Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2927, दिनांक 30.06.2019
VCD 2927, dated 30.06.2019
प्रातः क्लास 29.11.1967
Morning class dated 29.11.1967
VCD-2927-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.35
Time- 00.01-15.35
प्रातः क्लास चल रहा था – 29.11.1967. बुधवार को पांचवें पेज के मध्यादि में बात चल रही थी – शास्त्रों में लिखा हुआ है सागर मंथन हुआ। सागर मंथन करने के लिए कौन-कौन निमित्त बने? बताते हैं कछुआ निमित्त बना। सांप निमित्त बना। हँ? और पहाड़ निमित्त बना। वाह! इन तीनों ने मिलकरके सागर मंथन किया। हँ? फिर उसमें से लक्ष्मी निकली। अरे, बाप बताते हैं यहाँ तो विचार सागर मंथन हो रहा है ना? कि नहीं हो रहा है? हो रहा है। यहाँ लक्ष्मी कहां बैठी हुई है? यहां लक्ष्मी है कहीं? अरे, लक्ष्मी तो सतयुग में होगी। ये बुद्धु बैठे हुए हैं जो समझते हैं कि हां, लक्ष्मी धरी है। हँ? अरे, लक्ष्मी तो वहाँ अमृत पी-पी करके और जाकरके वो बनी। क्या? महारानी। कहां की? हँ? कहां की महारानी बनी? अरे, वो देखो ऐसी-ऐसी विचार सागर मंथन की बातें करेंगे तो तुमको पता चलेगा कि ये शास्त्रों में सारा क्या है; झूठ ही झूठ, मिरइ झूठ, सच की रत्ती नहीं। भक्तिमार्ग में जो कुछ भी सुनते आए, हँ, सत्य है कृपानिधान, ठीक है दयानिधान, गुरु के सामने बैठकरके, हाँ, ऐसे-ऐसे बोलते रहते हैं। सत्य-सत्य करके। हँ।
तो वो सभी झूठी बातें हैं। झूठ ही झूठ। और ऐसी शास्त्रों में अनेक बातें हैं। ऐसे नहीं दो-चार हैं। हाँ, जो प्रैक्टिकल में लगती ही नहीं हैं। अरे, ये कोई हो ही नहीं सकता है। समझा ना? अभी रावण बनाया है। रावण का भी कोई ऐसे चित्र थोड़ेही बनता है? बनता है क्या दस सिर का रावण? हँ? ऐसे कोई मनुष्य होता है क्या? हँ? अगर होता तो उसके कुल में 2-4 सिर वाले तो आजकल की दुनिया में होने चाहिए ना? नहीं। रावण को तो, हं, बच्चों को समझाय दिया ना बच्चे, रावण क्या है? रावण है ये पांच विकार। हँ? काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार। ये मुख्य पांच विकार हैं। हँ? इनको छोड़ना है। माना रावण राज्य को छोड़ना है। और रामराज्य में चलना है। बाकि कोई रावण को भस्म करने की तो कोई बात ही नहीं है। बाबा नहीं कहते हैं कि तुम उस रावण को भस्म करो। विजयदशमी बोलते हैं कि भई इन पर विजय पहनो दस सिर के ऊपर। कौन-कौनसे दस सिर? काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार।
वो दुनिया में कोई न कोई अव्वल नंबर कामी होगा ना? क्रोधी होगा ना? लोभी, मोही, अहंकारी; कब? नर्क की दुनिया में कि स्वर्ग की दुनिया में? नरक की दुनिया में खास। तो ऐसे जो महाकामी, महाक्रोधी, लोभी, उनके पांच सिर दिखाए हुए हैं। कौन-कौन? महाकामी कौन? हँ? अरे, कोई धरम है, हँ, जिसमें कामेन्द्रिय का ही धंधा चलाते हैं? ऐसा धंधा शुरू कर दिया दुनिया में। हँ? तो उस धंधे से दुनिया नरक बन जाती है। जो भी नर मनुष्य मात्र हैं बस वो उसी धंधे में लग जाते हैं। चाहे वो देवताएं हैं, वो भी तो मनुष्य बन गए ना? हँ? उनका मन चालू हो गया कि नहीं, चंचल हुआ कि नहीं? हाँ, पहले देवताओं का मन कैसा था? एकाग्र था या चंचल था? हँ? कैसा था? एकाग्र था। भृकुटि के मध्य में आत्मा अपन को समझते थे। आत्मिक स्थिति में रहते थे। ये रावण जबसे आया, रावण का जो मुखिया मुख है ना, काम, काम विकार का मुख, इब्राहिम, वो तो ऊपर से आता है। सतोप्रधान आत्मा आती है, आत्म लोक से आती है, सतधाम से आती है कि असत की दुनिया से आती है? सत धाम। तो उसकी तो कोई गल्ती नहीं है। तो गल्ती किसकी है फिर? हँ? किसकी गल्ती? अरे, गल्ती तो उसकी है जिसमें वो अपने ज्ञान का बीज डालता है। कौन? वो ही। क्या? क्या नाम दिया? हँ? अरे, कोई देवताओं में होगा ना? हँ? अरे, देवता का कोई नाम है कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, काम देव। क्या? काम देव नाम सुना है ना? हाँ। काम विकार का देवता। तो बताया, उसके बारे में शास्त्रों में लिख दिया है; क्या? कि शंकरजी ने काम देव को भसम कर दिया। अरे, कामदेव को भस्म कर दिया कि कामदेव की वो देह अभिमान वाली जो इन्द्रिय है उसका काम खलास कर दिया? हँ? उसका काम खलास कर दिया।
तो बताया वो है मुखिया विकार। क्या? जो पांच डकैत हैं ना चोर, इस नरक, अरे, नरक की दुनिया के, वो उनमें जो मुखिया डकैत है बस उसको अगर कंट्रोल कर लिया, हँ, अरैस्ट कर लिया, हँ, तो क्या होगा? तो बाकि चोर भाग जाएंगे। या तो पकड़ में आ जाएंगे। तो इन पांच विकारों के ऊपर जीत पाना माना विजय पाना। जय माने विजय। वि माने विशेष। कैसी जय? जैसी जीत, अरे, पिछले (बाबा ने किसी को कहा – आगे बढ़के बैठो ...।) जैसी जीत पिछले जन्मों में कभी नहीं पाई; विशेष जीत। वि जय। तो विजय पानी है। ऐसे तो नहीं कहते हैं कि रावण को जीतेंगे। सिर्फ जीतेंगे? कि विशेष रूप से जीतेंगे? हाँ, कैसा विशेष रूप से जीतेंगे? हँ? अरे, इस जनम में कोई राजा के ऊपर जीत पाते हैं, हँ, पाते हैं ना? तो क्या उस आत्मा के ऊपर अगले जन्मों में भी जीत पाते रहेंगे? इस नर्क की दुनिया में ऐसे होता है? होता है? दिमाग नहीं चलाता। अरे, इस जनम में कोई राजा के ऊपर जीत पाई तो कोई जरूरी थोड़ेही है अगले जनम में भी उसपे जीत पाते रहेंगे? हाँ। और विजय माने? विशेष ऐसी जीत पानी है जो जन्म-जन्मान्तर; क्या? अनेक जन्मों तक उस पर हम जीत पाके बैठेंगे। कहाँ? सतयुग और त्रेता में। हाँ।
तो ऐसे नहीं कहते हैं कि रावण को जीतेंगे सिरफ। नहीं। विशेष रूप से जीतेंगे। हाँ। एक निशानियां रख दी हैं मनुष्यों ने। क्या? खास करके हिंदुओं ने। इस समय में रावण का राज्य है। ये निशानी रखी हुई है। किसका राज्य है? हँ? एक का, एक सिर का, हँ, एक बुद्धिमान का राज्य है? अरे, दुनिया में इतने धरमपिताएं आए तो उनको बड़ा-बड़ा बुद्धिमान कहेंगे कि नहीं? नहीं कहेंगे? हँ? जैसे 16 कला कृष्ण की आत्मा है। तो बड़ा बुद्धिमान है कि छोटा बुद्धिमान है? हँ? अरे? बड़े ते बड़ा बुद्धिमान है या छोटा बुद्धिमान? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, दो नंबर का बुद्धिमान है। और फिर इब्राहिम आया, बुद्ध आया, क्राइस्ट आया। ये भी तो बुद्धिमान हुए ना? नहीं तो इनकी इतनी जेनरेशन फालो करती है ना? तो कैसे फालो करती है? हँ? क्या बुद्धुओं को फालो करेगा कोई? नहीं।
देखो, इस समय में ऐसे रावण का राज्य है। कैसे रावण? ये सारे दो नंबर के रावण से लेकरके और जितने भी रावण हैं ये खास-खास, हँ, कामी, क्रोधी, लोभी, मोही, अहंकारी; और इनका बाप? (किसी ने कुछ कहा।) दाढ़ी बाप है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, इनका बाप ऊपर बैठा हुआ है चित्रों में, शास्त्रों में दिखाया गधा। गधा क्यों भई? गधैया क्यों नहीं? हँ? गधा इसलिए दिखाया कि जो शिव बाबा है ना उसका धंधा क्या है? हँ? वाशरमैन। हँ? वाशर माने धोता है। क्या धोता है? कपड़े धोता है। कौनसे कपड़े? हँ? ये ऊन के कपड़े या सूत के कपड़े, टैरिलीन के कपड़े धोता है क्या? हाँ, कौनसे कपड़े? हाँ, ये शरीर रूपी वस्त्र है ना, ये आत्मा का कपड़ा है। सतयुग में क्या करते थे? जैसे कपड़ा उतारते हैं ऐसे आराम से अपनी मर्जी से कपड़ा, शरीर रूपी वस्त्र उतारते हैं। और फिर क्या होता है? जब ये विधर्मी धरमपिताएं आते हैं और जिसमें आते हैं उनके संग के रंग से कैसे बन जाते हैं? आते तो सतधाम से हैं, सच्चे घर से आते हैं। हँ? लेकिन यहाँ आते ही आधार लेते हैं धरणी का। धरणी माने? धरणी माने माता। स्त्री चोला। तो जैसे ही आधार लिया और वैसे ही क्या बनने लगते हैं संग के रंग से? हँ? नीचे गिरते हैं कि ऊपर उठते हैं? नीचे गिरना शुरू। तो बताया, ये खुद भी नीचे गिरते हैं और? और अपने फालोअर्स को भी नीचे गिराते हैं।
तो ये हैं सारे के सारे रावण संप्रदाय। क्या? रावण के दस सिर दिखाए। कौन-कौनसे? पांच विकार और पांच इनके सहयोगी। कौन-कौन? पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश। ये जो पांच तत्व हैं ना ये इनके सहयोगी हैं। तो फिर वो भी दिखाए हैं लेफ्टिस्ट। तो दस सिर रावण के हो गए और इनका, इनका बाप कौन है? अरे, इनका कोई बाप है कि नहीं? कौन? पांच विकारों का बाप कौन है? हँ? पांच जो तत्व हैं उनका भी बाप (किसी ने कुछ कहा।) देह भान। हाँ। ये जो देह भान रूपी गधा है ना वो वाशरमैन का; शिवबाबा कहते हैं ना मैं वाशरमैन हूँ। क्या? इस दुनिया में आके मैं क्या धंधा करता हूँ? आया और धंधा शुरू। क्या धंधा शुरू करता हूँ? कपड़े धोना शुरू। कौनसे कपड़े? शरीर रूपी वस्त्र धोना शुरू कर देता हूँ। वो अमेरिका के अखबार तक में पड़ गया। क्या? एक कलकत्ते में जौहरी आया है, हँ, क्या कहता है? कहता है मुझे 300-400 रानियां मिल गईं, शरीर रूपी वस्त्र सुंदर-सुंदर मिल गए। कितने चाहिए? हँ? 16000 चाहिए। तो ऐसी-ऐसी बातें जो हैं वो अखबार वाले भी छापते रहते हैं। छापते हैं कि नहीं? हाँ। और शास्त्रों में तो लिखा ही हुआ है। क्या? क्या लिखा हुआ है? हँ? अरे? जरासिंधी ने क्या किया? हँ? ढ़ेर सारे राजाओं को अपने जेल में डाल दिया। कौनसे राजाएं? अरे, वो ही आत्मा रूपी थे पार्टधारी अच्छे-अच्छे जिन्होंने राजयोग सीखकरके राजाई पाई। उनकी ज्यादा से ज्यादा राजकुल वालों की संख्या कितनी जो राजकुल में आते हैं? हँ? कम से कम एक-दो जन्म तो जरूर राजाई लेते हैं। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, 16000.
तो बताया वो रावण का राज्य है। तो उस रावण के राज्य में मैं वाशरमैन बनकरके आता हूँ। क्या करता हूँ? धोबी बनके आता हूँ। धोबी क्या करता है? कपड़े धोता है ना? वो कपड़े नहीं, स्थूल कपड़े नहीं, चैतन्य आत्मा का, हाँ, चैतन्य शरीर रूपी वस्त्र धोता हूँ। हाँ।
A morning class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the fifth page on Wednesday was – It has been written in the scriptures that churning of the ocean took place. Who all became instrumental in the churning of ocean? It is said that a tortoise became instrumental. A snake became instrumental. Hm? And a mountain became instrumental. Wow! All these three together churned the ocean. Hm? Then Lakshmi emerged from it. Arey, the Father says – The ocean of thoughts is being churned here, isn’t it? Or is it not being churned? It is being churned. Where is Lakshmi sitting here? Is there Lakshmi anywhere here? Arey, Lakshmi will be in the Golden Age. It is the fools sitting, who think that yes, Lakshmi is sitting. Hm? Arey, Lakshmi drank the nectar and became that there. What? Maharani (empress). Of which place? Hm? She became a Maharani of which place? Arey, look, they will talk about such topics of churning the ocean of thoughts that you will know that what all is mentioned in the scriptures; Lies and only lies; complete lies; not even an ounce of truth. Whatever you have been listening to on the path of Bhakti, hm, it is true O merciful one! It is correct O merciful one! While sitting in front of the guru, yes, they keep on telling like this. True, true. Hm.
So, all those are false topics. Lies and just lies. And there are many such topics in the scriptures. It is not as if there are just two or four. Yes, they do not appear to be practical at all. Arey, this cannot be possible at all. You have understood, haven’t you? Now Ravan has been made. Is any such picture of Ravan also prepared? Is a ten-headed Ravan prepared? Hm? Is there any such human being? Hm? Had he there been, then there should be people with 2-4 heads in his clan in today’s world, shouldn’t they be there? No. As regards Ravan, hm, children have been explained, haven’t they been that children, what is Ravan? Ravan is these five vices. Hm? Lust, anger, greed, attachment, ego. These are the main five vices. Hm? You have to leave these. It means that you have to leave the kingdom of Ravan. And we have to go to the kingdom of Ram. As such there is no topic of burning Ravan at all. Baba doesn’t ask you to burn that Ravan. As regards Vijayadashami (a Hindu festival celebrating victory of Ram over Ravan), He says that brother, conquer these ten heads. Which ten heads? Lust, anger, greed, attachment, ego.
There must be some or the other number one lustful one, will he not be there? There must be a wrathful one, will he not be there? Greedy, attached, egotistic; when? In the world of hell or in the world of heaven? Especially in the world of hell. So, the five heads of such most lustful ones (mahaakaami), most wrathful ones (mahaakrodhi), greedy ones have been shown. Who all? Who is the most lustful one? Hm? Arey, is there any religion in which they do the business of the organ of lust only? Such business has been started in the world. Hm? So, the world becomes a hell through that business. All the men, the human beings become engaged in that business only. Be it the deities; they too became human beings, didn’t they? Hm? Did their mind become active or not? Did it become inconstant or not? Yes, how was the mind of deities earlier? Was it focused or inconstant? Hm? How was it? It was focused. They used to consider themselves to be souls in the middle of the forehead. They used to remain in soul conscious stage. Ever since this Ravan came, the main head of Ravan, lust, the head of the vice of lust, Ibrahim, he comes from above. Does a pure soul come, does it come from the Soul World, does it come from the true abode or does it come from the world of lies? The abode of truth. So, it is not its mistake. So, then whose mistake is it? Hm? Whose mistake? Arey, the mistake is of the one in whom he sows the seed of his knowledge. Who? The same person. What? What was the name assigned? Hm? Arey, there must be someone among the deities, will he not be there? Hm? Arey, is there any name of the deity or not? (Someone said something.) Yes, the deity of lust (kaamdev). What? You have heard the name ‘kaamdev’, haven’t you? Yes. The deity of the vice of lust. So, it was told, it has been written about him in the scriptures; what? That Shankarji destroyed the deity of lust. Arey, did he destroy the deity of lust or did he destroy the task of the organ of body consciousness of the deity of lust? Hm? He ended its task.
So, it was told that it is the chief vice. What? There are five dacoits, thieves of this hell, arey, the world of hell, aren’t they? If you control the main dacoit among them, if you arrest him, then what will happen? Then the remaining thieves will run away. Or they will get caught. So, to gain victory over these five vices means to gain victory. Jai (win) means vijay (victory). What kind of jai? As is the victory, arey, last (Baba asked someone to come forward and sit…) Such victory which was not achieved even in the last births; special victory. Vi jay. So, you have to achieve victory. You don’t say that we will conquer Ravan. Will you just conquer? Or will you conquer in a special manner? Yes, in what special manner will you conquer? Hm? Arey, you gain victory over some king in this birth, don’t you? So, will you keep on conquering that soul in the next births also? Does it happen like this in the world of hell? Does it happen? You don’t use your brain. Arey, if you gained victory over a king in this birth, then is it necessary that you will keep on conquering him in the next birth also? Yes. And what is meant by vijay (victory) You have to achieve such special victory for many births; what? We will conquer him for many births and sit. Where? In the Golden Age and the Silver Age. Yes.
So, you don’t say that we will just conquer Ravan. No. We will conquer in a special manner. Yes. Human beings have kept symbols. What? Especially the Hindus. At this time there is a kingdom of Ravan. This symbol has been kept. Whose kingdom is it? Hm? Is it the rule of one, one head, one intelligent one? Arey, so many founders of religions came in the world; so, will they be called big intelligent ones or not? Will they not be called? Hm? For example, there is the soul of Krishna perfect in 16 celestial degrees. So, is he a big intelligent one or a small intelligent one? Hm? Arey? Is he the biggest intelligent one or a small intelligent one? (Someone said something.) Yes, he is number two intelligent. And then Ibrahim came, Buddha came, Christ came. They too are intelligent ones, aren’t they? Otherwise, their such generations follow them, don’t they? So, how do they follow? Hm? Will anyone follow the fools? No.
Look, at this time there is a kingdom of such Ravan. What kind of Ravans? All these from the number two Ravan and all these special Ravans, hm, lustful, wrathful, greedy, attached, egotistic; and their Father? (Someone said something.) Is beard the Father? Hm? (Someone said something.) Yes, their Father is sitting above in the pictures; he has been shown in the scriptures. Why a donkey brother? Why not the she-donkey? Hm? A donkey has been depicted because what is the occupation of ShivBaba? Hm? Washerman. Hm? Washer means that He washes. What does He wash? He washes the clothes. Which clothes? Hm? Does He wash these woolen clothes, cotton clothes, terylene clothes? Yes, which clothes? Yes, there are these body-like clothes, aren’t they there? This is the cloth of the soul. What did you used to do in the Golden Age? Just as you remove your clothes, similarly you remove your cloth, the body-like cloth easily, voluntarily. And then what happens? When these heretic founders of religions come and the ones in whom they come, how do they become on being coloured by the company? They do come from the abode of truth, they come from the true home. Hm? But as soon as they come here, they take the support of the land. What is meant by land (dharani)? Land means mother. Female body. So, as soon as they took support what do they start becoming through the colour of company? Hm? Do they fall or do they rise? They start suffering downfall. So, it was told that they themselves also fall down and? And they make their followers also to fall.
So, all these are Ravana community. What? Ten heads of Ravan have been depicted. Which ones? Five vices and their five helpers. Who all? Earth, water, air, fire, sky. These five elements are their helpers, aren’t they? So, then they have also been depicted as leftists. So, there are ten heads of Ravan and who is their Father? Arey, do they have a Father or not? Who? Who is the Father of the five vices? Hm? The Father of even the five elements (Someone said something.) Body consciousness. Yes. This donkey in the form of body consciousness of the washerman; ShivBaba says, doesn’t He that I am a washerman. What? What is the business that I do by coming in this world? As soon as I come the business starts. What is the business that I start? Start washing the clothes. Which clothes? I start washing the cloth like bodies. It was published in the newspaper of America as well. What? A jeweler has come in Calcutta; hm, what does he say? He says that I have found 300-400 queens; I have found beautiful body-like clothes. How many do I require? Hm? I want 16,000. So, even those newspaper persons keep on publishing such topics. Do they publish or not? Yes. And it has indeed been written in the scriptures. What? What has been written? Hm? Arey? What did the Jarasindhi do? Hm? He put numerous kings in his jail. Which kings? Arey, they were the same nice actor-like souls who had learnt rajyog and achieved kingship. What is the maximum number of those from the royal clan who come in the royal clan? Hm? They definitely get kingship at least for one or two births. (Someone said something.) Yes, 16,000.
So, it was told that that is a kingdom of Ravan. So, I come in the form of a washerman in that kingdom of Ravan. What do I do? I come as a washerman (dhobi). What does a washerman do? He washes the clothes, doesn’t he? Not those clothes, not the physical clothes; Yes, I wash the living body-like cloth of the living soul. Yes.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2927, दिनांक 30.06.2019
VCD 2927, dated 30.06.2019
प्रातः क्लास 29.11.1967
Morning class dated 29.11.1967
VCD-2927-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.35
Time- 00.01-15.35
प्रातः क्लास चल रहा था – 29.11.1967. बुधवार को पांचवें पेज के मध्यादि में बात चल रही थी – शास्त्रों में लिखा हुआ है सागर मंथन हुआ। सागर मंथन करने के लिए कौन-कौन निमित्त बने? बताते हैं कछुआ निमित्त बना। सांप निमित्त बना। हँ? और पहाड़ निमित्त बना। वाह! इन तीनों ने मिलकरके सागर मंथन किया। हँ? फिर उसमें से लक्ष्मी निकली। अरे, बाप बताते हैं यहाँ तो विचार सागर मंथन हो रहा है ना? कि नहीं हो रहा है? हो रहा है। यहाँ लक्ष्मी कहां बैठी हुई है? यहां लक्ष्मी है कहीं? अरे, लक्ष्मी तो सतयुग में होगी। ये बुद्धु बैठे हुए हैं जो समझते हैं कि हां, लक्ष्मी धरी है। हँ? अरे, लक्ष्मी तो वहाँ अमृत पी-पी करके और जाकरके वो बनी। क्या? महारानी। कहां की? हँ? कहां की महारानी बनी? अरे, वो देखो ऐसी-ऐसी विचार सागर मंथन की बातें करेंगे तो तुमको पता चलेगा कि ये शास्त्रों में सारा क्या है; झूठ ही झूठ, मिरइ झूठ, सच की रत्ती नहीं। भक्तिमार्ग में जो कुछ भी सुनते आए, हँ, सत्य है कृपानिधान, ठीक है दयानिधान, गुरु के सामने बैठकरके, हाँ, ऐसे-ऐसे बोलते रहते हैं। सत्य-सत्य करके। हँ।
तो वो सभी झूठी बातें हैं। झूठ ही झूठ। और ऐसी शास्त्रों में अनेक बातें हैं। ऐसे नहीं दो-चार हैं। हाँ, जो प्रैक्टिकल में लगती ही नहीं हैं। अरे, ये कोई हो ही नहीं सकता है। समझा ना? अभी रावण बनाया है। रावण का भी कोई ऐसे चित्र थोड़ेही बनता है? बनता है क्या दस सिर का रावण? हँ? ऐसे कोई मनुष्य होता है क्या? हँ? अगर होता तो उसके कुल में 2-4 सिर वाले तो आजकल की दुनिया में होने चाहिए ना? नहीं। रावण को तो, हं, बच्चों को समझाय दिया ना बच्चे, रावण क्या है? रावण है ये पांच विकार। हँ? काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार। ये मुख्य पांच विकार हैं। हँ? इनको छोड़ना है। माना रावण राज्य को छोड़ना है। और रामराज्य में चलना है। बाकि कोई रावण को भस्म करने की तो कोई बात ही नहीं है। बाबा नहीं कहते हैं कि तुम उस रावण को भस्म करो। विजयदशमी बोलते हैं कि भई इन पर विजय पहनो दस सिर के ऊपर। कौन-कौनसे दस सिर? काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार।
वो दुनिया में कोई न कोई अव्वल नंबर कामी होगा ना? क्रोधी होगा ना? लोभी, मोही, अहंकारी; कब? नर्क की दुनिया में कि स्वर्ग की दुनिया में? नरक की दुनिया में खास। तो ऐसे जो महाकामी, महाक्रोधी, लोभी, उनके पांच सिर दिखाए हुए हैं। कौन-कौन? महाकामी कौन? हँ? अरे, कोई धरम है, हँ, जिसमें कामेन्द्रिय का ही धंधा चलाते हैं? ऐसा धंधा शुरू कर दिया दुनिया में। हँ? तो उस धंधे से दुनिया नरक बन जाती है। जो भी नर मनुष्य मात्र हैं बस वो उसी धंधे में लग जाते हैं। चाहे वो देवताएं हैं, वो भी तो मनुष्य बन गए ना? हँ? उनका मन चालू हो गया कि नहीं, चंचल हुआ कि नहीं? हाँ, पहले देवताओं का मन कैसा था? एकाग्र था या चंचल था? हँ? कैसा था? एकाग्र था। भृकुटि के मध्य में आत्मा अपन को समझते थे। आत्मिक स्थिति में रहते थे। ये रावण जबसे आया, रावण का जो मुखिया मुख है ना, काम, काम विकार का मुख, इब्राहिम, वो तो ऊपर से आता है। सतोप्रधान आत्मा आती है, आत्म लोक से आती है, सतधाम से आती है कि असत की दुनिया से आती है? सत धाम। तो उसकी तो कोई गल्ती नहीं है। तो गल्ती किसकी है फिर? हँ? किसकी गल्ती? अरे, गल्ती तो उसकी है जिसमें वो अपने ज्ञान का बीज डालता है। कौन? वो ही। क्या? क्या नाम दिया? हँ? अरे, कोई देवताओं में होगा ना? हँ? अरे, देवता का कोई नाम है कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, काम देव। क्या? काम देव नाम सुना है ना? हाँ। काम विकार का देवता। तो बताया, उसके बारे में शास्त्रों में लिख दिया है; क्या? कि शंकरजी ने काम देव को भसम कर दिया। अरे, कामदेव को भस्म कर दिया कि कामदेव की वो देह अभिमान वाली जो इन्द्रिय है उसका काम खलास कर दिया? हँ? उसका काम खलास कर दिया।
तो बताया वो है मुखिया विकार। क्या? जो पांच डकैत हैं ना चोर, इस नरक, अरे, नरक की दुनिया के, वो उनमें जो मुखिया डकैत है बस उसको अगर कंट्रोल कर लिया, हँ, अरैस्ट कर लिया, हँ, तो क्या होगा? तो बाकि चोर भाग जाएंगे। या तो पकड़ में आ जाएंगे। तो इन पांच विकारों के ऊपर जीत पाना माना विजय पाना। जय माने विजय। वि माने विशेष। कैसी जय? जैसी जीत, अरे, पिछले (बाबा ने किसी को कहा – आगे बढ़के बैठो ...।) जैसी जीत पिछले जन्मों में कभी नहीं पाई; विशेष जीत। वि जय। तो विजय पानी है। ऐसे तो नहीं कहते हैं कि रावण को जीतेंगे। सिर्फ जीतेंगे? कि विशेष रूप से जीतेंगे? हाँ, कैसा विशेष रूप से जीतेंगे? हँ? अरे, इस जनम में कोई राजा के ऊपर जीत पाते हैं, हँ, पाते हैं ना? तो क्या उस आत्मा के ऊपर अगले जन्मों में भी जीत पाते रहेंगे? इस नर्क की दुनिया में ऐसे होता है? होता है? दिमाग नहीं चलाता। अरे, इस जनम में कोई राजा के ऊपर जीत पाई तो कोई जरूरी थोड़ेही है अगले जनम में भी उसपे जीत पाते रहेंगे? हाँ। और विजय माने? विशेष ऐसी जीत पानी है जो जन्म-जन्मान्तर; क्या? अनेक जन्मों तक उस पर हम जीत पाके बैठेंगे। कहाँ? सतयुग और त्रेता में। हाँ।
तो ऐसे नहीं कहते हैं कि रावण को जीतेंगे सिरफ। नहीं। विशेष रूप से जीतेंगे। हाँ। एक निशानियां रख दी हैं मनुष्यों ने। क्या? खास करके हिंदुओं ने। इस समय में रावण का राज्य है। ये निशानी रखी हुई है। किसका राज्य है? हँ? एक का, एक सिर का, हँ, एक बुद्धिमान का राज्य है? अरे, दुनिया में इतने धरमपिताएं आए तो उनको बड़ा-बड़ा बुद्धिमान कहेंगे कि नहीं? नहीं कहेंगे? हँ? जैसे 16 कला कृष्ण की आत्मा है। तो बड़ा बुद्धिमान है कि छोटा बुद्धिमान है? हँ? अरे? बड़े ते बड़ा बुद्धिमान है या छोटा बुद्धिमान? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, दो नंबर का बुद्धिमान है। और फिर इब्राहिम आया, बुद्ध आया, क्राइस्ट आया। ये भी तो बुद्धिमान हुए ना? नहीं तो इनकी इतनी जेनरेशन फालो करती है ना? तो कैसे फालो करती है? हँ? क्या बुद्धुओं को फालो करेगा कोई? नहीं।
देखो, इस समय में ऐसे रावण का राज्य है। कैसे रावण? ये सारे दो नंबर के रावण से लेकरके और जितने भी रावण हैं ये खास-खास, हँ, कामी, क्रोधी, लोभी, मोही, अहंकारी; और इनका बाप? (किसी ने कुछ कहा।) दाढ़ी बाप है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, इनका बाप ऊपर बैठा हुआ है चित्रों में, शास्त्रों में दिखाया गधा। गधा क्यों भई? गधैया क्यों नहीं? हँ? गधा इसलिए दिखाया कि जो शिव बाबा है ना उसका धंधा क्या है? हँ? वाशरमैन। हँ? वाशर माने धोता है। क्या धोता है? कपड़े धोता है। कौनसे कपड़े? हँ? ये ऊन के कपड़े या सूत के कपड़े, टैरिलीन के कपड़े धोता है क्या? हाँ, कौनसे कपड़े? हाँ, ये शरीर रूपी वस्त्र है ना, ये आत्मा का कपड़ा है। सतयुग में क्या करते थे? जैसे कपड़ा उतारते हैं ऐसे आराम से अपनी मर्जी से कपड़ा, शरीर रूपी वस्त्र उतारते हैं। और फिर क्या होता है? जब ये विधर्मी धरमपिताएं आते हैं और जिसमें आते हैं उनके संग के रंग से कैसे बन जाते हैं? आते तो सतधाम से हैं, सच्चे घर से आते हैं। हँ? लेकिन यहाँ आते ही आधार लेते हैं धरणी का। धरणी माने? धरणी माने माता। स्त्री चोला। तो जैसे ही आधार लिया और वैसे ही क्या बनने लगते हैं संग के रंग से? हँ? नीचे गिरते हैं कि ऊपर उठते हैं? नीचे गिरना शुरू। तो बताया, ये खुद भी नीचे गिरते हैं और? और अपने फालोअर्स को भी नीचे गिराते हैं।
तो ये हैं सारे के सारे रावण संप्रदाय। क्या? रावण के दस सिर दिखाए। कौन-कौनसे? पांच विकार और पांच इनके सहयोगी। कौन-कौन? पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश। ये जो पांच तत्व हैं ना ये इनके सहयोगी हैं। तो फिर वो भी दिखाए हैं लेफ्टिस्ट। तो दस सिर रावण के हो गए और इनका, इनका बाप कौन है? अरे, इनका कोई बाप है कि नहीं? कौन? पांच विकारों का बाप कौन है? हँ? पांच जो तत्व हैं उनका भी बाप (किसी ने कुछ कहा।) देह भान। हाँ। ये जो देह भान रूपी गधा है ना वो वाशरमैन का; शिवबाबा कहते हैं ना मैं वाशरमैन हूँ। क्या? इस दुनिया में आके मैं क्या धंधा करता हूँ? आया और धंधा शुरू। क्या धंधा शुरू करता हूँ? कपड़े धोना शुरू। कौनसे कपड़े? शरीर रूपी वस्त्र धोना शुरू कर देता हूँ। वो अमेरिका के अखबार तक में पड़ गया। क्या? एक कलकत्ते में जौहरी आया है, हँ, क्या कहता है? कहता है मुझे 300-400 रानियां मिल गईं, शरीर रूपी वस्त्र सुंदर-सुंदर मिल गए। कितने चाहिए? हँ? 16000 चाहिए। तो ऐसी-ऐसी बातें जो हैं वो अखबार वाले भी छापते रहते हैं। छापते हैं कि नहीं? हाँ। और शास्त्रों में तो लिखा ही हुआ है। क्या? क्या लिखा हुआ है? हँ? अरे? जरासिंधी ने क्या किया? हँ? ढ़ेर सारे राजाओं को अपने जेल में डाल दिया। कौनसे राजाएं? अरे, वो ही आत्मा रूपी थे पार्टधारी अच्छे-अच्छे जिन्होंने राजयोग सीखकरके राजाई पाई। उनकी ज्यादा से ज्यादा राजकुल वालों की संख्या कितनी जो राजकुल में आते हैं? हँ? कम से कम एक-दो जन्म तो जरूर राजाई लेते हैं। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, 16000.
तो बताया वो रावण का राज्य है। तो उस रावण के राज्य में मैं वाशरमैन बनकरके आता हूँ। क्या करता हूँ? धोबी बनके आता हूँ। धोबी क्या करता है? कपड़े धोता है ना? वो कपड़े नहीं, स्थूल कपड़े नहीं, चैतन्य आत्मा का, हाँ, चैतन्य शरीर रूपी वस्त्र धोता हूँ। हाँ।
A morning class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the fifth page on Wednesday was – It has been written in the scriptures that churning of the ocean took place. Who all became instrumental in the churning of ocean? It is said that a tortoise became instrumental. A snake became instrumental. Hm? And a mountain became instrumental. Wow! All these three together churned the ocean. Hm? Then Lakshmi emerged from it. Arey, the Father says – The ocean of thoughts is being churned here, isn’t it? Or is it not being churned? It is being churned. Where is Lakshmi sitting here? Is there Lakshmi anywhere here? Arey, Lakshmi will be in the Golden Age. It is the fools sitting, who think that yes, Lakshmi is sitting. Hm? Arey, Lakshmi drank the nectar and became that there. What? Maharani (empress). Of which place? Hm? She became a Maharani of which place? Arey, look, they will talk about such topics of churning the ocean of thoughts that you will know that what all is mentioned in the scriptures; Lies and only lies; complete lies; not even an ounce of truth. Whatever you have been listening to on the path of Bhakti, hm, it is true O merciful one! It is correct O merciful one! While sitting in front of the guru, yes, they keep on telling like this. True, true. Hm.
So, all those are false topics. Lies and just lies. And there are many such topics in the scriptures. It is not as if there are just two or four. Yes, they do not appear to be practical at all. Arey, this cannot be possible at all. You have understood, haven’t you? Now Ravan has been made. Is any such picture of Ravan also prepared? Is a ten-headed Ravan prepared? Hm? Is there any such human being? Hm? Had he there been, then there should be people with 2-4 heads in his clan in today’s world, shouldn’t they be there? No. As regards Ravan, hm, children have been explained, haven’t they been that children, what is Ravan? Ravan is these five vices. Hm? Lust, anger, greed, attachment, ego. These are the main five vices. Hm? You have to leave these. It means that you have to leave the kingdom of Ravan. And we have to go to the kingdom of Ram. As such there is no topic of burning Ravan at all. Baba doesn’t ask you to burn that Ravan. As regards Vijayadashami (a Hindu festival celebrating victory of Ram over Ravan), He says that brother, conquer these ten heads. Which ten heads? Lust, anger, greed, attachment, ego.
There must be some or the other number one lustful one, will he not be there? There must be a wrathful one, will he not be there? Greedy, attached, egotistic; when? In the world of hell or in the world of heaven? Especially in the world of hell. So, the five heads of such most lustful ones (mahaakaami), most wrathful ones (mahaakrodhi), greedy ones have been shown. Who all? Who is the most lustful one? Hm? Arey, is there any religion in which they do the business of the organ of lust only? Such business has been started in the world. Hm? So, the world becomes a hell through that business. All the men, the human beings become engaged in that business only. Be it the deities; they too became human beings, didn’t they? Hm? Did their mind become active or not? Did it become inconstant or not? Yes, how was the mind of deities earlier? Was it focused or inconstant? Hm? How was it? It was focused. They used to consider themselves to be souls in the middle of the forehead. They used to remain in soul conscious stage. Ever since this Ravan came, the main head of Ravan, lust, the head of the vice of lust, Ibrahim, he comes from above. Does a pure soul come, does it come from the Soul World, does it come from the true abode or does it come from the world of lies? The abode of truth. So, it is not its mistake. So, then whose mistake is it? Hm? Whose mistake? Arey, the mistake is of the one in whom he sows the seed of his knowledge. Who? The same person. What? What was the name assigned? Hm? Arey, there must be someone among the deities, will he not be there? Hm? Arey, is there any name of the deity or not? (Someone said something.) Yes, the deity of lust (kaamdev). What? You have heard the name ‘kaamdev’, haven’t you? Yes. The deity of the vice of lust. So, it was told, it has been written about him in the scriptures; what? That Shankarji destroyed the deity of lust. Arey, did he destroy the deity of lust or did he destroy the task of the organ of body consciousness of the deity of lust? Hm? He ended its task.
So, it was told that it is the chief vice. What? There are five dacoits, thieves of this hell, arey, the world of hell, aren’t they? If you control the main dacoit among them, if you arrest him, then what will happen? Then the remaining thieves will run away. Or they will get caught. So, to gain victory over these five vices means to gain victory. Jai (win) means vijay (victory). What kind of jai? As is the victory, arey, last (Baba asked someone to come forward and sit…) Such victory which was not achieved even in the last births; special victory. Vi jay. So, you have to achieve victory. You don’t say that we will conquer Ravan. Will you just conquer? Or will you conquer in a special manner? Yes, in what special manner will you conquer? Hm? Arey, you gain victory over some king in this birth, don’t you? So, will you keep on conquering that soul in the next births also? Does it happen like this in the world of hell? Does it happen? You don’t use your brain. Arey, if you gained victory over a king in this birth, then is it necessary that you will keep on conquering him in the next birth also? Yes. And what is meant by vijay (victory) You have to achieve such special victory for many births; what? We will conquer him for many births and sit. Where? In the Golden Age and the Silver Age. Yes.
