो भी भक्ति करते हैं सो भगत हैं। वो देवताओं की भक्ति करते हैं। या शिव की भक्ति करते हैं। हाँ, तो वो भगत हैं। भले पूजा करते हैं और अपनी पूजा दूसरों से कराते भी हैं। लेकिन उनको ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे। परन्तु शिव से जो प्रैक्टिकल में सन्मुख बैठ ज्ञान सुनते हैं तो ज्ञानी तू आत्मा बन जाते हैं। तो वो तो एम आब्जेक्ट रहती है। क्या? कि शिव भगवान किसे पसन्द करते हैं? भक्तों को? पुजारियों को? हँ? आधीन रहने वालों को या स्वाधीन को? ज्ञानी को पसन्द करते हैं। ज्ञानी प्रभु विशेष प्यारा। तो जो बाबा समझाया ना कि शिवबाबा द्वारा ब्रह्मा; ब्रह्मा द्वारा शिव से ये पद मिलता है। किसके द्वारा? ब्रह्मा द्वारा। क्या पद मिलता है? हँ? ये लक्ष्मी-नारायण की तरफ इशारा किया। ये पद मिलता है। ब्रह्मा ने तो शरीर छोड़ दिया। अब ‘द्वारा’ ही नहीं रहा तो क्या भूत-प्रेतों से मिलेगा? हँ? भूत-प्रेतों से भूत-प्रेत का वर्सा मिलेगा या देवी-देवता का वर्सा मिलेगा? देवी-देवताओं को भूत-प्रेत थोड़ेही कहा जाता है? देवी-देवताओं की तो पूजा होती है। मन्दिर बना के बाकायदा पूजा होती है। हँ? भूत-प्रेतों की पूजा होती है क्या? हँ? हाँ, होती तो है। दूसरे धरम वाले करते हैं। विदेशी भूत-प्रेतों को, फरिश्तों को मानते हैं या नहीं मानते हैं सूक्षम शरीरधारियों को? मानते हैं।
तो जिस ब्रह्मा के द्वारा ये पद मिलता है लक्ष्मी-नारायण या लक्ष्मी-नारायण जैसा बनने का पद मिलता है वो ब्रह्मा कौन है? हँ? चार मुखों वाला ब्रह्मा है या चार मुखों में से कोई भी मुख वाला ब्रह्मा है; है? अरे? ये ही पता नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) परमब्रह्म, हाँ। इन चार मुखों वालों से भी कोई बड़ा ब्रह्मा है जिसे कहते हैं परमब्रह्म। शास्त्रों में लिखा हुआ भी है - गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः। वो तो साक्षात् है। साक्षात् माने? इन आँखों से देखा जा सकता है। वो चार मुखों वाला ब्रह्मा जिसने चार मुखों को संगठित कर लिया, अपने कंट्रोल में कर लिया, वो तो सूक्षम शरीरधारी हो गया। देखने में तो आता है? हँ? देखने में नहीं आता। तो जिस ब्रह्मा के द्वारा ये पद मिलता है लक्ष्मी-नारायण का वो ब्रह्मा परमब्रह्म हुआ।
तो जितने तुम्हारे ये सेन्टर्स बड़े-बड़े बनेंगे इतना फिर किस ऐसे नहीं जैसे शंकराचार्य ने किया। उनको उड़ाय दियो। ये जाओ, हँ, देखो कोई ने पत्थर मार दिया। हँ? पीछे पत्थर-वत्थर कोई भी नहीं मारेंगे। कब? जब उस परमब्रह्म के द्वारा क्या होगा? ये वर्सा प्रत्यक्ष संसार में हो जाएगा। वो सन्यासियों ने पत्थर-वत्थर मारे ना? हाँ। तो जितने ये तुम्हारे बड़े-बड़े सेन्टर्स बनेंगे वो पीछे अगर कोई उनको पत्थर मार करके नुकसान कर देवे, हँ, तो फिर उनसे ये नुकसान का भी उजूरा लिया जा सकता है। बाइ चान्स न समझे, अज्ञानी हो और बेसमझी में ऐसा कर दिया तो क्या होगा? उससे उजूरा लिया जाएगा। हाँ। दंड भुगतना पड़ेगा। चलो सन्यासियों को तो अभी कोई दंड नहीं भुगतना पड़ा। भुगतना पड़ा? हाँ, पत्थर मारके तुम्हारी प्रदर्शनी के चित्र भी तोड़ देते हैं।
तो ये कौनसा ब्रह्मा हुआ? हँ? या तो कहो परमब्रह्म या उसी को कहो प्रजापिता ब्रह्मा। तो वो जो प्रजापिता ब्रह्माकुमारियों का ये श्री-श्री 108 जगदगुरुओं के ऊपर केस चलेगा। क्या? हाँ। ये ब्रह्मा में इतनी ताकत नहीं थी जो केस चलाय सके। हाँ। समझा ना? ये हो सकता है। और वो बात बिल्कुल किलियर है। अखबारों में बिल्कुल किलियर करो कि गीता का भगवान श्री कृष्ण नहीं है। जो ये विद्वान, पंडित, आचार्य, सन्यासी लोग माने बैठे हैं। क्या? क्या कहते हैं? गीता का भगवान, हँ, छोटा सा बच्चा जिसको कृष्ण के मन्दिर में पूजते हैं; मन्दिर में छोटा बच्चा रखा हुआ है ना? उसको गीता का भगवान बनाय दिया। अरे, गीता में तो राजयोग की बात है ना? हँ? राज़ भरा हुआ है। उन राज़ की बातों को बच्चा समझाएगा? वो कहां से गीता का भगवान हो गया? हँ? बिल्कुल अखबारों में किलियर करो कि गीता का भगवान कृष्ण नहीं है। हँ? जैसा लिखा हुआ है ना कि श्री कृष्ण पूरा जन्म 84 लेता है। हँ? जैसे देवात्माएं 84 जन्म लेती हैं। मनुष्यात्माएं भी 84 जन्म लेती हैं। मनुष्य सुधरते हैं तो देवता बनते हैं। बिगड़ते हैं तो राक्षस भी बन जाते हैं। हँ? हाँ। तो वो राक्षस भी ऐसे होते हैं कोई-कोई जो 84 जन्म लेते हैं या नहीं लेते हैं? लेते हैं।
एकदम फ्रम चाइल्डहुड पुनर्जन्म लेते हैं ये कृष्ण। क्या? और जो बाप हैं, जो सर्व का सद्गतिदाता है, 500-700 करोड़ जो भी मनुष्य मात्र इस सृष्टि पर विनाशकाल में होंगे, उन सबका सद्गति दाता। क्या? किसी को छोड़ेगा? नहीं। सबकी सद्गति करेगा। सबकी सद्गति करेगा? क्या? सद्गति माने? अरे, देह के साथ सद्गति कि बिना देह के साथ सद्गति? अच्छा? तो 500-700 करोड़ की जो वर्तमान में विनाशकाल में देह होगी उसके साथ सद्गति होगी? वो तो नहीं होगी? हाँ, वो नहीं होगी। लेकिन कम से कम, हाँ, इस 84 के चक्र में, एक जनम उनको जरूर ऐसा मिलेगा जिसमें उनको देह में रहते हुए भी देह के सुख भोगेंगे, दुख नहीं भोगेंगे। ऐसी सद्गति जरूर होगी। तो ये सर्व का सद्गति दाता हुआ ना? हाँ। वो सर्व का सद्गति दाता पुनर्जन्म में नहीं आते हैं। हाँ। जैसे लिखा हुआ है।
और बड़े अक्षरों में एकदम क्लीयर करके लिखो। क्या? कल बताया ना बड़े-बड़े चित्र बनाओ दीवाल इतने ऊँचे जो सड़क में आने-जाने वालों को किलियर दिखाई पड़े लिखत भी। हाँ। ऊँचे-ऊँचे मकान होते हैं ना, बड़ी-बड़ी उनकी दीवालें होती हैं। तो उनमें वो ये चित्र जो बाबा ने बनाए हैं, बनवाए ना साक्षात्कार से, ये बड़े-बड़े करके बनाओ। बड़ी-बड़ी लिखत हो। हाँ। तो बड़े अक्षरों में एकदम बनाकरके क्योंकि इन्हीं अक्षर के ऊपर इन्होंने कुछ बोला है ये कुछ कि ये-3 ब्रह्माकुमारियां ऐसे-ऐसे कहती हैं।
और फिर जो पूजा करते हैं; किसकी भी पूजा करते हैं; तो अव्यभिचारी पूजा करते हैं कि व्यभिचारी पूजा करते हैं? क्या कहेंगे? अव्यभिचारी शिवबाबा से व्यभिचारी पांच तत्व से करते हैं। किससे करते हैं? पूजा किसकी करते हैं? कहेंगे मन्दिर में जड़ पत्थर रखा हुआ है। या तो मूर्ति रूप में या लिंग रूप में। उसकी पूजा करते हैं। अरे, तो क्या चैतन्य रूप में किसी की पूजा नहीं करते? नहीं करते हैं? किसकी? वो देवताओं को तो मानती नहीं सन्यासी। देवताओं की तो पूजा नहीं करते। लक्ष्मी-नारायण की पूजा नहीं करेंगे। चैतन्य में किसकी पूजा करते हैं? कन्याओं की पूजा करते हैं। करते हैं कि नहीं? साल में दो बार तो कम से कम जरूर करते हैं क्योंकि कन्याएं पवित्र होती हैं। अच्छा? तो सदाकाल किसी की चैतन्य की पूजा नहीं करते हैं? अरे, व्यभिचारी हैं कि नहीं हैं? चलो, कन्याओं की पूजा करते हैं। वो तो अल्पकाल की हुई। (किसी ने कुछ कहा।) ज? जगदम्बा की पूजा? जगदम्बा यहां कहां धरी है इस दुनिया में कलियुग में? अरे, व्यभिचारी-अव्यभिचारी प्रैक्टिकल में कहा जाएगा या प्रैक्टिकल में है ही नहीं तो व्यभिचारी-अव्यभिचारी कहा जाएगा? कोई चैतन्य की पूजा नहीं करते, एक जड़ शिवलिंग या जड़ मूर्ति के अलावा, शंकर की मूर्ति के अलावा? करते हैं या नहीं करते हैं? किसकी? कौनसे चैतन्य की पूजा करते हैं? अरे? किसकी करते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) नदी की? नदी चैतन्य है? लो? नदी जड़ जल उसमें बह रहा है कि नदी चैतन्य हो गई? अरे? कोई जवाब नहीं? अरे, अपने गुरु की पूजा करते हैं कि नहीं? सन्यासी जिसको अपना गुरु बनाते हैं उसकी पूजा करते हैं कि नहीं? हाँ, पूजा करते हैं। तो देखो, फिर व्यभिचारी कहें कि अव्यभिचारी कहें? जड़ पत्थर की भी पूजा करते और फिर चैतन्य की भी पूजा करते।
और तुम बच्चे? जड़ की पूजा करते हो? नहीं करते। चैतन्य की अनेकों की पूजा करते हो? नहीं करते। तो अव्यभिचारी हुए कि व्यभिचारी हुए? हँ? अव्यभिचारी हुए। तो अव्यभिचारी पांच तत्व से जो पूज्य नहीं कहलाय सकते हैं। और पूज्य सिर्फ नई दुनिया में होते हैं। क्या? पूजने योग्य। और पुजारी पुरानी दुनिया में होते हैं। ऐसे-ऐसे प्वाइंट्स देखो बैठकरके अपनी-अपनी बुद्धि में से निकाल करके वो नए-नए प्वाइंट्स नोट करके और पीछे कोई वक्त में अखबारों में भी डाल सकते हो।
A night class dated 1st December 1967 was being discussed. The topic being discussed in the middle of the second page was that whoever does Bhakti is a Bhagat (devotee). They do the Bhakti of deities. Or they do the Bhakti of Shiv. Yes, so they are Bhagat. Although they worship and also make others worship themselves. Yet, they will not be called knowledgeable souls. But those who sit and listen to knowledge face to face in practical from Shiv, they become knowledgeable souls. So, that aim-object exists. What? Whom does God Shiv like? The devotees? The worshippers? Hm? Those who remain slaves or those who remain independent? He likes the knowledgeable one. Gyaani prabhu vishesh pyara (the knowledgeable one is especially dear to God). So, Baba explained, didn’t He that ShivBaba through Brahma; You get this post from Shiv through Brahma. Through whom? Through Brahma. What post do you get? Hm? A gesture was made towards this Lakshmi-Narayan. You get this post. Brahma left his body. Well, when ‘through’ (the media, i.e. Brahma) himself did not survive, then will you get it through ghosts and devils? Hm? Will you get the inheritance of ghosts and devils through ghosts and devils or will you get the inheritance of devi-devta (deities)? Are deities called ghosts and devils? Deities are worshipped. They are worshipped as per rules by building temples. Hm? Are ghosts and devils worshipped? Hm? Yes, they are indeed worshipped. People of the other religions worship. Do the foreigners believe in the ghosts and devils, angels, the subtle-bodied souls or not? They do believe.
So, the Brahma through whom this post is obtained, the post of Lakshmi-Narayan or the post of becoming like Lakshmi-Narayan is obtained, who is that Brahma? Hm? Be it the four-headed Brahma or be it the Brahma with any head among the four heads; is he? Arey? Don’t you know this itself? (Someone said something.) Parambrahm, yes. There is a Brahma who is senior to these four heads, who is called Parambrahm. It has been written in the scriptures also – Gururbrahma, Gururvishnu, Gururdevo Maheshwarah. Gurursaakshaat Parambrahm tasmai shri Guruve namah. He is in practical (saakshaat). What is meant by saakshaat? He can be seen through these eyes. That four headed Brahma, who gathered the four heads, brought them under his control, he is the subtle-bodied one. Is he visible? Hm? He is not visible. So, the Brahma through whom this post of Lakshmi-Narayan is obtained, that Brahma is Parambrahm.
So, the more your centers become bigger, then it’s not as if the Shankaracharya did. Make him vanish. Go, hm, look, someone hit with a stone. Hm? Later nobody will hit with a stone. When? When what will take place through that Parambrahm? This inheritance will be revealed in the world. Those Sanyasis hit with stones, etc. didn’t they? Yes. So, the bigger your centers become, then if anyone damages them by hitting with a stone, then the cost of damage can be collected from them. By chance they don’t understand, if he is ignorant and does this out of ignorance, then what will happen? The cost of damage will be collected from him. Yes. He will have to suffer punishment. Okay, the Sanyasis didn’t have to suffer any punishments now. Did they have to suffer? Yes, they break the pictures of your exhibition also by hitting them with stones.
So, which Brahma is this? Either call him Parambrahm or call him Prajapita Brahma. So, a case will be filed against these Shri Shri 108 Jagadgurus by those Prajapita Brahmakumaris. What? Yes. This Brahma did not have that much strength to file a case. Yes. You have understood, haven’t you? This can be possible. And that topic is absolutely clear. Make it very clear in the newspapers that the God of Gita is not Shri Krishna which these scholars, pundits, teachers, sanyasis have believed. What? What do they say? The God of Gita is a small child who is worshipped in the temples of Krishna; a small child has been placed in the temple, hasn’t he been? He has been made the God of Gita. Arey, there is a topic of rajyog in the Gita, isn’t it? Hm? There is secret contained in it. Will a child explain the topics of secret? How can he be the God of Gita? Hm? Make it very clear in the newspapers that God of Gita is not Krishna. Hm? For example, it has been written, hasn’t it been that Shri Krishna gets complete 84 births. Hm? Just as the deity souls get 84 births. The human souls also definitely get 84 births. When the human beings reform, they become deities. When they spoil, they become demons as well. Hm? Yes. So, are some of those demons also such that they get 84 births or not? They get.
This Krishna gets rebirth from the very childhood. What? And the Father, the one who is the bestower of true salvation upon everyone, bestower of true salvation upon all the 500-700 crore human beings who exist in this world during the period of destruction. What? Will He leave anyone? No. He will cause the true salvation of everyone. Will He cause the true salvation of everyone? What? What is meant by true salvation (Sadgati)? Arey, Sadgati with the body or Sadgati without the body? Achcha? So, will the 500-700 crores who will have a body at present in the period of destruction, will they get Sadgati with that [body]? Will that not happen? Yes, that will not happen. But at least, yes, in this cycle of 84, they will definitely get one such birth in which despite living in the body, they will enjoy the pleasures of the body, they will not suffer sorrows. They will definitely experience such Sadgati. So, this one is the bestower of true salvation upon everyone, isn’t he? Yes. That bestower of true salvation upon everyone doesn’t get rebirth. Yes. Just as it has been written.
And write very clearly in big letters. What? It was told yesterday, wasn’t it that make big pictures of the size of the walls so that the write-up is clearly visible even to those walking on the roads. Yes. There are high rise buildings, aren’t they there? They have big walls. So, on them, these pictures that Baba has prepared; He has got them prepared through visions, hasn’t He? Make them very big in size. The words should be big. Yes. So, make them in big alphabets because on these very words they have spoken something that these, these, these Brahmakumaris say like this.
And then those who worship; whomsoever they worship; So, do they worship in a non-adulterous (avyabhichaari) way or do they worship in an adulterous (vyabhichari) manner? What would you say? Do they worship avyabhichari ShivBaba or the vyabhichari five elements? Whom do they worship? Whom do they worship? It will be said that a non-living stone has been placed in the temple. Either in an idol form or in a ling-form. They worship it. Arey, so, don’t they worship anyone in a living form? Don’t they? Whom? Those sanyasis don’t believe in the deities. They do not worship the deities. They will not worship Lakshmi-Narayan. Whom do they worship in a living form? They worship the virgins. Do they or don’t they? They worship at least twice a year because virgins are pure. Achcha? So, don’t they worship someone in living form forever? Arey, are they adulterous or not? Okay, they worship virgins. That is temporary. (Someone said something.) Ja? Worship of Jagdamba? Where is Jagdamba here in this world in the Iron Age? Arey, will anyone be called vyabhichaari or avyabhichaari in practical or will someone be called vyabhichaari or avyabhichaari if he is not present in practical at all? Don’t they worship any living being except one non-living Shivling or non-living idol or except the idol of Shankar? Do they or don’t they? Who? Which living being do they worship? Arey? Whom do they worship? (Someone said something.) A river? Is river a living thing? Look? Is non-living water flowing in a river or is river a living thing? Arey? Is there no answer? Arey, do they worship their guru or not? Do the Sanyasis worship the person whom they make their guru or not? Yes, they worship. So, look, then should they be called vyabhichaari or avyabhichaari? They worship the non-living stone as well as the living being.
And you children? Do you worship non-living? You don’t. Do you worship many living beings? You don’t. So, are you avyabhichaari or vyabhichaari? Hm? You are avyabhichari. So, through the avyabhichaari five elements which cannot be called worship-worthy. And worship-worthy exist only in the new world. What? Worthy of being worshipped. And worshippers exist in the old world. Look, sit and make such points emerge from your intellects and note those new points and later you can publish them some time in the newspapers also.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2958, दिनांक 31.07.2019
VCD 2958, dated 31.07.2019
रात्रि क्लास 01.12.1967
Night Class dated 01.12.1967
VCD-2958-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.55
Time- 00.01-15.55
रात्रि क्लास चल रहा था – 1 दिसम्बर, 1967. दूसरे पेज के मध्य में बात चल रही थी कि जो भी भक्ति करते हैं सो भगत हैं। वो देवताओं की भक्ति करते हैं। या शिव की भक्ति करते हैं। हाँ, तो वो भगत हैं। भले पूजा करते हैं और अपनी पूजा दूसरों से कराते भी हैं। लेकिन उनको ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे। परन्तु शिव से जो प्रैक्टिकल में सन्मुख बैठ ज्ञान सुनते हैं तो ज्ञानी तू आत्मा बन जाते हैं। तो वो तो एम आब्जेक्ट रहती है। क्या? कि शिव भगवान किसे पसन्द करते हैं? भक्तों को? पुजारियों को? हँ? आधीन रहने वालों को या स्वाधीन को? ज्ञानी को पसन्द करते हैं। ज्ञानी प्रभु विशेष प्यारा। तो जो बाबा समझाया ना कि शिवबाबा द्वारा ब्रह्मा; ब्रह्मा द्वारा शिव से ये पद मिलता है। किसके द्वारा? ब्रह्मा द्वारा। क्या पद मिलता है? हँ? ये लक्ष्मी-नारायण की तरफ इशारा किया। ये पद मिलता है। ब्रह्मा ने तो शरीर छोड़ दिया। अब ‘द्वारा’ ही नहीं रहा तो क्या भूत-प्रेतों से मिलेगा? हँ? भूत-प्रेतों से भूत-प्रेत का वर्सा मिलेगा या देवी-देवता का वर्सा मिलेगा? देवी-देवताओं को भूत-प्रेत थोड़ेही कहा जाता है? देवी-देवताओं की तो पूजा होती है। मन्दिर बना के बाकायदा पूजा होती है। हँ? भूत-प्रेतों की पूजा होती है क्या? हँ? हाँ, होती तो है। दूसरे धरम वाले करते हैं। विदेशी भूत-प्रेतों को, फरिश्तों को मानते हैं या नहीं मानते हैं सूक्षम शरीरधारियों को? मानते हैं।
तो जिस ब्रह्मा के द्वारा ये पद मिलता है लक्ष्मी-नारायण या लक्ष्मी-नारायण जैसा बनने का पद मिलता है वो ब्रह्मा कौन है? हँ? चार मुखों वाला ब्रह्मा है या चार मुखों में से कोई भी मुख वाला ब्रह्मा है; है? अरे? ये ही पता नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) परमब्रह्म, हाँ। इन चार मुखों वालों से भी कोई बड़ा ब्रह्मा है जिसे कहते हैं परमब्रह्म। शास्त्रों में लिखा हुआ भी है - गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः। वो तो साक्षात् है। साक्षात् माने? इन आँखों से देखा जा सकता है। वो चार मुखों वाला ब्रह्मा जिसने चार मुखों को संगठित कर लिया, अपने कंट्रोल में कर लिया, वो तो सूक्षम शरीरधारी हो गया। देखने में तो आता है? हँ? देखने में नहीं आता। तो जिस ब्रह्मा के द्वारा ये पद मिलता है लक्ष्मी-नारायण का वो ब्रह्मा परमब्रह्म हुआ।
तो जितने तुम्हारे ये सेन्टर्स बड़े-बड़े बनेंगे इतना फिर किस ऐसे नहीं जैसे शंकराचार्य ने किया। उनको उड़ाय दियो। ये जाओ, हँ, देखो कोई ने पत्थर मार दिया। हँ? पीछे पत्थर-वत्थर कोई भी नहीं मारेंगे। कब? जब उस परमब्रह्म के द्वारा क्या होगा? ये वर्सा प्रत्यक्ष संसार में हो जाएगा। वो सन्यासियों ने पत्थर-वत्थर मारे ना? हाँ। तो जितने ये तुम्हारे बड़े-बड़े सेन्टर्स बनेंगे वो पीछे अगर कोई उनको पत्थर मार करके नुकसान कर देवे, हँ, तो फिर उनसे ये नुकसान का भी उजूरा लिया जा सकता है। बाइ चान्स न समझे, अज्ञानी हो और बेसमझी में ऐसा कर दिया तो क्या होगा? उससे उजूरा लिया जाएगा। हाँ। दंड भुगतना पड़ेगा। चलो सन्यासियों को तो अभी कोई दंड नहीं भुगतना पड़ा। भुगतना पड़ा? हाँ, पत्थर मारके तुम्हारी प्रदर्शनी के चित्र भी तोड़ देते हैं।
तो ये कौनसा ब्रह्मा हुआ? हँ? या तो कहो परमब्रह्म या उसी को कहो प्रजापिता ब्रह्मा। तो वो जो प्रजापिता ब्रह्माकुमारियों का ये श्री-श्री 108 जगदगुरुओं के ऊपर केस चलेगा। क्या? हाँ। ये ब्रह्मा में इतनी ताकत नहीं थी जो केस चलाय सके। हाँ। समझा ना? ये हो सकता है। और वो बात बिल्कुल किलियर है। अखबारों में बिल्कुल किलियर करो कि गीता का भगवान श्री कृष्ण नहीं है। जो ये विद्वान, पंडित, आचार्य, सन्यासी लोग माने बैठे हैं। क्या? क्या कहते हैं? गीता का भगवान, हँ, छोटा सा बच्चा जिसको कृष्ण के मन्दिर में पूजते हैं; मन्दिर में छोटा बच्चा रखा हुआ है ना? उसको गीता का भगवान बनाय दिया। अरे, गीता में तो राजयोग की बात है ना? हँ? राज़ भरा हुआ है। उन राज़ की बातों को बच्चा समझाएगा? वो कहां से गीता का भगवान हो गया? हँ? बिल्कुल अखबारों में किलियर करो कि गीता का भगवान कृष्ण नहीं है। हँ? जैसा लिखा हुआ है ना कि श्री कृष्ण पूरा जन्म 84 लेता है। हँ? जैसे देवात्माएं 84 जन्म लेती हैं। मनुष्यात्माएं भी 84 जन्म लेती हैं। मनुष्य सुधरते हैं तो देवता बनते हैं। बिगड़ते हैं तो राक्षस भी बन जाते हैं। हँ? हाँ। तो वो राक्षस भी ऐसे होते हैं कोई-कोई जो 84 जन्म लेते हैं या नहीं लेते हैं? लेते हैं।
एकदम फ्रम चाइल्डहुड पुनर्जन्म लेते हैं ये कृष्ण। क्या? और जो बाप हैं, जो सर्व का सद्गतिदाता है, 500-700 करोड़ जो भी मनुष्य मात्र इस सृष्टि पर विनाशकाल में होंगे, उन सबका सद्गति दाता। क्या? किसी को छोड़ेगा? नहीं। सबकी सद्गति करेगा। सबकी सद्गति करेगा? क्या? सद्गति माने? अरे, देह के साथ सद्गति कि बिना देह के साथ सद्गति? अच्छा? तो 500-700 करोड़ की जो वर्तमान में विनाशकाल में देह होगी उसके साथ सद्गति होगी? वो तो नहीं होगी? हाँ, वो नहीं होगी। लेकिन कम से कम, हाँ, इस 84 के चक्र में, एक जनम उनको जरूर ऐसा मिलेगा जिसमें उनको देह में रहते हुए भी देह के सुख भोगेंगे, दुख नहीं भोगेंगे। ऐसी सद्गति जरूर होगी। तो ये सर्व का सद्गति दाता हुआ ना? हाँ। वो सर्व का सद्गति दाता पुनर्जन्म में नहीं आते हैं। हाँ। जैसे लिखा हुआ है।
और बड़े अक्षरों में एकदम क्लीयर करके लिखो। क्या? कल बताया ना बड़े-बड़े चित्र बनाओ दीवाल इतने ऊँचे जो सड़क में आने-जाने वालों को किलियर दिखाई पड़े लिखत भी। हाँ। ऊँचे-ऊँचे मकान होते हैं ना, बड़ी-बड़ी उनकी दीवालें होती हैं। तो उनमें वो ये चित्र जो बाबा ने बनाए हैं, बनवाए ना साक्षात्कार से, ये बड़े-बड़े करके बनाओ। बड़ी-बड़ी लिखत हो। हाँ। तो बड़े अक्षरों में एकदम बनाकरके क्योंकि इन्हीं अक्षर के ऊपर इन्होंने कुछ बोला है ये कुछ कि ये-3 ब्रह्माकुमारियां ऐसे-ऐसे कहती हैं।
और फिर जो पूजा करते हैं; किसकी भी पूजा करते हैं; तो अव्यभिचारी पूजा करते हैं कि व्यभिचारी पूजा करते हैं? क्या कहेंगे? अव्यभिचारी शिवबाबा से व्यभिचारी पांच तत्व से करते हैं। किससे करते हैं? पूजा किसकी करते हैं? कहेंगे मन्दिर में जड़ पत्थर रखा हुआ है। या तो मूर्ति रूप में या लिंग रूप में। उसकी पूजा करते हैं। अरे, तो क्या चैतन्य रूप में किसी की पूजा नहीं करते? नहीं करते हैं? किसकी? वो देवताओं को तो मानती नहीं सन्यासी। देवताओं की तो पूजा नहीं करते। लक्ष्मी-नारायण की पूजा नहीं करेंगे। चैतन्य में किसकी पूजा करते हैं? कन्याओं की पूजा करते हैं। करते हैं कि नहीं? साल में दो बार तो कम से कम जरूर करते हैं क्योंकि कन्याएं पवित्र होती हैं। अच्छा? तो सदाकाल किसी की चैतन्य की पूजा नहीं करते हैं? अरे, व्यभिचारी हैं कि नहीं हैं? चलो, कन्याओं की पूजा करते हैं। वो तो अल्पकाल की हुई। (किसी ने कुछ कहा।) ज? जगदम्बा की पूजा? जगदम्बा यहां कहां धरी है इस दुनिया में कलियुग में? अरे, व्यभिचारी-अव्यभिचारी प्रैक्टिकल में कहा जाएगा या प्रैक्टिकल में है ही नहीं तो व्यभिचारी-अव्यभिचारी कहा जाएगा? कोई चैतन्य की पूजा नहीं करते, एक जड़ शिवलिंग या जड़ मूर्ति के अलावा, शंकर की मूर्ति के अलावा? करते हैं या नहीं करते हैं? किसकी? कौनसे चैतन्य की पूजा करते हैं? अरे? किसकी करते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) नदी की? नदी चैतन्य है? लो? नदी जड़ जल उसमें बह रहा है कि नदी चैतन्य हो गई? अरे? कोई जवाब नहीं? अरे, अपने गुरु की पूजा करते हैं कि नहीं? सन्यासी जिसको अपना गुरु बनाते हैं उसकी पूजा करते हैं कि नहीं? हाँ, पूजा करते हैं। तो देखो, फिर व्यभिचारी कहें कि अव्यभिचारी कहें? जड़ पत्थर की भी पूजा करते और फिर चैतन्य की भी पूजा करते।
और तुम बच्चे? जड़ की पूजा करते हो? नहीं करते। चैतन्य की अनेकों की पूजा करते हो? नहीं करते। तो अव्यभिचारी हुए कि व्यभिचारी हुए? हँ? अव्यभिचारी हुए। तो अव्यभिचारी पांच तत्व से जो पूज्य नहीं कहलाय सकते हैं। और पूज्य सिर्फ नई दुनिया में होते हैं। क्या? पूजने योग्य। और पुजारी पुरानी दुनिया में होते हैं। ऐसे-ऐसे प्वाइंट्स देखो बैठकरके अपनी-अपनी बुद्धि में से निकाल करके वो नए-नए प्वाइंट्स नोट करके और पीछे कोई वक्त में अखबारों में भी डाल सकते हो।
A night class dated 1st December 1967 was being discussed. The topic being discussed in the middle of the second page was that whoever does Bhakti is a Bhagat (devotee). They do the Bhakti of deities. Or they do the Bhakti of Shiv. Yes, so they are Bhagat. Although they worship and also make others worship themselves. Yet, they will not be called knowledgeable souls. But those who sit and listen to knowledge face to face in practical from Shiv, they become knowledgeable souls. So, that aim-object exists. What? Whom does God Shiv like? The devotees? The worshippers? Hm? Those who remain slaves or those who remain independent? He likes the knowledgeable one. Gyaani prabhu vishesh pyara (the knowledgeable one is especially dear to God). So, Baba explained, didn’t He that ShivBaba through Brahma; You get this post from Shiv through Brahma. Through whom? Through Brahma. What post do you get? Hm? A gesture was made towards this Lakshmi-Narayan. You get this post. Brahma left his body. Well, when ‘through’ (the media, i.e. Brahma) himself did not survive, then will you get it through ghosts and devils? Hm? Will you get the inheritance of ghosts and devils through ghosts and devils or will you get the inheritance of devi-devta (deities)? Are deities called ghosts and devils? Deities are worshipped. They are worshipped as per rules by building temples. Hm? Are ghosts and devils worshipped? Hm? Yes, they are indeed worshipped. People of the other religions worship. Do the foreigners believe in the ghosts and devils, angels, the subtle-bodied souls or not? They do believe.
So, the Brahma through whom this post is obtained, the post of Lakshmi-Narayan or the post of becoming like Lakshmi-Narayan is obtained, who is that Brahma? Hm? Be it the four-headed Brahma or be it the Brahma with any head among the four heads; is he? Arey? Don’t you know this itself? (Someone said something.) Parambrahm, yes. There is a Brahma who is senior to these four heads, who is called Parambrahm. It has been written in the scriptures also – Gururbrahma, Gururvishnu, Gururdevo Maheshwarah. Gurursaakshaat Parambrahm tasmai shri Guruve namah. He is in practical (saakshaat). What is meant by saakshaat? He can be seen through these eyes. That four headed Brahma, who gathered the four heads, brought them under his control, he is the subtle-bodied one. Is he visible? Hm? He is not visible. So, the Brahma through whom this post of Lakshmi-Narayan is obtained, that Brahma is Parambrahm.
So, the more your centers become bigger, then it’s not as if the Shankaracharya did. Make him vanish. Go, hm, look, someone hit with a stone. Hm? Later nobody will hit with a stone. When? When what will take place through that Parambrahm? This inheritance will be revealed in the world. Those Sanyasis hit with stones, etc. didn’t they? Yes. So, the bigger your centers become, then if anyone damages them by hitting with a stone, then the cost of damage can be collected from them. By chance they don’t understand, if he is ignorant and does this out of ignorance, then what will happen? The cost of damage will be collected from him. Yes. He will have to suffer punishment. Okay, the Sanyasis didn’t have to suffer any punishments now. Did they have to suffer? Yes, they break the pictures of your exhibition also by hitting them with stones.
So, which Brahma is this? Either call him Parambrahm or call him Prajapita Brahma. So, a case will be filed against these Shri Shri 108 Jagadgurus by those Prajapita Brahmakumaris. What? Yes. This Brahma did not have that much strength to file a case. Yes. You have understood, haven’t you? This can be possible. And that topic is absolutely clear. Make it very clear in the newspapers that the God of Gita is not Shri Krishna which these scholars, pundits, teachers, sanyasis have believed. What? What do they say? The God of Gita is a small child who is worshipped in the temples of Krishna; a small child has been placed in the temple, hasn’t he been? He has been made the God of Gita. Arey, there is a topic of rajyog in the Gita, isn’t it? Hm? There is secret contained in it. Will a child explain the topics of secret? How can he be the God of Gita? Hm? Make it very clear in the newspapers that God of Gita is not Krishna. Hm? For example, it has been written, hasn’t it been that Shri Krishna gets complete 84 births. Hm? Just as the deity souls get 84 births. The human souls also definitely get 84 births. When the human beings reform, they become deities. When they spoil, they become demons as well. Hm? Yes. So, are some of those demons also such that they get 84 births or not? They get.
This Krishna gets rebirth from the very childhood. What? And the Father, the one who is the bestower of true salvation upon everyone, bestower of true salvation upon all the 500-700 crore human beings who exist in this world during the period of destruction. What? Will He leave anyone? No. He will cause the true salvation of everyone. Will He cause the true salvation of everyone? What? What is meant by true salvation (Sadgati)? Arey, Sadgati with the body or Sadgati without the body? Achcha? So, will the 500-700 crores who will have a body at present in the period of destruction, will they get Sadgati with that [body]? Will that not happen? Yes, that will not happen. But at least, yes, in this cycle of 84, they will definitely get one such birth in which despite living in the body, they will enjoy the pleasures of the body, they will not suffer sorrows. They will definitely experience such Sadgati. So, this one is the bestower of true salvation upon everyone, isn’t he? Yes. That bestower of true salvation upon everyone doesn’t get rebirth. Yes. Just as it has been written.
And write very clearly in big letters. What? It was told yesterday, wasn’t it that make big pictures of the size of the walls so that the write-up is clearly visible even to those walking on the roads. Yes. There are high rise buildings, aren’t they there? They have big walls. So, on them, these pictures that Baba has prepared; He has got them prepared through visions, hasn’t He? Make them very big in size. The words should be big. Yes. So, make them in big alphabets because on these very words they have spoken something that these, these, these Brahmakumaris say like this.
And then those who worship; whomsoever they worship; So, do they worship in a non-adulterous (avyabhichaari) way or do they worship in an adulterous (vyabhichari) manner? What would you say? Do they worship avyabhichari ShivBaba or the vyabhichari five elements? Whom do they worship? Whom do they worship? It will be said that a non-living stone has been placed in the temple. Either in an idol form or in a ling-form. They worship it. Arey, so, don’t they worship anyone in a living form? Don’t they? Whom? Those sanyasis don’t believe in the deities. They do not worship the deities. They will not worship Lakshmi-Narayan. Whom do they worship in a living form? They worship the virgins. Do they or don’t they? They worship at least twice a year because virgins are pure. Achcha? So, don’t they worship someone in living form forever? Arey, are they adulterous or not? Okay, they worship virgins. That is temporary. (Someone said something.) Ja? Worship of Jagdamba? Where is Jagdamba here in this world in the Iron Age? Arey, will anyone be called vyabhichaari or avyabhichaari in practical or will someone be called vyabhichaari or avyabhichaari if he is not present in practical at all? Don’t they worship any living being except one non-living Shivling or non-living idol or except the idol of Shankar? Do they or don’t they? Who? Which living being do they worship? Arey? Whom do they worship? (Someone said something.) A river? Is river a living thing? Look? Is non-living water flowing in a river or is river a living thing? Arey? Is there no answer? Arey, do they worship their guru or not? Do the Sanyasis worship the person whom they make their guru or not? Yes, they worship. So, look, then should they be called vyabhichaari or avyabhichaari? They worship the non-living stone as well as the living being.
And you children? Do you worship non-living? You don’t. Do you worship many living beings? You don’t. So, are you avyabhichaari or vyabhichaari? Hm? You are avyabhichari. So, through the avyabhichaari five elements which cannot be called worship-worthy. And worship-worthy exist only in the new world. What? Worthy of being worshipped. And worshippers exist in the old world. Look, sit and make such points emerge from your intellects and note those new points and later you can publish them some time in the newspapers also.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2959, दिनांक 01.08.2019
VCD 2959, dated 01.08.2019
रात्रि क्लास 01.12.1967
Night class dated 01.12.1967
VCD-2959-extracts-Bilingual
समय- 00.01-19.16
Time- 00.01-19.16
रात्रि क्लास चल रहा था – 1 दिसम्बर, 1967. तीसरे पेज के मध्य में बात चल रही थी कि बाप कहते हैं कि तुम बच्चे दैवी संप्रदाय बन रहे हो। क्यों? क्योंकि तुम तो पुरुषोत्तम संगमयुग पर हो। और वो आसुरी संप्रदाय बन रहे हैं। तो कहते हैं कि हम तो कलियुग में हैं। अभी कलियुग चालीस हज़ार वर्ष पड़ा है। तुम श्रेष्ठ बन रहे हो, पुरुषोत्तम बन रहे हो। वो कनिष्ठ। और तुम वर्थ पाउंड। वो वर्थ नॉट ए पैनी। तो उनको कोई कहेंगे बाबा इनके पास तो लाखों, करोड़ों। अरे, पर वो सारा विनाश होने का है। ये महाविनाश तो सामने खड़ा हुआ है। और दो तरह का है। कौन-कौनसा? एक तृतीय विश्वयुद्ध और चौथा? हाँ। क्योंकि दो विश्वयुद्ध तो हो चुके। तो चौथा है चतुर्थ विश्व युद्ध। ज्यादा खतरनाक कौनसा है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) चौथा खतरनाक है? अरे, वो खतरनाक उतना नहीं है। वो तो फटाफट-फटाफट खेल खलास। खूनी नाहक खेल। कौनसा? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, थर्ड वर्ल्ड वार। महाभारी महाभारत गृह युद्ध गाया हुआ है। इसका नाम महाभारत क्यों पड़ा? हँ? ऐसा नहीं है कि छोटा-मोटा भारत है। महान भारत। क्योंकि ये लड़ाई जो है कहां से निकलती है? कोई दूसरे देश से निकलती है? नहीं। इसका मुख्य केन्द्र बिन्दु है भारत। भारत से निकलती है। इसलिए इसका नाम है महाभारत।
तो विनाश होने का है। तो उनके जो लाख, करोड़, अरबियन हैं वो तो वर्थ पैनी हो जाने वाले हैं। एक कौड़ी की भी कीमत नहीं रहेगी। हाँ। वो उनके धन-दौलत कोई रखे थोड़ेही रहेंगे? खलास हो जावेंगे। और तुम्हारी धन-दौलत? तुम कौनसी धन-दौलत कमाय रहे हो? काहे का स्टॉक इकट्ठा कर रहे हो? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, ज्ञान धन इकट्ठा कर रहे हो। ये ज्ञान धन तो ठीक है, नई दुनिया में तो नहीं रहेगा। लोप हो जाएगा ना? लेकिन इसके बदले में, जितना तुम यहां ज्ञानी बनते हो, ज्ञान का दान दूसरों को देते हो उतने तुम जन्म-जन्मान्तर क्या बनते रहेंगे? धनवान बनते रहेंगे। उनका तो अल्पकाल का है। क्या? लाख, करोड़। और तुम्हारा तो? तुम्हारा तो सदाकाल का है। 21 जन्म का तो पक्का है। वो तो बाबा ने बहुत दफा समझाया ना कि यही समय है। क्या? जो गायन है किसकी दबी रही धूल में, किसकी राजा खाए। दबी रही धूल में? क्यों? अरे, उन लाख-करोड़ और जिनके पास सोना-चांदी बहुत है, हीरे-जवाहरात हैं, वो धूल में क्यों दबे रहेंगे? कारण? अरे, भूकम्प आएंगे बड़े-बड़े तो पता नहीं कहां का कहां चला जाएगा, जो उन्होंने जमीन में दाब के रखा होगा। तो धूल में मिल जाएगा। और कोई का बचेगा; बहुत बचाया हुआ है तो पहले ही राजा खाएगा। देश-देश की गोर्मेन्ट प्रजावर्ग से जास्ती खा रही है, कम खा रही है? पहले तो टैक्स कम लगता था पुराने जमाने में। छह परसेन्ट ही लगता था। जितनी कमाई की उसमें से छह परसेन्ट देना है, हाँ, राज्य को, राजा को। और बाकि सारा 94 परसेन्ट वो अपने खर्चे में रखो। हाँ, यूज़ करो।
तो देखो, अब का राज्य और अब का राजा, अबके जो शासक हैं कलियुग के अंत में वो तुम्हारा कोई भी धन तुम्हारे पास रहने? रहने नहीं देंगे। सारी दुनिया नास्तिकता की ओर जा रही है या आस्तिक बन रहे हैं? नास्तिकता की ओर। तो नास्तिक देश कौनसा है? हँ? रशिया है। वहां क्या चल रहा है? जितनी भी राष्ट्र की संपत्ति है, जमीन है, जायदाद है, मकान हैं, दुकान हैं, वो किसकी है? किसी पर्सनल की है? पर्सनल की नहीं। किसकी हो गई? सरकार की हो गई। तो सारी दुनिया में ये नास्तिकता फैलती जा रही है। और क्यों? क्योंकि राजा का जो वर्चस्व होगा वही तो करेगा ना? हाँ। तो राज्य खा जाएगा बहुतों का। देखो, अभी भी भारत में देखो राजा खाय रहे हैं ना? जो राजा बने बैठे हैं कुर्सियों पर, ये मनुष्य समझते हैं कि ये सोना-गोना यहां-वहां तिजोरी में छुपा के रखेंगे। हँ? रख पाएंगे? क्यों? तिजोरी में छुपा के क्यों नहीं रखेंगे, रख पाएंगे? क्योंकि उनके पास ऐसे-ऐसे यंत्र हैं कि उन यंत्रों से पता लगाय लेंगे ये यहां रखा हुआ है। तो सब निकलने का ही है। जब भीड़ पड़ेगी ना तो सब छित्ती हो जाती है ये गोर्मेन्ट। और नए-नए पीछे आर्डिनेन्स निकालती रहेगी। तुम्हारी सारी जमीन जायदाद हड़प करने के लिए। सबके लॉकर-वाकर खोलो। ये खोलो, वो खोलो। हँ? ये सब तिजोरियां-विजोरियां खोलो। तो देखो, उनको तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
चलो बच्ची, म्यूजियम, म्यूजिक बजाओ। अच्छा। खाने की जो चीज़ है और अच्छी कोई चीज़ है तो क्यों न देखें? दुनिया में बहुत कुछ अच्छा-अच्छा है ना देखने योग्य? ये वंडर आफ दि वर्ल्ड है। है ना? पर देखा तो नहीं है। क्यों नहीं वंडर आफ दि वर्ल्ड देखते हैं? पीछे तुम वंडर आफ दि वर्ल्ड; कैसा वंडर आफ दि वर्ल्ड? जो दुनिया में सिवाय तुम्हारे कोई जाय नहीं सकते हैं। क्या? ऐसा समय आने वाला है कि तुम जावेंगे। कहां? काय की बात हो रही है? वंडर आफ वर्ल्ड देखने के लिए तुम जावेंगे। दुनियावाले नहीं जाय सकेंगे। तो उसमें तुम जाएंगे। हाँ। और जो इस दुनिया के वंडर हैं वो भी तो देख सकेंगे ना? कौन देख सकेंगे? जिनके पास पैसा होगा तो देखेंगे। तो वो है ना? हुआ वो पैसा। क्या कहते हैं? हँ? पुजेरी नाणों गुमलाल खाणों। हँ? तुम्हारी तो तिजोरी भरती ही रहेगी। कि खाली होगी? हँ? उनके तो लाख-करोड़ खलास हो जावेंगे। और तुम्हारे? तुम्हारे कैसे बचे रहेंगे? हँ? देखो, तुम तो सुख में रहेंगे ना? हँ? दुनिया हाय-हाय करेगी और तुम सुख में रहेंगे। वैकुण्ठ का अनुभव करेंगे। तो सुख पैसे बिगर होगा क्या? होता है? अरे, इस दुनिया की बात हो रही है नरक की दुनिया में स्वर्ग स्थापन करते हैं। तो पैसे बिगर होता है कुछ यहां? नहीं। सुख होगा तो पैसे भी होंगे। तो बिना पैसे के कोई सुख होता थोड़ेही है? हाँ। तो तुम भी यहां आते हो। किसलिए आते हो? हँ? अरे, धन लेने के लिए आते हो या ऊँच ते ऊँच जो धन है वो लेने के लिए आते हो कि उसमें गरीब बनने के लिए आते हो? जिसके पास बहुत धन होता है, ज्ञान धन, तो ज्ञान धन बहुत होगा तो उनकी तिजोरी खाली रहेगी क्या? नहीं। तो तुम यहां आते ही हो बिल्कुल, बिल्कुल धनवान बनने के लिए। हँ? जो बाप के कारुण के खजाने हैं ना वो तुम लेने के लिए आते हो। हाँ।
देखो, ये सन्यासियों के लिए ये शास्त्र पढ़ना निषेध है। सं माने संपूर्ण; न्यासी माने त्यागी। अब संपूर्ण दुनिया में सब कुछ त्याग दिया तो शास्त्र काहे के लिए बगल में दबाए फिर रहे हो? हँ? कहते हो हम सन्यासी हैं। जो संपूर्ण न्यासी हैं तो ये, ये भी निकालो। हटाओ। ये भी निषेध है। क्योंकि ये शास्त्र किसके लिए हैं? ये शास्त्र वगैरा तो प्रवृत्ति मार्ग वालों के लिए हैं। हाँ। जो प्रवृत्तिमार्ग वाले सभी बचपन में तो पवित्र हैं। फिर बड़े होके अपवित्र बनते हैं। निवृत्तिमार्ग वालों के लिए ये भक्तिमार्ग है ही नहीं। भक्तिमार्ग भी नहीं है निवृत्तिमार्ग वालों के लिए। ये जो निवृत्तिमार्ग के लिए, ये शास्त्र वगैरा पढ़ना, ये तो भक्ति हो गई ना? ये है ही नहीं उनके लिए। अरे, उनके लिए तो भक्तिमार्ग भी नहीं है। कहा जाता है ना - ज्ञान, भक्ति और वैराग। तो वैराग है तो भक्ति क्यों? तो सब कुछ त्याग दिया ना? तो भक्ति क्यों? तो भक्तिमार्ग भी नहीं है उनके लिए।
तो तुम्हारे लिए तो बड़ा मज़ा है। समझा ना? संगमयुग में बड़े मजे हैं। किस बात में? भक्ति कल्ट में? भक्तिमार्ग में? नहीं। तुम कौनसे मार्ग में हो? ज्ञान मार्ग में। तो ज्ञान मार्ग में तुम्हारे लिए बहुत मजे हैं। उनके सन्यास मार्ग में न कोई मजे, न भक्तिमार्ग में कोई मजे। वो तो तुम ढाई हज़ार साल देख ही चुके। भक्तिमार्ग में भक्ति करते-करते, अरे भक्ति जब सतोप्रधान थी तब फिर भी मजे थे। सुख ज्यादा था ना? फिर बाद में क्या हुआ? सुख धीरे-धीरे कम होता गया। कम होते-होते अभी तो भक्ति में भी लोगों को कोई मजा नहीं। सब भक्ति छोड़ते चले जा रहे हैं। नास्तिक बनते जा रहे हैं। समझा ना?
