Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2900, दिनांक 03.06.2019
VCD 2900, dated 03.06.2019
प्रातः क्लास 27.11.1967
Morning class dated 27.11.1967
VCD-2900-extracts-Bilingual
समय- 00.01-18.17
Time- 00.01-18.17
प्रातः क्लास चल रहा था – 27.11.1967. सोमवार को आठवें पेज के मध्य में बात चल रही थी – ज्ञान, भक्ति और वैराग की। ज्ञान, भक्ति कहाँ जाएगी? हँ? कहते तो हैं; साधुओं को भी जाकर पूछेंगे तो वो तो कहेंगे कि वैराग ही सबसे ऊँचा है ना। तो हम वैरागी बने हैं, सन्यासी बने हैं। भक्ति का, ज्ञान का सन्यास तो किया नहीं। शास्त्र लिखते हैं तो समझते हैं हम बड़े ज्ञानी हैं। पढ़ते हैं तो समझते हैं ज्ञानी हैं। और फिर मन्दिर में जाके भक्ति करते रहते हैं। समझते हैं भक्ति बहुत ऊँची चीज़ है। अब बाप कहते हैं ज्ञान हो या भक्ति हो, या ज्ञान की प्रारब्ध हो सतयुग, त्रेता में या भक्ति हो द्वापर, कलियुग में उतरती कला की हो, उन सबका वैराग। तो क्या पाना है? हँ? सतयुग, त्रेता में जो ज्ञान रहता है कि मैं आत्मा ज्योतिबिन्दु हूँ; हँ? तो ज्योतिबिन्दु की याद रहती है तो सार रूप में ज्ञान तो है ना? ज्ञान तो है। परन्तु उस सार रूप में ज्ञान में आने वाली अव्वल नंबर 16 कला संपूर्ण आत्मा कौन है? हँ? आत्मा है कृष्ण की आत्मा जिसे कहते हैं 16 कला संपूर्ण। और कृष्ण की आत्मा अधोमुखी है ऊर्ध्वमुखी है जबसे जन्म लेती है? अधोमुखी। तो खुद भी नीचे जाएगी और अपने पीछे-पीछे आने वाले फालोवर्स बच्चों को भी नीचे ले जाएगी या ऊपर ले जाएगी? नीचे ले जाती है।
तो बताया – वो ज्ञान असली ज्ञान नहीं है। असली ज्ञान क्या है? असली ज्ञान है 16 कला संपूर्ण स्टेज से भी ऊँचा कलातीत स्टेज। वो देवताएं तो फिर भी इन्द्रियों का सुख भोगते हैं। ज्ञानेन्द्रियों का सुख भोगते हैं भले। श्रेष्ठ इन्द्रियों का सुख भोगते हैं। लेकिन वो देह की इन्द्रियां हैं ना। देह से कनेक्टेड हैं तो देह का सुख भोगने से नीचे गिरेंगे या ऊपर जाएंगे? नीचे जाते हैं। तो बाप कहते हैं उस ज्ञान का भी वैराग। फिर कौनसा ज्ञान? बताया – अतीन्द्रिय सुख। इन्द्रियों से भी परे का सुख लेना। बाप जैसा होगा वैसा ही सिखाएगा ना। बाप कैसा है? आत्माओं का बाप कैसा है? उसको इन्द्रियां हैं? देह है? विदेही है कि देह वाला है? विदेही है। विपरीत देह। तो बताते हैं कि मैं आप समान बनाकर जाता हूँ। तो जो आप समान बनता है और उसको जो पूरा-पूरा फालो करते हैं वो ज्ञानी हुए, असल सूर्यवंशी हुए जो बाप समान पार्ट बजाते हैं, उनको कहेंगे या फिर जो ज्ञान चन्द्रमा है उसको फालो करने वालों को कहेंगे जो 16 कला संपूर्ण बनता है और कलाहीन बनता है? हँ? कहते हैं ना ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। अरे, ब्रह्मा की तो पूजा भी नहीं होती, मन्दिर भी नहीं बनते, मूर्तियां भी नहीं बनाई जाती। उसका तो नाम-निशान गुम कर दिया। किसने? उसके अपने ही फालोअर्स बच्चों ने।
इसलिए बताया – कि असली ज्ञान तो बाप आकरके सिखलाते हैं। क्या? अपन को आत्मा समझो। देह, देह की इन्द्रियों, देह के इन्द्रियों से प्राप्ति सुख को भूल जाना है। तो देह की पूजा की, देह का ध्यान दिया, देह को याद किया तो फिर भक्तिमार्ग हुआ। और ज्ञानेन्द्रियों को याद किया, उसका सुख लिया तो भी भक्तिमार्ग। तो बस, ये ज्ञान और ये भक्ति अधूरी है। तो उससे वैराग। जो भी भक्ति है। देहधारियों की भक्ति है। हँ? देवताओं की भक्ति है। देहधारी तो हैं। बिना देह के हैं? देह है कि नहीं? देह तो है। पुरानी दुनिया, भई उनका सन्यास। देखो, तो संपूर्ण त्याग कर रहे हो ना। कैसे? बुद्धि से कर रहे हो या प्रैक्टिकल में छोड़ दिया? बुद्धि से कर रहे हो। तो पुरानी दुनिया का सन्यास तो इसको कहा ही जाता है बेहद का सन्यास। भेंट की है सन्यासियों से। हँ? और वो हैं हठयोगी सन्यासी। हँ? देह की इन्द्रियों को हठपूर्वक, हँ, क्या करते हैं? कंट्रोल करते रहते हैं। अरे, इन्द्रियां कंट्रोल कैसे होंगी? मन कंट्रोल होगा तो इन्द्रियां कंट्रोल होंगी या सीधा-सीधा इन्द्रियों को कंट्रोल कर सकेगा कोई? हँ? इन्द्रियां तो सारी मन के द्वारा कंट्रोल्ड हैं। मन कंट्रोल करेंगे तो इन्द्रियां भी कंट्रोल करेंगे, होंगी। हँ? हाँ।
तो बताया, वो तो हठयोग करते हैं। तुम राजयोगी हो। और तुमको कहेंगे राजयोगऋषि। राजऋषि। ऋषि माने? पवित्र। कैसे पवित्र? सिर्फ कर्मेन्द्रियों से नहीं, सिर्फ ज्ञानेन्द्रियों से नहीं, लेकिन इन्द्रियों को भी जो कंट्रोल करने वाला मन है ना उस मन को भी कंट्रोल करते हो। कैसे? मैं आत्मा ज्योतिबिन्दु। मैं देह नहीं हूँ। तो जब ऋषि और योगी नाम पड़ता है ना। हँ? ऋषि माने पवित्र। और योग किससे लगाए? जो एवर प्योर हो उससे योग लगाए कि जो इम्प्योर बनते हैं उनसे योग लगाए? एवर प्योर से योग होगा तो योगी कहा जाएगा। तो जो एवर प्योर है वो तो जन्म-मरण के चक्र में ही नहीं आता क्योंकि उसको तो इन्द्रियां और देह है ही नहीं। तो फिर योग किससे लगाएगा? बिन्दी से? निराकार से? अरे, निराकार आत्मा की सिर्फ की बात नहीं है। तुम तो निराकार आत्मा भी हो और निराकार आत्मा देह के बगैर कोई काम नहीं कर सकती। ऐसे ही निराकार आत्माओं का जो बाप शिव है उसको भी क्या चाहिए? हँ? देह चाहिए। किसकी देह चाहिए? ऐरा गैरा नत्थू खैरा किसी की भी देह चाहिए? नहीं। इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर जो सदा कायम रहने वाली देह है वो चाहिए। शास्त्रों में तो यादगार भी है। इस दुनिया में एक शंकर ही है, हँ, आदि देव, महादेव, जिसका आदि और अंत नहीं दिखाते हैं। उसके मां-बाप? दिखाते ही नहीं। हैं ही नहीं कोई उसको जन्म देने वाले वास्तव में।
तब बच्चे योगी और ऋषि नाम पड़ता है पवित्र आत्माओं का। परन्तु यहाँ तो योग में तो बहुत ही सीखते हैं। और अनेक प्रकार के योग सीखते हैं। हाँ। नाक बंद करके, कुंभक चढ़ाके, श्वांस रोक के बैठ जाओ। हँ? और उल्टे खड़े हो जाओ। शीर्षासन लगा दो। क्या-क्या सिखाते रहते हैं! अनेक प्रकार के योग हैं। अरे, वो सब करते-करते भी पतित होते रहते हैं। हँ? क्या? अरे, शक्ति क्षीण होती है कि नहीं होती है इन्द्रियों की? हँ? शक्ति क्षीण होती रहती है माना पतित होते रहते हैं, क्षरित होते रहते हैं। तो क्षर आत्मा हुए या अक्षर हुए? क्षर आत्मा हुए। और मैं क्या बनाता हूँ? मैं अक्षर हूँ। शिव क्या है? क्षरित होने वाला है, पतित होने वाला है या अक्षर है? अक्षर है। वो कभी क्षरित होता ही नहीं। तो मैं क्या बनाता हूँ? आप समान बनाता हूँ। तो सब बन जाएंगे क्या? हँ? सब बन जाएंगे? नहीं। एक बीज होता है और उस एक बीज से कितना तैयार माल होता है! हँ? तो ये सारी मनुष्य सृष्टि का एक ही बीज है, हँ, जो मुकर्रर रथ कहा जाता है।
तो बताया - वो तो अनेक प्रकार के हठयोग सीखते रहते हैं, सिखाते रहते हैं। देख लो। तुमने सुना होगा ये-ये शराब-कबाब, वगैरा सब कुछ पीते रहते हैं सन्यासी। भांग-धतूरा, क्या-क्या खाते रहते हैं! हँ? एक महर्षि आते हैं विलायत से, हँ, दाढ़ी, दाढ़ी वाला महर्षि। हँ? कल-परसों फोटो पड़ा हुआ था अखबार में। है ना? कोई वो अखबार ले आए हैं वहां से। तो बहुत ही ऐसे-ऐसे उनको पकड़करके ले आते हैं सहज राजयोग सिखलाने के लिए कि भई भारत का प्राचीन सहज राजयोग सिखलाने आये हैं। अब फिर उनको बिचारों को ले आते हैं। यहाँ बैठकरके ये उनको संभाल कराते हैं। ये कराते, वो कराते। तो वो तो उनका सारा सिखाना हठयोग हुआ। तो बाप कहते हैं ये दोनों विरोधी बातें हैं। क्या? हठयोग और राजयोग। रात-दिन का फर्क है। हठयोग वाले कभी भी कोई वापस आत्मलोक में जा ही नहीं सकते। क्या? कि आत्मा बन जाएं और वापस चले जाएं। क्यों? क्योंकि देह की क्रियाएं करते रहते हैं। हँ? देह का हठयोग सीखते रहते हैं, सिखाते रहते हैं। अपन को आत्मा तो समझते ही नहीं। तो उनकी बुद्धि में जो तुम्हारे पास ज्ञान है ना वो ज्ञान कभी भी आ नहीं सकता है। क्यों? क्योंकि उन्होंने तो जन्म-जन्मान्तर, हँ, सन्यासियों ने क्या किया? यही धंधा किया ना? हठयोग किया और हठयोग सिखाया।
तो देखो, ये हो ही नहीं सकता कि उनकी बुद्धि में ये तुम्हारा ईश्वरीय ज्ञान बैठ जाए। है ही नहीं उनके पास। तो फिर बताएगा क्या? वो हठयोगी है ना। बाबा ने समझाय दिया है कि तुम लिख रखो जभी भी कहां-कहां ये प्रदर्शनी बनाते हो ना, उसमें एकदम किलियर लिखकरके रखो। क्या? कि हद के हठयोगी बेहद का राजयोग सिखलाय ही नहीं सकते हैं। हाँ। क्यों? क्यों नहीं सिखलाय सकते? फिर क्यों का जवाब चाहिए। तो वो लिख देना चाहिए कि क्यों नहीं बतलाय सकते? अरे, भई क्यों? क्योंकि वो तो मिथ्या मानते हैं। क्या? ये जगत मिथ्या है। अरे, जगत मिथ्या है, झूठा है, फिर तुम सुख कहाँ भोगोगे? आत्मा क्या चाहती है? सुख चाहती है या नहीं चाहती है? हँ? तो ये जगत ही नहीं होगा तो क्या आत्मलोक में वहां सुख होगा? हँ? वहां तो न सुख होता है और न, न दुख होता है। वहाँ तो आत्मा शांत स्वरूप।
तो देखो, वो तो इस जगत को मिथ्या मानते हैं। और मिथ्या मानकरके ये घरबार भी छोड़ देते हैं। हँ? तो वो गृहस्थ आश्रम को मानते ही नहीं हैं। कौन? ये जो सन्यासी हैं ना जो द्वैतवादी द्वापरयुग से आते हैं, ऐसे नहीं शंकराचार्य अकेला सन्यासी है, या महात्मा बुद्ध सन्यासी है। नहीं, ये इब्राहिम, क्राइस्ट और उनके जो बाद में आने वाले सहयोगी धरमपिताएं हैं वो सब सन्यासी हैं। प्रवृत्तिमार्ग को निभाते हैं? जिसके साथ प्रवृत्ति जोड़ते हैं उसको निभाते हैं कि छोड़ के भागते हैं? हाँ, छोड़ के भागते हैं। वो गृहस्थ आश्रम को मानते ही नहीं हैं। और ये तो तुम्हारा है पवित्र गृहस्थ आश्रम। हँ? सो तुम पवित्र बनते हैं। जानते हो जो पवित्र हैं, हँ, उनको तुम अपवित्र हो, सो उनकी महिमा करते हो। क्या? किसकी? जो अपवित्र हैं वो पवित्र देवी-देवताओं की महिमा करते हैं। मन्दिर में जाते हैं तो महिमा करते हैं ना। हाँ। एवर प्योर शिव है। उसकी भी महिमा करते हैं। है ना बच्चे? तो तुम्हारा है असली प्रवृत्तिमार्ग। क्या? तुम प्रवृत्तिमार्ग की कभी भर्त्सना, ग्लानि नहीं करते हो।
A morning class dated 27.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the middle of the eighth page on Monday was about knowledge, Bhakti and vairaag (detachment). Where will knowledge, Bhakti go? Hm? People do say; If you go and ask the sages also, then they will say that vairaag is the highest thing, isn’t it? So, we have become vairaagis (detached persons), sanyasis (renunciates). You haven’t renounced Bhakti, knowledge. When they write the scriptures, then they think that we are very knowledgeable. When they read it, they think that they are knowledgeable (gyaani). And then they go to the temple and keep on doing Bhakti. They think that Bhaktiis a very great thing. Now the Father says – be it knowledge or Bhakti, or be it the fruits of knowledge in the Golden Age, in the Silver Age or be it Bhakti of descending celestial degrees in the Copper Age, in the Iron Age, detachment from all that. So, what do you have to achieve? Hm? The knowledge that exists in the Golden Age, the Silver Age that I am a point of light soul; hm? So, there is awareness of the point of light; so, there is knowledge in essence form, isn’t it? There is knowledge. But who is the number one soul, perfect in 16 celestial degrees which gets that essence form knowledge? Hm? The soul is the soul of Krishna which is said to be perfect in 16 celestial degrees. And is the soul of Krishna adhomukhi (downward facing) or oordhwamukhi (upward facing) ever since it gets birth? It is adhomukhi. So, it will go down itself and will it take its follower children coming behind itself down or up? It takes them down.
So, it was told – That knowledge is not true knowledge. What is the true knowledge? The true knowledge is the kalaateet stage which is higher than the stage perfect in 16 celestial degrees. The deities however enjoy the pleasure of the organs. Although they enjoy the pleasure of the sense organs. They enjoy the pleasure of the righteous organs. But they are the organs of the body, aren’t they? They are connected with the body; so, will they fall down or go up by enjoying the pleasures of the body? They go down. So, the Father says that you should have detachment of that knowledge as well. Then which knowledge? It was told – Super sensuous joy (ateendriy sukh). To obtain the joy that is beyond the organs as well. The Father will teach as He is, will He not? How is the Father? How is the Father of souls? Does He have organs? Does He have a body? Is He bodiless (videhi) or does He have a body? He is bodiless. Opposite body. So, He tells that I make you equal to Myself and go. So, the one who becomes equal to Him and are those who follow Him completely knowledgeable, true Suryavanshis who play a par equal to the Father, will they be called so or will those who follow the Moon of knowledge, who becomes perfect in 16 celestial degrees as well as kalaaheen (devoid of celestial degrees) be called? Hm? It is said – Brahma’s day and Brahma’s night, isn’t it? Arey, Brahma is not even worshipped, his temples are also not built, his idols are also not sculpted. His name and trace has been made to vanish. By whom? By his own follower children.
This is why it was told that it is the Father who comes and teaches the true knowledge. What? Consider yourself to be a soul. You have to forget the pleasure attained through the body, the organs of the body. So, if you worship the body, if you pay attention to the body, if you remember the body, then it is a path of Bhakti. And even if you remember the sense organs, if you derive pleasure from it, then it’s path of Bhakti. So, that is it, this knowledge and this Bhakti is incomplete. So, detachment from it. Whatever is Bhakti. It may be the Bhakti (worship) of bodily beings. Hm? It may be Bhakti of deities. They are bodily beings. Are they without body? Is there body or not? There is body indeed. Renunciation (sanyas) of the old-world brother. Look, so, you are making complete renunciation, aren’t you? How? Are you doing through the intellect or have you left in practical? You are doing through intellect. So, the renunciation of the old world itself is called unlimited sanyas. A comparison has been made with the Sanyasis. Hm? And they are hathyogi sanyasis. Hm? What do they obstinately do to the organs of the body? They keep on bringing them under control. Arey, how will the organs come under control? Will the organs be under control when the mind is under control or will anyone be able to control the organs directly? Hm? All the organs are controlled through the mind. If you control the mind, then you will control the organs as well. Hm? Yes.
So, it was told, they do hathyoga (obstinate Yoga). You are rajyogis. And you will be called Rajyog rishi (sages who practices rajyog). Rajrishi (royal sages). What is meant by rishi? Pure. How pure? Not just through organs of action, not just through the sense organs, but you controleven the mind that controls the organs. How? I am a soul, a point of light. I am not a body. So, when you get the name rishi and yogi, don’t you? Hm? Rishi means pure. And with whom should you have Yoga? Should you have Yoga with the one who is ever pure or should you have Yoga with the ones who become impure? You will be called yogi when you have Yoga with the ever pure. So, the one who is ever pure, He doesn’t enter into the cycle of birth and death at all because He doesn’t have organs and body at all. So then with whom will He have Yoga? With a point? With the incorporeal? Arey, it is not a topic of just the incorporeal soul. You are incorporeal soul as well and the incorporeal soul cannot perform any task without the body. Similarly, what does the Father Shiv, the Father of the incorporeal souls, also require? Hm? He requires a body. Whose body does He require? Does He require the body of any Tom, Dick and Harry? No. He requires the body which remains permanent on this world stage. There is a memorial in the scriptures also. There is Shankar alone in this world, Aadi Dev, Mahadev, whose beginning and end is not depicted. His parents? They are not shown at all. Actually, there is no one who gives birth to Him at all.
Children, then the pure souls get the name yogi and rishi. But here many learn Yoga. And they learn many kinds of Yoga. Yes. Sit by closing the nose, while doing Kumbhak, while holding the breath. Hm? And stand upside down. Do Sheershasana (a yogic pose with the head on ground and legs upside). What all do they keep on learning! There are many kinds of Yoga. Arey, they keep on becoming sinful despite doing all that. Hm? What? Arey, does the vigour of the organs decrease or not? Hm? The vigour keeps on decreasing means that they keep on becoming sinful, they keep on getting discharged. So, are they kshar (the ones who get discharged) souls or akshar (the one who doesn’t get discharged)? They are ksharsouls. And what do I make? I am akshar. What is Shiv? Does He get discharged, does He become sinful or is He akshar? He is akshar. He never gets discharged at all. So, what do I make? I make you equal to Myself. So, will everyone become? Hm? Will everyone become? No. There is one seed and so much material gets ready through that one seed! Hm? So, there is only one seed of the entire human world who is called the permanent Chariot.
So, it was told – They keep on learning and teaching many kinds of hathyog. Look. You must have heard that these sanyasis keep on drinking wine and eating meat. They keep on eating bhaang, dhatura, etc.! Hm? One Maharshi (sage) comes from abroad, the Maharshi with beard. Hm? Yesterday or the day before it a photo had been published in the newspaper. Is it not? Someone has brought the newspaper from there. So, many people catch him and bring him to teach easy RajYoga that brother, we have come to teach the ancient easy RajYoga of India. Well, then they bring those poor fellows. These sit here and take care of them. They are made to do this, do that. So, whatever they teach is all hathyog. So, the Father says that these two are contradictory topics. What? Hathyog and rajyog. There is a difference of day and night. Those who follow hathyog can never go back to the Soul World at all. What? That they become a soul and go back. Why? It is because they keep on doing the procedures of the body. Hm? They keep on learning and teaching hathyog (yogic exercises). They do not consider themselves to be a soul at all. So, the knowledge that you possess, that knowledge can never enter in their intellect at all. Why? It is because birth by birth they, the Sanyasis, what did they do? They did this very business, didn’t they? They did hathyoga and taught hathyoga.
So, look, it cannot be possible at all that this Godly knowledge sits in their intellect. They do not have it at all. So, then what will they tell? They are hathyogis, aren’t they? Baba has explained that you should write and keep, whenever you hold exhibitions, don’t you? You should write this and keep in it. What? That the limited hathyogis cannot teach the unlimited rajyog at all. Yes. Why? Why can’t they teach? Then the reply to ‘why’ is required. So, you should write that why can’t they reply? Arey, brother, why? It is because they consider it to be an illusion (mithya). What? This world is an illusion. Arey, if the world is an illusion, if it is false then where will you enjoy happiness? What does the soul want? Does it want happiness or not? Hm? So, when this world itself doesn’t exist then will happiness exist there in the Soul World? Hm? There is neither happiness nor sorrows there. There the soul is an embodiment of peace.
So, look, they consider this world to be an illusion. And by considering it to be an illusion, they leave the household as well. Hm? They do not believe in the grihastha ashram (hermitage-like household) at all. Who? These Sanyasis, who come from the dualistic Copper Age; it is not as if Shankaracharya is the only sanyasi or that Mahatma Buddha is a sanyasi. No, this Ibrahim, Christ and all the helper founders of religions who come after them, all of them are sanyasis. Do they maintain the path of household? The one with whom they establish the household (pravritti), do they maintain it or do they leave it and run away? Yes, they leave it and run away. They do not believe in the grihastha ashram at all. And this is your pure grihastha ashram. Hm? So, you become pure. You know that those who are pure, hm, you are impure, so you praise them. What? Whose? Those who are impure, they praise the pure deities. When they go to the temple, they worship, don’t they? Yes. Shiv is ever pure. They praise Him as well. Is it not children? So, yours is the true path of household. What? You never criticize, defame the path of household.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2900, दिनांक 03.06.2019
VCD 2900, dated 03.06.2019
प्रातः क्लास 27.11.1967
Morning class dated 27.11.1967
VCD-2900-extracts-Bilingual
समय- 00.01-18.17
Time- 00.01-18.17
प्रातः क्लास चल रहा था – 27.11.1967. सोमवार को आठवें पेज के मध्य में बात चल रही थी – ज्ञान, भक्ति और वैराग की। ज्ञान, भक्ति कहाँ जाएगी? हँ? कहते तो हैं; साधुओं को भी जाकर पूछेंगे तो वो तो कहेंगे कि वैराग ही सबसे ऊँचा है ना। तो हम वैरागी बने हैं, सन्यासी बने हैं। भक्ति का, ज्ञान का सन्यास तो किया नहीं। शास्त्र लिखते हैं तो समझते हैं हम बड़े ज्ञानी हैं। पढ़ते हैं तो समझते हैं ज्ञानी हैं। और फिर मन्दिर में जाके भक्ति करते रहते हैं। समझते हैं भक्ति बहुत ऊँची चीज़ है। अब बाप कहते हैं ज्ञान हो या भक्ति हो, या ज्ञान की प्रारब्ध हो सतयुग, त्रेता में या भक्ति हो द्वापर, कलियुग में उतरती कला की हो, उन सबका वैराग। तो क्या पाना है? हँ? सतयुग, त्रेता में जो ज्ञान रहता है कि मैं आत्मा ज्योतिबिन्दु हूँ; हँ? तो ज्योतिबिन्दु की याद रहती है तो सार रूप में ज्ञान तो है ना? ज्ञान तो है। परन्तु उस सार रूप में ज्ञान में आने वाली अव्वल नंबर 16 कला संपूर्ण आत्मा कौन है? हँ? आत्मा है कृष्ण की आत्मा जिसे कहते हैं 16 कला संपूर्ण। और कृष्ण की आत्मा अधोमुखी है ऊर्ध्वमुखी है जबसे जन्म लेती है? अधोमुखी। तो खुद भी नीचे जाएगी और अपने पीछे-पीछे आने वाले फालोवर्स बच्चों को भी नीचे ले जाएगी या ऊपर ले जाएगी? नीचे ले जाती है।
तो बताया – वो ज्ञान असली ज्ञान नहीं है। असली ज्ञान क्या है? असली ज्ञान है 16 कला संपूर्ण स्टेज से भी ऊँचा कलातीत स्टेज। वो देवताएं तो फिर भी इन्द्रियों का सुख भोगते हैं। ज्ञानेन्द्रियों का सुख भोगते हैं भले। श्रेष्ठ इन्द्रियों का सुख भोगते हैं। लेकिन वो देह की इन्द्रियां हैं ना। देह से कनेक्टेड हैं तो देह का सुख भोगने से नीचे गिरेंगे या ऊपर जाएंगे? नीचे जाते हैं। तो बाप कहते हैं उस ज्ञान का भी वैराग। फिर कौनसा ज्ञान? बताया – अतीन्द्रिय सुख। इन्द्रियों से भी परे का सुख लेना। बाप जैसा होगा वैसा ही सिखाएगा ना। बाप कैसा है? आत्माओं का बाप कैसा है? उसको इन्द्रियां हैं? देह है? विदेही है कि देह वाला है? विदेही है। विपरीत देह। तो बताते हैं कि मैं आप समान बनाकर जाता हूँ। तो जो आप समान बनता है और उसको जो पूरा-पूरा फालो करते हैं वो ज्ञानी हुए, असल सूर्यवंशी हुए जो बाप समान पार्ट बजाते हैं, उनको कहेंगे या फिर जो ज्ञान चन्द्रमा है उसको फालो करने वालों को कहेंगे जो 16 कला संपूर्ण बनता है और कलाहीन बनता है? हँ? कहते हैं ना ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। अरे, ब्रह्मा की तो पूजा भी नहीं होती, मन्दिर भी नहीं बनते, मूर्तियां भी नहीं बनाई जाती। उसका तो नाम-निशान गुम कर दिया। किसने? उसके अपने ही फालोअर्स बच्चों ने।
इसलिए बताया – कि असली ज्ञान तो बाप आकरके सिखलाते हैं। क्या? अपन को आत्मा समझो। देह, देह की इन्द्रियों, देह के इन्द्रियों से प्राप्ति सुख को भूल जाना है। तो देह की पूजा की, देह का ध्यान दिया, देह को याद किया तो फिर भक्तिमार्ग हुआ। और ज्ञानेन्द्रियों को याद किया, उसका सुख लिया तो भी भक्तिमार्ग। तो बस, ये ज्ञान और ये भक्ति अधूरी है। तो उससे वैराग। जो भी भक्ति है। देहधारियों की भक्ति है। हँ? देवताओं की भक्ति है। देहधारी तो हैं। बिना देह के हैं? देह है कि नहीं? देह तो है। पुरानी दुनिया, भई उनका सन्यास। देखो, तो संपूर्ण त्याग कर रहे हो ना। कैसे? बुद्धि से कर रहे हो या प्रैक्टिकल में छोड़ दिया? बुद्धि से कर रहे हो। तो पुरानी दुनिया का सन्यास तो इसको कहा ही जाता है बेहद का सन्यास। भेंट की है सन्यासियों से। हँ? और वो हैं हठयोगी सन्यासी। हँ? देह की इन्द्रियों को हठपूर्वक, हँ, क्या करते हैं? कंट्रोल करते रहते हैं। अरे, इन्द्रियां कंट्रोल कैसे होंगी? मन कंट्रोल होगा तो इन्द्रियां कंट्रोल होंगी या सीधा-सीधा इन्द्रियों को कंट्रोल कर सकेगा कोई? हँ? इन्द्रियां तो सारी मन के द्वारा कंट्रोल्ड हैं। मन कंट्रोल करेंगे तो इन्द्रियां भी कंट्रोल करेंगे, होंगी। हँ? हाँ।
तो बताया, वो तो हठयोग करते हैं। तुम राजयोगी हो। और तुमको कहेंगे राजयोगऋषि। राजऋषि। ऋषि माने? पवित्र। कैसे पवित्र? सिर्फ कर्मेन्द्रियों से नहीं, सिर्फ ज्ञानेन्द्रियों से नहीं, लेकिन इन्द्रियों को भी जो कंट्रोल करने वाला मन है ना उस मन को भी कंट्रोल करते हो। कैसे? मैं आत्मा ज्योतिबिन्दु। मैं देह नहीं हूँ। तो जब ऋषि और योगी नाम पड़ता है ना। हँ? ऋषि माने पवित्र। और योग किससे लगाए? जो एवर प्योर हो उससे योग लगाए कि जो इम्प्योर बनते हैं उनसे योग लगाए? एवर प्योर से योग होगा तो योगी कहा जाएगा। तो जो एवर प्योर है वो तो जन्म-मरण के चक्र में ही नहीं आता क्योंकि उसको तो इन्द्रियां और देह है ही नहीं। तो फिर योग किससे लगाएगा? बिन्दी से? निराकार से? अरे, निराकार आत्मा की सिर्फ की बात नहीं है। तुम तो निराकार आत्मा भी हो और निराकार आत्मा देह के बगैर कोई काम नहीं कर सकती। ऐसे ही निराकार आत्माओं का जो बाप शिव है उसको भी क्या चाहिए? हँ? देह चाहिए। किसकी देह चाहिए? ऐरा गैरा नत्थू खैरा किसी की भी देह चाहिए? नहीं। इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर जो सदा कायम रहने वाली देह है वो चाहिए। शास्त्रों में तो यादगार भी है। इस दुनिया में एक शंकर ही है, हँ, आदि देव, महादेव, जिसका आदि और अंत नहीं दिखाते हैं। उसके मां-बाप? दिखाते ही नहीं। हैं ही नहीं कोई उसको जन्म देने वाले वास्तव में।
तब बच्चे योगी और ऋषि नाम पड़ता है पवित्र आत्माओं का। परन्तु यहाँ तो योग में तो बहुत ही सीखते हैं। और अनेक प्रकार के योग सीखते हैं। हाँ। नाक बंद करके, कुंभक चढ़ाके, श्वांस रोक के बैठ जाओ। हँ? और उल्टे खड़े हो जाओ। शीर्षासन लगा दो। क्या-क्या सिखाते रहते हैं! अनेक प्रकार के योग हैं। अरे, वो सब करते-करते भी पतित होते रहते हैं। हँ? क्या? अरे, शक्ति क्षीण होती है कि नहीं होती है इन्द्रियों की? हँ? शक्ति क्षीण होती रहती है माना पतित होते रहते हैं, क्षरित होते रहते हैं। तो क्षर आत्मा हुए या अक्षर हुए? क्षर आत्मा हुए। और मैं क्या बनाता हूँ? मैं अक्षर हूँ। शिव क्या है? क्षरित होने वाला है, पतित होने वाला है या अक्षर है? अक्षर है। वो कभी क्षरित होता ही नहीं। तो मैं क्या बनाता हूँ? आप समान बनाता हूँ। तो सब बन जाएंगे क्या? हँ? सब बन जाएंगे? नहीं। एक बीज होता है और उस एक बीज से कितना तैयार माल होता है! हँ? तो ये सारी मनुष्य सृष्टि का एक ही बीज है, हँ, जो मुकर्रर रथ कहा जाता है।
तो बताया - वो तो अनेक प्रकार के हठयोग सीखते रहते हैं, सिखाते रहते हैं। देख लो। तुमने सुना होगा ये-ये शराब-कबाब, वगैरा सब कुछ पीते रहते हैं सन्यासी। भांग-धतूरा, क्या-क्या खाते रहते हैं! हँ? एक महर्षि आते हैं विलायत से, हँ, दाढ़ी, दाढ़ी वाला महर्षि। हँ? कल-परसों फोटो पड़ा हुआ था अखबार में। है ना? कोई वो अखबार ले आए हैं वहां से। तो बहुत ही ऐसे-ऐसे उनको पकड़करके ले आते हैं सहज राजयोग सिखलाने के लिए कि भई भारत का प्राचीन सहज राजयोग सिखलाने आये हैं। अब फिर उनको बिचारों को ले आते हैं। यहाँ बैठकरके ये उनको संभाल कराते हैं। ये कराते, वो कराते। तो वो तो उनका सारा सिखाना हठयोग हुआ। तो बाप कहते हैं ये दोनों विरोधी बातें हैं। क्या? हठयोग और राजयोग। रात-दिन का फर्क है। हठयोग वाले कभी भी कोई वापस आत्मलोक में जा ही नहीं सकते। क्या? कि आत्मा बन जाएं और वापस चले जाएं। क्यों? क्योंकि देह की क्रियाएं करते रहते हैं। हँ? देह का हठयोग सीखते रहते हैं, सिखाते रहते हैं। अपन को आत्मा तो समझते ही नहीं। तो उनकी बुद्धि में जो तुम्हारे पास ज्ञान है ना वो ज्ञान कभी भी आ नहीं सकता है। क्यों? क्योंकि उन्होंने तो जन्म-जन्मान्तर, हँ, सन्यासियों ने क्या किया? यही धंधा किया ना? हठयोग किया और हठयोग सिखाया।
तो देखो, ये हो ही नहीं सकता कि उनकी बुद्धि में ये तुम्हारा ईश्वरीय ज्ञान बैठ जाए। है ही नहीं उनके पास। तो फिर बताएगा क्या? वो हठयोगी है ना। बाबा ने समझाय दिया है कि तुम लिख रखो जभी भी कहां-कहां ये प्रदर्शनी बनाते हो ना, उसमें एकदम किलियर लिखकरके रखो। क्या? कि हद के हठयोगी बेहद का राजयोग सिखलाय ही नहीं सकते हैं। हाँ। क्यों? क्यों नहीं सिखलाय सकते? फिर क्यों का जवाब चाहिए। तो वो लिख देना चाहिए कि क्यों नहीं बतलाय सकते? अरे, भई क्यों? क्योंकि वो तो मिथ्या मानते हैं। क्या? ये जगत मिथ्या है। अरे, जगत मिथ्या है, झूठा है, फिर तुम सुख कहाँ भोगोगे? आत्मा क्या चाहती है? सुख चाहती है या नहीं चाहती है? हँ? तो ये जगत ही नहीं होगा तो क्या आत्मलोक में वहां सुख होगा? हँ? वहां तो न सुख होता है और न, न दुख होता है। वहाँ तो आत्मा शांत स्वरूप।
तो देखो, वो तो इस जगत को मिथ्या मानते हैं। और मिथ्या मानकरके ये घरबार भी छोड़ देते हैं। हँ? तो वो गृहस्थ आश्रम को मानते ही नहीं हैं। कौन? ये जो सन्यासी हैं ना जो द्वैतवादी द्वापरयुग से आते हैं, ऐसे नहीं शंकराचार्य अकेला सन्यासी है, या महात्मा बुद्ध सन्यासी है। नहीं, ये इब्राहिम, क्राइस्ट और उनके जो बाद में आने वाले सहयोगी धरमपिताएं हैं वो सब सन्यासी हैं। प्रवृत्तिमार्ग को निभाते हैं? जिसके साथ प्रवृत्ति जोड़ते हैं उसको निभाते हैं कि छोड़ के भागते हैं? हाँ, छोड़ के भागते हैं। वो गृहस्थ आश्रम को मानते ही नहीं हैं। और ये तो तुम्हारा है पवित्र गृहस्थ आश्रम। हँ? सो तुम पवित्र बनते हैं। जानते हो जो पवित्र हैं, हँ, उनको तुम अपवित्र हो, सो उनकी महिमा करते हो। क्या? किसकी? जो अपवित्र हैं वो पवित्र देवी-देवताओं की महिमा करते हैं। मन्दिर में जाते हैं तो महिमा करते हैं ना। हाँ। एवर प्योर शिव है। उसकी भी महिमा करते हैं। है ना बच्चे? तो तुम्हारा है असली प्रवृत्तिमार्ग। क्या? तुम प्रवृत्तिमार्ग की कभी भर्त्सना, ग्लानि नहीं करते हो।
A morning class dated 27.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the middle of the eighth page on Monday was about knowledge, Bhakti and vairaag (detachment). Where will knowledge, Bhakti go? Hm? People do say; If you go and ask the sages also, then they will say that vairaag is the highest thing, isn’t it? So, we have become vairaagis (detached persons), sanyasis (renunciates). You haven’t renounced Bhakti, knowledge. When they write the scriptures, then they think that we are very knowledgeable. When they read it, they think that they are knowledgeable (gyaani). And then they go to the temple and keep on doing Bhakti. They think that Bhaktiis a very great thing. Now the Father says – be it knowledge or Bhakti, or be it the fruits of knowledge in the Golden Age, in the Silver Age or be it Bhakti of descending celestial degrees in the Copper Age, in the Iron Age, detachment from all that. So, what do you have to achieve? Hm? The knowledge that exists in the Golden Age, the Silver Age that I am a point of light soul; hm? So, there is awareness of the point of light; so, there is knowledge in essence form, isn’t it? There is knowledge. But who is the number one soul, perfect in 16 celestial degrees which gets that essence form knowledge? Hm? The soul is the soul of Krishna which is said to be perfect in 16 celestial degrees. And is the soul of Krishna adhomukhi (downward facing) or oordhwamukhi (upward facing) ever since it gets birth? It is adhomukhi. So, it will go down itself and will it take its follower children coming behind itself down or up? It takes them down.
So, it was told – That knowledge is not true knowledge. What is the true knowledge? The true knowledge is the kalaateet stage which is higher than the stage perfect in 16 celestial degrees. The deities however enjoy the pleasure of the organs. Although they enjoy the pleasure of the sense organs. They enjoy the pleasure of the righteous organs. But they are the organs of the body, aren’t they? They are connected with the body; so, will they fall down or go up by enjoying the pleasures of the body? They go down. So, the Father says that you should have detachment of that knowledge as well. Then which knowledge? It was told – Super sensuous joy (ateendriy sukh). To obtain the joy that is beyond the organs as well. The Father will teach as He is, will He not? How is the Father? How is the Father of souls? Does He have organs? Does He have a body? Is He bodiless (videhi) or does He have a body? He is bodiless. Opposite body. So, He tells that I make you equal to Myself and go. So, the one who becomes equal to Him and are those who follow Him completely knowledgeable, true Suryavanshis who play a par equal to the Father, will they be called so or will those who follow the Moon of knowledge, who becomes perfect in 16 celestial degrees as well as kalaaheen (devoid of celestial degrees) be called? Hm? It is said – Brahma’s day and Brahma’s night, isn’t it? Arey, Brahma is not even worshipped, his temples are also not built, his idols are also not sculpted. His name and trace has been made to vanish. By whom? By his own follower children.
This is why it was told that it is the Father who comes and teaches the true knowledge. What? Consider yourself to be a soul. You have to forget the pleasure attained through the body, the organs of the body. So, if you worship the body, if you pay attention to the body, if you remember the body, then it is a path of Bhakti. And even if you remember the sense organs, if you derive pleasure from it, then it’s path of Bhakti. So, that is it, this knowledge and this Bhakti is incomplete. So, detachment from it. Whatever is Bhakti. It may be the Bhakti (worship) of bodily beings. Hm? It may be Bhakti of deities. They are bodily beings. Are they without body? Is there body or not? There is body indeed. Renunciation (sanyas) of the old-world brother. Look, so, you are making complete renunciation, aren’t you? How? Are you doing through the intellect or have you left in practical? You are doing through intellect. So, the renunciation of the old world itself is called unlimited sanyas. A comparison has been made with the Sanyasis. Hm? And they are hathyogi sanyasis. Hm? What do they obstinately do to the organs of the body? They keep on bringing them under control. Arey, how will the organs come under control? Will the organs be under control when the mind is under control or will anyone be able to control the organs directly? Hm? All the organs are controlled through the mind. If you control the mind, then you will control the organs as well. Hm? Yes.
So, it was told, they do hathyoga (obstinate Yoga). You are rajyogis. And you will be called Rajyog rishi (sages who practices rajyog). Rajrishi (royal sages). What is meant by rishi? Pure. How pure? Not just through organs of action, not just through the sense organs, but you controleven the mind that controls the organs. How? I am a soul, a point of light. I am not a body. So, when you get the name rishi and yogi, don’t you? Hm? Rishi means pure. And with whom should you have Yoga? Should you have Yoga with the one who is ever pure or should you have Yoga with the ones who become impure? You will be called yogi when you have Yoga with the ever pure. So, the one who is ever pure, He doesn’t enter into the cycle of birth and death at all because He doesn’t have organs and body at all. So then with whom will He have Yoga? With a point? With the incorporeal? Arey, it is not a topic of just the incorporeal soul. You are incorporeal soul as well and the incorporeal soul cannot perform any task without the body. Similarly, what does the Father Shiv, the Father of the incorporeal souls, also require? Hm? He requires a body. Whose body does He require? Does He require the body of any Tom, Dick and Harry? No. He requires the body which remains permanent on this world stage. There is a memorial in the scriptures also. There is Shankar alone in this world, Aadi Dev, Mahadev, whose beginning and end is not depicted. His parents? They are not shown at all. Actually, there is no one who gives birth to Him at all.
Children, then the pure souls get the name yogi and rishi. But here many learn Yoga. And they learn many kinds of Yoga. Yes. Sit by closing the nose, while doing Kumbhak, while holding the breath. Hm? And stand upside down. Do Sheershasana (a yogic pose with the head on ground and legs upside). What all do they keep on learning! There are many kinds of Yoga. Arey, they keep on becoming sinful despite doing all that. Hm? What? Arey, does the vigour of the organs decrease or not? Hm? The vigour keeps on decreasing means that they keep on becoming sinful, they keep on getting discharged. So, are they kshar (the ones who get discharged) souls or akshar (the one who doesn’t get discharged)? They are ksharsouls. And what do I make? I am akshar. What is Shiv? Does He get discharged, does He become sinful or is He akshar? He is akshar. He never gets discharged at all. So, what do I make? I make you equal to Myself. So, will everyone become? Hm? Will everyone become? No. There is one seed and so much material gets ready through that one seed! Hm? So, there is only one seed of the entire human world who is called the permanent Chariot.
So, it was told – They keep on learning and teaching many kinds of hathyog. Look. You must have heard that these sanyasis keep on drinking wine and eating meat. They keep on eating bhaang, dhatura, etc.! Hm? One Maharshi (sage) comes from abroad, the Maharshi with beard. Hm? Yesterday or the day before it a photo had been published in the newspaper. Is it not? Someone has brought the newspaper from there. So, many people catch him and bring him to teach easy RajYoga that brother, we have come to teach the ancient easy RajYoga of India. Well, then they bring those poor fellows. These sit here and take care of them. They are made to do this, do that. So, whatever they teach is all hathyog. So, the Father says that these two are contradictory topics. What? Hathyog and rajyog. There is a difference of day and night. Those who follow hathyog can never go back to the Soul World at all. What? That they become a soul and go back. Why? It is because they keep on doing the procedures of the body. Hm? They keep on learning and teaching hathyog (yogic exercises). They do not consider themselves to be a soul at all. So, the knowledge that you possess, that knowledge can never enter in their intellect at all. Why? It is because birth by birth they, the Sanyasis, what did they do? They did this very business, didn’t they? They did hathyoga and taught hathyoga.
So, look, it cannot be possible at all that this Godly knowledge sits in their intellect. They do not have it at all. So, then what will they tell? They are hathyogis, aren’t they? Baba has explained that you should write and keep, whenever you hold exhibitions, don’t you? You should write this and keep in it. What? That the limited hathyogis cannot teach the unlimited rajyog at all. Yes. Why? Why can’t they teach? Then the reply to ‘why’ is required. So, you should write that why can’t they reply? Arey, brother, why? It is because they consider it to be an illusion (mithya). What? This world is an illusion. Arey, if the world is an illusion, if it is false then where will you enjoy happiness? What does the soul want? Does it want happiness or not? Hm? So, when this world itself doesn’t exist then will happiness exist there in the Soul World? Hm? There is neither happiness nor sorrows there. There the soul is an embodiment of peace.
So, look, they consider this world to be an illusion. And by considering it to be an illusion, they leave the household as well. Hm? They do not believe in the grihastha ashram (hermitage-like household) at all. Who? These Sanyasis, who come from the dualistic Copper Age; it is not as if Shankaracharya is the only sanyasi or that Mahatma Buddha is a sanyasi. No, this Ibrahim, Christ and all the helper founders of religions who come after them, all of them are sanyasis. Do they maintain the path of household? The one with whom they establish the household (pravritti), do they maintain it or do they leave it and run away? Yes, they leave it and run away. They do not believe in the grihastha ashram at all. And this is your pure grihastha ashram. Hm? So, you become pure. You know that those who are pure, hm, you are impure, so you praise them. What? Whose? Those who are impure, they praise the pure deities. When they go to the temple, they worship, don’t they? Yes. Shiv is ever pure. They praise Him as well. Is it not children? So, yours is the true path of household. What? You never criticize, defame the path of household.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2901, दिनांक 04.06.2019
VCD 2901, dated 04.06.2019
रात्रि क्लास 27.11.1967
Night class dated 27.11.1967
VCD-2901-extracts-Bilingual
समय- 00.01-17.05
Time- 00.01-17.05
आज का रात्रि क्लास है – 27.11.1967. बीच-बीच में काटी हुई मुरली है। और ये जो मेले ऐसे होते हैं ये वास्तव में बच्चे समझ सकते हैं कि मेले में कोई गोल्डन एज्ड नहीं बनते हैं। मेले में और ही आयरन एज्ड बनते हैं अर्थात् मैले बनते हैं। क्यों? एक तो नदियों में स्नान करने जाते हैं पानी की नदियों में। तो आत्मा थोड़ेही पावन बनेगी? शरीर धोने जाते हैं। दूसरी बात, उन मेलों में कोई भगवान बाप आते हैं क्या? नहीं। वो तो नदियों के मेले होते हैं। तो, हाँ, बच्चों को अभी मालूम हो गया है कि बरोबर ये जो भी अनेक प्रकार के मेले होते हैं, हँ, चाहे वो गंगा-यमुना का मेला हो, इलाहाबाद में मेला लगता है ना। नाम रख दिया है अल्लाहबाद। अब वहाँ कोई अल्लाह थोड़ेही होता है। नदियां इकट्ठी होती हैं। क्योंकि ये मेले तो मशहूर हैं भक्तिमार्ग के। और असली मेला एक ही भक्तिमार्ग में गाया जाता है। कौनसा? हँ? और मेले बार-बार, गंगा सागर एक बार। तो वो अभी गंगा सागर का जो मेला लगता है भक्तिमार्ग में, वो भी हर साल लगता है। वो तो जड़ सागर और जड़ नदियां इकट्ठी होती हैं। वो चैतन्य ज्ञान सागर थोड़ेही होता है? वो ढ़ाई हज़ार वर्ष में जो मेले मलाखड़े लगे हैं वो तो जब तमोप्रधान कलियुग होता है तब शुरु होते हैं।
तो देखो मेला तो एक ही मशहूर है भक्तिमार्ग में जिसे कहते हैं गंगा सागर का मेला। परन्तु वो तो यादगार है, अभी संगमयुग की यादगार जब पुरुषोत्तम संगमयुग में। वो तो लंबे टाइम से माना 5000 वर्ष से आत्माएं परमात्मा अलग रहे बहुकाल। तो फिर कलियुग के अंत में कहा जाता है सुंदर मेला कर दिया जब सद्गुरु मिला दलाल। और ये जो भक्तिमार्ग में मेले लगते रहे हैं सैंकड़ों साल से वो सुंदर तो नहीं होते हैं ना। अरे, सुंदर मेला तो तब कर दिया जब सद्गुरु मिले। और कहते हैं एक सद्गुरु निराकार अकालमूर्त। तो जब एक सद्गुरु तो बाकि गुरु सद् हुए क्या? सद् माना सच्चे। बाकि तो झूठे हुए ना। तो उन मेलों में वो आते हैं गुरु लोग। गुरु मिले। तो गुरु और सद्गुरु। कहते हैं संग तारे कुसंग बोरे। तो क्या गुरु लोग तारे? हिस्ट्री क्या कहती है? कोई पार गया? नहीं। पार तो कोई भी नहीं गया। इस दुनिया, अरे, इस दुनिया की आबादी तो बढ़ती रहती है ना। तो ऐसे पार जाते रहें तो दुनिया तो खाली हो जाएगी। हाँ। तो वो तो सदगुरु एक ही है जो तारे, पार लगाए। बाकि गुरु तो बोरे। डुबोने वाले हैं।
तो देखो बरोबर है। ये गुरु लोग तो अथाह हैं अनेक गुरु। और सभी गुरु खुद भी डूबते जाते हैं, हँ, और दूसरों को भी डुबोते हैं। और डूबते किसमें हैं? अरे, वो ही विषय-वैतरणी नदी। क्योंकि खुद भी तो जनम उसी विषय-वैतरणी नदी से लेते हैं ना। इसलिए इनको श्रेष्ठाचारी नहीं कहा जाएगा। हँ? श्रेष्ठाचारी कब कहा जाए? हँ? वो सद्गुरु श्रेष्ठाचारी जो भ्रष्ट इन्द्रियों के विषय-विकार से जनम न ले। तो कोई दुनिया में ऐसा हो सकता है क्या? (किसी ने कुछ कहा।) नहीं हो सकता? अच्छा? नहीं हो सकता तो गायन क्यों है जब सदगुरु मिला दलाल? हँ? गायन है तो ज़रूर इस संगमयुग के गायन है ना। तो वो सद्गुरु स्वयं भी इस विषय वैतरणी नदी से पार होने वाला है और पार करने वाला है कि खुद डूबने वाला है?
तो देखो, सद्गुरु को तो भ्रष्टाचारी नहीं कहा जाएगा। भ्रष्ट इन्द्रियों से आचरण करने वाला। परन्तु ये तो मनुष्य को मालूम ही नहीं है। और ये जो गोर्मेन्ट है ना प्रजातंत्र गोर्मेन्ट। हँ? कौनसा तंत्र? प्रजा के द्वारा बनाई गई प्रजातंत्र गवर्मेन्ट। राजाओं की गोर्मेंट नहीं है। अंतर क्या है? वो गोर्मेन्ट प्रजा ने बनाई। और राजाओं की गोर्मेन्ट? हाँ, बाप आते हैं तो राजयोग सिखाके जन्म-जन्मान्तर के राजाएं बनाते हैं। तो ये जो गोर्मेन्ट है प्रजा के ऊपर प्रजा के राज्य करने वाली वो तो है ही इर्रिलिजियस। माना रिलीजन को ही ही नहीं मानती। धर्म को मानती है क्या? कह देते हैं। क्या? हमारा तो धर्मनिरपरेक्ष शासन है। हम किसी धर्म की अपेक्षा नहीं करते हैं। तो वो तो कुछ भी नहीं जानते हैं। हँ? धर्म की बातों में कुछ जानते ही नहीं हैं। हँ? क्यों नहीं जानते? क्योंकि वो अपेक्षा ही धर्म की नहीं करते हैं। उन्हें दरकार ही नहीं धरम की।
तो बताया – उनकी बुद्धि में क्या रहता है और तुम्हारी बुद्धि में क्या रहता है? तुम्हारी बुद्धि में एक सत् धर्म की स्थापना करने वाला रहता है। और उनकी बुद्धि में? तो आर्य समाजियों की जो गोर्मेन्ट है ना प्रजातंत्र गोर्मेन्ट वो तो जन्म-जन्मान्तर जो-जो धर्म आए ढ़ाई हज़ार वर्ष से उनमें कन्वर्ट होते रहे। और फिर जब कोई नया धरमपिता आया तो वहाँ कन्वर्ट हो गए। तो नयों-नयों में कन्वर्ट होते गए और पुराने से श्रद्धा हटती गई। तो उनकी तो किसी धरम पर श्रद्धा पक्की बैठती ही नहीं है। तो अंत में क्या कह देते हैं? कोई धरम के ऊपर हमारी, हाँ, विश्वास नहीं। अच्छा, तो ये सब धर्म जो हैं इनकी हमें कोई अपेक्षा नहीं, कोई दरकार नहीं। ये बुद्धि में रहता है। उनके बुद्धि में रहता है कटर। हँ? क्या? कि भई कोई भी रास्ता मिले उल्टा या सीधा, सच्चा या झूठा, तो बस धन कमाना है। हँ? और मौका लगे तो इस गोर्मेन्ट को भी कैंची लगाय दें। हँ? गोर्मेन्ट को भी मूस लेते हैं ना? हाँ। गोर्मेन्ट बड़ी-बड़ी प्लानिंग करती है बड़े पैसा खर्चा करती है नई-नई प्लानिंग। और ये बिचौलिया गोर्मेन्ट चलाने वाले सरपरस्त? सारा हड़प कर जाते हैं। वो प्लानिंग बार-बार बनाते रहते हैं, बार-बार प्लानिंग फेल होती रहती है। तो करप्शन होती है ना बच्ची यहाँ इस प्रजातंत्र शासन में।
और तुम देखो कितने रॉयल हो, आलीशान। बुद्धि में तुम्हारे अभी क्या है? तुम्हारी बुद्धि में है कि अभी-अभी हम जो पतित हैं, हँ, इस दुनिया में जितने भी पतित आत्माएं हैं, चाहे मनुष्य मात्र हों, चाहे प्राणी मात्र हों, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े, सब प्राणी हैं ना, सब पतित हैं। इन सबको पावन कैसे बनाएं, हँ, और हम पावन कैसे बनें ये तुम्हारी बुद्धि में है। अभी ऐसा तो कोई मनुष्य नहीं होगा इस भारत में या विश्व में भी नहीं होगा। कैसा? जो ये सोचे कि हम कैसे पवित्र बनें, पावन बनें और सारी दुनिया के जो भी प्राणी मात्र हैं, मनुष्य मात्र हैं, वो कैसे पावन बनें? सबको पावन बनाएंगे। जिसकी बुद्धि में ये खयाल होगा; किसकी बुद्धि में? जिसकी बुद्धि में। जिनकी बुद्धि में नहीं बताया। क्यों? हाँ, कोई एक ही है आत्मा इस मनुष्य सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने वाली मनुष्यों के बीच जो इस मनुष्य सृष्टि का बाप है। तो बाप को तो पूरे परिवार का ध्यान रखना होता है ना? हाँ। तो जिसकी बुद्धि में ये ख्याल होगा एक की बुद्धि में कि अभी हमें इस विश्व को, सारे विश्व को, आम सारे विश्व को और खास सारे भारत को हम हैविन बनाते हैं। क्या करते हैं? हँ? हैविन नाम क्यों दिया? अरे, ये जो जितने भी धर्म, संप्रदाय फैले हुए हैं ना, और इनके आधार पर जो भी गोर्मेन्ट चल रही हैं ना दुनिया में, हँ, इन सबके ऊपर जीत पावेंगे, विन करेंगे, हँ, तब हैविन बनेगा।
तो हम हैविन बनाते हैं। जिसकी बुद्धि में ये ख्याल होगा; अच्छा, अभी विश्व को हैविन बनाते हैं। हँ? अभी क्यों? पहले क्यों नहीं बुद्धि में ये विचार आया कभी ढ़ाई हज़ार वर्ष से या 5000 वर्ष से बनाने की बात हैविन? अभी क्यों? क्योंकि अभी तुम बच्चों को वो सद्गुरु, हाँ, वो सतगुरु, सच्चा गुरु मिला है। कैसा सच्चा गुरु? जो सबकी सद्गति का रास्ता बताते हैं। हँ? अभी विश्व को हैविन बनाते हैं। तो कितनी खुशी होनी चाहिए! और हैविन बनाने के लिए कितना पवित्रता भी चाहिए। क्यों? क्योंकि दुनिया के सारे काम पवित्रता से होते हैं।
Today’s night class is dated 27.11.1967. It is a Murli that has been cut in between. And these fairs are such that children can actually understand that nobody becomes Golden Aged in fairs. People become even more Iron-Aged, i.e. dirty (mailey) in fairs (meley). Why? One is that people go to bathe in the rivers, in the rivers of water. So, will the soul become pure? They go to wash the body. Second topic is that does God, the Father come in those fairs? No. Those are the fairs of rivers. So, yes, children have now come to know that rightly these different kinds of fairs; be it the fair of Ganga-Yamuna; a fair is organized in Allahabad, isn’t it? The name coined is Allahabad. Well, is Allah present there? Rivers gather. It is because these fairs of the path of Bhakti are famous. And only one true fair is praised on the path of Bhakti. Which one? Hm? All other fairs are organized again and again, the [fair of] Ganga-Sagar is organized once. So, that fair of Ganga-Sagar (confluence of river Ganga and the ocean) which is organized on the path of Bhakti is also organized every year. It is the non-living ocean and non-living rivers that gather. It is not a living ocean of knowledge. The fairs that have been organized in 2500 years start when it is tamopradhan Iron Age.
So, look, only one fair (mela) is famous on the path of Bhakti which is called the fair of Ganga-Sagar. But that is a memorial; a memorial of the present Confluence Age when in the Purushottam Sangamyug; that is since a long time, i.e. since 5000 years; the souls and the Supreme Soul remained separate for a long time. So, then it is said that in the end of the Iron Age a beautiful meeting (mela) happened when the Sadguru was found in the form of a middleman (dalaal). And these fairs that are organized on the path of Bhakti since many centuries are not beautiful; are they? Arey, a beautiful fair happened only when the Sadguru is found. And it is said that one incorporeal Sadguru is Akaalmoort (eternal personality). So, when one is Sadguru, are the remaining gurus true (sad)? 'Sad' means true. The remaining ones are false, aren’t they? So, those gurus come in those fairs. You found gurus. So, guru and sadguru. It is said that good company takes you across and bad company drowns you. So, will the gurus take you across? What does the history say? Did anyone sail across? No. Nobody sailed across. This world, arey, the population of this world keeps on increasing, doesn’t it? So, if you keep on sailing across like this, then the world will become empty. Yes. So, that Sadguru is only one who sails you across. The remaining gurus drown you. They drown you.
So, look, it is right. These gurus are immense, many gurus. And all the gurus drown themselves and drown others as well. And in what do they drown? Arey, the same river of vices. It is because they themselves also get birth from the same river of vices, don’t they? This is why these will not be called righteous (shreshthachari). Hm? When will they be called righteous? Hm? That Sadguru is righteous who does not get birth through the vices of unrighteous organs. So, can anyone be like this in the world? (Someone said something.) Can’t anyone be like this? Achcha? If anyone can’t be like this, then why is it praised that ‘when the Sadguru is found in the form of a middleman’? Hm? When there is a proverb, then it is definitely sung for this Confluence Age, isn’t it? So, does that Sadguru himself also sail across this river of vices and enable you to sail across or does he himself get drowned?
So, look, the Sadguru will not be called unrighteous. The one who acts through the unrighteous organs. But the human beings do not know this at all. And this government, the democratic (prajatantra) government, isn’t it? Hm? Which tantra? The democratic government established by the subjects (praja); it is not a government of the kings. What is the difference? That government was established by the subjects. And the government of the kings? Yes, when the Father comes, then He teaches rajyog and makes us kings for many births. So, this government of subjects ruling over subjects is irreligious. It means that it doesn’t believe in religion itself. Does it believe in dharma (religion)? People say. What? Ours is a secular rule (dharmanirpeksh shaasan). We do not have any expectation (apeksha) of any religion (dharma). So, they do not know anything. Hm? They do not know any topics of dharma at all. Hm? Why don’t they know? It is because they do not have any expectation of dharma at all. They do not need dharma at all.
So, it was told – What is in their intellect and what is in your intellect? The one who establishes the true religion remains in your intellect. And in their intellect? So, the government of the Arya Samajis, the democratic government, they went on converting birth by birth to whatever religions that arrived since 2500 years. And then, whenever any new founder of religion arrived, they got converted to that. So, they continued to get converted to the new ones and they continued to lose faith on the older ones. So, they do not develop firm devotion in any religion at all. So, what do they say in the end? We don’t have, yes, faith in any religion. Achcha, we do not have any expectation, any need of all these religions. This remains in the intellect. The cutter remains in their intellect. Hm? What? That brother, whatever path we get, opposite or straight, true or false, we have to just earn money. Hm? And if we get an opportunity, then we will use scissors upon this government also. Hm? They cheat the government as well, don’t they? Yes. Government does big planning; it spends big amounts on new plannings. And these heads who run the middlemen’s government? They gobble everything. They keep on planning again and again and the planning continues to fail again and again. So, daughter, corruption takes place here in this democratic government, doesn’t it?
And look, you are so royal, magnificient. What is in your intellect now? It is now in your intellect that just now we are sinful ones; all the sinful souls in this world, be it the human beings, be it the living beings, be it the animals and birds, be it insects and worms, all are living beings, aren’t they? All of them are sinful. It is in your intellect as to how should we make all these pure and how should we become pure. Now there will not be any such human being in this India or even in the world. Of what kind? The one who thinks that how we should become pure and how all the living beings, human beings of the entire world should become pure. We will make everyone pure. The one in whose intellect this thought is there; in whose intellect? The one in whose intellect; why wasn’t it said ‘Those in whose intellects’? Why? Yes, there is only one soul among the human beings playing their part on this human world stage, who is the Father of this human world. So, the Father has to pay attention to the entire family, doesn’t he have to? Yes. So, the one in whose intellect this thought is there that now we make this world, the entire world, the entire world in general and India in particular heaven. What do you do? Hm? Why was the name heaven coined? Arey, when you conquer, win over all the religions, sects that exist, the governments that are running on their basis in the world, then heaven will be established.
So, we establish heaven. The one in whose intellect this thought is there; achcha, now we make the world heaven. Hm? Why now? Why didn’t the thought of establishing heaven occur in 2500 years or in 5000 years? Why now? It is because you children have found that sadguru, yes, that Satguru, the true guru. What kind of true guru? The one who shows the path of everyone’s Sadgati (true salvation). Hm? Now we make the world heaven. So, there should be so much joy! And so much purity is also required in order to establish heaven! Why? It is because all the tasks of the world are performed through purity.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2901, दिनांक 04.06.2019
VCD 2901, dated 04.06.2019
रात्रि क्लास 27.11.1967
Night class dated 27.11.1967
VCD-2901-extracts-Bilingual
समय- 00.01-17.05
Time- 00.01-17.05
आज का रात्रि क्लास है – 27.11.1967. बीच-बीच में काटी हुई मुरली है। और ये जो मेले ऐसे होते हैं ये वास्तव में बच्चे समझ सकते हैं कि मेले में कोई गोल्डन एज्ड नहीं बनते हैं। मेले में और ही आयरन एज्ड बनते हैं अर्थात् मैले बनते हैं। क्यों? एक तो नदियों में स्नान करने जाते हैं पानी की नदियों में। तो आत्मा थोड़ेही पावन बनेगी? शरीर धोने जाते हैं। दूसरी बात, उन मेलों में कोई भगवान बाप आते हैं क्या? नहीं। वो तो नदियों के मेले होते हैं। तो, हाँ, बच्चों को अभी मालूम हो गया है कि बरोबर ये जो भी अनेक प्रकार के मेले होते हैं, हँ, चाहे वो गंगा-यमुना का मेला हो, इलाहाबाद में मेला लगता है ना। नाम रख दिया है अल्लाहबाद। अब वहाँ कोई अल्लाह थोड़ेही होता है। नदियां इकट्ठी होती हैं। क्योंकि ये मेले तो मशहूर हैं भक्तिमार्ग के। और असली मेला एक ही भक्तिमार्ग में गाया जाता है। कौनसा? हँ? और मेले बार-बार, गंगा सागर एक बार। तो वो अभी गंगा सागर का जो मेला लगता है भक्तिमार्ग में, वो भी हर साल लगता है। वो तो जड़ सागर और जड़ नदियां इकट्ठी होती हैं। वो चैतन्य ज्ञान सागर थोड़ेही होता है? वो ढ़ाई हज़ार वर्ष में जो मेले मलाखड़े लगे हैं वो तो जब तमोप्रधान कलियुग होता है तब शुरु होते हैं।
तो देखो मेला तो एक ही मशहूर है भक्तिमार्ग में जिसे कहते हैं गंगा सागर का मेला। परन्तु वो तो यादगार है, अभी संगमयुग की यादगार जब पुरुषोत्तम संगमयुग में। वो तो लंबे टाइम से माना 5000 वर्ष से आत्माएं परमात्मा अलग रहे बहुकाल। तो फिर कलियुग के अंत में कहा जाता है सुंदर मेला कर दिया जब सद्गुरु मिला दलाल। और ये जो भक्तिमार्ग में मेले लगते रहे हैं सैंकड़ों साल से वो सुंदर तो नहीं होते हैं ना। अरे, सुंदर मेला तो तब कर दिया जब सद्गुरु मिले। और कहते हैं एक सद्गुरु निराकार अकालमूर्त। तो जब एक सद्गुरु तो बाकि गुरु सद् हुए क्या? सद् माना सच्चे। बाकि तो झूठे हुए ना। तो उन मेलों में वो आते हैं गुरु लोग। गुरु मिले। तो गुरु और सद्गुरु। कहते हैं संग तारे कुसंग बोरे। तो क्या गुरु लोग तारे? हिस्ट्री क्या कहती है? कोई पार गया? नहीं। पार तो कोई भी नहीं गया। इस दुनिया, अरे, इस दुनिया की आबादी तो बढ़ती रहती है ना। तो ऐसे पार जाते रहें तो दुनिया तो खाली हो जाएगी। हाँ। तो वो तो सदगुरु एक ही है जो तारे, पार लगाए। बाकि गुरु तो बोरे। डुबोने वाले हैं।
तो देखो बरोबर है। ये गुरु लोग तो अथाह हैं अनेक गुरु। और सभी गुरु खुद भी डूबते जाते हैं, हँ, और दूसरों को भी डुबोते हैं। और डूबते किसमें हैं? अरे, वो ही विषय-वैतरणी नदी। क्योंकि खुद भी तो जनम उसी विषय-वैतरणी नदी से लेते हैं ना। इसलिए इनको श्रेष्ठाचारी नहीं कहा जाएगा। हँ? श्रेष्ठाचारी कब कहा जाए? हँ? वो सद्गुरु श्रेष्ठाचारी जो भ्रष्ट इन्द्रियों के विषय-विकार से जनम न ले। तो कोई दुनिया में ऐसा हो सकता है क्या? (किसी ने कुछ कहा।) नहीं हो सकता? अच्छा? नहीं हो सकता तो गायन क्यों है जब सदगुरु मिला दलाल? हँ? गायन है तो ज़रूर इस संगमयुग के गायन है ना। तो वो सद्गुरु स्वयं भी इस विषय वैतरणी नदी से पार होने वाला है और पार करने वाला है कि खुद डूबने वाला है?
तो देखो, सद्गुरु को तो भ्रष्टाचारी नहीं कहा जाएगा। भ्रष्ट इन्द्रियों से आचरण करने वाला। परन्तु ये तो मनुष्य को मालूम ही नहीं है। और ये जो गोर्मेन्ट है ना प्रजातंत्र गोर्मेन्ट। हँ? कौनसा तंत्र? प्रजा के द्वारा बनाई गई प्रजातंत्र गवर्मेन्ट। राजाओं की गोर्मेंट नहीं है। अंतर क्या है? वो गोर्मेन्ट प्रजा ने बनाई। और राजाओं की गोर्मेन्ट? हाँ, बाप आते हैं तो राजयोग सिखाके जन्म-जन्मान्तर के राजाएं बनाते हैं। तो ये जो गोर्मेन्ट है प्रजा के ऊपर प्रजा के राज्य करने वाली वो तो है ही इर्रिलिजियस। माना रिलीजन को ही ही नहीं मानती। धर्म को मानती है क्या? कह देते हैं। क्या? हमारा तो धर्मनिरपरेक्ष शासन है। हम किसी धर्म की अपेक्षा नहीं करते हैं। तो वो तो कुछ भी नहीं जानते हैं। हँ? धर्म की बातों में कुछ जानते ही नहीं हैं। हँ? क्यों नहीं जानते? क्योंकि वो अपेक्षा ही धर्म की नहीं करते हैं। उन्हें दरकार ही नहीं धरम की।
तो बताया – उनकी बुद्धि में क्या रहता है और तुम्हारी बुद्धि में क्या रहता है? तुम्हारी बुद्धि में एक सत् धर्म की स्थापना करने वाला रहता है। और उनकी बुद्धि में? तो आर्य समाजियों की जो गोर्मेन्ट है ना प्रजातंत्र गोर्मेन्ट वो तो जन्म-जन्मान्तर जो-जो धर्म आए ढ़ाई हज़ार वर्ष से उनमें कन्वर्ट होते रहे। और फिर जब कोई नया धरमपिता आया तो वहाँ कन्वर्ट हो गए। तो नयों-नयों में कन्वर्ट होते गए और पुराने से श्रद्धा हटती गई। तो उनकी तो किसी धरम पर श्रद्धा पक्की बैठती ही नहीं है। तो अंत में क्या कह देते हैं? कोई धरम के ऊपर हमारी, हाँ, विश्वास नहीं। अच्छा, तो ये सब धर्म जो हैं इनकी हमें कोई अपेक्षा नहीं, कोई दरकार नहीं। ये बुद्धि में रहता है। उनके बुद्धि में रहता है कटर। हँ? क्या? कि भई कोई भी रास्ता मिले उल्टा या सीधा, सच्चा या झूठा, तो बस धन कमाना है। हँ? और मौका लगे तो इस गोर्मेन्ट को भी कैंची लगाय दें। हँ? गोर्मेन्ट को भी मूस लेते हैं ना? हाँ। गोर्मेन्ट बड़ी-बड़ी प्लानिंग करती है बड़े पैसा खर्चा करती है नई-नई प्लानिंग। और ये बिचौलिया गोर्मेन्ट चलाने वाले सरपरस्त? सारा हड़प कर जाते हैं। वो प्लानिंग बार-बार बनाते रहते हैं, बार-बार प्लानिंग फेल होती रहती है। तो करप्शन होती है ना बच्ची यहाँ इस प्रजातंत्र शासन में।
और तुम देखो कितने रॉयल हो, आलीशान। बुद्धि में तुम्हारे अभी क्या है? तुम्हारी बुद्धि में है कि अभी-अभी हम जो पतित हैं, हँ, इस दुनिया में जितने भी पतित आत्माएं हैं, चाहे मनुष्य मात्र हों, चाहे प्राणी मात्र हों, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े, सब प्राणी हैं ना, सब पतित हैं। इन सबको पावन कैसे बनाएं, हँ, और हम पावन कैसे बनें ये तुम्हारी बुद्धि में है। अभी ऐसा तो कोई मनुष्य नहीं होगा इस भारत में या विश्व में भी नहीं होगा। कैसा? जो ये सोचे कि हम कैसे पवित्र बनें, पावन बनें और सारी दुनिया के जो भी प्राणी मात्र हैं, मनुष्य मात्र हैं, वो कैसे पावन बनें? सबको पावन बनाएंगे। जिसकी बुद्धि में ये खयाल होगा; किसकी बुद्धि में? जिसकी बुद्धि में। जिनकी बुद्धि में नहीं बताया। क्यों? हाँ, कोई एक ही है आत्मा इस मनुष्य सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने वाली मनुष्यों के बीच जो इस मनुष्य सृष्टि का बाप है। तो बाप को तो पूरे परिवार का ध्यान रखना होता है ना? हाँ। तो जिसकी बुद्धि में ये ख्याल होगा एक की बुद्धि में कि अभी हमें इस विश्व को, सारे विश्व को, आम सारे विश्व को और खास सारे भारत को हम हैविन बनाते हैं। क्या करते हैं? हँ? हैविन नाम क्यों दिया? अरे, ये जो जितने भी धर्म, संप्रदाय फैले हुए हैं ना, और इनके आधार पर जो भी गोर्मेन्ट चल रही हैं ना दुनिया में, हँ, इन सबके ऊपर जीत पावेंगे, विन करेंगे, हँ, तब हैविन बनेगा।
तो हम हैविन बनाते हैं। जिसकी बुद्धि में ये ख्याल होगा; अच्छा, अभी विश्व को हैविन बनाते हैं। हँ? अभी क्यों? पहले क्यों नहीं बुद्धि में ये विचार आया कभी ढ़ाई हज़ार वर्ष से या 5000 वर्ष से बनाने की बात हैविन? अभी क्यों? क्योंकि अभी तुम बच्चों को वो सद्गुरु, हाँ, वो सतगुरु, सच्चा गुरु मिला है। कैसा सच्चा गुरु? जो सबकी सद्गति का रास्ता बताते हैं। हँ? अभी विश्व को हैविन बनाते हैं। तो कितनी खुशी होनी चाहिए! और हैविन बनाने के लिए कितना पवित्रता भी चाहिए। क्यों? क्योंकि दुनिया के सारे काम पवित्रता से होते हैं।
Today’s night class is dated 27.11.1967. It is a Murli that has been cut in between. And these fairs are such that children can actually understand that nobody becomes Golden Aged in fairs. People become even more Iron-Aged, i.e. dirty (mailey) in fairs (meley). Why? One is that people go to bathe in the rivers, in the rivers of water. So, will the soul become pure? They go to wash the body. Second topic is that does God, the Father come in those fairs? No. Those are the fairs of rivers. So, yes, children have now come to know that rightly these different kinds of fairs; be it the fair of Ganga-Yamuna; a fair is organized in Allahabad, isn’t it? The name coined is Allahabad. Well, is Allah present there? Rivers gather. It is because these fairs of the path of Bhakti are famous. And only one true fair is praised on the path of Bhakti. Which one? Hm? All other fairs are organized again and again, the [fair of] Ganga-Sagar is organized once. So, that fair of Ganga-Sagar (confluence of river Ganga and the ocean) which is organized on the path of Bhakti is also organized every year. It is the non-living ocean and non-living rivers that gather. It is not a living ocean of knowledge. The fairs that have been organized in 2500 years start when it is tamopradhan Iron Age.
So, look, only one fair (mela) is famous on the path of Bhakti which is called the fair of Ganga-Sagar. But that is a memorial; a memorial of the present Confluence Age when in the Purushottam Sangamyug; that is since a long time, i.e. since 5000 years; the souls and the Supreme Soul remained separate for a long time. So, then it is said that in the end of the Iron Age a beautiful meeting (mela) happened when the Sadguru was found in the form of a middleman (dalaal). And these fairs that are organized on the path of Bhakti since many centuries are not beautiful; are they? Arey, a beautiful fair happened only when the Sadguru is found. And it is said that one incorporeal Sadguru is Akaalmoort (eternal personality). So, when one is Sadguru, are the remaining gurus true (sad)? 'Sad' means true. The remaining ones are false, aren’t they? So, those gurus come in those fairs. You found gurus. So, guru and sadguru. It is said that good company takes you across and bad company drowns you. So, will the gurus take you across? What does the history say? Did anyone sail across? No. Nobody sailed across. This world, arey, the population of this world keeps on increasing, doesn’t it? So, if you keep on sailing across like this, then the world will become empty. Yes. So, that Sadguru is only one who sails you across. The remaining gurus drown you. They drown you.
So, look, it is right. These gurus are immense, many gurus. And all the gurus drown themselves and drown others as well. And in what do they drown? Arey, the same river of vices. It is because they themselves also get birth from the same river of vices, don’t they? This is why these will not be called righteous (shreshthachari). Hm? When will they be called righteous? Hm? That Sadguru is righteous who does not get birth through the vices of unrighteous organs. So, can anyone be like this in the world? (Someone said something.) Can’t anyone be like this? Achcha? If anyone can’t be like this, then why is it praised that ‘when the Sadguru is found in the form of a middleman’? Hm? When there is a proverb, then it is definitely sung for this Confluence Age, isn’t it? So, does that Sadguru himself also sail across this river of vices and enable you to sail across or does he himself get drowned?
So, look, the Sadguru will not be called unrighteous. The one who acts through the unrighteous organs. But the human beings do not know this at all. And this government, the democratic (prajatantra) government, isn’t it? Hm? Which tantra? The democratic government established by the subjects (praja); it is not a government of the kings. What is the difference? That government was established by the subjects. And the government of the kings? Yes, when the Father comes, then He teaches rajyog and makes us kings for many births. So, this government of subjects ruling over subjects is irreligious. It means that it doesn’t believe in religion itself. Does it believe in dharma (religion)? People say. What? Ours is a secular rule (dharmanirpeksh shaasan). We do not have any expectation (apeksha) of any religion (dharma). So, they do not know anything. Hm? They do not know any topics of dharma at all. Hm? Why don’t they know? It is because they do not have any expectation of dharma at all. They do not need dharma at all.
So, it was told – What is in their intellect and what is in your intellect? The one who establishes the true religion remains in your intellect. And in their intellect? So, the government of the Arya Samajis, the democratic government, they went on converting birth by birth to whatever religions that arrived since 2500 years. And then, whenever any new founder of religion arrived, they got converted to that. So, they continued to get converted to the new ones and they continued to lose faith on the older ones. So, they do not develop firm devotion in any religion at all. So, what do they say in the end? We don’t have, yes, faith in any religion. Achcha, we do not have any expectation, any need of all these religions. This remains in the intellect. The cutter remains in their intellect. Hm? What? That brother, whatever path we get, opposite or straight, true or false, we have to just earn money. Hm? And if we get an opportunity, then we will use scissors upon this government also. Hm? They cheat the government as well, don’t they? Yes. Government does big planning; it spends big amounts on new plannings. And these heads who run the middlemen’s government? They gobble everything. They keep on planning again and again and the planning continues to fail again and again. So, daughter, corruption takes place here in this democratic government, doesn’t it?