So, you don’t say that we will just conquer Ravan. No. We will conquer in a special manner. Yes. Human beings have kept symbols. What? Especially the Hindus. At this time there is a kingdom of Ravan. This symbol has been kept. Whose kingdom is it? Hm? Is it the rule of one, one head, one intelligent one? Arey, so many founders of religions came in the world; so, will they be called big intelligent ones or not? Will they not be called? Hm? For example, there is the soul of Krishna perfect in 16 celestial degrees. So, is he a big intelligent one or a small intelligent one? Hm? Arey? Is he the biggest intelligent one or a small intelligent one? (Someone said something.) Yes, he is number two intelligent. And then Ibrahim came, Buddha came, Christ came. They too are intelligent ones, aren’t they? Otherwise, their such generations follow them, don’t they? So, how do they follow? Hm? Will anyone follow the fools? No.
Look, at this time there is a kingdom of such Ravan. What kind of Ravans? All these from the number two Ravan and all these special Ravans, hm, lustful, wrathful, greedy, attached, egotistic; and their Father? (Someone said something.) Is beard the Father? Hm? (Someone said something.) Yes, their Father is sitting above in the pictures; he has been shown in the scriptures. Why a donkey brother? Why not the she-donkey? Hm? A donkey has been depicted because what is the occupation of ShivBaba? Hm? Washerman. Hm? Washer means that He washes. What does He wash? He washes the clothes. Which clothes? Hm? Does He wash these woolen clothes, cotton clothes, terylene clothes? Yes, which clothes? Yes, there are these body-like clothes, aren’t they there? This is the cloth of the soul. What did you used to do in the Golden Age? Just as you remove your clothes, similarly you remove your cloth, the body-like cloth easily, voluntarily. And then what happens? When these heretic founders of religions come and the ones in whom they come, how do they become on being coloured by the company? They do come from the abode of truth, they come from the true home. Hm? But as soon as they come here, they take the support of the land. What is meant by land (dharani)? Land means mother. Female body. So, as soon as they took support what do they start becoming through the colour of company? Hm? Do they fall or do they rise? They start suffering downfall. So, it was told that they themselves also fall down and? And they make their followers also to fall.
So, all these are Ravana community. What? Ten heads of Ravan have been depicted. Which ones? Five vices and their five helpers. Who all? Earth, water, air, fire, sky. These five elements are their helpers, aren’t they? So, then they have also been depicted as leftists. So, there are ten heads of Ravan and who is their Father? Arey, do they have a Father or not? Who? Who is the Father of the five vices? Hm? The Father of even the five elements (Someone said something.) Body consciousness. Yes. This donkey in the form of body consciousness of the washerman; ShivBaba says, doesn’t He that I am a washerman. What? What is the business that I do by coming in this world? As soon as I come the business starts. What is the business that I start? Start washing the clothes. Which clothes? I start washing the cloth like bodies. It was published in the newspaper of America as well. What? A jeweler has come in Calcutta; hm, what does he say? He says that I have found 300-400 queens; I have found beautiful body-like clothes. How many do I require? Hm? I want 16,000. So, even those newspaper persons keep on publishing such topics. Do they publish or not? Yes. And it has indeed been written in the scriptures. What? What has been written? Hm? Arey? What did the Jarasindhi do? Hm? He put numerous kings in his jail. Which kings? Arey, they were the same nice actor-like souls who had learnt rajyog and achieved kingship. What is the maximum number of those from the royal clan who come in the royal clan? Hm? They definitely get kingship at least for one or two births. (Someone said something.) Yes, 16,000.
So, it was told that that is a kingdom of Ravan. So, I come in the form of a washerman in that kingdom of Ravan. What do I do? I come as a washerman (dhobi). What does a washerman do? He washes the clothes, doesn’t he? Not those clothes, not the physical clothes; Yes, I wash the living body-like cloth of the living soul. Yes.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2928, दिनांक 01.07.2019
VCD 2928, dated 01.07.2019
प्रातः क्लास 29.11.1967
Morning Class dated 29.11.1967
VCD-2928-extracts-Bilingual
समय- 00.01-16.30
Time- 00.01-16.30
प्रातः क्लास चल रहा था – 29.11.1967. पांचवें पेज के मध्यांत में बुधवार को बात चल रही थी – किसी को पता तो नहीं है कि ये लक्ष्मी-नारायण कब राज्य करते थे, परन्तु अभी तक भी उनके मन्दिर बनाते रहते हैं यादगार। बनाते कौन हैं? ज्ञानी बनाते हैं या भगत बनाते हैं? भगत ही बनाते रहते हैं। जब कोई ज्ञान में आएंगे तो फिर मन्दिर बनाना क्या करेंगे? बन्द कर देंगे। हद के कि बेहद के? शूटिंग पीरियड में रिहर्सल करेंगे कि नहीं? काहे की रिहर्सल? मन्दिर बनाने की रिहर्सल करेंगे कि नहीं करेंगे? हाँ, सब नहीं करेंगे। हाँ, कोई-कोई हैं; नंबरवार हैं ना? तो रिहर्सल भी करेंगे भगतपने की। पूछा – तुम बनाएंगे मन्दिर? तुम अभी पुरुषोत्तम संगमयुग में कोई मन्दिर बनाएंगे? क्या जवाब देंगे? (किसी ने कुछ कहा।) मन्दिर नहीं बनाएंगे? और ये सेन्टर्स खोलते जा रहे हैं ये क्या हैं? ये रिहर्सल नहीं हो रही है? बाबा ने पूछा है तो जवाब देना चाहिए। कहते हैं नहीं। तुम ये चित्र बनाते हो मनुष्यों को समझाने के लिए। कौनसे चित्र? जड़ चित्र बनाते हो या चैतन्य चित्र से समझेंगे? चैतन्य चित्र बनाय लिया? बनाया ना? हाँ। ये तो बहुत बढ़िया चित्र बनाया। तब क्या करेंगे? कौनसा चित्र बनाएंगे? बनाएंगे? बनाएंगे ना? हाँ। बनाएंगे। डेट, तिथि-तारीख फिक्स की? अव्यक्त वाणी में बापदादा तो कहते रहते हैं; क्या? अपनी डेट फिक्स करो तो ध्यान रहेगा।
तो बताया – समझाने के लिए जड़ चित्रों से तो काम नहीं चलेगा। क्या? जड़ चित्र तो उन मन्दिरों में भी रखे हुए हैं दुनियावाले जो बनाते हैं। और यहां भी? जो भी सेन्टर वगैरा खोले उनमें जड़ चित्र ही तो रखे हुए हैं। तो उन जड़ चित्रों से बच्चाबुद्धि समझेंगे या सालिम बुद्धि समझेंगे? हँ? उन्हें प्रैक्टिकल प्रूफ चाहिए या सिर्फ चित्र देख के मान जाएंगे? प्रैक्टिकल प्रूफ चाहिए।
तो बताया – किसको भी नहीं समझाते हैं। क्यों? क्योंकि जानते ही नहीं हैं। हँ? खुद ही नहीं जानते हैं तो कैसे समझाएंगे? चित्र वही हैं जो तुम बनाते हो। लेकिन तुम जड़ चित्र बनाते हो कि कोई चैतन्य चित्र बनाया? हँ? अभी तक कोई चैतन्य चित्र बना? हँ? चैतन्य चित्र नहीं बना। तो कौनसा चित्र बना? कुछ बना या जीरो बना? हँ? शास्त्रों में लिखा है। क्या? हँ, कि पहले असुर पैदा हुए, राक्षस पैदा हुए या देवताएं पैदा हुए? बड़े कौन थे? हँ? राक्षस बड़े थे। और देवताएं बाद में बने। तो शूटिंग कहां हो रही है? अभी क्या बन रहे? क्या शूटिंग हो रही है? हँ? अरे? अभी क्या शूटिंग हो रही है? हँ? बड़े बनने की शूटिंग हो रही है? बड़ा बनना अच्छा कि छोटा बनना अच्छा? हँ? छोटे को तो फिर मां-बाप की; छोटा बच्चा होता है ना उनको मां-बाप का आसरा लेना पड़ता है। हँ? आपेही तरस परोई। मां-बाप ही हमारे ऊपर कृपा करेंगे, हँ, जो बड़े हैं उन्होने तो बहुत कमाई कर ली। और हम तो पैदा ही बाद में हुए हैं। ऐसे ना? हाँ।
तो बताया – तुम जो चित्र बनाते हो वो जड़ चित्र बनाते हो। बनाना क्या है अभी? हाँ, ये लक्ष्मी-नारायण का चैतन्य चित्र बनाना है। अब वो कोई दूसरा चित्र तो है नहीं सिवाय जड़ चित्रों के। वो लक्ष्मी-नारायण का चित्र। हँ? मन्दिर बनाते हैं बहुत खर्चा करकरके और फिर जो मन्दिर बनाते हैं समझाय किसी को नहीं सकते। क्या? तुम ये थोड़ा सा खर्च करके अच्छे चित्र बनायकरके तुम इनकी ये जीवन कहानी बैठकरके सुनाते हो। किनकी? हँ? किनकी जीवन कहानी? जीवन जड़ चित्रों का होता है या चैतन्य का होता है? हँ? जीवन तो चैतन्य चित्रों का होता है ना?
देखो, अभी तुम यहाँ बैठे हुए हो। हँ? यहाँ। तो बरोबर तुमको बाप; कौनसा बाप? बेहद का बाप। हँ? उसकी जीवन कहानी। उसका नाम, रूप, देश, काल, ये तुम्हारी बुद्धि में है। वो तो तुम्हारे अलावा कोई दूसरे की बुद्धि में होगा? पूछा। 29.11.1967 की प्रातः क्लास का छठा पेज। दूसरी लाइन। तुम सुनते रहते हो ना? भई अर्जुन को भी बाप ने; क्या? कहा। क्या कहा? गीता ज्ञान सुनाया तो क्या कहा? कि मैं किसलिए आता हूँ? नर को नारायण बनाने के लिए आता हूँ। तो नर अर्जुन हुआ ना? अभी अर्जुन को गीता सुनाई और राजयोग सिखाया। और ये राजाई स्थापन की। अब उस अर्जुन को तो लाखों बरस हो गए ऐसे लगाय दिया है। क्या? शास्त्रों में लाखों वर्ष लगाय दिया या थोड़ा टाइम लगाया? लाखों वर्ष लगाय दिया। तो इनके कथनानुसार भई गीता सुनाई, राजयोग सिखलाया, वो इनका राज्य हुआ। और वो हो गया ताज। वो हो जाता सतयुग। सतयुग को लाखों वर्ष लगाय दिया। तो जभी तुम अभी सुनते हो तो वो बोलता है कि अरे, हँ, ये तो बिल्कुल झूठ है। क्या? हँ? कि 5000 वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। क्योंकि उन्होंने तो शास्त्रों में क्या लिखा सुना? लाखों वर्ष। तो बोलते हैं बिल्कुल झूठ है। ये तो हो ही नहीं सकता कि लक्ष्मी-नारायण का राज्य 5000 वर्ष पहले इस सृष्टि पर था। अभी नए-नए बनाय रहे हैं। हँ? लाखों वर्ष कैसे हो गए? हँ? ये जो पुराने-पुराने ऋषि-मुनि हैं उन्होंने जो कुछ बताया वो सब झूठा हो गया? और ये नई नौनियां निकलीं, हँ, नई नौनियां बांस को न्याह्नों। अब ये सच्चा हो गया। और वो ऋषि-मुनि, सन्यासी इतने पुराने-पुराने वो सब झूठे हो गए? हँ?
तो देखो, वो कहते हैं ये गपोड़ा हो गया ना? अब बाप कहते हैं; क्या? कि उनका ये लाखों वर्ष का बड़ा-बड़ा गपोड़ा है। तो भक्तिमार्ग में इतनी बड़ी झूठ। ये इतना बड़ा गपोड़ा किसने बैठकरके बनाया? हँ? शुरुआत किसी ने तो की होगी। अरे, वरी पूछा जाता है ना? हाँ। इनका, बनाने वालों का, बताने वालों का लाखों वर्ष, इनका मुखिया कौन है? ये किसने बनाई भागवत? हँ? कहते हैं भई व्यास ने बनाई। अरे, अब व्यास ने बनाई ये भागवत और लाखों वर्ष हो गए इस सृष्टि को। अभी फिर उसको भगवान बताय दिया। किसको? व्यास भगवान। अभी व्यास तो देखते हो। देखते हो ना? कौन? दाढ़ी-मूंछ वाला है या बिना दाढ़ी-मूंछ का देवता है? हँ? दाढ़ी-मूंछ वाला मनुष्य है तो देवता कैसे हो गया? हँ? अरे, देवता ही नहीं है तो भगवान कैसे हो गया? तो देवता बड़ा या भगवान बड़ा? भगवान आते हैं तो मनुष्य को देवता बनाते हैं। तो भगवान बड़ा हुआ ना? तो भई ये जो भगवान को व्यास बनाय दिया, हँ, तो देखो ये यहां कौन बैठे हैं? हाँ, इसको क्या कहेंगे? हँ? किसको? इसको क्या कहेंगे? अरे, किसकी तरफ इशारा किया? ब्रह्मा बाबा की तरफ इशारा किया इसको क्या कहेंगे? व्यास कहेंगे ना? ये बैठकरके बनाते हैं ना? ये सभी ज्ञान बताते हैं ना? परन्तु अभी तुमको तो वो लाखों वरष का तो ज्ञान नहीं बताते हैं। लाखों वरष का ज्ञान सुनाते हैं? हँ? ये भक्तिमार्ग की किताब तो नहीं लिखवाते हैं ना? हँ? ये गपोड़ा मारते हैं ऐसे। कैसे? कि नहीं व्यास तो है बरोबर। जो भाषण करते हैं ना उनको व्यास कहा जाता है।
तो ये देखो, इसने सभी सच बताया है। और उसने सभी झूठ लिखा है शास्त्रों में। किसने सच बताया? इसने माने? अरे, ब्रह्मा ने सच बताया या झूठ बताया कि लाखों वर्ष की सृष्टि थोड़ेही है? कितने वर्ष की? हँ? हँ? 5000 वर्ष की है। तो उन सभी ने झूठ लिखा है शास्त्रों में। नहीं तो झूठखंड कैसे बनेगा? झूठ सुनाएंगे तब झूठ खंड बनेगा। हँ? सुनी-सुनाई बातों से भारतवासियों ने क्या हुआ? दुर्गति पाई ना? हाँ। तो फिर सचखंड कैसे बने? झूठ सुनावेंगे, हँ, और सुनाने वाले भी झूठ और जो सुनाया सो भी झूठ। तो क्या बनता है? झूठ खंड कहते हैं। झूठखंड बन जाता। और कोई भी खंड को सचखंड, हँ, कोई और खंड को झूठखंड नहीं कहा जाएगा। हँ? क्रिश्चियन खंड, बौद्धी खंड, इस्लामी खंड; ये हैं ना? सिक्खों का भी अपना खंड है कि नहीं पंजाब? ज्यादा कहां रहते हैं? पंजाब में ही रहते हैं ना? हँ। तो उनको किसी को सचखंड या झूठखंड नहीं कहा जाएगा क्योंकि यहां सतयुग को ही सचखंड कहते हैं। कहाँ? भारत में। भारत में जब सतोप्रधान स्टेज थी तब क्या था? सचखंड था। सतयुग और त्रेता में और तो कोई खंड होते ही नहीं हैं। सिवाय सचखंड के दूसरा खंड कोई होता ही नहीं। कौनसे? कौनसे खंड नहीं होते? न कोई बौद्धी खंड, न कोई क्रिश्चियन खंड और न कोई, हँ, इस्लामी, मुस्लिम खंड। इसलिए भारत को ही कहेंगे; क्या? कि भारत ही सचखंड बनता है और भारत ही झूठखंड बनता है।
A morning class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the end of the middle portion of the fifth page on Wednesday was – Nobody knows as to when these Lakshmi and Narayan used to rule, but their memorial temples are being built even now. Who builds? Do the knowledgeable ones build or do the devotees build? The devotees only keep on building. When someone enters the path of knowledge, then what will they do to the process of building temples? They will stop it. The limited ones or the unlimited ones? Will they perform rehearsal in the shooting period or not? Rehearsal of what? Will they perform the rehearsal of building temples or not? Yes, all will not do. Yes, some are there; they are numberwise, aren’t they? So, they will perform the rehearsal of being devotees as well. It was asked – Will you build temples? Will you now build any temples in the Purushottam Sangamyug? What is the reply that you will give? (Someone said something.) Will you not build temples? And what are these temples that you go on opening? Is this not a rehearsal that is going on? Baba has asked; so, you should give a reply. They say – No. You prepare these pictures in order to explain to the human beings. Which pictures? Do you prepare non-living pictures or will they understand through living pictures? Did you make the living pictures? You made, didn’t you? Yes. You prepared a very nice picture. Then what will you do? Which picture will you make? Will you make? You will make, will you not? Yes. You will make. Did you fix the date, day? BapDada keeps on telling in the Avyakt Vanis; What? If you fix your date then you will be attentive.
So, it was told – The non-living pictures will not be sufficient to explain. What? Non-living pictures are placed even in those temples which the people of the world build. And even here? In all the centers etc. which have been opened, it is the non-living pictures only which have been placed. So, will those who have a child-like intellect understand with those non-living pictures or will those with a mature intellect understand? Hm? Do they require practical proof or will they accept just by seeing the pictures? They required practical proof.
So, it was told – They don’t explain to anyone. Why? It is because they do not know at all. Hm? How will they explain when they themselves don’t know? Pictures are only those that you prepare. But do you prepare non-living pictures or did you prepare any living pictures? Hm? Has any living picture been prepared till date? Hm? Living picture has not been prepared. So, which picture was prepared? Was anything prepared or was zero prepared? Hm? It has been written in the scriptures; what? Hm; that were the demons born first, were the demons born first or were the deities born first? Who were elder? Hm? The demons were elder. And the deities were formed later. So, where is the shooting taking place? What are getting prepared now? What shooting is taking place? Hm? Arey? What shooting is taking place now? Hm? Is the shooting of becoming elders taking place? Is it better to become elder or is it better to become younger? Hm? As regards the younger one, the parents; a younger child has to take the support of the parents. Hm? You show mercy upon us yourself. The parents themselves will show mercy upon us; hm, the elder ones have earned a lot. And we have been born later on. It is like this, isn’t it? Yes.
So, it was told – The pictures that you prepare are non-living pictures. What should you prepare now? Yes, you have to prepare this living picture of Lakshmi and Narayan. Well, that is not any other picture other than the non-living pictures. That picture of Lakshmi-Narayan. Hm? People build temples by spending a lot of amount and then the temple that they build, they cannot explain to anyone. What? You spend a little and prepare nice pictures and you sit and narrate their life story (Jeevan kahaani). Whose? Hm? Whose life story? Do non-living pictures have a life (Jeevan) or do the living ones have? Hm? The living pictures have a life, don’t they?
Look, now you are sitting here. Hm? Here. So, definitely the Father, you; which Father? The unlimited Father. Hm? His life story. His name, form, country (place), time is in your intellect. Will it be in the intellect of anyone other than you? It was asked. Sixth page of the morning class dated 29.11.1967. Second line. You keep on listening, don’t you? Brother, even to Arjun, the Father; what? Told. What did He say? When He narrated the knowledge of the Gita, then what did He say? That why do I come? I come to transform a nar (man) to Narayan. So, nar is Arjun, isn’t he? Well, He narrated the Gita and taught Rajyog to Arjun. And established this kingship. Well, it has been assumed that it has been lakhs of years since Arjun existed. What? Were lakhs of years attributed or a little time attributed in the scriptures? Lakhs of years were attributed. So, as per their versions, brother, He narrated the Gita, taught Rajyog; their rule was established. And that was the crown. That was the Golden Age. Lakhs of years were attributed to the Golden Age (Satyug). When you listen to that now, then he says that arey, hm, this is completely false. What? Hm? That 5000 years ago there was a rule of these Lakshmi and Narayan. It is because what did they write and listen from the scriptures? Lakhs of years. So, they say that this is completely false. It cannot be possible at all that the rule of these Lakshmi and Narayan existed in this world 5000 years ago. Now they are making it newly. Hm? How did lakhs of years pass? Hm? Is whatever these ancient sages and saints narrated, false? And these new buds that have emerged, nayi nauniyaan baans ko nyaho. Now all this has become true. And are all those ancient sages and saints, sanyasis false? Hm?
So, look, they say, this is a boast, isn’t it? Now the Father says; what? That their big boast is of these lakhs of years. So, such a big lie on the path of Bhakti. Who sat and made such a big boast? Hm? Someone must have made a beginning. Arey, it is asked, isn’t it? Yes. They, the makers’, the narrators’ lakhs of years; who is their head? Who made this Bhaagwat (a Hindu scripture)? Hm? They say, brother, Vyas made. Arey, well, if Vyas made this Bhaagwat and if it has been lakhs of years since this world began; well, then he was mentioned to be God. Who? God Vyas. Now you see Vyas. You see, don’t you? Is he someone with beard and moustache or is he a deity without beard and moustache? Hm? If he is a human being with beard and moustache, then how can he be a deity? Hm? Arey, when he isn’t a deity itself, then how can he be God? So, is a deity greater or God greater? When God comes, He transforms the human beings to deities. So, God is greater, isn’t He? So, brother, this God who has been made Vyas, so look, who is sitting here? Yes, what will this one be called? Hm? Who? What will this one be called? Arey, towards whom was a gesture made? A gesture was made towards Brahma Baba that what will this one be called? He will be called Vyas, will he not be? This one sits and makes, doesn’t he? He narrates all this knowledge, doesn’t he? But now you are not told about that knowledge of lakhs of years. Does He narrate the knowledge of lakhs of years? Hm? He doesn’t make you to write this book of the path of Bhakti, does He? Hm? They boast like this. How? That no, Vyas rightly exists. Those who deliver lectures are called Vyas.
So, look, this one has narrated all the truth. And he has written all the lies in the scriptures. Who narrated the truth? What is meant by ‘this one’? Arey, did Brahma narrate the truth or did he narrate the lies that the duration of the world is not lakhs of years? Of how many years? Hm? Hm? It is of 5000 years. So, all of them have written lies in the scriptures. Otherwise, how will the land of untruth be established? The land of untruth will be established when they narrate lies. Hm? What happened to the residents of India through hearsay? They achieved degradation, didn’t they? Yes. So, then how will the land of truth be established? They will narrate lies, hm, and the narrators are also false and whatever they narrated is also false. So, what is established? It is called an abode of untruth. It becomes and abode of untruth. No other land is called a land of truth, hm, no other land will be called a land of untruth. Hm? The Christian land, the Buddhist land, the Islamic land; they are there, aren’t they? Do the Sikhs also have their land Punjab or not? Where do they live more? They live in Punjab only, don’t they? Hm. So, none of them will be called a land of truth or a land of untruth because here the Golden Age alone is called a land of truth. Where? In India. What existed in India when it was in a satopradhaan (pure) stage? There was a land of truth. There don’t exist any other lands in the Golden Age and the Silver Age. There is no other land except the land of truth at all. Which ones? Which lands don’t exist? Neither any Buddhist land, nor the Christian land, neither any Islamic, Muslim land. This is why Bhaarat (India) alone will be called; what? That Bhaarat becomes a land of truth and Bhaarat itself becomes a land of untruth.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2928, दिनांक 01.07.2019
VCD 2928, dated 01.07.2019
प्रातः क्लास 29.11.1967
Morning Class dated 29.11.1967
VCD-2928-extracts-Bilingual
समय- 00.01-16.30
Time- 00.01-16.30
प्रातः क्लास चल रहा था – 29.11.1967. पांचवें पेज के मध्यांत में बुधवार को बात चल रही थी – किसी को पता तो नहीं है कि ये लक्ष्मी-नारायण कब राज्य करते थे, परन्तु अभी तक भी उनके मन्दिर बनाते रहते हैं यादगार। बनाते कौन हैं? ज्ञानी बनाते हैं या भगत बनाते हैं? भगत ही बनाते रहते हैं। जब कोई ज्ञान में आएंगे तो फिर मन्दिर बनाना क्या करेंगे? बन्द कर देंगे। हद के कि बेहद के? शूटिंग पीरियड में रिहर्सल करेंगे कि नहीं? काहे की रिहर्सल? मन्दिर बनाने की रिहर्सल करेंगे कि नहीं करेंगे? हाँ, सब नहीं करेंगे। हाँ, कोई-कोई हैं; नंबरवार हैं ना? तो रिहर्सल भी करेंगे भगतपने की। पूछा – तुम बनाएंगे मन्दिर? तुम अभी पुरुषोत्तम संगमयुग में कोई मन्दिर बनाएंगे? क्या जवाब देंगे? (किसी ने कुछ कहा।) मन्दिर नहीं बनाएंगे? और ये सेन्टर्स खोलते जा रहे हैं ये क्या हैं? ये रिहर्सल नहीं हो रही है? बाबा ने पूछा है तो जवाब देना चाहिए। कहते हैं नहीं। तुम ये चित्र बनाते हो मनुष्यों को समझाने के लिए। कौनसे चित्र? जड़ चित्र बनाते हो या चैतन्य चित्र से समझेंगे? चैतन्य चित्र बनाय लिया? बनाया ना? हाँ। ये तो बहुत बढ़िया चित्र बनाया। तब क्या करेंगे? कौनसा चित्र बनाएंगे? बनाएंगे? बनाएंगे ना? हाँ। बनाएंगे। डेट, तिथि-तारीख फिक्स की? अव्यक्त वाणी में बापदादा तो कहते रहते हैं; क्या? अपनी डेट फिक्स करो तो ध्यान रहेगा।
तो बताया – समझाने के लिए जड़ चित्रों से तो काम नहीं चलेगा। क्या? जड़ चित्र तो उन मन्दिरों में भी रखे हुए हैं दुनियावाले जो बनाते हैं। और यहां भी? जो भी सेन्टर वगैरा खोले उनमें जड़ चित्र ही तो रखे हुए हैं। तो उन जड़ चित्रों से बच्चाबुद्धि समझेंगे या सालिम बुद्धि समझेंगे? हँ? उन्हें प्रैक्टिकल प्रूफ चाहिए या सिर्फ चित्र देख के मान जाएंगे? प्रैक्टिकल प्रूफ चाहिए।
तो बताया – किसको भी नहीं समझाते हैं। क्यों? क्योंकि जानते ही नहीं हैं। हँ? खुद ही नहीं जानते हैं तो कैसे समझाएंगे? चित्र वही हैं जो तुम बनाते हो। लेकिन तुम जड़ चित्र बनाते हो कि कोई चैतन्य चित्र बनाया? हँ? अभी तक कोई चैतन्य चित्र बना? हँ? चैतन्य चित्र नहीं बना। तो कौनसा चित्र बना? कुछ बना या जीरो बना? हँ? शास्त्रों में लिखा है। क्या? हँ, कि पहले असुर पैदा हुए, राक्षस पैदा हुए या देवताएं पैदा हुए? बड़े कौन थे? हँ? राक्षस बड़े थे। और देवताएं बाद में बने। तो शूटिंग कहां हो रही है? अभी क्या बन रहे? क्या शूटिंग हो रही है? हँ? अरे? अभी क्या शूटिंग हो रही है? हँ? बड़े बनने की शूटिंग हो रही है? बड़ा बनना अच्छा कि छोटा बनना अच्छा? हँ? छोटे को तो फिर मां-बाप की; छोटा बच्चा होता है ना उनको मां-बाप का आसरा लेना पड़ता है। हँ? आपेही तरस परोई। मां-बाप ही हमारे ऊपर कृपा करेंगे, हँ, जो बड़े हैं उन्होने तो बहुत कमाई कर ली। और हम तो पैदा ही बाद में हुए हैं। ऐसे ना? हाँ।
तो बताया – तुम जो चित्र बनाते हो वो जड़ चित्र बनाते हो। बनाना क्या है अभी? हाँ, ये लक्ष्मी-नारायण का चैतन्य चित्र बनाना है। अब वो कोई दूसरा चित्र तो है नहीं सिवाय जड़ चित्रों के। वो लक्ष्मी-नारायण का चित्र। हँ? मन्दिर बनाते हैं बहुत खर्चा करकरके और फिर जो मन्दिर बनाते हैं समझाय किसी को नहीं सकते। क्या? तुम ये थोड़ा सा खर्च करके अच्छे चित्र बनायकरके तुम इनकी ये जीवन कहानी बैठकरके सुनाते हो। किनकी? हँ? किनकी जीवन कहानी? जीवन जड़ चित्रों का होता है या चैतन्य का होता है? हँ? जीवन तो चैतन्य चित्रों का होता है ना?
देखो, अभी तुम यहाँ बैठे हुए हो। हँ? यहाँ। तो बरोबर तुमको बाप; कौनसा बाप? बेहद का बाप। हँ? उसकी जीवन कहानी। उसका नाम, रूप, देश, काल, ये तुम्हारी बुद्धि में है। वो तो तुम्हारे अलावा कोई दूसरे की बुद्धि में होगा? पूछा। 29.11.1967 की प्रातः क्लास का छठा पेज। दूसरी लाइन। तुम सुनते रहते हो ना? भई अर्जुन को भी बाप ने; क्या? कहा। क्या कहा? गीता ज्ञान सुनाया तो क्या कहा? कि मैं किसलिए आता हूँ? नर को नारायण बनाने के लिए आता हूँ। तो नर अर्जुन हुआ ना? अभी अर्जुन को गीता सुनाई और राजयोग सिखाया। और ये राजाई स्थापन की। अब उस अर्जुन को तो लाखों बरस हो गए ऐसे लगाय दिया है। क्या? शास्त्रों में लाखों वर्ष लगाय दिया या थोड़ा टाइम लगाया? लाखों वर्ष लगाय दिया। तो इनके कथनानुसार भई गीता सुनाई, राजयोग सिखलाया, वो इनका राज्य हुआ। और वो हो गया ताज। वो हो जाता सतयुग। सतयुग को लाखों वर्ष लगाय दिया। तो जभी तुम अभी सुनते हो तो वो बोलता है कि अरे, हँ, ये तो बिल्कुल झूठ है। क्या? हँ? कि 5000 वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। क्योंकि उन्होंने तो शास्त्रों में क्या लिखा सुना? लाखों वर्ष। तो बोलते हैं बिल्कुल झूठ है। ये तो हो ही नहीं सकता कि लक्ष्मी-नारायण का राज्य 5000 वर्ष पहले इस सृष्टि पर था। अभी नए-नए बनाय रहे हैं। हँ? लाखों वर्ष कैसे हो गए? हँ? ये जो पुराने-पुराने ऋषि-मुनि हैं उन्होंने जो कुछ बताया वो सब झूठा हो गया? और ये नई नौनियां निकलीं, हँ, नई नौनियां बांस को न्याह्नों। अब ये सच्चा हो गया। और वो ऋषि-मुनि, सन्यासी इतने पुराने-पुराने वो सब झूठे हो गए? हँ?
तो देखो, वो कहते हैं ये गपोड़ा हो गया ना? अब बाप कहते हैं; क्या? कि उनका ये लाखों वर्ष का बड़ा-बड़ा गपोड़ा है। तो भक्तिमार्ग में इतनी बड़ी झूठ। ये इतना बड़ा गपोड़ा किसने बैठकरके बनाया? हँ? शुरुआत किसी ने तो की होगी। अरे, वरी पूछा जाता है ना? हाँ। इनका, बनाने वालों का, बताने वालों का लाखों वर्ष, इनका मुखिया कौन है? ये किसने बनाई भागवत? हँ? कहते हैं भई व्यास ने बनाई। अरे, अब व्यास ने बनाई ये भागवत और लाखों वर्ष हो गए इस सृष्टि को। अभी फिर उसको भगवान बताय दिया। किसको? व्यास भगवान। अभी व्यास तो देखते हो। देखते हो ना? कौन? दाढ़ी-मूंछ वाला है या बिना दाढ़ी-मूंछ का देवता है? हँ? दाढ़ी-मूंछ वाला मनुष्य है तो देवता कैसे हो गया? हँ? अरे, देवता ही नहीं है तो भगवान कैसे हो गया? तो देवता बड़ा या भगवान बड़ा? भगवान आते हैं तो मनुष्य को देवता बनाते हैं। तो भगवान बड़ा हुआ ना? तो भई ये जो भगवान को व्यास बनाय दिया, हँ, तो देखो ये यहां कौन बैठे हैं? हाँ, इसको क्या कहेंगे? हँ? किसको? इसको क्या कहेंगे? अरे, किसकी तरफ इशारा किया? ब्रह्मा बाबा की तरफ इशारा किया इसको क्या कहेंगे? व्यास कहेंगे ना? ये बैठकरके बनाते हैं ना? ये सभी ज्ञान बताते हैं ना? परन्तु अभी तुमको तो वो लाखों वरष का तो ज्ञान नहीं बताते हैं। लाखों वरष का ज्ञान सुनाते हैं? हँ? ये भक्तिमार्ग की किताब तो नहीं लिखवाते हैं ना? हँ? ये गपोड़ा मारते हैं ऐसे। कैसे? कि नहीं व्यास तो है बरोबर। जो भाषण करते हैं ना उनको व्यास कहा जाता है।
तो ये देखो, इसने सभी सच बताया है। और उसने सभी झूठ लिखा है शास्त्रों में। किसने सच बताया? इसने माने? अरे, ब्रह्मा ने सच बताया या झूठ बताया कि लाखों वर्ष की सृष्टि थोड़ेही है? कितने वर्ष की? हँ? हँ? 5000 वर्ष की है। तो उन सभी ने झूठ लिखा है शास्त्रों में। नहीं तो झूठखंड कैसे बनेगा? झूठ सुनाएंगे तब झूठ खंड बनेगा। हँ? सुनी-सुनाई बातों से भारतवासियों ने क्या हुआ? दुर्गति पाई ना? हाँ। तो फिर सचखंड कैसे बने? झूठ सुनावेंगे, हँ, और सुनाने वाले भी झूठ और जो सुनाया सो भी झूठ। तो क्या बनता है? झूठ खंड कहते हैं। झूठखंड बन जाता। और कोई भी खंड को सचखंड, हँ, कोई और खंड को झूठखंड नहीं कहा जाएगा। हँ? क्रिश्चियन खंड, बौद्धी खंड, इस्लामी खंड; ये हैं ना? सिक्खों का भी अपना खंड है कि नहीं पंजाब? ज्यादा कहां रहते हैं? पंजाब में ही रहते हैं ना? हँ। तो उनको किसी को सचखंड या झूठखंड नहीं कहा जाएगा क्योंकि यहां सतयुग को ही सचखंड कहते हैं। कहाँ? भारत में। भारत में जब सतोप्रधान स्टेज थी तब क्या था? सचखंड था। सतयुग और त्रेता में और तो कोई खंड होते ही नहीं हैं। सिवाय सचखंड के दूसरा खंड कोई होता ही नहीं। कौनसे? कौनसे खंड नहीं होते? न कोई बौद्धी खंड, न कोई क्रिश्चियन खंड और न कोई, हँ, इस्लामी, मुस्लिम खंड। इसलिए भारत को ही कहेंगे; क्या? कि भारत ही सचखंड बनता है और भारत ही झूठखंड बनता है।
A morning class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the end of the middle portion of the fifth page on Wednesday was – Nobody knows as to when these Lakshmi and Narayan used to rule, but their memorial temples are being built even now. Who builds? Do the knowledgeable ones build or do the devotees build? The devotees only keep on building. When someone enters the path of knowledge, then what will they do to the process of building temples? They will stop it. The limited ones or the unlimited ones? Will they perform rehearsal in the shooting period or not? Rehearsal of what? Will they perform the rehearsal of building temples or not? Yes, all will not do. Yes, some are there; they are numberwise, aren’t they? So, they will perform the rehearsal of being devotees as well. It was asked – Will you build temples? Will you now build any temples in the Purushottam Sangamyug? What is the reply that you will give? (Someone said something.) Will you not build temples? And what are these temples that you go on opening? Is this not a rehearsal that is going on? Baba has asked; so, you should give a reply. They say – No. You prepare these pictures in order to explain to the human beings. Which pictures? Do you prepare non-living pictures or will they understand through living pictures? Did you make the living pictures? You made, didn’t you? Yes. You prepared a very nice picture. Then what will you do? Which picture will you make? Will you make? You will make, will you not? Yes. You will make. Did you fix the date, day? BapDada keeps on telling in the Avyakt Vanis; What? If you fix your date then you will be attentive.
So, it was told – The non-living pictures will not be sufficient to explain. What? Non-living pictures are placed even in those temples which the people of the world build. And even here? In all the centers etc. which have been opened, it is the non-living pictures only which have been placed. So, will those who have a child-like intellect understand with those non-living pictures or will those with a mature intellect understand? Hm? Do they require practical proof or will they accept just by seeing the pictures? They required practical proof.
So, it was told – They don’t explain to anyone. Why? It is because they do not know at all. Hm? How will they explain when they themselves don’t know? Pictures are only those that you prepare. But do you prepare non-living pictures or did you prepare any living pictures? Hm? Has any living picture been prepared till date? Hm? Living picture has not been prepared. So, which picture was prepared? Was anything prepared or was zero prepared? Hm? It has been written in the scriptures; what? Hm; that were the demons born first, were the demons born first or were the deities born first? Who were elder? Hm? The demons were elder. And the deities were formed later. So, where is the shooting taking place? What are getting prepared now? What shooting is taking place? Hm? Arey? What shooting is taking place now? Hm? Is the shooting of becoming elders taking place? Is it better to become elder or is it better to become younger? Hm? As regards the younger one, the parents; a younger child has to take the support of the parents. Hm? You show mercy upon us yourself. The parents themselves will show mercy upon us; hm, the elder ones have earned a lot. And we have been born later on. It is like this, isn’t it? Yes.
So, it was told – The pictures that you prepare are non-living pictures. What should you prepare now? Yes, you have to prepare this living picture of Lakshmi and Narayan. Well, that is not any other picture other than the non-living pictures. That picture of Lakshmi-Narayan. Hm? People build temples by spending a lot of amount and then the temple that they build, they cannot explain to anyone. What? You spend a little and prepare nice pictures and you sit and narrate their life story (Jeevan kahaani). Whose? Hm? Whose life story? Do non-living pictures have a life (Jeevan) or do the living ones have? Hm? The living pictures have a life, don’t they?