अच्छा, मीठे-मीठे सीकिलधे 5000 वर्ष के बाद मिले; रोज़-रोज़ देखो कहते हैं ना 5000 वर्ष के बाद मिले हुए; ऐसे भी नहीं कि कम कहते हों। नहीं। 5000 वर्ष के बाद फिर से आय मिले हुए रूहानी बच्चों प्रति। क्या? 5000 वर्ष बाद कौन मिले? रुहानी कि जिस्मानी? अरे, बाप ही जो मिलने वाला है वो ही रूहानी है तो बच्चे भी कैसे चाहिए उसे? रुहानी बच्चे। तो पूरे 5000 वर्ष क्यों कहते हैं? हँ? 100, 50 वर्ष कम करना चाहिए ना? 100 वर्ष का संगम नहीं है बीच में? तो 5000 वर्ष क्यों कहते हैं? हँ? क्योंकि 100 साल में पूरे-पूरे जरूरी है कि 90-100 साल में सारे ही बच्चे पूरे रूहानी स्टेज में स्थिर हो जाएं? हो जाएंगे? नहीं। तो रूहानी बच्चों के लिए बाप कहते हैं कि बापदादा का दिल व जान से, सिक व प्रेम से यादप्यार, हाँ, और गुड नाइट। ओमशान्ति। (समाप्त)
A night class dated 1st December, 1967 was being narrated. The topic being discussed in the middle of the third page was that the Father says that you children are becoming members of the divine community. Why? It is because you are in the Purushottam Sangamyug (elevated Confluence Age). And they are becoming demoniac community. So, they say that we are in the Iron Age. There are still forty thousand years left in the Iron Age (Kaliyuga). You are becoming righteous, you are becoming Purushottam (highest among souls, i.e. purush). They are lowly (kanishth). And you are worth Pound. They are worth not a penny. So, someone will tell about them, Baba, they have lakhs, crores. Arey, but all that is going to be destroyed. This mega-destruction is staring at you. And it is of two kinds. Which ones? One is the third world war and the fourth? Yes. It is because two world wars have already taken placce. So, fourth is the fourth world war. Which is more dangerous? Hm? (Someone said something.) Is the fourth one dangerous? Arey, that is not so dangerous. In that the drama will end in quick succession. Unnecessary bloodshed. Which one? (Someone said something.) Yes, the third world war. The fiercest Mahabharat civil war is famous. Why was it named Mahabharat? Hm? It is not as if it is a small and sundry Bhaarat. Mahaan (great) Bhaarat. It is because where does this war originate from? Does it emerge from any other country? No. Its main center point is Bhaarat. It emerges from Bhaarat. This is why its name is Mahabhaarat.
So, destruction is to take place. So, their lakhs, crores, Arabian (Hindi word for multimillions) is going to become worth penny. They will not be valuable worth a cowrie. Yes. So, will their wealth and property remain intact? They will perish. And your wealth and property? Which wealth and property are you earning? Which stock are you accumulating? (Someone said something.) Yes, you are collecting the wealth of knowledge. It is correct that this wealth of knowledge will not be there in the new world. It will disappear, will it not? But instead of that, the extent to which you become knowledgeable here, the extent to which you donate knowledge to others, what will you keep on becoming birth by birth? You will keep on becoming wealthy. Theirs’ is temporary. What? Lakh, crore. And yours? Yours is forever. It is sure for 21 births. Baba has explained many times, hasn’t He that this is the time indeed? What? It is sung that someone’s [wealth] will remain buried under the dust, someone’s will be gobbled by the King. Remain buried under the dust? Why? Arey, those lakh and crore and those who have a lot of gold and silver, diamonds and jewels, why will they remain buried under the dust? Reason? Arey, when big Earthquakes will occur, then who knows whatever they have buried under the Earth will move from which place to which place? So, it will mix into the dust. And someone’s will be saved; if someone has saved a lot, then firstly the king will gobble. Is the government of each country extracting more from the subjects or less? Earlier the tax used to be less in the olden days. It used to be just six percent. Whatever you earned, you have to give six percent from it, yes, to the State, to the King. And keep the remaining entire 94 percent for your expenditure. Yes, use it.
So, look, the present rule and the present ruler, the present rulers in the end of the Iron Age, will they allow your wealth to be with you? They will not allow. Is the entire world moving towards atheism or are people becoming theists? Towards atheism. So, which is the atheist country? Hm? It is Russia. What is going on there? To whom does the entire property of the country, land, property, houses, shops belong? Is it anyone’s personal? It is not personal. To whom does it belong? It belongs to the government. So, this atheism is spreading in the entire world. And why? It is because the king’s dominance will work, will it not? Yes. So, the State will gobble that [wealth] of many. Look, even now, look the kings are gobbling in India, aren’t they? Those who are sitting as kings on the chairs, these people think that they will keep this gold, etc. hidden in boxes. Hm? Will they be able to keep? Why? Why will they not keep, not be able to keep hidden in boxes? It is because they have such instruments that they will find out through those instruments that it is kept here. So, everything is to come out without fail. When the crowd (population) increases, then this government becomes poor. And it will later keep on issuing newer ordinances. In order to gobble your entire land and property. Open everyone’s lockers. Open this, open that. Hm? Open all these treasury boxes. So, look, it will not make much of a difference to them.
OK daughter, museum, play the music. Achcha. If there are eatables and if there is a nice thing, then why shouldn’t we see? There are many nice things worth seeing in the world, aren’t they there? This is the wonder of the world. Is it not? But you haven’t seen. Why don’t you see the wonder of the world? Later, you, wonder of the world; What kind of wonder of the world? Nobody except you in the world can go. What? Such a time is going to come that you will go. Which topic is being discussed? You will go to see the wonder of the world. The people of the world will not be able to go. So, you will go to it. Yes. And you will be able to see the wonders of this world also, will you not be able to? Who will be able to see? Those who have money will see. So, that is there, isn’t it? It is the money. What do they say? Hm? Pujeri nano gumlal khano (a Sindhi proverb). Hm? Your treasury box (tijori) will keep on getting filled. Or will it become empty? Hm? Their lakhs and crores will perish. And yours? How will yours be saved? Hm? Look, you will live in happiness, will you not? Hm? The world will cry in despair and you will remain in happiness. You will experience Vaikunth. So, will there be happiness without money? Does it exist? Arey, a topic of this world is being discussed that He establishes heaven in the world of hell. So, does anything happen without money here? No. There will be money also if there is happiness. So, is there happiness without money? Yes. So, you also come here. Why do you come? Hm? Arey, do you come to obtain money or do you come to obtain the highest of all wealth or do you come to become poor in it? Those who have a lot of wealth, the wealth of knowledge, then if they have a lot of wealth of knowledge, then will their treasury box be empty? No. So, you have come here only to become completely, completely wealthy. Hm? You come to obtain the treasures of Kaarun of the Father. Yes.
Look, reading these scriptures is prohibited for the sanyasis. San means complete (Sampoorn); nyaasi means tyaagi (the one who sacrifices/renounces). Well, when you have sacrificed everything in the entire world, then why are you moving around with scriptures under your armpit? Hm? You say that we are Sanyasis. Those who are complete trustees (nyasis), then remove this, this also. Remove. This is also prohibited. It is because, what are these scriptures meant for? These scriptures, etc. are for those on the path of household. Yes. All those who belong to the path of household are pure in the childhood. Then they become impure after growing up. This path of Bhakti is not at all for those who belong to the path of renunciation. Even the path of Bhakti is not for those belong to the path of renunciation. For the path of renunciation reading these scriptures etc is Bhakti, isn’t it? This is not at all for them. Arey, the path of Bhakti is also not for them. It is said, isn’t it – Knowledge, Bhakti and detachment (vairaag)? So, if there is detachment, then why Bhakti? So, you have renounced everything, haven’t you? So, why Bhakti? So, the path of Bhakti is also not for them.
So, there is a lot of enjoyment for you. You have understood, haven’t you? There is a lot of enjoyment in the Confluence Age. In which topic? In the Bhakti cult? On the path of Bhakti? No. To which path do you belong? To the path of knowledge. So, there is a lot of enjoyment for you on the path of knowledge. There is no enjoyment either on their path of renunciation or on the path of Bhakti. You have already seen that for 2500 years. On the path of Bhakti, while doing Bhakti, arey, when Bhakti was satopradhaan (pure) even then there was enjoyment. Happiness was more, wasn’t it? Then what happened later? Gradually happiness went on decreasing. While decreasing now there is no enjoyment for people even in Bhakti. Everyone is going on leaving Bhakti. They are going on becoming atheists (naastik). You have understood, haven’t you?
Achcha, to the sweet, sweet, seekiladhey, those who have met after 5000 years; look, He says every day, doesn’t He that you have met after 5000 years; It is not as if He says anything less. No. To the spiritual children who have met again after 5000 years. What? Who met after 5000 years? Spiritual or physical? Arey, the Father who is going to meet is Himself spiritual, so, what kind of children does He require? Spiritual children. So, why does He say ‘complete 5000 years’? Hm? He should reduce 100, 50 years, shouldn’t He? Isn’t the Confluence Age of 100 years there in between? So, why does He say 5000 years? Hm? It is because in 100 years, is it completely necessary that all the children become constant in complete spiritual stage within 90-100 years? Will they become? No. So, the Father says for the spiritual children that remembrance, love, yes and good night of BapDada from His heart and life, love and affection. Om Shanti. (End)
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2959, दिनांक 01.08.2019
VCD 2959, dated 01.08.2019
रात्रि क्लास 01.12.1967
Night class dated 01.12.1967
VCD-2959-extracts-Bilingual
समय- 00.01-19.16
Time- 00.01-19.16
रात्रि क्लास चल रहा था – 1 दिसम्बर, 1967. तीसरे पेज के मध्य में बात चल रही थी कि बाप कहते हैं कि तुम बच्चे दैवी संप्रदाय बन रहे हो। क्यों? क्योंकि तुम तो पुरुषोत्तम संगमयुग पर हो। और वो आसुरी संप्रदाय बन रहे हैं। तो कहते हैं कि हम तो कलियुग में हैं। अभी कलियुग चालीस हज़ार वर्ष पड़ा है। तुम श्रेष्ठ बन रहे हो, पुरुषोत्तम बन रहे हो। वो कनिष्ठ। और तुम वर्थ पाउंड। वो वर्थ नॉट ए पैनी। तो उनको कोई कहेंगे बाबा इनके पास तो लाखों, करोड़ों। अरे, पर वो सारा विनाश होने का है। ये महाविनाश तो सामने खड़ा हुआ है। और दो तरह का है। कौन-कौनसा? एक तृतीय विश्वयुद्ध और चौथा? हाँ। क्योंकि दो विश्वयुद्ध तो हो चुके। तो चौथा है चतुर्थ विश्व युद्ध। ज्यादा खतरनाक कौनसा है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) चौथा खतरनाक है? अरे, वो खतरनाक उतना नहीं है। वो तो फटाफट-फटाफट खेल खलास। खूनी नाहक खेल। कौनसा? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, थर्ड वर्ल्ड वार। महाभारी महाभारत गृह युद्ध गाया हुआ है। इसका नाम महाभारत क्यों पड़ा? हँ? ऐसा नहीं है कि छोटा-मोटा भारत है। महान भारत। क्योंकि ये लड़ाई जो है कहां से निकलती है? कोई दूसरे देश से निकलती है? नहीं। इसका मुख्य केन्द्र बिन्दु है भारत। भारत से निकलती है। इसलिए इसका नाम है महाभारत।
तो विनाश होने का है। तो उनके जो लाख, करोड़, अरबियन हैं वो तो वर्थ पैनी हो जाने वाले हैं। एक कौड़ी की भी कीमत नहीं रहेगी। हाँ। वो उनके धन-दौलत कोई रखे थोड़ेही रहेंगे? खलास हो जावेंगे। और तुम्हारी धन-दौलत? तुम कौनसी धन-दौलत कमाय रहे हो? काहे का स्टॉक इकट्ठा कर रहे हो? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, ज्ञान धन इकट्ठा कर रहे हो। ये ज्ञान धन तो ठीक है, नई दुनिया में तो नहीं रहेगा। लोप हो जाएगा ना? लेकिन इसके बदले में, जितना तुम यहां ज्ञानी बनते हो, ज्ञान का दान दूसरों को देते हो उतने तुम जन्म-जन्मान्तर क्या बनते रहेंगे? धनवान बनते रहेंगे। उनका तो अल्पकाल का है। क्या? लाख, करोड़। और तुम्हारा तो? तुम्हारा तो सदाकाल का है। 21 जन्म का तो पक्का है। वो तो बाबा ने बहुत दफा समझाया ना कि यही समय है। क्या? जो गायन है किसकी दबी रही धूल में, किसकी राजा खाए। दबी रही धूल में? क्यों? अरे, उन लाख-करोड़ और जिनके पास सोना-चांदी बहुत है, हीरे-जवाहरात हैं, वो धूल में क्यों दबे रहेंगे? कारण? अरे, भूकम्प आएंगे बड़े-बड़े तो पता नहीं कहां का कहां चला जाएगा, जो उन्होंने जमीन में दाब के रखा होगा। तो धूल में मिल जाएगा। और कोई का बचेगा; बहुत बचाया हुआ है तो पहले ही राजा खाएगा। देश-देश की गोर्मेन्ट प्रजावर्ग से जास्ती खा रही है, कम खा रही है? पहले तो टैक्स कम लगता था पुराने जमाने में। छह परसेन्ट ही लगता था। जितनी कमाई की उसमें से छह परसेन्ट देना है, हाँ, राज्य को, राजा को। और बाकि सारा 94 परसेन्ट वो अपने खर्चे में रखो। हाँ, यूज़ करो।
तो देखो, अब का राज्य और अब का राजा, अबके जो शासक हैं कलियुग के अंत में वो तुम्हारा कोई भी धन तुम्हारे पास रहने? रहने नहीं देंगे। सारी दुनिया नास्तिकता की ओर जा रही है या आस्तिक बन रहे हैं? नास्तिकता की ओर। तो नास्तिक देश कौनसा है? हँ? रशिया है। वहां क्या चल रहा है? जितनी भी राष्ट्र की संपत्ति है, जमीन है, जायदाद है, मकान हैं, दुकान हैं, वो किसकी है? किसी पर्सनल की है? पर्सनल की नहीं। किसकी हो गई? सरकार की हो गई। तो सारी दुनिया में ये नास्तिकता फैलती जा रही है। और क्यों? क्योंकि राजा का जो वर्चस्व होगा वही तो करेगा ना? हाँ। तो राज्य खा जाएगा बहुतों का। देखो, अभी भी भारत में देखो राजा खाय रहे हैं ना? जो राजा बने बैठे हैं कुर्सियों पर, ये मनुष्य समझते हैं कि ये सोना-गोना यहां-वहां तिजोरी में छुपा के रखेंगे। हँ? रख पाएंगे? क्यों? तिजोरी में छुपा के क्यों नहीं रखेंगे, रख पाएंगे? क्योंकि उनके पास ऐसे-ऐसे यंत्र हैं कि उन यंत्रों से पता लगाय लेंगे ये यहां रखा हुआ है। तो सब निकलने का ही है। जब भीड़ पड़ेगी ना तो सब छित्ती हो जाती है ये गोर्मेन्ट। और नए-नए पीछे आर्डिनेन्स निकालती रहेगी। तुम्हारी सारी जमीन जायदाद हड़प करने के लिए। सबके लॉकर-वाकर खोलो। ये खोलो, वो खोलो। हँ? ये सब तिजोरियां-विजोरियां खोलो। तो देखो, उनको तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
चलो बच्ची, म्यूजियम, म्यूजिक बजाओ। अच्छा। खाने की जो चीज़ है और अच्छी कोई चीज़ है तो क्यों न देखें? दुनिया में बहुत कुछ अच्छा-अच्छा है ना देखने योग्य? ये वंडर आफ दि वर्ल्ड है। है ना? पर देखा तो नहीं है। क्यों नहीं वंडर आफ दि वर्ल्ड देखते हैं? पीछे तुम वंडर आफ दि वर्ल्ड; कैसा वंडर आफ दि वर्ल्ड? जो दुनिया में सिवाय तुम्हारे कोई जाय नहीं सकते हैं। क्या? ऐसा समय आने वाला है कि तुम जावेंगे। कहां? काय की बात हो रही है? वंडर आफ वर्ल्ड देखने के लिए तुम जावेंगे। दुनियावाले नहीं जाय सकेंगे। तो उसमें तुम जाएंगे। हाँ। और जो इस दुनिया के वंडर हैं वो भी तो देख सकेंगे ना? कौन देख सकेंगे? जिनके पास पैसा होगा तो देखेंगे। तो वो है ना? हुआ वो पैसा। क्या कहते हैं? हँ? पुजेरी नाणों गुमलाल खाणों। हँ? तुम्हारी तो तिजोरी भरती ही रहेगी। कि खाली होगी? हँ? उनके तो लाख-करोड़ खलास हो जावेंगे। और तुम्हारे? तुम्हारे कैसे बचे रहेंगे? हँ? देखो, तुम तो सुख में रहेंगे ना? हँ? दुनिया हाय-हाय करेगी और तुम सुख में रहेंगे। वैकुण्ठ का अनुभव करेंगे। तो सुख पैसे बिगर होगा क्या? होता है? अरे, इस दुनिया की बात हो रही है नरक की दुनिया में स्वर्ग स्थापन करते हैं। तो पैसे बिगर होता है कुछ यहां? नहीं। सुख होगा तो पैसे भी होंगे। तो बिना पैसे के कोई सुख होता थोड़ेही है? हाँ। तो तुम भी यहां आते हो। किसलिए आते हो? हँ? अरे, धन लेने के लिए आते हो या ऊँच ते ऊँच जो धन है वो लेने के लिए आते हो कि उसमें गरीब बनने के लिए आते हो? जिसके पास बहुत धन होता है, ज्ञान धन, तो ज्ञान धन बहुत होगा तो उनकी तिजोरी खाली रहेगी क्या? नहीं। तो तुम यहां आते ही हो बिल्कुल, बिल्कुल धनवान बनने के लिए। हँ? जो बाप के कारुण के खजाने हैं ना वो तुम लेने के लिए आते हो। हाँ।
देखो, ये सन्यासियों के लिए ये शास्त्र पढ़ना निषेध है। सं माने संपूर्ण; न्यासी माने त्यागी। अब संपूर्ण दुनिया में सब कुछ त्याग दिया तो शास्त्र काहे के लिए बगल में दबाए फिर रहे हो? हँ? कहते हो हम सन्यासी हैं। जो संपूर्ण न्यासी हैं तो ये, ये भी निकालो। हटाओ। ये भी निषेध है। क्योंकि ये शास्त्र किसके लिए हैं? ये शास्त्र वगैरा तो प्रवृत्ति मार्ग वालों के लिए हैं। हाँ। जो प्रवृत्तिमार्ग वाले सभी बचपन में तो पवित्र हैं। फिर बड़े होके अपवित्र बनते हैं। निवृत्तिमार्ग वालों के लिए ये भक्तिमार्ग है ही नहीं। भक्तिमार्ग भी नहीं है निवृत्तिमार्ग वालों के लिए। ये जो निवृत्तिमार्ग के लिए, ये शास्त्र वगैरा पढ़ना, ये तो भक्ति हो गई ना? ये है ही नहीं उनके लिए। अरे, उनके लिए तो भक्तिमार्ग भी नहीं है। कहा जाता है ना - ज्ञान, भक्ति और वैराग। तो वैराग है तो भक्ति क्यों? तो सब कुछ त्याग दिया ना? तो भक्ति क्यों? तो भक्तिमार्ग भी नहीं है उनके लिए।
तो तुम्हारे लिए तो बड़ा मज़ा है। समझा ना? संगमयुग में बड़े मजे हैं। किस बात में? भक्ति कल्ट में? भक्तिमार्ग में? नहीं। तुम कौनसे मार्ग में हो? ज्ञान मार्ग में। तो ज्ञान मार्ग में तुम्हारे लिए बहुत मजे हैं। उनके सन्यास मार्ग में न कोई मजे, न भक्तिमार्ग में कोई मजे। वो तो तुम ढाई हज़ार साल देख ही चुके। भक्तिमार्ग में भक्ति करते-करते, अरे भक्ति जब सतोप्रधान थी तब फिर भी मजे थे। सुख ज्यादा था ना? फिर बाद में क्या हुआ? सुख धीरे-धीरे कम होता गया। कम होते-होते अभी तो भक्ति में भी लोगों को कोई मजा नहीं। सब भक्ति छोड़ते चले जा रहे हैं। नास्तिक बनते जा रहे हैं। समझा ना?
अच्छा, मीठे-मीठे सीकिलधे 5000 वर्ष के बाद मिले; रोज़-रोज़ देखो कहते हैं ना 5000 वर्ष के बाद मिले हुए; ऐसे भी नहीं कि कम कहते हों। नहीं। 5000 वर्ष के बाद फिर से आय मिले हुए रूहानी बच्चों प्रति। क्या? 5000 वर्ष बाद कौन मिले? रुहानी कि जिस्मानी? अरे, बाप ही जो मिलने वाला है वो ही रूहानी है तो बच्चे भी कैसे चाहिए उसे? रुहानी बच्चे। तो पूरे 5000 वर्ष क्यों कहते हैं? हँ? 100, 50 वर्ष कम करना चाहिए ना? 100 वर्ष का संगम नहीं है बीच में? तो 5000 वर्ष क्यों कहते हैं? हँ? क्योंकि 100 साल में पूरे-पूरे जरूरी है कि 90-100 साल में सारे ही बच्चे पूरे रूहानी स्टेज में स्थिर हो जाएं? हो जाएंगे? नहीं। तो रूहानी बच्चों के लिए बाप कहते हैं कि बापदादा का दिल व जान से, सिक व प्रेम से यादप्यार, हाँ, और गुड नाइट। ओमशान्ति। (समाप्त)
A night class dated 1st December, 1967 was being narrated. The topic being discussed in the middle of the third page was that the Father says that you children are becoming members of the divine community. Why? It is because you are in the Purushottam Sangamyug (elevated Confluence Age). And they are becoming demoniac community. So, they say that we are in the Iron Age. There are still forty thousand years left in the Iron Age (Kaliyuga). You are becoming righteous, you are becoming Purushottam (highest among souls, i.e. purush). They are lowly (kanishth). And you are worth Pound. They are worth not a penny. So, someone will tell about them, Baba, they have lakhs, crores. Arey, but all that is going to be destroyed. This mega-destruction is staring at you. And it is of two kinds. Which ones? One is the third world war and the fourth? Yes. It is because two world wars have already taken placce. So, fourth is the fourth world war. Which is more dangerous? Hm? (Someone said something.) Is the fourth one dangerous? Arey, that is not so dangerous. In that the drama will end in quick succession. Unnecessary bloodshed. Which one? (Someone said something.) Yes, the third world war. The fiercest Mahabharat civil war is famous. Why was it named Mahabharat? Hm? It is not as if it is a small and sundry Bhaarat. Mahaan (great) Bhaarat. It is because where does this war originate from? Does it emerge from any other country? No. Its main center point is Bhaarat. It emerges from Bhaarat. This is why its name is Mahabhaarat.
So, destruction is to take place. So, their lakhs, crores, Arabian (Hindi word for multimillions) is going to become worth penny. They will not be valuable worth a cowrie. Yes. So, will their wealth and property remain intact? They will perish. And your wealth and property? Which wealth and property are you earning? Which stock are you accumulating? (Someone said something.) Yes, you are collecting the wealth of knowledge. It is correct that this wealth of knowledge will not be there in the new world. It will disappear, will it not? But instead of that, the extent to which you become knowledgeable here, the extent to which you donate knowledge to others, what will you keep on becoming birth by birth? You will keep on becoming wealthy. Theirs’ is temporary. What? Lakh, crore. And yours? Yours is forever. It is sure for 21 births. Baba has explained many times, hasn’t He that this is the time indeed? What? It is sung that someone’s [wealth] will remain buried under the dust, someone’s will be gobbled by the King. Remain buried under the dust? Why? Arey, those lakh and crore and those who have a lot of gold and silver, diamonds and jewels, why will they remain buried under the dust? Reason? Arey, when big Earthquakes will occur, then who knows whatever they have buried under the Earth will move from which place to which place? So, it will mix into the dust. And someone’s will be saved; if someone has saved a lot, then firstly the king will gobble. Is the government of each country extracting more from the subjects or less? Earlier the tax used to be less in the olden days. It used to be just six percent. Whatever you earned, you have to give six percent from it, yes, to the State, to the King. And keep the remaining entire 94 percent for your expenditure. Yes, use it.
So, look, the present rule and the present ruler, the present rulers in the end of the Iron Age, will they allow your wealth to be with you? They will not allow. Is the entire world moving towards atheism or are people becoming theists? Towards atheism. So, which is the atheist country? Hm? It is Russia. What is going on there? To whom does the entire property of the country, land, property, houses, shops belong? Is it anyone’s personal? It is not personal. To whom does it belong? It belongs to the government. So, this atheism is spreading in the entire world. And why? It is because the king’s dominance will work, will it not? Yes. So, the State will gobble that [wealth] of many. Look, even now, look the kings are gobbling in India, aren’t they? Those who are sitting as kings on the chairs, these people think that they will keep this gold, etc. hidden in boxes. Hm? Will they be able to keep? Why? Why will they not keep, not be able to keep hidden in boxes? It is because they have such instruments that they will find out through those instruments that it is kept here. So, everything is to come out without fail. When the crowd (population) increases, then this government becomes poor. And it will later keep on issuing newer ordinances. In order to gobble your entire land and property. Open everyone’s lockers. Open this, open that. Hm? Open all these treasury boxes. So, look, it will not make much of a difference to them.
OK daughter, museum, play the music. Achcha. If there are eatables and if there is a nice thing, then why shouldn’t we see? There are many nice things worth seeing in the world, aren’t they there? This is the wonder of the world. Is it not? But you haven’t seen. Why don’t you see the wonder of the world? Later, you, wonder of the world; What kind of wonder of the world? Nobody except you in the world can go. What? Such a time is going to come that you will go. Which topic is being discussed? You will go to see the wonder of the world. The people of the world will not be able to go. So, you will go to it. Yes. And you will be able to see the wonders of this world also, will you not be able to? Who will be able to see? Those who have money will see. So, that is there, isn’t it? It is the money. What do they say? Hm? Pujeri nano gumlal khano (a Sindhi proverb). Hm? Your treasury box (tijori) will keep on getting filled. Or will it become empty? Hm? Their lakhs and crores will perish. And yours? How will yours be saved? Hm? Look, you will live in happiness, will you not? Hm? The world will cry in despair and you will remain in happiness. You will experience Vaikunth. So, will there be happiness without money? Does it exist? Arey, a topic of this world is being discussed that He establishes heaven in the world of hell. So, does anything happen without money here? No. There will be money also if there is happiness. So, is there happiness without money? Yes. So, you also come here. Why do you come? Hm? Arey, do you come to obtain money or do you come to obtain the highest of all wealth or do you come to become poor in it? Those who have a lot of wealth, the wealth of knowledge, then if they have a lot of wealth of knowledge, then will their treasury box be empty? No. So, you have come here only to become completely, completely wealthy. Hm? You come to obtain the treasures of Kaarun of the Father. Yes.
Look, reading these scriptures is prohibited for the sanyasis. San means complete (Sampoorn); nyaasi means tyaagi (the one who sacrifices/renounces). Well, when you have sacrificed everything in the entire world, then why are you moving around with scriptures under your armpit? Hm? You say that we are Sanyasis. Those who are complete trustees (nyasis), then remove this, this also. Remove. This is also prohibited. It is because, what are these scriptures meant for? These scriptures, etc. are for those on the path of household. Yes. All those who belong to the path of household are pure in the childhood. Then they become impure after growing up. This path of Bhakti is not at all for those who belong to the path of renunciation. Even the path of Bhakti is not for those belong to the path of renunciation. For the path of renunciation reading these scriptures etc is Bhakti, isn’t it? This is not at all for them. Arey, the path of Bhakti is also not for them. It is said, isn’t it – Knowledge, Bhakti and detachment (vairaag)? So, if there is detachment, then why Bhakti? So, you have renounced everything, haven’t you? So, why Bhakti? So, the path of Bhakti is also not for them.
So, there is a lot of enjoyment for you. You have understood, haven’t you? There is a lot of enjoyment in the Confluence Age. In which topic? In the Bhakti cult? On the path of Bhakti? No. To which path do you belong? To the path of knowledge. So, there is a lot of enjoyment for you on the path of knowledge. There is no enjoyment either on their path of renunciation or on the path of Bhakti. You have already seen that for 2500 years. On the path of Bhakti, while doing Bhakti, arey, when Bhakti was satopradhaan (pure) even then there was enjoyment. Happiness was more, wasn’t it? Then what happened later? Gradually happiness went on decreasing. While decreasing now there is no enjoyment for people even in Bhakti. Everyone is going on leaving Bhakti. They are going on becoming atheists (naastik). You have understood, haven’t you?
Achcha, to the sweet, sweet, seekiladhey, those who have met after 5000 years; look, He says every day, doesn’t He that you have met after 5000 years; It is not as if He says anything less. No. To the spiritual children who have met again after 5000 years. What? Who met after 5000 years? Spiritual or physical? Arey, the Father who is going to meet is Himself spiritual, so, what kind of children does He require? Spiritual children. So, why does He say ‘complete 5000 years’? Hm? He should reduce 100, 50 years, shouldn’t He? Isn’t the Confluence Age of 100 years there in between? So, why does He say 5000 years? Hm? It is because in 100 years, is it completely necessary that all the children become constant in complete spiritual stage within 90-100 years? Will they become? No. So, the Father says for the spiritual children that remembrance, love, yes and good night of BapDada from His heart and life, love and affection. Om Shanti. (End)
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- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2960, दिनांक 02.08.2019
VCD 2960, dated 02.08.2019
प्रातः क्लास 02.12.1967
Morning class dated 02.12.1967
VCD-2960-extracts-Bilingual
समय- 00.01-22.22
Time- 00.01-22.22
आज का प्रातः क्लास है – 2 दिसम्बर, 1967, शनिवार। ओमशान्ति। पहले-पहले मुख्य बात रूहानी बच्चों को रूहानी बाप समझाते हैं। क्या मुख्य बात होगी? अपन को आत्मा समझ, आत्मा निश्चय करके बैठो कि हम आत्मा हैं। हम देह नहीं हैं। आत्मा चैतन्य। देह तो जड़ पांच तत्वों का पुतला। चैतन्य आत्मा में चित शक्ति है। कौनसी चित शक्ति? मन और बुद्धि की पावर। और जड़ तत्व हैं उनमें मन और बुद्धि उतनी होगी? नहीं होगी। तो बाप कहते हैं ना बच्चों को बच्चे, तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे। आत्मा समझने से दुख दूर हो जाएंगे और देह समझने से दुख आ जाएंगे? ये कैसे? देह समझने से दुख क्यों आ जाएंगे? क्योंकि देह के पांच तत्वों में परिवर्तन होता है। क्या परिवर्तन होता है? आज है, कल देह नहीं है। वास्ट परिवर्तन होता है, थोड़ा-बहुत होता है? वास्ट परिवर्तन हो जाता है। तो आत्मा। आत्मा तो सदाकाल रहेगी ना? इस सृष्टि में भी रहेगी और इस सृष्टि से परे भी चली जाए तो रहेगी या नहीं रहेगी? इस सृष्टि से परे चली जाए परमधाम, तो भी रहेगी ना? रहेगी। तो ये आत्मा हुई अविनाशी और शरीर हुआ, देह हुई, पांच जड़ तत्वों का शरीर ये विनाशी। तो विनाशी अपन को समझेंगे तो तुम्हारा दुख विनाश नहीं होगा। अविनाशी आत्मा समझेंगे तो आत्मा सुख स्वरूप है; आत्मा सुख स्वरूप है, आत्मा शांत स्वरूप है। दुख दूर हो जाएंगे आत्मा समझने से।
देखो, आशीर्वाद जिसको कहा जाता है ना, ये आशीर्वाद हुआ ना बच्चे, तुम्हारे सब दुख दूर हो जावेंगे। तो ये आशीर्वाद है। कैसे? कब हो जावेंगे? जब अपन को चैतन्य आत्मा समझेंगे, अविनाशी आत्मा समझेंगे। तो वो गुरु लोग आशीर्वाद देते। वो ये नहीं कहते कि तुम आत्मा समझेंगे अपन को, तो तुम्हारे दुख दूर हो जाएंगे। और बाप तो कहते हैं तुम आत्मा समझेंगे तो दुख दूर हो जावेंगे। अब जो जितना, निश्चय करके बैठे कि मैं आत्मा हूँ उतना दुख दूर हो जाएंगे। तो ये बाप आशीर्वाद असली ये देते हैं बच्चों को। तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे। सिर्फ अपन को आत्मा समझ करके बैठो। और क्या करो? और कुछ करो कि सिर्फ आत्मा समझ के बैठे रहो? हाँ, आत्मा समझ के बैठेंगे तो क्या होगा? आत्मा समझ के बैठेंगे तो क्या होगा? (किसी ने कुछ कहा।) बाप को याद करो। सिर्फ आत्मा समझ के बैठेंगे तो क्या होगा? (किसी ने कुछ कहा।) सिर्फ आत्मा जड़ होगी? अच्छा? आत्मा समझेंगे कि मैं ज्योतिबिन्दु आत्मा हूँ, अविनाशी हूँ, सुख स्वरूप हूँ, शांत स्वरूप हूँ, तो? (किसी ने कुछ कहा।) तो सूक्षम हो जाएगी? (किसी ने कुछ कहा।) तो सन्यासी हो जाएंगे? हाँ। अकेले रह जाएंगे ना? आत्मा ही सिर्फ समझेंगे तो प्रवृत्तिमार्ग के हुए कि निवृत्ति मार्ग के हुए? चलो, पहले आत्मा नहीं समझते थे। तो भी सन्यासी थे क्योंकि देह समझते थे। अभी बाप ने बताया कि तुमने जो भी, थोड़ा भी क्षणभंगुर भी सुख भोगा वो अकेले होने से भोगा या देह भी साथ में थी तब भोगा? देह भी थी। प्रवृत्ति में सुख है, निवृत्ति में तो कोई सुख नहीं है।
तो बाप कहते हैं सिर्फ आत्मा समझने से काम नहीं चलेगा। हँ? ठन-ठन गोपाल अकेले रह जाओगे। हाँ। तो क्या करो? हँ? मुझ बाप को याद करो। चाहे जिस रूप में याद करो। हँ? अरे, बाप को बच्चे होते हैं तो भी क्या कहेंगे बच्चों के साथ बाप है तो प्रवृत्ति में है कि निवृत्ति में है? हँ? प्रवृत्ति में हुआ ना? बच्ची के साथ है, बच्चे के साथ है, हँ, तो भी प्रवृत्ति है। पत्नी के साथ है तो तो है ही है प्रवृत्ति। तो अपन को आत्मा समझ के बैठो और प्रवृत्ति में सदा रहोगे तो सुखी, शांत रहोगे। बाप को याद करो फिर। तो याद कैसे करें? हँ? याद कैसे करें? आत्मा बाप को कैसे याद करे? आत्मा ज्योतिबिन्दु। बिन्दु अति सूक्ष्म। इन आँखों से भी देखने में नहीं आता। और विज्ञान के यंत्रों से देखें तो वो, वो भी नहीं देखने में आता। तो फिर याद कैसे करें? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ।
तो बाप ने बताया कि याद करने के लिए फिर मैं जो ज्ञान देता हूँ जानकारी; क्या जानकारी देता हूँ? कि मैं भी सिर्फ आत्मा अकेला नहीं हूँ इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने के लिए। मुझे भी क्या चाहिए? मुझे भी प्रवृत्ति चाहिए। तो मैं प्रवृत्ति में सुखी रहता हूँ। नहीं तो शांत रहता हूँ। ब्रह्मलोक, परमधाम में रहता हूँ तो क्या शांत रहता हूँ कि वहां सुख में रहता हूँ? शांत रहता हूँ। जैसे सुषुप्ति में शांति होती है तो सो जाता हूँ। लेकिन तुम बच्चों को क्या चाहिए? बाप की खुशी बच्चों की खुशी में होती है या बाप अकेला खुशी रहे और बच्चे घर में आग लग गई है वहां जल रहे हैं तो बाप खुश होगा? हँ? नहीं खुश होगा। तो बाप कहते हैं कि मुझे भी तब ही खुशी होती है जब मैं इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर आकरके बच्चों को, हँ, जो बच्चे जल रहे हैं कामाग्नि में उनको कामाग्नि से निकालूं तो मुझे खुशी होती है। कामाग्नि से निकालूं और फिर योगाग्नि में डालूं।
तो दो बातें बताते हैं। क्या करो? क्या करो? एक तो ये काम को छोड़ो। काम को, काम विकार को छोड़ो। और दूसरे मैं जो तुम्हें जानकारी देता हूँ कि; क्या जानकारी? कि मुझे याद करो। कैसे याद करें? तो तुम तो, भले आत्मा समझो, कहता हूँ। लेकिन कहता हूँ का मतलब ये है कि तुम नहीं हो ना आत्मा अभी। कि 24 घंटे आत्मा की स्टेज में टिकते हो? टिकते हो? नहीं टिकते। माने देह में हो ना? तो देह में ये मन और बुद्धि भी रहती है। क्या? मन-बुद्धि देह में लगी हुई है ना? हां। सबसे ये जो देह के अंदर मन-बुद्धि सबसे ऊँची चीज़ है। देह में जो भी तत्व हैं पांच तत्व हैं ना पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश। लेकिन इनको कंट्रोल करने वाला मन भी है ना? और मन को कंट्रोल करने वाली बुद्धि है।
तो बताया कि मन-बुद्धि से मुझे याद करो। ये तुम्हारी आत्मा में ये दो शक्तियां हैं विशेष; क्या? मन और बुद्धि। तो कैसे याद करोगे? तो मैं पहचान देता हूँ कि मैं जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करता हूँ मुकर्रर रूप से उसमें याद करो। क्या? सिर्फ निराकार आत्मा अपने को समझेंगे और निराकार बाप को याद करेंगे तो ये बहुत डिफिकल्ट है। क्या? बताय भी दिया। बाप को याद करो। परन्तु बाप को जिसे तुम कहते हो बिन्दु-बिन्दु आत्माओं का बाप है, तो अभी ये बहुत डिफिकल्ट बात है। हँ? डिफिकल्ट है कि सहज है? हँ? डिफिकल्ट है? डिफिकल्ट है। है? है? नहीं है? है। डिफिकल्ट है। ठीक है। तो डिफिकल्ट बात है तो बाप कहते हैं डिफिकल्ट है? हाँ, अरे, कितना सहज है! जो मैं जानकारी देता हूँ, ज्ञान देता हूँ ना? जानकारी माना? ज्ञान। जो ज्ञान देता हूँ तो वो जानकारी पूरी ग्रहण करो, धारण करो, अच्छी तरह से उसपे विचार करके और पक्का कर दो कि ये ज्ञान; क्या ज्ञान? कि मैं किस मुकर्रर रथ में प्रवेश करता हूँ।
वो गीता है ना जो मनुष्यों की लिखी हुई गीता उसमें भी तो ये बात लिखी हैं। ज्ञान क्या है? बस दो बातों का ज्ञान है – क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ। क्षेत्र माने? शरीर। शरीरधारी है तो क्षेत्र है। क्योंकि शरीर में ही आत्मा रहती है ना? और उस क्षेत्रज्ञ को जानो। माने हर शरीर में अपनी एक आत्मा है कि नहीं? हाँ। तो उन शरीरधारियों को जिनमें आत्मा अपनी-अपनी रही पड़ी है, अपने-अपने संस्कारों वाली तो उसका जानकार कौन है? हर शरीरधारी आत्मा का कोई जानकार है? हाँ, तो वो जानकार है आत्माओं का बाप। क्योंकि ये आत्मा तो इन आँखों से तो नहीं दिखाई देती। किसको दिखाई देगी? हँ? हाँ, सदाकाल तो उसी को दिखाई देगी जो आत्मा ही हो सदाकाल। देह न हो। तो तुम बच्चे तो इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्टधारी हो ना? तुम को तो देह है। क्या? ये है कि कोई को, जिसका मैं परिचय देता हूँ, जिसको मैं जानकारी देता हूं, मुकर्रर रथ की, वो सदाकाल है इस सृष्टि पर। क्या? हाँ, बाकि जितने हैं आत्माएं, चाहे देवात्माएं हों, मनुष्यात्माएं, ऋषि-मुनि की हों, राक्षस हों, कीड़े-मकोड़े हों, पशु-पक्षी हों, वो सब; क्या? सब भोगी हैं। और इतने भोगी हैं कि वो भोग भोगते-3 क्या, हां, वो वो स्टेज को नहीं पहुंच पाते; कौनसी स्टेज? जो, जिस मुकर्रर रथ में मैं प्रवेश करता हूँ। क्या स्टेज? अभोक्ता। क्योंकि मैं आता हूँ तो मैं तो विरुद लेके आता हूँ कि मैं क्या करके जाऊँगा? हाँ, समान बनाके जाऊँगा। अब जो बने। क्या? पुरुषार्थ है ना? जो इतनी पढ़ाई पढ़े, पुरुषार्थ करे, तो समान बने तो फिर वो भोक्ता से क्या बन जाएगा? मेरे समान अभोक्ता बन जाएगा।
तो उस मुकर्रर रथ को पहचान लिया पक्का-पक्का या जितना भी पहचान लिया, हाँ, उतना तुमको सहज हो जाएगा। नहीं पहचाना तो फिर तुम अपने को ज्यादा प्यार करोगे, आत्मा को, अपनी देह को ज्यादा प्यार करोगे कि जिस मुकर्रर रथ में मैं सदाकाल इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाता हूँ; सौ साल के लिए आता हूँ ना? तो सौ साल लगातार पार्ट बजाता हूँ ना? हँ? बजाता हूँ। तो उसको प्यार करोगे? नहीं समझ में आया? प्यार किसको करोगे? हँ? अपनी देह को ज्यादा प्यार करोगे, देह की ज्यादा परवरिश करोगे या मैं जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करता हूँ मुकर्रर रूप से उससे तुम्हारा प्यार जुटेगा? किससे जुटेगा? (किसी ने कुछ कहा।) मुकर्रर रथ से जुटेगा? अच्छा? तो मुकर्रर रथ मंद तो मैं बैठा हुआ हूँ। शिव बैठा हुआ है। तो शिव मुकर्रर रथ में बैठा हुआ है और तुम्हारा प्यार जुट गया है किससे? शिव, शिवबाबा से। तो तुम भोक्ता बनोगे कि अभोक्ता बनोगे? फिर क्या बनोगे? हँ? तो बनते हो? हँ? अरे? मैं आता हूँ तो जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करता हूँ, संग का रंग जास्ती किसको लगेगा? जिसमें मुकर्रर रूप से सदाकाल संग का रंग रहता है तो ज्यादा लगेगा ना? तो वो सदाकाल याद में रहेगा, रह सकता है या नहीं रह सकता है? रह सकता है। और जब सदाकाल याद में रहेगा तो समान बनेगा या नहीं बनेगा? नहीं बनेगा? नहीं बनेगा? बनेगा।
और बाकि? बाकि जो मुकर्रर रथ नहीं हैं, चलो, दादा लेखराज ब्रह्मा जैसे हैं, जगदम्बा है, हँ, हाँ, आदि लक्ष्मी है; दादा लेखराज ब्रह्मा की विशेष सहयोगिनी शक्ति सरस्वती है; बेटी है ना? हाँ, तो वो उनको मुकर्रर रथ कहें? नहीं। नंबरवार तो होंगे ना? तो वो मुकर्रर रथ में तो सदाकाल। और जो टेम्परेरी हैं, उनमें टेम्परेरी रहूंगा। तो उनको लगातार याद आएगी? लगातार का संग का रंग लगेगा? हँ? नहीं लगेगा। तो भोक्ता रहेंगे कि अभोक्ता रहेंगे? एक अक्षर लिखो। हँ? क्या बनेंगे वो? भोक्ता बनेंगे। अच्छा? तो जो भोक्ता बनेंगे तो फिर जब भोक्ता बनेंगे तो ज्यादा नीचे गिरेंगे कि ऐसी स्टेज आ सकती है पुरुषार्थ करते-करते कि बिल्कुल नीचे न गिरें? अरे? संग का रंग कम लगा शिव बाप का, अभोक्ता का, तो भोगीपने की स्थिति रह जाएगी ना? भोगीपने की स्थिति रह जाएगी, किसी को 99, किसी को 98, किसी को 50, किसी को 8, एक, तो जितनी भोगीपने की स्टेज रह जाएगी तो भोग भोगने से ज्यादा तेजी से नीचे गिरेंगे कि धीरे-धीरे गिरेंगे? हँ? और जो मुकर्रर रथधारी है, हँ, उसकी स्टेज क्या होगी? है वो भी भोगी आत्मा, लेकिन वो धीरे-धीरे नीचे गिरेगी कि तेजी से नीचे गिरेगी? धीरे-धीरे गिरेगी।
तो ये हिसाब है। सहज कब हो सकता है? सहज तब हो सकता है कि जिसका मैं परिचय देने आया हूँ, परिचय देता हूँ मुकर्रर रथ का, उस मुकर्रर रथधारी को तुम जितना पहचानेंगे और जितना जल्दी पहचानेंगे और कितना? ऐसे नहीं थोड़ा पहचान लिया, थोड़ा रह गया। नहीं। सौ परसेन्ट जितना तुम्हारे में आत्मा में परख शक्ति होगी, हर आत्मा में अपनी-अपनी परख शक्ति की बुद्धि है ना? तो जितनी बुद्धि होगी उतना पहचानेंगे। तो सहज हो जाएगा, कठिन हो जाएगा? तो सहज हो जाएगा। इसको कहा जाएगा अति सहज। किसको? हँ? इसको माने किसको? हँ? हाँ, जिसमें मुकर्रर रूप से प्रवेश करता हूँ इसको अगर पक्का-पक्का पहचान लिया तो कहा जाएगा अति सहज। और नहीं पहचाना तो अति कठिन। हँ? हाँ।
Today’s morning class is dated 2nd December, 1967, Saturday. Om Shanti. The spiritual Father explains the first and foremost main topic to the spiritual children. What must be the main topic? Sit considering yourself to be a soul, resolving yourself to be a soul that we are souls. We are not bodies. The soul is Chaitanya (living). The body is an effigy of the non-living five elements. There is living power (chitt shakti) in the living soul. Which chitt shakti? The power of mind and intellect. And will the non-living elements have that much mind and intellect? They will not have. So, the Father tells the children, doesn’t He that children, all your sorrows will be removed? Will your sorrows be removed by considering yourself to be a soul and will you get sorrows by considering yourself to be a body? How is this? Why will you get sorrows by considering yourself to be a body? It is because transformation takes place in the five elements of the body. What transformation takes place? The body exists today, it will not exist tomorrow. Does a vast transformation take place or does a little bit [transformation] take place? Vast transformation takes place. So, the soul; the soul will remain forever, will it not? It will remain in this world also and even when it goes beyond this world, will it exist or not? Even when it goes beyond this world to the Supreme Abode, it will exist, will it not? It will exist. So, this soul is imperishable and the body, this body made up of the five non-living elements is perishable. So, if you consider yourself to be perishable, then your sorrows will not be removed. If you consider yourself to be an imperishable soul, then the soul is joyful; the soul is joyful, peaceful. The sorrows will be removed by considering yourself to be a soul.