And look, you are so royal, magnificient. What is in your intellect now? It is now in your intellect that just now we are sinful ones; all the sinful souls in this world, be it the human beings, be it the living beings, be it the animals and birds, be it insects and worms, all are living beings, aren’t they? All of them are sinful. It is in your intellect as to how should we make all these pure and how should we become pure. Now there will not be any such human being in this India or even in the world. Of what kind? The one who thinks that how we should become pure and how all the living beings, human beings of the entire world should become pure. We will make everyone pure. The one in whose intellect this thought is there; in whose intellect? The one in whose intellect; why wasn’t it said ‘Those in whose intellects’? Why? Yes, there is only one soul among the human beings playing their part on this human world stage, who is the Father of this human world. So, the Father has to pay attention to the entire family, doesn’t he have to? Yes. So, the one in whose intellect this thought is there that now we make this world, the entire world, the entire world in general and India in particular heaven. What do you do? Hm? Why was the name heaven coined? Arey, when you conquer, win over all the religions, sects that exist, the governments that are running on their basis in the world, then heaven will be established.
So, we establish heaven. The one in whose intellect this thought is there; achcha, now we make the world heaven. Hm? Why now? Why didn’t the thought of establishing heaven occur in 2500 years or in 5000 years? Why now? It is because you children have found that sadguru, yes, that Satguru, the true guru. What kind of true guru? The one who shows the path of everyone’s Sadgati (true salvation). Hm? Now we make the world heaven. So, there should be so much joy! And so much purity is also required in order to establish heaven! Why? It is because all the tasks of the world are performed through purity.
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- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2902, दिनांक 05.06.2019
VCD 2902, dated 05.06.2019
रात्रि क्लास 27.11.1967
Night Class dated 27.11.1967
VCD-2902-extracts-Bilingual
समय- 00.01-18.10
Time- 00.01-18.10
रात्रि क्लास चल रहा था – 27.11.1967. दूसरे पेज के मध्यांत में बात चल रही थी – झोली भरने की। हँ? भक्तिमार्ग में गाते भी हैं संगमयुग की यादगार – भर दे झोली, भर दे झोली। शंकर के सामने जाकरके कहते हैं। वो तो शिव और शंकर को एक ही समझते हैं ना। तो शंकर के सामने जाके कहते हैं जिसकी झोली खुद ही खाली हो जाती है। हँ? अरे, शंकर पुरुषार्थी है, हँ, कि पहले से ही संपन्न है? हाँ, पुरुषार्थी है। क्या प्रूफ? याद में बैठा हुआ है। अरे, अपने से ऊँचे को ही याद किया जाता है ना। तो उससे भी ऊँचा कोई है। कौन है? जगतपिता से भी ऊँचा, आदम से भी, अर्जुन से भी ऊँचा कौन है? हाँ, वो सुप्रीम सोल हैविनली गाड फादर जो हैविन बनाने का रास्ता बताता है उसे।
तो वो झोली भर देता है। हँ? और आप समान बनाय देता है। किसको? एक को या सबको? एक को पहले बनाता है। क्योंकि जो, जैसे जंगल में शेर होता है ना। तो शेर को एक ही बच्चा शेर पैदा होगा और बाकि सब, कोई चीता होगा, कोई चित्तड़ होगा, कोई क्या होगा, कोई क्या होगा। सारे ही शेर थोड़ेही पैदा होंगे? वैसे भी देखो, हँ, वो कोई को वो ज्वाइंट बच्चे पैदा होते हैं ना। तो दोनों एक जैसे होते हैं तो कोई ज्यादा बड़ा सिर वाला, बड़ा शरीर वाला भी होता है? होता है ना। पहला वाला कैसा होगा? बड़ा शरीर वाला होगा ना? हाँ। उसको कहते हैं इल्डर ब्रदर। और भारत में तो मान्यता है बड़े भाई को क्या कहा जाता है? बाप समान कहा जाता है। तो आत्माएं रूप, जो भी आत्माएं रूपी भाई-भाई हैं, उनके बीच में; मनुष्यात्माओं की बात है ना? कीड़े-मकोडों की नहीं, प्राणियों की नहीं। तो मनुष्यात्माओं के बीच जो बड़े ते बडे पावर वाली आत्मा है जो इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर हीरो पार्टधारी, हीरो का पार्ट बजाती है, हाँ, तो वो किसके सामने कहती है भर दे झोली, भर दे झोली? असली बात किसकी है? पहले किसने झोली भरी? उसी ने भरी ना।
तो दुनिया तो नहीं जानती है। वो तो शंकर के लिए समझ लेते हैं। असली बात किसकी है? असली बात, हँ, शिव की है ना। सदा शिव की। ऐसे नहीं आज शिव कल्याणकारी है और कल अकल्याणकारी हो जाए। नहीं। सदा कल्याणकारी। और शंकर? शंकर तो देवता है, भले महादेव है, देवताओं में बड़ा देवता है, लेकिन सतयुग की स्थापना की शुरुआत में बड़ा देवता है, देवताओं के लिए, देव आत्माओं के लिए। और कलियुग के अंत में जनम लेते-लेते वो आत्मा आती है तो क्या बन जाती? हँ? सबसे बड़ा देवता कि सबसे बड़ा राक्षस? अरे, सारी मनुष्य सृष्टि का बीज है ना। तो मनुष्य सृष्टि में सुधरे हुए मनुष्य देवताएं भी हैं और बिगड़े हुए मनुष्य? राक्षस भी हैं।
तो राक्षसों का भी बाप है, देवताओं का भी बाप है। इसलिए तो शास्त्रों में दिखाया जाता है कि एक ही देवता है जो राक्षसों को भी सपोर्ट करता है और? और? देवताओं को भी सपोर्ट करता है। दोनों ही बच्चे हैं ना उसके। और देवताओं को क्यों सपोर्ट करता है? हँ? देवताओं को इसलिए सपोर्ट करता है कि जैसे छोटा बच्चा होता है ना तो मां-बाप छोटे बच्चे को ज्यादा ध्यान देते हैं कि नहीं? हाँ। तो देवताएं बाद में प्रत्यक्षता रूपी जनम लेते हैं संसार में। देव आत्माएं पहले प्रत्यक्ष होती हैं संसार के सामने कि राक्षस जो हैं पहले आगे आकरके हमको पहले पूजा करो, हमको पहले मानो, हम बड़े हैं, ये है, वो है, अपन को आगे कर देते हैं। जैसे रात के सितारे हैं ना। हँ? चन्द्रमा के बच्चे हैं ना। तो ज्ञान चन्द्रमा, कृष्ण चन्द्र के जो बच्चे हैं ना तो वो तो चन्द्रमा में ताकत ज्यादा है कि सूर्य में ज्यादा ताकत है? चन्द्रमा में ज्यादा। चन्द्रमा में ज्यादा ताकत? नहीं। सूर्य में ज्यादा ताकत है क्योंकि सूर्य से रोशनी लेता है चन्द्रमा। लेता है ना? हाँ। तो कम ताकत वाला तो बच्चे कैसे पैदा करेगा? कम ताकत वाले बच्चे पैदा करेगा। और देवात्माओं में उतनी ताकत नहीं होती है। देव आत्माओं को अगर भगवान का, बाप का सहयोग न मिले; क्या? जो देव आत्माएं हैं प्रवृत्तिमार्ग की पक्की हैं ना। तो प्रवृत्तिमार्ग के जो अम्मा-बाप हैं उनको तो पहचानती है ना। हाँ। तो जो पहचानती हैं उनको फिर सहयोग भी मिलता है। तो वो अगर सहयोग न दें अम्मा-बाप। कौन? कौन अम्मा-बाप? शिव हुआ आत्माओं का बाप और अम्मा कौन हुई? शिव जिस मुकर्रर रथ में, आदम में, अर्जुन में मुकर्रर रूप से प्रवेश करता है तो वो हो गई अम्मा। बाप का काम क्या होता है? सृष्टि रचेगा तो अम्मा में प्रवेश करेगा कि नहीं? नहीं तो बीज कैसे डालेगा? डालेगा? नहीं।
तो वो बाप बनता है शिव। और जो बड़ा भाई है आत्माओं के बीच में, मनुष्यात्माओं के बीच में उसको ये ड्रामा में पार्ट देता है; क्या? आते ही आते क्या नाम देता है? हँ? लिखो, क्या नाम देता है? अरे, इतनी देर लगाते। एक अक्षर लिखने में इतनी देर लगती है। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) प? हत् तेरा भला हो। प नाम देता है? प्रजापिता नाम देता है? (किसी ने कुछ कहा।) ब्रह्मा। हाँ। तो जिसमें पहले-पहले प्रवेश करेगा उसका नाम ब्रह्मा देगा। है ना? मैं जिसमें प्रवेश करता हूँ उसको, उसमें काम निकालने कि लिए क्या नाम देता हूँ? ब्रह्मा। हँ? ब्रह्म माने? बड़ी। मा माने? मां। बड़ी मां। तो कोई ब्रह्मा के तो 4-5 मुख दिखाए जाते हैं भक्तिमार्ग में। नहीं? कहाँ की यादगार? अरे, शास्त्र-वास्त्र जो हैं यादगार कहां की हैं? यादगार तो यहां की हैं ना संगमयुग की।
पुरुषोत्तम संगमयुग में जब हैविनली गॉड फादर इस सृष्टि पर आते हैं, हँ, हैविन बनाने का रास्ता सिखाते हैं तो उस समय की यादगार है। क्या? वो आते हैं तो जिसमें भी प्रवेश करेंगे उसका नाम ब्रह्मा। तो पांच मुखों में कोई, कोई मुखिया होगा कि नहीं एक मुख? कौनसा? हाँ, एक मुख होता है ऊर्ध्वमुखी। और बाकि सारे मुख हैं चार? हँ? वो इधर-उधर देखते रहते हैं ऐसे-3. और ऊपरवाले को नहीं देखते। उनकी बुद्धि ऊपर वाले की तरफ जाती ही नहीं। और जाती भी है तो समझ लेते हैं बिन्दी है निराकार। अरे, तुम्हारी निराकार आत्मा जो है बिना शरीर के कुछ काम कर पाती है? हँ? तो वो जो शिव सुप्रीम सोल है, आत्माओं का बाप वो भी शरीर चाहिए कि नहीं उसे? हँ? इस शरीर, इस सृष्टि पर आएगा तो कुछ देने के लिए आएगा कि ऐसे ही चला जाएगा? देने के लिए आता है। क्या देने के लिए आता है? हाँ, सुख का भंडारी है ना। हँ? हाँ, सुख स्वरूप है, शांति स्वरूप है, सत है, चित है, आनन्द रूप है। तो वो आकरके सुख कैसे देता है? हँ? हाँ, ज्ञान से होता है सुख और अज्ञान से होता है दुख।
तो ज्ञान देने वाला तो इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर वो एक ही सदा शिव है जो इस सृष्टि पर जब उतरता है, हँ, तो जो उसका बड़ा बच्चा है ना; कौन? मनुष्यात्माओं में कोई बड़ा बच्चा होगा ना? हाँ। आदम, अर्जुन नाम दिये हुए हैं। जगतपिता। तो उसको वो ज्ञान का भंडार देता है। तो देता है तो, उसे जरूरत नहीं है तो या ऐसे ही दे देता है? जरूरत है। जरूरतमंद को दिया जाता है ज्ञान कि जिसको जरूरत नहीं है उसको दान दिया जाता है? हँ? गरीबों को दान दिया जाता है ना। तो हाँ। तो वो जो मनुष्य सृष्टि का बीज पिता है, आदम है, अर्जुन है ना, उसको ज्ञान की बड़ी चाहत रहती है। क्या? बड़ी चाहत क्यों रहती है? उसकी बुद्धि में सबसे पहले बैठता है कि दुनिया का जो बड़े ते बड़ा भंडार है अगर सुख-शांति प्राप्त करने का तो क्या है? ज्ञान का भंडार। और ज्ञान एक से ही आता है। अनेक से क्या आएगा? अनेक से ज्ञान आएगा कि अज्ञान आएगा? अज्ञान आएगा क्योंकि मिक्स कर देंगे ना। तुंडे-तुंडे मतिर्भिन्ना। सबकी बुद्धि अलग-अलग है ना। तो दो अगर ज्ञान देंगे तो एक एक बात सुनाएगा दूसरा उसमें मिक्स कर देगा। हँ? गड़बड़ हो जाएगा ना।
तो बताया कि वो शिव जो है वो इस सृष्टि पर आता है तो जिस आत्मा रूपी बच्चे में, बड़े बच्चे में प्रवेश करता है मुकर्रर रूप से पहले-पहले तो उसका नाम देता है ब्रह्मा। पहले-पहले नाम दिया तो बड़ा ब्रह्मा हुआ या छोटा ब्रह्मा हुआ? पहले-पहले तो पहले वाला तो बड़ा ही होता है। तो बताया कि वो आत्मा है। क्या? ब्रह्मा भी और बाप भी। एक ही शरीर से है कि दो शरीरों से है? एक शरीर से है। तो उसको कहते हैं भक्तिमार्ग में त्वमेव माता च पिता। उसकी यादगार क्या? वो लिंग बनाय दिया है। एक लिंग बनाय दिया या दो लिंग? हँ? एकलिंग भगवान कहते हैं या दो लिंग भगवान कहते हैं? हँ? एक लिंग भगवान की यादगार कहां है? पता है? हँ? यादगार मंदिर कहीं होगा कि नहीं? हँ? एकलिंग भगवान का मंदिर भी है। कहाँ? अरे, भारत में ही होगा ना? भारत में कहाँ? अरे? राजस्थान में। राजाओं का जो स्थान गाया हुआ है ना, तो वो तो बाप आते हैं तो इसीलिए आते हैं कि बच्चों को मैं राजयोग सिखाकरके, राजयोग का ज्ञान देकरके जन्म-जन्मान्तर की राजाई का वर्सा दूंगा। देता है कि नहीं? हाँ, तो उसकी जो यादगार है स्टेट, कौनसा राज्य? राजस्थान। उसमें ये यादगार है एकलिंग भगवान का मंदिर बना हुआ है। क्या?
तो उस यादगार को मानने वाले की कोई मनुष्य की हिस्ट्री भी होगी कि नहीं? हँ? कौनसी हिस्ट्री? (किसी ने कुछ कहा।) महाराणा प्रताप। वो परिवार था ना? किसको मानता था? हँ? एकलिंग भगवान। दूसरा लिंग नहीं चाहिए। क्या? उनमें जो भी होती थी आत्माएं, चाहे पुरुष रूप में हों, अगले जनम में स्त्री जनम लें और चाहे स्त्री चोले में हों, अगल जनम में भले पुरुष जनम मिले, लेकिन उनके अंदर भावना क्या रहती है? कि अगर हम स्त्री चोला धारण करें तो एकलिंग को धारण करेंगे कि जीवन में दो चार लिंगों को धारण करेंगे? एक लिंग भगवान। तो वहाँ वो प्रैक्टिकल हिस्ट्री में यादगार भी है। किसकी? महाराणा प्रताप के वंश की।
तो बताया – क्या खासियत हुई उनकी? उनको क्या चाहिए सुप्रीम सोल भगवान, हँ, हैविनली गॉड फादर से? हाँ, उनको चाहिए अखूट ज्ञान का भंडार चाहिए। क्या? क्या लिंग देगा? लिंग नहीं देगा। लिंग तो वो खुद ही है मनुष्यात्मा। मनुष्यों को लिंग होता है। हं? देवताओं को तो लिंग कर्मेन्द्रिय होती है? होता ही नहीं। और जो देवताओं को देवता बनाने वाला है उसको तो सवाल ही नहीं देह के अंग का। होगा? हँ? होगा? कर्मेन्द्रिय होगी? उसको तो कर्मेन्द्रिय भी नहीं। ज्ञानेन्द्रिय? ज्ञानेन्द्रिय भी नहीं। हाँ, वो तो एकदम बस प्योर आत्मा है। तो वो प्योर आत्मा जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करती है, हँ, उसको लिंग होता है। हँ? तो वो ही आत्मा जो है, जिसको शंकर कहा जाता है, वो शंकर का लिंग जो है ना वो पूजा जाता है। अरे भई, लिंग क्यों पूजा जाता है? नाक और कान और आँख क्यों नहीं पूजी जाती? अरे, कुछ काम करके दिखाया होगा ना जो दुनिया में किसी ने नहीं करके दिखाया। तो वो यादगार इसलिए बनती है लिंग की कि वो गायन है। क्या? इंद्रिय जीते जगतजीत। कौनसी इंद्रिय जीते? नाक, कान? हँ? हाथ, पांव? नहीं। कौनसी इंद्रिय जीते? हाँ, लिंग इंद्रिय जीते। क्यों भई? लिंग पुरुषों को ही होता है? स्त्री को नहीं होता? होता है। भले छोटे बड़ा होता है। लेकिन पुरुष जो हैं सारे ही दुर्योधन-दुःशासन होते हैं कलियुग के अंत में। कोई ऐसा पुरुष होता है जो दुर्योधन-दुःशासनपना न करे? होता है? कोई नहीं। तो बस। अरे?
तो बताया कि वो जो प्रजापिता है, आदम है, हँ, वो अर्जुन के रूप में पुरुषार्थ करता है। पुरुषार्थ क्या करता है? अर्जन करता है। क्या अर्जन करता है? है तो पुरुष लेकिन दुर्योधन-दुःशासन स्वभाव का है, लेकिन पुरुषार्थ ये करता है कि पुरुष की जो इन्द्रिय है उसके ऊपर जीत पानी है। ये पुरुषार्थ करता है कि नहीं सबसे जास्ती? हाँ। तो पुरुषार्थ करने के लिए अभ्यास चाहिए कि नहीं? हाँ, तो ये अभ्यास करने से डरता है या जो वीर योद्धा होगा वो लड़ाई लड़ने से डरेगा या लड़ाई लड़ेगा? हँ? हाँ। देहम् वा पातयामि। कार्यम वा साधयामि। भले देह छूट जाए, हँ, और देह की इन्द्रियां भी काम न करें, वो भी छूट जाएं, लेकिन फिर भी आत्मा का पक्का निश्चय क्या है? क्या भावना है? कि अगला जनम लेंगे तो भी क्या करेंगे? इन्द्रिय को जीतेंगे।
बताया कि वो एक ही मनुष्य मात्र इस सृष्टि पर है, आदम कहो, अर्जुन कहो, जो अपने शरीर रूपी रथ को कंट्रोल करता है, हँ, जो मुख्य इन्द्रिय गाई हुई है जो किसी के कंट्रोल में नहीं आती उसको भी कंट्रोल कर लेता है। कैसे? ज्ञान के बल से। और वो ज्ञान किससे आता है? एक शिव, सदा शिव से आता है। तो उसके, हँ, सामने बैठकरके ये घरैया लगाता है। क्या? संकल्प की। किसके सामने? किसके सामने? वो ही शिव। अरे, कैसे घरैया लगाएगा? देह बनके? नहीं। पहले अपन को आत्मा समझो। आत्मा बनो। और आत्मा बनकरके मन-बुद्धि रूपी मन-बुद्धि की घरैया लगाओ। क्या? रट्टा लगाओ। क्या रट्टा लगाओ? क्या रट्टा लगाओ? हँ? भर दे झोली, भर दे झोली। धन-संपत्ति, हँ, सोने, चांदी से नहीं, हीरे-जवाहरातों से, काहे से? हँ? ज्ञान रतनों से झोली भर दे। अरे? किसके सामने? किसके सामने घरैया लगाता है? रट्ट लगा देता है। हँ? हाँ, आत्मा बनकरके आत्माओं के बाप के सामने ये रट्ट लगाता है। क्या करो? मेरी झोली ज्ञान की भर दो। तुम्हारे सिवाय और कोई ज्ञान की झोली भरने वाला नहीं।
A night class dated 27.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the end of the middle portion of the second page was about filling the jholi (a portion of dress that is spread forward to collect alms). Hm? People also sing about the memorial of the Confluence Age on the path of Bhakti – Bhar de jholi, bhar de jholi (fill up my jholi). They go in front of Shankar and say. They consider Shiv and Shankar to be the same; don’t they? So they go and say in front of Shankar, whose jholi itself becomes empty. Hm? Arey, is Shankar purusharthi (effort-maker) or is he perfect from the beginning? Yes, he is a purusharthi. What is the proof? He is sitting in remembrance. Arey, you remember someone who is higher than you, don’t you? So, there is someone higher than him. Who is it? Who is higher than the Father of the world (jagatpita), Aadam, Arjun? Yes, that Supreme Soul, Heavenly God Father who shows him the path of establishing heaven.
So, He fills the jholi. Hm? And He makes him equal to Himself. Whom? One or everyone? He makes one first. It is because, the one, for example, there is lion in the jungle, isn’t it? So, a lion will give birth to only one child, a lion and all others, there may be a Cheetah, a chittad, something, something. Will all be born as lions? Even otherwise, look, some children are born as joint ones. So, both are alike; so, is someone with a bigger head, bigger body also? There are, aren’t they there? How will be the first one? He will have a bigger body, will it not? Yes. He is called the elder brother. And in India it is believed that what is the elder brother called? He is said to be equal to the Father. So, the souls, all the soul-like brothers, among them; it is a topic of the human souls, isn’t it? It is not about the worms and insects, not about the living beings. So, among the human souls the soul with the biggest power, which plays the part of a hero actor, hero on this world stage, yes, so, in front of whom does it say – fill up my jholi, fill up my jholi? Whose topic is it actually? Who filled the jholi first? It was He who filled, didn’t He?
So, the world doesn’t know. They think for Shankar. Whose topic is it in reality? The true topic is of Shiv, isn’t it? Of Sadaa Shiv. It is not as if today Shiv is benevolent and becomes harmful tomorrow. No. Forever benevolent. And Shankar? Shankar is a deity, although he is the highest deity (Mahadev), the biggest deity among the deities, yet, he is the biggest deity in the beginning of the establishment of the Golden Age, for the deities, for the deity souls. And when that soul reaches the end of the Iron Age while getting births, then what does it become? Hm? Biggest deity or biggest demon? Arey, he is the seed of the entire human world, isn’t he? So, there are reformed human beings, the deities also in the human world and spoiled human beings? There are demons too.
So, he is the Father of the demons as well as the deities. This is why it is shown in the scriptures that there is only one deity who supports the demons as well as? And? He supports the deities as well. Both are his children, aren’t they? And why does he support the deities? Hm? He supports the deities because when a child is young, do the parents pay more attention to him or not? Yes. So, deities get revelation-like birth later on in the world. Do the deity souls get revealed first in front of the world or do the demons who come forward first saying worship us first, believe in us first, we are elders, we are this, we are that and put themselves ahead? For example, there are stars of the night, aren’t they there? Hm? They are children of the Moon, aren’t they? So, the children of the Moon of knowledge, Krishna Chandra; so, is there more power in the Moon or in the Sun? More in the Moon. Is there more power in the Moon? No. There is more power in the Sun because the Moon obtains light from the Sun. It obtains, doesn’t it? Yes. So, if he has less power, then what kind of children will he produce? He will produce children with lesser power. And the deities do not have that much power. If the deity souls do not get the support of God, of the Father; what? The deity souls are firm on the path of household, aren’t they? So, they do recognize the parents of the path of household, don’t they? Yes. So, those who recognize do get cooperation as well. So, if the parents do not help; who? Which mother and Father? Is Shiv the Father of souls and who is the Mother? The permanent Chariot, Aadam, Arjun in whom Shiv enters in a permanent manner happens to be the mother. What is the task of the Father? If he procreates, does he enter into the mother or not? Otherwise, how will he sow the seed? Will he sow? No.
So, Shiv becomes the Father. And the one who is the elder brother among the souls, among the human souls, He gives him this partin the drama; what? What is the name that He assigns to him as soon as He comes? Hm? Write; what is the name that He assigns? Arey, you take so much time. You take so much time to write just one alphabet. Hm? (Someone said something.) P? Damn it, God bless you. Does He assign him the name ‘P’? Does He assign him the name Prajapita? (Someone said something.) Brahma. Yes. So, the one in whom He enters first of all, He will name him Brahma. Is it not? The one in whom I enter, in order to extract the work, what is the name that I assign? Brahma. Hm? What is meant by Brahm? Senior. What is meant by Ma? Senior mother. So, some Brahmas are depicted to have 4-5 heads on the path of Bhakti. Is it not? It is a memorial of which place? Arey, the scripture are memorials of which place? The memorials are of this place, of the Confluence Age, aren’t they?
In the Purushottam Sangamyug, when the Heavenly God Father comes to this world, when He shows the path of establishing heaven, it is a memorial of that time. What? When He comes, then in whomsoever He enters He names him Brahma. So, among the five heads, will there be a chief head or not? Which one? Yes, one head is upward facing (oordhwamukhi). And the remaining four heads? Hm? They keep on looking here and there, like this, like this. And they do not look at the above one. Their intellect doesn’t move towards the above one at all. And even if it goes, they think that He is a point, incorporeal. Arey, can your incorporeal soul perform any task without the body? Hm? So, that Supreme Soul Shiv, the Father of souls, does He also require a body or not? Hm? When He comes to this body, this world, then will He come to give something or will He simply go away? He comes to give. What does He come to give? Yes, He is a stock house of happiness, isn’t He? Hm? Yes, He is an embodiment of happiness, embodiment of peace; He is sat (truth), chit (living); He is an embodiment of bliss (anand roop). So, how does He come and give happiness? Hm? Yes, knowledge causes happiness and ignorance leads to sorrow.
So, the giver of knowledge on this world stage is only that one Sadaa Shiv who, when He descends on this world, then His eldest son; who? There must be an elder son among the human souls, will he not be there? Yes. The names Aadam, Arjun have been assigned. Jagatpita (Father of the world). So, He gives him that stock of knowledge. So, when He gives, does He give if he doesn’t need or does He simply give? He needs. Is knowledge given to a needy or is donation given to someone who does not need it? Hm? Donation is given to the poor people, isn’t it? So, yes. So, that seed Father of the human world, Aadam, Arjun needs knowledge a lot. What? Why does he have a great need? It sits in his intellect first of all that if there is any biggest stock house of the world to obtain happiness and peace, what is it? The stock of knowledge. And knowledge comes from one. What will come from many? Will knowledge or ignorance come from many? Ignorance will come because they will mix, will they not? Tundey tundey matirbhinna (there are as many opinions as there are heads). Everyone’s intellect is different, isn’t it? So, if you give knowledge then one will narrate one topic and the other one will mix in it. Hm? There will be confusion (gadbad), will it not be there?
So, it was told that when that Shiv comes to this world, then the child-like soul, the eldest son in whom He enters in a permanent manner, He names him first of all Brahma. When He named him first of all, is he the senior Brahma or the junior Brahma? First of all; so, the first one is elder only. So, it was told that he is a soul. What? Brahma as well as the Father. Is it through the same body or through two bodies? Through one body. So, He is called ‘twamev mataa cha pita’ (you are mother as well as Father). What is its memorial? That ling has been formed. Was one ling made or two lings? Hm? Do you say ‘Ekling Bhagwaan’ (God with one ling) or do you say ‘Do ling Bhagwaan’ (God with two lings)? Hm? Where is the memorial of Ek Ling Bhagwaan? Arey, it must be in India only, isn’t it? Where in India? Arey? In Rajasthan. The place (sthaan) of kings (raja) that is praised, so, when the Father comes, He comes only because I will teach rajyog to the children, I will give knowledge of rajyog to the children and give them the inheritance of kingship for many births. Does He give or not? Yes, so, its memorial state; which state? Rajasthan. There is this memorial there; the temple of Ek Ling Bhagwan has been built. What?
So, will there be any history of the human being who believes in that memorial or not? Hm? Which history? (Someone said something.) Maharana Pratap. There was that family; wasn’t it? Whom did they used to believe? Hm? Ek Ling Bhagwaan. Second ling is not required. What? All the souls which used to exist among them, they could be in male form, they may get next birth as a female and they may be in a female body and get next birth as a male, but what is their feeling inside? If I assume a female body, then will I hold one ling (phallus) in life or will I hold 2-4 lings? One Ling God. So, there is a memorial also in the practical history. Whose? Of the dynasty of Maharana Pratap.
So, it was told – What is their specialty? What do they want from the Supreme Soul God, the Heavenly God Father? Yes, they want the inexhaustible stock of knowledge. What? Will the Ling give? Ling will not give. That human soul himself is the ling. Human beings have ling (phallus). Hm? Do the deities have the organ of action ling? They do not have at all. And there is no question of the one who makes the deities as a deity having an organ of the body. Will He have? Hm? Will He have? Will He have an organ of action? He does not have an organ of action as well. Sense organ? Neither sense organ as well. Yes, He is just a completely pure soul. So, the permanent Chariot in which that pure soul enters, he has a ling. Hm? So, the same soul who is called Shankar, that Shankar’s ling is worshipped. Arey brother, why is ling worshipped? Why isn’t nose, ears and eyes worshipped? Arey, it must have performed some such task which nobody could perform in the world. So, that memorial of ling is formed only because there is that praise. What? You can become conquerors of the world if you conquer the organs. Conquering which organ? Nose, ears? Hm? Hands, legs? No. Conquering which organ? Yes, conquering the organ of ling. Why brother? Do the men alone have a ling? Doesn’t a woman have? She has. It could be small or big. But all the men are Duryodhans and Dushasans in the end of the Iron Age. Is there any such man who does not act like Duryodhan and Dushasan? Is there anyone? Nobody. So, that is it. Arey?
So, it was told that the one who is Prajapita, Aadam makes purusharth in the form of Arjun. What purusharth does he make? He earns. What does he earn? He is indeed a man, but his nature is that of a Duryodhan-Dushasan, but he makes purusharth that he has to conquer the organ of man. Does he make this purusharth the most or not? Yes. So, does he require practice to make this purusharth or not? Yes, so, does he fear practicing this or will a brave warrior fear fighting or will he fight? Hm? Yes. Deham va paatyaami (the body may fall down). Kaaryam va saadhyaami (the task has to be accomplished). The body may be gone and the organs of the body may also not work, they may also be gone, yet what is the firm faith of the soul? What is the feeling? That even if we get next birth, what will we do? We will conquer the organ.
It was told that he is the only human being in this world, call him Aadam, call him Arjun, who controls his body-like Chariot; he controls even the main organ which doesn’t come under anyone’s control. How? Through the power of knowledge. And from whom does that knowledge come? It comes from one Shiv, Sadaa Shiv. So, he sits in front of Him and repeats this topic. What? Of the thought. In front of whom? In front of whom? The same Shiv. Arey, how will he repeat? By becoming a body? No. First consider yourself to be a soul. Become a soul. And after becoming a soul, repeat through the mind and intellect. What? Repeat by rote. What should you repeat by rote? What should you repeat by rote? Hm? Fill up my jholi, fill up my jholi. Not with wealth and property, not with gold and silver, diamonds and jewels; with what? Hm? Fill up the jholi with the gems of knowledge. Arey? In front of whom? In front of whom does he repeat? He repeats by rote. Hm? Yes, he becomes a soul and repeats in front of the Father of souls. What should You do? Fill up my jholi with knowledge. Nobody else is there to fill up my jholi with knowledge.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2902, दिनांक 05.06.2019
VCD 2902, dated 05.06.2019
रात्रि क्लास 27.11.1967
Night Class dated 27.11.1967
VCD-2902-extracts-Bilingual
समय- 00.01-18.10
Time- 00.01-18.10
रात्रि क्लास चल रहा था – 27.11.1967. दूसरे पेज के मध्यांत में बात चल रही थी – झोली भरने की। हँ? भक्तिमार्ग में गाते भी हैं संगमयुग की यादगार – भर दे झोली, भर दे झोली। शंकर के सामने जाकरके कहते हैं। वो तो शिव और शंकर को एक ही समझते हैं ना। तो शंकर के सामने जाके कहते हैं जिसकी झोली खुद ही खाली हो जाती है। हँ? अरे, शंकर पुरुषार्थी है, हँ, कि पहले से ही संपन्न है? हाँ, पुरुषार्थी है। क्या प्रूफ? याद में बैठा हुआ है। अरे, अपने से ऊँचे को ही याद किया जाता है ना। तो उससे भी ऊँचा कोई है। कौन है? जगतपिता से भी ऊँचा, आदम से भी, अर्जुन से भी ऊँचा कौन है? हाँ, वो सुप्रीम सोल हैविनली गाड फादर जो हैविन बनाने का रास्ता बताता है उसे।
तो वो झोली भर देता है। हँ? और आप समान बनाय देता है। किसको? एक को या सबको? एक को पहले बनाता है। क्योंकि जो, जैसे जंगल में शेर होता है ना। तो शेर को एक ही बच्चा शेर पैदा होगा और बाकि सब, कोई चीता होगा, कोई चित्तड़ होगा, कोई क्या होगा, कोई क्या होगा। सारे ही शेर थोड़ेही पैदा होंगे? वैसे भी देखो, हँ, वो कोई को वो ज्वाइंट बच्चे पैदा होते हैं ना। तो दोनों एक जैसे होते हैं तो कोई ज्यादा बड़ा सिर वाला, बड़ा शरीर वाला भी होता है? होता है ना। पहला वाला कैसा होगा? बड़ा शरीर वाला होगा ना? हाँ। उसको कहते हैं इल्डर ब्रदर। और भारत में तो मान्यता है बड़े भाई को क्या कहा जाता है? बाप समान कहा जाता है। तो आत्माएं रूप, जो भी आत्माएं रूपी भाई-भाई हैं, उनके बीच में; मनुष्यात्माओं की बात है ना? कीड़े-मकोडों की नहीं, प्राणियों की नहीं। तो मनुष्यात्माओं के बीच जो बड़े ते बडे पावर वाली आत्मा है जो इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर हीरो पार्टधारी, हीरो का पार्ट बजाती है, हाँ, तो वो किसके सामने कहती है भर दे झोली, भर दे झोली? असली बात किसकी है? पहले किसने झोली भरी? उसी ने भरी ना।
तो दुनिया तो नहीं जानती है। वो तो शंकर के लिए समझ लेते हैं। असली बात किसकी है? असली बात, हँ, शिव की है ना। सदा शिव की। ऐसे नहीं आज शिव कल्याणकारी है और कल अकल्याणकारी हो जाए। नहीं। सदा कल्याणकारी। और शंकर? शंकर तो देवता है, भले महादेव है, देवताओं में बड़ा देवता है, लेकिन सतयुग की स्थापना की शुरुआत में बड़ा देवता है, देवताओं के लिए, देव आत्माओं के लिए। और कलियुग के अंत में जनम लेते-लेते वो आत्मा आती है तो क्या बन जाती? हँ? सबसे बड़ा देवता कि सबसे बड़ा राक्षस? अरे, सारी मनुष्य सृष्टि का बीज है ना। तो मनुष्य सृष्टि में सुधरे हुए मनुष्य देवताएं भी हैं और बिगड़े हुए मनुष्य? राक्षस भी हैं।
तो राक्षसों का भी बाप है, देवताओं का भी बाप है। इसलिए तो शास्त्रों में दिखाया जाता है कि एक ही देवता है जो राक्षसों को भी सपोर्ट करता है और? और? देवताओं को भी सपोर्ट करता है। दोनों ही बच्चे हैं ना उसके। और देवताओं को क्यों सपोर्ट करता है? हँ? देवताओं को इसलिए सपोर्ट करता है कि जैसे छोटा बच्चा होता है ना तो मां-बाप छोटे बच्चे को ज्यादा ध्यान देते हैं कि नहीं? हाँ। तो देवताएं बाद में प्रत्यक्षता रूपी जनम लेते हैं संसार में। देव आत्माएं पहले प्रत्यक्ष होती हैं संसार के सामने कि राक्षस जो हैं पहले आगे आकरके हमको पहले पूजा करो, हमको पहले मानो, हम बड़े हैं, ये है, वो है, अपन को आगे कर देते हैं। जैसे रात के सितारे हैं ना। हँ? चन्द्रमा के बच्चे हैं ना। तो ज्ञान चन्द्रमा, कृष्ण चन्द्र के जो बच्चे हैं ना तो वो तो चन्द्रमा में ताकत ज्यादा है कि सूर्य में ज्यादा ताकत है? चन्द्रमा में ज्यादा। चन्द्रमा में ज्यादा ताकत? नहीं। सूर्य में ज्यादा ताकत है क्योंकि सूर्य से रोशनी लेता है चन्द्रमा। लेता है ना? हाँ। तो कम ताकत वाला तो बच्चे कैसे पैदा करेगा? कम ताकत वाले बच्चे पैदा करेगा। और देवात्माओं में उतनी ताकत नहीं होती है। देव आत्माओं को अगर भगवान का, बाप का सहयोग न मिले; क्या? जो देव आत्माएं हैं प्रवृत्तिमार्ग की पक्की हैं ना। तो प्रवृत्तिमार्ग के जो अम्मा-बाप हैं उनको तो पहचानती है ना। हाँ। तो जो पहचानती हैं उनको फिर सहयोग भी मिलता है। तो वो अगर सहयोग न दें अम्मा-बाप। कौन? कौन अम्मा-बाप? शिव हुआ आत्माओं का बाप और अम्मा कौन हुई? शिव जिस मुकर्रर रथ में, आदम में, अर्जुन में मुकर्रर रूप से प्रवेश करता है तो वो हो गई अम्मा। बाप का काम क्या होता है? सृष्टि रचेगा तो अम्मा में प्रवेश करेगा कि नहीं? नहीं तो बीज कैसे डालेगा? डालेगा? नहीं।
तो वो बाप बनता है शिव। और जो बड़ा भाई है आत्माओं के बीच में, मनुष्यात्माओं के बीच में उसको ये ड्रामा में पार्ट देता है; क्या? आते ही आते क्या नाम देता है? हँ? लिखो, क्या नाम देता है? अरे, इतनी देर लगाते। एक अक्षर लिखने में इतनी देर लगती है। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) प? हत् तेरा भला हो। प नाम देता है? प्रजापिता नाम देता है? (किसी ने कुछ कहा।) ब्रह्मा। हाँ। तो जिसमें पहले-पहले प्रवेश करेगा उसका नाम ब्रह्मा देगा। है ना? मैं जिसमें प्रवेश करता हूँ उसको, उसमें काम निकालने कि लिए क्या नाम देता हूँ? ब्रह्मा। हँ? ब्रह्म माने? बड़ी। मा माने? मां। बड़ी मां। तो कोई ब्रह्मा के तो 4-5 मुख दिखाए जाते हैं भक्तिमार्ग में। नहीं? कहाँ की यादगार? अरे, शास्त्र-वास्त्र जो हैं यादगार कहां की हैं? यादगार तो यहां की हैं ना संगमयुग की।
पुरुषोत्तम संगमयुग में जब हैविनली गॉड फादर इस सृष्टि पर आते हैं, हँ, हैविन बनाने का रास्ता सिखाते हैं तो उस समय की यादगार है। क्या? वो आते हैं तो जिसमें भी प्रवेश करेंगे उसका नाम ब्रह्मा। तो पांच मुखों में कोई, कोई मुखिया होगा कि नहीं एक मुख? कौनसा? हाँ, एक मुख होता है ऊर्ध्वमुखी। और बाकि सारे मुख हैं चार? हँ? वो इधर-उधर देखते रहते हैं ऐसे-3. और ऊपरवाले को नहीं देखते। उनकी बुद्धि ऊपर वाले की तरफ जाती ही नहीं। और जाती भी है तो समझ लेते हैं बिन्दी है निराकार। अरे, तुम्हारी निराकार आत्मा जो है बिना शरीर के कुछ काम कर पाती है? हँ? तो वो जो शिव सुप्रीम सोल है, आत्माओं का बाप वो भी शरीर चाहिए कि नहीं उसे? हँ? इस शरीर, इस सृष्टि पर आएगा तो कुछ देने के लिए आएगा कि ऐसे ही चला जाएगा? देने के लिए आता है। क्या देने के लिए आता है? हाँ, सुख का भंडारी है ना। हँ? हाँ, सुख स्वरूप है, शांति स्वरूप है, सत है, चित है, आनन्द रूप है। तो वो आकरके सुख कैसे देता है? हँ? हाँ, ज्ञान से होता है सुख और अज्ञान से होता है दुख।
तो ज्ञान देने वाला तो इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर वो एक ही सदा शिव है जो इस सृष्टि पर जब उतरता है, हँ, तो जो उसका बड़ा बच्चा है ना; कौन? मनुष्यात्माओं में कोई बड़ा बच्चा होगा ना? हाँ। आदम, अर्जुन नाम दिये हुए हैं। जगतपिता। तो उसको वो ज्ञान का भंडार देता है। तो देता है तो, उसे जरूरत नहीं है तो या ऐसे ही दे देता है? जरूरत है। जरूरतमंद को दिया जाता है ज्ञान कि जिसको जरूरत नहीं है उसको दान दिया जाता है? हँ? गरीबों को दान दिया जाता है ना। तो हाँ। तो वो जो मनुष्य सृष्टि का बीज पिता है, आदम है, अर्जुन है ना, उसको ज्ञान की बड़ी चाहत रहती है। क्या? बड़ी चाहत क्यों रहती है? उसकी बुद्धि में सबसे पहले बैठता है कि दुनिया का जो बड़े ते बड़ा भंडार है अगर सुख-शांति प्राप्त करने का तो क्या है? ज्ञान का भंडार। और ज्ञान एक से ही आता है। अनेक से क्या आएगा? अनेक से ज्ञान आएगा कि अज्ञान आएगा? अज्ञान आएगा क्योंकि मिक्स कर देंगे ना। तुंडे-तुंडे मतिर्भिन्ना। सबकी बुद्धि अलग-अलग है ना। तो दो अगर ज्ञान देंगे तो एक एक बात सुनाएगा दूसरा उसमें मिक्स कर देगा। हँ? गड़बड़ हो जाएगा ना।
तो बताया कि वो शिव जो है वो इस सृष्टि पर आता है तो जिस आत्मा रूपी बच्चे में, बड़े बच्चे में प्रवेश करता है मुकर्रर रूप से पहले-पहले तो उसका नाम देता है ब्रह्मा। पहले-पहले नाम दिया तो बड़ा ब्रह्मा हुआ या छोटा ब्रह्मा हुआ? पहले-पहले तो पहले वाला तो बड़ा ही होता है। तो बताया कि वो आत्मा है। क्या? ब्रह्मा भी और बाप भी। एक ही शरीर से है कि दो शरीरों से है? एक शरीर से है। तो उसको कहते हैं भक्तिमार्ग में त्वमेव माता च पिता। उसकी यादगार क्या? वो लिंग बनाय दिया है। एक लिंग बनाय दिया या दो लिंग? हँ? एकलिंग भगवान कहते हैं या दो लिंग भगवान कहते हैं? हँ? एक लिंग भगवान की यादगार कहां है? पता है? हँ? यादगार मंदिर कहीं होगा कि नहीं? हँ? एकलिंग भगवान का मंदिर भी है। कहाँ? अरे, भारत में ही होगा ना? भारत में कहाँ? अरे? राजस्थान में। राजाओं का जो स्थान गाया हुआ है ना, तो वो तो बाप आते हैं तो इसीलिए आते हैं कि बच्चों को मैं राजयोग सिखाकरके, राजयोग का ज्ञान देकरके जन्म-जन्मान्तर की राजाई का वर्सा दूंगा। देता है कि नहीं? हाँ, तो उसकी जो यादगार है स्टेट, कौनसा राज्य? राजस्थान। उसमें ये यादगार है एकलिंग भगवान का मंदिर बना हुआ है। क्या?
तो उस यादगार को मानने वाले की कोई मनुष्य की हिस्ट्री भी होगी कि नहीं? हँ? कौनसी हिस्ट्री? (किसी ने कुछ कहा।) महाराणा प्रताप। वो परिवार था ना? किसको मानता था? हँ? एकलिंग भगवान। दूसरा लिंग नहीं चाहिए। क्या? उनमें जो भी होती थी आत्माएं, चाहे पुरुष रूप में हों, अगले जनम में स्त्री जनम लें और चाहे स्त्री चोले में हों, अगल जनम में भले पुरुष जनम मिले, लेकिन उनके अंदर भावना क्या रहती है? कि अगर हम स्त्री चोला धारण करें तो एकलिंग को धारण करेंगे कि जीवन में दो चार लिंगों को धारण करेंगे? एक लिंग भगवान। तो वहाँ वो प्रैक्टिकल हिस्ट्री में यादगार भी है। किसकी? महाराणा प्रताप के वंश की।
तो बताया – क्या खासियत हुई उनकी? उनको क्या चाहिए सुप्रीम सोल भगवान, हँ, हैविनली गॉड फादर से? हाँ, उनको चाहिए अखूट ज्ञान का भंडार चाहिए। क्या? क्या लिंग देगा? लिंग नहीं देगा। लिंग तो वो खुद ही है मनुष्यात्मा। मनुष्यों को लिंग होता है। हं? देवताओं को तो लिंग कर्मेन्द्रिय होती है? होता ही नहीं। और जो देवताओं को देवता बनाने वाला है उसको तो सवाल ही नहीं देह के अंग का। होगा? हँ? होगा? कर्मेन्द्रिय होगी? उसको तो कर्मेन्द्रिय भी नहीं। ज्ञानेन्द्रिय? ज्ञानेन्द्रिय भी नहीं। हाँ, वो तो एकदम बस प्योर आत्मा है। तो वो प्योर आत्मा जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करती है, हँ, उसको लिंग होता है। हँ? तो वो ही आत्मा जो है, जिसको शंकर कहा जाता है, वो शंकर का लिंग जो है ना वो पूजा जाता है। अरे भई, लिंग क्यों पूजा जाता है? नाक और कान और आँख क्यों नहीं पूजी जाती? अरे, कुछ काम करके दिखाया होगा ना जो दुनिया में किसी ने नहीं करके दिखाया। तो वो यादगार इसलिए बनती है लिंग की कि वो गायन है। क्या? इंद्रिय जीते जगतजीत। कौनसी इंद्रिय जीते? नाक, कान? हँ? हाथ, पांव? नहीं। कौनसी इंद्रिय जीते? हाँ, लिंग इंद्रिय जीते। क्यों भई? लिंग पुरुषों को ही होता है? स्त्री को नहीं होता? होता है। भले छोटे बड़ा होता है। लेकिन पुरुष जो हैं सारे ही दुर्योधन-दुःशासन होते हैं कलियुग के अंत में। कोई ऐसा पुरुष होता है जो दुर्योधन-दुःशासनपना न करे? होता है? कोई नहीं। तो बस। अरे?
तो बताया कि वो जो प्रजापिता है, आदम है, हँ, वो अर्जुन के रूप में पुरुषार्थ करता है। पुरुषार्थ क्या करता है? अर्जन करता है। क्या अर्जन करता है? है तो पुरुष लेकिन दुर्योधन-दुःशासन स्वभाव का है, लेकिन पुरुषार्थ ये करता है कि पुरुष की जो इन्द्रिय है उसके ऊपर जीत पानी है। ये पुरुषार्थ करता है कि नहीं सबसे जास्ती? हाँ। तो पुरुषार्थ करने के लिए अभ्यास चाहिए कि नहीं? हाँ, तो ये अभ्यास करने से डरता है या जो वीर योद्धा होगा वो लड़ाई लड़ने से डरेगा या लड़ाई लड़ेगा? हँ? हाँ। देहम् वा पातयामि। कार्यम वा साधयामि। भले देह छूट जाए, हँ, और देह की इन्द्रियां भी काम न करें, वो भी छूट जाएं, लेकिन फिर भी आत्मा का पक्का निश्चय क्या है? क्या भावना है? कि अगला जनम लेंगे तो भी क्या करेंगे? इन्द्रिय को जीतेंगे।
बताया कि वो एक ही मनुष्य मात्र इस सृष्टि पर है, आदम कहो, अर्जुन कहो, जो अपने शरीर रूपी रथ को कंट्रोल करता है, हँ, जो मुख्य इन्द्रिय गाई हुई है जो किसी के कंट्रोल में नहीं आती उसको भी कंट्रोल कर लेता है। कैसे? ज्ञान के बल से। और वो ज्ञान किससे आता है? एक शिव, सदा शिव से आता है। तो उसके, हँ, सामने बैठकरके ये घरैया लगाता है। क्या? संकल्प की। किसके सामने? किसके सामने? वो ही शिव। अरे, कैसे घरैया लगाएगा? देह बनके? नहीं। पहले अपन को आत्मा समझो। आत्मा बनो। और आत्मा बनकरके मन-बुद्धि रूपी मन-बुद्धि की घरैया लगाओ। क्या? रट्टा लगाओ। क्या रट्टा लगाओ? क्या रट्टा लगाओ? हँ? भर दे झोली, भर दे झोली। धन-संपत्ति, हँ, सोने, चांदी से नहीं, हीरे-जवाहरातों से, काहे से? हँ? ज्ञान रतनों से झोली भर दे। अरे? किसके सामने? किसके सामने घरैया लगाता है? रट्ट लगा देता है। हँ? हाँ, आत्मा बनकरके आत्माओं के बाप के सामने ये रट्ट लगाता है। क्या करो? मेरी झोली ज्ञान की भर दो। तुम्हारे सिवाय और कोई ज्ञान की झोली भरने वाला नहीं।
A night class dated 27.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the end of the middle portion of the second page was about filling the jholi (a portion of dress that is spread forward to collect alms). Hm? People also sing about the memorial of the Confluence Age on the path of Bhakti – Bhar de jholi, bhar de jholi (fill up my jholi). They go in front of Shankar and say. They consider Shiv and Shankar to be the same; don’t they? So they go and say in front of Shankar, whose jholi itself becomes empty. Hm? Arey, is Shankar purusharthi (effort-maker) or is he perfect from the beginning? Yes, he is a purusharthi. What is the proof? He is sitting in remembrance. Arey, you remember someone who is higher than you, don’t you? So, there is someone higher than him. Who is it? Who is higher than the Father of the world (jagatpita), Aadam, Arjun? Yes, that Supreme Soul, Heavenly God Father who shows him the path of establishing heaven.
So, He fills the jholi. Hm? And He makes him equal to Himself. Whom? One or everyone? He makes one first. It is because, the one, for example, there is lion in the jungle, isn’t it? So, a lion will give birth to only one child, a lion and all others, there may be a Cheetah, a chittad, something, something. Will all be born as lions? Even otherwise, look, some children are born as joint ones. So, both are alike; so, is someone with a bigger head, bigger body also? There are, aren’t they there? How will be the first one? He will have a bigger body, will it not? Yes. He is called the elder brother. And in India it is believed that what is the elder brother called? He is said to be equal to the Father. So, the souls, all the soul-like brothers, among them; it is a topic of the human souls, isn’t it? It is not about the worms and insects, not about the living beings. So, among the human souls the soul with the biggest power, which plays the part of a hero actor, hero on this world stage, yes, so, in front of whom does it say – fill up my jholi, fill up my jholi? Whose topic is it actually? Who filled the jholi first? It was He who filled, didn’t He?
So, the world doesn’t know. They think for Shankar. Whose topic is it in reality? The true topic is of Shiv, isn’t it? Of Sadaa Shiv. It is not as if today Shiv is benevolent and becomes harmful tomorrow. No. Forever benevolent. And Shankar? Shankar is a deity, although he is the highest deity (Mahadev), the biggest deity among the deities, yet, he is the biggest deity in the beginning of the establishment of the Golden Age, for the deities, for the deity souls. And when that soul reaches the end of the Iron Age while getting births, then what does it become? Hm? Biggest deity or biggest demon? Arey, he is the seed of the entire human world, isn’t he? So, there are reformed human beings, the deities also in the human world and spoiled human beings? There are demons too.
So, he is the Father of the demons as well as the deities. This is why it is shown in the scriptures that there is only one deity who supports the demons as well as? And? He supports the deities as well. Both are his children, aren’t they? And why does he support the deities? Hm? He supports the deities because when a child is young, do the parents pay more attention to him or not? Yes. So, deities get revelation-like birth later on in the world. Do the deity souls get revealed first in front of the world or do the demons who come forward first saying worship us first, believe in us first, we are elders, we are this, we are that and put themselves ahead? For example, there are stars of the night, aren’t they there? Hm? They are children of the Moon, aren’t they? So, the children of the Moon of knowledge, Krishna Chandra; so, is there more power in the Moon or in the Sun? More in the Moon. Is there more power in the Moon? No. There is more power in the Sun because the Moon obtains light from the Sun. It obtains, doesn’t it? Yes. So, if he has less power, then what kind of children will he produce? He will produce children with lesser power. And the deities do not have that much power. If the deity souls do not get the support of God, of the Father; what? The deity souls are firm on the path of household, aren’t they? So, they do recognize the parents of the path of household, don’t they? Yes. So, those who recognize do get cooperation as well. So, if the parents do not help; who? Which mother and Father? Is Shiv the Father of souls and who is the Mother? The permanent Chariot, Aadam, Arjun in whom Shiv enters in a permanent manner happens to be the mother. What is the task of the Father? If he procreates, does he enter into the mother or not? Otherwise, how will he sow the seed? Will he sow? No.
So, Shiv becomes the Father. And the one who is the elder brother among the souls, among the human souls, He gives him this partin the drama; what? What is the name that He assigns to him as soon as He comes? Hm? Write; what is the name that He assigns? Arey, you take so much time. You take so much time to write just one alphabet. Hm? (Someone said something.) P? Damn it, God bless you. Does He assign him the name ‘P’? Does He assign him the name Prajapita? (Someone said something.) Brahma. Yes. So, the one in whom He enters first of all, He will name him Brahma. Is it not? The one in whom I enter, in order to extract the work, what is the name that I assign? Brahma. Hm? What is meant by Brahm? Senior. What is meant by Ma? Senior mother. So, some Brahmas are depicted to have 4-5 heads on the path of Bhakti. Is it not? It is a memorial of which place? Arey, the scripture are memorials of which place? The memorials are of this place, of the Confluence Age, aren’t they?
In the Purushottam Sangamyug, when the Heavenly God Father comes to this world, when He shows the path of establishing heaven, it is a memorial of that time. What? When He comes, then in whomsoever He enters He names him Brahma. So, among the five heads, will there be a chief head or not? Which one? Yes, one head is upward facing (oordhwamukhi). And the remaining four heads? Hm? They keep on looking here and there, like this, like this. And they do not look at the above one. Their intellect doesn’t move towards the above one at all. And even if it goes, they think that He is a point, incorporeal. Arey, can your incorporeal soul perform any task without the body? Hm? So, that Supreme Soul Shiv, the Father of souls, does He also require a body or not? Hm? When He comes to this body, this world, then will He come to give something or will He simply go away? He comes to give. What does He come to give? Yes, He is a stock house of happiness, isn’t He? Hm? Yes, He is an embodiment of happiness, embodiment of peace; He is sat (truth), chit (living); He is an embodiment of bliss (anand roop). So, how does He come and give happiness? Hm? Yes, knowledge causes happiness and ignorance leads to sorrow.
So, the giver of knowledge on this world stage is only that one Sadaa Shiv who, when He descends on this world, then His eldest son; who? There must be an elder son among the human souls, will he not be there? Yes. The names Aadam, Arjun have been assigned. Jagatpita (Father of the world). So, He gives him that stock of knowledge. So, when He gives, does He give if he doesn’t need or does He simply give? He needs. Is knowledge given to a needy or is donation given to someone who does not need it? Hm? Donation is given to the poor people, isn’t it? So, yes. So, that seed Father of the human world, Aadam, Arjun needs knowledge a lot. What? Why does he have a great need? It sits in his intellect first of all that if there is any biggest stock house of the world to obtain happiness and peace, what is it? The stock of knowledge. And knowledge comes from one. What will come from many? Will knowledge or ignorance come from many? Ignorance will come because they will mix, will they not? Tundey tundey matirbhinna (there are as many opinions as there are heads). Everyone’s intellect is different, isn’t it? So, if you give knowledge then one will narrate one topic and the other one will mix in it. Hm? There will be confusion (gadbad), will it not be there?
So, it was told that when that Shiv comes to this world, then the child-like soul, the eldest son in whom He enters in a permanent manner, He names him first of all Brahma. When He named him first of all, is he the senior Brahma or the junior Brahma? First of all; so, the first one is elder only. So, it was told that he is a soul. What? Brahma as well as the Father. Is it through the same body or through two bodies? Through one body. So, He is called ‘twamev mataa cha pita’ (you are mother as well as Father). What is its memorial? That ling has been formed. Was one ling made or two lings? Hm? Do you say ‘Ekling Bhagwaan’ (God with one ling) or do you say ‘Do ling Bhagwaan’ (God with two lings)? Hm? Where is the memorial of Ek Ling Bhagwaan? Arey, it must be in India only, isn’t it? Where in India? Arey? In Rajasthan. The place (sthaan) of kings (raja) that is praised, so, when the Father comes, He comes only because I will teach rajyog to the children, I will give knowledge of rajyog to the children and give them the inheritance of kingship for many births. Does He give or not? Yes, so, its memorial state; which state? Rajasthan. There is this memorial there; the temple of Ek Ling Bhagwan has been built. What?
So, will there be any history of the human being who believes in that memorial or not? Hm? Which history? (Someone said something.) Maharana Pratap. There was that family; wasn’t it? Whom did they used to believe? Hm? Ek Ling Bhagwaan. Second ling is not required. What? All the souls which used to exist among them, they could be in male form, they may get next birth as a female and they may be in a female body and get next birth as a male, but what is their feeling inside? If I assume a female body, then will I hold one ling (phallus) in life or will I hold 2-4 lings? One Ling God. So, there is a memorial also in the practical history. Whose? Of the dynasty of Maharana Pratap.
So, it was told – What is their specialty? What do they want from the Supreme Soul God, the Heavenly God Father? Yes, they want the inexhaustible stock of knowledge. What? Will the Ling give? Ling will not give. That human soul himself is the ling. Human beings have ling (phallus). Hm? Do the deities have the organ of action ling? They do not have at all. And there is no question of the one who makes the deities as a deity having an organ of the body. Will He have? Hm? Will He have? Will He have an organ of action? He does not have an organ of action as well. Sense organ? Neither sense organ as well. Yes, He is just a completely pure soul. So, the permanent Chariot in which that pure soul enters, he has a ling. Hm? So, the same soul who is called Shankar, that Shankar’s ling is worshipped. Arey brother, why is ling worshipped? Why isn’t nose, ears and eyes worshipped? Arey, it must have performed some such task which nobody could perform in the world. So, that memorial of ling is formed only because there is that praise. What? You can become conquerors of the world if you conquer the organs. Conquering which organ? Nose, ears? Hm? Hands, legs? No. Conquering which organ? Yes, conquering the organ of ling. Why brother? Do the men alone have a ling? Doesn’t a woman have? She has. It could be small or big. But all the men are Duryodhans and Dushasans in the end of the Iron Age. Is there any such man who does not act like Duryodhan and Dushasan? Is there anyone? Nobody. So, that is it. Arey?
So, it was told that the one who is Prajapita, Aadam makes purusharth in the form of Arjun. What purusharth does he make? He earns. What does he earn? He is indeed a man, but his nature is that of a Duryodhan-Dushasan, but he makes purusharth that he has to conquer the organ of man. Does he make this purusharth the most or not? Yes. So, does he require practice to make this purusharth or not? Yes, so, does he fear practicing this or will a brave warrior fear fighting or will he fight? Hm? Yes. Deham va paatyaami (the body may fall down). Kaaryam va saadhyaami (the task has to be accomplished). The body may be gone and the organs of the body may also not work, they may also be gone, yet what is the firm faith of the soul? What is the feeling? That even if we get next birth, what will we do? We will conquer the organ.
It was told that he is the only human being in this world, call him Aadam, call him Arjun, who controls his body-like Chariot; he controls even the main organ which doesn’t come under anyone’s control. How? Through the power of knowledge. And from whom does that knowledge come? It comes from one Shiv, Sadaa Shiv. So, he sits in front of Him and repeats this topic. What? Of the thought. In front of whom? In front of whom? The same Shiv. Arey, how will he repeat? By becoming a body? No. First consider yourself to be a soul. Become a soul. And after becoming a soul, repeat through the mind and intellect. What? Repeat by rote. What should you repeat by rote? What should you repeat by rote? Hm? Fill up my jholi, fill up my jholi. Not with wealth and property, not with gold and silver, diamonds and jewels; with what? Hm? Fill up the jholi with the gems of knowledge. Arey? In front of whom? In front of whom does he repeat? He repeats by rote. Hm? Yes, he becomes a soul and repeats in front of the Father of souls. What should You do? Fill up my jholi with knowledge. Nobody else is there to fill up my jholi with knowledge.
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समय- 00.01-21.34
Time- 00.01-21.34
रात्रि क्लास चल रहा था – 27.11.1967. दूसरे पेज के मध्यांत में बात चल रही थी – हमको पढ़ाने वाला सर्वशक्तिवान जिसको कहा जाता है आलमाइटी। मतलब तो टीचर है। पर आलमाइटी कोई ये तो मतलब नहीं कि किसको मारते, किसको स्वदर्शन चक्र घुमाया, सर काटा। नहीं-नहीं। तुम तो डबल अहिंसक बनते हो। डबल अहिंसक माना? जो विकारों की हिंसा है काम-क्रोध की वो भी नहीं करते हो और स्थूल हिंसा भी नहीं करते हो। यहां चक्कर की, मारा-मारी की बात नहीं है। नहीं तो ये कहां से आए ये चक्कर, सुदर्शन चक्कर और खंजर, तीर और तलवारें? ये सब जो बाप ने बताया है ना और जो बताना ड्रामा में है कि किसको ये हथियार; किसको थे? देवियों को तो सभी हाथों में हथियार दे दिये। तो, ये बातें बाबा ने नहीं कही हैं। बाबा तो बताते हैं इन सबका नाम है ज्ञान कटारी, ज्ञान खंजर, ज्ञान खड़ग, ज्ञान बाण। तो उन्होंने तो वो स्थूल खड़ग कटारी बाण ये सब दे दिया है। और उन देवियों के हाथ में दे दिया है। तो अभी देवियों को थोड़ेही ये हथियार-पंवार आदि होते हैं। नहीं। ये तो माताओं को, कन्याओं को ये ज्ञान के बाण, ज्ञान के अस्त्र-शस्त्र सब कुछ मिले हैं। फिर बैठकरके ये सब धारण करते हैं।
कि जैसे बच्चे वहां भागे, सरेन्डर हुए, तो वो सभी अभी हैं ना। सभी डरते तो नहीं हैं ना। क्योंकि उनको बैठकरके डराया हुआ बहुत है। अरे, दादे के पास क्या है? तुम्हारे पास क्या है? अच्छा, अच्छा चलो तुम्हारा दादा के पास मिलाकरके सब कुल दस, बारह, पंद्रह लाख होगा। चलो मान लिया। तो ये तुम इतनी बरात इकट्ठी हुई पड़ी हो। कितना रोज़ चलेगा? इतना गइयां इनको खिलाय-पिलाय कहां तक चलेगा? हँ? ये तो उनको सब खलास हो जाएगा। 27.11.67 की रात्रि क्लास का तीसरा पेज, चौथी लाइन। तो वो गाया जाता है ना खाते-खाते खु, खु भी खूट जाते। कुंआ भरा हुआ ना वो सभी खाते-खाते भई वो भी खुआं खूंट जाते। तो ये समझा? खुआं खूट जाएगा। हाँ। अभी नहीं आते हैं तो आपे ही आ जाएंगे। क्या करेंगे?
तो देखो तुमको तो खोया हुआ रतनों का सारा खजाना मिल रहा है ना। अभी भक्तिमार्ग के ढ़ाई हजार वर्षों में ये खोया हुआ रत्नों का खजाना। है ना बच्ची? ये धन का खुआं खूट सकते हैं। परन्तु ये ज्ञान रतनों का खुआं नहीं खूटते। ये तो जितना घिसेंगे, जितना धारण करेंगे, करावेंगे, बढ़ता ही जाएगा। फिर भी बाबा समझाते रहते हैं कि देखो, बरोबर देखो इतना वरष हो गया। तुम सब खूट गए क्या? आखरीन तो खूट गए ना बच्ची? हां। देखो। ये ज्ञान रतन सारे खूंट गए। तुम अपनी हालत देखो। तुम तो जानती हो कि हम, हम तो बनेंगी, जरूर बनेंगी। और जितना तुम जानती हो कि हम बनेंगी, इतना ये नहीं समझती है जो ये तुम्हारी सखी है। ये सखी है ना तुम्हारी। तो ये, ये नहीं कह सकेगी - मैं कोई विजयमाला का दाना बनेगी क्योंकि तुम तो निश्चयबुद्धि है। और इसने तो गंधर्वी विवाह कर लिया है।
अब बात वहां नहीं रहती है। फिर तो ये सभी बातें याद ही नहीं रहती हैं। बस। जैसे कोई नई सृष्टि में आया हुआ है ना बच्चे, तो जैसे नई सृष्टि में आया हुआ हो सो फिर भागता है। नहीं, सुख भोगता है। तो वो सुख भासता है ना। कभी ख्याल में नहीं आएगा कि कोई सुख की सृष्टि से हम आए हैं, ट्रांसफर हो करके आए हैं। वहां नई दुनिया में कभी भी किसकी बुद्धि में नहीं बैठेगा। तो ये सारा ज्ञान यहां का भूल जाएगा ना एकदम। बस, हम हैं ही सुख की सृष्टि में। दुख की या कोई भी दूसरी बात याद ही नहीं रहेगी। यहां तो दुख है ना। और सुख तो पास्ट होकरके गया। अभी जब ये सुख में होगा तब ये ऐसे नहीं मालूम पड़ेगा। तुमको मालूम ही नहीं पड़ेगा। तुम दुख पास करके आए हो। ऐसे नहीं मालूम पड़ेगा। हां। अगर दुख पास करके आए हैं तो फिर रिपीट करेगा, ये तो बुद्धि में आएगा नहीं। अगर ये बुद्धि में आ जाए कि ये फिर रिपीट होगा तो भला कितना घुटका खाएंगे! समझते हो ना अच्छी तरह से।
तो ये सब प्वाइंट्स हैं बुद्धि में धारण करने की जो नूंध है शास्त्रों में भी। अभी तो छोटे-छोटे शिकार करते हैं। फिर बड़े-बड़े शिकार भी करेंगे। और आगे चलकरके तो आपे ही आएंगे। ये ऐसा ड्रामा बना हुआ है ना। तो ये कॉमन बात है एकदम। जिनको ड्रामा का ये निश्चय हुआ हो गया और ये पक्का-पक्का समझते हैं वो तो बड़े-बड़े मस्त रहते हैं। और वो बहुत उछलते हैं अच्छे तरीके से। उनकी बातचीत, वातावरण, जब तब बात करेंगे तो खुशी होगी देखने वालों को, सुनने वालों को कि ये तो बड़ा अच्छा, अच्छा देखने में आते हैं। ये कभी बाबा को पीठ नहीं दिखाएंगे। कभी छोड़के नहीं जाएंगे। क्योंकि युद्ध है ना बच्ची। माया का युद्ध है। तो युद्ध स्थल में कोई-कोई पीठ दिखलाना भी होता है। इसका मतलब छोड़ देना माना पीठ दिखलाना। समझा ना? फिर तो वो सामने ही नहीं आएंगे ना। फिर बाकि क्या हुआ? पीठ ही दिखलाएंगे।
तो ये भी संस्कार पक्के होते जाते हैं। ऐसे होता है ना बच्चे। सामने भी रहते हैं। जैसे तुम बैठे हुए रहते हो, और फिर नहीं हैं तो सामने आएंगे। नहीं आएंगे। और समझेंगे कि भई इनका मुंह तो उस तरफ में है। जैसे वो मुर्दा मरता है ना तो पहले देखो मुख उस तरफ में शहर की ओर। और जब वहां शमशान में जाएगा ना तो आगे। तब फिर? नहीं। शमशान के आगे जब जाएंगे तब मुख शमशान की तरफ रखेंगे। और टांगें माना लात शहर की ओर। पुरानी दुनिया को लात मारी। अब नए जनम में नई दुनिया में जाएंगे। और शुरुआत में जभी जाएंगे तभी टांगें शमशान की तरफ। और मुंह इस तरफ। तो मालूम है? कभी मुर्दा को देखा होगा ना। तुम कोई मुर्दे को देखा है? तो किसी ने कहा – हाँ, मुर्दा देखा है। हाँ, तो ये कायदा होता है कि शमशान के अंदर जब घुसेगा ना तो घुसने से थोड़ा ही पहले उनको चेंज कर देंगे। हँ? अपने आप चेंज हो जाएगा कि चेंज कोई कर देगा? हँ? चेंज कर देंगे। कि भई इस दुनिया के तरफ में लात मारो और उस दुनिया में जाओ। क्योंकि वो कहते हैं ना। तो दुनियावाले तो यही कहते हैं भक्तिमार्ग में कि स्वरग गया। तो स्वर्ग की ओर वरी पैर कैसे करेंगे? स्वर्ग में मुंह जाएगा ना पहले? तो ये भी देखो ये सब पुरानी रसम-रिवाज़ है शमशान की। कहाँ की यादगार? ये इसी संगमयुग की यादगार है। ये कभी ये बहुत थोड़े हैं जो इन बातों को जानते हैं और सुनते हैं। और किसको सुनाते हैं। नहीं तो ये कायदा है। इस दुनिया के पीछे लात। और उस नई आने वाली दुनिया की तरफ मुंह। ऐसे-ऐसे चेंज कर देते हैं। बहुत करके मैं समझता हूँ बहुत जगह में ये कायदा होता है।
म्यूजिक बजा। और इन्यूमरेबल टाइम्स माना अनगनित बार मिले हुए हैं बच्चे। और इन्यूमरेबल टाइम्स तुमने हारा है। और इन्यूमरेबल टाइम्स तुमने जीता भी है। तो अब बताओ तुमको स्मृति आई ना। और वो बात है ना गीता में भी। हँ? अर्जुन ने कहा हमको स्मृति आ गई। स्मृतिलब्धा। ऐसे कहते हैं ना। तो अभी स्मृति में हो ना कि बरोबर बाबा हमको पढ़ाते हैं। और हमको ये एम-आब्जेक्ट देते हैं। अच्छा, बच्चों के प्रति यादप्यार और गुडमार्निंग। (समाप्त)
A night class dated 27.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the end of the middle portion of the second page was – Our teacher is Sarvashaktivaan, who is called Almighty. It means the teacher. But Almightydoesn’t mean that He kills someone, rotates his Swadarshan Chakra and cuts the head. No, no. You become double non-violent. What is meant by double non-violent? You don’t indulge in the violence of the vices, lust, anger as well as the physical violence. There is no topic of Chakkar(discus), killings here. Otherwise, from where did these discus, Sudarshan Chakkar and knife, arrows and swords emerge? All this that the Father has described, hasn’t He and the revelation that is fixed in the dramathat someone had these weapons. Who had them? The Devis (female deities) have been given weapons in all the hands. So, Baba hasn’t narrated these topics. Baba tells that the name of all these is knife (kataari) of knowledge, dagger (khanjar) of knowledge, sword (khadag) of knowledge, arrows (teer) of knowledge. So, they have depicted all these physical sword, knife, arrows. And they have given them in the hands of those Devis. So, well, do the Devis have these weapons, etc.? No. It is the mothers, virgins who have received these arrows of knowledge, weapons of knowledge. Then they sit and inculcate all these.
For example, children ran there, surrendered; so, all of them are present now, aren’t they? All don’t fear, do they? It is because they sat and frightened them a lot. Arey, what does the grandfather have? What do you have? Achcha, achcha, okay, your grandfather may have altogether ten, twelve, fifteen lakhs. Okay, let’s accept it. So, you are such a big marriage party that has gathered. How many days will it continue? There are so many cows; how long will you continue to feed them? Hm? He will exhaust everything. Third page, fourth line of the night class dated 27.11.1967. So, that is sung, isn’t it that while eating even the wells become empty. If there is a well full of water, then while eating from it brother, that well also becomes empty. So, did you understand this? The well will exhaust. Yes. If they do not come now, then they will come automatically. What will you do?
So, look, you are getting the entire treasure of lost gems, aren’t you? Well, this treasure of gems lost during 2500 years of the path of Bhakti. Is it not daughter? This well of wealth can exhaust. But this well of gems of knowledge doesn’t exhaust. The more you rub it, the more you inculcate it, the more you enable others to inculcate it, it will go on increasing. However Baba keeps on explaining that look, rightly so many years have passed. Did you all exhaust? Ultimately, you exhausted daughter, didn’t you? Yes. Look. All these gems of knowledge exhausted. Look at your condition. You know that we, we will become, we will definitely become. And the extent to which you know that you will become, your friend doesn’t not understand to that extent. She is your friend, isn’t she? So, this one will not be able to say – I will become a bead of the rosary of victory because you have faith. And this one has performed Gandharvi marriage.
Well, the topic doesn’t stay there. Then all these topics do not remain in the memory. That is it. For example, child, someone has come to the new world; so, it is as if he has come to a new world and then he runs away. No, he enjoys pleasure. So, he likes that pleasure, doesn’t he? It will never come to the mind that we have come from the world of happiness, we have come on transfer. There, in the new world it will never sit in someone’s intellect. So, they will forget the entire knowledge of this place completely, will they not? That is it; we are indeed in the world of happiness. Any topic of sorrow or any other topic will not remain in the memory. There is sorrow here, isn’t it? And the happiness has become past. Well, when this one is in happiness, then you will know this. You will not know at all. You have passed through sorrows and have come. You will not know like this. Yes. If you have passed through sorrows and come, then you will repeat this; this will not come to your intellect at all. If it comes to the intellect that this will repeat, then you will feel so bad! You understand nicely, don’t you?
So, the inculcation of all these points in the intellect is also fixed in the scriptures. Now you hunt small preys. Then you will hunt bigger preys as well. And in future they will come automatically. This drama has been prepared like this, hasn’t it been? So, this is a completely common topic. Those who have developed such faith about the drama and think firmly, remain very carefree. And they jump a lot nicely. Their conversation, atmosphere, until they talk, the onlookers, the listeners will feel happy that this one appears to be very nice. This one will never turn away from Baba. He will never leave and go. It is because this is a war, isn’t it daughter? It is a war with Maya. So, some turn back from the battlefield also. It means ‘to leave’ means to show your back [to the battlefield]. You have understood, haven’t you? Then they will not come in the front at all, will they? Then what happened? They will show their back only.
So, these sanskars also go on becoming firm. It happens like this, doesn’t it children? They remain in the front also. Just as you remain sitting, and then if they are not there, then they will come in the front. They will not come. And they will think that brother, their face is on that side. For example, when that corpse dies, doesn’t it, then firstly look they keep its head towards the city. And when they go there to the cremation grounds, don’t they, then they put it in the front. Then? No. When they go towards the cremation grounds, then they will keep the head towards the cremation grounds. And the legs, i.e. the feet towards the city. The old world was kicked. Now they will go to the new world in the new birth. And in the beginning, when they go, then the legs will be towards the cremation grounds. And the head will be on this side. So, do you know? You must have seen a corpse any time? Have you seen any corpse? So, someone said – Yes, we have seen a corpse. Yes, so, it is a rule that when they enter the cremation grounds, then just before entering they will change the direction. Hm? Will it change on its own or will anyone change it? Hm? Someone will change. Brother, kick this world and go to that world. It is because they say, don’t they? So, the people of the world say on the path of Bhakti that he went to heaven. So, how will they put the legs towards heaven? The head will go to heaven first, will it not? So, look at this also, all these rituals are of the cremation grounds. It is a memorial of which place? It is a memorial of this Confluence Age only. Sometimes, these are very few who know these topics and listen to them. And narrate to someone. Otherwise, it is a rule. Legs towards this world. And head towards that new world which is to arrive. They change like this. Mostly I think this is the rule at many places.
Music was played. And ‘innumerable times’ means children have met innumerable times. And you have lost innumerable times. And innumerable times you have won as well. So, now tell, you have recollected, haven’t you? And that topic is in the Gita as well. Hm? Arjun said – I have recollected. Smritlabdha. It is said like this, isn’t it? So, now you are aware that rightly Baba teaches us. And He gives us this aim-object. Achcha, remembrance, love and good morning to the children. (End)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2903, दिनांक 06.06.2019
VCD 2903, dated 06.06.2019
रात्रि क्लास 27.11.1967
Night class dated 27.11.1967
VCD-2903-Bilingual
समय- 00.01-21.34
Time- 00.01-21.34
रात्रि क्लास चल रहा था – 27.11.1967. दूसरे पेज के मध्यांत में बात चल रही थी – हमको पढ़ाने वाला सर्वशक्तिवान जिसको कहा जाता है आलमाइटी। मतलब तो टीचर है। पर आलमाइटी कोई ये तो मतलब नहीं कि किसको मारते, किसको स्वदर्शन चक्र घुमाया, सर काटा। नहीं-नहीं। तुम तो डबल अहिंसक बनते हो। डबल अहिंसक माना? जो विकारों की हिंसा है काम-क्रोध की वो भी नहीं करते हो और स्थूल हिंसा भी नहीं करते हो। यहां चक्कर की, मारा-मारी की बात नहीं है। नहीं तो ये कहां से आए ये चक्कर, सुदर्शन चक्कर और खंजर, तीर और तलवारें? ये सब जो बाप ने बताया है ना और जो बताना ड्रामा में है कि किसको ये हथियार; किसको थे? देवियों को तो सभी हाथों में हथियार दे दिये। तो, ये बातें बाबा ने नहीं कही हैं। बाबा तो बताते हैं इन सबका नाम है ज्ञान कटारी, ज्ञान खंजर, ज्ञान खड़ग, ज्ञान बाण। तो उन्होंने तो वो स्थूल खड़ग कटारी बाण ये सब दे दिया है। और उन देवियों के हाथ में दे दिया है। तो अभी देवियों को थोड़ेही ये हथियार-पंवार आदि होते हैं। नहीं। ये तो माताओं को, कन्याओं को ये ज्ञान के बाण, ज्ञान के अस्त्र-शस्त्र सब कुछ मिले हैं। फिर बैठकरके ये सब धारण करते हैं।
कि जैसे बच्चे वहां भागे, सरेन्डर हुए, तो वो सभी अभी हैं ना। सभी डरते तो नहीं हैं ना। क्योंकि उनको बैठकरके डराया हुआ बहुत है। अरे, दादे के पास क्या है? तुम्हारे पास क्या है? अच्छा, अच्छा चलो तुम्हारा दादा के पास मिलाकरके सब कुल दस, बारह, पंद्रह लाख होगा। चलो मान लिया। तो ये तुम इतनी बरात इकट्ठी हुई पड़ी हो। कितना रोज़ चलेगा? इतना गइयां इनको खिलाय-पिलाय कहां तक चलेगा? हँ? ये तो उनको सब खलास हो जाएगा। 27.11.67 की रात्रि क्लास का तीसरा पेज, चौथी लाइन। तो वो गाया जाता है ना खाते-खाते खु, खु भी खूट जाते। कुंआ भरा हुआ ना वो सभी खाते-खाते भई वो भी खुआं खूंट जाते। तो ये समझा? खुआं खूट जाएगा। हाँ। अभी नहीं आते हैं तो आपे ही आ जाएंगे। क्या करेंगे?