Look, now you are sitting here. Hm? Here. So, definitely the Father, you; which Father? The unlimited Father. Hm? His life story. His name, form, country (place), time is in your intellect. Will it be in the intellect of anyone other than you? It was asked. Sixth page of the morning class dated 29.11.1967. Second line. You keep on listening, don’t you? Brother, even to Arjun, the Father; what? Told. What did He say? When He narrated the knowledge of the Gita, then what did He say? That why do I come? I come to transform a nar (man) to Narayan. So, nar is Arjun, isn’t he? Well, He narrated the Gita and taught Rajyog to Arjun. And established this kingship. Well, it has been assumed that it has been lakhs of years since Arjun existed. What? Were lakhs of years attributed or a little time attributed in the scriptures? Lakhs of years were attributed. So, as per their versions, brother, He narrated the Gita, taught Rajyog; their rule was established. And that was the crown. That was the Golden Age. Lakhs of years were attributed to the Golden Age (Satyug). When you listen to that now, then he says that arey, hm, this is completely false. What? Hm? That 5000 years ago there was a rule of these Lakshmi and Narayan. It is because what did they write and listen from the scriptures? Lakhs of years. So, they say that this is completely false. It cannot be possible at all that the rule of these Lakshmi and Narayan existed in this world 5000 years ago. Now they are making it newly. Hm? How did lakhs of years pass? Hm? Is whatever these ancient sages and saints narrated, false? And these new buds that have emerged, nayi nauniyaan baans ko nyaho. Now all this has become true. And are all those ancient sages and saints, sanyasis false? Hm?
So, look, they say, this is a boast, isn’t it? Now the Father says; what? That their big boast is of these lakhs of years. So, such a big lie on the path of Bhakti. Who sat and made such a big boast? Hm? Someone must have made a beginning. Arey, it is asked, isn’t it? Yes. They, the makers’, the narrators’ lakhs of years; who is their head? Who made this Bhaagwat (a Hindu scripture)? Hm? They say, brother, Vyas made. Arey, well, if Vyas made this Bhaagwat and if it has been lakhs of years since this world began; well, then he was mentioned to be God. Who? God Vyas. Now you see Vyas. You see, don’t you? Is he someone with beard and moustache or is he a deity without beard and moustache? Hm? If he is a human being with beard and moustache, then how can he be a deity? Hm? Arey, when he isn’t a deity itself, then how can he be God? So, is a deity greater or God greater? When God comes, He transforms the human beings to deities. So, God is greater, isn’t He? So, brother, this God who has been made Vyas, so look, who is sitting here? Yes, what will this one be called? Hm? Who? What will this one be called? Arey, towards whom was a gesture made? A gesture was made towards Brahma Baba that what will this one be called? He will be called Vyas, will he not be? This one sits and makes, doesn’t he? He narrates all this knowledge, doesn’t he? But now you are not told about that knowledge of lakhs of years. Does He narrate the knowledge of lakhs of years? Hm? He doesn’t make you to write this book of the path of Bhakti, does He? Hm? They boast like this. How? That no, Vyas rightly exists. Those who deliver lectures are called Vyas.
So, look, this one has narrated all the truth. And he has written all the lies in the scriptures. Who narrated the truth? What is meant by ‘this one’? Arey, did Brahma narrate the truth or did he narrate the lies that the duration of the world is not lakhs of years? Of how many years? Hm? Hm? It is of 5000 years. So, all of them have written lies in the scriptures. Otherwise, how will the land of untruth be established? The land of untruth will be established when they narrate lies. Hm? What happened to the residents of India through hearsay? They achieved degradation, didn’t they? Yes. So, then how will the land of truth be established? They will narrate lies, hm, and the narrators are also false and whatever they narrated is also false. So, what is established? It is called an abode of untruth. It becomes and abode of untruth. No other land is called a land of truth, hm, no other land will be called a land of untruth. Hm? The Christian land, the Buddhist land, the Islamic land; they are there, aren’t they? Do the Sikhs also have their land Punjab or not? Where do they live more? They live in Punjab only, don’t they? Hm. So, none of them will be called a land of truth or a land of untruth because here the Golden Age alone is called a land of truth. Where? In India. What existed in India when it was in a satopradhaan (pure) stage? There was a land of truth. There don’t exist any other lands in the Golden Age and the Silver Age. There is no other land except the land of truth at all. Which ones? Which lands don’t exist? Neither any Buddhist land, nor the Christian land, neither any Islamic, Muslim land. This is why Bhaarat (India) alone will be called; what? That Bhaarat becomes a land of truth and Bhaarat itself becomes a land of untruth.
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Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2929, दिनांक 02.07.2019
VCD 2929, dated 02.07.2019
प्रातः क्लास 29.11.1967
Morning class dated 29.11.1967
VCD-2929-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.43
Time- 00.01-15.43
प्रातः क्लास चल रहा था – 29.11.1967. बुधवार को सातवें पेज के मध्यादि में बात चल रही थी कि आजकल तो बाहर की दुनिया में ढ़ेर के ढ़ेर ईश्वर कहलाने वाले हैं। और फिर वो तुम्हारे लिए भी कहते हैं कि ये भी एक ईश्वर अपन को मानने वाले। ब्रह्मा को भगवान बताते हैं। ब्रह्मा को क्या समझते हैं? कि ये ही हमारा गीता का भगवान है, साकार भगवान है। नहीं तो है तो नहीं ना? मानते तो नहीं हैं ना बच्ची। अब मानें या न मानें। जिसके लिए बोलते हैं ब्रह्मा के लिए वो अपन को क्या समझता है? हँ? इस दुनिया में साकार भगवान अपन को समझता है या नहीं समझता है? हँ? कि किसी और को समझता है? नहीं।
तो फिर देखो ये बनी; क्या बनी? ये शूटिंग पीरियड में ये बनी अपन को भगवान बनाने वाली बात। जैसे व्यास ने बनाया; कुछ न कुछ झूठ बनाया ना? वैसे ये भी मुख से बनाते रहते हैं। कौन? हँ? तुम सुनते हो कभी मुख से कि ये अपन को ये तो कहते हो ये है बहुत जन्म के अंत के जनम के भी अंत में प्रवेश करता हूँ। तो ये बात मनुष्य नहीं समझ सकते हैं कि बहुत जन्म क्या? अरे; बहुत जन्म 84 जन्म 84 का चक्र गाया हुआ है। और उस जनम का भी अंत। वानप्रस्थ अवस्था। 60 साल। कहते हैं ना साठ तो लगी लाठ। कौनसी लाठ? ज्ञान की लाठी। तो ये मुरली तुम्हारी लाठी है ना? हाँ। तो ये 60 साल 84 जनम का भी अंत। और उस जनम के भी अंत में प्रवेश करता हूँ। माना ऐसे नहीं कि 84वें जन्म का 60 साल हुआ तब ही। नहीं। उसका भी अंत। कितना अंत? उसमें भी ज्यादा से ज्यादा 100 साल तो आयु हो जाती है ना कोई-कोई की कलियुग में? नहीं? हाँ, हो जाती है। और फिर शास्त्रों में तो ब्रह्मा की आयु कितनी गाई हुई है? 100 साल। तो वो 60 साल में 40 साल वो और जोड़ दो। तो 40 साल पूरे हुए तो 100 साल पूरे हो जाते हैं ना? तो फिर 1936 में कहें 37 में, हँ, कि 60 साल हुए थे और वानप्रस्थ अवस्था में मैंने प्रवेश किया था। फिर उसके, उसके भी अंत क्या कहें 40 साल जोड़ें तो? 100 साल पूरे हुए माना 1976 आया। कितना आया? 1976. तो बताया उसके भी अंत के अंत में प्रवेश करता हूँ। हँ?
तो ये मनुष्य नहीं समझ सकते हैं ये बात की गहराई को। तो अगर नहीं समझ सकते हैं तो तुम लिख दियो। फिर उनकी, हँ, उनके ऊपर कि वो भी लिखा हुआ है; श्री कृष्ण के जो ये हैं ना उसमें लिखा है बहुत जन्म के अंत के जनम के अंत में भी मैं प्रवेश करके फिर इनका नाम ब्रह्मा रखता हूँ। हँ? ब्रह्मा नाम क्यों रखता हूँ? हँ? वो परमपुरुष है ना सुप्रीम सोल? तो जो परमपुरुष है उसको परम अम्मा चाहिए कि नहीं? चाहिए। तो जिस पुरुष तन में प्रवेश करते हैं तो काम निकालने के लिए नाम ब्रह्मा दे देते हैं। अब ये लिखा भी तो हुआ है ना।
तो बच्चे जब वो कहते हैं ब्रह्मा भगवान? प्रश्नात्मक रूप में बोलते हैं ना ब्रह्मा भगवान? अरे, बोलो ये देखो, पढ़ो ना इसमें क्या लिखा है? अच्छा, अच्छा, वो लिखत को छोड़ो। चलो भला झाड़ के ऊपर आ जाओ। क्या? ये लक्ष्मी-नारायण का चित्र छोड़ो। कहाँ आ जाओ? झाड़ के ऊपर आ जाओ। देखो, ये सृष्टि रूपी वृक्ष है। तो जो ऊपर में है, हँ, दिखाते हैं ना? क्या? कि इसकी जड़ें ऊपर फैली हुई हैं, शाखाएं नीचे हैं, अधोमुखी शाखाएं। तो अब देखो इस झाड़ के पिछाड़ी में देखो जहाँ कलियुग है ना? हँ? तहां पिछाड़ी में खड़ा है। एकदम आखिर में। हँ? देखो, कलियुग में नहीं खड़ा हुआ है? अरे, कलियुग पिछाड़ी का युग है कि अगाड़ी या मध्य का युग है? पिछाड़ी का युग है ना? तो देखो पीछे यहाँ झाड़ में बैठे-बैठे जड़ में तपस्या कर रहे हैं। तो ज़रूर पतित है। तपस्या कौन करेगा? पाप किये हुए होंगे तो उन पापों से उऋण होने के लिए तप करते हैं। हाँ, तो जरूर पतित हुए हैं। ऊपर में, पिछाड़ी में तमोप्रधान; सो सतोप्रधान बनने के लिए भई ये योग सीख रहे हैं। ये भारत का राजयोग तो प्रसिद्ध है ना? हँ? तो अभी है ना ये? चित्रों में सब लिखा हुआ तो है ना? तो ये चित्रों में उनको ये समझाना चाहिए। परन्तु नहीं। बस ये जो सुनी-सुनाई बातें हैं शास्त्रों की उनमें ही चले आते हैं।
तो देखो ये भारत में सुनी-सुनाई के ऊपर ये तो तुम जानते हो कि सतयुग से लेकरके त्रेता तक तुमको बाप ने क्या दिया? ज्ञान दिया। सतयुग-त्रेता तक ज्ञान दिया कि सतयुग त्रेता की शूटिंग तक ज्ञान दिया? सतयुग-त्रेता की शूटिंग तक ज्ञान दिया। हँ? प्रैक्टिकल साकार में दिया? हँ? दिया। हाँ। और प्रवृत्ति में रहकरके दिया या निवृत्ति में रहकर दिया? प्रवृत्ति में रहकर दिया। हाँ। तो जिसके कारण तुम आधा कल्प तो, हँ, उस ज्ञान के प्रभाव से जो शूटिंग पीरियड में तुमने लिया तुम आधा कल्प स्वर्ग में सुखी दुनिया में। बाकि तो फिर ये देखो होती है नई सुनी-सुनाई। हँ? क्या? सुनी-सुनाई बातों से भारतवासियों ने दुर्गति पाई? किसकी सुनी-सुनाई बातों से? जो भी ये धरमपिताएं आए ना, हँ, द्वैतवाद फैलाने वाले, हँ, दो-दो धर्म, दो-दो राज्य, दो-दो भाषाएं, दो-दो कुल, मतें, तो उनकी सुनी-सुनाई बातों से उन सुनी-सुनाई बातों के कारण तो देखो मनुष्य इतना वो बैठकरके रावण बनाया है। हँ? शास्त्रों की सुनी-सुनाई बातों पर ये रावण बनाया ना? इतना बड़ा बनाय दिया। और पीछे देखो कितने शास्त्र बनाए हैं। रावण के हाथ में शास्त्र देते हैं ना? हाँ। और सभी फालतू। अब हैं तो ना? कोई भी हैं।
अब ये कलियुग का है अंत। बाप बैठकरके समझाते हैं। हँ? क्या समझाते हैं? कि मैं कलियुग के अंत में आकरके, हँ, सतयुग की, सतयुग रूपी सवेरे की आदि करता हूँ। झूठखंड खलास करके; हँ? अरे, गीता में क्या लिखा हुआ है? धर्म संस्थापनार्थाय विनाशाय च दुष्कृताम्। तो दुष्ट कर्मों का युग कौनसा है? कलियुग। तो कलियुग के अंत में आकरके बैठके समझाते हैं। अच्छा, भागवत निकालो, गीता भी निकालो, ये भी निकालो। हँ? तो तुम ये शास्त्र निकालेंगे ना? दूसरा तो इन शास्त्रों की बातों को कोई नहीं समझेगा। हँ? कहां है ये अकासुर-बकासुर-फकासुर? हँ? ये शिकलों वाला किसम-किसम का, अनेक प्रकार का। या कृष्ण बैठकरके फिर चक्कर घुमाते हैं। हँ? क्या? दिखाया है ना सुदर्शन चक्र? हाँ। और फिर उससे क्या करते हैं चक्कर से? गले काटते हैं, हिंसा करते हैं। तो ये सब बातें बच्चों को समझ में आती हैं ना? क्या? कि स्व माने आत्मा। दर्शन माने आत्मा के 84 के चक्र को देखना। दर्शन माने? देखना। उसको बार-बार बुद्धि में घुमाना 84 के चक्र को इसको कहते हैं स्वदर्शन चक्र।
ये तो बच्चों की बुद्धि में आता है ना? और जब अपनी आत्मा का, हँ, साक्षात्कार हो जाता है ना सुदर्शन चक्र से तो अपने पार्ट का तो मालूम पड़ जाता है तुम बच्चों को कि हमारा पार्ट तो, हँ, और धर्मों के मुकाबले या जो उन धर्मों में कन्वर्ट होते हैं उनके मुकाबले अच्छा है या खराब है? हँ? तुमको तो पता चल जाता है कि तुम बच्चों का तो पार्ट, हँ, जन्म-जन्मान्तर का सुख का कितना पार्ट है क्योंकि और धरम वाले तो आधा हिस्सा सुख इस दुनिया में आधा हिस्सा दुख भोगते हैं। और तुम? तुम तीन हिस्सा सुख और, हँ, एक हिस्सा दुख भोगते हो। उसमें भी नंबरवार। कोई-कोई तो ऐसे भी बच्चे हैं, हँ, निराले; थोड़े ही होंगे ना जो 82-83 जन्म तक भी सुख में रहते हैं। तो तुम बच्चों को तो समझ में आता है कि ये सुदर्शन चक्र क्या है? तो तुम अपने चक्र की बात, हँ, जब सही-साबिति करके बताते हो ना, प्रूफ प्रमाण पूर्वक तो फिर उनकी आँखें खुलती हैं, अरे, ये तो बहुत ऊँच हैं। और इनके मुकाबले तो हम तो बहुत? बहुत नीच। हाँ? तो उनका गला कटता है कि नहीं? हँ? वो सर उठा के भाग जाएंगे या झुकेंगे? झुकेंगे ना? तो झुकेंगे माना सर नीचे गिरा। हाँ। तो ये बात तुम्हारी समझ में आती है कि कौनसा, अरे, स्वदर्शन चक्र घुमाया। हँ? और गला दूसरों का, असुरों का गला काट दिया।
A morning class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the seventh page on Wednesday was that nowadays there are numerous people in the outside world who call themselves God. And then they say for you also that these are also a group calling themselves as God. They describe Brahma to be God. What do they consider Brahma to be? That this one himself is our God of Gita, corporeal God. Otherwise, he isn’t, is he? You don’t believe, do you daughter? Well, whether you believe or not; the one for whom you say, for Brahma, what does he think himself to be? Hm? Does he consider himself to be corporeal God in this world or not? Hm? Or does he consider anyone else to be so? No.
So, then look, this was formed; what was formed? During the shooting period this topic of calling oneself God was formed. Just as Vyas made; he made lies to some extent or the other, didn’t he? Similarly, this one also keeps on making through the mouth. Who? Hm? You sometimes listen from his mouth that he; you do say that I enter in the end of the last one of many births. So, people cannot understand as to what is meant by many births? Arey; ‘Many births’ means 84 births; the cycle of 84 is famous. And the end of even that birth. Vaanprasth (retired) stage. 60 years. It is said that when one reaches the age of sixty, he starts holding the walking stick. Which walking stick? The walking stick of knowledge. So, this Murli is your walking stick, isn’t it? Yes. So, these 60 years are the end of the 84 births. And I enter in even the end of that birth. It means that it is not as if only when he reached the age of 60 years in the 84th birth. No. End of even that. End to what extent? Even in that some persons reach the age of 100 years at the most in the Iron Age, don’t they? So, then we can say in 1936, in 37, hm, that he reached the age of 60 years and I entered in the vaanprasth stage. Then what can be said of its end as well, if you add 40 years? 100 years were completed, i.e. the year 1976 arrived. What arrived? 1976. So, it was told that I enter in the end of the end of even that. Hm?
So, these human beings cannot understand the depth of this topic. So, if they cannot understand then you write [to them]. Then their, on them that that has also been written; these things of Shri Krishna are there, aren’t they there? It has been written in it that I enter in the end of the last one of many births and name him Brahma. Hm? Why do I name him Brahma? Hm? That Supreme Soul is the Parampurush (the supreme man), isn’t He? So, does the Parampurush require Param Amma (the supreme mother) or not? He requires. So, the male body in which He enters, He names him Brahma to extract His work. Well, this is also written, isn’t it?
So, children, when they say – Is Brahma God? They say ‘God Brahma’ in an interrogative form, don’t they? Arey, tell them, look at this, read it, will you not? What is written in it? Achcha, achcha, leave that write-up. Okay, come to the Tree. What? Leave this picture of Lakshmi-Narayan. Where should you come? Come to the Tree. Look, this is the world tree. So, the one who is above, hm, it is shown, isn’t it? What? That its roots are spread above, the branches are down, the downward facing branches. So, now look, look at the back of this tree where there is the Iron Age, isn’t it? Hm? He is standing there at the end. At the very end. Hm? Look, is he not standing in the Iron Age? Arey, is it a latter Age or a starting Age or a middle Age? It is a latter Age, isn’t it? So, look, later while sitting here at the root in the tree you are doing Tapasya (penance). So, definitely you are sinful. Who will do Tapasya? If someone has committed sins, then in order to be free from those sins, he does penance. Yes, so, definitely you have become sinful. At the top, in the end tamopradhaan (impure); so, brother, in order to become satopradhaan (pure) you are learning this Yoga. This rajyog of Bhaarat is famous, isn’t it? Hm? So, this is there now, isn’t it? Everything is written in the scriptures, isn’t it? So, this should be explained to them in these pictures. But, no. They just continue with the hearsay in the scriptures.
So, look, you know that in India on the basis of hearsay; from the Golden Age to the Silver Age what did the Father give you? He gave knowledge. Did He give the knowledge up to the Golden Age, the Silver Age or did He give the knowledge up to the shooting of the Golden Age, the Silver Age? He gave the knowledge up to the shooting of the Golden Age, the Silver Age. Hm? Did He give in practical, in corporeal? Hm? He gave. And did He give while being in a household or did He give while being in renunciation? He gave while living in a household. Yes. So, the reason for which you for half a Kalpa; hm, whatever you gained due to the effect of that knowledge in the shooting period, you were in the joyful world in heaven for half a Kalpa. As for the rest look, this is new hearsay. Hm? What? Did the residents of India undergo degradation because of hearsay? Through the hearsay of whom? All these founders of religions, who spread dualism, who came, didn’t they? Two religions, two kingdoms, two languages, two clans, opinions; so, through their hearsay, because of those topics of hearsay, look, human beings sat and made that Ravan. Hm? You made this Ravan based on the hearsay of the scriptures, didn’t you? You made it so big. And later look, you made so many scriptures! Scriptures are given in the hands of Ravan, aren’t they? Yes. And all are waste. Well, they are there, aren’t they? They may be anyone.
Now this is the end of the Iron Age. The Father sits and explains. Hm? What does He explain? That I come in the end of the Iron Age and start the Golden Age, the Golden Age-like morning. By ending the land of falsehood. Hm? Arey, what has been written in the Gita? Dharma sansthaapanaarthaay vinaashaay ch dushkritaam. So, which is the Age of wicked actions? Iron Age. So, I come in the end of the Iron Age and sit and explain. Achcha, take out the Bhaagwat, take out the Gita as well; take out this as well. Hm? So, you will take out these scriptures, will you not? Nobody else will understand the topics of these scriptures. Hm? Were is this Akasur-Bakasur-Fakasur? Hm? The one with different faces of different kinds. Or Krishna sits and rotates the discus (chakkar). Hm? What? Sudarshan Chakra has been shown, hasn’t it been? Yes. And then what does he do with it, with the discus? He cuts the throats, indulges in violence. So, children understand all these topics, don’t they? What? That swa means soul. Darshan means to see the cycle of 84 [births] of the soul. What is meant by darshan? To see. To rotate the cycle of 84 in the intellect again and again; this is called Swadarshan Chakra.
This comes in the intellect of the children, doesn’t it? And when one has vision of one’s soul through the Sudarshan Chakra, then you children get to know about your part as to what is our part, hm, is it good or bad when compared to other religions or when compared to those who convert to those religions? Hm? You get to know that the part of you children, hm, to what extent is your part of happiness for many births because people of other religions experience half the time in this world in joy and half the time in sorrows. And you? You experience three fourths part happiness and one part sorrows. Even in that it is numberwise. There are some such children also, hm, unique; There will be very few who remain in happiness for 82-83 births. So, you children understand as to what this Sudarshan Chakra is. So, when you narrate the topic of your chakra (cycle) with proofs, then their eyes open, arey, these people are very great. And when compared to them we are very? Very low. Yes? So, does their throat get cut or not? Hm? Will they raise their heads and run away or will they bow? They will bow, will they not? So, they will bow means that their head fell down. Yes. So, you understand this topic as to which, arey, Swadarshan Chakra was rotated. Hm? And the throats of others, the demons were cut.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2929, दिनांक 02.07.2019
VCD 2929, dated 02.07.2019
प्रातः क्लास 29.11.1967
Morning class dated 29.11.1967
VCD-2929-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.43
Time- 00.01-15.43
प्रातः क्लास चल रहा था – 29.11.1967. बुधवार को सातवें पेज के मध्यादि में बात चल रही थी कि आजकल तो बाहर की दुनिया में ढ़ेर के ढ़ेर ईश्वर कहलाने वाले हैं। और फिर वो तुम्हारे लिए भी कहते हैं कि ये भी एक ईश्वर अपन को मानने वाले। ब्रह्मा को भगवान बताते हैं। ब्रह्मा को क्या समझते हैं? कि ये ही हमारा गीता का भगवान है, साकार भगवान है। नहीं तो है तो नहीं ना? मानते तो नहीं हैं ना बच्ची। अब मानें या न मानें। जिसके लिए बोलते हैं ब्रह्मा के लिए वो अपन को क्या समझता है? हँ? इस दुनिया में साकार भगवान अपन को समझता है या नहीं समझता है? हँ? कि किसी और को समझता है? नहीं।
तो फिर देखो ये बनी; क्या बनी? ये शूटिंग पीरियड में ये बनी अपन को भगवान बनाने वाली बात। जैसे व्यास ने बनाया; कुछ न कुछ झूठ बनाया ना? वैसे ये भी मुख से बनाते रहते हैं। कौन? हँ? तुम सुनते हो कभी मुख से कि ये अपन को ये तो कहते हो ये है बहुत जन्म के अंत के जनम के भी अंत में प्रवेश करता हूँ। तो ये बात मनुष्य नहीं समझ सकते हैं कि बहुत जन्म क्या? अरे; बहुत जन्म 84 जन्म 84 का चक्र गाया हुआ है। और उस जनम का भी अंत। वानप्रस्थ अवस्था। 60 साल। कहते हैं ना साठ तो लगी लाठ। कौनसी लाठ? ज्ञान की लाठी। तो ये मुरली तुम्हारी लाठी है ना? हाँ। तो ये 60 साल 84 जनम का भी अंत। और उस जनम के भी अंत में प्रवेश करता हूँ। माना ऐसे नहीं कि 84वें जन्म का 60 साल हुआ तब ही। नहीं। उसका भी अंत। कितना अंत? उसमें भी ज्यादा से ज्यादा 100 साल तो आयु हो जाती है ना कोई-कोई की कलियुग में? नहीं? हाँ, हो जाती है। और फिर शास्त्रों में तो ब्रह्मा की आयु कितनी गाई हुई है? 100 साल। तो वो 60 साल में 40 साल वो और जोड़ दो। तो 40 साल पूरे हुए तो 100 साल पूरे हो जाते हैं ना? तो फिर 1936 में कहें 37 में, हँ, कि 60 साल हुए थे और वानप्रस्थ अवस्था में मैंने प्रवेश किया था। फिर उसके, उसके भी अंत क्या कहें 40 साल जोड़ें तो? 100 साल पूरे हुए माना 1976 आया। कितना आया? 1976. तो बताया उसके भी अंत के अंत में प्रवेश करता हूँ। हँ?
तो ये मनुष्य नहीं समझ सकते हैं ये बात की गहराई को। तो अगर नहीं समझ सकते हैं तो तुम लिख दियो। फिर उनकी, हँ, उनके ऊपर कि वो भी लिखा हुआ है; श्री कृष्ण के जो ये हैं ना उसमें लिखा है बहुत जन्म के अंत के जनम के अंत में भी मैं प्रवेश करके फिर इनका नाम ब्रह्मा रखता हूँ। हँ? ब्रह्मा नाम क्यों रखता हूँ? हँ? वो परमपुरुष है ना सुप्रीम सोल? तो जो परमपुरुष है उसको परम अम्मा चाहिए कि नहीं? चाहिए। तो जिस पुरुष तन में प्रवेश करते हैं तो काम निकालने के लिए नाम ब्रह्मा दे देते हैं। अब ये लिखा भी तो हुआ है ना।
तो बच्चे जब वो कहते हैं ब्रह्मा भगवान? प्रश्नात्मक रूप में बोलते हैं ना ब्रह्मा भगवान? अरे, बोलो ये देखो, पढ़ो ना इसमें क्या लिखा है? अच्छा, अच्छा, वो लिखत को छोड़ो। चलो भला झाड़ के ऊपर आ जाओ। क्या? ये लक्ष्मी-नारायण का चित्र छोड़ो। कहाँ आ जाओ? झाड़ के ऊपर आ जाओ। देखो, ये सृष्टि रूपी वृक्ष है। तो जो ऊपर में है, हँ, दिखाते हैं ना? क्या? कि इसकी जड़ें ऊपर फैली हुई हैं, शाखाएं नीचे हैं, अधोमुखी शाखाएं। तो अब देखो इस झाड़ के पिछाड़ी में देखो जहाँ कलियुग है ना? हँ? तहां पिछाड़ी में खड़ा है। एकदम आखिर में। हँ? देखो, कलियुग में नहीं खड़ा हुआ है? अरे, कलियुग पिछाड़ी का युग है कि अगाड़ी या मध्य का युग है? पिछाड़ी का युग है ना? तो देखो पीछे यहाँ झाड़ में बैठे-बैठे जड़ में तपस्या कर रहे हैं। तो ज़रूर पतित है। तपस्या कौन करेगा? पाप किये हुए होंगे तो उन पापों से उऋण होने के लिए तप करते हैं। हाँ, तो जरूर पतित हुए हैं। ऊपर में, पिछाड़ी में तमोप्रधान; सो सतोप्रधान बनने के लिए भई ये योग सीख रहे हैं। ये भारत का राजयोग तो प्रसिद्ध है ना? हँ? तो अभी है ना ये? चित्रों में सब लिखा हुआ तो है ना? तो ये चित्रों में उनको ये समझाना चाहिए। परन्तु नहीं। बस ये जो सुनी-सुनाई बातें हैं शास्त्रों की उनमें ही चले आते हैं।
तो देखो ये भारत में सुनी-सुनाई के ऊपर ये तो तुम जानते हो कि सतयुग से लेकरके त्रेता तक तुमको बाप ने क्या दिया? ज्ञान दिया। सतयुग-त्रेता तक ज्ञान दिया कि सतयुग त्रेता की शूटिंग तक ज्ञान दिया? सतयुग-त्रेता की शूटिंग तक ज्ञान दिया। हँ? प्रैक्टिकल साकार में दिया? हँ? दिया। हाँ। और प्रवृत्ति में रहकरके दिया या निवृत्ति में रहकर दिया? प्रवृत्ति में रहकर दिया। हाँ। तो जिसके कारण तुम आधा कल्प तो, हँ, उस ज्ञान के प्रभाव से जो शूटिंग पीरियड में तुमने लिया तुम आधा कल्प स्वर्ग में सुखी दुनिया में। बाकि तो फिर ये देखो होती है नई सुनी-सुनाई। हँ? क्या? सुनी-सुनाई बातों से भारतवासियों ने दुर्गति पाई? किसकी सुनी-सुनाई बातों से? जो भी ये धरमपिताएं आए ना, हँ, द्वैतवाद फैलाने वाले, हँ, दो-दो धर्म, दो-दो राज्य, दो-दो भाषाएं, दो-दो कुल, मतें, तो उनकी सुनी-सुनाई बातों से उन सुनी-सुनाई बातों के कारण तो देखो मनुष्य इतना वो बैठकरके रावण बनाया है। हँ? शास्त्रों की सुनी-सुनाई बातों पर ये रावण बनाया ना? इतना बड़ा बनाय दिया। और पीछे देखो कितने शास्त्र बनाए हैं। रावण के हाथ में शास्त्र देते हैं ना? हाँ। और सभी फालतू। अब हैं तो ना? कोई भी हैं।
अब ये कलियुग का है अंत। बाप बैठकरके समझाते हैं। हँ? क्या समझाते हैं? कि मैं कलियुग के अंत में आकरके, हँ, सतयुग की, सतयुग रूपी सवेरे की आदि करता हूँ। झूठखंड खलास करके; हँ? अरे, गीता में क्या लिखा हुआ है? धर्म संस्थापनार्थाय विनाशाय च दुष्कृताम्। तो दुष्ट कर्मों का युग कौनसा है? कलियुग। तो कलियुग के अंत में आकरके बैठके समझाते हैं। अच्छा, भागवत निकालो, गीता भी निकालो, ये भी निकालो। हँ? तो तुम ये शास्त्र निकालेंगे ना? दूसरा तो इन शास्त्रों की बातों को कोई नहीं समझेगा। हँ? कहां है ये अकासुर-बकासुर-फकासुर? हँ? ये शिकलों वाला किसम-किसम का, अनेक प्रकार का। या कृष्ण बैठकरके फिर चक्कर घुमाते हैं। हँ? क्या? दिखाया है ना सुदर्शन चक्र? हाँ। और फिर उससे क्या करते हैं चक्कर से? गले काटते हैं, हिंसा करते हैं। तो ये सब बातें बच्चों को समझ में आती हैं ना? क्या? कि स्व माने आत्मा। दर्शन माने आत्मा के 84 के चक्र को देखना। दर्शन माने? देखना। उसको बार-बार बुद्धि में घुमाना 84 के चक्र को इसको कहते हैं स्वदर्शन चक्र।
ये तो बच्चों की बुद्धि में आता है ना? और जब अपनी आत्मा का, हँ, साक्षात्कार हो जाता है ना सुदर्शन चक्र से तो अपने पार्ट का तो मालूम पड़ जाता है तुम बच्चों को कि हमारा पार्ट तो, हँ, और धर्मों के मुकाबले या जो उन धर्मों में कन्वर्ट होते हैं उनके मुकाबले अच्छा है या खराब है? हँ? तुमको तो पता चल जाता है कि तुम बच्चों का तो पार्ट, हँ, जन्म-जन्मान्तर का सुख का कितना पार्ट है क्योंकि और धरम वाले तो आधा हिस्सा सुख इस दुनिया में आधा हिस्सा दुख भोगते हैं। और तुम? तुम तीन हिस्सा सुख और, हँ, एक हिस्सा दुख भोगते हो। उसमें भी नंबरवार। कोई-कोई तो ऐसे भी बच्चे हैं, हँ, निराले; थोड़े ही होंगे ना जो 82-83 जन्म तक भी सुख में रहते हैं। तो तुम बच्चों को तो समझ में आता है कि ये सुदर्शन चक्र क्या है? तो तुम अपने चक्र की बात, हँ, जब सही-साबिति करके बताते हो ना, प्रूफ प्रमाण पूर्वक तो फिर उनकी आँखें खुलती हैं, अरे, ये तो बहुत ऊँच हैं। और इनके मुकाबले तो हम तो बहुत? बहुत नीच। हाँ? तो उनका गला कटता है कि नहीं? हँ? वो सर उठा के भाग जाएंगे या झुकेंगे? झुकेंगे ना? तो झुकेंगे माना सर नीचे गिरा। हाँ। तो ये बात तुम्हारी समझ में आती है कि कौनसा, अरे, स्वदर्शन चक्र घुमाया। हँ? और गला दूसरों का, असुरों का गला काट दिया।
A morning class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the seventh page on Wednesday was that nowadays there are numerous people in the outside world who call themselves God. And then they say for you also that these are also a group calling themselves as God. They describe Brahma to be God. What do they consider Brahma to be? That this one himself is our God of Gita, corporeal God. Otherwise, he isn’t, is he? You don’t believe, do you daughter? Well, whether you believe or not; the one for whom you say, for Brahma, what does he think himself to be? Hm? Does he consider himself to be corporeal God in this world or not? Hm? Or does he consider anyone else to be so? No.
So, then look, this was formed; what was formed? During the shooting period this topic of calling oneself God was formed. Just as Vyas made; he made lies to some extent or the other, didn’t he? Similarly, this one also keeps on making through the mouth. Who? Hm? You sometimes listen from his mouth that he; you do say that I enter in the end of the last one of many births. So, people cannot understand as to what is meant by many births? Arey; ‘Many births’ means 84 births; the cycle of 84 is famous. And the end of even that birth. Vaanprasth (retired) stage. 60 years. It is said that when one reaches the age of sixty, he starts holding the walking stick. Which walking stick? The walking stick of knowledge. So, this Murli is your walking stick, isn’t it? Yes. So, these 60 years are the end of the 84 births. And I enter in even the end of that birth. It means that it is not as if only when he reached the age of 60 years in the 84th birth. No. End of even that. End to what extent? Even in that some persons reach the age of 100 years at the most in the Iron Age, don’t they? So, then we can say in 1936, in 37, hm, that he reached the age of 60 years and I entered in the vaanprasth stage. Then what can be said of its end as well, if you add 40 years? 100 years were completed, i.e. the year 1976 arrived. What arrived? 1976. So, it was told that I enter in the end of the end of even that. Hm?
So, these human beings cannot understand the depth of this topic. So, if they cannot understand then you write [to them]. Then their, on them that that has also been written; these things of Shri Krishna are there, aren’t they there? It has been written in it that I enter in the end of the last one of many births and name him Brahma. Hm? Why do I name him Brahma? Hm? That Supreme Soul is the Parampurush (the supreme man), isn’t He? So, does the Parampurush require Param Amma (the supreme mother) or not? He requires. So, the male body in which He enters, He names him Brahma to extract His work. Well, this is also written, isn’t it?
So, children, when they say – Is Brahma God? They say ‘God Brahma’ in an interrogative form, don’t they? Arey, tell them, look at this, read it, will you not? What is written in it? Achcha, achcha, leave that write-up. Okay, come to the Tree. What? Leave this picture of Lakshmi-Narayan. Where should you come? Come to the Tree. Look, this is the world tree. So, the one who is above, hm, it is shown, isn’t it? What? That its roots are spread above, the branches are down, the downward facing branches. So, now look, look at the back of this tree where there is the Iron Age, isn’t it? Hm? He is standing there at the end. At the very end. Hm? Look, is he not standing in the Iron Age? Arey, is it a latter Age or a starting Age or a middle Age? It is a latter Age, isn’t it? So, look, later while sitting here at the root in the tree you are doing Tapasya (penance). So, definitely you are sinful. Who will do Tapasya? If someone has committed sins, then in order to be free from those sins, he does penance. Yes, so, definitely you have become sinful. At the top, in the end tamopradhaan (impure); so, brother, in order to become satopradhaan (pure) you are learning this Yoga. This rajyog of Bhaarat is famous, isn’t it? Hm? So, this is there now, isn’t it? Everything is written in the scriptures, isn’t it? So, this should be explained to them in these pictures. But, no. They just continue with the hearsay in the scriptures.
So, look, you know that in India on the basis of hearsay; from the Golden Age to the Silver Age what did the Father give you? He gave knowledge. Did He give the knowledge up to the Golden Age, the Silver Age or did He give the knowledge up to the shooting of the Golden Age, the Silver Age? He gave the knowledge up to the shooting of the Golden Age, the Silver Age. Hm? Did He give in practical, in corporeal? Hm? He gave. And did He give while being in a household or did He give while being in renunciation? He gave while living in a household. Yes. So, the reason for which you for half a Kalpa; hm, whatever you gained due to the effect of that knowledge in the shooting period, you were in the joyful world in heaven for half a Kalpa. As for the rest look, this is new hearsay. Hm? What? Did the residents of India undergo degradation because of hearsay? Through the hearsay of whom? All these founders of religions, who spread dualism, who came, didn’t they? Two religions, two kingdoms, two languages, two clans, opinions; so, through their hearsay, because of those topics of hearsay, look, human beings sat and made that Ravan. Hm? You made this Ravan based on the hearsay of the scriptures, didn’t you? You made it so big. And later look, you made so many scriptures! Scriptures are given in the hands of Ravan, aren’t they? Yes. And all are waste. Well, they are there, aren’t they? They may be anyone.
Now this is the end of the Iron Age. The Father sits and explains. Hm? What does He explain? That I come in the end of the Iron Age and start the Golden Age, the Golden Age-like morning. By ending the land of falsehood. Hm? Arey, what has been written in the Gita? Dharma sansthaapanaarthaay vinaashaay ch dushkritaam. So, which is the Age of wicked actions? Iron Age. So, I come in the end of the Iron Age and sit and explain. Achcha, take out the Bhaagwat, take out the Gita as well; take out this as well. Hm? So, you will take out these scriptures, will you not? Nobody else will understand the topics of these scriptures. Hm? Were is this Akasur-Bakasur-Fakasur? Hm? The one with different faces of different kinds. Or Krishna sits and rotates the discus (chakkar). Hm? What? Sudarshan Chakra has been shown, hasn’t it been? Yes. And then what does he do with it, with the discus? He cuts the throats, indulges in violence. So, children understand all these topics, don’t they? What? That swa means soul. Darshan means to see the cycle of 84 [births] of the soul. What is meant by darshan? To see. To rotate the cycle of 84 in the intellect again and again; this is called Swadarshan Chakra.