Look, that which is called aashirwaad (blessing), isn’t it, this is a blessing, isn’t it children that all your sorrows will be removed? So, this is a blessing. How? When will they be removed? It is when you consider yourself to be a living soul, imperishable soul. So, those Gurus give blessings. They do not say that if you consider yourself to be a soul, then all your sorrows will be removed. And the Father says that if you consider yourself to be a soul, then all your sorrows will be removed. Well, whoever sits with whatever extent of faith that I am a soul, then the sorrows will be removed to the same extent. So, this Father gives this true blessing to the children. All your sorrows will be removed. Just sit thinking yourselves to be a soul. And what should you do? Should you do anything else or should you just sit thinking yourselves to be souls? Yes, what will happen if you consider yourself to be a soul? What will happen if you consider yourself to be a soul? (Someone said something.) Remember the Father. What will happen if you sit considering yourselves to be just a soul? (Someone said something.) Will just the soul be non-living? Achcha? If you consider yourself to be a soul that I am a point of light soul, I am imperishable, I am joyful, I am peaceful, then? (Someone said something.) Then will it become subtle? (Someone said something.) Will you then become Sanyasis? Yes. You will remain alone, will you not? If you consider yourself to be just a soul, then do you belong to the path of household or to the path of renunciation? Okay, earlier you did not used to consider yourselves to be souls. Still, you were Sanyasis because you used to consider yourselves to be a body. Now the Father has told that whatever, whatever little, momentary pleasure you enjoyed, did you enjoy it by being alone [a soul] or did you enjoy it when it [the soul] was with the body? The body was also there. There is happiness in household (pravritti); there is no happiness in renunciation (nivritti).
So, the Father says that it will not suffice if you consider yourself to be just a soul. Hm? You will remain alone ‘than-than Gopal’ (a solitary man without money). Yes. So, what should you do? Hm? Remember Me, the Father. You may remember in any form that you want. Hm? Arey, a Father has children, still will it be called? If the Father is with the children, then is he in a household or in renunciation? Hm? He is in household, isn’t he? If he is with the daughter, if he is with the son, still there is a household. If he is with the wife, then there is a household anyway. So, sit considering yourself to be a soul and if you remain in a household forever, then you will remain happy, peaceful forever. Then remember the Father. So, how should we remember? Hm? How should we remember? How should the soul remember the Father? The soul is a point of light. The point is very subtle. It is not visible even to these eyes. And if you see through the instruments of the science, then, even then it is not visible. So, then how do we remember [Him]? Hm? (Someone said something.) Yes.
So, the Father said that then in order to remember [Me], the knowledge that I give, the information that I provide; what is the information that I provide? That I too am not just a soul alone to play My part on this world stage. What do I too require? I too require a household. So, I remain happy in the household. Otherwise, I remain peaceful. I live in Brahmlok, Paramdhaam (Supreme Abode), so, do I remain peaceful or do I remain happy there? I remain peaceful. Just as there is peace in deep sleep, so, I sleep. But what do you children require? Does the happiness of the Father lie in the happiness of the children or if the Father remains happy alone and if the house catches fire and if the children are burning there, then will the Father feel happy? Hm? He will not be happy. So, the Father says that I too feel happy only when I come on this world stage and take the children, hm, the children who are burning in the fire of lust, if I bring them out of that fire of lust, I feel happy. I should bring them out of the fire of lust and then put them in the fire of Yoga.
So, He tells two topics. What should you do? What should you do? One thing is that leave this lust. Leave lust, the vice of lust. And secondly, the information that I provide you; what information? That remember Me. How should we remember? So, you, although I say that consider yourself to be a soul. But ‘I say’ means that you are not soul now, are you? Do you remain constant in the stage of the soul for 24 hours? Do you remain constant? You don’t remain constant. It means that you are in the body, aren’t you? So, there is this mind and intellect also in the body. What? The mind and intellect is engaged in the body, isn’t it? Yes. When compared to everything within the body, the mind and intellect is the highest thing. All the elements in the body, there are five elements, aren’t they there? Earth, water, air, fire, ether. But there is mind also that controls them, doesn’t it? And the one that controls the mind is the intellect.
So, it was told that remember Me through the mind and intellect. There are these two special powers in your soul; what? Mind and intellect. So, how will you remember? So, I give an indication that the permanent Chariot in which I enter in a permanent manner, remember Me in it. What? If you consider yourself to be just an incorporeal soul and if you remember the incorporeal Father, then it is very difficult. What? It was even told. Remember the Father. But the Father, for whom you say that He is the Father of the point-like souls, so, this is a very difficult topic. Hm? Is it difficult or easy? Hm? Is it difficult? It is difficult. Is it? Is it? Is it not? It is. It is difficult. It is correct. So, when it is a difficult topic, then the Father says - is it difficult? Yes, arey, it is so easy! The information that I provide, I give knowledge, don’t I? What is meant by information? Knowledge. The knowledge that I give, so, assimilate, inculcate that information completely after thinking over it nicely and make it firm that this knowledge; what knowledge? That in which permanent Chariot do I enter?
There is that Gita, isn’t it, the Gita written by the human beings, this topic has been written in that as well. What is knowledge? It is the knowledge of just two topics – Kshetra and Kshetragya. What is meant by Kshetra? The body. If someone is a bodily being, then it is a Kshetra. It is because the soul resides in the body only, doesn’t it? And know that Kshetragya. It means that is there a soul of its own in every body or not? Yes. So, those bodily beings, in whom there is individual soul with individual sanskars, so, who has its knowledge? Is there anyone who knows about every embodied soul? Yes, so, that knower is the Father of souls. It is because this soul is not visible to these eyes. To whom will it be visible? Hm? Yes, it will be visible forever only to the one who is forever a soul. He should not be a body. So, you children are actors on this world stage, aren’t you? You have a body. What? It is true that someone, whose introduction I give, the one to whom I give information, of the permanent Chariot, he is forever in this world. What? Yes, all other souls, be it the deity souls, be it the human souls, be it the souls of sages and saints, demons, worms and insects, animals and birds, all of them; what? All are pleasure-seekers (bhogi). And they are so much pleasure-seekers that while enjoying pleasures, what, yes, they are unable to reach that stage; which stage? The permanent Chariot in which I enter; What stage? Abhokta (non-pleasure seeker). It is because when I come, then I come with a vow that what will I do and go? Yes, I will make you equal to Myself and go. Well, whoever becomes. What? It is purusharth, isn’t it? Whoever studies to whatever extent, makes purusharth, so, if he becomes equal, then what will he become from a bhokta (pleasure-seeker)? He will become abhokta like Me.
So, when you recognize that permanent Chariot firmly or to whatever extent you recognize, yes, it will become easy for you to the same extent. If you don’t recognize, then will you love yourself, the soul more or will you love your body more that the permanent Chariot in which I play My part forever in this world stage; I come for hundred years, don’t I? So, I play a part continuously for hundred years, don’t I? Hm? I play. So, will you love him? Did you not understand? Whom will you love? Hm? Will you love your body, will you take care of your body more or will your love get connected to the permanent Chariot in which I enter in a permanent manner? With whom will it connect? (Someone said something.) Will it connect with the permanent Chariot? Achcha? So, I am sitting in the permanent Chariot. Shiv is sitting. So, Shiv is sitting in the permanent Chariot and with whom did your love connect? With Shiv, ShivBaba. So, will you become bhokta or abhokta? Then what will you become? Hm? So, do you become? Hm? Arey? When I come, then the permanent Chariot in which I enter, who will get coloured more by the company? The one in whom He remains permanently will get coloured more by the company, will he not? So, will he remain forever in remembrance, can he remain or not? He can remain. And when he remains in remembrance forever, then will he become equal or not? Will he not become? Will he not become? He will become.
And the rest? The rest who are not permanent chariots, okay, just as there is Dada Lekhraj Brahma, there is Jagdamba, hm, yes, there is the first Lakshmi; there is Saraswati, the special helper shakti of Dada Lekhraj Brahma; She is the daughter, isn’t she? Yes, so, should they be called permanent chariots? No. They will be numberwise, will they not be? So, in the permanent Chariot He is forever. And in the temporary ones I shall be temporary. So, will they remember continuously? Will they get coloured by the company continuously? Hm? They will not be. So, will they remain bhokta or abhokta? Write one alphabet. Hm? What will they become? They will become bhokta. Achcha? So, those who become bhokta, then when they become bhokta, will they fall deeper or can they achieve such a stage while making purusharth that they do not fall down at all? Arey? When they get less coloured by the company of Father Shiv, the Abhokta, then they will continue to be in the stage of a bhogi, will they not? The stage of being a bhogi will remain; in case of some it will be 99, in case of some it will be 98, in case of some it will be 50, in case of some it will be 8, one, so, the extent to which the stage of being a bhogi will remain, then by experiencing pleasures, will they experience downfall quickly or will they fall gradually? Hm? And the permanent Chariot holder, what will be his stage? He too is a bhogi soul, but will he fall gradually or will he fall quickly? He will fall gradually.
So, this is the account. When can it be easy? It can be easy when the one whose introduction I have come to give, I give the introduction of the permanent Chariot, the more you recognize that permanent Chariot-holder and the faster you recognize and to what extent? It is not as if you recognize a little and leave a little. No. The extent to which you, the soul have 100 percent power to discern; every soul has individual intellect to discern, doesn’t it? So, the extent to which they have the intellect [to discern], they will recognize to that extent. So, will it become easy or will it become difficult? Then it will become easy. This is called very easy. What? Hm? ‘This’ means what? Hm? Yes, the permanent Chariot in which I enter, if you recognize him firmly, then it will be called very easy. And if you didn’t recognize then it is very difficult. Hm? Yes.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2960, दिनांक 02.08.2019
VCD 2960, dated 02.08.2019
प्रातः क्लास 02.12.1967
Morning class dated 02.12.1967
VCD-2960-extracts-Bilingual
समय- 00.01-22.22
Time- 00.01-22.22
आज का प्रातः क्लास है – 2 दिसम्बर, 1967, शनिवार। ओमशान्ति। पहले-पहले मुख्य बात रूहानी बच्चों को रूहानी बाप समझाते हैं। क्या मुख्य बात होगी? अपन को आत्मा समझ, आत्मा निश्चय करके बैठो कि हम आत्मा हैं। हम देह नहीं हैं। आत्मा चैतन्य। देह तो जड़ पांच तत्वों का पुतला। चैतन्य आत्मा में चित शक्ति है। कौनसी चित शक्ति? मन और बुद्धि की पावर। और जड़ तत्व हैं उनमें मन और बुद्धि उतनी होगी? नहीं होगी। तो बाप कहते हैं ना बच्चों को बच्चे, तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे। आत्मा समझने से दुख दूर हो जाएंगे और देह समझने से दुख आ जाएंगे? ये कैसे? देह समझने से दुख क्यों आ जाएंगे? क्योंकि देह के पांच तत्वों में परिवर्तन होता है। क्या परिवर्तन होता है? आज है, कल देह नहीं है। वास्ट परिवर्तन होता है, थोड़ा-बहुत होता है? वास्ट परिवर्तन हो जाता है। तो आत्मा। आत्मा तो सदाकाल रहेगी ना? इस सृष्टि में भी रहेगी और इस सृष्टि से परे भी चली जाए तो रहेगी या नहीं रहेगी? इस सृष्टि से परे चली जाए परमधाम, तो भी रहेगी ना? रहेगी। तो ये आत्मा हुई अविनाशी और शरीर हुआ, देह हुई, पांच जड़ तत्वों का शरीर ये विनाशी। तो विनाशी अपन को समझेंगे तो तुम्हारा दुख विनाश नहीं होगा। अविनाशी आत्मा समझेंगे तो आत्मा सुख स्वरूप है; आत्मा सुख स्वरूप है, आत्मा शांत स्वरूप है। दुख दूर हो जाएंगे आत्मा समझने से।
देखो, आशीर्वाद जिसको कहा जाता है ना, ये आशीर्वाद हुआ ना बच्चे, तुम्हारे सब दुख दूर हो जावेंगे। तो ये आशीर्वाद है। कैसे? कब हो जावेंगे? जब अपन को चैतन्य आत्मा समझेंगे, अविनाशी आत्मा समझेंगे। तो वो गुरु लोग आशीर्वाद देते। वो ये नहीं कहते कि तुम आत्मा समझेंगे अपन को, तो तुम्हारे दुख दूर हो जाएंगे। और बाप तो कहते हैं तुम आत्मा समझेंगे तो दुख दूर हो जावेंगे। अब जो जितना, निश्चय करके बैठे कि मैं आत्मा हूँ उतना दुख दूर हो जाएंगे। तो ये बाप आशीर्वाद असली ये देते हैं बच्चों को। तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे। सिर्फ अपन को आत्मा समझ करके बैठो। और क्या करो? और कुछ करो कि सिर्फ आत्मा समझ के बैठे रहो? हाँ, आत्मा समझ के बैठेंगे तो क्या होगा? आत्मा समझ के बैठेंगे तो क्या होगा? (किसी ने कुछ कहा।) बाप को याद करो। सिर्फ आत्मा समझ के बैठेंगे तो क्या होगा? (किसी ने कुछ कहा।) सिर्फ आत्मा जड़ होगी? अच्छा? आत्मा समझेंगे कि मैं ज्योतिबिन्दु आत्मा हूँ, अविनाशी हूँ, सुख स्वरूप हूँ, शांत स्वरूप हूँ, तो? (किसी ने कुछ कहा।) तो सूक्षम हो जाएगी? (किसी ने कुछ कहा।) तो सन्यासी हो जाएंगे? हाँ। अकेले रह जाएंगे ना? आत्मा ही सिर्फ समझेंगे तो प्रवृत्तिमार्ग के हुए कि निवृत्ति मार्ग के हुए? चलो, पहले आत्मा नहीं समझते थे। तो भी सन्यासी थे क्योंकि देह समझते थे। अभी बाप ने बताया कि तुमने जो भी, थोड़ा भी क्षणभंगुर भी सुख भोगा वो अकेले होने से भोगा या देह भी साथ में थी तब भोगा? देह भी थी। प्रवृत्ति में सुख है, निवृत्ति में तो कोई सुख नहीं है।
तो बाप कहते हैं सिर्फ आत्मा समझने से काम नहीं चलेगा। हँ? ठन-ठन गोपाल अकेले रह जाओगे। हाँ। तो क्या करो? हँ? मुझ बाप को याद करो। चाहे जिस रूप में याद करो। हँ? अरे, बाप को बच्चे होते हैं तो भी क्या कहेंगे बच्चों के साथ बाप है तो प्रवृत्ति में है कि निवृत्ति में है? हँ? प्रवृत्ति में हुआ ना? बच्ची के साथ है, बच्चे के साथ है, हँ, तो भी प्रवृत्ति है। पत्नी के साथ है तो तो है ही है प्रवृत्ति। तो अपन को आत्मा समझ के बैठो और प्रवृत्ति में सदा रहोगे तो सुखी, शांत रहोगे। बाप को याद करो फिर। तो याद कैसे करें? हँ? याद कैसे करें? आत्मा बाप को कैसे याद करे? आत्मा ज्योतिबिन्दु। बिन्दु अति सूक्ष्म। इन आँखों से भी देखने में नहीं आता। और विज्ञान के यंत्रों से देखें तो वो, वो भी नहीं देखने में आता। तो फिर याद कैसे करें? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ।
तो बाप ने बताया कि याद करने के लिए फिर मैं जो ज्ञान देता हूँ जानकारी; क्या जानकारी देता हूँ? कि मैं भी सिर्फ आत्मा अकेला नहीं हूँ इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने के लिए। मुझे भी क्या चाहिए? मुझे भी प्रवृत्ति चाहिए। तो मैं प्रवृत्ति में सुखी रहता हूँ। नहीं तो शांत रहता हूँ। ब्रह्मलोक, परमधाम में रहता हूँ तो क्या शांत रहता हूँ कि वहां सुख में रहता हूँ? शांत रहता हूँ। जैसे सुषुप्ति में शांति होती है तो सो जाता हूँ। लेकिन तुम बच्चों को क्या चाहिए? बाप की खुशी बच्चों की खुशी में होती है या बाप अकेला खुशी रहे और बच्चे घर में आग लग गई है वहां जल रहे हैं तो बाप खुश होगा? हँ? नहीं खुश होगा। तो बाप कहते हैं कि मुझे भी तब ही खुशी होती है जब मैं इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर आकरके बच्चों को, हँ, जो बच्चे जल रहे हैं कामाग्नि में उनको कामाग्नि से निकालूं तो मुझे खुशी होती है। कामाग्नि से निकालूं और फिर योगाग्नि में डालूं।
तो दो बातें बताते हैं। क्या करो? क्या करो? एक तो ये काम को छोड़ो। काम को, काम विकार को छोड़ो। और दूसरे मैं जो तुम्हें जानकारी देता हूँ कि; क्या जानकारी? कि मुझे याद करो। कैसे याद करें? तो तुम तो, भले आत्मा समझो, कहता हूँ। लेकिन कहता हूँ का मतलब ये है कि तुम नहीं हो ना आत्मा अभी। कि 24 घंटे आत्मा की स्टेज में टिकते हो? टिकते हो? नहीं टिकते। माने देह में हो ना? तो देह में ये मन और बुद्धि भी रहती है। क्या? मन-बुद्धि देह में लगी हुई है ना? हां। सबसे ये जो देह के अंदर मन-बुद्धि सबसे ऊँची चीज़ है। देह में जो भी तत्व हैं पांच तत्व हैं ना पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश। लेकिन इनको कंट्रोल करने वाला मन भी है ना? और मन को कंट्रोल करने वाली बुद्धि है।
तो बताया कि मन-बुद्धि से मुझे याद करो। ये तुम्हारी आत्मा में ये दो शक्तियां हैं विशेष; क्या? मन और बुद्धि। तो कैसे याद करोगे? तो मैं पहचान देता हूँ कि मैं जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करता हूँ मुकर्रर रूप से उसमें याद करो। क्या? सिर्फ निराकार आत्मा अपने को समझेंगे और निराकार बाप को याद करेंगे तो ये बहुत डिफिकल्ट है। क्या? बताय भी दिया। बाप को याद करो। परन्तु बाप को जिसे तुम कहते हो बिन्दु-बिन्दु आत्माओं का बाप है, तो अभी ये बहुत डिफिकल्ट बात है। हँ? डिफिकल्ट है कि सहज है? हँ? डिफिकल्ट है? डिफिकल्ट है। है? है? नहीं है? है। डिफिकल्ट है। ठीक है। तो डिफिकल्ट बात है तो बाप कहते हैं डिफिकल्ट है? हाँ, अरे, कितना सहज है! जो मैं जानकारी देता हूँ, ज्ञान देता हूँ ना? जानकारी माना? ज्ञान। जो ज्ञान देता हूँ तो वो जानकारी पूरी ग्रहण करो, धारण करो, अच्छी तरह से उसपे विचार करके और पक्का कर दो कि ये ज्ञान; क्या ज्ञान? कि मैं किस मुकर्रर रथ में प्रवेश करता हूँ।
वो गीता है ना जो मनुष्यों की लिखी हुई गीता उसमें भी तो ये बात लिखी हैं। ज्ञान क्या है? बस दो बातों का ज्ञान है – क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ। क्षेत्र माने? शरीर। शरीरधारी है तो क्षेत्र है। क्योंकि शरीर में ही आत्मा रहती है ना? और उस क्षेत्रज्ञ को जानो। माने हर शरीर में अपनी एक आत्मा है कि नहीं? हाँ। तो उन शरीरधारियों को जिनमें आत्मा अपनी-अपनी रही पड़ी है, अपने-अपने संस्कारों वाली तो उसका जानकार कौन है? हर शरीरधारी आत्मा का कोई जानकार है? हाँ, तो वो जानकार है आत्माओं का बाप। क्योंकि ये आत्मा तो इन आँखों से तो नहीं दिखाई देती। किसको दिखाई देगी? हँ? हाँ, सदाकाल तो उसी को दिखाई देगी जो आत्मा ही हो सदाकाल। देह न हो। तो तुम बच्चे तो इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्टधारी हो ना? तुम को तो देह है। क्या? ये है कि कोई को, जिसका मैं परिचय देता हूँ, जिसको मैं जानकारी देता हूं, मुकर्रर रथ की, वो सदाकाल है इस सृष्टि पर। क्या? हाँ, बाकि जितने हैं आत्माएं, चाहे देवात्माएं हों, मनुष्यात्माएं, ऋषि-मुनि की हों, राक्षस हों, कीड़े-मकोड़े हों, पशु-पक्षी हों, वो सब; क्या? सब भोगी हैं। और इतने भोगी हैं कि वो भोग भोगते-3 क्या, हां, वो वो स्टेज को नहीं पहुंच पाते; कौनसी स्टेज? जो, जिस मुकर्रर रथ में मैं प्रवेश करता हूँ। क्या स्टेज? अभोक्ता। क्योंकि मैं आता हूँ तो मैं तो विरुद लेके आता हूँ कि मैं क्या करके जाऊँगा? हाँ, समान बनाके जाऊँगा। अब जो बने। क्या? पुरुषार्थ है ना? जो इतनी पढ़ाई पढ़े, पुरुषार्थ करे, तो समान बने तो फिर वो भोक्ता से क्या बन जाएगा? मेरे समान अभोक्ता बन जाएगा।
तो उस मुकर्रर रथ को पहचान लिया पक्का-पक्का या जितना भी पहचान लिया, हाँ, उतना तुमको सहज हो जाएगा। नहीं पहचाना तो फिर तुम अपने को ज्यादा प्यार करोगे, आत्मा को, अपनी देह को ज्यादा प्यार करोगे कि जिस मुकर्रर रथ में मैं सदाकाल इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाता हूँ; सौ साल के लिए आता हूँ ना? तो सौ साल लगातार पार्ट बजाता हूँ ना? हँ? बजाता हूँ। तो उसको प्यार करोगे? नहीं समझ में आया? प्यार किसको करोगे? हँ? अपनी देह को ज्यादा प्यार करोगे, देह की ज्यादा परवरिश करोगे या मैं जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करता हूँ मुकर्रर रूप से उससे तुम्हारा प्यार जुटेगा? किससे जुटेगा? (किसी ने कुछ कहा।) मुकर्रर रथ से जुटेगा? अच्छा? तो मुकर्रर रथ मंद तो मैं बैठा हुआ हूँ। शिव बैठा हुआ है। तो शिव मुकर्रर रथ में बैठा हुआ है और तुम्हारा प्यार जुट गया है किससे? शिव, शिवबाबा से। तो तुम भोक्ता बनोगे कि अभोक्ता बनोगे? फिर क्या बनोगे? हँ? तो बनते हो? हँ? अरे? मैं आता हूँ तो जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करता हूँ, संग का रंग जास्ती किसको लगेगा? जिसमें मुकर्रर रूप से सदाकाल संग का रंग रहता है तो ज्यादा लगेगा ना? तो वो सदाकाल याद में रहेगा, रह सकता है या नहीं रह सकता है? रह सकता है। और जब सदाकाल याद में रहेगा तो समान बनेगा या नहीं बनेगा? नहीं बनेगा? नहीं बनेगा? बनेगा।
और बाकि? बाकि जो मुकर्रर रथ नहीं हैं, चलो, दादा लेखराज ब्रह्मा जैसे हैं, जगदम्बा है, हँ, हाँ, आदि लक्ष्मी है; दादा लेखराज ब्रह्मा की विशेष सहयोगिनी शक्ति सरस्वती है; बेटी है ना? हाँ, तो वो उनको मुकर्रर रथ कहें? नहीं। नंबरवार तो होंगे ना? तो वो मुकर्रर रथ में तो सदाकाल। और जो टेम्परेरी हैं, उनमें टेम्परेरी रहूंगा। तो उनको लगातार याद आएगी? लगातार का संग का रंग लगेगा? हँ? नहीं लगेगा। तो भोक्ता रहेंगे कि अभोक्ता रहेंगे? एक अक्षर लिखो। हँ? क्या बनेंगे वो? भोक्ता बनेंगे। अच्छा? तो जो भोक्ता बनेंगे तो फिर जब भोक्ता बनेंगे तो ज्यादा नीचे गिरेंगे कि ऐसी स्टेज आ सकती है पुरुषार्थ करते-करते कि बिल्कुल नीचे न गिरें? अरे? संग का रंग कम लगा शिव बाप का, अभोक्ता का, तो भोगीपने की स्थिति रह जाएगी ना? भोगीपने की स्थिति रह जाएगी, किसी को 99, किसी को 98, किसी को 50, किसी को 8, एक, तो जितनी भोगीपने की स्टेज रह जाएगी तो भोग भोगने से ज्यादा तेजी से नीचे गिरेंगे कि धीरे-धीरे गिरेंगे? हँ? और जो मुकर्रर रथधारी है, हँ, उसकी स्टेज क्या होगी? है वो भी भोगी आत्मा, लेकिन वो धीरे-धीरे नीचे गिरेगी कि तेजी से नीचे गिरेगी? धीरे-धीरे गिरेगी।
तो ये हिसाब है। सहज कब हो सकता है? सहज तब हो सकता है कि जिसका मैं परिचय देने आया हूँ, परिचय देता हूँ मुकर्रर रथ का, उस मुकर्रर रथधारी को तुम जितना पहचानेंगे और जितना जल्दी पहचानेंगे और कितना? ऐसे नहीं थोड़ा पहचान लिया, थोड़ा रह गया। नहीं। सौ परसेन्ट जितना तुम्हारे में आत्मा में परख शक्ति होगी, हर आत्मा में अपनी-अपनी परख शक्ति की बुद्धि है ना? तो जितनी बुद्धि होगी उतना पहचानेंगे। तो सहज हो जाएगा, कठिन हो जाएगा? तो सहज हो जाएगा। इसको कहा जाएगा अति सहज। किसको? हँ? इसको माने किसको? हँ? हाँ, जिसमें मुकर्रर रूप से प्रवेश करता हूँ इसको अगर पक्का-पक्का पहचान लिया तो कहा जाएगा अति सहज। और नहीं पहचाना तो अति कठिन। हँ? हाँ।
Today’s morning class is dated 2nd December, 1967, Saturday. Om Shanti. The spiritual Father explains the first and foremost main topic to the spiritual children. What must be the main topic? Sit considering yourself to be a soul, resolving yourself to be a soul that we are souls. We are not bodies. The soul is Chaitanya (living). The body is an effigy of the non-living five elements. There is living power (chitt shakti) in the living soul. Which chitt shakti? The power of mind and intellect. And will the non-living elements have that much mind and intellect? They will not have. So, the Father tells the children, doesn’t He that children, all your sorrows will be removed? Will your sorrows be removed by considering yourself to be a soul and will you get sorrows by considering yourself to be a body? How is this? Why will you get sorrows by considering yourself to be a body? It is because transformation takes place in the five elements of the body. What transformation takes place? The body exists today, it will not exist tomorrow. Does a vast transformation take place or does a little bit [transformation] take place? Vast transformation takes place. So, the soul; the soul will remain forever, will it not? It will remain in this world also and even when it goes beyond this world, will it exist or not? Even when it goes beyond this world to the Supreme Abode, it will exist, will it not? It will exist. So, this soul is imperishable and the body, this body made up of the five non-living elements is perishable. So, if you consider yourself to be perishable, then your sorrows will not be removed. If you consider yourself to be an imperishable soul, then the soul is joyful; the soul is joyful, peaceful. The sorrows will be removed by considering yourself to be a soul.
Look, that which is called aashirwaad (blessing), isn’t it, this is a blessing, isn’t it children that all your sorrows will be removed? So, this is a blessing. How? When will they be removed? It is when you consider yourself to be a living soul, imperishable soul. So, those Gurus give blessings. They do not say that if you consider yourself to be a soul, then all your sorrows will be removed. And the Father says that if you consider yourself to be a soul, then all your sorrows will be removed. Well, whoever sits with whatever extent of faith that I am a soul, then the sorrows will be removed to the same extent. So, this Father gives this true blessing to the children. All your sorrows will be removed. Just sit thinking yourselves to be a soul. And what should you do? Should you do anything else or should you just sit thinking yourselves to be souls? Yes, what will happen if you consider yourself to be a soul? What will happen if you consider yourself to be a soul? (Someone said something.) Remember the Father. What will happen if you sit considering yourselves to be just a soul? (Someone said something.) Will just the soul be non-living? Achcha? If you consider yourself to be a soul that I am a point of light soul, I am imperishable, I am joyful, I am peaceful, then? (Someone said something.) Then will it become subtle? (Someone said something.) Will you then become Sanyasis? Yes. You will remain alone, will you not? If you consider yourself to be just a soul, then do you belong to the path of household or to the path of renunciation? Okay, earlier you did not used to consider yourselves to be souls. Still, you were Sanyasis because you used to consider yourselves to be a body. Now the Father has told that whatever, whatever little, momentary pleasure you enjoyed, did you enjoy it by being alone [a soul] or did you enjoy it when it [the soul] was with the body? The body was also there. There is happiness in household (pravritti); there is no happiness in renunciation (nivritti).
So, the Father says that it will not suffice if you consider yourself to be just a soul. Hm? You will remain alone ‘than-than Gopal’ (a solitary man without money). Yes. So, what should you do? Hm? Remember Me, the Father. You may remember in any form that you want. Hm? Arey, a Father has children, still will it be called? If the Father is with the children, then is he in a household or in renunciation? Hm? He is in household, isn’t he? If he is with the daughter, if he is with the son, still there is a household. If he is with the wife, then there is a household anyway. So, sit considering yourself to be a soul and if you remain in a household forever, then you will remain happy, peaceful forever. Then remember the Father. So, how should we remember? Hm? How should we remember? How should the soul remember the Father? The soul is a point of light. The point is very subtle. It is not visible even to these eyes. And if you see through the instruments of the science, then, even then it is not visible. So, then how do we remember [Him]? Hm? (Someone said something.) Yes.
So, the Father said that then in order to remember [Me], the knowledge that I give, the information that I provide; what is the information that I provide? That I too am not just a soul alone to play My part on this world stage. What do I too require? I too require a household. So, I remain happy in the household. Otherwise, I remain peaceful. I live in Brahmlok, Paramdhaam (Supreme Abode), so, do I remain peaceful or do I remain happy there? I remain peaceful. Just as there is peace in deep sleep, so, I sleep. But what do you children require? Does the happiness of the Father lie in the happiness of the children or if the Father remains happy alone and if the house catches fire and if the children are burning there, then will the Father feel happy? Hm? He will not be happy. So, the Father says that I too feel happy only when I come on this world stage and take the children, hm, the children who are burning in the fire of lust, if I bring them out of that fire of lust, I feel happy. I should bring them out of the fire of lust and then put them in the fire of Yoga.
So, He tells two topics. What should you do? What should you do? One thing is that leave this lust. Leave lust, the vice of lust. And secondly, the information that I provide you; what information? That remember Me. How should we remember? So, you, although I say that consider yourself to be a soul. But ‘I say’ means that you are not soul now, are you? Do you remain constant in the stage of the soul for 24 hours? Do you remain constant? You don’t remain constant. It means that you are in the body, aren’t you? So, there is this mind and intellect also in the body. What? The mind and intellect is engaged in the body, isn’t it? Yes. When compared to everything within the body, the mind and intellect is the highest thing. All the elements in the body, there are five elements, aren’t they there? Earth, water, air, fire, ether. But there is mind also that controls them, doesn’t it? And the one that controls the mind is the intellect.
So, it was told that remember Me through the mind and intellect. There are these two special powers in your soul; what? Mind and intellect. So, how will you remember? So, I give an indication that the permanent Chariot in which I enter in a permanent manner, remember Me in it. What? If you consider yourself to be just an incorporeal soul and if you remember the incorporeal Father, then it is very difficult. What? It was even told. Remember the Father. But the Father, for whom you say that He is the Father of the point-like souls, so, this is a very difficult topic. Hm? Is it difficult or easy? Hm? Is it difficult? It is difficult. Is it? Is it? Is it not? It is. It is difficult. It is correct. So, when it is a difficult topic, then the Father says - is it difficult? Yes, arey, it is so easy! The information that I provide, I give knowledge, don’t I? What is meant by information? Knowledge. The knowledge that I give, so, assimilate, inculcate that information completely after thinking over it nicely and make it firm that this knowledge; what knowledge? That in which permanent Chariot do I enter?
There is that Gita, isn’t it, the Gita written by the human beings, this topic has been written in that as well. What is knowledge? It is the knowledge of just two topics – Kshetra and Kshetragya. What is meant by Kshetra? The body. If someone is a bodily being, then it is a Kshetra. It is because the soul resides in the body only, doesn’t it? And know that Kshetragya. It means that is there a soul of its own in every body or not? Yes. So, those bodily beings, in whom there is individual soul with individual sanskars, so, who has its knowledge? Is there anyone who knows about every embodied soul? Yes, so, that knower is the Father of souls. It is because this soul is not visible to these eyes. To whom will it be visible? Hm? Yes, it will be visible forever only to the one who is forever a soul. He should not be a body. So, you children are actors on this world stage, aren’t you? You have a body. What? It is true that someone, whose introduction I give, the one to whom I give information, of the permanent Chariot, he is forever in this world. What? Yes, all other souls, be it the deity souls, be it the human souls, be it the souls of sages and saints, demons, worms and insects, animals and birds, all of them; what? All are pleasure-seekers (bhogi). And they are so much pleasure-seekers that while enjoying pleasures, what, yes, they are unable to reach that stage; which stage? The permanent Chariot in which I enter; What stage? Abhokta (non-pleasure seeker). It is because when I come, then I come with a vow that what will I do and go? Yes, I will make you equal to Myself and go. Well, whoever becomes. What? It is purusharth, isn’t it? Whoever studies to whatever extent, makes purusharth, so, if he becomes equal, then what will he become from a bhokta (pleasure-seeker)? He will become abhokta like Me.
So, when you recognize that permanent Chariot firmly or to whatever extent you recognize, yes, it will become easy for you to the same extent. If you don’t recognize, then will you love yourself, the soul more or will you love your body more that the permanent Chariot in which I play My part forever in this world stage; I come for hundred years, don’t I? So, I play a part continuously for hundred years, don’t I? Hm? I play. So, will you love him? Did you not understand? Whom will you love? Hm? Will you love your body, will you take care of your body more or will your love get connected to the permanent Chariot in which I enter in a permanent manner? With whom will it connect? (Someone said something.) Will it connect with the permanent Chariot? Achcha? So, I am sitting in the permanent Chariot. Shiv is sitting. So, Shiv is sitting in the permanent Chariot and with whom did your love connect? With Shiv, ShivBaba. So, will you become bhokta or abhokta? Then what will you become? Hm? So, do you become? Hm? Arey? When I come, then the permanent Chariot in which I enter, who will get coloured more by the company? The one in whom He remains permanently will get coloured more by the company, will he not? So, will he remain forever in remembrance, can he remain or not? He can remain. And when he remains in remembrance forever, then will he become equal or not? Will he not become? Will he not become? He will become.
And the rest? The rest who are not permanent chariots, okay, just as there is Dada Lekhraj Brahma, there is Jagdamba, hm, yes, there is the first Lakshmi; there is Saraswati, the special helper shakti of Dada Lekhraj Brahma; She is the daughter, isn’t she? Yes, so, should they be called permanent chariots? No. They will be numberwise, will they not be? So, in the permanent Chariot He is forever. And in the temporary ones I shall be temporary. So, will they remember continuously? Will they get coloured by the company continuously? Hm? They will not be. So, will they remain bhokta or abhokta? Write one alphabet. Hm? What will they become? They will become bhokta. Achcha? So, those who become bhokta, then when they become bhokta, will they fall deeper or can they achieve such a stage while making purusharth that they do not fall down at all? Arey? When they get less coloured by the company of Father Shiv, the Abhokta, then they will continue to be in the stage of a bhogi, will they not? The stage of being a bhogi will remain; in case of some it will be 99, in case of some it will be 98, in case of some it will be 50, in case of some it will be 8, one, so, the extent to which the stage of being a bhogi will remain, then by experiencing pleasures, will they experience downfall quickly or will they fall gradually? Hm? And the permanent Chariot holder, what will be his stage? He too is a bhogi soul, but will he fall gradually or will he fall quickly? He will fall gradually.
So, this is the account. When can it be easy? It can be easy when the one whose introduction I have come to give, I give the introduction of the permanent Chariot, the more you recognize that permanent Chariot-holder and the faster you recognize and to what extent? It is not as if you recognize a little and leave a little. No. The extent to which you, the soul have 100 percent power to discern; every soul has individual intellect to discern, doesn’t it? So, the extent to which they have the intellect [to discern], they will recognize to that extent. So, will it become easy or will it become difficult? Then it will become easy. This is called very easy. What? Hm? ‘This’ means what? Hm? Yes, the permanent Chariot in which I enter, if you recognize him firmly, then it will be called very easy. And if you didn’t recognize then it is very difficult. Hm? Yes.