तो देखो तुमको तो खोया हुआ रतनों का सारा खजाना मिल रहा है ना। अभी भक्तिमार्ग के ढ़ाई हजार वर्षों में ये खोया हुआ रत्नों का खजाना। है ना बच्ची? ये धन का खुआं खूट सकते हैं। परन्तु ये ज्ञान रतनों का खुआं नहीं खूटते। ये तो जितना घिसेंगे, जितना धारण करेंगे, करावेंगे, बढ़ता ही जाएगा। फिर भी बाबा समझाते रहते हैं कि देखो, बरोबर देखो इतना वरष हो गया। तुम सब खूट गए क्या? आखरीन तो खूट गए ना बच्ची? हां। देखो। ये ज्ञान रतन सारे खूंट गए। तुम अपनी हालत देखो। तुम तो जानती हो कि हम, हम तो बनेंगी, जरूर बनेंगी। और जितना तुम जानती हो कि हम बनेंगी, इतना ये नहीं समझती है जो ये तुम्हारी सखी है। ये सखी है ना तुम्हारी। तो ये, ये नहीं कह सकेगी - मैं कोई विजयमाला का दाना बनेगी क्योंकि तुम तो निश्चयबुद्धि है। और इसने तो गंधर्वी विवाह कर लिया है।
अब बात वहां नहीं रहती है। फिर तो ये सभी बातें याद ही नहीं रहती हैं। बस। जैसे कोई नई सृष्टि में आया हुआ है ना बच्चे, तो जैसे नई सृष्टि में आया हुआ हो सो फिर भागता है। नहीं, सुख भोगता है। तो वो सुख भासता है ना। कभी ख्याल में नहीं आएगा कि कोई सुख की सृष्टि से हम आए हैं, ट्रांसफर हो करके आए हैं। वहां नई दुनिया में कभी भी किसकी बुद्धि में नहीं बैठेगा। तो ये सारा ज्ञान यहां का भूल जाएगा ना एकदम। बस, हम हैं ही सुख की सृष्टि में। दुख की या कोई भी दूसरी बात याद ही नहीं रहेगी। यहां तो दुख है ना। और सुख तो पास्ट होकरके गया। अभी जब ये सुख में होगा तब ये ऐसे नहीं मालूम पड़ेगा। तुमको मालूम ही नहीं पड़ेगा। तुम दुख पास करके आए हो। ऐसे नहीं मालूम पड़ेगा। हां। अगर दुख पास करके आए हैं तो फिर रिपीट करेगा, ये तो बुद्धि में आएगा नहीं। अगर ये बुद्धि में आ जाए कि ये फिर रिपीट होगा तो भला कितना घुटका खाएंगे! समझते हो ना अच्छी तरह से।
तो ये सब प्वाइंट्स हैं बुद्धि में धारण करने की जो नूंध है शास्त्रों में भी। अभी तो छोटे-छोटे शिकार करते हैं। फिर बड़े-बड़े शिकार भी करेंगे। और आगे चलकरके तो आपे ही आएंगे। ये ऐसा ड्रामा बना हुआ है ना। तो ये कॉमन बात है एकदम। जिनको ड्रामा का ये निश्चय हुआ हो गया और ये पक्का-पक्का समझते हैं वो तो बड़े-बड़े मस्त रहते हैं। और वो बहुत उछलते हैं अच्छे तरीके से। उनकी बातचीत, वातावरण, जब तब बात करेंगे तो खुशी होगी देखने वालों को, सुनने वालों को कि ये तो बड़ा अच्छा, अच्छा देखने में आते हैं। ये कभी बाबा को पीठ नहीं दिखाएंगे। कभी छोड़के नहीं जाएंगे। क्योंकि युद्ध है ना बच्ची। माया का युद्ध है। तो युद्ध स्थल में कोई-कोई पीठ दिखलाना भी होता है। इसका मतलब छोड़ देना माना पीठ दिखलाना। समझा ना? फिर तो वो सामने ही नहीं आएंगे ना। फिर बाकि क्या हुआ? पीठ ही दिखलाएंगे।
तो ये भी संस्कार पक्के होते जाते हैं। ऐसे होता है ना बच्चे। सामने भी रहते हैं। जैसे तुम बैठे हुए रहते हो, और फिर नहीं हैं तो सामने आएंगे। नहीं आएंगे। और समझेंगे कि भई इनका मुंह तो उस तरफ में है। जैसे वो मुर्दा मरता है ना तो पहले देखो मुख उस तरफ में शहर की ओर। और जब वहां शमशान में जाएगा ना तो आगे। तब फिर? नहीं। शमशान के आगे जब जाएंगे तब मुख शमशान की तरफ रखेंगे। और टांगें माना लात शहर की ओर। पुरानी दुनिया को लात मारी। अब नए जनम में नई दुनिया में जाएंगे। और शुरुआत में जभी जाएंगे तभी टांगें शमशान की तरफ। और मुंह इस तरफ। तो मालूम है? कभी मुर्दा को देखा होगा ना। तुम कोई मुर्दे को देखा है? तो किसी ने कहा – हाँ, मुर्दा देखा है। हाँ, तो ये कायदा होता है कि शमशान के अंदर जब घुसेगा ना तो घुसने से थोड़ा ही पहले उनको चेंज कर देंगे। हँ? अपने आप चेंज हो जाएगा कि चेंज कोई कर देगा? हँ? चेंज कर देंगे। कि भई इस दुनिया के तरफ में लात मारो और उस दुनिया में जाओ। क्योंकि वो कहते हैं ना। तो दुनियावाले तो यही कहते हैं भक्तिमार्ग में कि स्वरग गया। तो स्वर्ग की ओर वरी पैर कैसे करेंगे? स्वर्ग में मुंह जाएगा ना पहले? तो ये भी देखो ये सब पुरानी रसम-रिवाज़ है शमशान की। कहाँ की यादगार? ये इसी संगमयुग की यादगार है। ये कभी ये बहुत थोड़े हैं जो इन बातों को जानते हैं और सुनते हैं। और किसको सुनाते हैं। नहीं तो ये कायदा है। इस दुनिया के पीछे लात। और उस नई आने वाली दुनिया की तरफ मुंह। ऐसे-ऐसे चेंज कर देते हैं। बहुत करके मैं समझता हूँ बहुत जगह में ये कायदा होता है।
म्यूजिक बजा। और इन्यूमरेबल टाइम्स माना अनगनित बार मिले हुए हैं बच्चे। और इन्यूमरेबल टाइम्स तुमने हारा है। और इन्यूमरेबल टाइम्स तुमने जीता भी है। तो अब बताओ तुमको स्मृति आई ना। और वो बात है ना गीता में भी। हँ? अर्जुन ने कहा हमको स्मृति आ गई। स्मृतिलब्धा। ऐसे कहते हैं ना। तो अभी स्मृति में हो ना कि बरोबर बाबा हमको पढ़ाते हैं। और हमको ये एम-आब्जेक्ट देते हैं। अच्छा, बच्चों के प्रति यादप्यार और गुडमार्निंग। (समाप्त)
A night class dated 27.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the end of the middle portion of the second page was – Our teacher is Sarvashaktivaan, who is called Almighty. It means the teacher. But Almightydoesn’t mean that He kills someone, rotates his Swadarshan Chakra and cuts the head. No, no. You become double non-violent. What is meant by double non-violent? You don’t indulge in the violence of the vices, lust, anger as well as the physical violence. There is no topic of Chakkar(discus), killings here. Otherwise, from where did these discus, Sudarshan Chakkar and knife, arrows and swords emerge? All this that the Father has described, hasn’t He and the revelation that is fixed in the dramathat someone had these weapons. Who had them? The Devis (female deities) have been given weapons in all the hands. So, Baba hasn’t narrated these topics. Baba tells that the name of all these is knife (kataari) of knowledge, dagger (khanjar) of knowledge, sword (khadag) of knowledge, arrows (teer) of knowledge. So, they have depicted all these physical sword, knife, arrows. And they have given them in the hands of those Devis. So, well, do the Devis have these weapons, etc.? No. It is the mothers, virgins who have received these arrows of knowledge, weapons of knowledge. Then they sit and inculcate all these.
For example, children ran there, surrendered; so, all of them are present now, aren’t they? All don’t fear, do they? It is because they sat and frightened them a lot. Arey, what does the grandfather have? What do you have? Achcha, achcha, okay, your grandfather may have altogether ten, twelve, fifteen lakhs. Okay, let’s accept it. So, you are such a big marriage party that has gathered. How many days will it continue? There are so many cows; how long will you continue to feed them? Hm? He will exhaust everything. Third page, fourth line of the night class dated 27.11.1967. So, that is sung, isn’t it that while eating even the wells become empty. If there is a well full of water, then while eating from it brother, that well also becomes empty. So, did you understand this? The well will exhaust. Yes. If they do not come now, then they will come automatically. What will you do?
So, look, you are getting the entire treasure of lost gems, aren’t you? Well, this treasure of gems lost during 2500 years of the path of Bhakti. Is it not daughter? This well of wealth can exhaust. But this well of gems of knowledge doesn’t exhaust. The more you rub it, the more you inculcate it, the more you enable others to inculcate it, it will go on increasing. However Baba keeps on explaining that look, rightly so many years have passed. Did you all exhaust? Ultimately, you exhausted daughter, didn’t you? Yes. Look. All these gems of knowledge exhausted. Look at your condition. You know that we, we will become, we will definitely become. And the extent to which you know that you will become, your friend doesn’t not understand to that extent. She is your friend, isn’t she? So, this one will not be able to say – I will become a bead of the rosary of victory because you have faith. And this one has performed Gandharvi marriage.
Well, the topic doesn’t stay there. Then all these topics do not remain in the memory. That is it. For example, child, someone has come to the new world; so, it is as if he has come to a new world and then he runs away. No, he enjoys pleasure. So, he likes that pleasure, doesn’t he? It will never come to the mind that we have come from the world of happiness, we have come on transfer. There, in the new world it will never sit in someone’s intellect. So, they will forget the entire knowledge of this place completely, will they not? That is it; we are indeed in the world of happiness. Any topic of sorrow or any other topic will not remain in the memory. There is sorrow here, isn’t it? And the happiness has become past. Well, when this one is in happiness, then you will know this. You will not know at all. You have passed through sorrows and have come. You will not know like this. Yes. If you have passed through sorrows and come, then you will repeat this; this will not come to your intellect at all. If it comes to the intellect that this will repeat, then you will feel so bad! You understand nicely, don’t you?
So, the inculcation of all these points in the intellect is also fixed in the scriptures. Now you hunt small preys. Then you will hunt bigger preys as well. And in future they will come automatically. This drama has been prepared like this, hasn’t it been? So, this is a completely common topic. Those who have developed such faith about the drama and think firmly, remain very carefree. And they jump a lot nicely. Their conversation, atmosphere, until they talk, the onlookers, the listeners will feel happy that this one appears to be very nice. This one will never turn away from Baba. He will never leave and go. It is because this is a war, isn’t it daughter? It is a war with Maya. So, some turn back from the battlefield also. It means ‘to leave’ means to show your back [to the battlefield]. You have understood, haven’t you? Then they will not come in the front at all, will they? Then what happened? They will show their back only.
So, these sanskars also go on becoming firm. It happens like this, doesn’t it children? They remain in the front also. Just as you remain sitting, and then if they are not there, then they will come in the front. They will not come. And they will think that brother, their face is on that side. For example, when that corpse dies, doesn’t it, then firstly look they keep its head towards the city. And when they go there to the cremation grounds, don’t they, then they put it in the front. Then? No. When they go towards the cremation grounds, then they will keep the head towards the cremation grounds. And the legs, i.e. the feet towards the city. The old world was kicked. Now they will go to the new world in the new birth. And in the beginning, when they go, then the legs will be towards the cremation grounds. And the head will be on this side. So, do you know? You must have seen a corpse any time? Have you seen any corpse? So, someone said – Yes, we have seen a corpse. Yes, so, it is a rule that when they enter the cremation grounds, then just before entering they will change the direction. Hm? Will it change on its own or will anyone change it? Hm? Someone will change. Brother, kick this world and go to that world. It is because they say, don’t they? So, the people of the world say on the path of Bhakti that he went to heaven. So, how will they put the legs towards heaven? The head will go to heaven first, will it not? So, look at this also, all these rituals are of the cremation grounds. It is a memorial of which place? It is a memorial of this Confluence Age only. Sometimes, these are very few who know these topics and listen to them. And narrate to someone. Otherwise, it is a rule. Legs towards this world. And head towards that new world which is to arrive. They change like this. Mostly I think this is the rule at many places.
Music was played. And ‘innumerable times’ means children have met innumerable times. And you have lost innumerable times. And innumerable times you have won as well. So, now tell, you have recollected, haven’t you? And that topic is in the Gita as well. Hm? Arjun said – I have recollected. Smritlabdha. It is said like this, isn’t it? So, now you are aware that rightly Baba teaches us. And He gives us this aim-object. Achcha, remembrance, love and good morning to the children. (End)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2904, दिनांक 07.06.2019
VCD 2904, dated 07.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2904-extracts-Bilingual
समय- 00.01-20.40
Time- 00.01-20.40
आज का प्रातः क्लास है – 28.11.1967. रिकार्ड चला है जाग सजनिया जाग। नवयुग आया। आया सजनिया, जाग सजनिया जाग। हँ? ये किसके उद्गार हैं? हँ? किसने बोला? हँ? अरे, कोई ने तो बोला ये किसकी भावना है जाग सजनिया जाग? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) ब्रह्मा बाबा की सजनिया? वो तो खुद ही सजनिया है। (किसी ने कुछ कहा।) शिवबाबा की सजनिया? अरे? शिवबाबा? हँ? कैसे? शिवबाबा की सजनिया कैसे? और कौन सजनिया? बात तो पैदा होती है ना। हँ? कौन सजनिया को बोला जाग सजनिया जाग? सो रही है। हँ? नया युग आ गया। हँ? कौनसी सजनिया के लिए? कोई एक या व्यभिचारी है? हँ? अरे, बताओ। कमाल है! लो! हँ? (बाबा हंसे।) अरे? भारी चकराई।
देखो। प्रवृत्तिमार्ग को नहीं जानते जैसे? अरे, प्रवृत्तिमार्ग में तो साजन सजनिया होते हैं तभी प्रवृत्तिमार्ग होता है ना। (किसी ने कुछ कहा।) नारायण? नारायण बोल रहा है जाग सजनिया जाग? हँ? अरे, ये नारायण के उद्गार हैं नवयुग आया? हँ? किसके उद्गार हैं? अभी-अभी लिखा शिवबाबा, अभी लिख दिया नारायण। शिवबाबा और नारायण अलग-अलग कहें जाएंगे या एक ही कहे जाएंगे? नारायण माने नार माने ज्ञान जल। अयन माने घर। जिसका ज्ञान जल में ही घर है। उसको कहते हैं नारायण। तो कैसे घर बनता है? हँ? अरे, घर में इधर-उधर विचरण करेगा नहीं एक कमरे से दूसरे कमरे में? कि एक ही जगह लुद्द ओढ के बैठे रहेगा? हाँ, विचरण करेगा। तो बुद्धि चलेगी या नहीं चलेगी? हँ?
(किसी ने कुछ कहा।) शिव बाप है साजन? अरे? लिखा तो शिव बाप है, फिर कहते साजन नहीं है। हँ? ये बात तो ठीक है कि शिवबाबा साजन बनके आता है। लेकिन कौनसी सजनिया का साजन है? हँ? अरे, एक का साजन है या 2-4 का या 16000 का? (किसी ने कुछ कहा।) पार्वती का साजन है। हाँ, ये तो ठीक बताता है। हमारी जो अम्मा है ना उसका साजन है। क्या? वो ही पार लगाने वाली है। क्या? और तो कोई पार लगाने वाला है ही नहीं। अच्छा? फिर जब आता है शिवबाबा; शिवबाबा बनता है, सजनिया का पति बनता है ना? शिवबाबा कहा गया ना। तो जिसको बाई बनाया, हँ, तो उसमें प्रवेश करता है कि नहीं? हँ? हँ? आँखे चिपचिपाना शुरू कर दिया। अरे, अम्मा में पति प्रवेश करता है कि नहीं बीज डालने के लिए? हँ? करता है ना। तो किसमें प्रवेश किया? पार्वती में? हँ? हाँ। पार्वती में प्रवेश नहीं किया। पारवती में प्रवेश किया होता तो कहते कि हां, परमपिता है तो उसको परमब्रह्मा चाहिए। तो पार्वती परमब्रह्मा हुई। हुई? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हुई? अच्छा? फिर प्रवेश किसमें किया? हँ? प्रवेश किया बीज डालने के लिए दूसरे में, और पार्वती अम्मा हो गई? हँ? अरे? पारवती में प्रवेश करता है? स्त्री चोले में प्रवेश करता है? फिर? अरे, किसमें प्रवेश किया? अरे, परमब्रह्म सजनिया है परमपिता की तो परमब्रह्म में ही प्रवेश करेगा ना? हाँ, लेकिन वो परमब्रह्म स्त्री चोला है या पुरुष चोला है? हँ? है तो पुरुष चोला।
तो आते ही आते, हँ, क्या बताया? कि मैं जिसमें आता हूँ उसमें अपना काम निकालना है। पति को क्या काम निकालना है? हँ? सृष्टि पैदा करनी है ना? पति क्या करता है? हां, सृष्टि पैदा करता है। तो जो सृष्टि पैदा करनी है तो वो अम्मा चाहिए उसे सृष्टि पैदा करने के लिए कि पुरुष तन चाहिए? क्या चाहिए? हँ? चाहिए तो अम्मा। लेकिन अम्मा चाहिए और अम्मा वो है नहीं। वो है पुरुष चोला। आदम में, अर्जुन में, आदि देव में, हँ, महादेव कहा जाता है, उसमें आता है, प्रवेश करता है, तो वो तो ठीक है। लेकिन वो पुरुष चोला है ना। तो काम बन जाएगा? स्वभाव संस्कार पुरुष में होते हैं माता बनने के? हँ? जैसे माता परिवार को संभाल लेती है, जो सृष्टि बनाती है, पैदा करती है, तो उसको संभालती है। संभालने के लिए सामना करने की ताकत चाहिए या सहन करने की ताकत? सहन करने की ताकत चाहिए। तो सहनशक्ति की ताकत है जिस पुरुष में प्रवेश किया? तो इसलिए आते ही बोलता है मुझे क्या चाहिए? मुझे ब्रह्मा चाहिए। क्या? क्या? मैं तो खुद ही परमपुरुष हूँ। मुझे परमपुरुष चाहिए कि परमब्रह्मा चाहिए? क्या चाहिए? परमब्रह्मा चाहिए। तो क्यों चाहिए भई? अरे, काम निकालना है। जो काम करने के लिए आया हूँ। नई सृष्टि बनाने के लिए। तो वो काम पूरा करने के लिए अम्मा चाहिए ना। हाँ।
तो परमब्रह्म (किसी ने कुछ कहा।) पार्वती को कहें? अच्छा? पार्वती में प्रवेश किया? तो पार्वती में प्रवेश करना चाहिए। अरे? पुरुष में क्यों प्रवेश किया? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) मुकर्रर रथ में प्रवेश किया? ये क्या बात हुई? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) पांच मुख दिखाते हैं? वो तो ठीक है पांच मुख दिखाते हैं लेकिन पांच मुखों में कोई बड़ा मुख होगा कि नहीं? कि सब नंबरवार एक जैसे होंगे? हँ? कौन है बड़ा? हँ? मुकर्रर रथ। तो दो-दो को मुकर्रर करता है क्या? कि एक को मुकर्रर करता है और बाकि को टेम्परेरी बनाता है? हँ? भई काम निकालने के लिए काम चलाऊ सरकार। जैसे आज की गोर्मेन्ट है ना? कैसी गोर्मेन्ट है? काम चलाऊ गोर्मेन्ट बना लेते। पक्की गोर्मेन्ट तो है नहीं। तो पक्का कौन हुआ? मुकर्रर रथ एक हुआ या दो-चार हुए? एक। तो जो मुकर्रर रथ है वो पुरुष तन है। तो वो सर्वशक्तिवान कहा जाता है ना। है ना? तो क्या पुरुष को स्त्री नहीं बना सकता? हँ? अरे, शिवबाबा की ये खासियत है ना। स्त्री को पुरुष और पुरुष को स्त्री बनाय देते हैं। दादा लेखराज पुरुष था ना। क्या बनाय दिया? हँ? स्त्री बनाय दिया ना? हँ? ब्रह्मा बनाय दिया। ऐसे ही वो तो फिर भी चार मुखों वाला दिशाओं में इधर-उधर ताकने वाला बच्चा है, हँ, शिव का, ब्रह्मा दादा लेखराज, चार मुखों वाला। लेकिन उससे भी ऊँचा कोई अम्मा है? वो है ऊर्ध्वमुखी ब्रह्मा, पंचानन कहा जाता है जिसे। पांचवां मुख। तो पांचवां मुख जिसको नाम दिया परमब्रह्म।
तो वो परमब्रह्म पार्वती है? (किसी ने कुछ कहा।) है? अच्छा? कैसे? तो दो परमब्रह्म हो गए? (किसी ने कुछ कहा।) एक हो गया? चार मुखी वाले ब्रह्मा जो हैं वो किसके-किसके साथ संगठित हो जाता है? हँ? चार मुखों वाला ब्रह्मा प्रैक्टिकल में; कान क्यों खुजलाता है? किसके साथ संगठित हो जाता है? कौन-कौनसी आत्माएं हैं चार? हँ? एक दादा लेखराज। दूसरा? हँ? हाँ, जगदम्बा। तीसरी? तीसरी लक्ष्मी। लक्ष्मी लिखो कि पार्वती लिखो? हँ? लक्ष्मी या पार्वती? पार्वती। माने जो लक्ष्मी है सो ही पार्वती है। और? ओम राधे सरस्वती। है ना? ये चार आत्माओं को संगठित कर लेता है। करता है ना? कि परमब्रह्म को भी संगठित कर लेता है? हँ? तो तुम तो बता रहे हो पार्वती ही परमब्रह्म है? अरे, बोलो। (किसी ने कुछ कहा।) नंबरवन है पार्वती? अच्छा? तो नंबरवन अम्मा में आना चाहिए ना? शिव को? वो ऊपरवाला नंबरवन। तो ऊपरवाला नंबरवन परमपिता है तो नंबरवन अम्मा में आएगा कि नंबर दो की अम्मा में आएगा? कौनसे? हँ? बताओ भई। (किसी ने कुछ कहा।) प्रजापिता। तो प्रजापिता को पार्वती कहेंगे? हाँ? प्रजापिता पार्वती है? कैसे पहचानेंगे कि पार्वती है कि पार्वता है? हँ? बताओ।
(किसी ने कुछ कहा।) तुम सब पार्वतियां हो। किसने कहा? (किसी ने कुछ कहा।) ऊपर? उसको मुख है? हँ? किसमें प्रवेश करके कहा? अरे, जिसमें प्रवेश करके कहा वो ही बड़ी अम्मा हो गई ना फिर? जिसमें प्रवेश करता है तो प्रवेश करने वाला पति कहो या पिता कहो, हँ, तो परमपिता जिसमें प्रवेश किया पहले-पहले मुकर्रर रूप में तो वो हो गई परमब्रह्म माता। न कि पार्वती माता? सारी दुनिया को पार लगाएगी? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) नहीं? तो फिर पार्वती कैसे? अव्वल नंबर का नाम लेना चाहिए। दो नंबर को पकड़ता है। संस्कार पड़ गए हैं दो नंबर के काम करने के। हँ? अरे, कौन हुई? अव्वल नंबर की पार्वती का नाम बताओ। (किसी ने कुछ कहा।) लक्ष्मी? हँ? बुद्धि सारी चोले में ही जाती है। हँ? अरे, मैं कुमार हूं ना। है ना? अरे, तुम सब पार्वतियां हो। तुम सब। माना सामने बैठनेवाली या जो सामने नहीं है वो भी? हँ? हाँ, तुम सब पार्वतियां हो का मतलब है कि जो सामने बैठी हुई हैं, जो सारी; तुम सब का मतलब क्या हुआ? जो सारी सृष्टि की बीज आत्माएं हैं। सारी सृष्टि की बीज हैं तो सारी सृष्टि के सब धर्म की आत्माएं बीजों से निकलती हैं ना। अरे बोलो। बीजों से निकलती हैं ना। तो उनमें सारी सृष्टि समाई हुई है ना बीजों में? हाँ। तो इसलिए बोला कि बीजों के अंदर तो सारी सृष्टि समाई हुई है। देव आत्माएं भी, राक्षसी आत्माएं भी, ऋषि-मुनि, मनुष्यात्माएं भी, प्राणी मात्र भी समाए हुए हैं।
तो बताया – तुम सब पार्वतियां हो। तो बताओ, उनमें मनुष्य सृष्टि का जो बाप है, वो पार्वती है कि नहीं? हँ? तो अब दो पार्वतियां हो गईं। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) देही कोई बात नहीं? क्या? देह से? देह से कोई बात नहीं? ऐसे? ऐसे कोई बात नहीं? कैसे कोई बात नहीं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) जो तेरे, जो तेरे; क्या तेरे? हँ? जो तेरे वो लक्ष्मी-नारायण पर लागू। हँ? किस बात पर लागू? तुम सब पार्वतियां हो पार लगाने वाली हो तो भोगी आत्माओं के सबके लिए बोला कि कोई छोड़ दी? हँ? कोई ऐसी आत्मा है जिसको छोड़ दिया? तुम सब पार्वतियां हो। माना सब पार लगाने वाली हो। क्या? मैं तो अकर्ता हूँ। मैं कुछ नहीं करता। करता है? पार लगाने का काम करता है? नहीं। तुम सब पार्वतियां हो। तो तुम सब पार्वतियों में सब भोगी आत्माएं हैं कि कोई अभोगी, अभोक्ता आत्मा भी है आलरेडी? हँ? अरे बोलो। सब भोगी हैं ना। तो उन सब भोगियों का कोई बाप है कि नहीं है? कि सब ब्रह्माकुमारियां हैं? कहती हैं कि हमारा कोई बाप ही नहीं? अगर बाप है तो हमारी पार्वती अम्मा है स्त्री चोला वाली। बताओ जल्दी। दुनिया भर की शास्त्रों की इबारत लिखना शुरु कर देता है। हँ?
(किसी ने कुछ कहा।) ऐसे कोई बात नहीं जो तेरे पर लागू न होती हो। माने पार्वती जो स्त्री चोलाधारी है उसके ऊपर सारी बातें लागू होती हैं? अरे? हँ? जो स्त्री चोलाधारी पार्वती है उसके ऊपर सारी बातें लागू होती हैं? नहीं होती ना? हँ? तो किसके ऊपर लागू होती हैं? कौन है अव्वल नंबर पार्वती? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, पुरुष चोला जो है मुकर्रर रथधारी उसी को वो पुरुष से क्या बना लेता है अपना काम निकालने के लिए? क्या? हाँ, अम्मा, बड़े ते बड़ी अम्मा बना लेता है परमब्रह्म। बनाता है ना? तो वो पुरुष भी है। लेकिन स्वभाव-संस्कार से उसे क्या बनाता है? बड़े ते बड़ी अम्मा। कैसे स्वभाव-संस्कार वाली? कैसे स्वभाव-संस्कार वाली? सहन शक्ति वाली। सहयोग की शक्ति वाली। सहयोग कब मिलता है? हँ? हाँ, सहयोग मिलता ही तब है जब सहनशक्ति हो। नहीं तो सहयोग कैसे मिलेगा? एक दूसरे को सहन नहीं करेंगे। जैसे बाबा ने कहा ना कि परिवार में सहन करना है। हँ? तो जो अपने परिवार के हैं, अपने धर्म के हैं उन धरम के बच्चों को सहन करना है ना। तो सहन करने का गुण है तो अम्मा है या नहीं है? तो जिसमें प्रवेश करता है उसको क्या बनाता है पहले? क्या नाम देता है? अम्मा, ब्रह्मा। बड़े ते बड़ी अम्मा ना।
तो वो बड़े ते बड़ी अम्मा जो प्रजापिता है जिसको आया है पहले-पहले परमब्रह्म बड़े ते बड़ी अम्मा बनाने के लिए; क्या? आओ बच्चे, तुम जो हो ना, पुरुष तन का तुम्हें बहुत भान है ना। बाबा कहते हैं जितने पुरुष हैं इस दुनिया में सब? दुर्योधन-दुःशासन हैं। तो अभी तू क्या है जब तक पुरुष तन का भान है तेरे को? तो क्या है? दुर्योधन-दुःशासन है कि नहीं? हाँ। तो दुर्योधन-दुःशासन में सहनशक्ति होगी? नहीं होगी। तो बताया कि मैं जिस पुरुष चोले में प्रवेश करता हूँ उसको क्या बनाता हूँ? हाँ, स्वभाव-संस्कार से स्त्री चोला वाला बनाता हूँ। इसलिए नाम भी देता हूँ; जैसा काम वैसा नाम। तो काम निकालना है अम्मा का तो नाम भी देता हूँ अम्मा। कैसी अम्मा? अम्माओं में बड़े ते बड़ी अम्मा या बीच वाली या छोटी वाली या ऊपरवाली सबसे? कौनसी अम्मा? हँ? बड़े ते बड़ी अम्मा ना? अरे, बोलो। हाँ, बड़े ते बड़ी अम्मा।
Today’s morning class is dated 28.11.1967. The record played is – Jaag sajaniya jaag. Navyug aya. Aaya sajaniya. Jaag sajaniya jaag. (Wake up O wife, the New Age has arrived. It has arrived O wife. Wake up O wife, wake up.) Hm? Whose expressions are these? Hm? Who said? Hm? Arey, someone must have spoken; whose feelings are these – Wake up O wife, wake up? Hm? (Someone said something.) Brahma Baba’s wife? He himself is a wife. (Someone said something.) ShivBaba’s wife? Arey? ShivBaba? Hm? How? How ShivBaba’s wife? And who is the wife? A topic arises, doesn’t it? Hm? Which wife was told – Wake up O wife, wake up? She is sleeping. Hm? The New Age has arrived. Hm? For which wife? Is it any one person or is he adulterous? Hm? Arey, speak up. It is a wonder! Look! Hm? (Baba laughed.) Arey? Great confusion.
Look. Don’t you know about the path of household? Arey, there are husbands and wives on the path of household; only then does the path of household exist, doesn’t it? (Someone said something.) Narayan? Is Narayan saying – Wake up O wife, wake up? Hm? Arey, are these the expressions of Narayan that the New Age has arrived? Hm? Whose expressions are these? Just now you wrote ShivBaba; now you wrote Narayan. Will ShivBaba and Narayan be said to be separate or same? Narayan means naar, i.e. the water of knowledge. Ayan means house. The one whose house is in the water of knowledge only. He is called Narayan. So, how is a house built? Hm? Arey, will he move here and there in the house or not from one room to the other? Or will he remain sitting at one place covering himself with a blanket? Yes, he will move. So, will his intellect work or will it not? Hm?
(Someone said something.) Is Father Shiv the husband? Arey? You have written Father Shiv; then you say that He is not the husband. Hm? It is correct that ShivBaba comes as a husband (saajan). But which wife’s husband is He? Hm? Arey, is He the husband of one or of 2-4 or of 16000? (Someone said something.) He is the husband of Parvati. Yes, this is the correct thing that he says. He is the husband of the one who is our mother, isn’t she? What? She alone is the one who sails us across. What? Nobody else is going to sail us across at all. Achcha? Then, when ShivBaba comes; He becomes ShivBaba; He becomes the husband of the wife, doesn’t He? He was called ShivBaba, wasn’t He? So, the one whom He made His wife, does He enter in him or not? Hm? Hm? You have started moving your eyelids. Arey, does the husband enter into the mother (wife) to sow the seed or not? Hm? He does, doesn’t he? So, in whom did He enter? In Parvati? Hm? Yes. He did not enter in Parvati. Had He entered in Parvati, then you would say that yes, when He is the Supreme Father, then He requires Parambrahma. So, Parvati is Parambrahma. Is she? Hm? (Someone said something.) Is she? Achcha? Then in whom did He enter? Hm? Did He enter in someone else to sow the seed and Parvati happens to be the mother? Hm? Arey? Does He enter in Parvati? Does He enter in a female body? Then? Arey, in whom did He enter? Arey, when Parambrahm is the wife of the Parampita (Supreme Father), then He will enter into Parambrahm only, will He not? Yes, but is that Parambrahm a female body or a male body? Hm? It is a male body.
So, as soon as He comes; what did He tell? That the one in whom I come, I have to extract My work from him/her. What task does the husband have to extract? Hm? He has to procreate, will He not? What does the husband do? Yes, He procreates. So, when he has to procreate, then does he require a mother to procreate or does he require a male body? What does he require? Hm? He does require a mother. But He wants a mother and he is not a mother. His is a male body. He comes, He enters in Aadam, Arjun, Aadi Dev, who is called Mahadev; that is correct. But his is a male body, isn’t it? So, will the task be accomplished? Does a male have the nature and sanskars of becoming a mother? Hm? For example, a mother takes care of the family; she takes care of the procreation. Is the power of confrontation or the power of tolerance required to take care? The power of tolerance is required. So, is there power of tolerance in the male in whom He entered? So, this is why, as soon as He enters, He says – What do I require? I require Brahma. What? What? I am Myself Parampurush (Supreme Man/soul). Do I require Supreme Man or Parambrahma? What do I require? I require Parambrahma. So, why do I require brother? Arey, I have to extract My work. The task which I have come to accomplish. To establish a new world. So, a mother is required to accomplish that task, is she not? Yes.
So, Parambrahm (Someone said something.) Should Parvati be said so? Achcha? Did He enter in Parvati? So, He should enter Parvati. Arey? Why did He enter in a man? Hm? (Someone said something.) Did He enter in the permanent Chariot? What is this? Hm? (Someone said something.) Is he shown to have five heads? That is correct that he is shown to have five heads, but will there be a seniormost head among the five heads or not? Or will everyone be numberwise, similar? Hm? Who is the eldest? Hm? The permanent Chariot. So, does He fix two persons? Or does He fix one and makes others as temporary? Hm? Brother, namesake government to extract work. For example, there is today’s government, isn’t it? What kind of government is it? They establish working (kaam-chalaau) government. It is not a firm government. So, who is firm? Is the permanent Chariot one or two-four? One. So, the permanent Chariot is a male body. So, He is called Almighty, isn’t He? Is it not? So, can’t He transform a male to female? Hm? Arey, this is the specialty of ShivBaba, isn’t it? He transforms a female to male and male to female. Dada Lekhraj was a male, wasn’t he? What did He make him? Hm? He made him a female, didn’t He? Hm? He made him Brahma. Similarly, however, he is a child of Shiv with four heads who looks in four directions; Brahma Dada Lekhraj with four heads. But is there any mother higher than him? He is the upwards facing Brahma, who is called Panchanan (five-headed Brahma). The fifth head. So, the fifth head who was named Parambrahm.
So, is Parvati that Parambrahm? (Someone said something.) Is he? Achcha? How? So, are there two Parambrahms? (Someone said something.) Is it one? With whom all does four-headed Brahma unite? Hm? The four-headed Brahma in practical; Why do you scratch your ears? With whom does he unite? Which are the four souls? Hm? One is Dada Lekhraj. Second? Hm? Yes, Jagdamba. Third? Third is Lakshmi. Should you write Lakshmi or Parvati? Hm? Lakshmi or Parvati? Parvati. It means that the one who is Lakshmi is Parvati. And? Om Radhey Saraswati. She is, isn’t she? He unites these four souls. He does; doesn’t he? Or does he unite Parambrahm also? Hm? So, you are telling that Parvati herself is Parambrahm? Arey, speak up. (Someone said something.) Is Parvati number one? Achcha? So, He should come in the number one mother, shouldn’t He? Shiva? That above one is the number one. So, when the above one is the number one Supreme Father, then will He come in the number one mother or in the number two mother? In which one? Hm? Tell brother. (Someone said something.) Prajapita. So, will Prajapita be called Parvati? Yes? Is Prajapita Parvati? How will you recognize whether he is Parvati (feminine) or Parvata (masculine)? Hm? Speak up.
(Someone said something.) You all are Parvatis. Who said? (Someone said something.) Above? Does He have a mouth? Hm? In whom did He enter and say? Arey, the one in whom He entered and said is the senior mother, isn’t she? The one in whom He enters; so, the one who enters is the husband or the Father; so, the one in whom the Supreme Father entered first of all in a permanent manner happens to be the Parambrahm mother. Or is it mother Parvati? Will she enable the entire world to sail across? Hm? (Someone said something.) No? So, then how is she Parvati? The name of the number one [Parvati] should be mentioned. He catches the number two. You have developed the sanskar of performing number two tasks. Hm? Arey, who is she? Tell the name of the number one Parvati. (Someone said something.) Lakshmi? Hm? Your intellect goes entirely into the body only. Hm? [Baba said on behalf of the brother] Arey, I am a Kumar (unmarried man), am I not? Is it not? Arey, you all are Parvatis. You all. Does it mean the one sitting in the front or is it that one also who is not in the front? Hm? Yes, ‘you all are Parvatis’ means that those who are sitting in the front, all those; What is meant by ‘you all’? Those who are the seed-form souls of the entire world. When they are the seeds of the entire world, then the souls of all the religions of the entire world emerge from the seeds, don’t they? Arey, speak up. They emerge from the seeds, don’t they? So, the entire world is contained in them, in the seeds, are they not? Yes. So, this is why it was told that the entire world is contained in the seeds. The deity souls also, the demoniac souls also, the sages and saints, the human souls also, the living beings also are contained.
So, it was told – You all are Parvatis. So, tell, among them the one who is the Father of the human world, is he a Parvati or not? Hm? So, now there are two Parvatis. Hm? (Someone said something.) Is there no topic of dehi? What? Through the body (deh)? Is there no topic through the body? Is it so? Is there no such topic? How is there no topic? Hm? (Someone said something.) Yours, yours; what yours? Hm? Whatever is yours is applicable to Lakshmi-Narayan. Hm? Applicable to which topic? You all are Parvatis who enable others to sail across; so, was it said for all the bhogi (pleasure-seeking) souls or was anyone left out? Hm? Is there any soul which was left out? You all are Parvatis. It means that all of you are the ones who enable others to sail across. What? I am akarta (non-doer). I don’t do anything. Does He do? Does He perform the task of enabling others to sail across? No. You all are Parvatis. So, are all the souls among ‘you all Parvatis’ bhogi souls or is there any abhogi, abhokta (non-pleasure-seeker) soul already? Hm? Arey, speak up. All are bhogis, aren’t they? So, is there any Father of all those bhogis or not? Or are all of them Brahmakumaris? They say that we don’t have any Father at all? If we have any Father it is our mother Parvati, the one with a female body. Speak up fast. He starts writing all the stories of the scriptures of the world. Hm?
(Someone said something.) There is no such topic which is not applicable to you. It means that are all the topics applicable to the female bodied Parvati? Arey? Hm? Are all the topics applicable to the female bodied Parvati? They don’t apply; do they? Hm? So, on whom do they apply? Who is the number one Parvati? (Someone said something.) Yes, what does He transform the male bodied permanent Chariot holder from a male to what in order to extract His task? What? Yes, He makes her a mother, the seniormost mother, Parambrahm. He makes him, doesn’t He? So, he is a male also. But what does He make him through nature and sanskars? The seniormost mother. The one with what kind of nature and sanskars? The one with what kind of nature and sanskars? The one with the power of tolerance. The one with the power of cooperation. When does one get cooperation? Hm? Yes, one gets cooperation only when one has the power of tolerance. Otherwise, how will one get cooperation? If you do not tolerate each other; For example, Baba has said that one should tolerate in a family. Hm? So, those who belong to our family, to our religion, the children of those religions should tolerate, shouldn’t they? So, if someone has the virtue of tolerance, then is he/she a mother or not? So, the one in whom He enters, what does He make him first? What is the name that He gives? Mother, Brahma. The biggest mother, isn’t she?
So, that biggest mother, Prajapita, whom He has come to make Parambrahm, the biggest mother first of all; what? Come child, you, you have a lot of consciousness of the male body, don’t you? Baba says – What are all the men in this world? They are Duryodhans and Dushasans. So, what are you now as long as you have the consciousness of the male body? What are you? Are you Duryodhan-Dushasan or not? Yes. So, will Duryodhan-Dushasan have the power of tolerance? He will not have. So, it was told that the male body in which I enter, what do I make him? Yes, I make him the one with the nature and sanskars of a female body. This is why even the name that I give him; as is the task performed, so is the name. So, when I have to extract the work of a mother, then the name that I assign is also ‘mother’. What kind of mother? The seniormost mother among the mothers or the middle one or the younger one or the topmost one? Which mother? Hm? The seniormost mother, isn’t it? Arey, speak up. Yes, the seniormost mother.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2904, दिनांक 07.06.2019
VCD 2904, dated 07.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2904-extracts-Bilingual
समय- 00.01-20.40
Time- 00.01-20.40
आज का प्रातः क्लास है – 28.11.1967. रिकार्ड चला है जाग सजनिया जाग। नवयुग आया। आया सजनिया, जाग सजनिया जाग। हँ? ये किसके उद्गार हैं? हँ? किसने बोला? हँ? अरे, कोई ने तो बोला ये किसकी भावना है जाग सजनिया जाग? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) ब्रह्मा बाबा की सजनिया? वो तो खुद ही सजनिया है। (किसी ने कुछ कहा।) शिवबाबा की सजनिया? अरे? शिवबाबा? हँ? कैसे? शिवबाबा की सजनिया कैसे? और कौन सजनिया? बात तो पैदा होती है ना। हँ? कौन सजनिया को बोला जाग सजनिया जाग? सो रही है। हँ? नया युग आ गया। हँ? कौनसी सजनिया के लिए? कोई एक या व्यभिचारी है? हँ? अरे, बताओ। कमाल है! लो! हँ? (बाबा हंसे।) अरे? भारी चकराई।
देखो। प्रवृत्तिमार्ग को नहीं जानते जैसे? अरे, प्रवृत्तिमार्ग में तो साजन सजनिया होते हैं तभी प्रवृत्तिमार्ग होता है ना। (किसी ने कुछ कहा।) नारायण? नारायण बोल रहा है जाग सजनिया जाग? हँ? अरे, ये नारायण के उद्गार हैं नवयुग आया? हँ? किसके उद्गार हैं? अभी-अभी लिखा शिवबाबा, अभी लिख दिया नारायण। शिवबाबा और नारायण अलग-अलग कहें जाएंगे या एक ही कहे जाएंगे? नारायण माने नार माने ज्ञान जल। अयन माने घर। जिसका ज्ञान जल में ही घर है। उसको कहते हैं नारायण। तो कैसे घर बनता है? हँ? अरे, घर में इधर-उधर विचरण करेगा नहीं एक कमरे से दूसरे कमरे में? कि एक ही जगह लुद्द ओढ के बैठे रहेगा? हाँ, विचरण करेगा। तो बुद्धि चलेगी या नहीं चलेगी? हँ?
(किसी ने कुछ कहा।) शिव बाप है साजन? अरे? लिखा तो शिव बाप है, फिर कहते साजन नहीं है। हँ? ये बात तो ठीक है कि शिवबाबा साजन बनके आता है। लेकिन कौनसी सजनिया का साजन है? हँ? अरे, एक का साजन है या 2-4 का या 16000 का? (किसी ने कुछ कहा।) पार्वती का साजन है। हाँ, ये तो ठीक बताता है। हमारी जो अम्मा है ना उसका साजन है। क्या? वो ही पार लगाने वाली है। क्या? और तो कोई पार लगाने वाला है ही नहीं। अच्छा? फिर जब आता है शिवबाबा; शिवबाबा बनता है, सजनिया का पति बनता है ना? शिवबाबा कहा गया ना। तो जिसको बाई बनाया, हँ, तो उसमें प्रवेश करता है कि नहीं? हँ? हँ? आँखे चिपचिपाना शुरू कर दिया। अरे, अम्मा में पति प्रवेश करता है कि नहीं बीज डालने के लिए? हँ? करता है ना। तो किसमें प्रवेश किया? पार्वती में? हँ? हाँ। पार्वती में प्रवेश नहीं किया। पारवती में प्रवेश किया होता तो कहते कि हां, परमपिता है तो उसको परमब्रह्मा चाहिए। तो पार्वती परमब्रह्मा हुई। हुई? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हुई? अच्छा? फिर प्रवेश किसमें किया? हँ? प्रवेश किया बीज डालने के लिए दूसरे में, और पार्वती अम्मा हो गई? हँ? अरे? पारवती में प्रवेश करता है? स्त्री चोले में प्रवेश करता है? फिर? अरे, किसमें प्रवेश किया? अरे, परमब्रह्म सजनिया है परमपिता की तो परमब्रह्म में ही प्रवेश करेगा ना? हाँ, लेकिन वो परमब्रह्म स्त्री चोला है या पुरुष चोला है? हँ? है तो पुरुष चोला।
तो आते ही आते, हँ, क्या बताया? कि मैं जिसमें आता हूँ उसमें अपना काम निकालना है। पति को क्या काम निकालना है? हँ? सृष्टि पैदा करनी है ना? पति क्या करता है? हां, सृष्टि पैदा करता है। तो जो सृष्टि पैदा करनी है तो वो अम्मा चाहिए उसे सृष्टि पैदा करने के लिए कि पुरुष तन चाहिए? क्या चाहिए? हँ? चाहिए तो अम्मा। लेकिन अम्मा चाहिए और अम्मा वो है नहीं। वो है पुरुष चोला। आदम में, अर्जुन में, आदि देव में, हँ, महादेव कहा जाता है, उसमें आता है, प्रवेश करता है, तो वो तो ठीक है। लेकिन वो पुरुष चोला है ना। तो काम बन जाएगा? स्वभाव संस्कार पुरुष में होते हैं माता बनने के? हँ? जैसे माता परिवार को संभाल लेती है, जो सृष्टि बनाती है, पैदा करती है, तो उसको संभालती है। संभालने के लिए सामना करने की ताकत चाहिए या सहन करने की ताकत? सहन करने की ताकत चाहिए। तो सहनशक्ति की ताकत है जिस पुरुष में प्रवेश किया? तो इसलिए आते ही बोलता है मुझे क्या चाहिए? मुझे ब्रह्मा चाहिए। क्या? क्या? मैं तो खुद ही परमपुरुष हूँ। मुझे परमपुरुष चाहिए कि परमब्रह्मा चाहिए? क्या चाहिए? परमब्रह्मा चाहिए। तो क्यों चाहिए भई? अरे, काम निकालना है। जो काम करने के लिए आया हूँ। नई सृष्टि बनाने के लिए। तो वो काम पूरा करने के लिए अम्मा चाहिए ना। हाँ।
तो परमब्रह्म (किसी ने कुछ कहा।) पार्वती को कहें? अच्छा? पार्वती में प्रवेश किया? तो पार्वती में प्रवेश करना चाहिए। अरे? पुरुष में क्यों प्रवेश किया? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) मुकर्रर रथ में प्रवेश किया? ये क्या बात हुई? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) पांच मुख दिखाते हैं? वो तो ठीक है पांच मुख दिखाते हैं लेकिन पांच मुखों में कोई बड़ा मुख होगा कि नहीं? कि सब नंबरवार एक जैसे होंगे? हँ? कौन है बड़ा? हँ? मुकर्रर रथ। तो दो-दो को मुकर्रर करता है क्या? कि एक को मुकर्रर करता है और बाकि को टेम्परेरी बनाता है? हँ? भई काम निकालने के लिए काम चलाऊ सरकार। जैसे आज की गोर्मेन्ट है ना? कैसी गोर्मेन्ट है? काम चलाऊ गोर्मेन्ट बना लेते। पक्की गोर्मेन्ट तो है नहीं। तो पक्का कौन हुआ? मुकर्रर रथ एक हुआ या दो-चार हुए? एक। तो जो मुकर्रर रथ है वो पुरुष तन है। तो वो सर्वशक्तिवान कहा जाता है ना। है ना? तो क्या पुरुष को स्त्री नहीं बना सकता? हँ? अरे, शिवबाबा की ये खासियत है ना। स्त्री को पुरुष और पुरुष को स्त्री बनाय देते हैं। दादा लेखराज पुरुष था ना। क्या बनाय दिया? हँ? स्त्री बनाय दिया ना? हँ? ब्रह्मा बनाय दिया। ऐसे ही वो तो फिर भी चार मुखों वाला दिशाओं में इधर-उधर ताकने वाला बच्चा है, हँ, शिव का, ब्रह्मा दादा लेखराज, चार मुखों वाला। लेकिन उससे भी ऊँचा कोई अम्मा है? वो है ऊर्ध्वमुखी ब्रह्मा, पंचानन कहा जाता है जिसे। पांचवां मुख। तो पांचवां मुख जिसको नाम दिया परमब्रह्म।
तो वो परमब्रह्म पार्वती है? (किसी ने कुछ कहा।) है? अच्छा? कैसे? तो दो परमब्रह्म हो गए? (किसी ने कुछ कहा।) एक हो गया? चार मुखी वाले ब्रह्मा जो हैं वो किसके-किसके साथ संगठित हो जाता है? हँ? चार मुखों वाला ब्रह्मा प्रैक्टिकल में; कान क्यों खुजलाता है? किसके साथ संगठित हो जाता है? कौन-कौनसी आत्माएं हैं चार? हँ? एक दादा लेखराज। दूसरा? हँ? हाँ, जगदम्बा। तीसरी? तीसरी लक्ष्मी। लक्ष्मी लिखो कि पार्वती लिखो? हँ? लक्ष्मी या पार्वती? पार्वती। माने जो लक्ष्मी है सो ही पार्वती है। और? ओम राधे सरस्वती। है ना? ये चार आत्माओं को संगठित कर लेता है। करता है ना? कि परमब्रह्म को भी संगठित कर लेता है? हँ? तो तुम तो बता रहे हो पार्वती ही परमब्रह्म है? अरे, बोलो। (किसी ने कुछ कहा।) नंबरवन है पार्वती? अच्छा? तो नंबरवन अम्मा में आना चाहिए ना? शिव को? वो ऊपरवाला नंबरवन। तो ऊपरवाला नंबरवन परमपिता है तो नंबरवन अम्मा में आएगा कि नंबर दो की अम्मा में आएगा? कौनसे? हँ? बताओ भई। (किसी ने कुछ कहा।) प्रजापिता। तो प्रजापिता को पार्वती कहेंगे? हाँ? प्रजापिता पार्वती है? कैसे पहचानेंगे कि पार्वती है कि पार्वता है? हँ? बताओ।
(किसी ने कुछ कहा।) तुम सब पार्वतियां हो। किसने कहा? (किसी ने कुछ कहा।) ऊपर? उसको मुख है? हँ? किसमें प्रवेश करके कहा? अरे, जिसमें प्रवेश करके कहा वो ही बड़ी अम्मा हो गई ना फिर? जिसमें प्रवेश करता है तो प्रवेश करने वाला पति कहो या पिता कहो, हँ, तो परमपिता जिसमें प्रवेश किया पहले-पहले मुकर्रर रूप में तो वो हो गई परमब्रह्म माता। न कि पार्वती माता? सारी दुनिया को पार लगाएगी? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) नहीं? तो फिर पार्वती कैसे? अव्वल नंबर का नाम लेना चाहिए। दो नंबर को पकड़ता है। संस्कार पड़ गए हैं दो नंबर के काम करने के। हँ? अरे, कौन हुई? अव्वल नंबर की पार्वती का नाम बताओ। (किसी ने कुछ कहा।) लक्ष्मी? हँ? बुद्धि सारी चोले में ही जाती है। हँ? अरे, मैं कुमार हूं ना। है ना? अरे, तुम सब पार्वतियां हो। तुम सब। माना सामने बैठनेवाली या जो सामने नहीं है वो भी? हँ? हाँ, तुम सब पार्वतियां हो का मतलब है कि जो सामने बैठी हुई हैं, जो सारी; तुम सब का मतलब क्या हुआ? जो सारी सृष्टि की बीज आत्माएं हैं। सारी सृष्टि की बीज हैं तो सारी सृष्टि के सब धर्म की आत्माएं बीजों से निकलती हैं ना। अरे बोलो। बीजों से निकलती हैं ना। तो उनमें सारी सृष्टि समाई हुई है ना बीजों में? हाँ। तो इसलिए बोला कि बीजों के अंदर तो सारी सृष्टि समाई हुई है। देव आत्माएं भी, राक्षसी आत्माएं भी, ऋषि-मुनि, मनुष्यात्माएं भी, प्राणी मात्र भी समाए हुए हैं।
तो बताया – तुम सब पार्वतियां हो। तो बताओ, उनमें मनुष्य सृष्टि का जो बाप है, वो पार्वती है कि नहीं? हँ? तो अब दो पार्वतियां हो गईं। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) देही कोई बात नहीं? क्या? देह से? देह से कोई बात नहीं? ऐसे? ऐसे कोई बात नहीं? कैसे कोई बात नहीं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) जो तेरे, जो तेरे; क्या तेरे? हँ? जो तेरे वो लक्ष्मी-नारायण पर लागू। हँ? किस बात पर लागू? तुम सब पार्वतियां हो पार लगाने वाली हो तो भोगी आत्माओं के सबके लिए बोला कि कोई छोड़ दी? हँ? कोई ऐसी आत्मा है जिसको छोड़ दिया? तुम सब पार्वतियां हो। माना सब पार लगाने वाली हो। क्या? मैं तो अकर्ता हूँ। मैं कुछ नहीं करता। करता है? पार लगाने का काम करता है? नहीं। तुम सब पार्वतियां हो। तो तुम सब पार्वतियों में सब भोगी आत्माएं हैं कि कोई अभोगी, अभोक्ता आत्मा भी है आलरेडी? हँ? अरे बोलो। सब भोगी हैं ना। तो उन सब भोगियों का कोई बाप है कि नहीं है? कि सब ब्रह्माकुमारियां हैं? कहती हैं कि हमारा कोई बाप ही नहीं? अगर बाप है तो हमारी पार्वती अम्मा है स्त्री चोला वाली। बताओ जल्दी। दुनिया भर की शास्त्रों की इबारत लिखना शुरु कर देता है। हँ?
(किसी ने कुछ कहा।) ऐसे कोई बात नहीं जो तेरे पर लागू न होती हो। माने पार्वती जो स्त्री चोलाधारी है उसके ऊपर सारी बातें लागू होती हैं? अरे? हँ? जो स्त्री चोलाधारी पार्वती है उसके ऊपर सारी बातें लागू होती हैं? नहीं होती ना? हँ? तो किसके ऊपर लागू होती हैं? कौन है अव्वल नंबर पार्वती? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, पुरुष चोला जो है मुकर्रर रथधारी उसी को वो पुरुष से क्या बना लेता है अपना काम निकालने के लिए? क्या? हाँ, अम्मा, बड़े ते बड़ी अम्मा बना लेता है परमब्रह्म। बनाता है ना? तो वो पुरुष भी है। लेकिन स्वभाव-संस्कार से उसे क्या बनाता है? बड़े ते बड़ी अम्मा। कैसे स्वभाव-संस्कार वाली? कैसे स्वभाव-संस्कार वाली? सहन शक्ति वाली। सहयोग की शक्ति वाली। सहयोग कब मिलता है? हँ? हाँ, सहयोग मिलता ही तब है जब सहनशक्ति हो। नहीं तो सहयोग कैसे मिलेगा? एक दूसरे को सहन नहीं करेंगे। जैसे बाबा ने कहा ना कि परिवार में सहन करना है। हँ? तो जो अपने परिवार के हैं, अपने धर्म के हैं उन धरम के बच्चों को सहन करना है ना। तो सहन करने का गुण है तो अम्मा है या नहीं है? तो जिसमें प्रवेश करता है उसको क्या बनाता है पहले? क्या नाम देता है? अम्मा, ब्रह्मा। बड़े ते बड़ी अम्मा ना।
तो वो बड़े ते बड़ी अम्मा जो प्रजापिता है जिसको आया है पहले-पहले परमब्रह्म बड़े ते बड़ी अम्मा बनाने के लिए; क्या? आओ बच्चे, तुम जो हो ना, पुरुष तन का तुम्हें बहुत भान है ना। बाबा कहते हैं जितने पुरुष हैं इस दुनिया में सब? दुर्योधन-दुःशासन हैं। तो अभी तू क्या है जब तक पुरुष तन का भान है तेरे को? तो क्या है? दुर्योधन-दुःशासन है कि नहीं? हाँ। तो दुर्योधन-दुःशासन में सहनशक्ति होगी? नहीं होगी। तो बताया कि मैं जिस पुरुष चोले में प्रवेश करता हूँ उसको क्या बनाता हूँ? हाँ, स्वभाव-संस्कार से स्त्री चोला वाला बनाता हूँ। इसलिए नाम भी देता हूँ; जैसा काम वैसा नाम। तो काम निकालना है अम्मा का तो नाम भी देता हूँ अम्मा। कैसी अम्मा? अम्माओं में बड़े ते बड़ी अम्मा या बीच वाली या छोटी वाली या ऊपरवाली सबसे? कौनसी अम्मा? हँ? बड़े ते बड़ी अम्मा ना? अरे, बोलो। हाँ, बड़े ते बड़ी अम्मा।
Today’s morning class is dated 28.11.1967. The record played is – Jaag sajaniya jaag. Navyug aya. Aaya sajaniya. Jaag sajaniya jaag. (Wake up O wife, the New Age has arrived. It has arrived O wife. Wake up O wife, wake up.) Hm? Whose expressions are these? Hm? Who said? Hm? Arey, someone must have spoken; whose feelings are these – Wake up O wife, wake up? Hm? (Someone said something.) Brahma Baba’s wife? He himself is a wife. (Someone said something.) ShivBaba’s wife? Arey? ShivBaba? Hm? How? How ShivBaba’s wife? And who is the wife? A topic arises, doesn’t it? Hm? Which wife was told – Wake up O wife, wake up? She is sleeping. Hm? The New Age has arrived. Hm? For which wife? Is it any one person or is he adulterous? Hm? Arey, speak up. It is a wonder! Look! Hm? (Baba laughed.) Arey? Great confusion.
Look. Don’t you know about the path of household? Arey, there are husbands and wives on the path of household; only then does the path of household exist, doesn’t it? (Someone said something.) Narayan? Is Narayan saying – Wake up O wife, wake up? Hm? Arey, are these the expressions of Narayan that the New Age has arrived? Hm? Whose expressions are these? Just now you wrote ShivBaba; now you wrote Narayan. Will ShivBaba and Narayan be said to be separate or same? Narayan means naar, i.e. the water of knowledge. Ayan means house. The one whose house is in the water of knowledge only. He is called Narayan. So, how is a house built? Hm? Arey, will he move here and there in the house or not from one room to the other? Or will he remain sitting at one place covering himself with a blanket? Yes, he will move. So, will his intellect work or will it not? Hm?
(Someone said something.) Is Father Shiv the husband? Arey? You have written Father Shiv; then you say that He is not the husband. Hm? It is correct that ShivBaba comes as a husband (saajan). But which wife’s husband is He? Hm? Arey, is He the husband of one or of 2-4 or of 16000? (Someone said something.) He is the husband of Parvati. Yes, this is the correct thing that he says. He is the husband of the one who is our mother, isn’t she? What? She alone is the one who sails us across. What? Nobody else is going to sail us across at all. Achcha? Then, when ShivBaba comes; He becomes ShivBaba; He becomes the husband of the wife, doesn’t He? He was called ShivBaba, wasn’t He? So, the one whom He made His wife, does He enter in him or not? Hm? Hm? You have started moving your eyelids. Arey, does the husband enter into the mother (wife) to sow the seed or not? Hm? He does, doesn’t he? So, in whom did He enter? In Parvati? Hm? Yes. He did not enter in Parvati. Had He entered in Parvati, then you would say that yes, when He is the Supreme Father, then He requires Parambrahma. So, Parvati is Parambrahma. Is she? Hm? (Someone said something.) Is she? Achcha? Then in whom did He enter? Hm? Did He enter in someone else to sow the seed and Parvati happens to be the mother? Hm? Arey? Does He enter in Parvati? Does He enter in a female body? Then? Arey, in whom did He enter? Arey, when Parambrahm is the wife of the Parampita (Supreme Father), then He will enter into Parambrahm only, will He not? Yes, but is that Parambrahm a female body or a male body? Hm? It is a male body.
So, as soon as He comes; what did He tell? That the one in whom I come, I have to extract My work from him/her. What task does the husband have to extract? Hm? He has to procreate, will He not? What does the husband do? Yes, He procreates. So, when he has to procreate, then does he require a mother to procreate or does he require a male body? What does he require? Hm? He does require a mother. But He wants a mother and he is not a mother. His is a male body. He comes, He enters in Aadam, Arjun, Aadi Dev, who is called Mahadev; that is correct. But his is a male body, isn’t it? So, will the task be accomplished? Does a male have the nature and sanskars of becoming a mother? Hm? For example, a mother takes care of the family; she takes care of the procreation. Is the power of confrontation or the power of tolerance required to take care? The power of tolerance is required. So, is there power of tolerance in the male in whom He entered? So, this is why, as soon as He enters, He says – What do I require? I require Brahma. What? What? I am Myself Parampurush (Supreme Man/soul). Do I require Supreme Man or Parambrahma? What do I require? I require Parambrahma. So, why do I require brother? Arey, I have to extract My work. The task which I have come to accomplish. To establish a new world. So, a mother is required to accomplish that task, is she not? Yes.
So, Parambrahm (Someone said something.) Should Parvati be said so? Achcha? Did He enter in Parvati? So, He should enter Parvati. Arey? Why did He enter in a man? Hm? (Someone said something.) Did He enter in the permanent Chariot? What is this? Hm? (Someone said something.) Is he shown to have five heads? That is correct that he is shown to have five heads, but will there be a seniormost head among the five heads or not? Or will everyone be numberwise, similar? Hm? Who is the eldest? Hm? The permanent Chariot. So, does He fix two persons? Or does He fix one and makes others as temporary? Hm? Brother, namesake government to extract work. For example, there is today’s government, isn’t it? What kind of government is it? They establish working (kaam-chalaau) government. It is not a firm government. So, who is firm? Is the permanent Chariot one or two-four? One. So, the permanent Chariot is a male body. So, He is called Almighty, isn’t He? Is it not? So, can’t He transform a male to female? Hm? Arey, this is the specialty of ShivBaba, isn’t it? He transforms a female to male and male to female. Dada Lekhraj was a male, wasn’t he? What did He make him? Hm? He made him a female, didn’t He? Hm? He made him Brahma. Similarly, however, he is a child of Shiv with four heads who looks in four directions; Brahma Dada Lekhraj with four heads. But is there any mother higher than him? He is the upwards facing Brahma, who is called Panchanan (five-headed Brahma). The fifth head. So, the fifth head who was named Parambrahm.
So, is Parvati that Parambrahm? (Someone said something.) Is he? Achcha? How? So, are there two Parambrahms? (Someone said something.) Is it one? With whom all does four-headed Brahma unite? Hm? The four-headed Brahma in practical; Why do you scratch your ears? With whom does he unite? Which are the four souls? Hm? One is Dada Lekhraj. Second? Hm? Yes, Jagdamba. Third? Third is Lakshmi. Should you write Lakshmi or Parvati? Hm? Lakshmi or Parvati? Parvati. It means that the one who is Lakshmi is Parvati. And? Om Radhey Saraswati. She is, isn’t she? He unites these four souls. He does; doesn’t he? Or does he unite Parambrahm also? Hm? So, you are telling that Parvati herself is Parambrahm? Arey, speak up. (Someone said something.) Is Parvati number one? Achcha? So, He should come in the number one mother, shouldn’t He? Shiva? That above one is the number one. So, when the above one is the number one Supreme Father, then will He come in the number one mother or in the number two mother? In which one? Hm? Tell brother. (Someone said something.) Prajapita. So, will Prajapita be called Parvati? Yes? Is Prajapita Parvati? How will you recognize whether he is Parvati (feminine) or Parvata (masculine)? Hm? Speak up.
(Someone said something.) You all are Parvatis. Who said? (Someone said something.) Above? Does He have a mouth? Hm? In whom did He enter and say? Arey, the one in whom He entered and said is the senior mother, isn’t she? The one in whom He enters; so, the one who enters is the husband or the Father; so, the one in whom the Supreme Father entered first of all in a permanent manner happens to be the Parambrahm mother. Or is it mother Parvati? Will she enable the entire world to sail across? Hm? (Someone said something.) No? So, then how is she Parvati? The name of the number one [Parvati] should be mentioned. He catches the number two. You have developed the sanskar of performing number two tasks. Hm? Arey, who is she? Tell the name of the number one Parvati. (Someone said something.) Lakshmi? Hm? Your intellect goes entirely into the body only. Hm? [Baba said on behalf of the brother] Arey, I am a Kumar (unmarried man), am I not? Is it not? Arey, you all are Parvatis. You all. Does it mean the one sitting in the front or is it that one also who is not in the front? Hm? Yes, ‘you all are Parvatis’ means that those who are sitting in the front, all those; What is meant by ‘you all’? Those who are the seed-form souls of the entire world. When they are the seeds of the entire world, then the souls of all the religions of the entire world emerge from the seeds, don’t they? Arey, speak up. They emerge from the seeds, don’t they? So, the entire world is contained in them, in the seeds, are they not? Yes. So, this is why it was told that the entire world is contained in the seeds. The deity souls also, the demoniac souls also, the sages and saints, the human souls also, the living beings also are contained.
So, it was told – You all are Parvatis. So, tell, among them the one who is the Father of the human world, is he a Parvati or not? Hm? So, now there are two Parvatis. Hm? (Someone said something.) Is there no topic of dehi? What? Through the body (deh)? Is there no topic through the body? Is it so? Is there no such topic? How is there no topic? Hm? (Someone said something.) Yours, yours; what yours? Hm? Whatever is yours is applicable to Lakshmi-Narayan. Hm? Applicable to which topic? You all are Parvatis who enable others to sail across; so, was it said for all the bhogi (pleasure-seeking) souls or was anyone left out? Hm? Is there any soul which was left out? You all are Parvatis. It means that all of you are the ones who enable others to sail across. What? I am akarta (non-doer). I don’t do anything. Does He do? Does He perform the task of enabling others to sail across? No. You all are Parvatis. So, are all the souls among ‘you all Parvatis’ bhogi souls or is there any abhogi, abhokta (non-pleasure-seeker) soul already? Hm? Arey, speak up. All are bhogis, aren’t they? So, is there any Father of all those bhogis or not? Or are all of them Brahmakumaris? They say that we don’t have any Father at all? If we have any Father it is our mother Parvati, the one with a female body. Speak up fast. He starts writing all the stories of the scriptures of the world. Hm?
(Someone said something.) There is no such topic which is not applicable to you. It means that are all the topics applicable to the female bodied Parvati? Arey? Hm? Are all the topics applicable to the female bodied Parvati? They don’t apply; do they? Hm? So, on whom do they apply? Who is the number one Parvati? (Someone said something.) Yes, what does He transform the male bodied permanent Chariot holder from a male to what in order to extract His task? What? Yes, He makes her a mother, the seniormost mother, Parambrahm. He makes him, doesn’t He? So, he is a male also. But what does He make him through nature and sanskars? The seniormost mother. The one with what kind of nature and sanskars? The one with what kind of nature and sanskars? The one with the power of tolerance. The one with the power of cooperation. When does one get cooperation? Hm? Yes, one gets cooperation only when one has the power of tolerance. Otherwise, how will one get cooperation? If you do not tolerate each other; For example, Baba has said that one should tolerate in a family. Hm? So, those who belong to our family, to our religion, the children of those religions should tolerate, shouldn’t they? So, if someone has the virtue of tolerance, then is he/she a mother or not? So, the one in whom He enters, what does He make him first? What is the name that He gives? Mother, Brahma. The biggest mother, isn’t she?
So, that biggest mother, Prajapita, whom He has come to make Parambrahm, the biggest mother first of all; what? Come child, you, you have a lot of consciousness of the male body, don’t you? Baba says – What are all the men in this world? They are Duryodhans and Dushasans. So, what are you now as long as you have the consciousness of the male body? What are you? Are you Duryodhan-Dushasan or not? Yes. So, will Duryodhan-Dushasan have the power of tolerance? He will not have. So, it was told that the male body in which I enter, what do I make him? Yes, I make him the one with the nature and sanskars of a female body. This is why even the name that I give him; as is the task performed, so is the name. So, when I have to extract the work of a mother, then the name that I assign is also ‘mother’. What kind of mother? The seniormost mother among the mothers or the middle one or the younger one or the topmost one? Which mother? Hm? The seniormost mother, isn’t it? Arey, speak up. Yes, the seniormost mother.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2905, दिनांक 08.06.2019
VCD 2905, dated 08.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2905-Bilingual
समय- 00.01-34.10
Time- 00.01-34.10
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को पहले पेज के मध्यादि में बात चल रही थी – जिनको विश्व का मालिक बनना है तो बुद्धि तो चाहिए जरूर। फिर ये अपनी बुद्धि को देखो तो कि पहले हम कुछ जानते थे? न रचयिता को, न उनकी रचना के आदि, मध्य, अंत को जानते थे। कुछ भी नहीं जानते थे। तो फिर उनको क्या कहेंगे? समझदार या बेसमझ? तो बाप आकरके समझाते हैं बच्चों को। देखो, अभी तुमको कितनी लिफ्ट मिलती है! ये लिफ्ट है ना बच्चे। और इसको कहा जाता है रूहानी लिफ्ट। तो रूहानी लिफ्ट का ड्राइवर भी तो लिफ्टमैन चाहिए ना? तो देखो कितनी अच्छी लिफ्ट देते हैं! चले जाते हैं, चले आते हैं। ऊपर से चले आते हैं ना देखो पार निर्वाणधाम में। तो ये जो जैसे ये लिफ्ट है। चढ़ती कला कहो या लिफ्ट कहो। तो देखो बच्चों को ये सभी बातें सुनकरके बड़ा उमंग आना चाहिए, रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। बड़ी खुशी होनी चाहिए कि बाबा ऊपर से आया हुआ है। और हम सबको ऊपर में ही ले जाएंगे। और ये लिफ्ट तो बड़ी वंडरफुल है। लिफ्ट कोई बनावट है, कोई चीज़ है, देखने में आती है? हँ? स्वयं आत्मा एकदम ऊपर उड़ती है। है ना? खुद ही लिफ्ट जैसी बन जाते हैं तो नीचे आकरके, नीचे आकरके गिरे। तो देखो, एकदम ऊपर में चला जाता है। तो देखो गिरना और चढ़ना, चढ़ना और गिरना। अब बुद्धि में तो है ना सभी बातें।
तो देखो बाबा अभी रिफ्रेश करते हैं। और सबको लिखते हैं कि बच्चे आयकरके मधुबन में रिफ्रेश होकर जाते हैं। यहाँ विश्राम भी पाते हैं, रिफ्रेश भी होते हैं। तो ये तो जानते हो कि बरोबर हम यहाँ आते हैं। नई-नई बातें सुनते हैं। तुम बाबा से जो बातें सुनते हो बड़ी मीठी लगती हैं। अरे, क्यों नहीं मीठी लगेंगी? वहाँ हमको लिफ्ट मिलती है। हम एकदम ऊपर में चले जाते हैं स्वीट होम, साइलेन्स होम, निर्वाण धाम। तो दुनिया में तो कोई भी ये लिफ्ट दे नहीं सकता है। कोई ऐसा है मनुष्य मात्र जो कोई किसको इतनी बड़ी लिफ्ट देवे? तो बाप बैठकरके समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चों को कि लिफ्ट उड़ते तो आप ही तो हैं ना। तो बाबा युक्ति बताते हैं कि तुम, तुम आकरके तुम ही नीचे उतरे हो और हो तुम वहां के रहने वाले। कहां शांत में रहने वाले और कहां सुख में रहने वाले और फिर कहां ये दुख भी देखो। है ना? अभी तो सेकण्ड में याद करना पड़ता है। नहीं तो ये तो समझते हो कि दुख-सुखधाम भई कितना समय चला। सतयुग, त्रेता, अंगे-अखरे, तिथि-तारीख सहित, विद फैक्ट्स एंड फिगर्स, प्रूफ प्रमाण एंड इलस्ट्रेशन, चित्रों सहित। इसके ऊपर बाप बैठकरके समझाते हैं बच्चों को।
और बाप तो एक ही बाप है ना। बाप बहुत तो नहीं हैं। व्यक्तित्व एक ही है ना। बहुत बाप बहुत होते हैं बहुत बच्चों को अलग-अलग बाप। दुनिया में तो होते हैं ना। ये तो ठीक है। अनेक बच्चे और अनेक बाप। और ये है अनेक बच्चे और एक बाप। तो फर्क तो भासता है ना। ये तो अच्छा है ना बच्चे कि एक बाप को ही तो भगवान कहा जाता है। भगवान कोई अनेक तो नहीं हैं। प्रभु कहा जाता है, ईश्वर कहा जाता है।
28.11.1967 का प्रातः क्लास, दूसरा पेज, मंगलवार। तो एक बाप के पास, देखो, बाप पढ़ाते भी हैं, कैसे बैठकरके बच्चों को पढ़ाते हैं। अभी कोई ये लिफ्ट तो कहो तो कोई लिफ्ट-विफ्ट तो है ही नहीं ना। भई हम ही अपना आपे ही लिफ्ट बन जाते हैं। बाप कहते हैं मामेकम याद करो। मामेकम याद करते रहो, करते रहो, तहां तक कि प्योर बन जाओ। प्योर बनकरके फिर सब उड़ जाएंगे। जब तलक प्योर नहीं बने हो तब तलक तो उड़ नहीं सकते हो। पीछे जरूर प्योर बनकरके उड़ेंगे। अभी कोई डिफिकल्टी तो नहीं है ना बच्ची। और इसमें कोई डिफिकल्टी की तो बात ही नहीं है। हँ? देखने में आता है। इसलिए इनको सहज भी समझाया जाता है। ये है बहुत सहज। देखो, कहते भी रहते हैं बच्चों कितना सहज है। आत्मा तो तुम समझते हो अपन को। जानते हो बिल्कुल अच्छी तरह से कि वो बैठे भी उनके साथ हो। समझा भी तो हुआ है उसके शरीर में बाप बैठे हैं। हँ? वो खुद कहते हैं। कि इसमें जिसमें जिस जिसम में मैं बैठा हूँ या जिस प्रकृति का, देह का आधार लिया है मैंने, उनका तुमको पूरा अच्छी तरह से समझाया है ना। फिर विचार करो मैं कोई और शरीर में बैठ, बैठ सकता हूँ क्या? आ सकता हूँ? भई, जो पहले आया सो पिछाड़ी में भी। क्या मतलब? हँ? पहले कौन आया? शरीर में आते हैं तो, किसी के पुतले में आते हैं तो पहले किसमें आया? पहले जिसमें आया तो उसमें पिछाड़ी भी आया। फिर पहले जो पिछाड़ी में हो सो ही पहले आएगा। तो हिसाब भी तो बिल्कुल पूरा है। कोई गड़बड़ तो नहीं है ना। नहीं। तो अगर कोई कहे कि भई ये लाखों वरष है तो हिसाब भी नहीं निकाल सकते। क्या करेंगे? या समझो कोई भला कहते हैं लाख बरस तो क्या करें?
अभी तो कहते हो नाइनटीन। हँ? भई कितना कहते हो? नाइनटीन सिक्स्टी। सिक्स्टी नाइन। न नाइनटीन नाइन्टी सिक्स। हाँ, भई। किसी ने कहा – फिफ्टी सेवन। नाइनटीन फिफ्टी सेवन। किसी ने कहा – सिक्स्टी। अच्छा। कुछ भी। नाइनटीन सिक्स्टी फाइव या कुछ भी कहते हो। अच्छा, समझो कि ये कहते हैं कि लाखों बरस। तो भला अगर लाखों बरस सतयुग को ये हो गया, उनको क्या कहेंगे? भई, फोर थाउसेंड नाइन हंड्रेड नाइन्टी फोर संवत। अभी सभी ये किसको याद ही नहीं है। वो संवत कैसा लिखेगा? तो लिखेगा कोई ऐसा वंडरफुल संवत? यहाँ तो नाइनटीन भई फलाने का संवत। नाइनटीन। विक्रम संवत। पता नहीं ये 16,17 हज़ार लिखा या 1700 लिखते हैं। किसी ने कहा – टू, टू थाउसेंड। चलो टू, टू थाउसेंड। तो ये संवत कहां से आएगा इतना लंबा-चौड़ा? सो भी लाखों एड करेंगे तो कितना लाख? ये संवत ही नहीं डाल सकते हो। बस। ये नाइन हंड्रेड नाइनटी फाइव। फोर या टू। और जितना भी होवे। ये तो सहज है ना। बस। इनसे और जास्ती क्या संवत लिखेंगे? परन्तु वो भी तो किसी को मालूम नहीं है ना। ये संवत। किसको भी नहीं मालूम। और इन्होंने तो लाखों कर दिया है। कितना बहुत मुंझारा डाल दिया है। क्या? हँ?
तो बाप आकरके कितना सहज समझाते हैं। वो इस बात में निश्चय तो है ना कि बरोबर बहुत सहज समझाते हैं। क्योंकि ये तो सारी रैयत के लिए है ना समझानी। अरे, सारी-सारी वर्ल्ड के लिए है ना। बाप कहते हैं ना ये अखबार में भी तो छपेंगे ना। तो यही जाएगा फाइव थाउसेंड इयर्स। कोई जास्ती तो जाएगा नहीं। और फिर जो पंडित विद्वान होंगे वो जो कहते हैं लाखों-लाखों वरष कलियुग-सतयुग। फिर लाखों बरस ये कलियुग को आकरके फोर्टी थाउसेंड कहते हैं। सो भी अभी शुरू हुआ है कि कलियुग को चालीस हज़ार वर्ष पड़े हैं। ऐसे बोलते हैं। कलियुग अभी रेगड़ी पहनते हैं, बच्चा है। तो देखो घोर अंधियारे में हैं ना। अभी यहाँ सामने आग लगी खड़ी है। तो गाया हुआ है ना बरोबर जब भंभोर को आग लगती है, अभी भंभोर को। और ये अर्थ तो समझते हैं ना। भंभोर माना ही दुनिया को। बाप ने समझाया है कि रावण का राज्य कोई लंका में थोड़ेही था। न कोई लंका में है। या कि यहाँ भारत में थोड़ेही है। नहीं। लंका का राज्य सारे भंभोर, सारे वर्ल्ड में लंका का राज्य है। बाबा ने समझाया ये तो ये जो आयरलैंड, आइलैंड है ना बड़ा ये सारी सृष्टि आइलैंड, तो ये सारी सृष्टि किसके ऊपर खड़ी है? तो कोलंबो को भी बाहर खड़ा करते हैं। छोटा बना करके खड़ा करते हैं।
तो बाप बैठकरके समझाते हैं कि मीठे-मीठे बच्चों को कि जो भी शास्त्रों वगैरा में है कभी भी वो तुम बच्चों से पूछते हैं, अरे भई, तुम शास्त्रों को नहीं मानते हो क्या? गीता को नहीं मानते हो? बोलो, वाह हम तो गीता को पता है हम कितना गीता को पढ़ा है! अरे, हम द्वापर से लेकरके गीता पढ़े हैं। क्योंकि तुमको मालूम है ना अच्छी तरह से तो तुमने सबसे जास्ती, हँ, भक्ति की है। 28.11.1967 की प्रातः क्लास का तीसरा पेज, तीसरी लाइन। तो उनको बोलो वाह, तुम कभी गीता पढ़ी है? तुम तो अभी गीता को पढ़ते। हमने गीता को पढ़ा ना? कितना बरस पढा! हम 2500 वर्ष पढ़ा गीता। है ना? और तुमको तो याद भी नहीं है कि हमने इतनी गीता पढ़ी है। अभी जबकि ज्ञान, भक्ति। अभी भक्ति में है गीता पढ़ना। फिर जब ज्ञान मिला गीता का और वो ज्ञान बाप ने आकरके दिया। उस ज्ञान से सद्गति हो गई। कि ढ़ाई हज़ार वर्ष से गीता पढ़ी उससे सद्गति हुई? फिर ये भक्ति कहाँ की आएगी?
