Bap-Dada's LATEST & FINAL part

DEDICATED to Om Mandli ‘Godly Mission’ to present posts regarding the LATEST & FINAL part of BapDada of World Purification & World TRANSFORMATION – through Divine Mother Devaki - SAME soul of 'Mateshwari', Saraswati Mama.
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destroy old world
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
18.01.2024 - रायपुर, (छत्तीसगढ़)

"मीठे बच्चे .. तन के बंधन नहीं - मन के बंधन तोड़ने हैं। मन अगर उड़ेगा - आत्मा अगर फरिश्ता बनके उड़ेगी - उड़ने वालों को कोई भी बांध नहीं सकता। तो अभी सभी बच्चे अपने आप को चेक करो - क्या मैं स्वतंत्र हूँ?"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=-GZ-mMusEVo

अच्छा .. आज आप बच्चों के लिए कौनसा विशेष दिन है? विशेष दिन है? है? कौनसा विशेष दिन है? [अव्यक्त दिवस, बाबा; ब्रह्मा बाबा का यादगार - कर्मातीत बने, उसका यादगार का दिन है] तो दुखी होने का दिन है, या खुशियों भरा दिन है? [खुशियों भरा दिन है, बाबा] आज के दिन ब्रह्मा बाप अपनी पुरानी देह का त्याग करके संपूर्ण ब्रह्मा बाप में समाए थे। समाना माना चिपक जाना नहीं। संपूर्ण रूप को देखना, आमने-सामने बैठना, और कहना कि ‘मैं वतनवासी संपूर्ण ब्रह्मा बाप बनके आपके सम्मुख आ गया हूँ’। *संपूर्णता माना क्या? थोड़ा भी देह-अभिमान आया, तो संपूर्णता की स्टेज से नीचे आ गए।* आज का जो दिन है, वो आप बच्चों के लिए उदासी का दिन नहीं है, उमंग-उत्साह का दिन है। जो पुरानी इस दुनिया को छोड़कर ऊपर वतनवासी फरिश्तों की महफिल के महाराजा बने - आज के दिन फरिश्तों के राजा का राजतिलक का दिन है। आज का दिन वतनवासी, उस लोक का राज्य अभिषेक करने का दिन है। आज के दिन ब्रह्मा बाप का राजतिलक हुआ। कितना समय हुआ है? कितना समय हुआ? कितना समय हुआ? .. तो उस दुनिया में राज्य करने का जो जितना समय था, उतना गुजर चुका है ना? अभी कहाँ का महाराजा बनने का दिन आया है? साकार दुनिया, सतयुगी दुनिया ..।

बच्चे कहते हैं कि बाबा क्यों चले गए? और बाप कहते हैं कि ‘मुझे आने की बड़ी खुशी हुई’। बच्चे रोते हैं - और बाप खुश होते हैं। बच्चे रोते क्यों हैं? क्यों रोते हैं? क्योंकि अपने को फरिश्ता नहीं समझते। क्योंकि अपने को संपूर्ण रूपधारी फरिश्ता नहीं मानते। क्योंकि अपने को आत्मा नहीं समझते। क्योंकि देह-अभिमान में जकड़े हुए देह के गुलाम हैं। और जो गुलाम होते हैं ना वो कभी हँसते नहीं हैं। तो इस दुनिया में, इस रावण की दुनिया के देह-अभिमान के जो गुलाम होते हैं, वो कैसे हँसेंगे? वो कैसे खुशी मनाएंगे? तो क्या आप गुलाम हो? चेकिंग करो! *उमंग-उत्साह से नीचे उतरना माना गुलाम बन जाना। और बाप के बच्चे सदा स्वतंत्र होते हैं, गुलाम नहीं होते।* आज बाप हर किसी बच्चे से पूछते हैं – आपसे, सेंटर से, मधुबन निवासियों से; या कहीं भी भक्ति मार्ग वालों से - सबसे; या प्रवृत्ति मार्ग वाले - क्या आप स्वतंत्र हो? इसको यह नहीं समझना कि परिवार में बंधन है - वो तो है। *एक होता है तन से बंधना, और एक होता है मन से बंधना। तन के बंधन तो फिर भी छूट जाते हैं। तन के बंधन तोड़ना फिर भी आसान है, पर अगर मन बंध गया, मन कैदी बन गया, आत्मा बंध गयी, तो वो स्वतंत्र नहीं हो सकता, वो बंधन में ही है।* चाहे वो यहाँ बैठने वाले हो, कोई भी हो। स्वतंत्र हो? स्वतंत्र हो? जो स्वतंत्र है ना, वो सदा उमंग-उत्साह में रहेगा। क्यों? क्योंकि खुशी है।

*स्वतंत्रता माना क्या? बाप की याद में उड़ना, बाप की याद में फरिश्ते बनके रहना। जो बाप की याद में उड़ते हैं, फरिश्ते बनते हैं, वही स्वतंत्र हो सकते हैं - जिनको बाप से प्रेम है।* तो अभी सभी बच्चे अपने आप को चेक करो - क्या मैं स्वतंत्र हूँ? कहीं माया घड़ी-घड़ी तो नहीं पकड़ के बैठ जाती? तन के बंधन नहीं - मन के बंधन तोड़ने हैं। मन अगर उड़ेगा - आत्मा अगर फरिश्ता बनके उड़ेगी - उड़ने वालों को कोई भी बांध नहीं सकता। बंधन वाला ही दुखी होता है ना, चाहे वह कैसा भी बंधन क्यों ना हो।

तो आज तो ब्रह्मा बाप का दिन है, फरिश्तों के महाराजा का दिन है। कमाल की बात है ना! साकार में बार-बार कहते थे – यह ब्रह्मा जाएगा, तो विश्व का जाके महाराजा बनेगा। महाराजा बनेगा! पर सच में बना। किसी को समझ में आया? आया? नहीं आया ना! बना! *पहले तो फरिश्तों का महाराजा बनता है, उसके बाद ही सतयुग का महाराजा बनता है; पूरी सृष्टि का मालिक बनता है।* तो हर बार बच्चों को याद दिलाया कि ब्रह्मा बाप जाकर विश्व का महाराजा बनेंगे। महाराजा बनेंगे - तो बने ना, राजतिलक हुआ ना? फरिश्तों की दुनिया के राजा, महाराजा बने। अब वो समय पूरा हो गया, इतना समय गुजर गया, अभी कहाँ के महाराजा बनेंगे? अच्छा, कभी-कभी बच्चों को सपना लगता है - क्या यह जो बाबा कहते हैं, श्री कृष्ण आएगा, क्या यह सिर्फ कहते हैं, या आएगा? आप क्या कहते हैं? [मिलने आ रहे हैं] अच्छा यह कोई मजाक की बात थोड़ेही है, अगर नाम है इतना ऊँचा, सृष्टि में गायन है - तो गायन है तो जरूर होके गए हैं। कोई भी चीज का गायन, बिना हुए तो नहीं होता ना। नहीं होता। आप होके जाएंगे तो पीछे से आपके बच्चे याद करेंगे, हमारे पिता थे ना; पर उनके बच्चों को तो आप नहीं दिखाई दिए - नहीं! सोचो। अगर गायन है राम का, गायन है कृष्ण का, तो जरूर होके गए हैं। बिना हुए एक छोटा सा तिनका होता है ना, तिनका, उसका भी गायन - वो भी होके गया है ना, तभी तो गायन है। तो अपने मन में यह भी संशय का बीज नहीं रखना कि ‘बाबा कहते तो हैं, पर पता नहीं क्या होगा!’

कहते हैं ना - घड़ी-घड़ी बाप ने कहा, माता के द्वारा स्वर्ग का द्वार खुलेगा। कहा? किसके द्वारा? माताओं के द्वारा। पर वास्तव में पहली माता कौन है? पहली माता कौन है? पहली माता कौन है? [जगदंबा] ‘जगदंबा’ है! माता के द्वारा स्वर्ग का द्वार खुलेगा माना कैसे? कैसे? कभी किसी का विचार हुआ? माता स्वर्ग का गेट खोलती है। कन्या स्वर्ग का गेट खोलती है – नहीं; माता स्वर्ग का गेट खोलती है। पहली माता! पहले जो श्री कृष्ण को जन्म देगी - पहली माता! माता ने गेट खोला, लेकिन गायन तो माताओं का है ना? है ना? इसका मतलब यह नहीं है कि माता का नाम ऊँचा उठाके कन्याओं का नाम नीचे कर रहे हैं – नहीं! यह नहीं है। *आने वाले समय में हर बच्चे को ड्रामा का रहस्य समझ में आएगा। पर जिनको समझ में आएगा ना वही 108 की माला का मणका कहलाएगा।*

जो संशय में आएगा – ‘ऐसे कैसे हो सकता है?’ ड्रामा परिवर्तनशील है, आप शुरू से ही वही चलाएंगे तो कैसे चलेगा? सतयुग के बाद तो त्रेता आता है ना? आता है! आपको सोना ही रहे, सतयुग ही रहे, तो कैसे चलेगा? फिर त्रेता के बाद द्वापर भी आता है, द्वापर में कुछ नए नियम-कानून सबकुछ लागू होते हैं। फिर आप कहो कि कलयुग भी आएगा, तो कलयुग अपने हिसाब से अपने नियम कायदे कानून चलाएगा। अब संगमयुग है - अभी बाप है, और बाप पर जिन बच्चों को निश्चय है ना, उनको संशय उठेगा नहीं - वो बच्चे क्या कहेंगे? क्या कहेंगे? ‘बाबा, हम तो आदि-मध्य-अंत को नहीं जानते, पर आप आदि-मध्य-अंत को जानते हो, हम आपके साथ हैं’ - और जो साथ होगा वो साथ चलेगा। क्योंकि यज्ञ की स्थापना कितने बच्चों से हुई? मुश्किल से मुट्ठी भर थे ना, गिने चुने थे ना, कोई ऐसी भरमार तो नहीं थी कि - हाँ, बड़ी भीड़ लगी है। है ना? *शुरुआत कितने बच्चों से हुई? मुट्ठी भर बच्चों से शुरुआत हुई! अब अंत भी मुट्ठी भर बच्चों से ही होगा।* जो आदि और अंत के बीच में आने वाले और जाने वाले हैं, समय अनुसार, पुरुषार्थ अनुसार, उनका भी पार्ट होगा। आने-जाने का पार्ट होगा। पर बाबा ने कहा अगर शुरुआत मुट्ठी भर बच्चों से हुई है, तो इस शुरुआत और इस अंत का समय भी मुट्ठी भर बच्चों से ही होगा।

बच्चे कहते हैं, ‘बाबा, हम बिल्कुल नहीं हिलेंगे, हम आपके साथ दृढ़ संकल्प करते हैं, हमारी मन-बुद्धि बिल्कुल नहीं हिलने वाली’ - ऐसा संकल्प करते हैं। पर थोड़ा कुछ भी देखा - तो? थोड़ा कुछ भी देखा .. शरीर के पहने हुए कपड़े का रंग देखके संकल्प बदल जाता है, तो निश्चय कहाँ से होगा? सोचो ना! बैठने-उठने का तरीका देख के ही मन बदल जाता है, तो निश्चय कहाँ से होगा? ‘आज यह पहना है, कल वो क्यों पहना?’ इससे ही मन बदल जाता है, तो निश्चय कहाँ से होगा? ‘आप यह खाते हैं, यह क्यों नहीं खाते?’ इसपे मन बदल जाता है, तो निश्चय कैसे होगा? निश्चय का मतलब जो बच्चे सोचते हैं ना – ‘बाबा ऐसा क्यों? ऐसा कैसे? बाबा ने क्या कहा?’ - *यह क्यों और कैसे का बाप सवाल कर सकते हैं आपसे, कि आप पहले कैसे थे? अब कैसे हो गए? और आगे कैसे हो जाओगे?*

बाप कोई लाइन नहीं भटक रहा है। बाप को लाइन एकदम बराबर दिख रही है, पर ज्यादा होशियार बच्चे बाप को कहते हैं कि आप जिस पटरी पे चल रहे हो ना, वो पटरी ठीक नहीं है। कहने का भावार्थ है कि कई बच्चे बाप को शिक्षा देते हैं, पर बाप फिर भी कहेगा - हाँ, कोई बात नहीं, आप दो ना, हम सुनेंगे, पर आगे एक्सीडेंट हो गया तो आप संभालेंगे? नहीं ना? बाबा कहना चाह रहे हैं - *बाप कहीं भी लेकर जाए, यह बाप का वायदा है, किसी का अकल्याण हो नहीं सकता - यह बाप की गारंटी है, गारंटी है, गारंटी है!*

*जो बाप के कदम पर कदम रखकर चलते हैं, वो कभी डूब नहीं सकता। यह बाप सबको वायदा कर रहे हैं। पर अगर अपनी मनमत, अपने व्यर्थ संकल्पों में उलझे रहे तो बाप उनकी गारंटी कभी नहीं लेगा।* क्यों नहीं लेगा? क्योंकि आप अपनी दुनिया में उलझे हुए हो, और बाप चल रहे हैं, तो जरूरी नहीं है ना कि सबको छोड़कर आपको पकड़ के लेके जाएंगे। आपको आना है, खुद आना है, खुद चलना है, खुद कदम बढ़ाना है। बार-बार बाबा यही कहते हैं – बच्चों, आदि सो अंत! आदि सो अंत! आदि में भी मुट्ठी भर बच्चे, अंत में भी मुट्ठी भर बच्चे! कोई बच्चे सोचते हैं, ‘अगर भगवान आ रहा है तो भीड़ क्यों नहीं है?’ तो बाबा उन बच्चों को यही कहेगा - भीड़ के भेड़ भी आएंगे अंत में - वो क्या करेंगे? अंतिम समय में साक्षात्कार में देखेंगे, और फिर ऊपर परमधाम में चले जाएंगे। पर उनको प्राप्ति कुछ नहीं हुई, उनको मिला कुछ नहीं, उनको स्वर्ग की बादशाही नहीं मिली। वो भी भीड़ में आएंगे। भीड़ में माना द्वापरयुग के बाद, जब ज्यादा भीड़ लगती है फिर आएंगे।

बगीचा बड़ा छोटा होता है ना, पर बहुत सुख देता है। जंगल तो बहुत बड़ा होता है, पर जब आग लगती है तो कोई बुझा नहीं सकता। तो आपको जंगल में चलना है या बगीचे में चलना है? यह सोचना है! जंगल में चले जाएंगे तो कोई थोड़ेही देखने वाला रहेगा, पर बगीचे में चलेंगे तो पूरा संसार आपकी पूजा करेगा। आज देखो जगह-जगह छोटे-छोटे मंदिर हैं, हर किसी के। किसके हैं? जो बाप के साथ बाप की उंगली पकड़कर बगीचे में चले उनका गायन सारा संसार करता है। और जो जंगल में भटक गए - उनको? वो तो 16,108 की माला का भी मणका नहीं कहलायेंगे। उनका भी गायन नहीं होगा। उस माला में भी गायन नहीं होगा। अभी आप बच्चे सोचना। कोई सवाल नहीं। सवाल भी क्या? जब निश्चय है, संतुष्टि के लिए जाना तो कोई बात नहीं - संशय में जाना तो बड़ी बात है ना। *वैसे भी बाप समय-समय पर आप बच्चों के सामने नए-नए गहरे रहस्य खोलते रहते हैं। जिस समय जिसकी जरूरत हो वो बोलते रहते हैं। समय अनुसार बाबा डायरेक्शन भी देते हैं। पर ज्यादा संकल्प चलाना, ज्यादा खोजबीन करना यह नुकसान कारक हो जाता है।* किस लिए कर रहे हो? एक समय तो समय सामने आएगा ही ना। समझ में आया?

इसमें भी बहुत कम बच्चों को समझ में आया है। पर जितनो को भी आया है उन बच्चों को बाप बधाई देते हैं कि कम से कम इतनों को तो समझ में आया। जिनको समझ में आया उनको मुबारक है! पर जिनको समझ में नहीं आया वो थोड़ा और आगे चलके समझ जाएंगे। ठीक है?

अच्छा बच्चों, बाप सदा साथ है, साथ रहेगा, साथ चलेगा। जो बच्चे यह सोचते हैं ना - *यह बाबा कबसे कह रहे हैं सतयुग आ गया है, आ गया है* - तो आपके लिए तो आ गया है। आप हो!

कोई भी चीज वन-वन-वन (01.01.01) से शुरू तुरंत नहीं होती। जैसे आज से 90 वर्ष या 100 वर्ष पूर्व क्या इतनी इन्वेंशन थी? थी? पर हर दिन इन्वेंशन बढ़ी, हर दिन, हर साल बढ़ी। बढ़ते, बढ़ते, बढ़ते आज देखो साइंस कितना इन्वेंशन पे है। तुरंत तो नहीं बढ़ी ना? 100 वर्ष पूर्व तुरंत तो नहीं बढ़ी ना? नहीं! पर आज देखो। 100 वर्ष पहले जाओ - क्या था? कहाँ कोने-कोने में डॉक्टर होंगे - वो भी .. लाइट देखो, साइंस देखो, आज सबके हाथ में क्या है? एक दूसरे से कनेक्शन करने का साधन। है? क्या 100 वर्ष पहले ऐसा था? नहीं! कमाल की बात है! सोचो। अभी बाप यही कह रहे हैं कि आप स्वर्ग में हो! समझ में आ रहा है? *आप स्वर्ग में कदम रख चुके हो - कब से चल रहे हो। पर आपको थोड़े समय के बाद फिर से समझ में आएगा कि बाबा ऐसा क्यों कह रहे हैं, कि आप स्वर्ग में हो।* जैसे साइंस ने कदम रखा, बढ़ते-बढ़ते कितनी तेजी से बढ़ गई। आज यह सारा संसार, इस कलयुग का स्वर्ग है। रात को देखो तो कितनी घनी बत्तीयाँ जलती हैं। जैसे की धरती पर सितारे बिछे हो। पर यह कलयुगी साइंस का स्वर्ग कहोगे। पर सतयुग - वो ओरिजिनल! यहाँ की बत्ती तो घड़ी-घड़ी चली भी जाती है ना, नुकसान करने वाली है। वहाँ का वातावरण कोई नुकसान करने वाला नहीं होगा - बस यह। बोलते हैं ना एक चीज की जब अति होती है तो उसका अंत क्या है? निश्चित है। तो साइंस की भी क्या है? सब खोजबीन, चीर-फाड़ सब कर लिया। प्रकृति के साथ, या जानवरों के साथ, इंसानों के साथ सब हो गया। अति में आ गए, और अति का अंत ही आदि का प्रारंभ है! इस कलयुगी अति का अंत ही सतयुग की प्रारंभ है। मतलब आप चल रहे हो।

अच्छा, आज आप अपने ब्रह्मा बाप के साथ मिलन मनाओ। ब्रह्मा बाप - जो आते ही पूरी महफिल में रौनक आ जावे - यह है ब्रह्मा बाप। यह गायन संगमयुग का ही है, जो शास्त्रों में दिखाया है। ये सब चरित्र अभी के हैं जो शास्त्रों में दिखाया है।

अच्छा बच्चों, फिर मिलेंगे .. *आप सदा याद रखना, जिसने बाप का हाथ और साथ पकड़ा है ना, उसकी नाँव कभी डूब नहीं सकती। और जो खुद छोड़कर जाएगा उसकी नाँव कभी बच नहीं सकती।* उसको डूबाने से कोई रोक नहीं सकता, क्योंकि भले जगह-जगह घूमके आए, पर अंत में बाप से मिले - इस समय में भी बिछड़ गए, या छोड़के चले गए तो कल्याण नहीं होगा, अकल्याण ही होगा। हाँ, जो पुरुषार्थ किया है उसमें ड्रामा अनुसार जो भी पद मिले।
फिर मिलेंगे ..

(फिर बच्चों की तरफ से बाबा को गुलदस्ता भेंट किया गया)
सतयुगी गुलदस्ता! देखो, इसको बनाने में कितनी मेहनत लगती है, पर सतयुग में आपको मेहनत नहीं लगेगी। वहाँ तो अपने आप बने हुए आपको मिलेंगे।
फिर मिलते हैं ..

*सेवा की रफ्तार को थोड़ा और बढ़ाएं। संकल्प रखना है, इस वर्ष हर राज्य पूरा होना चाहिए* - ठीक है?

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Zorba the Greek
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Versions of Shiv Baba
18.01.2024 - (Raipur, Chhattisgarh)

"Sweet children .. Not so much the bondage of the body - but the bondage of the mind has to be broken. If the mind flies - if the soul flies by becoming an Angel – then no one can tie those who fly (into any bondage). So now, all the children should check your own selves – am I free (from the bondage of my mind)?"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=-GZ-mMusEVo

OK .. What special day is it today for you children? Is it a special day? Is it? Which special day is it? [Avyakt day, Baba; It is the day of remembrance of Brahma Baba - he became ‘karmateet’, it is the day of that memorial] So, is it a day of sadness, or is it a day full of happiness? [It is a day full of happiness, Baba] On this day, Father Brahma left his old body and merged into his complete (form of) Father Brahma. To ‘merge’ does not mean to stick to it. It means to see the complete (perfect) form, to sit face to face, and say, ‘I have come in front of you after becoming complete Father Brahma, as the resident of the Subtle Region’. *What is considered to be completeness? If there is even a little body-consciousness, then one falls below the stage of perfection.*
Today is not a day of nostalgia for you children, it is a day of being in zeal and enthusiasm. The one who left this old world and became the Emperor of the upper gathering of Angels residing in the Subtle Region - today is the day of coronation of that ‘King of Angels’. Today is the day when the anointment was carried out in that Kingdom of the residents of the Subtle Region. On this day, the coronation of Father Brahma took place (in the Subtle Region). How long has it been? How long ago was that? How long has it been since then? .. So, the time that was there to rule in that world has passed, has it not? Now, the day to become the Emperor of which place has arrived? Of this corporeal world, of the world of the Golden Age .. .

Children ask – ‘why did (Brahma) Baba leave?’ And Father Brahma says, ‘I am very happy to come here’. Children cry - and Father Brahma is happy. Why do the children cry? Why do they cry? Because they do not consider themselves to be Angels. Because they do not consider themselves to be Angels in their perfect form. Because they do not consider themselves to be souls. Because they are slaves of the body, who are still trapped in body-consciousness. And those who are slaves can never laugh (heartily). So, in this world, in this world of Ravana - how will those who are slaves to body-consciousness laugh? How will they celebrate happiness? So, are you a slave? Check this! *To come down from your stage of being in zeal and enthusiasm means to become a slave. And the children of the Father always remain free, they do not become slaves.*
Today the Father is asking every child – to you, to those from the Centres, to the residents of Madhuban; or, to those on the ‘path of devotion’ from anywhere - to everyone; or, to those on the house-hold path - are you free? Do not take this to mean that there is bondage in the family – that may be there. *One is to be bound by the body, and the other is to be bound by the mind. You can still free yourself from the bondages of the body. It is still easy to break the bondage of the body; but if the mind is bound, if the mind becomes a prisoner, if the soul is bound, then one cannot become free easily, one still remains in that bondage.* Whether you may be one who is sitting here, or whoever you may be - are you free? Are you free? The one who is free will always be full of zeal and enthusiasm. Why? Because there is happiness.

*What does freedom mean? It means to fly in the Remembrance of the Father, to remain like Angels in the Remembrance of the Father. Those who fly in the Remembrance of the Father, those who become Angels - only they can be free - those who have Love for the Father.* So now, all the children should check their own selves – am I free (from the bondage of my mind)? Or does Maya hold on to you every now and then? Not so much the bondage of the body - but the bondage of the mind has to be broken. If the mind flies - if the soul flies by becoming an Angel – then no one can tie those who fly (into any bondage). Only the one who is in bondage can be unhappy - no matter what kind of bondage that may be!

So, today is the day of Father Brahma, the day of the Emperor of Angels. This is amazing, is it not! When he was in his corporeal form it was said again and again – ‘if this Brahma goes away, then he will go and become the Emperor of the world’. He will become an Emperor! But he has actually become that. Did anyone understand this? Did anyone? You did not understand, did you! He has become! *First he becomes the Emperor (‘Maharaja’) of the Angels; and only after that does he become the Maharaja of the Golden Age; he becomes the Master of the whole world.* So, every time the children were reminded that Father Brahma would go and become the Maharaja of the world. He will become the Maharaja - so he did become, did he not – he was coronated, was he not? He became the King, the Emperor of the world of Angels (in the Subtle Region). Now that time is over, so much time has passed by - of which place will he become the Maharaja now? Well, sometimes children feel it to be a dream - is this, what Baba says, that Shri Krishna will come - is this just said, or will he really come?
What do you say? [He is coming to meet us] Well, this is not a matter of a joke; if the name is so elevated, if there is his praise in the world – so, if there is his praise, then he had definitely come and gone earlier. There can be no praise of anything without it being there, is it not? There cannot be such praise. When you pass away, your children would remember you after that occurrence - that you were their Father - would they not? But their children (your grand-children) did not see you – they may not have seen you! Think about it. If there is the praise of Rama, if there is the praise of Krishna, then they had definitely come and gone earlier. There is the praise of even a small straw that has not been seen before - that too had been there earlier, that is why there is the praise of that. So, do not keep this seed of doubt in your mind that ‘Baba does say that, but I do not know what will happen!’