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शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2961, दिनांक 03.08.2019
VCD 2961, dated 03.08.2019
प्रातः क्लास 02.12.1967
Morning class dated 02.12.1967
VCD-2961-extracts-Bilingual
समय- 00.01-22.05
Time- 00.01-22.05
प्रातः क्लास चल रहा था – 2.12.1967. शनिवार को दूसरे पेज के, पहले पेज के मध्यांत में बात चल रही थी कि जब कलियुग का अंत होता है तो मनुष्य बहुत दुखी हो जाते हैं। लड़ाइयां, मारामारी, झगड़े-टंटे कितने बढ़ते जाते हैं। सबको विनाश करने के लिए मिसाइल्स बनाके तैयार कर लेते हैं। अब तो वो बने ही हुए पड़े हैं। प्रयोग करते रहते हैं दिन-प्रतिदिन। तो तुम जब ऐसे करते रहते हैं तमोप्रधान बनकरके; तुम कौन? तुम आत्माएं; कौनसी आत्माएं? पहले कौनसी आत्माएं? हँ? ये (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, पहले रुद्रमाला की बीज रूप आत्माएं। तो बताया कि कहां भी ये गए तो मनुष्यों को हवा आवे और खतम। क्या गए? वो ही एटम बमों के धमाके से जो गैस निकलती है, सूंघा और खलास। है ना? तो बेहद के बॉम्ब कौनसे हैं? हँ? जो तुम बीज रूप आत्माएं तैयार करते हो और थोड़ा सा उसका लेश आया और खलास। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, ग्लानि के बॉम्ब्स। और वो भी कैसी ग्लानि? हँ? व्यक्तिगत ग्लानि या सामूहिक ग्लानि? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, व्यक्तिगत। और व्यक्ति भी कौन? व्यक्ति भी वो जो इस मनुष्य सृष्टि का बीज बाप है।
तो उसको तो, वो तो ऐसा बीज बाप है कि जब सुधरता है तो बड़ी सुगंध ही सुगंध। और बिगड़ता है तो उसमें बड़ी क्या? दुर्गंध ही दुर्गंध। सुगंध काहे से आती है? अव्यभिचारी ज्ञान लेने से, अव्यभिचारी कर्म करने से सुगंध आती है। और व्यभिचारी कर्म करने से, व्यभिचारी ज्ञान लेने से क्या होता है? दुर्गंध आती है। व्यभिचारी ज्ञान कौन बनाता है? कहेंगे ये शास्त्रवादी मनुष्य। अनेक मतें, ढ़ेर की ढ़ेर मतें। सुनते हैं, सुनाते हैं, बनाते हैं। और ज्ञान व्यभिचारी होता जाता है। तो कितने बंदरबुद्धि बन पड़ते हैं! तुच्छ, तुच्छ बुद्धि। इनको कहा जाता है जो कुछ समझते नहीं हैं कि ये होने वाला क्या है? इसका रिजल्ट क्या होगा? वॉट नेक्स्ट? कहते हैं वॉट नेक्स्ट? इसका अंजाम क्या होगा? तो ये जो सभी कुछ हो रहा है ये होने का क्या है? तो और ही कोई समझाय नहीं सकते हैं सिवाय बाप के। क्या होने का है? अरे, कचड़ा भस्म होने का है और क्या बचेगा? कचड़ा जल जाएगा और हीरा? हीरा जलेगा? हीरा बच जाएगा। तो क्या नेक्स्ट? माने क्या? वॉट नेक्स्ट इज़? विनाश। और क्या करेंगे? क्यों करेंगे? कि स्थापना जो हो रही है वो तो गुप्त हो रही है। और विनाश तो सबको देखने में आवेगा। स्थापना हो रही है; काहे की? ब्राह्मण धर्म की तो स्थापना हुई ब्रह्मा द्वारा। हुई ना? हाँ, ब्रह्मा का स्थूल शरीर का पार्ट, सूक्षम शरीर का पार्ट खलास हुआ। ब्राह्मण धर्म की स्थापना हो गई ना? हाँ, हो गई। अब ब्राह्मण से फिर क्या बनते हैं? ब्राह्मण से देवता बनते हैं। तो नंबरवार ही बनेंगे ना? हाँ। जो अव्वल नंबर असुर सो अव्वल नंबर क्या बनेगा? हाँ, क्या बनेगा? राक्षस। अव्वल नंबर क्या बनेगा? हाँ, अव्वल नंबर देवता बनेगा।
तो ये जो वॉट नेक्स्ट का जवाब आया। क्या होगा? एक तरफ स्थापना, काहे की? देवताई धर्म की स्थापना। और दूसरी तरफ आसुरी धर्म का, आसुरी धर्मों का विनाश। जो लड़ते हैं, झगड़ते हैं, खंड-खंड होते रहते हैं। इस दुनिया को खांडव वन बनाय देते हैं। हाँ।
तो देखो, ये स्थापना गुप्त हो रही है। हँ? क्या? नंबर(वार) आत्माएं उस स्थापना में इकट्ठी होंगी कि सब इकट्ठी आ जावेंगी? हँ? नंबरवार। तो बताया – जहां ये संगठन स्थापन होता है तो सबको पता चलेगा? हँ? नहीं पता चलेगा। और जो संगठन बनेगा वो नीचे से ऊपर की ओर बनना शुरु होगा कि ऊपर से नीचे की ओर बनना शुरू होगा? (किसी ने कुछ कहा।) ऊपर से? अच्छा? ऊपर वाले देवताएं 16 कला संपूर्ण और अतीन्द्रिय सुख वाले पहले तैयार देखने में आवेंगे? वो पहले बन जाएंगे? संगठित हो जाएंगे? हँ? हां। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, विपरीत गति से ये सीढ़ी ऊपर चढ़नी है। सीढ़ी देखी ना? ऊपर से नीचे उतरे 5000 साल में। अब? अब नीचे से ऊपर चढ़ना है।
तो बताया – तो इसको कहा जाता है बच्चों, तुम जो, तुम बच्चों को जो कहा ही है; हँ? क्या कहा है? हँ? गुप्त वारियर्स। अंडरग्राउंड मिलेट्री। हँ? बाहरवालों को, दुनियावालों को पता चलता है ये मिलिट्री कहां तैयार हो रही है? हँ? अंडरग्राउंड। तो तुम्हारा काम तो गुप्त चलता है। इनकॉग्निटो वॉरियर्स। 2.12.1967 के प्रातः क्लास का दूसरा पेज। तो इन बातों को कोई समझते हैं क्या? क्या? कि स्थापना गुप्त होती है और विनाश प्रत्यक्ष होता है। मकान तोड़ा जाता है तो उसमें चारों तरफ पर्दा लगाते हैं? हँ? ये परंपरा देखी कि नहीं? अभी भी चल रही है ना? हाँ, ये भी सृष्टि रूपी मकान बन रहा है। तो जो नया मकान बन रहा है उसमें चारों तरफ पर्दे लगे हुए हैं। क्या? हां, द्वारपाल खड़े रहते हैं। कोई भस्मासुर, कोई क्या कहते हैं वो जरासिंधी अंदर न घुसी आए। हाँ। रहते हैं कि नहीं? हाँ, वो द्वारपाल देखने में आते हैं कि भई बंदूक लिये खड़े हैं दरवाजे पर? देखने में आते हैं? हाँ, देखने में नहीं। क्या हैं फिर वो? वो क्या हैं? हँ? अरे, सूक्षम शरीरधारी हैं या स्थूल शरीर वाले हैं? हँ? सूक्षम शरीरधारी। तो बताया – इन बातों को कोई नहीं समझते।
अब देखो, तुम विनाश के लिए कोई लड़ाई करते हो क्या? पूछा – करते हो? करते हो कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) करते हो? कैसे? हँ? मारामारी करते? वो कहते, नहीं करते, तुम कहते, करते। हँ? कैसे करते हो? करते हो तो कैसे करते हो? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) आसुरी दुनिया में मारामारी करते? अरे, तुम्हारी बात हो रही है। तुम कोई लड़ाई करते हो? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, संकल्पों की लड़ाई करते हो। बताते भी हैं हाँ, हम लड़ाई करते हैं। फिर ये नहीं बताते कौनसी लड़ाई करते हैं? कौनसी लड़ाई करते? हँ? मनसा से, मनसा से स्थापना भी हो रही है और मनसा से क्या होता है? विनाश भी होता है। तो जब मनसा से विनाश होना है तो झगड़ा तो होगा ना? झगड़ा कब होता है? जब टकराते हैं तो झगड़ा होता है। तो क्या टकराते हैं? संकल्प टकराते हैं ना? हाँ। तो समझ में आया। तुम कोई लड़ाई करते हो? पूछा। हाँ, भई करते तो हैं। कोई मनुष्य समझते हैं क्या कि ये कौनसी लड़ाई करते हैं? समझते हैं? नहीं। ये-4 जो पांच विकार अंदर हैं ना, वो लड़ते रहते हैं। ये संकल्पों का खून क्यों होता है? हँ? अरे, लड़ते हो तो संकल्पों का खून होता है कि नहीं? बाबा की याद आती है उस समय? हाँ, बाबा की याद नहीं आती फिर।
तो ये पांच विकार लड़ते हैं और बरोबर, ये ब्राह्मण पवित्र रहते हैं। क्या? जो पवित्र रहते हैं वो लड़ते हैं कि मनसा से जो अपवित्र रहते हैं वो लड़ते हैं? हाँ। और सबको कहते हैं पवित्र बनो। अरे? क्या? दो तरह के ब्राह्मण हो गए। एक मनसा में अपवित्र संकल्प और दूसरे मनसा में पवित्र संकल्प वाले। तो दोनों ही दूसरों को कहते हैं ना पवित्र बनो, योगी बनो? कहते तो हैं। हाँ, सबको कहते हैं पवित्र बनो। आपस में जबकि बाप के बच्चे हो और बेहद बाप प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे हो; कितने बाप हैं? हँ? आत्माओं का बाप और प्रजा का बाप। प्रजा 500-700 करोड़ मनुष्यों की। तो प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे। तो आपस में क्या हुए? एक बाप के बच्चे आपस में क्या हुए? भाई-बहन हुए। जब भाई-बहन हैं तो फिर आपस में लड़ना चाहिए? हँ? मिल बैठके, हाँ, रहना चाहिए। हाँ, भाई-बहन तो बन गए।
अब ये समझाने की बड़ी तुम बच्चों को युक्तियां चाहिए कि ब्रदर्स तो सभी हैं। सभी आपस में भाई-भाई हैं। सभी हैं? सभी में कौन-कौन आ गए? सभी में कौन-कौन आ गए? अरे, हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, सब आपस में भाई-भाई। बोलते हैं ना? तो ब्रदर्स तो सभी हैं। माने? ब्राह्मणों की दुनिया में भी सब ब्रदर्स हैं? हैं? अरे? बीजरूप आत्माओं की दुनिया में सब ब्रदर्स हैं? अच्छा? एक कैटागरी के हैं कि अलग-अलग खून के हैं? कि खून एक है कि अलग-अलग? अरे? अलग-अलग प्रकार की बीजरूप आत्माएं हैं, अलग-अलग प्रकार की जड़ें हैं; बीजरूप बाप के बीज हैं तो जड़ें भी होंगी, आधारमूर्त हैं। फिर अलग-अलग प्रकार की वृक्ष में फिर वो टहनियां निकलती हैं। निकलती हैं ना? कोई दाईं ओर की। भारतीय धर्म। कोई बाईं ओर की, विदेशी धर्म। तो आपस में टकराएंगे कि नहीं टकराएंगे? चाहे बीज रूप हों, चाहे आधारमूर्त हों, चाहे दुनियावाले हों, बड़ी दुनिया; क्या? हाँ। विस्तार वाली, जिसे कहते हैं पृथ्वी पृथ्व्याति। पृथ्वी के बच्चे हैं कि भारत माता के बच्चे हैं सारे? भारत माता के बच्चे थोड़े। क्योंकि भारत माता अखंड। कि अनेक खंड-खंड धर्म होते हैं? नहीं। पहले भारत अखंड था ना? और अभी? अभी देखो पाकिस्तान अलग हो गया; पहले नेपाल अलग हो गया। भूटान अलग हो गया। बर्मा, मलाया, ये सब अलग-अलग, लंका, ये सब अलग-अलग हो गए ना? हाँ। पहले एक ही थे। अखंड भारत था। अभी खंडित हो गए। तो बीज रूप आत्माओं में भी, आधारमूर्त आत्माओं में भी ये सब खंडित हुए पड़े हैं। खंड-खंड हुए पड़े हैं। तो संकल्पों में क्या हो रहा है? टकराव होगा कि नहीं होगा? होगा। अच्छा।
कहते हैं हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, सब आपस भाई-भाई। तो कैसे भाई-भाई होंगे? क्यों टकराते हैं जब भाई-भाई हैं तो? कारण क्या? कोई कारण है? अरे? (किसी ने कुछ कहा।) अलग-अलग धर्म हैं? वो तो बता दिया। (किसी ने कुछ कहा।) अलग-अलग धर्म का छिलका चढ़ा हुआ है। वो तो ठीक है। छिलका चढ़ा हुआ है देहभान का अलग-अलग धर्म का। लेकिन (किसी ने कुछ कहा।) अपवित्र हैं? अच्छा? तो सभी अपवित्र हैं। पवित्रता फिर कहां से आएगी? शुरुआत कहां से होगी? कि सबके अंदर एक साथ पवित्रता की शुरुआत हो जाएगी? वो मनसा की पवित्रता कहां से आएगी? पहले तो मन-बुद्धि पवित्र बने। एक बाप से आएगी। तो एक बाप को पहचाना होगा तब आएगी कि बिना पहचाने आ जाएगी? पहचाना होगा तो आएगी। और एक बाप को पहचाना ही नहीं, निश्चयबुद्धि नहीं हुए तो फिर आपस में टकराएंगे कि नहीं टकराएंगे? टकराते हैं। तो ब्रदर्स नहीं हैं कि हैं? हाँ, हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, इनका खून भरा हुआ है जन्म-जन्मान्तर का। वो खून जो है जैसे स्थूल खून होता है, नसों में दौड़ता है, ऐसे ये संकल्पों का खून जो है अलग-अलग ज्ञान का वो अंदर-अंदर भरा पड़ा है। वो टकरा रहा है। तो क्या करना पड़े? वो जो एडम, आदम, सब धर्मों में मशहूर है ना; हाँ, प्रजापिता ब्रह्मा कहो, हाँ, वो जो मशहूर है तो प्रजापिता ब्रह्मा के जब बच्चे ठहरे, कोई एक तो नहीं है ना बच्चा? अरे, बाप के तो इस दुनिया में सारे ही बच्चे हैं ना? हाँ। उस बेहद के बाप के सभी बच्चे हैं। तो प्रजापिता; नाम ही देखो प्रजापिता है, सारी प्रजा का पिता। हाँ। कभी भी लौकिक बाप को प्रजापिता नहीं कहेंगे। कहेंगे? नहीं कहेंगे।
तो देखो. कितना सहज करके समझाते हैं कि प्रजापिता माना क्या? प्रजापिता माने सबका एक बाप। हिन्दू हो, मुसलमान हो, सिक्ख हो, ईसाई हो, इस दुनिया में जो भी अलग-अलग धरमवाले हैं, सबका एक बाप। तो सब एक बाप को पहचानेंगे तो क्या होगा? आपस में भाईचारा बढ़ेगा ना? तो कहां से शुरुआत होगी? अरे? दुनिया से शुरुआत होगी कि जड़ों से शुरुआत होगी कि बीज रूप आत्माओं से शुरुआत होगी? हाँ, जो सब धर्मों के चुने हुए बीज हैं, हाँ, वहां से शुरुआत होती है। तो उन बीजों का भी कोई बीज बाप। सब बीजों का एक बीज बाप। तो अब एक की पहचान बुद्धि में बैठे कि ये है क्या? हम किस रूप में देखते हैं? साधारण रूप में देखते हैं या विकराल रूप में भी देखते हैं? क्या देखते हैं? साधारण देखते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) साधारण देखते हैं। विकराल रूप नहीं दिखाई पड़ता? वो नहीं दिखाई पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता है तो फिर पहचाना कि नहीं पहचाना? वो नहीं पहचाना। हां। माना भाई-बहन कब बनेंगे? जब उसके, हाँ, अच्छे से अच्छे रूप को भी पहचानें और उस आत्मा के जो बीज रूप आत्मा सारी सृष्टि की एक बीज है उसके भयंकर ते भयंकर रूप को भी पहचानें। हाँ। तो फिर कहेंगे कि हां, भाई-बहन बनें। और क्या कहेंगे? अब हैं तो सभी ब्रह्माकुमार-कुमारियां।
A morning class dated 2.12.1967 was being narrated. The topic being narrated in the end of the middle portion of the second page, first page on Saturday was that when it is the end of the Iron Age, the human beings become very sorrowful. Fights, bloodshed, quarrels increase so much. In order to destroy everyone, they prepare missiles. Well, they are already prepared. They keep on using day by day. So, when you keep on doing like this by becoming tamopradhaan (degraded); Who ‘you’? You souls; which souls? First which souls? Hm? These (Someone said something.) Yes, first the seed-form souls of the Rudramala. So, it was told that wherever these go, the human beings inhale that air and perish. What went? The same gas that emerges from the explosions of atom bombs; they smell it and perish. Is it not? So, which are the unlimited bombs? Hm? You seed-form souls prepare it and even if a little of it gets in touch with you and you perish. (Someone said something.) Yes, the bombs of defamation. And that too what kind of defamation? Hm? Personal defamation or collective defamation? (Someone said something.) Yes, personal. And who is that person as well? The person is also the one who is the seed-form Father of this human world.
So, he, he is such a seed-form Father that when he reforms then there is a lot of fragrance and just fragrance. And when he spoils then what is there in him a lot? Bad odour and just bad odour. From what does the fragrance come? Fragrance comes by obtaining unadulterated knowledge, by performing unadulterated actions. And what happens by performing adulterous actions, by obtaining adulterated knowledge? One gets bad odour. Who makes the knowledge adulterated? It will be said these human beings who follow the scriptures. Numerous opinions, numerous opinions. They listen, they narrate, they prepare. And the knowledge goes on becoming adulterated. So, they become such persons with monkey-like intellect! Lowly, lowly intellect. This is called that they do not understand anything as to what is going to happen? What will be its result? What next? They say – What next? What will be its result? So, all that is going on, what is going to happen? So, nobody except the Father can explain. What is to happen? Arey, the garbage is going to burn and what will be left? The garbage will be burnt and the diamond? Will the diamond burn? The diamond will survive. So, what next? What is meant by it? What next is? Destruction. And what will you do? Why will you do? The establishment that is taking place is taking place incognito. And destruction will be visible to everyone. Establishment is taking place; Of what? Brahmin religion was established through Brahma. It was established, wasn’t it? Yes, the part of Brahma through the physical body, the part through the subtle body ended. Brahmin religion has been established, hasn’t it been? Yes, it has been established. Well, what do you become from Brahmins? You become deities from Brahmins. So, you will become numberwise only, will you not? Yes. What will the number one demon become number one? Yes, what will he become? Demon. What will he become number one? Yes, he will become number one deity.
So, you got the answer for this what next? What will happen? Establishment on one side, of what? Establishment of deity religion. And on the other side destruction of the demoniac religion, demoniac religions. Those who keep on fighting, quarreling, keep on dividing into pieces (khand-khand). They make this world a Khaandav forest. Yes.
So look, this establishment is taking place in an incognito manner. Hm? What? Will number(wise) souls gather in that establishment or will everyone come simultaneously? Hm? Numberwise. So, it was told – Will everyone know where this gathering is established? Hm? They will not know. And the gathering that will be established, will it start getting established from below upwards or will it start getting established from the top downwards? (Someone said something.) From the top? Achcha? Will the top deities perfect in 16 celestial degrees and enjoying super-sensuous joy appear to be ready first? Will they get ready first? Will they be united? Hm? Yes. (Someone said something.) Yes, this ladder is to be climbed in the opposite direction. You have seen the Ladder, haven’t you? You descended from the top in 5000 years. Now? Now you have to climb up from below.
So, this is called – Children, you, you children have been called; Hm? What have you been called? Hm? Incognito warriors. Underground military. Hm? Do the outside people, the people of the world know as to where this military is getting ready? Hm? Underground. So, your work goes on secretly. Incognito warriors. Second page of the morning class dated 2.12.1967. So, does anyone understand these topics? What? That the establishment takes place secretly and destruction is revealed. When a house is demolished, then a curtain is put up all around it, isn’t it? Hm? Have you seen this tradition or not? It is continuing even today, isn’t it? Yes, this is also a house-like world being constructed. So, the new house that is being constructed, there are curtains put-up all around. What? Yes, door-keepers (dwaarpaal or guards) stand. No Bhasmasur (a demon), no, the one who is called Jarasindhi (a devilish king) should enter. Yes. Are they there or not? Yes, those door-keepers are visible that brother they are standing with their guns at the doors? Are they visible? Yes, they are not visible. What are they then? What are they? Hm? Arey, are they subtle-bodied or do they have a physical body? Hm? Subtle bodied. So, it was told – Nobody understands these matters.
Now look, do you fight for destruction? It was asked – Do you? Do you or don’t you? (Someone said something.) Do you? How? Hm? Do you indulge in killings? He says – We don’t; you say – We do. Hm? How do you do? If you do, how do you do? Hm? (Someone said something.) Do people indulge in killings in the demoniac world? Arey, your topic is being discussed. Do you indulge in killings? Hm? (Someone said something.) Yes, you wage a war of thoughts. You even tell, yes, we wage a war. Then you don’t tell as to which war do you wage? Which war do you wage? Hm? Establishment is also taking place through the mind (thoughts) and what happens through the mind? Destruction also takes place. So, when destruction takes place through the mind, then there will be a fight, will it not be there? When does fight take place? Fight takes place when you clash. So, what clashes? The thoughts clash, don’t they? Yes. So, you understood. Do you fight with anyone? It was asked. Yes, brother, you do [clash]. Do any human beings understand as to which war do these people wage? Do they understand? No. These, these, these, these five vices which are there inside, aren’t they there? They keep on fighting. Why does this killing of thoughts take place? Hm? Arey, when you fight then does the killing of thoughts take place or not? Does Baba come to your mind at that time? Yes, Baba does not come to your mind then.
So, these five vices fight and rightly, these Brahmins remain pure. What? Do those who remain pure fight or do those who remain impure through the mind fight? Yes. And they tell everyone to become pure. Arey? What? There are two kinds of brahmins. One with impure thoughts in the mind and the other with pure thoughts in the mind. So, both tell others to become pure, become yogi, don’t they? They do say. Yes, they tell everyone – Become pure. While you are mutually Father’s children and you are children of the unlimited Father Prajapita Brahma; how many fathers are there? Hm? Father of souls and the Father of subjects. Subjects (praja) are 500-700 crore human beings. So, children of Prajapita Brahma. So, what are they mutually? What are children of one Father mutually? They are brothers and sisters. When you are brothers and sisters, then should you fight with each other? Hm? You should, yes, live harmoniously. Yes, you did become brothers and sisters.
Well, you children should have big tactics to explain that all are brothers. All are mutually brothers. Are all [brothers]? Who all are included in ‘all’? Who all are included in ‘all’? Arey, Hindus, Muslims, Sikhs, Christians, all are brothers. You say, don’t you? So, all are brothers. What does it mean? Are all brothers in the world of Brahmins? Are they? Arey? Are all brothers in the world of seed-form souls? Achcha? Do they belong to one category or do they have different blood? Is the blood same or different? Arey? There are different kinds of seed-form souls, different kinds of roots; when there are seeds of the seed-form Father, then there will be roots as well; there are base-like souls (aadhaarmoort). Then there emerge those different kinds of branches in the tree. They emerge, don’t they? Some are of the right side. Indian religions. Some are of the left side, foreign religions. So, will they clash with each other or not? Be it the seed form [souls], be it the base-like souls, be it the people of the world, the big world; what? Yes. The one with an expanse, which is called Prithvi Prithvyati (the Earth expands). Is everyone the progeny of the Earth or Mother India? The children of Mother India are few. It is because Mother India is akhand (undivided). Or are there many pieces of religions? No. Earlier India was undivided, wasn’t it? And now? Now look, Pakistan has separated; First Nepal separated. Bhutan separated. Burma, Malaya, all these separated, Lanka; all these separated, didn’t they? Yes. Earlier they were united. It was undivided Bhaarat. Now they have become divided. So, even among the seed-form souls, even among the base-like souls, all these are broken. They are broken into pieces. So, what is happening in thoughts? Will there be clash or not? There will be. Achcha.
People say, Hindus, Muslims, Sikhs, Christians are all brothers. So, how will they be brothers? Why do they clash when they are brothers? What is the reason? Is there any reason? Arey? (Someone said something.) Are they different religions? That has been told. (Someone said something.) They are covered by the peels of different religions. That is correct. They are covered by the peel of body consciousness of different religions. But (Someone said something.) Are they impure? Achcha? So, everyone is impure. Then where will purity come from? Where will the beginning take place? Or will purity start in everyone simultaneously? Where will that purity of the mind come from? First the mind and intellect should become pure. It will come from one Father. So, will it come if you have recognized one Father or will it come without recognizing? It will come when you have recognized. And if you haven’t recognized one Father at all, if you haven’t developed faith at all, then will you clash with each other or not? You clash. So, are you brothers or not? Yes, the blood of Hindus, Muslims, Sikhs, Christians is filled since many births. That blood, just like the physical blood which flows through the arteries, similarly, this blood of thoughts of different kinds of knowledge is filled up inside. That is clashing. So, what do you have to do? That Adam, Aadam is famous in all the religions, isn’t he? Yes, call him Prajapita Brahma, yes, the one who is well-known, so, when you are the children of Prajapita Brahma; there isn’t just one child, is it? Arey, all are children of the Father in this world, aren’t they? Yes. All are children of that unlimited Father. So, Prajapita; look, the name itself is Prajapita, the Father of the entire subjects (praja). Yes. The worldly (lokik) Father will never be called Prajapita. Will he be called? He will not be called.
So, look, He explains in such an easy manner as to what is meant by Prajapita? Prajapita means everyone’s one Father. Be it the Hindus, be it the Muslims, be it the Sikhs, be it the Christians, all the people belonging to different religions in this world, everyone’s Father is one. So, what will happen when everyone will recognize one Father? Brotherhood will increase, will it not? So, where will the beginning take place? Arey? Will it begin with the world or will it begin with the roots or will it begin with the seed-form souls? Yes, the beginning is made from, yes, the selected seeds of all the religions. So, there is a seed-Father of those seeds also. One seed Father of all the seeds. So, well, the identity of one should sit in the intellect as to what is this? In which form do we see? Do we see in an ordinary form or do we see in a dangerous form also? What do we see? Do we see in an ordinary form? (Someone said something.) We see in an ordinary form. Isn’t the dangerous form visible? That is not visible. When it is not visible, then have you recognized or not? You haven’t recognized. Yes. It means that when will you become brothers and sisters? Yes, when you recognize his best form also and most dangerous form of that soul, the seed-form soul which is the one seed of the entire world also. Yes. So, then it will be said that yes you have become brothers and sisters. And what else will you say? Well, all are Brahmakumar-Kumaris.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2961, दिनांक 03.08.2019
VCD 2961, dated 03.08.2019
प्रातः क्लास 02.12.1967
Morning class dated 02.12.1967
VCD-2961-extracts-Bilingual
समय- 00.01-22.05
Time- 00.01-22.05
प्रातः क्लास चल रहा था – 2.12.1967. शनिवार को दूसरे पेज के, पहले पेज के मध्यांत में बात चल रही थी कि जब कलियुग का अंत होता है तो मनुष्य बहुत दुखी हो जाते हैं। लड़ाइयां, मारामारी, झगड़े-टंटे कितने बढ़ते जाते हैं। सबको विनाश करने के लिए मिसाइल्स बनाके तैयार कर लेते हैं। अब तो वो बने ही हुए पड़े हैं। प्रयोग करते रहते हैं दिन-प्रतिदिन। तो तुम जब ऐसे करते रहते हैं तमोप्रधान बनकरके; तुम कौन? तुम आत्माएं; कौनसी आत्माएं? पहले कौनसी आत्माएं? हँ? ये (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, पहले रुद्रमाला की बीज रूप आत्माएं। तो बताया कि कहां भी ये गए तो मनुष्यों को हवा आवे और खतम। क्या गए? वो ही एटम बमों के धमाके से जो गैस निकलती है, सूंघा और खलास। है ना? तो बेहद के बॉम्ब कौनसे हैं? हँ? जो तुम बीज रूप आत्माएं तैयार करते हो और थोड़ा सा उसका लेश आया और खलास। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, ग्लानि के बॉम्ब्स। और वो भी कैसी ग्लानि? हँ? व्यक्तिगत ग्लानि या सामूहिक ग्लानि? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, व्यक्तिगत। और व्यक्ति भी कौन? व्यक्ति भी वो जो इस मनुष्य सृष्टि का बीज बाप है।
तो उसको तो, वो तो ऐसा बीज बाप है कि जब सुधरता है तो बड़ी सुगंध ही सुगंध। और बिगड़ता है तो उसमें बड़ी क्या? दुर्गंध ही दुर्गंध। सुगंध काहे से आती है? अव्यभिचारी ज्ञान लेने से, अव्यभिचारी कर्म करने से सुगंध आती है। और व्यभिचारी कर्म करने से, व्यभिचारी ज्ञान लेने से क्या होता है? दुर्गंध आती है। व्यभिचारी ज्ञान कौन बनाता है? कहेंगे ये शास्त्रवादी मनुष्य। अनेक मतें, ढ़ेर की ढ़ेर मतें। सुनते हैं, सुनाते हैं, बनाते हैं। और ज्ञान व्यभिचारी होता जाता है। तो कितने बंदरबुद्धि बन पड़ते हैं! तुच्छ, तुच्छ बुद्धि। इनको कहा जाता है जो कुछ समझते नहीं हैं कि ये होने वाला क्या है? इसका रिजल्ट क्या होगा? वॉट नेक्स्ट? कहते हैं वॉट नेक्स्ट? इसका अंजाम क्या होगा? तो ये जो सभी कुछ हो रहा है ये होने का क्या है? तो और ही कोई समझाय नहीं सकते हैं सिवाय बाप के। क्या होने का है? अरे, कचड़ा भस्म होने का है और क्या बचेगा? कचड़ा जल जाएगा और हीरा? हीरा जलेगा? हीरा बच जाएगा। तो क्या नेक्स्ट? माने क्या? वॉट नेक्स्ट इज़? विनाश। और क्या करेंगे? क्यों करेंगे? कि स्थापना जो हो रही है वो तो गुप्त हो रही है। और विनाश तो सबको देखने में आवेगा। स्थापना हो रही है; काहे की? ब्राह्मण धर्म की तो स्थापना हुई ब्रह्मा द्वारा। हुई ना? हाँ, ब्रह्मा का स्थूल शरीर का पार्ट, सूक्षम शरीर का पार्ट खलास हुआ। ब्राह्मण धर्म की स्थापना हो गई ना? हाँ, हो गई। अब ब्राह्मण से फिर क्या बनते हैं? ब्राह्मण से देवता बनते हैं। तो नंबरवार ही बनेंगे ना? हाँ। जो अव्वल नंबर असुर सो अव्वल नंबर क्या बनेगा? हाँ, क्या बनेगा? राक्षस। अव्वल नंबर क्या बनेगा? हाँ, अव्वल नंबर देवता बनेगा।
तो ये जो वॉट नेक्स्ट का जवाब आया। क्या होगा? एक तरफ स्थापना, काहे की? देवताई धर्म की स्थापना। और दूसरी तरफ आसुरी धर्म का, आसुरी धर्मों का विनाश। जो लड़ते हैं, झगड़ते हैं, खंड-खंड होते रहते हैं। इस दुनिया को खांडव वन बनाय देते हैं। हाँ।
तो देखो, ये स्थापना गुप्त हो रही है। हँ? क्या? नंबर(वार) आत्माएं उस स्थापना में इकट्ठी होंगी कि सब इकट्ठी आ जावेंगी? हँ? नंबरवार। तो बताया – जहां ये संगठन स्थापन होता है तो सबको पता चलेगा? हँ? नहीं पता चलेगा। और जो संगठन बनेगा वो नीचे से ऊपर की ओर बनना शुरु होगा कि ऊपर से नीचे की ओर बनना शुरू होगा? (किसी ने कुछ कहा।) ऊपर से? अच्छा? ऊपर वाले देवताएं 16 कला संपूर्ण और अतीन्द्रिय सुख वाले पहले तैयार देखने में आवेंगे? वो पहले बन जाएंगे? संगठित हो जाएंगे? हँ? हां। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, विपरीत गति से ये सीढ़ी ऊपर चढ़नी है। सीढ़ी देखी ना? ऊपर से नीचे उतरे 5000 साल में। अब? अब नीचे से ऊपर चढ़ना है।
तो बताया – तो इसको कहा जाता है बच्चों, तुम जो, तुम बच्चों को जो कहा ही है; हँ? क्या कहा है? हँ? गुप्त वारियर्स। अंडरग्राउंड मिलेट्री। हँ? बाहरवालों को, दुनियावालों को पता चलता है ये मिलिट्री कहां तैयार हो रही है? हँ? अंडरग्राउंड। तो तुम्हारा काम तो गुप्त चलता है। इनकॉग्निटो वॉरियर्स। 2.12.1967 के प्रातः क्लास का दूसरा पेज। तो इन बातों को कोई समझते हैं क्या? क्या? कि स्थापना गुप्त होती है और विनाश प्रत्यक्ष होता है। मकान तोड़ा जाता है तो उसमें चारों तरफ पर्दा लगाते हैं? हँ? ये परंपरा देखी कि नहीं? अभी भी चल रही है ना? हाँ, ये भी सृष्टि रूपी मकान बन रहा है। तो जो नया मकान बन रहा है उसमें चारों तरफ पर्दे लगे हुए हैं। क्या? हां, द्वारपाल खड़े रहते हैं। कोई भस्मासुर, कोई क्या कहते हैं वो जरासिंधी अंदर न घुसी आए। हाँ। रहते हैं कि नहीं? हाँ, वो द्वारपाल देखने में आते हैं कि भई बंदूक लिये खड़े हैं दरवाजे पर? देखने में आते हैं? हाँ, देखने में नहीं। क्या हैं फिर वो? वो क्या हैं? हँ? अरे, सूक्षम शरीरधारी हैं या स्थूल शरीर वाले हैं? हँ? सूक्षम शरीरधारी। तो बताया – इन बातों को कोई नहीं समझते।
अब देखो, तुम विनाश के लिए कोई लड़ाई करते हो क्या? पूछा – करते हो? करते हो कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) करते हो? कैसे? हँ? मारामारी करते? वो कहते, नहीं करते, तुम कहते, करते। हँ? कैसे करते हो? करते हो तो कैसे करते हो? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) आसुरी दुनिया में मारामारी करते? अरे, तुम्हारी बात हो रही है। तुम कोई लड़ाई करते हो? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, संकल्पों की लड़ाई करते हो। बताते भी हैं हाँ, हम लड़ाई करते हैं। फिर ये नहीं बताते कौनसी लड़ाई करते हैं? कौनसी लड़ाई करते? हँ? मनसा से, मनसा से स्थापना भी हो रही है और मनसा से क्या होता है? विनाश भी होता है। तो जब मनसा से विनाश होना है तो झगड़ा तो होगा ना? झगड़ा कब होता है? जब टकराते हैं तो झगड़ा होता है। तो क्या टकराते हैं? संकल्प टकराते हैं ना? हाँ। तो समझ में आया। तुम कोई लड़ाई करते हो? पूछा। हाँ, भई करते तो हैं। कोई मनुष्य समझते हैं क्या कि ये कौनसी लड़ाई करते हैं? समझते हैं? नहीं। ये-4 जो पांच विकार अंदर हैं ना, वो लड़ते रहते हैं। ये संकल्पों का खून क्यों होता है? हँ? अरे, लड़ते हो तो संकल्पों का खून होता है कि नहीं? बाबा की याद आती है उस समय? हाँ, बाबा की याद नहीं आती फिर।
तो ये पांच विकार लड़ते हैं और बरोबर, ये ब्राह्मण पवित्र रहते हैं। क्या? जो पवित्र रहते हैं वो लड़ते हैं कि मनसा से जो अपवित्र रहते हैं वो लड़ते हैं? हाँ। और सबको कहते हैं पवित्र बनो। अरे? क्या? दो तरह के ब्राह्मण हो गए। एक मनसा में अपवित्र संकल्प और दूसरे मनसा में पवित्र संकल्प वाले। तो दोनों ही दूसरों को कहते हैं ना पवित्र बनो, योगी बनो? कहते तो हैं। हाँ, सबको कहते हैं पवित्र बनो। आपस में जबकि बाप के बच्चे हो और बेहद बाप प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे हो; कितने बाप हैं? हँ? आत्माओं का बाप और प्रजा का बाप। प्रजा 500-700 करोड़ मनुष्यों की। तो प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे। तो आपस में क्या हुए? एक बाप के बच्चे आपस में क्या हुए? भाई-बहन हुए। जब भाई-बहन हैं तो फिर आपस में लड़ना चाहिए? हँ? मिल बैठके, हाँ, रहना चाहिए। हाँ, भाई-बहन तो बन गए।
अब ये समझाने की बड़ी तुम बच्चों को युक्तियां चाहिए कि ब्रदर्स तो सभी हैं। सभी आपस में भाई-भाई हैं। सभी हैं? सभी में कौन-कौन आ गए? सभी में कौन-कौन आ गए? अरे, हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, सब आपस में भाई-भाई। बोलते हैं ना? तो ब्रदर्स तो सभी हैं। माने? ब्राह्मणों की दुनिया में भी सब ब्रदर्स हैं? हैं? अरे? बीजरूप आत्माओं की दुनिया में सब ब्रदर्स हैं? अच्छा? एक कैटागरी के हैं कि अलग-अलग खून के हैं? कि खून एक है कि अलग-अलग? अरे? अलग-अलग प्रकार की बीजरूप आत्माएं हैं, अलग-अलग प्रकार की जड़ें हैं; बीजरूप बाप के बीज हैं तो जड़ें भी होंगी, आधारमूर्त हैं। फिर अलग-अलग प्रकार की वृक्ष में फिर वो टहनियां निकलती हैं। निकलती हैं ना? कोई दाईं ओर की। भारतीय धर्म। कोई बाईं ओर की, विदेशी धर्म। तो आपस में टकराएंगे कि नहीं टकराएंगे? चाहे बीज रूप हों, चाहे आधारमूर्त हों, चाहे दुनियावाले हों, बड़ी दुनिया; क्या? हाँ। विस्तार वाली, जिसे कहते हैं पृथ्वी पृथ्व्याति। पृथ्वी के बच्चे हैं कि भारत माता के बच्चे हैं सारे? भारत माता के बच्चे थोड़े। क्योंकि भारत माता अखंड। कि अनेक खंड-खंड धर्म होते हैं? नहीं। पहले भारत अखंड था ना? और अभी? अभी देखो पाकिस्तान अलग हो गया; पहले नेपाल अलग हो गया। भूटान अलग हो गया। बर्मा, मलाया, ये सब अलग-अलग, लंका, ये सब अलग-अलग हो गए ना? हाँ। पहले एक ही थे। अखंड भारत था। अभी खंडित हो गए। तो बीज रूप आत्माओं में भी, आधारमूर्त आत्माओं में भी ये सब खंडित हुए पड़े हैं। खंड-खंड हुए पड़े हैं। तो संकल्पों में क्या हो रहा है? टकराव होगा कि नहीं होगा? होगा। अच्छा।
कहते हैं हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, सब आपस भाई-भाई। तो कैसे भाई-भाई होंगे? क्यों टकराते हैं जब भाई-भाई हैं तो? कारण क्या? कोई कारण है? अरे? (किसी ने कुछ कहा।) अलग-अलग धर्म हैं? वो तो बता दिया। (किसी ने कुछ कहा।) अलग-अलग धर्म का छिलका चढ़ा हुआ है। वो तो ठीक है। छिलका चढ़ा हुआ है देहभान का अलग-अलग धर्म का। लेकिन (किसी ने कुछ कहा।) अपवित्र हैं? अच्छा? तो सभी अपवित्र हैं। पवित्रता फिर कहां से आएगी? शुरुआत कहां से होगी? कि सबके अंदर एक साथ पवित्रता की शुरुआत हो जाएगी? वो मनसा की पवित्रता कहां से आएगी? पहले तो मन-बुद्धि पवित्र बने। एक बाप से आएगी। तो एक बाप को पहचाना होगा तब आएगी कि बिना पहचाने आ जाएगी? पहचाना होगा तो आएगी। और एक बाप को पहचाना ही नहीं, निश्चयबुद्धि नहीं हुए तो फिर आपस में टकराएंगे कि नहीं टकराएंगे? टकराते हैं। तो ब्रदर्स नहीं हैं कि हैं? हाँ, हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, इनका खून भरा हुआ है जन्म-जन्मान्तर का। वो खून जो है जैसे स्थूल खून होता है, नसों में दौड़ता है, ऐसे ये संकल्पों का खून जो है अलग-अलग ज्ञान का वो अंदर-अंदर भरा पड़ा है। वो टकरा रहा है। तो क्या करना पड़े? वो जो एडम, आदम, सब धर्मों में मशहूर है ना; हाँ, प्रजापिता ब्रह्मा कहो, हाँ, वो जो मशहूर है तो प्रजापिता ब्रह्मा के जब बच्चे ठहरे, कोई एक तो नहीं है ना बच्चा? अरे, बाप के तो इस दुनिया में सारे ही बच्चे हैं ना? हाँ। उस बेहद के बाप के सभी बच्चे हैं। तो प्रजापिता; नाम ही देखो प्रजापिता है, सारी प्रजा का पिता। हाँ। कभी भी लौकिक बाप को प्रजापिता नहीं कहेंगे। कहेंगे? नहीं कहेंगे।
तो देखो. कितना सहज करके समझाते हैं कि प्रजापिता माना क्या? प्रजापिता माने सबका एक बाप। हिन्दू हो, मुसलमान हो, सिक्ख हो, ईसाई हो, इस दुनिया में जो भी अलग-अलग धरमवाले हैं, सबका एक बाप। तो सब एक बाप को पहचानेंगे तो क्या होगा? आपस में भाईचारा बढ़ेगा ना? तो कहां से शुरुआत होगी? अरे? दुनिया से शुरुआत होगी कि जड़ों से शुरुआत होगी कि बीज रूप आत्माओं से शुरुआत होगी? हाँ, जो सब धर्मों के चुने हुए बीज हैं, हाँ, वहां से शुरुआत होती है। तो उन बीजों का भी कोई बीज बाप। सब बीजों का एक बीज बाप। तो अब एक की पहचान बुद्धि में बैठे कि ये है क्या? हम किस रूप में देखते हैं? साधारण रूप में देखते हैं या विकराल रूप में भी देखते हैं? क्या देखते हैं? साधारण देखते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) साधारण देखते हैं। विकराल रूप नहीं दिखाई पड़ता? वो नहीं दिखाई पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता है तो फिर पहचाना कि नहीं पहचाना? वो नहीं पहचाना। हां। माना भाई-बहन कब बनेंगे? जब उसके, हाँ, अच्छे से अच्छे रूप को भी पहचानें और उस आत्मा के जो बीज रूप आत्मा सारी सृष्टि की एक बीज है उसके भयंकर ते भयंकर रूप को भी पहचानें। हाँ। तो फिर कहेंगे कि हां, भाई-बहन बनें। और क्या कहेंगे? अब हैं तो सभी ब्रह्माकुमार-कुमारियां।
A morning class dated 2.12.1967 was being narrated. The topic being narrated in the end of the middle portion of the second page, first page on Saturday was that when it is the end of the Iron Age, the human beings become very sorrowful. Fights, bloodshed, quarrels increase so much. In order to destroy everyone, they prepare missiles. Well, they are already prepared. They keep on using day by day. So, when you keep on doing like this by becoming tamopradhaan (degraded); Who ‘you’? You souls; which souls? First which souls? Hm? These (Someone said something.) Yes, first the seed-form souls of the Rudramala. So, it was told that wherever these go, the human beings inhale that air and perish. What went? The same gas that emerges from the explosions of atom bombs; they smell it and perish. Is it not? So, which are the unlimited bombs? Hm? You seed-form souls prepare it and even if a little of it gets in touch with you and you perish. (Someone said something.) Yes, the bombs of defamation. And that too what kind of defamation? Hm? Personal defamation or collective defamation? (Someone said something.) Yes, personal. And who is that person as well? The person is also the one who is the seed-form Father of this human world.