This comes in the intellect of the children, doesn’t it? And when one has vision of one’s soul through the Sudarshan Chakra, then you children get to know about your part as to what is our part, hm, is it good or bad when compared to other religions or when compared to those who convert to those religions? Hm? You get to know that the part of you children, hm, to what extent is your part of happiness for many births because people of other religions experience half the time in this world in joy and half the time in sorrows. And you? You experience three fourths part happiness and one part sorrows. Even in that it is numberwise. There are some such children also, hm, unique; There will be very few who remain in happiness for 82-83 births. So, you children understand as to what this Sudarshan Chakra is. So, when you narrate the topic of your chakra (cycle) with proofs, then their eyes open, arey, these people are very great. And when compared to them we are very? Very low. Yes? So, does their throat get cut or not? Hm? Will they raise their heads and run away or will they bow? They will bow, will they not? So, they will bow means that their head fell down. Yes. So, you understand this topic as to which, arey, Swadarshan Chakra was rotated. Hm? And the throats of others, the demons were cut.
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- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2930, दिनांक 03.07.2019
VCD 2930, dated 03.07.2019
प्रातः क्लास 29.11.1967
Morning Class dated 29.11.1967
VCD-2930-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-18.39
Time- 00.01-18.39
प्रातः क्लास चल रहा था 29.11.1967 बुधवार को आठवें पेज के मध्य में बात चल रही थी कि भारत की पत कौन गंवाते हैं? विशियस भारत जो वॉइसलेस था उनको विशियस तुमने बनाया ना। हँ? कौन कहता? (किसी ने कुछ कहा।) वो कहता ऊपर वाला? अरे, ज्ञान को समझाने की बात बताई कि उन जो देहधारी धर्मगुरु शास्त्रवादी हैं उनको बताओ, हँ, तुमने विशियस बनाया। तो तुम अपने ऊपर क्यों नहीं कहते हो? यहां, यहां आकर ब्रह्माकुमारियों को क्यों दोष देते हो? वो तो जो हैं वो इनमें लिख देते हैं चित्रों में। ऐसे तो सभी लिखते हैं अखबार वाले। कार्टून निकालते रहते हैं ना? हम वही जो इस समय में भारत की अवस्था है वो अवस्था हम इन चित्रों में कलियुग के अंत में लिखी हुई है। और जो इस समय में भारत की अवस्था है, विनाश काले क्या अवस्था हो गई? विपरीत बुद्धि। क्या विपरीत बुद्धि हो गई? हँ? वो लिखी हुई है। क्या विपरीत बुद्धि हो गई? हँ? हाँ। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, सर्वव्यापी है। आत्मा सो परमात्मा। हर आत्मा सो परमात्मा। और इतना ही नहीं कण-कण में भगवान। अरे! तो वो इन चित्रों में लिख दिया कि हम कोई नई बात तो नहीं करते हैं ना? जो एक्यूरेट प्रैक्टिकल बात है इस दुनिया की सो हम लिखवाते हैं। इसमें गुस्सा खाने की क्या बात है?
तो इस बात को समझाने में गुस्सा उनको ज़रूर आएगा। क्या समझाने में? कि; क्या समझाने में? कि भगवान जिसको तुम कहते हो, वो एकव्यापी है ऊंचे ते ऊंचा भगवंत। अनेकव्यापी नहीं है। और तुमने शास्त्रों में ये लगा दिया कि सर्वव्यापी है। हँ? तो वो जो अपने को टाइटल देते हैं श्री श्री 108 या श्री श्री 1008 जगतगुरु स्वामी सदानंद जी महाराज। तो उनका टाइटल तो खत्म हो गया। हँ? सर्वव्यापी का ज्ञान उड़ाएंगे, उड़ाई देंगे तो उनका टाइटल खत्म हो जाएगा कि रह जाएगा? खत्तम। गुस्सा आएगा ना? दो-चार गालियां देकर के चले जाएंगे या तो फिर चले जाने के बाद गुस्सा आएगा अपने फॉलोअर्स के सामने, चेलों के सामने। या तो फिर जाकर के अखबार में डाल देंगे।
तो ये जरूर समझना चाहिए, हँ, कि कल्प पहले भी उन्होंने अखबारों में डाला था। किन्होने? हँ? तुम तो जानते हो ना अखबारों में किसने डाला? किसने डाला? बाहर की दुनिया के जो ऋषि-मुनि, सन्यासी है उन्होंने डाला या तुम्हारी ब्राह्मणों की दुनिया के जो ऋषि-मुनि, सन्यासी हैं उन्होंने डाला? अखबार में किसने डाला? पहले भी डाला था। (किसी ने कुछ कहा।) बीके ने डाला? अच्छा? बीके के जो बीज रूप आत्माएं एडवांस ज्ञान में बताते हो, उन्होंने नहीं डाला? न डलवाया? बोलो। (किसी ने कुछ कहा।) तुमको पता ही नहीं किसने डलवाया? लो! अव्यक्त वाणी तो सुनता ही नहीं। अव्यक्त वाणी में पिछले साल बाबा ने बोल दिया ना। क्या? वो परमात्म प्रत्यक्षता बम छोड़ने वाले हैं। हँ? कौन? नंबरवार बताए दिए। ऐसे विरोधी हैं कि कोई की तो 40 साल हो गए विरोध करते-करते, कोई को 30 साल हो गए और कोई को 20 साल विरोध करते-करते। नहीं सुना अव्यक्त वाणी में? नहीं सुना? नहीं सुना। वाह! धंधा-धोरी जो करनी है। अरे भाई, बाप कहते हैं रोज क्लास सुनो। एक भी मुरली मिस नहीं होनी चाहिए।
तो ये जरूर समझना चाहिए। क्या? कि कल्प पहले भी अखबार में डाला था। पहले कौन ने डाला था? हँ? पहले कौन ने डाला था? पहले बीज रूप आत्माओं ने डाला था या पहले आधारमूर्त जड़ों ने डाला था जो इस सृष्टि वृक्ष की जड़े हैं जिनमें ऊपर से आने वाले धर्मपिताएं प्रवेश करते हैं, आधार लेते हैं उनका, जैसे क्राइस्ट ने जीसस का आधार लिया या जो आधार लेने वाले हैं, द्वैतवादी द्वापरयुगी दुनिया से आते हैं; द्वापर में ही आते हैं ना? तो उन्होंने अखबार में पहले डाला? जब बाप आते हैं तो अखबार में पहले किसने डाला? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) अच्छा, यज्ञ के आदि में बीज रुप आत्माओं ने डाला? किसने डाला? हँ? अरे? नहीं समझ में आ रहा? अरे, समझ में आ रहा है? नहीं समझ में आ रहा। यज्ञ के आदि में अखबारों में ग्लानी किसने डाली थी? हँ? बीज रूप आत्माओं ने डाली थी, रुद्राक्ष जिन्हें कहते हो रूद्र के बच्चे, जिनको रूद्र ने आंखें दी हुई हैं, तीसरा नेत्र दिया हुआ है ज्ञान का, उन्होंने डाला या उन बीजों में से जो जड़ें निकलती हैं आधारमूर्त आत्माएं, जो धर्मपिताओं के आधार बनते हैं, बनते हैं ना, उन्होंने डाला? उन्होंने डाला? हँ? यज्ञ के आदि में अखबारों में किसने डाला? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) बाहर वालों ने डाला? अच्छा? बाहर वालों को क्या पता इनकी ओम मंडली में क्या होता है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) ओम क्या? अनी? ए एन अनित? आंटी? एंटी पार्टी वालों ने डाला? तो एंटी पार्टी वाले बाहर की दुनिया के थे या एंटी पार्टी वाले जो बाबा जिनको ज्ञान सुना रहे थे सिंध हैदराबाद में उनके अंदर ही घुसे हुए थे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हां, जो अंदर थे उन्होंने अंदर की बातों को बाहर? बाहर कर दिया, बिना सोचे समझे। समझा? नहीं समझा ना पूरा? हाँ।
तो जरूर समझना चाहिए। पहले खुद ज्ञान को गहराई से समझना चाहिए, हँ, कि कल्प पहले भी अखबार में डाले थे। अभी इनको जितना भड़काएंगे, हँ, इतना और ही भड़केंगे। क्या? कभी किसी को और ज्यादा गुस्सा दिलाना हो ना तो ऐसी बात करो जिससे बहुत और ज्यादा भड़क जाए। तो क्या करना चाहिए? हँ? उनको भड़काने वाली बात बताना चाहिए या उनको ऐसी बात बताना चाहिए जिससे उनको खुशी हो? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हां, ज्ञान देने का मतलब ही क्या है? ज्ञान देने का मतलब है; ज्ञान से क्या होता है? मुक्ति, जीवनमुक्ति, दुखों से मुक्ति। और जीवन में रहते तो आनंद, सुखों की प्राप्ति। तो ज्ञान का लक्ष्य ही जब ये है; क्या? कि किसी को शांत करना। कि अशांत करना? शांत करना। और उसको प्रसन्नता देना। तो ऐसी बात सुनाना चाहिए उसकी नस पकड़ कर के जो वो खुश हो जाए। हँ? वो बातें नहीं बताना चाहिए, उनके अंदर की कमियां उनके सामने बताएंगे तो उनको गुस्सा आएगा कि नहीं? आएगा जरूर।
तो अभी उनको जितना भड़काएंगे उतना और ही भड़केंगे। है नहीं बच्ची? हाँ। क्यों? क्योंकि ये तो स्वभाव होता है ना। क्या? क्या स्वभाव होता है? किसका? कौन से प्राणियों का स्वभाव होता है? कूतरों का। कुत्तों का क्या स्वभाव होता है? भौं-2 भोंकते रहेंगे। हाँ। तुम उठाएंगे पत्थर तो वो भागता भी जाएगा और भौंकता भी जाएगा। नहीं? हां, भौं-2 भी करेगा। अरे वो भौं-2 करना छोड़ेगा थोड़ेही? क्या? कुत्तपना छोड़ेगा? नहीं छोड़ेगा। तो ये दुनिया का हाल भी ऐसा ही है बच्चे। देखो, जरूर ऐसे ये कहां से भला ये आया है? तुम भौंक, हँ, मैं तेरी भोंक पे ध्यान ही नहीं दूंगा। हँ? मेरे को नींद आ जाएगी। उसके भौंकने के ऊपर। हाथी है मस्ती से चलता जाएगा। कुत्ते के भौंकने के ऊपर ध्यान देगा? हँ? गुस्सा आएगा? कुत्ते की और दौड़ेगा? दौड़ेगा? नहीं। हाथी महारथी जो हैं वो तो मस्ती में चले जाएंगे। उनके भौंक के ऊपर ध्यान थोड़ेही? तो ऐसे ही तुम बच्चे जो हो उनको भौंकने दो। मेरे को शांति की नींद आ गई। कैसी शांति की नींद? अरे, हमारा लक्ष्य क्या है आत्मा का? कहां जाना है? परमधाम जाना है ना। तो वहां आत्मा शांत होकर के सुषुप्ति की नींद करेगी कि नहीं करेगी? हां, करेगी। तो मेरे को नींद आवे।
तो जरूर जभी कृष्ण अगर कृष्ण ही होता तो उनके पिछाड़ी भौंकते ना? हँ? भौंकते कि नहीं? हां, भौंकते। जैसे वो गाली दे देते थे ना? कौन? हँ? क्यों गाली देते थे उनको? क्या गाली देते थे? चोर है, हँ, छिनरा है। पराई औरतों को भगाता रहता है। मक्खन चुराता है। कहते हैं कि नहीं? हाँ। वाह, बात बोल दिया कि क्यों ऐसा करता है? कि चौथ के चंद्रमा को देखा था इसलिए ऐसा करता था। चौथ जानते हो क्या होता है? हँ? जो बिचौलिया होता है ना एजेंट, वो बीच में क्या लेता है? चौथ खाता है ना? हां। तो चौथ के चंद्रमा को देखा था कृष्ण ने इसलिए गालियां खाईं। हँ? चौथ के चंद्रमा को देखा था? चौथ के चंद्रमा में क्या होता है? कमी होती है या संपूर्ण होता है? चौथे दिन का चंद्रमा; पहले दिन से बढ़ना शुरू होता है। चौथे दिन में अधूरा ही होता है। हां। अरे, ऐसे भी कोई बात है; क्या? कि चौथ का चंद्रमा देख लिया कोई ने तो गालियां खाना शुरू कर दे। अरे, चंद्रमा को देखने से कोई गाली खाएगा?
तो जो दुनिया में बातें सुनाते रहते हैं, जो बातें सुनी हैं सो अभी याद है ना। ऐसे तो नहीं कि इस जन्म में जो शास्त्र पढ़े वो कोई याद नहीं हैं। नहीं। ये सारी बातें शास्त्रों की अच्छी तरह से याद हैं जो-जो जिसने-जिसने पढ़ी हैं या सुनी हैं। तो फिर देखो अभी वो बातें पढ़ने से तो कोई फायदा नहीं है। कौन सी? शास्त्रों में जो बातें लिखी हुई हैं वो पढ़ने से कोई फायदा नहीं। क्यों? कि शास्त्रों में तो ढेर के ढेर मनुष्यों ने लिखी है। कि एक ने लिखी? और ज्ञान, सत्य एक का है। सत श्री अकाल कहा जाता है। भारत में भी कहते हैं ना सत्यम शिवम सुंदरम। तो क्या एक शिव ही सत्य है? वो ही सुंदर है? हँ? वो ही कल्याणकारी है? और कोई कल्याणकारी नहीं? अरे, वो तो सदा कल्याणकारी है, सदा सुंदर है, सदा सत्य है। और आत्माएं सदा सत्य इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर हो ही नहीं सकती। हँ? (क्रमशः)
The morning class being discussed is of the 29.11.1967. The topic being discussed on Wednesday in the middle of the eighth page was: Who disgrace Bharat? Vicious Bharat, which was vice less, it is you who have made it vicious, isn’t it? Who says it? (Someone said something.) Does the One residing above say it? Arey, [Baba] spoke about explaining the knowledge that tell those bodily religious gurus, the shaastravadi (those who debate on scriptures): You have made [Bharat] vicious. So, why don’t you blame yourself? Why do you come here and blame the Brahmakumaris? We (the BKs) write whatever is there in these [pictures]. As such, all the journalists write [this]. They keep drawing cartoons, don’t they? Whatever is the condition of Bharat at this time, we have written it at the end of the Iron Age in these pictures. And the condition of Bharat at this time during the period of destruction... What has the condition become like? [They have become] vipariit buddhi (those with an opposing intellect). They have become vipariit buddhi in what way? It has been written. They have become vipariit buddhi in what way? (Someone said something.) Yes, [they say]: [God] is omnipresent, atmaa so Paramaatmaa, every soul is equal to the Supreme Soul. And not just this, [they say] God is present in each and every particle. Arey. So, we have written that in these pictures. We certainly don’t say anything new, do we? Whatever is the accurate condition of this world in practical, we make them write it. What is there to become angry in this?
So, they will certainly become angry when [you] explain this [to them]. When you explain what? That; When you explain what? That the one whom you call God, that Highest of the high God is ekvyaapi (present in one being). He isn’t present in many. And you have written this in the scriptures: He is omnipresent. Hm? So, those who give themselves titles like shri shri 108 or shri shri 1008 Jagadguru swami sadaanandji maharaj... So, they have lost their title. Hm? If you remove the knowledge of omnipresence, will they lose their title or will they continue to have it? [They will] lose it! They will become angry, won’t they? They will hurl two-four insulting words at you and go away. Or they will become angry in front of their followers or disciples after they go back. Or they will go and publish [defamation] in the newspapers.
So, you should certainly understand this: That they published it in the newspapers a cycle [Kalpa] ago as well. Who? Arey, you certainly know, don’t you? - Who published it in the newspapers? Who published it? Did the sages, saints and sanyasis of the outside world publish it or did the sages, saints and sanyasis of your Brahmin world publish it? Who published it in the newspapers? They had published it before as well. (Someone said something.) Did the BKs publish it? Achcha? Didn’t the seed form souls of the BKs that you mention in the advance knowledge publish it? Or didn’t they make [others] publish it? Speak up. (Someone said something.) Don’t you even know who made them publish it? Look! You don’t listen to the Avyakt Vani at all! Baba certainly said it in the Avyakt Vani last year, didn’t He? What? They are the ones who will release the bomb of the revelation of the Supreme Soul. Hm? Who? He said [they are] number wise. They are such opponents that it has been forty years since someone is opposing. It has been thirty years for someone else and for someone else it has been twenty years since they are opposing. Didn’t you listen to it in the Avyakt Vani? (Someone said something.) Didn’t you listen to it? I didn’t listen. It is because you have to do business etc. Arey brother, the Father says: Listen to the class daily. You shouldn’t miss even a single Murli.
So, you should certainly understand this. What? That they had published it in the newspapers a cycle ago as well. Who published it first? Hm? Who published it first? Did the seed form souls publish it first or did the supporting roots publish it first? They are the roots of this tree like world in which the religious fathers coming from above enter and take their support. Just like Christ took the support of Jesus or those who take the support, those who come from the dualistic world of the Copper Age… They come only in the Copper Age, don’t they? So, did they publish it in the newspapers first? When the Father comes, who publishes it in the newspapers first? (Someone said something.) Achcha, did the seed form souls publish it first in the beginning of the Yagya? Who published it? Arey, aren’t you able to understand it? Arey, are you able to understand it? You aren’t. Who published defamation in the newspapers in the beginning of the Yagya? Did the seed form souls, who you call Rudraksh, the children of Rudra whom Rudra has given eyes, the third eye of knowledge, did they publish it or the roots that emerge from those seeds, the root form souls who become the support for the religious fathers - They become the support, don’t they? - did they publish it? (Someone said something.) Did they publish it? Who published it in the newspapers in the beginning of the Yagya? (Someone said something.) Did the outside people publish it? Ahccha? What do the outside people know about what happens in the Om Mandali of these people? (Someone said something.) Om ... what? Ani? A, n… Anit? Aunty? Did the people of the Anti party publish it? So, were the people of the Anti party from the outside world or were they included among those very people to whom Baba was narrating the knowledge in Sindh, Hyderabad? Hm? (Someone said something.) Yes, those who were inside exposed the internal issues outside without thinking or understanding [about it]. Did they understand it? They didn’t understand it completely, did they? Yes.
So, you should certainly understand it. You yourself should understand the knowledge in depth first: they had published it in the newspapers a cycle ago as well. Now, the more you provoke them, the more aggravated they will become. What? If you want to make someone angrier, tell them something that aggravates them all the more. So, what should you do? Hm? Should you tell them such a thing so that they are aggravated or should you tell them such a thing that they feel happy? Hm? (Someone said something.) Yes. What is the very purpose of giving the knowledge? The purpose of giving the knowledge is that…What happens through knowledge? [You attain] liberation [and] liberation in life. Liberation from sorrow. And bliss while being alive, attainment of happiness. So, when the very aim of knowledge is this… What? To make someone peaceful. Or is it to make them restless? [The aim is] to make [someone] peaceful. And to give him joy. So, after feeling their pulse, you should tell them such a thing so that they become happy. Hm? You shouldn’t tell them those things... If you mention their weakness in front of them, will they become angry or not? They certainly will.
So now, the more you provoke them, the more they will become aggravated. Isn’t it daughter? Yes. Why? It is because this is nature, isn’t it? What? What is the nature? Whose [nature]? Which living beings have this nature? Dogs. What is the nature of dogs? They will keep barking. Yes. If you pick a stone [and throw it at a dog], it will keep running as well as barking. No? Yes. It will continue to bark. Arey, it won’t leave barking. What? Will it leave the nature of a dog? It won’t. So children, the condition of this world is also the same. Look, definitely where has he come from? ‘You may bark. I just won’t pay attention to your barking. Hm? I will feel sleepy.’ Over his barking. Suppose, there is an elephant, it will keep walking in intoxication; will it pay attention to the barking of the dog? Hm? Will it become angry [and] charge at the dog? Will it charge at it? No. The elephants [i.e.] mahaarathi will certainly walk in their intoxication. They won’t pay attention to their barking. In the same way, you children should let them bark. Let me have a sound sleep. What kind of a sound sleep? Arey, what is the aim of our soul? Where do we have to go? We have to go to the Supreme Abode, don’t we have to? So, will the soul become peaceful and have a deep sleep there or not? Yes it will. So, let me fall asleep.
So, certainly… if this Krishna was [in the form of] Krishna himself, they would bark behind him, wouldn’t they? Hm? Would they bark or not? Yes, they would bark. Just like, they used to hurl abuses at him, didn’t they? Who? Why did they use to hurl abuses at him? How did they used to abuse him? ‘He is a thief, he is a chinraa, he keeps on making unrelated women to elope [with himself], he steals butter.’ Do they say it or not? Yes. Wow! They have said [these] things; why does he do this? It is because he saw chauth ka chandrama [fourth day Moon]. This is why, he did that. Do you know what chauth is? Hm? What does a middleman, an agent take in between? He takes commission (Chauth), doesn’t he? Yes. So, Krishna saw chauth ka chandrama, this is why he suffered abuses. Hm? Did he see chauth ka chandrama? What is in chauth ka chandrama? Does it lack something or is it complete? The moon on the fourth day; It starts to increase from the first day. It is certainly incomplete on the fourth day. Yes. Arey, there is something like this; What? That if someone saw chauth ka chandrama, he starts suffering abuses. Arey, will someone suffer abuses [just] by looking at the moon?
So, what they keep narrating in the world, what you have heard, you remember them now, don’t you? It isn’t that you don’t remember the scriptures you read in this birth. No. Whoever has studied or heard whatever, they remember all those topics of the scriptures very well. So then, look, there is certainly no use of reading those topics now. Which [topics]? There is no use of reading the topics that have been written in the scriptures. Why? Numerous people have written the scriptures; or did one person write [them]? And knowledge, truth is of one. It is said: sat shri akaal. They also say this in Bharat, don’t they? - Satyam, shivam, sundaram. So, is Shiva alone true? Is He alone beautiful? Is He alone beneficial? Is no one else beneficial? Arey, He is certainly ever beneficial, ever beautiful [and] ever truthful. Other souls can never be ever truthful on this world stage. Hm? (Continued)
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2930, दिनांक 03.07.2019
VCD 2930, dated 03.07.2019
प्रातः क्लास 29.11.1967
Morning Class dated 29.11.1967
VCD-2930-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-18.39
Time- 00.01-18.39
प्रातः क्लास चल रहा था 29.11.1967 बुधवार को आठवें पेज के मध्य में बात चल रही थी कि भारत की पत कौन गंवाते हैं? विशियस भारत जो वॉइसलेस था उनको विशियस तुमने बनाया ना। हँ? कौन कहता? (किसी ने कुछ कहा।) वो कहता ऊपर वाला? अरे, ज्ञान को समझाने की बात बताई कि उन जो देहधारी धर्मगुरु शास्त्रवादी हैं उनको बताओ, हँ, तुमने विशियस बनाया। तो तुम अपने ऊपर क्यों नहीं कहते हो? यहां, यहां आकर ब्रह्माकुमारियों को क्यों दोष देते हो? वो तो जो हैं वो इनमें लिख देते हैं चित्रों में। ऐसे तो सभी लिखते हैं अखबार वाले। कार्टून निकालते रहते हैं ना? हम वही जो इस समय में भारत की अवस्था है वो अवस्था हम इन चित्रों में कलियुग के अंत में लिखी हुई है। और जो इस समय में भारत की अवस्था है, विनाश काले क्या अवस्था हो गई? विपरीत बुद्धि। क्या विपरीत बुद्धि हो गई? हँ? वो लिखी हुई है। क्या विपरीत बुद्धि हो गई? हँ? हाँ। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, सर्वव्यापी है। आत्मा सो परमात्मा। हर आत्मा सो परमात्मा। और इतना ही नहीं कण-कण में भगवान। अरे! तो वो इन चित्रों में लिख दिया कि हम कोई नई बात तो नहीं करते हैं ना? जो एक्यूरेट प्रैक्टिकल बात है इस दुनिया की सो हम लिखवाते हैं। इसमें गुस्सा खाने की क्या बात है?
तो इस बात को समझाने में गुस्सा उनको ज़रूर आएगा। क्या समझाने में? कि; क्या समझाने में? कि भगवान जिसको तुम कहते हो, वो एकव्यापी है ऊंचे ते ऊंचा भगवंत। अनेकव्यापी नहीं है। और तुमने शास्त्रों में ये लगा दिया कि सर्वव्यापी है। हँ? तो वो जो अपने को टाइटल देते हैं श्री श्री 108 या श्री श्री 1008 जगतगुरु स्वामी सदानंद जी महाराज। तो उनका टाइटल तो खत्म हो गया। हँ? सर्वव्यापी का ज्ञान उड़ाएंगे, उड़ाई देंगे तो उनका टाइटल खत्म हो जाएगा कि रह जाएगा? खत्तम। गुस्सा आएगा ना? दो-चार गालियां देकर के चले जाएंगे या तो फिर चले जाने के बाद गुस्सा आएगा अपने फॉलोअर्स के सामने, चेलों के सामने। या तो फिर जाकर के अखबार में डाल देंगे।
तो ये जरूर समझना चाहिए, हँ, कि कल्प पहले भी उन्होंने अखबारों में डाला था। किन्होने? हँ? तुम तो जानते हो ना अखबारों में किसने डाला? किसने डाला? बाहर की दुनिया के जो ऋषि-मुनि, सन्यासी है उन्होंने डाला या तुम्हारी ब्राह्मणों की दुनिया के जो ऋषि-मुनि, सन्यासी हैं उन्होंने डाला? अखबार में किसने डाला? पहले भी डाला था। (किसी ने कुछ कहा।) बीके ने डाला? अच्छा? बीके के जो बीज रूप आत्माएं एडवांस ज्ञान में बताते हो, उन्होंने नहीं डाला? न डलवाया? बोलो। (किसी ने कुछ कहा।) तुमको पता ही नहीं किसने डलवाया? लो! अव्यक्त वाणी तो सुनता ही नहीं। अव्यक्त वाणी में पिछले साल बाबा ने बोल दिया ना। क्या? वो परमात्म प्रत्यक्षता बम छोड़ने वाले हैं। हँ? कौन? नंबरवार बताए दिए। ऐसे विरोधी हैं कि कोई की तो 40 साल हो गए विरोध करते-करते, कोई को 30 साल हो गए और कोई को 20 साल विरोध करते-करते। नहीं सुना अव्यक्त वाणी में? नहीं सुना? नहीं सुना। वाह! धंधा-धोरी जो करनी है। अरे भाई, बाप कहते हैं रोज क्लास सुनो। एक भी मुरली मिस नहीं होनी चाहिए।
तो ये जरूर समझना चाहिए। क्या? कि कल्प पहले भी अखबार में डाला था। पहले कौन ने डाला था? हँ? पहले कौन ने डाला था? पहले बीज रूप आत्माओं ने डाला था या पहले आधारमूर्त जड़ों ने डाला था जो इस सृष्टि वृक्ष की जड़े हैं जिनमें ऊपर से आने वाले धर्मपिताएं प्रवेश करते हैं, आधार लेते हैं उनका, जैसे क्राइस्ट ने जीसस का आधार लिया या जो आधार लेने वाले हैं, द्वैतवादी द्वापरयुगी दुनिया से आते हैं; द्वापर में ही आते हैं ना? तो उन्होंने अखबार में पहले डाला? जब बाप आते हैं तो अखबार में पहले किसने डाला? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) अच्छा, यज्ञ के आदि में बीज रुप आत्माओं ने डाला? किसने डाला? हँ? अरे? नहीं समझ में आ रहा? अरे, समझ में आ रहा है? नहीं समझ में आ रहा। यज्ञ के आदि में अखबारों में ग्लानी किसने डाली थी? हँ? बीज रूप आत्माओं ने डाली थी, रुद्राक्ष जिन्हें कहते हो रूद्र के बच्चे, जिनको रूद्र ने आंखें दी हुई हैं, तीसरा नेत्र दिया हुआ है ज्ञान का, उन्होंने डाला या उन बीजों में से जो जड़ें निकलती हैं आधारमूर्त आत्माएं, जो धर्मपिताओं के आधार बनते हैं, बनते हैं ना, उन्होंने डाला? उन्होंने डाला? हँ? यज्ञ के आदि में अखबारों में किसने डाला? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) बाहर वालों ने डाला? अच्छा? बाहर वालों को क्या पता इनकी ओम मंडली में क्या होता है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) ओम क्या? अनी? ए एन अनित? आंटी? एंटी पार्टी वालों ने डाला? तो एंटी पार्टी वाले बाहर की दुनिया के थे या एंटी पार्टी वाले जो बाबा जिनको ज्ञान सुना रहे थे सिंध हैदराबाद में उनके अंदर ही घुसे हुए थे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हां, जो अंदर थे उन्होंने अंदर की बातों को बाहर? बाहर कर दिया, बिना सोचे समझे। समझा? नहीं समझा ना पूरा? हाँ।
तो जरूर समझना चाहिए। पहले खुद ज्ञान को गहराई से समझना चाहिए, हँ, कि कल्प पहले भी अखबार में डाले थे। अभी इनको जितना भड़काएंगे, हँ, इतना और ही भड़केंगे। क्या? कभी किसी को और ज्यादा गुस्सा दिलाना हो ना तो ऐसी बात करो जिससे बहुत और ज्यादा भड़क जाए। तो क्या करना चाहिए? हँ? उनको भड़काने वाली बात बताना चाहिए या उनको ऐसी बात बताना चाहिए जिससे उनको खुशी हो? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हां, ज्ञान देने का मतलब ही क्या है? ज्ञान देने का मतलब है; ज्ञान से क्या होता है? मुक्ति, जीवनमुक्ति, दुखों से मुक्ति। और जीवन में रहते तो आनंद, सुखों की प्राप्ति। तो ज्ञान का लक्ष्य ही जब ये है; क्या? कि किसी को शांत करना। कि अशांत करना? शांत करना। और उसको प्रसन्नता देना। तो ऐसी बात सुनाना चाहिए उसकी नस पकड़ कर के जो वो खुश हो जाए। हँ? वो बातें नहीं बताना चाहिए, उनके अंदर की कमियां उनके सामने बताएंगे तो उनको गुस्सा आएगा कि नहीं? आएगा जरूर।
तो अभी उनको जितना भड़काएंगे उतना और ही भड़केंगे। है नहीं बच्ची? हाँ। क्यों? क्योंकि ये तो स्वभाव होता है ना। क्या? क्या स्वभाव होता है? किसका? कौन से प्राणियों का स्वभाव होता है? कूतरों का। कुत्तों का क्या स्वभाव होता है? भौं-2 भोंकते रहेंगे। हाँ। तुम उठाएंगे पत्थर तो वो भागता भी जाएगा और भौंकता भी जाएगा। नहीं? हां, भौं-2 भी करेगा। अरे वो भौं-2 करना छोड़ेगा थोड़ेही? क्या? कुत्तपना छोड़ेगा? नहीं छोड़ेगा। तो ये दुनिया का हाल भी ऐसा ही है बच्चे। देखो, जरूर ऐसे ये कहां से भला ये आया है? तुम भौंक, हँ, मैं तेरी भोंक पे ध्यान ही नहीं दूंगा। हँ? मेरे को नींद आ जाएगी। उसके भौंकने के ऊपर। हाथी है मस्ती से चलता जाएगा। कुत्ते के भौंकने के ऊपर ध्यान देगा? हँ? गुस्सा आएगा? कुत्ते की और दौड़ेगा? दौड़ेगा? नहीं। हाथी महारथी जो हैं वो तो मस्ती में चले जाएंगे। उनके भौंक के ऊपर ध्यान थोड़ेही? तो ऐसे ही तुम बच्चे जो हो उनको भौंकने दो। मेरे को शांति की नींद आ गई। कैसी शांति की नींद? अरे, हमारा लक्ष्य क्या है आत्मा का? कहां जाना है? परमधाम जाना है ना। तो वहां आत्मा शांत होकर के सुषुप्ति की नींद करेगी कि नहीं करेगी? हां, करेगी। तो मेरे को नींद आवे।
तो जरूर जभी कृष्ण अगर कृष्ण ही होता तो उनके पिछाड़ी भौंकते ना? हँ? भौंकते कि नहीं? हां, भौंकते। जैसे वो गाली दे देते थे ना? कौन? हँ? क्यों गाली देते थे उनको? क्या गाली देते थे? चोर है, हँ, छिनरा है। पराई औरतों को भगाता रहता है। मक्खन चुराता है। कहते हैं कि नहीं? हाँ। वाह, बात बोल दिया कि क्यों ऐसा करता है? कि चौथ के चंद्रमा को देखा था इसलिए ऐसा करता था। चौथ जानते हो क्या होता है? हँ? जो बिचौलिया होता है ना एजेंट, वो बीच में क्या लेता है? चौथ खाता है ना? हां। तो चौथ के चंद्रमा को देखा था कृष्ण ने इसलिए गालियां खाईं। हँ? चौथ के चंद्रमा को देखा था? चौथ के चंद्रमा में क्या होता है? कमी होती है या संपूर्ण होता है? चौथे दिन का चंद्रमा; पहले दिन से बढ़ना शुरू होता है। चौथे दिन में अधूरा ही होता है। हां। अरे, ऐसे भी कोई बात है; क्या? कि चौथ का चंद्रमा देख लिया कोई ने तो गालियां खाना शुरू कर दे। अरे, चंद्रमा को देखने से कोई गाली खाएगा?
तो जो दुनिया में बातें सुनाते रहते हैं, जो बातें सुनी हैं सो अभी याद है ना। ऐसे तो नहीं कि इस जन्म में जो शास्त्र पढ़े वो कोई याद नहीं हैं। नहीं। ये सारी बातें शास्त्रों की अच्छी तरह से याद हैं जो-जो जिसने-जिसने पढ़ी हैं या सुनी हैं। तो फिर देखो अभी वो बातें पढ़ने से तो कोई फायदा नहीं है। कौन सी? शास्त्रों में जो बातें लिखी हुई हैं वो पढ़ने से कोई फायदा नहीं। क्यों? कि शास्त्रों में तो ढेर के ढेर मनुष्यों ने लिखी है। कि एक ने लिखी? और ज्ञान, सत्य एक का है। सत श्री अकाल कहा जाता है। भारत में भी कहते हैं ना सत्यम शिवम सुंदरम। तो क्या एक शिव ही सत्य है? वो ही सुंदर है? हँ? वो ही कल्याणकारी है? और कोई कल्याणकारी नहीं? अरे, वो तो सदा कल्याणकारी है, सदा सुंदर है, सदा सत्य है। और आत्माएं सदा सत्य इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर हो ही नहीं सकती। हँ? (क्रमशः)
The morning class being discussed is of the 29.11.1967. The topic being discussed on Wednesday in the middle of the eighth page was: Who disgrace Bharat? Vicious Bharat, which was vice less, it is you who have made it vicious, isn’t it? Who says it? (Someone said something.) Does the One residing above say it? Arey, [Baba] spoke about explaining the knowledge that tell those bodily religious gurus, the shaastravadi (those who debate on scriptures): You have made [Bharat] vicious. So, why don’t you blame yourself? Why do you come here and blame the Brahmakumaris? We (the BKs) write whatever is there in these [pictures]. As such, all the journalists write [this]. They keep drawing cartoons, don’t they? Whatever is the condition of Bharat at this time, we have written it at the end of the Iron Age in these pictures. And the condition of Bharat at this time during the period of destruction... What has the condition become like? [They have become] vipariit buddhi (those with an opposing intellect). They have become vipariit buddhi in what way? It has been written. They have become vipariit buddhi in what way? (Someone said something.) Yes, [they say]: [God] is omnipresent, atmaa so Paramaatmaa, every soul is equal to the Supreme Soul. And not just this, [they say] God is present in each and every particle. Arey. So, we have written that in these pictures. We certainly don’t say anything new, do we? Whatever is the accurate condition of this world in practical, we make them write it. What is there to become angry in this?
So, they will certainly become angry when [you] explain this [to them]. When you explain what? That; When you explain what? That the one whom you call God, that Highest of the high God is ekvyaapi (present in one being). He isn’t present in many. And you have written this in the scriptures: He is omnipresent. Hm? So, those who give themselves titles like shri shri 108 or shri shri 1008 Jagadguru swami sadaanandji maharaj... So, they have lost their title. Hm? If you remove the knowledge of omnipresence, will they lose their title or will they continue to have it? [They will] lose it! They will become angry, won’t they? They will hurl two-four insulting words at you and go away. Or they will become angry in front of their followers or disciples after they go back. Or they will go and publish [defamation] in the newspapers.
So, you should certainly understand this: That they published it in the newspapers a cycle [Kalpa] ago as well. Who? Arey, you certainly know, don’t you? - Who published it in the newspapers? Who published it? Did the sages, saints and sanyasis of the outside world publish it or did the sages, saints and sanyasis of your Brahmin world publish it? Who published it in the newspapers? They had published it before as well. (Someone said something.) Did the BKs publish it? Achcha? Didn’t the seed form souls of the BKs that you mention in the advance knowledge publish it? Or didn’t they make [others] publish it? Speak up. (Someone said something.) Don’t you even know who made them publish it? Look! You don’t listen to the Avyakt Vani at all! Baba certainly said it in the Avyakt Vani last year, didn’t He? What? They are the ones who will release the bomb of the revelation of the Supreme Soul. Hm? Who? He said [they are] number wise. They are such opponents that it has been forty years since someone is opposing. It has been thirty years for someone else and for someone else it has been twenty years since they are opposing. Didn’t you listen to it in the Avyakt Vani? (Someone said something.) Didn’t you listen to it? I didn’t listen. It is because you have to do business etc. Arey brother, the Father says: Listen to the class daily. You shouldn’t miss even a single Murli.
So, you should certainly understand this. What? That they had published it in the newspapers a cycle ago as well. Who published it first? Hm? Who published it first? Did the seed form souls publish it first or did the supporting roots publish it first? They are the roots of this tree like world in which the religious fathers coming from above enter and take their support. Just like Christ took the support of Jesus or those who take the support, those who come from the dualistic world of the Copper Age… They come only in the Copper Age, don’t they? So, did they publish it in the newspapers first? When the Father comes, who publishes it in the newspapers first? (Someone said something.) Achcha, did the seed form souls publish it first in the beginning of the Yagya? Who published it? Arey, aren’t you able to understand it? Arey, are you able to understand it? You aren’t. Who published defamation in the newspapers in the beginning of the Yagya? Did the seed form souls, who you call Rudraksh, the children of Rudra whom Rudra has given eyes, the third eye of knowledge, did they publish it or the roots that emerge from those seeds, the root form souls who become the support for the religious fathers - They become the support, don’t they? - did they publish it? (Someone said something.) Did they publish it? Who published it in the newspapers in the beginning of the Yagya? (Someone said something.) Did the outside people publish it? Ahccha? What do the outside people know about what happens in the Om Mandali of these people? (Someone said something.) Om ... what? Ani? A, n… Anit? Aunty? Did the people of the Anti party publish it? So, were the people of the Anti party from the outside world or were they included among those very people to whom Baba was narrating the knowledge in Sindh, Hyderabad? Hm? (Someone said something.) Yes, those who were inside exposed the internal issues outside without thinking or understanding [about it]. Did they understand it? They didn’t understand it completely, did they? Yes.