It has been said - every now and then the Father said - the gate to Heaven will open through the Mother. Did He say this? Through whom? Through the mothers. But who is actually the first Mother? Who is the first Mother? Who is the first Mother? [‘Jagadamba’] She is ‘Jagadamba’! How do you believe that the gate to Heaven will be opened through a Mother? How? Did anyone ever think about this? The Mother opens the gate of Heaven; a kumari opens the gate of Heaven – no; a Mother opens the gate of Heaven. That Mother is first! That Mother is first – the one who will give birth to Shri Krishna! That Mother opened the gate (of Heaven) - but the praise is of the mothers, is it not? Is it not? This does not mean that by elevating the name of the mothers, the name of the kumaris is being lowered – no! It is not like that. *In the time to come, every child will understand the secrets of Drama. But only those who understand will be called the beads of the Rosary of 108.*

For the one who has doubts – ‘how can this happen?’ The Drama keeps changing; if you continue the same thing from the beginning, how will that be? The Silver Age comes after the Golden Age, does it not? It does come! If you only have gold, if there is only the Golden Age, then how will that be? Then the Copper Age does come after the Silver Age; and in the Copper Age some new rules and regulations apply to everything. Then you can say that the Iron Age will also come; then the Iron Age will promulgate its own rules, laws, and regulations. Now, it is the Confluence Age - now the Father is there, and those children who have faith in the Father will not have doubts - what will those children say? What will you say?
‘Baba, we do not know the beginning, the middle, and the end, but you do know the beginning, the middle, and the end, so we are with you’ – and whoever is with the Father will go along with the Father. Because, the Yagya was established with how many children? There were hardly a handful, were they not, a few were selected, there was no such throng that - yes, there is a huge crowd. Was this not so? *How many children did the Yagya start with? It started with a handful of children! Now the end will also be with only a handful of children.* Those who are going to come and go between the beginning and the end, according to time, and according to their efforts, they will also have their part. They will have their part of coming and going. But Baba has said that if it started with a handful of children - then just as it was at the time of the beginning, this end will also be with only a handful of children.

Children say, ‘Baba, we will not waver at all, we make a firm resolve with you, our mind and intellect will not waver at all’ - they make such a resolution. But if they see something (unseemly) – then what happens? If they see even a little something (untoward) .. their resolution changes after seeing the colour of the clothes worn on your body, then how will they have faith? Just think! If their mind changes just by seeing your way of sitting and standing, then how will they have faith? ‘Today you are wearing this, why did you wear that yesterday?’ Even this changes their minds, so how will they have faith? ‘You eat this, why not that?’ If their mind changes due to this, then how will there be faith? The meaning of faith is governed by what the children think – ‘Baba, why is this so? How is this so?’ What did Baba say – *the Father can ask you the questions of this ‘why’ and ‘how’ - how were you before? How have you become now? And how will you become in the future?*

The Father is not straying from any line. The Father sees the line very clearly, but the children who consider themselves to be over smart tell the Father that the track on which He is moving along is not right. The meaning of the saying this is that some children even teach the Father; but the Father will still say – all right, that is fine, you may give your advice, and I will listen, but if an accident takes place in the future, will you be able to take care of the same? You will not be able to take care of that, will you? Baba is trying to say - *wherever the Father takes you, this is the Father's promise, that no harm will come to anyone - this is the Father's guarantee, His guarantee, His guarantee!*

*Those who follow the footsteps of the Father can never drown. The Father is making this promise to everyone. But if you remain entangled in your own opinions, and your own wasteful resolutions, then the Father will never take the guarantee for such children.* Why will He not take it? Because you are entangled in your own world, and the Father is proceeding ahead, so it is not necessary that He will leave everyone else just to take hold of you and take you along. You have to come, you have to come by your own self, you have to proceed ahead yourself, you must step forward yourself. Baba says this again and again – children, as it was in the beginning, so will it be at the end! As it was in the beginning, so will it be at the end! There were a handful of children in the beginning, and there will be a handful of children in the end too! Some children think, ‘if God is coming then why is there no crowd?’ So, Baba will say to those children - the sheep of the crowd will also come in the end - what will they do? They will see in their visions at the last moment, and then they will go up to the Supreme Abode. But they did not achieve anything, they did not get anything, they did not receive the Sovereignty of Heaven. They will also come in the crowd. ‘In the crowd’ means they will come after the Copper Age, they will come when there is a greater crowd.

A garden is very small, but it gives a lot of happiness. A forest is very big, but when a fire starts, no one is able to extinguish it. So, should you go in the forest, or should you go in a garden? This is something to think about! If you go to the ‘forest’ (of Ravan, or Maya), there will be no one to see you, but if you go to the Garden (of Shiva, or Baba), the whole world will worship you. Look, today there are small temples everywhere - of everyone. Whose are they? The whole world sings the praise of those who walk with the Father in the Garden by holding the Father's Finger. And those who got lost in the ‘forest’ – what about them? They will not be called a bead of even the Rosary of 16,108. Their praise will not be sung. Their praise will not be sung even in that Rosary either. Now, you children can think for yourselves. Let there be no questions. What question can there be? When there is faith, there is no issue in going with contentment – but going in doubt would be a big deal, would it not? *Anyway, from time to time the Father keeps revealing newer and deeper secrets before you children. He keeps revealing them whenever there is a need. Baba also gives directions in accordance with the time. But having too many thoughts, and doing too much research, becomes a harmful exercise.* Why are you doing that? At some point the time will come before you, will it not? Did you understand?

Very few children have understood this also. But the Father congratulates all those children who have understood, that at least these many have understood. Congratulations to those who have understood! But those who did not understand will understand a little later. OK?

OK children, the Father is always with you, He will be with you, and He will go along with you. Those children who think that *Baba has been saying for a long time that the Golden Age has come, that it has come* – so, it has come for you! You are there!

Nothing starts immediately from one-one-one (01.01.01). For example, were there so many inventions 90 or 100 years ago? Were there? But inventions increased every day - every day, every year. By continuing to increase in this manner, just look to what extent science is based on inventions today. They did not increase immediately, did they? They did not increase immediately 100 years ago, did they? No! But just look at today. Go back 100 years - what was there? There would have been a doctor in some remote corner – and that too .. look at the lights, look at science, what is in everyone's hands today? Everyone has the means of communicating with each other. Do they have them? Was it like this 100 years ago? No! This is amazing! Think about it. Now, the Father is saying that you are already in Heaven! Are you able to understand this? *You have already stepped into Heaven - how long have you been going along? But after some time you will comprehend again why Baba is saying that you are already in Heaven.*
As science stepped forward, it continued to develop, and it advanced so rapidly. Today, this whole world of this Iron Age is like heaven. If you look around at night, how many lights keep burning in abundance - as if there are stars scattered on the earth. But you would call this the heaven of science of the Iron Age. But the Golden Age – that is original (Heaven)! The lights here do go off every now and then, they do cause harm; the environment there will not cause any harm - just this. It is said that when there is too much of one thing - then what is its end? Its end is certain. So, what about science? All the research and dissection were all carried out. Everything was experimented - with nature, or with animals, or with humans. They have now come to the extreme - and the end of the extreme itself is the commencement of the beginning! The end of the extreme of this Iron Age is in itself the commencement of the beginning of the Golden Age. This means that you are already moving along (in the Golden Age).

Well, today you celebrate a Meeting with your Father Brahma. Father Brahma – the one who brightens up the entire gathering as soon as he comes – this is Father Brahma. This praise is only of the Confluence Age, that has been depicted in the Scriptures (of the outer world). All these divine activities are of the present time (in this Confluence Age) that have been depicted in the Scriptures (of Ravan Rajya).

OK children, we will Meet again .. *always remember that the ‘boat’ of the one who has held the Father's Hand and who has His Companionship can never sink. And the ‘boat’ of the one who leaves (the Father) himself/herself can never be saved.* No one can stop that from sinking, because even if they come after wandering from place to place, and Meet the Father in the end - but if they get separated again, or if they leave Him and go away even at this time, then they will not receive any benefit, they will have misfortune. Yes, they would receive a status in accordance with Drama for whatever efforts they have made.
We will Meet again ..

(Then a bouquet was presented to Baba on behalf of the children)
A bouquet of Golden Age! Look, how much effort it takes to make this, but in the Golden Age you will not have to work so hard. There you will find this prepared by nature itself.
We will Meet again ..

*You must increase the speed of Service a little more. Make a resolution that every State (of India) should be completed this year (by organizing Baba Milan)* - OK?

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
23.01.2024 - रायपुर, (छत्तीसगढ़)

"मीठे बच्चे .. आप बच्चों का बाप को फिक्र है, इसीलिए घड़ी-घड़ी सावधानी देने पहुँच जाते हैं। आप भविष्य का नहीं देख सकते, और बाप सबकुछ नजदीक देखकर के आपकी फिक्र कर रहे हैं।"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=gplHkCfWDlA

अच्छा .. आप सभी जहाँ भी बैठकर बाप को सुन रहे हैं, मिल रहे हैं, प्रेम में कहो – बस यही सोचना है कि बाप का बच्चों से कितना प्यार है। क्योंकि *बाप समय की समीपता को बहुत नजदीक से देख रहे हैं। जय-जयकार भी देख रहे हैं। पर जय-जयकार के पीछे की लाइन क्या है? हाहाकार भी देख रहे हैं।* आज मेजोरिटी सभी जय-जयकार देख रहे हैं। पर जय-जयकार के साथ-साथ कोई दूसरा भी चल रहा है।

फरिश्ता बन करके उड़ने का तीव्र पुरुषार्थ करना है। समय सिर्फ खाने-पीने में, घूमने में नहीं गँवाना है। *विनाश रूपी शेर बहुत नजदीक है, पर बाप तो साथ है ना! पर बाप भी साथ कब रहेगा? जब बच्चे साथ नहीं छोड़ेंगे - शरीर से नहीं, मन से।*

इस विनाश की अग्नि में, सबसे पहले कौन जला? *महाभारत का युद्ध हुआ - अगर आप सोचेंगे, ‘हमारे मित्र संबंधी बचे, हमारे परिवार बचे, हमारे बच्चे सेफ रहे’ - इस संकल्प से भी ऊपर उठना है।* क्योंकि अर्जुन ने सबसे पहले तीर किस पे मारा है? किस पे? कि सामने आपका परिवार है, अगर उनमें से कोई पुण्य आत्मा होगी, तो उसकी गारंटी बाप लेगा - उसको सेफ करने की। अगर आप लेंगे तो क्या होगा? क्या होगा? उसके साथ आप भी डूब जाएंगे। आप बच्चे भी अपने कर्म से वंचित हो जाएंगे। बाप के पास पहुँच गए हो तो ‘समर्पण’।
बस! समय का इशारा देने आए थे।

सुना और छूट गया - भूल गए, नहीं! सुना और धारण किया संकल्प को - जो फंसे हैं उसको त्याग दिया। खाली हो जाना चाहिए, क्योंकि बाप को दिलवाले चाहिए, दिल से समर्पण करने वाले चाहिए, मजबूरी से नहीं। मजबूरी वाले तो कैदी कहलाते हैं - कि मजबूरी से बाप के पास बैठे हैं, मजबूर हैं। *किसी भी कारण से मजबूर वाले नहीं चाहिए - दिलवाले चाहिए। दिल का प्रेम होगा तभी बाप के कार्य में मददगार, सहयोगी बन पाएंगे - अपना समझेंगे तभी।*

‘मजबूर’ - मजबूर तो जेल में होते हैं, मजबूरी तो कैदियों की होती है। तो अगर बच्चे अपने आप को कैदी समझते हैं, तो फिर वो बच्चे नहीं हैं, वो कैदी ही हैं। और बाप को कैदी नहीं चाहिए, क्योंकि बाप .. जो बच्चे अपने आप को कैदी समझते हैं उनके लिए जेल खुली हुई है, अगर वो जेल समझते हैं। अगर घर समझते हैं तो दरवाजा खुला भी रहेगा ना, तो भी बच्चा बाहर नहीं जाएगा। तो, जो कैदी समझेगा, मजबूरी वश रहेगा, मजबूर हो रहने के लिए, तो वो एक ना एक दिन चला जाएगा। *बाप को क्या चाहिए? दिल का समर्पण चाहिए, दिल से रहने वाले चाहिए, मजबूरी से नहीं।* क्योंकि जब आगे चलकर और छटनी होगी तो क्या होगा? क्या होगा? झड़ जायेंगे ना। लास्ट में क्या बचेगा?

तो आज विशेष यही संदेश देने आए हैं। समर्पण माना फिर कुछ आपका नहीं है। फिर कुछ आपका नहीं है। दिल से देंगे तो बाप भी दिल से ही देगा - मजबूरी से देंगे, तो बाप भी क्या करेगा? तो भी दिल से देगा, पर जितना आपने सोचा है उतना नहीं! *प्यार में सब कुछ आसान है। अब विनाश की ज्वाला तो हर किसी को लपेटेंगी ना, पर जो बाप के दिल से मददगार हैं, वो बच्चे कर्तव्य पूरा किए बिना नहीं जाएंगे, और विनाश की ज्वाला में नहीं लिपटेंगे। उनका कर्तव्य पूरा होगा तो उनको बाप लेने आएगा।* ठीक है?

*आज से एक सूक्ष्म ते सूक्ष्म संकल्प भी मजबूरी का नहीं होना चाहिए, क्योंकि मजबूर में रहने वाली आत्माएं आज नहीं तो कल आपेही चली जाएंगी, बाप नहीं निकालेगा।* और जो दिल से है – ‘बस, बाबा हम आपके हैं, और सब आपका है, आप देखो, हमारा कुछ नहीं, हम समर्पण हैं, आपको क्या करना है आप देखना है।

इस मीठी शिक्षा को मीठे दिल में धारण करना और मीठा जीवन बनाना। ताकि आपकी खुशबू से, आपकी मिठास से, दूसरों का जीवन मीठा बने, दूसरों की जीवन में खुशबू फैले। आपके गुण दूसरों की जीवन को और खुद की जीवन को महकाने वाले बने। बदबूदार नहीं बनाना है। किसी की मनसा खराब करके उसके जीवन में पूरी बदबू हो जाएगी, खुशबू नहीं बचेगी। *आपके दिव्य गुणों की खुशबू अनेकों के जीवन को खुशबूदार बनाएंगी।*

ऐसे खुशबू फैलाने वाले बच्चों को, ऐसे दिल से समर्पण होने वाले बच्चों को, दिलाराम बाप का दिल से याद-प्यार।

आप बच्चों का बाप को फिक्र है, इसीलिए घड़ी-घड़ी सावधानी देने पहुँच जाते हैं। *जैसे आपको बाप से प्यार है, तो बाप को आपका फिक्र है। आप भविष्य का नहीं देख सकते, और बाप सबकुछ नजदीक देखकर के आपकी फिक्र कर रहे हैं।*

वंडरफुल बात यह है कि जिसकी महिमा, जिसकी प्रतिमा, सारा संसार बना रहा है, वो भी आत्मा आपके सामने है। आप उसके साथ में हो - और बाप भी। कभी-कभी आपने देखा की सारी शक्तियाँ एक जगह इकट्ठी हो गई हो। पर आप देख रहे हो सारी की सारी शक्तियाँ एक ही जगह इकट्ठी हो चुकी हैं। क्यों? *इसका मतलब है परिणाम बहुत जल्दी सामने आने वाला है।* जब अलग-अलग पिलर संसार में अलग-अलग स्थान पे बिछुड़ जाते हैं, तब अलग-अलग स्थान की सेफ्टी होती है। कोशिश करते हैं अपना पिलर सब साथ में रखे, ताकि दुनिया को डूबने से बचा सके। पर जब वो सब जड़जड़ीभूत हो जाते हैं, तो सारी शक्तियाँ, सारे रत्न एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं, और साक्षी होकर के देखते हैं। जैसे कि एक घर से सभी .. टूटने वाला घर है, तो बाहर खड़े होकर के देखते हैं ना, सब साक्षी हो जाते हैं। *तो यह समय भी साक्षी होने का है। इसमें सारी शक्तियाँ साक्षी हो गई हैं। सारी महान ते महान आत्माएं साक्षी हो गई हैं।*

*अभी समय परिवर्तन की ओर है। बार-बार इशारा दे रहे हैं - समय को सफल करो, बचाओ।* संदेश नहीं पहुँचा है तो पहुँचाओ। आगे का कार्य बाप अपने आप देख लेगा।

शास्त्रों में है - आज राम के पाँव चिन्ह ढूँढते हुए सब जगह मंदिर बन गए। पर जिस समय राम घूम रहे थे उस समय मुट्ठी भर बच्चे थे। किसी ने देखा? नहीं देखा। पर आज सारा संसार नारे लगा रहा है। मतलब क्या हुआ? यह वही समय है। यह वही समय है कि सब नहीं देख पा रहे हैं, पर जय-जय कर कर रहे हैं। सबने नहीं देखा, पर खुद कितने बच्चे हैं? कितने बच्चे हैं? मुट्ठी भर हैं! *वही सेना है, वही राम है, और वही नारे हैं, और वही विनाश का सीन है, और वही रावण के साथ युद्ध के मैदान में है। सब कुछ है। दोनों सेनाएं सामने खड़ी हैं - फुल तैयारी में।* आपको क्यों अलर्ट कर रहे हैं कि बुद्धि कहीं पर भी फँसी हुई होगी, तो इतने ऊँच पद से हाथ धो बैठोगे। समझ में आ रहा है?

ध्यान रखो सभी बच्चे। जब बाप प्रेम की दुनिया बनाने आए हैं, तो बच्चों को भी क्या कहेंगे? *प्रेम की मूरत बनना है। चिंता की, फिक्र की मूरत कभी पूजी नहीं जाती। बेफिक्र और मीठी मूरत हमेशा पूजी जाती है। ऐसी मूरत बनना है।*

अच्छा .. जब तक समय है, तब तक मिलेंगे ..

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Versions of Shiv Baba
23.01.2024 - (Raipur, Chhattisgarh)

"Sweet children .. The Father has concern for you children, that is why He comes every now and then to caution you. You cannot see the future, and the Father is seeing everything very closely, and is concerned about you."

Link: https://www.youtube.com/watch?v=gplHkCfWDlA

OK .. Wherever all of you are sitting and listening to the Father, and Meeting him – say, with Love – just think about how much Love the Father has for you children. Because *the Father is watching the proximity of time very closely. He is watching the sense of cheer as well. But what is in the line behind this sense of cheer? He is watching the sense of distress as well.* Today, He is watching the majority to be in a sense of cheering. But there is also some other feeling along with this sense of cheer.

You have to make intense efforts to become an Angel, and fly. Time should not be wasted just in eating, drinking, or travelling here and there. *The ‘lion’ of destruction is very close - but the Father is with you, is He not! But when will the Father be with you? When children will not leave His Company – not with the body, but with their mind.*

Who was the very first one to burn in this fire of destruction? *The Mahabharata War took place - if you think, ‘our friends and relatives should be safe, our family members should be safe, our children should be safe’ - you have to rise above these aspirations also.* Because at whom did Arjun shoot the arrow first? At whom? If you have your family in front of you, and if there is any virtuous soul among them, then the Father will take the guarantee of keeping him/her safe. If you yourself take this guarantee then what would happen? What will happen? You too will drown along with him/her. You children will also be deprived of your (good) karma. When you have come to the Father then surrender to Him fully.
That’s all! I have just come to give all of you the signal of time!

You heard and you missed – you forgot - no! You heard and you imbibed your resolution – you abandoned those who are stuck. You have to be free, and leave, because the Father needs those who have a heart, He requires those who surrender wholeheartedly, and not out of compulsion. Those who are under compulsion are called prisoners – that is, they are sitting with the Father out of compulsion, they are helpless. *Those who are under compulsion for any reason are not needed – those with a heart are required. Only when there is Love in the heart will you be able to become helpful and co-operative in the Father's task - when you consider the same to be your own task.*

‘Under compulsion’ – those who are under compulsion are in a jail, it is the prisoners who feel helpless. So, if children consider themselves to be prisoners, then they are not children, they are just prisoners. And the Father does not require prisoners, because the Father .. if the children consider themselves to be prisoners, then the jail is open for them - if they consider it to be a jail. If they consider it as their house - then even if the door remains open, the child will not go out. So, the one who considers oneself to be a prisoner will remain under compulsion, and continue to feel helpless, and will go away one day or the other. *What does the Father want? He wants you to surrender with your heart, He needs those who remain here with their heart, and not out of compulsion.* Because what will happen when there is further sieving in the future? What would happen? They will get discharged. Who will remain in the end?

So, today I have come to give this special message. Surrender means – then nothing belongs to you; then nothing is yours. If you give from your heart then the Father will also give from His Heart - if you give out of compulsion, then what will the Father also do? Then too He will still give wholeheartedly, but not as much as you thought! *Everything is easy in Love. Now, the flames of destruction will engulf everyone, but those children who are helpful to the Father from the heart, such children will not go without completing their task, and they will not be engulfed in the flames of destruction. When their task is accomplished the Father will come to take them with Him.* OK?

*From today onwards, even the subtlest of resolutions should not be made out of compulsion, because the souls who are living under compulsion will go away on their own, sooner or later - the Father will not remove them.* And the ones who are here from their heart – ‘that’s it Baba, we are yours, and everything is yours, you are seeing, nothing is ours, we are surrendered to You, You have to see what You to do with us.

Imbibe this sweet directive within your sweet heart and make your life sweet. So that with your fragrance, with your sweetness, the lives of others will also become sweet, and your fragrance will spread in their lives as well. May your virtues make the lives of others and your own life full of fragrance. Do not make it malodorant. By spoiling someone's mind, his/her life will become completely stinky, there will be no fragrance left. *The fragrance of your divine qualities will make the lives of innumerable souls fragrant.*

Remembrance and Love from the Heart of the Father, who is the Comforter of hearts, to the children who spread such fragrance, to the children who surrender from their hearts.

The Father has concern for you children, that is why He comes every now and then to caution you. *Just as you have Love for the Father, so the Father too has concern for you. You cannot see the future, and the Father is seeing everything very closely, and is concerned about you.*

The wonderful aspect is that the soul who is being glorified and whose image is being made by the whole world is also in front of you. You are with him - and the Father too is with him. Sometimes you would have seen that all the powers had gathered at one place. But now you are actually seeing that all the powers have gathered just at one place. Why? *This means that the final result is going to be out very soon.* When different pillars get scattered at different places in the world, then there is safety in those different places. They attempt to keep their own pillar with them, so that they can save the world from sinking. But when they all get deteriorated, then all the powers, all the gems gather at one place, and just watch as witnesses. As if everyone, from one house .. when the house is about to break, then they stand outside and watch, everyone becomes an eyewitness. *So this is also the time to be a detached witness. All powers have become witnesses in this. All the greatest of souls have become witnesses.*

*Now the time is proceeding towards transformation. Baba is giving signals again and again – make time fruitful, save time.* If the message has not been delivered then deliver it to others. The Father will take care of further tasks by Himself.

It is in the Scriptures; today temples have been built everywhere while in the search of the footprints of RAMA. But at the time when RAMA was going around, there were only a handful of children with Him. Did anyone see? They did not see. But today the whole world is raising slogans. What does this mean? This is that very same time. This is that very same time when they are not able to see, but they continue to cheer. Not everyone has seen, but how many children are actually there? How many children are there? There are only a handful! *It is the same army, the same RAMA, and the same slogans, and the same scene of destruction, and the same ones who are in the battlefield with Ravan. Everything (and everyone) is present. Both the armies are standing in front – in full preparation.* Why am I alerting you - if your intellect gets stuck anywhere, you will lose such an elevated status. Are you able to understand?

All children should take care. When the Father has come to create a world of Love, then what will He tell the children? *To become an embodiment of Love. An image of worry, or of concern is never worshipped. A carefree and sweet image is always worshipped. You have to become such an image of Love.*

OK .. as long as there is time, we will continue to Meet ..

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
28.01.2024 - प्रोद्दातुर (आंध्र प्रदेश)

"मीठे बच्चे .. आपने जो तपस्या की - उसका फल आपको जरूर मिलेगा!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=ghTVOhVZQhQ

अच्छा .. आज, हर बच्चे के दिल में प्रेम की लहर झूम रही है। प्रेम के सागर के बच्चे कहाँ-कहाँ से बाप से मिलन मनाने पहुँच गए हैं! लेकिन बाप भी कहाँ-कहाँ पर मिलन मनाने आप बच्चों के पास पहुँच गए हैं! *बाप का वायदा है ना - कि जब भी बच्चे बुलाएंगे, बाप दौड़े चले आएंगे।* तो वर्तमान समय में बाप बच्चों के पीछे दौड़ रहे हैं - या बच्चे बाप के पीछे दौड़ रहे हैं? दोनों एक दूसरे के साथ चल रहे हैं। तो साथ तो चलना ही है ना? आपने भी वायदा किया है, बाप ने भी वायदा किया है।

*वंडरफुल बात तो यह है कि जहाँ भी बाप जाते हैं ना, तो दूसरे (बी. के.) बच्चे भी बड़ी तपस्या में लीन हो जाते हैं।* जगह-जगह भट्टी रखते हैं कि ‘बाबा, यहाँ पर माया नहीं आनी चाहिए’ - इतनी तपस्या करते हैं। पर बाप भी उन बच्चों की जरूर सुनता है ना? क्या कहता है? बच्चे, माया नहीं आएगी, पर बाप तो जरूर आएगा! बाप को आने से कौन रोक सकता है? आपने ‘माया नहीं आए’ उसकी भट्टी रखी है, आपने ‘माया नहीं आए’ उसकी तपस्या कर रहे हो – ‘बाप नहीं आए’ उसकी तपस्या तो नहीं की ना? *आपने जो तपस्या की - उसका फल आपको जरूर मिलेगा।* आपने बाप को याद किया - सोच के देखो, आपने अगर इतने समय तक भट्टी की - तो क्या संकल्प चल रहे थे? किसका चेहरा बुद्धि में घूम रहा था? बार-बार किसको याद कर रहे थे? बार-बार किसकी मूरत सामने आ रही थी? तो जब बार-बार आप जिनको याद करेंगे - आएंगे तो वही ना? *तो बाप का बच्चों से इतना प्यार है कि आप जहाँ भी बुलाएंगे, बाप जरूर आएंगे।* पर आप बुलाएंगे भी नहीं - तो भी बाप जरूर आएंगे! तो ऐसा बाप कहाँ मिलेगा? पूरे 5000 साल के चक्र में भी ऐसा समय नहीं आएगा!