देखो, ये सब बातें ध्यान में रखनी है समझाने के लिए ऐन वक्त में। ये बड़ी अच्छी प्वाइंट्स हैं समझाने के लिए। एक तो समझाना। अभी तुम समझेंगे कि फिर सिर्फ समझाने से काम होता है। ऐसी बात नहीं है। बिल्कुल नहीं। अरे, सिर्फ समझाने से काम होता है तो ये योग कहां जाएगा? तो समझानी पहले चाहिए या योग पहले चाहिए? हँ? उनको कब समझ में आएगा? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) समझानी पहले चाहिए या बिना योग के? तो उनको समझ में ही नहीं आएगा। क्योंकि समझाने वाला है कौन? तुम हो समझाने वाले जो समझानी पहले चाहिए? हँ? समझाने वाले को याद करेंगे, हँ, तो पहले याद तो चाहिए ना बच्चे। तो बाबा कहते हैं ना योग में रहकरके वो नशे में रहकरके समझाओ। समझा ना? और-और फिर तुम वाणी चलाएंगे तो तुम्हारे इस ज्ञान तलवार में जौहर भरेगा योग का क्योंकि ताकत सारी कौनसी है? हँ? ताकत तो सारी योग की है ना। अरे, बाप है ही सर्वशक्तिवान। तो बाप से ताकत मिलती है ना बच्चे कि तुम्हारी समझानी से ताकत मिलती है? हँ? और कोई को भी सर्वशक्तिवान, अरे, बैरिस्टर पढ़ाने वाले को सर्वशक्तिवान कहा जाता है क्या? एलएलबी या वो एमबीबीएस, डॉक्टरी पढ़ने वाले को सर्वशक्तिवान कहा जाता है क्या? सर्वशक्तिवान, सर्व माना सारी दुनिया में सबसे शक्तिवान। तो शक्तिवान। बाकि ये कोई पहलवानी की तो बात ही नहीं है। हँ? कोई कुश्ती तो नहीं है ना। ये तो कुछ नहीं है।
तो शक्ति किसको कहा जाता है? हँ? ये शक्ति के बारे में कोई भारतवासी जानते हैं क्या? हँ, कि उन भगवान को क्यों सर्वशक्तिवान कहते हैं? क्योंकि उनको अनुभव नहीं है ना बच्ची। प्रैक्टिकल में अनुभव नहीं है तो समझाय कैसे सकेंगे? तुम बच्चों को अनुभव है कि बरोबर शिवबाबा सर्वशक्तिवान है। हाँ, ये भी हम जान गए हैं कि ये माया भी कुछ कमती नहीं है। हँ? माया भी शक्तिवान है। सर्व क्यों नहीं लगाया? हँ? क्यों नहीं लगाया? क्योंकि उन्होंने माया को तो थोड़ा ही टाइम दे दिया है ना। बाकि सतयुग, त्रेता को बहुत टाइम दे दिया है। लाखों वरष। इसलिए वो समझते हैं कि वो सर्वशक्तिवान है। नहीं।
तुम बच्चों को तो देखो जरी-जरी ये ड्रामा, बेहद के ड्रामा का जो भी एक्टिविटी है, हँ, फिर भी तो इतना बड़ा झाड है ना। जैसे बाप कहते हैं झाड़ को कि किसको बैठकरके कहो कि भई ये झाड़ के पत्ते तो गिनती करके दिखाओ। गिनती करो। ये बड़ का झाड़ है। जाओ, कलकत्ते में जाओ। मिसाल जो देते हैं ना कलकत्ते में बनियन ट्री तो कलकत्ते में जाओ। जाओ बड़ के झाड़ के पत्ते गिनकरके आकरके दिखलाओ। हँ? कोई करेगा बच्ची? कभी नहीं कर सकते हैं। तो ऐसे बाप कहते हैं कि ये, ये सब इतना सब जानने से क्या फायदा है? हँ? कि दुनिया के 500-700 करोड़ मनुष्य आत्माओं रूपी ये पत्ते बैठकरके गिनो। तुम्हारा काम किस बात से है? अरे, बात तो ये है कि बाबा हम पतित बन गए हैं। हमको पावन बनाओ। और बुद्धि भी ऐसे ही कहती है कि हम बरोबर विशियस बन गए हैं। हमको वाइसलैस बनाओ। और ये बात है ना सच्ची। अभी ये जो अक्षर बाबा कहते हैं कि हम विशियस हैं, हमको वाइसलैस बनाओ। कभी भी कोई नहीं कहेगा। ये तो बाप ने आकरके बुद्धि में समझाया है कि तुम विशियस हो। हँ? और ये देवताएं वाइसलैस हैं। तो तुमको अभी ऐसा बनने का है। नहीं तो विशियस और वाइसलैस का अर्थ भी कोई मनुष्य नहीं समझते हैं। मनुष्य थोड़ेही हैं? कौन कहते हैं तुम मनुष्य हैं? हँ? मनुष्य नहीं हैं? क्यों? हँ? अरे, इन बातों पर विचार चलाते हैं क्या?
अरे, भगवानुवाच है ये जंगली जानवर हैं। बंदर हैं। आसुरी संप्रदाय हैं। कहेंगे ये हिरण्यकश्यप। हँ? हिरण्याक्ष हैं। तो ऐसे तो कहा है ना बच्चे शास्त्रों में कि वो दुःशासन हैं। सभी दुःशासन हैं। और ये सभी द्रौपदियां ही हैं। तो बाप तो ऐसे कहते हैं ना देखो। परन्तु फिर सतयुग में तो ये नाम नहीं होते हैं ना। कोई ये भी नाम होते हैं क्या? आसुरी संप्रदाय के नाम सतयुग में होते ही नहीं हैं। बिल्कुल ही नहीं होते हैं। तो अभी ये कहां से आ गए? कहां से आ गए? तो देखो – ये कृष्ण को दे दिया है वो सुदर्शन चक्र। हँ? सबके गले काटता जाता है। सबको मारता जाता है। कहाँ स्वदर्शन चक्र से मारता, मारता रहता है। हँ? और कहां बैठकरके वो गइयां चराते रहते ! हँ? कहां वो गाली खाते रहते! तो ये सभी बातें बच्चों को समझानी पड़े। ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the first page on Tuesday was – Those who want to become the masters of the world definitely require intellect. Then look at your intellect as to whether we knew anything earlier? We neither knew the Creator nor the beginning, middle and the end of His creation. We knew nothing. So, then what will they be called? Intelligent or ignorant? So, the Father comes and explains to the children. Look, now you get so much lift! This is a lift, isn’t it children? And this is called spiritual lift. So, the driver of the spiritual lift, the lift man is also required, isn’t He? So, look, He gives such a nice lift! You go, you come. Look, you come from above, the nirvaandhaam (the abode of silence). So, this is like a lift. Call it a rising celestial degree or call it a lift. So, look, children should feel very enthusiastic, horripilate on listening to all these topics. You should feel very happy that Baba has come from above. And He will take us all above only. And this lift is very wonderful. Is the lift a creation, a thing? Is it visible? Hm? The soul itself flies completely up. Is it not? When you yourself become like a lift, then come down, come down and fall. So, look, it goes completely up. So, look, fall and rise, rise and fall. All the topics are in the intellect, are they not?
So, look, Baba now refreshes you. And He writes to everyone that children come and get refreshed in Madhuban and go. They get rest as well as get refreshed here. So, you know that we rightly come here. We listen to newer topics. The topics that you listen from Baba appear very sweet. Arey, why will they not appear sweet? There we get lift. We go completely up to the sweet home, silence home, nirvaandhaam (abode of silence). So, nobody can give this lift in the world. Is there any human being who could give such a big lift? So, the Father sits and explains to the sweet-sweet children that it is you alone who fly in the lift, don’t you? So, Baba narrates the tact that you, you alone have descended and you are residents of that place. On the one side are those who live in peace and those who live in happiness and then look at these sorrows. Is it not? Now you have to remember in a second. Otherwise, you understand as to how long the abode of sorrows and the abode of happiness continued brother. The Golden Age, the Silver Age, in figures and words, with day and date, with facts and figures, with proof and illustration, with pictures. The Father sits and explains to the children on this.
And the Father is only one Father, isn’t He? The Fathers are not many. The personality is only one, isn’t it? There are many fathers of many children, individual fathers. They exist in the world, don’t they? This is correct. Many children and many fathers. And these are many children and one Father. So, you understand the difference, don’t you? Children, it is nice that only one Father is called God. Gods are not many. He is called Prabhu, He is called Ishwar.
Morning class dated 28.11.1967, second page, Tuesday. So, one Father, look, the Father teaches as well; How He sits and teaches the children! Now call it a lift; it is not a lift at all, is it? Brother, we ourselves become lifts for ourselves. The Father says – Remember Me alone. Keep on, keep on remembering Me alone until you become pure. After becoming pure then you all will fly. Unless you become pure you cannot fly. Later you will definitely become pure and fly. Now there is no difficulty daughter; is there any? And there is no question of difficulty in this at all. Hm? It is observed. This is why it is explained easily. This is very easy. Look, He keeps on telling – Children, it is so easy. You consider yourselves to be souls. You know very nicely that you are sitting with Him. You have also understood that the Father is sitting in his body. Hm? He Himself says that this one, in whom I am sitting or the nature (prakriti), the body whose support I have taken, I have explained about him completely and nicely, haven’t I? Then just think that can I sit in any other body? Can I come? Brother, the one who came in the beginning is in the end also. What does it mean? Hm? Who came first? When He comes in a body, then He comes in someone’s effigy; so, in whom did He come first? The one in whom He came first, He came in him in the end also. Then the one who is in the end will only come first. So, the account is complete. There is no confusion, is it there? No. So, if anyone says that brother, this is lakhs of years then you cannot make calculations. What will you do? Or suppose someone says lakh years, then what should we do?
Now you say nineteen. Hm? Brother, how much do you say? Nineteen sixty. Sixty nine. No, nineteen ninety six. Yes, brother. Someone said – Fifty seven. Nineteen fifty seven. Someone said – Sixty. Achcha. Anything. Nineteen sixty five or whatever you say. Achcha, suppose they say lakhs of years. So, if the Golden Age was lakhs of years ago, then what will that be called? Brother, Era (samvat) four thousand nine hundred ninety four. Now nobody remembers all this at all. How will you write that Era? So, will anyone write such wonderful Era? Here, nineteen, brother, the Era of such and such person. Nineteen. Vikram Era. I don’t know if they wrote 16, 17 thousand or they write 1700. Someone said – Two, two thousand. Okay, two, two thousand. So, where will such a long and wide Era come from? That too, if you add lakhs, then how many lakhs? You cannot put this Era at all. That is it. This nine hundred ninety five. Four or two. And whatever it is. This is easy, isn’t it? That is it. What more Era will you write than this? But nobody knows that too, do they? This Era. Nobody knows. And these people have written lakhs of years. They have created such confusion. What? Hm?
So, the Father comes and explains in such an easy manner. You have faith in this topic that rightly He explains in a very easy manner. It is because this explanation is for all the public, isn’t it? Arey, it is for the entire, entire world, isn’t it? The Father says, doesn’t He that this will be published in the newspapers also, will it not be? So, it will be mentioned as five thousand years only. It will not go more than that. And then the pundits and scholars, who say lakhs, lakhs of years old Iron Age, Golden Age. Then lakhs of years, they say forty thousand for the Iron Age (Kaliyug). That too has started now that there are still forty thousand years left in the Iron Age. They say like this. The Iron Age is crawling now; it is a child. So, look, they are in complete darkness, aren’t they? Now here there is fire in front of you. So, it is sung rightly that when the world (bhambhor) is set on fire, now the world. And you understand its meaning, don’t you? Bhambhor itself means the world. The Father has explained that the kingdom of Ravan was not in Lanka. Neither is it in Lanka. Or that it is here in India. No. The kingdom of Lanka is in the entire bhambhor, entire world. Baba has explained that this Ireland, this is an island, isn’t it? This entire world is a big island; so, on what is this entire world standing? So, Colombo is also made to stand outside. They make it small and make it to stand.
So, the Father sits and explains the sweet, sweet children that whatever is mentioned in the scriptures, if ever they ask you children, arey brother, don’t you believe in the scriptures? Don’t you believe in the Gita? Tell them, wow, as regards the Gita, do you know to what extent we have studied the Gita! Arey, we have studied Gita from the Copper Age onwards. It is because you know nicely that you have done the maximum Bhakti. Third page, third line of the Morning Class dated 28.11.1967. So, tell them, wow, have you ever read the Gita? You study the Gita just now. We have studied the Gita, haven’t we? We studied for so many years! We studied the Gita for 2500 years. Is it not? And you do not even remember that we have studied the Gita so much. Now while knowledge, Bhakti. Well, Bhakti involves reading the Gita. Then, when we have received knowledge of the Gita and the Father came and gave that knowledge. That knowledge caused sadgati (true salvation). Or did you achieve sadgati by reading the Gita since 2500 years? Then where will this Bhakti come from?
Look, all these topics are to be kept in the mind in order to explain at the opportune moment. These are very nice points to explain. One is to explain. Now you will understand that the task is accomplished just by explaining. It is not so. Not at all. Arey, if the task is completed just by explaining, then where will this Yoga go? So, is the explanation required first or is Yoga required first? Hm? When will they understand? Hm? (Someone said something.) Is the explanation required first or is it without Yoga? Then they will not understand at all. It is because who the one who explains is? Are you the ones who explain whatever is to be explained first? Hm? If you remember the one who explains, then, first remembrance is required children, isn’t it? So, Baba says, doesn’t He that explain while being in Yoga and in intoxication. You have understood, haven’t you? And, and then if you speak, then there will be the sharpness of Yoga in the sword of this knowledge because which is the entire strength? Hm? The entire strength is of Yoga, isn’t it? Arey, the Father is Almighty. So, children, you get power from the Father or do you get the strength from your explanation? Hm? And is anyone called Almighty, arey, is the one who teaches a Barrister called Almighty? Is the one who studies LLB or that MBBS, doctors’ course called Almighty? Almighty, ‘all’ means strongest in the entire world. So, mighty. As such this is not a topic of wrestling at all. Hm? It is not wrestling; is it? This is nothing.
So, what is called strength? Hm? Do any residents of India know about this power? Hm, that why is that God called Almighty? It is because they do not have experience daughter; do they have? If they do not have experience in practical, then how can they explain? You children have the experience that rightly ShivBaba is Almighty (sarvashaktivaan). Yes, we have also come to know that this Maya is no less. Hm? Maya is also mighty (shaktivaan). Why was all (sarva) not added? Hm? Why wasn’t it added? It is because they have given Maya very little time, haven’t they? But they have given a lot of time to the Golden Age, the Silver Age. Lakhs of years. This is why they think that He is Almighty. No.
Look, you children, little, little, this drama, the activity of this unlimited drama, however it is such a big tree, isn’t it? For example, the Father says about the Tree that if you sit and tell anyone that brother, just count the number of leaves of this tree and tell. Count them. This is a Banyan tree. Go; go to Calcutta. An example is given about the Banyan tree in Calcutta; so, go to Calcutta. Go and count the number of leaves of the Banyan tree and come and show. Hm? Will anyone do daughter? They can never do. So, similarly, the Father says that what is the use of knowing this, all this? Hm? That sit and count the leaf-like 500-700 crore human souls of the world. Your task is related to which topic? Arey, the topic is that Baba, we have become sinful. Make us pure. And the intellect also tells like this only that we have rightly become vicious. Make us viceless. Nobody will ever say. And this topic is true, isn’t it? Now these words which Baba says that we are vicious, make us viceless, nobody will ever say. It is the Father who has come and explained to our intellect that you are vicious. Hm? And these deities are viceless. So, you have to now become like this. Otherwise, human beings do not understand the meaning of vicous and viceless. Are they human beings? Who says that you are human beings? Hm? Are you not human beings? Why? Hm? Arey, do you think about these topics?
Arey, God says that these are wild animals. They are monkeys. They belong to the demoniac community. It will be said that these are Hiranyakashyaps. Hm? They are Hiranyakshs. So, children it has been said like this in the scriptures that they are Dushasans. All are Dushasans. And all these are Draupadis only. So, look, the Father says like this, doesn’t He? But then these names do not exist in the Golden Age; do they? Do these names also exist? The names of the demoniac community do not exist in the Golden Age at all. They do not exist at all. So, where did these emerge from now? Where did they emerge from? So, look – That Sudarshan Chakra has been given to Krishna. Hm? He goes on cutting everyone’s head. He goes on killing everyone. On the one hand He keeps on killing with the Swadarshan Chakra. Hm? And on the other hand he sits and takes the cattle for grazing. Hm? On the other hand he keeps on suffering abuses. So, children have to explain all these topics. Om Shanti. (End)
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2905, दिनांक 08.06.2019
VCD 2905, dated 08.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2905-Bilingual
समय- 00.01-34.10
Time- 00.01-34.10
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को पहले पेज के मध्यादि में बात चल रही थी – जिनको विश्व का मालिक बनना है तो बुद्धि तो चाहिए जरूर। फिर ये अपनी बुद्धि को देखो तो कि पहले हम कुछ जानते थे? न रचयिता को, न उनकी रचना के आदि, मध्य, अंत को जानते थे। कुछ भी नहीं जानते थे। तो फिर उनको क्या कहेंगे? समझदार या बेसमझ? तो बाप आकरके समझाते हैं बच्चों को। देखो, अभी तुमको कितनी लिफ्ट मिलती है! ये लिफ्ट है ना बच्चे। और इसको कहा जाता है रूहानी लिफ्ट। तो रूहानी लिफ्ट का ड्राइवर भी तो लिफ्टमैन चाहिए ना? तो देखो कितनी अच्छी लिफ्ट देते हैं! चले जाते हैं, चले आते हैं। ऊपर से चले आते हैं ना देखो पार निर्वाणधाम में। तो ये जो जैसे ये लिफ्ट है। चढ़ती कला कहो या लिफ्ट कहो। तो देखो बच्चों को ये सभी बातें सुनकरके बड़ा उमंग आना चाहिए, रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। बड़ी खुशी होनी चाहिए कि बाबा ऊपर से आया हुआ है। और हम सबको ऊपर में ही ले जाएंगे। और ये लिफ्ट तो बड़ी वंडरफुल है। लिफ्ट कोई बनावट है, कोई चीज़ है, देखने में आती है? हँ? स्वयं आत्मा एकदम ऊपर उड़ती है। है ना? खुद ही लिफ्ट जैसी बन जाते हैं तो नीचे आकरके, नीचे आकरके गिरे। तो देखो, एकदम ऊपर में चला जाता है। तो देखो गिरना और चढ़ना, चढ़ना और गिरना। अब बुद्धि में तो है ना सभी बातें।
तो देखो बाबा अभी रिफ्रेश करते हैं। और सबको लिखते हैं कि बच्चे आयकरके मधुबन में रिफ्रेश होकर जाते हैं। यहाँ विश्राम भी पाते हैं, रिफ्रेश भी होते हैं। तो ये तो जानते हो कि बरोबर हम यहाँ आते हैं। नई-नई बातें सुनते हैं। तुम बाबा से जो बातें सुनते हो बड़ी मीठी लगती हैं। अरे, क्यों नहीं मीठी लगेंगी? वहाँ हमको लिफ्ट मिलती है। हम एकदम ऊपर में चले जाते हैं स्वीट होम, साइलेन्स होम, निर्वाण धाम। तो दुनिया में तो कोई भी ये लिफ्ट दे नहीं सकता है। कोई ऐसा है मनुष्य मात्र जो कोई किसको इतनी बड़ी लिफ्ट देवे? तो बाप बैठकरके समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चों को कि लिफ्ट उड़ते तो आप ही तो हैं ना। तो बाबा युक्ति बताते हैं कि तुम, तुम आकरके तुम ही नीचे उतरे हो और हो तुम वहां के रहने वाले। कहां शांत में रहने वाले और कहां सुख में रहने वाले और फिर कहां ये दुख भी देखो। है ना? अभी तो सेकण्ड में याद करना पड़ता है। नहीं तो ये तो समझते हो कि दुख-सुखधाम भई कितना समय चला। सतयुग, त्रेता, अंगे-अखरे, तिथि-तारीख सहित, विद फैक्ट्स एंड फिगर्स, प्रूफ प्रमाण एंड इलस्ट्रेशन, चित्रों सहित। इसके ऊपर बाप बैठकरके समझाते हैं बच्चों को।
और बाप तो एक ही बाप है ना। बाप बहुत तो नहीं हैं। व्यक्तित्व एक ही है ना। बहुत बाप बहुत होते हैं बहुत बच्चों को अलग-अलग बाप। दुनिया में तो होते हैं ना। ये तो ठीक है। अनेक बच्चे और अनेक बाप। और ये है अनेक बच्चे और एक बाप। तो फर्क तो भासता है ना। ये तो अच्छा है ना बच्चे कि एक बाप को ही तो भगवान कहा जाता है। भगवान कोई अनेक तो नहीं हैं। प्रभु कहा जाता है, ईश्वर कहा जाता है।
28.11.1967 का प्रातः क्लास, दूसरा पेज, मंगलवार। तो एक बाप के पास, देखो, बाप पढ़ाते भी हैं, कैसे बैठकरके बच्चों को पढ़ाते हैं। अभी कोई ये लिफ्ट तो कहो तो कोई लिफ्ट-विफ्ट तो है ही नहीं ना। भई हम ही अपना आपे ही लिफ्ट बन जाते हैं। बाप कहते हैं मामेकम याद करो। मामेकम याद करते रहो, करते रहो, तहां तक कि प्योर बन जाओ। प्योर बनकरके फिर सब उड़ जाएंगे। जब तलक प्योर नहीं बने हो तब तलक तो उड़ नहीं सकते हो। पीछे जरूर प्योर बनकरके उड़ेंगे। अभी कोई डिफिकल्टी तो नहीं है ना बच्ची। और इसमें कोई डिफिकल्टी की तो बात ही नहीं है। हँ? देखने में आता है। इसलिए इनको सहज भी समझाया जाता है। ये है बहुत सहज। देखो, कहते भी रहते हैं बच्चों कितना सहज है। आत्मा तो तुम समझते हो अपन को। जानते हो बिल्कुल अच्छी तरह से कि वो बैठे भी उनके साथ हो। समझा भी तो हुआ है उसके शरीर में बाप बैठे हैं। हँ? वो खुद कहते हैं। कि इसमें जिसमें जिस जिसम में मैं बैठा हूँ या जिस प्रकृति का, देह का आधार लिया है मैंने, उनका तुमको पूरा अच्छी तरह से समझाया है ना। फिर विचार करो मैं कोई और शरीर में बैठ, बैठ सकता हूँ क्या? आ सकता हूँ? भई, जो पहले आया सो पिछाड़ी में भी। क्या मतलब? हँ? पहले कौन आया? शरीर में आते हैं तो, किसी के पुतले में आते हैं तो पहले किसमें आया? पहले जिसमें आया तो उसमें पिछाड़ी भी आया। फिर पहले जो पिछाड़ी में हो सो ही पहले आएगा। तो हिसाब भी तो बिल्कुल पूरा है। कोई गड़बड़ तो नहीं है ना। नहीं। तो अगर कोई कहे कि भई ये लाखों वरष है तो हिसाब भी नहीं निकाल सकते। क्या करेंगे? या समझो कोई भला कहते हैं लाख बरस तो क्या करें?
अभी तो कहते हो नाइनटीन। हँ? भई कितना कहते हो? नाइनटीन सिक्स्टी। सिक्स्टी नाइन। न नाइनटीन नाइन्टी सिक्स। हाँ, भई। किसी ने कहा – फिफ्टी सेवन। नाइनटीन फिफ्टी सेवन। किसी ने कहा – सिक्स्टी। अच्छा। कुछ भी। नाइनटीन सिक्स्टी फाइव या कुछ भी कहते हो। अच्छा, समझो कि ये कहते हैं कि लाखों बरस। तो भला अगर लाखों बरस सतयुग को ये हो गया, उनको क्या कहेंगे? भई, फोर थाउसेंड नाइन हंड्रेड नाइन्टी फोर संवत। अभी सभी ये किसको याद ही नहीं है। वो संवत कैसा लिखेगा? तो लिखेगा कोई ऐसा वंडरफुल संवत? यहाँ तो नाइनटीन भई फलाने का संवत। नाइनटीन। विक्रम संवत। पता नहीं ये 16,17 हज़ार लिखा या 1700 लिखते हैं। किसी ने कहा – टू, टू थाउसेंड। चलो टू, टू थाउसेंड। तो ये संवत कहां से आएगा इतना लंबा-चौड़ा? सो भी लाखों एड करेंगे तो कितना लाख? ये संवत ही नहीं डाल सकते हो। बस। ये नाइन हंड्रेड नाइनटी फाइव। फोर या टू। और जितना भी होवे। ये तो सहज है ना। बस। इनसे और जास्ती क्या संवत लिखेंगे? परन्तु वो भी तो किसी को मालूम नहीं है ना। ये संवत। किसको भी नहीं मालूम। और इन्होंने तो लाखों कर दिया है। कितना बहुत मुंझारा डाल दिया है। क्या? हँ?
तो बाप आकरके कितना सहज समझाते हैं। वो इस बात में निश्चय तो है ना कि बरोबर बहुत सहज समझाते हैं। क्योंकि ये तो सारी रैयत के लिए है ना समझानी। अरे, सारी-सारी वर्ल्ड के लिए है ना। बाप कहते हैं ना ये अखबार में भी तो छपेंगे ना। तो यही जाएगा फाइव थाउसेंड इयर्स। कोई जास्ती तो जाएगा नहीं। और फिर जो पंडित विद्वान होंगे वो जो कहते हैं लाखों-लाखों वरष कलियुग-सतयुग। फिर लाखों बरस ये कलियुग को आकरके फोर्टी थाउसेंड कहते हैं। सो भी अभी शुरू हुआ है कि कलियुग को चालीस हज़ार वर्ष पड़े हैं। ऐसे बोलते हैं। कलियुग अभी रेगड़ी पहनते हैं, बच्चा है। तो देखो घोर अंधियारे में हैं ना। अभी यहाँ सामने आग लगी खड़ी है। तो गाया हुआ है ना बरोबर जब भंभोर को आग लगती है, अभी भंभोर को। और ये अर्थ तो समझते हैं ना। भंभोर माना ही दुनिया को। बाप ने समझाया है कि रावण का राज्य कोई लंका में थोड़ेही था। न कोई लंका में है। या कि यहाँ भारत में थोड़ेही है। नहीं। लंका का राज्य सारे भंभोर, सारे वर्ल्ड में लंका का राज्य है। बाबा ने समझाया ये तो ये जो आयरलैंड, आइलैंड है ना बड़ा ये सारी सृष्टि आइलैंड, तो ये सारी सृष्टि किसके ऊपर खड़ी है? तो कोलंबो को भी बाहर खड़ा करते हैं। छोटा बना करके खड़ा करते हैं।
तो बाप बैठकरके समझाते हैं कि मीठे-मीठे बच्चों को कि जो भी शास्त्रों वगैरा में है कभी भी वो तुम बच्चों से पूछते हैं, अरे भई, तुम शास्त्रों को नहीं मानते हो क्या? गीता को नहीं मानते हो? बोलो, वाह हम तो गीता को पता है हम कितना गीता को पढ़ा है! अरे, हम द्वापर से लेकरके गीता पढ़े हैं। क्योंकि तुमको मालूम है ना अच्छी तरह से तो तुमने सबसे जास्ती, हँ, भक्ति की है। 28.11.1967 की प्रातः क्लास का तीसरा पेज, तीसरी लाइन। तो उनको बोलो वाह, तुम कभी गीता पढ़ी है? तुम तो अभी गीता को पढ़ते। हमने गीता को पढ़ा ना? कितना बरस पढा! हम 2500 वर्ष पढ़ा गीता। है ना? और तुमको तो याद भी नहीं है कि हमने इतनी गीता पढ़ी है। अभी जबकि ज्ञान, भक्ति। अभी भक्ति में है गीता पढ़ना। फिर जब ज्ञान मिला गीता का और वो ज्ञान बाप ने आकरके दिया। उस ज्ञान से सद्गति हो गई। कि ढ़ाई हज़ार वर्ष से गीता पढ़ी उससे सद्गति हुई? फिर ये भक्ति कहाँ की आएगी?
देखो, ये सब बातें ध्यान में रखनी है समझाने के लिए ऐन वक्त में। ये बड़ी अच्छी प्वाइंट्स हैं समझाने के लिए। एक तो समझाना। अभी तुम समझेंगे कि फिर सिर्फ समझाने से काम होता है। ऐसी बात नहीं है। बिल्कुल नहीं। अरे, सिर्फ समझाने से काम होता है तो ये योग कहां जाएगा? तो समझानी पहले चाहिए या योग पहले चाहिए? हँ? उनको कब समझ में आएगा? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) समझानी पहले चाहिए या बिना योग के? तो उनको समझ में ही नहीं आएगा। क्योंकि समझाने वाला है कौन? तुम हो समझाने वाले जो समझानी पहले चाहिए? हँ? समझाने वाले को याद करेंगे, हँ, तो पहले याद तो चाहिए ना बच्चे। तो बाबा कहते हैं ना योग में रहकरके वो नशे में रहकरके समझाओ। समझा ना? और-और फिर तुम वाणी चलाएंगे तो तुम्हारे इस ज्ञान तलवार में जौहर भरेगा योग का क्योंकि ताकत सारी कौनसी है? हँ? ताकत तो सारी योग की है ना। अरे, बाप है ही सर्वशक्तिवान। तो बाप से ताकत मिलती है ना बच्चे कि तुम्हारी समझानी से ताकत मिलती है? हँ? और कोई को भी सर्वशक्तिवान, अरे, बैरिस्टर पढ़ाने वाले को सर्वशक्तिवान कहा जाता है क्या? एलएलबी या वो एमबीबीएस, डॉक्टरी पढ़ने वाले को सर्वशक्तिवान कहा जाता है क्या? सर्वशक्तिवान, सर्व माना सारी दुनिया में सबसे शक्तिवान। तो शक्तिवान। बाकि ये कोई पहलवानी की तो बात ही नहीं है। हँ? कोई कुश्ती तो नहीं है ना। ये तो कुछ नहीं है।
तो शक्ति किसको कहा जाता है? हँ? ये शक्ति के बारे में कोई भारतवासी जानते हैं क्या? हँ, कि उन भगवान को क्यों सर्वशक्तिवान कहते हैं? क्योंकि उनको अनुभव नहीं है ना बच्ची। प्रैक्टिकल में अनुभव नहीं है तो समझाय कैसे सकेंगे? तुम बच्चों को अनुभव है कि बरोबर शिवबाबा सर्वशक्तिवान है। हाँ, ये भी हम जान गए हैं कि ये माया भी कुछ कमती नहीं है। हँ? माया भी शक्तिवान है। सर्व क्यों नहीं लगाया? हँ? क्यों नहीं लगाया? क्योंकि उन्होंने माया को तो थोड़ा ही टाइम दे दिया है ना। बाकि सतयुग, त्रेता को बहुत टाइम दे दिया है। लाखों वरष। इसलिए वो समझते हैं कि वो सर्वशक्तिवान है। नहीं।
तुम बच्चों को तो देखो जरी-जरी ये ड्रामा, बेहद के ड्रामा का जो भी एक्टिविटी है, हँ, फिर भी तो इतना बड़ा झाड है ना। जैसे बाप कहते हैं झाड़ को कि किसको बैठकरके कहो कि भई ये झाड़ के पत्ते तो गिनती करके दिखाओ। गिनती करो। ये बड़ का झाड़ है। जाओ, कलकत्ते में जाओ। मिसाल जो देते हैं ना कलकत्ते में बनियन ट्री तो कलकत्ते में जाओ। जाओ बड़ के झाड़ के पत्ते गिनकरके आकरके दिखलाओ। हँ? कोई करेगा बच्ची? कभी नहीं कर सकते हैं। तो ऐसे बाप कहते हैं कि ये, ये सब इतना सब जानने से क्या फायदा है? हँ? कि दुनिया के 500-700 करोड़ मनुष्य आत्माओं रूपी ये पत्ते बैठकरके गिनो। तुम्हारा काम किस बात से है? अरे, बात तो ये है कि बाबा हम पतित बन गए हैं। हमको पावन बनाओ। और बुद्धि भी ऐसे ही कहती है कि हम बरोबर विशियस बन गए हैं। हमको वाइसलैस बनाओ। और ये बात है ना सच्ची। अभी ये जो अक्षर बाबा कहते हैं कि हम विशियस हैं, हमको वाइसलैस बनाओ। कभी भी कोई नहीं कहेगा। ये तो बाप ने आकरके बुद्धि में समझाया है कि तुम विशियस हो। हँ? और ये देवताएं वाइसलैस हैं। तो तुमको अभी ऐसा बनने का है। नहीं तो विशियस और वाइसलैस का अर्थ भी कोई मनुष्य नहीं समझते हैं। मनुष्य थोड़ेही हैं? कौन कहते हैं तुम मनुष्य हैं? हँ? मनुष्य नहीं हैं? क्यों? हँ? अरे, इन बातों पर विचार चलाते हैं क्या?
अरे, भगवानुवाच है ये जंगली जानवर हैं। बंदर हैं। आसुरी संप्रदाय हैं। कहेंगे ये हिरण्यकश्यप। हँ? हिरण्याक्ष हैं। तो ऐसे तो कहा है ना बच्चे शास्त्रों में कि वो दुःशासन हैं। सभी दुःशासन हैं। और ये सभी द्रौपदियां ही हैं। तो बाप तो ऐसे कहते हैं ना देखो। परन्तु फिर सतयुग में तो ये नाम नहीं होते हैं ना। कोई ये भी नाम होते हैं क्या? आसुरी संप्रदाय के नाम सतयुग में होते ही नहीं हैं। बिल्कुल ही नहीं होते हैं। तो अभी ये कहां से आ गए? कहां से आ गए? तो देखो – ये कृष्ण को दे दिया है वो सुदर्शन चक्र। हँ? सबके गले काटता जाता है। सबको मारता जाता है। कहाँ स्वदर्शन चक्र से मारता, मारता रहता है। हँ? और कहां बैठकरके वो गइयां चराते रहते ! हँ? कहां वो गाली खाते रहते! तो ये सभी बातें बच्चों को समझानी पड़े। ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the first page on Tuesday was – Those who want to become the masters of the world definitely require intellect. Then look at your intellect as to whether we knew anything earlier? We neither knew the Creator nor the beginning, middle and the end of His creation. We knew nothing. So, then what will they be called? Intelligent or ignorant? So, the Father comes and explains to the children. Look, now you get so much lift! This is a lift, isn’t it children? And this is called spiritual lift. So, the driver of the spiritual lift, the lift man is also required, isn’t He? So, look, He gives such a nice lift! You go, you come. Look, you come from above, the nirvaandhaam (the abode of silence). So, this is like a lift. Call it a rising celestial degree or call it a lift. So, look, children should feel very enthusiastic, horripilate on listening to all these topics. You should feel very happy that Baba has come from above. And He will take us all above only. And this lift is very wonderful. Is the lift a creation, a thing? Is it visible? Hm? The soul itself flies completely up. Is it not? When you yourself become like a lift, then come down, come down and fall. So, look, it goes completely up. So, look, fall and rise, rise and fall. All the topics are in the intellect, are they not?
So, look, Baba now refreshes you. And He writes to everyone that children come and get refreshed in Madhuban and go. They get rest as well as get refreshed here. So, you know that we rightly come here. We listen to newer topics. The topics that you listen from Baba appear very sweet. Arey, why will they not appear sweet? There we get lift. We go completely up to the sweet home, silence home, nirvaandhaam (abode of silence). So, nobody can give this lift in the world. Is there any human being who could give such a big lift? So, the Father sits and explains to the sweet-sweet children that it is you alone who fly in the lift, don’t you? So, Baba narrates the tact that you, you alone have descended and you are residents of that place. On the one side are those who live in peace and those who live in happiness and then look at these sorrows. Is it not? Now you have to remember in a second. Otherwise, you understand as to how long the abode of sorrows and the abode of happiness continued brother. The Golden Age, the Silver Age, in figures and words, with day and date, with facts and figures, with proof and illustration, with pictures. The Father sits and explains to the children on this.
And the Father is only one Father, isn’t He? The Fathers are not many. The personality is only one, isn’t it? There are many fathers of many children, individual fathers. They exist in the world, don’t they? This is correct. Many children and many fathers. And these are many children and one Father. So, you understand the difference, don’t you? Children, it is nice that only one Father is called God. Gods are not many. He is called Prabhu, He is called Ishwar.
Morning class dated 28.11.1967, second page, Tuesday. So, one Father, look, the Father teaches as well; How He sits and teaches the children! Now call it a lift; it is not a lift at all, is it? Brother, we ourselves become lifts for ourselves. The Father says – Remember Me alone. Keep on, keep on remembering Me alone until you become pure. After becoming pure then you all will fly. Unless you become pure you cannot fly. Later you will definitely become pure and fly. Now there is no difficulty daughter; is there any? And there is no question of difficulty in this at all. Hm? It is observed. This is why it is explained easily. This is very easy. Look, He keeps on telling – Children, it is so easy. You consider yourselves to be souls. You know very nicely that you are sitting with Him. You have also understood that the Father is sitting in his body. Hm? He Himself says that this one, in whom I am sitting or the nature (prakriti), the body whose support I have taken, I have explained about him completely and nicely, haven’t I? Then just think that can I sit in any other body? Can I come? Brother, the one who came in the beginning is in the end also. What does it mean? Hm? Who came first? When He comes in a body, then He comes in someone’s effigy; so, in whom did He come first? The one in whom He came first, He came in him in the end also. Then the one who is in the end will only come first. So, the account is complete. There is no confusion, is it there? No. So, if anyone says that brother, this is lakhs of years then you cannot make calculations. What will you do? Or suppose someone says lakh years, then what should we do?
Now you say nineteen. Hm? Brother, how much do you say? Nineteen sixty. Sixty nine. No, nineteen ninety six. Yes, brother. Someone said – Fifty seven. Nineteen fifty seven. Someone said – Sixty. Achcha. Anything. Nineteen sixty five or whatever you say. Achcha, suppose they say lakhs of years. So, if the Golden Age was lakhs of years ago, then what will that be called? Brother, Era (samvat) four thousand nine hundred ninety four. Now nobody remembers all this at all. How will you write that Era? So, will anyone write such wonderful Era? Here, nineteen, brother, the Era of such and such person. Nineteen. Vikram Era. I don’t know if they wrote 16, 17 thousand or they write 1700. Someone said – Two, two thousand. Okay, two, two thousand. So, where will such a long and wide Era come from? That too, if you add lakhs, then how many lakhs? You cannot put this Era at all. That is it. This nine hundred ninety five. Four or two. And whatever it is. This is easy, isn’t it? That is it. What more Era will you write than this? But nobody knows that too, do they? This Era. Nobody knows. And these people have written lakhs of years. They have created such confusion. What? Hm?
So, the Father comes and explains in such an easy manner. You have faith in this topic that rightly He explains in a very easy manner. It is because this explanation is for all the public, isn’t it? Arey, it is for the entire, entire world, isn’t it? The Father says, doesn’t He that this will be published in the newspapers also, will it not be? So, it will be mentioned as five thousand years only. It will not go more than that. And then the pundits and scholars, who say lakhs, lakhs of years old Iron Age, Golden Age. Then lakhs of years, they say forty thousand for the Iron Age (Kaliyug). That too has started now that there are still forty thousand years left in the Iron Age. They say like this. The Iron Age is crawling now; it is a child. So, look, they are in complete darkness, aren’t they? Now here there is fire in front of you. So, it is sung rightly that when the world (bhambhor) is set on fire, now the world. And you understand its meaning, don’t you? Bhambhor itself means the world. The Father has explained that the kingdom of Ravan was not in Lanka. Neither is it in Lanka. Or that it is here in India. No. The kingdom of Lanka is in the entire bhambhor, entire world. Baba has explained that this Ireland, this is an island, isn’t it? This entire world is a big island; so, on what is this entire world standing? So, Colombo is also made to stand outside. They make it small and make it to stand.
So, the Father sits and explains the sweet, sweet children that whatever is mentioned in the scriptures, if ever they ask you children, arey brother, don’t you believe in the scriptures? Don’t you believe in the Gita? Tell them, wow, as regards the Gita, do you know to what extent we have studied the Gita! Arey, we have studied Gita from the Copper Age onwards. It is because you know nicely that you have done the maximum Bhakti. Third page, third line of the Morning Class dated 28.11.1967. So, tell them, wow, have you ever read the Gita? You study the Gita just now. We have studied the Gita, haven’t we? We studied for so many years! We studied the Gita for 2500 years. Is it not? And you do not even remember that we have studied the Gita so much. Now while knowledge, Bhakti. Well, Bhakti involves reading the Gita. Then, when we have received knowledge of the Gita and the Father came and gave that knowledge. That knowledge caused sadgati (true salvation). Or did you achieve sadgati by reading the Gita since 2500 years? Then where will this Bhakti come from?
Look, all these topics are to be kept in the mind in order to explain at the opportune moment. These are very nice points to explain. One is to explain. Now you will understand that the task is accomplished just by explaining. It is not so. Not at all. Arey, if the task is completed just by explaining, then where will this Yoga go? So, is the explanation required first or is Yoga required first? Hm? When will they understand? Hm? (Someone said something.) Is the explanation required first or is it without Yoga? Then they will not understand at all. It is because who the one who explains is? Are you the ones who explain whatever is to be explained first? Hm? If you remember the one who explains, then, first remembrance is required children, isn’t it? So, Baba says, doesn’t He that explain while being in Yoga and in intoxication. You have understood, haven’t you? And, and then if you speak, then there will be the sharpness of Yoga in the sword of this knowledge because which is the entire strength? Hm? The entire strength is of Yoga, isn’t it? Arey, the Father is Almighty. So, children, you get power from the Father or do you get the strength from your explanation? Hm? And is anyone called Almighty, arey, is the one who teaches a Barrister called Almighty? Is the one who studies LLB or that MBBS, doctors’ course called Almighty? Almighty, ‘all’ means strongest in the entire world. So, mighty. As such this is not a topic of wrestling at all. Hm? It is not wrestling; is it? This is nothing.
So, what is called strength? Hm? Do any residents of India know about this power? Hm, that why is that God called Almighty? It is because they do not have experience daughter; do they have? If they do not have experience in practical, then how can they explain? You children have the experience that rightly ShivBaba is Almighty (sarvashaktivaan). Yes, we have also come to know that this Maya is no less. Hm? Maya is also mighty (shaktivaan). Why was all (sarva) not added? Hm? Why wasn’t it added? It is because they have given Maya very little time, haven’t they? But they have given a lot of time to the Golden Age, the Silver Age. Lakhs of years. This is why they think that He is Almighty. No.
Look, you children, little, little, this drama, the activity of this unlimited drama, however it is such a big tree, isn’t it? For example, the Father says about the Tree that if you sit and tell anyone that brother, just count the number of leaves of this tree and tell. Count them. This is a Banyan tree. Go; go to Calcutta. An example is given about the Banyan tree in Calcutta; so, go to Calcutta. Go and count the number of leaves of the Banyan tree and come and show. Hm? Will anyone do daughter? They can never do. So, similarly, the Father says that what is the use of knowing this, all this? Hm? That sit and count the leaf-like 500-700 crore human souls of the world. Your task is related to which topic? Arey, the topic is that Baba, we have become sinful. Make us pure. And the intellect also tells like this only that we have rightly become vicious. Make us viceless. Nobody will ever say. And this topic is true, isn’t it? Now these words which Baba says that we are vicious, make us viceless, nobody will ever say. It is the Father who has come and explained to our intellect that you are vicious. Hm? And these deities are viceless. So, you have to now become like this. Otherwise, human beings do not understand the meaning of vicous and viceless. Are they human beings? Who says that you are human beings? Hm? Are you not human beings? Why? Hm? Arey, do you think about these topics?
Arey, God says that these are wild animals. They are monkeys. They belong to the demoniac community. It will be said that these are Hiranyakashyaps. Hm? They are Hiranyakshs. So, children it has been said like this in the scriptures that they are Dushasans. All are Dushasans. And all these are Draupadis only. So, look, the Father says like this, doesn’t He? But then these names do not exist in the Golden Age; do they? Do these names also exist? The names of the demoniac community do not exist in the Golden Age at all. They do not exist at all. So, where did these emerge from now? Where did they emerge from? So, look – That Sudarshan Chakra has been given to Krishna. Hm? He goes on cutting everyone’s head. He goes on killing everyone. On the one hand He keeps on killing with the Swadarshan Chakra. Hm? And on the other hand he sits and takes the cattle for grazing. Hm? On the other hand he keeps on suffering abuses. So, children have to explain all these topics. Om Shanti. (End)
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- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2906, दिनांक 09.06.2019
VCD 2906, dated 09.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2906-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.06
Time- 00.01-15.06
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. चौथे पेज पर मंगलवार को पहली लाइन में बात चल रही थी कि बाबा तो सभी बातें ज्ञान की समझाते हैं। बच्चों को ये समझ में नहीं आता है ये क्या है? हँ? क्या नहीं समझ में आता है? बताया ना – कृष्ण को गीता का भगवान बनाय दिया 16 कला संपूर्ण को। और फिर वो कृष्ण गालियां खाते रहते हैं। क्या? ग्लानि होती रहती है - मक्खन चुराया, चोरी करता है, चोर है। हँ? मटकी फोड़ी, ऐसे-ऐसे। तो बताया कि बच्चों को ये बात समझ में नहीं आती है। ये मटकी फोड़ने का काम, मक्खन चुराने का काम ये कौनसी आत्मा करती है और कराती है? हँ? शिव तो करते नहीं हैं। बाकि शिव जिस तन में प्रवेश करते हैं मुकर्रर रथ में उसको रथ को कंट्रोल करते हैं तो उस रथ के द्वारा ऐसा काम कराते हैं? नहीं। तो कौन कराता है? हाँ, वो ही दादा लेखराज ब्रह्मा की बात है। 16 कला संपूर्ण जो कृष्ण बनने वाली आत्मा है उसकी बात है। वो ही प्रवेश करके ये सारा कर्म कराती है। तो बहुत ग्लानि होती है। तो ग्लानि प्रवेश करने वाले की करेंगे या जिसमें प्रवेश होता है उसकी ग्लानि करेंगे? साकार की ग्लानि करेंगे या निराकार या आकार की ग्लानि करेंगे? हाँ, प्रवेश करने वाले की, सूक्षम शरीरधारी की ग्लानि करते हैं। लेकिन उन्हें पता नहीं चलता है कि हम किसकी ग्लानि करते हैं।
और फिर तुम बच्चों को भी ये समझ में नहीं आता है। कौनसे बच्चों को? तुम बच्चों को नहीं। बच्चों को ये नहीं समझ में आता है। क्या? हँ? कौनसे बच्चों को समझ में नहीं आता है? अरे? उन तथाकथित ब्रह्माकुमार-कुमारियों को ये बात समझ में नहीं आती है कि ये क्या है, क्यों ऐसे कहते हैं? अरे, कृष्ण को गाली क्यों दिया? हँ? वो तो कहते हैं कृष्ण तो सतयुग में होता है। वहां तो गाली खाने का कोई काम करते ही नहीं। अब उन्हें ये तो पता नहीं है वो ही कृष्ण वाली आत्मा अंतिम जनम में आती है तो भोगी बहुत बनती है। हँ? भले ब्रह्मा का नाम रूप धारण करती है फिर भी भोगी बनती है कि योगी बनती है? हँ? भोगी बनती है। वो भी पहचान नहीं पाते कि ये भोगी है। भोगी बनने के कारण दिल कमज़ोर होगा या पावरफुल होगा? दिल कमज़ोर हो जाता है। तो हार्ट फेल हो जाता है। हार्ट फेल हो जाता है, तो जिनका हार्ट फेल होता है, अचानक मौत होती है, तो उनको कौनसा शरीर मिलता है? सूक्षम शरीर मिलता है।
तो वो सूक्षम शरीर धारण करने वाली आत्माओं में अव्वल नंबर आत्मा है। है तो अव्वल नंबर देवात्मा भी 16 कला संपूर्ण। फिर 16 कला संपूर्ण देवात्मा जो आदि में है वो अंत में भी क्या हो जाती है? कलाहीन हो जाती है। तो फिर वो ऐसा काम करते हैं। प्रवेश करते हैं। किसमें प्रवेश करते हैं? हँ? अपने से पावरफुल में प्रवेश करते हैं कि अपने से भी जो कमजोर हो गया उसमें प्रवेश करते हैं? हँ? सृष्टि के आदि काल में सबसे जास्ती पावरफुल कौन होता है? 16 कला संपूर्ण कृष्ण का बाप या 16 कला संपूर्ण कृष्ण? हँ? कौन होता है? ज्यादा पावरफुल कौन होता है? बाप पावरफुल होता है। तो जो ज्यादा पावरफुल होता है सृष्टि के आदि में वो ही अंत में सबसे जास्ती कमज़ोर आत्मा बन जाती है। क्यों बन जाती है? हँ? हाँ, सब नीचे उतरते हैं सुख भोगते-भोगते तो परिवार के साथ, परिवारजनों के साथ, बाल-बच्चों के साथ उसको भी साथ निभाना पड़ता है।
तो पूछा – गाली क्यों दिया? जी। भक्तिमार्ग में दिखाया है चौथ का चंद्रमा देखा। कैसा चन्द्रमा? चौथ खाता था। ये जो बिचौलिया होते हैं ना अंग्रेजी में क्या कहते हैं इनको? एजेंट। ये चौथ खाते हैं कि नहीं बीच में? हाँ। तो चौथ खाता था। तो ये चौथ खाना कोई मेहनत तो करना नहीं। क्या? इधर का उधर कर दिया, उधर का पैसा इधर दे दिया। और बीच में दोनों तरफ से, दो परसेन्ट इधर से ले लिया, दो परसेन्ट उधर से ले लिया। तो मेहनत कुछ करनी पड़ी? हँ? कुछ मेहनत नहीं करनी पड़ती। तो बताया ये चौथ खाते हैं। तो चौथ का चन्द्रमा देखा।
तो तुमको मालूम है तुमको कि जभी भद्रा में, हँ, भद्रा में मास आता है ना पितरों का; हँ? कौनसे महीने में? भाद्र। भादों का महीना आता है ना भाद्रपद। हाँ। तो पितरों का महीना होता है। पितर कौन हैं? इस ब्राह्मणों की दुनिया में नौ प्रकार के ब्राह्मण हैं। तो ब्राह्मणों के पितर कौन हैं? हँ? अरे, कुछ पता नहीं? पितर माने जो, हाँ, पुराने ते पुराने जन्म देने वाले होते हैं, हाँ, तो वो धरमपिता को क्या कहेंगे? पितर ही कहेंगे ना। हँ? क्रिश्चियन का धरमपिता कौन? क्राइस्ट। वो पितर हुआ ना सारे क्रिश्चियन्स का। तो ऐसे ही मुसलमानों का पितर कौन हुआ आखरीन? वो ही मोहम्मद। तो ऐसे ही जो ब्राह्मण हैं उन ब्राह्मणों का पितर कौन हुआ पहला चोटी का ब्राह्मण? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) दाढ़ी वाला? अच्छा? चोटी वाला ब्राह्मण वो सबका बापों का बाप, मनुष्य सृष्टि, सारी मनुष्य सृष्टि का बाप।
तो बताया जब भादों का महीना आता है तो पितर खिलाते हैं। भक्तिमार्ग में पितर खिलाते हैं ना पितर। तो पितरों का मास है ना। तो पितरों में सबसे ऊँचा पितर कौन है पितरों का पितर जिसका कोई पितर नहीं होता? कौन है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। शिव बाप, वो पितर है साकार मनुष्यों का? अच्छा? साकार मनुष्यों का पितर निराकार है? ऐसे होता है? फिर? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, प्रजापिता। तो जैसे और धर्मों में होते हैं पितर, जिनका उन धर्मों का पितर और कोई होता नहीं है। ऐसे ही सारी मनुष्य सृष्टि का बापों का बाप। साकार मनुष्य सृष्टि है तो बाप भी साकार। तो बताया वो पितरों का मास है भादों का मास, भाद्रपद, जो मनुष्य बहुत हैं वो भादों के महीने में फिर और वैसे भी चौथ के चन्द्रमा को देखते नहीं हैं। कहते हैं उसे देखेंगे तो क्या होगा? पाप लग जाएगा। तो फिर हमारे ऊपर भी कलंक लग जावेगा। हँ? जो जड़ चन्द्रमा है ना आकाश में तो उसमें धब्बा है कि नहीं? कलंक है कि नहीं? है। वो तो जड़ है। उसका मानिन्द जो चैतन्य ज्ञान चन्द्रमा है जिसे कहतै हैं कृष्ण चन्द्र। कहते हैं ना? हाँ। तो उसको देखेंगे तो हमारे ऊपर भी; पाप करने वाले को देखेंगे तो हमारे ऊपर भी पाप चढ़ जाएगा।
बहुत-बहुत ढ़ेर हैं जिनको मालूम है। हँ? क्या? कि चन्द्रमा ने चौथ खाई तो फिर उसको कलंक, कलंक लगे हैं। तो वो ढ़ेर हैं जिनको मालूम है। जो कभी चन्द्रमा को नहीं देखते हैं कि हमको भी निंदा करें। हँ? वो डर रहता है कि हम उसका संग करेंगे, आँखों से भी संग किया जाता है ना। देखेंगे तो संग का रंग लगेगा। तो हमारी भी दुनिया क्या करेगी? निंदा करने लग पड़ेगी। अरे, पर वो तो कृष्ण ने खाई ना। क्या? चौथ। हँ? सभी थोड़ेही चौथ खाएंगे? हँ? ये कोई जरूरी है कि सभी चौथ खाएंगे? नहीं। क्यों? कृष्ण वाली आत्मा, हँ, सतयुग के आदि में पहला प्रिंस है, हँ, पहला बड़े ते बड़ा सतयुग का राजा है तो सारे 84 जन्मों में जितने भी जन्म लेंगे सब उसकी प्रजा हुई ना? नहीं हुई? हाँ, प्रजा हुई। तो सभी चौथ नहीं खाएंगे? फालो नहीं करेंगे? हँ? अरे? बाबा कहते हैं सभी थोड़ेही खाएंगे चौथ? सभी माने? अरे, उन सभी में जो मनुष्य सृष्टि का बाप है और 16 कला संपूर्ण कृष्ण का भी बाप है, तो वो भी चौथ खाएगा क्या? नहीं।
अब कृष्ण ने क्यों खाई? हँ? ये गाली क्यों खाई? हँ? वो तो बताते हैं ना कि भई क्या किया? जांबवंती को भगाया। क्या? ये कौन थी जांबवंती? हँ? अरे, जांबवंत की बिटिया थी। नहीं? हाँ। और जांबवंत कौन था? जिसके शरीर पे रीछ जैसे बड़े-बड़े बाल थे। सारे शरीर में बाल ही बाल। तो कोई धरम है ऐसा जिसके फालोअर्स के शरीर में बाल ही बाल होते हैं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, सिक्ख धरम है। तो उनका जो मुखिया है उसके तो फिर बहुत बड़े बाल होंगे। हाँ। तो वो उसकी जो बच्ची है ना उसका नाम दे दिया। क्या? जांबवंती। जांबवंत की जांबवंती।
तो बताया कि किसने भगाया उसको? हँ? कृष्ण ने भगाया। फिर कहते हैं कृष्णा को भगाया। हँ? कृष्णा कौन है? भक्तिमार्ग में दिखाते हैं कृष्ण की बहन कृष्णा। द्रौपदी। वो, द्रौपदी, नहीं, द्रौपदी नहीं, सुभद्रा। बहन है ना। तो कृष्णा को भगाया। अच्छा? फिर कहते हैं फलाने को भगाया, फलानी को भगाया। अरे, बहुतों को भगाया। तो देखो, ये सब दंत कथाएं हैं शास्त्रों की। क्या? कि कृष्ण भगवान और वो भगाते हैं, ऐसे-ऐसे धंधे करते हैं। अरे, तो ये दुनियावी मनुष्यों की बातें हैं कि भगवान जो ऊँच ते ऊँच भगवंत कहा जाता है जिसका ऊँचे ते ऊँचा हीरो पार्टधारी का पार्ट, अरे, पार्ट है वो ऐसा काम करेगा? नहीं। ये दंत कथाएं बनाई हुई हैं। तुम बच्चे तो अभी सुजाग हो गए ना। सु माने सुंदर। जाग माने जागृत हो गए। सुंदर तरीके से जागृत हो गए। हँ? सुजाग हो गए, सुंदर तरीके से जागृत हो गए या डांट खाके? हँ? सुजाग हो गए ना। बाबा कहते हैं, सुजाग तो हुए थे ना। ये जब ज्ञान में आए थे तब सुजाग नहीं हुए थे? इतनी नींद आती थी क्या? नहीं। सुजाग तो हुए ना। तो ये भक्तिमार्ग में क्या है ये सभी? हँ? ये सभी है बरोबर उतरने का मार्ग।
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the first line on the fourth page on Tuesday was that Baba explains all the topics of knowledge. Children do not understand as to what is this? Hm? What do they don’t understand? It was told, wasn’t it? Krishna, the one who is perfect in 16 celestial degrees, has been made God. And then that Krishna keeps on facing abuses. What? He keeps on getting defamed – He stole butter, he steals, he is a thief. Hm? He broke the pots [full of butter]; so and so. So, it was told that children do not understand this topic. Which soul performs and enables this task of breaking the pot, stealing the butter? Hm? Shiv doesn’t perform. The body, the permanent Chariot in which Shiv enters, He controls that Chariot, so does He enable such task through that Chariot? No. So, who enables? Yes, it is the topic of the same Dada Lekhraj Brahma. It is a topic of the soul which becomes Krishna perfect in 16 celestial degrees. It is that soul alone which enters and enables all these tasks. So, a lot of defamation takes place. So, will they defame the one who enters or the one in whom He has entered? Will they defame the corporeal or the incorporeal or subtle? Yes, they defame the one who enters, the subtle-bodied one. But they do not know as to whom we defame.
And then you children also do not understand this. Which children? Not you children. Children do not understand this. What? Hm? Which children do not understand? Arey? Those so-called Brahmakumar-kumaris do not understand as to what is this, why do they say like this? Arey, why was Krishna abused? Hm? They say that Krishna exists in the Golden Age. There he doesn’t perform any such task at all for which he would face abuses. Well, they do not know that when the same soul of Krishna comes to the last birth, then it becomes very bhogi (pleasure-seeker). Hm? Although it assumes the name and form of Brahma, yet does it become a bhogi or a yogi? Hm? It becomes a bhogi. They too are unable to recognize that this one is a bhogi. Because of becoming bhogi will the heart become weak or powerful? The heart becomes weak. So, he suffers heart fail. He suffers heart fail; so, which body do those who suffer heart fail, suffer sudden death get? They get a subtle body.
So, he is the number one soul among the souls which assume a subtle body. He is the number one deity soul which is perfect in 16 celestial degrees. Then the deity soul which is perfect in 16 celestial degrees, which is in the beginning, what does it become in the end as well? It becomes devoid of any celestial degrees. So, then he performs such task. He enters. In whom does he enter? Hm? Does he enter in someone more powerful than himself or does he enter in the one who became weaker than himself? Hm? Who is the most powerful one in the beginning of the world? Is it the Father of Krishna who is perfect in 16 celestial degrees or is it Krishna who is perfect in 16 celestial degrees? Hm? Who [is more powerful]? Who is more powerful? The Father is powerful. So, the one who is more powerful in the beginning of the world becomes the weakest soul in the end. Why does it become? Hm? Yes, when everyone undergoes downfall while enjoying pleasures, then, he too has to maintain company with the family, with the family members, with the children.
So, it was asked – Why was he abused? Ji. It has been shown on the path of Bhakti that he saw the fourth day Moon (chauth ka chandrama). What kind of Moon? He used to collect chauth. These middlemen are there, aren’t they? What are they called in English? Agent. Do they charge one-fourth (chauth) or not? Yes. So, he used to charge chauth. So, this collection of chauth is not called hard work. What? This [money] was sent there; the money of that place was given here. And in between from both sides; you take two percent from this side; you take two percent from that side. So, did they have to do any hard work? Hm? They do not have to do any hard work. So, it was told that this one collects chauth (one fourth). So, he saw the fourth day Moon.
So, you know that during Bhadra; there is month for ancestors in Bhadra, isn’t it? In which month? Bhaadra. There is a month of Bhaadon, Bhaadrapad, isn’t it? Yes. So, it is a month for the ancestors. Who are the ancestors (pitar)? There are nine kinds of Brahmins in this world of Brahmins. So, who are the ancestors of Brahmins? Hm? Arey, don’t you know anything? Pitar (ancestors) means, yes, those who give birth in the oldest times, yes, so, what would that founder of religion be called? They will be called ancestors only, will they not be? Hm? Who is the founder of Christians? Christ. He is the ancestor of all the Christians, isn’t he? So, similarly, who ultimately is the ancestor of Muslims? The same Mohammad. So, similarly, who is the ancestor, the peak Brahmin among all the Brahmins? Hm? (Someone said something.) The one with beard? Achcha? The topmost Brahmin is the Father of fathers, the Father of the human world, the entire human world.
So, it was told that when the month of Bhadon starts, then people feed the ancestors. People feed the ancestors on the path of Bhakti, don’t they? So, it is a month of ancestors, isn’t it? So, who is the highest ancestor among the ancestors, the ancestor of ancestors, who doesn’t have any ancestor? Who is it? Hm? (Someone said something.) Yes. Father Shiv? Is He the ancestor of the corporal human beings? Achcha? Is the ancestor of the corporeal human beings incorporeal? Is it so? Then? (Someone said something.) Yes, Prajapita. So, just as there are ancestors in other religions; there is no other ancestor of those religions. Similarly, the Father of fathers of the entire human world. When the human world is corporeal, then the Father is also corporeal. So, it was told that the month of the ancestors is the month of Bhaadon, Bhaadrapad; most people do not see the fourth day Moon (chauth ka chandrama) in the month of Bhaadon and even otherwise. They say that what will happen if you see it? You will accrue sins. So, then we will also accrue sins. Hm? The non-living Moon in the sky, does it have any stain or not? Is there any stain or not? There is. That is non-living. The living Moon of knowledge like it, who is called Krishna Chandra. He is called so, isn’t he? Yes. So, if you see him, then we too; if we see the one who commits sins, then we too would accrue sins.
There are many who know. Hm? What? That the Moon collected chauth (one-fourth commission), so then he got stained. So, there are many who know. Those who never see the Moon so that people may defame us also. Hm? They fear that if we keep his company; you keep company even through the eyes, don’t you? If you see, then you will get coloured by the company. So, what will our world also do? It will start defaming. Arey, but that Krishna collected, didn’t he? What? Chauth. Hm? Will everyone charge one fourth commission? Hm? Is it necessary that everyone will charge one fourth commission? No. Why? The soul of Krishna is the first prince of the beginning of the Golden Age; He is the first and biggest king of the Golden Age. So, all those who get birth in all the 84 births, all of them are his subjects, aren’t they? Are they not? Yes, they are the subjects. So, will everyone not charge one-fourth commission? Will they not follow [him]? Hm? Arey? Baba says – Will everyone charge one-fourth commission? What is meant by ‘everyone’? Arey, among all of them, the one who is the Father of the human world and the one who is the Father of even the Krishna perfect in 16 celestial degrees, will he also charge one-fourth commission? No.
Well, why did Krishna charge? Hm? Why did he suffer abuses? Hm? They tell, don’t they that brother what did he do? He made Jambvanti to elope. What? Who was this Jambvanti? Hm? Arey, she was the daughter of Jaambvant. Was she not? Yes. And who was Jaambvant? The one whose body had big hairs like a bear. There are hairs all over the body. So, is there any such religion whose followers have hairs all over their body? Hm? (Someone said something.) Yes, there is Sikhism. So, its chief will have very big hairs. Yes. So, his daughter was given the name. What? Jambvanti. Jambvanti of Jaambvant.
So, it was told that who made her to elope? Hm? Krishna made her to elope. Then they say that he made Krishnaa to run away. Hm? Who is Krishnaa? It is shown on the path of Bhakti that Krishna’s sister was Krishnaa. Draupadi. That Draupadi, no, not Draupadi; Subhadra. She is his sister, isn’t she? So, he made her to elope. Achcha? Then they say that he made such and such lady to elope, such and such lady to elope. Arey, he made many to elope. So, look, all these are mythological stories of the scriptures. What? That Krishna is God and he makes people to elope; he does such and such business. Arey, these are topics of the worldly human beings that God who is called the highest on high God; will the one whose part is that of the highest on high hero actor, arey, will he perform such a task? No. These are mythological stories that have been penned. You children have now awakened (sujaag), haven’t you? Su means sundar (beautiful). Jaag means you awakened. You awakened in a beautiful manner. Hm? You became sujaag; did you awaken in a beautiful manner or after being scolded? Hm? You became awakened, didn’t you? Baba says – You had awakened, hadn’t you? Had you not awakened when you had entered the path of knowledge? Did you used to feel so sleepy? No. You have awakened, haven’t you? So, what are all these on the path of Bhakti? Hm? All this is rightly a path of downfall.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2906, दिनांक 09.06.2019
VCD 2906, dated 09.06.2019
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समय- 00.01-15.06
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प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. चौथे पेज पर मंगलवार को पहली लाइन में बात चल रही थी कि बाबा तो सभी बातें ज्ञान की समझाते हैं। बच्चों को ये समझ में नहीं आता है ये क्या है? हँ? क्या नहीं समझ में आता है? बताया ना – कृष्ण को गीता का भगवान बनाय दिया 16 कला संपूर्ण को। और फिर वो कृष्ण गालियां खाते रहते हैं। क्या? ग्लानि होती रहती है - मक्खन चुराया, चोरी करता है, चोर है। हँ? मटकी फोड़ी, ऐसे-ऐसे। तो बताया कि बच्चों को ये बात समझ में नहीं आती है। ये मटकी फोड़ने का काम, मक्खन चुराने का काम ये कौनसी आत्मा करती है और कराती है? हँ? शिव तो करते नहीं हैं। बाकि शिव जिस तन में प्रवेश करते हैं मुकर्रर रथ में उसको रथ को कंट्रोल करते हैं तो उस रथ के द्वारा ऐसा काम कराते हैं? नहीं। तो कौन कराता है? हाँ, वो ही दादा लेखराज ब्रह्मा की बात है। 16 कला संपूर्ण जो कृष्ण बनने वाली आत्मा है उसकी बात है। वो ही प्रवेश करके ये सारा कर्म कराती है। तो बहुत ग्लानि होती है। तो ग्लानि प्रवेश करने वाले की करेंगे या जिसमें प्रवेश होता है उसकी ग्लानि करेंगे? साकार की ग्लानि करेंगे या निराकार या आकार की ग्लानि करेंगे? हाँ, प्रवेश करने वाले की, सूक्षम शरीरधारी की ग्लानि करते हैं। लेकिन उन्हें पता नहीं चलता है कि हम किसकी ग्लानि करते हैं।
और फिर तुम बच्चों को भी ये समझ में नहीं आता है। कौनसे बच्चों को? तुम बच्चों को नहीं। बच्चों को ये नहीं समझ में आता है। क्या? हँ? कौनसे बच्चों को समझ में नहीं आता है? अरे? उन तथाकथित ब्रह्माकुमार-कुमारियों को ये बात समझ में नहीं आती है कि ये क्या है, क्यों ऐसे कहते हैं? अरे, कृष्ण को गाली क्यों दिया? हँ? वो तो कहते हैं कृष्ण तो सतयुग में होता है। वहां तो गाली खाने का कोई काम करते ही नहीं। अब उन्हें ये तो पता नहीं है वो ही कृष्ण वाली आत्मा अंतिम जनम में आती है तो भोगी बहुत बनती है। हँ? भले ब्रह्मा का नाम रूप धारण करती है फिर भी भोगी बनती है कि योगी बनती है? हँ? भोगी बनती है। वो भी पहचान नहीं पाते कि ये भोगी है। भोगी बनने के कारण दिल कमज़ोर होगा या पावरफुल होगा? दिल कमज़ोर हो जाता है। तो हार्ट फेल हो जाता है। हार्ट फेल हो जाता है, तो जिनका हार्ट फेल होता है, अचानक मौत होती है, तो उनको कौनसा शरीर मिलता है? सूक्षम शरीर मिलता है।
तो वो सूक्षम शरीर धारण करने वाली आत्माओं में अव्वल नंबर आत्मा है। है तो अव्वल नंबर देवात्मा भी 16 कला संपूर्ण। फिर 16 कला संपूर्ण देवात्मा जो आदि में है वो अंत में भी क्या हो जाती है? कलाहीन हो जाती है। तो फिर वो ऐसा काम करते हैं। प्रवेश करते हैं। किसमें प्रवेश करते हैं? हँ? अपने से पावरफुल में प्रवेश करते हैं कि अपने से भी जो कमजोर हो गया उसमें प्रवेश करते हैं? हँ? सृष्टि के आदि काल में सबसे जास्ती पावरफुल कौन होता है? 16 कला संपूर्ण कृष्ण का बाप या 16 कला संपूर्ण कृष्ण? हँ? कौन होता है? ज्यादा पावरफुल कौन होता है? बाप पावरफुल होता है। तो जो ज्यादा पावरफुल होता है सृष्टि के आदि में वो ही अंत में सबसे जास्ती कमज़ोर आत्मा बन जाती है। क्यों बन जाती है? हँ? हाँ, सब नीचे उतरते हैं सुख भोगते-भोगते तो परिवार के साथ, परिवारजनों के साथ, बाल-बच्चों के साथ उसको भी साथ निभाना पड़ता है।
तो पूछा – गाली क्यों दिया? जी। भक्तिमार्ग में दिखाया है चौथ का चंद्रमा देखा। कैसा चन्द्रमा? चौथ खाता था। ये जो बिचौलिया होते हैं ना अंग्रेजी में क्या कहते हैं इनको? एजेंट। ये चौथ खाते हैं कि नहीं बीच में? हाँ। तो चौथ खाता था। तो ये चौथ खाना कोई मेहनत तो करना नहीं। क्या? इधर का उधर कर दिया, उधर का पैसा इधर दे दिया। और बीच में दोनों तरफ से, दो परसेन्ट इधर से ले लिया, दो परसेन्ट उधर से ले लिया। तो मेहनत कुछ करनी पड़ी? हँ? कुछ मेहनत नहीं करनी पड़ती। तो बताया ये चौथ खाते हैं। तो चौथ का चन्द्रमा देखा।
तो तुमको मालूम है तुमको कि जभी भद्रा में, हँ, भद्रा में मास आता है ना पितरों का; हँ? कौनसे महीने में? भाद्र। भादों का महीना आता है ना भाद्रपद। हाँ। तो पितरों का महीना होता है। पितर कौन हैं? इस ब्राह्मणों की दुनिया में नौ प्रकार के ब्राह्मण हैं। तो ब्राह्मणों के पितर कौन हैं? हँ? अरे, कुछ पता नहीं? पितर माने जो, हाँ, पुराने ते पुराने जन्म देने वाले होते हैं, हाँ, तो वो धरमपिता को क्या कहेंगे? पितर ही कहेंगे ना। हँ? क्रिश्चियन का धरमपिता कौन? क्राइस्ट। वो पितर हुआ ना सारे क्रिश्चियन्स का। तो ऐसे ही मुसलमानों का पितर कौन हुआ आखरीन? वो ही मोहम्मद। तो ऐसे ही जो ब्राह्मण हैं उन ब्राह्मणों का पितर कौन हुआ पहला चोटी का ब्राह्मण? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) दाढ़ी वाला? अच्छा? चोटी वाला ब्राह्मण वो सबका बापों का बाप, मनुष्य सृष्टि, सारी मनुष्य सृष्टि का बाप।
तो बताया जब भादों का महीना आता है तो पितर खिलाते हैं। भक्तिमार्ग में पितर खिलाते हैं ना पितर। तो पितरों का मास है ना। तो पितरों में सबसे ऊँचा पितर कौन है पितरों का पितर जिसका कोई पितर नहीं होता? कौन है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। शिव बाप, वो पितर है साकार मनुष्यों का? अच्छा? साकार मनुष्यों का पितर निराकार है? ऐसे होता है? फिर? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, प्रजापिता। तो जैसे और धर्मों में होते हैं पितर, जिनका उन धर्मों का पितर और कोई होता नहीं है। ऐसे ही सारी मनुष्य सृष्टि का बापों का बाप। साकार मनुष्य सृष्टि है तो बाप भी साकार। तो बताया वो पितरों का मास है भादों का मास, भाद्रपद, जो मनुष्य बहुत हैं वो भादों के महीने में फिर और वैसे भी चौथ के चन्द्रमा को देखते नहीं हैं। कहते हैं उसे देखेंगे तो क्या होगा? पाप लग जाएगा। तो फिर हमारे ऊपर भी कलंक लग जावेगा। हँ? जो जड़ चन्द्रमा है ना आकाश में तो उसमें धब्बा है कि नहीं? कलंक है कि नहीं? है। वो तो जड़ है। उसका मानिन्द जो चैतन्य ज्ञान चन्द्रमा है जिसे कहतै हैं कृष्ण चन्द्र। कहते हैं ना? हाँ। तो उसको देखेंगे तो हमारे ऊपर भी; पाप करने वाले को देखेंगे तो हमारे ऊपर भी पाप चढ़ जाएगा।
बहुत-बहुत ढ़ेर हैं जिनको मालूम है। हँ? क्या? कि चन्द्रमा ने चौथ खाई तो फिर उसको कलंक, कलंक लगे हैं। तो वो ढ़ेर हैं जिनको मालूम है। जो कभी चन्द्रमा को नहीं देखते हैं कि हमको भी निंदा करें। हँ? वो डर रहता है कि हम उसका संग करेंगे, आँखों से भी संग किया जाता है ना। देखेंगे तो संग का रंग लगेगा। तो हमारी भी दुनिया क्या करेगी? निंदा करने लग पड़ेगी। अरे, पर वो तो कृष्ण ने खाई ना। क्या? चौथ। हँ? सभी थोड़ेही चौथ खाएंगे? हँ? ये कोई जरूरी है कि सभी चौथ खाएंगे? नहीं। क्यों? कृष्ण वाली आत्मा, हँ, सतयुग के आदि में पहला प्रिंस है, हँ, पहला बड़े ते बड़ा सतयुग का राजा है तो सारे 84 जन्मों में जितने भी जन्म लेंगे सब उसकी प्रजा हुई ना? नहीं हुई? हाँ, प्रजा हुई। तो सभी चौथ नहीं खाएंगे? फालो नहीं करेंगे? हँ? अरे? बाबा कहते हैं सभी थोड़ेही खाएंगे चौथ? सभी माने? अरे, उन सभी में जो मनुष्य सृष्टि का बाप है और 16 कला संपूर्ण कृष्ण का भी बाप है, तो वो भी चौथ खाएगा क्या? नहीं।
अब कृष्ण ने क्यों खाई? हँ? ये गाली क्यों खाई? हँ? वो तो बताते हैं ना कि भई क्या किया? जांबवंती को भगाया। क्या? ये कौन थी जांबवंती? हँ? अरे, जांबवंत की बिटिया थी। नहीं? हाँ। और जांबवंत कौन था? जिसके शरीर पे रीछ जैसे बड़े-बड़े बाल थे। सारे शरीर में बाल ही बाल। तो कोई धरम है ऐसा जिसके फालोअर्स के शरीर में बाल ही बाल होते हैं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, सिक्ख धरम है। तो उनका जो मुखिया है उसके तो फिर बहुत बड़े बाल होंगे। हाँ। तो वो उसकी जो बच्ची है ना उसका नाम दे दिया। क्या? जांबवंती। जांबवंत की जांबवंती।
तो बताया कि किसने भगाया उसको? हँ? कृष्ण ने भगाया। फिर कहते हैं कृष्णा को भगाया। हँ? कृष्णा कौन है? भक्तिमार्ग में दिखाते हैं कृष्ण की बहन कृष्णा। द्रौपदी। वो, द्रौपदी, नहीं, द्रौपदी नहीं, सुभद्रा। बहन है ना। तो कृष्णा को भगाया। अच्छा? फिर कहते हैं फलाने को भगाया, फलानी को भगाया। अरे, बहुतों को भगाया। तो देखो, ये सब दंत कथाएं हैं शास्त्रों की। क्या? कि कृष्ण भगवान और वो भगाते हैं, ऐसे-ऐसे धंधे करते हैं। अरे, तो ये दुनियावी मनुष्यों की बातें हैं कि भगवान जो ऊँच ते ऊँच भगवंत कहा जाता है जिसका ऊँचे ते ऊँचा हीरो पार्टधारी का पार्ट, अरे, पार्ट है वो ऐसा काम करेगा? नहीं। ये दंत कथाएं बनाई हुई हैं। तुम बच्चे तो अभी सुजाग हो गए ना। सु माने सुंदर। जाग माने जागृत हो गए। सुंदर तरीके से जागृत हो गए। हँ? सुजाग हो गए, सुंदर तरीके से जागृत हो गए या डांट खाके? हँ? सुजाग हो गए ना। बाबा कहते हैं, सुजाग तो हुए थे ना। ये जब ज्ञान में आए थे तब सुजाग नहीं हुए थे? इतनी नींद आती थी क्या? नहीं। सुजाग तो हुए ना। तो ये भक्तिमार्ग में क्या है ये सभी? हँ? ये सभी है बरोबर उतरने का मार्ग।
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the first line on the fourth page on Tuesday was that Baba explains all the topics of knowledge. Children do not understand as to what is this? Hm? What do they don’t understand? It was told, wasn’t it? Krishna, the one who is perfect in 16 celestial degrees, has been made God. And then that Krishna keeps on facing abuses. What? He keeps on getting defamed – He stole butter, he steals, he is a thief. Hm? He broke the pots [full of butter]; so and so. So, it was told that children do not understand this topic. Which soul performs and enables this task of breaking the pot, stealing the butter? Hm? Shiv doesn’t perform. The body, the permanent Chariot in which Shiv enters, He controls that Chariot, so does He enable such task through that Chariot? No. So, who enables? Yes, it is the topic of the same Dada Lekhraj Brahma. It is a topic of the soul which becomes Krishna perfect in 16 celestial degrees. It is that soul alone which enters and enables all these tasks. So, a lot of defamation takes place. So, will they defame the one who enters or the one in whom He has entered? Will they defame the corporeal or the incorporeal or subtle? Yes, they defame the one who enters, the subtle-bodied one. But they do not know as to whom we defame.