So, you should certainly understand it. You yourself should understand the knowledge in depth first: they had published it in the newspapers a cycle ago as well. Now, the more you provoke them, the more aggravated they will become. What? If you want to make someone angrier, tell them something that aggravates them all the more. So, what should you do? Hm? Should you tell them such a thing so that they are aggravated or should you tell them such a thing that they feel happy? Hm? (Someone said something.) Yes. What is the very purpose of giving the knowledge? The purpose of giving the knowledge is that…What happens through knowledge? [You attain] liberation [and] liberation in life. Liberation from sorrow. And bliss while being alive, attainment of happiness. So, when the very aim of knowledge is this… What? To make someone peaceful. Or is it to make them restless? [The aim is] to make [someone] peaceful. And to give him joy. So, after feeling their pulse, you should tell them such a thing so that they become happy. Hm? You shouldn’t tell them those things... If you mention their weakness in front of them, will they become angry or not? They certainly will.
So now, the more you provoke them, the more they will become aggravated. Isn’t it daughter? Yes. Why? It is because this is nature, isn’t it? What? What is the nature? Whose [nature]? Which living beings have this nature? Dogs. What is the nature of dogs? They will keep barking. Yes. If you pick a stone [and throw it at a dog], it will keep running as well as barking. No? Yes. It will continue to bark. Arey, it won’t leave barking. What? Will it leave the nature of a dog? It won’t. So children, the condition of this world is also the same. Look, definitely where has he come from? ‘You may bark. I just won’t pay attention to your barking. Hm? I will feel sleepy.’ Over his barking. Suppose, there is an elephant, it will keep walking in intoxication; will it pay attention to the barking of the dog? Hm? Will it become angry [and] charge at the dog? Will it charge at it? No. The elephants [i.e.] mahaarathi will certainly walk in their intoxication. They won’t pay attention to their barking. In the same way, you children should let them bark. Let me have a sound sleep. What kind of a sound sleep? Arey, what is the aim of our soul? Where do we have to go? We have to go to the Supreme Abode, don’t we have to? So, will the soul become peaceful and have a deep sleep there or not? Yes it will. So, let me fall asleep.
So, certainly… if this Krishna was [in the form of] Krishna himself, they would bark behind him, wouldn’t they? Hm? Would they bark or not? Yes, they would bark. Just like, they used to hurl abuses at him, didn’t they? Who? Why did they use to hurl abuses at him? How did they used to abuse him? ‘He is a thief, he is a chinraa, he keeps on making unrelated women to elope [with himself], he steals butter.’ Do they say it or not? Yes. Wow! They have said [these] things; why does he do this? It is because he saw chauth ka chandrama [fourth day Moon]. This is why, he did that. Do you know what chauth is? Hm? What does a middleman, an agent take in between? He takes commission (Chauth), doesn’t he? Yes. So, Krishna saw chauth ka chandrama, this is why he suffered abuses. Hm? Did he see chauth ka chandrama? What is in chauth ka chandrama? Does it lack something or is it complete? The moon on the fourth day; It starts to increase from the first day. It is certainly incomplete on the fourth day. Yes. Arey, there is something like this; What? That if someone saw chauth ka chandrama, he starts suffering abuses. Arey, will someone suffer abuses [just] by looking at the moon?
So, what they keep narrating in the world, what you have heard, you remember them now, don’t you? It isn’t that you don’t remember the scriptures you read in this birth. No. Whoever has studied or heard whatever, they remember all those topics of the scriptures very well. So then, look, there is certainly no use of reading those topics now. Which [topics]? There is no use of reading the topics that have been written in the scriptures. Why? Numerous people have written the scriptures; or did one person write [them]? And knowledge, truth is of one. It is said: sat shri akaal. They also say this in Bharat, don’t they? - Satyam, shivam, sundaram. So, is Shiva alone true? Is He alone beautiful? Is He alone beneficial? Is no one else beneficial? Arey, He is certainly ever beneficial, ever beautiful [and] ever truthful. Other souls can never be ever truthful on this world stage. Hm? (Continued)
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- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2930, दिनांक 03.07.2019
VCD 2930, dated 03.07.2019
प्रातः क्लास 29.11.1967
Morning Class dated 29.11.1967
VCD-2930-Bilingual-Part-2
समय- 18.40-37.37
Time- 18.40-37.37
तो देखो, हँ, ये शास्त्रों की बातें पढ़ने से कोई फायदा नहीं होगा। हँ? और न इन शास्त्रों को कोई पढ़ेगा। अभी कोई वेद पढ़ता है? हँ? आरण्यक पढ़ता है? हँ? वो उपनिषद पढ़ता है? सुना? नहीं पढ़ता। बाद वाले जो शास्त्र बने ना पुराण, हँ, पुराण जो बने वो ज्यादा सुनते हैं, भागवत कथा, महाभारत कथा, रामायण, पुराण कि वेद ज्यादा पढ़ते हैं? वेद कोई नहीं पढ़ता। हाँ, क्योंकि बाप ने आकर के कहा है। क्या कहा है? ये जो भी कुछ है, इस दुनिया में जो भी इन ऋषि-मुनियों ने, सन्यासियों ने शास्त्रों में सिखाया है यज्ञ करो। क्या करो? यज्ञ। यज्ञ से मतलब क्या समझते हैं? यज्ञ माने स्वाहा। जो भी तुम्हारे पास घर में बढ़िया से बढ़िया चीज है, घी है, वो आकरके सारा उड़ेल दो। कहां उड़ेल दो? आग के कुंड में। तो ये यज्ञ हो गया। स्वाहा। क्या करो? हां, वो तुम्हारे पास जो घोड़ा-गधा है उसको लाकर के, अश्वमेध, उस घोड़े को स्वाहा कर दो।
अरे, तो ये स्वाहा-स्वाहा नहीं; स्व का अर्थ तो पहले समझो। स्व माने क्या? आत्मा। तो पहले स्वा हा। अपनी आत्मा के अंदर जो अहंकार भरा हुआ है देह का, देह के संबंधियों का, देह के पदार्थों का, मकान का, दुकान का, कारखानों का, मल्टी मिलियनेयर्स बने बैठे हैं ना, उनका जो अहंकार चढ़ा हुआ है वो सारा आत्मा के अंदर अहंकार को तो स्वाहा करो। स्व हा। जो कुछ भी स्व माने अपना है वो सब स्वाहा कर दिया, जलाए दिया। क्या? अपना क्या है? पहले क्या है अपना? अरे, इस दुनिया में पहले-पहले अपना क्या है? ये अपना शरीर। पहले तो अपने शरीर से प्यार होता है ना? हाँ। फिर पति से या पिता से प्यार होता है। फिर और-और संबंधियों से प्यार होता है।
तो बताया कि ये जो कुछ भी है - देह, देह के पदार्थ, देह के संबंधी, ये सब कुछ और जो भी तुमने इन शास्त्रों में उठाया है पुरुषार्थ करने के लिए, हँ, यज्ञ, तप, दान, पुण्य, वगैरा, ये सभी भूसा बुद्धि से निकाल दियो। ये सभी भूसा क्यों बताए दिया? हँ? क्योंकि जो सार है वो तो बाप आकरके बताते हैं शास्त्रों का सार क्या है? और जो निस्सार बातें हैं, विस्तार की ढेर सारी बातें, जो उनका इंटरप्रिटेशन किया है ना? क्या? नहीं किया? बाप ने आकर के तो सार की बात बताई - तुम ज्योति बिंदु आत्मा हो। यही सार है ना? हां। लेकिन फिर बाद में क्या हुआ? हाँ, वो ब्रह्मा जी के मुख से वेद निकले। निकले कि नहीं? हां, वेद निकले। फिर वेदों की व्याख्याएं निकलीं। वेद माने? वेद माने जानकारी। काहे की जानकारी? इस आत्मा की जानकारी। आत्मा कहां है? इस देह में कहां है वो जानकारी, आत्मा के रूप की जानकारी और जितनी भी जानकारी आत्मा के संबंध में है वो सारी वेदों में भरी पड़ी है। उसे कहते हैं वेद जो हैं अगाध ज्ञान का भंडार हैं।
तो ये वेद, शास्त्र और उनमें से निकले हुए यज्ञ, तप, दान, पुण्य, वगैरा, वगैरा, जो भी हैं इनका सारा भूसा बुद्धि में से; भूसा माने? इनका विस्तार। वेदों का विस्तार आरण्यक। आरण्यक का विस्तार, उनको व्याख्या की तो ब्राह्मण बने। ब्राह्मण का विस्तार जो बना वो सूत्र ग्रंथ बन गए। सूत्र ग्रंथों का विस्तार बना तो उपनिषद बन गए। उपनिषदों का जो विस्तार हुआ तो फिर उन्होंने पुराण बनाए दिए। तो ये जो भी विस्तार है वो सारा भूसा है। क्या है? ये जो गीता का भी इंटरप्रिटेशन किया ना? कितने इंटरप्रिटेशन किये? कितनी व्याख्याएं हुईं? कितने लोगों ने किये? (किसी ने कुछ कहा।) हां, 108 से भी जास्ती टीकाएं हो चुकी हैं। और सब अपनी-अपनी ढफली अपना-अपना राग। तो ये जितना विस्तार में जाते हैं ढेर के ढेर मनुष्य, तुंडे-तुंडे मतिर्भिन्ना जिनकी बुद्धि में भरा हुआ है, तो वो भूसा हो गया या सार हुआ? भूसा हुआ। तो ये सब निकाल दियो। है ना?
ये गुरुओं को भी अभी गोली मारो। जो गुरु बनकरके बैठे हैं गुरु घंटाल। गोली मारो माना? ज्ञान की गोली मारो। ऐसे नहीं तुम बंदूक की गोली मार दो उनको। हां, जो बाप गोली मारना सिखाते हैं सो मारो। हां। और गोली तो मारने की नहीं है। कौन सी? वो बंदूक की गोली, लोहे की। नहीं। परंतु शास्त्रवादियों ने जो लिख दिया है; हँ? क्या लिख दिया है? कि गुरुओं को गोली मारो। तो गोली मारने का माने इनको छोड़ दो। लिखा हुआ है ना? अरे, जिन्होंने गीता पढ़ी होगी, हँ, उनको ये मालूम होगा कि गीता में भगवानुवाच क्या है? क्या? इन वेद, ग्रंथ, शास्त्रों से मेरे को कोई नहीं मिलता। जप, तप, दान, पुण्य से मेरे को कोई नहीं मिलता। ये तो गीता में लिखा हुआ है ना? और जो लिखा हुआ है वो किसकी बोली हुई बात लिखी? भगवानुवाच। भगवान ने जो उवाच किया अर्जुन के रथ में कि लिखापट्टी की? (किसी ने कुछ कहा।) हां, बोला मुख से। जैसे धर्मपिताएं आकरके बोलते हैं, बाद में उनके फॉलोअर्स क्या करते हैं? शास्त्र बनाते हैं।
तो भगवान ने तो बोला। और जो बोला है सो गीता में लिखा हुआ है। क्या? इनको मारो गोली। ये सब जो तुम्हारे गुरु हैं ना, हँ, इन सब को छोड़ दो। इन सब ने तुम को नीचे गिराया है, आधीन बनाया है। और ये जो भी उन्होंने सुनाया ये सब तुम्हारी बुद्धि में भूसा भरा हुआ है। क्या? उस भूसे में अनाज का तो पता ही नहीं चलता कहां है? तो ये भक्ति मार्ग हुआ ना? हँ? भक्ति मार्ग का भूसा जब बुद्धि में भर जाता है शास्त्रों का, विस्तार का तो बुद्धि भटकती रहती है। कभी मंदिर में, कभी मस्जिद में कन्वर्ट होने वाली जो देव आत्माएं हैं वो कभी कहाँ जाती हैं? मस्जिद में। कभी कहां जाती हैं? गिरजाघर में, कभी गुरुद्वारों में। तो भक्ति मार्ग में है ही भागना। एक गुरु के पास भागेंगे। वो मर गया। फिर उसके चेले को गुरु बनाय लेंगे। उसके पीछे भागेंगे।
तो आगे एक महाराजा और भई एक वजीर, ऐसा होता था। आगे माने कब? जब सृष्टि का आदि था ना? सतयुग त्रेता था ना? जो भगवान ने नई सृष्टि बनाई स्वर्ग की राम-कृष्ण की दुनिया स्वर्ग में, तो वहां एक ही महाराजा दुनिया में होता था। और? और क्या? एक ही वजीर होता था। पता है कौन वजीर होता था? ऐसे नहीं कि प्रजा में से चुना हुआ कोई वजीर होता था। कौन होता था वजीर? हँ? अरे? अरे, कुछ पता ही नहीं? अरे भाई, सुखी रहना है तो बाबा ने जो सुनाया है वो खूब ध्यान से पढ़ो। एक-एक मुरली को कितनी बार? 6 बार पढ़ना चाहिए। तो आगे एक ही महाराजा, एक ही वजीर। कौन वजीर होता था? ऐसे नहीं कि प्रजा में से कोई वजीर चुन लिया। वो वजीर होता था। नहीं। जो मां-बाप थे ना वो ही वजीर होते थे। मां भी नहीं। कौन? बाप। हां। बाप वजीर होता था। गाया जाता था भई किंग महाराजा। और क्वीन महारानी। और, और वजीर, हँ, उनको रास्ता दिखाने वाला। परंपरा क्या है? अरे, भारत में क्या परंपरा है? भगवान की डाली हुई परंपरा आज भी चल रही है कहीं ना कहीं संयुक्त परिवारों में। जो ज्वाइंट फैमिलीज हैं ना दुनिया में कहीं ना कहीं, भारत में भी हैं, तो वो परिवार में परंपरा चल रही है। क्या? कि बाप जब अपने बच्चे को सारी प्रॉपर्टी सौंपता है घर-परिवार को संभालने की, खुद वानप्रस्थ हो जाता है तो वानप्रस्थ हो करके उसे रास्ता बताता रहता है कि नहीं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हां, रास्ता बताता है। ऐसे नहीं, ऐसे चलो। ऐसे नहीं। एकदम सन्यासी नहीं हो जाता। संपूर्ण छोड़ देता है? नहीं। उनको रास्ता बताता रहता है। तो वो हुआ वजीर।
अच्छा, अभी क्या हो गया? हँ? अभी क्या हो गया? क्या गड़बड़ हो गई? हँ? अभी द्वापर युग से जब से राजा विक्रमादित्य आया तो क्या गड़बड़ कर दी थी? उसके बाद गड़बड़ कुछ हुई कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) हां, पहला जो राजा था ना भारत में विक्रमादित्य था। और विक्रमादित्य सतोप्रधान राजा था द्वापरयुग में या द्वापरयुग में ही शुरू-शुरुआत में रजोप्रधान, तमोप्रधानता शुरू हो जाती है? (किसी ने कुछ कहा।) हां, सत्वप्रधानता थी ना? जो पहला-पहला राजा था उसने तो अपने बाप को ही वजीर बनाया। जो परंपरा चली आ रही थी त्रेता के अंत तक, हां, वो ही परंपरा पहले जन्म में। लेकिन बाद का जन्म तो नीचे गिरेगा ना। द्वैतवादी बनेगा कि नहीं? हाँ। तो बस, फिर तो क्या हुआ कि बाप की मान्यता, मां-बाप की मान्यता करना बंद हो गई। क्या? दूसरे धर्म वाले जो हैं, खास करके इस्लाम या मुसलमान धर्म वाले अपने बाप को ज्यादा मान्यता देते हैं? हँ? खुदा के समान मानते हैं? नहीं मानते। मानते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) हां, नहीं मानते। देखो, औरंगजेब ने क्या किया? अपने बाप को ही क्या कर दिया? जेल में डाल दिया।
तो ये परंपरा जो है विदेशियों की है। भारत की सच्ची परंपरा क्या है? कि जिन मां-बाप ने जन्म दिया है जिन्होंने पाला है, पोसा है और इतना तकलीफ सही है सारे जीवन की जितनी कमाई है; मेहनत की ना? वो सारी कमाई अंत में बच्चों को सौंप देते हैं। तो वो माई-बाप कौन हुए बच्चों के लिए? उनका उत्थान करने वाले, उत्थान करने वाले इस दुनिया में सबसे जास्ती कौन हुए? मां-बाप हुए ना। तो मां-बाप को भगवान नहीं मानेंगे। किसको भगवान मानेंगे? हँ? खुदा भगवान है। कौन भगवान है? गॉड भगवान है। गुरु नानक भगवान है। महात्मा बुद्ध भगवान है। और भारत में तो ढेर के ढेर भगवान हैं। जो शंकराचार्य गद्दी पे बैठा बस वो भगवान है। अभी क्या हो गया? मां-बाप की मान्यता खलास कर दी या चालू है? चालू है। लेकिन कहीं-कहीं प्रायःलोप है। क्या? भगवान का दिया हुआ जैसे ज्ञान का लोप हो जाता है वैसे भगवान की डाली हुई परंपराएं भी प्रायःलोप हो गई।
अब देखो दुनिया में जितनी भी सरकारें हैं तो उन सभी सरकारों में कितने वजीर होंगे? मंत्रणा देने वालों की, सलाह देने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है या घटती जा रही है? (किसी ने कुछ कहा।) हां, ढेर के ढेर वजीर। पता करो कितने वजीर? एक-एक प्रोविंस के देखो। ऐसे नहीं कि दिल्ली में देखो। सारे देश की राजधानी में देखो। नहीं। सारी देश की राजधानी में जितने भी अलग-अलग राज्य हैं, स्टेट्स है, प्राविन्स हैं उनमें देखो। क्या देखो? एक-एक प्रोविंस में 80-80 वजीर, 50-50 वजीर। और फिर वजीर भी कौन से? कौन से वजीर? वो जो एमपी बनते हैं वो भी वजीर, मिनिस्टर। एमएलए बनते हैं, वो भी वजीर बन जाते हैं। तो हिसाब अगर करेंगे तो कितने हो जाएंगे? ढेर के ढेर हो जाएंगे। हो जाएंगे कि नहीं? हो जाएंगे। या तो सतयुग में एक भी नहीं। हँ? बाहर की दुनिया का चुना हुआ कोई वजीर होता है? नहीं। वरी यहां कलयुग में ढेर के ढेर। तो ये ढेर बदल हो करके फिर एक भी नहीं रहेगा। क्या? अभी सुप्रीम सोल हैविनली गॉड फादर, ऊंचे ते ऊंचा भगवंत आया हुआ है तो क्या परिवर्तन करेगा सारी दुनिया में? हँ? हां। न अनेक गवर्नमेंट रहेंगी, न अनेक धर्म रहेंगे और न अनेक वजीर रहेंगे। सारी दुनिया का, एक विश्व का बादशाह रहेगा जो शास्त्रों में गाया हुआ है। कौन? विश्वनाथ, जगन्नाथ। गाया हुआ है कि नहीं? हां, गाया हुआ है।
तो जिसके लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। क्या बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो? क्या लक्ष्य है तुम्हारा? हँ? कि हम विश्व के मालिक बनेंगे। है ना बरोबर? चलो बच्ची, हँ, टोली ले आओ। बाबा की समझ में नहीं आया। विश्व के मालिक बनेंगे। विश्व में 500-700 करोड़ होंगे उनके मालिक बनेंगे। अभी तो कोई सुनता ही नहीं। उमर हो रहे होने जा रही है 80-90 साल। तो, तो चलो बच्ची, टोली ले आओ। थोड़ा मुख मीठा हो जाए। अच्छा, मीठे-मीठे सीकिलधे 5000 वर्ष के बाद फिर से आय मिले हुए। ऐसा कोई कह सकता है बच्चे? नहीं कह सकता। सर्विसेबल, वफादार, फरमानबरदार, आज्ञाकारी बच्चों के प्रति रूहानी बाप का, बाप व दादा का याद प्यार, गुड मॉर्निंग। ओम शांति। (समाप्त) (37.37)
So look, hm, there won’t be any use of reading these topics of the scriptures. Hm? And no one will read these scriptures either. Does anyone read the Vedas now? Does anyone read the Aaranyak? Does anyone read the Upanishad? Have you heard it? They don’t read them. The scriptures that were made later [i.e.] the Puranas, hm, the Puranas that were made, do they listen more to them [i.e.] the story of Bhagvat, the story of Mahabharata and Ramayana Puran or do they read the Vedas more? No one reads the Vedas. Yes. It is because the Father has come and said. What has He said? All that is there, whatever these sages, saints and sanyasis have taught in the scriptures in this world: perform Yagya. What should you perform? Yagya. What do they understand by ‘Yagya’? Yagya means svaahaa (an exclamation used while offering something to the sacrificial fire). Whatever best thing you have in your house, [suppose] you have ghee, come and pour all of it. Where should you pour it? In the pit of fire. So, this is Yagya. Svaahaa. What should you do? Yes, whatever you have, a horse or a donkey, bring it… Ashvamedh [i.e.] sacrifice the horse.
Arey! So, it isn’t this svaahaa svaahaa. First understand the meaning of sva. What does ‘sva’ mean? The soul. So, first sva haa: the arrogance of the body that is inside your soul, [the arrogance of] the relationships of the body [and] the things of the body, [the arrogance of] the house, the shop and the factories ... They are sitting as multi-millionaires, aren’t they? All the arrogance they have… Sacrifice the arrogance that is in the soul. Sva haa. Sva means all that belongs to the self, you sacrificed it, you burnt it. What? What belongs to the self? What belongs to the self first? Arey, what belongs to the self first of all in this world? The body belongs to the self. [Everyone] certainly has love for his body first, don’t they? Yes. Then they have love for their husband or Father. Then they have love for the other relatives.
So, it was said, all that there is, the body, the things of the body, the relatives of the body, all this and all that you have picked from these scriptures for making purushaarth, [i.e.] Yagya, intense meditation, donation, acts of charity etc. remove all this husk from your intellect. Why did [Baba] call all this husk? Hm? It is because the Father comes and narrates the essence. [He tells us] what the essence of the scriptures is. And the pointless topics, the numerous topics of expansion that they have interpreted, haven’t they? What? Haven’t they? The Father came and narrated the essence: you are a soul, a point of light. This itself is the essence, isn’t it? Yes. But what happened later? Yes. The Vedas emerged from the mouth of Brahmaji. Did they emerge or not? Yes. The Vedas emerged, then the clarification of the Vedas emerged. What does ‘Veda’ mean? Veda means information. The information of what? The information about this soul. The information about where this soul is, where it is in this body, the information about the form of the soul and all the information related to the soul are present in the Vedas; that is what [people] say. [They say] the Vedas are an unlimited treasure of knowledge.
So, these Vedas, scriptures and the Yagya, intense meditation, donation, the acts of charity etc. that have emerged from them, you have to [remove] all this husk from your intellect. Husk means? Their expansion. The expansion of the Vedas are the Aaranyak, the expansion of the Aaranyak…when they clarified them, the Brahmins were made. Suutra granth were made from the expansion of the Brahmins. The Upanishads were made through the expansion of the Suutra granth. When the Upanishads were expanded, they made the Puranas. So, all this expansion is husk. What is it? They have also interpreted the Gita, haven’t they? How many interpretations have been made? How many clarifications have been given? How many people have made them? (Someone said something.) Yes. There have been more than 108 interpretations. And everyone plays their own tune (in their interpretation). So, whatever details these numerous human beings come up with - [the human beings] whose intellect is full of… tunde tunde matir bhinna (every head has its own opinion) - so, is it husk or the essence? It is husk. So, remove all this [from your intellect], won’t you?
Shoot even these gurus, who are sitting as guru, guru ghantaal now. What does ‘shoot [them]’ mean? Shoot them with the bullet of knowledge. It isn’t that you shoot them with the bullet of a gun. Yes, shoot them with the bullet that the Father teaches you [to shoot]. Yes. And you certainly shouldn’t shoot. Which [bullet]? That iron bullet of a gun. No. But whatever the shaastravadis have written; Hm? What have they written? Shoot the gurus. So, ‘shoot them’ means leave them. It has been written, hasn’t it? Arey, those who would have read the Gita, hm, they will know what God spoke in the Gita. What? No one finds Me through these Vedas, religious books and scriptures. No one finds me through chanting, intense meditation, donation, acts of charity. It has been certainly written in the Gita, hasn’t it? And the words spoken by whom have been written? [The words] spoken by God. The words that God spoke in the Chariot of Arjun…Or did He do the job of writing? (Someone said something.) Yes, he spoke through the mouth. Just like the religious fathers come and speak… Later on, what do their followers do? They make the scriptures.
So, God certainly spoke, and whatever He spoke has been written in the Gita. What? Shoot these [people]. All your gurus… Leave all of them. All of them have made you fall, they have made you subordinate. And your intellect is full of all the husk that they narrated. What? You just don’t come to know where the grain is in that husk. So, it is the path of Bhakti, isn’t it? Hm? When the intellect becomes full of the husk of expansion of the scriptures of the path of devotion, the intellect keeps wandering. Sometimes [it wanders] in temples [and] sometimes [it wanders] in mosques. The deity souls who are going to convert, where do they go sometimes? To mosques. Where do they go sometime else? To churches and sometimes to gurudwaras. So, there is just running on the path of Bhakti. They will run to one guru, and if he dies, they will make his disciple the guru and run behind him.
Earlier, there used to be one emperor and one minister. What does ‘earlier’ mean? When it was the beginning of the world, wasn’t it? When it was the Golden and Silver Age, wasn’t it? God established the new world of heaven. In the world of Ram and Krishna, in heaven, there used to be only one emperor in the world. And? And what else? There used to be only one minister. Do you know who used to be the minister? It isn’t that someone elected from the subjects used to be the minister. Who used to be the minister? Hm? Arey? Arey, you don’t know anything at all! Arey brother, if you want to stay happy, whatever Baba has narrated, study it with lot of attention. How many times [should you read] each Murli? You should read it six times. So, earlier there used to be only one emperor and only one minister. Who used to be the minister? It isn’t that someone from the subjects was elected as the minister. No. The parents themselves used to be the minister. Not even the mother; who [used to be the minister]? The Father. Yes. The Father used to be the minister. It used to be praised, brother, the king maharaja, the queen maharani. And, and the minister who shows them the path. What is the tradition? Arey, what is the tradition in Bharat? The tradition laid by God is going on in joint families somewhere or the other even today. The joint families... they are certainly present somewhere or the other in the world, aren’t they? They are also present in Bharat. So, the tradition is going on in those families. What? When the Father hands over all the property to look after the house and the family to his son and when he himself retires, so, does he retire and continue to show him (to the son) the path or not? Hm? (Someone said something.) Yes, he shows [him] the path: ‘don’t do like this, do like that. Don’t do like that.’ He doesn’t become a sanyasi altogether. Does he leave [him (the son)] completely? No. He continues to show him the path. So, he is the minister.
Accha, what has happened now? What has happened now? What went wrong? From the Copper Age, from the time king Vikramaditya came, what wrong did he do? Did something go wrong after that or not? (Someone said something.) Yes. Vikramaditya was the first king in Bharat. And was Vikramaditya a satopradhan king in the Copper Age or does rajopradhanta [and] tamopradhanta start from the very beginning of the Copper Age itself? (Someone said something.) Yes, there was satvapradhanta, wasn’t it there? So, the first king made his Father himself the minister. In the first birth, there was the same tradition that had been continuing till the end of Silver Age. But the birth after that will certainly fall, won’t it? Will it become a dualistic [birth] or not? Yes. So, that’s it. Then, what happened is that they stopped giving regard to their Father, their parents. What? The people of other religions, especially those of Islam and Muslim religion, do they give a lot of regard to their Father? Hm? Do they consider him to be equal to Khuda? They don’t. Do they consider him [to be that]? (Someone said something.) Yes, they don’t. Look, what did Aurangazeb do? What did he do to his own Father? He put him in jail.
So, this tradition is of the foreigners. What is the true tradition of Bharat? The parents who have given birth to you, nurtured you, tolerated so much trouble and all the income of their entire life - They have worked hard, haven’t they? They hand over all that income to their children at the end. So, what are those parents for their children? Who uplifts them (the children) the most in the world? It is the parents, isn’t it? So, they (the foreigners) won’t consider their parents to be God. Who will they consider God? [They say:] Khuda is God (bhagwaan). Who is bhagwaan? God is bhagwaan. Gurunanak is God. Mahatma Buddha is God. And in Bharat, there are certainly many Gods. Whichever Shankaracharya sits on the throne – that’s it – he is God! What has happened now? Did they stop giving regard to their parents or is it continuing? It is continuing, but [only] in some places; it is almost extinct. What? Just like the knowledge given by God becomes almost extinct, similarly, the traditions laid by the Father have also become almost extinct.
Now look, all the governments that there are in the world, how many ministers will there be in all those governments? Is the number of those who provide consultation or give advice increasing or decreasing? (Someone said something.) Yes, there are numerous ministers. Find out how many ministers there are. Look, in each and every province... It isn’t that you look in Delhi. Look in the capital of the entire country. No. In the capital of the entire country; All the different states and provinces that are there; look in them. What should you see? In each province, there are 80 ministers! 50 ministers! And then, the ministers are also of what kind? What kind of ministers are they? Those who become MP (Member of the Parliament). They are also Wazirs, ministers. Those who become MLA (Member of the Legislative Assembly) also become ministers. So, if you calculate, how many [ministers] will there be? There will be numerous [ministers]. Will they be there or not? There will be. Here, in the Golden Age, there is not even a single minister. Hm? Does a person elected from the outside world become the minister? No. Here, in the Iron Age, there are many [ministers]. So, these numerous [ministers] will change and then there won’t be even a single one. What? Now, the Supreme Soul, Heavenly God Father, the Highest of the High God has come, so, what transformation will He bring about in the entire world? Hm? Yes, there won’t be many governments, neither many religions nor many ministers. There will be one emperor of the whole world who is praised in the scriptures. Who? Vishwanath, Jagannath. Is he praised or not? Yes, he is praised.
So, that for which you are making purushaarth... You are making purushaarth to become what? What is your aim? Hm? ‘We will become the master of the world.’ It is certainly [your aim], isn’t it? Come on daughter, bring toli (sweets). Baba didn’t understand [this]: we will become the master of the world. There will be five to seven billion [people] in the world, we will become their master. No one listens [to me] now at all. His age is getting close to 80-90 years old. So, so, come on daughter, bring toli so that the mouth becomes sweet. Accha, the very sweet, sweet, long lost and now found [children], those who have come and met [Me] again after 5000 years… child, can anyone say that? They can’t. Remembrance, love and good morning from the Spiritual Father, baap and Dada to the serviceable, faithful, compliant and obedient children. Om Shanti. (End) (37.37)
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2930, दिनांक 03.07.2019
VCD 2930, dated 03.07.2019
प्रातः क्लास 29.11.1967
Morning Class dated 29.11.1967
VCD-2930-Bilingual-Part-2
समय- 18.40-37.37
Time- 18.40-37.37
तो देखो, हँ, ये शास्त्रों की बातें पढ़ने से कोई फायदा नहीं होगा। हँ? और न इन शास्त्रों को कोई पढ़ेगा। अभी कोई वेद पढ़ता है? हँ? आरण्यक पढ़ता है? हँ? वो उपनिषद पढ़ता है? सुना? नहीं पढ़ता। बाद वाले जो शास्त्र बने ना पुराण, हँ, पुराण जो बने वो ज्यादा सुनते हैं, भागवत कथा, महाभारत कथा, रामायण, पुराण कि वेद ज्यादा पढ़ते हैं? वेद कोई नहीं पढ़ता। हाँ, क्योंकि बाप ने आकर के कहा है। क्या कहा है? ये जो भी कुछ है, इस दुनिया में जो भी इन ऋषि-मुनियों ने, सन्यासियों ने शास्त्रों में सिखाया है यज्ञ करो। क्या करो? यज्ञ। यज्ञ से मतलब क्या समझते हैं? यज्ञ माने स्वाहा। जो भी तुम्हारे पास घर में बढ़िया से बढ़िया चीज है, घी है, वो आकरके सारा उड़ेल दो। कहां उड़ेल दो? आग के कुंड में। तो ये यज्ञ हो गया। स्वाहा। क्या करो? हां, वो तुम्हारे पास जो घोड़ा-गधा है उसको लाकर के, अश्वमेध, उस घोड़े को स्वाहा कर दो।
अरे, तो ये स्वाहा-स्वाहा नहीं; स्व का अर्थ तो पहले समझो। स्व माने क्या? आत्मा। तो पहले स्वा हा। अपनी आत्मा के अंदर जो अहंकार भरा हुआ है देह का, देह के संबंधियों का, देह के पदार्थों का, मकान का, दुकान का, कारखानों का, मल्टी मिलियनेयर्स बने बैठे हैं ना, उनका जो अहंकार चढ़ा हुआ है वो सारा आत्मा के अंदर अहंकार को तो स्वाहा करो। स्व हा। जो कुछ भी स्व माने अपना है वो सब स्वाहा कर दिया, जलाए दिया। क्या? अपना क्या है? पहले क्या है अपना? अरे, इस दुनिया में पहले-पहले अपना क्या है? ये अपना शरीर। पहले तो अपने शरीर से प्यार होता है ना? हाँ। फिर पति से या पिता से प्यार होता है। फिर और-और संबंधियों से प्यार होता है।
तो बताया कि ये जो कुछ भी है - देह, देह के पदार्थ, देह के संबंधी, ये सब कुछ और जो भी तुमने इन शास्त्रों में उठाया है पुरुषार्थ करने के लिए, हँ, यज्ञ, तप, दान, पुण्य, वगैरा, ये सभी भूसा बुद्धि से निकाल दियो। ये सभी भूसा क्यों बताए दिया? हँ? क्योंकि जो सार है वो तो बाप आकरके बताते हैं शास्त्रों का सार क्या है? और जो निस्सार बातें हैं, विस्तार की ढेर सारी बातें, जो उनका इंटरप्रिटेशन किया है ना? क्या? नहीं किया? बाप ने आकर के तो सार की बात बताई - तुम ज्योति बिंदु आत्मा हो। यही सार है ना? हां। लेकिन फिर बाद में क्या हुआ? हाँ, वो ब्रह्मा जी के मुख से वेद निकले। निकले कि नहीं? हां, वेद निकले। फिर वेदों की व्याख्याएं निकलीं। वेद माने? वेद माने जानकारी। काहे की जानकारी? इस आत्मा की जानकारी। आत्मा कहां है? इस देह में कहां है वो जानकारी, आत्मा के रूप की जानकारी और जितनी भी जानकारी आत्मा के संबंध में है वो सारी वेदों में भरी पड़ी है। उसे कहते हैं वेद जो हैं अगाध ज्ञान का भंडार हैं।
तो ये वेद, शास्त्र और उनमें से निकले हुए यज्ञ, तप, दान, पुण्य, वगैरा, वगैरा, जो भी हैं इनका सारा भूसा बुद्धि में से; भूसा माने? इनका विस्तार। वेदों का विस्तार आरण्यक। आरण्यक का विस्तार, उनको व्याख्या की तो ब्राह्मण बने। ब्राह्मण का विस्तार जो बना वो सूत्र ग्रंथ बन गए। सूत्र ग्रंथों का विस्तार बना तो उपनिषद बन गए। उपनिषदों का जो विस्तार हुआ तो फिर उन्होंने पुराण बनाए दिए। तो ये जो भी विस्तार है वो सारा भूसा है। क्या है? ये जो गीता का भी इंटरप्रिटेशन किया ना? कितने इंटरप्रिटेशन किये? कितनी व्याख्याएं हुईं? कितने लोगों ने किये? (किसी ने कुछ कहा।) हां, 108 से भी जास्ती टीकाएं हो चुकी हैं। और सब अपनी-अपनी ढफली अपना-अपना राग। तो ये जितना विस्तार में जाते हैं ढेर के ढेर मनुष्य, तुंडे-तुंडे मतिर्भिन्ना जिनकी बुद्धि में भरा हुआ है, तो वो भूसा हो गया या सार हुआ? भूसा हुआ। तो ये सब निकाल दियो। है ना?