अच्छा बच्चों - जो मना करने के बाद भी आए हैं, उन बच्चों को बाप का दिल से याद-प्यार। और जो छुपके भी आए हैं, उनको भी बाप का दिल से याद-प्यार।

अच्छा, यहाँ पर भाषा का प्रॉब्लम है ना? है? अच्छा, क्योंकि बच्चों को समझ में नहीं आ रहा है। [ ट्रांसलेट कर सकते, बाबा? ] हाँ ..

देखो, हर बच्चा अपने-अपने इष्ट देव को कितना याद करता है। हर रोज भक्ति, पूजा, आराधना - कुछ भी समस्या हो, सबसे पहले अपने इष्ट देव के पास जाकर बैठेगा। लेकिन जाना सबको एक जगह पर है। तो आज आप सबके ईष्ट देव का संदेश लेकर आए हैं। आपके इष्ट देव का संदेश – आप अगर सच में अपने इष्ट देव को दिल से मानते हैं, तो सबसे पहले अपने कर्मों पर विशेष अटेंशन देना है। मेजोरिटी बच्चे अपना खान-पान सुधारे। यह खान-पान - *जैसे आप खाएंगे ऐसे मन होगा, और जैसा मन होगा ऐसी सृष्टि दिखाई देगी। अगर सभी दुखों से छूटना चाहते हैं तो अपना खान-पान (शारीरिक भी और मानसिक भी) पर विशेष ध्यान दें। क्योंकि अंतिम समय नजदीक है।* आप अगर किसी भी जीव-जंतु को मार के, उसका आहार बना करके खाएंगे, तो उसका बहुत बड़ा पाप कर्म सिर पर चढ़ेगा। अभी तो सबको यह चीज मजाक में भी लगेगी, हँसी भी आएगी, पर यह सीन हमेशा याद रहेगा कि आपको मैसेज देने के लिए कोई आया था - पर उस समय कोई भी नहीं होगा। इसीलिए सभी बच्चों को यह बाप की तरफ से मैसेज है - ये भक्ति मार्ग वाले भी आज बाप के सामने बैठे हैं। पुण्य का तो पुण्य मिलेगा ही, लेकिन जो भी पाप कर्म होता है उसका भी हिसाब-किताब बनता है। तो यह सभी बच्चों के लिए - चाहे वो बाप के बने हैं चाहे वो नहीं हैं; चाहे वो बाप को पहचानते हैं चाहे वो नहीं पहचानते हैं। *और सबसे ज्यादा पाप कर्म तो उन बच्चों पर चढ़ेगा जो बाप को पहचानते हुए भी ऐसे कर्म कर रहे हैं। इन सब चीजों पर विशेष अटेंशन!*

अच्छा बच्चों, आज सभी बच्चों को विशेष याद-प्यार। भले भाषा का प्रॉब्लम है पर आप बाद में जरूर समझाना सबको। 5 मिनिट सबको जरूर अटेंशन दिलाना, क्योंकि यह अटेंशन बहुत जरूरी है, यह मैसेज बहुत जरूरी है। क्योंकि इनको मालूम नहीं है, इनको यह मालूम ही नहीं है कि यह गलत है और सही है। *तो अगर गलत और सही का मैसेज इनको पहुँचाएंगे तभी बुद्धि का ताला भी खुलेगा।*

अच्छा, जो यहाँ पर रोज कोर्स लेने वाले हैं, क्लास लेने वाले हैं, उनको यह मैसेज दे रहे हैं कि रोज यह संदेश जरूर देना। अब चाहे वो सेंटर चलाने वाली बच्चियाँ हो, चाहे वो भक्ति मार्ग में हो, चाहे ज्ञान मार्ग में हो। लास्ट में बस यही मैसेज देंगे – जो माया कह बच्चों की बुद्धि को विपरीत दिशा दे रहे हो - अंतिम समय आ गया है, इसका भी बोझ जरूर चढ़ेगा। बाप ने मैसेज दिया था - *ऐसा समय भी आएगा कि जो जिनको आप बैठ मुरली सुनाते हैं वो बच्चे बाप के पास दौड़े चले आएंगे, और आपके पास फिर कोई भी नहीं रहेगा। जितना रोकेंगे उतना दौड़ेंगे; जितना रोकेंगे, बाबा इतना अपनी तरफ उन बच्चों को खींचता रहेगा। अब आपकी पावर भी देखेंगे - और बच्चे बाप की भी पावर जरूर देखें।*
फिर मिलेंगे ..

*ब्रह्मा बाप समान बनना सभी कहते हैं ना - तो जरूर बनना।*

बाप बच्चों के बहुत नजदीक है; यह संकल्प नहीं चलाना – ‘बाबा, मैं स्टेज पे मिल लूँ?’ आ जाओ! बाप तो स्टेज से नीचे आ गए ना - आपसे मिलने के लिए! प्यार है तभी आए। इतनी नजदीक कभी मिल पाए थे क्या? नहीं ना? *तो आपसे मिलने के लिए तो बाप ने कितना ऊँचा स्टेज (आबू) का त्याग किया है। तो अभी तो बहुत नजदीक हैं ना? अब नजदीक हैं - तो सोचना सदा नजदीक रहेंगे।*

फिर मिलेंगे ..

*जो बच्चे इतने समय से भट्टी कर रहे थे - उन बच्चों को भी विशेष याद-प्यार।*

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Versions of Shiv Baba
28.01.2024 - (Proddatur, Andhra Pradesh)

"Sweet children .. You will definitely receive the Fruit of your intense meditation!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=ghTVOhVZQhQ

OK .. Today, a wave of Love is bubbling within the heart of every child. The children of the ‘Ocean of Love’ have come from many places to celebrate a Meeting with the Father! But the Father has also reached out to you children at many places in order to celebrate a Meeting. *The Father's promise is that whenever the children call, the Father will come running.* So, at the present time, is the Father running after the children – or are the children running after the Father? Both are moving along with each other. So, you have to move together with the Father, do you not? You have also promised, and the Father has also promised (to remain together).

*The wonderful aspect is that wherever the Father goes (to Meet the children), the other children (BKs) also get absorbed in intense meditation.* They hold Yoga sessions (‘bhatti’) at various places and say, ‘Baba, Maya should not come here’ - they carry out so much intense meditation. But the Father also definitely listens to those children as well, does He not? What does He say? Children, Maya will not come, but the Father will definitely come! Who can stop the Father from coming? You have kept a Yoga session for ‘Maya not to come’, you are doing intense meditation for ‘Maya not to come’ – you did not carry out intense meditation for ‘the Father not to come’, did you?
*You will definitely receive the Fruit of your intense meditation!* You Remembered the Father – just think about this - when you held a Yoga session for a long time - then what thoughts were you having during that period? Whose features were emerging within your mind? Whom were you Remembering again and again? Whose image was appearing in front of you again and again? So, when you remember anyone again and again, only that one will come before you, is it not? *So, the Father has so much Love for the children that wherever you may call Him - the Father will definitely come.* But even if you do not call Him, then too the Father will definitely come! So, where can one find such a Father? Such a time will not come even in the entire 5000-year Cycle!

OK children, the Father's heart-felt Love and Remembrance to those children who have come even after being forbidden (by the BK Center-in-Charge); and the Father's heart-felt Love and Remembrance even to those children who have come secretly (to Meet the Father).

Well, there is a language problem here, is it not? Is there? Well, this is because the children are not able to understand (Hindi). [Can I translate, Baba?] Yes ..

Look, how much every child remembers one’s favored Deity (who is revered by them as the living form of God). Everyday they indulge in devotion, worship, adoration - whatever may be the problem, first of all they will go and sit before their favored Deity. But everyone has to finally go to one place. So, today I have brought the message of everyone's favored Deity. The message from your favored Deity (‘isht Dev’) – if you really believe in your favored Deity from your heart, then first of all you have to pay special attention to your deeds. Majority of the children should improve their eating and drinking habits. This food and drink - *whatever you eat, so will be the state of your mind; and as is the state of your mind, so will the world be viewed accordingly. If you want to get rid of all your sorrows, then pay special attention to your food and drink (both for the body, as well as for the mind). Because the end time (of final World transformation) is drawing very close.*
If you kill any living creature and prepare the same as your food and eat it, then you will incur a huge sin over your head. Now everyone may find this aspect as being funny, and may also laugh, but this scene will always be remembered that someone had come to give you this message - but no one would be there at that final time (to give you this message). That is why this is a message from the Father to all the children - these children from the ‘path of devotion’ are also sitting in front of the Father today. You will surely get a reward for your good deeds, but an account is also created for whatever sinful actions are being committed by you. So, this is for all the children – whether they belong to the Father or not; whether they recognize the Father, or whether they do not recognize Him as yet. *And the greatest sin will be incurred by those children who are indulging in such actions despite recognizing the Father. Pay special attention to all these aspects!*

OK children, special Love and Remembrance to all the children today. Even though there is a language problem, you must definitely explain this to everyone later on. Make sure to draw everyone's attention for 5 minutes, because this attention is very much required, this message is very much necessary for them. Because they do not know - they do not know whether this is wrong or right. *So, if you send them this message of what is right and wrong, only then will the lock of their intellects open.* Well, this message is also being given to those who are going to take courses and classes here every day - that they must definitely convey this message to everyone every day. Now, whether they are children (Sisters) who are running the Center, or whether they are from the ‘path of devotion’, or whether they are in this ‘path of Knowledge’ – they will give this very same message at this end time.
To those who are influencing the intellects of the children by giving contrary directions to them by saying that this (Meeting of BapDada) is Maya – the final time has arrived, the burden of this too will definitely have to be borne by you (by those giving such contrary directions and preventing the other children from Meeting Baba in His final part). The Father has given this message - *such a time will also come when the children to whom you are sitting and reciting the Murli will come running to the Father, and you will no longer be left with anyone. The more you prevent them (from Meeting the Father), the more they will run (to the Father); the more you prevent them, Baba will continue to attract those children towards Himself. Now, your power will also be seen - and the children will definitely see the Father's Power too.*
We will Meet again ..

*Everyone says that we have to become equal to Father Brahma – so you must definitely become so.*

The Father is very close to the children; you should not have this thought – ‘Baba, can I Meet You on the stage?’ You may come! The Father has come down from the stage in order to Meet you, has He not? He has come because He has Love for you. Have you ever been able to Meet so close (earlier, at Abu)? You were not able to do so, is it not? *So the Father has surrendered such a high stage (at Abu) in order to Meet you (so close). So now, you are very close, are you not? You are now close – so, think that you will always remain close (to Baba).*

We will Meet again ..

*Special Love and Remembrance to those children also, who were having Yoga sessions for so long.*

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
01.02.2024 - ईरोड (तमिल नाडु)

"मीठे बच्चे .. बाप सिर्फ सुनाने के लिए नहीं आए हैं - ऐसा बनाने के लिए आए हैं। सुना, कथा की, चले गए - ऐसे बच्चे नहीं। जब बाप के साथ यह टीम चले तो बाप को गर्व हो, अपने बच्चों पर, कि जो बनाने आए थे वो बना के लेके जा रहे हैं।"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=9SxLOhjIAVk

अच्छा .. आज बाप-दादा अपने अति मीठे और लाडले बच्चों से मिलने आए हैं। हम आपको मीठे बच्चे ही कहेंगे - क्यों? क्योंकि बाप हर बच्चे को मीठी दृष्टि से देखते हैं। तो बाप के लिए तो ‘मीठे बच्चे’ हुए ना? आप बच्चे .. या बाप क्या कहते हैं? बाप को आप कौन से स्वरूप में याद करते हैं? क्या .. कौन से स्वरूप में? प्रेम स्वरूप में। और रूप में? आकार में क्या कहते हैं? [ज्योति बिंदु] ‘ज्योति बिंदु’ कहते हैं ना! अब या तो ‘ज्योति’ कहो, या तो ‘बिंदु’ कहो, क्योंकि बिंदु, बिंदु ही है, पर ज्योति का आकार कैसा है? कैसा है? तो यह तो डबल हो गया ना, दो रूप हो गए ना? तो बुद्धि किस पे टिकेगी? ज्योति पे, या बिंदु पे टिकेगी? ज्योति कैसी होती है? कैसी होती है? जब ज्योति को जलाते हैं तो कैसी होती है? .. और बिंदु कैसा होता है? तो बाप क्या है? दोनो ही है? अब कैसे याद करेंगे? अगर आत्मिक स्थिति में बैठते हैं तो बच्चे क्या कहते हैं? हम ‘ज्योति बिंदु’ को, ज्योति को याद कर रहे हैं। ज्योति को याद कर रहे हैं, या बिंदु को याद कर रहे हैं? किसको याद कर रहे हैं? आप सोचो – ‘ना तो मैं ज्योति को याद करता, ना ही बिंदु को’। जैसे बाप अपने बच्चों को फरिश्ता रूप में देखते हैं, कभी ‘बिंदु रूप’ में देखते हैं .. जैसे बच्चों के आकार बदल जाते हैं ना - कभी अपने आप को ‘शरीर’ समझते हैं, तो कभी अपने आप को ‘आत्मा’ समझते हैं, तो कभी अपने आप को ‘फरिश्ता’ समझते हैं। आप अलग-अलग तरीके से खुद को समझ कर बाप को याद करते हैं ना। जब आपने ‘शरीर’ समझा, तो बाप शरीर में आ गए! जब आपने ‘फरिश्ता’ समझा, तो बाप वतन में आ गए! जब आपने ‘आत्मा’ समझा, तो बाप बिंदु बन गए! आपने जो भी समझा बाप वही बनते गए। *पर बाप समझ रहे हैं कि बच्चे संपूर्ण बन जाए - तो क्या, बनेंगे? क्या, बनेंगे? अभी बाप समझते हैं कि बच्चे अति मीठे, लाडले बन जाए - क्या आप बनेंगे?*

*मीठे किसको कहते हैं? जिनकी वाणी भी मीठी हो, जिनके अंदर से प्रेम की फुहार झलकती हो, जो बाप के प्रेम में डूबे हुए हो, जिनके मन में मैल ना हो, जो किसी के प्रति मतभेद ना हो, स्वार्थ ना हो।* बाप आप बच्चों के लिए यह सोच रहे हैं - क्या आप ऐसे बनेंगे? चाहे अब यहाँ बैठने वाले हो, चाहे कहाँ भी बैठकर बाप से सुन रहे हो - क्या ऐसे बनेंगे? अगर हम यह कह रहे हैं कि क्या ऐसे बनेंगे - मतलब? मतलब? बन गए हो - या बनेंगे? बनेंगे ना? जो भी बाहर सुनते हैं वो भी बनेंगे ना? इतने समय बाप के समीप रहे, और मीठे नहीं बने! बाप तो रोज कहता है ना ‘मीठे बच्चे’ - तो क्या मीठे बने? बाप आते हैं तो क्या बच्चों से कुछ लेते हैं? निस्वार्थ प्रेम है ना? तो क्या आप सभी का स्वार्थ से है - या निस्वार्थ से है?

स्वार्थ हमेशा गिरती कला में लेके जाएगा, निस्वार्थ हमेशा निर्वाणधाम में लेके जाएगा। अब ‘स्वार्थ’ मतलब गिरना, ‘निस्वार्थ’ मतलब निर्वाणधाम में जाना, उस स्टेज को प्राप्त करना। ‘जाना’ मतलब निर्वाणधाम की स्टेज को प्राप्त करना। *जहाँ भी स्वार्थ खत्म हो जाए और निस्वार्थ भावना आ जाए - तो बच्चों, समझ लेना कि आपकी दिशा सही है।* अगर दिल में लालच है, तो लालच क्या होगा? लालच क्या होगा? गिराएगा या उठाएगा? किसका? किसका लालच? जब यह शरीर भी आपका नहीं है, यह भी एक समय में खत्म हो जाएगा, तो किस चीज का लालच रखते हैं? दो पैसे के लिए अपने स्वमान तक को खत्म कर देते हैं। अपने स्वाभिमान से नीचे गिर जाते हैं। आप स्वमानधारी आत्मा हो!
देखो अपने आप को - कभी बैठे-बैठे आत्मा ने शरीर छोड़ दिया, उस समय आपकी स्थिति क्या होगी? क्या मुक्ति को पाएंगे - या जीवन मुक्ति को? दोनों को नहीं पा सकते। ना मुक्ति को, ना जीवन मुक्ति को। भटकन होगी, तड़पन होगी, भटकते रहेंगे। जिस सुख के लिए हम स्वार्थी बन जाते हैं, वो सुख कभी नहीं मिलेगा। उसको सुख का नाम भी नहीं कहेंगे।

बाप के बच्चे ‘आज्ञाकारी’! *‘आज्ञाकारी’ का मतलब क्या है? बाप जो कहे .. अगर सभी को निश्चय है कि ‘मेरा बाबा मेरे कल्याण के लिए खड़ा है; मेरा बाबा मेरा कल्याण करने के लिए आया है’। उस आत्मा को ही निश्चय होगा।* बाकी स्वार्थ में डूबने वाली आत्मा तो क्या, क्यों, कैसे, वैसे - इसी लंबी लाइन में अटकी रहेगी। फिर पीछे से यह नहीं कहना, ‘बाबा, हम तो आपसे प्यार करते थे!’ प्यार की भी परसेंटेज होती है। बाप को प्रेम तो चाहिए - पर ‘निस्वार्थ’। आज की दुनिया में कहीं पर भी चले जाओगे ना, किसी गुरु, किसी के भी पास में, सबको कहीं ना कहीं थोड़ा लालच होता है कि ‘हाँ, कुछ देंगे’। पर बाप को बच्चों से कुछ नहीं चाहिए। तो यह जो अंदर में आ चुका है - यह मेरा, यह मेरा, यह मेरा - अगर गहराई से देखोगे तो आपका क्या है आपको समझ में आएगा। आपने जिसको ‘मेरा, मेरा’ कह के पूरा जीवन दौड़ा है, एक दिन वही ‘मेरा’ आपसे बहुत दूर चला जाएगा - और फिर आपको मंदिर की याद आएगी, कि मंदिर में भगवान बैठा है, तो मेरे दुखों का निवारण करेगा। ऐसा करना ही क्यों, जो रोना पड़े। क्यों ना समय-समय पर अपने को रास्ता दिखाओ। *भटकन से छूटो, रास्ता भटक गए हैं, लाइन पर आओ। यह सभी के लिए है - ज्ञानी, अज्ञानी।* क्यों? अच्छा, अगर आज आपको, बच्चों को कुछ भी कहेंगे ना, तो कोई समझेगा नहीं, कोई उसको हँसी में उड़ाएगा, कोई मजाक बनाएगा। पर जब यह समय आएगा - जिस पे आप हँस रहे हो, मजाक कर रहे हो, जब वो चीज आपसे दूर चली जाएगी, खत्म हो जाएगी, फिर आपको यह समय याद आएगा कि बाप ने कौन सा संदेश बच्चों के लिए दिया है।

किस चीज का लालच? जो आज है कल नहीं होगा! किसका? यह निकालो अंदर से। क्योंकि, बाप को बच्चों के दिल की आवाज सुनाई देती है, मुख की भी देती है, पर दिल की भी देती है। आप बच्चे, आप कभी सोचना, जो आप के पास, लौकिक रूप में जो भी है - धन है, लौकिक वस्तु है, घर है, बच्चे हैं - क्या आपको गारंटी है कि ये अंतिम समय तक आपके साथ रहेंगे? जिसको गारंटी है वो हाथ खड़ा करे, कि मेरे बच्चे, घर, परिवार, रिश्ते, नाते - ये अंतिम समय तक मेरे साथ रहेंगे। जो गारंटी करते हैं वो हाथ उठावे। गारंटी है क्या? है? गारंटी है? जब आप कुछ चीज़ लेते हो तो भी सामने वाले से पूछते हो कितने समय की गारंटी है? आपको खुद की गारंटी नहीं है तो अब दूसरों से गारंटी लेते हो! आप अपने बच्चों की गारंटी लेते हो - क्या खुद की गारंटी है? है? नहीं ना! कि कब आत्मा शरीर से निकल जाए, उड़ जाए। आत्मा फरिश्ता बन गयी और यह शरीर यहीं रह जाए। किस लिए फंसे हैं सब? सोच के देखो, विचार तो करो, चिंतन तो करो। एक जिनके पास बहुत ज्यादा धन नहीं वो भी तो रोटी खाता ही है ना? पर जो मालामाल है रोटी वह भी खाता है। तो क्या फर्क है? मान-सम्मान का? *अच्छा, जिसके पास ज्यादा धन है उसका मान-सम्मान ज्यादा है! पर याद रखो वो मान-सम्मान कब मिट्टी में मिल जाए कोई गारंटी नहीं है। स्वमान में रहो - सोचो, बाबा मेरे साथ है।*

यह जीवन की यात्रा कैसी है? बहुत बच्चे हैं, जो कहते हैं – ‘हम बाप के समर्पित हैं, बाप के यज्ञ में भी रहते हैं, समर्पित हैं, त्याग है, त्याग’! ‘त्याग की मूरत’ कहते हैं। कौन सा त्याग? *सिर्फ पहले जो बच्चे आते थे तो सच्ची त्याग करके आते थे। पर आते-आते, रहते-रहते अवस्था तमोप्रधान बन गई। पहले अंदर से त्याग था - आज? आज सिर्फ मुख से बोलते हैं - त्याग है। सिर्फ शब्दों का त्याग है, अंदर का त्याग सब खत्म!* सोचो ‘त्याग’ किसको कहते हैं? अगर बुद्धि कहीं फँसी होगी, शरीर छूटने वाला होगा, और बुद्धि में कुछ भी याद आया - बच्चा, धन, घर, कुछ भी - तो क्या स्थिति होगी? मुक्ति को नहीं पाएंगे, जीवन-मुक्ति को भी नहीं पाएंगे। सोचो! तो अपने आप को समय दो, विचारने का समय दो, सोचने का समय दो। आप जब आए थे तो आपके साथ कुछ नहीं आया था, और आप जब जाओगे तो भी आपके साथ इस संसार की कोई वस्तु नहीं जाएगी। यह बहुत सिंपल ज्ञान है, जो आजके छोटे-छोटे मंदिर में बैठने वाले भी सुना सकते हैं। पर सुनाने तक है। पर *बाप सिर्फ सुनाने के लिए नहीं आए हैं - ऐसा बनाने के लिए आए हैं। सुना, कथा की, चले गए - ऐसे बच्चे नहीं। जब बाप के साथ यह टीम चले तो बाप को गर्व हो, अपने बच्चों पर, कि जो बनाने आए थे वो बना के लेके जा रहे हैं।*

बाप बच्चों को बनाने आए हैं, बोलने नहीं आए हैं – बनो! कभी एक दूसरे का भी सहयोग करते हो तो कैसे? ‘बाबा, आप देखना’। *स्वार्थ से लेना, मांगना, लालच रखना - कभी कल्याण नहीं हो पाएगा। अच्छा, दुनिया वाले कोई बात नहीं; पर जो हर बार मिलन मना रहे हैं, जो कहते हैं ‘हम बाप के प्रति समर्पण है, सच्चे हैं’ - उनके लिए तो विशेष है!* क्योंकि 108 की माला के मणके सिर्फ बोलने वाले नहीं - बनने वाले, त्याग मूरत, तपस्या मूरत, सच्चे सेवाधारी, दौड़नेवाले, आप समान बनाने वाले - इसलिए 108 की माला का ऊँच गायन होता है। मालाएं तो अनेकों हैं, पर वर्णन 108 की है। और 8 तो सबसे परे - अर्थात पूरी सृष्टि को संचालन करने वाले। तो उनके बच्चे कैसे होने चाहिए? सोच के देखना।

याद रखना कब छुट्टी हो जावे, किसी को पता नहीं है। आप बच्चे, बहुत ऐसे बच्चे हैं, जो दान-पुण्य बहुत करते हैं, मंदिर में लगाते हैं, खाना खिलाते हैं, सोचते हैं ‘हमने दान-पुण्य किया’। कोई बात नहीं वो किया, पर अपने लिए क्या किया? अपने लिए क्या किया? अपने मन को, आपका मन संतुष्ट हुआ, शांत हुआ? नहीं! सोचो कभी-कभी बच्चे क्या कहते हैं? ‘हमारे साथ ऐसा हुआ, ऐसा क्यों हुआ - हम तो किसी को दुख नहीं देते!’ लेकिन आप बच्चे अपनी सूक्ष्म चेकिंग करना। क्या कभी किसी को दुख नहीं देते? *किसी के लिए मन में गलत विचार रखना, यह भी दुख देना है, और किसी को बोलना, यह भी दुख देना है। यह दुख देना है, और वो दुख घूमके आपके पास ही आएगा।* किसी के प्रति अपनी धारणा को गलत बना लेना भी दुख देना है। क्या मुक्त हुए हो ऐसे दुख से? क्योंकि यह खेल है ना, यह खेल सृष्टि का खेल है। अगर किसी को थप्पड़ मारोगे तो, दो मिलेंगे। सोचना अगर किसी को थप्पड़ मारोगे एक, तो आपको मिलेंगे दो। अगर किसी को प्रेम के शब्द बोलोगे एक, तो आपको मिलेंगे दस - यह सृष्टि का नियम है। हर कोई बुद्धिवान है, उनको भी मालूम है कि यह सामने वाला आपको क्या दे रहा है और आपको क्या देना है? अभी आप बच्चे सोचना और विचार करना।

और यहाँ पर, *चारों तरफ विशेष संदेश देना, खान-पान पर - किसी भी जीव को, जंतु को मार कर खाना, यह बहुत बड़ा पाप, बहुत बड़ा पाप कर्म है। बड़ा नहीं .. बड़ा नहीं .. बहुत बड़ा! अगर ऐसा करते हैं, तो शरीर में ऐसी-ऐसी बीमारियाँ आएंगी कि आप बच्चे झेल नहीं पाओगे।* जैसे उनको खाते हैं ना, तो वह भी कैसे ना कैसे करके फिर खाना शुरू करेंगे। तो जहाँ पर भी बच्चे जाते हैं संदेश देने, खुले दिल से कहो – गलत खानपान खाना, किसी को भी मार के खाना, वो बहुत बड़ा पाप कर्म है। भले आपकी बात कोई सुने या नहीं सुने। सुनेगा तो ऐसी विनाश की ज्वाला से थोड़ा बचेगा, नहीं सुनेगा तो जाएंगे। हर चीज साफ-सुथरी होकर के मिल रही है ना? बच्चे कहते हैं – ‘हम थोड़ेही मारते हैं, हम तो सिर्फ खाते हैं। तो बाप कहेंगे - अगर आप खाओगे नहीं तो वो मरेंगे नहीं। तो यह क्लास, मैसेज सब तरफ पहुँचाना है, और हर भाषा में पहुँचना है। हर भाषा में यह मैसेज चारों तरफ जाना चाहिए।

अच्छा बच्चों, *बाप ना ज्योति है, ना बिंदु है - बाप आपका बाप है, कल्याणकारी है, आपका पिता है, आपका दोस्त है, आपका मददगार है - बस यही है! छोड़ दो ‘ज्योति’ और ‘बिंदु’ - दोनों को छोड़ दो! बाप आपका है – बस, यह है।* अगर आपके प्रेम की मात्रा जितनी है तो बाप की उससे हजार गुणा मिलेगी। आपने हिम्मत किया तो बाप हजार गुणा मदद करेगा, और हर बात में कल्याण समाया हुआ है, यह हमें बुद्धि में बिठाना है - ठीक है? ठीक है?