And then you children also do not understand this. Which children? Not you children. Children do not understand this. What? Hm? Which children do not understand? Arey? Those so-called Brahmakumar-kumaris do not understand as to what is this, why do they say like this? Arey, why was Krishna abused? Hm? They say that Krishna exists in the Golden Age. There he doesn’t perform any such task at all for which he would face abuses. Well, they do not know that when the same soul of Krishna comes to the last birth, then it becomes very bhogi (pleasure-seeker). Hm? Although it assumes the name and form of Brahma, yet does it become a bhogi or a yogi? Hm? It becomes a bhogi. They too are unable to recognize that this one is a bhogi. Because of becoming bhogi will the heart become weak or powerful? The heart becomes weak. So, he suffers heart fail. He suffers heart fail; so, which body do those who suffer heart fail, suffer sudden death get? They get a subtle body.
So, he is the number one soul among the souls which assume a subtle body. He is the number one deity soul which is perfect in 16 celestial degrees. Then the deity soul which is perfect in 16 celestial degrees, which is in the beginning, what does it become in the end as well? It becomes devoid of any celestial degrees. So, then he performs such task. He enters. In whom does he enter? Hm? Does he enter in someone more powerful than himself or does he enter in the one who became weaker than himself? Hm? Who is the most powerful one in the beginning of the world? Is it the Father of Krishna who is perfect in 16 celestial degrees or is it Krishna who is perfect in 16 celestial degrees? Hm? Who [is more powerful]? Who is more powerful? The Father is powerful. So, the one who is more powerful in the beginning of the world becomes the weakest soul in the end. Why does it become? Hm? Yes, when everyone undergoes downfall while enjoying pleasures, then, he too has to maintain company with the family, with the family members, with the children.
So, it was asked – Why was he abused? Ji. It has been shown on the path of Bhakti that he saw the fourth day Moon (chauth ka chandrama). What kind of Moon? He used to collect chauth. These middlemen are there, aren’t they? What are they called in English? Agent. Do they charge one-fourth (chauth) or not? Yes. So, he used to charge chauth. So, this collection of chauth is not called hard work. What? This [money] was sent there; the money of that place was given here. And in between from both sides; you take two percent from this side; you take two percent from that side. So, did they have to do any hard work? Hm? They do not have to do any hard work. So, it was told that this one collects chauth (one fourth). So, he saw the fourth day Moon.
So, you know that during Bhadra; there is month for ancestors in Bhadra, isn’t it? In which month? Bhaadra. There is a month of Bhaadon, Bhaadrapad, isn’t it? Yes. So, it is a month for the ancestors. Who are the ancestors (pitar)? There are nine kinds of Brahmins in this world of Brahmins. So, who are the ancestors of Brahmins? Hm? Arey, don’t you know anything? Pitar (ancestors) means, yes, those who give birth in the oldest times, yes, so, what would that founder of religion be called? They will be called ancestors only, will they not be? Hm? Who is the founder of Christians? Christ. He is the ancestor of all the Christians, isn’t he? So, similarly, who ultimately is the ancestor of Muslims? The same Mohammad. So, similarly, who is the ancestor, the peak Brahmin among all the Brahmins? Hm? (Someone said something.) The one with beard? Achcha? The topmost Brahmin is the Father of fathers, the Father of the human world, the entire human world.
So, it was told that when the month of Bhadon starts, then people feed the ancestors. People feed the ancestors on the path of Bhakti, don’t they? So, it is a month of ancestors, isn’t it? So, who is the highest ancestor among the ancestors, the ancestor of ancestors, who doesn’t have any ancestor? Who is it? Hm? (Someone said something.) Yes. Father Shiv? Is He the ancestor of the corporal human beings? Achcha? Is the ancestor of the corporeal human beings incorporeal? Is it so? Then? (Someone said something.) Yes, Prajapita. So, just as there are ancestors in other religions; there is no other ancestor of those religions. Similarly, the Father of fathers of the entire human world. When the human world is corporeal, then the Father is also corporeal. So, it was told that the month of the ancestors is the month of Bhaadon, Bhaadrapad; most people do not see the fourth day Moon (chauth ka chandrama) in the month of Bhaadon and even otherwise. They say that what will happen if you see it? You will accrue sins. So, then we will also accrue sins. Hm? The non-living Moon in the sky, does it have any stain or not? Is there any stain or not? There is. That is non-living. The living Moon of knowledge like it, who is called Krishna Chandra. He is called so, isn’t he? Yes. So, if you see him, then we too; if we see the one who commits sins, then we too would accrue sins.
There are many who know. Hm? What? That the Moon collected chauth (one-fourth commission), so then he got stained. So, there are many who know. Those who never see the Moon so that people may defame us also. Hm? They fear that if we keep his company; you keep company even through the eyes, don’t you? If you see, then you will get coloured by the company. So, what will our world also do? It will start defaming. Arey, but that Krishna collected, didn’t he? What? Chauth. Hm? Will everyone charge one fourth commission? Hm? Is it necessary that everyone will charge one fourth commission? No. Why? The soul of Krishna is the first prince of the beginning of the Golden Age; He is the first and biggest king of the Golden Age. So, all those who get birth in all the 84 births, all of them are his subjects, aren’t they? Are they not? Yes, they are the subjects. So, will everyone not charge one-fourth commission? Will they not follow [him]? Hm? Arey? Baba says – Will everyone charge one-fourth commission? What is meant by ‘everyone’? Arey, among all of them, the one who is the Father of the human world and the one who is the Father of even the Krishna perfect in 16 celestial degrees, will he also charge one-fourth commission? No.
Well, why did Krishna charge? Hm? Why did he suffer abuses? Hm? They tell, don’t they that brother what did he do? He made Jambvanti to elope. What? Who was this Jambvanti? Hm? Arey, she was the daughter of Jaambvant. Was she not? Yes. And who was Jaambvant? The one whose body had big hairs like a bear. There are hairs all over the body. So, is there any such religion whose followers have hairs all over their body? Hm? (Someone said something.) Yes, there is Sikhism. So, its chief will have very big hairs. Yes. So, his daughter was given the name. What? Jambvanti. Jambvanti of Jaambvant.
So, it was told that who made her to elope? Hm? Krishna made her to elope. Then they say that he made Krishnaa to run away. Hm? Who is Krishnaa? It is shown on the path of Bhakti that Krishna’s sister was Krishnaa. Draupadi. That Draupadi, no, not Draupadi; Subhadra. She is his sister, isn’t she? So, he made her to elope. Achcha? Then they say that he made such and such lady to elope, such and such lady to elope. Arey, he made many to elope. So, look, all these are mythological stories of the scriptures. What? That Krishna is God and he makes people to elope; he does such and such business. Arey, these are topics of the worldly human beings that God who is called the highest on high God; will the one whose part is that of the highest on high hero actor, arey, will he perform such a task? No. These are mythological stories that have been penned. You children have now awakened (sujaag), haven’t you? Su means sundar (beautiful). Jaag means you awakened. You awakened in a beautiful manner. Hm? You became sujaag; did you awaken in a beautiful manner or after being scolded? Hm? You became awakened, didn’t you? Baba says – You had awakened, hadn’t you? Had you not awakened when you had entered the path of knowledge? Did you used to feel so sleepy? No. You have awakened, haven’t you? So, what are all these on the path of Bhakti? Hm? All this is rightly a path of downfall.
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- arjun
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शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2907, दिनांक 10.06.2019
VCD 2907, dated 10.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2907-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.20
Time- 00.01-15.20
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को पांचवें पेज की दूसरी लाइन में बात चल रही थी - दुनियावालों की बुद्धि में तो कुछ भी नहीं है कि स्वर्ग कब आएगा। वो तो कहते हैं चालीस हज़ार वर्ष अभी कलियुग के पड़े हुए हैं। और तुमको स्वर्ग का पता है। तो तुम कितना खुशी में रहते हो। क्योंकि तुम तो प्रैक्टिकल में पुरुषार्ष कर रहे हो ना स्वर्ग में जाने का, मनुष्य से देवता बनने का। काहे से? हँ? मनु की औलाद मनुष्य। तो संपन्न मनु कब कहेंगे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हां। वो तो यहां की बात। हँ? लेकिन पूर्व कल्प में मनुष्य से देवता बने थे। हँ? तो वो मनु कौन जिसकी औलाद बने थे देवता? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। मनु माने मनुआ।
तो उस मन को जो बड़ा चंचल है। कैसे चंचल है? हँ? अर्जुन के रथ में दिखाते हैं ना? क्या दिखाते हैं? हँ? अर्जुन के रथ में क्या दिखाते हैं? हनूमान। हनूमान की यादगार वो ध्वजा दिखाते हैं। हँ? जिस रथ में भगवान प्रवेश हैं और इन्द्रियों को कंट्रोल कर रहे हैं। इसका मतलब रथ में अभी इन्द्रियां कंट्रोल नहीं हुईं ना। नहीं हुईं हैं तो कहेंगे कि मन चंचल है या अचल है? चंचल है। चंचल है तो जो अर्जुन है, हँ, पतित मनुष्य है ना? तो उस पतित मनुष्य का जो रथ है उस रथ में वो दिखाया है ध्वजा के ऊपर। विजय का झंडा दिखाया है। हँ? विजय का झंडा जो दिखाया है उसमें कौन दिखाया? हनूमान। तो वो चंचल मन कौन है जो मनु से सालिम बुद्धि बन गया? हँ? ब्रह्मा बाबा दादा लेखराज। तो वो मनुष्य जो मनु की औलाद कहा जाता है तो वो मनु तो वो हुआ। हँ? कौन? चंचल मन। हनूमान। तो वो पहले मनुष्य से देवता बने मनु से, जो मन चंचल है उससे देवता बने।
अब ये तो समझा ना बच्ची कि ये कहानी बाप ने समझाई है। ये जो भी ड्रामा बना हुआ है ये है ही भारत के ऊपर। किसके ऊपर है? मनु के ऊपर नहीं है? मनुआ जो मनु से मनुष्य बनता है, हँ, और सारे ही मनुष्य उस मनुआ से ही जन्म लेते हैं। जो मनुष्य का बीज रूप, मनुष्य सृष्टि का बीज रूप बाप है वो किससे जन्म लेता है? किससे पता चलता है उसको? ब्रह्मा से पता चलता है। ब्रह्मा के मुख में शिव बाप प्रवेश करते हैं, हँ, तब ही तो पता चलता है कि ज्योतिबिन्दु आत्मा है। किसको पता चलता है? भारत को। क्यों नाम भारत दिया? क्योंकि भा माने रोशनी। ज्ञान की रोशनी कहो, पवित्रता की रोशनी कहो। ज्ञान से पवित्र तो दुनिया में कोई चीज़ नहीं है ना। वो ज्ञान से पवित्र, जो पवित्रता की आभा है, रोशनी है, जैसे और धरमपिताओं में भी रोशनी देखने में आती है ना चेहरे में, रूहानियत देखने में आती है ना? हाँ।
तो बताया – वो रूहानियत सबसे जास्ती किसमें देखने में आती है? (किसी ने कुछ कहा।) नारायण में देखने में आती है। लेकिन कब? नारायण का कनेक्शन; नारायण तो पहले पतित नर है ना। तो उसमें वो रोशनी कैसे आती है? वो आभा कहां से आती है, रूहानियत कहां से आती है जो रूहानियत को पवित्रता का भंडार कहा जाता है? कहां से आती है? (किसी ने कुछ कहा।) हां, ज्ञान से आती है। अच्छा? तो ज्ञान का विस्तार तो बहुत हो जाता है। बहुत विस्तार हो जाने से आ जाती है वो रूहानियत? वो तब ही आती; (किसी ने कुछ कहा।) शिव प्रवेश करता है? और शिव को प्रवेश किये हुए तो 80 साल हो गए। तो वो रूहानियत आई क्या किसी में? हँ? जो धरमपिताओं के, वो तो अधूरे धरमपिताएं हैं जो द्वापरयुग से आते हैं। परन्तु ये तो सत्य सनातन धर्म का प्रैक्टिकल में पार्ट बजाने वाला धरमपिता है ना। (किसी ने कुछ कहा।) निराकारी स्टेज आती है। तो वो निराकारी स्टेज जो आती है वो कब आती है जो साकारी बने ही नहीं? हँ? साकार माने देहभान। और निराकार माने? देहभान से परे, विदेही। तो वो कब आती है? (किसी ने कुछ कहा।) काम की बात में ये होता है। हँ? वो तब ही आती है प्रैक्टिकल में, बताया ना कि तुम तो प्रैक्टिकल में पुरुषार्ष कर रहे हो। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, लक्ष्मी से आती है। क्योंकि नारायण तो नर रूप में है तो दुर्योधन-दुःशासन हुआ ना? हँ? तो उसमें है या नहीं है? वो, अरे, वो रूहानियत जो प्योरिटी में होती है; क्या? पवित्रता कन्या में होती है या कंडुआ में होती है? हँ? किसमें होती है? कन्या में पवित्रता होती है। तो वो तो आलरेडी है ना? कौनसी कन्या में? कन्याओं में भी कोई कन्या गाई हुई है। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जिसको कहते हैं वरहूं शंभु न तु रहूं कुंवारी। ये किस समय का विरुद है? हँ? ये विरुद, ये जो प्रतिज्ञा धारण की; (किसी ने कुछ कहा।) संगम? पुरुषोत्तम संगमयुग की। हाँ।
तो पुरुषोत्तम संगमयुग में वो पुरुषोत्तम और पुरुषोत्तमनी कबसे प्रत्यक्ष होते हैं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) 76 से? दोनों? हँ? दोनों प्रत्यक्ष होते हैं? जिनमें वो आभा देखने में आए। आभा माने क्या? जो कन्याओं में जो पवित्रता होती है वो पवित्रता की खुशी देखने में आए। तो ये है ही भारत के ऊपर। जब भारत शब्द कहा जाता है तो भक्तिमार्ग में जो यादगार है वो किस भारत के लिए बोलते हैं ‘जय’? हँ? भारत तो माता भी है और भारत तो पिता भी है। ऐसे तो थोड़ेही है कि माता कोई विधवा है? विधवा है? विधवा तो नहीं है। तो भारत माता की जय बोलते हैं। क्यों बोलते हैं? हँ? भारत पिता की जय क्यों नहीं बोलते? कहाँ की यादगार? हँ? अरे, जय और विजय तो तब ही होती है जब पवित्रता की पावर का; क्या? संग मिले। तो जो पवित्रता की पावर का संग जो मिलता है, हँ, तब कहा जाता है कि संपन्न हुआ। कोई भी पुरुष हो, कोई भी नर हो। भारत में तो ये मान्यता है; क्या? कि जब तक शादी नहीं हुई, गांठ नहीं जोड़ी गई, तब तक अधूरा है कि संपन्न है? हँ? अरे? मन चलायमान रहेगा या अचल हो जाएगा? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, मन चलायमान रहता है। तो बताया – वो अचल तब ही होता है जब कोई कन्या के साथ गांठ जुड़ती है। अब कन्या जितनी पवित्र होगी, हँ, उतनी वो पवित्रता की पावर संग के रंग से आएगी या नहीं आएगी? आएगी।
तो ये है ही भारत के ऊपर सारा ड्रामा। अब उसे भारत माता कह दो या भारत पिता कह दो। कहानी कहो, कथा कहो बात एक ही है। अरे, रामायण की कथा कहो। तो रामायण की कथा में निमित्त कौन है रामायण की कथा का? किस के ऊपर वो बनती है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। रामायण की कथा बनती है किसके द्वारा, किसके ऊपर? निमित्त कौन बनता है? सीता निमित्त बनती है। अच्छा, महाभारत की जो कथा है सका निमित्त कौन बनता है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) द्रौपदी निमित्त बनती है। हाँ। तो ये तो निमित्त तो बनी ना। और ऐसे ही देवासुर संग्राम में। देवताओं में और असुरों में युद्ध हुआ। कथा बनी ना। तो कौन निमित्त बनी? अरे? लक्ष्मी निमित्त बनी।
तो बताया कि वो भारत माता के ऊपर ये सारा ड्रामा है। अच्छा? वो भारत माता जय क्यों बोलते हैं? हँ? अरे, वो कैसे जय जीत पाती है? अरे, जीत पाती है कि बंधन में रहती है? हँ? जीत पाती है या बंधन में रहती है? हँ? बंधन में रहती है। (किसी ने कुछ कहा।) नहीं रहती है? अच्छा? अग्नि के बंधन में नहीं रहती है? हँ? चलो, रावण के बंधन में नहीं रहती होगी क्योंकि दो सीताएं हैं – एक श्रीमत की लीका को उल्लंघन करने वाली। और एक वो है जो श्रीमत की लीका को उल्लंघन तो नहीं करती है। ठीक है। जितनी जानकारी है उतना तो नहीं उल्लंघन करती है। जानकारी तो उतनी ही होगी जितनी पढ़ाई पढ़ी होगी। बेसिक नॉलेज होगी तो बेसिकली ज्ञान होगा। और ऊँची पढ़ाई पढ़ी होगी तो गहराई का ज्ञान होगा। होगा कि नहीं? तो बताया कि भारत माता के ऊपर ये सारी कहानी है, भारत के ऊपर कहानी है।
The morning class dated 28.11.1967 was being narrated. On Tuesday, we were discussing at the second line of the fifth page: There is nothing in the intellect of the worldly people about the arrival of heaven. They say: Forty thousand years of the Iron Age are left now. And you know about heaven. So, you remain so happy! It is because you are making purusharth to go to heaven in practical, to become a deity from a human being, aren’t you? From what? Hm? The progeny of Manu [are called] manushya (human being). So, when will he be called the complete Manu? (Someone said something.) Yes. It is about here. But we became deities from human beings in the previous cycle. So, who is that Manu whose progeny were the deities? (Someone said something.) Yes. Manu means manua (mind).
So, that mind which is very inconstant… How is it inconstant? Hm? It is shown in the Chariot of Arjun, isn’t it? What is shown? Hm? What is shown in the Chariot of Arjun? Hanuman. A flag is shown as the yadgaar (memorial) of Hanuman. Hm? God has entered that Chariot and He is controlling the organs (indriyaan). It means, the indriyaan aren’t under the control in the Chariot yet, are they? If they aren’t, will the mind be called inconstant or constant? It is inconstant. It is inconstant. So, Arjun is a sinful human being, isn’t he? So, he (Hanuman) is shown above on the flag in the Chariot of that sinful human being. The flag of victory has been shown. Hm? Who has been shown in the flag of victory? Hanuman. So, who is that inconstant mind, the one who became the one with a mature intellect from Manu? Hm? Brahma Baba, Dada Lekhraj. So, that human being who is called the child of Manu, he is in fact that Manu. Hm? Who? The inconstant mind, Hanuman. So, first, he should become a deity from a human being, he should become a deity from Manu, the one who is an inconstant mind.
Now, daughter, you have certainly understood this, haven’t you? The Father has explained this story: whatever drama is made, it is based only on Bharat. Based on whom is it made? Isn’t it made on Manu? Manua who becomes a human being from Manu. And all the human beings are born from that very Manua. From whom is the seed form Father of the human world born? From whom does he know? He knows from Brahma. The Father Shiva enters the mouth of Brahma, only then does he know that he is a point of light soul. Who knows this? Bhaarat. Why did He name Him Bhaarat? It is because ‘bha’ means light, call it the light of knowledge or the light of purity. Nothing is purer than knowledge in the world, is it? So, purer than knowledge… the radiance, light of purity... For example, the light is visible on the face of other religious fathers too, isn’t it? Spirituality is seen, isn’t it? Yes.
So, it was said: In whom is that spirituality seen the most? (Someone said something.) It is seen in Narayan. But when? The connection of Narayan… First, Narayan is a sinful man, isn’t he? So, how does that light come in him? Where does that radiance, spirituality come from? Spirituality is said to be the storehouse of purity. Where does it come from? (Someone said something.) Yes. It comes from knowledge. Accha? There is a lot of expansion of knowledge. Does that spirituality come when there is a lot of expansion? It comes only when… (Someone said something.) Shiva enters? Eighty years have passed since the entrance of Shiva. Did that spirituality come in anyone? The religious fathers… well, those ones, they are incomplete religious fathers who come from the Copper Age, but this is the religious Father of the True Ancient Religion who plays a part in practical, isn’t he? (Someone said something.) The incorporeal stage comes? When does that incorporeal stage come so that he won’t become corporeal at all? Hm? Corporeal means body conscious. And incorporeal means? Beyond body consciousness, videhi (without a body). So, when does it come? (Someone said something.) It happens in the topic of lust. Hm? It comes in practical only when… It was said, wasn’t it? You are making purushaarth in practical. (Someone said something.) Yes. It comes from Lakshmi. It is because when Narayan is in a male form, he is Duryodhan-Dushashan, isn’t he? Hm? So, is it present in him or not? That, arey, that spirituality which is present in the purity ... what? Does a maiden have purity or does a male have it? Hm? Who has it? A maiden has purity. So, it is already present in her, isn’t it? In which maiden? There is a maiden famous among [all] the maidens. Hm? (Someone said something.) Yes, the one who for whom it is said: Varau shambhu na to rahun kunvaari (I will either marry Shambhu or remain unmarried). It is the promise of which time? The promise, the oath that she took is of which… (Someone said something.) The Confluence [Age]? The Purushottam (Elevated) Confluence Age! Yes.
When are those Purushottam and Purushottami revealed in the Purushottam Confluence Age? Hm? (Someone said something.) In 76. Both? Hm? Are both of them revealed? The ones in whom that radiance is visible. What does radiance mean? The purity that is present in the maidens, the happiness of that purity should be visible. So, this is [based] only on Bhaarat. When the word ‘Bhaarat’ is said, the memorial on the path of Bhakti... for which Bhaarat do they say ‘jai (victory)’? Hm? Bhaarat is the mother as well as the Father. It isn’t that the mother is a widow. Is she a widow? She certainly isn’t a widow. So, it is said: Bhaarat mata ki jai (victory to the Mother India). Why do they say it? Hm? Why don’t they say victory to the Father India? It is the remembrance of when? Arey, jai and vijay (victory) is achieved only when you receive the company of the power of purity. When you receive the company of the power of purity, hm, then it is said that you became complete. It may be any male, any man. In Bharat it is believed; what? Until someone is married, until the knot is tied, is he [a man] incomplete or complete? Hm? Arey? Will the mind remain unstable or will it become stable? (Someone said something.) Yes, the mind remains unstable. So, it was said: He becomes stable only when the knot is tied with some maiden. Now, the purer a maiden is, hm, the more the power of purity will come [in him] through the colour of her company or will it not? It will.
So, the entire drama is based only on Bhaarat. Well, call him/her the Mother India or the Father India. Call it a story or a tale, it is one and the same thing. Arey. Call it the story of Ramayana. So, who is the instrument for the story of Ramayana? Based on whom is it made? Hm? (Someone said something.) Yes. The story of Ramayana is made by whom, on whom? Who becomes the instrument? Sita becomes the instrument. Accha, who becomes the instrument for the story of Mahabharata? Hm? (Someone said something.) Yes. Draupadi becomes the instrument. Yes. So, she did become the instrument, didn’t she? It is the same case with the Devaasur Sangraam, there was a war between the deities and the demons; a story is made, isn’t it? So, who became the instrument? Arey! Lakshmi became the instrument.
So, it was said that this entire drama is [based] on Mother India. Accha, why do they say hail to Mother India? Arey! How does she gain victory? Arey! Does she gain victory or does she remain in bondage? Hm? Does she gain victory or does she remain in bondage? Hm? She remains in bondage. (Someone said something.) Doesn’t she? Accha? Doesn’t she remain in the bondage of fire? Hm? Well, she may not remain in the bondage of Ravan because there are two Sitas. One is the one who violates the line of Shrimat. And the other is the one who doesn’t violate the line of Shrimat. It is alright. She doesn’t violate it to the extent she has the information. She will have the information to the extent she would have studied. If she has [studied] the basic knowledge, she will have information basically. And if she has studied a higher study, she will know the knowledge in depth. Will she or not? So, it was said that this entire story is based on Mother India, the story is on Bhaarat.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2907, दिनांक 10.06.2019
VCD 2907, dated 10.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2907-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.20
Time- 00.01-15.20
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को पांचवें पेज की दूसरी लाइन में बात चल रही थी - दुनियावालों की बुद्धि में तो कुछ भी नहीं है कि स्वर्ग कब आएगा। वो तो कहते हैं चालीस हज़ार वर्ष अभी कलियुग के पड़े हुए हैं। और तुमको स्वर्ग का पता है। तो तुम कितना खुशी में रहते हो। क्योंकि तुम तो प्रैक्टिकल में पुरुषार्ष कर रहे हो ना स्वर्ग में जाने का, मनुष्य से देवता बनने का। काहे से? हँ? मनु की औलाद मनुष्य। तो संपन्न मनु कब कहेंगे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हां। वो तो यहां की बात। हँ? लेकिन पूर्व कल्प में मनुष्य से देवता बने थे। हँ? तो वो मनु कौन जिसकी औलाद बने थे देवता? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। मनु माने मनुआ।
तो उस मन को जो बड़ा चंचल है। कैसे चंचल है? हँ? अर्जुन के रथ में दिखाते हैं ना? क्या दिखाते हैं? हँ? अर्जुन के रथ में क्या दिखाते हैं? हनूमान। हनूमान की यादगार वो ध्वजा दिखाते हैं। हँ? जिस रथ में भगवान प्रवेश हैं और इन्द्रियों को कंट्रोल कर रहे हैं। इसका मतलब रथ में अभी इन्द्रियां कंट्रोल नहीं हुईं ना। नहीं हुईं हैं तो कहेंगे कि मन चंचल है या अचल है? चंचल है। चंचल है तो जो अर्जुन है, हँ, पतित मनुष्य है ना? तो उस पतित मनुष्य का जो रथ है उस रथ में वो दिखाया है ध्वजा के ऊपर। विजय का झंडा दिखाया है। हँ? विजय का झंडा जो दिखाया है उसमें कौन दिखाया? हनूमान। तो वो चंचल मन कौन है जो मनु से सालिम बुद्धि बन गया? हँ? ब्रह्मा बाबा दादा लेखराज। तो वो मनुष्य जो मनु की औलाद कहा जाता है तो वो मनु तो वो हुआ। हँ? कौन? चंचल मन। हनूमान। तो वो पहले मनुष्य से देवता बने मनु से, जो मन चंचल है उससे देवता बने।
अब ये तो समझा ना बच्ची कि ये कहानी बाप ने समझाई है। ये जो भी ड्रामा बना हुआ है ये है ही भारत के ऊपर। किसके ऊपर है? मनु के ऊपर नहीं है? मनुआ जो मनु से मनुष्य बनता है, हँ, और सारे ही मनुष्य उस मनुआ से ही जन्म लेते हैं। जो मनुष्य का बीज रूप, मनुष्य सृष्टि का बीज रूप बाप है वो किससे जन्म लेता है? किससे पता चलता है उसको? ब्रह्मा से पता चलता है। ब्रह्मा के मुख में शिव बाप प्रवेश करते हैं, हँ, तब ही तो पता चलता है कि ज्योतिबिन्दु आत्मा है। किसको पता चलता है? भारत को। क्यों नाम भारत दिया? क्योंकि भा माने रोशनी। ज्ञान की रोशनी कहो, पवित्रता की रोशनी कहो। ज्ञान से पवित्र तो दुनिया में कोई चीज़ नहीं है ना। वो ज्ञान से पवित्र, जो पवित्रता की आभा है, रोशनी है, जैसे और धरमपिताओं में भी रोशनी देखने में आती है ना चेहरे में, रूहानियत देखने में आती है ना? हाँ।
तो बताया – वो रूहानियत सबसे जास्ती किसमें देखने में आती है? (किसी ने कुछ कहा।) नारायण में देखने में आती है। लेकिन कब? नारायण का कनेक्शन; नारायण तो पहले पतित नर है ना। तो उसमें वो रोशनी कैसे आती है? वो आभा कहां से आती है, रूहानियत कहां से आती है जो रूहानियत को पवित्रता का भंडार कहा जाता है? कहां से आती है? (किसी ने कुछ कहा।) हां, ज्ञान से आती है। अच्छा? तो ज्ञान का विस्तार तो बहुत हो जाता है। बहुत विस्तार हो जाने से आ जाती है वो रूहानियत? वो तब ही आती; (किसी ने कुछ कहा।) शिव प्रवेश करता है? और शिव को प्रवेश किये हुए तो 80 साल हो गए। तो वो रूहानियत आई क्या किसी में? हँ? जो धरमपिताओं के, वो तो अधूरे धरमपिताएं हैं जो द्वापरयुग से आते हैं। परन्तु ये तो सत्य सनातन धर्म का प्रैक्टिकल में पार्ट बजाने वाला धरमपिता है ना। (किसी ने कुछ कहा।) निराकारी स्टेज आती है। तो वो निराकारी स्टेज जो आती है वो कब आती है जो साकारी बने ही नहीं? हँ? साकार माने देहभान। और निराकार माने? देहभान से परे, विदेही। तो वो कब आती है? (किसी ने कुछ कहा।) काम की बात में ये होता है। हँ? वो तब ही आती है प्रैक्टिकल में, बताया ना कि तुम तो प्रैक्टिकल में पुरुषार्ष कर रहे हो। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, लक्ष्मी से आती है। क्योंकि नारायण तो नर रूप में है तो दुर्योधन-दुःशासन हुआ ना? हँ? तो उसमें है या नहीं है? वो, अरे, वो रूहानियत जो प्योरिटी में होती है; क्या? पवित्रता कन्या में होती है या कंडुआ में होती है? हँ? किसमें होती है? कन्या में पवित्रता होती है। तो वो तो आलरेडी है ना? कौनसी कन्या में? कन्याओं में भी कोई कन्या गाई हुई है। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जिसको कहते हैं वरहूं शंभु न तु रहूं कुंवारी। ये किस समय का विरुद है? हँ? ये विरुद, ये जो प्रतिज्ञा धारण की; (किसी ने कुछ कहा।) संगम? पुरुषोत्तम संगमयुग की। हाँ।
तो पुरुषोत्तम संगमयुग में वो पुरुषोत्तम और पुरुषोत्तमनी कबसे प्रत्यक्ष होते हैं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) 76 से? दोनों? हँ? दोनों प्रत्यक्ष होते हैं? जिनमें वो आभा देखने में आए। आभा माने क्या? जो कन्याओं में जो पवित्रता होती है वो पवित्रता की खुशी देखने में आए। तो ये है ही भारत के ऊपर। जब भारत शब्द कहा जाता है तो भक्तिमार्ग में जो यादगार है वो किस भारत के लिए बोलते हैं ‘जय’? हँ? भारत तो माता भी है और भारत तो पिता भी है। ऐसे तो थोड़ेही है कि माता कोई विधवा है? विधवा है? विधवा तो नहीं है। तो भारत माता की जय बोलते हैं। क्यों बोलते हैं? हँ? भारत पिता की जय क्यों नहीं बोलते? कहाँ की यादगार? हँ? अरे, जय और विजय तो तब ही होती है जब पवित्रता की पावर का; क्या? संग मिले। तो जो पवित्रता की पावर का संग जो मिलता है, हँ, तब कहा जाता है कि संपन्न हुआ। कोई भी पुरुष हो, कोई भी नर हो। भारत में तो ये मान्यता है; क्या? कि जब तक शादी नहीं हुई, गांठ नहीं जोड़ी गई, तब तक अधूरा है कि संपन्न है? हँ? अरे? मन चलायमान रहेगा या अचल हो जाएगा? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, मन चलायमान रहता है। तो बताया – वो अचल तब ही होता है जब कोई कन्या के साथ गांठ जुड़ती है। अब कन्या जितनी पवित्र होगी, हँ, उतनी वो पवित्रता की पावर संग के रंग से आएगी या नहीं आएगी? आएगी।
तो ये है ही भारत के ऊपर सारा ड्रामा। अब उसे भारत माता कह दो या भारत पिता कह दो। कहानी कहो, कथा कहो बात एक ही है। अरे, रामायण की कथा कहो। तो रामायण की कथा में निमित्त कौन है रामायण की कथा का? किस के ऊपर वो बनती है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। रामायण की कथा बनती है किसके द्वारा, किसके ऊपर? निमित्त कौन बनता है? सीता निमित्त बनती है। अच्छा, महाभारत की जो कथा है सका निमित्त कौन बनता है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) द्रौपदी निमित्त बनती है। हाँ। तो ये तो निमित्त तो बनी ना। और ऐसे ही देवासुर संग्राम में। देवताओं में और असुरों में युद्ध हुआ। कथा बनी ना। तो कौन निमित्त बनी? अरे? लक्ष्मी निमित्त बनी।
तो बताया कि वो भारत माता के ऊपर ये सारा ड्रामा है। अच्छा? वो भारत माता जय क्यों बोलते हैं? हँ? अरे, वो कैसे जय जीत पाती है? अरे, जीत पाती है कि बंधन में रहती है? हँ? जीत पाती है या बंधन में रहती है? हँ? बंधन में रहती है। (किसी ने कुछ कहा।) नहीं रहती है? अच्छा? अग्नि के बंधन में नहीं रहती है? हँ? चलो, रावण के बंधन में नहीं रहती होगी क्योंकि दो सीताएं हैं – एक श्रीमत की लीका को उल्लंघन करने वाली। और एक वो है जो श्रीमत की लीका को उल्लंघन तो नहीं करती है। ठीक है। जितनी जानकारी है उतना तो नहीं उल्लंघन करती है। जानकारी तो उतनी ही होगी जितनी पढ़ाई पढ़ी होगी। बेसिक नॉलेज होगी तो बेसिकली ज्ञान होगा। और ऊँची पढ़ाई पढ़ी होगी तो गहराई का ज्ञान होगा। होगा कि नहीं? तो बताया कि भारत माता के ऊपर ये सारी कहानी है, भारत के ऊपर कहानी है।
The morning class dated 28.11.1967 was being narrated. On Tuesday, we were discussing at the second line of the fifth page: There is nothing in the intellect of the worldly people about the arrival of heaven. They say: Forty thousand years of the Iron Age are left now. And you know about heaven. So, you remain so happy! It is because you are making purusharth to go to heaven in practical, to become a deity from a human being, aren’t you? From what? Hm? The progeny of Manu [are called] manushya (human being). So, when will he be called the complete Manu? (Someone said something.) Yes. It is about here. But we became deities from human beings in the previous cycle. So, who is that Manu whose progeny were the deities? (Someone said something.) Yes. Manu means manua (mind).
So, that mind which is very inconstant… How is it inconstant? Hm? It is shown in the Chariot of Arjun, isn’t it? What is shown? Hm? What is shown in the Chariot of Arjun? Hanuman. A flag is shown as the yadgaar (memorial) of Hanuman. Hm? God has entered that Chariot and He is controlling the organs (indriyaan). It means, the indriyaan aren’t under the control in the Chariot yet, are they? If they aren’t, will the mind be called inconstant or constant? It is inconstant. It is inconstant. So, Arjun is a sinful human being, isn’t he? So, he (Hanuman) is shown above on the flag in the Chariot of that sinful human being. The flag of victory has been shown. Hm? Who has been shown in the flag of victory? Hanuman. So, who is that inconstant mind, the one who became the one with a mature intellect from Manu? Hm? Brahma Baba, Dada Lekhraj. So, that human being who is called the child of Manu, he is in fact that Manu. Hm? Who? The inconstant mind, Hanuman. So, first, he should become a deity from a human being, he should become a deity from Manu, the one who is an inconstant mind.
Now, daughter, you have certainly understood this, haven’t you? The Father has explained this story: whatever drama is made, it is based only on Bharat. Based on whom is it made? Isn’t it made on Manu? Manua who becomes a human being from Manu. And all the human beings are born from that very Manua. From whom is the seed form Father of the human world born? From whom does he know? He knows from Brahma. The Father Shiva enters the mouth of Brahma, only then does he know that he is a point of light soul. Who knows this? Bhaarat. Why did He name Him Bhaarat? It is because ‘bha’ means light, call it the light of knowledge or the light of purity. Nothing is purer than knowledge in the world, is it? So, purer than knowledge… the radiance, light of purity... For example, the light is visible on the face of other religious fathers too, isn’t it? Spirituality is seen, isn’t it? Yes.
So, it was said: In whom is that spirituality seen the most? (Someone said something.) It is seen in Narayan. But when? The connection of Narayan… First, Narayan is a sinful man, isn’t he? So, how does that light come in him? Where does that radiance, spirituality come from? Spirituality is said to be the storehouse of purity. Where does it come from? (Someone said something.) Yes. It comes from knowledge. Accha? There is a lot of expansion of knowledge. Does that spirituality come when there is a lot of expansion? It comes only when… (Someone said something.) Shiva enters? Eighty years have passed since the entrance of Shiva. Did that spirituality come in anyone? The religious fathers… well, those ones, they are incomplete religious fathers who come from the Copper Age, but this is the religious Father of the True Ancient Religion who plays a part in practical, isn’t he? (Someone said something.) The incorporeal stage comes? When does that incorporeal stage come so that he won’t become corporeal at all? Hm? Corporeal means body conscious. And incorporeal means? Beyond body consciousness, videhi (without a body). So, when does it come? (Someone said something.) It happens in the topic of lust. Hm? It comes in practical only when… It was said, wasn’t it? You are making purushaarth in practical. (Someone said something.) Yes. It comes from Lakshmi. It is because when Narayan is in a male form, he is Duryodhan-Dushashan, isn’t he? Hm? So, is it present in him or not? That, arey, that spirituality which is present in the purity ... what? Does a maiden have purity or does a male have it? Hm? Who has it? A maiden has purity. So, it is already present in her, isn’t it? In which maiden? There is a maiden famous among [all] the maidens. Hm? (Someone said something.) Yes, the one who for whom it is said: Varau shambhu na to rahun kunvaari (I will either marry Shambhu or remain unmarried). It is the promise of which time? The promise, the oath that she took is of which… (Someone said something.) The Confluence [Age]? The Purushottam (Elevated) Confluence Age! Yes.
When are those Purushottam and Purushottami revealed in the Purushottam Confluence Age? Hm? (Someone said something.) In 76. Both? Hm? Are both of them revealed? The ones in whom that radiance is visible. What does radiance mean? The purity that is present in the maidens, the happiness of that purity should be visible. So, this is [based] only on Bhaarat. When the word ‘Bhaarat’ is said, the memorial on the path of Bhakti... for which Bhaarat do they say ‘jai (victory)’? Hm? Bhaarat is the mother as well as the Father. It isn’t that the mother is a widow. Is she a widow? She certainly isn’t a widow. So, it is said: Bhaarat mata ki jai (victory to the Mother India). Why do they say it? Hm? Why don’t they say victory to the Father India? It is the remembrance of when? Arey, jai and vijay (victory) is achieved only when you receive the company of the power of purity. When you receive the company of the power of purity, hm, then it is said that you became complete. It may be any male, any man. In Bharat it is believed; what? Until someone is married, until the knot is tied, is he [a man] incomplete or complete? Hm? Arey? Will the mind remain unstable or will it become stable? (Someone said something.) Yes, the mind remains unstable. So, it was said: He becomes stable only when the knot is tied with some maiden. Now, the purer a maiden is, hm, the more the power of purity will come [in him] through the colour of her company or will it not? It will.
So, the entire drama is based only on Bhaarat. Well, call him/her the Mother India or the Father India. Call it a story or a tale, it is one and the same thing. Arey. Call it the story of Ramayana. So, who is the instrument for the story of Ramayana? Based on whom is it made? Hm? (Someone said something.) Yes. The story of Ramayana is made by whom, on whom? Who becomes the instrument? Sita becomes the instrument. Accha, who becomes the instrument for the story of Mahabharata? Hm? (Someone said something.) Yes. Draupadi becomes the instrument. Yes. So, she did become the instrument, didn’t she? It is the same case with the Devaasur Sangraam, there was a war between the deities and the demons; a story is made, isn’t it? So, who became the instrument? Arey! Lakshmi became the instrument.
So, it was said that this entire drama is [based] on Mother India. Accha, why do they say hail to Mother India? Arey! How does she gain victory? Arey! Does she gain victory or does she remain in bondage? Hm? Does she gain victory or does she remain in bondage? Hm? She remains in bondage. (Someone said something.) Doesn’t she? Accha? Doesn’t she remain in the bondage of fire? Hm? Well, she may not remain in the bondage of Ravan because there are two Sitas. One is the one who violates the line of Shrimat. And the other is the one who doesn’t violate the line of Shrimat. It is alright. She doesn’t violate it to the extent she has the information. She will have the information to the extent she would have studied. If she has [studied] the basic knowledge, she will have information basically. And if she has studied a higher study, she will know the knowledge in depth. Will she or not? So, it was said that this entire story is based on Mother India, the story is on Bhaarat.
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Morning class dated 28.11.1967
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समय- 00.01-14.50
Time- 00.01-14.50
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को पांचवें पेज के मध्यादि में बात चल रही थी कि जो लांग-लांग अगो कहकरके कहानी या कथा बताते हैं वो कोई लाखों वर्ष की आखानी थोड़ेही हो सकती है। लाखों वरष का पुराना कोई मनुष्य होता ही नहीं है। अरे, पुराने ते पुराना यहां देखो ये पुरानी बातें। जैसे ये क्रिश्चियन लोग हैं ना ये पुरानी चीज़ मांगते हैं। क्यों? क्योंकि ये खोज करना नई-नई बातों की ये किसने सिखाया? हँ? ये क्रिश्चियन्स ने सिखाया कि भई नई-नई बातों की रिसर्च करना है तो एकदम पुराने, गहराई में जाओ। अभी थोड़ा विचार करो पुराने ते पुरानी चीज़ क्या होगी? बस। पुराने-पुराने तो ये ही, ये ही होंगे ना। कौन? जिसको वो क्रिश्चियन्स कहते हैं लॉर्ड। कृष्ण को लॉर्ड कहते हैं ना। क्राइस्ट से 3000 वर्ष पहले भारत में पैराडाइज़ था, लॉर्ड कृष्ण का राज्य था। तो लॉर्ड कृष्ण कहते हैं। उनके चित्र इन सबसे पुराने। उनसे पुरानी कोई चीज़ होगी क्या? बस। ये वो ही, वो ही पुरानी चीज़। तो पुराना तो ये चित्र है कृष्ण। हँ? वो ये चीज़ें उसको चित्र इनका चाहिए।
बाबा समझाया था ना ये अमेरिकन लोग आते हैं। ये दिलवाड़ा मन्दिर देखकरके आए ना। इनका एक मूर्ति उनको मिले ना तो एक ही मूर्ति का लाख डेढ़ लाख, दो रुपये देने के लिए तैयार। हँ? ये पुरानी चीज़ें बेची। फिर ये गणेशीलाल का पुराना रखते थे। अभी पटना में वो कोई हीरालाल है। और उनके पास ये म्यूजियम है पुराने चित्रों का, पुराने मूर्तियों का। अरे, एक रखा है वो लोहे का। कोई से उठता ही नहीं है। कोई कितना भी ताकत लगाए उठ ही नहीं सके। पता नहीं इसका कारण क्या है? अच्छा, दाम क्या है? फोर्टी थाउसेंड। अरे, भई लोहे की चीज़ है वर्थ नॉट ए पैनी। हँ? भई उठाय ही नहीं सकते। बस, कहें ये पुराना है। ये हरण है कि क्या है? चीज़ हम भूल गए। कोई भी प्लेट उठाएंगे चीनी की, हाँ, ये इसका दाम कितना है? कहेगा दस हज़ार। क्यों? अरे, ये उनकी बनाई हुई चीज़ है। जरा नाम भूल जाते हैं। ये चीन में कोई एक चीनी की कोई चीज़ें होती हैं। बहुत अच्छी होती हैं पुरानी। तो देखो, ये बीस हज़ार रुपये। ये चीनी टुकड़ी। ये अभी गिरे हाथ से तो टुकड़ा-टुकड़ा हो जावे। उसका दस हज़ार, बीस हज़ार। तो पैसा उनसे ही कमाते हैं। हँ? कमाते हैं ना?
वो अमेरिकन्स, क्रिश्चियन्स यहाँ आते हैं। वो ले जाते हैं मूर्तियां। तो मूर्तियां वहां ले जाकरके 4-4, 5-5 हज़ार में और वहां जाकरके 20-20 हज़ार ले लेते हैं। 20 हज़ार में जाकर बेचते हैं चार गुने, पांच गुने दाम पे। कहेंगे ये पुरानी है। 28.11.1967 की प्रातः क्लास का छठा पेज, मंगलवार। अभी कभी कोई से पूछें कितनी पुरानी है? तो बोलेंगे ये चालीस हज़ार वर्ष पुरानी, साठ हज़ार वर्ष, लाखों वर्ष पुरानी, दो लाख, ऐसे कह देते हैं। अरे भई, लाख, दो लाख वर्ष पुरानी तो कोई चीज़ हो ही नहीं सकती। हँ? अरे, हिस्ट्री बनाने वालों ने हिस्ट्री में क्या लिखा? जो दुनिया में गहरी-गहरी खुदाइयां हुई हैं जमीन की तो उनमें कितनी पुरानी चीज़ें मिली हैं? कहते हैं ज्यादा से ज्यादा 5000 वर्ष पुरानी। इससे ज्यादा पुरानी चीज़ कोई मिलती ही नहीं है।
बुद्धि कहती है पुराने ते पुराना। सबसे पुराना ये ही नंबरवन श्री कृष्ण। श्री कृष्ण की ही दिल से जाकरके चीज़ें लेते हैं। समझा ना? जो भी आएंगे, बोलेंगे हमको लॉर्ड कृष्ण की मूर्ति दियो। हँ? अरे भई, क्यों? श्री नारायण की मूर्ति क्यों नहीं लेते हो? हँ? नो, नो, आइ वांट लॉर्ड कृष्ण, नो नारायण। अरे भई, क्यों? उनमें क्या फर्क है? तो देखो, तुम बच्चे तो बुद्धि से समझ सकते हो क्या फर्क है? हँ? पहले कृष्ण बच्चा होता है फिर बाद में नारायण होता है या पहले नारायण हो जाता है? हँ? तो पुराना कौन हुआ? कृष्ण पुराना हुआ ना? तो देखो, तुम क्यों समझ सकते हो? हँ? क्योंकि तुमको असलियत बात बताय दी। पूछो - कृष्ण को क्यों लेते हैं? ये लक्ष्मी-नारायण की मूर्ति क्यों नहीं लेते? हँ? इनमें दिल क्यों नहीं जाती है? क्योंकि वो बैठा है और वो शादी किया हुआ है। हँ? अभी उनको ये तो मालूम नहीं है कि ये प्योरिटी की बात है। क्या? जितना-जितना पुराना होगा, जास्ती प्योर होगा ना? तो प्योरिटी की कीमत होती है। जो पहले-पहले ये इस सृष्टि में नई दुनिया बनी, हँ, और हैविनली गॉड फादर ने ही बनाई ना। तो पवित्र दुनिया बनाई। गॉड फादर से जास्ती तो एवर प्योर कोई होता नहीं। तो पवित्र ही बनाएगा ना? तो वो वाइसलैस वर्ल्ड है।
और ये किसको मालूम थोड़ेही है वाइसलैस वर्ल्ड कब थी, क्या होती है? वाइसलैस वर्ल्ड को ये बोलेगा – अरे, लाखों बरस हो गया। अच्छा? तो अभी वाइसलैस वर्ल्ड कहां से आई? परन्तु कई बच्चे हैं जो बोलें वाइसलैस वर्ल्ड, अरे, यहाँ इस दुनिया में हो ही कहां सकती है? तुम जब ये समझाते हो ये, ये प्रदर्शनी में तो कहते हो वाइसलैस। पर यहां तो वाइसलैस वर्ल्ड हो ही नहीं सकती है। वाइसलैस बन जाएं तो बच्चा कैसे पैदा होगा? अरे, पर ये देखो तुम कहते हो ना। तुम बच्चे तो कहते हो कि ये, ये संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी हैं। हँ? 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण अहिंसक, मर्यादा पुरुषोत्तम, संपूर्ण निर्विकारी बताते हो ना? तो निर्विकारी को वाइसलैस कहा जाता है ना। फिर तुम कहते, क्यों कहते हो ये विशियस है लक्ष्मी-नारायण की मूर्ति? तो हैविनली गॉड फादर ने क्या विशियस दुनिया पैदा की? हँ?
शास्त्रों में तो उन्होंने पढ़ लिया, इंडियन्स के जो शास्त्र हैं उनमें तो पढ़ लिया कि भगवान क्या करते हैं? विशियस नर को, हँ, वाइसलैस नारायण बनाते हैं। तो नारायण को तुम विशियस बताते हो? हँ? नारायण बनाया नर को तो क्या विशियस दुनिया बनाई? तो फर्क तभी क्या है? अरे, स्वर्ग किसको कहा जाता है? और नरक किसको कहा जाता है? कहेंगे नहीं, वो अपनी शिद्दत पर रहेंगे कि इम्पासिबल है। कभी हो ही नहीं सकते हैं कि कोई भी वाइसलैस दुनिया होवे। हँ? क्योंकि खुद वाइसलैस नहीं हैं बाप, दादे, परदादे, तरदादे कोई भी वाइसलैस नहीं थे, तो वो इस बात को मानेंगे नहीं कि कोई वाइसलैस दुनिया हो सकती है बिना विकारों के बच्चे पैदा हो जाएं। नहीं। कहेंगे बच्चे कैसा पैदा करेंगे जो वाइसलैस वर्ल्ड होगी? तो पीछे बड़ी शिद्दत करते हैं। हँ? हठ करते हैं। तो भई फिर इन लोगों को छोड़ देना पड़ता है। क्या छोड़ देना पड़ता है? समझाना ही छोड़ देना पड़ता है। (क्रमशः)
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the fifth page on Tuesday was that the story that people narrate saying ‘long, long ago’ cannot be lakhs of years old story. There is no human being who is lakhs of years old. Arey, look at the oldest thing here, these old topics. For example, these Christians seek old things, don’t they? Why? It is because who taught you to discover newer things? Hm? It is these Christians who taught that brother, if you want to do research on newer topics then go into completely old, depth. Now just think what would be the oldest thing? That is it. It will be these, these alone will be the oldest ones. Who? The one whom Christians call Lord. They call Krishna as Lord, don’t they? There was Paradise in India, kingdom of Lord Krishna 3000 years before Christ. So, they call him Lord Krishna. His pictures are older than all these. Will there be anything older than that? That is it. This is the same, the same old thing. So, this Krishna is the old picture. Hm? They want these things, his photo.
Baba had explained, hadn’t He that these Americans come. They saw this Dilwara temple and came, didn’t they? If they get one of these idols, then they will be ready to pay a lakh, one and a half lakh or two [lakh] rupees for a single idol. Hm? These old things were sold. Then they used to keep the old one of Ganeshilal. Now there is one Hiralal in Patna. And he has this museum of old pictures, old idols. Arey, one of them is of iron. Nobody can lift it at all. However much strength one may use, it cannot be lifted at all. Who knows what the reason is for this? Achcha, what is the price? Forty thousand. Arey, brother, an iron thing is worth not a penny. Hm? Brother, it cannot be lifted at all. That is it; they say, it is old. It is haran or what? I forgot the thing. They will lift any Chinese plate, yes, what is its price? He will say – Ten thousand. Why? Arey, this is a thing made by them. I just forgot the name. In China there are things made up of porcelain. They are very nice, old. So, look, these twenty thousand rupees. This piece of porcelain. If it falls from your hands now, then it will break into pieces. Ten thousand, twenty thousand for that. So, they earn money from that only. Hm? They earn, don’t they?
Those Americans, Christians come here. They take away the idols. So, they purchase the idols [here] for 4, 5 thousand and they go there and take 20 thousand for that. They go and sell it for 20 thousand at four-fold, five-fold rates. They will say that this is ancient. Sixth page of the Morning class dated 28.11.1967, Tuesday. Now if anyone is asked as to how old is it? Then they say this is forty thousand years old, sixty thousand years old, lakhs of years old, two lakh [years old]; they say like this. Arey brother, nothing can be a lakh or two lakh years old. Hm? Arey, what did the history writers write in the history? In the deep excavations that have taken place in the world, how old things have been found? It is said that at the most 5000 years old. Nothing older than that is found at all.
The intellect says – oldest of all. Oldest is this number one Shri Krishna. People buy things related only to Shri Krishna from their hearts. You have understood, haven’t you? Whoever comes, they will say – Give me the idol of Lord Krishna. Hm? Arey brother, why? Why don’t you buy the idol of Shri Narayan? Hm? No, no, I want Lord Krishna; no Narayan. Arey brother, why? What is the difference between them? So, look, you children can understand through the intellect as to what is the difference? Hm? Is Krishna initially a child and then becomes Narayan or does he become Narayan in the beginning itself? Hm? So, who is older? Krishna is older, isn’t he? So, look, why can you understand? Hm? It is because you have been told the truth. Ask – Why do you take Krishna? Why don’t you take this idol of Lakshmi-Narayan? Hm? Why doesn’t your heart get attracted to them? It is because he is sitting and has got married. Hm? Now they do not know that this is a topic of purity. What? The older something is, the purer it will be, will it not be? So, the price is of the purity. The new world that was established in this world first of all; and it was established by the Heavenly God Father only, wasn’t it? So, He established a pure world. Nobody is more ever pure than God Father. So, He will make pure only, will He not? So, that is a viceless world.
And nobody knows as to when did the viceless world exist and what it is. This one will say about the viceless world that arey, it has been lakhs of years. Achcha? So, where did the viceless world come from now? But there are many children who say viceless world, arey, how can it exist here in this world at all? When you explain in the exhibition, then you say viceless. But the viceless world cannot exist here at all. If we become viceless then how will the child be born? Arey, but look, you say, don’t you? You children say that these are completely, completely viceless. Hm? Perfect in 16 celestial degrees, completely non-violent, highest among all in following the code of conduct (Maryadas purushottam), completely viceless; you tell, don’t you? So, the one without vices (nirvikaari) is called viceless, isn’t he? Then why do you say that this idol of Lakshmi-Narayan is vicious? So, did the Heavenly God Father create a vicious world? Hm?
They have read in the scriptures; they have read in the scriptures of the Indians that what does God do? He transforms the vicious man to viceless Narayan. So, how do you describe Narayan as vicious? Hm? When He transformed a man to Narayan, then did He create a vicious world? So, then what is the difference? Arey, what is called swarg (heaven)? And what is called narak (hell)? They will not reply, they will remain adamant that it is impossible. It can never be possible that there could be a viceless world. Hm? It is because they themselves are not viceless; the Father, grandfather, great grandfather, great great grandfather, none of them were viceless; so, they will not accept that there could be a viceless world where children could be born without vices. No. They will say – How will you give birth to children so that the world is viceless? So, later they argue a lot. Hm? They show obstinacy. So, brother, then these people have to be left. What has to be left? You have to leave explaining. (Continued)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2908, दिनांक 11.06.2019
VCD 2908, dated 11.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2908-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-14.50
Time- 00.01-14.50
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को पांचवें पेज के मध्यादि में बात चल रही थी कि जो लांग-लांग अगो कहकरके कहानी या कथा बताते हैं वो कोई लाखों वर्ष की आखानी थोड़ेही हो सकती है। लाखों वरष का पुराना कोई मनुष्य होता ही नहीं है। अरे, पुराने ते पुराना यहां देखो ये पुरानी बातें। जैसे ये क्रिश्चियन लोग हैं ना ये पुरानी चीज़ मांगते हैं। क्यों? क्योंकि ये खोज करना नई-नई बातों की ये किसने सिखाया? हँ? ये क्रिश्चियन्स ने सिखाया कि भई नई-नई बातों की रिसर्च करना है तो एकदम पुराने, गहराई में जाओ। अभी थोड़ा विचार करो पुराने ते पुरानी चीज़ क्या होगी? बस। पुराने-पुराने तो ये ही, ये ही होंगे ना। कौन? जिसको वो क्रिश्चियन्स कहते हैं लॉर्ड। कृष्ण को लॉर्ड कहते हैं ना। क्राइस्ट से 3000 वर्ष पहले भारत में पैराडाइज़ था, लॉर्ड कृष्ण का राज्य था। तो लॉर्ड कृष्ण कहते हैं। उनके चित्र इन सबसे पुराने। उनसे पुरानी कोई चीज़ होगी क्या? बस। ये वो ही, वो ही पुरानी चीज़। तो पुराना तो ये चित्र है कृष्ण। हँ? वो ये चीज़ें उसको चित्र इनका चाहिए।
बाबा समझाया था ना ये अमेरिकन लोग आते हैं। ये दिलवाड़ा मन्दिर देखकरके आए ना। इनका एक मूर्ति उनको मिले ना तो एक ही मूर्ति का लाख डेढ़ लाख, दो रुपये देने के लिए तैयार। हँ? ये पुरानी चीज़ें बेची। फिर ये गणेशीलाल का पुराना रखते थे। अभी पटना में वो कोई हीरालाल है। और उनके पास ये म्यूजियम है पुराने चित्रों का, पुराने मूर्तियों का। अरे, एक रखा है वो लोहे का। कोई से उठता ही नहीं है। कोई कितना भी ताकत लगाए उठ ही नहीं सके। पता नहीं इसका कारण क्या है? अच्छा, दाम क्या है? फोर्टी थाउसेंड। अरे, भई लोहे की चीज़ है वर्थ नॉट ए पैनी। हँ? भई उठाय ही नहीं सकते। बस, कहें ये पुराना है। ये हरण है कि क्या है? चीज़ हम भूल गए। कोई भी प्लेट उठाएंगे चीनी की, हाँ, ये इसका दाम कितना है? कहेगा दस हज़ार। क्यों? अरे, ये उनकी बनाई हुई चीज़ है। जरा नाम भूल जाते हैं। ये चीन में कोई एक चीनी की कोई चीज़ें होती हैं। बहुत अच्छी होती हैं पुरानी। तो देखो, ये बीस हज़ार रुपये। ये चीनी टुकड़ी। ये अभी गिरे हाथ से तो टुकड़ा-टुकड़ा हो जावे। उसका दस हज़ार, बीस हज़ार। तो पैसा उनसे ही कमाते हैं। हँ? कमाते हैं ना?
वो अमेरिकन्स, क्रिश्चियन्स यहाँ आते हैं। वो ले जाते हैं मूर्तियां। तो मूर्तियां वहां ले जाकरके 4-4, 5-5 हज़ार में और वहां जाकरके 20-20 हज़ार ले लेते हैं। 20 हज़ार में जाकर बेचते हैं चार गुने, पांच गुने दाम पे। कहेंगे ये पुरानी है। 28.11.1967 की प्रातः क्लास का छठा पेज, मंगलवार। अभी कभी कोई से पूछें कितनी पुरानी है? तो बोलेंगे ये चालीस हज़ार वर्ष पुरानी, साठ हज़ार वर्ष, लाखों वर्ष पुरानी, दो लाख, ऐसे कह देते हैं। अरे भई, लाख, दो लाख वर्ष पुरानी तो कोई चीज़ हो ही नहीं सकती। हँ? अरे, हिस्ट्री बनाने वालों ने हिस्ट्री में क्या लिखा? जो दुनिया में गहरी-गहरी खुदाइयां हुई हैं जमीन की तो उनमें कितनी पुरानी चीज़ें मिली हैं? कहते हैं ज्यादा से ज्यादा 5000 वर्ष पुरानी। इससे ज्यादा पुरानी चीज़ कोई मिलती ही नहीं है।
बुद्धि कहती है पुराने ते पुराना। सबसे पुराना ये ही नंबरवन श्री कृष्ण। श्री कृष्ण की ही दिल से जाकरके चीज़ें लेते हैं। समझा ना? जो भी आएंगे, बोलेंगे हमको लॉर्ड कृष्ण की मूर्ति दियो। हँ? अरे भई, क्यों? श्री नारायण की मूर्ति क्यों नहीं लेते हो? हँ? नो, नो, आइ वांट लॉर्ड कृष्ण, नो नारायण। अरे भई, क्यों? उनमें क्या फर्क है? तो देखो, तुम बच्चे तो बुद्धि से समझ सकते हो क्या फर्क है? हँ? पहले कृष्ण बच्चा होता है फिर बाद में नारायण होता है या पहले नारायण हो जाता है? हँ? तो पुराना कौन हुआ? कृष्ण पुराना हुआ ना? तो देखो, तुम क्यों समझ सकते हो? हँ? क्योंकि तुमको असलियत बात बताय दी। पूछो - कृष्ण को क्यों लेते हैं? ये लक्ष्मी-नारायण की मूर्ति क्यों नहीं लेते? हँ? इनमें दिल क्यों नहीं जाती है? क्योंकि वो बैठा है और वो शादी किया हुआ है। हँ? अभी उनको ये तो मालूम नहीं है कि ये प्योरिटी की बात है। क्या? जितना-जितना पुराना होगा, जास्ती प्योर होगा ना? तो प्योरिटी की कीमत होती है। जो पहले-पहले ये इस सृष्टि में नई दुनिया बनी, हँ, और हैविनली गॉड फादर ने ही बनाई ना। तो पवित्र दुनिया बनाई। गॉड फादर से जास्ती तो एवर प्योर कोई होता नहीं। तो पवित्र ही बनाएगा ना? तो वो वाइसलैस वर्ल्ड है।
और ये किसको मालूम थोड़ेही है वाइसलैस वर्ल्ड कब थी, क्या होती है? वाइसलैस वर्ल्ड को ये बोलेगा – अरे, लाखों बरस हो गया। अच्छा? तो अभी वाइसलैस वर्ल्ड कहां से आई? परन्तु कई बच्चे हैं जो बोलें वाइसलैस वर्ल्ड, अरे, यहाँ इस दुनिया में हो ही कहां सकती है? तुम जब ये समझाते हो ये, ये प्रदर्शनी में तो कहते हो वाइसलैस। पर यहां तो वाइसलैस वर्ल्ड हो ही नहीं सकती है। वाइसलैस बन जाएं तो बच्चा कैसे पैदा होगा? अरे, पर ये देखो तुम कहते हो ना। तुम बच्चे तो कहते हो कि ये, ये संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी हैं। हँ? 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण अहिंसक, मर्यादा पुरुषोत्तम, संपूर्ण निर्विकारी बताते हो ना? तो निर्विकारी को वाइसलैस कहा जाता है ना। फिर तुम कहते, क्यों कहते हो ये विशियस है लक्ष्मी-नारायण की मूर्ति? तो हैविनली गॉड फादर ने क्या विशियस दुनिया पैदा की? हँ?
शास्त्रों में तो उन्होंने पढ़ लिया, इंडियन्स के जो शास्त्र हैं उनमें तो पढ़ लिया कि भगवान क्या करते हैं? विशियस नर को, हँ, वाइसलैस नारायण बनाते हैं। तो नारायण को तुम विशियस बताते हो? हँ? नारायण बनाया नर को तो क्या विशियस दुनिया बनाई? तो फर्क तभी क्या है? अरे, स्वर्ग किसको कहा जाता है? और नरक किसको कहा जाता है? कहेंगे नहीं, वो अपनी शिद्दत पर रहेंगे कि इम्पासिबल है। कभी हो ही नहीं सकते हैं कि कोई भी वाइसलैस दुनिया होवे। हँ? क्योंकि खुद वाइसलैस नहीं हैं बाप, दादे, परदादे, तरदादे कोई भी वाइसलैस नहीं थे, तो वो इस बात को मानेंगे नहीं कि कोई वाइसलैस दुनिया हो सकती है बिना विकारों के बच्चे पैदा हो जाएं। नहीं। कहेंगे बच्चे कैसा पैदा करेंगे जो वाइसलैस वर्ल्ड होगी? तो पीछे बड़ी शिद्दत करते हैं। हँ? हठ करते हैं। तो भई फिर इन लोगों को छोड़ देना पड़ता है। क्या छोड़ देना पड़ता है? समझाना ही छोड़ देना पड़ता है। (क्रमशः)
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the fifth page on Tuesday was that the story that people narrate saying ‘long, long ago’ cannot be lakhs of years old story. There is no human being who is lakhs of years old. Arey, look at the oldest thing here, these old topics. For example, these Christians seek old things, don’t they? Why? It is because who taught you to discover newer things? Hm? It is these Christians who taught that brother, if you want to do research on newer topics then go into completely old, depth. Now just think what would be the oldest thing? That is it. It will be these, these alone will be the oldest ones. Who? The one whom Christians call Lord. They call Krishna as Lord, don’t they? There was Paradise in India, kingdom of Lord Krishna 3000 years before Christ. So, they call him Lord Krishna. His pictures are older than all these. Will there be anything older than that? That is it. This is the same, the same old thing. So, this Krishna is the old picture. Hm? They want these things, his photo.
Baba had explained, hadn’t He that these Americans come. They saw this Dilwara temple and came, didn’t they? If they get one of these idols, then they will be ready to pay a lakh, one and a half lakh or two [lakh] rupees for a single idol. Hm? These old things were sold. Then they used to keep the old one of Ganeshilal. Now there is one Hiralal in Patna. And he has this museum of old pictures, old idols. Arey, one of them is of iron. Nobody can lift it at all. However much strength one may use, it cannot be lifted at all. Who knows what the reason is for this? Achcha, what is the price? Forty thousand. Arey, brother, an iron thing is worth not a penny. Hm? Brother, it cannot be lifted at all. That is it; they say, it is old. It is haran or what? I forgot the thing. They will lift any Chinese plate, yes, what is its price? He will say – Ten thousand. Why? Arey, this is a thing made by them. I just forgot the name. In China there are things made up of porcelain. They are very nice, old. So, look, these twenty thousand rupees. This piece of porcelain. If it falls from your hands now, then it will break into pieces. Ten thousand, twenty thousand for that. So, they earn money from that only. Hm? They earn, don’t they?
Those Americans, Christians come here. They take away the idols. So, they purchase the idols [here] for 4, 5 thousand and they go there and take 20 thousand for that. They go and sell it for 20 thousand at four-fold, five-fold rates. They will say that this is ancient. Sixth page of the Morning class dated 28.11.1967, Tuesday. Now if anyone is asked as to how old is it? Then they say this is forty thousand years old, sixty thousand years old, lakhs of years old, two lakh [years old]; they say like this. Arey brother, nothing can be a lakh or two lakh years old. Hm? Arey, what did the history writers write in the history? In the deep excavations that have taken place in the world, how old things have been found? It is said that at the most 5000 years old. Nothing older than that is found at all.
The intellect says – oldest of all. Oldest is this number one Shri Krishna. People buy things related only to Shri Krishna from their hearts. You have understood, haven’t you? Whoever comes, they will say – Give me the idol of Lord Krishna. Hm? Arey brother, why? Why don’t you buy the idol of Shri Narayan? Hm? No, no, I want Lord Krishna; no Narayan. Arey brother, why? What is the difference between them? So, look, you children can understand through the intellect as to what is the difference? Hm? Is Krishna initially a child and then becomes Narayan or does he become Narayan in the beginning itself? Hm? So, who is older? Krishna is older, isn’t he? So, look, why can you understand? Hm? It is because you have been told the truth. Ask – Why do you take Krishna? Why don’t you take this idol of Lakshmi-Narayan? Hm? Why doesn’t your heart get attracted to them? It is because he is sitting and has got married. Hm? Now they do not know that this is a topic of purity. What? The older something is, the purer it will be, will it not be? So, the price is of the purity. The new world that was established in this world first of all; and it was established by the Heavenly God Father only, wasn’t it? So, He established a pure world. Nobody is more ever pure than God Father. So, He will make pure only, will He not? So, that is a viceless world.
And nobody knows as to when did the viceless world exist and what it is. This one will say about the viceless world that arey, it has been lakhs of years. Achcha? So, where did the viceless world come from now? But there are many children who say viceless world, arey, how can it exist here in this world at all? When you explain in the exhibition, then you say viceless. But the viceless world cannot exist here at all. If we become viceless then how will the child be born? Arey, but look, you say, don’t you? You children say that these are completely, completely viceless. Hm? Perfect in 16 celestial degrees, completely non-violent, highest among all in following the code of conduct (Maryadas purushottam), completely viceless; you tell, don’t you? So, the one without vices (nirvikaari) is called viceless, isn’t he? Then why do you say that this idol of Lakshmi-Narayan is vicious? So, did the Heavenly God Father create a vicious world? Hm?
They have read in the scriptures; they have read in the scriptures of the Indians that what does God do? He transforms the vicious man to viceless Narayan. So, how do you describe Narayan as vicious? Hm? When He transformed a man to Narayan, then did He create a vicious world? So, then what is the difference? Arey, what is called swarg (heaven)? And what is called narak (hell)? They will not reply, they will remain adamant that it is impossible. It can never be possible that there could be a viceless world. Hm? It is because they themselves are not viceless; the Father, grandfather, great grandfather, great great grandfather, none of them were viceless; so, they will not accept that there could be a viceless world where children could be born without vices. No. They will say – How will you give birth to children so that the world is viceless? So, later they argue a lot. Hm? They show obstinacy. So, brother, then these people have to be left. What has to be left? You have to leave explaining. (Continued)
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शिवबाबा की मुरली
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समय- 14.51-33.18
Time- 14.51-33.18
तो बाप समझाते हैं। क्या? जभी भी जाकरके समझाते हो प्रदर्शनी में या म्यूजियम में या कहां भी तो जास्ती बात करने की उनको मौका ही नहीं दियो। एकदम मौका नहीं दियो। पीछे वो जाके गुर्र-गुर्र करेगा एकदम उल्टा-सुल्टा। तो हाँ, ये रग देखनी होती है। एक ही बात बिल्कुल। बोलो, बताओ, तुमको कितने बाप हैं? हँ? एक देह को पैदा करने वाला बाप, लौकिक बाप। और दूसरा पारलौकिक बाप। ये तो मानेंगे ना? चलो, यही बात बताय दियो कि भई एक आत्मा का बाप। और उसमें तो सभी आत्माओं का बाप एक ही सुप्रीम सोल। और दूसरे तो जो भी बाप हैं वो सभी मनुष्यों के अलग-अलग बाप हैं। तो बाप कहे – बोलो, गॉड फादर, तुम हैविनली गॉड फादर कहते हो ना, उनको याद करते हो ना? तो दो बाप हुआ ना? अच्छा, पुकारते भी उनको ही हो। हँ? दुख के लिए दूर करने के लिए पुकारते हो। लिब्रेट करो दुख से। हे पतित पावन बाबा! ऐसे कहेंगे ना, हमको आकरके पावन बनाओ। क्योंकि पतित बनने से ही दुखी होते हैं ना। पतित बनना माने? हँ? शक्ति का पात होता है तो दुखी होते हैं। तो तुम पतित तो हो ना। तुम्हारी शक्ति का पतन तो होता है ना। तो विशियस हुए ना?
फिर भले उनको कितना भी थोड़ी कहेंगे। तो जो उनमें होगा कोई समझू सयाना, बात करेगा, साहूकार होगा तो बोलेगा कि तुम लोग गाली देते हो यहां, हँ, कि सब विशियस हो। है ना? वो वहां जाकरके अखबार में डाल देंगे। हँ? दूसरे दिन अखबार में आ जाएगा ये ब्रह्माकुमारियां ऐसी-ऐसी गाली देती हैं कच्ची-कच्ची। परन्तु नहीं। अरे, ड्रामा में जो कुछ भी है; हँ? कैसा है? कल्याणकारी है। भले गालियां बकें, गालियां दें अखबारों में। समझे ना? तो गाली दी ना? भला अच्छा।
भई कृष्ण भी इस समय में आया होगा ना? भला संगमयुग पर। फिर द्वापर में तो नहीं आया होगा ना? हँ? क्योंकि द्वापर में अगर आया द्वापर के अंत में तो पापी कलियुग स्थापन करके गया? ये तो पतित दुनिया है। ऐसे द्वापर में तो नहीं आया होगा। अगर पतित को पावन बनाना होता है तो पावन दुनिया तो सतयुग को कहा जाता है। ऐसे थोड़ेही कि द्वापर के अंत में आएगा, पापी कलियुग की स्थापना करके चला जाएगा। तो पावन दुनिया कहां बनी? हैविन कहां बना? वहां तो डीटी होते हैं। तो फिर द्वापर में वरी कैसे आया और क्यों आया? कारण क्या? किसलिए आया? हँ? जैसे और सब धरमपिताएं आयाराम-गयाराम ऐसे वो भी आया और गया। और परिवर्तन कुछ भी दुनिया का हुआ नहीं। तो द्वापर के पीछे तो कलियुग आता है ना? तो कोई भी समझ नहीं है बच्चों को कि कैसे किसको समझाना है। बाप आकर कहते हैं ना – देखो बच्चे, तुम अभी देखते हो ना? पहले तुम बच्चों में कुछ समझ थी क्या? कुछ भी नहीं। हँ? एकदम बिल्कुल बेसमझ थे ना? तो तुम कहेंगे हां, भल कितने भी बड़े आते हैं बाबा कहते हैं बड़े-बड़े आफिसर लोग आते हैं, जब यहां का हो जाते हैं तब हम कहते हैं कि तुम विचार करो। इतना देखो बड़ा आफीसर हो, तुमको समझ थी या बेसमझ थे? समझा ना? तो उनको हम समझे ये कितना बेसमझ थे, पत्थरबुद्धि थे, विशियस थे।
तो देखो, हँ, सहन करना पड़े ना? क्या? कब तक? जब तक वो न समझ जावें तब तक उनकी बातें, गाली भी देवें तो भी क्रोध करें तो सहन करना पड़े। तो वो कहेगा हां, बरोबर हम पहले ऐसे ही थे। परन्तु इस तरह सब तो नहीं कह सकेंगे। हँ? जिनको ये लगता है या जिनको ये ज्ञान मिलता है वो ही कह सकेंगे। हाँ, हम पहले ऐसे थे बेसमझ। हँ? अब तुम बच्चे यहां बैठते हो तो तुम जानते हो बरोबर तुम बेसमझ थे। 28.11.1967 की प्रातः क्लास का सातवां पेज। तुम क्या जानते थे? हँ? इस सृष्टि के आदि, मध्य, अंत का राज़ जानते थे? अच्छा, बाप को जानते थे? हँ? अपने जन्मों को जानते थे कि कैसे-कैसे जनम लिये? क्या-क्या करते थे? तुम्हारी चलन कैसी थी? खान-पान कैसा था? वो सब क्या था? हँ? ये तो जानते हो पहले हम कितना गंद करते थे।
बहुत-बहुत पंडित लोग, सन्यासी लोग, जब उनके पास जाते हैं तो वो बोलते हैं अच्छा भई, महीने में एक दफा विकार में जाओ। क्यों कहते हैं? हँ? क्योंकि जास्ती विकार में जो जाते हैं, रोज़-रोज़ जाते हैं तो ज्यादा गंदे बनेंगे ना? ज्यादा गंदे बनते हैं। तो सन्यासी तो सब ऐसे ही कहते हैं कि भई जास्ती से जास्ती महीने में एक दफे जाओ। हँ? ऐसे समझो ये तुम्हारा उपवास है। तो महीने में एक दफा जावे। तो भी क्या होगा? एक दफा भी महीने में जावेगा तो भी बच्चा पैदा हो जावेगा या नहीं हो जावेगा? हाँ, हो जावेगा। तो महीने जावे तो भी विशियस और रोज़-रोज़ जावे तो भी विशियस। तो विशियस तो ठहरे ना बच्ची? ऐसे कभी भी कोई नहीं होगा कि नहीं, तुमको पवित्र बनना पड़ेगा। ये कभी नहीं कहेगा। क्या? क्या कहेगा? हँ? सन्यासी कहेंगे महीने में एक बार जाओ। माने जाओ जरूर। नहीं जाओगे तो क्या होगा? तो बच्चों की पैदाइश नहीं होगी। और जब बच्चों की पैदाइश नहीं होगी तो उनको भोजन-पानी कौन देगा? किनको? हँ? अरे, उन सन्यासियों को कौन देगा? तो इसलिए ये नहीं कहेंगे। क्या? हाँ, कभी भी कोई नहीं कहेंगे कि पवित्र बनो। हँ? वो खुद जानते हैं; क्या? सन्यासी क्या खुद जानते हैं? कि हम भी तो इस विख से ही पैदा हुए थे ना। हाँ। नहीं तो कैसे पैदा हुए? ये सन्यासी वगैरा ये पैदा कैसे हुए? अरे, भ्रष्टाचार से पैदा हुए ना? उनको समझाना पड़े भ्रष्टाचार क्या होता है, श्रेष्ठाचार क्या होता है? भ्रष्ट इन्द्रियों का आचरण करते हैं तो भ्रष्टाचारी। हँ? कर्मेन्द्रियां भ्रष्ट इन्द्रियां हैं या श्रेष्ठ इन्द्रियां? भ्रष्ट इन्द्रियां हैं। तो भ्रष्टाचारी हुए ना? तो भ्रष्टाचार तो इनको कहा जाता है ना? समझना चाहिए श्रेष्ठाचारी और भ्रष्टाचारी क्या होता है?