So, he, he is such a seed-form Father that when he reforms then there is a lot of fragrance and just fragrance. And when he spoils then what is there in him a lot? Bad odour and just bad odour. From what does the fragrance come? Fragrance comes by obtaining unadulterated knowledge, by performing unadulterated actions. And what happens by performing adulterous actions, by obtaining adulterated knowledge? One gets bad odour. Who makes the knowledge adulterated? It will be said these human beings who follow the scriptures. Numerous opinions, numerous opinions. They listen, they narrate, they prepare. And the knowledge goes on becoming adulterated. So, they become such persons with monkey-like intellect! Lowly, lowly intellect. This is called that they do not understand anything as to what is going to happen? What will be its result? What next? They say – What next? What will be its result? So, all that is going on, what is going to happen? So, nobody except the Father can explain. What is to happen? Arey, the garbage is going to burn and what will be left? The garbage will be burnt and the diamond? Will the diamond burn? The diamond will survive. So, what next? What is meant by it? What next is? Destruction. And what will you do? Why will you do? The establishment that is taking place is taking place incognito. And destruction will be visible to everyone. Establishment is taking place; Of what? Brahmin religion was established through Brahma. It was established, wasn’t it? Yes, the part of Brahma through the physical body, the part through the subtle body ended. Brahmin religion has been established, hasn’t it been? Yes, it has been established. Well, what do you become from Brahmins? You become deities from Brahmins. So, you will become numberwise only, will you not? Yes. What will the number one demon become number one? Yes, what will he become? Demon. What will he become number one? Yes, he will become number one deity.
So, you got the answer for this what next? What will happen? Establishment on one side, of what? Establishment of deity religion. And on the other side destruction of the demoniac religion, demoniac religions. Those who keep on fighting, quarreling, keep on dividing into pieces (khand-khand). They make this world a Khaandav forest. Yes.
So look, this establishment is taking place in an incognito manner. Hm? What? Will number(wise) souls gather in that establishment or will everyone come simultaneously? Hm? Numberwise. So, it was told – Will everyone know where this gathering is established? Hm? They will not know. And the gathering that will be established, will it start getting established from below upwards or will it start getting established from the top downwards? (Someone said something.) From the top? Achcha? Will the top deities perfect in 16 celestial degrees and enjoying super-sensuous joy appear to be ready first? Will they get ready first? Will they be united? Hm? Yes. (Someone said something.) Yes, this ladder is to be climbed in the opposite direction. You have seen the Ladder, haven’t you? You descended from the top in 5000 years. Now? Now you have to climb up from below.
So, this is called – Children, you, you children have been called; Hm? What have you been called? Hm? Incognito warriors. Underground military. Hm? Do the outside people, the people of the world know as to where this military is getting ready? Hm? Underground. So, your work goes on secretly. Incognito warriors. Second page of the morning class dated 2.12.1967. So, does anyone understand these topics? What? That the establishment takes place secretly and destruction is revealed. When a house is demolished, then a curtain is put up all around it, isn’t it? Hm? Have you seen this tradition or not? It is continuing even today, isn’t it? Yes, this is also a house-like world being constructed. So, the new house that is being constructed, there are curtains put-up all around. What? Yes, door-keepers (dwaarpaal or guards) stand. No Bhasmasur (a demon), no, the one who is called Jarasindhi (a devilish king) should enter. Yes. Are they there or not? Yes, those door-keepers are visible that brother they are standing with their guns at the doors? Are they visible? Yes, they are not visible. What are they then? What are they? Hm? Arey, are they subtle-bodied or do they have a physical body? Hm? Subtle bodied. So, it was told – Nobody understands these matters.
Now look, do you fight for destruction? It was asked – Do you? Do you or don’t you? (Someone said something.) Do you? How? Hm? Do you indulge in killings? He says – We don’t; you say – We do. Hm? How do you do? If you do, how do you do? Hm? (Someone said something.) Do people indulge in killings in the demoniac world? Arey, your topic is being discussed. Do you indulge in killings? Hm? (Someone said something.) Yes, you wage a war of thoughts. You even tell, yes, we wage a war. Then you don’t tell as to which war do you wage? Which war do you wage? Hm? Establishment is also taking place through the mind (thoughts) and what happens through the mind? Destruction also takes place. So, when destruction takes place through the mind, then there will be a fight, will it not be there? When does fight take place? Fight takes place when you clash. So, what clashes? The thoughts clash, don’t they? Yes. So, you understood. Do you fight with anyone? It was asked. Yes, brother, you do [clash]. Do any human beings understand as to which war do these people wage? Do they understand? No. These, these, these, these five vices which are there inside, aren’t they there? They keep on fighting. Why does this killing of thoughts take place? Hm? Arey, when you fight then does the killing of thoughts take place or not? Does Baba come to your mind at that time? Yes, Baba does not come to your mind then.
So, these five vices fight and rightly, these Brahmins remain pure. What? Do those who remain pure fight or do those who remain impure through the mind fight? Yes. And they tell everyone to become pure. Arey? What? There are two kinds of brahmins. One with impure thoughts in the mind and the other with pure thoughts in the mind. So, both tell others to become pure, become yogi, don’t they? They do say. Yes, they tell everyone – Become pure. While you are mutually Father’s children and you are children of the unlimited Father Prajapita Brahma; how many fathers are there? Hm? Father of souls and the Father of subjects. Subjects (praja) are 500-700 crore human beings. So, children of Prajapita Brahma. So, what are they mutually? What are children of one Father mutually? They are brothers and sisters. When you are brothers and sisters, then should you fight with each other? Hm? You should, yes, live harmoniously. Yes, you did become brothers and sisters.
Well, you children should have big tactics to explain that all are brothers. All are mutually brothers. Are all [brothers]? Who all are included in ‘all’? Who all are included in ‘all’? Arey, Hindus, Muslims, Sikhs, Christians, all are brothers. You say, don’t you? So, all are brothers. What does it mean? Are all brothers in the world of Brahmins? Are they? Arey? Are all brothers in the world of seed-form souls? Achcha? Do they belong to one category or do they have different blood? Is the blood same or different? Arey? There are different kinds of seed-form souls, different kinds of roots; when there are seeds of the seed-form Father, then there will be roots as well; there are base-like souls (aadhaarmoort). Then there emerge those different kinds of branches in the tree. They emerge, don’t they? Some are of the right side. Indian religions. Some are of the left side, foreign religions. So, will they clash with each other or not? Be it the seed form [souls], be it the base-like souls, be it the people of the world, the big world; what? Yes. The one with an expanse, which is called Prithvi Prithvyati (the Earth expands). Is everyone the progeny of the Earth or Mother India? The children of Mother India are few. It is because Mother India is akhand (undivided). Or are there many pieces of religions? No. Earlier India was undivided, wasn’t it? And now? Now look, Pakistan has separated; First Nepal separated. Bhutan separated. Burma, Malaya, all these separated, Lanka; all these separated, didn’t they? Yes. Earlier they were united. It was undivided Bhaarat. Now they have become divided. So, even among the seed-form souls, even among the base-like souls, all these are broken. They are broken into pieces. So, what is happening in thoughts? Will there be clash or not? There will be. Achcha.
People say, Hindus, Muslims, Sikhs, Christians are all brothers. So, how will they be brothers? Why do they clash when they are brothers? What is the reason? Is there any reason? Arey? (Someone said something.) Are they different religions? That has been told. (Someone said something.) They are covered by the peels of different religions. That is correct. They are covered by the peel of body consciousness of different religions. But (Someone said something.) Are they impure? Achcha? So, everyone is impure. Then where will purity come from? Where will the beginning take place? Or will purity start in everyone simultaneously? Where will that purity of the mind come from? First the mind and intellect should become pure. It will come from one Father. So, will it come if you have recognized one Father or will it come without recognizing? It will come when you have recognized. And if you haven’t recognized one Father at all, if you haven’t developed faith at all, then will you clash with each other or not? You clash. So, are you brothers or not? Yes, the blood of Hindus, Muslims, Sikhs, Christians is filled since many births. That blood, just like the physical blood which flows through the arteries, similarly, this blood of thoughts of different kinds of knowledge is filled up inside. That is clashing. So, what do you have to do? That Adam, Aadam is famous in all the religions, isn’t he? Yes, call him Prajapita Brahma, yes, the one who is well-known, so, when you are the children of Prajapita Brahma; there isn’t just one child, is it? Arey, all are children of the Father in this world, aren’t they? Yes. All are children of that unlimited Father. So, Prajapita; look, the name itself is Prajapita, the Father of the entire subjects (praja). Yes. The worldly (lokik) Father will never be called Prajapita. Will he be called? He will not be called.
So, look, He explains in such an easy manner as to what is meant by Prajapita? Prajapita means everyone’s one Father. Be it the Hindus, be it the Muslims, be it the Sikhs, be it the Christians, all the people belonging to different religions in this world, everyone’s Father is one. So, what will happen when everyone will recognize one Father? Brotherhood will increase, will it not? So, where will the beginning take place? Arey? Will it begin with the world or will it begin with the roots or will it begin with the seed-form souls? Yes, the beginning is made from, yes, the selected seeds of all the religions. So, there is a seed-Father of those seeds also. One seed Father of all the seeds. So, well, the identity of one should sit in the intellect as to what is this? In which form do we see? Do we see in an ordinary form or do we see in a dangerous form also? What do we see? Do we see in an ordinary form? (Someone said something.) We see in an ordinary form. Isn’t the dangerous form visible? That is not visible. When it is not visible, then have you recognized or not? You haven’t recognized. Yes. It means that when will you become brothers and sisters? Yes, when you recognize his best form also and most dangerous form of that soul, the seed-form soul which is the one seed of the entire world also. Yes. So, then it will be said that yes you have become brothers and sisters. And what else will you say? Well, all are Brahmakumar-Kumaris.
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शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2962, दिनांक 04.08.2019
VCD 2962, dated 04.08.2019
प्रातः क्लास 02.12.1967
Morning class dated 02.12.1967
VCD-2962-extracts-Bilingual
समय- 00.01-33.11
Time- 00.01-33.11
प्रातः क्लास चल रहा था – 2.12.1967. शनिवार को तीसरे पेज की पहली लाइन में बात चल रही थी कि बाबा के पास कोई भी राइट हैंड एकदम नहीं हैं। सब नाफरमानबरदार। कोई आज्ञाकारी हैं ही नहीं। बाबा कहते राइट हैंड कोई नहीं है। नहीं तो देखो बहुत काम है। समझा ना? ये बॉम्बे में तो बहुत काम रहता है छपाई का। ये ट्रान्सलाइट चित्रों वगैरा का बहुत काम है। अभी वो तो नए आए हैं ना? और इसमें एक्सपेरिमेन्ट चाहिए, एक्सपीरियंस चाहिए। तो आगे ये डिपार्टमेन्ट और के ऊपर में थी। तो वो अभी इंट्रेस्ट नहीं है। समझा ना? क्यों नहीं है? अरे, कोई किसम की बीमारी है। नहीं तो देखो है तो बॉम्बे के बाजू में ना? तुम आत्माएं कहां के रहने वाले हो? हँ? इतना दूर के रहने वाले! कोई दूसरा है क्या? अब बाप कितनी दूर से आते हैं डायरेक्शन देने के लिए, समझाने के लिए। और ये भी समझते हो कि बरोबर बाबा आते हैं ये नॉलेज सुनाने के लिए। क्योंकि बाबा के सिवाय और किसी के पास तो ये नॉलेज है ही नहीं। कौनसी नॉलेज? स्प्रीचुअल नॉलेज। इसलिए समझाते रहते हैं।
तो रोज़ चिंतन करो, क्या लिखें जो मनुष्य ये समझें कि एक आत्मा के बिगर और कोई भी ये ज्ञान समझाय नहीं सकते हैं। वो है ही सुप्रीम सोल। तो ये बात लिखने के लिए अभी फुर्सत होवे ना इन काम की। बहुत हैं जिनको ये बात का बस सुना, बस उनका क्योंकि डिफिकल्ट बात है ना? बस, तो उस डिफिकल्ट बात में बुद्धि नहीं चलती है। फां हो जाते हैं, छोड़ देते हैं। नहीं तो, अक्सर करके ऐसी चीज़ें लिखनी चाहिए कि मनुष्य ये समझें कि सिवाय एक परमपिता परमात्मा के ये ज्ञान कोई के पास नहीं है। वो है ही ज्ञान सागर। अभी ज्ञान सागर और ये ही स्प्रीचुअल नॉलेज है। ये कोई भी नहीं समझते हैं। तो उनके कैसे समझावें? बाबा खुद बैठ करके कितना दफा लिखता है। लिखता रहता है कि इसमें ये बोर्ड पर ऐसी बात लिखो जो समझें कि ये स्प्रीचुअल फादर है। इस स्प्रीचुअल फादर के बिगर कोई भी स्प्रीचुअल नॉलेज सिखला ही नहीं सकता है।
भले लिखे रहते हैं ना बच्चों वहां कि भई गीता का ज्ञान दाता। अभी गीता का ज्ञान दाता, ऐसे लिखने से कुछ समझते नहीं हैं कि कोई ये स्प्रीचुअल नॉलेज है। ये तो सही समझ लेते हैं; हँ? क्या? अरे, यही समझ लेते हैं कि पाई-पैसे की गीता की नॉलेज है। अरे नहीं, ऐसे अगर सुनाएंगे, ये जो मनुष्यों की बनाई हुई गीता है ना वो, वो गीता पढ़ते-पढ़ते मनुष्य सीढी उतरते चले आए, पतित बन गए। हँ? और जो ज्ञान दाता शिव बाबा है गीता का ज्ञान दाता, हँ, सन्मुख आकरके ओरली सुनाते हैं ना? तो वो जो गीता ज्ञान दाता है उसको समझते कुछ भी नहीं हैं। ये तो ये ही समझ लेते हैं मनुष्यों की बनाई हुई गीता को। तो देखो, अभी वो स्प्रीचुअल गॉड फादर आकरके वर्बली गीता सुनाते हैं ना? तो वो जो गीता ज्ञान दाता शिवबाबा है, उनके मुख द्वारा डायरेक्ट सुनने से, एक, एक के ही मुख द्वारा सुनने से अरे मनुष्य सद्गति को पाय लेते हैं। अनेकों के मुख के द्वारा सुनेंगे तो थोड़ेही पावेंगे?
अभी देखो डीटेल में समझाते हैं। तो उसको मिलाकरके से छोटे अक्षर लिखने चाहिए अंदर कहां न कहां जो मनुष्यों की दृष्टि पड़े। तो मनुष्य कभी भी अपन को स्प्रीचुअल नालेज वाला नहीं समझे। अरे, रूहानी नॉलेज वाला अभी भी न समझे। कोई भी न समझे। परन्तु यहां तो इस दुनिया में ढ़ेर के ढ़ेर समझते हैं कि हम स्प्रीचुअल नॉलेज सुनाते हैं। अच्छा, फिर दूसरी बात है, ऐसी युक्ति से लिखना चाहिए कि गीता का भगवान स्प्रीचुअल फादर था न कि कोई रिवाज़ी हालत जो इस दुनिया की चल रही है कि मनुष्य को पुनर्जन्म में आने वाला कोई गीता ज्ञान सुनाय सकता है। अरे, नहीं, वो जनम-मरण के चक्कर में आने वाले गीता का ज्ञान नहीं सुनाय सकते। कोई भी नहीं सुनाय सकते ए टू ज़ेड। क्योंकि पुनर्जन्म में आते हैं। तो वो तो आगे, पीछे की बातें सारी भूल जाते हैं ना? तो सृष्टि के आदि, मध्य, अंत का ज्ञान कैसे सुनावेंगे?
तो वो भी कहते हैं बाबा कि बड़े एकदम। तो जितना बाबा कहते हैं इतना बड़ा लिखो जो मनुष्य वायरे हो जावें कि इसको इतना बड़ा क्यों बनाया है? अरे, क्या हम अंधे हैं, लूले हैं, लंगड़े हैं, कि कुछ समझ नहीं सकते हैं? किसने इतना बड़ा क्यों समझाया है? तो मनुष्य समझेगा ना कि भई इसमें कुछ है जरूर जो इतना बड़ा-बड़ा करके लिखते हैं। क्योंकि ये ही बात है। और ये एक बात भी कोई समझ जावे तो बाबा से कोई प्रश्न-उत्तर सुनने का किसको दरकार ही नहीं है। जबकि बाबा कहते हैं अरे, अपन को आत्मा समझो और बाप को याद करो। ऐसे करने से तुम्हारा सब दुख दूर हो जावेगा। अरे, दूसरी म्याऊं-म्याऊं में मत जाओ। एक ही बात। तो ये एक बात न होने के कारण बाकि म्याऊं-म्याऊं बहुत आकरके करते रहते हैं। तो उस एक बात में सब हो जाते हैं ना बच्ची? सभी दुख दूर हो जाएंगे। बुद्धि कहती है, समझ कहती है बाबा को याद करते-3 जो अच्छी तरह से याद करें; अभी तो समझाया ना ये स्कूल है। जो अच्छी तरह से याद करेगा तो ऊँच पद पाएगा। बस। और तो कोई बात नहीं है ना?
तो ये जो सेकण्ड की बात हुई बच्ची। और कोई भी मनुष्य क्या पूछते हैं, उनको कुछ भी नहीं और बताओ। बस। बोलो और कुछ पूछो मत। झंझट में, जंगल में चले जाएंगे। पूछेंगे तो गुम हो जाएंगे। ये सारी दुनिया एक जंगल कांटों का है ना? तो तुम चले जाएंगे एकदम। समझे ना? फिर कोई रास्ता मिलेगा ही नहीं। जैसे बाबा कहते हैं ना? हम घूमने जाते थे तो फॉगी आ जाती थी। जोर से फॉगी आती थी। अरे, जहां देखो फॉगी ही फॉगी। भई, पता ही नहीं पड़ता हम कहां जाते हैं। तो ये फॉगी में राइट, लेफ्ट, कुछ भी पता नहीं पड़ता है। बिल्कुल नहीं। 2.12.1967 की प्रातः क्लास का चौथा पेज। कहां भी जहां चाहो तहां पहाड़ी आ जाती है। जहां चाहो खड्डे आ जावें। अरे, हमको, हमको आबू में जाना है। तो हम जावें कहां? बस। और फॉगी ऐसी कि मुंझ जावें। क्योंकि जब हम आए थे ना तो नए आए थे ना यहां? आखरीन जब बाहर वाला आदमी मिले उनको बोले कि भई ले जाओ, सिटी ले जाओ, पैसे दूंगा। अरे, उनके पिछाड़ी में पड़े तो कहां के कहां चले गए थे। दूर-दूर एकदम। और वो सीधा एकदम ले आकरके रस्ते पर छोड़ दिया। वो नीचे जो रास्ता जाता है ना वहां तो वहां का रास्ता वहां दूर-दूर चले गए थे। एक दफे तो वो मन्दिर है ना इसका गउमुख का मंदिर, हाँ, वो गउमुख की तरफ जाकरके निकल गए थे। तो ये भी ऐसे ही है। समझे ना? ये भी जैसा मनुष्यों को कुछ पता ही नहीं पड़ता है रास्ते का। अरे, पता ही नहीं पड़ता कहां के कहां निकल जाते हैं। एकदम माया की तरफ में चले जाते। पता है? कैसे-कैसे कहां-कहां किन-किन धर्मों में कन्वर्ट हो जाते। बाबा की तरफ में फिर कोई जाते नहीं। और-और तरफ में चले जाते। अभी ये तो बुद्धि का काम है ना?
ये तो सबको एकदम बात ही एक बताओ कि भई तुम आत्मा जरूर हो। यूं तो सब कोई कहेंगे कि हां, हम हैं। ये शरीर विनाशी है, आत्मा अविनाशी है। अच्छा, ठीक है, आत्मा अविनाशी है। हाँ। अब इनका बाप तो बताओ, आत्मा का बाप। अविनाशी बाबा है। हँ? ये शरीर विनाशी, शरीरों का बाप भी विनाशी। और आत्मा अविनाशी, तो आत्मा का बाप अविनाशी। हाँ। अरे, भई, भला अविनाशी का बाप तो बाबा बिल्कुल ही ज़रूर होगा ना? अच्छा, वो क्या है? हँ? अभी वो ही तो है पतित-पावन। और अभी तुम हो पतित। हँ? क्यों? क्योंकि तमोप्रधान है ये सृष्टि इस समय में। सतोप्रधान सृष्टि तो सतयुग में थी। अभी तमोप्रधान कलियुग है। सारी दुनिया ही पुरानी है। और, और या तो घर जाना है, या तो नई दुनिया में जाना है। आत्मा को कहां जाना है? आत्म लोक में जाना है। आत्म लोक में जाकर फिर नई दुनिया में आना है। तो दो चीज़ हैं। हँ? तो ये दो हैं ना? ये तो सिम्पल बात है। या तो घर जाना है और या तो नई दुनिया में जाना है।
तो वो देखो नई दुनिया में भी आते हैं मनुष्य। हँ? और अभी इस पुरानी दुनिया में भी आते रहते हैं। और इस पुरानी दुनिया के अंत तक पिछाड़ी तक भी आते रहते हैं। समझे ना? तो उस आत्माओं के लोक से आते हैं ना? तब तो इतनी आबादी बढ़ती है। तो ऐसे नहीं है कि दुनिया ये पुरानी होती जाती है तो कोई नहीं आते हैं। नहीं। अरे, जिनका-जिनका पुरानी दुनिया में पार्ट है वो आते ही रहते हैं। हँ? अभी नई दुनिया में तुमको जाना है। है ना? क्योंकि तुमको क्यों जाना है? सबको क्यों नहीं? क्योंकि तुमको वो आत्माओं का बाप पढ़ाते हैं। नई दुनिया में जो पहले गए थे, उनको ही यहां आकरके पढ़ाते हैं। हँ? जो पुरानी दुनिया में आ रहे हैं; अभी आ रहे हैं ना ढ़ेर के ढ़ेर? तो उनको थोड़ेही डायरेक्ट पढ़ाते हैं? नहीं। तो वो गायन भी है। क्या? आत्माएं और परमात्मा अलग रहे बहुकाल। सुंदर मेला कर दिया जब सद्गुरु मिला दलाल। तो बहुकाल वो तो बहुत देरी से आए हैं ना? तो बहुकाल हुआ पहले-पहले आने वाला। हँ? तो जो पहले आया हुआ होगा उन्होंने ही 84 जन्म लिये।
तो अभी 84 जनम का भी हिसाब है ना? और बिल्कुल ईजी हिसाब है। और यहां आते ही हैं वो। हँ? कौन? जो इस दुनिया से पहले जाने वाले हैं। दूसरा कोई आएंगे ही नहीं। कहां? यहां बाबा के पास। है ना? तो जो पहले जाने वाले हैं वो इस दुनिया में पहले आए थे। और जो बाद में जाने वाले हैं वो बाद में आते हैं। है ना? तो वो पीछे आने वाला पीछे आएगा। या तो यूं कहें कि जो पूरा नहीं पढ़ेंगे तो पीछे आएंगे। तो ये कितना हिसाब है बरोबर। बैठकरके अगर विचार कोई करे तो बहुत अच्छा विचार करके इसको सिद्ध करे कि जो भी पहले आने वाला है; हं? इस पर विचार करे। किस पर? कि इस दुनिया में पहले आने वाला कोई है या नहीं है? हँ? कौन है? जब ये दुनिया नई थी तो पहले कौन आया? जरूर एक तो पहले आएगा ना? इस बात पर कोई विचार करे। और दूसरा फिर ऐसे भी नहीं पहले आने वाले सुनने वाले कोई पहले चले जाएंगे। नहीं। फिर ये बात इम्तेहान के ऊपर भी है। हँ? और पढ़ाई के ऊपर भी है। अच्छा, पहले कौन जाएगा? अरे, बिल्कुल एकदम सिम्पुल बात है। बाबा कैसे बताते हैं कि स्कूल में वो लाठी दिखलाते हैं ना? जाओ, वो आदमी या एक आदमी। उसको हाथ लगाकरके दौड़ करके आओ। तो जो पहले नंबर में जाएंगे, हाथ लगाके आएंगे तो ईनाम, ईनाम मिलेंगे। तो ये तो बच्चों को कहते हैं। ये बेहद की बात और बेहद का ईनाम है। आत्मा को कहते हैं। जो पहले जाकरके परमपिता परमात्मा के पास पहुंचेंगे; ऐसे कोई बताय थोड़ेही सकते हैं?
एक भी अक्षर याद कर देवे बच्चे कि बरोबर हम वहां से आए हुए हैं पहले-पहले। हमको जाना है। बाबा कहते हैं बाप को याद करते रहो तो फिर पहले चले जाएंगे। और दैवी गुण भी तो धारण करने हैं। है ना? तो ये बात तो अंडरस्टुड है। समझा ना? ये गुप्त जैसे ज्ञान में अंदर है कि पहले जनम में। तो जो आएंगे वो तो सर्वगुण संपन्न होंगे ना? पूरे 16 कला संपूर्ण होंगे। तो सर्व गुण संपन्न यहां होगा कोई; वहां थोड़ेही जाकर होगा? हँ? तो सर्वगुण संपन्न दैवी गुण धारण यहां करेगा; यहां करना होगा ना? तो फिर और याद करते रहना पड़ेगा। तो देखो चले जाएंगे। तुम क्या कहते हो? बाबा क्या शिक्षा देते हैं? दैवी गुण धारण करो। तो दैवी गुण धारण करने के लिए कहते हैं; क्या करो? वो अपना चार्ट रखो। अच्छा, और याद की यात्रा के लिए भी तो कहते हैं कि चार्ट रखो। तो, तो तुमको पता पड़ेगा कि हम फायदे में हैं या घाटे में जा रहे हैं? हँ? एकदम बिल्कुल क्लीयर बातें हैं। तो एक तो रखते ही नहीं हैं चार्ट। और दूसरा फिर कोई भी कहो तो करते ही नहीं हैं कुछ। हँ? बहुत मुश्किल। बहुत थोड़े हैं जो चार्ट रखते हैं। ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated 2.12.1967 was being discussed. The topic being discussed in the first line of the third page on Saturday was that Baba doesn’t at all have any right hand. All are disobedient. Nobody is obedient at all. Baba says – Nobody is a right hand. Otherwise, look, there is a lot of work. You have understood, haven’t you? A lot of printing work takes place in Bombay. There is a lot of work related to translight pictures, etc. Now those have come newly, haven’t they? And experiment, experience is required in this. So, earlier this department was with someone else. So, he doesn’t have an interest in it now. You have understood, haven’t you? Why doesn’t he have? Arey, there is a kind of disease. Otherwise, look, it is beside Bombay, isn’t it? You souls are residents of which place? Hm? You are residents of such a far away place! Is there anyone else? Well, the Father comes from such a distance to give directions, to explain. And you also understand that Baba rightly comes to narrate the knowledge. It is because nobody except Baba has this knowledge at all. Which knowledge? Spiritual knowledge. This is why he keeps on explaining.
So, think every day, what should we write so that people understand that except one soul nobody else can explain this knowledge. He is the Supreme Soul. So, one should have leisure time to write this topic for this work, shouldn’t one have? There are many who just listen about this topic, that is it; because it is a difficult topic, isn’t it? That is it; so, the intellect doesn’t work in that difficult topic. They vanish, they leave. Otherwise, mostly such things should be written so that people understand that except one Supreme Father Supreme Soul nobody has this knowledge. He is the ocean of knowledge. Now ocean of knowledge and this is a spiritual knowledge. Nobody understands this. So, how should we explain to them? Baba Himself sits and writes so many times. He keeps on writing that in this you write such a topic on the board so that they understand that this is the spiritual Father. Nobody except this spiritual Father can teach the spiritual knowledge at all.
Although children keep on writing there, don’t they that brother, the giver of the knowledge of the Gita. Well, by writing ‘the giver of the knowledge of the Gita’ they don’t understand anything that this is spiritual knowledge. They understand this rightly; hm? What? Arey, they understand that the knowledge of the Gita is worth pie-paise. Arey, no, if you narrate like this, this Gita prepared by the human beings is there, isn’t it, by reading that, that Gita the human beings have been descending the Ladder, became sinful. Hm? And the giver of knowledge, ShivBaba, the giver of the knowledge of the Gita comes and narrates orally face to face, doesn’t He? So, people don’t understand that giver of the knowledge of the Gita. They understand it to be the Gita prepared by the human beings. So, look, now that Spiritual God Father comes and narrates the Gita verbally, doesn’t He? So, that giver of the knowledge of the Gita, ShivBaba, by listening direct from His mouth, by listening through the mouth of one, one only, arey, the human beings achieve Sadgati (true salvation). Will they achieve it if they listen through the mouths of many?
Now look, He explains in detail. So, you should write small letters including that inside somewhere or the other so that the human beings see that. So, human beings will never consider themselves to have spiritual knowledge. Arey, they will not consider having spiritual knowledge even now. Nobody will understand. But here in this world there are numerous people who think that we narrate spiritual knowledge. Achcha, then the second topic is that you should write with such tact that the God of Gita was the Spiritual Father and not the traditional condition of this world that is going on that anyone who gets rebirth can narrate the knowledge of the Gita to the human beings. Arey, no, those who pass through the cycle of birth and death cannot narrate the knowledge of the Gita. A to Z nobody can narrate. It is because they get rebirth. So, they forget all the topics of future and past; don’t they? So, how will they narrate the knowledge of the beginning, middle and the end of the world?
So, Baba says, they too completely. So, write as big as Baba says so that people become mad that why has this been made so big? Arey, are we blind, one-armed, lame that we cannot understand anything? Who and why has anyone explained so big? So, human being will understand, will he not that brother there is definitely something in it that they write so big. It is because this is the topic. And even if anyone understands this one topic, then there will not be any need for anyone to ask any question or seek any answer at all. Baba says that arey, consider yourself to be a soul and remember the Father. By doing so all your sorrows will be removed. Arey, do not go into other myaun-myaun (cat’s cry). Only one topic. So, because this one topic is not there, they keep on coming and doing myaun-myaun a lot. So, everything happens in that one topic, doesn’t it daughter? All the sorrows will be removed. The intellect says, the wisdom says that while remembering Baba, if we remember nicely; it was explained just now, wasn’t it that this is a school? The one who remembers nicely will achieve a high post. That is it. There is no other topic, is it there?
So, this is a topic of a second daughter. And whatever any human being asks, do not tell them anything else. That is it. Tell – Do not ask anything else. You will be in trouble; you will go to the jungle. If you ask you will vanish. This entire world is a jungle of thorns, isn’t it? So, you will go completely [into it]. You have understood, haven’t you? Then you will not find any way at all. For example, Baba says, doesn’t He? When we used to go out for a stroll, then foggy used to emerge. Foggy used to emerge strongly. Arey, wherever you see there is foggy and just foggy. Brother, we did not used to know at all as to where we are going. So, in this foggy, one doesn’t know about right, left, anything. Not at all. Fourth page of the morning class dated 2.12.1967. Wherever you want to go a mountain used to emerge. Wherever you want to go a pit used to emerge. Arey, we, we want to go to Abu. So, where should we go? That is it. And foggy was such that you will be confused. It is because when we had come here, hadn’t we, then we had come here newly, hadn’t we? Ultimately, when an outsider met us, then we told him that brother, take us, take us to the city; I will pay you. Arey, we went behind him and we went from one place to another. Very far, far away completely. And he straight away came and left us on the road. That road which leads downwards, doesn’t it, so we had gone on that road went far away. Once there is that temple, isn’t it, the temple of Gaumukh, yes, we had gone towards Gaumukh. So, this is also like this only. You have understood, haven’t you? This also as if human beings don’t know about the path at all. Arey, they don’t know at all as to where they go. They go completely towards Maya. Do you know? How, where and in which religions do you convert. Nobody goes towards Baba. They go in other directions. Now this is a task of the intellect, isn’t it?
Tell everyone only one topic that brother you are definitely a soul. In a way everyone will say that yes, we are [souls]. This body is perishable, the soul is imperishable. Achcha, okay, the soul is imperishable. Yes. Well, tell about its Father, the Father of the soul. He is the imperishable Baba. Hm? This body is perishable; the Father of the bodies is also perishable. And when the soul is imperishable, the Father of the soul is also imperishable. Yes. Arey brother, the Father of the imperishable one will definitely be Baba, will He not be? Achcha, what is He? Hm? Now He is the purifier of the sinful ones (patit-paavan). And now you are sinful. Hm? Why? It is because this world is tamopradhaan (degraded) at this time. The satopradhaan (pure) world existed in the Golden Age. Now it is tamopradhan Iron Age. The entire world itself is old. And, and either we have to go home or we have to go to the new world. Where does the soul have to go? It has to go to the Soul World. After going to the Soul World, then it has to come to the new world. So, there are two things. Hm? So, these are two, aren’t they? This is a simple thing. Either you have to go home [the Soul World] or you have to go to the new world.
So, look, human beings come to that new world also. Hm? And now they keep coming to this old world also. And they keep on coming even till the end of this old world. You have understood, haven’t you? So, they come from that abode of souls, don’t they? Only then does the population increase so much. So, it is not as if when this world goes on becoming old, then nobody comes. No. Arey, all those who have a part (role) in the old world, they keep on coming. Hm? Now you have to go to the new world. Is it not? It is because why do you have to go? Why not everybody? It is because that Father of souls comes to teach you. Those who had gone to the new world first, He comes here and teaches them only. Hm? Those who are coming in the old world; now numerous souls are coming, aren’t they? So, does He teach them in a direct manner? No. So, that proverb is also famous. What? The souls and the Supreme Soul remained separated for a long time. A beautiful meeting occurred when the Sadguru was found in the form of a middleman (dalaal). So, as regards long time, they have come very late, haven’t they? So, ‘long time’ is for those who came first. Hm? So, those who might have come first, they would only have got 84 births.
So, now there is an account of 84 births as well, isn’t it? And it is a completely easy account. And it is they alone who come here. Hm? Who? Those who are going to go from this world first. Nobody else will come at all. Where? Here, near Baba. Is it not? So, those who are going to go first had come to this world first. And those who are going to depart later come later. Is it not? So, the one who comes later will come later. Or we may say that those who will not study completely will come later. So, this account is so right! If someone sits and thinks then he should think nicely and prove that whoever is going to come first; hm? Think over it. Over what? That is there anyone who comes first in this world or not? Hm? Who is it? When this world was new, who came first? Definitely one person will come first, will he not? Someone should think over this topic. And secondly then it is not as if those who come first, listen first will go first. No. Then this topic is also dependent on the test. Hm? And it is also dependent on the studies. Achcha, then who will go first? Arey, it is a completely simple topic. Baba tells that they show a stick in the school, don’t they? Go, that man or one man. Run and touch him and return. So, those who go at the first number, touch him and come, then they will get the prize, the prize. So, He says this to the children. This is an unlimited topic and an unlimited prize. He tells the soul. Those who go first and reach the Supreme Father Supreme Soul first; can anyone tell like this?
Children should remember even a single word that rightly we have come first from there. We have to go. Baba says – Keep on remembering the Father; then you will go first. And you have to inculcate divine virtues as well. Is it not? So, this topic is understood. You have understood, haven’t you? For example, this incognito knowledge inside that in the first birth; So, those who come will be perfect in all the virtues, will they not be? They will be perfect in 16 celestial degrees. So, someone will be perfect in all the virtues here; will anyone become there? Hm? So, he will inculcate all the virtues, the divine virtues here; it will have to be inculcated here, will it not be? So, then and you will have to keep on remembering. So, look, you will go. What do you say? What teaching does Baba give? Inculcate divine virtues. So, He asks you to inculcate divine virtues; what should you do? Maintain your chart. Achcha, and He also tells for the journey of remembrance that maintain a chart. Then, then you will know whether we are in profit or are we going into loss? Hm? These are completely clear topics. So, one thing is that you don’t maintain the chart at all. And secondly, whatever you are told you don’t do anything at all. Hm? Very difficult. There are very few who maintain a chart. Om Shanti. (End)
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2962, दिनांक 04.08.2019
VCD 2962, dated 04.08.2019
प्रातः क्लास 02.12.1967
Morning class dated 02.12.1967
VCD-2962-extracts-Bilingual
समय- 00.01-33.11
Time- 00.01-33.11
प्रातः क्लास चल रहा था – 2.12.1967. शनिवार को तीसरे पेज की पहली लाइन में बात चल रही थी कि बाबा के पास कोई भी राइट हैंड एकदम नहीं हैं। सब नाफरमानबरदार। कोई आज्ञाकारी हैं ही नहीं। बाबा कहते राइट हैंड कोई नहीं है। नहीं तो देखो बहुत काम है। समझा ना? ये बॉम्बे में तो बहुत काम रहता है छपाई का। ये ट्रान्सलाइट चित्रों वगैरा का बहुत काम है। अभी वो तो नए आए हैं ना? और इसमें एक्सपेरिमेन्ट चाहिए, एक्सपीरियंस चाहिए। तो आगे ये डिपार्टमेन्ट और के ऊपर में थी। तो वो अभी इंट्रेस्ट नहीं है। समझा ना? क्यों नहीं है? अरे, कोई किसम की बीमारी है। नहीं तो देखो है तो बॉम्बे के बाजू में ना? तुम आत्माएं कहां के रहने वाले हो? हँ? इतना दूर के रहने वाले! कोई दूसरा है क्या? अब बाप कितनी दूर से आते हैं डायरेक्शन देने के लिए, समझाने के लिए। और ये भी समझते हो कि बरोबर बाबा आते हैं ये नॉलेज सुनाने के लिए। क्योंकि बाबा के सिवाय और किसी के पास तो ये नॉलेज है ही नहीं। कौनसी नॉलेज? स्प्रीचुअल नॉलेज। इसलिए समझाते रहते हैं।
तो रोज़ चिंतन करो, क्या लिखें जो मनुष्य ये समझें कि एक आत्मा के बिगर और कोई भी ये ज्ञान समझाय नहीं सकते हैं। वो है ही सुप्रीम सोल। तो ये बात लिखने के लिए अभी फुर्सत होवे ना इन काम की। बहुत हैं जिनको ये बात का बस सुना, बस उनका क्योंकि डिफिकल्ट बात है ना? बस, तो उस डिफिकल्ट बात में बुद्धि नहीं चलती है। फां हो जाते हैं, छोड़ देते हैं। नहीं तो, अक्सर करके ऐसी चीज़ें लिखनी चाहिए कि मनुष्य ये समझें कि सिवाय एक परमपिता परमात्मा के ये ज्ञान कोई के पास नहीं है। वो है ही ज्ञान सागर। अभी ज्ञान सागर और ये ही स्प्रीचुअल नॉलेज है। ये कोई भी नहीं समझते हैं। तो उनके कैसे समझावें? बाबा खुद बैठ करके कितना दफा लिखता है। लिखता रहता है कि इसमें ये बोर्ड पर ऐसी बात लिखो जो समझें कि ये स्प्रीचुअल फादर है। इस स्प्रीचुअल फादर के बिगर कोई भी स्प्रीचुअल नॉलेज सिखला ही नहीं सकता है।
भले लिखे रहते हैं ना बच्चों वहां कि भई गीता का ज्ञान दाता। अभी गीता का ज्ञान दाता, ऐसे लिखने से कुछ समझते नहीं हैं कि कोई ये स्प्रीचुअल नॉलेज है। ये तो सही समझ लेते हैं; हँ? क्या? अरे, यही समझ लेते हैं कि पाई-पैसे की गीता की नॉलेज है। अरे नहीं, ऐसे अगर सुनाएंगे, ये जो मनुष्यों की बनाई हुई गीता है ना वो, वो गीता पढ़ते-पढ़ते मनुष्य सीढी उतरते चले आए, पतित बन गए। हँ? और जो ज्ञान दाता शिव बाबा है गीता का ज्ञान दाता, हँ, सन्मुख आकरके ओरली सुनाते हैं ना? तो वो जो गीता ज्ञान दाता है उसको समझते कुछ भी नहीं हैं। ये तो ये ही समझ लेते हैं मनुष्यों की बनाई हुई गीता को। तो देखो, अभी वो स्प्रीचुअल गॉड फादर आकरके वर्बली गीता सुनाते हैं ना? तो वो जो गीता ज्ञान दाता शिवबाबा है, उनके मुख द्वारा डायरेक्ट सुनने से, एक, एक के ही मुख द्वारा सुनने से अरे मनुष्य सद्गति को पाय लेते हैं। अनेकों के मुख के द्वारा सुनेंगे तो थोड़ेही पावेंगे?
अभी देखो डीटेल में समझाते हैं। तो उसको मिलाकरके से छोटे अक्षर लिखने चाहिए अंदर कहां न कहां जो मनुष्यों की दृष्टि पड़े। तो मनुष्य कभी भी अपन को स्प्रीचुअल नालेज वाला नहीं समझे। अरे, रूहानी नॉलेज वाला अभी भी न समझे। कोई भी न समझे। परन्तु यहां तो इस दुनिया में ढ़ेर के ढ़ेर समझते हैं कि हम स्प्रीचुअल नॉलेज सुनाते हैं। अच्छा, फिर दूसरी बात है, ऐसी युक्ति से लिखना चाहिए कि गीता का भगवान स्प्रीचुअल फादर था न कि कोई रिवाज़ी हालत जो इस दुनिया की चल रही है कि मनुष्य को पुनर्जन्म में आने वाला कोई गीता ज्ञान सुनाय सकता है। अरे, नहीं, वो जनम-मरण के चक्कर में आने वाले गीता का ज्ञान नहीं सुनाय सकते। कोई भी नहीं सुनाय सकते ए टू ज़ेड। क्योंकि पुनर्जन्म में आते हैं। तो वो तो आगे, पीछे की बातें सारी भूल जाते हैं ना? तो सृष्टि के आदि, मध्य, अंत का ज्ञान कैसे सुनावेंगे?
तो वो भी कहते हैं बाबा कि बड़े एकदम। तो जितना बाबा कहते हैं इतना बड़ा लिखो जो मनुष्य वायरे हो जावें कि इसको इतना बड़ा क्यों बनाया है? अरे, क्या हम अंधे हैं, लूले हैं, लंगड़े हैं, कि कुछ समझ नहीं सकते हैं? किसने इतना बड़ा क्यों समझाया है? तो मनुष्य समझेगा ना कि भई इसमें कुछ है जरूर जो इतना बड़ा-बड़ा करके लिखते हैं। क्योंकि ये ही बात है। और ये एक बात भी कोई समझ जावे तो बाबा से कोई प्रश्न-उत्तर सुनने का किसको दरकार ही नहीं है। जबकि बाबा कहते हैं अरे, अपन को आत्मा समझो और बाप को याद करो। ऐसे करने से तुम्हारा सब दुख दूर हो जावेगा। अरे, दूसरी म्याऊं-म्याऊं में मत जाओ। एक ही बात। तो ये एक बात न होने के कारण बाकि म्याऊं-म्याऊं बहुत आकरके करते रहते हैं। तो उस एक बात में सब हो जाते हैं ना बच्ची? सभी दुख दूर हो जाएंगे। बुद्धि कहती है, समझ कहती है बाबा को याद करते-3 जो अच्छी तरह से याद करें; अभी तो समझाया ना ये स्कूल है। जो अच्छी तरह से याद करेगा तो ऊँच पद पाएगा। बस। और तो कोई बात नहीं है ना?