संकल्प नहीं चलाना – ‘बाबा, हमने मेहनत तो बहुत की थी, पर बच्चे कम आए’। नहीं! इसमें कितना बड़ा कल्याण है यह बाप जानते हैं - आप नहीं।
अच्छा, फिर मिलेंगे ..

यह खुशी नहीं जानी चाहिए - शरीर जाए। सोचो शरीर भी खुशी से छूटे, तो फरिश्ते के चेहरे भी हँसते हुए दिखाई देंगे। जिनको साक्षात्कार होगा उनको भी आपके चेहरे हँसते हुए दिखाई देंगे। *अगर खुश है, तो अगर किसी को आपसे साक्षात्कार हुआ तो उसको कितनी खुशी मिलेगी!* अगर दुखी रहेंगे, हर घड़ी कुछ ना कुछ मांगते रहेंगे, मांगते रहेंगे, तो आपके भक्त भी आपसे मांगते रहेंगे, मांगते रहेंगे। तो दाता के बच्चे हैं ना, तो बाप को पता है आपको क्या देना है, इसलिए बेफिक्र हो जाओ।

अच्छा बच्चों - ऐसे अति लाडले और सिकीलधे बच्चों को बाप-दादा का मीठा याद-प्यार!

[बाबा, आपको नमस्ते] आपको नमस्ते! (किसी ने शंख बजाया) ..
अच्छा है यह शंख बजाया है - दूसरे शंख की भी तैयारी हो चुकी है! आज से कुछ भी मेरा नहीं, सबकुछ बाप का है - ठीक है? यह तन भी बाबा का है, मन भी बाबा का है, और धन भी उनका है। बोलने से नहीं चाहिए, संकल्प में चाहिए; वाणी में भी चाहिए, पर जब दृढ़ संकल्प होगा तब निकलेगा। किसका है? [बाबा का] किसका है? [बाबा का है - [सर्वशक्तिवान बाबा का है] तो बच्चे भी सर्वशक्तिवान के बच्चे मास्टर सर्वशक्तिवान हुए ना!

अच्छा बच्चों, जिस यात्रा पर निकले हो, हारना नहीं है, थकना नहीं है। थक के बैठना नहीं है, पूरा करके दिखाना है। *बाप साथ है - यह बाप का वायदा है। बाप आपका साथ कभी नहीं छोड़ेगा। साथ है, साथ रहेगा, और साथ आपको लेके चलेगा - यह बाप का हर उस बच्चे से वायदा है, जिसने अपने दिल से समर्पण किया है।* और अभी जो बच्चे दुविधा में हैं – ‘है या नहीं, है या नहीं’ - तो उन बच्चों को बाप भी विशेष संदेश दे रहे हैं - या तो है, या तो नहीं है - इसमें अपना समय वेस्ट नहीं करें, नहीं तो समय बहुत पावरफुल है। है ना? तो जम जाए, कदम उठना नहीं चाहिए। फिर माया कितने भी तूफान-आंधी लेके आए। कुछ भी नहीं, ‘बस, जो मेरा बाबा कहे, मैं समर्पण हूँ’। ठीक है? पक्का वायदा? [पक्का वायदा, बाबा]

इस यात्रा में आपको दुखी भी मिलेंगे, रोने वाले भी मिलेंगे, तकलीफ वाले भी मिलेंगे, सब मिलेंगे। पर उनको संभालने की जिम्मेवारी बाप लेगा। *बस, आपका कर्तव्य है हर एक आत्मा के प्रति शुभभावना की वाइब्रेशन देना, कि ‘बाबा, इस आत्मा को भी ठीक रखो, उसको भी ठीक रखो’ - बस इतना।* बाकी बाप की नाँव में बैठ गए हो, अगर किसी को बचाने के लिए कूदोगे तो सच में डूब जाओगे। बचाना चाहिए - पर जब बाप साथ में बैठा है, बाप आया है, तो नाँव उस तरफ भी लेगा ना? लेगा? तो बस! आपकी शुभभावना नहीं जानी चाहिए।

अच्छा .. फिर मिलेंगे ..

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Zorba the Greek
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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Versions of Shiv Baba
01.02.2024 - (Erode, Tamil Nadu)

"Sweet children .. the Father has not come just to relate to you – He has come to make you like that (a Deity). You listened, you related to others, then you went away – you should not be like such children. When this team moves along with the Father, then the Father should be proud of His children, that He is taking them along with Him after making them what He had come to make them (Deities)."

Link: https://www.youtube.com/watch?v=9SxLOhjIAVk

OK .. Today, BapDada has come to Meet His extremely sweet and beloved children. I will only call you sweet children - why? Because the Father looks at every child with His sweet vision. So, for the Father, you are ‘sweet children’, are you not? What do you children .. or the Father say? In what form do you Remember the Father? What .. in which form? In the form of being the embodiment of Love. And in what form? What do you call Him in His incorporeal form? [a POINT of Light] You call Him ‘a POINT of Light’, do you not? Now, you should either call Him a ‘Light’, or call Him a ‘POINT’- because a POINT is just a point, but what is the form of the Light? How is it? So, this has become double, this has become two forms, is it not? So, what will the intellect focus on? Will it focus on the Light, or on the POINT? What is Light like? How is it like? What happens when you light a flame? .. and how is the POINT? So, what is the Father? Is He both? How will you Remember in this way? What do children say if they sit in a soul-conscious stage? We are Remembering the ‘POINT of Light’, we are Remembering the Light.
Are you Remembering the Light, or are you Remembering the POINT? Whom are you Remembering? Just think – ‘neither am I Remembering the Light, nor the POINT’. Just as the Father sees His children in the form of ‘Angels’, and sometimes He sees you in the form of ‘Points’.. just as the forms of the children change - sometimes you consider yourself to be a ‘body’, sometimes you consider yourself to be a ‘soul’, and sometimes you consider yourself to be an ‘Angel’. You consider yourself to be in different forms and Remember the Father, do you not? When you consider yourself to be a ‘body’, then the Father comes into a body! When you consider yourself to be an ‘Angel’, then the Father comes in the Subtle Region! When you consider yourself to be a ‘soul’, then the Father becomes a POINT! Whatever you considered yourself to be, the Father also appeared like that to you. *But the Father thinks that the children should now become complete - then what will you become? What form will you adopt? Now, the Father thinks that the children should become extremely sweet and beloved – will you become this?*

*Who is called ‘sweet’? The one whose speech is also sweet, one who exudes a fountain of Love from within, one who is immersed in the Father's Love, one who has no putridity within the mind, one who has no conflict with anyone, one who has no selfishness within.* The Father wants you children to be like this – will you become like this? Whether you are the ones who are sitting here now, or wherever you may be sitting and listening to the Father - will you become like this? If I am asking whether you will become like this - what does this mean? What does it mean? Have you already become - or have you yet to become? You will become, will you not? Whoever is listening outside, you will also become this, will you not? You stayed close to the Father for so long, and you did not become sweet! The Father says every day, ‘sweet children’ – so, have you become sweet? When the Father comes, does He take anything from the children? He has selfless Love, does He not? So, do all of you have Love out of selfishness – or selflessness?

Selfishness will always take you towards the stage of degradation; selflessness will always take you to the Supreme Abode. Now, ‘selfishness’ means degradation, and ‘selflessness’ means to go to the Supreme Abode, to attain that stage (of soul-consciousness). ‘To go’ means to attain the stage of the Supreme Abode. *Wherever selfishness finishes, and the feeling of being selfless emerges - then children, understand that your direction is right.* If there is greed within your heart, then what will greed do? What will greed do? Will it degrade you, or will it elevate you? Which? Which greed? When even this body is not yours, even this will also end in time to come, then what are you greedy for? They even destroy their self-respect for two paise. They come down from their stage of self-respect. You are souls who have self-respect!
Look at your own self - if the soul ever left the body while sitting, what would your condition be at that time? Will you achieve Liberation, or Salvation? You cannot achieve any of them. Neither Liberation, nor Liberation-in-Life (Salvation). There will be wandering, there will be agony, you will keep wandering. We will never get the happiness for which we become selfish. That cannot even be called ‘happiness’.

The Father's children are ‘obedient’! *What does being ‘obedient’ mean? Whatever the Father says .. if everyone has the faith that ‘my Baba is standing for my welfare; My Baba has come for my benefit’. Only such a soul will have faith.* Otherwise, the souls drowning in selfishness will remain stuck in this long line of - what, why, how, (this way), that way. Then, do not say after that, ‘Baba, we had Love for You!’ Love also has a percentage. The Father does need Love (of His children) – but ‘selfless’ Love. In today's world, wherever you go - to any guru, or to anyone else - everyone has a little greed somewhere or the other, that ‘yes, they will give something’. But the Father does not require anything from the children. So, that which has emerged within you – ‘this is mine, this is mine, this is mine’ - if you look within you deeply, you will understand what is really yours.
The one whom you have spent your whole life saying ‘mine, mine’, one day that same ‘mine’ will go far away from you - and then you will remember the temple, that ‘God is sitting in the temple, so He will relieve me from my sorrows’. Why do you have to do this at all - that you have to cry? Why not show yourself the correct path from time to time. *Free yourself from wandering around, you have lost your way, come back in line. This is for everyone – those who are in this Knowledge, and those who are still not in this Knowledge.* Why? Well, if anything is told to you or to the children today, then no one will understand - some will laugh at it, and some will make fun of it. But when the time will come – when that aspect about which you are laughing, and making a joke about – when that aspect will go far away from you, when it will end, then you will remember this time as to what message the Father had given for the children.

Greed for what? What is there today will not be there tomorrow! For what? Take this out from within you – because the Father can hear the sound of the hearts of the children; He also hears the sound that emerges from your mouths, but He can also hear the sound from your hearts. You children should sometimes think, whatever you have in corporeal form – you have money, you have material things, you have a house, you have children - do you have a guarantee that all these will stay with you till the end? The one who has this guarantee should raise his/her hand - that my children, home, family, relationships, relatives – all these will remain with me till the last moment. Those who have this guarantee should raise their hands. Is there a guarantee? Is there? Do you have this guarantee? Even when you buy something, then also you ask the person in front of you for how long the product has a guarantee?
When you do not have a guarantee of your own self, then now you are taking guarantee from others. You take the guarantee for your children – but do you have a guarantee for your own self? Do you? You do not! You do not know when the soul will leave the body and fly away! When the soul becomes an Angel then this body remains here itself. Why is everyone trapped? Think about this, just ponder over this, carry out churning about this. Even those who do not have much money do eat bread, do they not? But the rich also eat bread. So, what is the difference? Of honour and respect? *Well, the one who has more money has more respect and honour! But remember, there is no guarantee at all as to when that honour and respect will turn into dust. So, remain in your self-respect – think that Baba is with me.*

How is this journey of life? There are many children who say – ‘we are surrendered to the Father, we also stay in the Father's Yagya, we are fully dedicated, we have renounced completely, we have renunciation’! They say that they are ‘an image of renunciation’. What renunciation? *Only the children who came earlier used to come with TRUE renunciation. But as they continued to arrive and live here, their stage gradually became degraded (‘tamopradhaan’). Earlier there was TRUE renunciation from within – and today? Today they only speak through the mouth – that they have renunciation. There is only renunciation through words, while the TRUE renunciation from within has all vanished!* Just think as to what is called ‘renunciation’? If your intellect is trapped somewhere, and you are about to leave the body, and if your intellect remembers anything at that time - children, wealth, house, anything at all - then what will be the stage (of renunciation)? Neither will you get Liberation, nor will you even get Liberation-in-Life (Fruition).
You have to think! So, give yourself time, give yourself time to ponder, give yourself time to think. When you came here (from the Soul World), nothing came along with you; and when you leave here, nothing of this world will go along with you. This is a very simple knowledge, which even those of today, who sit in small temples, can readily relate to others. But that is only till the time of relating. But *the Father has not come just to relate to you – He has come to make you like that (a Deity). You listened, you related to others, then you went away – you should not be like such children. When this team moves along with the Father, then the Father should be proud of His children, that He is taking them along with Him after making them what He had come to make them (Deities).*

The Father has come to make the children (into Deities), and not just to say that you should become (Deities)! Whenever you ever cooperate with each other, then how do you do that? ‘Baba, you take care’. *Taking anything out of selfishness, asking for something, being greedy – all these will never lead to any benefit. Well, never mind about the people of the outer world; but for those who are celebrating a Meeting every time (with BapDada), who say, ‘we are surrendered to the Father, we are true’ - this is specially for them!* Because the beads of the Rosary of 108 are not the ones who just speak - they are the ones who become, who are the embodiment of renunciation, who are the embodiment of ‘tapasya’ (volcanic meditation), who are the TRUE servers, the ones who run (for Spiritual Service), the ones who make others like themselves - that is why the praise of the Rosary of 108 is very elevated. There are innumerable rosaries, but the praise is of 108. And these 8 are the ones who are detached from everything (and everyone) – that is, they are the ones who control the entire world. So, what should their children be like? Think, and consider this.

Remember - no one knows when they will have to leave (the body). You children - there are many such children who do a lot of charity and who give donations, who donate to the temples, who feed others - they think ‘we have done charity and given donations’. It is good that you have done that, but what have you done for your own self? What did you do for your own self? Have you done anything for your mind, Has your mind really become content and peaceful? No! Just think what the children say sometimes! ‘This happened to us like this, why did this happen – we do not cause sorrow to anyone!’ But you children should carry out your subtle checking. Do you (really) not ever cause sorrow to anyone? *To have wrong (negative) thoughts about someone within your mind - this is also causing sorrow; and to tell someone (about any negativity of someone else) - this is also causing sorrow. All these also cause sorrow, and that sorrow will turn around and come back only to you.* Giving a wrong impression of your own inculcation to anyone - this is also causing sorrow. Have you become liberated from such sorrow? Because this is a Play, this Play is a Play of this world. If you slap someone, then you will get two (in return). Just think - if you slap someone once, then you will get two (slaps, in return). If you speak one word of Love to anyone, then you will get ten (words of Love, in return) - this is the law of creation. Everyone is intelligent, they also know what the other person who is in front of them is giving them, and what they have to give (in return)! Now you children should think and ponder (about these aspects).

And here, *you must give a special message all around, on eating and drinking habits - killing any animal or creature and eating the same, this is also a great sin, this is a great sinful act. Not just great .. not just great .. but very great! If you do this, then such diseases will occur within your body that you children will not be able to bear them.* Just as you eat them, then somehow or the other they too will start eating you (in the end). So, wherever the children go to give the message, tell them with an open heart (without any hesitation) – ingesting wrong food and drink, killing any creature and eating the same, is a very great sin. Whether someone listens to you or not - if they listen then they will be saved from the flames of such destruction to some extent, if they do not listen then they will perish. You are getting everything clean and clear, do you not? Children say – ‘we do not kill, we just eat’. So. the Father will say - if you do not eat, then they will not die (they will not be killed). So, this class, this message has to be spread everywhere and in every language. This message should be spread in every language everywhere.

OK children, *the Father is neither a Light, nor a POINT – the Father is your Father, your Benefactor, He is your (Heavenly God) Father, He is your Friend, He is your Helper – He is just this! Just leave ‘Light’ and ‘POINT’ alone – let go of both of them! The Father belongs to you – He is just this.* Whatever maybe the quantum of your Love, you will receive a thousand times more (Love) than that from the Father. If you have courage, the Father will help you a thousand times more - and there is benefit in every aspect, you have to imbibe this within your intellect - OK? OK?

Do not let such thoughts emerge – ‘Baba, we worked very hard, but less children came (for the Meeting)’. No! The Father knows how much benefit there is in this – you do not know.
OK, we will Meet again ..

This Happiness should not go away - the body may go. Think that you should leave your body also with Happiness, then the faces of the Angels will also be seen to be smiling. Those who will receive visions will also see your faces to be smiling. *If you are happy, then if someone receives a vision through you, then how much happiness he/she will receive!* If you remain unhappy, you will keep asking for something or the other every moment, you will keep on asking - then your devotees will also keep asking from you, they will keep on asking. So, you are the children of the Bestower, so the Father knows what He has to give you, so be free from any concern.

OK children – BapDada's Sweet Remembrance and Love to such extremely beloved and long-lost-and-now-found children!

[Baba, Salutations (Namaste) to you] Salutations to you! (Someone blew the conch) ..
It is good that this conch has been blown - preparations have been made for the other Conch (of the Father’s revelation) as well! From today onwards nothing is ‘mine’, everything belongs to the Father - OK? This body also belongs to Baba, your mind also belongs to Baba, and the wealth also belongs to Him. This is not needed just through speech, this is needed in your thoughts; this is needed in speech also, but it will manifest only when you have a firm, determined thought. Whose are all these? [Baba’s] Whose are they [Baba's – they belong to Almighty Baba] So, the children of the Almighty are also Master Almighty - are you not?

Well children, whatever journey you have embarked on, do not lose out, do not get tired. Do not sit down by getting tired - you have to complete it and show. *The Father is with you – this is the Father's promise. The Father will never leave you. He is with you, He will be with you, and He will take you along with Him and go – this is the Father's promise to every such child who has surrendered from his/her heart.* And now, the children who are in a dilemma – ‘is this the One, or is He not; is this the One, or is He not’ - the Father is also giving a special message to such children - either this is Him, or this is not Him - do not waste your time in this, otherwise time is very powerful. Is it not? So, remain firm, your step should not falter. Then, no matter how many tempests and storms Maya may bring – they are nothing, ‘that’s it, whatever my Baba says, I am surrendered to Him’. OK? Is your promise firm? [Firm promise, Baba]

In this journey you will meet people who are in sorrow, you will meet people who are crying, you will meet people with problems, you will meet all of them. But the Father will take the responsibility of taking care of them. *That’s it - your function is to give vibrations of good wishes for every soul, that ‘Baba, keep this soul in good health, keep that one also in good health’ - that's all.* Other than that - you have sat inside the Father's Boat - if you jump to save someone, then you will truly drown. Others should be saved - but when the Father is sitting with you, when the Father has come, then He will take the Boat towards that side also, will He not? Will He take it? So, that's it! Your good wishes should not diminish.

OK .. we will Meet again ..

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
11.02.2024 - अगरतला (त्रिपुरा)

"मीठे बच्चे .. चलते-चलते अपने जीवन की यात्रा जो बिगड़ी हुई थी वो सुधार सकते हैं - कर सकते हैं। चलने का समय है। नहीं तो कहीं भी किसी भी कोने में, या सात ताले के अंदर भी छुप जाओगे ना, कर्म की बॉल पीछा नहीं छोड़ेगी। कर्म की बॉल हर ताले को तोड़ेगी ही, और तोड़कर आपके मस्तिष्क पे जोर से लगेगी - यह कर्म की बॉल है - कोई नहीं बच सकता, चाहे फिर वो कोई भी हो। कोई भी माना कोई भी!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=EMoGw2uP3KY

अच्छा .. जैसे आप बच्चे बाप के सन्मुख इस स्थान पर बैठे हैं - आपकी छोटीसी आवाज भी गूंजने लगती है ना, एक दो को सुनाई देती है। ऐसे ही यह संसार भी एक गोले मुआफिक है, जिसमें आप बच्चों का एक-एक संकल्प गूंजता है, और एक-एक संकल्प गूंज के पूरे संसार में टकराता है। जैसे आप कहीं पर भी खाली स्थान में आवाज़ दोगे, तो उस आवाज की एक के बदले 10 आवाज आपके सामने आएगी। गूंजकर आपके सामने आएगी। ऐसा क्यों होता है? प्रैक्टिकल देख रहे हो ना? थोड़ा भी आवाज करते हैं, तो दीवारों से टकराकर वो कई आवाज बनके आपके सन्मुख आएगी। *ऐसे यह संसार भी गोल है। बच्चों के कर्म, या संकल्प, बोल - आप जो भी अंदर से निकालेंगे, इस सृष्टि के दीवारों पर टकराकर आपके पास में आएगी। आप एक आवाज निकालेंगे पर लौटके 10 आएगी - यह प्रकृति का नियम है, सृष्टि का नियम है।* आपको कुछ समझ में आ रहा है? किन को समझ में आ रहा है? जिनको समझ में आ रहा है, वो एक हाथ की ताली दिखाए। समझ में आ रहा है ना - बाप क्या कहना चाहते हैं? एक चारों तरफ बिल्कुल खाली है, आप जोर से आवाज देंगे, तो दीवारों से टकराकर आपके पास वापिस आएगी। *ऐसे यह संसार भी गोल है - आपके मन, वचन, कर्म, वाणी, सब किसी भी भावना से निकले, वो टकराकर आपके पास में आएगा ही आएगा।*

*‘कर्म’- अगर कर्म श्रेष्ठ है, तो सृष्टि की दीवारों से टकराकर उसका पुण्य कई गुणा बनकर आएगा। और कर्म अच्छे नहीं हैं, या भावनाएं अच्छी नहीं हैं - तो वो भी इस सृष्टि के गोले पर टकराएगा, और फुल फोर्स से आपके ऊपर आएगा।* यह समझ सबको है ना? है? होगी, तो समझेंगे; और नहीं होगी, तो फिर दूसरों पर ब्लेम करते रहेंगे। अगर आप किसी को बद्दुआ भी देंगे ना, तो वो भी टकराकर आप ही के ऊपर आएगी; और किसी को दुआ भी देंगे, तो वो भी 10 गुणा, हजार गुणा होकर आपके पास आएगी - यह कर्म का सिद्धांत है। मेजोरिटी सबको ज्ञान है – ‘जो करोगे वो भरोगे, जो सोचोगे वो बनोगे, जैसा बीज बोओगे ऐसा फल खाओगे’। आज किसी से भी पूछ लो हर कोई यह समझाएगा - पर उसको प्रैक्टिकल जीवन में देखते नहीं है, करते भी नहीं है। अपना विचार करें, अपना विचार सागर मंथन करें। *अगर आप अच्छा कर रहे हैं, फिर भी कुछ ना कुछ ऐसी घटनाएं आपके साथ हो रही हैं, तो भी यह समझना कि कोई ना कोई पुराना हिसाब-किताब मेरा चुक्तु हो गया है।* कहीं ना कहीं मैंने भी अपने संकल्पों से इस सृष्टि के गोले पर किसी न किसी जन्म में कोई बद्दुआ भेजी होगी, तो वो घूम करके मेरे पास आई और चुक्तु हो गया।

*पर वर्तमान में अगर कुछ भी नई चीज बनाओगे - अब सृष्टि के घूमने की स्पीड बहुत तेजी से हो गई है, अब तुरंत का तुरंत प्राप्त होगा। क्यों होगा? क्योंकि लास्ट समय है, लास्ट जन्म है, अब अगला जन्म और पिछला जन्म सब भूल जाएंगे - लास्ट समय है।* हर किसी को पता है कि मैं अंदर से क्या हूँ! यहाँ बैठे हैं या कहीं पर भी बैठे हैं। हर किसी को मालूम है कि मैं अंदर से क्या हूँ! जो हो उसके परिणाम के लिए भी सब तैयार रहे। और अगर अभी से ही मैं परिवर्तन करूँ, बदलूँ, तो मेरी शुभ भावना इस संसार के ग्लोब पर टकराए, दस गुणा,1000 गुणा होकर पुण्य बनकर मेरे पास मेरे खाते में जमा होगी। अगर आज से ही परिवर्तन की सीढ़ी पकड़ ले तो!

आप अगर कभी प्रैक्टिकल में देखना - एक बॉल को अगर दीवार पर मारोगे तो क्या होगा? जितनी फोर्स से आप मारोगे उससे कई गुणा फोर्स से वो दीवार मारेगी, और आपको जोर से आके लगेगी। होगा ना? अब कुछ भी चीज देखो, यह कर्मों की बॉल है। ‘कर्म की बॉल’! आप जिस तरीके से करोगे वो घूम के आएगी ही आएगी। समय है, चाहे पल या दो पल। कहते हैं ना चलते-चलते भी अगर किसी ने श्रेष्ठ कर्म का बीज बो दिया ना, तो उसके किसी जन्म में वो फल की प्राप्ति जरूर होगी। अब यह समय चलते-चलते हैं। चलते-चलते अपने जीवन की यात्रा जो बिगड़ी हुई थी वो सुधार सकते हैं - कर सकते हैं। चलने का समय है। नहीं तो कहीं भी किसी भी कोने में, या सात ताले के अंदर भी छुप जाओगे ना, कर्म की बॉल पीछा नहीं छोड़ेगी। *कर्म की बॉल हर ताले को तोड़ेगी ही, और तोड़कर आपके मस्तिष्क पे जोर से लगेगी - यह कर्म की बॉल है - कोई नहीं बच सकता, चाहे फिर वो कोई भी हो। कोई भी, माना कोई भी!*

*भले दुनिया की कोई पुस्तक पढ़ो या ना पढ़ो, पर कर्म की पुस्तक अच्छे से पढ़नी चाहिए, क्योंकि इस लौकिक दुनिया की पुस्तक भी, कर्म की पुस्तक पर आधारित है।* यह कर्म का सृष्टि का खेल है। अगर आप कहे – ‘नहीं, भगवान हमें बचा लेगा’ - तो बचा रहा है! हर किसी को संदेश देने आ रहा है, हर बार मदद करने के लिए बच्चों के साथ में खड़े हो रहे हैं। बाप अपना फर्ज निभा रहे हैं, क्योंकि बाप तो कभी उलाहना नहीं देंगे ना। या कभी उलाहना लेंगे भी नहीं - कि आपने सुना नहीं। बाप तो सबको मैसेज पहुँचा रहे हैं। कोई भी यह नहीं कह सकता कि – ‘आप आए क्यों नहीं? भगवान, हमने बुलाया - तो आए क्यों नहीं?’