ये गुरुओं को भी अभी गोली मारो। जो गुरु बनकरके बैठे हैं गुरु घंटाल। गोली मारो माना? ज्ञान की गोली मारो। ऐसे नहीं तुम बंदूक की गोली मार दो उनको। हां, जो बाप गोली मारना सिखाते हैं सो मारो। हां। और गोली तो मारने की नहीं है। कौन सी? वो बंदूक की गोली, लोहे की। नहीं। परंतु शास्त्रवादियों ने जो लिख दिया है; हँ? क्या लिख दिया है? कि गुरुओं को गोली मारो। तो गोली मारने का माने इनको छोड़ दो। लिखा हुआ है ना? अरे, जिन्होंने गीता पढ़ी होगी, हँ, उनको ये मालूम होगा कि गीता में भगवानुवाच क्या है? क्या? इन वेद, ग्रंथ, शास्त्रों से मेरे को कोई नहीं मिलता। जप, तप, दान, पुण्य से मेरे को कोई नहीं मिलता। ये तो गीता में लिखा हुआ है ना? और जो लिखा हुआ है वो किसकी बोली हुई बात लिखी? भगवानुवाच। भगवान ने जो उवाच किया अर्जुन के रथ में कि लिखापट्टी की? (किसी ने कुछ कहा।) हां, बोला मुख से। जैसे धर्मपिताएं आकरके बोलते हैं, बाद में उनके फॉलोअर्स क्या करते हैं? शास्त्र बनाते हैं।
तो भगवान ने तो बोला। और जो बोला है सो गीता में लिखा हुआ है। क्या? इनको मारो गोली। ये सब जो तुम्हारे गुरु हैं ना, हँ, इन सब को छोड़ दो। इन सब ने तुम को नीचे गिराया है, आधीन बनाया है। और ये जो भी उन्होंने सुनाया ये सब तुम्हारी बुद्धि में भूसा भरा हुआ है। क्या? उस भूसे में अनाज का तो पता ही नहीं चलता कहां है? तो ये भक्ति मार्ग हुआ ना? हँ? भक्ति मार्ग का भूसा जब बुद्धि में भर जाता है शास्त्रों का, विस्तार का तो बुद्धि भटकती रहती है। कभी मंदिर में, कभी मस्जिद में कन्वर्ट होने वाली जो देव आत्माएं हैं वो कभी कहाँ जाती हैं? मस्जिद में। कभी कहां जाती हैं? गिरजाघर में, कभी गुरुद्वारों में। तो भक्ति मार्ग में है ही भागना। एक गुरु के पास भागेंगे। वो मर गया। फिर उसके चेले को गुरु बनाय लेंगे। उसके पीछे भागेंगे।
तो आगे एक महाराजा और भई एक वजीर, ऐसा होता था। आगे माने कब? जब सृष्टि का आदि था ना? सतयुग त्रेता था ना? जो भगवान ने नई सृष्टि बनाई स्वर्ग की राम-कृष्ण की दुनिया स्वर्ग में, तो वहां एक ही महाराजा दुनिया में होता था। और? और क्या? एक ही वजीर होता था। पता है कौन वजीर होता था? ऐसे नहीं कि प्रजा में से चुना हुआ कोई वजीर होता था। कौन होता था वजीर? हँ? अरे? अरे, कुछ पता ही नहीं? अरे भाई, सुखी रहना है तो बाबा ने जो सुनाया है वो खूब ध्यान से पढ़ो। एक-एक मुरली को कितनी बार? 6 बार पढ़ना चाहिए। तो आगे एक ही महाराजा, एक ही वजीर। कौन वजीर होता था? ऐसे नहीं कि प्रजा में से कोई वजीर चुन लिया। वो वजीर होता था। नहीं। जो मां-बाप थे ना वो ही वजीर होते थे। मां भी नहीं। कौन? बाप। हां। बाप वजीर होता था। गाया जाता था भई किंग महाराजा। और क्वीन महारानी। और, और वजीर, हँ, उनको रास्ता दिखाने वाला। परंपरा क्या है? अरे, भारत में क्या परंपरा है? भगवान की डाली हुई परंपरा आज भी चल रही है कहीं ना कहीं संयुक्त परिवारों में। जो ज्वाइंट फैमिलीज हैं ना दुनिया में कहीं ना कहीं, भारत में भी हैं, तो वो परिवार में परंपरा चल रही है। क्या? कि बाप जब अपने बच्चे को सारी प्रॉपर्टी सौंपता है घर-परिवार को संभालने की, खुद वानप्रस्थ हो जाता है तो वानप्रस्थ हो करके उसे रास्ता बताता रहता है कि नहीं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हां, रास्ता बताता है। ऐसे नहीं, ऐसे चलो। ऐसे नहीं। एकदम सन्यासी नहीं हो जाता। संपूर्ण छोड़ देता है? नहीं। उनको रास्ता बताता रहता है। तो वो हुआ वजीर।
अच्छा, अभी क्या हो गया? हँ? अभी क्या हो गया? क्या गड़बड़ हो गई? हँ? अभी द्वापर युग से जब से राजा विक्रमादित्य आया तो क्या गड़बड़ कर दी थी? उसके बाद गड़बड़ कुछ हुई कि नहीं? (किसी ने कुछ कहा।) हां, पहला जो राजा था ना भारत में विक्रमादित्य था। और विक्रमादित्य सतोप्रधान राजा था द्वापरयुग में या द्वापरयुग में ही शुरू-शुरुआत में रजोप्रधान, तमोप्रधानता शुरू हो जाती है? (किसी ने कुछ कहा।) हां, सत्वप्रधानता थी ना? जो पहला-पहला राजा था उसने तो अपने बाप को ही वजीर बनाया। जो परंपरा चली आ रही थी त्रेता के अंत तक, हां, वो ही परंपरा पहले जन्म में। लेकिन बाद का जन्म तो नीचे गिरेगा ना। द्वैतवादी बनेगा कि नहीं? हाँ। तो बस, फिर तो क्या हुआ कि बाप की मान्यता, मां-बाप की मान्यता करना बंद हो गई। क्या? दूसरे धर्म वाले जो हैं, खास करके इस्लाम या मुसलमान धर्म वाले अपने बाप को ज्यादा मान्यता देते हैं? हँ? खुदा के समान मानते हैं? नहीं मानते। मानते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) हां, नहीं मानते। देखो, औरंगजेब ने क्या किया? अपने बाप को ही क्या कर दिया? जेल में डाल दिया।
तो ये परंपरा जो है विदेशियों की है। भारत की सच्ची परंपरा क्या है? कि जिन मां-बाप ने जन्म दिया है जिन्होंने पाला है, पोसा है और इतना तकलीफ सही है सारे जीवन की जितनी कमाई है; मेहनत की ना? वो सारी कमाई अंत में बच्चों को सौंप देते हैं। तो वो माई-बाप कौन हुए बच्चों के लिए? उनका उत्थान करने वाले, उत्थान करने वाले इस दुनिया में सबसे जास्ती कौन हुए? मां-बाप हुए ना। तो मां-बाप को भगवान नहीं मानेंगे। किसको भगवान मानेंगे? हँ? खुदा भगवान है। कौन भगवान है? गॉड भगवान है। गुरु नानक भगवान है। महात्मा बुद्ध भगवान है। और भारत में तो ढेर के ढेर भगवान हैं। जो शंकराचार्य गद्दी पे बैठा बस वो भगवान है। अभी क्या हो गया? मां-बाप की मान्यता खलास कर दी या चालू है? चालू है। लेकिन कहीं-कहीं प्रायःलोप है। क्या? भगवान का दिया हुआ जैसे ज्ञान का लोप हो जाता है वैसे भगवान की डाली हुई परंपराएं भी प्रायःलोप हो गई।
अब देखो दुनिया में जितनी भी सरकारें हैं तो उन सभी सरकारों में कितने वजीर होंगे? मंत्रणा देने वालों की, सलाह देने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है या घटती जा रही है? (किसी ने कुछ कहा।) हां, ढेर के ढेर वजीर। पता करो कितने वजीर? एक-एक प्रोविंस के देखो। ऐसे नहीं कि दिल्ली में देखो। सारे देश की राजधानी में देखो। नहीं। सारी देश की राजधानी में जितने भी अलग-अलग राज्य हैं, स्टेट्स है, प्राविन्स हैं उनमें देखो। क्या देखो? एक-एक प्रोविंस में 80-80 वजीर, 50-50 वजीर। और फिर वजीर भी कौन से? कौन से वजीर? वो जो एमपी बनते हैं वो भी वजीर, मिनिस्टर। एमएलए बनते हैं, वो भी वजीर बन जाते हैं। तो हिसाब अगर करेंगे तो कितने हो जाएंगे? ढेर के ढेर हो जाएंगे। हो जाएंगे कि नहीं? हो जाएंगे। या तो सतयुग में एक भी नहीं। हँ? बाहर की दुनिया का चुना हुआ कोई वजीर होता है? नहीं। वरी यहां कलयुग में ढेर के ढेर। तो ये ढेर बदल हो करके फिर एक भी नहीं रहेगा। क्या? अभी सुप्रीम सोल हैविनली गॉड फादर, ऊंचे ते ऊंचा भगवंत आया हुआ है तो क्या परिवर्तन करेगा सारी दुनिया में? हँ? हां। न अनेक गवर्नमेंट रहेंगी, न अनेक धर्म रहेंगे और न अनेक वजीर रहेंगे। सारी दुनिया का, एक विश्व का बादशाह रहेगा जो शास्त्रों में गाया हुआ है। कौन? विश्वनाथ, जगन्नाथ। गाया हुआ है कि नहीं? हां, गाया हुआ है।
तो जिसके लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। क्या बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो? क्या लक्ष्य है तुम्हारा? हँ? कि हम विश्व के मालिक बनेंगे। है ना बरोबर? चलो बच्ची, हँ, टोली ले आओ। बाबा की समझ में नहीं आया। विश्व के मालिक बनेंगे। विश्व में 500-700 करोड़ होंगे उनके मालिक बनेंगे। अभी तो कोई सुनता ही नहीं। उमर हो रहे होने जा रही है 80-90 साल। तो, तो चलो बच्ची, टोली ले आओ। थोड़ा मुख मीठा हो जाए। अच्छा, मीठे-मीठे सीकिलधे 5000 वर्ष के बाद फिर से आय मिले हुए। ऐसा कोई कह सकता है बच्चे? नहीं कह सकता। सर्विसेबल, वफादार, फरमानबरदार, आज्ञाकारी बच्चों के प्रति रूहानी बाप का, बाप व दादा का याद प्यार, गुड मॉर्निंग। ओम शांति। (समाप्त) (37.37)
So look, hm, there won’t be any use of reading these topics of the scriptures. Hm? And no one will read these scriptures either. Does anyone read the Vedas now? Does anyone read the Aaranyak? Does anyone read the Upanishad? Have you heard it? They don’t read them. The scriptures that were made later [i.e.] the Puranas, hm, the Puranas that were made, do they listen more to them [i.e.] the story of Bhagvat, the story of Mahabharata and Ramayana Puran or do they read the Vedas more? No one reads the Vedas. Yes. It is because the Father has come and said. What has He said? All that is there, whatever these sages, saints and sanyasis have taught in the scriptures in this world: perform Yagya. What should you perform? Yagya. What do they understand by ‘Yagya’? Yagya means svaahaa (an exclamation used while offering something to the sacrificial fire). Whatever best thing you have in your house, [suppose] you have ghee, come and pour all of it. Where should you pour it? In the pit of fire. So, this is Yagya. Svaahaa. What should you do? Yes, whatever you have, a horse or a donkey, bring it… Ashvamedh [i.e.] sacrifice the horse.
Arey! So, it isn’t this svaahaa svaahaa. First understand the meaning of sva. What does ‘sva’ mean? The soul. So, first sva haa: the arrogance of the body that is inside your soul, [the arrogance of] the relationships of the body [and] the things of the body, [the arrogance of] the house, the shop and the factories ... They are sitting as multi-millionaires, aren’t they? All the arrogance they have… Sacrifice the arrogance that is in the soul. Sva haa. Sva means all that belongs to the self, you sacrificed it, you burnt it. What? What belongs to the self? What belongs to the self first? Arey, what belongs to the self first of all in this world? The body belongs to the self. [Everyone] certainly has love for his body first, don’t they? Yes. Then they have love for their husband or Father. Then they have love for the other relatives.
So, it was said, all that there is, the body, the things of the body, the relatives of the body, all this and all that you have picked from these scriptures for making purushaarth, [i.e.] Yagya, intense meditation, donation, acts of charity etc. remove all this husk from your intellect. Why did [Baba] call all this husk? Hm? It is because the Father comes and narrates the essence. [He tells us] what the essence of the scriptures is. And the pointless topics, the numerous topics of expansion that they have interpreted, haven’t they? What? Haven’t they? The Father came and narrated the essence: you are a soul, a point of light. This itself is the essence, isn’t it? Yes. But what happened later? Yes. The Vedas emerged from the mouth of Brahmaji. Did they emerge or not? Yes. The Vedas emerged, then the clarification of the Vedas emerged. What does ‘Veda’ mean? Veda means information. The information of what? The information about this soul. The information about where this soul is, where it is in this body, the information about the form of the soul and all the information related to the soul are present in the Vedas; that is what [people] say. [They say] the Vedas are an unlimited treasure of knowledge.
So, these Vedas, scriptures and the Yagya, intense meditation, donation, the acts of charity etc. that have emerged from them, you have to [remove] all this husk from your intellect. Husk means? Their expansion. The expansion of the Vedas are the Aaranyak, the expansion of the Aaranyak…when they clarified them, the Brahmins were made. Suutra granth were made from the expansion of the Brahmins. The Upanishads were made through the expansion of the Suutra granth. When the Upanishads were expanded, they made the Puranas. So, all this expansion is husk. What is it? They have also interpreted the Gita, haven’t they? How many interpretations have been made? How many clarifications have been given? How many people have made them? (Someone said something.) Yes. There have been more than 108 interpretations. And everyone plays their own tune (in their interpretation). So, whatever details these numerous human beings come up with - [the human beings] whose intellect is full of… tunde tunde matir bhinna (every head has its own opinion) - so, is it husk or the essence? It is husk. So, remove all this [from your intellect], won’t you?
Shoot even these gurus, who are sitting as guru, guru ghantaal now. What does ‘shoot [them]’ mean? Shoot them with the bullet of knowledge. It isn’t that you shoot them with the bullet of a gun. Yes, shoot them with the bullet that the Father teaches you [to shoot]. Yes. And you certainly shouldn’t shoot. Which [bullet]? That iron bullet of a gun. No. But whatever the shaastravadis have written; Hm? What have they written? Shoot the gurus. So, ‘shoot them’ means leave them. It has been written, hasn’t it? Arey, those who would have read the Gita, hm, they will know what God spoke in the Gita. What? No one finds Me through these Vedas, religious books and scriptures. No one finds me through chanting, intense meditation, donation, acts of charity. It has been certainly written in the Gita, hasn’t it? And the words spoken by whom have been written? [The words] spoken by God. The words that God spoke in the Chariot of Arjun…Or did He do the job of writing? (Someone said something.) Yes, he spoke through the mouth. Just like the religious fathers come and speak… Later on, what do their followers do? They make the scriptures.
So, God certainly spoke, and whatever He spoke has been written in the Gita. What? Shoot these [people]. All your gurus… Leave all of them. All of them have made you fall, they have made you subordinate. And your intellect is full of all the husk that they narrated. What? You just don’t come to know where the grain is in that husk. So, it is the path of Bhakti, isn’t it? Hm? When the intellect becomes full of the husk of expansion of the scriptures of the path of devotion, the intellect keeps wandering. Sometimes [it wanders] in temples [and] sometimes [it wanders] in mosques. The deity souls who are going to convert, where do they go sometimes? To mosques. Where do they go sometime else? To churches and sometimes to gurudwaras. So, there is just running on the path of Bhakti. They will run to one guru, and if he dies, they will make his disciple the guru and run behind him.
Earlier, there used to be one emperor and one minister. What does ‘earlier’ mean? When it was the beginning of the world, wasn’t it? When it was the Golden and Silver Age, wasn’t it? God established the new world of heaven. In the world of Ram and Krishna, in heaven, there used to be only one emperor in the world. And? And what else? There used to be only one minister. Do you know who used to be the minister? It isn’t that someone elected from the subjects used to be the minister. Who used to be the minister? Hm? Arey? Arey, you don’t know anything at all! Arey brother, if you want to stay happy, whatever Baba has narrated, study it with lot of attention. How many times [should you read] each Murli? You should read it six times. So, earlier there used to be only one emperor and only one minister. Who used to be the minister? It isn’t that someone from the subjects was elected as the minister. No. The parents themselves used to be the minister. Not even the mother; who [used to be the minister]? The Father. Yes. The Father used to be the minister. It used to be praised, brother, the king maharaja, the queen maharani. And, and the minister who shows them the path. What is the tradition? Arey, what is the tradition in Bharat? The tradition laid by God is going on in joint families somewhere or the other even today. The joint families... they are certainly present somewhere or the other in the world, aren’t they? They are also present in Bharat. So, the tradition is going on in those families. What? When the Father hands over all the property to look after the house and the family to his son and when he himself retires, so, does he retire and continue to show him (to the son) the path or not? Hm? (Someone said something.) Yes, he shows [him] the path: ‘don’t do like this, do like that. Don’t do like that.’ He doesn’t become a sanyasi altogether. Does he leave [him (the son)] completely? No. He continues to show him the path. So, he is the minister.
Accha, what has happened now? What has happened now? What went wrong? From the Copper Age, from the time king Vikramaditya came, what wrong did he do? Did something go wrong after that or not? (Someone said something.) Yes. Vikramaditya was the first king in Bharat. And was Vikramaditya a satopradhan king in the Copper Age or does rajopradhanta [and] tamopradhanta start from the very beginning of the Copper Age itself? (Someone said something.) Yes, there was satvapradhanta, wasn’t it there? So, the first king made his Father himself the minister. In the first birth, there was the same tradition that had been continuing till the end of Silver Age. But the birth after that will certainly fall, won’t it? Will it become a dualistic [birth] or not? Yes. So, that’s it. Then, what happened is that they stopped giving regard to their Father, their parents. What? The people of other religions, especially those of Islam and Muslim religion, do they give a lot of regard to their Father? Hm? Do they consider him to be equal to Khuda? They don’t. Do they consider him [to be that]? (Someone said something.) Yes, they don’t. Look, what did Aurangazeb do? What did he do to his own Father? He put him in jail.
So, this tradition is of the foreigners. What is the true tradition of Bharat? The parents who have given birth to you, nurtured you, tolerated so much trouble and all the income of their entire life - They have worked hard, haven’t they? They hand over all that income to their children at the end. So, what are those parents for their children? Who uplifts them (the children) the most in the world? It is the parents, isn’t it? So, they (the foreigners) won’t consider their parents to be God. Who will they consider God? [They say:] Khuda is God (bhagwaan). Who is bhagwaan? God is bhagwaan. Gurunanak is God. Mahatma Buddha is God. And in Bharat, there are certainly many Gods. Whichever Shankaracharya sits on the throne – that’s it – he is God! What has happened now? Did they stop giving regard to their parents or is it continuing? It is continuing, but [only] in some places; it is almost extinct. What? Just like the knowledge given by God becomes almost extinct, similarly, the traditions laid by the Father have also become almost extinct.
Now look, all the governments that there are in the world, how many ministers will there be in all those governments? Is the number of those who provide consultation or give advice increasing or decreasing? (Someone said something.) Yes, there are numerous ministers. Find out how many ministers there are. Look, in each and every province... It isn’t that you look in Delhi. Look in the capital of the entire country. No. In the capital of the entire country; All the different states and provinces that are there; look in them. What should you see? In each province, there are 80 ministers! 50 ministers! And then, the ministers are also of what kind? What kind of ministers are they? Those who become MP (Member of the Parliament). They are also Wazirs, ministers. Those who become MLA (Member of the Legislative Assembly) also become ministers. So, if you calculate, how many [ministers] will there be? There will be numerous [ministers]. Will they be there or not? There will be. Here, in the Golden Age, there is not even a single minister. Hm? Does a person elected from the outside world become the minister? No. Here, in the Iron Age, there are many [ministers]. So, these numerous [ministers] will change and then there won’t be even a single one. What? Now, the Supreme Soul, Heavenly God Father, the Highest of the High God has come, so, what transformation will He bring about in the entire world? Hm? Yes, there won’t be many governments, neither many religions nor many ministers. There will be one emperor of the whole world who is praised in the scriptures. Who? Vishwanath, Jagannath. Is he praised or not? Yes, he is praised.
So, that for which you are making purushaarth... You are making purushaarth to become what? What is your aim? Hm? ‘We will become the master of the world.’ It is certainly [your aim], isn’t it? Come on daughter, bring toli (sweets). Baba didn’t understand [this]: we will become the master of the world. There will be five to seven billion [people] in the world, we will become their master. No one listens [to me] now at all. His age is getting close to 80-90 years old. So, so, come on daughter, bring toli so that the mouth becomes sweet. Accha, the very sweet, sweet, long lost and now found [children], those who have come and met [Me] again after 5000 years… child, can anyone say that? They can’t. Remembrance, love and good morning from the Spiritual Father, baap and Dada to the serviceable, faithful, compliant and obedient children. Om Shanti. (End) (37.37)
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2931, दिनांक 04.07.2019
VCD 2931, dated 04.07.2019
रात्रि क्लास 29.11.1967
Night Class dated 29.11.2019
VCD-2931-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.00
Time- 00.01-15.00
आज का रात्रि क्लास है – 29.11.1967. अधूरी वाणी उठाई है। ऊँच बहुत पद देते हैं। हँ? कितना ऊँचा? हँ? बहुत ऊँचा कितना? हँ? अरे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, विश्व की बादशाही, सारे विश्व की बादशाही। उसमें तो सभी देश, सभी धर्मखंड आ जाते हैं। और फिर धर्मखंड आ जाते हैं तो धर्मपिताएं भी अंडर दि कंट्रोल आते होंगे कि नहीं आते होंगे? आते होंगे। और ऐसे भी नहीं है कि विश्व की बादशाही देने की बात कोई नई बात है क्योंकि चित्र तो रखे हैं ना? किसके चित्र रखे हैं? हँ? क्या चित्र रखा है विश्व की बादशाही का चित्र क्या रखा है? अरे? हँ? अरे चित्र बनाते हैं ना, फोटो-वोटो बनाते हैं ना? (किसी ने कुछ कहा।) लक्ष्मी-नारायण के चित्र रखे हैं? लक्ष्मी-नारायण तो स्वर्ग में दिखाते हैं। स्वर्ग में तो विश्व नहीं होता है। हँ?
उनका नाम भी देते हैं ऐसा ही - विश्वनाथ। हँ? तो चित्र है कि नहीं विश्वनाथ का? काशी विश्वनाथ गंगे कहते हैं। चित्र भी रखे हैं परन्तु बहुत ऊँची बात है ये बनना। क्या बनना? विश्व का बादशाह बनना क्योंकि जब अज्ञान काल में तो कोई की बुद्धि में भी नहीं बैठे, हँ, कि कोई की बुद्धि में बैठ जाए कि ये बनने वाले हैं विश्व के मालिक। अज्ञान काल है तो कोई की बुद्धि में ये बात नहीं बैठ सकती। या मन्दिर में जाते हैं। कोई ऐसे समझ में आते हैं कि कोई वक्त में ऐसा भी कोई बनेगा। कैसा? हँ? अभी तक तो जो हिस्ट्री में सुनते आए वो दुनिया के पृथ्वी के नक्शे में छोटे-छोटे टुकड़े के बादशाह सुने गए। पूरे विश्व के बादशाह तो किसी ने सुना ही नहीं। तो थे तो ज़रूर। नाम किस आधार पर पड़ते हैं? हँ? काम के आधार पर नाम पड़ते हैं। तो विश्वनाथ नाम है, जगन्नाथ नाम है, तो जगत के ऊपर, विश्व के ऊपर कंट्रोलिंग की होगी ना? ठीक है। थे जरूर। फिर कहां गए? हँ? विश्व के बादशाह थे और सारे विश्व को कंट्रोल कर लिया तो फिर गए कहां? ये कैसे खंड-खंड हो गए सब? हँ?
वो तो समझते होंगे कि ज्योति-ज्योति में समा गए। क्या? कौन समझते होंगे? जो भी धरमपिताएं आए, बुद्ध आए, तो बुद्ध के फालोअर्स कहते हैं ज्योति ज्योति में समाया। हँ? शंकराचार्य आए तो उनके लिए भी कि उनकी ज्योति ज्योति में समा गई। आत्मा परमात्मा में लीन हो गई। तो वो तो ऐसे समझते हैं। कहां चले गए, किसको ये ज्ञान थोड़ेही रखा हुआ है? क्या ज्ञान? कि जो विश्व के बादशाह बने थे विश्व के मालिक वो विश्व को छोड़ करके कहीं और भाग जाएंगे क्या? नहीं। कोई की बुद्धि में ज्ञान नहीं है कि जो तुमको मालूम पड़ता है कि अरे, ये क्या, हँ, ये तो हम ही इस डिनायस्टी के थे। कौनसी डैनास्टी के? हँ? जो शास्त्रों में लिखा है कि भगवान आते हैं तो सूर्य को ज्ञान देते हैं। और सूर्य तो सारी दुनिया को रोशनी देता है। उसकी रोशनी में सब पलते हैं ना? तो इसको नाम दिया विवस्वत शास्त्रों में या विश्वनाथ या जगन्नाथ। तो हम तो समझते हैं कि हम उसी डिनायस्टी के थे। कहां की? सूर्यवंशी थे। हम ही देवी-देवता थे सूर्यवंश के असल। हम ही पूज्य थे। हँ? हम ही अभी पुजारी बने हैं। कैसे? पूज्य थे। फिर पुजारी कैसे बने? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। संग के रंग से ये द्वैतवादी दुनिया में द्वापरयुग से ये दूसरे-दूसरे धरमपिताएं, नई-नई आत्माएं आईं तो पावरफुल आत्माएं आईं या कमज़ोर आत्माएं आईं? पावरफुल आत्माएं आईं। और जो देवी-देवताएं थे वो अनेक जन्म लेते-लेते पीढ़ी दर पीढ़ी कमज़ोर आत्माएं बनती गईं सुख भोगते-भोगते। तो कमज़ोर बन गईं। उनको ऊपर से आनेवाले उन धरमपिताओं ने अपने प्रभाव में ले लिया। पुजारी बन गए।
तो ये अभी मालूम पड़ा ना बच्चों को कि हम पूज्य थे सो पुजारी कैसे बन गए? हँ? संग के रंग से ही तो बनते हैं ना? हँ? ऊंच ते ऊंच का संग मिलेगा तो उँच ते ऊँच बनेंगे। और नीच का संग मिलेगा तो नीचे गिरेंगे। तो ऊँच ते ऊँच तो ये सभी धरमपिताएं मानते हैं, उनके फालोअर्स भी मानते हैं; क्या? गुरुनानक किधर इशारा करते हैं? हँ? ऊपर को इशारा करते हैं ना? वो ऊपरवाला है ऊँच ते ऊँच। ऐसे ही क्राइस्ट ने भी; क्राइस्ट के चित्र तो देखे? किधर इशारा करते? कहते हैं मैं गॉड हूँ? नहीं, मैं तो गॉड का बच्चा हूँ। ये कहते हैं। तो देखो जो भी धरमपिताएं आए कोई अपने को गॉड थोड़ेही मानते? वो तो गॉड अपने से बहुत ऊँचे को समझते हैं ना? हाँ। तो अभी मालूम पड़ गया। ये तो उस गॉड के मुकाबले नीच हैं या ऊँच हैं धरमपिताएं जो आए जिनके संग के रंग में देवी-देवताएं आकरके नीच बन गए, हँ, पुजारी बन गए? पूज्य से पुजारी बन गए।
तो देखो, ये एक वंडरफुल बात सुनी ना कि हम इतने ऊँचे थे। हँ? और इतने ऊँचे से फिर ऐसे बन गए। कैसे बन गए? हँ? सोमनाथ मन्दिर में यादगार भी बनाई। क्या यादगार दिखाई? हँ? यादगार दिखाई ना? शिवलिंग। और शिवलिंग के बीच में हीरा। हीरा का मतलब क्या? हीरा माने हीरो पार्टधारी। इस दुनिया में हम ऊँच ते ऊँच हीरो पार्टधारी विश्व के मालिक थे। हँ? और अब इन नीच धरमपिताओं के संग के रंग में आकरके हम देखो आधीन बन गए, पुजारी बन गए कि पूज्य रहे? पुजारी बन गए। तो इतने ऊँचे थे। और ऐसे बन गए। हँ? मनुष्य तो कह देते हैं कि 84 लाख जन्म लेते हैं, हँ, तो उसमें कुछ दिल से अभी लगता नहीं है। क्या? कि 84 लाख जन्म लेने के बाद हम इतने नीचे गिरे हैं क्या? हँ? न दिल से लगता है न कोई की बुद्धि में बैठता भी नहीं है कि 84 जन्म की, 84 लाख की हिस्ट्री कौन बैठकरके निकालेगा? कोई को विश्वास ही नहीं होगा। कहने मात्र हैं ये सभी बातें। क्या? कि मनुष्यात्मा 84 लाख जन्म लेती है। 84 लाख के चक्र में भ्रमण करके फिर एक अंतिम जनम मनुष्य का मिलता है।
अभी तुम बच्चे तो प्रैक्टिकल में पुरुषार्थ कर रहे हो। क्या? क्या पुरुषार्थ कर रहे हो? मनुष्य हो, नर हो, तो नर से नारायण बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो ना? हाँ। क्या बनने के लिए? ये लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए जिनकी यादगार है; आदि नारायण, आदि लक्ष्मी, की यादगार क्या है? ऊँच ते ऊँच पद? विष्णु पद। कैसे थे ये आदि लक्ष्मी-नारायण? इनके स्वभाव और संस्कार पति-पत्नी के आपस में 100 परसेन्ट मिले हुए थे। और आज? आज क्या हालत हो गई? हँ? आज घर-घर में ऐसे कोई पति-पत्नी हैं दुनिया में, हँ, छाती ठोक के कहेंगे कि हमारे संस्कार मिले हुए हैं, हम एक हैं? हँ? गीत गाते हैं – आवाज़ दो हम एक हैं। लड्डू। बोलने से क्या होता है? तो तुम बच्चे अब समझ गए हो कि वो, हँ, विष्णु बनने का पुरुषार्थ तो, हँ, जहां पति और पत्नी दोनों के संस्कार मिलकरके एक हो जाते हैं जैसे कोई भी आवे तो कहे कि ये भई दो नहीं हैं। इनकी भाषा भी एक, हँ, इनकी चलन भी एक और इनके वायब्रेशन भी एक। इनकी दृष्टि-वृत्ति सब दोनों की? एक है। तो एक हुए या दो कहेंगे? एक ही कहेंगे।
तो ऐसा बनने का तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। एक बनने के लिए। तो एक कैसे बनेंगे? हँ? एक ऊँचे ते ऊँचे भगवन्त को याद करेंगे, जिनको धरमपिताओं ने भी एक को माना या नहीं माना? गॉड इज़ वन माना ना? हाँ। तो, तो पद बहुत ऊँचा बनेगा। अगर एक को जानेंगे; हँ? इन अनेक धर्मपिताओं को, धर्मगुरुओं को, इनको छोड़ो, क्या करो? जो गुरुओं का गुरु एक सद्गुरु है; कहते हैं ना सिक्ख लोग; क्या? एक सद्गुरु निराकार। हँ? तो एक सद्गुरु है तो बाकि गुरु कैसे हो गए? चाहे इब्राहिम हों, बुद्ध हों, क्राइस्ट हों, कितने भी बड़े-बड़े हों, अरे, दुनिया की कितनी बड़ी जेनरेशन को कंट्रोल करने वाले या इतने बड़े-बड़े झुंड के झुंड फालो करने वाले हों, लेकिन फिर भी उनको बेहद का बाप तो नहीं कहेंगे? बेहद का बाप किसको कहेंगे? जो सबका एक ही बाप है। सबका मालिक एक है। गाते तो हैं। तो उस एक को जानेंगे तो पद बहुत ऊँचा मिलेगा।
Today’s night class is dated 29.11.1967. An incomplete Vani has been picked up. He gives a very high post. Hm? How high? Hm? How ‘very high’? Hm? Arey? Hm? (Someone said something.) Yes, emperorship of the world, the emperorship of the entire world. All the countries, all the religious lands are included in it. And when the religious lands are included, then do the founders of religions also come ‘under the control’ or not? They also come. And it is not as if the topic of giving the emperorship of the world is a new topic because the pictures are placed, aren’t they? Whose pictures are placed? Hm? What picture has been placed? What picture of the emperorship has been placed? Arey? Hm? Arey, pictures are made, photos are made, aren’t they? (Someone said something.) Are the pictures of Lakshmi-Narayan placed? Lakshmi and Narayan are shown in heaven. [Entire] World does not exist in heaven. Hm?
The name given to Him is also like this only – Vishwanaath (Lord of the world). Hm? So, is the picture of Vishwanaath available or not? People say – Kashi Vishwanath Gange. Pictures are also placed, but to become this is a very high thing. To become what? To become emperor of the world because in the period of ignorance it cannot sit in anyone’s intellect that these are going to become masters of the world. When it is the period of ignorance, then this topic cannot sit in anyone’s intellect. Or they go to the temple. Does anyone understand that at some point in time someone will become like this also. What? Hm? So far we have been listening in the history; emperors of small pieces of land on the map of the world, the Earth have been heard. Nobody heard about the emperor of the entire world at all. So, they definitely did exist. On what basis are the names coined? Hm? The names are coined on the basis of the tasks performed. So, when there is the name ‘Vishwanath’, when there is the name ‘Jagannath’ (Lord of the world), then they must have exercised controlling over the jagat (world), over the Vishwa (world), didn’t they? It is correct. They definitely existed. Then where did they go? Hm? They were emperors of the world and they controlled the entire world, so, then where did they go? How did they all break into pieces? Hm?
They must be thinking that the light merged into the light. What? Who must be thinking? All the founders of religions who came, Buddha came, so, the followers of Buddha say that his light merged into the light. Hm? When Shankaracharya came, then they say for him also that his light merged into the light. The soul merged into the Supreme Soul. So, they think like this. Does anyone know as to where they went? What knowledge? That those who had become the emperors of the world, masters of the world, will they leave the world and run away anywhere else? No. Nobody’s intellect has the knowledge that you get to know that arey, what is this, hm, we belonged to this dynasty itself. To which dynasty? Hm? It has been written in the scriptures that when God comes, then He gives knowledge to the Sun. And the Sun gives light to the entire world. Everyone gets sustained in his light, don’t you? So, it was named Vivasvat or Vishwanath or Jagannath in the scriptures. So, we understand that we belonged to that dynasty only. Of which place? We were Suryavanshis. We ourselves were deities of the Sun dynasty (Surya vansh) originally. We ourselves were worship-worthy (poojya). Hm? We ourselves have now become worshippers (pujari). How? We were worship-worthy. Then how did we become worshippers? Hm? (Someone said something.) Yes. Through the colour of company, in this dualist world, from the Copper Age, when these other founders of religions came, when the new souls came, then did the powerful souls come or did weak souls come? Powerful souls came. And those who were deities continued to get many births and went on becoming weak souls generation by generation while enjoying pleasures. So, they became weak. The founders of religions coming from above took them under their influence. They became worshippers.
So, children have now come to know, haven’t they that we were worship-worthy; so, how did we become worshippers? Hm? You become only through the colour of company, don’t you? Hm? If you get the company of the highest on high, then you will become highest on high. And if you get the company of the lowly, then you will fall down. So, as regards the highest on high, all these founders of religions also believe, their followers also believe; what? Where does Guru Nanak point? Hm? He points upwards, doesn’t he? That above one (God) is the highest on high. Similarly, Christ also; Have you seen the pictures of Christ? Where does he point? Does he say that I am God? No, I am God’s child. He says so. So, look, do all the founders of religions who came, consider themselves to be God? They consider God to be much higher than themselves, don’t they? Yes. So, now you have come to know. Are the founders of religions who came, in whose company the deities became lowly, became worshippers, are they lowly or high when compared to that God? They (the deities) became worshippers from worship-worthy.
So, look, you have heard this wonderful topic, haven’t you that we were so high! Hm? And then from being such high we became like this. How did we become? Hm? A memorial was also built in the temple of Somnaath. What memorial has been depicted? Hm? A memorial has been depicted, hasn’t it been? Shiviling. And a diamond in the center of the Shivling. What is meant by diamond? Diamond (heera) means hero actor. In this world we were highest on high hero actors, masters of the world. Hm? And now after getting coloured by the company of these lowly founders of religions look, have we become subservient (aadheen), worshippers or did we remain worship-worthy? We became worshippers. So, we were so high! And we became like this. Hm? Human beings say that we get 84 lakh births. So, now the heart doesn’t accept that. What? That have we fallen so down after getting 84 lakh births? Hm? Neither does the heart accept it nor does it sit in anyone’s intellect also that who will sit and calculate the history of 84 births, 84 lakhs? Nobody will believe at all. All these topics are just for name sake. What? That a human soul gets 84 lakh births. After travelling through the cycle of 84 lakhs, then we get one birth of a human being.
Now you children are making purusharth in practical. What? What is the purusharth you are making? You are human beings, men, so, you are making purusharth to become Narayan from nar (man), aren’t you? Yes. To become what? To become this Lakshmi-Narayan, whose memorial is; what is the memorial of the first Narayan, first Lakshmi; Highest on high post? The post of Vishnu. How were these Lakshmi and Narayan? Their nature and sanskars, those of the husband and wife were matching 100 percent with each other. And today? What is the condition today? Hm? Today, are there any such husbands and wives in every house in the world who could beat their chest and say that our sanskars match, we are one? Hm? They sing the song – Aawaaz do ham ek hain (announce that we are one). Laddu (a sweet). What happens just by uttering? So, you children have now understood that the purusharth of becoming Vishnu, where the sanskars of both husband and wife become one; if anyone comes then he should say, brother, these are not two. Their language is also one, their behaviour is also one and their vibrations are also one. The vision and vibrations of both of them are also? One. So, are they one or will they be called two? They will be called one only.
So, you are making purusharth to become like this. To become one. So, how will you become one? Hm? If you remember one highest on high God, whom, did the founders of religions also believe in one or not? They believed that God is one, didn’t they? Yes. Then, then the post will be very high. If you know the One; Hm? Leave these numerous founders of religions, religious gurus; what should you do? The one Sadguru, who is the guru of gurus; Sikhs say, don’t they? What? One Sadguru is incorporeal. Hm? So, if one is Sadguru, then how are all other gurus? Be it Ibrahim, be it Buddha, be it Christ, be it any big ones, arey, the ones who control such big generations of the world or be it such big groups of people who follow them, yet, will they be called unlimited fathers? Who will be called the unlimited Father? The one who is the only one Father of everyone. The master of everyone is one. They do sing. So, if you know that one, then you will get a very high post.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2931, दिनांक 04.07.2019
VCD 2931, dated 04.07.2019
रात्रि क्लास 29.11.1967
Night Class dated 29.11.2019
VCD-2931-extracts-Bilingual
समय- 00.01-15.00
Time- 00.01-15.00
आज का रात्रि क्लास है – 29.11.1967. अधूरी वाणी उठाई है। ऊँच बहुत पद देते हैं। हँ? कितना ऊँचा? हँ? बहुत ऊँचा कितना? हँ? अरे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, विश्व की बादशाही, सारे विश्व की बादशाही। उसमें तो सभी देश, सभी धर्मखंड आ जाते हैं। और फिर धर्मखंड आ जाते हैं तो धर्मपिताएं भी अंडर दि कंट्रोल आते होंगे कि नहीं आते होंगे? आते होंगे। और ऐसे भी नहीं है कि विश्व की बादशाही देने की बात कोई नई बात है क्योंकि चित्र तो रखे हैं ना? किसके चित्र रखे हैं? हँ? क्या चित्र रखा है विश्व की बादशाही का चित्र क्या रखा है? अरे? हँ? अरे चित्र बनाते हैं ना, फोटो-वोटो बनाते हैं ना? (किसी ने कुछ कहा।) लक्ष्मी-नारायण के चित्र रखे हैं? लक्ष्मी-नारायण तो स्वर्ग में दिखाते हैं। स्वर्ग में तो विश्व नहीं होता है। हँ?
उनका नाम भी देते हैं ऐसा ही - विश्वनाथ। हँ? तो चित्र है कि नहीं विश्वनाथ का? काशी विश्वनाथ गंगे कहते हैं। चित्र भी रखे हैं परन्तु बहुत ऊँची बात है ये बनना। क्या बनना? विश्व का बादशाह बनना क्योंकि जब अज्ञान काल में तो कोई की बुद्धि में भी नहीं बैठे, हँ, कि कोई की बुद्धि में बैठ जाए कि ये बनने वाले हैं विश्व के मालिक। अज्ञान काल है तो कोई की बुद्धि में ये बात नहीं बैठ सकती। या मन्दिर में जाते हैं। कोई ऐसे समझ में आते हैं कि कोई वक्त में ऐसा भी कोई बनेगा। कैसा? हँ? अभी तक तो जो हिस्ट्री में सुनते आए वो दुनिया के पृथ्वी के नक्शे में छोटे-छोटे टुकड़े के बादशाह सुने गए। पूरे विश्व के बादशाह तो किसी ने सुना ही नहीं। तो थे तो ज़रूर। नाम किस आधार पर पड़ते हैं? हँ? काम के आधार पर नाम पड़ते हैं। तो विश्वनाथ नाम है, जगन्नाथ नाम है, तो जगत के ऊपर, विश्व के ऊपर कंट्रोलिंग की होगी ना? ठीक है। थे जरूर। फिर कहां गए? हँ? विश्व के बादशाह थे और सारे विश्व को कंट्रोल कर लिया तो फिर गए कहां? ये कैसे खंड-खंड हो गए सब? हँ?