तो ये देखो श्रेष्ठाचारी। हँ? लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाते हैं तो इनको नमन करते हैं ना? कौन? हँ? भ्रष्टाचारी या श्रेष्ठाचारी नमन करते हैं? हँ? कौन नमन करते हैं? भ्रष्टाचारी नमन करते हैं। अरे, इनको कोई नमन करते होंगे क्या वो? पूज्य सो पूज्य ही पूज्य। वो क्यों नमन करेंगे? समझा ना बच्चे? क्योंकि ये लक्ष्मी-नारायण पास्ट होकर गए हैं ना। और इनकी ये डैनास्टी तो वहां रहती है ना नई दुनिया में, हैविन में? तो फर्क हो जाता है ना बच्ची। क्योंकि ये वाइसलैस वर्ल्ड पास्ट होकर गई है। और अभी ये दुनिया विशियस चल रही है। तो ये बात तो उनको भी मालूम है। किनको? सन्यासियों को भी ये बात मालूम है। जब वाइसलैस वर्ल्ड में थे तब तुम लोग को मालूम थोड़ेही था कि अब आगे चल करके विशियस वर्ल्ड आने वाली है? देवताओं को पता होता है क्या? नहीं। ये किसको भी मालूम नहीं रहता है वाइसलैस वर्ल्ड में। वॉट नेक्स्ट? कोई को भी नहीं मालूम रहता है। तो ये सब बातें अभी तुमको मालूम हुआ कि वॉट नेक्स्ट? इन देवताओं के बाद क्या होता है? क्या होगा? क्योंकि सृष्टि के आदि, मध्य, अंत को अब तुम बच्चे जान गए हो। तो फिर तुम तो जानेंगे ना भई इसके बाद क्या होगा? इसके बाद क्या होगा? ये तो तुम जानते हो।
तो तुम जानते हो कि यहां तुम किसके लिए पुरुषार्थ कर रहे हो? हँ? किसके लिए कर रहे हो? अरे, ऐसे नर से, पतित नर से, विशियस नर से ऐसे वाइसलैस नारायण बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। बाबा, हम तो ऊपर जाने के लिए, शांतिधाम जाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। और फिर वहां से सुखधाम आने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। तो फिर बाकि क्या? बस ना। ऊपर में जाना है। पुरुषार्थ ही करना है ना। ऊपर में जाकरके शांतिधाम। हँ? फिर वहां शांतिधाम में तुम सुखधाम में जावेंगे। पहले क्या चाहिए मनुष्य को? कोई को तेज़ बुखार आ रहा है, नस-नस दर्द हो रही है। हँ? बहुत परेशान हैं। नींद भी नहीं आ रही। सर दर्द हो रहा है। तो उसे रसगुल्ला चाहिए? चाहिए? नहीं चाहिए। क्यों? अरे, जीभ सुख में आ जाएगी। बिल्कुल नहीं चाहिए। कुछ नहीं अच्छा लगता। क्या चाहिए? हँ? शांति चाहिए। सारा शरीर अशांत है। इन्द्रियां अशांत हैं। मन अशान्त है। तो क्या चाहिए? शान्ति चाहिए। तो पहले सुख चाहिए कि पहले, हँ, शान्ति चाहिए? पहले शान्ति चाहिए। तो तुम पहले शान्तिधाम में जावेंगे। हँ? फिर तुमको कहा जाता है फिर तुम सुखधाम में आएंगे। वाया शान्तिधाम होकरके आएंगे। तो वो कौन होंगे, हँ, जो, जो पहले शान्तिधाम जाकरके सुखधाम में आवेंगे? हँ? वो तो जो पहले-पहले पास होंगे, हँ, ये पढ़ाई है ना? हैविनली गॉड फादर आकर पढ़ाई पढ़ाते हैं ना? क्या पढ़ाई पढ़ाते हैं? नर से, विशियस नर से वाइसलैस नारायण बनने की पढ़ाई पढाते हैं। तो जो पास होंगे वो शान्तिधाम वाया, वाया शान्तिधाम सुखधाम जावेंगे। ओमशान्ति। (समाप्त)
So, the Father explains. What? Whenever you go and explain in the exhibition or in the museum or wherever, then do not give them a chance to speak more at all. Do not give them a chance at all. Later, he will growl completely inappropriately. So, yes, you have to see this pulse. Only one thing completely. Tell, speak up, how many fathers do you have? Hm? One is the Father, the lokik (worldly) Father who gives birth to the body. And the other is the Paarlokik (other-worldly) Father. You will accept this, will you not? Okay, tell this topic itself that brother, one is the Father of the soul. And in that the Father of all the souls is the Supreme Soul. All other fathers of all the human beings are different. So, the Father says – Tell, God Father, you say Heavenly God Father, don’t you? You remember Him, don’t you? So, there are two fathers, aren’t they there? Achcha, you call Him only. Hm? You call [Him] to remove the sorrows. Liberate us from sorrows. O purifier of the sinful ones Baba! You will say like this, will you not? Come and make us pure. It is because you become sorrowful only when you become sinful. What is meant by becoming sinful? Hm? When the vigour decreases then you become sorrowful. So, you are sinful, aren’t you? Your vigour does decrease, doesn’t it? So, you are vicious, aren’t you?
Then you may tell him to any less extent; So, the one who is clever, intelligent among them, he will speak; if someone is a rich person, he will say, you people hurl abuses here that you all are vicious. Is it not? They will go there and publish in the newspaper. Hm? It will be published next day that these Brahmakumaris hurl such abuses. But no. Arey, whatever is there in the drama; Hm? How is it? It is benevolent. Although they may hurl abuses, they may hurl abuses in the newspapers. You have understood, haven’t you? So, they hurled abuses, didn’t they? Achcha.
Brother, Krishna must also have come at this time, hadn’t he? In the Confluence Age. Then he must not have come in the Copper Age, had he? Hm? It is because had he come in the Copper Age, in the end of the Copper Age (Dwapar), then did he establish a sinful Iron Age and go? This is a sinful world. He must not have come like this in the Copper Age. If the sinful one has to be made pure, then the pure world is called the Golden Age. It is not as if He will come in the end of the Copper Age and establish the sinful Iron Age and go. So, did the pure world get established? Was heaven established? There are deities there. So, then how did He come in the Copper Age and why did He come? What was the reason? Why did He come? Hm? Just as all other founders of religions came and went away, similarly He too came and went. And no amount of transformation of the world took place. So, the Copper Age is followed by the Iron Age, isn’t it? So, children do not have any inkling as to how should we explain to anyone. The Father comes and says, doesn’t He? Look, children, you do observe now, don’t you? Did you children have any wisdom earlier? Nothing. Hm? You were complete fools, were you not? So, you will say, yes, although however big ones come, Baba says, big officers come, when they become a member of this place, then we say, just think over. Just observe, you are a big officer, did you have wisdom or were you unwise? You have understood, haven’t you? So, we understood as to how unwise we were! We had stone-like intellect; we were vicious.
So, look, you have to tolerate, will you not? What? Until when? Until they understand, their topics; even if they hurl abuses, even if they become angry, you will have to tolerate. So, he will say, yes, rightly we were like this only earlier. But everyone will not be able to say like this. Hm? Those who feel so or those who get this knowledge will alone be able to say. Yes, we were fools earlier. Hm? Now you children sit here; so, you know rightly that you were fools. Seventh page of the morning class dated 28.11.1967. What did you know? Hm? Did you know the beginning, middle and end of this world? Achcha, did you know the Father? Hm? Did you know about your births as to what kind of births did you get? What all did you used to do? How was your activity? How were your eating habits? What was all that? Hm? You know that earlier we used to indulge in so much dirt.
Many pundits, sanyasis, when people go to meet them, they say, achcha brother, you may indulge in lust once in a month. Why do they say? Hm? It is because those who indulge more in lust, those who indulge in it every day will become more dirty, will they not? They become more dirty. So, all the Sanyasis say like this only that brother, at the most you may indulge once in a month. Hm? Just think as if this is your fast (upvaas). So, you may indulge once in a month. Even then what will happen? Will a child be born or not even if he indulges once in a month? Yes, it will be born. So, one will become vicious even if he indulges once in a month and one will become vicious even if he indulges every day. So, they happen to be vicious, aren’t they daughter? There will never be anyone [who says] that no, you will have to become pure. He will never say this. What? What will he say? Hm? The sanyasis will say – Indulge once in a month. It means that you should definitely indulge. If you don’t indulge, then what will happen? Then children will not be born. And when children are not born, then who will give them food and water? To whom? Arey, who will give to those sanyasis? So, this is why they will not tell this. What? Yes, nobody will ever ask you to become pure. Hm? They themselves know; what? What do the sanyasis themselves know? That we too were born through this poison only, were we not? Yes. Otherwise, how were they born? How were these sanyasis, etc. born? Arey, they were born through unrighteousness, were they not? They will have to be explained as to what is unrighteousness (bhrashtaachaar), what is righteousness (shreshthaachaar)? When you act through the unrighteous organs then you are unrighteous. Hm? Are the organs of action unrighteous organs or righteous organs? They are unrighteous organs. So, they are unrighteous, aren’t they? So, this is called unrighteousness, isn’t it? You should understand as to what is righteous and what is unrighteous?
So, look these righteous ones. Hm? When you go to the temple of Lakshmi-Narayan, you bow to them, don’t you? Who? Hm? Do the unrighteous ones or do the righteous ones bow? Hm? Who bows? The unrighteous ones bow. Arey, do they bow to these? Those who are worshipworthy are worshipworthy only. Why will they bow? You have understood, haven’t you children? It is because these Lakshmi and Narayan have been in the past, haven’t they? And their dynasty exists there in the new world, heaven, doesn’t it? So, there is a difference, isn’t it daughter? It is because this viceless world existed in the past. And now this vicious world is in existence. So, they too know this topic. Who? The sanyasis also know this topic. When you were in the viceless world, then you people did not know as to now the vicious world is going to arrive in future? Do the deities know? No. Nobody knows in the viceless world. What next? Nobody knows. So, now you know all these topics as to what next? What happens after these deities? What will happen? It is because you children have now known the beginning, middle and end of the world. So, then you will know brother as to what will happen after this? What will happen after this? You know this.
So, you know as to why you are making purusharth here? Hm? Why are you making? Arey, you are making purusharth to become such viceless Narayan from such man (nar), from a sinful man, from a vicious man. Baba, we are making purusharth to go up, to go to the Supreme Abode. And then we are making purusharth to come to the abode of happiness from there. So, then what else? That is it; isn’t it? You have to go up. You have to make purusharth only, will you not? After going up there is the abode of peace. Hm? Then there in the abode of peace, you will go to the abode of happiness. What does a human being need first? If someone is suffering from high fever, every nerve is paining. Hm? He is very disturbed. He is not even getting sleep. He is experiencing head ache. So, does he need a rasgulla (a sweet)? Does he need? He doesn’t need. Why? Arey, the tongue will feel happy. He doesn’t want at all. Nothing feels good. What does he want? Hm? He wants peace. The entire body is disturbed. The organs are disturbed. The mind is disturbed. So, what does he want? He wants peace. So, does he first need happiness or does he first need peace? He first needs peace. So, you will first go to the abode of peace. Hm? Then you are told, then you will come to the abode of happiness. You will come via the abode of peace. So, who will be those [souls] who will first go to the abode of peace and then come to the abode of happiness? Hm? It is the ones who pass first; hm, this is a study, isn’t it? The Heavenly God Father comes and teaches knowledge, doesn’t He? What knowledge does He teach? He teaches the knowledge of becoming viceless Narayan from nar (man), from a vicious man. So, those who pass will go to the abode of happiness via, via the abode of peace. Om Shanti. (End)
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2908, दिनांक 11.06.2019
VCD 2908, dated 11.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2908-Bilingual-Part-2
समय- 14.51-33.18
Time- 14.51-33.18
तो बाप समझाते हैं। क्या? जभी भी जाकरके समझाते हो प्रदर्शनी में या म्यूजियम में या कहां भी तो जास्ती बात करने की उनको मौका ही नहीं दियो। एकदम मौका नहीं दियो। पीछे वो जाके गुर्र-गुर्र करेगा एकदम उल्टा-सुल्टा। तो हाँ, ये रग देखनी होती है। एक ही बात बिल्कुल। बोलो, बताओ, तुमको कितने बाप हैं? हँ? एक देह को पैदा करने वाला बाप, लौकिक बाप। और दूसरा पारलौकिक बाप। ये तो मानेंगे ना? चलो, यही बात बताय दियो कि भई एक आत्मा का बाप। और उसमें तो सभी आत्माओं का बाप एक ही सुप्रीम सोल। और दूसरे तो जो भी बाप हैं वो सभी मनुष्यों के अलग-अलग बाप हैं। तो बाप कहे – बोलो, गॉड फादर, तुम हैविनली गॉड फादर कहते हो ना, उनको याद करते हो ना? तो दो बाप हुआ ना? अच्छा, पुकारते भी उनको ही हो। हँ? दुख के लिए दूर करने के लिए पुकारते हो। लिब्रेट करो दुख से। हे पतित पावन बाबा! ऐसे कहेंगे ना, हमको आकरके पावन बनाओ। क्योंकि पतित बनने से ही दुखी होते हैं ना। पतित बनना माने? हँ? शक्ति का पात होता है तो दुखी होते हैं। तो तुम पतित तो हो ना। तुम्हारी शक्ति का पतन तो होता है ना। तो विशियस हुए ना?
फिर भले उनको कितना भी थोड़ी कहेंगे। तो जो उनमें होगा कोई समझू सयाना, बात करेगा, साहूकार होगा तो बोलेगा कि तुम लोग गाली देते हो यहां, हँ, कि सब विशियस हो। है ना? वो वहां जाकरके अखबार में डाल देंगे। हँ? दूसरे दिन अखबार में आ जाएगा ये ब्रह्माकुमारियां ऐसी-ऐसी गाली देती हैं कच्ची-कच्ची। परन्तु नहीं। अरे, ड्रामा में जो कुछ भी है; हँ? कैसा है? कल्याणकारी है। भले गालियां बकें, गालियां दें अखबारों में। समझे ना? तो गाली दी ना? भला अच्छा।
भई कृष्ण भी इस समय में आया होगा ना? भला संगमयुग पर। फिर द्वापर में तो नहीं आया होगा ना? हँ? क्योंकि द्वापर में अगर आया द्वापर के अंत में तो पापी कलियुग स्थापन करके गया? ये तो पतित दुनिया है। ऐसे द्वापर में तो नहीं आया होगा। अगर पतित को पावन बनाना होता है तो पावन दुनिया तो सतयुग को कहा जाता है। ऐसे थोड़ेही कि द्वापर के अंत में आएगा, पापी कलियुग की स्थापना करके चला जाएगा। तो पावन दुनिया कहां बनी? हैविन कहां बना? वहां तो डीटी होते हैं। तो फिर द्वापर में वरी कैसे आया और क्यों आया? कारण क्या? किसलिए आया? हँ? जैसे और सब धरमपिताएं आयाराम-गयाराम ऐसे वो भी आया और गया। और परिवर्तन कुछ भी दुनिया का हुआ नहीं। तो द्वापर के पीछे तो कलियुग आता है ना? तो कोई भी समझ नहीं है बच्चों को कि कैसे किसको समझाना है। बाप आकर कहते हैं ना – देखो बच्चे, तुम अभी देखते हो ना? पहले तुम बच्चों में कुछ समझ थी क्या? कुछ भी नहीं। हँ? एकदम बिल्कुल बेसमझ थे ना? तो तुम कहेंगे हां, भल कितने भी बड़े आते हैं बाबा कहते हैं बड़े-बड़े आफिसर लोग आते हैं, जब यहां का हो जाते हैं तब हम कहते हैं कि तुम विचार करो। इतना देखो बड़ा आफीसर हो, तुमको समझ थी या बेसमझ थे? समझा ना? तो उनको हम समझे ये कितना बेसमझ थे, पत्थरबुद्धि थे, विशियस थे।
तो देखो, हँ, सहन करना पड़े ना? क्या? कब तक? जब तक वो न समझ जावें तब तक उनकी बातें, गाली भी देवें तो भी क्रोध करें तो सहन करना पड़े। तो वो कहेगा हां, बरोबर हम पहले ऐसे ही थे। परन्तु इस तरह सब तो नहीं कह सकेंगे। हँ? जिनको ये लगता है या जिनको ये ज्ञान मिलता है वो ही कह सकेंगे। हाँ, हम पहले ऐसे थे बेसमझ। हँ? अब तुम बच्चे यहां बैठते हो तो तुम जानते हो बरोबर तुम बेसमझ थे। 28.11.1967 की प्रातः क्लास का सातवां पेज। तुम क्या जानते थे? हँ? इस सृष्टि के आदि, मध्य, अंत का राज़ जानते थे? अच्छा, बाप को जानते थे? हँ? अपने जन्मों को जानते थे कि कैसे-कैसे जनम लिये? क्या-क्या करते थे? तुम्हारी चलन कैसी थी? खान-पान कैसा था? वो सब क्या था? हँ? ये तो जानते हो पहले हम कितना गंद करते थे।
बहुत-बहुत पंडित लोग, सन्यासी लोग, जब उनके पास जाते हैं तो वो बोलते हैं अच्छा भई, महीने में एक दफा विकार में जाओ। क्यों कहते हैं? हँ? क्योंकि जास्ती विकार में जो जाते हैं, रोज़-रोज़ जाते हैं तो ज्यादा गंदे बनेंगे ना? ज्यादा गंदे बनते हैं। तो सन्यासी तो सब ऐसे ही कहते हैं कि भई जास्ती से जास्ती महीने में एक दफे जाओ। हँ? ऐसे समझो ये तुम्हारा उपवास है। तो महीने में एक दफा जावे। तो भी क्या होगा? एक दफा भी महीने में जावेगा तो भी बच्चा पैदा हो जावेगा या नहीं हो जावेगा? हाँ, हो जावेगा। तो महीने जावे तो भी विशियस और रोज़-रोज़ जावे तो भी विशियस। तो विशियस तो ठहरे ना बच्ची? ऐसे कभी भी कोई नहीं होगा कि नहीं, तुमको पवित्र बनना पड़ेगा। ये कभी नहीं कहेगा। क्या? क्या कहेगा? हँ? सन्यासी कहेंगे महीने में एक बार जाओ। माने जाओ जरूर। नहीं जाओगे तो क्या होगा? तो बच्चों की पैदाइश नहीं होगी। और जब बच्चों की पैदाइश नहीं होगी तो उनको भोजन-पानी कौन देगा? किनको? हँ? अरे, उन सन्यासियों को कौन देगा? तो इसलिए ये नहीं कहेंगे। क्या? हाँ, कभी भी कोई नहीं कहेंगे कि पवित्र बनो। हँ? वो खुद जानते हैं; क्या? सन्यासी क्या खुद जानते हैं? कि हम भी तो इस विख से ही पैदा हुए थे ना। हाँ। नहीं तो कैसे पैदा हुए? ये सन्यासी वगैरा ये पैदा कैसे हुए? अरे, भ्रष्टाचार से पैदा हुए ना? उनको समझाना पड़े भ्रष्टाचार क्या होता है, श्रेष्ठाचार क्या होता है? भ्रष्ट इन्द्रियों का आचरण करते हैं तो भ्रष्टाचारी। हँ? कर्मेन्द्रियां भ्रष्ट इन्द्रियां हैं या श्रेष्ठ इन्द्रियां? भ्रष्ट इन्द्रियां हैं। तो भ्रष्टाचारी हुए ना? तो भ्रष्टाचार तो इनको कहा जाता है ना? समझना चाहिए श्रेष्ठाचारी और भ्रष्टाचारी क्या होता है?
तो ये देखो श्रेष्ठाचारी। हँ? लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाते हैं तो इनको नमन करते हैं ना? कौन? हँ? भ्रष्टाचारी या श्रेष्ठाचारी नमन करते हैं? हँ? कौन नमन करते हैं? भ्रष्टाचारी नमन करते हैं। अरे, इनको कोई नमन करते होंगे क्या वो? पूज्य सो पूज्य ही पूज्य। वो क्यों नमन करेंगे? समझा ना बच्चे? क्योंकि ये लक्ष्मी-नारायण पास्ट होकर गए हैं ना। और इनकी ये डैनास्टी तो वहां रहती है ना नई दुनिया में, हैविन में? तो फर्क हो जाता है ना बच्ची। क्योंकि ये वाइसलैस वर्ल्ड पास्ट होकर गई है। और अभी ये दुनिया विशियस चल रही है। तो ये बात तो उनको भी मालूम है। किनको? सन्यासियों को भी ये बात मालूम है। जब वाइसलैस वर्ल्ड में थे तब तुम लोग को मालूम थोड़ेही था कि अब आगे चल करके विशियस वर्ल्ड आने वाली है? देवताओं को पता होता है क्या? नहीं। ये किसको भी मालूम नहीं रहता है वाइसलैस वर्ल्ड में। वॉट नेक्स्ट? कोई को भी नहीं मालूम रहता है। तो ये सब बातें अभी तुमको मालूम हुआ कि वॉट नेक्स्ट? इन देवताओं के बाद क्या होता है? क्या होगा? क्योंकि सृष्टि के आदि, मध्य, अंत को अब तुम बच्चे जान गए हो। तो फिर तुम तो जानेंगे ना भई इसके बाद क्या होगा? इसके बाद क्या होगा? ये तो तुम जानते हो।
तो तुम जानते हो कि यहां तुम किसके लिए पुरुषार्थ कर रहे हो? हँ? किसके लिए कर रहे हो? अरे, ऐसे नर से, पतित नर से, विशियस नर से ऐसे वाइसलैस नारायण बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। बाबा, हम तो ऊपर जाने के लिए, शांतिधाम जाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। और फिर वहां से सुखधाम आने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। तो फिर बाकि क्या? बस ना। ऊपर में जाना है। पुरुषार्थ ही करना है ना। ऊपर में जाकरके शांतिधाम। हँ? फिर वहां शांतिधाम में तुम सुखधाम में जावेंगे। पहले क्या चाहिए मनुष्य को? कोई को तेज़ बुखार आ रहा है, नस-नस दर्द हो रही है। हँ? बहुत परेशान हैं। नींद भी नहीं आ रही। सर दर्द हो रहा है। तो उसे रसगुल्ला चाहिए? चाहिए? नहीं चाहिए। क्यों? अरे, जीभ सुख में आ जाएगी। बिल्कुल नहीं चाहिए। कुछ नहीं अच्छा लगता। क्या चाहिए? हँ? शांति चाहिए। सारा शरीर अशांत है। इन्द्रियां अशांत हैं। मन अशान्त है। तो क्या चाहिए? शान्ति चाहिए। तो पहले सुख चाहिए कि पहले, हँ, शान्ति चाहिए? पहले शान्ति चाहिए। तो तुम पहले शान्तिधाम में जावेंगे। हँ? फिर तुमको कहा जाता है फिर तुम सुखधाम में आएंगे। वाया शान्तिधाम होकरके आएंगे। तो वो कौन होंगे, हँ, जो, जो पहले शान्तिधाम जाकरके सुखधाम में आवेंगे? हँ? वो तो जो पहले-पहले पास होंगे, हँ, ये पढ़ाई है ना? हैविनली गॉड फादर आकर पढ़ाई पढ़ाते हैं ना? क्या पढ़ाई पढ़ाते हैं? नर से, विशियस नर से वाइसलैस नारायण बनने की पढ़ाई पढाते हैं। तो जो पास होंगे वो शान्तिधाम वाया, वाया शान्तिधाम सुखधाम जावेंगे। ओमशान्ति। (समाप्त)
So, the Father explains. What? Whenever you go and explain in the exhibition or in the museum or wherever, then do not give them a chance to speak more at all. Do not give them a chance at all. Later, he will growl completely inappropriately. So, yes, you have to see this pulse. Only one thing completely. Tell, speak up, how many fathers do you have? Hm? One is the Father, the lokik (worldly) Father who gives birth to the body. And the other is the Paarlokik (other-worldly) Father. You will accept this, will you not? Okay, tell this topic itself that brother, one is the Father of the soul. And in that the Father of all the souls is the Supreme Soul. All other fathers of all the human beings are different. So, the Father says – Tell, God Father, you say Heavenly God Father, don’t you? You remember Him, don’t you? So, there are two fathers, aren’t they there? Achcha, you call Him only. Hm? You call [Him] to remove the sorrows. Liberate us from sorrows. O purifier of the sinful ones Baba! You will say like this, will you not? Come and make us pure. It is because you become sorrowful only when you become sinful. What is meant by becoming sinful? Hm? When the vigour decreases then you become sorrowful. So, you are sinful, aren’t you? Your vigour does decrease, doesn’t it? So, you are vicious, aren’t you?
Then you may tell him to any less extent; So, the one who is clever, intelligent among them, he will speak; if someone is a rich person, he will say, you people hurl abuses here that you all are vicious. Is it not? They will go there and publish in the newspaper. Hm? It will be published next day that these Brahmakumaris hurl such abuses. But no. Arey, whatever is there in the drama; Hm? How is it? It is benevolent. Although they may hurl abuses, they may hurl abuses in the newspapers. You have understood, haven’t you? So, they hurled abuses, didn’t they? Achcha.
Brother, Krishna must also have come at this time, hadn’t he? In the Confluence Age. Then he must not have come in the Copper Age, had he? Hm? It is because had he come in the Copper Age, in the end of the Copper Age (Dwapar), then did he establish a sinful Iron Age and go? This is a sinful world. He must not have come like this in the Copper Age. If the sinful one has to be made pure, then the pure world is called the Golden Age. It is not as if He will come in the end of the Copper Age and establish the sinful Iron Age and go. So, did the pure world get established? Was heaven established? There are deities there. So, then how did He come in the Copper Age and why did He come? What was the reason? Why did He come? Hm? Just as all other founders of religions came and went away, similarly He too came and went. And no amount of transformation of the world took place. So, the Copper Age is followed by the Iron Age, isn’t it? So, children do not have any inkling as to how should we explain to anyone. The Father comes and says, doesn’t He? Look, children, you do observe now, don’t you? Did you children have any wisdom earlier? Nothing. Hm? You were complete fools, were you not? So, you will say, yes, although however big ones come, Baba says, big officers come, when they become a member of this place, then we say, just think over. Just observe, you are a big officer, did you have wisdom or were you unwise? You have understood, haven’t you? So, we understood as to how unwise we were! We had stone-like intellect; we were vicious.
So, look, you have to tolerate, will you not? What? Until when? Until they understand, their topics; even if they hurl abuses, even if they become angry, you will have to tolerate. So, he will say, yes, rightly we were like this only earlier. But everyone will not be able to say like this. Hm? Those who feel so or those who get this knowledge will alone be able to say. Yes, we were fools earlier. Hm? Now you children sit here; so, you know rightly that you were fools. Seventh page of the morning class dated 28.11.1967. What did you know? Hm? Did you know the beginning, middle and end of this world? Achcha, did you know the Father? Hm? Did you know about your births as to what kind of births did you get? What all did you used to do? How was your activity? How were your eating habits? What was all that? Hm? You know that earlier we used to indulge in so much dirt.
Many pundits, sanyasis, when people go to meet them, they say, achcha brother, you may indulge in lust once in a month. Why do they say? Hm? It is because those who indulge more in lust, those who indulge in it every day will become more dirty, will they not? They become more dirty. So, all the Sanyasis say like this only that brother, at the most you may indulge once in a month. Hm? Just think as if this is your fast (upvaas). So, you may indulge once in a month. Even then what will happen? Will a child be born or not even if he indulges once in a month? Yes, it will be born. So, one will become vicious even if he indulges once in a month and one will become vicious even if he indulges every day. So, they happen to be vicious, aren’t they daughter? There will never be anyone [who says] that no, you will have to become pure. He will never say this. What? What will he say? Hm? The sanyasis will say – Indulge once in a month. It means that you should definitely indulge. If you don’t indulge, then what will happen? Then children will not be born. And when children are not born, then who will give them food and water? To whom? Arey, who will give to those sanyasis? So, this is why they will not tell this. What? Yes, nobody will ever ask you to become pure. Hm? They themselves know; what? What do the sanyasis themselves know? That we too were born through this poison only, were we not? Yes. Otherwise, how were they born? How were these sanyasis, etc. born? Arey, they were born through unrighteousness, were they not? They will have to be explained as to what is unrighteousness (bhrashtaachaar), what is righteousness (shreshthaachaar)? When you act through the unrighteous organs then you are unrighteous. Hm? Are the organs of action unrighteous organs or righteous organs? They are unrighteous organs. So, they are unrighteous, aren’t they? So, this is called unrighteousness, isn’t it? You should understand as to what is righteous and what is unrighteous?
So, look these righteous ones. Hm? When you go to the temple of Lakshmi-Narayan, you bow to them, don’t you? Who? Hm? Do the unrighteous ones or do the righteous ones bow? Hm? Who bows? The unrighteous ones bow. Arey, do they bow to these? Those who are worshipworthy are worshipworthy only. Why will they bow? You have understood, haven’t you children? It is because these Lakshmi and Narayan have been in the past, haven’t they? And their dynasty exists there in the new world, heaven, doesn’t it? So, there is a difference, isn’t it daughter? It is because this viceless world existed in the past. And now this vicious world is in existence. So, they too know this topic. Who? The sanyasis also know this topic. When you were in the viceless world, then you people did not know as to now the vicious world is going to arrive in future? Do the deities know? No. Nobody knows in the viceless world. What next? Nobody knows. So, now you know all these topics as to what next? What happens after these deities? What will happen? It is because you children have now known the beginning, middle and end of the world. So, then you will know brother as to what will happen after this? What will happen after this? You know this.
So, you know as to why you are making purusharth here? Hm? Why are you making? Arey, you are making purusharth to become such viceless Narayan from such man (nar), from a sinful man, from a vicious man. Baba, we are making purusharth to go up, to go to the Supreme Abode. And then we are making purusharth to come to the abode of happiness from there. So, then what else? That is it; isn’t it? You have to go up. You have to make purusharth only, will you not? After going up there is the abode of peace. Hm? Then there in the abode of peace, you will go to the abode of happiness. What does a human being need first? If someone is suffering from high fever, every nerve is paining. Hm? He is very disturbed. He is not even getting sleep. He is experiencing head ache. So, does he need a rasgulla (a sweet)? Does he need? He doesn’t need. Why? Arey, the tongue will feel happy. He doesn’t want at all. Nothing feels good. What does he want? Hm? He wants peace. The entire body is disturbed. The organs are disturbed. The mind is disturbed. So, what does he want? He wants peace. So, does he first need happiness or does he first need peace? He first needs peace. So, you will first go to the abode of peace. Hm? Then you are told, then you will come to the abode of happiness. You will come via the abode of peace. So, who will be those [souls] who will first go to the abode of peace and then come to the abode of happiness? Hm? It is the ones who pass first; hm, this is a study, isn’t it? The Heavenly God Father comes and teaches knowledge, doesn’t He? What knowledge does He teach? He teaches the knowledge of becoming viceless Narayan from nar (man), from a vicious man. So, those who pass will go to the abode of happiness via, via the abode of peace. Om Shanti. (End)
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2909, दिनांक 12.06.2019
VCD 2909, dated 12.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning Class dated 28.11.1967
VCD-2909-extracts-Bilingual
समय- 00.01-21.40
Time- 00.01-21.40
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को सातवें पेज के मध्य में बात चल रही थी – तुम पुरुषार्थ कर रहे हो शांतिधाम में जाने का। तुम शांतिधाम जाएंगे वाया फिर बाद में सुखधाम जाएंगे, वाया शांतिधाम सुखधाम। तो जाने वाले कौन होंगे वो जो पहले शांतिधाम में जाकरके सुखधाम में आवेंगे? वो तो जो पहले-पहले पास होंगे वो ही होंगे। तो उनके लिए बाबा कहेंगे ना बच्चे तो खेल भी तो तुमने समझा ना? और बाबा सुनाते भी हैं भारत के लिए। हँ। है ना? सारी कहानी भारत के ऊपर है। भारत में घर-घर में कथा भी करते हैं सत्य नारायण की। तो तुम्हारे लिए कहते हैं ना तुम पूज्य थे। अभी पुजारी बने हो। और तुम्हारे अलावा कोई दूसरा तो नहीं है। दूसरे कोई को कह भी नहीं सकते हो ना? कोई बताए क्या कोई दूसरे पूज्य देवी-देवता थे? नहीं। माना और धरमवाले, और धरम में जो कन्वर्ट होते हैं वो कोई पूज्य देवी-देवता थे? नहीं। तो बाबा कोई भी कथा जो सुनाते हैं कि बैठकरके ये आखानी जो बनी है कथा-कहानियां सो तो जो पहले नंबर में आता है उसकी बनी है। बीच में तभी क्या है? बीच में ये सब बाइ प्लॉट, और-और धरम। है ना? तो ये नाटक होते हैं ना बच्चे। तो नाटक का नाम तो एक ही होता है ना? भई, ये हार और जीत का खेल है। ये फलाना खेल है। और फिर बाकि बीच में ये हंसी-कुड़ी के लिए। तो ये फिर हैं बाइ प्लॉट उनको कहा जाता है।
तो ये तो तुम बच्चे समझ गए हो कि बाबा जो कुछ भी कहानी सुनाते हैं सो भारत की सुनाते हैं। ऐसे नहीं इस्लाम धरम आया, इब्राहिम आया, तो कोई अरब देश की, अफ्रीका की कहानी सुनावेंगे। या बौद्धियों की, चीन, जापान की सुनावेंगे। या क्रिश्चियन्स की, यूरोप की सुनावेंगे, अमेरिका की सुनावेंगे। अरे, ये 84 जनम भारत के लिए हैं। पूरे 84 जनम। कोई इस्लामी ने लिया, बौद्धी ने लिया, क्रिशचियन ने लिया? कोई ने लिया है ऐसा 84 जनम? कहेंगे कोई ने भी नहीं लिया है। ये तो हिस्ट्री की बात है ना? ढ़ाई हज़ार वर्ष पहले इब्राहिम आया। फिर बौद्धी, बुद्ध आया। फिर क्राइस्ट आया। फिर उनके सहयोगी धरमपिताएं आए। तो ये सब ढ़ाई हज़ार वर्ष के अंदर आए ना। तो जब आए ही हैं बाद में भारत में, वो इस दुनिया में, तो 84 जन्म कहां से लिया? 84 के चक्र में तो ये कोई आते भी नहीं हैं। कोई ने भी नहीं लिया। सिर्फ तुम बच्चे हो।
और तुम्हारे में भी जो पहले-पहले; कौन पहले-पहले? हं? सूर्यवंशी या असल चन्द्रवंशी भी? हँ? असल सूर्यवंशी। हैं तो नंबरवार ना? तो पहले-पहले वरी पहले-पहले कौन? हँ? सूर्यवंशियों में भी कोई पहले-पहले होगा ना नंबरवन? तो पहले-पहले जिसने शिव की भक्ति की है ना? हँ? शुरू की है। किसने? अरे? शिव की भक्ति किसने शुरू की? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) आदि नारायण ने शुरू की? देवताएं शुरू करेंगे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) ब्रह्मा बाबा ने शुरू की? ब्रह्मा बाबा द्वापर में कहां से आ गए? हँ? अरे, किसने की? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, एक अक्षर लिखो। (किसी ने कुछ कहा।) विक्रमादित्य ने शुरू की। अच्छा, विक्रमादित्य ने शुरू की? उसको उतनी अकल थी राजा को कि ये काम करें? हँ? राजाओं को अकल होती है? फिर किसने की? हाँ, जरूर कहेंगे कोई विक्रमादित्य का गुरु हुआ है। तो द्वापर के आदि में तो गुरु की परंपरा नहीं थी। हाँ, स्वर्ग में जो मां-बाप होते हैं वो ही रास्ता बताते हैं। वो ही गुरु समझ लो। तो विक्रमादित्य को जनम देने वाला कोई होगा बाप भी, बाबा कहते हैं टीचर भी तो गुरु भी। तो भक्ति फिर किसने शुरू कराई? जिसने कराई वो भी तो भक्त हुआ ना? हाँ।
तो शुरू की है वो पहले-पहले वो बने। क्या बने? हँ? सतयुग में तो नारायण होते हैं ना। नारायण की पीढ़ियां चलती हैं। तो क्या बने? नारायण बने। पहले-पहले नारायण कौन? आदि, मध्य, अंत वाले? कहेंगे आदि नारायण जिनसे पहले कोई दूसरा नारायण बना ही नहीं। और कैसा नारायण? नर से डायरेक्ट उसी जनम में, पुरुषार्थी जनम में ही नारायण बनने वाला। ये नहीं कि नर से प्रिंस बने, बच्चे के रूप में जनम ले, फिर बाद में जाकरके बड़ा हो तो फिर राजाई मिले, हँ, राजगद्दी मिले। ऐसे नहीं। तो पहले-पहले कौन बने? हँ? उस प्रिंस को भी 16 कला संपूर्ण प्रिंस को जन्म देने वाला। तो वो कैसे मालूम पडेगा? तो देखो तुमको बहुत महीन, बहुत से बहुत दफा समझाया। मालूम कैसे पड़े कि इसने बहुत भक्ति की है? हँ? बहुत भक्ति की होगी तो क्या निशानी होगी? अरे, कुछ निशानी होगी कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, बहुत ज्ञान उठाएगा। हँ? और कम भक्ति होगी तो कम ज्ञान उठाएगा। तीखी भक्ति होगी तो तीखा ज्ञान उठाएगा। हँ? और सात्विक भक्ति की होगी सतोप्रधान तो ज्ञान भी सत्वप्रधान उठाएगा।
तो इसने बहुत भक्ति की है? पूछा। किसने? हँ? जिस विक्रमादित्य के लिए बताते हो कि दादा लेखराज की आत्मा सतयुग के आदि में 16 कला संपूर्ण कृष्ण बनती है, हँ, और द्वापर में आदि में आकर राजा विक्रमादित्य बनती है। तो बाबा ने पूछा कि इसने पहले-पहले भक्ति शुरू की तो क्या इसने बहुत भक्ति की है? हँ? निशानी दिखाई देती है? देती है? बहुत ज्ञान उठाया गहराई से? उठाया? नहीं उठाया। तो जो बहुत पुरुषार्थी होगा; क्या? बहुत अच्छी तरह से सर्विस करते होंगे और बहुतों को आप समान बनाते होंगे। बहुतों माने कितनों को? हँ? तो वो ही समझ जाएंगे कि बहुत भक्ति की हुई है। जिनको आप समान बनाया होगा जरूर उन्होंने ज्ञान उठाया होगा। हँ? बहुत ज्ञान उठाया होगा।
तो समझ में आता है कि जिसने बहुत भक्ति की है वो बहुत नंबरवन में उठाएगा ज्ञान। हँ? और नंबरवन में जाएगा। कहाँ जाएगा? अरे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) नंबरवन में पहले स्वर्ग में चले जाएगा सीधा? अभी-अभी बताया, हँ, शुरुआत ही की; क्या? पहले शांतिधाम, वाया शांतिधाम, फिर सुखधाम। तो कहां जाएगा पहले? हँ? पहले नंबरवन में वो ही शांतिधाम में जाएगा। तो देखो शांतिधाम में जाएगा या शांतिधाम को इस सृष्टि पर उतारेगा? हँ? क्या करेगा? उतारेगा। हाँ। और उतारेगा तो कहां उतारेगा? हँ? इस सृष्टि पर शांतिधाम को उतारेगा तो कहां उतारेगा? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) स्टेज पर? कौनसे? ये सारी दुनिया तो स्टेज है। हँ? सारी दुनिया में पार्ट बजाने वाले पार्टधारी हैं 500-700 करोड़। हाँ, अपने अंदर उतारेगा। तो अपने अंदर उतारेगा ब्रह्मलोक को तो पहला-पहला ब्रह्मलोक परमब्रह्म वो ही हुआ ना। हाँ।
तो देखो, बाप कितना बैठकरके सारा अच्छी तरह से समझाते रहे। हँ? अच्छी तरह से समझाने में कितना टाइम लगाया? हँ? बताओ। अच्छी तरह से समझाने के लिए कितना टाइम? अरे, थोड़ा टाइम या ज्यादा से ज्यादा कितना टाइम लगाया? (किसी ने कुछ कहा।) 80 साल। हाँ। 80 साल सुनाने में लगाया या समझाने में लगाया? हँ? किसमें लगाया? क्योंकि पहले सुनाना होता है फिर समझाना होता है। पहले सुनने वाला सुनेगा तब तो बाद में समझेगा ना? तो 80 साल काहे में लगे? सुनाने में लगे। और फिर समझाने में? समझाना बाद में। तो टोटल मिलाके कितना? टोटल मिलाके कहेंगे 80 साल। तो बाबा अच्छी तरह से समझाते रहे।
अब ये सब बुद्धि में होना चाहिए ना? क्या? क्या सब? यही सब कि पहले नंबर में भक्ति किसने की सबसे जास्ती? फिर दूसरे नंबर में किसने की? फिर तीसरे नंबर में किसने की वो सारी माला बुद्धि में आ जानी चाहिए ना? नहीं? ये पहचान बताई ना? क्या? हँ? माला में मणके होते हैं ना? कोई राइटियस कोई लेफ्टिस्ट। कोई ऊपर के, कोई नीचे के। तो कौन ऊपर जाएगा पहले? हँ? माला के जो मणके होते हैं, उनमें कौनसा मणका पहले ऊपर जाएगा? (किसी ने कुछ कहा।) आठ इकट्ठे चले जाएंगे? वाह भैया। वाह। ये तो इकट्ठा ही नंबर लग गया। फिर तो नंबर की तो बात ही नहीं रह गई। हँ? आठ इकट्ठे चले जाएंगे? तो पहले-पहले कौन जाएगा? आठ इकट्ठे परमधाम को अपने अंदर उतार लेंगे तो सारे ही परमधाम हो गए। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हां, तो एक। वो दाईं ओर का, बाईं ओर का, नीचे का, ऊपर का? माला में मणके होते हैं ना? तो बताना चाहिए ना? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हँ? दाईं ओर का। एक बात बताई। और? और? हँ? दाईं ओर का फिर वो ही। और ये भी तो बताया नीचे का मणका होगा कि ऊपर का मणका होगा? हाँ, दायीं ओर का होगा और ऊपर, सबसे ऊपर का मणका। लेकिन सबसे ऊपर के तो दो मणके होते हैं। हँ? माला में फूल होता है ना? उसके नीचे दो मणके होते हैं। तो जो दो ही दोनों ही ऊपर हैं ना? लेकिन उनमें एक है बाईं ओर और एक है दाईं ओर। तो जो दाईं ओर का मणका है और सबसे ऊपर का मणका है, हँ, अब उसकी बुद्धि में ये होना चाहिए सब। होना चाहिए। है या नहीं है ये बात अलग।
तो इतनी सभी बातें जो बाप रोज़-रोज़ बैठकरके समझाते हैं तो ये बुद्धि में होना चाहिए ना? हँ? किसकी बुद्धि में? हँ? अरे, बताया – माला का। माला भी दो हैं प्रसिद्ध भारत में। एक रुद्र माला और एक विजयमाला। तो उसमें बाप की माला कौनसी है? बापों का बाप जिसे कहा जाता है। शिव की माला है रुद्रमाला। वो है ऊँच ते ऊँच माला। बाप की सिमरणी की माला। हाँ। तो उनमें जो नंबरवार दायीं ओर के और ऊपर के मणके हैं वो पहले-पहले समझ सकते हैं। आपे ही समझ सकते हैं। हँ? हाँ। 28.11.1967 के प्रातः क्लास का आठवां पेज, मंगलवार। कोई भी कि कौन सबसे जास्ती सर्विस करते हैं क्योंकि सर्विस वाले को ही पता पड़ेगा ना अच्छी तरह से। क्यों? अभी तो कहा कि जिसने बहुत भक्ति की होगी उसको ज्ञान बहुत अच्छा आवेगा। जिसने सात्विक भक्ति की होगी उसके अंदर सतोप्रधान ज्ञान आवेगा। हँ? और जिसने पहले-पहले भक्ति की होगी उसके अंदर पहले-पहले ज्ञान का भंडार आवेगा, अकूट भंडार।
तो दूसरी पहचान बताई। क्या? कि वो जो ज्यादा सर्विस करने वाला होगा ना चाहे बेसिक नॉलेज में, चाहे एडवांस नॉलेज में, सबसे जास्ती सर्विस करने वाला होगा तो उसको अच्छी तरह से पता पड़ेगा। हँ? सर्विस करने वाला? क्यों? इससे क्या कनेक्शन? सर्विस अलग सब्जेक्ट, ज्ञान अलग सब्जेक्ट। सर्विस की बात क्यों बताई? हँ? अरे, कोई लिंक होना चाहिए ना? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जो सर्विसेबुल जास्ती होगा तो उसको मनन-चिंतन-मंथन जास्ती चलेगा। जितनी ज्यादा सर्विस की होगी बेसिक में, एडवांस में और जितने ज्यादा की सर्विस की होगी तो रिजल्ट क्या आएगा? हँ? हाँ, उसका बुद्धियोग, उसका मनन-चिंतन ज्यादा चलेगा। और बुद्धि फैसला करेगी, हँ, ज्ञान में कौनसी बातें, कौनसे प्वाइंट ज्ञान के हैं और कौनसे अज्ञान के हैं? कौनसे रावण संप्रदाय के हैं और कौनसे राम के बताए हुए बाण हैं? तो पता पड़ेगा ना अच्छी तरह से। हाँ। किसको? दो निशानियां बताईं। एक तो भक्ति और दूसरा? दूसरा? अरे? सर्विस? हाँ। एक तो याद की यात्रा। ये भी बात बताई।
तीन बातें बताय दिया। एक भक्ति ज्यादा की होगी, सात्विक भक्ति की होगी, पहले की होगी। दूसरी बात सर्विस ज्यादा करेगा, हँ, और हाँ, सर्विस का रिजल्ट क्या निकलेगा? उसका मनन-चिंतन-मंथन ज्यादा चलेगा और मनन-चिंतन-मंथन करने से नए-नए प्वाइंट, हाँ, नए-नए रतन निकलेंगे ना? शास्त्रों में लिखा ना सागर मंथन हुआ तो रतन निकले। तो नई-नई ज्ञान की बातें निकलती हैं। तो तीसरी बात और बताई जो बहुत पावरफुल बात है। क्या? याद। तो याद की यात्रा में भी वो आगे होगा या पीछे होगा? आगे होगा। हाँ। और तीखा होगा।
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the middle of the seventh page on Tuesday was – You are making purusharth to go to the abode of peace. You will go to the abode of peace via and then go to the abode of happiness later on, via the abode of peace to the abode of happiness. So, who will be the goers who will first go to the abode of peace and then come to the abode of happiness? It will be only those who will pass first of all. So, Baba will say for them, will He not that children, you have understood the play, haven’t you? And Baba too narrates for Bhaarat. Hm. Is it not? The entire story is based on Bhaarat (India). People also recite the story of Satya Narayan in every house in India. So, it is said for you, isn’t it that you were worshipworthy. Now you have become worshippers. And there is none else other than you. You cannot say for anyone else, can you? Can anyone tell as to whether anyone else was a worshipworthy deity? No. It means that people of other religions, those who convert to other religions, were they worshipworthy deities? No. So, the stories that Baba sits and narrates, this story that has been penned, these stories are made about the one who comes at the first number. Then what is in the middle? In between are all these by-plots, other religions. Is it not? So, these are dramas, aren’t they children? So, the name of the drama is only one, isn’t it? Brother, this is a drama of defeat and victory. This is such and such drama. And then in between this is for fun. So, these then are called by-plots.
So, you children have understood that whatever story Baba narrates is of Bhaarat. It is not as if Islam came, Ibrahim came, so, He will narrate the story of Arab country, Africa. Or that He will narrate that of Buddhists, China, Japan. Or that He will narrate that of the Christians, Europe, America. Arey, these 84 births are for Bhaarat. Complete 84 births. Did any Islamic person, Buddhist, Christian get? Did anyone get such 84 births? It will be said that nobody has got. This is a topic of the history, isn’t it? Ibrahim came 2500 years ago. Then Buddhists, Buddha came. Then Christ came. Then their helper founders of religions came. So, all these came within 2500 years, didn’t they? So, when they have arrived in India, no, in the world later on, then how can they get 84 births? None of them pass through the cycle of [complete] 84 births. None of them got. It is only you children.
And even among you those who first of all; who first of all? Hm? Suryavanshis or the true Chandravanshis as well? Hm? The true Suryavanshis. They are numberwise, aren’t they? So, first of all; who is first of all? Hm? Even among the Suryavanshis, someone must be number one first of all? So, the one who has done the Bhakti of Shiva first of all, hasn’t he? Hm? He has started. Who? Arey? Who started Shiv’s Bhakti? Hm? (Someone said something.) Did Aadi (first) Narayan start? Will the deities start? Hm? (Someone said something.) Did Brahma Baba start? How did Brahma Baba arrive in the Copper Age? Hm? Arey, who started? (Someone said something.) Yes, write one alphabet. (Someone said something.) Vikramaditya started. Achcha, did Vikramaditya start? Did he, the king have that much intelligence to perform this task? Hm? Do the kings have intelligence? Then who started? Yes, it will certainly be said that there has been a guru of Vikramaditya. So, in the beginning of the Copper Age there was no tradition of gurus. Yes, the parents themselves show the path in heaven. Consider them to be the gurus. So, there must be a Father who gives birth to Vikramaditya; Baba says, he was the teacher as well as the guru. So, then who enabled the start of Bhakti? The one who enabled was also a devotee (bhakt), wasn’t he? Yes.
So, those who started became that first of all. What did they become? Hm? There are Narayans in the Golden Age, aren’t there? Generations of Narayans continue. So, what did they become? They became Narayans. Who is the first and foremost Narayan? The one in the beginning, middle or the end? It will be said Aadi (first) Narayan, before whom nobody else became Narayan. And what kind of Narayan? The one who becomes Narayan from nar (man) direct in the same birth, in the purusharthi (effort-making) birth only. It is not as if he becomes Prince from nar (man), gets birth as a child and then later on grows up to get the kingship, hm, the throne. Not so. So, who became first of all? Hm? The one who gives birth even to that Prince, that Prince who is perfect in 16 celestial degrees. How can one know that? So, look, you have been explained very minutely and many, many time. How will you know as to this one has done a lot of Bhakti? Hm? What would be the indication if someone has done a lot of Bhakti? Arey, will there be any indication or not? (Someone said something.) Yes, he will grasp a lot of knowledge. Hm? And if he has done less Bhakti, then he will grasp less knowledge. If he has done intense Bhakti, then he will grasp intense knowledge. Hm? And if he has done pure, satopradhan Bhakti, then the knowledge that he grasps will also be satwapradhan.
So, has this one done a lot of Bhakti? It was asked. Who? Hm? The Vikramaditya for whom you say that the soul of Dada Lekhraj which becomes Krishna perfect in 16 celestial degrees in the beginning of the Golden Age and then comes in the beginning of the Copper Age and becomes King Vikramaditya; so, Baba asked that if this one started Bhakti first of all, then did he do a lot of Bhakti? Hm? Do you observe any indication? Do you? Did he grasp a lot of knowledge deeply? Did he? He didn’t. So, the one who is very purusharthi; what? Those who might be doing service very nicely and must be making others equal to themselves; ‘many’ refers to how many? Hm? So, they will alone understand that they have definitely done a lot of Bhakti. Those whom they made equal to themselves must have grasped knowledge. Hm? They must have grasped a lot of knowledge.
So, it can be understood that the one who has done a lot of Bhakti will grasp the knowledge at number one position. Hm? And he will go number one. Where will he go? Arey? Hm? (Someone said something.) Will he go straight to heaven first at number one position? Just now it was told, hm, the beginning itself was made; what? First the abode of peace, via the abode of peace, then the abode of happiness. So, where will he go first? Hm? He alone will go to the abode of peace at the number one position. So, look, will he go to the abode of peace or will he bring down the abode of peace to this world? Hm? What will he do? He will bring it down. Yes. And if he brings it down, where will he bring it down? Hm? When he brings down the abode of peace to this world, then where will he bring it down? Hm? (Someone said something.) On the stage? Which one? This entire world is a stage. Hm? There are 500-700 crore actors playing their parts in the entire world. Yes, he will bring it down within himself. So, when he brings down the Brahmlok (abode of Brahm) within himself, then he himself is the first and foremost Brahmlok, Parambrahm, isn’t he? Yes.
So, look, the Father had been sitting and explaining everything so nicely. Hm? How much time did He take to explain nicely? Hm? Speak up. How much time to explain nicely? Arey, a little time or at the most how much time did He take? (Someone said something.) 80 years. Yes. Did He take 80 years to narrate or to explain? Hm? For what did He take [time]? It is because first one has to narrate and then explain. First the listener will listen, and then later he will understand, will he not? So, for what purpose were the 80 years used? They were used in narrating. And then for explaining? The explaining takes place later on. So, how much in total? It will be said 80 years in total. So, Baba had been explaining nicely.
Now all this should be in the intellect, shouldn’t it be? What? What all? All this that who did the maximum Bhakti at number one position? Then who did at the second number? Then who did at the third number? That entire rosary should come into the intellect, shouldn’t it? No? This was an indication that was narrated, wasn’t it? What? Hm? There are beads in a rosary, aren’t they there? Some are righteous, some are leftist. Some are the upper ones, some are the lower ones. So, who will go up first? Hm? Which bead among the beads of the rosary will go up first? (Someone said something.) Will the eight go simultaneously? Wow brother! Wow! All of them got the number simultaneously. Then there is no topic of number at all. Hm? Will the eight go simultaneously? So, who will go first of all? If the eight bring down the Supreme Abode within themselves simultaneously, then all happen to be the Supreme Abodes. Hm? (Someone said something.) Yes, so one. Is he from the right side, the left side, the lower one or the upper one? There are beads in a rosary, aren’t they there? So, you should tell, shouldn’t you? Hm? (Someone said something.) Hm? From the right side. You said one thing. And? And? Hm? From the right side; again the same thing. And it was also told that whether it will be a lower bead or an upper bead? Yes, it will be from the right side and a bead from the upper, upper most side. But there are two beads at the top. Hm? There is a flower in the rosary, isn’t it? Below it there are two beads. So, both are above both, aren’t they? But among them one is on the left side and one is on the right side. So, the bead on the right side and the uppermost bead, hm, well, all this should be in his intellect. It should be. Whether it is there [in his intellect] or not is a different topic.
So, all these topics which the Father sits and explains every day, so, these should be there in the intellect, shouldn’t they? Hm? In whose intellect? Hm? Arey, it was told – of the rosary. In case of rosary also, two [rosaries] are famous in India. One is Rudramala (rosary of Rudra) and one is Vijaymala (rosary of victory). So, among them which is the Father’s rosary? The one who is called the Father of fathers. Shiv’s rosary is Rudramala. That is the highest on high rosary. The rosary of the Father’s remembrance. Yes. So, the numberwise beads on the right and upper side among them can understand first of all. They can understand on their own. Hm? Yes. Eighth page of the morning class dated 28.11.1967. Anyone that who does the maximum service because only those who do service will know nicely. Why? It was told just now that the one who has done a lot of Bhakti will get knowledge very nicely. The one who has done pure Bhakti will get satopradhan knowledge. Hm? And the one who must have done Bhakti first of all will get the stock-house, inexhaustible stock-house of knowledge first of all.
So, the second indication was mentioned. What? That the one who does more service, be it in basic knowledge, be it in advance knowledge, if he is the one who does maximum service, then he will know nicely. Hm? The one who does service? Why? What is the connection with this? Service is a separate subject; knowledge is a separate subject. Why was the topic of service mentioned? Hm? Arey, there should be some link, shouldn’t it be there? Hm? (Someone said something.) Yes, the one who is more serviceable will think and churn more. The more service he would have done in basic, in advance and the more the number of people he would have served, then what would be the result? Hm? Yes, he would have more Yoga through the intellect, he would think and churn more. And the intellect would decide, hm, which topics, which points in knowledge are connected to knowledge and which points are connected with ignorance? Which ones belong to the Ravana community and which are the arrows mentioned by Ram? So, they will get to know nicely, will they not? Yes. Who? Two indications were mentioned. One is Bhakti and the other? The other? Arey? Service? Yes. One is the journey of remembrance. This topic was also mentioned.
Three topics were mentioned. One is that he would have done more Bhakti; he would have done pure Bhakti and he would have done it first. The second topic is that he would do more service, hm, and yes, what would be the result of service? He would think and churn more and by thinking and churning, newer points, yes, newer gems would emerge, will they not? It has been written in the scriptures, hasn’t it been written that when the ocean was churned then gems emerged. So, newer topics of knowledge emerge. So, a third topic was also mentioned which is a powerful topic. What? Remembrance. So, will he be ahead or will he lag in the journey of remembrance? He will be ahead. Yes. And he will be sharp.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2909, दिनांक 12.06.2019
VCD 2909, dated 12.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning Class dated 28.11.1967
VCD-2909-extracts-Bilingual
समय- 00.01-21.40
Time- 00.01-21.40
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को सातवें पेज के मध्य में बात चल रही थी – तुम पुरुषार्थ कर रहे हो शांतिधाम में जाने का। तुम शांतिधाम जाएंगे वाया फिर बाद में सुखधाम जाएंगे, वाया शांतिधाम सुखधाम। तो जाने वाले कौन होंगे वो जो पहले शांतिधाम में जाकरके सुखधाम में आवेंगे? वो तो जो पहले-पहले पास होंगे वो ही होंगे। तो उनके लिए बाबा कहेंगे ना बच्चे तो खेल भी तो तुमने समझा ना? और बाबा सुनाते भी हैं भारत के लिए। हँ। है ना? सारी कहानी भारत के ऊपर है। भारत में घर-घर में कथा भी करते हैं सत्य नारायण की। तो तुम्हारे लिए कहते हैं ना तुम पूज्य थे। अभी पुजारी बने हो। और तुम्हारे अलावा कोई दूसरा तो नहीं है। दूसरे कोई को कह भी नहीं सकते हो ना? कोई बताए क्या कोई दूसरे पूज्य देवी-देवता थे? नहीं। माना और धरमवाले, और धरम में जो कन्वर्ट होते हैं वो कोई पूज्य देवी-देवता थे? नहीं। तो बाबा कोई भी कथा जो सुनाते हैं कि बैठकरके ये आखानी जो बनी है कथा-कहानियां सो तो जो पहले नंबर में आता है उसकी बनी है। बीच में तभी क्या है? बीच में ये सब बाइ प्लॉट, और-और धरम। है ना? तो ये नाटक होते हैं ना बच्चे। तो नाटक का नाम तो एक ही होता है ना? भई, ये हार और जीत का खेल है। ये फलाना खेल है। और फिर बाकि बीच में ये हंसी-कुड़ी के लिए। तो ये फिर हैं बाइ प्लॉट उनको कहा जाता है।
तो ये तो तुम बच्चे समझ गए हो कि बाबा जो कुछ भी कहानी सुनाते हैं सो भारत की सुनाते हैं। ऐसे नहीं इस्लाम धरम आया, इब्राहिम आया, तो कोई अरब देश की, अफ्रीका की कहानी सुनावेंगे। या बौद्धियों की, चीन, जापान की सुनावेंगे। या क्रिश्चियन्स की, यूरोप की सुनावेंगे, अमेरिका की सुनावेंगे। अरे, ये 84 जनम भारत के लिए हैं। पूरे 84 जनम। कोई इस्लामी ने लिया, बौद्धी ने लिया, क्रिशचियन ने लिया? कोई ने लिया है ऐसा 84 जनम? कहेंगे कोई ने भी नहीं लिया है। ये तो हिस्ट्री की बात है ना? ढ़ाई हज़ार वर्ष पहले इब्राहिम आया। फिर बौद्धी, बुद्ध आया। फिर क्राइस्ट आया। फिर उनके सहयोगी धरमपिताएं आए। तो ये सब ढ़ाई हज़ार वर्ष के अंदर आए ना। तो जब आए ही हैं बाद में भारत में, वो इस दुनिया में, तो 84 जन्म कहां से लिया? 84 के चक्र में तो ये कोई आते भी नहीं हैं। कोई ने भी नहीं लिया। सिर्फ तुम बच्चे हो।
और तुम्हारे में भी जो पहले-पहले; कौन पहले-पहले? हं? सूर्यवंशी या असल चन्द्रवंशी भी? हँ? असल सूर्यवंशी। हैं तो नंबरवार ना? तो पहले-पहले वरी पहले-पहले कौन? हँ? सूर्यवंशियों में भी कोई पहले-पहले होगा ना नंबरवन? तो पहले-पहले जिसने शिव की भक्ति की है ना? हँ? शुरू की है। किसने? अरे? शिव की भक्ति किसने शुरू की? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) आदि नारायण ने शुरू की? देवताएं शुरू करेंगे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) ब्रह्मा बाबा ने शुरू की? ब्रह्मा बाबा द्वापर में कहां से आ गए? हँ? अरे, किसने की? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, एक अक्षर लिखो। (किसी ने कुछ कहा।) विक्रमादित्य ने शुरू की। अच्छा, विक्रमादित्य ने शुरू की? उसको उतनी अकल थी राजा को कि ये काम करें? हँ? राजाओं को अकल होती है? फिर किसने की? हाँ, जरूर कहेंगे कोई विक्रमादित्य का गुरु हुआ है। तो द्वापर के आदि में तो गुरु की परंपरा नहीं थी। हाँ, स्वर्ग में जो मां-बाप होते हैं वो ही रास्ता बताते हैं। वो ही गुरु समझ लो। तो विक्रमादित्य को जनम देने वाला कोई होगा बाप भी, बाबा कहते हैं टीचर भी तो गुरु भी। तो भक्ति फिर किसने शुरू कराई? जिसने कराई वो भी तो भक्त हुआ ना? हाँ।
तो शुरू की है वो पहले-पहले वो बने। क्या बने? हँ? सतयुग में तो नारायण होते हैं ना। नारायण की पीढ़ियां चलती हैं। तो क्या बने? नारायण बने। पहले-पहले नारायण कौन? आदि, मध्य, अंत वाले? कहेंगे आदि नारायण जिनसे पहले कोई दूसरा नारायण बना ही नहीं। और कैसा नारायण? नर से डायरेक्ट उसी जनम में, पुरुषार्थी जनम में ही नारायण बनने वाला। ये नहीं कि नर से प्रिंस बने, बच्चे के रूप में जनम ले, फिर बाद में जाकरके बड़ा हो तो फिर राजाई मिले, हँ, राजगद्दी मिले। ऐसे नहीं। तो पहले-पहले कौन बने? हँ? उस प्रिंस को भी 16 कला संपूर्ण प्रिंस को जन्म देने वाला। तो वो कैसे मालूम पडेगा? तो देखो तुमको बहुत महीन, बहुत से बहुत दफा समझाया। मालूम कैसे पड़े कि इसने बहुत भक्ति की है? हँ? बहुत भक्ति की होगी तो क्या निशानी होगी? अरे, कुछ निशानी होगी कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, बहुत ज्ञान उठाएगा। हँ? और कम भक्ति होगी तो कम ज्ञान उठाएगा। तीखी भक्ति होगी तो तीखा ज्ञान उठाएगा। हँ? और सात्विक भक्ति की होगी सतोप्रधान तो ज्ञान भी सत्वप्रधान उठाएगा।
तो इसने बहुत भक्ति की है? पूछा। किसने? हँ? जिस विक्रमादित्य के लिए बताते हो कि दादा लेखराज की आत्मा सतयुग के आदि में 16 कला संपूर्ण कृष्ण बनती है, हँ, और द्वापर में आदि में आकर राजा विक्रमादित्य बनती है। तो बाबा ने पूछा कि इसने पहले-पहले भक्ति शुरू की तो क्या इसने बहुत भक्ति की है? हँ? निशानी दिखाई देती है? देती है? बहुत ज्ञान उठाया गहराई से? उठाया? नहीं उठाया। तो जो बहुत पुरुषार्थी होगा; क्या? बहुत अच्छी तरह से सर्विस करते होंगे और बहुतों को आप समान बनाते होंगे। बहुतों माने कितनों को? हँ? तो वो ही समझ जाएंगे कि बहुत भक्ति की हुई है। जिनको आप समान बनाया होगा जरूर उन्होंने ज्ञान उठाया होगा। हँ? बहुत ज्ञान उठाया होगा।
तो समझ में आता है कि जिसने बहुत भक्ति की है वो बहुत नंबरवन में उठाएगा ज्ञान। हँ? और नंबरवन में जाएगा। कहाँ जाएगा? अरे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) नंबरवन में पहले स्वर्ग में चले जाएगा सीधा? अभी-अभी बताया, हँ, शुरुआत ही की; क्या? पहले शांतिधाम, वाया शांतिधाम, फिर सुखधाम। तो कहां जाएगा पहले? हँ? पहले नंबरवन में वो ही शांतिधाम में जाएगा। तो देखो शांतिधाम में जाएगा या शांतिधाम को इस सृष्टि पर उतारेगा? हँ? क्या करेगा? उतारेगा। हाँ। और उतारेगा तो कहां उतारेगा? हँ? इस सृष्टि पर शांतिधाम को उतारेगा तो कहां उतारेगा? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) स्टेज पर? कौनसे? ये सारी दुनिया तो स्टेज है। हँ? सारी दुनिया में पार्ट बजाने वाले पार्टधारी हैं 500-700 करोड़। हाँ, अपने अंदर उतारेगा। तो अपने अंदर उतारेगा ब्रह्मलोक को तो पहला-पहला ब्रह्मलोक परमब्रह्म वो ही हुआ ना। हाँ।
तो देखो, बाप कितना बैठकरके सारा अच्छी तरह से समझाते रहे। हँ? अच्छी तरह से समझाने में कितना टाइम लगाया? हँ? बताओ। अच्छी तरह से समझाने के लिए कितना टाइम? अरे, थोड़ा टाइम या ज्यादा से ज्यादा कितना टाइम लगाया? (किसी ने कुछ कहा।) 80 साल। हाँ। 80 साल सुनाने में लगाया या समझाने में लगाया? हँ? किसमें लगाया? क्योंकि पहले सुनाना होता है फिर समझाना होता है। पहले सुनने वाला सुनेगा तब तो बाद में समझेगा ना? तो 80 साल काहे में लगे? सुनाने में लगे। और फिर समझाने में? समझाना बाद में। तो टोटल मिलाके कितना? टोटल मिलाके कहेंगे 80 साल। तो बाबा अच्छी तरह से समझाते रहे।
अब ये सब बुद्धि में होना चाहिए ना? क्या? क्या सब? यही सब कि पहले नंबर में भक्ति किसने की सबसे जास्ती? फिर दूसरे नंबर में किसने की? फिर तीसरे नंबर में किसने की वो सारी माला बुद्धि में आ जानी चाहिए ना? नहीं? ये पहचान बताई ना? क्या? हँ? माला में मणके होते हैं ना? कोई राइटियस कोई लेफ्टिस्ट। कोई ऊपर के, कोई नीचे के। तो कौन ऊपर जाएगा पहले? हँ? माला के जो मणके होते हैं, उनमें कौनसा मणका पहले ऊपर जाएगा? (किसी ने कुछ कहा।) आठ इकट्ठे चले जाएंगे? वाह भैया। वाह। ये तो इकट्ठा ही नंबर लग गया। फिर तो नंबर की तो बात ही नहीं रह गई। हँ? आठ इकट्ठे चले जाएंगे? तो पहले-पहले कौन जाएगा? आठ इकट्ठे परमधाम को अपने अंदर उतार लेंगे तो सारे ही परमधाम हो गए। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हां, तो एक। वो दाईं ओर का, बाईं ओर का, नीचे का, ऊपर का? माला में मणके होते हैं ना? तो बताना चाहिए ना? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हँ? दाईं ओर का। एक बात बताई। और? और? हँ? दाईं ओर का फिर वो ही। और ये भी तो बताया नीचे का मणका होगा कि ऊपर का मणका होगा? हाँ, दायीं ओर का होगा और ऊपर, सबसे ऊपर का मणका। लेकिन सबसे ऊपर के तो दो मणके होते हैं। हँ? माला में फूल होता है ना? उसके नीचे दो मणके होते हैं। तो जो दो ही दोनों ही ऊपर हैं ना? लेकिन उनमें एक है बाईं ओर और एक है दाईं ओर। तो जो दाईं ओर का मणका है और सबसे ऊपर का मणका है, हँ, अब उसकी बुद्धि में ये होना चाहिए सब। होना चाहिए। है या नहीं है ये बात अलग।
तो इतनी सभी बातें जो बाप रोज़-रोज़ बैठकरके समझाते हैं तो ये बुद्धि में होना चाहिए ना? हँ? किसकी बुद्धि में? हँ? अरे, बताया – माला का। माला भी दो हैं प्रसिद्ध भारत में। एक रुद्र माला और एक विजयमाला। तो उसमें बाप की माला कौनसी है? बापों का बाप जिसे कहा जाता है। शिव की माला है रुद्रमाला। वो है ऊँच ते ऊँच माला। बाप की सिमरणी की माला। हाँ। तो उनमें जो नंबरवार दायीं ओर के और ऊपर के मणके हैं वो पहले-पहले समझ सकते हैं। आपे ही समझ सकते हैं। हँ? हाँ। 28.11.1967 के प्रातः क्लास का आठवां पेज, मंगलवार। कोई भी कि कौन सबसे जास्ती सर्विस करते हैं क्योंकि सर्विस वाले को ही पता पड़ेगा ना अच्छी तरह से। क्यों? अभी तो कहा कि जिसने बहुत भक्ति की होगी उसको ज्ञान बहुत अच्छा आवेगा। जिसने सात्विक भक्ति की होगी उसके अंदर सतोप्रधान ज्ञान आवेगा। हँ? और जिसने पहले-पहले भक्ति की होगी उसके अंदर पहले-पहले ज्ञान का भंडार आवेगा, अकूट भंडार।
तो दूसरी पहचान बताई। क्या? कि वो जो ज्यादा सर्विस करने वाला होगा ना चाहे बेसिक नॉलेज में, चाहे एडवांस नॉलेज में, सबसे जास्ती सर्विस करने वाला होगा तो उसको अच्छी तरह से पता पड़ेगा। हँ? सर्विस करने वाला? क्यों? इससे क्या कनेक्शन? सर्विस अलग सब्जेक्ट, ज्ञान अलग सब्जेक्ट। सर्विस की बात क्यों बताई? हँ? अरे, कोई लिंक होना चाहिए ना? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जो सर्विसेबुल जास्ती होगा तो उसको मनन-चिंतन-मंथन जास्ती चलेगा। जितनी ज्यादा सर्विस की होगी बेसिक में, एडवांस में और जितने ज्यादा की सर्विस की होगी तो रिजल्ट क्या आएगा? हँ? हाँ, उसका बुद्धियोग, उसका मनन-चिंतन ज्यादा चलेगा। और बुद्धि फैसला करेगी, हँ, ज्ञान में कौनसी बातें, कौनसे प्वाइंट ज्ञान के हैं और कौनसे अज्ञान के हैं? कौनसे रावण संप्रदाय के हैं और कौनसे राम के बताए हुए बाण हैं? तो पता पड़ेगा ना अच्छी तरह से। हाँ। किसको? दो निशानियां बताईं। एक तो भक्ति और दूसरा? दूसरा? अरे? सर्विस? हाँ। एक तो याद की यात्रा। ये भी बात बताई।
तीन बातें बताय दिया। एक भक्ति ज्यादा की होगी, सात्विक भक्ति की होगी, पहले की होगी। दूसरी बात सर्विस ज्यादा करेगा, हँ, और हाँ, सर्विस का रिजल्ट क्या निकलेगा? उसका मनन-चिंतन-मंथन ज्यादा चलेगा और मनन-चिंतन-मंथन करने से नए-नए प्वाइंट, हाँ, नए-नए रतन निकलेंगे ना? शास्त्रों में लिखा ना सागर मंथन हुआ तो रतन निकले। तो नई-नई ज्ञान की बातें निकलती हैं। तो तीसरी बात और बताई जो बहुत पावरफुल बात है। क्या? याद। तो याद की यात्रा में भी वो आगे होगा या पीछे होगा? आगे होगा। हाँ। और तीखा होगा।
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the middle of the seventh page on Tuesday was – You are making purusharth to go to the abode of peace. You will go to the abode of peace via and then go to the abode of happiness later on, via the abode of peace to the abode of happiness. So, who will be the goers who will first go to the abode of peace and then come to the abode of happiness? It will be only those who will pass first of all. So, Baba will say for them, will He not that children, you have understood the play, haven’t you? And Baba too narrates for Bhaarat. Hm. Is it not? The entire story is based on Bhaarat (India). People also recite the story of Satya Narayan in every house in India. So, it is said for you, isn’t it that you were worshipworthy. Now you have become worshippers. And there is none else other than you. You cannot say for anyone else, can you? Can anyone tell as to whether anyone else was a worshipworthy deity? No. It means that people of other religions, those who convert to other religions, were they worshipworthy deities? No. So, the stories that Baba sits and narrates, this story that has been penned, these stories are made about the one who comes at the first number. Then what is in the middle? In between are all these by-plots, other religions. Is it not? So, these are dramas, aren’t they children? So, the name of the drama is only one, isn’t it? Brother, this is a drama of defeat and victory. This is such and such drama. And then in between this is for fun. So, these then are called by-plots.
So, you children have understood that whatever story Baba narrates is of Bhaarat. It is not as if Islam came, Ibrahim came, so, He will narrate the story of Arab country, Africa. Or that He will narrate that of Buddhists, China, Japan. Or that He will narrate that of the Christians, Europe, America. Arey, these 84 births are for Bhaarat. Complete 84 births. Did any Islamic person, Buddhist, Christian get? Did anyone get such 84 births? It will be said that nobody has got. This is a topic of the history, isn’t it? Ibrahim came 2500 years ago. Then Buddhists, Buddha came. Then Christ came. Then their helper founders of religions came. So, all these came within 2500 years, didn’t they? So, when they have arrived in India, no, in the world later on, then how can they get 84 births? None of them pass through the cycle of [complete] 84 births. None of them got. It is only you children.
And even among you those who first of all; who first of all? Hm? Suryavanshis or the true Chandravanshis as well? Hm? The true Suryavanshis. They are numberwise, aren’t they? So, first of all; who is first of all? Hm? Even among the Suryavanshis, someone must be number one first of all? So, the one who has done the Bhakti of Shiva first of all, hasn’t he? Hm? He has started. Who? Arey? Who started Shiv’s Bhakti? Hm? (Someone said something.) Did Aadi (first) Narayan start? Will the deities start? Hm? (Someone said something.) Did Brahma Baba start? How did Brahma Baba arrive in the Copper Age? Hm? Arey, who started? (Someone said something.) Yes, write one alphabet. (Someone said something.) Vikramaditya started. Achcha, did Vikramaditya start? Did he, the king have that much intelligence to perform this task? Hm? Do the kings have intelligence? Then who started? Yes, it will certainly be said that there has been a guru of Vikramaditya. So, in the beginning of the Copper Age there was no tradition of gurus. Yes, the parents themselves show the path in heaven. Consider them to be the gurus. So, there must be a Father who gives birth to Vikramaditya; Baba says, he was the teacher as well as the guru. So, then who enabled the start of Bhakti? The one who enabled was also a devotee (bhakt), wasn’t he? Yes.
So, those who started became that first of all. What did they become? Hm? There are Narayans in the Golden Age, aren’t there? Generations of Narayans continue. So, what did they become? They became Narayans. Who is the first and foremost Narayan? The one in the beginning, middle or the end? It will be said Aadi (first) Narayan, before whom nobody else became Narayan. And what kind of Narayan? The one who becomes Narayan from nar (man) direct in the same birth, in the purusharthi (effort-making) birth only. It is not as if he becomes Prince from nar (man), gets birth as a child and then later on grows up to get the kingship, hm, the throne. Not so. So, who became first of all? Hm? The one who gives birth even to that Prince, that Prince who is perfect in 16 celestial degrees. How can one know that? So, look, you have been explained very minutely and many, many time. How will you know as to this one has done a lot of Bhakti? Hm? What would be the indication if someone has done a lot of Bhakti? Arey, will there be any indication or not? (Someone said something.) Yes, he will grasp a lot of knowledge. Hm? And if he has done less Bhakti, then he will grasp less knowledge. If he has done intense Bhakti, then he will grasp intense knowledge. Hm? And if he has done pure, satopradhan Bhakti, then the knowledge that he grasps will also be satwapradhan.
So, has this one done a lot of Bhakti? It was asked. Who? Hm? The Vikramaditya for whom you say that the soul of Dada Lekhraj which becomes Krishna perfect in 16 celestial degrees in the beginning of the Golden Age and then comes in the beginning of the Copper Age and becomes King Vikramaditya; so, Baba asked that if this one started Bhakti first of all, then did he do a lot of Bhakti? Hm? Do you observe any indication? Do you? Did he grasp a lot of knowledge deeply? Did he? He didn’t. So, the one who is very purusharthi; what? Those who might be doing service very nicely and must be making others equal to themselves; ‘many’ refers to how many? Hm? So, they will alone understand that they have definitely done a lot of Bhakti. Those whom they made equal to themselves must have grasped knowledge. Hm? They must have grasped a lot of knowledge.
So, it can be understood that the one who has done a lot of Bhakti will grasp the knowledge at number one position. Hm? And he will go number one. Where will he go? Arey? Hm? (Someone said something.) Will he go straight to heaven first at number one position? Just now it was told, hm, the beginning itself was made; what? First the abode of peace, via the abode of peace, then the abode of happiness. So, where will he go first? Hm? He alone will go to the abode of peace at the number one position. So, look, will he go to the abode of peace or will he bring down the abode of peace to this world? Hm? What will he do? He will bring it down. Yes. And if he brings it down, where will he bring it down? Hm? When he brings down the abode of peace to this world, then where will he bring it down? Hm? (Someone said something.) On the stage? Which one? This entire world is a stage. Hm? There are 500-700 crore actors playing their parts in the entire world. Yes, he will bring it down within himself. So, when he brings down the Brahmlok (abode of Brahm) within himself, then he himself is the first and foremost Brahmlok, Parambrahm, isn’t he? Yes.
So, look, the Father had been sitting and explaining everything so nicely. Hm? How much time did He take to explain nicely? Hm? Speak up. How much time to explain nicely? Arey, a little time or at the most how much time did He take? (Someone said something.) 80 years. Yes. Did He take 80 years to narrate or to explain? Hm? For what did He take [time]? It is because first one has to narrate and then explain. First the listener will listen, and then later he will understand, will he not? So, for what purpose were the 80 years used? They were used in narrating. And then for explaining? The explaining takes place later on. So, how much in total? It will be said 80 years in total. So, Baba had been explaining nicely.