कमाल की बात है ना? भक्ति मार्ग की कहानी है कि जब राम संसार का भ्रमण कर रहे थे, तो उसके साथ में मुट्ठी भर बच्चे थे, बंदर कहो, मुट्ठी भर। पर उन मुट्ठी भर बच्चों ने पूरे संसार को परिवर्तन कर दिया! पर वो मुट्ठी भर कौन थे - मालूम है? कौन थे वो मुट्ठी भर? आप कहेंगे ‘हम थे’ - बहुत अच्छी बात है। *पर मुट्ठी भर बच्चों की निशानी बताते हैं – राम की एक आवाज पर - ‘जी’! एक आवाज पर जोरसे छलांग मारी, एक आवाज पर दृढ़ रूपी पंजा नीचे दबा लिया, एक ही आवाज आज्ञाकारी, वफादार, फरमानबरदार।* एक ही आवाज - दूसरी आवाज नहीं। यहाँ तो बाबा को बहुत आवाज देनी पड़ती है। अब जो एक आवाज वाले हैं, उनको ‘महावीर’ भी कहेंगे, ‘अंगद’ भी कहेंगे। जो एक आवाज पर पाँव, निश्चय रूपी पाँव को जमा ले। बार-बार कहना पड़े, बार-बार कहना पड़े वो भी बच्चे हैं, पर वो कौन से बच्चे हैं? सोचना, विचार करना - चाहे बच्चे विदेश में बैठकर सुन रहे हो, या देश में बैठकर सुन रहे हो। जब आप बाप के बने, तो प्रेम तो बाबा से ही था ना? ‘मेरा बाबा, प्यारा बाबा!’ इतने वायदे कि आप कहीं पर जाओगे तो हम पहचान लेंगे। ऐसे-ऐसे वायदे बच्चों ने बाप से किए हैं। ऐसे गुप्त वायदे भी किये हैं। *कमाल की बात यह है - जब सामने आए तो - सब बदल गया!* सामने आए तो बच्चे कहते हैं – ‘दीदी जाएगी, दादी जाएगी तब हम आएंगे। यह क्या है? यह क्या है? अगर ऐसा है, तो मुक्ति और जीवन मुक्ति दीदी और दादी देगी। कौन देगी?

*अगर ऐसा सोचते हैं कि बाबा ही मुक्ति और जीवन-मुक्ति के ज्ञाता है, और दाता है, तो कहीं पर भी नहीं अटक सकते - ना किसी व्यक्ति में, ना किसी वस्तु में, ना किसी पद पोजीशन पर, और ना किसी स्टेज पर, और स्थान पर!* अगर स्थान पर भी अटक गए तो कहेंगे एक ही स्थान पर अटक गए। उनको भी समर्पण बुद्धि नहीं कहेंगे। ‘समर्पण’ का अर्थ है सिर्फ ‘एक’ के लिए समर्पण होना। और वो ‘एक’ स्थान बदले, या शरीर बदले - मन नहीं बदलना चाहिए; वो ‘एक’ चाहे स्थान बदले, या शरीर चेंज करें। अगर बच्चों का मन बदला, तो मतलब आप प्यार नहीं करते हैं।

जैसे कहते हैं ना – ‘राम ने अयोध्या छोड़ा’ - तो कौन से वस्त्र धारण किए? चेंज किया ना? सारा राजाई पोषक उतार दिया, ताज उतार दिया, अच्छे गहने उतार दिए, सब! पर चारों तरफ संसार में ब्रह्मण कर लिया - *किसीने पहचाना कि यह राम है, और किसी ने पहचानते हुए भी नहीं पहचाना। और किसी ने जानबूझके नहीं पहचाना! और किसी ने पहचान लिया - पर ‘नहीं, हमारे साथ में जो है उनके साथ आएंगे’। इसलिए यह संदेश दे रहे हैं - समय कम है। यह तो घड़ी-घड़ी सुना ही होगा - समय कम है; पर अभी भी नहीं तो फिर कभी भी नहीं!*

एक ओर कर्मों की पुस्तक, कर्म की बॉल। जो बच्चे कहते हैं ना ‘हमें दीदी रोकती है या दादी रोकती है’, यह भी कर्म की बॉल है। *यहाँ नहीं तो ऊपर जाके सबको देखना पड़ेगा, और हिसाब देना भी पड़ेगा, अब चाहे आप ज्ञानी हो, चाहे अज्ञानी हो। अगर आपको कर्म की समझ है, कर्म की पुस्तक की समझ है, तो फिर भी हम ऐसे कर्म करें, तो उसका हिसाब-किताब भी बनेगा। या तो चुक्तु हो रहा है, या तो बन रहा है। पर वर्तमान में कहेंगे - चुक्तु हो रहा है। अगर अभी बनाएंगे तो फिर वो कहाँ देंगे?*

‘ड्रामा कल्याणकारी’ तो सभी कहते हैं, सभी बच्चे ‘ड्रामा कल्याणकारी’ कहते हैं, पर ड्रामा कैसे? अभी आगे आपके सामने कुछ रखा है ना, अब उसको उठाना नहीं है। आपने उठाया तो क्या कहेंगे? ड्रामा में तो उठाया। पर इतना तो ज्ञान है ना कि उठाना है या नहीं उठाना है? अंतर आत्मा आवाज देती है या नहीं देती है? किसी का बुरा करना है या नहीं करना है - इतनी तो समझ सब में है ना? किसी के प्रति गलत सोच रखना - यह भी मन की अपवित्रता है। *आप कितने भी नहा लो, कितने भी धो लो, कितना भी श्रृंगार कर लो, पर मन पवित्र नहीं है, मन खराब है, तो पूरा जीवन खराब है।*

संकल्पों की बदबू एक ऐसी बदबू है, जो आपके घर और मन सबको बदल देती है। अब आपके संकल्प अच्छे हैं तो आपका घर महकने लगेगा। आपके घर में सुख और शांति की खुशबू फैलेगी। *अगर आपके संकल्प शुभ भावना के हैं, तो घर के साथ संसार महकने लगेगा, सृष्टि महकने लगेगी, आपके रिश्तों में खुशबू आएगी, आपके मन की खुशबू चारों तरफ फैलेगी।* अगर संकल्पों में स्मेल है, संकल्पों में दुर्गंध है, तो खुद भी दुर्गंध हो जाएंगे, घर भी दुर्गंध होगा, और संसार भी। यह नहीं कहना कि ‘वो ऐसा कर रहा है, तो मैं ऐसे कर रही हूँ’। तो आप तो फिर संसार को खराब करने में .. वो एक कर रहा था, और आप मिल गए तो दो हो गए - अब दो मिलकर के खराब कर रहे हैं। *आपके संकल्पों की भाषा यह पूरी प्रकृति सुनती है, आपके संकल्पों की खुशबू यह पूरी प्रकृति लेती है। चाहे वो दुर्गंध वाली हो, चाहे वो खुशबू हो।*

एक बगीचे में जाओगे तो खुशबू आएगी। एक गंदी जगह जाओगे तो दुर्गंध आएगी। आपका मन रूपी फूल में जितनी शुभ भावना होगी उतना ही खुशबू आएगी सबको, और कचरा होगा तो दुर्गंध आएगी। *अपने जीवन को कमल फूल समान बनाना है - तो अपनी शुभ भावना को ऊँचा रखना है, श्रेष्ठ रखना है, महान रखना है।* आप महान हो – बस, दिशा को परिवर्तन करना है। आप में शक्ति है, पर अच्छी दिशा पर लगानी है। आप अच्छा कर सकते हो - बस लाइन बदलना है।
किसी व्यक्ति, वास्तु, वैभव में नहीं फँसना है। कल को फिर सब आपको उलाहना देंगे। अगर आपने संकल्पों की खुशबू नहीं फैलाई तो आपको दूसरों से भी संकल्पों की खुशबू, शुभ संकल्पों की खुशबू नहीं आएगी। *अगर अपने जीवन को खुशबूदार बनाना है, तो पहले अपने मन में खुशबू डालनी है। सबके प्रति शुभ भावना की खुशबू।*

आजकल अगर ऊँची मंजिल पे जाना भी चाहते हैं तो एक दूसरे का बुरा करके जाना - यह तो पाप कर्म है ना? आप अच्छा करके जाओ - थोड़ी मेहनत लगेगी। शॉर्टकट नहीं मारो, शॉर्टकट कभी फिर बहुत लंबा लॉन्गकट हो जाएगा। *बाप की याद में किया हुआ हर कर्म पुण्य कर्म ही कहलाएगा। क्योंकि जिसकी बुद्धि में बाप की याद होगी तो बाप उससे पाप कर्म करने नहीं देगा।* ठीक है?
कर्म अच्छे, श्रेष्ठ, महान। सभी कहेंगे कि ये ऐसे कौनसे कर्म हैं जो करने चाहिए? सभी को पता है कर्म फिलॉसॉफी क्या है? ज्ञानी होंगे तो - अगर ज्ञानी बच्चों में भी यह हाल है, एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या, घृणा, नफरत, नुकसान करने की भावना अगर है, तो यह सबसे बड़ा पाप कर्म है।

मन की पवित्रता क्या है? अगर हिंसा करते हैं, चाहे वो कोई भी हिंसा हो - जीव को काटने की हिंसा है, क्रोध की हिंसा, काम की, जो भी हिंसा करते हैं, वो पाप कर्म है। लेकिन देवताएं तो डबल अहिंसक होते हैं ना? तो अपनी चेकिंग सभी करें - नहीं तो कर्म बॉल किसीको नहीं छोड़ेगा। कर्म का सिद्धांत है, जैसे परछाई आपका पीछा नहीं छोड़ती ना - नहीं छोड़ती। परछाई पीछा छोड़ती है क्या? परछाई पीछा छोड़ती है क्या? आप लाइट में खड़े हो जाओ या धूप में, परछाई पीछा छोड़ती है क्या? यह कर्म परछाई है, यह एग्जांपल धरती पर है - *जैसे आपकी परछाई आपका पीछा नहीं छोड़ती, ऐसे कर्म रूपी परछाई हमारा कभी पीछा नहीं छोड़ेगी।* यह जीवन की यात्रा है, अंतिम का समय है, जिन्होंने किया तो अच्छा है, नहीं किया तो कर्म है।

कहीं पर भी बच्चे बैठकर सुन रहे हो ना, आज बच्चों को बाप का संदेश है – कहीं पर भी नहीं फँसना। *प्यार है तो हिम्मत का कदम उठाओ, दूसरे कदम के नीचे बाप अपना हाथ रखेगा, और ऊँची छलांग से आपको ऊपर उठाएगा।* बस एक ही कदम आपको रखना है, दूसरे को तो बाप लेके आएगा। *अगर किसी में एक कदम रखने की भी ताकत है, तो दूसरे कदम की परवाह ना करे, बेफिक्र हो जाए। बेफिक्र बादशाह बन जाए।* सोचना नहीं है – ‘क्या होगा? कैसे होगा?’ ब्रह्मा बाप गए, उन्होंने नहीं सोचा कि ‘बाबा, अब कैसे होगा? क्या होगा?’ तो आप बच्चे किस लिए? ब्रह्मा बाप से बड़ी जिम्मेवारी तो नहीं है ना? नहीं है ना? सृष्टि के रचयिता - उन्होंने नहीं सोचा, कमाल की बात है! बच्चे सोचते हैं कि ‘कैसे होगा? क्या होगा?’ बाप बैठा है ना, जिम्मेवार है ना? बाप जिम्मेवार है! ठीक है?

ऐसे कर्म की पुस्तक पढ़ने वाले समझदार स्टूडेंट को, समझदार बच्चों को, ऐसे कर्म के खेल को समझने वाले खिलाड़ी बच्चों को, नंबरवन खिलाड़ी बच्चों को, बाप-दादा का याद-प्यार।
और स्वर्णिम युग की बधाई! स्वर्णिम युग की झोली भरके बधाई हो। क्योंकि अब तो फिर अगले कल्प में मिलेंगे ना? अभी समय जाने का आ गया है। थोड़ा सा कर्तव्य बाकी है, करके - फिर अपनी यात्रा पर ..। इसलिए यह समय नजदीक है।

कई बच्चे सोचते हैं, ‘हमें पता है कि बाबा वहाँ आते हैं, पर हम फिर भी नहीं जाएंगे क्योंकि हम यहीं पुरुषार्थ करेंगे, वहाँ जाके कौनसा तीर मारेंगे?’ अच्छी बात है! आप जहाँ पर भी रहेंगे, आपके पुरुषार्थ का फल ऑटोमेटेकली सिस्टम है, आपके पास पहुँच ही जाएगा।

अच्छा बच्चों, फिर मिलेंगे ..

और विशेष यहाँ के लिए - आपस में मतभेद को खत्म करें। मतभेद कभी ऊँचा नहीं उठने देगी। एक दूसरे का पाँव खींचना, वो कभी ऊपर नहीं जाने देगा। अगर एक दूसरे का पाँव खींचते रहेंगे, तो सबसे पहले कचड़े में खुद गिरेंगे, क्योंकि जो कहते हैं ना कि ‘उसका पाँव खींचोगे तो वो आगे नहीं जाएगा’। उसका पाँव आप नीचे से पकड़ के खींच रहे हैं ना, तो आपके नीचे दलदल है। *जिसका पाँव खींच रहे हैं वो तो हो सकता है कुछ तिनका, कणा दाना पकड़ के निकल भी जाए, पर जो खींचेगा वह कभी नहीं निकल पाएगा, क्योंकि खींचने वाला सबसे पहले डूबता है।* ऊपर वाला तो फिर भी किसी का सहारा लेकर निकल भी जाएगा, पर खींचने वाला कभी नहीं निकल सकता! यह खींचातानी जीवन को नष्ट कर देगी। अनमोल साँसों को नष्ट कर देगी। यह खींचातानी दलदल में लेकर जाएगी। अगर ब्राह्मण बच्चों में भी खींचातानी है, तो सतयुग में यह सब चीजें नहीं चलने वाली।

आगे बढ़ाओ! आप आगे बढ़ाओ, तो उससे पहले आप आगे बढ़ेंगे। आप खुद आगे रहकर के उनको आगे का रास्ता दिखाओ, गाइड बनो, लीडर बनो, पाँव खींचने वाले नहीं बनो। जो लीडर होता है ना - वो खुद ही अपने आप आगे जाता है। जैसे ब्रह्मा बाप है ना, भले सब कुछ आता, पर फिर भी क्या बोलते है – ‘बच्चों ने किया है, बच्चों ने किया है’। ब्रह्मा बाप ने - पिता है ना, तो बच्चों को आगे किया, तो खुद आगे हो गए। *और जो अशुभ सोच से, गलत विचारों से, एक दूसरे का रास्ता काटते हैं, खींचातानी करते हैं, तो उनको डूबने से कोई नहीं बचाएगा। बाप तो कभी नहीं बचाएंगे, क्योंकि बाप की शिक्षा ही नहीं मानेंगे तो बाबा कैसे बचाएगा?* अगर बाप के बच्चे कल्याणकारी नहीं बने तो फिर वो क्या बने? अपने को कहते हो ‘हम देवता बनने वाले हैं’, और बाप भी बड़ा नशे से कहते हैं कि मेरे बच्चे देवता बनने वाले हैं। एक बार कभी बच्चे खुद को देखना - क्या लक्षण है? ‘देवता’ माना देने वाला, ‘देवता’ माना देने वाला! और मांगने वाला हमेशा ‘लेवता’ होता है। तो लेवता तो कलयुग में जन्म लेते हैं, सतयुग में तो देवता आते हैं। चाहे वह ज्ञान धन हो, कोई भी धन। आप देवता हो। नशे से रहो, स्वमान से रहो।

ठीक है, फिर मिलेंगे ..

अभी ब्रह्मा बाप से मिलो। बच्चों ने सेवा अच्छी की है, पर खींचातानी बहुत की है, इस चीज पर थोड़ा अटेंशन देना। हर जगह के बच्चों को – खींचातानी में सेवा नहीं होती, समय वेस्ट होता है।

अच्छा बच्चों, फिर मिलेंगे ..
सदा खुश रहो, खुशियों की दुनिया में जाना है तो खुश रहना है ना। जैसे ब्रह्मा बाप मस्त मौला है ना। आते ही खुशी के हीरे, मोती बिखेर देते हैं। ऐसे उनके बच्चे भी कैसे होने चाहिए? खुशनुमा होने चाहिए, बेफिक्र बादशाह होने चाहिए। *बेफिक्र बादशाह बनो। यहीं से ही आत्मा का संस्कार देखना चाहिए। जैसे ब्रह्मा बाप है, तो सतयुग में भी तो ऐसे ही रहेंगे ना? ऐसे ही खुशियाँ रहेगी। ऐसे ही कुछ भी, कुछ भी पेपर आए - कुछ भी जाए, पर खुशी नहीं जाए।*
सदा खुश रहो।

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Zorba the Greek
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Versions of Shiv Baba
11.02.2024 - (Agartala, Tripura)

"Sweet children .. You can improve the journey of your life which was spoiled while moving along – you can do this. It is time to move along. Otherwise, even if you hide somewhere in any corner, or even inside seven locks, the ‘ball of karma’ will not leave you alone. The ‘ball of karma’ will definitely break every lock, and after breaking them it will strike your head hard - this is the ‘ball of karma’ - no one can escape, no matter who he or she is. Anyone, means anyone at all!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=EMoGw2uP3KY

OK .. Just as you children are sitting at this place in front of the Father - even your small voice starts resonating, it can be heard by one another. Similarly, this world is also like a sphere, in which each and every thought of you children resonates, and after resonating each and every thought echoes in the entire world. For example, if you make a sound in an empty space anywhere, then instead of one, 10 sounds of that voice will ricochet and will be heard by you. It will resonate, rebound and return before you. Why does this happen? You are practically hearing this, are you not? If you make even a little sound, it will bounce against the walls, it will rebound and return before you in the form of many sounds. *Similarly, this world is also round.*
*The children's actions, or thoughts, or words - whatever you emerge from within, will strike the walls of this world and come back to you. You will make one sound but 10 sounds will come back in return - this is the law of nature, the law of creation.* Are you able to understand anything? Who is able to understand? Those who are able to understand should clap with one hand (wave out). You can understand what the Father wants to say, can you not? When it is completely void all around, if you make a loud sound, it will strike the walls and come back to you in return. *Similarly, this world is also round - your thoughts, words, actions, speech, irrespective of the feelings with which they have emerged, they will strike the walls and definitely come back to you in return.*

*‘Karma’ – if your actions are elevated, then after striking the walls of the world, their virtue will be multiplied many times over and returned back to you. And if the actions are not good, or if the feelings are not good – then those too will strike the sphere of this world, and will return back to you with full force.* Everyone understands this, do you not? Do you? If you have wisdom, then you will understand; and if you do not, then you will keep blaming others. Even if you curse someone, then that too will bounce back and return only to you; and if you pray for someone, then that too will return to you ten-fold, or a thousand-fold - this is the principle of karma. Majority have the knowledge that – ‘whatever you do, so will you reap; whatever you think, so will you become; whatever the seed you sow, so will you reap’. If you ask anyone today, everyone will explain this - but that will not be visible in their practical life, they do not even follow that. Think about this yourself, churn the ocean of Knowledge. *Even if you are doing good, and still if some such unpleasant incidents are happening to you, then you must understand that some of your old accounts have been settled.* Somewhere or the other, with my thoughts, I must have sent some curse across the sphere of this world in some birth or the other, then it came back to me (in this birth) and got resolved.

*But at present, if you create any new accounts – the speed of resonance across the world has now become very rapid, you will now receive instant returns. Why will this happen? Because this is the final period, this is the last birth, now the next birth and the previous birth will all be forgotten - this is the end time.* Everyone knows what I am within myself! Whether one may be sitting here or sitting anywhere else. Everyone knows what I am within myself! Whatever that may be, everyone should be prepared for its consequences. And if I bring about transformation from now itself, if I change myself, then my pure feelings will strike the globe of this world, and multiply ten-fold, thousand-fold, and become virtues, and will be accumulated in my own account - only if I take hold of the ‘ladder of transformation’ from today itself!

You can observe this practically sometimes - what will happen if you throw a ball on the wall? It will rebound from the wall with much greater force than the force with which you threw it, and it will return and strike back at you hard. This will happen, will it not? Now look at any occurrence, it is a ball of karma. ‘Ball of Karma’! In whatever way you may tackle it, it will return and definitely come back to you. It takes some time, whether a moment or two. It is said that if someone sows the seed of elevated actions even while moving along, then he/she will definitely reap the fruit of that in some of birth or the other. Now this is the time to keep moving along.
You can improve the journey of your life which was spoiled while moving along – you can do this. It is time to move along. Otherwise, even if you hide somewhere in any corner, or even inside seven locks, the ‘ball of karma’ will not leave you alone. *The ‘ball of karma’ will definitely break every lock, and after breaking them it will strike your head hard - this is the ‘ball of karma’ - no one can escape, no matter who he or she is. Anyone, means anyone at all!*

*Whether you read any book of this world or not, but you should read the ‘book of karma’ very well, because the book of this corporeal world is also based on the ‘book of karma’.* This is the ‘play of karma’ of this world. If you say – ‘no, God will save us’ – then He is saving you NOW! He is coming to give the message to everyone, He is standing beside the children at every instance in order to help them. The Father is fulfilling His responsibility, because the Father will never complain. Neither will He ever reprimand you - that you did not listen. The Father is spreading the message to everyone. No one can say – ‘why did You not come? O God, we called out to You - but why did You not come?’

This is an amazing aspect, is it not? There is a story on the ‘path of devotion’ that when RAMA was touring the world, there were only a handful of children along with Him - they may be called a handful of ‘monkeys’. But those handful of children transformed the whole world! But who were those handful ones - do you know? Who were those handful of children? You will say ‘they were us’ – that is a very good thing. *But the sign of a handful of children has also been mentioned – they instantly said, ‘yes Lord’, on hearing one sound of RAMA! They leaped up instantly on hearing one sound from Him; they stamped down firmly with their foot of determination on hearing one sound from Him; they became obedient, loyal and compliant on hearing one sound from Him.* They listened to only one sound – they did not listen to any other sound. Here, Baba has to keep calling out to the children with a great sound again and again. Now, those who respond instantly on hearing one sound from Him will be called ‘Mahavir’ also, and they will be called ‘Angad’ also - those who set their feet of faith firmly on hearing one sound from Him.
There are also such children who have to be told again and again, who have to be informed again and again - but which children are they? Think about this, ponder over this - whether the children are now listening while sitting abroad, or whether they are listening while sitting here in this land. When you belonged to the Father, then you had Love for only Baba, did you not? ‘My Baba, my Loving Baba!’ You made so many promises that ‘no matter where You may go, we will recognize You’. The children have made such promises to the Father. Such subtle promises have also been made. *The amazing thing is - when He came in front of you – then everything changed!* When He comes in front, the children say – ‘we will come when Didi goes, when Dadi goes to Meet Baba. What is this? What is this? If this be so, then Liberation and Liberation-in-Life will also be given by Didi and Dadi. Who will give you?

*If you have faith that Baba is the Knower and the Bestower of Liberation and Liberation-in-Life, then you cannot get stuck anywhere - neither in any person, nor in any thing, nor in any position or status, nor on any stage or at any place!* Even if you get stuck at one place, it will be said that you have got stuck at that one place. That too cannot be called a surrendered intellect. ‘Surrender’ means to surrender only to ‘One’. And that ‘One’ may change the place, or He may change the body – but your mind should not change even if that ‘One’ changes the place or changes the body. If the mind of the children changes, it means you do not have (TRUE) Love for Him.