वो तो समझते होंगे कि ज्योति-ज्योति में समा गए। क्या? कौन समझते होंगे? जो भी धरमपिताएं आए, बुद्ध आए, तो बुद्ध के फालोअर्स कहते हैं ज्योति ज्योति में समाया। हँ? शंकराचार्य आए तो उनके लिए भी कि उनकी ज्योति ज्योति में समा गई। आत्मा परमात्मा में लीन हो गई। तो वो तो ऐसे समझते हैं। कहां चले गए, किसको ये ज्ञान थोड़ेही रखा हुआ है? क्या ज्ञान? कि जो विश्व के बादशाह बने थे विश्व के मालिक वो विश्व को छोड़ करके कहीं और भाग जाएंगे क्या? नहीं। कोई की बुद्धि में ज्ञान नहीं है कि जो तुमको मालूम पड़ता है कि अरे, ये क्या, हँ, ये तो हम ही इस डिनायस्टी के थे। कौनसी डैनास्टी के? हँ? जो शास्त्रों में लिखा है कि भगवान आते हैं तो सूर्य को ज्ञान देते हैं। और सूर्य तो सारी दुनिया को रोशनी देता है। उसकी रोशनी में सब पलते हैं ना? तो इसको नाम दिया विवस्वत शास्त्रों में या विश्वनाथ या जगन्नाथ। तो हम तो समझते हैं कि हम उसी डिनायस्टी के थे। कहां की? सूर्यवंशी थे। हम ही देवी-देवता थे सूर्यवंश के असल। हम ही पूज्य थे। हँ? हम ही अभी पुजारी बने हैं। कैसे? पूज्य थे। फिर पुजारी कैसे बने? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। संग के रंग से ये द्वैतवादी दुनिया में द्वापरयुग से ये दूसरे-दूसरे धरमपिताएं, नई-नई आत्माएं आईं तो पावरफुल आत्माएं आईं या कमज़ोर आत्माएं आईं? पावरफुल आत्माएं आईं। और जो देवी-देवताएं थे वो अनेक जन्म लेते-लेते पीढ़ी दर पीढ़ी कमज़ोर आत्माएं बनती गईं सुख भोगते-भोगते। तो कमज़ोर बन गईं। उनको ऊपर से आनेवाले उन धरमपिताओं ने अपने प्रभाव में ले लिया। पुजारी बन गए।
तो ये अभी मालूम पड़ा ना बच्चों को कि हम पूज्य थे सो पुजारी कैसे बन गए? हँ? संग के रंग से ही तो बनते हैं ना? हँ? ऊंच ते ऊंच का संग मिलेगा तो उँच ते ऊँच बनेंगे। और नीच का संग मिलेगा तो नीचे गिरेंगे। तो ऊँच ते ऊँच तो ये सभी धरमपिताएं मानते हैं, उनके फालोअर्स भी मानते हैं; क्या? गुरुनानक किधर इशारा करते हैं? हँ? ऊपर को इशारा करते हैं ना? वो ऊपरवाला है ऊँच ते ऊँच। ऐसे ही क्राइस्ट ने भी; क्राइस्ट के चित्र तो देखे? किधर इशारा करते? कहते हैं मैं गॉड हूँ? नहीं, मैं तो गॉड का बच्चा हूँ। ये कहते हैं। तो देखो जो भी धरमपिताएं आए कोई अपने को गॉड थोड़ेही मानते? वो तो गॉड अपने से बहुत ऊँचे को समझते हैं ना? हाँ। तो अभी मालूम पड़ गया। ये तो उस गॉड के मुकाबले नीच हैं या ऊँच हैं धरमपिताएं जो आए जिनके संग के रंग में देवी-देवताएं आकरके नीच बन गए, हँ, पुजारी बन गए? पूज्य से पुजारी बन गए।
तो देखो, ये एक वंडरफुल बात सुनी ना कि हम इतने ऊँचे थे। हँ? और इतने ऊँचे से फिर ऐसे बन गए। कैसे बन गए? हँ? सोमनाथ मन्दिर में यादगार भी बनाई। क्या यादगार दिखाई? हँ? यादगार दिखाई ना? शिवलिंग। और शिवलिंग के बीच में हीरा। हीरा का मतलब क्या? हीरा माने हीरो पार्टधारी। इस दुनिया में हम ऊँच ते ऊँच हीरो पार्टधारी विश्व के मालिक थे। हँ? और अब इन नीच धरमपिताओं के संग के रंग में आकरके हम देखो आधीन बन गए, पुजारी बन गए कि पूज्य रहे? पुजारी बन गए। तो इतने ऊँचे थे। और ऐसे बन गए। हँ? मनुष्य तो कह देते हैं कि 84 लाख जन्म लेते हैं, हँ, तो उसमें कुछ दिल से अभी लगता नहीं है। क्या? कि 84 लाख जन्म लेने के बाद हम इतने नीचे गिरे हैं क्या? हँ? न दिल से लगता है न कोई की बुद्धि में बैठता भी नहीं है कि 84 जन्म की, 84 लाख की हिस्ट्री कौन बैठकरके निकालेगा? कोई को विश्वास ही नहीं होगा। कहने मात्र हैं ये सभी बातें। क्या? कि मनुष्यात्मा 84 लाख जन्म लेती है। 84 लाख के चक्र में भ्रमण करके फिर एक अंतिम जनम मनुष्य का मिलता है।
अभी तुम बच्चे तो प्रैक्टिकल में पुरुषार्थ कर रहे हो। क्या? क्या पुरुषार्थ कर रहे हो? मनुष्य हो, नर हो, तो नर से नारायण बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो ना? हाँ। क्या बनने के लिए? ये लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए जिनकी यादगार है; आदि नारायण, आदि लक्ष्मी, की यादगार क्या है? ऊँच ते ऊँच पद? विष्णु पद। कैसे थे ये आदि लक्ष्मी-नारायण? इनके स्वभाव और संस्कार पति-पत्नी के आपस में 100 परसेन्ट मिले हुए थे। और आज? आज क्या हालत हो गई? हँ? आज घर-घर में ऐसे कोई पति-पत्नी हैं दुनिया में, हँ, छाती ठोक के कहेंगे कि हमारे संस्कार मिले हुए हैं, हम एक हैं? हँ? गीत गाते हैं – आवाज़ दो हम एक हैं। लड्डू। बोलने से क्या होता है? तो तुम बच्चे अब समझ गए हो कि वो, हँ, विष्णु बनने का पुरुषार्थ तो, हँ, जहां पति और पत्नी दोनों के संस्कार मिलकरके एक हो जाते हैं जैसे कोई भी आवे तो कहे कि ये भई दो नहीं हैं। इनकी भाषा भी एक, हँ, इनकी चलन भी एक और इनके वायब्रेशन भी एक। इनकी दृष्टि-वृत्ति सब दोनों की? एक है। तो एक हुए या दो कहेंगे? एक ही कहेंगे।
तो ऐसा बनने का तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। एक बनने के लिए। तो एक कैसे बनेंगे? हँ? एक ऊँचे ते ऊँचे भगवन्त को याद करेंगे, जिनको धरमपिताओं ने भी एक को माना या नहीं माना? गॉड इज़ वन माना ना? हाँ। तो, तो पद बहुत ऊँचा बनेगा। अगर एक को जानेंगे; हँ? इन अनेक धर्मपिताओं को, धर्मगुरुओं को, इनको छोड़ो, क्या करो? जो गुरुओं का गुरु एक सद्गुरु है; कहते हैं ना सिक्ख लोग; क्या? एक सद्गुरु निराकार। हँ? तो एक सद्गुरु है तो बाकि गुरु कैसे हो गए? चाहे इब्राहिम हों, बुद्ध हों, क्राइस्ट हों, कितने भी बड़े-बड़े हों, अरे, दुनिया की कितनी बड़ी जेनरेशन को कंट्रोल करने वाले या इतने बड़े-बड़े झुंड के झुंड फालो करने वाले हों, लेकिन फिर भी उनको बेहद का बाप तो नहीं कहेंगे? बेहद का बाप किसको कहेंगे? जो सबका एक ही बाप है। सबका मालिक एक है। गाते तो हैं। तो उस एक को जानेंगे तो पद बहुत ऊँचा मिलेगा।
Today’s night class is dated 29.11.1967. An incomplete Vani has been picked up. He gives a very high post. Hm? How high? Hm? How ‘very high’? Hm? Arey? Hm? (Someone said something.) Yes, emperorship of the world, the emperorship of the entire world. All the countries, all the religious lands are included in it. And when the religious lands are included, then do the founders of religions also come ‘under the control’ or not? They also come. And it is not as if the topic of giving the emperorship of the world is a new topic because the pictures are placed, aren’t they? Whose pictures are placed? Hm? What picture has been placed? What picture of the emperorship has been placed? Arey? Hm? Arey, pictures are made, photos are made, aren’t they? (Someone said something.) Are the pictures of Lakshmi-Narayan placed? Lakshmi and Narayan are shown in heaven. [Entire] World does not exist in heaven. Hm?
The name given to Him is also like this only – Vishwanaath (Lord of the world). Hm? So, is the picture of Vishwanaath available or not? People say – Kashi Vishwanath Gange. Pictures are also placed, but to become this is a very high thing. To become what? To become emperor of the world because in the period of ignorance it cannot sit in anyone’s intellect that these are going to become masters of the world. When it is the period of ignorance, then this topic cannot sit in anyone’s intellect. Or they go to the temple. Does anyone understand that at some point in time someone will become like this also. What? Hm? So far we have been listening in the history; emperors of small pieces of land on the map of the world, the Earth have been heard. Nobody heard about the emperor of the entire world at all. So, they definitely did exist. On what basis are the names coined? Hm? The names are coined on the basis of the tasks performed. So, when there is the name ‘Vishwanath’, when there is the name ‘Jagannath’ (Lord of the world), then they must have exercised controlling over the jagat (world), over the Vishwa (world), didn’t they? It is correct. They definitely existed. Then where did they go? Hm? They were emperors of the world and they controlled the entire world, so, then where did they go? How did they all break into pieces? Hm?
They must be thinking that the light merged into the light. What? Who must be thinking? All the founders of religions who came, Buddha came, so, the followers of Buddha say that his light merged into the light. Hm? When Shankaracharya came, then they say for him also that his light merged into the light. The soul merged into the Supreme Soul. So, they think like this. Does anyone know as to where they went? What knowledge? That those who had become the emperors of the world, masters of the world, will they leave the world and run away anywhere else? No. Nobody’s intellect has the knowledge that you get to know that arey, what is this, hm, we belonged to this dynasty itself. To which dynasty? Hm? It has been written in the scriptures that when God comes, then He gives knowledge to the Sun. And the Sun gives light to the entire world. Everyone gets sustained in his light, don’t you? So, it was named Vivasvat or Vishwanath or Jagannath in the scriptures. So, we understand that we belonged to that dynasty only. Of which place? We were Suryavanshis. We ourselves were deities of the Sun dynasty (Surya vansh) originally. We ourselves were worship-worthy (poojya). Hm? We ourselves have now become worshippers (pujari). How? We were worship-worthy. Then how did we become worshippers? Hm? (Someone said something.) Yes. Through the colour of company, in this dualist world, from the Copper Age, when these other founders of religions came, when the new souls came, then did the powerful souls come or did weak souls come? Powerful souls came. And those who were deities continued to get many births and went on becoming weak souls generation by generation while enjoying pleasures. So, they became weak. The founders of religions coming from above took them under their influence. They became worshippers.
So, children have now come to know, haven’t they that we were worship-worthy; so, how did we become worshippers? Hm? You become only through the colour of company, don’t you? Hm? If you get the company of the highest on high, then you will become highest on high. And if you get the company of the lowly, then you will fall down. So, as regards the highest on high, all these founders of religions also believe, their followers also believe; what? Where does Guru Nanak point? Hm? He points upwards, doesn’t he? That above one (God) is the highest on high. Similarly, Christ also; Have you seen the pictures of Christ? Where does he point? Does he say that I am God? No, I am God’s child. He says so. So, look, do all the founders of religions who came, consider themselves to be God? They consider God to be much higher than themselves, don’t they? Yes. So, now you have come to know. Are the founders of religions who came, in whose company the deities became lowly, became worshippers, are they lowly or high when compared to that God? They (the deities) became worshippers from worship-worthy.
So, look, you have heard this wonderful topic, haven’t you that we were so high! Hm? And then from being such high we became like this. How did we become? Hm? A memorial was also built in the temple of Somnaath. What memorial has been depicted? Hm? A memorial has been depicted, hasn’t it been? Shiviling. And a diamond in the center of the Shivling. What is meant by diamond? Diamond (heera) means hero actor. In this world we were highest on high hero actors, masters of the world. Hm? And now after getting coloured by the company of these lowly founders of religions look, have we become subservient (aadheen), worshippers or did we remain worship-worthy? We became worshippers. So, we were so high! And we became like this. Hm? Human beings say that we get 84 lakh births. So, now the heart doesn’t accept that. What? That have we fallen so down after getting 84 lakh births? Hm? Neither does the heart accept it nor does it sit in anyone’s intellect also that who will sit and calculate the history of 84 births, 84 lakhs? Nobody will believe at all. All these topics are just for name sake. What? That a human soul gets 84 lakh births. After travelling through the cycle of 84 lakhs, then we get one birth of a human being.
Now you children are making purusharth in practical. What? What is the purusharth you are making? You are human beings, men, so, you are making purusharth to become Narayan from nar (man), aren’t you? Yes. To become what? To become this Lakshmi-Narayan, whose memorial is; what is the memorial of the first Narayan, first Lakshmi; Highest on high post? The post of Vishnu. How were these Lakshmi and Narayan? Their nature and sanskars, those of the husband and wife were matching 100 percent with each other. And today? What is the condition today? Hm? Today, are there any such husbands and wives in every house in the world who could beat their chest and say that our sanskars match, we are one? Hm? They sing the song – Aawaaz do ham ek hain (announce that we are one). Laddu (a sweet). What happens just by uttering? So, you children have now understood that the purusharth of becoming Vishnu, where the sanskars of both husband and wife become one; if anyone comes then he should say, brother, these are not two. Their language is also one, their behaviour is also one and their vibrations are also one. The vision and vibrations of both of them are also? One. So, are they one or will they be called two? They will be called one only.
So, you are making purusharth to become like this. To become one. So, how will you become one? Hm? If you remember one highest on high God, whom, did the founders of religions also believe in one or not? They believed that God is one, didn’t they? Yes. Then, then the post will be very high. If you know the One; Hm? Leave these numerous founders of religions, religious gurus; what should you do? The one Sadguru, who is the guru of gurus; Sikhs say, don’t they? What? One Sadguru is incorporeal. Hm? So, if one is Sadguru, then how are all other gurus? Be it Ibrahim, be it Buddha, be it Christ, be it any big ones, arey, the ones who control such big generations of the world or be it such big groups of people who follow them, yet, will they be called unlimited fathers? Who will be called the unlimited Father? The one who is the only one Father of everyone. The master of everyone is one. They do sing. So, if you know that one, then you will get a very high post.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2932, दिनांक 05.07.2019
VCD 2932, dated 05.07.2019
रात्रि क्लास 29.11.1967
Night Class dated 29.11.1967
VCD-2932-extracts-Bilingual
समय- 00.01-17.32
Time- 00.01-17.32
रात्रि क्लास चल रहा था – 29.11.1967. दूसरे पेज के आदि में चौथी, पांचवीं लाइन में बात चल रही थी, प्रसंग था चित्रों का। चित्र इतने बड़े बन जावें ये सीढ़ी का चित्र समझाने में बहुत सहज हो जावेगा। हँ। क्या? कि पतितों को पावन बनाने के लिए आओ। तो देखो पतित कैसे बनते हैं और पावन कैसे बनते हैं? अभी अगर पतित बने हो तो बाप को याद करना है। मामेकम् याद करो। एक बाप को याद करना है। अगर समझते हो हम पतित नहीं हैं तो फिर अनेकों से बुद्धियोग लगाते रहो, और पतित बन जाओ, तब एक को याद कर लेना। अगर इसमें भी कहेंगे कि फुर्सत नहीं है, पीछे देखा जाएगा, करेंगे, तो फिर अकाले ये अनायास ही इस भंभोर को आग लगेगी अचानक। और कुंभकर्ण के मुआफिक तुम जलकरके खत्म राख हो जावेंगे। माना? क्या जलकरके राख हो जाएगा? आत्मा तो जलती नहीं, मरती नहीं, राख होती नहीं। जिस शरीर से पुरुषार्थ करेंगे वो शरीर नष्ट हो जावेगा। तो अगर पुरुषार्थ नहीं करेगा क्योंकि समझाने के समय में तुम बच्चों को अच्छी तरह से दबा-दबा करके बताना चाहिए कि अभी पैसे का नशा नहीं चलेगा। ये जो दुनिया में पैसों के पीछे मरे पड़े हैं, बैंक-बैलेंस बढ़ाते जा रहे हैं फिर काम नहीं चलेगा। ऐसी दुनिया आने वाली है। हाँ। तो वो सारी बातें समझाय देना चाहिए।
बताया – 9 बरस के अंदर तुम खयाल करो, जिनके पास ये लाख, करोड़, ये सभी वो कहां जाएंगे? कबकी बात बताई? हँ? सिक्स्टी सेवन में नौ बरस बताए। माने 76 में। हँ? कहां जाएंगे? लाख करोड़ के पीछे पड़ने वाले कहां जाएंगे? क्या करेंगे? क्या उनके बच्चे जो ग्रेट चिल्ड्रेन्स होंगे, हँ, ग्रांड चिल्ड्रेन, तो उनको कुछ पैसा मिलेगा क्या? अरे, कुछ भी नहीं मिलेगा। जबकि हम कह रहे हैं, समझाय रहे हैं। जबकि हम इतना समझाय सकते हैं जो दुनिया कुछ भी नहीं जानती कि गीता का भगवान कौन है? और वो सब गीता का वो अनेक भाषाओं में श्री कृष्ण भगवानुवाच, कृष्ण भगवानुवाच, और वो, वो गीता तो झूठी। अनेक भाषाओं में अनुवाद करते रहते हैं। और हम यहां श्रीमत पर बैठकरके समझाते हैं।
तो देखो क्या बात समझाते हैं? कि गीता का भगवान साकार कृष्ण तो है ही नहीं। जैसे धरमपिताएं आते हैं जिनके मुख से उनके धर्मशास्त्रों की ज्ञान की बातें निकली। तो वो निराकार आते हैं, निराकार आत्माएं निराकारी धाम से आती हैं या साकार होती हैं? हँ? पहले जनम में क्या होती हैं? निराकार आत्मा ही होती है ना? तो ऐसे ही जो बापों का बाप, सब धरमपिताओं का बाप है वो भी तो निराकार ही होगा ना? निराकार होगा? क्या बिन्दी होगा? पहचानेंगे कैसे? क्राइस्ट, इब्राहिम, मोहम्मद, बुद्ध, ये निराकार थे क्या? शरीर नहीं था? अरे, शरीर तो था लेकिन कोई के शरीर में प्रवेश किया। तो ऐसे ही जैसे क्राइस्ट ने जीसस में प्रवेश किया ऐसे वो सुप्रीम सोल बाप भी हैविनली गॉड फादर क्या करते हैं? हँ? कोई मनुष्य तन में प्रवेश करते हैं। अब ये तो किलियर है कि जो जितना ऊँचा होगा, बड़ा होगा उसका फर्नीचर भी बड़ा ही होगा। तो देखो, मैं किसमें आता हूँ? मैं आता हूँ इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर; हत् तेरे की नहीं तो; जो हीरो का पार्ट बजाता है उसमें आता हूँ। हँ? कौन बनाता है हीरो पार्टधारी? हँ? बाप कहते हैं मैं बनाता-करता नहीं हूँ। मैं तो श्रीमत देता हूँ कि ऐसे-ऐसे करेंगे तो तुम जो जीरो बन गए हैं, दुनिया में तुम्हारी कोई बकत नहीं रह गई, हँ, कोई इज्जत नहीं रह गई, इज्जत सारी धूल में मिल गई, तो मैं क्या कर दूंगा जीरो से? जीरो से तुमको हीरो बनाय दूंगा।
तो देखो, वो तो साकार कृष्ण भगवानुवाच समझते हैं। अब वो भगवान जिसे ऊँचे ते ऊँचा भगवंत कहा जाता है वो तो साकार नहीं है। जैसे आत्माएं निराकार हैं तो आत्माओं का बाप भी निराकार है। तो वो कृष्ण भगवान वाली बात, भगवानुवाच वाली बात झूठी हो जाती है। और हम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ की मत पर बैठकरके समझाते हैं। हँ? श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ क्यों कहा? श्री श्रीमत कहना चाहिए फिर। वो तो सिंगल श्री लगाकर कहते हैं श्रीमत पर। हँ? क्यों? श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ तो जो इस दुनिया का हीरो पार्टधारी है उससे भी जास्ती श्रेष्ठ कौन है? शिव। आत्माओं का बाप। तो वो हुआ श्री श्री 1008 कहो, 108 कहो, जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करता है तो नई दुनिया का ऐसा संगठन बनाता है जिसमें सब धर्मों की श्रेष्ठ आत्माएं उस माला रूपी संगठन में आकरके इकट्ठी हो जाती हैं। तो उनके लिए कहेंगे श्री श्री 108. बाकि वो तो बिन्दु है। हँ? जो भी मत दी जाएगी वो मुख से दी जाएगी या बिन्दु में से आवाज़ निकलेगी? हाँ। तो जिस मुकर्रर रथधारी, हीरो पार्टधारी में प्रवेश, हँ, प्रवेश करता हूँ, हाँ, वो हीरो पार्टधारी जो है उसके लिए कहा जाता है; क्या? उसके मुख से जो निकला तो श्रीमत कहेंगे या श्री श्री की मत कहेंगे? श्रीमत, सिंगल श्री कहेंगे।
तो श्रीमत पर बैठकरके तुम बच्चे कहो कि हम श्रीमत पर समझाते हैं। हाँ। तो देखो, क्या बात समझाते हैं? तो ज़रूर कोई अथार्टी है ना समझाने वाला। अरे, दुनिया में ऐसी तो कोई अथार्टी कोई होगी? हँ? होगी नहीं। जो तुमको बतावे और ये पुरुषार्थ करावे कि अभी तो मौत सामने खड़ा है। क्या? ये महाविनाश इस दुनिया का सामने खड़ा है। क्योंकि सब डरते हैं। अरे, महाविनाश की तो बात छोड़ो। ये इस जनम में ही जो शरीर का विनाश हो जाता है उससे ही डर जाते हैं। मौत से डरते हैं ना सब? फिर सारी दुनिया में सबका मौत आएगा तो वो तो सोचना भी नहीं चाहते। सोचना चाहते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। फिर तुमको पुरुषार्थ करावेंगे, बतावेंगे, हँ, कि मौत, महामौत सामने खड़ा है? नहीं। अभी मौत सामने खड़ा है ये कोई नहीं कहेंगे।
कुछ लेना है तो ले लो बाप से ये तो तुम बताते हो कि मौत सामने खड़ा है। बाप से अपना वर्सा स्वरग का ले लो। क्या? कहां का वर्सा ले लो? स्व माने आत्मा। ग माने आत्मिक स्थिति में टिकने का वर्सा ले लो। सबको देता है बाप कि किसी को देता है किसी को नहीं देता? सबको देता है। अब हाँ, जो देर करते हैं, हँ, वो श्रीमत को वैल्यू नहीं देते हैं, बाद में ध्यान देते हैं, तो फिर वो, वो आत्मिक स्थिति का वर्सा उनको कम मिलेगा या पूरा मिलेगा? हाँ, कम मिलेगा। बाकि ऐसे नहीं है कि स्वरग का, जीवनमुक्ति का वर्सा कोई को न मिले। इस दुनिया में, अरे, जो भी आत्माएं आती हैं, हँ, निराकारी धाम से उनको एक जन्म का कम से कम, क्या, सुख का वर्सा शरीर से ज़रूर मिलता है। हँ? जैसे क्राइस्ट ने जीसस में प्रवेश किया तो जीसस को क्रॉस पर चढ़ने का दुख भोगना पड़ा। क्राइस्ट को? क्राइस्ट को तो नहीं भोगना पड़ा ना? वो तो निकल गई, निकल जाती है। वो आत्मा जब चाहे तब निकल के बाहर चली गई।
तो, तो समझाने के समय में अच्छी तरह से उनको लगाना चाहिए। हँ? और समझाने में तकलीफ क्या है? बाप ने आगे भी कहा है; क्या? कि तुम नंगी आत्मा आए थे। शरीर लेकरके, ये शरीर का कपड़ा लेकरके नहीं आए थे। हँ? कब आए थे? जब सतयुग में आए थे तो नंगे आए थे। अच्छा? और जो आत्माएं कलियुग में आती हैं, हँ, वो शरीर लेके आती हैं? वो भी पहले जनम में शरीर लेके नहीं आती। इसलिए उनको भी पहले जनम में सतयुग कहेंगे, सत्य का युग कहेंगे कि उनके लिए झूठ का युग हुआ, दुख का युग हुआ? कौनसा युग हुआ? उस समय क्या कहेंगे? सुख का युग सत्य का युग हुआ ना? हाँ। तो पीछे अभी कलियुग है। तमोप्रधान बन गए हो। कैसे? जैसे वो धरमपिताएं, हँ, देह में प्रवेश करते हैं तो आत्मा नीचे गिरती है ना संग के रंग से? हाँ। ऐसे तुम बच्चे भी, हँ, जन्म-जन्मान्तर देह के इन्द्रियों का सुख लेते-लेते क्या बनते गए? सतोप्रधान से रजोप्रधान, रजोप्रधान से तमोप्रधान बनते गए। फिर तुमको जाना है वहां। कहाँ जाना है? जहाँ सत्वप्रधान की बात नहीं है। क्या? जहां जाना है आत्मलोक में वो सत्वप्रधान लोक है? क्या है? प्रधान है इसका मतलब है कुछ न कुछ रजो और तमो भी है। अंशमात्र भी है तो कहेंगे सतोप्रधान। लेकिन वहां रजो और तमो का तो अंशमात्र भी नहीं है। तो क्या हुआ? सतधाम कहेंगे या उसमें अंश कहेंगे कुछ? नहीं।
तो देखो, संग के रंग से इस दुनिया में आकरके तुम देहधारियों के संग के रंग में आकरके तमोप्रधान बन गए हो। फिर तुमको जाना है। कहां जाना है? सतधाम में। वहां रजोप्रधानता और तमोप्रधानता का, ये जो शरीर में रजोप्रधानता और तमोप्रधानता आ जाती है उसका वहां नाम-निशान नहीं होता। कोई ऐसे इम्प्योर तो बनेंगे नहीं। हँ? जाएंगे नहीं वहाँ। हँ? इम्प्योर बनेंगे तो जा ही नहीं सकते क्योंकि वहां सतधाम में तो कैसा लोक है? पवित्र धाम है ना? तो वहां तो पवित्र बनकर ही जाना पड़ेगा। तो फिर अभी पावन कैसे बनेंगे? तो वो समझाया हुआ है कि गंगा में से तो कोई पतित से पावन नहीं बनेगा। कौन? गंगा के जल में शरीर पवित्र बन सकता है। वो भी गंगा ही जब तमोप्रधान हो जाती है कलियुग के अंत में; हो जाती है कि नहीं? गाते हैं राम तेरी गंगा मैली। तो जब वो ही मैली तो जो भी स्नान करेंगे वो भी? वो भी मैले हो जाएंगे। तो बताया इस दुनिया में कोई भी देवी-देवता की आत्मा नहीं है, हँ, जिसके सुनाए हुए ज्ञान से, तुम ज्ञान स्नान करने से पावन बनेंगे। एक से ज्ञान आता है तो उस एक के ज्ञान से ही पावन बनेंगे।
A night class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic, the reference being discussed in the fourth, fifth line on the second page was of pictures. The pictures should become so big that it will become very easy to explain the picture of this Ladder Hm. What? That come to purify the sinful ones. So, look, how do you become sinful and how do you become pure? If you have now become sinful, then you have to remember the Father. Remember Me alone. You have to remember one Father. If you think that we are not sinful, then you keep on connecting your intellect with many, become even more sinful, then remember one. If you say even in this that you don’t have time, I will see later, I will do, then untimely, unknowingly this world is going to catch fire suddenly. And you will burn to ashes like Kumbhkarna. What does it mean? What will burn to ashes? The soul doesn’t burn, doesn’t die, doesn’t turn to ashes. The body through which you will make purusharth, that body will be destroyed. So, if you do not make purusharth because at the time of explaining, you children should nicely, with force, you should tell that now the intoxication of money will not work. People who are dying for money, going on increasing their bank balance, then it will not work. Such a world is going to arrive. Yes. So, all those topics should be explained.
It was told – Within 9 years, just think those who have this lakh, crore [rupees], where will they all go? A topic of which time was mentioned? Hm? Nine years were mentioned in sixty seven. It means in 76. Hm? Where will they go? Those who are running after a lakh, a crore, where will they go? What will they do? Will their children, the great children, hm, grand children get any money? Arey, they will not get anything. While we are telling, while we are explaining. While we can explain so much which the world doesn’t know at all as to who is the God of Gita? And all that of Gita in many languages, Shri Krishna Bhagwanuvaach, Krishna Bhagwaanuvaach, and, that, that Gita is false. They keep on translating it in many languages. And we sit here and explain on Shrimat.
So, look, what is the topic that He explains? That the God of Gita is not corporeal Krishna at all. For example, founders of religions come and the topic of knowledge of their religious scriptures emerged from their mouth. So, do they come in an incorporeal form, do the incorporeal souls come from the incorporeal abode or are they corporeal? Hm? What are they in the first birth? They are incorporeal souls only, aren’t they? So, similarly, the Father of fathers, the Father of all the founders of religions will also be incorporeal only, will He not be? Will He be incorporeal? Will He be a point? How will you recognize? Were Christ, Ibrahim, Mohammad, Buddha incorporeal? Did they not have a body? Arey, they did have a body, but they did enter in someone’s body. So, similarly, just as Christ entered in Jesus, similarly, what does that Supreme Soul Father, Heavenly God Father also do? Hm? He enters in a human body. Well, it is clear that the higher someone is, the bigger someone is, his furniture will also be big only. So, look, in whom do I come? I come on this world stage; damn it; I come in the one who plays the part of a hero. Hm? Who makes the hero actor? Hm? The Father says – I do not make or do anything. I give Shrimat that if you do like this, then you, who have become zero, you don’t have any value in the world, hm, you don’t have any respect, the entire respect has mixed with dust, so, what will I make you from zero? I will make you hero from zero.
So, look, they think that the corporeal God Krishna speaks. Well, that God, who is called the highest on high God, He is not corporeal. Just as the souls are incorporeal, the Father of souls is also incorporeal. So, that topic of God Krishna, the topic of God’s words proves to be false. And we sit and explain on the directions of the most righteous one. Hm? Why was He called the most righteous one? Then it should be called Shri Shrimat. They add single Shri and say ‘on Shrimat’. Hm? Why? Who is more righteous (shreshth) than the most righteous hero actor of this world? Shiv. The Father of souls. So, He is; call Him Shri Shri 1008, call Him 108, the permanent Chariot in which He enters. So, He prepares such a gathering of the new world in which the righteous souls of all the religions come and gather in that rosary like gathering. So, it will be said for them Shri Shri 108. But He is a point. Hm? Whatever direction is given, will it be given through a mouth or will sound emerge from a point? Yes. So, the permanent Chariot holder, the hero actor in whom I enter, yes, it is said for that hero actor; what? Whatever emerged from his mouth, will it be called Shrimat or the direction (mat) of the Shri Shri? It will be called Shrimat, single Shri.
So, you children say that we sit on Shrimat and explain on Shrimat. Yes. So, look, what is the topic that you explain? So, definitely there is an authority who explains, isn’t He there? Arey, there must be some such authority in the world? Hm? There will not be. The one who could tell you and make you do this purusharth that now death is staring at you. What? The mega-destruction of this world is staring at you. It is because everyone fears. Arey, leave alone the topic of mega-destruction. People get frightened just by the destruction of this body in this birth. Everyone fears death, don’t they? Then, they don’t even want to think of everyone’s death that is going to arrive in the entire world. Do they want to think? (Someone said something.) Yes. Then will they make you to do purusharth, will you be told that death, mega-death is staring at you? No. Now nobody will tell you that death is staring at you.
If you want to take anything from the Father then take it. So, you tell that death is staring at you. Obtain your inheritance of heaven from the Father. What? The inheritance of which place should you obtain? Swa means soul. Golden Age means obtain the inheritance of becoming constant in the soul conscious stage. Does the Father give to everyone or does He give to someone and doesn’t give to someone? He gives to everyone. Well, yes, those who delay do not give value to Shrimat, pay attention later on, then will they get that inheritance of soul conscious stage less or complete? Yes, they will get less. It is not as if someone doesn’t get the inheritance of heaven, jeevanmukti (liberation in life). Arey, all the souls which come in this world from the incorporeal abode, they definitely get the inheritance of happiness at least for one birth through the body. Hm? For example, Christ entered Jesus; so, Jesus had to suffer the sorrows of crucifixion. What about Christ? Christ did not have to suffer, did he? It departed, departs. That soul departed whenever it wished.
So, so, at the time of explaining, they should be explained nicely. Hm? And what is the difficulty in explaining? The Father has said in the past also; what? That you had come as a naked soul. You had not come with the body, with this cloth-like body. Hm? When did you come? When you had come in the Golden Age, you had come naked. Achcha? And the souls which come in the Iron Age, do they come with a body? They too do not come with a body in the first birth. This is why will it be called Satyug, the Age of truth in their first birth for them or is it an Age of falsehood, and Age of sorrows for them? Which Age is it? What will it be called at that time? It is an Age of happiness, an Age of truth, isn’t it? Yes. So, later now it is the Iron Age. You have become tamopradhaan. How? Just as those founders of religions enter in the body, then the soul undergoes downfall through the colour of company, doesn’t it? Yes. Similarly, what did you children also go on becoming birth by birth while enjoying the pleasure of the organs of the body? You went on becoming rajopradhaan from satopradhaan, tamopradhaan from rajopradhaan. Then you have to go there. Where do you have to go? To the place where there is no topic of satwapradhaan. What? The place, the Soul World where you have to go, is it a satwapradhaan abode? What is it? If it is pradhaan (dominant) then there is rajo and tamo also to some extent or the other. Even if there is a trace, then it will be called satopradhaan. But there is not even a trace of rajo and tamo there. So, what is it? Will it be called satdhaam (abode of truth) or will it be said to have traces? No.