Now all this should be in the intellect, shouldn’t it be? What? What all? All this that who did the maximum Bhakti at number one position? Then who did at the second number? Then who did at the third number? That entire rosary should come into the intellect, shouldn’t it? No? This was an indication that was narrated, wasn’t it? What? Hm? There are beads in a rosary, aren’t they there? Some are righteous, some are leftist. Some are the upper ones, some are the lower ones. So, who will go up first? Hm? Which bead among the beads of the rosary will go up first? (Someone said something.) Will the eight go simultaneously? Wow brother! Wow! All of them got the number simultaneously. Then there is no topic of number at all. Hm? Will the eight go simultaneously? So, who will go first of all? If the eight bring down the Supreme Abode within themselves simultaneously, then all happen to be the Supreme Abodes. Hm? (Someone said something.) Yes, so one. Is he from the right side, the left side, the lower one or the upper one? There are beads in a rosary, aren’t they there? So, you should tell, shouldn’t you? Hm? (Someone said something.) Hm? From the right side. You said one thing. And? And? Hm? From the right side; again the same thing. And it was also told that whether it will be a lower bead or an upper bead? Yes, it will be from the right side and a bead from the upper, upper most side. But there are two beads at the top. Hm? There is a flower in the rosary, isn’t it? Below it there are two beads. So, both are above both, aren’t they? But among them one is on the left side and one is on the right side. So, the bead on the right side and the uppermost bead, hm, well, all this should be in his intellect. It should be. Whether it is there [in his intellect] or not is a different topic.
So, all these topics which the Father sits and explains every day, so, these should be there in the intellect, shouldn’t they? Hm? In whose intellect? Hm? Arey, it was told – of the rosary. In case of rosary also, two [rosaries] are famous in India. One is Rudramala (rosary of Rudra) and one is Vijaymala (rosary of victory). So, among them which is the Father’s rosary? The one who is called the Father of fathers. Shiv’s rosary is Rudramala. That is the highest on high rosary. The rosary of the Father’s remembrance. Yes. So, the numberwise beads on the right and upper side among them can understand first of all. They can understand on their own. Hm? Yes. Eighth page of the morning class dated 28.11.1967. Anyone that who does the maximum service because only those who do service will know nicely. Why? It was told just now that the one who has done a lot of Bhakti will get knowledge very nicely. The one who has done pure Bhakti will get satopradhan knowledge. Hm? And the one who must have done Bhakti first of all will get the stock-house, inexhaustible stock-house of knowledge first of all.
So, the second indication was mentioned. What? That the one who does more service, be it in basic knowledge, be it in advance knowledge, if he is the one who does maximum service, then he will know nicely. Hm? The one who does service? Why? What is the connection with this? Service is a separate subject; knowledge is a separate subject. Why was the topic of service mentioned? Hm? Arey, there should be some link, shouldn’t it be there? Hm? (Someone said something.) Yes, the one who is more serviceable will think and churn more. The more service he would have done in basic, in advance and the more the number of people he would have served, then what would be the result? Hm? Yes, he would have more Yoga through the intellect, he would think and churn more. And the intellect would decide, hm, which topics, which points in knowledge are connected to knowledge and which points are connected with ignorance? Which ones belong to the Ravana community and which are the arrows mentioned by Ram? So, they will get to know nicely, will they not? Yes. Who? Two indications were mentioned. One is Bhakti and the other? The other? Arey? Service? Yes. One is the journey of remembrance. This topic was also mentioned.
Three topics were mentioned. One is that he would have done more Bhakti; he would have done pure Bhakti and he would have done it first. The second topic is that he would do more service, hm, and yes, what would be the result of service? He would think and churn more and by thinking and churning, newer points, yes, newer gems would emerge, will they not? It has been written in the scriptures, hasn’t it been written that when the ocean was churned then gems emerged. So, newer topics of knowledge emerge. So, a third topic was also mentioned which is a powerful topic. What? Remembrance. So, will he be ahead or will he lag in the journey of remembrance? He will be ahead. Yes. And he will be sharp.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2910, दिनांक 13.06.2019
VCD 2910, dated 13.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2910-extracts-Bilingual
समय- 00.01-17.19
Time- 00.01-17.19
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को नौवें पेज पर मध्यादि में बात चल रही थी – बाबा सुनाते हैं कि अभी तुम पढ़ रहे हो, सुन रहे हो। बताया कि पढ़ाई अलग चीज़ है। और योग अलग चीज़ है। पढ़ाई किससे पढ़ते हो? हँ? पढ़ाई पढ़ते हो सुप्रीम सोल हैविनली गॉड फादर से। और? और योग? योग किससे लगाते हो? हँ? हाँ। ऐसे नहीं कहेंगे आत्माओं के बाप शिव बाप से योग लगाते हैं क्योंकि वो तो कठिन हो जाएगा। हँ? क्योंकि 63 जन्मों की आदत पड़ी हुई है देहभान में रहने की। तो एकदम कोई कहे कि निराकारी स्टेज में हम टिक जाएं और निराकार को याद करें तो वो तो बहुत पावरफुल आत्माएं होंगी वो ही कर पाएंगी। कौन? कौन पावरफुल आत्माएं? हँ? जो भी मुख्य-मुख्य धरम हैं ना उन मुख्य धर्मों के धरमपिताएं वो पावरफुल आत्माएं हैं। तो वो सभी धरमपिताएं उस निराकार की याद में, हँ, वो और किसी की बात नहीं मानते। क्या? और किसी देहधारी को मानते? नहीं मानते। ए टू ज़ेड दसों धरमपिताएं, जिन्हें कहा जाता है प्रजापिता शास्त्रों में। शास्त्रों में तो प्रजापति कह दिया है। संपन्न की स्टेज की यादगार है शास्त्रों में या संपन्न बनने से पहले पुरुषार्थी स्टेज की भी बात है? हाँ, संपन्न बात है। जब संपन्न बनते हैं तो सारी सृष्टि के रक्षक बन जाते हैं। रक्षक माने पति। वो प्रजापति हुए। परन्तु पति पहले होता है या पिता पहले होता है? पहले कौन होता है? पहले तो पिता होता है ना?
तो बताया कि वो जो धरमपिताओं के बीच में सबसे पावरफुल धरमपिता है वो है जो मुसलमान लोग भी मानते हैं, कहते हैं अल्लाह अव्वलदीन। अल्लाह ने आकरके अव्वल नंबर दीन अर्थात् धरम की स्थापना की। तो कौनसा धर्म है अव्वल नंबर? हँ? वो अव्वल नंबर धर्म है ही सत्य सनातन देवी-देवता धर्म। हाँ, क्योंकि वो बाप आते हैं तो मनुष्य को, नर को क्या बनाते हैं? नारायण बनाते हैं। तो नारायण तो देवता है ना। हँ? देवता को देवता कौन बनाएगा? देवता को देवता देवता ही बनाएगा। हँ? हाँ। तो देवता को देवता बनाने के लिए बड़े ते बड़ा देवता चाहिए। वो उसे फिर कहते हैं महादेव। तो वो महादेव कहो, वो आदि नारायण कहो बात एक ही है।
उस आदि नारायण को वो सुप्रीम सोल बाप आकरके, हँ, ज्ञान अर्थात् पढाई पढाते हैं। किस बात की पढ़ाई? सबसे बड़ी पढ़ाई का सब्जेक्ट कौनसा है? हाँ, याद। इसमें बहुत पावर है। फिर ऐसे क्यों बोलते हैं ज्ञान, योग, धारणा, सेवा? ज्ञान को आगे क्यों रख देते? क्योंकि जितना जो पढ़ाई पढ़ेगा, जितनी गहराई से पढ़ेगा, हँ, उतना उसके अंदर ज्ञान आएगा। ज्ञान आने से पहचान आएगी। किसकी पहचान? वो आत्माओं, जो आत्माएं निराकार हैं, उऩ निराकार आत्माओं की पहचान। और उन निराकार आत्माओं के बीच में जो सुप्रीम सोल है उसकी पहचान आएगी। और वो सुप्रीम सोल इस सृष्टि पर आकरके नंबरवार कोई में प्रवेश करके पार्ट बजाएगा ना, ज्ञान सुनाएगा ना? उसको तो अपना मुख है ही नहीं। तो जिस मुख में पहले-पहले प्रवेश करता है उसको नाम देता है ब्रह्मा। ऐसे तो जो भी शरीरधारियों में प्रवेश करता है सभी का नाम ब्रह्मा। परन्तु पहले का नाम क्या कहा जाएगा? परमब्रह्म। क्यों? पहले-पहले है ना? परिवार में जो पहली मां होती है तो बड़ी मां कही जाती है ना? परम माने? परम माने बड़ी। तो बताया कि जिस पहली माता में, परमब्रह्म में प्रवेश करते हैं तो वो माता किससे योग लगाती है? हँ? माता योग लगाती है कि पुरुष तन में प्रवेश करते हैं? पुरुष तन में प्रवेश करते हैं। और जिस पुरुष तन में प्रवेश करते हैं वो मां के रूप में अपनी आत्मा में संस्कार भर पाता है प्रवेश करते ही? भर सकता है? नहीं भर सकता। क्यों? क्योंकि जन्म-जन्मान्तर के संस्कार जो हैं वो हैं पुरुष वृत्ति के। वो मनुष्य सृष्टि का बाप है ना? तो बाप तो पुरुष रूप में होता है।
तो बताया– टाइम लंबा लग जाता है। क्या? बनना तो है। क्या बनना है? वो बनना है जिसमें बाप की आस है। आत्माओं के बाप की आस क्या है? वो क्या आस लेकरके आया? वो स्वयं तो परमपिता है, परम आत्मा है। और आत्माओं में भी सबका बाप है परमपिता। पुरुष है या स्त्री है? पुरुष ही कहेंगे ना? तो जो पुरुष है उस पुरुष को बाप को क्या चाहिए? नई सृष्टि बनानी है, इसीलिए तो आता है। तो क्या चाहिए? माता चाहिए कि नहीं? हाँ, तो जिस तन में प्रवेश करते हैं वो तुरन्त माता नहीं हो सकती। हो सकती है? भले कहते हैं मैं नाम रखता हूँ ब्रह्मा। हाँ, भले पहले-पहले प्रवेश करता हूँ तो परमब्रह्म नाम कह दो। लेकिन नाम से काम है या काम से काम है? नाम चाहिए या काम चाहिए? वो सुप्रीम सोल बाप आते हैं तो नाम रखने से संतुष्ट हो जाएंगे? नाम रखते ही इसीलिए हैं कि काम करके दिखाए। क्या काम करके दिखाए? हाँ, वो सृष्टि की वो पालना करके दिखाए। कौनसी पालना? जो मां करती है क्योंकि जो दुनिया में सभी जानते हैं, चाहे मनुष्य हों, चाहे देवताएं हों, चाहे ऋषि-मुनि हों, और चाहे पशु-पक्षी हों, राक्षस हों, अपने परिवार की पालना पुरुष रूप ज्यादा करता है या माता रूप ज्यादा? पशु-पक्षियों में ही देख लो। बच्चे पैदा होंगे तो मां से ही पैदा होंगे ना। माता ही गर्भ धारण करती है। माता ही पेट में पालती है। और माता ही उन बच्चों को ज्यादा ध्यान दे पाती है।
तो माता के रूप में वो आस पूरी करना बाप की; क्या? क्या आस? नई सृष्टि की पालना करना, नई सृष्टि को जन्म देना। कौनसी नई सृष्टि? विकारी पतित सृष्टि? नहीं। कौनसी सृष्टि? देवताई सृष्टि। श्रेष्ठ आत्माएं, जिन्हें कहा जाता है, हाँ, जो श्रेष्ठ इन्द्रियों से कर्म करते हैं, उनको कहा जाता है श्रेष्ठाचारी देवताएं। बाकि भ्रष्ट कर्मेन्द्रियों से कर्म करने वाले तो भ्रष्टाचारी राक्षस कहे जाते हैं।
तो बताया बाप आता ही है मनुष्य को क्या बनाने? देवता बनाने के लिए, देवी बनाने के लिए। तो बताया कि वो नाम देते हैं ब्रह्मा, हँ, आस पूरी करने के लिए कि कोई ऐसी आत्मा निकले जो, हाँ, वो पार्ट बजाके दिखाए। कौनसा पार्ट? संसार में जितनी भी माताएं माता का पार्ट बजाने वाली उन सब माताओं में सबसे जास्ती अच्छा श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाली, हाँ, उसको कहेंगे परमब्रह्म। माताओं में परम पार्टधारी माता। तो वो माता किससे योग लगाएगी? हँ? उस माता में बीज डालना है। कौनसा बीज? देवता पैदा करने का। तो शुरुआत में ही जब आते हैं बाप तो देवता पैदा हो जाते हैं क्या साकार सृष्टि पर? नहीं। वो तो मनसा सृष्टि की बात है। मनसा में बात बैठती है। बाकि शरीर से कोई देवता थोड़ेही बन जाता है तुरन्त? हथेली पे आम जमाया जा सकता है क्या? नहीं जमाया जा सकता।
तो ऐसे नहीं है कि जैसे सब धरमपिताओं ने सौ वर्ष के अंदर आकरके स्थापना की तो वैसे बाप भी सौ वर्ष के अंदर स्थापना तो करते हैं परन्तु स्थापना का जो लक्ष्य है; क्या है आखरी? देवता बनाना, देवता धर्म की स्थापना करना, स्वर्ग की स्थापना करना या इस नारकीय सृष्टि के मनुष्यों की स्थापना करना, क्षत्रीयों की स्थापना करना? नहीं। हाँ, परन्तु है कर्म ऐसा ही। क्या? ब्रह्मा के तन मं प्रवेश करते हैं तो ब्रह्मा के मुख से जब बोलते हैं तो; अब चाहे जो ब्रह्मा हो, हँ, मुकर्रर रथधारी ब्रह्मा और फिर टेम्परेरी ब्रह्मा; टेम्परेरी ब्रह्माओं के मुख से भी बोलते हैं तो ब्रह्मा के मुख से सुनने वाले क्या कहे जाएंगे? हँ? ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण तो कहे जाएंगे ना? भले अव्वल नंबर के सब नहीं कहे जाएंगे। अव्वल नंबर के कौन? जो अव्वल नंबर ब्रह्मा से सुने वा अव्वल नंबर ब्रह्मा से समझे और अव्वल नंबर ब्रह्मा के बच्चे बनें प्रैक्टिकल में। हँ? तो अव्वल नंबर ब्रह्मा का जो बाप है वो तो सूर्यवंश, सूर्य है ना? कैसा है? सूर्य है। सूर्य कैसा? सूर्य लगाव वाला होता है, अटैचमैन्ट वाला होता है या डिटैच, डिटैच रहता है? कैसा रहता है? सदा डिटैच रहता है। तो डिटैच तो तभी रह सकेगी कोई आत्मा जब निराकारी स्टेज में रहे। भल शरीर हो तो भी निराकारी स्टेज बन जाए।
तो वो दिखाते हैं यादगार। क्या? सोमनाथ मन्दिर में जो यादगार बनाया जिसको कहते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे। वो लिंग को कहते हैं तुम माता भी हो और पिता भी हो। तो माता कैसे? माता जो है वो है जो बीज को धारण करती है। क्या? कौनसा बीज? सौ परसेन्ट बीज को धारण करे या अधूरा करे? हँ? सौ परसेन्ट बीज। सूर्य है तो जो ज्ञान सूर्य की रोशनी है उस रोशनी को अखूट ज्ञान का भंडार कहा जाता है उसको पूरा ही धारण करे। सौ परसेन्ट धारण करे तब कहा जाता है परमब्रह्म। और वो परमब्रह्म के लिए फिर शास्त्रों में कह दिया है; क्या? गुरूर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात् परमब्रह्म तस्मै नमः। तस्मै श्री गुरुवे नमः। तो इससे साबित होता है कि वो परमब्रह्म जो है, हँ, बहुत लंबे समय का पुरुषार्थ है परमब्रह्म बनने का। कि जैसे ही बाप प्रवेश करते हैं वैसे ही परमब्रह्म साबित हो जाता है? नहीं।
तो बताया कि वो योग किससे लगाए? परमब्रह्म है। परमपिता तो नहीं है? हँ? परमब्रह्म है। तो धरमपिता कहा जाएगा? धरमपिता नहीं कहेंगे। धरमपिता तो पुरुष रूप में जिस आत्मा में संस्कार हैं वो धरमपिता है। फिर भी उसी शरीरधारी को जिसकी यादगार लिंग दिखाया जाता है, हँ, वो लिंग है पहचान। तो वो लिंग जो है वो माता का रूप भी धारण करता है और पिता का भी रूप धारण करता है। पहले कौन होता है? पहले माता या पहले पिता? दोनों होते हैं। जब बीज डाला जाता है ना तो माता भी और? और पिता भी। तो ये प्रैक्टिकल बात है। ऐसे नहीं कि निराकार आकरके वो जो बीज डालेगा तो वो निराकारी ज्ञान का बीज डालेगा। निराकारी ज्ञान का बीज साकार मनुष्य में डालेगा या सिर्फ आत्मा निराकार में डालेगा? हँ? हाँ, उस मुकर्रर रथधारी आत्मा में ही डालेगा। लेकिन वो आत्मा किस कैटागरी की हो जाए? माता भी हो और पिता भी बन जाए। तो उसमें टाइम लगता है लंबा टाइम क्योंकि माता पिता जब कम्बाइन्ड हो जाएं तब कहा जाता है विष्णु रूप कम्प्लीट। प्रवृत्ति मार्ग का पक्का।
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion on the ninth page on Tuesday was – Baba narrates that now you are studying, listening. It was told that study is a different thing. And Yoga is a different thing. From whom do you study knowledge? Hm? You study knowledge from the Supreme Soul Heavenly God Father. And? And Yoga? With whom do you have Yoga? Hm? Yes. It will not be said that you have Yoga with the Father of souls Father Shiv because that will be difficult. Hm? It is because you have been habituated to being in body consciousness since 63 births. So, if anyone says suddenly that I should become constant in an incorporeal stage and remember the incorporeal, then only those who are very powerful souls will be able to do that. Who? Which powerful souls? Hm? There are main religions, aren’t they there? The founders of those main religions are powerful souls. So, all those founders of religions in the remembrance of that incorporeal, hm, they do not accept the uttering of anyone else. What? Do they believe in any bodily being? They do not. A to Z all the ten founders of religions, who are called Prajapita in the scriptures; They have been called Prajapati in the scriptures. Is there memorial of the perfect stage in the scriptures or is there a topic of the purusharthi stage also before they become perfect? Yes, it is a topic of the perfect. When they become perfect then they become the protectors of the entire world. Protector means ‘pati’ (lord). They are Prajapatis. But is a husband (pati) first or is a Father (pita) first? Who is first? The Father is first, isn’t he?
So, it was told that the most powerful founder of religion among the founders of religion, whom the Muslims also believe and say ‘Allah Avvaldeen’. Allah came and established the number one deen, i.e. religion. So, which religion is number one? Hm? That number one religion itself is true Sanatan Devi-Devta Dharma. Yes, it is because when that Father comes, then what does He make the human being, man? He makes him Narayan. So, Narayan is a deity, isn’t he? Hm? Who will make a deity as a deity? A deity will only make deity a deity. Hm? Yes. So, in order to make a deity a deity the biggest deity is required. He then is called Mahadev. So, call him Mahadev, call him Aadi Narayan, it is one and the same topic.
That Supreme Soul Father comes and teaches knowledge to that first Narayan. What knowledge? Which is the biggest subject of knowledge? Yes, remembrance. There is a lot of power in it. Then why is it said – Knowledge, Yoga, inculcation, service? Why is knowledge placed ahead? It is because the more someone studies knowledge, the deeper he studies, the more knowledge he will get. One will get realization on getting knowledge. Whose realization? The realization of those souls, the souls which are incorporeal. And you will get the realization of the Supreme Soul among those incorporeal souls. And that Supreme Soul will come in this world and play numberwise part, narrate knowledge by entering in someone, will He not? He doesn’t have a mouth of His own at all. So, the mouth in which He enters first of all, He names him Brahma. In whichever bodily being He enters He names them all Brahma. But what will the first one be called? Parambrahm. Why? He is first of all, isn’t he? The first mother in a family is called senior mother, isn’t she? What is meant by Param? Param means senior. So, it was told that the first mother, Parambrahm in which He enters, with whom does that mother have Yoga? Hm? Does the mother have Yoga or does He enter in a male body? He enters in a male body. And the male body in which He enters, is he able to record the sanskars in the form of a mother in his soul as soon as He enters? Can he record? He cannot record. Why? It is because he has the sanskars of a male since many births. He is the Father of the human world, isn’t he? So, a Father is in a male form only.
So, it was told – A long time is taken. What? He is to indeed become. What does he have to become? He has to become that in which the Father has desire. What is the desire of the Father of souls? With what desire has He come? He Himself is the Supreme Father, the Supreme Soul. And even among the souls, He is the Father of everyone, the Supreme Father. Is He a male or a female? He will be called a male only, will He not be? So, the one who is a male, what does that male, the Father require? He has to build a new world; that is why He comes. So, what does He want? Does He want a mother or not? Yes, so, the body in which He enters cannot become a mother immediately. Can he become? Although He says that I name him Brahma. Yes, although I enter first of all; so, you may call him Parambrahm. But is your work with the name or with the task? Do you want the name or the task? When that Supreme Soul Father comes, then will He be satisfied just by naming someone? The name is coined only because he should perform such a task and show. What task should he perform and show? Yes, he should sustain the world and show. Which sustenance? That which a mother does because everyone in the world knows, be it the human beings, be it the deities, be it the sages and saints, and be it the animals and birds, be it the demons, does a male form sustain the family more or does the mother form sustain more? Look among the animals and birds only. When the children are born, then they will be born through the mother only, will they not be? The mother herself conceives. The mother herself sustains in her womb. And the mother alone is able to pay more attention to those children.
So, to fulfill the desire of the Father in the form of a mother; what? Which desire? To sustain the new world, to give birth to the new world. Which new world? Vicious, sinful world? No. Which world? The divine world. The ones who are called the righteous souls, who perform actions through the righteous organs, they are called the righteous deities. As regards those who perform actions through the unrighteous organs are called unrighteous demons.
So, it was told that the Father comes only to transform a human being into what? To make him a devta (male deity), a devi (female deity). So, it was told that He assigns the name Brahma in order to fulfill His desire that one such soul should emerge, which, yes, should play that part and show. Which part? Among all the mothers of the world, which play the part of a mother, the one who plays the best and righteous part among all those mothers will, yes, be called Parambrahm. The supreme actor mother among the mothers. So, with whom will that mother have Yoga? Hm? He has to sow the seed in that mother. Which seed? The one of giving birth to deities. So, when the Father comes are the deities born in the corporeal world in the beginning itself? No. That is about the world of thoughts (mansaa srishti). The topic sits in the mind. But does anyone become a deity through the body immediately? Can a mango be produced on a palm? It cannot be produced.
So, it is not that just as all the founders of religions came and established [their religion] within hundred years, similarly the Father also causes establishment within hundred years, but the goal of establishment; what is it ultimately? Is it to make deities, to establish the deity religion, to establish heaven or to establish the human beings of this hellish world, to establish the Kshatriyas? No. Yes, but the action is like this only. What? When He enters the body of Brahma, then, when He speaks through the mouth of Brahma, then, well, be it Brahma, permanent Chariot-holder Brahma and then temporary Brahma; even when He speaks through the mouth of temporary Brahmas, then what will be those who listen through the mouth of Brahma be called? Hm? They will be called Brahma’s mouth born Brahmins only, will they not be? Although all will not be called number one. Who are number one? The ones who listen through the number one Brahma or those who understand through number one Brahma and become the children of number one Brahma in practical. Hm? So, the Father of the number one Brahma is the Sun dynasty, the Sun, isn’t He? How is He? He is the Sun. What kind of Sun? Does the Sun have attachment or does it remain detach, detach? How is He? He remains detached forever. So, any soul can remain detached only when a soul remains in an incorporeal stage. Even if there is a body, the stage should become incorporeal.
So, they show the memorial. What? The memorial that was built in Somnath temple to whom people say ‘You are our Mother and Father; we are your children’. They say to the ling that you are a mother as well as a Father. So, how is it a mother? The mother holds the seed. What? Which seed? The one who holds the seed hundred percent or incompletely? Hm? Hundred percent seed. There is the Sun; the light of the Sun of Knowledge, that light is called the inexhaustible store house of knowledge; he should hold that completely. When he inculcates it hundred percent, then he is called Parambrahm. And then it has been said for that Parambrahm in the scriptures; what? Gururbrahma, Gururvishnu, Gururdevo Maheshwarah. Gurursaakshaat Parambrahm tasmai namah. Tasmai Shri Guruve namah. So, it proves that that Parambrahm makes a long-term purusharth of becoming Parambrahm. Or is he proved to be Parambrahm as soon as the Father enters? No.
So, it was told that with whom should he have Yoga? He is Parambrahm. Is he the Supreme Father (Parampita)? Hm? He is Parambrahm. So, will he be called the founder of a religion (dharampita)? He will not be called a dharampita. The founders of religions are in the male form; the soul that has such sanskars is a founder of religion. However, the same bodily being, whose memorial, the ling is depicted; hm, that ling is an indication (pehchaan). So, that ling assumes the mother’s form also and the Father’s form also. What is he first? Is he first a mother or a Father? Both are there. When a seed is sowed, then there is a mother and? And the Father also. So, this is a practical thing. It is not as if the incorporeal comes and the seed that He sows, He will sow the seed of incorporeal knowledge. Will He sow the seed of incorporeal knowledge in a corporeal human being or just in an incorporeal soul? Hm? Yes, He will sow in that permanent Chariot-holder soul only. But that soul should become of which category? It should be a mother and it should become a Father as well. So, it takes time, a long time because when the mother and Father are combined, then it is called a complete form of Vishnu. The one who is firm on the path of household.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2910, दिनांक 13.06.2019
VCD 2910, dated 13.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2910-extracts-Bilingual
समय- 00.01-17.19
Time- 00.01-17.19
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को नौवें पेज पर मध्यादि में बात चल रही थी – बाबा सुनाते हैं कि अभी तुम पढ़ रहे हो, सुन रहे हो। बताया कि पढ़ाई अलग चीज़ है। और योग अलग चीज़ है। पढ़ाई किससे पढ़ते हो? हँ? पढ़ाई पढ़ते हो सुप्रीम सोल हैविनली गॉड फादर से। और? और योग? योग किससे लगाते हो? हँ? हाँ। ऐसे नहीं कहेंगे आत्माओं के बाप शिव बाप से योग लगाते हैं क्योंकि वो तो कठिन हो जाएगा। हँ? क्योंकि 63 जन्मों की आदत पड़ी हुई है देहभान में रहने की। तो एकदम कोई कहे कि निराकारी स्टेज में हम टिक जाएं और निराकार को याद करें तो वो तो बहुत पावरफुल आत्माएं होंगी वो ही कर पाएंगी। कौन? कौन पावरफुल आत्माएं? हँ? जो भी मुख्य-मुख्य धरम हैं ना उन मुख्य धर्मों के धरमपिताएं वो पावरफुल आत्माएं हैं। तो वो सभी धरमपिताएं उस निराकार की याद में, हँ, वो और किसी की बात नहीं मानते। क्या? और किसी देहधारी को मानते? नहीं मानते। ए टू ज़ेड दसों धरमपिताएं, जिन्हें कहा जाता है प्रजापिता शास्त्रों में। शास्त्रों में तो प्रजापति कह दिया है। संपन्न की स्टेज की यादगार है शास्त्रों में या संपन्न बनने से पहले पुरुषार्थी स्टेज की भी बात है? हाँ, संपन्न बात है। जब संपन्न बनते हैं तो सारी सृष्टि के रक्षक बन जाते हैं। रक्षक माने पति। वो प्रजापति हुए। परन्तु पति पहले होता है या पिता पहले होता है? पहले कौन होता है? पहले तो पिता होता है ना?
तो बताया कि वो जो धरमपिताओं के बीच में सबसे पावरफुल धरमपिता है वो है जो मुसलमान लोग भी मानते हैं, कहते हैं अल्लाह अव्वलदीन। अल्लाह ने आकरके अव्वल नंबर दीन अर्थात् धरम की स्थापना की। तो कौनसा धर्म है अव्वल नंबर? हँ? वो अव्वल नंबर धर्म है ही सत्य सनातन देवी-देवता धर्म। हाँ, क्योंकि वो बाप आते हैं तो मनुष्य को, नर को क्या बनाते हैं? नारायण बनाते हैं। तो नारायण तो देवता है ना। हँ? देवता को देवता कौन बनाएगा? देवता को देवता देवता ही बनाएगा। हँ? हाँ। तो देवता को देवता बनाने के लिए बड़े ते बड़ा देवता चाहिए। वो उसे फिर कहते हैं महादेव। तो वो महादेव कहो, वो आदि नारायण कहो बात एक ही है।
उस आदि नारायण को वो सुप्रीम सोल बाप आकरके, हँ, ज्ञान अर्थात् पढाई पढाते हैं। किस बात की पढ़ाई? सबसे बड़ी पढ़ाई का सब्जेक्ट कौनसा है? हाँ, याद। इसमें बहुत पावर है। फिर ऐसे क्यों बोलते हैं ज्ञान, योग, धारणा, सेवा? ज्ञान को आगे क्यों रख देते? क्योंकि जितना जो पढ़ाई पढ़ेगा, जितनी गहराई से पढ़ेगा, हँ, उतना उसके अंदर ज्ञान आएगा। ज्ञान आने से पहचान आएगी। किसकी पहचान? वो आत्माओं, जो आत्माएं निराकार हैं, उऩ निराकार आत्माओं की पहचान। और उन निराकार आत्माओं के बीच में जो सुप्रीम सोल है उसकी पहचान आएगी। और वो सुप्रीम सोल इस सृष्टि पर आकरके नंबरवार कोई में प्रवेश करके पार्ट बजाएगा ना, ज्ञान सुनाएगा ना? उसको तो अपना मुख है ही नहीं। तो जिस मुख में पहले-पहले प्रवेश करता है उसको नाम देता है ब्रह्मा। ऐसे तो जो भी शरीरधारियों में प्रवेश करता है सभी का नाम ब्रह्मा। परन्तु पहले का नाम क्या कहा जाएगा? परमब्रह्म। क्यों? पहले-पहले है ना? परिवार में जो पहली मां होती है तो बड़ी मां कही जाती है ना? परम माने? परम माने बड़ी। तो बताया कि जिस पहली माता में, परमब्रह्म में प्रवेश करते हैं तो वो माता किससे योग लगाती है? हँ? माता योग लगाती है कि पुरुष तन में प्रवेश करते हैं? पुरुष तन में प्रवेश करते हैं। और जिस पुरुष तन में प्रवेश करते हैं वो मां के रूप में अपनी आत्मा में संस्कार भर पाता है प्रवेश करते ही? भर सकता है? नहीं भर सकता। क्यों? क्योंकि जन्म-जन्मान्तर के संस्कार जो हैं वो हैं पुरुष वृत्ति के। वो मनुष्य सृष्टि का बाप है ना? तो बाप तो पुरुष रूप में होता है।
तो बताया– टाइम लंबा लग जाता है। क्या? बनना तो है। क्या बनना है? वो बनना है जिसमें बाप की आस है। आत्माओं के बाप की आस क्या है? वो क्या आस लेकरके आया? वो स्वयं तो परमपिता है, परम आत्मा है। और आत्माओं में भी सबका बाप है परमपिता। पुरुष है या स्त्री है? पुरुष ही कहेंगे ना? तो जो पुरुष है उस पुरुष को बाप को क्या चाहिए? नई सृष्टि बनानी है, इसीलिए तो आता है। तो क्या चाहिए? माता चाहिए कि नहीं? हाँ, तो जिस तन में प्रवेश करते हैं वो तुरन्त माता नहीं हो सकती। हो सकती है? भले कहते हैं मैं नाम रखता हूँ ब्रह्मा। हाँ, भले पहले-पहले प्रवेश करता हूँ तो परमब्रह्म नाम कह दो। लेकिन नाम से काम है या काम से काम है? नाम चाहिए या काम चाहिए? वो सुप्रीम सोल बाप आते हैं तो नाम रखने से संतुष्ट हो जाएंगे? नाम रखते ही इसीलिए हैं कि काम करके दिखाए। क्या काम करके दिखाए? हाँ, वो सृष्टि की वो पालना करके दिखाए। कौनसी पालना? जो मां करती है क्योंकि जो दुनिया में सभी जानते हैं, चाहे मनुष्य हों, चाहे देवताएं हों, चाहे ऋषि-मुनि हों, और चाहे पशु-पक्षी हों, राक्षस हों, अपने परिवार की पालना पुरुष रूप ज्यादा करता है या माता रूप ज्यादा? पशु-पक्षियों में ही देख लो। बच्चे पैदा होंगे तो मां से ही पैदा होंगे ना। माता ही गर्भ धारण करती है। माता ही पेट में पालती है। और माता ही उन बच्चों को ज्यादा ध्यान दे पाती है।
तो माता के रूप में वो आस पूरी करना बाप की; क्या? क्या आस? नई सृष्टि की पालना करना, नई सृष्टि को जन्म देना। कौनसी नई सृष्टि? विकारी पतित सृष्टि? नहीं। कौनसी सृष्टि? देवताई सृष्टि। श्रेष्ठ आत्माएं, जिन्हें कहा जाता है, हाँ, जो श्रेष्ठ इन्द्रियों से कर्म करते हैं, उनको कहा जाता है श्रेष्ठाचारी देवताएं। बाकि भ्रष्ट कर्मेन्द्रियों से कर्म करने वाले तो भ्रष्टाचारी राक्षस कहे जाते हैं।
तो बताया बाप आता ही है मनुष्य को क्या बनाने? देवता बनाने के लिए, देवी बनाने के लिए। तो बताया कि वो नाम देते हैं ब्रह्मा, हँ, आस पूरी करने के लिए कि कोई ऐसी आत्मा निकले जो, हाँ, वो पार्ट बजाके दिखाए। कौनसा पार्ट? संसार में जितनी भी माताएं माता का पार्ट बजाने वाली उन सब माताओं में सबसे जास्ती अच्छा श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाली, हाँ, उसको कहेंगे परमब्रह्म। माताओं में परम पार्टधारी माता। तो वो माता किससे योग लगाएगी? हँ? उस माता में बीज डालना है। कौनसा बीज? देवता पैदा करने का। तो शुरुआत में ही जब आते हैं बाप तो देवता पैदा हो जाते हैं क्या साकार सृष्टि पर? नहीं। वो तो मनसा सृष्टि की बात है। मनसा में बात बैठती है। बाकि शरीर से कोई देवता थोड़ेही बन जाता है तुरन्त? हथेली पे आम जमाया जा सकता है क्या? नहीं जमाया जा सकता।
तो ऐसे नहीं है कि जैसे सब धरमपिताओं ने सौ वर्ष के अंदर आकरके स्थापना की तो वैसे बाप भी सौ वर्ष के अंदर स्थापना तो करते हैं परन्तु स्थापना का जो लक्ष्य है; क्या है आखरी? देवता बनाना, देवता धर्म की स्थापना करना, स्वर्ग की स्थापना करना या इस नारकीय सृष्टि के मनुष्यों की स्थापना करना, क्षत्रीयों की स्थापना करना? नहीं। हाँ, परन्तु है कर्म ऐसा ही। क्या? ब्रह्मा के तन मं प्रवेश करते हैं तो ब्रह्मा के मुख से जब बोलते हैं तो; अब चाहे जो ब्रह्मा हो, हँ, मुकर्रर रथधारी ब्रह्मा और फिर टेम्परेरी ब्रह्मा; टेम्परेरी ब्रह्माओं के मुख से भी बोलते हैं तो ब्रह्मा के मुख से सुनने वाले क्या कहे जाएंगे? हँ? ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण तो कहे जाएंगे ना? भले अव्वल नंबर के सब नहीं कहे जाएंगे। अव्वल नंबर के कौन? जो अव्वल नंबर ब्रह्मा से सुने वा अव्वल नंबर ब्रह्मा से समझे और अव्वल नंबर ब्रह्मा के बच्चे बनें प्रैक्टिकल में। हँ? तो अव्वल नंबर ब्रह्मा का जो बाप है वो तो सूर्यवंश, सूर्य है ना? कैसा है? सूर्य है। सूर्य कैसा? सूर्य लगाव वाला होता है, अटैचमैन्ट वाला होता है या डिटैच, डिटैच रहता है? कैसा रहता है? सदा डिटैच रहता है। तो डिटैच तो तभी रह सकेगी कोई आत्मा जब निराकारी स्टेज में रहे। भल शरीर हो तो भी निराकारी स्टेज बन जाए।
तो वो दिखाते हैं यादगार। क्या? सोमनाथ मन्दिर में जो यादगार बनाया जिसको कहते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे। वो लिंग को कहते हैं तुम माता भी हो और पिता भी हो। तो माता कैसे? माता जो है वो है जो बीज को धारण करती है। क्या? कौनसा बीज? सौ परसेन्ट बीज को धारण करे या अधूरा करे? हँ? सौ परसेन्ट बीज। सूर्य है तो जो ज्ञान सूर्य की रोशनी है उस रोशनी को अखूट ज्ञान का भंडार कहा जाता है उसको पूरा ही धारण करे। सौ परसेन्ट धारण करे तब कहा जाता है परमब्रह्म। और वो परमब्रह्म के लिए फिर शास्त्रों में कह दिया है; क्या? गुरूर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात् परमब्रह्म तस्मै नमः। तस्मै श्री गुरुवे नमः। तो इससे साबित होता है कि वो परमब्रह्म जो है, हँ, बहुत लंबे समय का पुरुषार्थ है परमब्रह्म बनने का। कि जैसे ही बाप प्रवेश करते हैं वैसे ही परमब्रह्म साबित हो जाता है? नहीं।
तो बताया कि वो योग किससे लगाए? परमब्रह्म है। परमपिता तो नहीं है? हँ? परमब्रह्म है। तो धरमपिता कहा जाएगा? धरमपिता नहीं कहेंगे। धरमपिता तो पुरुष रूप में जिस आत्मा में संस्कार हैं वो धरमपिता है। फिर भी उसी शरीरधारी को जिसकी यादगार लिंग दिखाया जाता है, हँ, वो लिंग है पहचान। तो वो लिंग जो है वो माता का रूप भी धारण करता है और पिता का भी रूप धारण करता है। पहले कौन होता है? पहले माता या पहले पिता? दोनों होते हैं। जब बीज डाला जाता है ना तो माता भी और? और पिता भी। तो ये प्रैक्टिकल बात है। ऐसे नहीं कि निराकार आकरके वो जो बीज डालेगा तो वो निराकारी ज्ञान का बीज डालेगा। निराकारी ज्ञान का बीज साकार मनुष्य में डालेगा या सिर्फ आत्मा निराकार में डालेगा? हँ? हाँ, उस मुकर्रर रथधारी आत्मा में ही डालेगा। लेकिन वो आत्मा किस कैटागरी की हो जाए? माता भी हो और पिता भी बन जाए। तो उसमें टाइम लगता है लंबा टाइम क्योंकि माता पिता जब कम्बाइन्ड हो जाएं तब कहा जाता है विष्णु रूप कम्प्लीट। प्रवृत्ति मार्ग का पक्का।
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion on the ninth page on Tuesday was – Baba narrates that now you are studying, listening. It was told that study is a different thing. And Yoga is a different thing. From whom do you study knowledge? Hm? You study knowledge from the Supreme Soul Heavenly God Father. And? And Yoga? With whom do you have Yoga? Hm? Yes. It will not be said that you have Yoga with the Father of souls Father Shiv because that will be difficult. Hm? It is because you have been habituated to being in body consciousness since 63 births. So, if anyone says suddenly that I should become constant in an incorporeal stage and remember the incorporeal, then only those who are very powerful souls will be able to do that. Who? Which powerful souls? Hm? There are main religions, aren’t they there? The founders of those main religions are powerful souls. So, all those founders of religions in the remembrance of that incorporeal, hm, they do not accept the uttering of anyone else. What? Do they believe in any bodily being? They do not. A to Z all the ten founders of religions, who are called Prajapita in the scriptures; They have been called Prajapati in the scriptures. Is there memorial of the perfect stage in the scriptures or is there a topic of the purusharthi stage also before they become perfect? Yes, it is a topic of the perfect. When they become perfect then they become the protectors of the entire world. Protector means ‘pati’ (lord). They are Prajapatis. But is a husband (pati) first or is a Father (pita) first? Who is first? The Father is first, isn’t he?
So, it was told that the most powerful founder of religion among the founders of religion, whom the Muslims also believe and say ‘Allah Avvaldeen’. Allah came and established the number one deen, i.e. religion. So, which religion is number one? Hm? That number one religion itself is true Sanatan Devi-Devta Dharma. Yes, it is because when that Father comes, then what does He make the human being, man? He makes him Narayan. So, Narayan is a deity, isn’t he? Hm? Who will make a deity as a deity? A deity will only make deity a deity. Hm? Yes. So, in order to make a deity a deity the biggest deity is required. He then is called Mahadev. So, call him Mahadev, call him Aadi Narayan, it is one and the same topic.
That Supreme Soul Father comes and teaches knowledge to that first Narayan. What knowledge? Which is the biggest subject of knowledge? Yes, remembrance. There is a lot of power in it. Then why is it said – Knowledge, Yoga, inculcation, service? Why is knowledge placed ahead? It is because the more someone studies knowledge, the deeper he studies, the more knowledge he will get. One will get realization on getting knowledge. Whose realization? The realization of those souls, the souls which are incorporeal. And you will get the realization of the Supreme Soul among those incorporeal souls. And that Supreme Soul will come in this world and play numberwise part, narrate knowledge by entering in someone, will He not? He doesn’t have a mouth of His own at all. So, the mouth in which He enters first of all, He names him Brahma. In whichever bodily being He enters He names them all Brahma. But what will the first one be called? Parambrahm. Why? He is first of all, isn’t he? The first mother in a family is called senior mother, isn’t she? What is meant by Param? Param means senior. So, it was told that the first mother, Parambrahm in which He enters, with whom does that mother have Yoga? Hm? Does the mother have Yoga or does He enter in a male body? He enters in a male body. And the male body in which He enters, is he able to record the sanskars in the form of a mother in his soul as soon as He enters? Can he record? He cannot record. Why? It is because he has the sanskars of a male since many births. He is the Father of the human world, isn’t he? So, a Father is in a male form only.
So, it was told – A long time is taken. What? He is to indeed become. What does he have to become? He has to become that in which the Father has desire. What is the desire of the Father of souls? With what desire has He come? He Himself is the Supreme Father, the Supreme Soul. And even among the souls, He is the Father of everyone, the Supreme Father. Is He a male or a female? He will be called a male only, will He not be? So, the one who is a male, what does that male, the Father require? He has to build a new world; that is why He comes. So, what does He want? Does He want a mother or not? Yes, so, the body in which He enters cannot become a mother immediately. Can he become? Although He says that I name him Brahma. Yes, although I enter first of all; so, you may call him Parambrahm. But is your work with the name or with the task? Do you want the name or the task? When that Supreme Soul Father comes, then will He be satisfied just by naming someone? The name is coined only because he should perform such a task and show. What task should he perform and show? Yes, he should sustain the world and show. Which sustenance? That which a mother does because everyone in the world knows, be it the human beings, be it the deities, be it the sages and saints, and be it the animals and birds, be it the demons, does a male form sustain the family more or does the mother form sustain more? Look among the animals and birds only. When the children are born, then they will be born through the mother only, will they not be? The mother herself conceives. The mother herself sustains in her womb. And the mother alone is able to pay more attention to those children.
So, to fulfill the desire of the Father in the form of a mother; what? Which desire? To sustain the new world, to give birth to the new world. Which new world? Vicious, sinful world? No. Which world? The divine world. The ones who are called the righteous souls, who perform actions through the righteous organs, they are called the righteous deities. As regards those who perform actions through the unrighteous organs are called unrighteous demons.
So, it was told that the Father comes only to transform a human being into what? To make him a devta (male deity), a devi (female deity). So, it was told that He assigns the name Brahma in order to fulfill His desire that one such soul should emerge, which, yes, should play that part and show. Which part? Among all the mothers of the world, which play the part of a mother, the one who plays the best and righteous part among all those mothers will, yes, be called Parambrahm. The supreme actor mother among the mothers. So, with whom will that mother have Yoga? Hm? He has to sow the seed in that mother. Which seed? The one of giving birth to deities. So, when the Father comes are the deities born in the corporeal world in the beginning itself? No. That is about the world of thoughts (mansaa srishti). The topic sits in the mind. But does anyone become a deity through the body immediately? Can a mango be produced on a palm? It cannot be produced.
So, it is not that just as all the founders of religions came and established [their religion] within hundred years, similarly the Father also causes establishment within hundred years, but the goal of establishment; what is it ultimately? Is it to make deities, to establish the deity religion, to establish heaven or to establish the human beings of this hellish world, to establish the Kshatriyas? No. Yes, but the action is like this only. What? When He enters the body of Brahma, then, when He speaks through the mouth of Brahma, then, well, be it Brahma, permanent Chariot-holder Brahma and then temporary Brahma; even when He speaks through the mouth of temporary Brahmas, then what will be those who listen through the mouth of Brahma be called? Hm? They will be called Brahma’s mouth born Brahmins only, will they not be? Although all will not be called number one. Who are number one? The ones who listen through the number one Brahma or those who understand through number one Brahma and become the children of number one Brahma in practical. Hm? So, the Father of the number one Brahma is the Sun dynasty, the Sun, isn’t He? How is He? He is the Sun. What kind of Sun? Does the Sun have attachment or does it remain detach, detach? How is He? He remains detached forever. So, any soul can remain detached only when a soul remains in an incorporeal stage. Even if there is a body, the stage should become incorporeal.
So, they show the memorial. What? The memorial that was built in Somnath temple to whom people say ‘You are our Mother and Father; we are your children’. They say to the ling that you are a mother as well as a Father. So, how is it a mother? The mother holds the seed. What? Which seed? The one who holds the seed hundred percent or incompletely? Hm? Hundred percent seed. There is the Sun; the light of the Sun of Knowledge, that light is called the inexhaustible store house of knowledge; he should hold that completely. When he inculcates it hundred percent, then he is called Parambrahm. And then it has been said for that Parambrahm in the scriptures; what? Gururbrahma, Gururvishnu, Gururdevo Maheshwarah. Gurursaakshaat Parambrahm tasmai namah. Tasmai Shri Guruve namah. So, it proves that that Parambrahm makes a long-term purusharth of becoming Parambrahm. Or is he proved to be Parambrahm as soon as the Father enters? No.
So, it was told that with whom should he have Yoga? He is Parambrahm. Is he the Supreme Father (Parampita)? Hm? He is Parambrahm. So, will he be called the founder of a religion (dharampita)? He will not be called a dharampita. The founders of religions are in the male form; the soul that has such sanskars is a founder of religion. However, the same bodily being, whose memorial, the ling is depicted; hm, that ling is an indication (pehchaan). So, that ling assumes the mother’s form also and the Father’s form also. What is he first? Is he first a mother or a Father? Both are there. When a seed is sowed, then there is a mother and? And the Father also. So, this is a practical thing. It is not as if the incorporeal comes and the seed that He sows, He will sow the seed of incorporeal knowledge. Will He sow the seed of incorporeal knowledge in a corporeal human being or just in an incorporeal soul? Hm? Yes, He will sow in that permanent Chariot-holder soul only. But that soul should become of which category? It should be a mother and it should become a Father as well. So, it takes time, a long time because when the mother and Father are combined, then it is called a complete form of Vishnu. The one who is firm on the path of household.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
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- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2911, दिनांक 14.06.2019
VCD 2911, dated 14.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2911-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-12.41
Time- 00.01-12.41
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को नौवें पेज के मध्य में बात चल रही थी – जब ड्रामा पूरा होता है तो ड्रामा पर पार्ट बजाने वाले या जो भी दर्शकगण हैं सबकी बुद्धि में आता है अभी ड्रामा पूरा हुआ। और ये बेहद की दुनिया का ड्रामा भी पूरा होना है ना? ऐसे नहीं कहेंगे आपस में, हँ, चलो भाइयों, अभी ड्रामा पूरा होता है। अरे, नाटक देखा होगा ना? सब एक-दो को रड़ियां मारेंगे। बाकि कहेंगे ड्रामा पूरा होने में बस पांच मिनट हैं। नाटक पूरा हुआ। चलो ये कपड़े यहां के यहीं छोड़ दो। क्या? नाटकबाजी के जो कपड़े हैं ना भांति-भांति के वो सब यहीं छोड़ दो। हँ? तो स्टेज पर ही वहीं कपड़े उतार देते हैं ना? वो कपड़े घर तो नहीं ले जाते हैं ना? हाँ। ये भी बेहद का ड्रामा है। बेहद का घर है। इस बेहद के घर में ये जन्म-जन्मान्तर बदले हुए जो शरीर रूपी वस्त्र हैं वो तो नहीं ले जाएंगे? तो कपड़ा यहीं छोड़ दियो। और चलो घर में। और घर में जाएंगे तो वहां से इस दुनिया में आएंगे तो नया कपड़ा तो लेके ही आएंगे। हँ? हाँ।
अरे, बच्चा अम्मा से पैदा होता है, अम्मा कहो, ब्रह्मा कहो, ब्रह्मलोक कहो, तो नंगा पैदा होता है ना? हाँ। फिर बच्चा थोड़ा भी बड़ा होता है तो मां-बाप कपड़ों का इंतज़ाम करके भेजते हैं ना बाहर; बाहर की दुनिया में। ऐसे ही नंगा भेज देते हैं? नहीं। तो दूसरा कपड़ा ले भी आते हैं, पहन लेते हैं। ऐसा नहीं कभी सुना होगा कभी नाटक वालों, नाटक वाले ही जैसे ले जाते हैं घर में। और वहां जाकरके बदली करते हैं। ऐसे थोड़ेही करते हैं? नहीं। वहीं स्टेज पर छोड़ देना होगा। तो तुमको भी क्या करना है? तुमको भी ये शरीर रूपी वस्त्र यहां ही छोड़ना है। बहुत पुराना हो गया। इसको पुरानी जूती भी कहा जाता है। हाँ।
तो अभी तुम बच्चों को ये तो है ना पुरानी जूती? ये तुम्हारी जो मन-बुद्धि रूपी आत्मा है, हँ, कितने कपड़े बदल चुकी? हँ? 84 के चक्र में 84 कपड़े बदल चुकी ना? तो ये कपड़े बार-बार बुद्धि, बुद्धि रूपी पांव जो जूती में डाला जाए, निकाला जाए, डाला जाए, निकाला जाए तो जूती तो फट जाएगी ना? पुरानी हो जाती है। अभी 84 पूरी हुई एकदम। अभी हम समझ गए हैं। अभी हमको फिर घर जाना है। और? और ये जूती लेके जाना है? हाँ, ये जूती यहीं छोड़कर जाना है। कि पालिश करने वाले को बुलाते रहेंगे भई पालिश करो? हँ? वो होते हैं ना इतर बेचने वाले, भई इतर दे दो आके, इतर लगाएं इसमें थोड़ा। और थोड़ा काम ले लें। अरे भई, बाबा कहते हैं पांच मिनट रह गए। हँ? जो जल्दी जाएगा घर में तो ज्यादा ऊँचा पद पाएगा या नीचा पद पाएगा? जो पहले जाएगा सो ऊँचा पद पाएगा। और बाद में जाएगा तो नीचा पद।
तो याद करके बाबा को जाना है। बाबा को तो याद तो करेंगे ना? हँ? प्योर बनेगा तब ही तो जाएंगे। हँ? ऐसे तो नहीं कि अपनी कोई आत्मा को याद करते रहेंगे तो प्योर बन जाएंगे। बन जाएंगे? नहीं। न पराए की आत्मा को याद करेंगे तो प्योर बन जाएंगे। क्योंकि इस दुनिया में तो जितनी भी आत्माएं हैं भोगी हैं ना? भोग भोगते-भोगते, हँ, क्या हो जाता है? इम्प्योर? इम्प्योर बन जाती है। तो बाबा को याद करके जाएंगे ना? तो जाकरके फिर आकरके इस दुनिया में और ये नया फर्स्टक्लास कपड़ा पहनेंगे। हँ? कौन? हँ? कौन? अरे, सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने वाले सभी बच्चे नया कपड़ा पहनेंगे ना? हाँ, पहनेंगे। क्योंकि जो भी आत्माएं नई-नई उतरती हैं, घर से आती हैं, परमधाम से, तो पहले जनम में तो उनको फर्स्टक्लास कपड़ा मिलता है कि थर्ड क्लास मिलता है? फर्स्टक्लास नीरोगी काया मिलती है। फिर वो जो 5000 वर्ष पहले कपड़ा पहना था और जिन्होंने भी पहना था, कहेंगे देव आत्माओं ने पहना था। उनमें भी नंबरवार।
तो ये हीरे-मोती अभी तो इस दुनिया में हीरे मोती नहीं हैं ना? वो चीज़ नहीं है ना? ये तो उस, उस समय थे। ये साक्षात्कार करकरके पीछे ये बैठकरके यहां बनाया है। अब फोटो तो नहीं निकाल सकते हैं साक्षात्कार में। निकाल सकते हैं? नहीं। तो वो फोटो; साक्षात्कार तो ऐसे है जैसे स्वप्न देखा। तो स्वपन में तो देखा लेकिन कोई कहे चलो फोटो निकाल के ले जाएंगे इसमें, डुप्लिकेट हो जाएगा। ले जाएंगे? नहीं ले जाएंगे। तो एक्यूरेट चीज़ तो नहीं आ सकती है। पीछे ये बैठकरके बनाया। तो ये तो कॉमन चीज़ है। क्या बनाया? मंदिरों में चित्र बनाए, मूर्तियां बनाईं तो ये तो कॉमन चीज़ हो गई। मन्दिरों में तो हैं ही हैं। पूछेंगे कोई कि भई ये कौन हैं? हाँ, बताएंगे, अरे, मन्दिर में जाके जिनको हम स्तुति करते हैं, सर झुकाते हैं, त्वमेव माता च पिता, तुमम् सर्वम मम् देव देवा। ऐसे कहते हैं ना? तो वो कौन है? अरे, ये विश्व के मालिक हैं। विश्व के मालिक हैं? बहुत हैं क्या? अरे, जिसको नमन किया तो, तो लिंग को नमन किया ना? लेकिन रखा कहां है? अरे, दुनिया की कोई चीज़ होगी तो बिना आधार के रहेगी क्या? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। तो स्थान की भी वैल्यू होती है कि नहीं? नहीं होती है? हाँ। वैल्यू होती है। जैसे व्यक्ति की वैल्यू वैसे स्थान की भी वैल्यू। तो भी कहेंगे विश्व के मालिक हैं। वो स्थान भी क्या कहेंगे? जो कभी विश्व का मालिक था तो क्या भारत को कहेंगे या कोई दूसरे देश को कहेंगे? भारत विश्व का मालिक था। यथार्थ रीति से बुद्धि में, ऐसे ये कभी किसी के नहीं आएगा कि वो कहां गए विश्व के मालिक? भारत में हैं कोई कि नहीं अभी? विश्व के मालिक हैं या एकदम दास-दासी बने पड़े हैं? विश्व आत्माओं के, विश्व धर्मों के जो दूसरे-दूसरे विदेशी धर्म हैं, विधर्मी हैं, उनके दास-दासी बन गए या मालिक हैं? उनके ऊपर कंट्रोलर है? कंट्रोलर नहीं हैं।
तो पता नहीं वो विश्व के मालिक कहां चले गए? कोई भी पता उनका लगाय नहीं सकता। नहीं तो हिस्ट्री-जॉग्राफी तो सबकी होनी चाहिए ना? हँ? जो ऊँच ते ऊँच है पार्ट बजाने वाला उसकी तो विश्व की बादशाही, विश्व के बादशाह की हिस्ट्री-जॉग्राफी होनी चाहिए ना कहां-कहां पार्ट बजाया, कैसे-कैसे बजाया? होना चाहिए क्योंकि पुनर्जन्म तो सभी लेते हैं ना? हाँ। वो आत्माएं इसी दुनिया में हैं या कोई बीच में वापस चली गईं? सब इसी दुनिया में हैं। विश्व का मालिक जो था वो भी इसी दुनिया में पुनर्जन्म तो ले रहे हैं। बच्चों को अभी मालूम पड़ गया है। तो जो भी होकरके गए हैं यहां से, हँ, कौन होकर गए? ये फिरंगी आए, अंग्रेज, फलाने आए, हँ, मुसलमान आए, बौद्धी आए, जो भी आए, सब पुनर्जन्म जरूर लेते हैं। ऐसे नहीं कोई पार निर्वाण चला गया। बुद्ध के फालोअर क्या कहते हैं? बुद्ध कहां गया? पार निर्वाण चला गया। अरे, कोई पार निर्वाण चला नहीं गया। अगर गया होता तो अपने फालोअर्स को भी ले जाता ना? नहीं। और दुनिया की आबादी फिर बढ़ेगी या घटेगी? अगर पार निर्वाण जाते रहेंगे तो आबादी बढ़ेगी या घटेगी? घटेगी। हां।
तो कोई मानते हैं, कोई नहीं मानते हैं। परन्तु कोई माने या न माने असलियत की बात तो बाप समझाते हैं ना? नहीं? समझाते हैं। हाँ। अरे, आज नहीं समझते हैं, बच्चाबुद्धि हैं, पत्थरबुद्धि बन गई, तो क्या आगे चलकरके? आगे चलकरके समझ जाएंगे। सबको ये ज्ञान सच्चाई का लेना तो पड़ेगा। नहीं? सबको लेना पड़ेगा। ऐसा कोई एक भी एक्टर्स नहीं है पूरी दुनिया में, हँ, आज भी नहीं है, जो, हँ, जो बाप आकरके ऊँच ते ऊँच आत्माओं का बाप सुप्रीम सोल हैविनली गॉड फादर सच्चाई देते हैं उस सच्चाई को न जाने। विस्तार में जाना या सार में जाना? हँ? हाँ? हाँ, विस्तार में तो सब नहीं जान सकते हैं। लेकिन सार क्या है? सार तो बीज को कहा जाता है ना? तो इस मनुष्य सृष्टि का सार बीज कौन है वो सबकी बुद्धि में बैठेगा। 500-700 करोड़ जो भी मनुष्य मात्र हैं सबकी बुद्धि में निश्चयपूर्वक पक्का-पक्का बैठ जाएगा कि हमारा बाप, एवरलास्टिंग बाप कौन है? (क्रमशः)
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the middle of the ninth page on Tuesday was – When the drama is over, it comes into the intellect of all those who play a part in the drama or all the audience that now the drama is over. And the drama of the unlimited world is also to be completed, isn’t it? You will not say to each other, hm, come on brothers, now the drama is about to be over. Arey, you must have seen dramas, didn’t you? All will tease each other. They will say that just five minutes are remaining for the drama to be completed. The drama is over. Come on, leave these clothes here itself. What? Leave the various kinds of dresses of the drama here itself. Hm? So, they remove the dresses there on the stage itself, don’t they? They do not carry those clothes home, do they? Yes. This is also an unlimited drama. It is an unlimited house. In this unlimited house, you will not carry these body-like dresses that you have changed birth by birth; will you? So, leave the clothes here itself. And move to the home. And when you go home, then, when you come to this world from there, then you will definitely bring the new clothes. Hm? Yes.
Arey, a child is born from a mother; call her mother, call her Brahma, call it Brahmlok; so, he is born naked, isn’t he? Yes. Then, as soon as the child grows even slightly bigger, then the parents make arrangements for his clothes and then send him outside, in the outside world. Do they send him naked? No. So, they bring another dress also and wear it. You might have never heard that the actors carry them to their homes. And change them there. Do they do like this? No. They will have to leave them there on the stage itself. So, what do you also have to do? You too have to leave the body-like dress here itself. It has become very old. This is called an old shoe as well. Yes.
So, now you children have this old shoe, don’t you? How many clothes has your mind and intellect like soul changed? Hm? It has changed 84 clothes in the cycle of 84, hasn’t it? So, these clothes, if you put your intellect, the intellect-like feet in the shoes again and again, bring them out, put them in, bring them out, then the shoes will tear, will they not? It becomes old. Now 84th has finished completely. Now we have understood. Now we have to again go home. And? And do you have to take these shoes? Yes, you have to leave these shoes here itself. Or will you keep on calling the person who would polish them that brother, polish them? Hm? There are those people who sell scents, brother, come and give scent; let me put some scent in it. And let me use it for some more time. Arey brother, Baba says, five minutes are remaining. Hm? The one who goes home sooner, will he achieve a higher post or a lower post? The one who goes first will achieve a higher post. And the one who goes later will achieve a lower post.
So, you have to remember Baba and go. You will remember Baba, will you not? Hm? You will go only when you become pure. Hm? It is not as if you will become pure if you keep on remembering your soul. Will you become? No. Neither will you become pure if you remember someone else’s soul. It is because all the souls in this world are pleasure-seekers (bhogi), aren’t they? While enjoying pleasures, hm, what happens? Impure? They become impure. So, you will remember Baba and go, will you not? So, you will go and then come to this world and wear this new first class cloth. Hm? Who? Hm? Who? Arey, all the children who play a part on this world stage will wear a new cloth, will they not? Yes, they will wear. It is because all the new souls that descend come from home, from the Supreme Abode, then do they get first class dress in the first birth or do they get third class [dress]? They get first class healthy body. Then the cloth that they had worn 5000 years ago and whoever had worn, it will be said that the deity souls had worn. Numberwise even among them.
So, these diamonds and pearls; diamonds and pearls do not exist in this world now; do they? That thing is not available; is it? These were present at that time. There were a series of visions and later you sat and prepared this here. Well, you cannot click photos in visions. Can you click? No. So, that photo; vision is like seeing dreams. So, you did see in dreams, but if someone says that let me click a photo in it, we can prepare a duplicate. Can they take? They will not take. So, an accurate thing cannot come. Later you sat and prepared this. So, this is a common thing. What did they make? They prepared pictures, idols in temples; so, this is a common thing. They are certainly available in the temples. Someone will ask, brother, who are these? Yes, they will tell, arey, the ones whom we go and pray in the temples, bow our foreheads, [and say] you are my mother and Father, you are everything for me my God. They say like this, don’t they? So, who are they? Arey, these are the masters of the world. Are they the masters of the world? Are they many? Arey, the one in front of whom they bowed, so, they bowed before the ling, didn’t they? But where is it placed? Arey, can anything in the world be placed without a base? (Someone said something.) Yes. So, is there a value of the place also or not? Is it not there? Yes. There is value. Just as there is a value of a person, there is a value of a place also. Still, it will be said that they are the masters of the world. What will be said about that place also? The one who was the master of the world once upon a time, so, will you say about Bhaarat or any other country? Bhaarat was the master of the world. It will not come to the intellect of anyone accurately in this manner that where did those masters of the world go? Is there anyone in Bhaarat now or not? Are they masters of the world or have they become completely servants and maids? Have they become servants and maids of the souls of the world, religions of the world, the other foreign religions, the heretics (vidharmis) or are they masters? Are they controllers over them? They are not controllers.
So, who knows where those masters of the world went? Nobody can find out about them. Otherwise, everyone’s history-geography should be available, shouldn’t it be? Hm? The actor playing the highest on high part, his emperorship; the history and geography of the emperor of the world should be available as to where all he played his part, how he played his parts? It should be available because everyone gets rebirth, don’t they? Yes. Are those souls present in this world itself or have any of them returned in between? All are in this world only. The one who was master of the world is also getting rebirth in this world itself. Children have now come to know. So, whoever has been in the past here, hm, who have been in the past? These firangis, the Britishers, so and so came, hm, Muslims came, Buddhists came, whoever came, all of them definitely get rebirth. It is not as if anyone has gone ‘paar nirvaan’ (to the abode of silence). What do the followers of Buddha say? Where did Buddha go? He went ‘paar nirvaan’. Arey, nobody went ‘paar nirvaan’. Had he gone, he would have taken his followers along as well, wouldn’t he? No. And then will the population of the world increase or decrease? If people keep on going ‘paar nirvaan’, will the population increase or decrease? It will decrease. Yes.
So, some believe, some do not believe. But whether someone believes or not the Father explains the topic of reality, doesn’t He? No? He explains. Yes. Arey, they do not understand today, they have child-like intellects, their intellect has become like a stone, so what about in future? They will understand in future. Everyone will have to definitely obtain this knowledge of truth. No? Everyone will have to obtain. There is no actor in the entire world, hm, there is no one even to this day who, hm, who doesn’t know the truth that the Father, the highest on high Father of souls, the Supreme Soul, Heavenly God Father comes and gives. Did they know in detail or in essence? Hm? Yes? Yes, everyone cannot know in detail. But what is the essence? The seed is called the essence, isn’t it? So, it will sit in everyone’s intellect as to who is the essence seed of this human world. It will sit in the intellects of all the 500-700 crore human beings firmly that who is our Father, our everlasting Father? (Continued)
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2911, दिनांक 14.06.2019
VCD 2911, dated 14.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2911-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-12.41
Time- 00.01-12.41
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को नौवें पेज के मध्य में बात चल रही थी – जब ड्रामा पूरा होता है तो ड्रामा पर पार्ट बजाने वाले या जो भी दर्शकगण हैं सबकी बुद्धि में आता है अभी ड्रामा पूरा हुआ। और ये बेहद की दुनिया का ड्रामा भी पूरा होना है ना? ऐसे नहीं कहेंगे आपस में, हँ, चलो भाइयों, अभी ड्रामा पूरा होता है। अरे, नाटक देखा होगा ना? सब एक-दो को रड़ियां मारेंगे। बाकि कहेंगे ड्रामा पूरा होने में बस पांच मिनट हैं। नाटक पूरा हुआ। चलो ये कपड़े यहां के यहीं छोड़ दो। क्या? नाटकबाजी के जो कपड़े हैं ना भांति-भांति के वो सब यहीं छोड़ दो। हँ? तो स्टेज पर ही वहीं कपड़े उतार देते हैं ना? वो कपड़े घर तो नहीं ले जाते हैं ना? हाँ। ये भी बेहद का ड्रामा है। बेहद का घर है। इस बेहद के घर में ये जन्म-जन्मान्तर बदले हुए जो शरीर रूपी वस्त्र हैं वो तो नहीं ले जाएंगे? तो कपड़ा यहीं छोड़ दियो। और चलो घर में। और घर में जाएंगे तो वहां से इस दुनिया में आएंगे तो नया कपड़ा तो लेके ही आएंगे। हँ? हाँ।
अरे, बच्चा अम्मा से पैदा होता है, अम्मा कहो, ब्रह्मा कहो, ब्रह्मलोक कहो, तो नंगा पैदा होता है ना? हाँ। फिर बच्चा थोड़ा भी बड़ा होता है तो मां-बाप कपड़ों का इंतज़ाम करके भेजते हैं ना बाहर; बाहर की दुनिया में। ऐसे ही नंगा भेज देते हैं? नहीं। तो दूसरा कपड़ा ले भी आते हैं, पहन लेते हैं। ऐसा नहीं कभी सुना होगा कभी नाटक वालों, नाटक वाले ही जैसे ले जाते हैं घर में। और वहां जाकरके बदली करते हैं। ऐसे थोड़ेही करते हैं? नहीं। वहीं स्टेज पर छोड़ देना होगा। तो तुमको भी क्या करना है? तुमको भी ये शरीर रूपी वस्त्र यहां ही छोड़ना है। बहुत पुराना हो गया। इसको पुरानी जूती भी कहा जाता है। हाँ।
तो अभी तुम बच्चों को ये तो है ना पुरानी जूती? ये तुम्हारी जो मन-बुद्धि रूपी आत्मा है, हँ, कितने कपड़े बदल चुकी? हँ? 84 के चक्र में 84 कपड़े बदल चुकी ना? तो ये कपड़े बार-बार बुद्धि, बुद्धि रूपी पांव जो जूती में डाला जाए, निकाला जाए, डाला जाए, निकाला जाए तो जूती तो फट जाएगी ना? पुरानी हो जाती है। अभी 84 पूरी हुई एकदम। अभी हम समझ गए हैं। अभी हमको फिर घर जाना है। और? और ये जूती लेके जाना है? हाँ, ये जूती यहीं छोड़कर जाना है। कि पालिश करने वाले को बुलाते रहेंगे भई पालिश करो? हँ? वो होते हैं ना इतर बेचने वाले, भई इतर दे दो आके, इतर लगाएं इसमें थोड़ा। और थोड़ा काम ले लें। अरे भई, बाबा कहते हैं पांच मिनट रह गए। हँ? जो जल्दी जाएगा घर में तो ज्यादा ऊँचा पद पाएगा या नीचा पद पाएगा? जो पहले जाएगा सो ऊँचा पद पाएगा। और बाद में जाएगा तो नीचा पद।
तो याद करके बाबा को जाना है। बाबा को तो याद तो करेंगे ना? हँ? प्योर बनेगा तब ही तो जाएंगे। हँ? ऐसे तो नहीं कि अपनी कोई आत्मा को याद करते रहेंगे तो प्योर बन जाएंगे। बन जाएंगे? नहीं। न पराए की आत्मा को याद करेंगे तो प्योर बन जाएंगे। क्योंकि इस दुनिया में तो जितनी भी आत्माएं हैं भोगी हैं ना? भोग भोगते-भोगते, हँ, क्या हो जाता है? इम्प्योर? इम्प्योर बन जाती है। तो बाबा को याद करके जाएंगे ना? तो जाकरके फिर आकरके इस दुनिया में और ये नया फर्स्टक्लास कपड़ा पहनेंगे। हँ? कौन? हँ? कौन? अरे, सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने वाले सभी बच्चे नया कपड़ा पहनेंगे ना? हाँ, पहनेंगे। क्योंकि जो भी आत्माएं नई-नई उतरती हैं, घर से आती हैं, परमधाम से, तो पहले जनम में तो उनको फर्स्टक्लास कपड़ा मिलता है कि थर्ड क्लास मिलता है? फर्स्टक्लास नीरोगी काया मिलती है। फिर वो जो 5000 वर्ष पहले कपड़ा पहना था और जिन्होंने भी पहना था, कहेंगे देव आत्माओं ने पहना था। उनमें भी नंबरवार।
तो ये हीरे-मोती अभी तो इस दुनिया में हीरे मोती नहीं हैं ना? वो चीज़ नहीं है ना? ये तो उस, उस समय थे। ये साक्षात्कार करकरके पीछे ये बैठकरके यहां बनाया है। अब फोटो तो नहीं निकाल सकते हैं साक्षात्कार में। निकाल सकते हैं? नहीं। तो वो फोटो; साक्षात्कार तो ऐसे है जैसे स्वप्न देखा। तो स्वपन में तो देखा लेकिन कोई कहे चलो फोटो निकाल के ले जाएंगे इसमें, डुप्लिकेट हो जाएगा। ले जाएंगे? नहीं ले जाएंगे। तो एक्यूरेट चीज़ तो नहीं आ सकती है। पीछे ये बैठकरके बनाया। तो ये तो कॉमन चीज़ है। क्या बनाया? मंदिरों में चित्र बनाए, मूर्तियां बनाईं तो ये तो कॉमन चीज़ हो गई। मन्दिरों में तो हैं ही हैं। पूछेंगे कोई कि भई ये कौन हैं? हाँ, बताएंगे, अरे, मन्दिर में जाके जिनको हम स्तुति करते हैं, सर झुकाते हैं, त्वमेव माता च पिता, तुमम् सर्वम मम् देव देवा। ऐसे कहते हैं ना? तो वो कौन है? अरे, ये विश्व के मालिक हैं। विश्व के मालिक हैं? बहुत हैं क्या? अरे, जिसको नमन किया तो, तो लिंग को नमन किया ना? लेकिन रखा कहां है? अरे, दुनिया की कोई चीज़ होगी तो बिना आधार के रहेगी क्या? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। तो स्थान की भी वैल्यू होती है कि नहीं? नहीं होती है? हाँ। वैल्यू होती है। जैसे व्यक्ति की वैल्यू वैसे स्थान की भी वैल्यू। तो भी कहेंगे विश्व के मालिक हैं। वो स्थान भी क्या कहेंगे? जो कभी विश्व का मालिक था तो क्या भारत को कहेंगे या कोई दूसरे देश को कहेंगे? भारत विश्व का मालिक था। यथार्थ रीति से बुद्धि में, ऐसे ये कभी किसी के नहीं आएगा कि वो कहां गए विश्व के मालिक? भारत में हैं कोई कि नहीं अभी? विश्व के मालिक हैं या एकदम दास-दासी बने पड़े हैं? विश्व आत्माओं के, विश्व धर्मों के जो दूसरे-दूसरे विदेशी धर्म हैं, विधर्मी हैं, उनके दास-दासी बन गए या मालिक हैं? उनके ऊपर कंट्रोलर है? कंट्रोलर नहीं हैं।
तो पता नहीं वो विश्व के मालिक कहां चले गए? कोई भी पता उनका लगाय नहीं सकता। नहीं तो हिस्ट्री-जॉग्राफी तो सबकी होनी चाहिए ना? हँ? जो ऊँच ते ऊँच है पार्ट बजाने वाला उसकी तो विश्व की बादशाही, विश्व के बादशाह की हिस्ट्री-जॉग्राफी होनी चाहिए ना कहां-कहां पार्ट बजाया, कैसे-कैसे बजाया? होना चाहिए क्योंकि पुनर्जन्म तो सभी लेते हैं ना? हाँ। वो आत्माएं इसी दुनिया में हैं या कोई बीच में वापस चली गईं? सब इसी दुनिया में हैं। विश्व का मालिक जो था वो भी इसी दुनिया में पुनर्जन्म तो ले रहे हैं। बच्चों को अभी मालूम पड़ गया है। तो जो भी होकरके गए हैं यहां से, हँ, कौन होकर गए? ये फिरंगी आए, अंग्रेज, फलाने आए, हँ, मुसलमान आए, बौद्धी आए, जो भी आए, सब पुनर्जन्म जरूर लेते हैं। ऐसे नहीं कोई पार निर्वाण चला गया। बुद्ध के फालोअर क्या कहते हैं? बुद्ध कहां गया? पार निर्वाण चला गया। अरे, कोई पार निर्वाण चला नहीं गया। अगर गया होता तो अपने फालोअर्स को भी ले जाता ना? नहीं। और दुनिया की आबादी फिर बढ़ेगी या घटेगी? अगर पार निर्वाण जाते रहेंगे तो आबादी बढ़ेगी या घटेगी? घटेगी। हां।
तो कोई मानते हैं, कोई नहीं मानते हैं। परन्तु कोई माने या न माने असलियत की बात तो बाप समझाते हैं ना? नहीं? समझाते हैं। हाँ। अरे, आज नहीं समझते हैं, बच्चाबुद्धि हैं, पत्थरबुद्धि बन गई, तो क्या आगे चलकरके? आगे चलकरके समझ जाएंगे। सबको ये ज्ञान सच्चाई का लेना तो पड़ेगा। नहीं? सबको लेना पड़ेगा। ऐसा कोई एक भी एक्टर्स नहीं है पूरी दुनिया में, हँ, आज भी नहीं है, जो, हँ, जो बाप आकरके ऊँच ते ऊँच आत्माओं का बाप सुप्रीम सोल हैविनली गॉड फादर सच्चाई देते हैं उस सच्चाई को न जाने। विस्तार में जाना या सार में जाना? हँ? हाँ? हाँ, विस्तार में तो सब नहीं जान सकते हैं। लेकिन सार क्या है? सार तो बीज को कहा जाता है ना? तो इस मनुष्य सृष्टि का सार बीज कौन है वो सबकी बुद्धि में बैठेगा। 500-700 करोड़ जो भी मनुष्य मात्र हैं सबकी बुद्धि में निश्चयपूर्वक पक्का-पक्का बैठ जाएगा कि हमारा बाप, एवरलास्टिंग बाप कौन है? (क्रमशः)
A morning class dated 28.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the middle of the ninth page on Tuesday was – When the drama is over, it comes into the intellect of all those who play a part in the drama or all the audience that now the drama is over. And the drama of the unlimited world is also to be completed, isn’t it? You will not say to each other, hm, come on brothers, now the drama is about to be over. Arey, you must have seen dramas, didn’t you? All will tease each other. They will say that just five minutes are remaining for the drama to be completed. The drama is over. Come on, leave these clothes here itself. What? Leave the various kinds of dresses of the drama here itself. Hm? So, they remove the dresses there on the stage itself, don’t they? They do not carry those clothes home, do they? Yes. This is also an unlimited drama. It is an unlimited house. In this unlimited house, you will not carry these body-like dresses that you have changed birth by birth; will you? So, leave the clothes here itself. And move to the home. And when you go home, then, when you come to this world from there, then you will definitely bring the new clothes. Hm? Yes.
Arey, a child is born from a mother; call her mother, call her Brahma, call it Brahmlok; so, he is born naked, isn’t he? Yes. Then, as soon as the child grows even slightly bigger, then the parents make arrangements for his clothes and then send him outside, in the outside world. Do they send him naked? No. So, they bring another dress also and wear it. You might have never heard that the actors carry them to their homes. And change them there. Do they do like this? No. They will have to leave them there on the stage itself. So, what do you also have to do? You too have to leave the body-like dress here itself. It has become very old. This is called an old shoe as well. Yes.
So, now you children have this old shoe, don’t you? How many clothes has your mind and intellect like soul changed? Hm? It has changed 84 clothes in the cycle of 84, hasn’t it? So, these clothes, if you put your intellect, the intellect-like feet in the shoes again and again, bring them out, put them in, bring them out, then the shoes will tear, will they not? It becomes old. Now 84th has finished completely. Now we have understood. Now we have to again go home. And? And do you have to take these shoes? Yes, you have to leave these shoes here itself. Or will you keep on calling the person who would polish them that brother, polish them? Hm? There are those people who sell scents, brother, come and give scent; let me put some scent in it. And let me use it for some more time. Arey brother, Baba says, five minutes are remaining. Hm? The one who goes home sooner, will he achieve a higher post or a lower post? The one who goes first will achieve a higher post. And the one who goes later will achieve a lower post.
So, you have to remember Baba and go. You will remember Baba, will you not? Hm? You will go only when you become pure. Hm? It is not as if you will become pure if you keep on remembering your soul. Will you become? No. Neither will you become pure if you remember someone else’s soul. It is because all the souls in this world are pleasure-seekers (bhogi), aren’t they? While enjoying pleasures, hm, what happens? Impure? They become impure. So, you will remember Baba and go, will you not? So, you will go and then come to this world and wear this new first class cloth. Hm? Who? Hm? Who? Arey, all the children who play a part on this world stage will wear a new cloth, will they not? Yes, they will wear. It is because all the new souls that descend come from home, from the Supreme Abode, then do they get first class dress in the first birth or do they get third class [dress]? They get first class healthy body. Then the cloth that they had worn 5000 years ago and whoever had worn, it will be said that the deity souls had worn. Numberwise even among them.