As it is said – ‘RAMA left Ayodhya’ – then which clothes did He wear? He changed clothes, did He not? He took off all the regalia, He took off His crown, He took off the fine ornaments, He took off everything! But He travelled everywhere in the world - *some recognized Him that this is RAMA; and some did not recognize Him even after recognizing Him; and some did not recognize Him intentionally! And some recognized Him - but ‘no, we will come along with that One who is with us (in non-living images)’. That is why I am giving this message - time is very short. You must have heard this again and again – that time is short; but, if not now, then never!*

On the one hand, there is the ‘book of karma’, the ‘ball of karma’. The children who say, ‘Didi stops us, or Dadi stops us’, this is also the ‘ball of karma’. *If not here, then you will have to go up and settle everything there, and you will also have to give an account, whether you are in Knowledge, or whether you may not be in this Knowledge. If you have an understanding of karma, an understanding of the ‘book of karma’, and then if you still perform such actions, then an account will be created of that. Either it is getting settled, or it is being created. But at present it will be said – that it is getting settled. If you create it now, then where will you give an account for that?*

Everyone says that ‘Drama is beneficial’; all the children say that ‘Drama is beneficial’, but how is Drama beneficial? If there is anything placed in front of you now, then you do not have to pick that up now. What would be said if you pick that up? It has been picked up since it was in the Drama. But you do have this much Knowledge whether you should pick it up or whether you should not pick it up, do you not? Does the self prompt you from within or not? Whether you should harm someone or not - everyone has this much understanding, do they not? Having negative thoughts about someone is also the impurity of the mind. *No matter how many baths you take, how much you wash yourself, how much you decorate yourself, if the mind is not pure, if the mind is evil, then the whole life is bad.*

The stench of thoughts is such a stench, which changes everything in your house and within your mind. Now if your thoughts are good then your house will have a good fragrance. The fragrance of happiness and peace will spread in your house. *If your thoughts are of having good intentions, then along with your house the earth will also have a good fragrance, the world will have a good fragrance too, there will be fragrance in your relationships, and the fragrance of your mind will spread all around.* If there is a smell in your thoughts, if there is a bad smell in your thoughts, then you yourself will also become foul smelling, the house will also be foul smelling, and the world too will be foul smelling. Do not say that ‘I am doing that way since he/she is also doing that way’. So, you are then involved in spoiling the world .. in that case, one was doing that, and when you met him/her then you became two - now two of you together are spoiling the world. *The whole of nature hears the language of your thoughts, the entire nature inhales the fragrance of your thoughts - whether they smell bad or whether they have a good fragrance.*

If you go to a garden, you will smell the fragrance. If you go to a dirty place, you will get a bad smell. The more good feelings you have in the flower of your mind, the more will everyone feel the fragrance, and if there is garbage, then that will smell bad. *If you want to make your life like a lotus flower, then you have to keep your good intentions noble, elevated, and great.* You are great – you just have to change direction. You have Power, but you have to use it in the right direction. You can do very well – you just have to change your track.
Do not get entangled in any person, thing, or any form of grandeur. Then tomorrow, everyone will criticize you. If you do not spread the fragrance of your thoughts, then you will not get the fragrance of thoughts from others, the fragrance of good wishes from others. *If you want to make your life fragrant, then you have to first instill fragrance within your own mind - the fragrance of having good feelings towards everyone.*

Nowadays, even if you want to reach a higher destination, to reach there by doing bad things to each other - this is a sinful action, is it not? You should perform good actions and go - it will take some hard work. Do not take shortcuts, the shortcut will sometimes become a very long long cut. *Every action performed in Remembrance of the Father will be called a virtuous action. Because whoever has Remembrance of the Father within his/her mind, the Father will not allow him/her to commit any sinful action.* OK?
Your actions should be good, elevated, great. Everyone will ask - what are these good actions which should be performed? Everyone knows what the ‘philosophy of karma’ is! If you are in Knowledge then - if this is the condition even among children who have this Knowledge, if there is jealousy for one another, if there is hatred, aversion, or a feeling of doing harm to one another, then this is the greatest sinful action.

What is purity of the mind? If you commit violence, no matter what kind of violence it is - violence of killing a living being, violence of anger, violence of lust, whatever violence you may commit is a sinful act. But the Deities are doubly non-violent (neither the violence of lust, nor of anger), are they not? So, everyone should carry out their own checking - otherwise the ‘ball of karma’ will not spare anyone. This is the principle of karma - just as the shadow never leaves you, it does not ever leave you. Does the shadow leave you? Does the shadow ever leave you? Whether you stand in the light or in the sun, does your shadow ever leave you? This is the shadow of your karma, this example is on this earth - *just as your shadow does not leave you, similarly the shadow of our karma will never leave us.* This is the journey of life, it is the final period, if you have embarked on it then it is good, if you have not embarked on it then it is karma.

Wherever you children may be sitting and listening, today the Father's message to the children is - do not get trapped anywhere. *If you have Love, then take one step of courage first, the Father will place His Hand under your second step and will lift you up with a high jump.* You just have to take one step, then the Father will come and take the other one. *If anyone has the strength to take even one step, then he/she should not worry about the second step, he/she should be carefree. Become a carefree emperor.* Do not think – ‘what will happen - how will it happen?’ When Father Brahma left, he did not think - ‘Baba, how will it happen now - what will happen?’ So, why are you children doing this? You do not have a greater responsibility than that of Father Brahma, do you? You do not, do you? The creator of the world – it is a wonder that he did not have such thoughts! The children think, ‘how will it happen - what will happen?’ The Father is present, and He is responsible, is He not? The Father is responsible! OK?

To such sensible Students who read the ‘book of karma’, to the sensible children, to the children who are the players who understand the game of such karma, to the children who are the number one players, BapDada's Love and Remembrance.
And congratulations for the Golden Age! Apron-full of congratulations for the Golden Age! Because now we will Meet again in the next Cycle, is it not? The time to leave has now arrived. A little work remains, after completing which – I will proceed on My journey .. . So, time is now near.

Many children think, ‘we know that Baba comes there, but still we will not go there because we will make efforts here itself - which arrow will we shoot after going there?’ That is fine! Wherever you stay, the fruits of your efforts will automatically reach you in accordance with the system.

OK children, we will Meet again ..

And especially for here – eliminate any differences among yourselves. Any form of dissent will never allow you to rise high. Pulling each other's feet, will not let you rise up. If you keep pulling each other's feet, you will be the first to fall into the garbage yourself, because as they say, ‘if you pull the feet of another, you will not be able to go ahead yourself’. You are pulling the other’s leg by holding it from below, then there is a swamp below you. *The one whose feet are being pulled may be able to catch hold of a small straw or a particle of grain and escape, but the one who is pulling will never be able to escape, because the one who is pulling is the first to drown.* The one above will still be able to escape with someone's support, but the one who pulls can never escape. This tug of war will destroy your life. It will destroy your precious breaths. This tug of war will take you into the quagmire. If there is tension even among Brahmin children, then all these things will not work in the Golden Age.

Enable others to move ahead! If you enable others to move forward, you will move ahead yourself, before that. You yourself should be at the forefront and show them the way forward, be a guide, be a leader, do not be someone who pulls their feet from down below. The one who is a leader - he goes ahead on his own. Just like Father Brahma, even though he can do anything, yet what does he say – ‘the children have done it, the children have carried it out’. Father Brahma - he is the (‘alokik’) Father, so he kept the children ahead, and so he himself reached ahead. *And those who, with inauspicious thoughts and negative intentions, cross each other's path and try to pull each other down, then no one will save them from drowning. The Father will never save such children, because if they do not follow the Father's teachings then how will Baba save them?* If the Father's children have not become benefactors, then what have they become? You say to yourself, ‘we are going to become Deities’; and the Father also says with great intoxication that My children are going to become Deities. Children should look at themselves once in a while - what are your personality traits? ‘Deity’ means one who gives, ‘Deity’ means one who bestows! And the one who asks is always a ‘taker’. So, those who are ones who take are born in the Iron Age; while the Deities come in the Golden Age. Be it the wealth of Knowledge, or be it any wealth - you are a Deity. Remain with this intoxication, and always be in this self-respect (of being a Deity, who always bestows on others).

OK, we will Meet again ..

Now you can Meet Father Brahma. The children have done good Service, but have also pulled each other a lot, pay some attention to this aspect. To the children everywhere – Service cannot be carried out effectively by pulling each other down, time gets wasted in this.

OK children, we will Meet again ..
Always be happy. If you want to go to the world of Happiness then you have to be happy, must you not? Just like Father Brahma who is a great Master, is he not? As soon as he comes, he scatters diamonds and pearls of Happiness all around him. So, what should his children also be like? They should be bubbling with Happiness, they should be carefree emperors. *Become a carefree emperor. It is from here itself that the sanskars of the soul should be seen. Just like Father Brahma is - so he will be like this in the Golden Age also, will he not? The same Happiness will remain there. Similarly, whatever test paper may come - whatever may go away, but your Happiness should not go away.*
Always remain in Happiness.

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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Zorba the Greek
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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Excerpts from Versions of PrajaPita Brahma
05.05.2022



Essence: “Sweet children .. the gathering of the children where the Father is not present is NOT Madhuban. Because the incorporeal Supreme Father Supreme Soul, Himself, goes around taking Madhuban along with Him, He takes Madhuban along with Him wherever He goes; so, ONLY where He is actually present would be called Madhuban.”

[They are saying that Baba had said that Maya would come in the form of the Father in the end ..]

Oh, Maya will come in the form of the Father! How is that? Tell them that Maya will not come in the form of the Father .. only the Father would come .. then they should recognize Him .. will they recognize Him? And those who say that Baba had said that Baba cannot come anywhere else other than in Madhuban (at Abu) ..? What was spoken in that Murli, let me hear that first.

[they always make comments on this point, Baba ..]

I want to hear that point now .. (the Murli point was narrated to Brahma Baba) .. let me see that .. where is it written here that ‘He cannot come’? It is written here that ‘the Father cannot meet anywhere else other than in Madhuban’ (at Abu) .. but where is it written that ‘He cannot come anywhere else’? That is what is written here, is it not? .. read that again. Read that again, and let me hear that again .. even you are getting confused while reading it. It is written here that ‘the Father cannot meet anywhere else other than in Madhuban’! .. What is written there? ‘He cannot meet’! Where is it written that ‘He cannot come’? Just tell me .. if there is any other Murli regarding this then bring that out. Is there any Murli where it is written that ‘the Father cannot come anywhere else other than in Madhuban’? What is written there? ‘He cannot meet’ .. that is what is written there, is it not? And where would Baba meet .. ‘only in Madhuban’ .. and what is called ‘Madhuban’? ‘Wherever the MEETING of the Father and the children takes place’ (that is called Madhuban)! Look, if the Father has spoken the Murli, then He has spoken the same after careful thought. The spin is in just one word. The Father did not say that He cannot come anywhere else other than in Madhuban. He said that He cannot meet anywhere else other than in Madhuban. There is a great difference between ‘meeting’ and ‘coming’. There is a difference of day and night between ‘meeting’ and ‘coming’. Now, if God has spoken this version, then there is truth in this version. He can ‘meet’. He can meet .. ‘He can meet only in Madhuban’; it is not written that He cannot come!
OK, first tell me as to how the name ‘Madhuban’ was kept. Was that name there before? There was just a mountain where sovereigns, great kings used to go on tours, they used to go there to relax during summer months when it was very hot. Then they felt that this place was very good, so they built one or two small houses, one or two mansions .. okay? So this happened. Was it named ‘Madhuban’ before? There was no such name. Did anyone think about that? How did it become ‘Madhuban’? When the Father and children met, it became ‘Madhu’ (honey) ‘ban’ (garden) .. it became a ‘garden of honey’.

So, you cannot convert children to anyone's belief by continuing to show them the points of the Murli. Whoever has to stop anyone to any extent, whoever has to try as much as they wish to stop anyone, may do so; the Father's work is never going to stop, nor will it ever stop. Baba is telling this today to everyone. They can try as much as they wish. They may remove any number of Murlis, I too will see how much treasures (of Knowledge) they have. They may remove, they may certainly remove any Murli, they may remove the Murli of any date, of any type, they may remove anyone’s.

[Baba, is ‘Madhuban’ only that place where the Father's Love is being showered?]

Absolutely! And where there is no Father, then that is NOT Madhuban .. today I am also telling you this. Where there is no Father, that is NOT Madhuban. That gathering of the children where the Father is not present is NOT Madhuban. Because the incorporeal Supreme Father Supreme Soul, Himself, goes around taking Madhuban along with Him, OK? He takes Madhuban along with Him wherever He goes; so, ONLY where He is actually present would be called ‘Madhuban’! The place from where He left (at Abu) is the Madhuban of the past. Present Madhuban is the Madhuban where the Father is actually present. Tell this to all the children.

Look, one .. anyway, right now I feel like laughing, and I am also feeling happy .. and I am also having a great deal of compassion for the children .. more than those two feelings. Feelings of compassion, kindness and mercy are arising within me. .. So much fear! So much fear! How did so much fear settle within them? Think about this, just reflect on it. OK, before considering her (Maiyya) to be a Mother, think that she is a young lady. Where was this child born .. where did she go .. where .. how did this spin .. how did this turn .. ? They are afraid of one young lady! Such great ‘Maharathis’! What Knowledge has been taught until today? Which lesson has been learnt? They are removing a Murli and showing! Which means that they do not have any power within themselves! They are confronting the Father through the Father’s own versions. Whom are you asking by showing Baba’s versions? That means they have not learnt anything by themselves .. everyone is shaken up by one little lady, right? Yes! Now what has the state of mind of so many lakhs of children become? They have studied this study for more than 80 years, and in the test paper of this study they have received zero marks. Come on .. okay, you may not recognize the Father. They say, ‘my students’ .. they are not anyone’s students, they are the Father’s students .. those who have Love for the Father will come to the Father, if not today then they would come tomorrow. OK? Does anyone else say anything else .. tell me?

[They make a lot of comments, Baba. Sometimes they say that she is emerging some sounds, sometimes they say that she is carrying out the acting of someone ..]

Tell them .. OK, she is copying someone. Well, you may let anyone sit on the stage, and let her copy someone .. then everyone would come to you, would they not? You have so many Kumaris, Dadis, Didis .. you have so many, do you not .. there are so many elder Brothers .. then why do you not make them sit down on the stage (and make them act likewise). What fear is there of anything? Make them sit, let them go up on the stage, and tell them to act. Just as she (Mother) is doing, and everyone is going to her .. do similar acting, then everyone would come to them. They should do that, should they not?

[They are saying that she is committing the greatest sin ..]

That does not matter. If she is committing a great sin, then she is accumulating in her own account. Tell them that they are no one to take a decision in this matter, whether she is committing a great sin or not .. have they seen her horoscope, have they seen the ledger of her accounts that they write as they wish that this is a great sin. In which words has this been called a great sin, can they say? And tell them, who say that she is play-acting, that they should select anyone from among themselves and give anyone the stage in order to play-act in a similar way, then everyone would come to them, they would not go anywhere else.

[Baba, they keep on asking the same thing as to why Baba comes only in her body, and why does Baba not come in the body of any ‘Maharathi’?]

That is what I am saying .. (tell them) ‘you call out to Him and He would come in your body’. Tell them that they should call out to Baba .. since they are making so much effort, they should make this effort to call out to Him, then He would come in their body. What's the big deal! He is still the Father, He would leave her (Mother) and come in your body.

[Baba, on the one hand they do accept that He is coming in her body, then too they ask as to why He is coming only in her body ..?]

That means they know (that Baba is coming in her body) .. Who has fear? .. the one who runs away from the truth. The one who does not wish to accept the truth .. such a one has fear, and such a one runs away from the truth.
Today, in Thursday's (Bhog) message also she (trance messenger) has said that this has been told so as to escape from the (Godly) form of Maya. That message has NOT been given by the Father. Today, if anyone says that this has come in the message, that message has not been given by the Father at all. What can I say about such children; my Father Shiva is having great compassion for such children seeing all this. After so many years .. after having carried out ‘tapasya’ for so many years, after so many years of making efforts, and all of them have been given a ‘zero’. What study have they studied? And those who say .. that she is performing magic, that she gets witchcraft performed, tell them ‘fine, you can go to a greater wizard who performs black magic and heal your children to begin with (before they get influenced by her). OK?

[Baba, they themselves are involved in performing occultism!]

I am seeing all of that. It is not that I do not know, I know everything. Who is getting what done, who is not! It is said that when anyone is drowning then that one struggles with his/her hands and feet, looking for some support with which he/she can swim to safety. What would the Father do with such children? I did not have such children in the beginning. The children of the beginning were so Loving, so innocent .. see the child Janki, such a Loving child! It is said that in the future, she will be the next (second) Narayan (after Brahma Baba). Look at child Shobha (Dadi Gulzar)! She is the Lakshmi of the next Narayan (after Brahma Baba) .. just think! These are the real ‘tapasvi’ children. And there are many such children. What should be done, tell me? The Father has come, He has alighted on to the field (of action). He will not go anywhere without performing his task. He has come to accomplish His task, He will leave only after completing His task .. now, whatever you wish to do, whoever you want to stop, come. I am ready, and you children are ready.

[Baba, better than them are the children who are not in the Knowledge who believe that God can come ..]

Oh, the children who are not in the Knowledge are very good indeed, that is why Baba is telling you children again and again to leave the children who are in the Knowledge alone (do not keep going after them to tell them about Baba’s third and final part again and again). As it is, you have left, have you not? They themselves are getting tense. You children do not go to anyone’s house to call them to come here. You do not go to call them, but they themselves are experiencing upheaval and saying that ‘we will definitely go and see whether Baba is really coming there!’

[Baba, they are seeing this and they are also making comments!]

And they also accept. That is why only those children will come here who will play their part along with the Father in the final moments at the very end .. those who were there in the very beginning (with Baba). Some children say that those who came before Father (Brahma Baba) left, that is one or two years before I left, are those who were there in the beginning also. Oh, but such children are not from the beginning, how can they be from the very beginning? ‘Beginning’ means from the time when the Yagya started, that is called ‘beginning’. You are thinking that ‘beginning’ is when the time came for me to leave my body? But that is not the ‘beginning’, nor would such children be called the souls from the beginning; ‘beginning’ means those who were there in the very beginning (when the Yagya started). And such little children were Loving! They were such excellent children! Wow, wow, wow! They performed such Service when they grew up; they performed wonders; they were so amazing! All of them demonstrated their wonders; everyone who is present (currently, in the Yagya) is being sustained from the source of their earnings. And those who say - ‘how does (Brahma) Baba speak like that! How is it possible for (Brahma) Baba to speak like this to anyone!’ I will definitely speak, why would I not speak? What you children speak, you yourself should understand that .. you should reflect over it. Mother (Maiyya) has not even responded (harshly) to anyone till date. Mother has not even confronted anyone so as to reply to anyone harshly; and if anyone has requested for an answer, then she replied very politely with great Love; she never spoke any harsh words to anyone. Till date no child from here has ever defamed anyone. Why? Because I have stopped them (from responding with any defamation), my Father has stopped them. But I am at liberty to respond to each and every child, and also at liberty to receive any defamation from them. They should answer with what authority they are using such words! Has the Father taught them to use abusive language since so many years? They have turned their ‘tapasya’ of so many years into ‘zero’! Is God, Supreme Father Supreme Soul your property? Is He your possession whom you can keep imprisoned? Why did you allow Him to leave Madhuban (at Abu). You could have caught hold of Him, imprisoned Him, taken Him out from there and placed Him in another place, everything is possible for you! You are able to do anything. Tell me, why did you allow Baba to go away from Madhuban (at Abu – in the first place)?

My Baba is a ‘Queen Bee’ – wherever He goes, He will fly away by taking everyone along with Him; and you may keep sucking at the empty beehive. When that gets emptied, when you feel hungry, when you feel thirsty, then you will come running. It does take place like this, does it not? The queen bee does not tell anyone from where she has emerged. When the queen bee flies away she does not inform anyone. Those bees who are in her colony, they automatically search where their queen has gone, where she has gone .. they search and search and search, for the place where she is sitting, and they identify her by her scent (fragrance). My Baba is an Energy, He is a Power, and you have come here .. why would you not come? Can you stop any energy from performing its function? One cannot stop. Can incense sticks be stopped from giving off their fragrance? Does anyone have such power? Now this facility of science is running the fan, which is turning. Can you stop the fan from giving a breeze .. that it should continue to turn without giving any breeze? Can you make it stop? You cannot stop that, can you? That is energy.

Oh, you have got into the habit of tying; just as you were driving the Father by tying Him down (at Madhuban, in Abu), so you have got into the habit of tying down the children (at Abu, and at all the Centers). There is no such ‘gathering of truth’ (‘satsang’) where they drive anyone by keeping them tied down. Is there such a ‘satsang’? Even on the path of devotion, the children of the path of devotion are so nice .. they will go to all places, they will go to all the temples. Even those who chant the names of their gurus, what would they do? Today you sit down in one ‘satsang’, you will receive good words there, you will receive good words in any other ‘satsang’. One has to pick up from all the places. And Baba does not tell anyone that they should not go to different places. What has Baba said .. the Father has come and you have energy within you .. you know that those whose intellects are weak, and those whose intellects are very weak, only such children speak such belittling words. This is the sign of weaklings.

Where has all the Yoga gone .. when you have not recognized your own Father? Nowadays, do you know what all of them are teaching again and again – ‘Baba had said that Maya would come in a huge (subtle) form, such that even the great Maharathis would fluctuate.’ This is a laughable matter. Great ‘Maharathis will fluctuate!’ So, what is taking place now? They are fluctuating, are they not? That is the truth! What did He say? Great ‘Maharathis’ will fluctuate .. so they are fluctuating, are they not? While you children are sitting here peacefully .. and who is fluctuating? Tell me, how would you fluctuate (when the Father is with you now)!
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destroy old world
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
15.09.2024 - लुधियाना (पंजाब)

"मीठे बच्चे .. ‘सेवा भाव’ - क्या यह सेवा भाव बाप के बच्चों में है?"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=4uHPpWWbSIU

अच्छा .. आज इस स्थान पर आप बच्चे क्या सीखने आए हैं? जो बच्चे सुबह से आए बैठे हैं, सभी इंतजार में बैठे हैं, कि ‘मेरा बाबा आएगा’ - ऐसे ही, बाप-दादा इंतजार करते हैं कि हमारे बच्चे आएंगे। आपकी आवाज बाप तक बहुत तेजी से पहुँचती है। पर बाप की आवाज बच्चों तक पहुँचने में समय लगता है। क्यों समय लगता है? क्यों समय लगता है? .. जब भी आप किसी से बात करते हैं, उसकी बात को ध्यान से सुनते हैं ना, उसको समय देते हैं, तब आपको उनकी बातें समझ में आती हैं। तो क्या, जितना समय आप देहधारियों को देते हैं, उसका आधे से आधा भी बाप को देते हैं? .. तो बाप की बात कैसे समझ में आएगी? बाप का मैसेज कैसे मिलेगा? बाप का मैसेज लेने के लिए क्या करना है? क्या करना है? [समय देना है] .. हाँ! क्या करना है? बाप को समय देना है।

आप कोई भी दुनिया में अपना भविष्य दूसरों से पूछने के लिए चले जाएंगे, कि फलाना-फलाना आपकी कुंडली देखके आपका भविष्य बता देगा - उसको एक घंटा, दो घंटा जरूर देके आएंगे। और फिर भी वो पूरी तरह से आपका कोई भविष्य नहीं बता सकता। अगर वही एक से दो घंटा आप अपने आप को दो, बाप को दो, तो क्या आप अपना तो क्या - पूरे भारत का भविष्य जान सकते हैं।

चलो, आज यहाँ क्या सीख के जाएंगे? .. हाँ? सबसे पहली बात, जो पहली बार आए हैं, उनको बाप दिल से स्वागत करते हैं, उनका वेलकम करते हैं - जो पहली बार बैठे हैं, जो पहली बार मिलन मना रहे हैं। लेकिन इस कल्प में पहली बार। क्या सोचना है? कि यह कल्प में आज के दिन पहली बार। अगली बार तो आप सोचेंगे की आपको कितनी वारी मिलन मनाना है। पर पहली बार जो इस कल्प में मिल रहे हैं, उनका दिल से बाप-दादा स्वागत करता है, स्वागत करता है।

अच्छा, यहाँ की भावना किस में है? यहाँ की भावना, आप बच्चे जहाँ-जहाँ जाते हैं, जिस भी स्थान में, जिस भी एरिया में जाते हैं, जिस भी भूमि पर जाते हैं, जिस भी राज्य में जाते हैं, क्या वहाँ का कोई एक गुण उठाते हैं? उठाते हैं? अगर नहीं उठाते हैं तो जरूर उठावे। यहाँ से कौनसा गुण लेकर जाएंगे? [सेवा ..] ‘सेवा भाव’! सिर्फ सेवा नहीं, याद रखना। सेवा तो सब करते हैं, सारी दुनिया सेवा करती है, पर उसके पीछे क्या लगता है? यहाँ से ‘सेवा भाव’ लेकर जाना है। कैसे? कैसे? कोई बताएगा कैसे? [निर्मानता ..] हाँ? [निर्मानता ..] निर्मानता .. ‘सेवा भाव’ का अर्थ है यहाँ पर कोई कितना भी बड़ा बिजनेसमैन हो, कितनी भी कंपनी का मालिक हो, वो गुरुद्वारे में बैठकर अपनी शर्ट से जूते साफ करता है। समझ में आ रहा है? बर्तन साफ करते हैं, और उसके बाद अपने कार्य पर निकलते हैं। उसके बाद उनको कोई अहंकार नहीं है कि ‘मैं इतनी बड़ी कंपनी का मालिक हूँ, मैं जूते साफ क्यों करूँ? मैं यह सेवा क्यों करूँ?’ हाँ, क्या जुडा पीछे? भाव! ‘सेवा भाव’! क्या यह सेवा भाव बाप के बच्चों में है? है? या छोटी सी सेवा में देह अभिमान सताने लगता है, कि ‘मैंने इतनी सेवा की, मैंने यह किया, मैंने वो किया’। इसका मतलब क्या होता है, जानते हैं? बच्चों को थोड़ा फील जरूर होगा। थोड़ा सा, हाँ। इसका अर्थ है आपने खाना खाया, खाना खाके उल्टी किया, उल्टी करके फिर वापिस उस उल्टी को खाया। नहीं समझ में आया? आपने सेवा की, जैसे खाया हुआ भोजन पेट में लुप्त हो जाता है, दिखाई नहीं देता, ऐसे की हुई सेवा मन में लुप्त हो जानी चाहिए, गुप्त हो जानी चाहिए। समझ में आया? वो दिखाई नहीं देनी चाहिए। अगर सेवा करके वर्णन किया, देह अभिमान आया, तो मानो आपने खाया हुआ खाना उल्टी किया। अब उसको उल्टा कैसे खाते हैं? फिर अगर जो कहते हैं, ‘मैंने इतनी सेवा की - तन से, मन से, या धन से - की मेरा वापिस करो’। तो माना - की हुई उल्टी को क्या किया? वापस खा गए। तो क्या सेवा की?