तो ये जो सेकण्ड की बात हुई बच्ची। और कोई भी मनुष्य क्या पूछते हैं, उनको कुछ भी नहीं और बताओ। बस। बोलो और कुछ पूछो मत। झंझट में, जंगल में चले जाएंगे। पूछेंगे तो गुम हो जाएंगे। ये सारी दुनिया एक जंगल कांटों का है ना? तो तुम चले जाएंगे एकदम। समझे ना? फिर कोई रास्ता मिलेगा ही नहीं। जैसे बाबा कहते हैं ना? हम घूमने जाते थे तो फॉगी आ जाती थी। जोर से फॉगी आती थी। अरे, जहां देखो फॉगी ही फॉगी। भई, पता ही नहीं पड़ता हम कहां जाते हैं। तो ये फॉगी में राइट, लेफ्ट, कुछ भी पता नहीं पड़ता है। बिल्कुल नहीं। 2.12.1967 की प्रातः क्लास का चौथा पेज। कहां भी जहां चाहो तहां पहाड़ी आ जाती है। जहां चाहो खड्डे आ जावें। अरे, हमको, हमको आबू में जाना है। तो हम जावें कहां? बस। और फॉगी ऐसी कि मुंझ जावें। क्योंकि जब हम आए थे ना तो नए आए थे ना यहां? आखरीन जब बाहर वाला आदमी मिले उनको बोले कि भई ले जाओ, सिटी ले जाओ, पैसे दूंगा। अरे, उनके पिछाड़ी में पड़े तो कहां के कहां चले गए थे। दूर-दूर एकदम। और वो सीधा एकदम ले आकरके रस्ते पर छोड़ दिया। वो नीचे जो रास्ता जाता है ना वहां तो वहां का रास्ता वहां दूर-दूर चले गए थे। एक दफे तो वो मन्दिर है ना इसका गउमुख का मंदिर, हाँ, वो गउमुख की तरफ जाकरके निकल गए थे। तो ये भी ऐसे ही है। समझे ना? ये भी जैसा मनुष्यों को कुछ पता ही नहीं पड़ता है रास्ते का। अरे, पता ही नहीं पड़ता कहां के कहां निकल जाते हैं। एकदम माया की तरफ में चले जाते। पता है? कैसे-कैसे कहां-कहां किन-किन धर्मों में कन्वर्ट हो जाते। बाबा की तरफ में फिर कोई जाते नहीं। और-और तरफ में चले जाते। अभी ये तो बुद्धि का काम है ना?
ये तो सबको एकदम बात ही एक बताओ कि भई तुम आत्मा जरूर हो। यूं तो सब कोई कहेंगे कि हां, हम हैं। ये शरीर विनाशी है, आत्मा अविनाशी है। अच्छा, ठीक है, आत्मा अविनाशी है। हाँ। अब इनका बाप तो बताओ, आत्मा का बाप। अविनाशी बाबा है। हँ? ये शरीर विनाशी, शरीरों का बाप भी विनाशी। और आत्मा अविनाशी, तो आत्मा का बाप अविनाशी। हाँ। अरे, भई, भला अविनाशी का बाप तो बाबा बिल्कुल ही ज़रूर होगा ना? अच्छा, वो क्या है? हँ? अभी वो ही तो है पतित-पावन। और अभी तुम हो पतित। हँ? क्यों? क्योंकि तमोप्रधान है ये सृष्टि इस समय में। सतोप्रधान सृष्टि तो सतयुग में थी। अभी तमोप्रधान कलियुग है। सारी दुनिया ही पुरानी है। और, और या तो घर जाना है, या तो नई दुनिया में जाना है। आत्मा को कहां जाना है? आत्म लोक में जाना है। आत्म लोक में जाकर फिर नई दुनिया में आना है। तो दो चीज़ हैं। हँ? तो ये दो हैं ना? ये तो सिम्पल बात है। या तो घर जाना है और या तो नई दुनिया में जाना है।
तो वो देखो नई दुनिया में भी आते हैं मनुष्य। हँ? और अभी इस पुरानी दुनिया में भी आते रहते हैं। और इस पुरानी दुनिया के अंत तक पिछाड़ी तक भी आते रहते हैं। समझे ना? तो उस आत्माओं के लोक से आते हैं ना? तब तो इतनी आबादी बढ़ती है। तो ऐसे नहीं है कि दुनिया ये पुरानी होती जाती है तो कोई नहीं आते हैं। नहीं। अरे, जिनका-जिनका पुरानी दुनिया में पार्ट है वो आते ही रहते हैं। हँ? अभी नई दुनिया में तुमको जाना है। है ना? क्योंकि तुमको क्यों जाना है? सबको क्यों नहीं? क्योंकि तुमको वो आत्माओं का बाप पढ़ाते हैं। नई दुनिया में जो पहले गए थे, उनको ही यहां आकरके पढ़ाते हैं। हँ? जो पुरानी दुनिया में आ रहे हैं; अभी आ रहे हैं ना ढ़ेर के ढ़ेर? तो उनको थोड़ेही डायरेक्ट पढ़ाते हैं? नहीं। तो वो गायन भी है। क्या? आत्माएं और परमात्मा अलग रहे बहुकाल। सुंदर मेला कर दिया जब सद्गुरु मिला दलाल। तो बहुकाल वो तो बहुत देरी से आए हैं ना? तो बहुकाल हुआ पहले-पहले आने वाला। हँ? तो जो पहले आया हुआ होगा उन्होंने ही 84 जन्म लिये।
तो अभी 84 जनम का भी हिसाब है ना? और बिल्कुल ईजी हिसाब है। और यहां आते ही हैं वो। हँ? कौन? जो इस दुनिया से पहले जाने वाले हैं। दूसरा कोई आएंगे ही नहीं। कहां? यहां बाबा के पास। है ना? तो जो पहले जाने वाले हैं वो इस दुनिया में पहले आए थे। और जो बाद में जाने वाले हैं वो बाद में आते हैं। है ना? तो वो पीछे आने वाला पीछे आएगा। या तो यूं कहें कि जो पूरा नहीं पढ़ेंगे तो पीछे आएंगे। तो ये कितना हिसाब है बरोबर। बैठकरके अगर विचार कोई करे तो बहुत अच्छा विचार करके इसको सिद्ध करे कि जो भी पहले आने वाला है; हं? इस पर विचार करे। किस पर? कि इस दुनिया में पहले आने वाला कोई है या नहीं है? हँ? कौन है? जब ये दुनिया नई थी तो पहले कौन आया? जरूर एक तो पहले आएगा ना? इस बात पर कोई विचार करे। और दूसरा फिर ऐसे भी नहीं पहले आने वाले सुनने वाले कोई पहले चले जाएंगे। नहीं। फिर ये बात इम्तेहान के ऊपर भी है। हँ? और पढ़ाई के ऊपर भी है। अच्छा, पहले कौन जाएगा? अरे, बिल्कुल एकदम सिम्पुल बात है। बाबा कैसे बताते हैं कि स्कूल में वो लाठी दिखलाते हैं ना? जाओ, वो आदमी या एक आदमी। उसको हाथ लगाकरके दौड़ करके आओ। तो जो पहले नंबर में जाएंगे, हाथ लगाके आएंगे तो ईनाम, ईनाम मिलेंगे। तो ये तो बच्चों को कहते हैं। ये बेहद की बात और बेहद का ईनाम है। आत्मा को कहते हैं। जो पहले जाकरके परमपिता परमात्मा के पास पहुंचेंगे; ऐसे कोई बताय थोड़ेही सकते हैं?
एक भी अक्षर याद कर देवे बच्चे कि बरोबर हम वहां से आए हुए हैं पहले-पहले। हमको जाना है। बाबा कहते हैं बाप को याद करते रहो तो फिर पहले चले जाएंगे। और दैवी गुण भी तो धारण करने हैं। है ना? तो ये बात तो अंडरस्टुड है। समझा ना? ये गुप्त जैसे ज्ञान में अंदर है कि पहले जनम में। तो जो आएंगे वो तो सर्वगुण संपन्न होंगे ना? पूरे 16 कला संपूर्ण होंगे। तो सर्व गुण संपन्न यहां होगा कोई; वहां थोड़ेही जाकर होगा? हँ? तो सर्वगुण संपन्न दैवी गुण धारण यहां करेगा; यहां करना होगा ना? तो फिर और याद करते रहना पड़ेगा। तो देखो चले जाएंगे। तुम क्या कहते हो? बाबा क्या शिक्षा देते हैं? दैवी गुण धारण करो। तो दैवी गुण धारण करने के लिए कहते हैं; क्या करो? वो अपना चार्ट रखो। अच्छा, और याद की यात्रा के लिए भी तो कहते हैं कि चार्ट रखो। तो, तो तुमको पता पड़ेगा कि हम फायदे में हैं या घाटे में जा रहे हैं? हँ? एकदम बिल्कुल क्लीयर बातें हैं। तो एक तो रखते ही नहीं हैं चार्ट। और दूसरा फिर कोई भी कहो तो करते ही नहीं हैं कुछ। हँ? बहुत मुश्किल। बहुत थोड़े हैं जो चार्ट रखते हैं। ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated 2.12.1967 was being discussed. The topic being discussed in the first line of the third page on Saturday was that Baba doesn’t at all have any right hand. All are disobedient. Nobody is obedient at all. Baba says – Nobody is a right hand. Otherwise, look, there is a lot of work. You have understood, haven’t you? A lot of printing work takes place in Bombay. There is a lot of work related to translight pictures, etc. Now those have come newly, haven’t they? And experiment, experience is required in this. So, earlier this department was with someone else. So, he doesn’t have an interest in it now. You have understood, haven’t you? Why doesn’t he have? Arey, there is a kind of disease. Otherwise, look, it is beside Bombay, isn’t it? You souls are residents of which place? Hm? You are residents of such a far away place! Is there anyone else? Well, the Father comes from such a distance to give directions, to explain. And you also understand that Baba rightly comes to narrate the knowledge. It is because nobody except Baba has this knowledge at all. Which knowledge? Spiritual knowledge. This is why he keeps on explaining.
So, think every day, what should we write so that people understand that except one soul nobody else can explain this knowledge. He is the Supreme Soul. So, one should have leisure time to write this topic for this work, shouldn’t one have? There are many who just listen about this topic, that is it; because it is a difficult topic, isn’t it? That is it; so, the intellect doesn’t work in that difficult topic. They vanish, they leave. Otherwise, mostly such things should be written so that people understand that except one Supreme Father Supreme Soul nobody has this knowledge. He is the ocean of knowledge. Now ocean of knowledge and this is a spiritual knowledge. Nobody understands this. So, how should we explain to them? Baba Himself sits and writes so many times. He keeps on writing that in this you write such a topic on the board so that they understand that this is the spiritual Father. Nobody except this spiritual Father can teach the spiritual knowledge at all.
Although children keep on writing there, don’t they that brother, the giver of the knowledge of the Gita. Well, by writing ‘the giver of the knowledge of the Gita’ they don’t understand anything that this is spiritual knowledge. They understand this rightly; hm? What? Arey, they understand that the knowledge of the Gita is worth pie-paise. Arey, no, if you narrate like this, this Gita prepared by the human beings is there, isn’t it, by reading that, that Gita the human beings have been descending the Ladder, became sinful. Hm? And the giver of knowledge, ShivBaba, the giver of the knowledge of the Gita comes and narrates orally face to face, doesn’t He? So, people don’t understand that giver of the knowledge of the Gita. They understand it to be the Gita prepared by the human beings. So, look, now that Spiritual God Father comes and narrates the Gita verbally, doesn’t He? So, that giver of the knowledge of the Gita, ShivBaba, by listening direct from His mouth, by listening through the mouth of one, one only, arey, the human beings achieve Sadgati (true salvation). Will they achieve it if they listen through the mouths of many?
Now look, He explains in detail. So, you should write small letters including that inside somewhere or the other so that the human beings see that. So, human beings will never consider themselves to have spiritual knowledge. Arey, they will not consider having spiritual knowledge even now. Nobody will understand. But here in this world there are numerous people who think that we narrate spiritual knowledge. Achcha, then the second topic is that you should write with such tact that the God of Gita was the Spiritual Father and not the traditional condition of this world that is going on that anyone who gets rebirth can narrate the knowledge of the Gita to the human beings. Arey, no, those who pass through the cycle of birth and death cannot narrate the knowledge of the Gita. A to Z nobody can narrate. It is because they get rebirth. So, they forget all the topics of future and past; don’t they? So, how will they narrate the knowledge of the beginning, middle and the end of the world?
So, Baba says, they too completely. So, write as big as Baba says so that people become mad that why has this been made so big? Arey, are we blind, one-armed, lame that we cannot understand anything? Who and why has anyone explained so big? So, human being will understand, will he not that brother there is definitely something in it that they write so big. It is because this is the topic. And even if anyone understands this one topic, then there will not be any need for anyone to ask any question or seek any answer at all. Baba says that arey, consider yourself to be a soul and remember the Father. By doing so all your sorrows will be removed. Arey, do not go into other myaun-myaun (cat’s cry). Only one topic. So, because this one topic is not there, they keep on coming and doing myaun-myaun a lot. So, everything happens in that one topic, doesn’t it daughter? All the sorrows will be removed. The intellect says, the wisdom says that while remembering Baba, if we remember nicely; it was explained just now, wasn’t it that this is a school? The one who remembers nicely will achieve a high post. That is it. There is no other topic, is it there?
So, this is a topic of a second daughter. And whatever any human being asks, do not tell them anything else. That is it. Tell – Do not ask anything else. You will be in trouble; you will go to the jungle. If you ask you will vanish. This entire world is a jungle of thorns, isn’t it? So, you will go completely [into it]. You have understood, haven’t you? Then you will not find any way at all. For example, Baba says, doesn’t He? When we used to go out for a stroll, then foggy used to emerge. Foggy used to emerge strongly. Arey, wherever you see there is foggy and just foggy. Brother, we did not used to know at all as to where we are going. So, in this foggy, one doesn’t know about right, left, anything. Not at all. Fourth page of the morning class dated 2.12.1967. Wherever you want to go a mountain used to emerge. Wherever you want to go a pit used to emerge. Arey, we, we want to go to Abu. So, where should we go? That is it. And foggy was such that you will be confused. It is because when we had come here, hadn’t we, then we had come here newly, hadn’t we? Ultimately, when an outsider met us, then we told him that brother, take us, take us to the city; I will pay you. Arey, we went behind him and we went from one place to another. Very far, far away completely. And he straight away came and left us on the road. That road which leads downwards, doesn’t it, so we had gone on that road went far away. Once there is that temple, isn’t it, the temple of Gaumukh, yes, we had gone towards Gaumukh. So, this is also like this only. You have understood, haven’t you? This also as if human beings don’t know about the path at all. Arey, they don’t know at all as to where they go. They go completely towards Maya. Do you know? How, where and in which religions do you convert. Nobody goes towards Baba. They go in other directions. Now this is a task of the intellect, isn’t it?
Tell everyone only one topic that brother you are definitely a soul. In a way everyone will say that yes, we are [souls]. This body is perishable, the soul is imperishable. Achcha, okay, the soul is imperishable. Yes. Well, tell about its Father, the Father of the soul. He is the imperishable Baba. Hm? This body is perishable; the Father of the bodies is also perishable. And when the soul is imperishable, the Father of the soul is also imperishable. Yes. Arey brother, the Father of the imperishable one will definitely be Baba, will He not be? Achcha, what is He? Hm? Now He is the purifier of the sinful ones (patit-paavan). And now you are sinful. Hm? Why? It is because this world is tamopradhaan (degraded) at this time. The satopradhaan (pure) world existed in the Golden Age. Now it is tamopradhan Iron Age. The entire world itself is old. And, and either we have to go home or we have to go to the new world. Where does the soul have to go? It has to go to the Soul World. After going to the Soul World, then it has to come to the new world. So, there are two things. Hm? So, these are two, aren’t they? This is a simple thing. Either you have to go home [the Soul World] or you have to go to the new world.
So, look, human beings come to that new world also. Hm? And now they keep coming to this old world also. And they keep on coming even till the end of this old world. You have understood, haven’t you? So, they come from that abode of souls, don’t they? Only then does the population increase so much. So, it is not as if when this world goes on becoming old, then nobody comes. No. Arey, all those who have a part (role) in the old world, they keep on coming. Hm? Now you have to go to the new world. Is it not? It is because why do you have to go? Why not everybody? It is because that Father of souls comes to teach you. Those who had gone to the new world first, He comes here and teaches them only. Hm? Those who are coming in the old world; now numerous souls are coming, aren’t they? So, does He teach them in a direct manner? No. So, that proverb is also famous. What? The souls and the Supreme Soul remained separated for a long time. A beautiful meeting occurred when the Sadguru was found in the form of a middleman (dalaal). So, as regards long time, they have come very late, haven’t they? So, ‘long time’ is for those who came first. Hm? So, those who might have come first, they would only have got 84 births.
So, now there is an account of 84 births as well, isn’t it? And it is a completely easy account. And it is they alone who come here. Hm? Who? Those who are going to go from this world first. Nobody else will come at all. Where? Here, near Baba. Is it not? So, those who are going to go first had come to this world first. And those who are going to depart later come later. Is it not? So, the one who comes later will come later. Or we may say that those who will not study completely will come later. So, this account is so right! If someone sits and thinks then he should think nicely and prove that whoever is going to come first; hm? Think over it. Over what? That is there anyone who comes first in this world or not? Hm? Who is it? When this world was new, who came first? Definitely one person will come first, will he not? Someone should think over this topic. And secondly then it is not as if those who come first, listen first will go first. No. Then this topic is also dependent on the test. Hm? And it is also dependent on the studies. Achcha, then who will go first? Arey, it is a completely simple topic. Baba tells that they show a stick in the school, don’t they? Go, that man or one man. Run and touch him and return. So, those who go at the first number, touch him and come, then they will get the prize, the prize. So, He says this to the children. This is an unlimited topic and an unlimited prize. He tells the soul. Those who go first and reach the Supreme Father Supreme Soul first; can anyone tell like this?
Children should remember even a single word that rightly we have come first from there. We have to go. Baba says – Keep on remembering the Father; then you will go first. And you have to inculcate divine virtues as well. Is it not? So, this topic is understood. You have understood, haven’t you? For example, this incognito knowledge inside that in the first birth; So, those who come will be perfect in all the virtues, will they not be? They will be perfect in 16 celestial degrees. So, someone will be perfect in all the virtues here; will anyone become there? Hm? So, he will inculcate all the virtues, the divine virtues here; it will have to be inculcated here, will it not be? So, then and you will have to keep on remembering. So, look, you will go. What do you say? What teaching does Baba give? Inculcate divine virtues. So, He asks you to inculcate divine virtues; what should you do? Maintain your chart. Achcha, and He also tells for the journey of remembrance that maintain a chart. Then, then you will know whether we are in profit or are we going into loss? Hm? These are completely clear topics. So, one thing is that you don’t maintain the chart at all. And secondly, whatever you are told you don’t do anything at all. Hm? Very difficult. There are very few who maintain a chart. Om Shanti. (End)
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शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2963, दिनांक 05.08.2019
VCD 2963, dated 05.08.2019
प्रातः क्लास 02.12.1967
Morning class dated 02.12.1967
VCD-2963-extracts-Bilingual
समय- 00.01-35.59
Time- 00.01-35.59
प्रातः क्लास चल रहा था – 2.12.1967. शनिवार को पांचवें पेज की पहली लाइन में बात चल रही थी चार्ट की। बहुत थोड़े बच्चे हैं, बहुत मुश्किल है जो चार्ट रखते होंगे। तभी तो देखो, माला भी तो देखो तो सही ये क्या बनी हुई है। हँ? क्या बनी हुई है? छोटी सी छोटी स्कॉलरशिप लेने वालों की कितनी माला? आठ की बनी हुई है। स्कॉलरशिप कितनी लेंगे? भई, स्कूल में एक बच्चा लेगा। बेहद का, बेहद की पढ़ाई है। और स्कॉलरशिप कितना? भई आठ नहीं तो 108 समझो। 108 स्कॉलरशिप लेते हैं। उनमें भी बड़ी स्कॉलरशिप आठ की है। और बाकि 100 हैं छोटी स्कॉलरशिप लेने वाले। तो कोई प्लेस में रखते हैं। कहां रखते हैं उनको? जो ऊँची ते ऊँची स्कॉलरशिप लेने वाले आठ हैं कहां रखते हैं? सर के ऊपर रखते हैं। बाप होते हैं ना, कोई बहुत प्यारा बच्चा होता है तो सर पे चढ़ाय लेते हैं। जैसे रेस होती है ना? वन एंड प्लेस। ऐसे नंबर्स भी होते हैं। वन एंड प्लेस में तो वो ही जाएंगे। प्लेस में कौन जाएगा? बादशाह जाएगा और रानी जाएगी। हँ? कि आठों बादशाह जाएंगे? हँ? या आठों रानियां जाएंगी? तो देखो, विश्व का बादशाह, विश्व की बादशाही, महारानी। तो प्लेस उनको कहा जाता है। प्लेस में ये इतना फर्क है। इतना फर्क रहता है। और दूरबीनी में बैठकरके देखते हैं। इतना बहुत फर्क रहता है। तो ये भी रेस है ना बच्चे? बच्चों को कितना अच्छे से समझाते हैं।
फिर ये रेस में अच्छा नंबर लाने के लिए पहले तो क्या करना है? हँ? पहले तो अपन को आत्मा समझो। कोई देह की दौड़ थोड़ेही है। ये तो रूहानी रेस है। तो ये ही बात भूल जाते हैं। हँ? पीछे बैठकरके जो बात करते रहते हैं आपस में आलतू-फालतू बातें, वाह्यात बातचीत करते रहते हैं। तो पहले अपन से पूछें कि हम अपन को आत्मा समझते हैं? पहले तो समझें कि बरोबर हम बाप को याद करता हूँ। करता हूँ? तो बस। जो अपन को समझते हैं वो फिर दूसरे को भी कहो। अपन को आत्मा समझो और अपने बाप को याद करो। तो ये है रूहानी याद की यात्रा। और वो हैं जिस्मानी यात्राएं। और ये है आत्मा की परमात्मा को याद करने की यात्रा। बस। ये अक्षर याद करके लिखो। एकदम अच्छी तरह याद कर लियो। और कुछ भी किसको न कहो। बच्चों को मैसेज देना है ना? तो पैगाम तो देते हैं ना? तो क्या पैगाम देने में कोई मेहनत लगती है? पैगाम वो अक्षर में क्या है? मनमनाभव, मध्याजीभव। यही है ना पैगाम? और नामीग्रामी पैगाम है। और फिर वो डीटेल में बाप समझाय देते हैं कि देह के सभी जो भी संबंध हैं और ये जो भी पुरानी दुनिया है, जो कुछ इन आँखों से देखते हो, इन सबका तुमको त्याग कर देना है। हँ? और अपन को नंगा आत्मा समझना है। तो बाबा कहते हैं ना कि तुम अपन को नंगा समझो। आत्मा समझो माना नंगा समझो। तो तुमको याद रहेगी। क्या? कि अपने आत्मलोक में वापस जाने की। नंगा-वंगा। बाकि कोई कपड़ा-वपड़ा उतारने का नहीं है। नहीं। नंगा बनो माना अशरीरी बनो। अपन को आत्मा समझो और आत्मा के बाप को याद करो।
अरे बच्ची, अरे बहुत मुश्किल है बच्ची। कोई पांच मिनट अरे, यहां बैठकरके याद दिलाते हैं बाबा। तो देखो, वो भी तो बन जाते हैं ना कुछ न कुछ। कुछ तो बन जाते हैं। अरे, सारे दिन में धूरछांई भी याद नहीं करते। है ना? ऐसे भी बच्चे हैं। ऐसे नहीं कि बाबा ऐसे ही कोई गस्सा मारते रहते हैं। अरे, नहीं। ऐसे ढ़ेर हैं एकदम। उनको वो बातें पसन्द आएंगी। कौनसी? झरमुई-झगमुई वाली। धूरछाई, वो ही बातें। फलाना हुआ। वो मिटमाइट हुआ। सारी पुरानी कथाएं सुनाते रहते हैं। बाकि याद बिल्कुल नहीं आएगी। क्यों? न याद आने का कारण क्या? क्योंकि श्रीमत पर चलते ही नहीं हैं। जो श्रीमत पर नहीं चलेंगे वो कुछ याद पड़ेगा कुछ भी? हँ? उनको कुछ भी नहीं याद पड़ता है। तो कुछ भी याद नहीं पड़ता तो कुछ भी, कुछ भी फायदा नहीं है। पवित्र तो बनते ही नहीं हैं। आइ मीन वो बनते ही नहीं हैं तो ये हो जाते हैं। बहुत अनेक प्रकार के ख्याल हैं, विचार हैं। घुटका खाना, फलाना, टीरा। ढ़ेर विचार आते रहते हैं। वो बुद्धि में बैठता नहीं है तो खुशी का पारा चढ़ता नहीं है। बाबा कहते हैं खुशी का पारा था ना तुम बच्चों को? अरे, पहले तुम बहुत खुशी में थे ना? कब? हँ? जब सतयुग में थे, सतोप्रधान थे। अच्छा, अभी बहुत दुखी हो। और जानते हो कि अभी दुखी हैं। फिर? फिर अभी सुखी बनना है। तो फिर उस अवस्था में जाना है ना सतोप्रधानता में।
तो बाप बहुत सहज समझाते हैं। ये जो बाबा समझाते हैं ये कोई शास्त्रों में है क्या? कोई भी सुनाय सकते हैं? अरे, जरा भी कोई नहीं सुनाय सकते हैं। क्यों? क्योंकि कोई को मालूम ही नहीं है। मालूम है? नहीं। तो बच्चे, अपन को आत्मा समझो। और ये समझाते हैं डीटेल में कि तुम सतोप्रधान थे और अभी तमोप्रधान बने हो। पुरानी दुनिया में आ गए हो। अभी स्वर्णिम दुनिया में जाना है। जाना चाहते हो ना? हँ? जाना चाहते हो। बोलते हो हमको पावन बनाओ। तुम जभी कोई कहते हैं पतित पावन आओ या सीता राम या कुछ भी कहेंगे, उनकी बुद्धि में ये थोड़ेही रहता है? अरे, याद भी नहीं रहती है बच्ची। पावन दुनिया पतित दुनिया कंट्रास्ट याद नहीं रहता। पावन दुनिया तो याद भी नहीं रहती है। फिर कैसे याद पड़े? क्योंकि लाखों वर्ष कह देते हैं। हँ? और सृष्टि की आयु ही लाखों वर्ष कह देते। एक-एक युग की आयु लाखों वर्ष। तो कैसे याद पड़ेगा? अरे, सतयुग को इनको क्या लाखों वर्ष हुआ? हँ? इन लक्ष्मी-नारायण को लाखों वर्ष हुआ क्या राज्य करते हुए?
तो देखो अभी तुमको एम-आब्जेक्ट दी है बच्चों को कि 5000 वर्ष की बात है। बहुत पुरानी बात नहीं है लाखों वर्ष की। तुम ये थे हूबहू एकदम। या तो इनकी डिनायस्टी में थे। या तो इनके कुल में थे जिसको तुम श्री कृष्ण का ही कुल कहो, वैकुण्ठ कहो। समझे ना? अब ऐसे ही अभी थोड़ा टाइम होता है। बोलता, अरे, कल थे; हम आए थे। तुमको दिन-प्रतिदिन नज़दीक आते रहेंगे। बाबा आया था। हमको राज्य देकरके गया था। फिर ऐसे-ऐसे हमने राज्य गंवाया। 2.12.1967 की प्रातः क्लास का छठा पेज, तीसरी लाइन। तो राज्य गंवाया और ऐसे हमने 84 जन्म लिये। नहीं तो 84 लाख आयु हो सृष्टि चक्र की तो फिर वो जनम? वो जनम कभी भी याद ही नहीं पड़ेंगे। एक कभी भी याद नहीं पड़ेगा एकदम। हाँ, ये तो अभी तुम्हारी बुद्धि में हुआ ना कि युग याद है ना? सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग। भई, इतना-इतना टाइम है एक-एक युग का। ये तो, ये तो मुरली में याद करके समझ सकते हो। हँ? लाखों वर्ष की याद मुरली में याद करो, कर सको?
तो बहुत बच्चे यहां आते हैं जो ये अलफ न जानने के कारण, बिचारे बहुत भटकते हैं। बहुत दुखी होते हैं। बहुत रंज होते हैं। और ये भी प्रश्न पूछते हैं ये प्रश्न। बाबा बोलते हैं प्रश्न पूछने तक जाते ही क्यों हो? जो आवे उनको बोलो अरे, ये तुम्हारा बाप है। और वर्सा तो बाप का ही मिलता है ना? कौनसा वर्सा? बेहद का बाप है। बेहद की सुख-शांति का वर्सा है। परन्तु तुम पतित बन गए हो। तो बेहद की सुख-शांति तो इन लक्ष्मी-नारायण को थी ना? इनकी डायनेस्टी में देवताओं को थी। तो अब बाबा कहते हैं मामेकम् याद करो। तो तुम्हारा ये सब पाप कट जावेगा। और दैवी गुण भी धारण करो। दैवी गुण धारण करेंगे तो देवी-देवता बन जाएंगे। बाकि तुम ये क्या पूछते हो? क्योंकि पूछने-वूछने की दरकार ही नहीं है। अब ये सबक है। क्या सबक? जो नहीं समझा है। ये अलफ को नहीं समझा है। फिर बे, बे की तिक-तिक। वो ही करते रहते हो। कौन बे और कौन अलफ? बे माने बादशाही की तिक-तिक। और अलफ? अलफ माने अल्लाह, ऊँच ते ऊँच। वो आकरके बादशाह बनाते हैं। नर को नारायण बनाते हैं। तो उस अलफ को नहीं समझा है तो खुद भी मुंझ जाते हैं। और खुद मुंझते हैं तो उनको फालो करने वाले और भी मुंझ जाते हैं। खुद भी मुंझ जाते हैं। अरे, कितना प्रश्न का उत्तर देकर करेगा? माथा कितना खपाया है। अरे, तंग हो जाएगी इनके प्रश्नों का जवाब देदेकरके। ऐसे बहुत हुए हैं बच्ची। पहले-पहले शुरुआत में एक-एक बरस, दो-दो बरस लगे हैं बच्चों को। पूछते-पूछते एक-दो के क्योंकि ये बाबा ने ये तो समझाया ही है। समझाया था ना कि अरे नहीं, इनको अलफ पढ़ा हो। बस। बे पढ़ा ही नहीं। और तुम हिर जाएंगे। इस बे पढ़ने में भी हिर जाएंगे। पहले अलफ।
ये जो म्यूजियम बनाते हैं ना, ये है तो डीटेल में सभी अच्छी तरह से समझाने की। परन्तु पहले अलफ समझें। तो फिर सब कुछ जान जाएंगे। ये बाबा खुद कहते हैं ना कि मेरे को, मेरे द्वारा मेरे को जानने से मेरे द्वारा तुम सब कुछ जान जाएंगे। बाकि तो फिर कुछ भी जानने का नहीं रहेगा। मेरे द्वारा? किसके द्वारा? द्वारा भी मेरे और जानना भी मेरे को है। ये क्या बात हुई? द्वारा माने मीडिया। कौन हुआ? अभी कहेंगे, सन् 67 में कहेंगे कि ब्रह्मा बाबा मीडिया। परन्तु इसको आखरीन मीडिया कहेंगे एवरलास्टिंग? नहीं कहेंगे। तो फिर ये कौन कह रहा है मेरे द्वारा? मेरे द्वारा। इनके द्वारा नहीं। उन धरमपिताओं के द्वारा नहीं। मेरे। मेरे माने? हाँ, मेरा-मेरा करते हैं ना? तो ये है मेरा। क्या? कौन है? मुकर्रर रथधारी। हाँ। बाकि जानने का कुछ भी नहीं रहेगा। तुम चुप करके सुनते रहो। ज्यादा तिक-तिक करने की दरकार नहीं। कौनसी तिक-तिक? ढ़ेर सारे प्रश्न पूछते हैं ना? हाँ। और तुम सुनते रहेंगे, सुनते रहेंगे तो सब जान जाएगा। तो ये सब जान जाएगा।
तुम, तुम खयाल करते हो कि बरोबर सब जान जाएं। इसके लिए फिर ये सात रोज़ रखा हुआ है। सात रोज़ में बहुत-बहुत कुछ तुम समझ सकते हो। अरे, जो कुछ भी समझने वाले नहीं होंगे; क्योंकि बहुत थोड़े होंगे जो अच्छी तरह से, अंदर के बाहर होंगे, अखरके बाहर ही समझाएंगे अच्छी तरह से। जो म्याऊं-म्याऊं वाले होंगे वो तो मुंझाय देंगे। मुरझाए पड़े हुए हैं बुद्धि में। तो चलेगा ही नहीं। उनके मुख से तो आवाज़ ही नहीं निकलेगा। है ना? तभी बाबा कहते हैं ना बिचारे बात भी नहीं करके, कर सकते हैं। अरे, उनको पाई का भी ज्ञान नहीं है जो दो अक्षर भी मुख से कह सकें। तो फिर उनको क्या कहेंगे? भट्ठी में पके ही नहीं हैं। भई कच्चे के कच्चे रह गए। और कच्चे भी कैसे? असुल कच्चे।
देखो, वो ईंटों की भी भट्ठी होती है ना? तो उसमें भट्ठी का मिसाल क्यों दिया है? भट्ठे में ही होती है। कोई बहुत पक जाती हैं, लाल हो जाती हैं। कोई अधूरी रह जाती हैं। कोई थर्ड क्लास। तो जो थर्ड क्लास होगी वो क्या होगी? भंजूर। ऐसे उसको हाथ में लियो और ऐसे-ऐसे करो तो टुकड़ा-टुकड़ा। समझा ना? यानि वो, वो ईंट पकी ही नहीं। तो उसका अर्थ बाबा समझाते हैं कि परिपक्व बनी ही नहीं, पकी नहीं। तो इसमें ऐसे-ऐसे करो तो टनाटन से आवाज़ करेगा? नहीं करेगा। बर्तन भी पकाते हैं ना आग में? अच्छा पकता है तो टनाटन का आवाज़ करता है ना? क्या? मिट्टी का बर्तन। हाँ। तो यहां क्या हुआ? यहां ऐसी जो कच्चे होंगे वो बिल्कुल ही नहीं समझाय सकेंगे। बिल्कुल नहीं। आवाज़ ही नहीं कर सकेंगे। तो समझ लो वो पक्की है या कच्ची है? कच्ची। हाँ। तो वो फिर क्या बनेगी? हँ? क्या पद पाएगी? अरे, क्या वो राजा-रानी की डिनायस्टी में जाएगी, आकरके बनेगी? अरे, वो तो पिछाड़ी में आकरके, पहले तो दास-दासियां जाकरके बनना पड़े। हाँ। और वो भी कोई तो ऐसी भी जो जन्म-जन्मान्तर दास-दासियां बनती रहेंगी। क्योंकि कुछ समझाते तो हैं नहीं। खुद ही नहीं समझे। ऐसे नहीं नशा उनको आ जाए कि हम कोई महारानी जाकरके बनेंगे। हां-हां, बनेंगी। ये रही पड़ी हैं यहां ही। है ना? और हैं तो बच्चा। कैसा? नीलकंठ। नीलकंठ देखा है? हाँ। आवाज़ भी नहीं कर सकती हैं ना उतना? तो वो राजधानी में क्या पद लेंगी? ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated 2.12.1967 was being narrated. The topic being discussed in the first line of the fifth page on Saturday was about the chart. There are very few children, it is very rare that they maintain the chart. Only then see, look at the rosary as well as to rightly what has this been made? Hm? What has been made? How big is the smallest rosary of those who obtain the scholarship? It is made up of eight. How many will obtain the scholarship? Brother, one child will obtain in a school. It is an unlimited, unlimited study. And how big is the scholarship? Brother, if not eight, consider it to be 108. 108 obtain scholarship. Even among them the big scholarship is of eight. And the remaining 100 are those who obtain the smaller scholarships. So, they are kept in a place. Where are they placed? Where are those who obtain the highest on high scholarship placed? They are placed on the head. There are fathers, aren’t they there? If a child is very dear, then they make him climb on the head. For example, there are races, aren’t they there? One and place. There are numbers also like this. They alone will go in one and place. Who will go into place? The emperor and the queen will go. Hm? Or will all the eight emperors go? Hm? Or will all the eight queens go? So, look, the emperor of the world, emperorship of the world, empress. So, they are called place. There is so much difference in place. There is so much difference. And they sit and observe through telescope. There is that much difference. So, this is also a race, isn’t it children? Children are explained so nicely.
Then, what should be done first in order to obtain good number in this race? Hm? First consider yourself to be a soul. It is not the race of the body. This is a spiritual race. So, you forget this topic itself. Hm? Later you sit and keep on talking; you keep on talking wasteful, meaningless topics with each other. So, first we should ask ourselves as to whether we consider ourselves to be souls? First we should understand that rightly I remember the Father. Do I remember? So, that is it. Those who consider themselves they should tell others also. Consider yourselves to be souls and remember your Father. So, this is the spiritual journey of remembrance. And those are physical journeys. And this is the journey of the soul in remembering the Supreme Soul. That is it. Remember this word and write. Remember very nicely. Do not say anything else to anyone. Children have to give the message, don’t they have to? So, you give the message, don’t you? So, is it difficult to give the message? What is the message in a word? Manmanabhav, madhyaajibhav. This itself is the message, isn’t it? And it is a famous message. And then the Father explains that in detail that all the relationships of the body and this old world, whatever you see through these eyes, you have to renounce all these. Hm? And you have to consider yourself to be a naked soul. So, Baba says, doesn’t He that you consider yourself to be naked. Consider yourself to be a soul, i.e. consider yourself to be naked. Then you will remember. What? That we have to go back to our Soul World. Naked-vaked. But you don’t have to remove the clothes. No. ‘Become naked’ means become bodiless. Consider yourself to be a soul and remember the soul’s Father.
Arey, daughter, arey, it is very difficult daughter. Some for five minutes, arey, Baba sits and reminds you here. So, look, we become that too to some extent or the other. We do become something. Arey, you don’t even remember worth dust in the entire day. Is it not? There are such children also. It is not as if Baba keeps on guessing just like this. Arey, no. There are numerous people like this. They will like those topics. Which one? Wasteful ones. Dust, the same topics. That thing happened. That mitmight happened. They keep on narrating all the old stories. They will not remember at all. Why? What is the reason for not remembering? It is because they do not follow the Shrimat at all. Those who don’t follow the Shrimat will they remember anything? Hm? They do not remember anything. So, when they do not remember anything, then they don’t reap any, any benefit. They do not become pure at all. I mean they do not become at all; so, this happens. There are many types of thoughts. Suffering loss, etc. etc. Numerous thoughts keep emerging. When that doesn’t sit in the intellect at all, then the mercury of joy doesn’t rise at all. Baba says you children had the mercury of joy, didn’t you? Arey, earlier you were in a lot of joy, weren’t you? When? Hm? When you were in the Golden Age, you were satopradhaan (pure). Achcha, now you are very sorrowful. And you know that now we are sorrowful. Then? Then now we have to become happy. So, then you have to go to that stage in purity, will you not?
So, the Father explains very easily. Whatever Baba explains, is this mentioned in the scriptures? Can anyone narrate? Arey, they cannot narrate even a little. Why? It is because nobody knows at all. Do they know? No. So, children, consider yourself to be a soul. And He explains in detail that you were satopradhaan and now you have become tamopradhaan. You have come to the old world. Now you have to go to the golden world. You want to go, don’t you? Hm? You want to go. You say – Make us pure. You, whenever anyone says – O purifier of the sinful ones come or Sita Ram or whenever they say anything, does it remain in their intellect? Arey, daughter, they don’t even remember. They do not remember the contrast of the pure world and the sinful world. The pure world does not even remain in their thoughts. Then how can they remember? It is because they say lakhs of years. Hm? And they say the age of the world itself is lakhs of years. The duration of each Age is lakhs of years. So, how will they remember? Arey, has it been lakhs of years since the Golden Age (Satyug)? Hm? Has it been lakhs of years since these Lakshmi-Narayan ruled?
So, look, now you children have been given the aim-object that it is a topic of 5000 years. The topic is not a very old one of lakhs of years. You were this, exactly like this. Or you were in their dynasty. Or you were in their clan, which you may call the clan of Shri Krishna himself or you may call it Vaikunth (heaven). You have understood, haven’t you? Well, similarly, there is a little time. He says, arey, we were there yesterday; we had come. You will keep on coming closer day by day. Baba had come. He had given us the kingship and gone. Then we lost the kingship in such and such manner. Sixth page, third line of the morning class dated 2.12.1967. So, we lost the kingdom and we got 84 births like this. Otherwise, if the age (aayu) of the world cycle is 84 lakhs, then those births? You will never remember those births at all. You will not even remember a single one at all. Yes, now it is in your intellect that you remember the Age (yug), don’t you? Golden Age, Silver Age, Copper Age, Iron Age. Brother, each Age has this much time. This, this you can understand by remembering the Murli. Hm? Can you remember lakhs of years in the Murli?
So, many poor children come here, who wander a lot because of not knowing this Alaf. They become very sorrowful. They feel painful. And they also ask this question. Baba says – Why do you go up to asking questions? Whoever comes, tell them, arey, this is your Father. And you get the inheritance only of the Father, don’t you? Which inheritance? He is an unlimited Father. There is an unlimited inheritance of happiness and peace. But you have become sinful. So, these Lakshmi and Narayan had unlimited happiness and peace, didn’t they? Deities had [happiness and peace] in their dynasty. So, now Baba says – Remember Me alone. Then all your sins will be cut. And inculcate divine virtues also. If you inculcate divine virtues, then you will become deities. What is it that you ask? It is because there is no need to ask. Well, this is the lesson. What lesson? That which you haven’t understood. You have not understood this Alaf. Then the wasteful talk of Be, Be. You keep on doing that. Who is Be and who is Alaf? Be means wasteful talk of baadshaahi (emperorship). And Alaf? Alaf means Allah, the highest on high. He comes and makes you an emperor. He transforms a man (nar) into Narayan. So, if they haven’t understood that Alaf, then they themselves also get confused. And when they themselves get confused then those who follow them also get confused. They themselves also get confused. Arey, how many questions will you answer? You have spoiled your head so much. Arey, she will be fed-up answering their questions. Daughter, there have been many such persons. Initially, it took up to one, two years for the children in the beginning asking [questions] about each other because Baba has indeed explained this. He had explained, hadn’t He that arey, no, they should have studied Alaf. That is it. They did not study Be at all. And you will be habituated. You will be habituated in studying this Be also. First Alaf.
These museums that are set-up, aren’t they, these are for explaining everything nicely in detail. But first they should understand Alaf. Then they will know everything. This Baba Himself says, doesn’t He that by knowing Me through Me, you will know everything through Me. Then there will not be anything to be known. Through Me? Through whom? Through is also ‘Me’ and what you have to know is also Me. What is this? Through means media. Who is it? Now it will be said, it will be said in 67 that Brahma Baba is the media. But will this be ultimately called the everlasting media? It will not be called. So, then who is the one telling ‘through Me’? Through Me. Not through these. Not through those founders of religions. Me. What is meant by Me? Yes, you say ‘mine, mine’, don’t you? So, this is mine. What? Who is it? The permanent Chariot-holder. Yes. Then there will not be anything to be known. You keep on listening quietly. There is no need to talk more wastefully. Which wasteful talk? You ask a lot of questions, don’t you? Yes. And you will keep on listening, keep on listening, then you will know everything. So, you will know all this.
You, you think that rightly all should know. For this then these seven days have been fixed. You can understand a lot in seven days. Arey, those who don’t understand anything; because there will be very few who nicely, the insiders will be outside, they will explain outside only nicely. Those who sound like a cat (myaun-myaun), they will confuse. They are wilted in the intellect. So, he will not work at all. Sound will not emerge from their mouth at all. Is it not? Only then does Baba say, doesn’t He that poor fellows can’t even talk. Arey, they don’t even have knowledge worth a pie so that they could utter two words through their mouth. So, then what will they be called? They have not baked in the furnace. Brother, they remained weak. And how weak? Truly weak.