So, these diamonds and pearls; diamonds and pearls do not exist in this world now; do they? That thing is not available; is it? These were present at that time. There were a series of visions and later you sat and prepared this here. Well, you cannot click photos in visions. Can you click? No. So, that photo; vision is like seeing dreams. So, you did see in dreams, but if someone says that let me click a photo in it, we can prepare a duplicate. Can they take? They will not take. So, an accurate thing cannot come. Later you sat and prepared this. So, this is a common thing. What did they make? They prepared pictures, idols in temples; so, this is a common thing. They are certainly available in the temples. Someone will ask, brother, who are these? Yes, they will tell, arey, the ones whom we go and pray in the temples, bow our foreheads, [and say] you are my mother and Father, you are everything for me my God. They say like this, don’t they? So, who are they? Arey, these are the masters of the world. Are they the masters of the world? Are they many? Arey, the one in front of whom they bowed, so, they bowed before the ling, didn’t they? But where is it placed? Arey, can anything in the world be placed without a base? (Someone said something.) Yes. So, is there a value of the place also or not? Is it not there? Yes. There is value. Just as there is a value of a person, there is a value of a place also. Still, it will be said that they are the masters of the world. What will be said about that place also? The one who was the master of the world once upon a time, so, will you say about Bhaarat or any other country? Bhaarat was the master of the world. It will not come to the intellect of anyone accurately in this manner that where did those masters of the world go? Is there anyone in Bhaarat now or not? Are they masters of the world or have they become completely servants and maids? Have they become servants and maids of the souls of the world, religions of the world, the other foreign religions, the heretics (vidharmis) or are they masters? Are they controllers over them? They are not controllers.
So, who knows where those masters of the world went? Nobody can find out about them. Otherwise, everyone’s history-geography should be available, shouldn’t it be? Hm? The actor playing the highest on high part, his emperorship; the history and geography of the emperor of the world should be available as to where all he played his part, how he played his parts? It should be available because everyone gets rebirth, don’t they? Yes. Are those souls present in this world itself or have any of them returned in between? All are in this world only. The one who was master of the world is also getting rebirth in this world itself. Children have now come to know. So, whoever has been in the past here, hm, who have been in the past? These firangis, the Britishers, so and so came, hm, Muslims came, Buddhists came, whoever came, all of them definitely get rebirth. It is not as if anyone has gone ‘paar nirvaan’ (to the abode of silence). What do the followers of Buddha say? Where did Buddha go? He went ‘paar nirvaan’. Arey, nobody went ‘paar nirvaan’. Had he gone, he would have taken his followers along as well, wouldn’t he? No. And then will the population of the world increase or decrease? If people keep on going ‘paar nirvaan’, will the population increase or decrease? It will decrease. Yes.
So, some believe, some do not believe. But whether someone believes or not the Father explains the topic of reality, doesn’t He? No? He explains. Yes. Arey, they do not understand today, they have child-like intellects, their intellect has become like a stone, so what about in future? They will understand in future. Everyone will have to definitely obtain this knowledge of truth. No? Everyone will have to obtain. There is no actor in the entire world, hm, there is no one even to this day who, hm, who doesn’t know the truth that the Father, the highest on high Father of souls, the Supreme Soul, Heavenly God Father comes and gives. Did they know in detail or in essence? Hm? Yes? Yes, everyone cannot know in detail. But what is the essence? The seed is called the essence, isn’t it? So, it will sit in everyone’s intellect as to who is the essence seed of this human world. It will sit in the intellects of all the 500-700 crore human beings firmly that who is our Father, our everlasting Father? (Continued)
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- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2911, दिनांक 14.06.2019
VCD 2911, dated 14.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2911-Bilingual-Part-2
समय- 12.42-25.27
Time- 12.42-25.27
तो अभी तो तुम बच्चों की बुद्धि में है सो भी नंबरवार। हँ? जितने एक्टर्स हैं एक्यूरेट, समझो 5 करोड़, हँ, 555 करोड़, हँ, तो 5555, ऐसे है ना? है ना वो ही? क्या हैं? मनुष्य हैं या जानवर बुद्धि हैं? अरे, जिनकी थोड़ी मन चले, हँ, मन-बुद्धि थोड़ी चलायमान हो, मनन-चिंतन-मंथन कर सकें तो उनको मनुष्य कहेंगे। तो कितनी संख्या में? 500-550 करोड़ ये मनन-चिंतन-मंथन करने वाले मनुष्य तो हैं। बाकि ऊपर, जो बाद में आएंगे वो तो जैसे जानवर मक्खी मच्छर मिसल हैं। हाँ। तो उन मनुष्यों में ये नहीं कह सकते हैं कि एक कम होगा एक जास्ती होगा। अरे, जितने हैं उतने हैं। अरे, एक-एक को जो पार्ट मिला हुआ है वो अभी भी डिस्टर्ब नहीं हो सकते हैं। ज्यों का त्यों जैसे कलप पूर्व में पार्ट बजाया था वैसे ही पार्ट बजाते रहेंगे। हाँ, ये भी नहीं कह सकते कि उनका पार्ट पुराना हो गया। हँ? फट-फटा गया, नष्ट हो गया। नष्ट होता है? अरे, आत्मा में जो रिकार्ड भरा हुआ है वो तो कल्प-कल्प वो ही पार्ट चलता रहता है।
तो ये हद के ड्रामे पुराने हो जाते हैं। लेकिन ये बेहद का ड्रामा कभी पुराना नहीं होता। हाँ। वो हद के ड्रामे पुराने हो जाते हैं तो पीछे नया बनाते हैं। हँ? क्या? बनाते जाते हैं ना नए? हाँ। तो ये पुराना ऐसे भी नहीं कुछ हुआ है जो ये बनाते हैं। नहीं। ये तो बना बनाया ड्रामा है। बेहद का कि हद का? हँ? बेहद का जो ड्रामा है वो किसी ने बनाया; बनाया किसी ने? बनाया नहीं। कोई कहे कि हां, रिहर्सल होती है, शूटिंग होती है, तो हम आत्माएं अपनी शूटिंग अपने आप करती हैं ना? हँ? चलो व्यास भगवान होगा। कहा जाता है भक्तिमार्ग में व्यास भगवान। तो वो, हँ, वो जितनी भी ज्यादा से ज्यादा दुनिया में सबसे जास्ती ड्रामाबाजी करता है ना? हाँ। तो वो खुद ही करता है कि कोई दूसरा करता है? हँ? खुद ही करता है। तो बनाता है ना अपना ड्रामा? बनाता है? कि कल्प पहले से बना-बनाया है? क्या कहेंगे? हाँ, कलप पहले से बना-बनाया। वो भी बनाता थोड़ेही है?
तो ये, ये पुराना ऐसे भी नहीं कुछ हुआ है जो ये बनाते हैं। नहीं। ये बातें बना-बनाकरके बताते हैं। क्या? व्यास ने क्या किया? हँ? बातें बना-बनाकरके बताईं। हँ? किसने बनाई? किसका मिसाल देते हैं? जिसने सबसे जास्ती बातें बनाई होंगी बैठकरके, हँ, उसका नाम लते हैं व्यास ने करकरके कितने ये बड़ी-बड़ी मोटी-मोटी पुस्तकें, ग्रंथ, वेद, शास्त्र बनाय के रख दिये। अरे, ये महाभारी महाभारत की लड़ाई। अरे, ये महाभारी महाभारत की लड़ाई खूनरेज़ी दिखाई है, हँ, भगवान सुदर्शन चक्र चलाते जाते हैं, सर काटते जाते हैं, ऐसे-ऐसे अस्त्र-शस्त्र दिखाए हैं, अग्नेयास्त्र दिखाए हैं। हँ? तो क्या ऐसी लड़ाई हुई है हिंसक? हुई है? ऐसी तो कोई लड़ाई नहीं हुई है। भगवान ने बैठकरके कराई है। अरे, भगवान हिंसा करना सिखाएगा क्या? हँ? सिखाएगा? नहीं। भगवान तो जो पार्ट बजाता है वो दुनिया का सबसे बड़े ते बड़ा अहिंसक पार्ट बजाता है। जब वो खुद ही अहिंसा का पार्ट बजाता है तो दूसरों को हिंसा करना सिखाएगा क्या? नहीं।
28.11.1967 की प्रातः क्लास का दसवां पेज। ये सब रांग बातें हैं महाभारत की लड़ाई, देवासुर संग्राम, राम-रावण की लड़ाई। कितने मोटे-मोटे पोथन्ने लिख दिये, रामायण बनाय दिया। हँ? आजकल बच्चे हैं ना वो हंसी उड़ाते हैं। क्या? क्या हंसी उड़ाते हैं? रामायण की कथा जो लोग सुनने जाते हैं तो उनकी हंसी उड़ाते हैं। अरे, भई तुम कहां जा रहे हो? हँ? अरे, ये जितनी जो तुम, तुम सुने, लंबी-चौड़ी कथा-कहानी सुनने जा रहे हो ये कुछ भी नहीं है। क्या है? अरे, एक राम हथे, एक रावण, उनने उनकी सीता चुराई। उनने उनको मारा था। अरे, छोटी सी बात भई दोनों में, तुलसी ने बनाया पोथन्ना। अरे, तो ये सब क्या रांग बातें हैं या सच्ची बातें हैं? हँ? कोई ऐसा दस सिर का रावण होता है कोई? हँ? कैसे पैदा होगा बिचारा? हँ? ये सब झूठी बातें। और कोई ऐसा आदमी दुनिया में देखा कि छह महीने सोता हो? हँ? कुंभकरण बनाय दिया।
अरे, देखो कितनी इन मनुष्यों की, ऋषि-मुनियों की बुद्धि है। हँ? विशालबुद्धि है कि विकारी बुद्धि है? हँ? महाविकारी बुद्धि। देखो, कितना बड़ा महाभारत बैठकरके लिखा। कितना बड़ा? हँ? इतना बड़ा महाभारत ग्रंथ बनाया है कि दुनिया में इतना बड़ा कोई इतना बड़ा बना ही नहीं सकता। पूरा हॉल भर जाता है किताब से महाभारत ग्रंथ से। अरे, भक्तिमार्ग में महाभारत पढ़ते ही रहते हैं। हँ? और तुम अभी समझते हो। क्या? ये तो इतना मोटा-मोटा ग्रंथ शास्त्र पढते हैं ये सब झूठे। हँ? क्यों? अरे, वो गीता में लिखा है ना जिसको, हँ, मानसरोवर मिल जाए नहाने के लिए तो वो गड्ढे-गढ़ीचियों में जाके स्नान करेगा? करेगा? नहीं। अरे, गड्ढे-गढ़ीचियों में तो कितनी धूल आके गिरती है। देह अभिमान की धूल गिरती है कि नहीं? हाँ। और मानसरोवर झील में? वहां तो इतनी ऊँचाई पर बना हुआ है। कैसा? यादगार मानसरोवर झील, यादगार है ना? है तो चैतन्य की यादगार। कोई चैतन्य आत्मा है ज्ञान मान सरोवर। हाँ। तो चैतन्य आत्मा की यादगार उसमें क्या विशेषता है? अरे, कुछ विशेषता है कि नहीं? क्या विशेषता है? अरे, उसका पानी तो ऐसे दिखाई पड़ता है जैसे शीशा। हँ? बॉटम भी दिखाई पड़ता है। हँ? इतना शुद्ध जल। हँ? धूल के कणों की नाम-निशान नहीं है।
देखो, ये है कौन? कोई पार्टधारी हैं या नहीं हैं? ऐसा भी पार्टधारी है इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर जो भल कण-4 ढ़ेर सारे कण मिलाके पत्थरबुद्धि बड़ा पत्थर बन जाता है। क्या? उस बड़े पत्थर का मालूम है क्या नाम दे दिया? हँ? अरे? क्या नाम दिया? हँ? हाँ, कहते हैं ढ़ेर सारे पर्वत हैं दुनिया में पत्थरों के बने हुए। उनमें सबसे बड़ा पत्थर का पहाड़ जो माना जाता है, हँ, बहुत से पर्वतों का कम्बिनेशन है उसको कहते हैं; क्या? हिमालय। और हिमालय में भी सबसे ऊँची कोई चोटी है? हाँ, वो किसकी यादगार? हँ? वो यादगार है; क्या? प्रैक्टिकल यादगार होगी ना कभी? क्या यादगार? कि सारी दुनिया डूब जाए लेकिन वो चोटी? वो चोटी नहीं डूबती है। किसमें? जलमई में।
तो बताया भक्तिमार्ग में ये महाभारत पढ़ते रहते हैं। और तुम अभी इसको गहराई से क्या राज़ है वो समझते रहते हो। अरे, ये सब झूठ है। क्या सब? जितने भी ये वेद-शास्त्र, ग्रंथ आदि बनाए हैं, चाहे भारत के हैं, चाहे विदेशियों के हैं; विदेशियों के भी ग्रंथ, शास्त्र हैं कि नहीं? क्रिश्चियन्स की बाइबल कहेंगे ना? मानते हैं कि नहीं सबसे बड़ा उसे? हाँ। और वो मुसलमानों की? कुरान है। और बौद्धियों की? धम्मपद है। है कि नहीं? सिक्खों का? गुरु ग्रंथ साहब है। वो समझते हैं ये भगवान ने बोला। भगवान का बोला हुआ ये शास्त्र है। सब ऐसे ही समझते हैं। अरे, बाप कहते हैं ये सब झूठे हैं। क्या? भगवान जिस तन में आकरके, हँ, वो सत्य सनातन ऊँच ते ऊँच अल्लाह अव्वलदीन की स्थापना करता है, हँ, वो उसका तो शास्त्र कोई बना ही नहीं सकता। असली शास्त्र बनेगा ही नहीं। मनुष्य भल बनाते हैं। व्यास ने बनाया। क्या? श्रीमदभगवद्गीता। तो उसमें भी झूठ होगा कि नहीं होगा? हाँ। बताय दिया – विभुम्; क्या? सर्वव्यापी है। अरे? सब झूठ।
दुखधाम में जो थे, हँ, तो वो सुखधाम में भी जाएंगे जरूर। कब? कब जाएंगे? हँ? किसी को पता है? अरे, जाना तो जरूर है। क्यों? क्योंकि इस दुनिया की हिस्ट्री रिपीट होती रहती है। कहते हैं ना हिस्ट्री रिपीट्स इट्सेल्फ। तो अपने आप रिपीट होती है। ऐसे नहीं कोई कुम्हार है, तो चाक चलाता है, डंडा लगाता है, तब वो घूमता है। नहीं। ये बेहद का सृष्टि रूपी ड्रामा है, सृष्टि चक्र है, वो लगातार आटोमेटिक। हाँ, निमित्त मात्र कोई साकार में बनता है। क्या? कुम्हार। कुम्हारे माने? प्रजापति। अरे, आज की दुनिया में जो कुम्हार हैं बर्तन बनाने, मिट्टी के बर्तन बनाते हैं ना? हाँ। तो वो अपना टाइटल रखते हैं। क्या? प्रजापति। तो क्या प्रजापति हैं? हैं। कोई हुआ होगा तो उसकी यादगार है जो बनाते रहते हैं। तो बताया दुखधाम में जो ये वो सभी सुखधाम में जरूर जाएंगे क्योंकि ये सृष्टि चक्र ज्यों का त्यों, क्या, फिरता रहता है। ओमशान्ति। (समाप्त)
So, now it is in the intellect of you children, that too numberwise. Hm? The accurate number of actors, suppose there are 5 crore, hm, 555 crores, hm, so, 5555, it is like this, isn’t it? They are that only, aren’t they? What are they? Are they human beings or do they have animal-like intellect? Arey, those whose mind works a little, hm, the mind and intellect should be a little active, they should be able to think and churn, so, they will be called human beings. So, what’s their number? 500-550 crores are indeed human beings who think and churn. The rest above them, those who come later on are like animals, like flea and mosquitoes. Yes. So, among those human beings it cannot be said that there will be one less or one more. Arey, they are as many as they should be. Arey, the part that each one has got, they cannot get disturbed even now. As it is, just as they had played a part Kalpa ago, they will keep on playing the same part. Yes, it cannot be said that their part has become old. Hm? It has torn, it has been destroyed. Does it get destroyed? Arey, the record that is filled in the soul, the same part keeps on repeating every Kalpa.
So, these limited dramas become old. But this unlimited drama never becomes old. Yes. When those limited dramas become old, then later they are made anew. Hm? What? They go on making it new, don’t they? Yes. So, this old one, it is not as if something has happened that they make it. No. This is a pre-destined drama. Unlimited or limited? Hm? Has anyone made the unlimited drama? It has not been made. Someone may say that yes, rehearsal takes place, shooting takes place, so, we souls perform our shooting ourselves, don’t we? Hm? Okay, there will be God Vyas. It is said on the path of Bhakti – God Vyas. So, he, hm, he acts the most in the world, doesn’t he? Yes. So, does he himself do or does anyone else do? Hm? He himself does. So, he makes his own drama, doesn’t he? Does he make? Or has it been already made Kalpa ago? What would you say? Yes, it is already made Kalpa ago. Does he also make?
So, this, this old, no such thing has happened that they make. No. They make these things and tell. What? What did Vyas do? Hm? He made up things and told. Hm? Who made? Whose example is given? The one who must have sat and made the most topics, his name is mentioned; Vyas prepared such big, fat books, Vedas, scriptures. Arey, this fiercest Mahabharata war. Arey, this fiercest Mahabharata war, bloodshed has been depicted. God goes on using the Sudarshan Chakra and goes on cutting the heads; such weapons have been depicted, weapons of fire (agneyastra) have been depicted. Hm? So, did such violent war take place? Has it taken place? No such war has taken place. [People say that] God sat and caused it. Arey, will God teach violence? Hm? Will He teach? No. The part that God plays is the biggest non-violent part of the world. When He Himself plays a part of non-violence, then will He teach violence to others? No.
Tenth page of the morning class dated 28.11.1967. All these are wrong topics, the Mahabharata war, the clash of deities and demons, the war between Ram and Ravan. Such fat books have been written, Ramayana has been penned! Hm? Now-a-days children crack jokes, don’t they? What? What is the joke that they crack? They make fun of the people who go to listen to the story of Ramayana. Arey brother, where are you going? Hm? Arey, whatever that you, you listen, the long story that you are going to listen, this is nothing. What is it? Arey, there was one Ram, one Ravan; he abducted his Sita. He killed him. Arey, a small thing happened between both of them; and Tulsi wrote a big novel. Arey, so, are all these wrong topics or true topics? Hm? Is there any such ten-headed Ravan? Hm? How will that poor fellow get birth? Hm? All these are false topics. And have you seen any such man who sleeps for six months? Hm? They have made Kumbhkarna.
Arey, look, these human beings, sages and saints have such intellect! Hm? Do they have a broad intellect or a vicious intellect? Hm? Most vicious intellect. Look, they have written such a big Mahabharata. How big? Hm? They have made such a big Mahabharata book that nobody can make such big one in the world. An entire hall gets filled up with the book, the Mahabharata book. Arey, people keep on reading Mahabharata on the path of Bhakti. Hm? And you now understand. What? They read such fat book, scripture; all these are false ones. Hm? Why? Arey, it has been written in that Gita, hasn’t it been that if someone gets Mansarovar (lake) to bathe, will he go to the pits [full of water] to bathe? Will he? No. Arey, so much dust comes and falls in the pits. Does the dust of body consciousness fall or not? Yes. And in the Mansarovar lake? There, it is located at such a height. How? The memorial Mansarovar lake, the memorial is there, isn’t it? It is a memorial of the living thing. There is a living soul, the Man Sarovar of knowledge. Yes. So, what is the specialty of the memorial of the living soul? Arey, is there any specialty or not? What is the specialty? Arey, its water appears like a mirror. Hm? The bottom is also visible. Hm? Such pure water. Hm? There is no trace of dust particles in it.
Look, who is this? Are there any actors or not? There is one such actor also on this world stage who develops a stone-like intellect, becomes a big stone when particles, numerous particles assimilate. What? Do you know what is the name given to that big stone? Hm? Arey? What is the name assigned? Hm? Yes, they say that there are numerous mountains in the world made up of stone. Among them the mountain of stone considered to be the biggest one, hm, which is a combination of many mountains, what is it called? Himalaya. And is there any highest peak even among the Himalayas? Yes, whose memorial is it? Hm? That is a memorial; what? There must have been a practical memorial at some point in time? What memorial? That the entire world may drown, but that peak? That peak doesn’t sink. In what? In water.
So, it was told that people keep on reading this Mahabharata on the path of Bhakti. And you now keep on understanding deeply as to what is this secret. Arey, all this is false. What all? All these Vedas, scriptures, books, etc. that have been prepared, be it those from India, be it those of the foreigners; do the foreigners also have books, scriptures or not? Bible will be said to be of the Christians, will it not be? Do they believe it to be the highest one or not? Yes. And that of the Muslims? There is Koran. And of the Buddhists? There is Dhammapad. Is it there or not? Of the Sikhs? There is Guru Granth Sahib. They think that God said this. This scripture is spoken by God. All think like this only. Arey, the Father says – All these are false. What? The body in which God comes and establishes that true ancient highest of all Allah Avvaldeen (highest religion), nobody can prepare its scripture at all. The true scripture will not be made at all. Although human beings make. Vyas made. What? Shrimad Bhagwadgita. So, will there be lies in it as well or not? Yes. It was told – Vibhum; what? He is omnipresent. Arey? Everything is false.
Those who were in the abode of sorrows will definitely go to the abode of happiness as well. When? When will they go? Hm? Does anyone know? Arey, you have to certainly go. Why? It is because the history of this world keeps on repeating. It is said, isn’t it that the history repeats itself. So, it keeps on repeating automatically. It is not as if there is a potter, he rotates the wheel, he hits it with a stick, and then it rotates. No. This is an unlimited world drama, world cycle; that continuously, automatic. Yes, someone becomes instrumental in corporeal form. What? Potter (kumhaar). What is meant by potter? Prajapati. Arey, the potters in today’s world who make utensils; they make clay utensils, don’t they? Yes. So, they have a title. What? Prajapati. So, are they Prajapati (lord of the subjects)? They are. There must have been someone whose memorial it is, which they keep on making. So, it was told that all these who are in the abode of sorrows will definitely go to the abode of happiness because this world cycle keeps on revolving as it is. Om Shanti. (End)
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Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2911, दिनांक 14.06.2019
VCD 2911, dated 14.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
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समय- 12.42-25.27
Time- 12.42-25.27
तो अभी तो तुम बच्चों की बुद्धि में है सो भी नंबरवार। हँ? जितने एक्टर्स हैं एक्यूरेट, समझो 5 करोड़, हँ, 555 करोड़, हँ, तो 5555, ऐसे है ना? है ना वो ही? क्या हैं? मनुष्य हैं या जानवर बुद्धि हैं? अरे, जिनकी थोड़ी मन चले, हँ, मन-बुद्धि थोड़ी चलायमान हो, मनन-चिंतन-मंथन कर सकें तो उनको मनुष्य कहेंगे। तो कितनी संख्या में? 500-550 करोड़ ये मनन-चिंतन-मंथन करने वाले मनुष्य तो हैं। बाकि ऊपर, जो बाद में आएंगे वो तो जैसे जानवर मक्खी मच्छर मिसल हैं। हाँ। तो उन मनुष्यों में ये नहीं कह सकते हैं कि एक कम होगा एक जास्ती होगा। अरे, जितने हैं उतने हैं। अरे, एक-एक को जो पार्ट मिला हुआ है वो अभी भी डिस्टर्ब नहीं हो सकते हैं। ज्यों का त्यों जैसे कलप पूर्व में पार्ट बजाया था वैसे ही पार्ट बजाते रहेंगे। हाँ, ये भी नहीं कह सकते कि उनका पार्ट पुराना हो गया। हँ? फट-फटा गया, नष्ट हो गया। नष्ट होता है? अरे, आत्मा में जो रिकार्ड भरा हुआ है वो तो कल्प-कल्प वो ही पार्ट चलता रहता है।
तो ये हद के ड्रामे पुराने हो जाते हैं। लेकिन ये बेहद का ड्रामा कभी पुराना नहीं होता। हाँ। वो हद के ड्रामे पुराने हो जाते हैं तो पीछे नया बनाते हैं। हँ? क्या? बनाते जाते हैं ना नए? हाँ। तो ये पुराना ऐसे भी नहीं कुछ हुआ है जो ये बनाते हैं। नहीं। ये तो बना बनाया ड्रामा है। बेहद का कि हद का? हँ? बेहद का जो ड्रामा है वो किसी ने बनाया; बनाया किसी ने? बनाया नहीं। कोई कहे कि हां, रिहर्सल होती है, शूटिंग होती है, तो हम आत्माएं अपनी शूटिंग अपने आप करती हैं ना? हँ? चलो व्यास भगवान होगा। कहा जाता है भक्तिमार्ग में व्यास भगवान। तो वो, हँ, वो जितनी भी ज्यादा से ज्यादा दुनिया में सबसे जास्ती ड्रामाबाजी करता है ना? हाँ। तो वो खुद ही करता है कि कोई दूसरा करता है? हँ? खुद ही करता है। तो बनाता है ना अपना ड्रामा? बनाता है? कि कल्प पहले से बना-बनाया है? क्या कहेंगे? हाँ, कलप पहले से बना-बनाया। वो भी बनाता थोड़ेही है?
तो ये, ये पुराना ऐसे भी नहीं कुछ हुआ है जो ये बनाते हैं। नहीं। ये बातें बना-बनाकरके बताते हैं। क्या? व्यास ने क्या किया? हँ? बातें बना-बनाकरके बताईं। हँ? किसने बनाई? किसका मिसाल देते हैं? जिसने सबसे जास्ती बातें बनाई होंगी बैठकरके, हँ, उसका नाम लते हैं व्यास ने करकरके कितने ये बड़ी-बड़ी मोटी-मोटी पुस्तकें, ग्रंथ, वेद, शास्त्र बनाय के रख दिये। अरे, ये महाभारी महाभारत की लड़ाई। अरे, ये महाभारी महाभारत की लड़ाई खूनरेज़ी दिखाई है, हँ, भगवान सुदर्शन चक्र चलाते जाते हैं, सर काटते जाते हैं, ऐसे-ऐसे अस्त्र-शस्त्र दिखाए हैं, अग्नेयास्त्र दिखाए हैं। हँ? तो क्या ऐसी लड़ाई हुई है हिंसक? हुई है? ऐसी तो कोई लड़ाई नहीं हुई है। भगवान ने बैठकरके कराई है। अरे, भगवान हिंसा करना सिखाएगा क्या? हँ? सिखाएगा? नहीं। भगवान तो जो पार्ट बजाता है वो दुनिया का सबसे बड़े ते बड़ा अहिंसक पार्ट बजाता है। जब वो खुद ही अहिंसा का पार्ट बजाता है तो दूसरों को हिंसा करना सिखाएगा क्या? नहीं।
28.11.1967 की प्रातः क्लास का दसवां पेज। ये सब रांग बातें हैं महाभारत की लड़ाई, देवासुर संग्राम, राम-रावण की लड़ाई। कितने मोटे-मोटे पोथन्ने लिख दिये, रामायण बनाय दिया। हँ? आजकल बच्चे हैं ना वो हंसी उड़ाते हैं। क्या? क्या हंसी उड़ाते हैं? रामायण की कथा जो लोग सुनने जाते हैं तो उनकी हंसी उड़ाते हैं। अरे, भई तुम कहां जा रहे हो? हँ? अरे, ये जितनी जो तुम, तुम सुने, लंबी-चौड़ी कथा-कहानी सुनने जा रहे हो ये कुछ भी नहीं है। क्या है? अरे, एक राम हथे, एक रावण, उनने उनकी सीता चुराई। उनने उनको मारा था। अरे, छोटी सी बात भई दोनों में, तुलसी ने बनाया पोथन्ना। अरे, तो ये सब क्या रांग बातें हैं या सच्ची बातें हैं? हँ? कोई ऐसा दस सिर का रावण होता है कोई? हँ? कैसे पैदा होगा बिचारा? हँ? ये सब झूठी बातें। और कोई ऐसा आदमी दुनिया में देखा कि छह महीने सोता हो? हँ? कुंभकरण बनाय दिया।
अरे, देखो कितनी इन मनुष्यों की, ऋषि-मुनियों की बुद्धि है। हँ? विशालबुद्धि है कि विकारी बुद्धि है? हँ? महाविकारी बुद्धि। देखो, कितना बड़ा महाभारत बैठकरके लिखा। कितना बड़ा? हँ? इतना बड़ा महाभारत ग्रंथ बनाया है कि दुनिया में इतना बड़ा कोई इतना बड़ा बना ही नहीं सकता। पूरा हॉल भर जाता है किताब से महाभारत ग्रंथ से। अरे, भक्तिमार्ग में महाभारत पढ़ते ही रहते हैं। हँ? और तुम अभी समझते हो। क्या? ये तो इतना मोटा-मोटा ग्रंथ शास्त्र पढते हैं ये सब झूठे। हँ? क्यों? अरे, वो गीता में लिखा है ना जिसको, हँ, मानसरोवर मिल जाए नहाने के लिए तो वो गड्ढे-गढ़ीचियों में जाके स्नान करेगा? करेगा? नहीं। अरे, गड्ढे-गढ़ीचियों में तो कितनी धूल आके गिरती है। देह अभिमान की धूल गिरती है कि नहीं? हाँ। और मानसरोवर झील में? वहां तो इतनी ऊँचाई पर बना हुआ है। कैसा? यादगार मानसरोवर झील, यादगार है ना? है तो चैतन्य की यादगार। कोई चैतन्य आत्मा है ज्ञान मान सरोवर। हाँ। तो चैतन्य आत्मा की यादगार उसमें क्या विशेषता है? अरे, कुछ विशेषता है कि नहीं? क्या विशेषता है? अरे, उसका पानी तो ऐसे दिखाई पड़ता है जैसे शीशा। हँ? बॉटम भी दिखाई पड़ता है। हँ? इतना शुद्ध जल। हँ? धूल के कणों की नाम-निशान नहीं है।
देखो, ये है कौन? कोई पार्टधारी हैं या नहीं हैं? ऐसा भी पार्टधारी है इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर जो भल कण-4 ढ़ेर सारे कण मिलाके पत्थरबुद्धि बड़ा पत्थर बन जाता है। क्या? उस बड़े पत्थर का मालूम है क्या नाम दे दिया? हँ? अरे? क्या नाम दिया? हँ? हाँ, कहते हैं ढ़ेर सारे पर्वत हैं दुनिया में पत्थरों के बने हुए। उनमें सबसे बड़ा पत्थर का पहाड़ जो माना जाता है, हँ, बहुत से पर्वतों का कम्बिनेशन है उसको कहते हैं; क्या? हिमालय। और हिमालय में भी सबसे ऊँची कोई चोटी है? हाँ, वो किसकी यादगार? हँ? वो यादगार है; क्या? प्रैक्टिकल यादगार होगी ना कभी? क्या यादगार? कि सारी दुनिया डूब जाए लेकिन वो चोटी? वो चोटी नहीं डूबती है। किसमें? जलमई में।
तो बताया भक्तिमार्ग में ये महाभारत पढ़ते रहते हैं। और तुम अभी इसको गहराई से क्या राज़ है वो समझते रहते हो। अरे, ये सब झूठ है। क्या सब? जितने भी ये वेद-शास्त्र, ग्रंथ आदि बनाए हैं, चाहे भारत के हैं, चाहे विदेशियों के हैं; विदेशियों के भी ग्रंथ, शास्त्र हैं कि नहीं? क्रिश्चियन्स की बाइबल कहेंगे ना? मानते हैं कि नहीं सबसे बड़ा उसे? हाँ। और वो मुसलमानों की? कुरान है। और बौद्धियों की? धम्मपद है। है कि नहीं? सिक्खों का? गुरु ग्रंथ साहब है। वो समझते हैं ये भगवान ने बोला। भगवान का बोला हुआ ये शास्त्र है। सब ऐसे ही समझते हैं। अरे, बाप कहते हैं ये सब झूठे हैं। क्या? भगवान जिस तन में आकरके, हँ, वो सत्य सनातन ऊँच ते ऊँच अल्लाह अव्वलदीन की स्थापना करता है, हँ, वो उसका तो शास्त्र कोई बना ही नहीं सकता। असली शास्त्र बनेगा ही नहीं। मनुष्य भल बनाते हैं। व्यास ने बनाया। क्या? श्रीमदभगवद्गीता। तो उसमें भी झूठ होगा कि नहीं होगा? हाँ। बताय दिया – विभुम्; क्या? सर्वव्यापी है। अरे? सब झूठ।
दुखधाम में जो थे, हँ, तो वो सुखधाम में भी जाएंगे जरूर। कब? कब जाएंगे? हँ? किसी को पता है? अरे, जाना तो जरूर है। क्यों? क्योंकि इस दुनिया की हिस्ट्री रिपीट होती रहती है। कहते हैं ना हिस्ट्री रिपीट्स इट्सेल्फ। तो अपने आप रिपीट होती है। ऐसे नहीं कोई कुम्हार है, तो चाक चलाता है, डंडा लगाता है, तब वो घूमता है। नहीं। ये बेहद का सृष्टि रूपी ड्रामा है, सृष्टि चक्र है, वो लगातार आटोमेटिक। हाँ, निमित्त मात्र कोई साकार में बनता है। क्या? कुम्हार। कुम्हारे माने? प्रजापति। अरे, आज की दुनिया में जो कुम्हार हैं बर्तन बनाने, मिट्टी के बर्तन बनाते हैं ना? हाँ। तो वो अपना टाइटल रखते हैं। क्या? प्रजापति। तो क्या प्रजापति हैं? हैं। कोई हुआ होगा तो उसकी यादगार है जो बनाते रहते हैं। तो बताया दुखधाम में जो ये वो सभी सुखधाम में जरूर जाएंगे क्योंकि ये सृष्टि चक्र ज्यों का त्यों, क्या, फिरता रहता है। ओमशान्ति। (समाप्त)
So, now it is in the intellect of you children, that too numberwise. Hm? The accurate number of actors, suppose there are 5 crore, hm, 555 crores, hm, so, 5555, it is like this, isn’t it? They are that only, aren’t they? What are they? Are they human beings or do they have animal-like intellect? Arey, those whose mind works a little, hm, the mind and intellect should be a little active, they should be able to think and churn, so, they will be called human beings. So, what’s their number? 500-550 crores are indeed human beings who think and churn. The rest above them, those who come later on are like animals, like flea and mosquitoes. Yes. So, among those human beings it cannot be said that there will be one less or one more. Arey, they are as many as they should be. Arey, the part that each one has got, they cannot get disturbed even now. As it is, just as they had played a part Kalpa ago, they will keep on playing the same part. Yes, it cannot be said that their part has become old. Hm? It has torn, it has been destroyed. Does it get destroyed? Arey, the record that is filled in the soul, the same part keeps on repeating every Kalpa.
So, these limited dramas become old. But this unlimited drama never becomes old. Yes. When those limited dramas become old, then later they are made anew. Hm? What? They go on making it new, don’t they? Yes. So, this old one, it is not as if something has happened that they make it. No. This is a pre-destined drama. Unlimited or limited? Hm? Has anyone made the unlimited drama? It has not been made. Someone may say that yes, rehearsal takes place, shooting takes place, so, we souls perform our shooting ourselves, don’t we? Hm? Okay, there will be God Vyas. It is said on the path of Bhakti – God Vyas. So, he, hm, he acts the most in the world, doesn’t he? Yes. So, does he himself do or does anyone else do? Hm? He himself does. So, he makes his own drama, doesn’t he? Does he make? Or has it been already made Kalpa ago? What would you say? Yes, it is already made Kalpa ago. Does he also make?
So, this, this old, no such thing has happened that they make. No. They make these things and tell. What? What did Vyas do? Hm? He made up things and told. Hm? Who made? Whose example is given? The one who must have sat and made the most topics, his name is mentioned; Vyas prepared such big, fat books, Vedas, scriptures. Arey, this fiercest Mahabharata war. Arey, this fiercest Mahabharata war, bloodshed has been depicted. God goes on using the Sudarshan Chakra and goes on cutting the heads; such weapons have been depicted, weapons of fire (agneyastra) have been depicted. Hm? So, did such violent war take place? Has it taken place? No such war has taken place. [People say that] God sat and caused it. Arey, will God teach violence? Hm? Will He teach? No. The part that God plays is the biggest non-violent part of the world. When He Himself plays a part of non-violence, then will He teach violence to others? No.
Tenth page of the morning class dated 28.11.1967. All these are wrong topics, the Mahabharata war, the clash of deities and demons, the war between Ram and Ravan. Such fat books have been written, Ramayana has been penned! Hm? Now-a-days children crack jokes, don’t they? What? What is the joke that they crack? They make fun of the people who go to listen to the story of Ramayana. Arey brother, where are you going? Hm? Arey, whatever that you, you listen, the long story that you are going to listen, this is nothing. What is it? Arey, there was one Ram, one Ravan; he abducted his Sita. He killed him. Arey, a small thing happened between both of them; and Tulsi wrote a big novel. Arey, so, are all these wrong topics or true topics? Hm? Is there any such ten-headed Ravan? Hm? How will that poor fellow get birth? Hm? All these are false topics. And have you seen any such man who sleeps for six months? Hm? They have made Kumbhkarna.
Arey, look, these human beings, sages and saints have such intellect! Hm? Do they have a broad intellect or a vicious intellect? Hm? Most vicious intellect. Look, they have written such a big Mahabharata. How big? Hm? They have made such a big Mahabharata book that nobody can make such big one in the world. An entire hall gets filled up with the book, the Mahabharata book. Arey, people keep on reading Mahabharata on the path of Bhakti. Hm? And you now understand. What? They read such fat book, scripture; all these are false ones. Hm? Why? Arey, it has been written in that Gita, hasn’t it been that if someone gets Mansarovar (lake) to bathe, will he go to the pits [full of water] to bathe? Will he? No. Arey, so much dust comes and falls in the pits. Does the dust of body consciousness fall or not? Yes. And in the Mansarovar lake? There, it is located at such a height. How? The memorial Mansarovar lake, the memorial is there, isn’t it? It is a memorial of the living thing. There is a living soul, the Man Sarovar of knowledge. Yes. So, what is the specialty of the memorial of the living soul? Arey, is there any specialty or not? What is the specialty? Arey, its water appears like a mirror. Hm? The bottom is also visible. Hm? Such pure water. Hm? There is no trace of dust particles in it.
Look, who is this? Are there any actors or not? There is one such actor also on this world stage who develops a stone-like intellect, becomes a big stone when particles, numerous particles assimilate. What? Do you know what is the name given to that big stone? Hm? Arey? What is the name assigned? Hm? Yes, they say that there are numerous mountains in the world made up of stone. Among them the mountain of stone considered to be the biggest one, hm, which is a combination of many mountains, what is it called? Himalaya. And is there any highest peak even among the Himalayas? Yes, whose memorial is it? Hm? That is a memorial; what? There must have been a practical memorial at some point in time? What memorial? That the entire world may drown, but that peak? That peak doesn’t sink. In what? In water.
So, it was told that people keep on reading this Mahabharata on the path of Bhakti. And you now keep on understanding deeply as to what is this secret. Arey, all this is false. What all? All these Vedas, scriptures, books, etc. that have been prepared, be it those from India, be it those of the foreigners; do the foreigners also have books, scriptures or not? Bible will be said to be of the Christians, will it not be? Do they believe it to be the highest one or not? Yes. And that of the Muslims? There is Koran. And of the Buddhists? There is Dhammapad. Is it there or not? Of the Sikhs? There is Guru Granth Sahib. They think that God said this. This scripture is spoken by God. All think like this only. Arey, the Father says – All these are false. What? The body in which God comes and establishes that true ancient highest of all Allah Avvaldeen (highest religion), nobody can prepare its scripture at all. The true scripture will not be made at all. Although human beings make. Vyas made. What? Shrimad Bhagwadgita. So, will there be lies in it as well or not? Yes. It was told – Vibhum; what? He is omnipresent. Arey? Everything is false.
Those who were in the abode of sorrows will definitely go to the abode of happiness as well. When? When will they go? Hm? Does anyone know? Arey, you have to certainly go. Why? It is because the history of this world keeps on repeating. It is said, isn’t it that the history repeats itself. So, it keeps on repeating automatically. It is not as if there is a potter, he rotates the wheel, he hits it with a stick, and then it rotates. No. This is an unlimited world drama, world cycle; that continuously, automatic. Yes, someone becomes instrumental in corporeal form. What? Potter (kumhaar). What is meant by potter? Prajapati. Arey, the potters in today’s world who make utensils; they make clay utensils, don’t they? Yes. So, they have a title. What? Prajapati. So, are they Prajapati (lord of the subjects)? They are. There must have been someone whose memorial it is, which they keep on making. So, it was told that all these who are in the abode of sorrows will definitely go to the abode of happiness because this world cycle keeps on revolving as it is. Om Shanti. (End)
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- arjun
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शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2912, दिनांक 15.06.2019
VCD 2912, dated 15.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2912-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-16.55
Time- 00.01-16.55
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को दसवें पेज पर दूसरी, तीसरी लाइन में बात चल रही थी – कितना बड़ा महाभारत बैठ बनाया है भक्तिमार्ग में पढ़ते-पढ़ते। अभी तो तुम समझते हो कि ये सब झूठ है। दुखधाम में जो थे तो कब जाएंगे सुखधाम में? जाना तो जरूर है ना? तो बस ये समय आया है जो बाप बताते हैं। ऐसे नहीं द्वापर के अंत की बात है। कौनसा समय है? ये कलियुग के अंत का समय है, हँ, जो महाभारी महाभारत लड़ाई, खूनरेज़ी की लड़ाई दिखाई शास्त्रों में। तो देह के खून की बात है या बाप आकरके आत्मा का ज्ञान देते हैं? हँ? आत्मिक ज्ञान की बात है। आत्मा का भी खून होता है, संकल्पों का खून। क्योंकि बाप बताते हैं कि वो समय आ गया है। जबरदस्त संकल्पों का खून बहेगा। और जो करना चाहिए मामेकम् याद करो, मनमनाभव, वो नहीं हो पाएगा। अब होना तो है नंबरवार ज़रूर। अभी तुमको ये निश्चय होगा। नहीं तो दुनिया में ये बातें तो और कोई सुनाता भी नहीं है। कभी नहीं सुनाता है।
हाँ, कपड़ा-वपड़ा छोड़ना है। माने कौनसा कपड़ा छोड़ना है? ये शरीर रूपी वस्त्र छोड़ना है। और एकदम छोड़ने का है। ऐसे नहीं एक बार छोड़ दिया फिर दूसरी बार ले लिया। एकदम छोड़के जाना है। कहां छोड़ के जाना है? हँ? अपनी आत्मा में? सिर में? मन-बुद्धि में? अरे, इसी सृष्टि रूपी रंगमंच पर ये बेहद का ड्रामा चल रहा है ना? छोड़ करके जाना है। और फिर कहां जाना है? आत्मलोक में जाना है। आत्माओं के घर जाना है ना? हँ? इस लौकिक दुनिया में भी, हँ, आत्माएं तो सुप्रीम सोल बाप के बच्चे हैं। लौकिक दुनिया में तो आत्मा के साथ देह का भी जन्म होता है ना? हँ? तो बच्चा बाहर आता है? कहां से आता है? घर से आता है या कहीं बाहर से आता है? कहां से आता है? हँ? लिखो। कौनसा घर? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) परमधाम घर? हँ? अरे, लौकिक दुनिया में जो बच्चा आता है कहां से आता है? कौनसे घर से आता है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, तो किसका गर्भ? माता का गर्भ? हाँ। मां का गर्भ जो है वो बच्चे का घर हो गया ना? अरे? जो दैहिक गर्भ भी है वो कहां से आता है? घर से ही आता है ना? तो घर क्या हुआ? मां। ब्रह्मा। कहते हैं ना? और वो है परमब्रह्म। तो परमब्रह्म तुम्हारा घर हो गया। हँ? फिर वहां जाएंगे तो वहीं बैठ जाएंगे क्या? नहीं। घर जाकरके फिर आकरके ये कपड़ा पहनना है। कौनसा कपड़ा? हँ? ये कपड़ा ये जो लक्ष्मी-नारायण के लिए दिखाया गया है, हाँ, ये कपड़ा; कपड़ा माने? शरीर रूपी वस्त्र पहनना है।
तो ज़रूर ये होना चाहिए ना पास में। हँ? क्या होना चाहिए? हँ? पास में क्या होना चाहिए? अरे, ये मां का चोला जहां से हम जन्म लेते हैं, हाँ, तो पहचान तो चाहिए ना? कौन हुआ? हाँ, कहेंगे परमब्रह्म। अब वो ऋषि-मुनि, सन्यासी तो परमब्रह्म को भगवान समझते हैं। वो तो है धाम, घर है। तो ये होना चाहिए। कहाँ? इस दुनिया में पहले से होना चाहिए या नहीं होगा? हँ? हाँ, होना चाहिए। घड़ी-घड़ी देखने से हम अभी ये चोला पुराना छोड़ देते हैं। ये तमोप्रधान, दुखदायी चोला छोड़करके फिर हम सतयुग में जाकरके ये बनते हैं। देवता बनते हैं। दिव्य चोला धारण करेंगे। तुम कहते हो ना मुख से कि हम नर से नारायण बनते हैं। हँ? ब्रह्मा बाबा क्या कहते हैं? क्या बनेंगे? हम नर से प्रिंस बनते हैं। और तुम क्या कहते हो? हम नर से डायरेक्ट, हां, नारायण बनते हैं। माना छोटा बच्चा हमें नहीं बनना है। हम क्या बनेंगे? नर से डायरेक्ट नारायण बनेंगे। इसी जनम में बनेंगे, हँ, इसी दुनिया में हमें, नरक की दुनिया में स्वरग की बादशाही मिलेगी या नहीं मिलेगी? मिलेगी। तो क्यों नहीं ये खुशी आनी चाहिए तुम बच्चों को? हँ? तभी कहते हैं, हँ, इसका चित्र पॉकेट में रखो। किसका? हँ? किसका चित्र पॉकेट में रखो? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, परमब्रह्म का चित्र पॉकेट में रखो। हँ? समझा? हँ? हाँ। (किसी ने कुछ कहा।) बुद्धि रूपी पॉकेट में रखो, वो तो ठीक है। लेकिन वो जो परमब्रह्म का चित्र पॉकेट में रखेंगे वो स्त्री चोला रूपिणी होगा या पुरुष होगा? कान खुजलाय रहा। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, वो कम्बाइन्ड है। क्या है? अर्धनारीश्वर है कि नहीं? हाँ। वो प्रकृति है, देह है, वो स्त्री रूपिणी है। और आत्मा पुरुष है। दोनों का कम्बिनेशन है ना? हाँ।
तो इसका चित्र पॉकेट में रखो। हँ। इसी लाइफ में, ऐसे नहीं अगले जनम में। इसी लाइफ में बाप नारायण का चित्र पॉकेट में रखते थे ना? हाँ। क्योंकि राय भी पूरी देते हैं। ऐसे नहीं अधूरी बात बताते हैं। अब चित्र तो ढ़ेर बनाय दिया था। किसका? नारायण का। हँ? शूटिंग पीरियड में भी नारायण के चित्र ढ़ेर बनाय दिये ब्राह्मणों की दुनिया में, जिन ब्राह्मणों के द्वारा शूटिंग होती है कि एक ही फीचर होता है? अलग-अलग फीचर्स वाले नारायण के ढ़ेर चित्र बनाय दिये। कोई कहां, कोई कहां। कोई तकिया के नीचे, कोई कहां के नीचे। और रोज घड़ी-घड़ी देखते थे। कौन? कौन देखते थे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, ब्रह्मा बाबा, हाँ, बारह गुरु किये थे ना? तो बारह गुरुओं के चित्र तो देखेंगे ना? और शूटिंग में भी तो शूटिंग तो करेंगे ना? हाँ। वो तो तकिया के नीचे या कहां भी रोज़ घड़ी-घड़ी देखते थे। तो भक्तिमार्ग भी वो ठीक होवे ना कुछ? अनेक प्रकार के नारायण के चित्र रखे। वो ठीक था या व्यभिचारी था? भक्ति व्यभिचारी थी या अव्यभिचारी थी? क्या कहेंगे? हँ? व्यभिचारी भक्ति थी। ठीक तो नहीं थी।
इसी जनम में फिर देखो तभी बाबा कहते हैं नहीं, अरे, ये लक्ष्मी-नारायण का चित्र पॉकेट में रखो। कौनसा? जो नर से डायरेक्ट नारायण बनते हैं। अंतर क्या है उन नारायणों में जो अनेक फीचर्स वाले नारायण बनाए हैं और इस नारायण में जो नर से डायरेक्ट नारायण बनता है क्या अंतर है? कि कुछ अंतर है कि नहीं? क्या अंतर है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, इसी शरीर को। वो तो ठीक है। अंतर क्या है? शरीर तो उनको भी होगा। शरीर उनको भी होगा। जो भी नारायण होंगे जिनके भी चित्र भक्तिमार्ग में बनाते थे या शूटिंग पीरियड में भी ब्राह्मणों की दुनिया में ढ़ेर के ढ़ेर फीचर्स वाले नारायणों के चित्र बनाए हैं, तो वो नारायण के जो चित्र बनाए वो उनमें अंतर (किसी ने कुछ कहा।) कर्मातीत। अब कैसे पता चलेगा कि ये कर्मातीत चित्र है और ये कर्म से अतीत चित्र नहीं है? कैसे पता चलेगा? अंतर क्या है? (किसी ने कुछ कहा।) देह भान? देहभान दिखाई पड़ता है? देह उनको भी है, तो देह उनको भी है। हँ? क्या अंतर दिखाई पड़ेगा? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, अंतर जरूर होगा। हाँ, 16 कला। वो कलाएं तो बुद्धि के अंदर आत्मा में दिखाई पड़ती हैं। कैसे पता चलेगा ये 16 कला, ये पौने चौदह कला, ये 14 कला? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) एक दूसरे को देखते भी नहीं हैं। क्या? देह को देखते भी नहीं हैं। प्रत्यक्ष देखो वा दिखाई ना? कि देखेंगे? लगावपूर्वक देखेंगे? हँ? अरे, जिसे देखा जाता है वो फिर याद आता है कि नहीं? हाँ, मन-बुद्धि रूपी आत्मा से देखेंगे? हाँ, उससे भी नहीं देखेंगे।
देखो, ये चित्र पॉकेट में रखो जो आपस में एक दूसरे की देह को देखते भी नहीं हैं। ये, ये जो बाबा ने दिया है। क्या? वो जो ब्राह्मणों की दुनिया में शूटिंग पीरियड में अनेक प्रकार के फीचर्स वाले नारायण के चित्र बनाय के रखे हैं वो बाबा ने नहीं दिये। साक्षात्कार से बाबा ने दिये? नहीं। बाबा ने नहीं। अरे? वो चित्र बाबा ने दिये जो ब्राह्मणों की दुनिया में अनेक प्रकार के बनाय के रखे हैं? नहीं। तो ये जो चित्र बाबा ने साक्षात्कार से दिया, सीकिलधे, वो भी बताय देते हैं। क्या? हँ? सिक-सिक से मिलते हैं। किनसे? जो बहुत पुराने समय के बाद मिलते हैं। खोए हुए थे। 5000 वर्ष के बाद। अभी कोई भी कह नहीं सकेंगे 5000 वर्ष के बाद फिर मिले हो? हँ? कोई पूछेंगे? हँ? न कोई कह सकेंगे। तो वो तो रिपीटिशन 5000 वर्ष की तो मानते ही नहीं कोई दुनिया में। और तुम तो? हँ? तुम तो मानते हो ना? क्या? ये सारी दुनिया का चक्र 5000 साल का है। हँ? सृष्टि के आदि काल में जब नई सृष्टि की स्थापना हुई थी; कौनसी सृष्टि? अतीन्द्रिय सुख वाली सृष्टि। हँ? कर्मातीत स्टेज वाली सृष्टि। तो वो 5000 वर्ष पहले की बात है। हँ? उस बात को सब भूले हुए हैं। और तुम उसको मानते हो। अच्छा, जो माने सो माने। और न माने अभी सो न माने सो भले न माने। जो मानना होए सो जाकरके माने। बाकि न मानने वाला तो है ही भक्तिमार्ग। हँ? न मानने वाला क्या हुआ? भक्तिमार्ग। (क्रमशः)
A Morning class dated 28.11.1967 was being narrated. On Tuesday, the topic being discussed in the second, third line on the tenth page was – What a huge Mahabharata he has made while sitting and studying on the path of Bhakti. Now you understand that all this is a lie. Those who were in the abode of sorrow, when will they go to the abode of happiness? You definitely have to go, don't you? So, the time has just come which the Father tells. It is not as if it is about the end of the Copper Age. What time is it? This is the time of the end of the Iron Age, hm, the great Mahabharata war, the bloody war shown in the scriptures. So, is it about the blood of the body or does the Father come and give the knowledge of the soul? Hm? It is a matter of spiritual knowledge. There is also the blood of the soul, the blood of thoughts. Because the Father tells that that time has come. The tremendous blood of thoughts will flow. And what you should do, that is remembering Me alone, Manmanabhav, that will not be possible. Now it definitely has to happen numberwise. You will now have this faith. Otherwise, no one else in the world even narrates these things. He never narrates.
Yes, you have to give up your clothes. It means which cloth is to be discarded? You have to leave this body like clothes. And you have to leave completely. It is not that you left it once and then took it a second time. Have to leave completely. Where do you have to leave and go? Hm? in your soul? in the head? In the mind-intellect? Arey, this unlimited drama is taking place on this world stage, is not it? [You] Have to leave and go. And then where do you have to go? You have to go to the Soul World. You want to go to the soul's home, don't you? Hm? Even in this lokik world, hm, souls are the children of the Supreme Soul Father. In the lokik world, along with the soul, the body is also born, is not it? Hm? So the child comes out? Where does it come from? Does it come from home or does it come from outside? Where does it come from? Hm? Write. which house? Hm? (Someone said something.) Supreme Abode home? Hm? Arey, where does the child who comes to the lokik world come from? Which house does it come from? Hm? (Someone said something.) Yes, then whose womb? Mother's womb? Yes. The mother's womb happens to be the child's home, is not it? Arey? Where does the physical womb come from? It comes from home only, doesn't it? So what happens to be the home? Mother. Brahma. You say don’t you? And that is Parambrahm. So, Parambrahm happens to be your home. Hm? Then if we go there, will we sit there? No. You have to go home, then come and wear this cloth. Which cloth? Hm? This cloth which is shown for Lakshmi-Narayan, yes, this cloth; What is meant by cloth? Have to wear body shaped clothes.
So this must definitely be nearby. Hm? What should be [nearby]? Hm? What should be nearby? Arey, this mother's body from where we take birth, yes, then recognition is needed, is not it? Who happened? Yes, we will say Parambrahm. Well those sages, saints and sanyasis consider Parambrahm to be God. That is the abode, the home. So it should be there. Where? Should it already exist in this world or not? Hm? Yes, it should be there. By watching it again and again we leave this old dress behind. Leaving this tamopradhan, sorrowful body, we become like this when we go to the Golden Age. We become deities. We will wear divine attire. You say with your mouth that we become Narayan from man (nar). Hm? What does Brahma Baba say? What will you become? We become princes from men. And what do you say? We become Narayan, yes, directly from nar. I mean, we don't want to be a small child. What will we become? We will become Narayan directly from nar. Will we become in this birth, hm, in this world, will we get the kingdom of heaven in the world of hell or not? We will get. So why shouldn't you children feel this happiness? Hm? Only then does He say, yes, keep his picture in your pocket. Whose? Hm? Whose picture should you keep in your pocket? Hm? (Someone said something.) Yes, keep the picture of Parambrahm in your pocket. Hm? Did you understand? Hm? Yes. (Someone said something.) Keep it in the pocket like intellect; that is fine. But the one who will keep the picture of Parambrahm in his pocket, will it be a female or a male? He is pricking his ear. Hm? (Someone said something.) Yes, he is combined. What is he? Is it Ardhanarishwar or not? Yes. She is nature, she is body, she is in the form of a woman. And the soul is male. It's a combination of both, is not it? Yes.
So keep this picture in your pocket. Yes. In this life itself; it’s not as if in the next birth. In this birth, Father used to keep the picture of Narayan in his pocket, didn’t he? Yes. Because He also gives complete opinion. It is not as if He narrates incomplete things. Now a lot of pictures had been made. Whose? Narayan's. Hm? Even during the shooting period, a lot of pictures of Narayan were made in the world of Brahmins, by the Brahmins who do the shooting. Or is there only one feature? Many pictures of Narayan with different features were made. Someone somewhere, someone somewhere. Some under the pillow, some under something else. And he used to watch every day. Who? Who used to see? Hm?(Someone said something.) Yes, Brahma Baba, yes, he had twelve gurus, didn’t he? So he will see the pictures of the twelve Gurus, will he not? And even during shooting, you will do shooting, right? Yes. He used to look under the pillow or anywhere every day. So the path of devotion should also be fine to some extent or not? He kept pictures of many types of Narayan. Was he right or was it adulterous? Was Bhakti adulterous or unadulterated? What will you say? Hm? It was adulterated devotion. It was not right.
Look then in this birth, that's why Baba says, no, arey, keep this picture of Lakshmi-Narayan in your pocket. Which one? Who becomes Narayan directly from nar. What is the difference between those Narayans, those who have been made into Narayans with many features and this Narayan who becomes Narayan directly from nar? Is there any difference or not? What is the difference? (Someone said something.) Yes, to this body. That is fine. What's the difference? He will also have a body. He will also have a body. Whatever Narayan whose pictures used to be drawn on the path of Bhakti or even during the shooting period, the pictures of Narayans with many features which have been drawn in the world of Brahmins, the pictures of Narayan that were made, then the difference between them (Someone said something.) Karmaateet. Now how will it be known that this is a karmateet picture and it is not a picture that is beyond karma? How would you know? What's the difference? (Someone said something.) Body consciousness? Is body consciousness visible? He also has a body, and he too has a body. Hm? What difference will be visible? Hm? (Someone said something.) Yes, there will definitely be a difference. Yes, 16 celestial degrees. Those celestial degrees are visible within the intellect, in the soul. How will we know this one has 16 celestial degrees, this one has a quarter less than fourteen celestial, this one has 14 celestial degrees? Hm? (Someone said something.) They don't even look at each other. What? They don't even look at the body. See it directly or show it? Will you see? Will you watch it with affection? Hm? Arey, what is seen is then remembered again or not? Yes, will they see through the soul in the form of mind and intellect? Yes, they won't see even through that.
Look, keep this picture of the ones that don't even see each other's body in your pocket. This, this which Baba has given. What? Those pictures of Narayan with many types of features that were made in the world of Brahmins during the shooting period, were not given by Baba. Did Baba give through visions? No. Baba did not. Arey? Did Baba give those many types of pictures which are made and kept in the world of Brahmins? No. So, this picture that Baba has given through visions, O Seekiladhey (dearest one), He narrates that as well. What? Hm? He meets with love (sik). With whom? The ones who meet after a long time. They were lost. After 5000 years. Now no one will be able to say that have we met again after 5000 years? Hm? Will anyone ask? Hm? Neither will anyone be able to say. So, no one in the world believes in that repetition of 5000 years. And you? Hm? You believe it, don't you? What? The cycle of this whole world is of 5000 years. Hm? In the beginning of the world, when the new world was established; Which world? A world of supersensory joy. Hm? The world with karmateet stage. So that is a topic of 5000 years ago. Hm? Everyone has forgotten that thing. And you believe in it. Well, whoever wants to believe can believe. And if he doesn't accept now, even if he doesn't accept, he may not accept. Whatever you want to believe, go ahead and believe it. The one who does not believe is the path of devotion. Hm? What is the one who does not believe? The path of devotion. (Continued)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2912, दिनांक 15.06.2019
VCD 2912, dated 15.06.2019
प्रातः क्लास 28.11.1967
Morning class dated 28.11.1967
VCD-2912-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-16.55
Time- 00.01-16.55
प्रातः क्लास चल रहा था – 28.11.1967. मंगलवार को दसवें पेज पर दूसरी, तीसरी लाइन में बात चल रही थी – कितना बड़ा महाभारत बैठ बनाया है भक्तिमार्ग में पढ़ते-पढ़ते। अभी तो तुम समझते हो कि ये सब झूठ है। दुखधाम में जो थे तो कब जाएंगे सुखधाम में? जाना तो जरूर है ना? तो बस ये समय आया है जो बाप बताते हैं। ऐसे नहीं द्वापर के अंत की बात है। कौनसा समय है? ये कलियुग के अंत का समय है, हँ, जो महाभारी महाभारत लड़ाई, खूनरेज़ी की लड़ाई दिखाई शास्त्रों में। तो देह के खून की बात है या बाप आकरके आत्मा का ज्ञान देते हैं? हँ? आत्मिक ज्ञान की बात है। आत्मा का भी खून होता है, संकल्पों का खून। क्योंकि बाप बताते हैं कि वो समय आ गया है। जबरदस्त संकल्पों का खून बहेगा। और जो करना चाहिए मामेकम् याद करो, मनमनाभव, वो नहीं हो पाएगा। अब होना तो है नंबरवार ज़रूर। अभी तुमको ये निश्चय होगा। नहीं तो दुनिया में ये बातें तो और कोई सुनाता भी नहीं है। कभी नहीं सुनाता है।
हाँ, कपड़ा-वपड़ा छोड़ना है। माने कौनसा कपड़ा छोड़ना है? ये शरीर रूपी वस्त्र छोड़ना है। और एकदम छोड़ने का है। ऐसे नहीं एक बार छोड़ दिया फिर दूसरी बार ले लिया। एकदम छोड़के जाना है। कहां छोड़ के जाना है? हँ? अपनी आत्मा में? सिर में? मन-बुद्धि में? अरे, इसी सृष्टि रूपी रंगमंच पर ये बेहद का ड्रामा चल रहा है ना? छोड़ करके जाना है। और फिर कहां जाना है? आत्मलोक में जाना है। आत्माओं के घर जाना है ना? हँ? इस लौकिक दुनिया में भी, हँ, आत्माएं तो सुप्रीम सोल बाप के बच्चे हैं। लौकिक दुनिया में तो आत्मा के साथ देह का भी जन्म होता है ना? हँ? तो बच्चा बाहर आता है? कहां से आता है? घर से आता है या कहीं बाहर से आता है? कहां से आता है? हँ? लिखो। कौनसा घर? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) परमधाम घर? हँ? अरे, लौकिक दुनिया में जो बच्चा आता है कहां से आता है? कौनसे घर से आता है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, तो किसका गर्भ? माता का गर्भ? हाँ। मां का गर्भ जो है वो बच्चे का घर हो गया ना? अरे? जो दैहिक गर्भ भी है वो कहां से आता है? घर से ही आता है ना? तो घर क्या हुआ? मां। ब्रह्मा। कहते हैं ना? और वो है परमब्रह्म। तो परमब्रह्म तुम्हारा घर हो गया। हँ? फिर वहां जाएंगे तो वहीं बैठ जाएंगे क्या? नहीं। घर जाकरके फिर आकरके ये कपड़ा पहनना है। कौनसा कपड़ा? हँ? ये कपड़ा ये जो लक्ष्मी-नारायण के लिए दिखाया गया है, हाँ, ये कपड़ा; कपड़ा माने? शरीर रूपी वस्त्र पहनना है।
तो ज़रूर ये होना चाहिए ना पास में। हँ? क्या होना चाहिए? हँ? पास में क्या होना चाहिए? अरे, ये मां का चोला जहां से हम जन्म लेते हैं, हाँ, तो पहचान तो चाहिए ना? कौन हुआ? हाँ, कहेंगे परमब्रह्म। अब वो ऋषि-मुनि, सन्यासी तो परमब्रह्म को भगवान समझते हैं। वो तो है धाम, घर है। तो ये होना चाहिए। कहाँ? इस दुनिया में पहले से होना चाहिए या नहीं होगा? हँ? हाँ, होना चाहिए। घड़ी-घड़ी देखने से हम अभी ये चोला पुराना छोड़ देते हैं। ये तमोप्रधान, दुखदायी चोला छोड़करके फिर हम सतयुग में जाकरके ये बनते हैं। देवता बनते हैं। दिव्य चोला धारण करेंगे। तुम कहते हो ना मुख से कि हम नर से नारायण बनते हैं। हँ? ब्रह्मा बाबा क्या कहते हैं? क्या बनेंगे? हम नर से प्रिंस बनते हैं। और तुम क्या कहते हो? हम नर से डायरेक्ट, हां, नारायण बनते हैं। माना छोटा बच्चा हमें नहीं बनना है। हम क्या बनेंगे? नर से डायरेक्ट नारायण बनेंगे। इसी जनम में बनेंगे, हँ, इसी दुनिया में हमें, नरक की दुनिया में स्वरग की बादशाही मिलेगी या नहीं मिलेगी? मिलेगी। तो क्यों नहीं ये खुशी आनी चाहिए तुम बच्चों को? हँ? तभी कहते हैं, हँ, इसका चित्र पॉकेट में रखो। किसका? हँ? किसका चित्र पॉकेट में रखो? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, परमब्रह्म का चित्र पॉकेट में रखो। हँ? समझा? हँ? हाँ। (किसी ने कुछ कहा।) बुद्धि रूपी पॉकेट में रखो, वो तो ठीक है। लेकिन वो जो परमब्रह्म का चित्र पॉकेट में रखेंगे वो स्त्री चोला रूपिणी होगा या पुरुष होगा? कान खुजलाय रहा। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, वो कम्बाइन्ड है। क्या है? अर्धनारीश्वर है कि नहीं? हाँ। वो प्रकृति है, देह है, वो स्त्री रूपिणी है। और आत्मा पुरुष है। दोनों का कम्बिनेशन है ना? हाँ।
तो इसका चित्र पॉकेट में रखो। हँ। इसी लाइफ में, ऐसे नहीं अगले जनम में। इसी लाइफ में बाप नारायण का चित्र पॉकेट में रखते थे ना? हाँ। क्योंकि राय भी पूरी देते हैं। ऐसे नहीं अधूरी बात बताते हैं। अब चित्र तो ढ़ेर बनाय दिया था। किसका? नारायण का। हँ? शूटिंग पीरियड में भी नारायण के चित्र ढ़ेर बनाय दिये ब्राह्मणों की दुनिया में, जिन ब्राह्मणों के द्वारा शूटिंग होती है कि एक ही फीचर होता है? अलग-अलग फीचर्स वाले नारायण के ढ़ेर चित्र बनाय दिये। कोई कहां, कोई कहां। कोई तकिया के नीचे, कोई कहां के नीचे। और रोज घड़ी-घड़ी देखते थे। कौन? कौन देखते थे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, ब्रह्मा बाबा, हाँ, बारह गुरु किये थे ना? तो बारह गुरुओं के चित्र तो देखेंगे ना? और शूटिंग में भी तो शूटिंग तो करेंगे ना? हाँ। वो तो तकिया के नीचे या कहां भी रोज़ घड़ी-घड़ी देखते थे। तो भक्तिमार्ग भी वो ठीक होवे ना कुछ? अनेक प्रकार के नारायण के चित्र रखे। वो ठीक था या व्यभिचारी था? भक्ति व्यभिचारी थी या अव्यभिचारी थी? क्या कहेंगे? हँ? व्यभिचारी भक्ति थी। ठीक तो नहीं थी।
इसी जनम में फिर देखो तभी बाबा कहते हैं नहीं, अरे, ये लक्ष्मी-नारायण का चित्र पॉकेट में रखो। कौनसा? जो नर से डायरेक्ट नारायण बनते हैं। अंतर क्या है उन नारायणों में जो अनेक फीचर्स वाले नारायण बनाए हैं और इस नारायण में जो नर से डायरेक्ट नारायण बनता है क्या अंतर है? कि कुछ अंतर है कि नहीं? क्या अंतर है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, इसी शरीर को। वो तो ठीक है। अंतर क्या है? शरीर तो उनको भी होगा। शरीर उनको भी होगा। जो भी नारायण होंगे जिनके भी चित्र भक्तिमार्ग में बनाते थे या शूटिंग पीरियड में भी ब्राह्मणों की दुनिया में ढ़ेर के ढ़ेर फीचर्स वाले नारायणों के चित्र बनाए हैं, तो वो नारायण के जो चित्र बनाए वो उनमें अंतर (किसी ने कुछ कहा।) कर्मातीत। अब कैसे पता चलेगा कि ये कर्मातीत चित्र है और ये कर्म से अतीत चित्र नहीं है? कैसे पता चलेगा? अंतर क्या है? (किसी ने कुछ कहा।) देह भान? देहभान दिखाई पड़ता है? देह उनको भी है, तो देह उनको भी है। हँ? क्या अंतर दिखाई पड़ेगा? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, अंतर जरूर होगा। हाँ, 16 कला। वो कलाएं तो बुद्धि के अंदर आत्मा में दिखाई पड़ती हैं। कैसे पता चलेगा ये 16 कला, ये पौने चौदह कला, ये 14 कला? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) एक दूसरे को देखते भी नहीं हैं। क्या? देह को देखते भी नहीं हैं। प्रत्यक्ष देखो वा दिखाई ना? कि देखेंगे? लगावपूर्वक देखेंगे? हँ? अरे, जिसे देखा जाता है वो फिर याद आता है कि नहीं? हाँ, मन-बुद्धि रूपी आत्मा से देखेंगे? हाँ, उससे भी नहीं देखेंगे।
देखो, ये चित्र पॉकेट में रखो जो आपस में एक दूसरे की देह को देखते भी नहीं हैं। ये, ये जो बाबा ने दिया है। क्या? वो जो ब्राह्मणों की दुनिया में शूटिंग पीरियड में अनेक प्रकार के फीचर्स वाले नारायण के चित्र बनाय के रखे हैं वो बाबा ने नहीं दिये। साक्षात्कार से बाबा ने दिये? नहीं। बाबा ने नहीं। अरे? वो चित्र बाबा ने दिये जो ब्राह्मणों की दुनिया में अनेक प्रकार के बनाय के रखे हैं? नहीं। तो ये जो चित्र बाबा ने साक्षात्कार से दिया, सीकिलधे, वो भी बताय देते हैं। क्या? हँ? सिक-सिक से मिलते हैं। किनसे? जो बहुत पुराने समय के बाद मिलते हैं। खोए हुए थे। 5000 वर्ष के बाद। अभी कोई भी कह नहीं सकेंगे 5000 वर्ष के बाद फिर मिले हो? हँ? कोई पूछेंगे? हँ? न कोई कह सकेंगे। तो वो तो रिपीटिशन 5000 वर्ष की तो मानते ही नहीं कोई दुनिया में। और तुम तो? हँ? तुम तो मानते हो ना? क्या? ये सारी दुनिया का चक्र 5000 साल का है। हँ? सृष्टि के आदि काल में जब नई सृष्टि की स्थापना हुई थी; कौनसी सृष्टि? अतीन्द्रिय सुख वाली सृष्टि। हँ? कर्मातीत स्टेज वाली सृष्टि। तो वो 5000 वर्ष पहले की बात है। हँ? उस बात को सब भूले हुए हैं। और तुम उसको मानते हो। अच्छा, जो माने सो माने। और न माने अभी सो न माने सो भले न माने। जो मानना होए सो जाकरके माने। बाकि न मानने वाला तो है ही भक्तिमार्ग। हँ? न मानने वाला क्या हुआ? भक्तिमार्ग। (क्रमशः)
A Morning class dated 28.11.1967 was being narrated. On Tuesday, the topic being discussed in the second, third line on the tenth page was – What a huge Mahabharata he has made while sitting and studying on the path of Bhakti. Now you understand that all this is a lie. Those who were in the abode of sorrow, when will they go to the abode of happiness? You definitely have to go, don't you? So, the time has just come which the Father tells. It is not as if it is about the end of the Copper Age. What time is it? This is the time of the end of the Iron Age, hm, the great Mahabharata war, the bloody war shown in the scriptures. So, is it about the blood of the body or does the Father come and give the knowledge of the soul? Hm? It is a matter of spiritual knowledge. There is also the blood of the soul, the blood of thoughts. Because the Father tells that that time has come. The tremendous blood of thoughts will flow. And what you should do, that is remembering Me alone, Manmanabhav, that will not be possible. Now it definitely has to happen numberwise. You will now have this faith. Otherwise, no one else in the world even narrates these things. He never narrates.
Yes, you have to give up your clothes. It means which cloth is to be discarded? You have to leave this body like clothes. And you have to leave completely. It is not that you left it once and then took it a second time. Have to leave completely. Where do you have to leave and go? Hm? in your soul? in the head? In the mind-intellect? Arey, this unlimited drama is taking place on this world stage, is not it? [You] Have to leave and go. And then where do you have to go? You have to go to the Soul World. You want to go to the soul's home, don't you? Hm? Even in this lokik world, hm, souls are the children of the Supreme Soul Father. In the lokik world, along with the soul, the body is also born, is not it? Hm? So the child comes out? Where does it come from? Does it come from home or does it come from outside? Where does it come from? Hm? Write. which house? Hm? (Someone said something.) Supreme Abode home? Hm? Arey, where does the child who comes to the lokik world come from? Which house does it come from? Hm? (Someone said something.) Yes, then whose womb? Mother's womb? Yes. The mother's womb happens to be the child's home, is not it? Arey? Where does the physical womb come from? It comes from home only, doesn't it? So what happens to be the home? Mother. Brahma. You say don’t you? And that is Parambrahm. So, Parambrahm happens to be your home. Hm? Then if we go there, will we sit there? No. You have to go home, then come and wear this cloth. Which cloth? Hm? This cloth which is shown for Lakshmi-Narayan, yes, this cloth; What is meant by cloth? Have to wear body shaped clothes.
So this must definitely be nearby. Hm? What should be [nearby]? Hm? What should be nearby? Arey, this mother's body from where we take birth, yes, then recognition is needed, is not it? Who happened? Yes, we will say Parambrahm. Well those sages, saints and sanyasis consider Parambrahm to be God. That is the abode, the home. So it should be there. Where? Should it already exist in this world or not? Hm? Yes, it should be there. By watching it again and again we leave this old dress behind. Leaving this tamopradhan, sorrowful body, we become like this when we go to the Golden Age. We become deities. We will wear divine attire. You say with your mouth that we become Narayan from man (nar). Hm? What does Brahma Baba say? What will you become? We become princes from men. And what do you say? We become Narayan, yes, directly from nar. I mean, we don't want to be a small child. What will we become? We will become Narayan directly from nar. Will we become in this birth, hm, in this world, will we get the kingdom of heaven in the world of hell or not? We will get. So why shouldn't you children feel this happiness? Hm? Only then does He say, yes, keep his picture in your pocket. Whose? Hm? Whose picture should you keep in your pocket? Hm? (Someone said something.) Yes, keep the picture of Parambrahm in your pocket. Hm? Did you understand? Hm? Yes. (Someone said something.) Keep it in the pocket like intellect; that is fine. But the one who will keep the picture of Parambrahm in his pocket, will it be a female or a male? He is pricking his ear. Hm? (Someone said something.) Yes, he is combined. What is he? Is it Ardhanarishwar or not? Yes. She is nature, she is body, she is in the form of a woman. And the soul is male. It's a combination of both, is not it? Yes.
So keep this picture in your pocket. Yes. In this life itself; it’s not as if in the next birth. In this birth, Father used to keep the picture of Narayan in his pocket, didn’t he? Yes. Because He also gives complete opinion. It is not as if He narrates incomplete things. Now a lot of pictures had been made. Whose? Narayan's. Hm? Even during the shooting period, a lot of pictures of Narayan were made in the world of Brahmins, by the Brahmins who do the shooting. Or is there only one feature? Many pictures of Narayan with different features were made. Someone somewhere, someone somewhere. Some under the pillow, some under something else. And he used to watch every day. Who? Who used to see? Hm?(Someone said something.) Yes, Brahma Baba, yes, he had twelve gurus, didn’t he? So he will see the pictures of the twelve Gurus, will he not? And even during shooting, you will do shooting, right? Yes. He used to look under the pillow or anywhere every day. So the path of devotion should also be fine to some extent or not? He kept pictures of many types of Narayan. Was he right or was it adulterous? Was Bhakti adulterous or unadulterated? What will you say? Hm? It was adulterated devotion. It was not right.
Look then in this birth, that's why Baba says, no, arey, keep this picture of Lakshmi-Narayan in your pocket. Which one? Who becomes Narayan directly from nar. What is the difference between those Narayans, those who have been made into Narayans with many features and this Narayan who becomes Narayan directly from nar? Is there any difference or not? What is the difference? (Someone said something.) Yes, to this body. That is fine. What's the difference? He will also have a body. He will also have a body. Whatever Narayan whose pictures used to be drawn on the path of Bhakti or even during the shooting period, the pictures of Narayans with many features which have been drawn in the world of Brahmins, the pictures of Narayan that were made, then the difference between them (Someone said something.) Karmaateet. Now how will it be known that this is a karmateet picture and it is not a picture that is beyond karma? How would you know? What's the difference? (Someone said something.) Body consciousness? Is body consciousness visible? He also has a body, and he too has a body. Hm? What difference will be visible? Hm? (Someone said something.) Yes, there will definitely be a difference. Yes, 16 celestial degrees. Those celestial degrees are visible within the intellect, in the soul. How will we know this one has 16 celestial degrees, this one has a quarter less than fourteen celestial, this one has 14 celestial degrees? Hm? (Someone said something.) They don't even look at each other. What? They don't even look at the body. See it directly or show it? Will you see? Will you watch it with affection? Hm? Arey, what is seen is then remembered again or not? Yes, will they see through the soul in the form of mind and intellect? Yes, they won't see even through that.
Look, keep this picture of the ones that don't even see each other's body in your pocket. This, this which Baba has given. What? Those pictures of Narayan with many types of features that were made in the world of Brahmins during the shooting period, were not given by Baba. Did Baba give through visions? No. Baba did not. Arey? Did Baba give those many types of pictures which are made and kept in the world of Brahmins? No. So, this picture that Baba has given through visions, O Seekiladhey (dearest one), He narrates that as well. What? Hm? He meets with love (sik). With whom? The ones who meet after a long time. They were lost. After 5000 years. Now no one will be able to say that have we met again after 5000 years? Hm? Will anyone ask? Hm? Neither will anyone be able to say. So, no one in the world believes in that repetition of 5000 years. And you? Hm? You believe it, don't you? What? The cycle of this whole world is of 5000 years. Hm? In the beginning of the world, when the new world was established; Which world? A world of supersensory joy. Hm? The world with karmateet stage. So that is a topic of 5000 years ago. Hm? Everyone has forgotten that thing. And you believe in it. Well, whoever wants to believe can believe. And if he doesn't accept now, even if he doesn't accept, he may not accept. Whatever you want to believe, go ahead and believe it. The one who does not believe is the path of devotion. Hm? What is the one who does not believe? The path of devotion. (Continued)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
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