गुप्त दान का अर्थ क्या है? अब मनसा सेवा सबसे पावरफुल सेवा है। ऐसा नहीं कि कर्मणा पावरफुल नहीं है। पर वो कर्मणा पावरफुल है, जो मनसे की गई हो, सच्चे दिल से की गई हो, सच्ची भावना से की गई हो, प्रेम में की गई हो। वह सेवा पावरफुल नहीं है, जो दुखी होकर के की गई हो, जो एक दूसरे को दुख देकर के की गई हो, जो एक दो का मन सता करके की गई हो, जो अपना बड़प्पन दिखाने के लिए की गई हो। समझ में आ रहा है? उस सेवा का मोल तो मिलेगा - पर कितना? कितना मिलेगा? इतना जितना आर्टिफिशियल गहने का मिलता है, क्योंकि असली का तो आप खा गए। तो बचा क्या? लोहे का मोल! तो वही मिलेगा। भले आपने कितना भी समय दिया हो। सेवा भाव को समझो। वर्णन करने से क्या होगा? क्या, फल मिलेगा? अच्छा, जिसके सामने वर्णन कर रहे हैं, क्या वो आपको फल देगा? देगा? अगर आपने 10 देहधारियों के सामने वर्णन किया, कि ‘मैंने यह किया’, तो क्या वो 10 देहधारी आपको फल देंगे? देंगे? मिलेगा? नहीं मिलेगा! हाँ, करके दो-पाँच मिनट के लिए आपकी तारीफ कर देंगे – ‘अच्छा, आपने यह किया! ऐसे किया!’ बस इतना ही! पर यह सोचो जो मेन बैंक में आपकी सेवा का खाता जमा था, वहाँ से क्या हो गया? वहाँ से खाली हो गया!

तो आज, यह देह अभिमान छोड़के जाना, बाप को देके जाना। अगर उल्टी करके खाना है, तो आप देखो - सुनने से ही कैसा लगता है? पर कमाल है ना, बच्चे वो रोज करते हैं। किस बात का देह अभिमान? जो आपका है ही नहीं, उसका? यह जो धन है, यह किसका है? आपका? क्या आपका सगा है? आजकल सगे रिश्ते नहीं अपने, तो यह तो धन है, जो आज आपके पास है, कल किसी और के पास होगा। जो है ही नहीं - जो आपका है ही नहीं, उसका अभिमान! क्यों? मेजोरिटी ब्राह्मण बच्चों में - भल सेंटर संभाल रही बच्चियाँ हैं, या यहाँ बैठे, या कहाँ भी बैठे हैं .. देह अभिमान आत्मा के साथ नहीं चलने वाला। यह अभिमान जलके खाक होने वाला है जाने से पहले। समझ में आया? किस बात का अभिमान? ज्ञान का? यह ज्ञान की धारा कहाँ से आई थी? अगर ज्ञान का अभिमान है, तो यह धारा कहाँ से आई थी? [बाबा से] बाबा से! तो बाप को (अभिमान) होना चाहिए क्या? नहीं ना। तो आपको कैसे आ गया? जिससे धारा बही उसको अभिमान नहीं आया, पर जो धारा में डूब गया वो अभिमान में भी डूब गया।

गिनती करते हैं बच्चे - मैं 10 वर्ष पुराना हूँ, मैं 16 वर्ष पुराना हूँ, मैं 30 वर्ष पुराना हूँ। बाप ने क्या कहा? बारी-बारी कहा – ‘पुरानी चीज किसी काम की नहीं है, पुराना विनाश होने वाला है’। तो क्या आप पुराने ही रहेंगे? पुराना तो विनाश हो जाएगा। छोटे बनो, बच्चे बनो, प्यारे बनो, सिकीलधे बनो। मानो जैसे अभी जन्म हुआ हो, मानो जैसे अभी चल रहा हो। जैसे छोटे बच्चे को देह अभिमान नहीं है ना? नहीं है ना? तो छोटे बच्चे बन जाओ। क्योंकि यह देह अभिमान अच्छे-अच्छे बच्चों को लेके डूब जाता है। सोच कर देखो। आपने सेवा की - तन से की, मन से की, या धन से की - हो गया ना? जैसे ब्रह्मा बाप ने क्या किया? क्या किया? सरेंडर किया। सरेंडर जरूर किया, वो भी खुद के नाम पर नहीं किया, यज्ञ में स्वाहा किया। सभी माताओं, कन्याओं के नाम किया। तो बच्चों, भल कुछ मत करो; बाप यह नहीं कहने आए कि आप तन को सरेंडर करो, लेकिन मन को जरूर करो। अगर तन किया है, तो तन, मन, बस सरेंडर हो रहना चाहिए। फिर दुनिया किसी काम की नहीं। अगर तन किया है, तो अभिमान नहीं। फिर अभिमान आया तो खाली जेब।

अच्छा बच्चों, बाप-दादा आप सभी से मिलकर बहुत खुश हैं। आप चाहे यहाँ पहली बारी, इस रथ में सम्मुख मिलने आए हैं, या मधुबन में कितनी बारी मिले हैं, बाप जानते हैं। बिना प्यार के तो नहीं आए हैं ना? भले चेकिंग करने आए हैं, क्योंकि जीवन का सवाल है। हाँ! क्यों जीवन का सवाल है? मार्केट से एक मटका भी खरीदो, तो भी बजा के देखते हैं, खाली खोखा तो नहीं है? या टूटा तो नहीं है? बस बाप को इस बात की खुशी है - आप आए तो सही, मटका बजाया तो सही, चेकिंग की तो सही - यह समर्पण किया, बस बाप को इतना ही काफी है। क्योंकि आप देखने भले आए हैं, पर देखने आए किसको हैं? बस यही बात बाप के दिल को छू जाती है, बच्चे, कि देखने तो आए हैं, पर किसको देखने आए हैं? इसलिए, इसलिए बाप बहुत खुश है। जो पहली बार आए, और देखने आए, और संशय में आए। संशय वालों से बड़ी खुशी है। क्योंकि भल संशय में आए हैं, पर यहाँ से बाप के दिल पर बैठकर जाएंगे। यह जो प्रेम का बंधन है ना, यह अटूट है, चाहे बाप मधुबन में बैठा है, चाहे बाप किसी भी कोने में बैठा है, बच्चों से बाप का संबंध इतना अटूट है कि बाप चाहे कितनी भी मील दूर बैठा हो, पर प्रेम की खुशबू में सूंघते हुए बच्चे बाप के पास पहुँच ही जाएंगे। इसलिए गणपति को इतनी लंबी नाक दी है। क्यों दी है? गणपति को इतनी लंबी नाक क्यों दी है? गणपति मात-पिता की खुशबू को सूंघता-सूंघता .. ऐसा नहीं कोई असली की नाक लंबी है, नहीं। जिनको प्रेम की खुशबू आती है वो सूंघता हुआ वहाँ पहुँच जाता है - मानो वो गणपति है। तो यहाँ पर भी बाप ने गणपतियों को बैठे देखा, और लंबी-लंबी नाक वालों को भी देखा। यह जो प्रेम का संबंध है ना, यह पूरे 84 जन्म आत्मा से बाहर नहीं निकलता, यह टूटता ही नहीं। देह के सब संबंध टूट जाते हैं। कैसे? एक शरीर लिया, दूसरा लिया, तीसरा लिया - टूटते गए ना। लेकिन एक पिता से ही संबंध टूट नहीं सकता, चाहे एक जन्म लो, और चाहे 84 जन्म लो - यह अटूट संबंध है!

अच्छा बच्चों, आप बच्चों से मिलकर बाप को बहुत खुशी हुई। आप सभी का बाप के दिल में वेलकम है। और बाप का आशीर्वाद, वरदानी हाथ, आप बच्चों के सरपर सदा है। यह साथ और यह हाथ, ना कभी उठा है, ना कभी उठेगा। सतयुग में भी नहीं! यह नहीं सोचना ‘सतयुग में हम सुखी रहेंगे, तो बाप को भूल जाएंगे, और बाप हमें भूल जाएगा’। हाँ, आप जरूर बाप को भूल जाएंगे, पर हम किसी को नहीं भूलेगा। हम किसी को भी नहीं भूलेगा।

अच्छा बच्चों, आज ब्रह्मा बाप बड़े इंतजार में है। काफी समय हो गया ना, तो ब्रह्मा बाप बगल में बैठा है। आपसे जरूर मिलने आएंगा। अच्छा, यह साथ, यह हाथ कभी नहीं छूटेगा, यह दोस्ती भी कभी नहीं टूटेगी।

अच्छा बच्चों, ऐसे गणपति लंबे नाक वाले बच्चों को, बाप-दादा का बड़ा मीठा-मीठा याद-प्यार ..
फिर मिलेंगे ..

(बच्चों ने बाबा का धन्यवाद किया ..)

धन्यवाद तो परायों का करते हैं। ऐसे कहो – ‘बाबा, आपको तो आना ही पड़ेगा, आप नहीं आएंगे तो कौन आएगा?’ हाँ .. धन्यवाद तो बिछड़ने वालों का करते हैं। मिलने वालों को तो पकड़ के रखते हैं। हाँ .. तो क्या आपने पकड़ के रखा है? तो कहो – ‘बाबा, आपको आना ही पड़ेगा; यह अधिकार है; ‘आप नहीं आएंगे, तो हम परमधाम से खींचके लाएंगे।’

अच्छा, तो हम आपको धन्यवाद नहीं कहेंगे, कि ‘आप आए, आपका धन्यवाद’। क्योंकि जहाँ बाप आए, वहाँ आपको आना ही पड़ेगा .. आना ही पड़ेगा .. आना ही पड़ेगा! जो बच्चे बाहर बैठके - सेंटर पे, या कहीं पर भी कहते हैं ना, ‘भले बाबा, हम मर जाएंगे, पर आएंगे नहीं!’ बाबा कहेगा - मरने के बाद तो सबसे पहले आ जाएंगे। आप मर जाएंगे तो सबसे पहले पहुँचेंगे ना! देह में तो लेट आते हैं, टिकट कराना पड़ता है, मेहनत करनी पड़ती है। टिकट मिले ना मिले कोई भरोसा नहीं। मरने के बाद तो कंफर्म टिकट होती है। समझ में आया? मरने के बाद तो सबसे बड़े टीटी की मोहर लगी हुई टिकट होती है। आप यह भी नहीं कह सकते कि ‘मैं ट्रेन में नहीं चढ़ूँगा’। आपको चढ़ना ही पड़ेगा, आना ही पड़ेगा, बाप के सामने बैठना ही पड़ेगा! अब चाहे मरके आओ, चाहे जीके .. । दोनों ही सूरत में आना पड़ेगा। लेकिन कमाल की बात क्या है? मरने के बाद आए, तो पछताने में रोना पड़ेगा। आँसू बहाएंगे, तकलीफ होगी। और मिलकर के मरे, तो पछताना नहीं पड़ेगा। बस यह होगा। तो अच्छा है ना, मिलकर के मरे तो ऊपर गोदी में बैठेंगे। हाँ, और बिना मिले मरे, तो लाइन में खड़े हो जाएंगे। तो कौनसा पसंद आएगा? कौनसा पसंद आएगा? गोदी में बैठने वाला ना? लाइन में तो बहुत लंबी लाइन है। ऐसा नहीं मरने के बाद पहले आपका नंबर आएगा। आपके साथ-साथ बहुत सारे बच्चे उड़ते हैं सृष्टि से - एक नहीं बैठता! जैसे स्टेशन से ट्रेन कितनों को लेकर चलती है? .. हाँ? एक आपको तो लेकर नहीं चलती ना? घर से आप अकेले निकले, पर जब स्टेशन पहुँचे, रेलगाड़ी पास पहुँचे, तो कितने होंगे? अनेकों होंगे ना? तो बस यही सोचना है। घर से भले अकेले निकले, पर सूक्ष्म वतन के स्टेशन पर लंबी लाइन लगी है!

अच्छा, फिर मिलेंगे ..

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Zorba the Greek
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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Versions of Shiv Baba
15.09.2024 - Ludhiana, (Punjab)

"Sweet children .. the ‘feeling of Service’ - is this ‘feeling of Service’ present in the Father's children?"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=4uHPpWWbSIU

OK .. What have you children come to this place to learn today? The children who have come and are sitting here since morning, are all sitting in anticipation that ‘my Baba will come’ - in the same way, BapDada is also anticipating that My children will come. Your sound reaches up to the Father very quickly. But it takes time for the Father's sound to reach up to the children. Why does it take time? Why does it take time to reach? .. Whenever you talk to someone, you listen to what he/she is saying carefully, do you not - you give him/her time, then you can understand what he/she is saying. So, whatever time you give to bodily beings, do you give even a quarter of that to the Father? .. Then how will the Father's words be understood? How will you get the Father's message accurately? What has to be done to receive the message from the Father? What must you do? [We have to give time] .. Yes! What must you do? You must give time to the Father.

When any of you go to ask others in this world about your future, hoping that so-and-so will tell you your future after looking at your horoscope - you will definitely give him an hour or two and then return. And yet he cannot predict your future completely. If you give that same one or two hours to your own self, if you give it to the Father, then you can know the future of not only your own self but of the whole of Bharat (whole World).

Well, what will you learn here today and return? .. Yes? First of all, the Father welcomes those who have come for the first time, the Father welcomes you wholeheartedly – those who are sitting for the first time, those who are celebrating the Meeting for the first time - but for the first time in this Cycle. What should you think? That today is the first time in the Cycle. Next time you will think how many times you would like to celebrate the Meeting. But BapDada welcomes those who are Meeting for the first time in this Cycle, welcomes you wholeheartedly.

Well, in what is the ‘feeling’ here? The ‘feeling’ here .. wherever you children go, in whatever place, in whatever area you go, in whatever land you go, in whatever state you go, do you pick up any virtue of that place? Do you pick up any virtue? If you have not been picking it up then definitely do pick it up. What virtue will you take from here and return? [Service..] The ‘feeling of Service’! Not just Service, remember this. Everyone does service anyway, the whole world does service, but what is behind it? You have to take the ‘feeling of Service’ from here. How? How? Can anyone say how?
[Humility ..] Yes? [Humility ..] Humility .. the ‘feeling of Service’ means, no matter how big a businessman he is here, no matter how big a company he owns here, he sits in the Gurudwara and cleans the shoes with his own shirt. Do you understand? They clean the utensils, and then leave for their work. After that he has no ego that ‘I am the owner of such a big company, why should I clean shoes? Why should I do this service?’ Yes, what is connected to service? Feeling! The ‘feeling of Service’! Is this ‘feeling of Service’ present in the Father's children? Is it? Or does body-consciousness begin to harass you even in doing a little Service, that ‘I did so much Service, I did this, I did that’.
Do you know what this means? Children will definitely feel a little. A little bit .. yes. It means that you ate food, then you vomited that after eating, and after vomiting you then ate that vomit back again. Did you not understand? You did Service .. just as the food eaten disappears in the stomach and is not visible, similarly the Service you do should disappear within the mind, it should remain hidden. Did you understand? It should not be visible. If after doing Service, you relate that to others by coming into body-consciousness, then it is as if you have vomited the food that you have eaten. Now how do you eat that back again? Then if one says, ‘I have done so much Service - with my body, with my mind, or with my money - please return that to me’. So that means, what did he/she do with his/her vomit? He/she ate that back again. So what Service did he/she perform?

What is the meaning of ‘secret (incognito) donation’? Now, Service through the mind is the most powerful Service. It is not that Service through actions is not powerful. But that action is powerful, which is done through the mind, which is done with an honest heart, which is done with true feelings, which is done with true Love. That Service is not powerful, which is done out of sadness, which is done by hurting one another, which is done by tormenting one another, or which is done to display one's own greatness. Are you able to understand?
You will get a price for that Service also - but how much? How much will you get? You will get as much as you get for artificial jewellery, because you have already consumed the real one. So what is left? The price of iron! So that's what you will get. No matter how much time you may have given - understand the ‘feeling of Service’. What will happen by relating to others? Will you receive any fruit? Well, will the person, in front of whom you are relating, give you any fruit? Will he give? If you have related to 10 bodily persons, saying ‘I did this’, would those 10 bodily persons give you any fruit? Will they give you any fruit? Will you receive it? You will not receive any! Yes, after doing this they may praise you for two to five minutes – ‘well, you have done this; you did it like this!’ That’s all! But think about this .. what happened to your accumulated Service account in the main Bank? That became empty from there!

So today, leave this bodily pride behind and return, give it to the Father and return. If you have to eat after vomiting, then just see - how it feels just by listening to this! But is not it amazing, children do that every day. Bodily pride of what? Of that which is not yours at all? Whose is this money? Yours? Is it your relative? These days, you do not have any true relationships of your own .. then this is money, which is there with you today, and which will belong to someone else tomorrow. You have pride in something that does not exist at all – in something that does not belong to you at all! Why?
Majority among the Brahmin children - whether they are Sisters managing the Centers, or whether they are sitting here, or whether they are sitting anywhere else .. bodily pride will not go along with the soul. This pride is about to be burnt to ashes, before it leaves. Did you understand? Pride of what? Of Knowledge? Where did this stream of Knowledge come from? If there is pride in Knowledge, then where did this stream come from? [From Baba] From Baba! So should the Father have that (pride)? He does not! So how did it come to you? The one from whom the stream flows does not feel proud, but the one who drowns in the stream also drowns in bodily pride!

The children keep counting – ‘I am 10 years old (in Knowledge), I am 16 years old, I am 30 years old’. What did the Father say? He has said again and again – ‘the old things are not of any use, the old things are going to be destroyed’. So, will you continue to be old? The old things will be destroyed. Become young, become a child (in your inner awareness), become Loving, become a dearest one - as if you have just been born, as if you are just beginning to walk. Just as a small child has no bodily pride, is it not? Is it not?
So become (like) little children. Because this bodily pride sinks after taking even the best of children along! Think about this. You performed Service - with your body, with your mind, or with your wealth – you have done this, have you not? Just as, what did Father Brahma do? What did he do? He surrendered (everything with his mind). He definitely surrendered, that too not in his own name, he sacrificed everything in the Yagya - in the name of all the Mothers and Daughters. So children, even if you do not do anything - the Father did not come to tell you to surrender your body, but you must definitely surrender with your mind. If you have surrendered your body, then you should just remain surrendered with your body and mind. Then the world is of no use. If you have surrendered your body, then there is no (bodily) pride. If pride comes then your pockets become empty.

Well children, BapDada is very happy to meet all of you. Whether you have come here for the first time to Meet personally through this Chariot (of Divine Mother Devaki - who is the very same soul of Saraswati Mama), or how many times you may have met in Madhuban (at Abu) - the Father knows. You have not come without having (true) Love, is it not? Although some have come to check - because it is a matter of life. Yes! Why is it a question of life? If you purchase even a pot of clay from the market, still you sound it to check whether it has empty air pockets within or not, or whether it has any cracks somewhere or not? The Father is happy about this aspect – that at least you have come, you did sound the pot, you did carry out a check – you have surrendered in this way, and even this much is enough for the Father. Because you may have come to just see (to check), but whom have you come to see? Just this aspect by itself touches the Heart of the Father, children - that at least you have come to see, but whom have you come to see? That is why - that is why the Father is very happy. Those who have come for the first time, and who have come to see, and who have come in doubt – the Father is very happy with even those who have doubt. Because even though you have come in doubt, you will leave from here after sitting within the Father's Heart.
This bond of (true) Love is unbreakable; whether the Father maybe sitting in Madhuban, or whether the Father is sitting in any corner (of this world), the relationship of the Father with the children is so unbreakable that no matter how many miles away the Father maybe sitting, the children will definitely reach up to the Father by sniffing at the fragrance of His Love. That is why Ganapati has been given such a long nose. Why has it been given? Why has Ganapati been given such a long nose? Ganpati would continue to smell the fragrance of his parents (and reach up to them) .. it is not that any real person has a long nose, no. Those who get the fragrance of His Love reach there while sniffing at it - as if he is Ganapati. So here also the Father saw the Ganapatis sitting, and also saw those with long noses. This relationship of (eternal) Love does not come out of the soul for the entire 84 births, it does not break at all. All relations of the body get broken. How? You took one body, then you took another, then you took the third – they (the bodily relationships) kept breaking, did they not? But the relationship with one Father cannot be broken, whether you take one birth or whether you take 84 births - this is an unbreakable (eternal) relationship (of true Love)!

Well children, the Father was very happy to meet you children. All of you are welcome within the Heart of the Father. And the Father's benediction and His Hand of Blessings are always over the heads of you children. This Company and this Hand have never lifted, nor will they ever lift. Not even in the Golden Age! Do not think that ‘since we remain happy in the Golden Age, we will forget the Father, and the Father will forget us’. Yes, you will definitely forget the Father, but I will not forget anyone (ever). I will not forget anyone at all!

Well children, today Father Brahma is eagerly waiting for you. A long time has elapsed, and Father Brahma is sitting just next to Me. He will definitely come to meet you. Well, this Company, this Hand will never leave you, this friendship will also never break.

Well children, to such Ganpati children with long noses, sweetest Remembrance and Love from BapDada..
We will Meet again ..

(The children thanked Baba..)

Thanks are given to strangers. You should say – ‘Baba, You will have to come, if You do not come then who will come?’ Yes .. one thanks those who are outsiders. We hold on to those we meet. Yes .. so, are you holding on (to the Father)? Then you must say – ‘Baba, you will have to come; that is out right; if you do not come, we will pull You away from the Supreme Abode (towards us)!’

Well, so I will not say thank you - ‘thank you for coming here’. Because wherever the Father comes, you will definitely have to come there .. you will surely have to come .. you will certainly have to come (to meet Him)! Some children who are sitting outside say – whether they are at the Center, or whether they are anywhere else - ‘well Baba, we will die, but we will not come (to meet You)!’ Baba will say – you will be the first ones to come after death. If you die, you will be the first to reach there, will you not! While you are in the body you come late, you have to book tickets, you have to work hard. There is no assurance whether you will get a ticket or not. After death you receive a confirmed ticket. Did you understand? After death, you get a ticket with the stamp of the greatest TTE. You cannot even say ‘I will not board the train’. You will have to entrain, you will have to come, you will have to sit in front of the Father! Now, you can come either when you are dead or while still alive .. you will have to come in both cases.
But, what is it that is amazing? If you come after death, you will have to cry in regret. You will have to shed tears, you will experience pain. And if you die after meeting, you will have no regrets. That is what will happen. So, it is good - if you die after meeting then you will sit in His Lap (of Love) above. Yes; and if you die without meeting, you will have to stand in line. So, whom would you like? Whom will you like? One who sits on His Lap, right? There is a very long line in the queue. It is not that after death your turn will come first. (Souls of) Many children fly away along with you, from this world – just one does not sit! Like, how many people does the train carry from the station? .. Yes? It does not carry just you, does it? You left home alone, but when you reached the station and the train approached, how many would be there? There would be many, right? So this is all you have to think about. Even if you leave home alone, there is a long queue at the Station in the Subtle Region!

OK, we will Meet again ..

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
29.09.2024 - भरमसागर (कर्नाटक)

"मीठे बच्चे .. बाप के प्रेम में इतना भी लालच नहीं चलेगा - सौदा दोनों तरफ से वफादारी का होना चाहिए, सौदा दोनों तरफ से ईमानदारी का होना चाहिए, तभी उसमें फायदा है।"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=o2piQ_s2nqo

https://www.youtube.com/watch?v=o2piQ_s2nqo&t=390s

अच्छा .. आज हम एक रेस देख रहे हैं। रेस कैसी? एक भक्ति मार्ग की, एक ज्ञान मार्ग की। दोनों रेस में कुछ ज्यादा फर्क नहीं देखा। भक्ति मार्ग की रेस को देखा - क्या देखा? दौड़ रहे हैं! क्या चाहिए किसी को कुछ मालूम नहीं। छोटी-छोटी इच्छाओं के पीछे दौड़ रहे हैं। अभी ज्ञान मार्ग वाले बच्चों की रेस को देखा। वो भी दौड़ रहे हैं। पर किसके पीछे दौड़ रहे हैं - वो भी बच्चों को मालूम नहीं है! दौड़ रहे हैं, किसी को एक वर्ष हुआ - दो, तीन, चार - किसी को 20 हुआ, किसी को 30 वर्ष हुआ, वह भी दौड़ रहे हैं। पर कमाल का देखा - मुख से तो ‘बाबा, बाबा’ कहते हैं, पर दिल बाप की तरफ नहीं दौड़ती। क्या कहते हैं? वर्ष गिन रहे हैं, साल गिन रहे हैं – ‘मुझे इतना साल हो गया दौड़ते-दौड़ते .. मुझे 20 साल हो गए दौड़ते हुए .. मुझे 30 साल हो गए .. मुझे 40 साल हो गए ..! आज बाबा उन बच्चों से पूछते हैं - आपने 40 साल दौड़कर क्या किया? 40 साल तक दौड़ते-दौड़ते क्या हासिल किया? 20 साल तक दौड़ते-दौड़ते क्या पाया? अच्छा, कहेंगे ‘बाबा मिला’। बाबा तो एक साल वाले को भी मिला। 30 साल वाले को क्या मिला? क्योंकि बाबा तो एक बारी मिलता है। 40 साल वाले को क्या मिला? आज भी बाप सभा में देख रहे हैं, बच्चे थोड़ा डर के बैठे हैं – ‘किसी ने हमें देख लिया तो?’ नाम रखवाया है - सर्वशक्तिवान की संतान ‘मास्टर सर्वशक्तिवान’ हूँ, आदि रचना हूँ, शिव पिता की संतान हूँ! और उसी शिव पिता के सामने डर के बैठे हैं! भय से बैठे हैं .. जिससे मिलने आए, जिसके लिए इतना जीवन समर्पण किया!