Look, there is that furnace of bricks also, isn’t it? So, why was the example of a furnace given in that? It happens in the furnace only. Some bake a lot, become red. Some remain incomplete. Some third class. So, what will the third class ones be? Bhanjoor (brittle). Take them in your hand like this and do like this, then it will break into pieces. You have understood, haven’t you? It means that that brick did not bake at all. So, Baba explains its meaning that it didn’t become strong at all, did not bake at all. So, in this, if you do like this then will it produce a sound of ‘tanatan’? It will not. Utensils are also baked in the fire, aren’t they? When it bakes nicely, then it produces the sound ‘tanatan’, doesn’t it? What? The utensil of clay. Yes. So, what happened here? Here, those who are weak will not be able to explain at all. Not at all. They will not be able to produce any sound at all. So, you can assume whether they are strong or weak? Weak. Yes. So, what will he/she become? Hm? What post will he/she achieve? Arey, will he/she go into the dynasty of a king and a queen, come and become so? Arey, they will come in the end, first they will have to become servants and maids. Yes. And that too some are such ones also who will keep on becoming servants and maids birth by birth. It is because they don’t explain anything. They themselves did not understand. It is not as if they will feel intoxicated that we will go and become an empress. Yes, yes, they will become. They are living here itself. Is it not? And he is a child. What kind? Neelkanth (the one with a blue throat). Have you seen Neelkanth? Yes. They cannot produce sound to that extent, can they? So, what post will they achieve in the capital (raajdhaani)? Om Shanti. (End)
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2963, दिनांक 05.08.2019
VCD 2963, dated 05.08.2019
प्रातः क्लास 02.12.1967
Morning class dated 02.12.1967
VCD-2963-extracts-Bilingual
समय- 00.01-35.59
Time- 00.01-35.59
प्रातः क्लास चल रहा था – 2.12.1967. शनिवार को पांचवें पेज की पहली लाइन में बात चल रही थी चार्ट की। बहुत थोड़े बच्चे हैं, बहुत मुश्किल है जो चार्ट रखते होंगे। तभी तो देखो, माला भी तो देखो तो सही ये क्या बनी हुई है। हँ? क्या बनी हुई है? छोटी सी छोटी स्कॉलरशिप लेने वालों की कितनी माला? आठ की बनी हुई है। स्कॉलरशिप कितनी लेंगे? भई, स्कूल में एक बच्चा लेगा। बेहद का, बेहद की पढ़ाई है। और स्कॉलरशिप कितना? भई आठ नहीं तो 108 समझो। 108 स्कॉलरशिप लेते हैं। उनमें भी बड़ी स्कॉलरशिप आठ की है। और बाकि 100 हैं छोटी स्कॉलरशिप लेने वाले। तो कोई प्लेस में रखते हैं। कहां रखते हैं उनको? जो ऊँची ते ऊँची स्कॉलरशिप लेने वाले आठ हैं कहां रखते हैं? सर के ऊपर रखते हैं। बाप होते हैं ना, कोई बहुत प्यारा बच्चा होता है तो सर पे चढ़ाय लेते हैं। जैसे रेस होती है ना? वन एंड प्लेस। ऐसे नंबर्स भी होते हैं। वन एंड प्लेस में तो वो ही जाएंगे। प्लेस में कौन जाएगा? बादशाह जाएगा और रानी जाएगी। हँ? कि आठों बादशाह जाएंगे? हँ? या आठों रानियां जाएंगी? तो देखो, विश्व का बादशाह, विश्व की बादशाही, महारानी। तो प्लेस उनको कहा जाता है। प्लेस में ये इतना फर्क है। इतना फर्क रहता है। और दूरबीनी में बैठकरके देखते हैं। इतना बहुत फर्क रहता है। तो ये भी रेस है ना बच्चे? बच्चों को कितना अच्छे से समझाते हैं।
फिर ये रेस में अच्छा नंबर लाने के लिए पहले तो क्या करना है? हँ? पहले तो अपन को आत्मा समझो। कोई देह की दौड़ थोड़ेही है। ये तो रूहानी रेस है। तो ये ही बात भूल जाते हैं। हँ? पीछे बैठकरके जो बात करते रहते हैं आपस में आलतू-फालतू बातें, वाह्यात बातचीत करते रहते हैं। तो पहले अपन से पूछें कि हम अपन को आत्मा समझते हैं? पहले तो समझें कि बरोबर हम बाप को याद करता हूँ। करता हूँ? तो बस। जो अपन को समझते हैं वो फिर दूसरे को भी कहो। अपन को आत्मा समझो और अपने बाप को याद करो। तो ये है रूहानी याद की यात्रा। और वो हैं जिस्मानी यात्राएं। और ये है आत्मा की परमात्मा को याद करने की यात्रा। बस। ये अक्षर याद करके लिखो। एकदम अच्छी तरह याद कर लियो। और कुछ भी किसको न कहो। बच्चों को मैसेज देना है ना? तो पैगाम तो देते हैं ना? तो क्या पैगाम देने में कोई मेहनत लगती है? पैगाम वो अक्षर में क्या है? मनमनाभव, मध्याजीभव। यही है ना पैगाम? और नामीग्रामी पैगाम है। और फिर वो डीटेल में बाप समझाय देते हैं कि देह के सभी जो भी संबंध हैं और ये जो भी पुरानी दुनिया है, जो कुछ इन आँखों से देखते हो, इन सबका तुमको त्याग कर देना है। हँ? और अपन को नंगा आत्मा समझना है। तो बाबा कहते हैं ना कि तुम अपन को नंगा समझो। आत्मा समझो माना नंगा समझो। तो तुमको याद रहेगी। क्या? कि अपने आत्मलोक में वापस जाने की। नंगा-वंगा। बाकि कोई कपड़ा-वपड़ा उतारने का नहीं है। नहीं। नंगा बनो माना अशरीरी बनो। अपन को आत्मा समझो और आत्मा के बाप को याद करो।
अरे बच्ची, अरे बहुत मुश्किल है बच्ची। कोई पांच मिनट अरे, यहां बैठकरके याद दिलाते हैं बाबा। तो देखो, वो भी तो बन जाते हैं ना कुछ न कुछ। कुछ तो बन जाते हैं। अरे, सारे दिन में धूरछांई भी याद नहीं करते। है ना? ऐसे भी बच्चे हैं। ऐसे नहीं कि बाबा ऐसे ही कोई गस्सा मारते रहते हैं। अरे, नहीं। ऐसे ढ़ेर हैं एकदम। उनको वो बातें पसन्द आएंगी। कौनसी? झरमुई-झगमुई वाली। धूरछाई, वो ही बातें। फलाना हुआ। वो मिटमाइट हुआ। सारी पुरानी कथाएं सुनाते रहते हैं। बाकि याद बिल्कुल नहीं आएगी। क्यों? न याद आने का कारण क्या? क्योंकि श्रीमत पर चलते ही नहीं हैं। जो श्रीमत पर नहीं चलेंगे वो कुछ याद पड़ेगा कुछ भी? हँ? उनको कुछ भी नहीं याद पड़ता है। तो कुछ भी याद नहीं पड़ता तो कुछ भी, कुछ भी फायदा नहीं है। पवित्र तो बनते ही नहीं हैं। आइ मीन वो बनते ही नहीं हैं तो ये हो जाते हैं। बहुत अनेक प्रकार के ख्याल हैं, विचार हैं। घुटका खाना, फलाना, टीरा। ढ़ेर विचार आते रहते हैं। वो बुद्धि में बैठता नहीं है तो खुशी का पारा चढ़ता नहीं है। बाबा कहते हैं खुशी का पारा था ना तुम बच्चों को? अरे, पहले तुम बहुत खुशी में थे ना? कब? हँ? जब सतयुग में थे, सतोप्रधान थे। अच्छा, अभी बहुत दुखी हो। और जानते हो कि अभी दुखी हैं। फिर? फिर अभी सुखी बनना है। तो फिर उस अवस्था में जाना है ना सतोप्रधानता में।
तो बाप बहुत सहज समझाते हैं। ये जो बाबा समझाते हैं ये कोई शास्त्रों में है क्या? कोई भी सुनाय सकते हैं? अरे, जरा भी कोई नहीं सुनाय सकते हैं। क्यों? क्योंकि कोई को मालूम ही नहीं है। मालूम है? नहीं। तो बच्चे, अपन को आत्मा समझो। और ये समझाते हैं डीटेल में कि तुम सतोप्रधान थे और अभी तमोप्रधान बने हो। पुरानी दुनिया में आ गए हो। अभी स्वर्णिम दुनिया में जाना है। जाना चाहते हो ना? हँ? जाना चाहते हो। बोलते हो हमको पावन बनाओ। तुम जभी कोई कहते हैं पतित पावन आओ या सीता राम या कुछ भी कहेंगे, उनकी बुद्धि में ये थोड़ेही रहता है? अरे, याद भी नहीं रहती है बच्ची। पावन दुनिया पतित दुनिया कंट्रास्ट याद नहीं रहता। पावन दुनिया तो याद भी नहीं रहती है। फिर कैसे याद पड़े? क्योंकि लाखों वर्ष कह देते हैं। हँ? और सृष्टि की आयु ही लाखों वर्ष कह देते। एक-एक युग की आयु लाखों वर्ष। तो कैसे याद पड़ेगा? अरे, सतयुग को इनको क्या लाखों वर्ष हुआ? हँ? इन लक्ष्मी-नारायण को लाखों वर्ष हुआ क्या राज्य करते हुए?
तो देखो अभी तुमको एम-आब्जेक्ट दी है बच्चों को कि 5000 वर्ष की बात है। बहुत पुरानी बात नहीं है लाखों वर्ष की। तुम ये थे हूबहू एकदम। या तो इनकी डिनायस्टी में थे। या तो इनके कुल में थे जिसको तुम श्री कृष्ण का ही कुल कहो, वैकुण्ठ कहो। समझे ना? अब ऐसे ही अभी थोड़ा टाइम होता है। बोलता, अरे, कल थे; हम आए थे। तुमको दिन-प्रतिदिन नज़दीक आते रहेंगे। बाबा आया था। हमको राज्य देकरके गया था। फिर ऐसे-ऐसे हमने राज्य गंवाया। 2.12.1967 की प्रातः क्लास का छठा पेज, तीसरी लाइन। तो राज्य गंवाया और ऐसे हमने 84 जन्म लिये। नहीं तो 84 लाख आयु हो सृष्टि चक्र की तो फिर वो जनम? वो जनम कभी भी याद ही नहीं पड़ेंगे। एक कभी भी याद नहीं पड़ेगा एकदम। हाँ, ये तो अभी तुम्हारी बुद्धि में हुआ ना कि युग याद है ना? सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग। भई, इतना-इतना टाइम है एक-एक युग का। ये तो, ये तो मुरली में याद करके समझ सकते हो। हँ? लाखों वर्ष की याद मुरली में याद करो, कर सको?
तो बहुत बच्चे यहां आते हैं जो ये अलफ न जानने के कारण, बिचारे बहुत भटकते हैं। बहुत दुखी होते हैं। बहुत रंज होते हैं। और ये भी प्रश्न पूछते हैं ये प्रश्न। बाबा बोलते हैं प्रश्न पूछने तक जाते ही क्यों हो? जो आवे उनको बोलो अरे, ये तुम्हारा बाप है। और वर्सा तो बाप का ही मिलता है ना? कौनसा वर्सा? बेहद का बाप है। बेहद की सुख-शांति का वर्सा है। परन्तु तुम पतित बन गए हो। तो बेहद की सुख-शांति तो इन लक्ष्मी-नारायण को थी ना? इनकी डायनेस्टी में देवताओं को थी। तो अब बाबा कहते हैं मामेकम् याद करो। तो तुम्हारा ये सब पाप कट जावेगा। और दैवी गुण भी धारण करो। दैवी गुण धारण करेंगे तो देवी-देवता बन जाएंगे। बाकि तुम ये क्या पूछते हो? क्योंकि पूछने-वूछने की दरकार ही नहीं है। अब ये सबक है। क्या सबक? जो नहीं समझा है। ये अलफ को नहीं समझा है। फिर बे, बे की तिक-तिक। वो ही करते रहते हो। कौन बे और कौन अलफ? बे माने बादशाही की तिक-तिक। और अलफ? अलफ माने अल्लाह, ऊँच ते ऊँच। वो आकरके बादशाह बनाते हैं। नर को नारायण बनाते हैं। तो उस अलफ को नहीं समझा है तो खुद भी मुंझ जाते हैं। और खुद मुंझते हैं तो उनको फालो करने वाले और भी मुंझ जाते हैं। खुद भी मुंझ जाते हैं। अरे, कितना प्रश्न का उत्तर देकर करेगा? माथा कितना खपाया है। अरे, तंग हो जाएगी इनके प्रश्नों का जवाब देदेकरके। ऐसे बहुत हुए हैं बच्ची। पहले-पहले शुरुआत में एक-एक बरस, दो-दो बरस लगे हैं बच्चों को। पूछते-पूछते एक-दो के क्योंकि ये बाबा ने ये तो समझाया ही है। समझाया था ना कि अरे नहीं, इनको अलफ पढ़ा हो। बस। बे पढ़ा ही नहीं। और तुम हिर जाएंगे। इस बे पढ़ने में भी हिर जाएंगे। पहले अलफ।
ये जो म्यूजियम बनाते हैं ना, ये है तो डीटेल में सभी अच्छी तरह से समझाने की। परन्तु पहले अलफ समझें। तो फिर सब कुछ जान जाएंगे। ये बाबा खुद कहते हैं ना कि मेरे को, मेरे द्वारा मेरे को जानने से मेरे द्वारा तुम सब कुछ जान जाएंगे। बाकि तो फिर कुछ भी जानने का नहीं रहेगा। मेरे द्वारा? किसके द्वारा? द्वारा भी मेरे और जानना भी मेरे को है। ये क्या बात हुई? द्वारा माने मीडिया। कौन हुआ? अभी कहेंगे, सन् 67 में कहेंगे कि ब्रह्मा बाबा मीडिया। परन्तु इसको आखरीन मीडिया कहेंगे एवरलास्टिंग? नहीं कहेंगे। तो फिर ये कौन कह रहा है मेरे द्वारा? मेरे द्वारा। इनके द्वारा नहीं। उन धरमपिताओं के द्वारा नहीं। मेरे। मेरे माने? हाँ, मेरा-मेरा करते हैं ना? तो ये है मेरा। क्या? कौन है? मुकर्रर रथधारी। हाँ। बाकि जानने का कुछ भी नहीं रहेगा। तुम चुप करके सुनते रहो। ज्यादा तिक-तिक करने की दरकार नहीं। कौनसी तिक-तिक? ढ़ेर सारे प्रश्न पूछते हैं ना? हाँ। और तुम सुनते रहेंगे, सुनते रहेंगे तो सब जान जाएगा। तो ये सब जान जाएगा।
तुम, तुम खयाल करते हो कि बरोबर सब जान जाएं। इसके लिए फिर ये सात रोज़ रखा हुआ है। सात रोज़ में बहुत-बहुत कुछ तुम समझ सकते हो। अरे, जो कुछ भी समझने वाले नहीं होंगे; क्योंकि बहुत थोड़े होंगे जो अच्छी तरह से, अंदर के बाहर होंगे, अखरके बाहर ही समझाएंगे अच्छी तरह से। जो म्याऊं-म्याऊं वाले होंगे वो तो मुंझाय देंगे। मुरझाए पड़े हुए हैं बुद्धि में। तो चलेगा ही नहीं। उनके मुख से तो आवाज़ ही नहीं निकलेगा। है ना? तभी बाबा कहते हैं ना बिचारे बात भी नहीं करके, कर सकते हैं। अरे, उनको पाई का भी ज्ञान नहीं है जो दो अक्षर भी मुख से कह सकें। तो फिर उनको क्या कहेंगे? भट्ठी में पके ही नहीं हैं। भई कच्चे के कच्चे रह गए। और कच्चे भी कैसे? असुल कच्चे।
देखो, वो ईंटों की भी भट्ठी होती है ना? तो उसमें भट्ठी का मिसाल क्यों दिया है? भट्ठे में ही होती है। कोई बहुत पक जाती हैं, लाल हो जाती हैं। कोई अधूरी रह जाती हैं। कोई थर्ड क्लास। तो जो थर्ड क्लास होगी वो क्या होगी? भंजूर। ऐसे उसको हाथ में लियो और ऐसे-ऐसे करो तो टुकड़ा-टुकड़ा। समझा ना? यानि वो, वो ईंट पकी ही नहीं। तो उसका अर्थ बाबा समझाते हैं कि परिपक्व बनी ही नहीं, पकी नहीं। तो इसमें ऐसे-ऐसे करो तो टनाटन से आवाज़ करेगा? नहीं करेगा। बर्तन भी पकाते हैं ना आग में? अच्छा पकता है तो टनाटन का आवाज़ करता है ना? क्या? मिट्टी का बर्तन। हाँ। तो यहां क्या हुआ? यहां ऐसी जो कच्चे होंगे वो बिल्कुल ही नहीं समझाय सकेंगे। बिल्कुल नहीं। आवाज़ ही नहीं कर सकेंगे। तो समझ लो वो पक्की है या कच्ची है? कच्ची। हाँ। तो वो फिर क्या बनेगी? हँ? क्या पद पाएगी? अरे, क्या वो राजा-रानी की डिनायस्टी में जाएगी, आकरके बनेगी? अरे, वो तो पिछाड़ी में आकरके, पहले तो दास-दासियां जाकरके बनना पड़े। हाँ। और वो भी कोई तो ऐसी भी जो जन्म-जन्मान्तर दास-दासियां बनती रहेंगी। क्योंकि कुछ समझाते तो हैं नहीं। खुद ही नहीं समझे। ऐसे नहीं नशा उनको आ जाए कि हम कोई महारानी जाकरके बनेंगे। हां-हां, बनेंगी। ये रही पड़ी हैं यहां ही। है ना? और हैं तो बच्चा। कैसा? नीलकंठ। नीलकंठ देखा है? हाँ। आवाज़ भी नहीं कर सकती हैं ना उतना? तो वो राजधानी में क्या पद लेंगी? ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated 2.12.1967 was being narrated. The topic being discussed in the first line of the fifth page on Saturday was about the chart. There are very few children, it is very rare that they maintain the chart. Only then see, look at the rosary as well as to rightly what has this been made? Hm? What has been made? How big is the smallest rosary of those who obtain the scholarship? It is made up of eight. How many will obtain the scholarship? Brother, one child will obtain in a school. It is an unlimited, unlimited study. And how big is the scholarship? Brother, if not eight, consider it to be 108. 108 obtain scholarship. Even among them the big scholarship is of eight. And the remaining 100 are those who obtain the smaller scholarships. So, they are kept in a place. Where are they placed? Where are those who obtain the highest on high scholarship placed? They are placed on the head. There are fathers, aren’t they there? If a child is very dear, then they make him climb on the head. For example, there are races, aren’t they there? One and place. There are numbers also like this. They alone will go in one and place. Who will go into place? The emperor and the queen will go. Hm? Or will all the eight emperors go? Hm? Or will all the eight queens go? So, look, the emperor of the world, emperorship of the world, empress. So, they are called place. There is so much difference in place. There is so much difference. And they sit and observe through telescope. There is that much difference. So, this is also a race, isn’t it children? Children are explained so nicely.
Then, what should be done first in order to obtain good number in this race? Hm? First consider yourself to be a soul. It is not the race of the body. This is a spiritual race. So, you forget this topic itself. Hm? Later you sit and keep on talking; you keep on talking wasteful, meaningless topics with each other. So, first we should ask ourselves as to whether we consider ourselves to be souls? First we should understand that rightly I remember the Father. Do I remember? So, that is it. Those who consider themselves they should tell others also. Consider yourselves to be souls and remember your Father. So, this is the spiritual journey of remembrance. And those are physical journeys. And this is the journey of the soul in remembering the Supreme Soul. That is it. Remember this word and write. Remember very nicely. Do not say anything else to anyone. Children have to give the message, don’t they have to? So, you give the message, don’t you? So, is it difficult to give the message? What is the message in a word? Manmanabhav, madhyaajibhav. This itself is the message, isn’t it? And it is a famous message. And then the Father explains that in detail that all the relationships of the body and this old world, whatever you see through these eyes, you have to renounce all these. Hm? And you have to consider yourself to be a naked soul. So, Baba says, doesn’t He that you consider yourself to be naked. Consider yourself to be a soul, i.e. consider yourself to be naked. Then you will remember. What? That we have to go back to our Soul World. Naked-vaked. But you don’t have to remove the clothes. No. ‘Become naked’ means become bodiless. Consider yourself to be a soul and remember the soul’s Father.
Arey, daughter, arey, it is very difficult daughter. Some for five minutes, arey, Baba sits and reminds you here. So, look, we become that too to some extent or the other. We do become something. Arey, you don’t even remember worth dust in the entire day. Is it not? There are such children also. It is not as if Baba keeps on guessing just like this. Arey, no. There are numerous people like this. They will like those topics. Which one? Wasteful ones. Dust, the same topics. That thing happened. That mitmight happened. They keep on narrating all the old stories. They will not remember at all. Why? What is the reason for not remembering? It is because they do not follow the Shrimat at all. Those who don’t follow the Shrimat will they remember anything? Hm? They do not remember anything. So, when they do not remember anything, then they don’t reap any, any benefit. They do not become pure at all. I mean they do not become at all; so, this happens. There are many types of thoughts. Suffering loss, etc. etc. Numerous thoughts keep emerging. When that doesn’t sit in the intellect at all, then the mercury of joy doesn’t rise at all. Baba says you children had the mercury of joy, didn’t you? Arey, earlier you were in a lot of joy, weren’t you? When? Hm? When you were in the Golden Age, you were satopradhaan (pure). Achcha, now you are very sorrowful. And you know that now we are sorrowful. Then? Then now we have to become happy. So, then you have to go to that stage in purity, will you not?
So, the Father explains very easily. Whatever Baba explains, is this mentioned in the scriptures? Can anyone narrate? Arey, they cannot narrate even a little. Why? It is because nobody knows at all. Do they know? No. So, children, consider yourself to be a soul. And He explains in detail that you were satopradhaan and now you have become tamopradhaan. You have come to the old world. Now you have to go to the golden world. You want to go, don’t you? Hm? You want to go. You say – Make us pure. You, whenever anyone says – O purifier of the sinful ones come or Sita Ram or whenever they say anything, does it remain in their intellect? Arey, daughter, they don’t even remember. They do not remember the contrast of the pure world and the sinful world. The pure world does not even remain in their thoughts. Then how can they remember? It is because they say lakhs of years. Hm? And they say the age of the world itself is lakhs of years. The duration of each Age is lakhs of years. So, how will they remember? Arey, has it been lakhs of years since the Golden Age (Satyug)? Hm? Has it been lakhs of years since these Lakshmi-Narayan ruled?
So, look, now you children have been given the aim-object that it is a topic of 5000 years. The topic is not a very old one of lakhs of years. You were this, exactly like this. Or you were in their dynasty. Or you were in their clan, which you may call the clan of Shri Krishna himself or you may call it Vaikunth (heaven). You have understood, haven’t you? Well, similarly, there is a little time. He says, arey, we were there yesterday; we had come. You will keep on coming closer day by day. Baba had come. He had given us the kingship and gone. Then we lost the kingship in such and such manner. Sixth page, third line of the morning class dated 2.12.1967. So, we lost the kingdom and we got 84 births like this. Otherwise, if the age (aayu) of the world cycle is 84 lakhs, then those births? You will never remember those births at all. You will not even remember a single one at all. Yes, now it is in your intellect that you remember the Age (yug), don’t you? Golden Age, Silver Age, Copper Age, Iron Age. Brother, each Age has this much time. This, this you can understand by remembering the Murli. Hm? Can you remember lakhs of years in the Murli?
So, many poor children come here, who wander a lot because of not knowing this Alaf. They become very sorrowful. They feel painful. And they also ask this question. Baba says – Why do you go up to asking questions? Whoever comes, tell them, arey, this is your Father. And you get the inheritance only of the Father, don’t you? Which inheritance? He is an unlimited Father. There is an unlimited inheritance of happiness and peace. But you have become sinful. So, these Lakshmi and Narayan had unlimited happiness and peace, didn’t they? Deities had [happiness and peace] in their dynasty. So, now Baba says – Remember Me alone. Then all your sins will be cut. And inculcate divine virtues also. If you inculcate divine virtues, then you will become deities. What is it that you ask? It is because there is no need to ask. Well, this is the lesson. What lesson? That which you haven’t understood. You have not understood this Alaf. Then the wasteful talk of Be, Be. You keep on doing that. Who is Be and who is Alaf? Be means wasteful talk of baadshaahi (emperorship). And Alaf? Alaf means Allah, the highest on high. He comes and makes you an emperor. He transforms a man (nar) into Narayan. So, if they haven’t understood that Alaf, then they themselves also get confused. And when they themselves get confused then those who follow them also get confused. They themselves also get confused. Arey, how many questions will you answer? You have spoiled your head so much. Arey, she will be fed-up answering their questions. Daughter, there have been many such persons. Initially, it took up to one, two years for the children in the beginning asking [questions] about each other because Baba has indeed explained this. He had explained, hadn’t He that arey, no, they should have studied Alaf. That is it. They did not study Be at all. And you will be habituated. You will be habituated in studying this Be also. First Alaf.
These museums that are set-up, aren’t they, these are for explaining everything nicely in detail. But first they should understand Alaf. Then they will know everything. This Baba Himself says, doesn’t He that by knowing Me through Me, you will know everything through Me. Then there will not be anything to be known. Through Me? Through whom? Through is also ‘Me’ and what you have to know is also Me. What is this? Through means media. Who is it? Now it will be said, it will be said in 67 that Brahma Baba is the media. But will this be ultimately called the everlasting media? It will not be called. So, then who is the one telling ‘through Me’? Through Me. Not through these. Not through those founders of religions. Me. What is meant by Me? Yes, you say ‘mine, mine’, don’t you? So, this is mine. What? Who is it? The permanent Chariot-holder. Yes. Then there will not be anything to be known. You keep on listening quietly. There is no need to talk more wastefully. Which wasteful talk? You ask a lot of questions, don’t you? Yes. And you will keep on listening, keep on listening, then you will know everything. So, you will know all this.
You, you think that rightly all should know. For this then these seven days have been fixed. You can understand a lot in seven days. Arey, those who don’t understand anything; because there will be very few who nicely, the insiders will be outside, they will explain outside only nicely. Those who sound like a cat (myaun-myaun), they will confuse. They are wilted in the intellect. So, he will not work at all. Sound will not emerge from their mouth at all. Is it not? Only then does Baba say, doesn’t He that poor fellows can’t even talk. Arey, they don’t even have knowledge worth a pie so that they could utter two words through their mouth. So, then what will they be called? They have not baked in the furnace. Brother, they remained weak. And how weak? Truly weak.
Look, there is that furnace of bricks also, isn’t it? So, why was the example of a furnace given in that? It happens in the furnace only. Some bake a lot, become red. Some remain incomplete. Some third class. So, what will the third class ones be? Bhanjoor (brittle). Take them in your hand like this and do like this, then it will break into pieces. You have understood, haven’t you? It means that that brick did not bake at all. So, Baba explains its meaning that it didn’t become strong at all, did not bake at all. So, in this, if you do like this then will it produce a sound of ‘tanatan’? It will not. Utensils are also baked in the fire, aren’t they? When it bakes nicely, then it produces the sound ‘tanatan’, doesn’t it? What? The utensil of clay. Yes. So, what happened here? Here, those who are weak will not be able to explain at all. Not at all. They will not be able to produce any sound at all. So, you can assume whether they are strong or weak? Weak. Yes. So, what will he/she become? Hm? What post will he/she achieve? Arey, will he/she go into the dynasty of a king and a queen, come and become so? Arey, they will come in the end, first they will have to become servants and maids. Yes. And that too some are such ones also who will keep on becoming servants and maids birth by birth. It is because they don’t explain anything. They themselves did not understand. It is not as if they will feel intoxicated that we will go and become an empress. Yes, yes, they will become. They are living here itself. Is it not? And he is a child. What kind? Neelkanth (the one with a blue throat). Have you seen Neelkanth? Yes. They cannot produce sound to that extent, can they? So, what post will they achieve in the capital (raajdhaani)? Om Shanti. (End)
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2964, दिनांक 06.08.2019
VCD 2964, dated 06.08.2019
प्रातः क्लास 02.12.1967
Morning class dated 02.12.1967
VCD-2964-extracts-Bilingual
समय- 00.01-34.39
Time- 00.01-34.39
प्रातः क्लास चल रहा था – 2.12.1967. शनिवार को छठे पेज के मध्यांत में बात चल रही थी कि जो पिछाड़ी में आवेंगे तो दास-दासियां तो बनना ही पड़ेगा। वो भी जन्म-जन्मांतर। ऐसे नहीं कि नशा है हम कोई महारानी जाकरके बन जाएंगे। नहीं। हाँ। बनेंगी। ये रही पड़ी हैं यहां ही। और हैं तो कच्चे नीलकंठ। हँ? मीठी आवाज़ भी नहीं कर सकते। वो ही कें, कें। तो वो क्या राजधानी में पद लेंगी? तो ये कोई उनको बिचारों को मालूम थोड़ेही पड़ता है। और वो तो ऐसे ही चलते रहते हैं जैसे मनुष्य चलते रहते हैं। ये खयाल थोड़ेही ही रहता है कि हम पुरुषार्थ करें, हँ, हम कुछ अच्छा चलें। ‘अच्छा चलें’ माने? आत्मा के कल्याण अर्थ करें तो अच्छा चलेंगे। देह का ही ओना लगा रहता है।
तो देखो, बाबा कहे तो सही कि ये देखो ये पंडा बन कर आई है। 10-12 को साथ लेकरके आई है। कुछ न कुछ तो समझाया है। फिर उसके लिए भी बाप समझाते हैं कि नंबरवन में तो महारथी हैं। और नंबर सेकण्ड में घोड़ेसवार। थर्ड नंबर में कहेंगे प्यादे। और फिर फोर्थ नंबर में? अरे, फोर्थ नंबर में तो धूलछाईं भी नहीं है। तो धूल भी नहीं है। अरे, प्यादा भी नहीं, कुछ भी नहीं। 2.12.1967 की प्रातः क्लास का सातवां पेज। कोई एक को भी नाक से पकड़करके ले आवे तो कहें अच्छा भई, कुछ तो ले आते हैं सर्विस करके। तो, तो क्या एक के ऊपर बादशाही करेंगे? करेंगे कोई? नहीं। ये तो प्रजा बहुत बनानी है। और हरेक को अपने-अपने गांव में राज्य करना है। तो जहां राज्य करना है सेवा भी करनी है। तो प्रजा बनानी है ना? राजा तो तभी कहा जाएगा जब प्रजा होगी। तो राजा बनाने का, बनने का, प्रजा बनाने का ढंग ही नहीं है। समझे? तो है ना बरोबर? सारा टाइम वेस्ट हो गया। वेस्ट होता है ना? बाबा बहुत देखते हैं। इन बिचारियों का सारा टाइम वेस्ट हो रहा है। तो बिचारे कहते हैं ना? अभी देखो कोई भी है। ये सब बिचारे हैं। ये जाकिर हुसैन है बिचारा। ये क्या ये बिचारा, क्या है बिचारा? सब मिट्टी में मिल जाएगा पद, मान, मर्तबा। ये क्या है? हँ? अल्पकाल के पद, मान, मर्तबे के पीछे कितना मरते हैं। अभी बाकि थोड़े रोज़ हैं इनके राज्य के। अच्छा। मानो गांधी है, फलाना है। अब क्योंकि ये तो सब विपरीत बुद्धि हैं ना? नाम ही पड़ा गांधी। इनका विनाश तो जरूर होगा।
प्रीत बुद्धि और विपरीत बुद्धि। तो ये दोनों बातें बुद्धि में तो हैं ना? सबकी बुद्धि में है। तो हम आत्मा की प्रीत बुद्धि कितने लगते हैं? पर प्रीतिबुद्धि? कितनी प्रीतिबुद्धि है उनके साथ? और कितनी विपरीत बुद्धि है? तो वो तो समझ सकते हैं ना? कोई बोलता है बाबा, हम दो घंटा प्रीतिबुद्धि में रहते हैं। क्या? लौकिक बाप से दो घंटा रखते हो प्रीति? या तीन घंटा रखते हो प्रीति? बाबा तो प्रश्न पूछेगा ना? अरे, उन लौकिक बाप से तो तुम्हारी बहुत प्रीति है। उनके साथ रहते हो, खाते हो, बाबा-3 करते रहते हो। क्यों? यहां हर समय बाबा-बाबा करते हो? खाते-पीते रहते हो बाबा के साथ? समझा ना? परन्तु वो लौकिक बाप के साथ प्रीति है वो कोई प्रीति थोड़ेही है? यहां तो बताते हैं खाली एक बात पक्की करो हम आत्मा हैं। तो बाबा-बाबा ऐसे ही करते रहते हैं। अपन को आत्मा समझते थोड़ेही हैं। जैसे दूसरे बाबा-बाबा करते हैं वो भी करते हैं। और ये जो यहां बाबा-बाबा करते हैं ना सो इनको देखकरके बाबा-बाबा करते हैं। तो ये कोई शिवबाबा की याद में थोड़ेही रहते हैं? ना। नहीं तो बाबा बार-बार समझाते हैं। तुम इनको भूल करके उनको बाबा-बाबा करते रहो। किनको भूल करके? हँ? उनको किनको करते रहो? हँ? इनको माना ब्रह्मा बाबा को भूलकरके, जो भविष्य में पार्ट प्रत्यक्ष होने वाला है और अभी भी बहुतों की बुद्धि में है, उनको बाबा-बाबा करते रहो। परन्तु सो भी सच-सच करते रहो। इसलिए ऐसे नहीं कि बाबा कहा है इसलिए हम ऐसे ही कहते हैं। नहीं।
ये, ये उनसे, उनमें वो। ये उसमें वो। ये क्या? ये, ये उसमें वो। क्या मतलब हुआ? अरे, ये चालाकी कोई नहीं चलेगी किसी की भी। हँ? क्या चालाकी? क्योंकि यहां चालाक तो बहुत हैं। तो वो समझते हैं कि हम बाबा को बहुत याद करते हैं। और पहचान क्या है? बाबा को याद करें तो ज्ञान भी बहुत ही अच्छी तरह से समझें। और फिर वो ज्ञान बजता रहे। हँ? जौहर भी भरता रहे। अरे, फिर तो वो उड़ने लग पड़ेंगे। उड़ने की बात समझते हो? अरे, उनको ठिकाना नहीं है बैठने का। बाबा हम जाते हैं। फलानी जगह प्रदर्शनी होती है। तो बाबा हम जाते हैं फलानी जगह। हँ? वो, वो जाते हैं। जाकर सर्विस करें। बहुतों को वहां जाके रास्ता बतावें। और फिर पद भी ऊँचा पावें। तो जितना हम बात करेंगे उतना बाबा की याद भी रहेगी। किनसे बात करेंगे? हँ? जो भी प्रदर्शनी में आने वाले हैं उनसे जितना बात करेंगे उतना बाबा की याद रहेगी। क्योंकि बाबा की याद ही बाबा कहते हैं भल बाप की याद उनको देते रहो। और अपन को कहो आत्मा समझो। और बाप को याद करते रहो। तो जितना औरों को पैगाम देंगे, इतना खुद भी तो याद रहेगी। अब कोई को पैगाम ही नहीं देंगे तो याद कहां से रहेगी? तो कोई नहीं करते तो खुद भी याद नहीं करते हैं।
अच्छा, बच्चियां बिचारी बहुत कहती हैं। ऐसी बच्चियां हैं ना? बंधन में हैं। कहती हैं हमारा तो बंधन है। नहीं। अरे, इस दुनिया में बंधन तो सबको है। हँ? सारी दुनिया को बंधन है। कोई को तन का बंधन, कोई को मन का बंधन, कोई संबंधियों का बंधन। अनेक प्रकार के बंधन। बीमारी का बंधन। तो इन बंधनों को हम कैसे काटें? सो खुद ही युक्ति से काटें बंधन को। और इन बंधनों के कटने की युक्तियां बहुत हैं। ये अपने बदली में समझो भई कैसे बंधन है। बाबा को कहते हैं बंधन कटे। अच्छा चलो, आज बंधन कटे। हँ? और कल जाते हैं, मर जाते हैं। हँ? तो मर जाते हैं। अचानक मर जाते हैं ना? और उनके बच्चों का बंधन कौन काटेगा? उनको कौन संभालेगा? हँ? अरे, बंधन यही हुआ ना कि बच्चे कौन संभालेगा? हँ? परन्तु अगर समझो एक्सिडेंट हो गया। फिर एक्सिडेंट तो होते ही रहते हैं ना? तो फिर बच्चे कौन संभालेंगे? हँ? कि ऐसे ही रह जाएंगे? कोई संभालेगा ना? हाँ। तो विचार करना होता है कि हम अभी क्या करें? इन बच्चों की संभाल करें? क्या और कोई युक्ति है? जरूर हम मरेंगे तो कोई का मासी होगी, चाची होगी या कोई न कोई मिल जाएगा। ठीक है ना? हँ? तो कौनसे मरने की बात कर रहे? हद के मरने की बात कर रहे शरीर से? हां? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, ये देह से मरने की बात है। देह के संबंधियों से मरने की बात है। और मरेंगे तो कोई न कोई तो मिल ही जाएगा। ठीक है ना?
अज्ञान काल में तो मनुष्य शादी कर लेते हैं। तो बात भी नहीं है। इस समय में तो शादी-वादी की बड़ी, बड़ी मुसीबत है। तो फिर क्या करना चाहिए? अच्छा, भई, कोई को सौ रुपया, सौ रुपया देकरके, देकरके कि अब इन बच्चों को संभालो। भई, वो तो मर गई। तो तुम बच्चे भी तो यहां आकरके मरते हो ना? हँ? ये मरजीवा जनम है ना तुम्हारा? हँ? तो पूरे तो नहीं करते हैं ना? यहां कोई पूरे मरते हैं, मरे हैं कोई? हँ? पूरे नहीं मरते। बाकि ये तो कोई बंधन नहीं है। कहते हैं बाबा के आगे। तो ऐसे जो बंधन-बंधन चिल्लाते रहते हैं उनको क्या कहेंगे? यानि ये तो कोई बड़ी बात ही नहीं है ना? है ना? और समझो हम जीते जी मर गई। हँ? यहां तो जीतेजी मरना होता है ना? तो पीछे इन बच्चों को कौन संभालेगा? अच्छा, 8 बच्चे हैं, 10 बच्चे हैं, 5 हैं, तुम मर जाएंगी। इनको कौन संभालेगा? तो या तो नर्स रखनी पड़ेगी या तो फिर शादी करना पड़ेगा। या इनकी कोई चाची होगी, गरीब कोई, पैसा-वैसा वाली शायद होगी, या गरीब होगी। अरे, आज की दुनिया में पैसा से देखो क्या काम नहीं होता है? अरे, गरीब होगा तो गरीब को गरीब मिलेगी। साहूकार को साहूकार मिलेगी। अरे, तो बंधनमुक्त तो झट हो सकते हैं ना?
तो वो तो खयाल करके अपने को बंधनमुक्त करना है। और फिर इस बेहद की सर्विस का शौक रखना है। वो है हद की सर्विस एक जनम के लिए। और ये है बेहद की सर्विस जन्म-जन्मान्तर के लिए। 2.12.67 की प्रातः क्लास का आठवां पेज, चौथी लाइन। तो जिनको आह लगेगी सर्विस की, सर्विस का शौक होगा वो तो आपेही प्रबंध कर देंगे। समझा ना? तो वो तो अपना मोह है जो नहीं छोड़ सकते हैं। बाकि तो बंधनमुक्त कोई भी हो सकते हैं। हो सकते हैं ना? यूं तो जाते हैं ना? किसको गुस्सा लगता है तो बंधनमुक्त हो जाते हैं जाकर। हँ? या तो जाकरके दरिया में कूद पड़ते हैं। कूद के मर जाते हैं। तो इस दुनिया से मर गया ना? तो यहां भी तो ऐसे ही है ना? यहां, यहां बैठे हो ना यहां? तो तुम किससे मिलते हो? हँ? ये भी तुम्हारे मित्र-संबंधी याद पड़ते हैं। इसलिए बाबा कहते हैं – जाओ, अरे, अपने मित्र-संबंधियों को भी कुछ न कुछ उद्धार करो। उद्धार कर दियो ना? नहीं तो तुम्हीं हो। अरे, तुम नहीं जाओगे तो उनके पास और कौन जाएगा? इसलिए तुम जाओ। हँ? उनको जाकरके रास्ता बताओ। तुम बतावेंगे तो तुम्हारी सुनेंगे। नहीं तो औरों की बात कौन क्यों सुनेंगे? समझे ना? पैगाम तो देना ही है। आज दियो या कल दियो।
तुम अभी तो समझ गए अच्छी तरह से कि पैगम्बर या मैसेंजर या सद्गति दाता ये पैगाम देते हैं कि अभी भी नहीं समझे? समझे ना? तो मनमनाभव का पैगाम है। क्यों? क्योंकि मनमनाभव अर्थात् मेरे में एक में मन लगा। मामेकम याद करो। अब जन्म-जन्मान्तर अनेकों को याद करते आए। तो अब क्या करो? मनमनाभव। कि तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जाओगे। उस एक ऊँच ते ऊँच पार्टधारी को जानेंगे तो क्या होगा? तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जावेंगे। अभी ये तो कोई तुमको सिखलाएगा नहीं। क्या? कि तमोप्रधान से सतोप्रधान आत्मा कैसे बनती है? अरे, इस बेहद के बाप के बिगर कोई भी नहीं समझाएगा। एक को, एक भी नहीं है ऐसा जो समझाए। और इस दुनिया में तो सब आते ही रहते हैं। कहां से? आत्म लोक से आते ही रहते हैं। जो आते हैं वो पिछाड़ी वाली जो उनकी है ना प्रजा उनको बुलाते ही हैं। क्या? खुद आएंगे तो वहां से उनकी प्रजा भी पीछे-पीछे आएगी कि नहीं? बुलाते ही हैं। अभी क्राइस्ट को भी तो प्रजापिता कहेंगे ना? कोई भी धरमपिता है, अपने धर्म के जो फालोअर्स हैं, उनका पिता है कि नहीं? अपनी प्रजा का पिता नहीं है? हाँ। ये है क्रिश्चियन प्रजापिता। तो वो आते हैं तो क्या करते हैं? भला ये सब जो ऊपर में शांति में बैठे हैं, वो आते हैं तो अपने पीछे-पीछे उन सबको नीचे ले आते हैं। चलो। शांति में पड़े-पड़े सो रहे हो। इसमें फायदा या दुनिया में चलें, सुख भोगें, शांति मे रहें? नहीं? अरे। आत्मलोक से आएंगे तो सुख-शांति भोगेंगे या नहीं भोगेंगे? भोगेंगे। तो अपने फालोअर्स को सबको नीचे ले आते हैं। और नीचे ले आकरके जब समय पूरा होता है तब उनको बोलते हैं। कौन बोलते हैं? उनके फालोअर्स अपने धरमपिता को बोलते हैं। हमको शांति चाहिए। अब तुम आए क्यों शांति देश से नीचे? परन्तु नहीं। ड्रामा के अनुसार सबको ज़रूर आना पड़ेगा ना?