अच्छा, आज भक्ति मार्ग वाले भी आए हैं। वो भी दौड़ रहे हैं। अच्छा, यहाँ भी भाषा का प्रॉब्लम है। समझ नहीं आएगा - आप समझाओ। .. देखो, अपनी भाषा सुनते ही कैसे कांध हिलाते हैं ना? खुशी होती है। खुशी होती है! अभी अच्छा रिस्पांस आ रहा है।
अच्छा .. आप बच्चे इतने समय तक सबने भक्ति की ना? पूजा पाठ किया, सबने अपने कुल देवी और देवताओं को माना, तो आपको क्या मिला? क्या मिला? कुछ नहीं मिला? कुछ नहीं मिला? अच्छा, आपने भक्ति की, जिससे आपने मांगा, जब आपने मांगा, आपके मन में कितनी इच्छाएं थी, कितने ढेरों मांग थी। जिससे आप मांगते हैं, आपने क्या-क्या मांगा, यह बुद्धि में सोचना। क्या कभी किसी ने यह मांगा कि ‘बाबा, मेरा मन शांत रखना, मेरे अंदर में जो भी इच्छाएं उत्पन्न होती हैं उनको सब खत्म करना’, या ‘जो आपको लगे जिस लायक मैं हूँ वही मुझे देना’ - क्या यह मांगा? क्या यह मांगा किसी ने?

अच्छा, जिन बच्चों को हिंदी समझ में आता है वो एक हाथ की ताली दिखाना। एक दूसरे को देखके नहीं, जिनको हिंदी समझ में आता है। अच्छा, मेजोरिटी यहाँ की भाषा वाले बच्चे हैं। कोई बात नहीं, सतयुग में किसी को भाषा का प्रॉब्लम नहीं आएगा! जो बाप राज्य बना रहे हैं, जो स्वर्ग बना रहे हैं ना, उसमें एक धर्म, एक भाषा, एक मत, सब एक होगा। अनेकता पर कभी झगड़ा नहीं होगा। सब चाहते हैं ना - एक हो?

अच्छा .. आप सभी को बाप-दादा का आशीर्वाद है। सबके दिल में एक दिलाराम की याद समाई हुई हो। सभी खुश रहे, सभी बाप का बनके रहे, और सभी का मन शांत हो। सदा ‘एक बाबा, दूसरा ना कोई!’- यह संकल्प हर एक बच्चे के दिल में चले। हर एक के ऊपर, पुरुषार्थ अनुसार, बाप-दादा का वरदानी हाथ सदा उनके सिर पर हो। सदा खुश रहो, और खुशियाँ बाँटो। सबको खुश रखो - अपनी तरफ से। भल उनका कर्म - पर आप अपना कर्म जरूर करें। ठीक है?

अच्छा .. अभी मधुबन का मिलन नजदीक आने वाला है। अभी चारों तरफ आवाज पहुँच गई तो होगी ना, कि मधुबन में बाबा आ रहे हैं। सबको मालूम है? मालूम हो जाएगा। बच्चों ने - मेजोरिटी बच्चों ने बाप को संकल्प दिया कि ‘बाबा, मधुबन में आप जब आएंगे तो हम आपसे मिलने जरूर आएंगे’। तो यह आवाज उन सभी तक पहुँचे कि आपका बाप-दादा, सबका बाप-दादा, मधुबन में पहुँच रहे हैं। जिन्होंने संकल्प किया कि ‘बाबा, मधुबन में जरूर आना’, तो उनको बाप निमंत्रण दे रहे हैं .. हम आ रहे हैं, आप भी जरूर आना .. आप भी जरूर आना!

जैसे, इतने वर्षों तक बच्चों ने किसको बुलाया? किसको बुलाया? .. थोड़ा आवाज से सुनाओ। इतने वर्षों तक ब्रह्मा बाप को बुलाया – ‘आ जाओ, ब्रह्मा बाबा हमारे’! बुलाया? लेकिन वो शरीर लेकर कैसे आएगा? क्योंकि 84 जन्म के बाद तो सीधा सतयुग में फर्स्ट जन्म होगा। पर बच्चों का संकल्प भी पावरफुल रहा। बच्चों ने बुलाया – ‘आ जाओ, ब्रह्मा बाबा हमारे’! तो ब्रह्मा-बाप भी आया। आया! जब हजारों, लाखों बच्चों के संकल्प चलेंगे, तो क्या बाप-दादा उन संकल्पों को पूरा नहीं करेगा? करेगा ना? तो ब्रह्मा बाबा की वही आदि की लीला चल रही है। जो आ रहे हैं वो मौज में हैं, जो नहीं आ रहे वो बाद में पछताएंगे। और जो ये शब्द सुनके कहते हैं – ‘कोई बात नहीं, हम पछता लेंगे’ - तो वो डबल पछताएंगे, क्योंकि जिनको मैसेज नहीं पहुँचा वो पछताएंगे तो उनको कर्म का फल नहीं देना पड़ेगा। पर जिनको मैसेज मिला, फिर भी बाप के ना बने, फिर भी पालना से वंचित रहे, उनको डबल पछताना पड़ेगा। जो मिलकर संशय में रहे, तो उनको तीन गुणा पश्चाताप होगा। तीन गुणा जानते हैं? अभी तक किसी ने एक गुणा भी नहीं किया। तो तीन गुणा सोचना! अब जिन बच्चों ने संकल्प दिया – ‘बाबा, आप जब मधुबन में आएंगे ना, तब हम आपसे जरूर मिलेंगे’ - तो बाबा यह कह रहे हैं कि बाबा मधुबन में पहुँच रहे हैं, और बच्चों को निमंत्रण दे रहे हैं – वेलकम, सभी बच्चों का!

कमाल है ना - जिस बाप-दादा को इतने दिल से याद कर रहे हैं, याद करते हैं, उन्हीं से ही मिलने के लिए रोकते हैं। यह वंडरफुल बात पूरे चारों युगों में कहीं देखने को नहीं मिलेगी। यह वंडरफुल बात, इस संगमयुग में ही मिलती है - कि जिससे प्यार है, जिसके लिए रोते थे, उसी से मिलने के लिए अब परमिशन लेनी है। बड़ी दीदी या दादी से पूछना है – ‘क्या मैं बाबा मिलन करने जाऊँ?’ कोई बात नहीं – चलेगा - जो जिसका भक्त है उसके साथ पहुँचे!

अच्छा बच्चों, ड्रामा कल्याणकारी है। जो भी हो रहा है उसमें भी कल्याण है। जो भी होगा उसमें तो बड़े ते बड़ा कल्याण है। ड्रामा के पट्टे पर जो खड़ा है उसीने मंजिल को पाया है। और जो पट्टे से बार-बार घड़ी-घड़ी नीचे उतरता है, वो मंजिल पर पहुँचा तो है, पर नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार!

अच्छा बच्चों, बाप-दादा का ऐसे सिकीलधे बच्चों को विशेष याद-प्यार। और यहाँ पर बच्चियों ने बहुत मेहनत किया है। अब इस सेवा को आगे बढ़ाओ।

एक विशेष मेसेज मेजॉरिटी, मेजॉरिटी ब्राह्मण बच्चों के लिए - सब कुछ किसका? [बाबा का] सब कुछ किसका? [बाबा का] .. मुख से या मन से? [मन से बाबा] .. पक्का? आपसे जो जुड़ा वो किसका? [बाबा का] .. पक्का ना? पेपर लेंगे तो यह नहीं कहना, कि ‘यह मेरा है’। याद रखना, सोच के बोलना। एक बार फिर कहना - सब कुछ किसका? [बाबा का] किसका? [आपका, बाबा]

अच्छा, अच्छी बात है! यह एकदम यहाँ से (दिल से) आवाज आनी चाहिए, क्योंकि हमारे कान नहीं हैं! समझ में आया? हमें यहाँ से (दिल से) सुनाई देता है। और जिसने यहाँ से आवाज दिया, जिसने दिल से बोला, बस उतनी ही आवाज यहाँ तक आई है, बाकी का आपके पास ही रहा। सब कुछ किसका? [बाबा का] बाबा का! किसका? [बाबा का] .. ऐसे कहो ‘आपका!’ [आपका, बाबा] बाबा का ना? हाँ! आज जो मेजोरिटी ब्राह्मण बच्चों ने जो एरिया का बंटवारा किया है ना, चाहे कहीं भी बैठकर सुन रहे हैं – ‘यह मेरा स्थान, यह मेरा स्टूडेंट’ - इसको छोड़ने का समय आ गया है। इसको भी तोड़ने का समय आ गया है। सब कुछ किसका? [बाबा का] जब समर्पित हुए तो क्या कहा था? क्या कहा था? सब कुछ आपका! पर थोड़ा एक वर्ष हुआ, दो वर्ष हुए, थोड़ा समय बिता, तो क्या सोचा? धीरे-धीरे मेरा हो गया। अब मेरा हो गया, तो सोचा, ‘चलो थोड़ी कमाई कर लेते हैं’। कमाई करो, पर कमाई करते-करते किस-किस का दिल दुखा? और बाप जो ऊपर से बैठ कर देख रहे थे - उसका हिसाब-किताब बना। और कमाई भी कहाँ से की? अपने ही परिवार से ना? जरूरत की चीजें अलग बात है। बाप बैठा है।
याद रहे - जिनसे लिया और जिनसे मांगा, उनका तो 100% जमा हो गया। पर जिसने मांगा, जिसने मिसयूज़ किया उसका 100% घाटा हो गया। और जिसने दान करके चारों तरफ फैलाया उसका 50% घाटा हो गया! समझ में आ रहा है? फायदा कहाँ हुआ? घाटा कहाँ हुआ? आपने दिया, देकर भूल गए, वापिस रिपीट नहीं किया, तो 100% मुनाफा चला गया, क्योंकि वो डायरेक्ट ईश्वरीय बैंक में जमा हुआ था। क्योंकि आपने बाप को दिया। देने के बाद वर्णन किया, 50% आपने खर्च कर दिया, घाटा हो गया। और जिसने मांगा .. जिसने मांगा उसका 100% चला गया। मांगने के कई तरीके हैं। अगर आप उन बच्चों को कहीं लेकर जाते हैं, टिकेट बनाते हैं, या उन्हीं के लिए खर्च करते हैं, तो उनसे इतनी ही राशि लेना जितना खर्च हुआ। सिर्फ इतना ही। उससे एक पैसा भी ज्यादा नहीं लेना। तो आपका जमा हो गया। आपने लालच में आया, उनसे कमाई किया, तो क्या हुआ? घाटा हो गया। और जिसने बाप के यज्ञ में अपने दिल से जो किया, वो उनका जमा हो गया, याद रखना!
यह किस चीज के लिए कह रहे हैं? जो एक-दो को बाबा से मिलाने के लिए मधुबन या कहीं पर भी लेकर आते हैं, यह उनके लिए है। पर जो बाप के यज्ञ में अपनी दिल से स्वाहा करते हैं, उनका जमा हुआ। और जो परिवार में, गृहस्थी में रहकर एक दो से मांगते हैं - या किसी ने सेवा के लिए कुछ दिया, किसी को भी दिया, और उसने पर्सनल में लगाया, तो उसका बोझ चढ़ गया, फिर वो कहाँ से निकलेगा? या आपके शारीरिक बीमारी से निकलेगा, या कहीं से निकलेगा, या चोरी हो जाएगा। याद रखना - जो सेवा के लिए आता है, उसको सेवा में ही लगाना है। याद रखना! यह संदेश, यह मैसेज बाबा क्यों दे रहे हैं, जानते हो? क्योंकि बच्चे बाप को कहते हैं – ‘बाबा, यह हो रहा है, ऐसे हो रहा है, हम सब करते हैं फिर भी हमारे साथ ऐसे होता है’। बाप के प्रेम में इतना भी लालच नहीं चलेगा। समझ में आया? जब बाप आपसे प्यार करता है, क्या कभी सोचता है, कि आपसे मुझे कुछ मिलेगा? सोचता है? नहीं सोचता ना, कि आप हमें कुछ देंगे? नहीं सोचता है।
सौदा दोनों तरफ से वफादारी का होना चाहिए। सौदा दोनों तरफ से ईमानदारी का होना चाहिए, तभी उसमें फायदा है। जो बच्चे कहते हैं ना, ‘बाबा, हमारा घाटा हो गया’, उस घाटे की जिम्मेवार स्वयं होते हैं। क्योंकि बाप से नाफरमानबरदारी, बाप से चीटिंग, वो आपको दो गुणा हो जाती है। क्यों? इसका कारण कोई बताएगा? क्योंकि जिसके साथ आपने सौदा किया है ना, वो एकदम ईमानदार है, वफादार है, आज्ञाकारी है। और उसके साथ धोखे का सौदा! तो क्या होगा? तो उसका रिटर्न कितना मिलता है? कई गुणा मिलता है! याद रखना, अगर आपकी एक पाई भी वफादारी, ईमानदारी की होगी ना, उस एक पाई का 100 पाई होकर मिलेगा। और अगर आपकी हजार पाई स्वार्थ से भरी होगी - कि मेरा नाम हो, मेरा मान-शान हो, मुझे स्टेज पर बुलाया जाए, मेरा नाम लिया जाए - तो मानो वो हजार पाई, एक पाई में आ जाएगी। अगर आपने बाप से वफादारी निभाई तो वो कहीं और से घूमके आपके पास पहुँच जाएगी - आज नहीं, कल नहीं, एक बरस के बाद, कहीं पर भी, कभी भी - क्योंकि आपका जमा हो गया। दान देकर ढिंढोरा पीटना, त्याग करके ऐलान कर देना, उसका 50% बनेगा। समझ में आया? समझ में आया? किनको समझ में आया?

ये मेजॉरिटी मैसेज सभी के लिए है। पूरे ब्राह्मण परिवार के लिए है!

अच्छा .. बाप का प्यार, बाप का साथ और बाप का हाथ सदा ही रहेगा।

अच्छा, फिर मिलेंगे ..

ये शिक्षाएं छोटी हैं, पर कर्म बड़े-बड़े हो जाते हैं, याद रखना। ना मेरा, ना किसी का, सब कुछ किसका? [बाबा का] .. किसका? [बाबा का] किसका? [बाबा का] .. हम यह बात याद रखूँगा - ठीक है? जो आवाज सुनके कहेगा ना, ‘सब कुछ आपका’, तो उनकी भी बात बाप को याद रहेगी।

बाप का है, तो बाप का ही है ना? भल आपके पास जाए या आए। आए या जाए, जाए या आए! तो किसका हुआ? [बाबा का] .. तो जाने से रोना नहीं, आने से नाचना नहीं! समझे? जाने से रोना नहीं, आने से नाचना नहीं! समान स्थिति! सब बाप का है ना? ठीक है? याद रहेगा? सब .. सब हमारा है। सब बाप का है।

अच्छा, फिर मिलेंगे ..

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Zorba the Greek
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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Versions of Shiv Baba
29.09.2024 - (Bharmasagara, Karnataka)

"Sweet children .. even this much greed (even as much as the very tip of a finger) will not do in the Love of the Father - the deal should be of loyalty from both sides, the deal should be of honesty from both sides, only then there is benefit in it."

Link: https://www.youtube.com/watch?v=o2piQ_s2nqo

OK .. Today, We (Bap-Dada) are watching a race. What race? One is of the ‘path of devotion’, and one is of the ‘path of Knowledge’. We did not see much difference between the two races. We saw the race of the ‘path of devotion’ - what did We see? They are running! No one knows what they actually want. They are running after little desires. Now, We saw the race of the children on the ‘path of Knowledge’. They are also running. But the children do not even know whom or what they are running after! They are just running - some have been running for a year - two, three, four years – some have been running for 20 years .. some have been running for 30 years, they are also running. But what was seen to be amazing was - they keep saying ‘Baba, Baba’ with their mouths, but their hearts do not run towards the Father. What do they say? They are counting the years, they keep counting the years – ‘I have been running for so many years .. it has been 20 years since I have been running .. I have been running for 30 years .. I have been running for 40 years ..! Today, Baba is asking those children – what have you done after running for 40 years? What did you achieve by keeping on running for 40 years? What did you get by keeping on running for 20 years? Well, they will say that ‘we found Baba’. Even the one who is one year in Knowledge has found Baba. What did the one who has been running for 30 years get? Because one can also Meet Baba once. What did the one who has been running for 40 years get? Even today the Father is seeing in this gathering that some children are sitting with a little fear – ‘what if someone sees us?’ You have kept your name – I am ‘Master Almighty’, the child of the Almighty, I am the original creation, I am the child of Father Shiva! And you are sitting in fear in front of that same Father, Shiva! You are sitting in fear of the One whom you have come to Meet .. for whom you have dedicated so much of your life!

Well, today those from the ‘path of devotion’ have also come. They are also running. Well, here too there is a problem of language. You are not able to understand – (looking at the teacher) you may explain to them. .. Look, how you move your shoulders when you hear your own language, is it not? You feel happy. You feel happiness! A good response is coming from you now.
Well, you children have performed devotion for so long, have you not? You recited in prayer, everyone believed in their clan of gods and goddesses (deities) .. so what did you get? What did you get? Did you not get anything? Did you not achieve anything? Well, you performed devotion .. how many desires you had in your mind, how many demands there were .. from whom you asked, when you asked. Think within your intellect about the one from whom you asked, as to what all you had asked for. Did anyone ever ask this, ‘Baba, please keep my mind calm, eliminate all the desires that arise within me’, or ‘only give me whatever You feel I deserve’ - did anyone ask for this? Did anyone ask for this?

Well, those children who are able to understand Hindi show your clap with one hand (wave out). Only those who understand Hindi - not by looking at one another. Well, the majority are children who speak only the local language from here. It does not matter - no one will face any language problem in the Golden Age! There will be one religion, one language, one belief system - everything will be one in the Kingdom of Heaven that is being established now by the Father. There will never be a quarrel over diversity. Everyone wishes to be united, do you not?

Well.. all of you have Blessings from Bap-Dada. Let the Remembrance of only one ‘Comforter of hearts’ remain merged within everyone's heart. May everyone be happy, may everyone continue to belong to the Father, and may everyone's mind be at peace. Always ‘One Baba, and none other!’ .. let this thought play within the heart of every child. May Bap-Dada's Hand of Blessings always remain upon each one, over each one's head, according to one’s efforts. Always be happy, and distribute happiness to others. Keep everyone happy - from your side. Whatever may be their actions - but you must perform your own action! OK?

Well.. now the Meeting at Madhuban (at Abu) is coming closer. By now the news must have reached everywhere that Baba is coming to Madhuban (at Abu), is it not? Does everyone know? They will come to know. The children - the majority of the children have sent the thought to the Father that ‘Baba, when You come to Madhuban, we will definitely come to Meet You’. So, let this sound reach all of them that your Bap-Dada, everyone's Bap-Dada, is going to reach Madhuban (at Abu). Those who have emerged this thought that ‘Baba, You must come to Madhuban’, so the Father is inviting them .. We (Bap-Dada) are coming, you too must come .. you too must definitely come to Meet!

Just as - whom did the children call out to, all these years? Whom did you call out to? .. Speak a little louder. For so many years you called out to Father Brahma – ‘come, our Brahma Baba, come’! Did you call out? But how will he come by taking a body? Because after (having completed his) 84 births, his first birth will take place directly in the Golden Age (as Shri Krishna). But the thoughts of the children were also powerful. The children called out – ‘come, our Brahma Baba, come’! So Father Brahma also came. He came! When the thoughts of thousands and lakhs of children are expressed, will BapDada not fulfill those thoughts? He will fulfill, will He not? So, the same play of Brahma Baba is now taking place, as it was in the beginning (of the Yagya). Those who are coming are in a state of Joy, and those who are not coming will regret later.
And those who hear these words, and still say – ‘no problem, we will repent’ - then they will repent twice as much - because those who did not get the message will repent, but they will not have to bear the consequences of their action. But those who received the message, and yet did not belong to the Father, and yet remained deprived of His sustenance, will have to repent twice as much. Those who remain in doubt after Meeting will have to repent three times as much. Do you know what ‘three times’ is? No one has repented even a single time as yet. So think what ‘three times’ would mean! Now, the children who have emerged this thought – ‘Baba, when You come to Madhuban, we will definitely Meet You’ – then Baba is saying this to them that Baba is reaching Madhuban (at Abu), and is inviting the children – all the children are welcome!

Is it not amazing – those who Remember Bap-Dada so much from their hearts, who are continuing to Remember Him, are stopping others from Meeting Him. This wonderful aspect will not be seen anywhere in all the four Ages. This wonderful aspect occurs only in this Confluence Age - that now, one has to take permission to Meet that same One whom they Love, for whom they used to cry. You have to ask your Senior Sister or Dadi – ‘can I go to celebrate a Meeting with Baba?’ It does not matter – that is fine – they can reach (at the end) along with whoever they are a devotee of!

Well children, Drama is benevolent. There is benevolence in whatever is taking place. And whatever happens, there is the greatest benefit in that. Only the one who stands on the track of Drama has reached his destination. And the one who comes down from the track again and again, has also reached one’s destination, but number-wise, according to one’s efforts.

Well children, BapDada’s special Remembrance and Love for such long-lost-and-now-found children. And the Sisters and Mothers have worked very hard here. Now take this Service forward.

A special message for the ‘majority’, for the majority of the Brahmin children - whose is everything? [Baba's] Whose is everything? [Baba's] .. are you saying this through just your mouth or from your heart? [from our heart, Baba] .. Certain? Whose is that which/who is connected with you? [Baba's] .. You are certain, are you? If your test-paper is taken, do not say that, ‘this is mine’. Remember - think carefully and then speak. Say it once again – whose is everything? [Baba's] .. Whose? [Yours, Baba]!

Well, that is good! This sound must come right from here (from your heart), because I do not have ears! Did you understand? I hear from here (from My Heart). And whoever has emerged a sound from here, who spoke from one’s heart, only that much sound has reached here (to My Heart), the rest remains with you. Whose is everything? [Baba's] Baba's! Whose? [Baba's] .. Say ‘it is Yours’! [Yours, Baba] .. Baba's, correct? Yes! Today, the ‘area’ that the majority of Brahmin children have divided (among themselves), no matter where they are sitting and hearing – ‘this is my place, this is my student’ - the time has come to let go of this! The time has come to break this too. Whose is everything? [Baba’s] .. When you surrendered then what did you say? What did you say? Everything is Yours! But when a year, when two years had passed, after a little period elapsed, then what did you think? Gradually it became ‘mine’. Now that it belongs to ‘me’ .. then you thought, ‘let me make a little income’. You may earn an income, but whose hearts did you hurt while continuing to earn? And an account was created for such a one – and the Father was sitting and watching from above. And where did you earn an income from? From your own Family, right? Things which are necessary are of a different matter - the Father is sitting for that!

Remember - 100% of the amount was accumulated (for the one) from whomever it was taken, and from whom it was asked. But the one who asked for it, and the one who misused it suffered 100% loss. And the one who donated and spread that fact around suffered a 50% loss! Are you able to understand? Where was the benefit? Where was the loss? If you gave, and then forgot about it after giving, did not speak about it again to anyone, then 100% of the profit has gone (to the Father’s Bank), because that was directly deposited in God's Bank. Because you gave it to the Father. If you spoke about it after giving, then you have spent 50%, there is a loss (of 50%). And whoever asked (for extra amount from anyone) .. 100% of what he/she asked for is lost. There are many ways to ask. If you take those children somewhere, make tickets for them, or spend money for them, then take only that amount from them that was spent by you for them. That's all. Do not take even a single penny more from them. Then, what is yours gets accumulated. But if you became greedy and earned money from them, then what happened? There was a loss. And whatever one has done with one’s heart in the Father's Yagya, that has been accumulated - remember this!

For whom is this being said? This is for those who bring one or the other to Madhuban, or anywhere else, to Meet Baba. But those who sacrifice in the Father's Yagya with their hearts - theirs gets accumulated. And those who live within their family and household and ask from each other - or if someone gave something for Service, gave it to anyone, and if that one used it personally for one’s own self, then there is a burden of that on that one - then where will that come out from? Either it will come out through your physical illness, or it will come out from somewhere, or it will get stolen. Remember - the one who comes for Service, has to put everything only for Service. Remember! Do you know why Baba is giving this message? Because some children say to the Father – ‘Baba, this is happening, it is happening like this, we do everything and yet it happens to us like this’. Even this much greed (even as much as the very tip of a finger) will not do in the Love of the Father! Did you understand? When the Father Loves you, does He ever think that He will get something from you? Does He think? He does not think that you will give Him something, does He? He does not think!

The deal should be of loyalty from both sides, the deal should be of honesty from both sides, only then there is benefit in it! The children who say, ‘Baba, we have suffered a loss’, are themselves responsible for that loss. Because disobedience of the Father, cheating the Father, becomes double (burden) for you. Why? Can anyone tell the reason for this? Because the One with whom you have made a deal is absolutely honest, loyal and obedient. And if you make a deceitful deal with Him - then what will happen? So how much return (of a burden) does one get? You get it many times over! Remember, if even one penny of yours is of loyalty and honesty, you will get 100 times more worth for that one penny. And if your thousand pennies are full of selfishness - that I should have a name, that I should have fame and honour, that I should be called on the stage, that my name should be taken - then it will be as if those thousand pennies will be reduced to one penny. If you have remained loyal to the Father, then that will come back to you after turning around from somewhere else – if not today, if not tomorrow, then after a year, anywhere, anytime - because yours has been accumulated. Trumpeting after giving a donation, announcing after sacrificing, will accumulate only 50% (of your original donation). Did you understand? Did you understand? Who has understood?

This ‘majority’ message is for everyone. It is for the entire Brahmin family!

OK .. the Love of the Father, the Father's Companionship, and the Father's Hand will always be there.

OK, we will Meet again ..

These teachings are small, but the (consequences of) actions become very huge - remember this. Neither mine, nor anyone else's – whose is everything? [Baba's] .. Whose? [Baba's] .. Whose? [Baba's] .. I will remember this - OK? The Father will also remember the point from the one who hears this sound and says, ‘everything is yours’.

If it belongs to the Father, then it belongs only to the Father, does it not? Whether it goes away or comes to you. Whether it comes or goes, goes or comes! So, whose is that? [Baba's] .. So, do not cry when it goes, and do not dance when it comes! Did you understand? Do not cry when it leaves, and do not dance when it comes back! Maintain a stage of equilibrium! Everything belongs to the Father, does it not? OK? Will you remember? Everything .. everything is Mine - everything belongs to the Father.

OK, we will Meet again ..

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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