तो देखो, बैठे हैं ना शांति में। उनको ही प्रीसेप्टर यानि वो जो धर्मस्थापक हैं ना वो जब आते हैं, और वो नहीं आवें तो सभी ऊपर में बैठे रहें। तो उनको आना पड़ता है। और उनके पीछे-पीछे जो भी फालोअर्स उनके हैं उनको दूसरो को सबको आना पड़ता है। और पीछे यहां आकरके फिर कहें, हे पतित पावन! हमको ऊपर में ले जाओ। देखो, कैसा खेल बना हुआ है मजे का! परन्तु एक ही आएगा। हँ? क्या वो क्राइस्ट पतितों को पावन बनाके ऊपर ले जाएगा? हँ? कोई भी धरमपिता ले जाएगा अपने फालोअर्स को? कोई भी नहीं ले जाएगा। एक ही आएगा। हँ? जब सब चले आवें तब ये एक ही आएगा। अरे? तो सब आ गए क्या? हँ? सब आ गए? अब कोई नहीं आ रही आत्मा नई? और दुनिया की आबादी नहीं बढ़ेगी? अरे? हँ? बढ़ेगी? तो सब आ गए? तो बाबा ने क्यों बोला सब आ गए? अरे, सब आ गए माना सब धरमपिताएं आ जावें। क्या? टोटल भक्ति मार्ग में भी तो बोला है, कितने प्रजापति? दस प्रजापति। क्या? और सब आ गए तो फिर बाबा को। हाँ। तो जब सब चले आवें तब ये एक ही आएगा। हँ। तो बैठकरके ये यही देगा सबको। हँ? देखो सबको देगा। क्या देगा? क्या देगा? क्या मांगते हैं? सुख और शांति। मुक्ति और जीवनमुक्ति मांगते हैं।
तो देखो, दुनिया में तो कोई को भी मालूम नहीं है कि जब बाबा आते हैं, तभी ये जो भी पैगम्बर हैं वगैरा-वगैरा इब्राहिम, बुद्ध, क्राइस्ट, ये पैगम्बर हैं ना? पर तुम-3 तो नहीं है ना? पर ये हमारे पुराने जानते हैं। ये इस्लामी, बौद्धी, ये सभी आते हैं। हँ? और ये सभी आकरके ये मंत्र आकरके ले जाते हैं एक। क्या? ये साक्षात्कार किया हुआ है इन बच्चों का। सब ले आकरके सब मनमनाभव बाप को याद करो। अपन को आत्मा समझो, बाप को याद करो। करो। क्योंकि हैं तो सभी बैगर ना? हँ? कि कोई दाता है? हँ? सुख-शांति के बैगर हैं कि नहीं? सब बैगर हैं। जैसे ये बैगर है, हँ, ऐसे क्राइस्ट कौन होगा? क्राइस्ट जिसके दुनिया में इतने ज्यादा फालोअर्स हैं। सबसे ज्यादा फालोअर्स कौनसे धरमपिता के? क्राइस्ट के। और है क्या? अभी वर्तमान जनम में वो क्या है? बैगर है। तो बैगर होगा ना? और, और बहुत जानते हैं उसको। ये पोप लोग के जो ये बड़े-बड़े हैं वो जानते हैं कि इस समय में क्राइस्ट बैगर होगा। और बुद्धि भी कहती है कि बरोबर जो पहले होंगे सो पिछाड़ी में होंगे। हँ? पिछाड़ी में बैगर नहीं होगा तो तभी कौन होगा? तो बाबा भी कहते हैं, है ना? बैगर टू प्रिंस बनते हो। हँ। ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated 2.12.1967 was being narrated. The topic being discussed in the end of the middle portion on the sixth page on Saturday was that those who come late will have to definitely become servants and maids. That too birth by birth. It is not that you have the intoxication that we will go and become an empress. No. Yes. You [ladies] will become. These [ladies] are living here itself. And they are weak Neelkanth. Hm? They cannot even produce a sweet sound. The same ‘kein, kein’. So, what post will they achieve in the capital? So, do they, the poor ones get to know this? And they keep on treading just as the human beings tread. They do not think that we should make purusharth, hm, we should tread nicely. What is meant by ‘tread nicely’? If we do for the sake of benefit of the soul then we will tread nicely. You keep on worrying about the body only.
So, look, Baba should say that look at this, she has come as a guide (panda). She has brought 10-12 with her. She has explained something or the other. Then the Father explains for that also that at number one are the elephant-mounted warriors (maharathis). And at the second number are the horse-mounted warriors (ghodesawaar). The foot-soldiers (pyaade) will be said to be at the third number. And then at the fourth number? Arey, in the fourth number there is not even dust. So, there is not even dust. Arey, not even foot soldier, nothing. Seventh page of the morning class dated 2.12.1967. Even if they bring one person by holding him by his nose, then we can say, okay brother, you bring something by doing service. So, so, will you rule over one [person]? Will anyone? No. You have to prepare a lot of subjects (praja). And each one has to rule in his/her village. So, you also have to serve wherever you have to rule. So, you have to prepare subjects, will you not? One will be called a King only when there are subjects. So, you don’t know the method of making, becoming a king, making subjects. Did you understand? So, it is right, isn’t it? The entire time was wasted. It gets wasted, doesn’t it? Baba sees a lot. The entire time of these poor ladies is being wasted. So, they are called ‘poor ones’ (bichaarey), aren’t they? Now look, it could be anyone. All these are poor ones. This Zakir Hussain (a former President of India) is a poor one. What is he, this poor one, what is he, the poor one? Everything including the post, respect, position will mix with the mud. What is this? Hm? People die so much for temporary post, respect, position! Now there are a few days of their kingdom. Achcha. Suppose there is Gandhi, etc. Well, because all these have an opposite intellect, don’t they? The name itself has been coined as Gandhi. They will definitely be destroyed.
Preetbuddhi (loveful intellect towards God) and vipreet buddhi (intellect opposite to God). So, both these topics are in the intellect, aren’t they? It is in everyone’s intellect. So, to what extent does our soul remain preetbuddhi? But preetbuddhi ? To what extent does our intellect love Him? And to what extent is the intellect opposite (vipreetbuddhi)? So, you can understand that, can’t you? Someone says, Baba, I remain preetbuddhi for two hours. What? Do you love your worldly Father for two hours? Or do you love him for three hours? Baba will ask a question, will He not? Arey, you have a lot of love for that worldly Father. You live with him, eat with him, and keep on uttering Baba-3. Why? Do you keep on uttering Baba, Baba all the time here? Do you eat and drink with Baba? You have understood, haven’t you? But that love for the worldly Father, is it [true] love? Here it is told that you firm up just one topic that we are souls. So, they keep on uttering Baba, Baba just like that. Do they consider themselves to be souls? Just as others utter Baba, Baba, they too utter. And these who utter Baba, Baba here, don’t they, then others utter Baba, Baba by seeing them. So, do they remain in ShivBaba’s remembrance? No. Otherwise, Baba explains again and again. You forget them and keep on uttering Baba, Baba for Him. By forgetting whom? Hm? Whom should you keep on remembering? Hm? This one means by forgetting Brahma Baba, the one who is going to be revealed in future and even now He is in the intellect of many, you keep on uttering Baba, Baba for Him. But that too keep on doing it truly. This is why it is not as if we do only because Baba has said. No.
This, this, from him (unse), in them (unme) that. This in that, that. What has been said? This, this in that, that. What does it mean? Arey, nobody’s cleverness will work. Hm? What cleverness? It is because there are many who are clever here. So, they think that we remember Baba a lot. And what is the indication? If you remember Baba, then you understand the knowledge also very nicely. And then that knowledge should keep on playing. Hm? The sharpness should also go on increasing. Arey, then they will start flying. Do you understand the topic of flying? Arey, they do not have the place to sit. Baba, we go. Exhibition is organized at such and such place. So, Baba, we go to such and such place. Hm? They, they go. We should go and do service. We should go and show the path to many. And then we should achieve a high post as well. So, the more we talk, the more there will be the remembrance of Baba. With whom will you talk? Hm? All those who come to the exhibition, the more you talk to them, the more you will remember Baba. It is because Baba’s remembrance itself, Baba says, you may keep on reminding them of the Father. And tell them that consider yourself to be a soul. And keep on remembering the Father. So, the more you give message to others, you yourselves will also remember. Well, if you don’t give message to anyone at all, then how will you remember? So, some don’t do [service], so, they don’t remember [Baba] as well.
Achcha, poor daughters say a lot. There are such daughters, aren’t they there? They are in bondage. They say – We have bondage. No. Arey, everyone in this world has bondage. Hm? There is bondage for the entire world. Someone has the bondage of the body, someone has the bondage of the mind, and someone has the bondage of relatives. Many kinds of bondages. Bondage of disease. So, how can we cut these bondages? So, we should cut the bondages ourselves tactfully. And there are many tactics to cut these bondages. Just think brother what kind of bondages are these? They tell Baba – The bondages should be cut. Okay, today the bondages are cut. Hm? And tomorrow they go, they die. Hm? So, they die. They die suddenly, don’t they? And who will cut the bondages of their children? Who will take care of them? Hm? Arey, the bondage itself is this that who will take care of the children? Hm? But suppose an accident takes place. Then accidents keep on taking place, don’t they? So, then who will take care of the children? Hm? Or will they remain like that only? Someone will take care, will they not? Yes. So, you have to think that what should we do now? Should we take care of these children? Is there any other tact? Definitely when we die, then someone will have a maternal aunt, someone will have a paternal aunt or he will find someone or the other. It is correct, isn’t it? Hm? So, about which death is He talking? Is He talking about the limited death physically? Yes? (Someone said something.) Yes, this is about dying physically. It is a topic of dying through physical relatives. And if you die then they will find someone or the other. It is correct, isn’t it?
In the period of ignorance people get married. So, it doesn’t even matter. At this time marriage is a big, big problem. So, then what should you do? Achcha, brother, by giving someone a hundred rupees, a hundred rupees that now take care of these children. Brother, she died. So, you children also come and die here, don’t you? Hm? This is your marjeeva (dying from body consciousness while being alive) birth, isn’t it? Hm? So, you don’t complete it, do you? Does anyone die here completely, has anyone died? Hm? You don’t die completely. As such these are not bondages. You say in front of Baba. So, those who keep shouting like this ‘bondage, bondage’, what will they be called? It means that this is not a big issue at all, is it? Is it not? And suppose we died while being alive. Hm? Here you have to die while being alive, don’t you have to? So, later who will take care of these children? Achcha, there are 8 children, there are 10 children; you (mother) will die. Who will take care of them? So, either a nurse will have to be hired or he will have to get married. Or if they have a paternal aunt, a poor one, perhaps a rich one or she may be poor. Arey, in today’s world, which task cannot be accomplished with money? Arey, if someone is poor, then a poor one will get a poor [wife]. A rich one will get a rich one. Arey, so, you can immediately become free from bondages, can’t you?
So, you should think about that and make yourself free from bondages. And then you have to have the hobby of this unlimited service. That is a limited service for one birth. And this is unlimited service for many births. Eighth page, fourth line of the morning class dated 2.12.67. So, those who have interest in service, those who have the hobby of service will make arrangements automatically. You have understood, haven’t you? So, it’s one’s attachment that you cannot leave. As such anyone can become free from bondages. You can become, can’t you? People go, don’t they? If someone feels angry then they go and become free from bondages. Hm? Or they go and jump into a river. They jump and die. So, he died from this world, didn’t he? So, even here it is like this only, isn’t it? Here, here, you are sitting here, aren’t you? So, whom do you meet? Hm? Your friends and relatives come to your mind. This is why Baba says – Go, arey, uplift your friends and relatives to some extent or the other. Uplift them, will you not? Otherwise, you alone are there. Arey, if you don’t go to them, then who else will go? This is why you go. Hm? Go and show them the path. If you tell, then they will listen to you. Otherwise, why will anyone listen to others? You have understood, haven’t you? You have to definitely give the message. Give today or tomorrow.
You have now understood nicely whether the Paigambars or Messengers or the bestower of true salvation upon everyone gives this message or did you not yet understand? You have understood, haven’t you? So, it is the message of Manmanaabhav. Why? It is because Manmanaabhav, i.e. focus your mind on Me, on one. Remember Me alone. Well, you have been remembering many since many births. So, what should you do now? Manmanaabhav. You will become satopradhan from tamopradhan. What will happen if you remember that one highest on high actor? You will become satopradhaan from tamopradhaan. Well, nobody will teach you this. What? As to how a soul becomes satopradhan from tamopradhan. Arey, nobody except this unlimited Father will explain. There is not even a single person who could explain. And everyone keeps on coming in this world. From where? They keep on coming from the Soul World. Those who come, their latter subjects, they call them. What? When they themselves come, then will their subjects also come from there behind them or not? They indeed call. Well, Christ will also be called Prajapita, will he not be? Be it any founder of religion, is he the Father of his religion’s followers or not? Is he not the Father of his subjects? Yes. This is the Christian Prajapita. So, what does he do when he comes? All these who are sitting peacefully above, when they come, then they bring down all of them behind them. Let’s go. You are sleeping in peace. Is there benefit in this or should we go to the world, enjoy pleasures, remain in peace? No? Arey. When they come from the Soul World, will they enjoy happiness and peace or not? They will enjoy. So, they bring all their followers down. And after bringing them down, when the time is over then they tell them. Who says? Their followers tell their founder of religion. We want peace. Well, why did you come down from the country of peace? But no. As per the drama, everyone will have to come, will they not have to?
So, look, they are sitting in peace, aren’t they? They alone are the preceptors, i.e. when those founders of religions come, and if they don’t come then everyone will continue to sit above. So, they have to come. And behind them all their followers, others, everyone has to come. And later after coming here, they say, O purifier of the sinful ones, take us above. Look, how the drama has been made enjoyable! But only one will come. Hm? Will that Christ purify the sinful ones and take them up? Hm? Will any founder of religion take his followers? Nobody will take them along. Only one will come. Hm? When everyone comes then this one alone will come. Arey? So, has everyone come? Hm? Did everyone come? Is no new soul coming now? And will the population of the world not increase? Arey? Hm? Will it increase? So, has everyone come? So, why did Baba say that everyone has come? Arey, ‘everyone came’ means that all the founders of religions should come. What? On the path of Bhakti also it has been said that how many Prajapatis are there in total? Ten Prajapatis. What? And when everyone comes, then Baba. Yes. So, when everyone comes, then this one alone will come. Hm. So, this one will sit and give this only to everyone. Hm? Look, He will give to everyone. What will He give? What will He give? What do you ask? Happiness and peace. You ask for mukti (liberation) and jeevanmukti (liberation in life).
So, look, nobody in the world knows that when Baba comes, only then all these messengers, etc. Ibrahim, Buddha, Christ, these are messengers, aren’t they? But you, you, you are not, are you? But these our old ones know. These Islamic people, Buddhists, all these come. Hm? And all these come and take this one mantra. What? These children have had visions. Bring everyone and everyone Manmanaabhav, remember the Father. Consider yourself to be a soul and remember the Father. Remember. It is because everyone is a beggar, aren’t they? Hm? Or is anyone a giver? Hm? Are they beggars for happiness and peace or not? Everyone is a beggar. Just as these are beggars, hm, similarly, who will be Christ? Christ, who has so many followers in the world. Founder of which religion has the maximum number of followers? Christ. And what is he? What is he now in the present birth? He is a beggar. So, he will be a beggar, will he not be? And, and many know him. These Popes, the big personalities know that at this time Christ will be a beggar. And the intellect also says that rightly the one who are in the beginning will be in the end. Hm? If he will not be a beggar in the end, then what will he be? So, Baba also says, doesn’t He? You become ‘beggar to prince’. Hm. Om Shanti. (End)
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2964, दिनांक 06.08.2019
VCD 2964, dated 06.08.2019
प्रातः क्लास 02.12.1967
Morning class dated 02.12.1967
VCD-2964-extracts-Bilingual
समय- 00.01-34.39
Time- 00.01-34.39
प्रातः क्लास चल रहा था – 2.12.1967. शनिवार को छठे पेज के मध्यांत में बात चल रही थी कि जो पिछाड़ी में आवेंगे तो दास-दासियां तो बनना ही पड़ेगा। वो भी जन्म-जन्मांतर। ऐसे नहीं कि नशा है हम कोई महारानी जाकरके बन जाएंगे। नहीं। हाँ। बनेंगी। ये रही पड़ी हैं यहां ही। और हैं तो कच्चे नीलकंठ। हँ? मीठी आवाज़ भी नहीं कर सकते। वो ही कें, कें। तो वो क्या राजधानी में पद लेंगी? तो ये कोई उनको बिचारों को मालूम थोड़ेही पड़ता है। और वो तो ऐसे ही चलते रहते हैं जैसे मनुष्य चलते रहते हैं। ये खयाल थोड़ेही ही रहता है कि हम पुरुषार्थ करें, हँ, हम कुछ अच्छा चलें। ‘अच्छा चलें’ माने? आत्मा के कल्याण अर्थ करें तो अच्छा चलेंगे। देह का ही ओना लगा रहता है।
तो देखो, बाबा कहे तो सही कि ये देखो ये पंडा बन कर आई है। 10-12 को साथ लेकरके आई है। कुछ न कुछ तो समझाया है। फिर उसके लिए भी बाप समझाते हैं कि नंबरवन में तो महारथी हैं। और नंबर सेकण्ड में घोड़ेसवार। थर्ड नंबर में कहेंगे प्यादे। और फिर फोर्थ नंबर में? अरे, फोर्थ नंबर में तो धूलछाईं भी नहीं है। तो धूल भी नहीं है। अरे, प्यादा भी नहीं, कुछ भी नहीं। 2.12.1967 की प्रातः क्लास का सातवां पेज। कोई एक को भी नाक से पकड़करके ले आवे तो कहें अच्छा भई, कुछ तो ले आते हैं सर्विस करके। तो, तो क्या एक के ऊपर बादशाही करेंगे? करेंगे कोई? नहीं। ये तो प्रजा बहुत बनानी है। और हरेक को अपने-अपने गांव में राज्य करना है। तो जहां राज्य करना है सेवा भी करनी है। तो प्रजा बनानी है ना? राजा तो तभी कहा जाएगा जब प्रजा होगी। तो राजा बनाने का, बनने का, प्रजा बनाने का ढंग ही नहीं है। समझे? तो है ना बरोबर? सारा टाइम वेस्ट हो गया। वेस्ट होता है ना? बाबा बहुत देखते हैं। इन बिचारियों का सारा टाइम वेस्ट हो रहा है। तो बिचारे कहते हैं ना? अभी देखो कोई भी है। ये सब बिचारे हैं। ये जाकिर हुसैन है बिचारा। ये क्या ये बिचारा, क्या है बिचारा? सब मिट्टी में मिल जाएगा पद, मान, मर्तबा। ये क्या है? हँ? अल्पकाल के पद, मान, मर्तबे के पीछे कितना मरते हैं। अभी बाकि थोड़े रोज़ हैं इनके राज्य के। अच्छा। मानो गांधी है, फलाना है। अब क्योंकि ये तो सब विपरीत बुद्धि हैं ना? नाम ही पड़ा गांधी। इनका विनाश तो जरूर होगा।
प्रीत बुद्धि और विपरीत बुद्धि। तो ये दोनों बातें बुद्धि में तो हैं ना? सबकी बुद्धि में है। तो हम आत्मा की प्रीत बुद्धि कितने लगते हैं? पर प्रीतिबुद्धि? कितनी प्रीतिबुद्धि है उनके साथ? और कितनी विपरीत बुद्धि है? तो वो तो समझ सकते हैं ना? कोई बोलता है बाबा, हम दो घंटा प्रीतिबुद्धि में रहते हैं। क्या? लौकिक बाप से दो घंटा रखते हो प्रीति? या तीन घंटा रखते हो प्रीति? बाबा तो प्रश्न पूछेगा ना? अरे, उन लौकिक बाप से तो तुम्हारी बहुत प्रीति है। उनके साथ रहते हो, खाते हो, बाबा-3 करते रहते हो। क्यों? यहां हर समय बाबा-बाबा करते हो? खाते-पीते रहते हो बाबा के साथ? समझा ना? परन्तु वो लौकिक बाप के साथ प्रीति है वो कोई प्रीति थोड़ेही है? यहां तो बताते हैं खाली एक बात पक्की करो हम आत्मा हैं। तो बाबा-बाबा ऐसे ही करते रहते हैं। अपन को आत्मा समझते थोड़ेही हैं। जैसे दूसरे बाबा-बाबा करते हैं वो भी करते हैं। और ये जो यहां बाबा-बाबा करते हैं ना सो इनको देखकरके बाबा-बाबा करते हैं। तो ये कोई शिवबाबा की याद में थोड़ेही रहते हैं? ना। नहीं तो बाबा बार-बार समझाते हैं। तुम इनको भूल करके उनको बाबा-बाबा करते रहो। किनको भूल करके? हँ? उनको किनको करते रहो? हँ? इनको माना ब्रह्मा बाबा को भूलकरके, जो भविष्य में पार्ट प्रत्यक्ष होने वाला है और अभी भी बहुतों की बुद्धि में है, उनको बाबा-बाबा करते रहो। परन्तु सो भी सच-सच करते रहो। इसलिए ऐसे नहीं कि बाबा कहा है इसलिए हम ऐसे ही कहते हैं। नहीं।
ये, ये उनसे, उनमें वो। ये उसमें वो। ये क्या? ये, ये उसमें वो। क्या मतलब हुआ? अरे, ये चालाकी कोई नहीं चलेगी किसी की भी। हँ? क्या चालाकी? क्योंकि यहां चालाक तो बहुत हैं। तो वो समझते हैं कि हम बाबा को बहुत याद करते हैं। और पहचान क्या है? बाबा को याद करें तो ज्ञान भी बहुत ही अच्छी तरह से समझें। और फिर वो ज्ञान बजता रहे। हँ? जौहर भी भरता रहे। अरे, फिर तो वो उड़ने लग पड़ेंगे। उड़ने की बात समझते हो? अरे, उनको ठिकाना नहीं है बैठने का। बाबा हम जाते हैं। फलानी जगह प्रदर्शनी होती है। तो बाबा हम जाते हैं फलानी जगह। हँ? वो, वो जाते हैं। जाकर सर्विस करें। बहुतों को वहां जाके रास्ता बतावें। और फिर पद भी ऊँचा पावें। तो जितना हम बात करेंगे उतना बाबा की याद भी रहेगी। किनसे बात करेंगे? हँ? जो भी प्रदर्शनी में आने वाले हैं उनसे जितना बात करेंगे उतना बाबा की याद रहेगी। क्योंकि बाबा की याद ही बाबा कहते हैं भल बाप की याद उनको देते रहो। और अपन को कहो आत्मा समझो। और बाप को याद करते रहो। तो जितना औरों को पैगाम देंगे, इतना खुद भी तो याद रहेगी। अब कोई को पैगाम ही नहीं देंगे तो याद कहां से रहेगी? तो कोई नहीं करते तो खुद भी याद नहीं करते हैं।
अच्छा, बच्चियां बिचारी बहुत कहती हैं। ऐसी बच्चियां हैं ना? बंधन में हैं। कहती हैं हमारा तो बंधन है। नहीं। अरे, इस दुनिया में बंधन तो सबको है। हँ? सारी दुनिया को बंधन है। कोई को तन का बंधन, कोई को मन का बंधन, कोई संबंधियों का बंधन। अनेक प्रकार के बंधन। बीमारी का बंधन। तो इन बंधनों को हम कैसे काटें? सो खुद ही युक्ति से काटें बंधन को। और इन बंधनों के कटने की युक्तियां बहुत हैं। ये अपने बदली में समझो भई कैसे बंधन है। बाबा को कहते हैं बंधन कटे। अच्छा चलो, आज बंधन कटे। हँ? और कल जाते हैं, मर जाते हैं। हँ? तो मर जाते हैं। अचानक मर जाते हैं ना? और उनके बच्चों का बंधन कौन काटेगा? उनको कौन संभालेगा? हँ? अरे, बंधन यही हुआ ना कि बच्चे कौन संभालेगा? हँ? परन्तु अगर समझो एक्सिडेंट हो गया। फिर एक्सिडेंट तो होते ही रहते हैं ना? तो फिर बच्चे कौन संभालेंगे? हँ? कि ऐसे ही रह जाएंगे? कोई संभालेगा ना? हाँ। तो विचार करना होता है कि हम अभी क्या करें? इन बच्चों की संभाल करें? क्या और कोई युक्ति है? जरूर हम मरेंगे तो कोई का मासी होगी, चाची होगी या कोई न कोई मिल जाएगा। ठीक है ना? हँ? तो कौनसे मरने की बात कर रहे? हद के मरने की बात कर रहे शरीर से? हां? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, ये देह से मरने की बात है। देह के संबंधियों से मरने की बात है। और मरेंगे तो कोई न कोई तो मिल ही जाएगा। ठीक है ना?
अज्ञान काल में तो मनुष्य शादी कर लेते हैं। तो बात भी नहीं है। इस समय में तो शादी-वादी की बड़ी, बड़ी मुसीबत है। तो फिर क्या करना चाहिए? अच्छा, भई, कोई को सौ रुपया, सौ रुपया देकरके, देकरके कि अब इन बच्चों को संभालो। भई, वो तो मर गई। तो तुम बच्चे भी तो यहां आकरके मरते हो ना? हँ? ये मरजीवा जनम है ना तुम्हारा? हँ? तो पूरे तो नहीं करते हैं ना? यहां कोई पूरे मरते हैं, मरे हैं कोई? हँ? पूरे नहीं मरते। बाकि ये तो कोई बंधन नहीं है। कहते हैं बाबा के आगे। तो ऐसे जो बंधन-बंधन चिल्लाते रहते हैं उनको क्या कहेंगे? यानि ये तो कोई बड़ी बात ही नहीं है ना? है ना? और समझो हम जीते जी मर गई। हँ? यहां तो जीतेजी मरना होता है ना? तो पीछे इन बच्चों को कौन संभालेगा? अच्छा, 8 बच्चे हैं, 10 बच्चे हैं, 5 हैं, तुम मर जाएंगी। इनको कौन संभालेगा? तो या तो नर्स रखनी पड़ेगी या तो फिर शादी करना पड़ेगा। या इनकी कोई चाची होगी, गरीब कोई, पैसा-वैसा वाली शायद होगी, या गरीब होगी। अरे, आज की दुनिया में पैसा से देखो क्या काम नहीं होता है? अरे, गरीब होगा तो गरीब को गरीब मिलेगी। साहूकार को साहूकार मिलेगी। अरे, तो बंधनमुक्त तो झट हो सकते हैं ना?
तो वो तो खयाल करके अपने को बंधनमुक्त करना है। और फिर इस बेहद की सर्विस का शौक रखना है। वो है हद की सर्विस एक जनम के लिए। और ये है बेहद की सर्विस जन्म-जन्मान्तर के लिए। 2.12.67 की प्रातः क्लास का आठवां पेज, चौथी लाइन। तो जिनको आह लगेगी सर्विस की, सर्विस का शौक होगा वो तो आपेही प्रबंध कर देंगे। समझा ना? तो वो तो अपना मोह है जो नहीं छोड़ सकते हैं। बाकि तो बंधनमुक्त कोई भी हो सकते हैं। हो सकते हैं ना? यूं तो जाते हैं ना? किसको गुस्सा लगता है तो बंधनमुक्त हो जाते हैं जाकर। हँ? या तो जाकरके दरिया में कूद पड़ते हैं। कूद के मर जाते हैं। तो इस दुनिया से मर गया ना? तो यहां भी तो ऐसे ही है ना? यहां, यहां बैठे हो ना यहां? तो तुम किससे मिलते हो? हँ? ये भी तुम्हारे मित्र-संबंधी याद पड़ते हैं। इसलिए बाबा कहते हैं – जाओ, अरे, अपने मित्र-संबंधियों को भी कुछ न कुछ उद्धार करो। उद्धार कर दियो ना? नहीं तो तुम्हीं हो। अरे, तुम नहीं जाओगे तो उनके पास और कौन जाएगा? इसलिए तुम जाओ। हँ? उनको जाकरके रास्ता बताओ। तुम बतावेंगे तो तुम्हारी सुनेंगे। नहीं तो औरों की बात कौन क्यों सुनेंगे? समझे ना? पैगाम तो देना ही है। आज दियो या कल दियो।
तुम अभी तो समझ गए अच्छी तरह से कि पैगम्बर या मैसेंजर या सद्गति दाता ये पैगाम देते हैं कि अभी भी नहीं समझे? समझे ना? तो मनमनाभव का पैगाम है। क्यों? क्योंकि मनमनाभव अर्थात् मेरे में एक में मन लगा। मामेकम याद करो। अब जन्म-जन्मान्तर अनेकों को याद करते आए। तो अब क्या करो? मनमनाभव। कि तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जाओगे। उस एक ऊँच ते ऊँच पार्टधारी को जानेंगे तो क्या होगा? तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जावेंगे। अभी ये तो कोई तुमको सिखलाएगा नहीं। क्या? कि तमोप्रधान से सतोप्रधान आत्मा कैसे बनती है? अरे, इस बेहद के बाप के बिगर कोई भी नहीं समझाएगा। एक को, एक भी नहीं है ऐसा जो समझाए। और इस दुनिया में तो सब आते ही रहते हैं। कहां से? आत्म लोक से आते ही रहते हैं। जो आते हैं वो पिछाड़ी वाली जो उनकी है ना प्रजा उनको बुलाते ही हैं। क्या? खुद आएंगे तो वहां से उनकी प्रजा भी पीछे-पीछे आएगी कि नहीं? बुलाते ही हैं। अभी क्राइस्ट को भी तो प्रजापिता कहेंगे ना? कोई भी धरमपिता है, अपने धर्म के जो फालोअर्स हैं, उनका पिता है कि नहीं? अपनी प्रजा का पिता नहीं है? हाँ। ये है क्रिश्चियन प्रजापिता। तो वो आते हैं तो क्या करते हैं? भला ये सब जो ऊपर में शांति में बैठे हैं, वो आते हैं तो अपने पीछे-पीछे उन सबको नीचे ले आते हैं। चलो। शांति में पड़े-पड़े सो रहे हो। इसमें फायदा या दुनिया में चलें, सुख भोगें, शांति मे रहें? नहीं? अरे। आत्मलोक से आएंगे तो सुख-शांति भोगेंगे या नहीं भोगेंगे? भोगेंगे। तो अपने फालोअर्स को सबको नीचे ले आते हैं। और नीचे ले आकरके जब समय पूरा होता है तब उनको बोलते हैं। कौन बोलते हैं? उनके फालोअर्स अपने धरमपिता को बोलते हैं। हमको शांति चाहिए। अब तुम आए क्यों शांति देश से नीचे? परन्तु नहीं। ड्रामा के अनुसार सबको ज़रूर आना पड़ेगा ना?
तो देखो, बैठे हैं ना शांति में। उनको ही प्रीसेप्टर यानि वो जो धर्मस्थापक हैं ना वो जब आते हैं, और वो नहीं आवें तो सभी ऊपर में बैठे रहें। तो उनको आना पड़ता है। और उनके पीछे-पीछे जो भी फालोअर्स उनके हैं उनको दूसरो को सबको आना पड़ता है। और पीछे यहां आकरके फिर कहें, हे पतित पावन! हमको ऊपर में ले जाओ। देखो, कैसा खेल बना हुआ है मजे का! परन्तु एक ही आएगा। हँ? क्या वो क्राइस्ट पतितों को पावन बनाके ऊपर ले जाएगा? हँ? कोई भी धरमपिता ले जाएगा अपने फालोअर्स को? कोई भी नहीं ले जाएगा। एक ही आएगा। हँ? जब सब चले आवें तब ये एक ही आएगा। अरे? तो सब आ गए क्या? हँ? सब आ गए? अब कोई नहीं आ रही आत्मा नई? और दुनिया की आबादी नहीं बढ़ेगी? अरे? हँ? बढ़ेगी? तो सब आ गए? तो बाबा ने क्यों बोला सब आ गए? अरे, सब आ गए माना सब धरमपिताएं आ जावें। क्या? टोटल भक्ति मार्ग में भी तो बोला है, कितने प्रजापति? दस प्रजापति। क्या? और सब आ गए तो फिर बाबा को। हाँ। तो जब सब चले आवें तब ये एक ही आएगा। हँ। तो बैठकरके ये यही देगा सबको। हँ? देखो सबको देगा। क्या देगा? क्या देगा? क्या मांगते हैं? सुख और शांति। मुक्ति और जीवनमुक्ति मांगते हैं।
तो देखो, दुनिया में तो कोई को भी मालूम नहीं है कि जब बाबा आते हैं, तभी ये जो भी पैगम्बर हैं वगैरा-वगैरा इब्राहिम, बुद्ध, क्राइस्ट, ये पैगम्बर हैं ना? पर तुम-3 तो नहीं है ना? पर ये हमारे पुराने जानते हैं। ये इस्लामी, बौद्धी, ये सभी आते हैं। हँ? और ये सभी आकरके ये मंत्र आकरके ले जाते हैं एक। क्या? ये साक्षात्कार किया हुआ है इन बच्चों का। सब ले आकरके सब मनमनाभव बाप को याद करो। अपन को आत्मा समझो, बाप को याद करो। करो। क्योंकि हैं तो सभी बैगर ना? हँ? कि कोई दाता है? हँ? सुख-शांति के बैगर हैं कि नहीं? सब बैगर हैं। जैसे ये बैगर है, हँ, ऐसे क्राइस्ट कौन होगा? क्राइस्ट जिसके दुनिया में इतने ज्यादा फालोअर्स हैं। सबसे ज्यादा फालोअर्स कौनसे धरमपिता के? क्राइस्ट के। और है क्या? अभी वर्तमान जनम में वो क्या है? बैगर है। तो बैगर होगा ना? और, और बहुत जानते हैं उसको। ये पोप लोग के जो ये बड़े-बड़े हैं वो जानते हैं कि इस समय में क्राइस्ट बैगर होगा। और बुद्धि भी कहती है कि बरोबर जो पहले होंगे सो पिछाड़ी में होंगे। हँ? पिछाड़ी में बैगर नहीं होगा तो तभी कौन होगा? तो बाबा भी कहते हैं, है ना? बैगर टू प्रिंस बनते हो। हँ। ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated 2.12.1967 was being narrated. The topic being discussed in the end of the middle portion on the sixth page on Saturday was that those who come late will have to definitely become servants and maids. That too birth by birth. It is not that you have the intoxication that we will go and become an empress. No. Yes. You [ladies] will become. These [ladies] are living here itself. And they are weak Neelkanth. Hm? They cannot even produce a sweet sound. The same ‘kein, kein’. So, what post will they achieve in the capital? So, do they, the poor ones get to know this? And they keep on treading just as the human beings tread. They do not think that we should make purusharth, hm, we should tread nicely. What is meant by ‘tread nicely’? If we do for the sake of benefit of the soul then we will tread nicely. You keep on worrying about the body only.
So, look, Baba should say that look at this, she has come as a guide (panda). She has brought 10-12 with her. She has explained something or the other. Then the Father explains for that also that at number one are the elephant-mounted warriors (maharathis). And at the second number are the horse-mounted warriors (ghodesawaar). The foot-soldiers (pyaade) will be said to be at the third number. And then at the fourth number? Arey, in the fourth number there is not even dust. So, there is not even dust. Arey, not even foot soldier, nothing. Seventh page of the morning class dated 2.12.1967. Even if they bring one person by holding him by his nose, then we can say, okay brother, you bring something by doing service. So, so, will you rule over one [person]? Will anyone? No. You have to prepare a lot of subjects (praja). And each one has to rule in his/her village. So, you also have to serve wherever you have to rule. So, you have to prepare subjects, will you not? One will be called a King only when there are subjects. So, you don’t know the method of making, becoming a king, making subjects. Did you understand? So, it is right, isn’t it? The entire time was wasted. It gets wasted, doesn’t it? Baba sees a lot. The entire time of these poor ladies is being wasted. So, they are called ‘poor ones’ (bichaarey), aren’t they? Now look, it could be anyone. All these are poor ones. This Zakir Hussain (a former President of India) is a poor one. What is he, this poor one, what is he, the poor one? Everything including the post, respect, position will mix with the mud. What is this? Hm? People die so much for temporary post, respect, position! Now there are a few days of their kingdom. Achcha. Suppose there is Gandhi, etc. Well, because all these have an opposite intellect, don’t they? The name itself has been coined as Gandhi. They will definitely be destroyed.
Preetbuddhi (loveful intellect towards God) and vipreet buddhi (intellect opposite to God). So, both these topics are in the intellect, aren’t they? It is in everyone’s intellect. So, to what extent does our soul remain preetbuddhi? But preetbuddhi ? To what extent does our intellect love Him? And to what extent is the intellect opposite (vipreetbuddhi)? So, you can understand that, can’t you? Someone says, Baba, I remain preetbuddhi for two hours. What? Do you love your worldly Father for two hours? Or do you love him for three hours? Baba will ask a question, will He not? Arey, you have a lot of love for that worldly Father. You live with him, eat with him, and keep on uttering Baba-3. Why? Do you keep on uttering Baba, Baba all the time here? Do you eat and drink with Baba? You have understood, haven’t you? But that love for the worldly Father, is it [true] love? Here it is told that you firm up just one topic that we are souls. So, they keep on uttering Baba, Baba just like that. Do they consider themselves to be souls? Just as others utter Baba, Baba, they too utter. And these who utter Baba, Baba here, don’t they, then others utter Baba, Baba by seeing them. So, do they remain in ShivBaba’s remembrance? No. Otherwise, Baba explains again and again. You forget them and keep on uttering Baba, Baba for Him. By forgetting whom? Hm? Whom should you keep on remembering? Hm? This one means by forgetting Brahma Baba, the one who is going to be revealed in future and even now He is in the intellect of many, you keep on uttering Baba, Baba for Him. But that too keep on doing it truly. This is why it is not as if we do only because Baba has said. No.
This, this, from him (unse), in them (unme) that. This in that, that. What has been said? This, this in that, that. What does it mean? Arey, nobody’s cleverness will work. Hm? What cleverness? It is because there are many who are clever here. So, they think that we remember Baba a lot. And what is the indication? If you remember Baba, then you understand the knowledge also very nicely. And then that knowledge should keep on playing. Hm? The sharpness should also go on increasing. Arey, then they will start flying. Do you understand the topic of flying? Arey, they do not have the place to sit. Baba, we go. Exhibition is organized at such and such place. So, Baba, we go to such and such place. Hm? They, they go. We should go and do service. We should go and show the path to many. And then we should achieve a high post as well. So, the more we talk, the more there will be the remembrance of Baba. With whom will you talk? Hm? All those who come to the exhibition, the more you talk to them, the more you will remember Baba. It is because Baba’s remembrance itself, Baba says, you may keep on reminding them of the Father. And tell them that consider yourself to be a soul. And keep on remembering the Father. So, the more you give message to others, you yourselves will also remember. Well, if you don’t give message to anyone at all, then how will you remember? So, some don’t do [service], so, they don’t remember [Baba] as well.
Achcha, poor daughters say a lot. There are such daughters, aren’t they there? They are in bondage. They say – We have bondage. No. Arey, everyone in this world has bondage. Hm? There is bondage for the entire world. Someone has the bondage of the body, someone has the bondage of the mind, and someone has the bondage of relatives. Many kinds of bondages. Bondage of disease. So, how can we cut these bondages? So, we should cut the bondages ourselves tactfully. And there are many tactics to cut these bondages. Just think brother what kind of bondages are these? They tell Baba – The bondages should be cut. Okay, today the bondages are cut. Hm? And tomorrow they go, they die. Hm? So, they die. They die suddenly, don’t they? And who will cut the bondages of their children? Who will take care of them? Hm? Arey, the bondage itself is this that who will take care of the children? Hm? But suppose an accident takes place. Then accidents keep on taking place, don’t they? So, then who will take care of the children? Hm? Or will they remain like that only? Someone will take care, will they not? Yes. So, you have to think that what should we do now? Should we take care of these children? Is there any other tact? Definitely when we die, then someone will have a maternal aunt, someone will have a paternal aunt or he will find someone or the other. It is correct, isn’t it? Hm? So, about which death is He talking? Is He talking about the limited death physically? Yes? (Someone said something.) Yes, this is about dying physically. It is a topic of dying through physical relatives. And if you die then they will find someone or the other. It is correct, isn’t it?
In the period of ignorance people get married. So, it doesn’t even matter. At this time marriage is a big, big problem. So, then what should you do? Achcha, brother, by giving someone a hundred rupees, a hundred rupees that now take care of these children. Brother, she died. So, you children also come and die here, don’t you? Hm? This is your marjeeva (dying from body consciousness while being alive) birth, isn’t it? Hm? So, you don’t complete it, do you? Does anyone die here completely, has anyone died? Hm? You don’t die completely. As such these are not bondages. You say in front of Baba. So, those who keep shouting like this ‘bondage, bondage’, what will they be called? It means that this is not a big issue at all, is it? Is it not? And suppose we died while being alive. Hm? Here you have to die while being alive, don’t you have to? So, later who will take care of these children? Achcha, there are 8 children, there are 10 children; you (mother) will die. Who will take care of them? So, either a nurse will have to be hired or he will have to get married. Or if they have a paternal aunt, a poor one, perhaps a rich one or she may be poor. Arey, in today’s world, which task cannot be accomplished with money? Arey, if someone is poor, then a poor one will get a poor [wife]. A rich one will get a rich one. Arey, so, you can immediately become free from bondages, can’t you?
So, you should think about that and make yourself free from bondages. And then you have to have the hobby of this unlimited service. That is a limited service for one birth. And this is unlimited service for many births. Eighth page, fourth line of the morning class dated 2.12.67. So, those who have interest in service, those who have the hobby of service will make arrangements automatically. You have understood, haven’t you? So, it’s one’s attachment that you cannot leave. As such anyone can become free from bondages. You can become, can’t you? People go, don’t they? If someone feels angry then they go and become free from bondages. Hm? Or they go and jump into a river. They jump and die. So, he died from this world, didn’t he? So, even here it is like this only, isn’t it? Here, here, you are sitting here, aren’t you? So, whom do you meet? Hm? Your friends and relatives come to your mind. This is why Baba says – Go, arey, uplift your friends and relatives to some extent or the other. Uplift them, will you not? Otherwise, you alone are there. Arey, if you don’t go to them, then who else will go? This is why you go. Hm? Go and show them the path. If you tell, then they will listen to you. Otherwise, why will anyone listen to others? You have understood, haven’t you? You have to definitely give the message. Give today or tomorrow.
You have now understood nicely whether the Paigambars or Messengers or the bestower of true salvation upon everyone gives this message or did you not yet understand? You have understood, haven’t you? So, it is the message of Manmanaabhav. Why? It is because Manmanaabhav, i.e. focus your mind on Me, on one. Remember Me alone. Well, you have been remembering many since many births. So, what should you do now? Manmanaabhav. You will become satopradhan from tamopradhan. What will happen if you remember that one highest on high actor? You will become satopradhaan from tamopradhaan. Well, nobody will teach you this. What? As to how a soul becomes satopradhan from tamopradhan. Arey, nobody except this unlimited Father will explain. There is not even a single person who could explain. And everyone keeps on coming in this world. From where? They keep on coming from the Soul World. Those who come, their latter subjects, they call them. What? When they themselves come, then will their subjects also come from there behind them or not? They indeed call. Well, Christ will also be called Prajapita, will he not be? Be it any founder of religion, is he the Father of his religion’s followers or not? Is he not the Father of his subjects? Yes. This is the Christian Prajapita. So, what does he do when he comes? All these who are sitting peacefully above, when they come, then they bring down all of them behind them. Let’s go. You are sleeping in peace. Is there benefit in this or should we go to the world, enjoy pleasures, remain in peace? No? Arey. When they come from the Soul World, will they enjoy happiness and peace or not? They will enjoy. So, they bring all their followers down. And after bringing them down, when the time is over then they tell them. Who says? Their followers tell their founder of religion. We want peace. Well, why did you come down from the country of peace? But no. As per the drama, everyone will have to come, will they not have to?
So, look, they are sitting in peace, aren’t they? They alone are the preceptors, i.e. when those founders of religions come, and if they don’t come then everyone will continue to sit above. So, they have to come. And behind them all their followers, others, everyone has to come. And later after coming here, they say, O purifier of the sinful ones, take us above. Look, how the drama has been made enjoyable! But only one will come. Hm? Will that Christ purify the sinful ones and take them up? Hm? Will any founder of religion take his followers? Nobody will take them along. Only one will come. Hm? When everyone comes then this one alone will come. Arey? So, has everyone come? Hm? Did everyone come? Is no new soul coming now? And will the population of the world not increase? Arey? Hm? Will it increase? So, has everyone come? So, why did Baba say that everyone has come? Arey, ‘everyone came’ means that all the founders of religions should come. What? On the path of Bhakti also it has been said that how many Prajapatis are there in total? Ten Prajapatis. What? And when everyone comes, then Baba. Yes. So, when everyone comes, then this one alone will come. Hm. So, this one will sit and give this only to everyone. Hm? Look, He will give to everyone. What will He give? What will He give? What do you ask? Happiness and peace. You ask for mukti (liberation) and jeevanmukti (liberation in life).
So, look, nobody in the world knows that when Baba comes, only then all these messengers, etc. Ibrahim, Buddha, Christ, these are messengers, aren’t they? But you, you, you are not, are you? But these our old ones know. These Islamic people, Buddhists, all these come. Hm? And all these come and take this one mantra. What? These children have had visions. Bring everyone and everyone Manmanaabhav, remember the Father. Consider yourself to be a soul and remember the Father. Remember. It is because everyone is a beggar, aren’t they? Hm? Or is anyone a giver? Hm? Are they beggars for happiness and peace or not? Everyone is a beggar. Just as these are beggars, hm, similarly, who will be Christ? Christ, who has so many followers in the world. Founder of which religion has the maximum number of followers? Christ. And what is he? What is he now in the present birth? He is a beggar. So, he will be a beggar, will he not be? And, and many know him. These Popes, the big personalities know that at this time Christ will be a beggar. And the intellect also says that rightly the one who are in the beginning will be in the end. Hm? If he will not be a beggar in the end, then what will he be? So, Baba also says, doesn’t He? You become ‘beggar to prince’. Hm. Om Shanti. (End)
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