So, look, after coming to this world, while getting coloured by company, while getting coloured by company of the bodily beings you have become tamopradhaan. Then you have to go. Where do you have to go? To the abode of truth. The rajopradhaanta and tamopradhaanta, this rajopradhaanta and tamopradhaanta which enters in the body, there is no name or trace of it there. Nobody will become impure like this. Hm? You will not go there. Hm? If you become impure, then you cannot go at all because what kind of abode is in satdhaam there? It is a pure abode, isn’t it? So, there you will have to go after becoming pure only. So, then how will you become pure now? So, that has been explained that nobody will become pure from sinful from Ganga. Who? The body can become pure in the water of Ganga. That too, when Ganga itself becomes tamopradhaan (impure) in the end of the Iron Age; does it become or not? It is sung – Ram, your Ganga has become dirty. So, when she herself has become dirty, then what about all those who bathe in it? They will also become dirty. So, it was told that there is no soul of deity in this world, by listening to whose knowledge, by bathing in whose knowledge you will become pure. Knowledge comes from one; so, you will become pure through the knowledge of that One only.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2932, दिनांक 05.07.2019
VCD 2932, dated 05.07.2019
रात्रि क्लास 29.11.1967
Night Class dated 29.11.1967
VCD-2932-extracts-Bilingual
समय- 00.01-17.32
Time- 00.01-17.32
रात्रि क्लास चल रहा था – 29.11.1967. दूसरे पेज के आदि में चौथी, पांचवीं लाइन में बात चल रही थी, प्रसंग था चित्रों का। चित्र इतने बड़े बन जावें ये सीढ़ी का चित्र समझाने में बहुत सहज हो जावेगा। हँ। क्या? कि पतितों को पावन बनाने के लिए आओ। तो देखो पतित कैसे बनते हैं और पावन कैसे बनते हैं? अभी अगर पतित बने हो तो बाप को याद करना है। मामेकम् याद करो। एक बाप को याद करना है। अगर समझते हो हम पतित नहीं हैं तो फिर अनेकों से बुद्धियोग लगाते रहो, और पतित बन जाओ, तब एक को याद कर लेना। अगर इसमें भी कहेंगे कि फुर्सत नहीं है, पीछे देखा जाएगा, करेंगे, तो फिर अकाले ये अनायास ही इस भंभोर को आग लगेगी अचानक। और कुंभकर्ण के मुआफिक तुम जलकरके खत्म राख हो जावेंगे। माना? क्या जलकरके राख हो जाएगा? आत्मा तो जलती नहीं, मरती नहीं, राख होती नहीं। जिस शरीर से पुरुषार्थ करेंगे वो शरीर नष्ट हो जावेगा। तो अगर पुरुषार्थ नहीं करेगा क्योंकि समझाने के समय में तुम बच्चों को अच्छी तरह से दबा-दबा करके बताना चाहिए कि अभी पैसे का नशा नहीं चलेगा। ये जो दुनिया में पैसों के पीछे मरे पड़े हैं, बैंक-बैलेंस बढ़ाते जा रहे हैं फिर काम नहीं चलेगा। ऐसी दुनिया आने वाली है। हाँ। तो वो सारी बातें समझाय देना चाहिए।
बताया – 9 बरस के अंदर तुम खयाल करो, जिनके पास ये लाख, करोड़, ये सभी वो कहां जाएंगे? कबकी बात बताई? हँ? सिक्स्टी सेवन में नौ बरस बताए। माने 76 में। हँ? कहां जाएंगे? लाख करोड़ के पीछे पड़ने वाले कहां जाएंगे? क्या करेंगे? क्या उनके बच्चे जो ग्रेट चिल्ड्रेन्स होंगे, हँ, ग्रांड चिल्ड्रेन, तो उनको कुछ पैसा मिलेगा क्या? अरे, कुछ भी नहीं मिलेगा। जबकि हम कह रहे हैं, समझाय रहे हैं। जबकि हम इतना समझाय सकते हैं जो दुनिया कुछ भी नहीं जानती कि गीता का भगवान कौन है? और वो सब गीता का वो अनेक भाषाओं में श्री कृष्ण भगवानुवाच, कृष्ण भगवानुवाच, और वो, वो गीता तो झूठी। अनेक भाषाओं में अनुवाद करते रहते हैं। और हम यहां श्रीमत पर बैठकरके समझाते हैं।
तो देखो क्या बात समझाते हैं? कि गीता का भगवान साकार कृष्ण तो है ही नहीं। जैसे धरमपिताएं आते हैं जिनके मुख से उनके धर्मशास्त्रों की ज्ञान की बातें निकली। तो वो निराकार आते हैं, निराकार आत्माएं निराकारी धाम से आती हैं या साकार होती हैं? हँ? पहले जनम में क्या होती हैं? निराकार आत्मा ही होती है ना? तो ऐसे ही जो बापों का बाप, सब धरमपिताओं का बाप है वो भी तो निराकार ही होगा ना? निराकार होगा? क्या बिन्दी होगा? पहचानेंगे कैसे? क्राइस्ट, इब्राहिम, मोहम्मद, बुद्ध, ये निराकार थे क्या? शरीर नहीं था? अरे, शरीर तो था लेकिन कोई के शरीर में प्रवेश किया। तो ऐसे ही जैसे क्राइस्ट ने जीसस में प्रवेश किया ऐसे वो सुप्रीम सोल बाप भी हैविनली गॉड फादर क्या करते हैं? हँ? कोई मनुष्य तन में प्रवेश करते हैं। अब ये तो किलियर है कि जो जितना ऊँचा होगा, बड़ा होगा उसका फर्नीचर भी बड़ा ही होगा। तो देखो, मैं किसमें आता हूँ? मैं आता हूँ इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर; हत् तेरे की नहीं तो; जो हीरो का पार्ट बजाता है उसमें आता हूँ। हँ? कौन बनाता है हीरो पार्टधारी? हँ? बाप कहते हैं मैं बनाता-करता नहीं हूँ। मैं तो श्रीमत देता हूँ कि ऐसे-ऐसे करेंगे तो तुम जो जीरो बन गए हैं, दुनिया में तुम्हारी कोई बकत नहीं रह गई, हँ, कोई इज्जत नहीं रह गई, इज्जत सारी धूल में मिल गई, तो मैं क्या कर दूंगा जीरो से? जीरो से तुमको हीरो बनाय दूंगा।
तो देखो, वो तो साकार कृष्ण भगवानुवाच समझते हैं। अब वो भगवान जिसे ऊँचे ते ऊँचा भगवंत कहा जाता है वो तो साकार नहीं है। जैसे आत्माएं निराकार हैं तो आत्माओं का बाप भी निराकार है। तो वो कृष्ण भगवान वाली बात, भगवानुवाच वाली बात झूठी हो जाती है। और हम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ की मत पर बैठकरके समझाते हैं। हँ? श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ क्यों कहा? श्री श्रीमत कहना चाहिए फिर। वो तो सिंगल श्री लगाकर कहते हैं श्रीमत पर। हँ? क्यों? श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ तो जो इस दुनिया का हीरो पार्टधारी है उससे भी जास्ती श्रेष्ठ कौन है? शिव। आत्माओं का बाप। तो वो हुआ श्री श्री 1008 कहो, 108 कहो, जिस मुकर्रर रथ में प्रवेश करता है तो नई दुनिया का ऐसा संगठन बनाता है जिसमें सब धर्मों की श्रेष्ठ आत्माएं उस माला रूपी संगठन में आकरके इकट्ठी हो जाती हैं। तो उनके लिए कहेंगे श्री श्री 108. बाकि वो तो बिन्दु है। हँ? जो भी मत दी जाएगी वो मुख से दी जाएगी या बिन्दु में से आवाज़ निकलेगी? हाँ। तो जिस मुकर्रर रथधारी, हीरो पार्टधारी में प्रवेश, हँ, प्रवेश करता हूँ, हाँ, वो हीरो पार्टधारी जो है उसके लिए कहा जाता है; क्या? उसके मुख से जो निकला तो श्रीमत कहेंगे या श्री श्री की मत कहेंगे? श्रीमत, सिंगल श्री कहेंगे।
तो श्रीमत पर बैठकरके तुम बच्चे कहो कि हम श्रीमत पर समझाते हैं। हाँ। तो देखो, क्या बात समझाते हैं? तो ज़रूर कोई अथार्टी है ना समझाने वाला। अरे, दुनिया में ऐसी तो कोई अथार्टी कोई होगी? हँ? होगी नहीं। जो तुमको बतावे और ये पुरुषार्थ करावे कि अभी तो मौत सामने खड़ा है। क्या? ये महाविनाश इस दुनिया का सामने खड़ा है। क्योंकि सब डरते हैं। अरे, महाविनाश की तो बात छोड़ो। ये इस जनम में ही जो शरीर का विनाश हो जाता है उससे ही डर जाते हैं। मौत से डरते हैं ना सब? फिर सारी दुनिया में सबका मौत आएगा तो वो तो सोचना भी नहीं चाहते। सोचना चाहते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। फिर तुमको पुरुषार्थ करावेंगे, बतावेंगे, हँ, कि मौत, महामौत सामने खड़ा है? नहीं। अभी मौत सामने खड़ा है ये कोई नहीं कहेंगे।
कुछ लेना है तो ले लो बाप से ये तो तुम बताते हो कि मौत सामने खड़ा है। बाप से अपना वर्सा स्वरग का ले लो। क्या? कहां का वर्सा ले लो? स्व माने आत्मा। ग माने आत्मिक स्थिति में टिकने का वर्सा ले लो। सबको देता है बाप कि किसी को देता है किसी को नहीं देता? सबको देता है। अब हाँ, जो देर करते हैं, हँ, वो श्रीमत को वैल्यू नहीं देते हैं, बाद में ध्यान देते हैं, तो फिर वो, वो आत्मिक स्थिति का वर्सा उनको कम मिलेगा या पूरा मिलेगा? हाँ, कम मिलेगा। बाकि ऐसे नहीं है कि स्वरग का, जीवनमुक्ति का वर्सा कोई को न मिले। इस दुनिया में, अरे, जो भी आत्माएं आती हैं, हँ, निराकारी धाम से उनको एक जन्म का कम से कम, क्या, सुख का वर्सा शरीर से ज़रूर मिलता है। हँ? जैसे क्राइस्ट ने जीसस में प्रवेश किया तो जीसस को क्रॉस पर चढ़ने का दुख भोगना पड़ा। क्राइस्ट को? क्राइस्ट को तो नहीं भोगना पड़ा ना? वो तो निकल गई, निकल जाती है। वो आत्मा जब चाहे तब निकल के बाहर चली गई।
तो, तो समझाने के समय में अच्छी तरह से उनको लगाना चाहिए। हँ? और समझाने में तकलीफ क्या है? बाप ने आगे भी कहा है; क्या? कि तुम नंगी आत्मा आए थे। शरीर लेकरके, ये शरीर का कपड़ा लेकरके नहीं आए थे। हँ? कब आए थे? जब सतयुग में आए थे तो नंगे आए थे। अच्छा? और जो आत्माएं कलियुग में आती हैं, हँ, वो शरीर लेके आती हैं? वो भी पहले जनम में शरीर लेके नहीं आती। इसलिए उनको भी पहले जनम में सतयुग कहेंगे, सत्य का युग कहेंगे कि उनके लिए झूठ का युग हुआ, दुख का युग हुआ? कौनसा युग हुआ? उस समय क्या कहेंगे? सुख का युग सत्य का युग हुआ ना? हाँ। तो पीछे अभी कलियुग है। तमोप्रधान बन गए हो। कैसे? जैसे वो धरमपिताएं, हँ, देह में प्रवेश करते हैं तो आत्मा नीचे गिरती है ना संग के रंग से? हाँ। ऐसे तुम बच्चे भी, हँ, जन्म-जन्मान्तर देह के इन्द्रियों का सुख लेते-लेते क्या बनते गए? सतोप्रधान से रजोप्रधान, रजोप्रधान से तमोप्रधान बनते गए। फिर तुमको जाना है वहां। कहाँ जाना है? जहाँ सत्वप्रधान की बात नहीं है। क्या? जहां जाना है आत्मलोक में वो सत्वप्रधान लोक है? क्या है? प्रधान है इसका मतलब है कुछ न कुछ रजो और तमो भी है। अंशमात्र भी है तो कहेंगे सतोप्रधान। लेकिन वहां रजो और तमो का तो अंशमात्र भी नहीं है। तो क्या हुआ? सतधाम कहेंगे या उसमें अंश कहेंगे कुछ? नहीं।
तो देखो, संग के रंग से इस दुनिया में आकरके तुम देहधारियों के संग के रंग में आकरके तमोप्रधान बन गए हो। फिर तुमको जाना है। कहां जाना है? सतधाम में। वहां रजोप्रधानता और तमोप्रधानता का, ये जो शरीर में रजोप्रधानता और तमोप्रधानता आ जाती है उसका वहां नाम-निशान नहीं होता। कोई ऐसे इम्प्योर तो बनेंगे नहीं। हँ? जाएंगे नहीं वहाँ। हँ? इम्प्योर बनेंगे तो जा ही नहीं सकते क्योंकि वहां सतधाम में तो कैसा लोक है? पवित्र धाम है ना? तो वहां तो पवित्र बनकर ही जाना पड़ेगा। तो फिर अभी पावन कैसे बनेंगे? तो वो समझाया हुआ है कि गंगा में से तो कोई पतित से पावन नहीं बनेगा। कौन? गंगा के जल में शरीर पवित्र बन सकता है। वो भी गंगा ही जब तमोप्रधान हो जाती है कलियुग के अंत में; हो जाती है कि नहीं? गाते हैं राम तेरी गंगा मैली। तो जब वो ही मैली तो जो भी स्नान करेंगे वो भी? वो भी मैले हो जाएंगे। तो बताया इस दुनिया में कोई भी देवी-देवता की आत्मा नहीं है, हँ, जिसके सुनाए हुए ज्ञान से, तुम ज्ञान स्नान करने से पावन बनेंगे। एक से ज्ञान आता है तो उस एक के ज्ञान से ही पावन बनेंगे।
A night class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic, the reference being discussed in the fourth, fifth line on the second page was of pictures. The pictures should become so big that it will become very easy to explain the picture of this Ladder Hm. What? That come to purify the sinful ones. So, look, how do you become sinful and how do you become pure? If you have now become sinful, then you have to remember the Father. Remember Me alone. You have to remember one Father. If you think that we are not sinful, then you keep on connecting your intellect with many, become even more sinful, then remember one. If you say even in this that you don’t have time, I will see later, I will do, then untimely, unknowingly this world is going to catch fire suddenly. And you will burn to ashes like Kumbhkarna. What does it mean? What will burn to ashes? The soul doesn’t burn, doesn’t die, doesn’t turn to ashes. The body through which you will make purusharth, that body will be destroyed. So, if you do not make purusharth because at the time of explaining, you children should nicely, with force, you should tell that now the intoxication of money will not work. People who are dying for money, going on increasing their bank balance, then it will not work. Such a world is going to arrive. Yes. So, all those topics should be explained.
It was told – Within 9 years, just think those who have this lakh, crore [rupees], where will they all go? A topic of which time was mentioned? Hm? Nine years were mentioned in sixty seven. It means in 76. Hm? Where will they go? Those who are running after a lakh, a crore, where will they go? What will they do? Will their children, the great children, hm, grand children get any money? Arey, they will not get anything. While we are telling, while we are explaining. While we can explain so much which the world doesn’t know at all as to who is the God of Gita? And all that of Gita in many languages, Shri Krishna Bhagwanuvaach, Krishna Bhagwaanuvaach, and, that, that Gita is false. They keep on translating it in many languages. And we sit here and explain on Shrimat.
So, look, what is the topic that He explains? That the God of Gita is not corporeal Krishna at all. For example, founders of religions come and the topic of knowledge of their religious scriptures emerged from their mouth. So, do they come in an incorporeal form, do the incorporeal souls come from the incorporeal abode or are they corporeal? Hm? What are they in the first birth? They are incorporeal souls only, aren’t they? So, similarly, the Father of fathers, the Father of all the founders of religions will also be incorporeal only, will He not be? Will He be incorporeal? Will He be a point? How will you recognize? Were Christ, Ibrahim, Mohammad, Buddha incorporeal? Did they not have a body? Arey, they did have a body, but they did enter in someone’s body. So, similarly, just as Christ entered in Jesus, similarly, what does that Supreme Soul Father, Heavenly God Father also do? Hm? He enters in a human body. Well, it is clear that the higher someone is, the bigger someone is, his furniture will also be big only. So, look, in whom do I come? I come on this world stage; damn it; I come in the one who plays the part of a hero. Hm? Who makes the hero actor? Hm? The Father says – I do not make or do anything. I give Shrimat that if you do like this, then you, who have become zero, you don’t have any value in the world, hm, you don’t have any respect, the entire respect has mixed with dust, so, what will I make you from zero? I will make you hero from zero.
So, look, they think that the corporeal God Krishna speaks. Well, that God, who is called the highest on high God, He is not corporeal. Just as the souls are incorporeal, the Father of souls is also incorporeal. So, that topic of God Krishna, the topic of God’s words proves to be false. And we sit and explain on the directions of the most righteous one. Hm? Why was He called the most righteous one? Then it should be called Shri Shrimat. They add single Shri and say ‘on Shrimat’. Hm? Why? Who is more righteous (shreshth) than the most righteous hero actor of this world? Shiv. The Father of souls. So, He is; call Him Shri Shri 1008, call Him 108, the permanent Chariot in which He enters. So, He prepares such a gathering of the new world in which the righteous souls of all the religions come and gather in that rosary like gathering. So, it will be said for them Shri Shri 108. But He is a point. Hm? Whatever direction is given, will it be given through a mouth or will sound emerge from a point? Yes. So, the permanent Chariot holder, the hero actor in whom I enter, yes, it is said for that hero actor; what? Whatever emerged from his mouth, will it be called Shrimat or the direction (mat) of the Shri Shri? It will be called Shrimat, single Shri.
So, you children say that we sit on Shrimat and explain on Shrimat. Yes. So, look, what is the topic that you explain? So, definitely there is an authority who explains, isn’t He there? Arey, there must be some such authority in the world? Hm? There will not be. The one who could tell you and make you do this purusharth that now death is staring at you. What? The mega-destruction of this world is staring at you. It is because everyone fears. Arey, leave alone the topic of mega-destruction. People get frightened just by the destruction of this body in this birth. Everyone fears death, don’t they? Then, they don’t even want to think of everyone’s death that is going to arrive in the entire world. Do they want to think? (Someone said something.) Yes. Then will they make you to do purusharth, will you be told that death, mega-death is staring at you? No. Now nobody will tell you that death is staring at you.
If you want to take anything from the Father then take it. So, you tell that death is staring at you. Obtain your inheritance of heaven from the Father. What? The inheritance of which place should you obtain? Swa means soul. Golden Age means obtain the inheritance of becoming constant in the soul conscious stage. Does the Father give to everyone or does He give to someone and doesn’t give to someone? He gives to everyone. Well, yes, those who delay do not give value to Shrimat, pay attention later on, then will they get that inheritance of soul conscious stage less or complete? Yes, they will get less. It is not as if someone doesn’t get the inheritance of heaven, jeevanmukti (liberation in life). Arey, all the souls which come in this world from the incorporeal abode, they definitely get the inheritance of happiness at least for one birth through the body. Hm? For example, Christ entered Jesus; so, Jesus had to suffer the sorrows of crucifixion. What about Christ? Christ did not have to suffer, did he? It departed, departs. That soul departed whenever it wished.
So, so, at the time of explaining, they should be explained nicely. Hm? And what is the difficulty in explaining? The Father has said in the past also; what? That you had come as a naked soul. You had not come with the body, with this cloth-like body. Hm? When did you come? When you had come in the Golden Age, you had come naked. Achcha? And the souls which come in the Iron Age, do they come with a body? They too do not come with a body in the first birth. This is why will it be called Satyug, the Age of truth in their first birth for them or is it an Age of falsehood, and Age of sorrows for them? Which Age is it? What will it be called at that time? It is an Age of happiness, an Age of truth, isn’t it? Yes. So, later now it is the Iron Age. You have become tamopradhaan. How? Just as those founders of religions enter in the body, then the soul undergoes downfall through the colour of company, doesn’t it? Yes. Similarly, what did you children also go on becoming birth by birth while enjoying the pleasure of the organs of the body? You went on becoming rajopradhaan from satopradhaan, tamopradhaan from rajopradhaan. Then you have to go there. Where do you have to go? To the place where there is no topic of satwapradhaan. What? The place, the Soul World where you have to go, is it a satwapradhaan abode? What is it? If it is pradhaan (dominant) then there is rajo and tamo also to some extent or the other. Even if there is a trace, then it will be called satopradhaan. But there is not even a trace of rajo and tamo there. So, what is it? Will it be called satdhaam (abode of truth) or will it be said to have traces? No.
So, look, after coming to this world, while getting coloured by company, while getting coloured by company of the bodily beings you have become tamopradhaan. Then you have to go. Where do you have to go? To the abode of truth. The rajopradhaanta and tamopradhaanta, this rajopradhaanta and tamopradhaanta which enters in the body, there is no name or trace of it there. Nobody will become impure like this. Hm? You will not go there. Hm? If you become impure, then you cannot go at all because what kind of abode is in satdhaam there? It is a pure abode, isn’t it? So, there you will have to go after becoming pure only. So, then how will you become pure now? So, that has been explained that nobody will become pure from sinful from Ganga. Who? The body can become pure in the water of Ganga. That too, when Ganga itself becomes tamopradhaan (impure) in the end of the Iron Age; does it become or not? It is sung – Ram, your Ganga has become dirty. So, when she herself has become dirty, then what about all those who bathe in it? They will also become dirty. So, it was told that there is no soul of deity in this world, by listening to whose knowledge, by bathing in whose knowledge you will become pure. Knowledge comes from one; so, you will become pure through the knowledge of that One only.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2933, दिनांक 06.07.2019
VCD 2933, dated 06.07.2019
रात्रि क्लास 29.11.1967
Night Class dated 29.11.1967
VCD-2933-extracts-Bilingual
समय- 00.01-16.56
Time- 00.01-16.56
रात्रि क्लास चल रहा था – 29.11.1967. दूसरे पेज की, दूसरे पेज की अंतिम लाइनों में बात चल रही थी कि जब तुम समझाते हो उन सन्यासी, पंडित, विद्वान, आचार्यों को तो बताओ कि बाबा तो सन्मुख आकरके समझाते हैं ना? ऐसे थोड़ेही कि गीता बैठकरके लिखते हैं। जैसे धरमपिताएं ओरली बोलते हैं, वैसे बाप भी आकरके ओरली बोलते हैं। शास्त्र तो चाहे बाइबल हो, कुरान हो, गीता हो, ये तो बाद में बनाए जाते हैं ना? तो अभी जो बाप सन्मुख बैठकरके समझाते हैं तुमको क्या कहते हैं? यही कहते हैं कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। पवित्र बनो माने क्या? हँ? क्या पवित्र बनो? पवित्र बनो माने मूत-पलीती ना बनो। हँ? ये जो मूत-पलीती का धंधा है ये भ्रष्ट इन्द्रियों का धंधा छोड़ दो।
और विद्वान, पंडित, आचार्यों को समझाओ। खुद भी छोड़ो। मन से तो याद करते ही रहते हो। भले घर-घाट छोड़ा हुआ है सन्यासियों ने। तो छोड़ो। और क्या करो? और जो भी तुम्हारे फालोअर्स हैं उनको समझाओ। क्या? पवित्र बनेंगे तो पवित्र धाम में जावेंगे। पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। हम पवित्र धाम, चाहे आत्म लोक हो और जो वो आत्मा इस नई सृष्टि में, नई दुनिया में आकरके स्वर्ग में शरीर धारण करती है तो शरीर के द्वारा सुख भोगने वाली आत्मा पवित्र दुनिया में ही आवेगी ना? क्या? 500-700 करोड़ जो भी आत्माएं इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर हैं मनुष्यों की वो जब इस सृष्टि पर आती हैं तो पवित्र ही आती हैं ना? पवित्र धाम से आती हैं, और जिस दुनिया में आती हैं वहां भी पवित्र ही रहती है पहले जनम में या अपवित्र हो जाती हैं? हँ? क्राइस्ट के लिए बोला ना पहले विकार की प्रवृत्ति नहीं थी। हाँ।
तो बताया पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे जब पवित्र बनेंगे। और बुलाते भी हो इसीलिये भगवान को, पतित-पावन आओ। तो पतित-पावन को तुम बुलाते हो तो क्या समझते हो? हँ? अरे, पतित-पावन आएंगे। बुलाते हो ना? बुलाते हो तो कोई होगा ना सन्मुख तभी तो बुलाओगे? है ही नहीं तो बुलाओगे किसे? किसको बुलाते हो? वो तो भक्तिमार्ग में ऐसे ही बिना समझे बुलाते हैं। लेकिन जब समझते थे तो जिसको बुलाते थे तो वो इस सृष्टि पर था ना मौजूद? हँ? हाँ। तो बुलाते थे। पतित-पावन आओ। हँ? तो, तो सन्मुख समझाते हैं ना? हँ? कि कोई अखबार में लिखा हुआ या टीवी में दिखाया हुआ या गीता या कोई शास्त्र में लिखा हुआ तुम बैठ करके पढ़ते? नहीं। सन्मुख समझाते हैं। तो जैसे कि उनको बाप सामने महसूस होता है समझने वालों को, हँ, कि बरोबर ये मुख द्वारा बाप ये समझाय सकते हैं। जो भी धरमपिताएं आए उन्होंने मुख के द्वारा समझाया। हँ? आए तो आत्मा। आत्मलोक से आएगी ना आत्मा सोल वर्ल्ड से? तो आत्मा ही आई ना? शरीर तो नहीं उतर पड़ा? तो आत्मा को शरीर तो चाहिए ना? मुख तो चाहिए ना? आँखें चाहिए, कान चाहिए। तो ये इन्द्रियां तो शरीर में ही होती हैं।
तो बाप भी आते हैं तो मुख से बोलते हैं। मुख से सामने बरोबर तुमको महसूस होता है कि इस मुख के द्वारा बाप समझाय सकते हैं। किस मुख के द्वारा? हँ? कोई मुख होता है जिससे सुनाय सकते हैं। पूरा-पूरा समझाय नहीं सकते। जैसे माता है, बच्चे को पढ़ाती है। बेसिक नॉलेज पढ़ाती है। तो जो बेसिक नॉलेज में और जो सूरदास के, कबीरदास के, तुलसीदास के जो दोहे, कवित्त, चौपाइयां, वगैरा हैं, वो सुनाती हैं ना? तो वो रटाय देती हैं कि उनका गहरा अर्थ भी समझाती है? नहीं समझाती ना? तो वो सुनाय सकती है। गहराई से समझाय तो नहीं सकती। तो बाप भी इस सृष्टि पर आते हैं तो पहले माता के रूप में ब्रह्मा के रूप में तुमको जनम मिलता है। और फिर बाद में? टीचर के रूप में, सुप्रीम टीचर के रूप में समझाते भी हैं। तो ज़रूर मुख चाहिए कि नहीं? मुख द्वारा समझाय सकते हैं। बिना मुख के, हँ, कोई दूसरा तो समझाय ही नहीं सकते हैं। क्या मतलब? इस मुख द्वारा समझाते हैं। किस मुख द्वारा? हँ? अरे, बरोबर इस मुख द्वारा समझाते हैं। कौनसे मुख द्वारा समझाते हैं? अरे, ब्रह्मा के तो चार मुख दिखाय दिये, पांच मुख दिखाय दिये। चतुरानन कहते हैं, पंचानन कहते हैं। तो कौनसे मुख के द्वारा सुनाया और कौनसे मुख के द्वारा समझाया? इस मुख के द्वारा। इस माने एक या अनेक? एक।
तो इस मुख के द्वारा समझाय सकते हैं। और कोई दूसरे के मुख के द्वारा समझाना हो ही नहीं सकता। किस मुख के द्वारा समझाय सकते हैं? हँ? हाँ, (किसी ने कुछ कहा।) प्रवेश तो चार-पांच ब्रह्मा में करते हैं। तो किस मुख द्वारा समझाय सकते हैं? हँ? उस मुख द्वारा समझाय सकते हैं जो पूरा समझा हुआ हो। क्या समझा हुआ हो? जो भी मेरे में नॉलेज है, अखूट ज्ञान का भंडार कहा जाता है ना भगवान को, हँ, भगवान तो सूर्य, सूर्य माफिक है कि नहीं? सूर्य है कि नहीं चैतन्य? तो सूर्य है। और सूर्य में अखूट प्रकाश होता है या थोड़ा बहुत कुछ अंधेरा होता है? नहीं होता है ना? तो अखूट ज्ञान का भंडार, ज्ञान का प्रकाश जिस चैतन्य ज्ञान सूर्य में, शिव में है, वो आता है और मुख द्वारा समझाता है। ये समझाने का काम, दूसरे मुख के किसी के द्वारा नहीं हो सकता है। अभी वो तो ऐसा तो है नहीं। कौन वो? हँ? अभी वो तो ऐसा तो नहीं। अभी है? 67 की बात बताई। कौन? कौन अभी वो? हं? अरे, समझाने वाला मुख। जो गहराई से हर बात को समझाए वो मुख अभी तो है नहीं। हं? हाँ।
तो बाप बैठकरके, सबसे, सबसे बात करते रहते हैं। क्या? बातें करने के लिए सुनाना होता है या समझाना भी जरूरी होता है? बातें करने के लिए क्या होता है? हँ? हाँ, छोटे बच्चों से बात की जाती है तो बातें करेंगे ना? समझेंगे? हँ? और अम्मा समझाएगी गहराई से हर बात को? नहीं समझाएगी। तो बताया, सबसे, सबसे बात करते हैं। सबसे, सबसे दो बार क्यों कहा? माने बच्चा बुद्धियों से भी बात करते हैं। और जो सालिम बुद्धि आते हैं उनसे भी सबसे बात करते हैं। समझा? हाँ।
तो बाप का फिर ये नहीं है। क्या? हँ? क्या नहीं है? बाप का फिर ये नहीं है। ये नहीं है माने क्या नहीं है? वो समझाने वाला मुख अभी नहीं है। हाँ। 29.11.1967 की रात्रि क्लास का तीसरा पेज। हाँ, फादर शोज़ सन्स। सन शोज़ फादर कहा जाता है। क्या? बच्चा क्या करे? बाप को प्रत्यक्ष करे। हँ? और बाप बच्चे को प्रत्यक्ष करे। जैसे कहते हैं ना बच्चा चाहता है कि; क्या चाहता है? कि मेरे बाप का नाम रोशन हो। किसके बच्चे हो भाई? हँ? अरे, सूर्य के बच्चे हैं, सूर्यवंशी बच्चे हैं। तो बाप का नाम रोशन हुआ ना? हाँ। तो बच्चा बाप को प्रत्यक्ष करे और बाप क्या करता है? बच्चे को प्रत्यक्ष करे कि भई मेरा बच्चा मेरे से भी जास्ती, हँ, हाँ, शोहरत वाला बन जाए संसार में।
तो बरोबर ये फादर है ना? ये किसके लिए बोला? दादा लेखराज ब्रह्मा के लिए बोला? ये बरोबर ये फादर; ये माने कौन? हँ? ये। वो नहीं। दूर नहीं बताया। ये। किसको बताया? दाढ़ी वाले को? दादा लेखराज ब्रह्मा को बताया? अरे? ये बरोबर फादर है ना? कौन फादर? अरे? ब्रह्मा के तन में आते हैं तो अकेले आते हैं या प्रवृत्ति बन करके आते हैं? शिव बाप? हँ? अकेले आते हैं? किसके साथ आते हैं? अरे? अरे, जिसके साथ आते हैं वो आत्मा इस मनुष्य सृष्टि का बाप है या नहीं है? है। तो उसी के लिए बताया ये ही है मनुष्य सृष्टि का बाप सबको समझाने वाला। क्या? यही है सुप्रीम टीचर के रूप में प्रैक्टिकल रूप। मेरा प्रैक्टिकल रूप ये है मुख। कौनसा मुख? नज़दीक है या दूर है? हँ? ब्रह्मा के मुख में आकरके बोला ये वाक्य तो बरोबर ये फादर है ना? तो नज़दीक है या दूर है? कौन है फादर? दादा लेखराज ब्रह्मा को फादर तो नहीं कहेंगे। वो तो मां है। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, परमब्रह्म वाली आत्मा; परमब्रह्म अभी कहेंगे नहीं। क्योंकि परमब्रह्म कहें तो फिर प्रैक्टिकल में वर्तमान में सन् 67 में वो बहुत सहनशील होना चाहिए इस दुनिया की सबसे जास्ती आत्मा। बनी? नहीं। तो किसके लिए बोला? ये मुख धारण करने वाली आत्मा जो पुरुष मुख है, मुकर्रर रथ है उसके लिए बोला कि ये फादर है ना? मनुष्य सृष्टि का पिता है।
तुम सन्स हो ना सभी? तुम इस फादर के क्या हो? हाँ, बच्चे हो। सभी आत्माएं हो ना? हँ? सभी आत्माएं हो ना? क्या हो? जो भी समझने वाले बच्चे हो ना समझदार; समझदार बाप है तो बच्चे भी कैसे होने चाहिए? समझदार ही होंगे ना? तो सभी आत्माएं हो ना? कि कुछ देहभान रह जाता है? नहीं? हँ? माना जो उस ज्ञान सूर्य बाप के बच्चे हैं वो सब ज्ञान की रोशनी से भरपूर बच्चे हैं। क्या करते हैं? अपनी ज्ञान की रोशनी को बाप की रोशनी में मर्ज कर देते हैं। अपनी शोहरत नहीं चाहते। क्या चाहते हैं? हमारे बाप का नाम बाला हो जाए। तो आत्मा हुए ना? हँ? हाँ। आत्मा कहां से आती है? आत्मा का बीज आता कहां से है? जैसे देह का बीज देह के बाप से आता है, ऐसे आत्मा का बीज कहां से आता है? आत्मा के बाप सुप्रीम सोल आकरके जब बताता है कि बच्चे तुम देह नहीं हो, तुम तो अपने को देह समझे बैठे जन्म-जन्मान्तर से, तो वो आके बताता है तब पता चलता है कि हम आत्मा हैं, ज्योतिबिन्दु हैं, भृकुटि के मध्य में रहने वाली। पता चलता है ना? तो जैसे वो बाप हो गया; बताने वाला क्या हुआ? बीज डालने वाला, ज्ञान का बीज जिसने डाला वो बाप हो गया।
तो सभी आत्माएं हो। सभी माने कौन? 500-700 करोड़? नहीं। हँ? जो समझने वाले बच्चे हैं, समझू बाप से जो समझते हैं; कैसा बाप? जिसको समझ का, ज्ञान का तीसरा नेत्र भक्तिमार्ग में दिखाया जाता है। सबको दिखाया जाता है? सबको नहीं दिखाया जाता है। किसको? हँ? तीसरा नेत्र किसी को दिखाया जाता है? कोई बाप है ऐसा? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, कौन है? हाँ, शंकर के लिए कहते हैं, हँ, जगतम् पितरम वंदे पार्वती परमेश्वरौ। ऐसे कहते हैं ना? तो सारे जगत का पिता है। तो फादर शोज़ सन्, आत्मा सन को। तो जो बाप है वो क्या करता है? हँ? नंबरवार आत्माओं को इस संसार में जो भी आत्माएं पूरे जन्म लेने वाली हैं 84 जन्म या कम जन्म लेने वाली हैं, हँ, किसको प्रत्यक्ष करता है? हँ? फादर शोज़ सन्स। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, कौनसे बच्चों को प्रत्यक्ष करता है? जो आत्मा बनते हैं उन बच्चों को प्रत्यक्ष करता है।
A night class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the last lines of the second page, second page that when you explain to those Sanyasis, Pundits, scholars, Acharyas (spiritual teachers) that Baba comes face to face and explains, doesn’t He? It is not as if He sits and writes Gita. Just as the founders of religions speak orally, similarly the Father also comes and speaks orally. As regards the scriptures, be it Bible, Koran, Gita, these are penned later, aren’t they? So, now the Father who sits face to face and explains, what does He tell you? He says – Become pure, then you will become masters of the pure world. What is meant by becoming pure? Hm? How do you become pure? ‘Become pure’ means ‘do not become moot-paliti’ (dirtied by the urine of lust). Hm? Leave the occupation of moot-paliti, this occupation of unrighteous organs.
And explain to the scholars, pundits, acharyas. Leave yourself also. You keep on remembering through the mind. Although the sanyasis have left the household. So, leave. And what should you do? And explain to all your followers. What? If you become pure, then you will go to the pure abode. You will become masters of the pure world. We, the pure abode, be it the Soul World and that soul which comes to this new world and assumes a body in heaven, then the soul which enjoys pleasure through the body will come in the pure world only, will it not? What? All the 500-700 crore souls of human beings which exist on this world stage, when they come to this world, then they come in a pure form only, don’t they? They come from the pure abode and the world in which they come, do they remain pure only there also in the first birth or do they become impure? Hm? It was said for Christ, wasn’t it that there was no inclination towards lust in the beginning. Yes.
So, it was told that you will become the masters of pure world when you become pure. And you also call God only for this reason, O purifier of the sinful ones, come. So, when you call the purifier of the sinful ones, then what do you think? Hm? Arey, the purifier of the sinful ones will come. You call, don’t you? When you call, then there will be someone face to face, only then will you call, won’t you? If someone doesn’t exist at all, then whom will you call? Whom do you call? They call without understanding on the path of Bhakti. But when you used to understand, the one whom you used to call, he was present in this world, wasn’t he? Hm? Yes. So, you used to call. O purifier of the sinful ones, come. Hm? So, you explain face to face, don’t you? Hm? Or do you sit and read anything written in the newspapers or anything shown on the TV or anything written in the Gita or any scripture? No. You are explained face to face. So, just as they, those who understand experience the Father face to face that rightly the Father can explain through this mouth. All the founders of religions who came, they explained through the mouth. Hm? They came as a soul. The soul will come from the aatmalok, the Soul World, will it not? So, the soul itself came, didn’t it? The body did not descend, did it? So, the soul requires a body, doesn’t it? It requires a mouth, doesn’t it? It requires eyes, ears. So, these organs exist in the body only.
So, even when the Father comes He speaks through the mouth. You rightly feel in front of the face that the Father can explain through this mouth. Through which mouth? There is a mouth through which He can narrate. He cannot explain completely. For example, there is a mother; she teaches the child. She teaches basic knowledge. So, in the basic knowledge and she narrates the dohe, kavitt, chaupais, etc. of Soordas, Kabirdas, Tulsidas, doesn’t she? So, does she make them learn it by heart or does she also explain to them their deep meanings? She doesn’t explain, does she? So, she can narrate. She cannot explain deeply. So, when the Father also comes to this world then you first get birth [from Him] as a mother, as a Brahma. And then later? He also explains in the form of a teacher, in the form of a Supreme Teacher. So, definitely does He need a mouth or not? He can explain through the mouth. Without a mouth, hm, anyone else cannot explain at all. What does it mean? He explains through this mouth. Through which mouth? Hm? Arey, He rightly explains through this mouth. Through which mouth does He explain? Arey, Brahma is shown to have four heads, five heads. He is called Chaturanan (four-headed), Panchanan (five-headed). So, through which mouth did He narrate and through which mouth did He explain? Through this mouth. Does ‘this’ mean one or many? One.
So, He can explain through this mouth. The process of explaining cannot take place through any other mouth at all. Through which mouth can He explain? Hm? Yes, (Someone said something.) He does enter in four-five Brahmas. So, through which mouth can He explain? Hm? He can explain through that mouth which has understood completely. What should he have understood? Whatever knowledge is contained in Me; God is called the inexhaustible stock house of knowledge, isn’t He? God is like the Sun, isn’t He? Is there a Sun in living form or not? So, there is the Sun. And is there inexhaustible light in the Sun or is there a little bit of darkness also? There isn’t; is it not? So, the living Sun of Knowledge Shiv in whom the inexhaustible stock house of knowledge, the light of knowledge exists, He comes and explains through the mouth. This task of explaining cannot take place through any other mouth. Now he is not like this. Who he? Hm? Now he is not like this. Is he now? The topic of 67 was mentioned. Who? Who he now? Hm? Arey, the mouth that explains. The mouth that can explain every topic deeply doesn’t exist now. Hm? Yes.
So, the Father sits and keeps on speaking to everyone, everyone. What? In order to speak does one have to just narrate or is it necessary to explain as well? What is necessary to speak? Hm? Yes, when one talks to small children, then you will speak, will you not? Will they understand? Hm? And will the mother explain every topic deeply? She will not explain. So, it was told, He speaks to everyone, everyone. Why did He say ‘everyone, everyone’ twice? It means that He speaks to those who have a child-like intellect also. And those with mature intellects who come, He speaks to them, all of them also. Did you understand? Yes.
So, then this is not of the Father. What? Hm? What isn’t? Then this is not of the Father. ‘This isn’t’ means what isn’t? That mouth which explains isn’t present now. Yes. Third page of the night class dated 29.11.1967. Yes, Father shows sons. It is said ‘son shows Father’. What? What should the child do? He should reveal the Father. Hm? And the Father should reveal the child. For example, it is said, isn’t it that the child wants that; what does he want? That the name of my Father should become famous. Whose child are you brother? Hm? Arey, we are the children of the Sun, we are Suryavanshi children. So, the Father’s name became famous, didn’t it? Yes. So, the child should reveal the Father and what does the Father do? He should reveal the child that brother my child should gain more, yes, fame than me in the world.
So, rightly this is the Father, isn’t he? For whom was it said ‘this’? Was it said for Dada Lekhraj Brahma? This rightly, this Father; what is meant by ‘this’? Hm? This one. Not that one. It was not mentioned to be distant. This one. Who was mentioned? The one with beard? Was Dada Lekhraj Brahma mentioned? Arey? This one rightly is the Father, isn’t he? Which Father? Arey? When He comes in the body of Brahma, does He come alone or does He come in a household? Father Shiv? Hm? Does He come alone? With whom does He come? Arey? Arey, the one with whom He comes, is that soul the Father of this human world or not? He is. So, it was said for him only that this is the Father of the human world who explains to everyone. What? This is the practical form in the form of Supreme Teacher. This mouth is My practical form. Which mouth? Is it near or far? Hm? He spoke this sentence by coming in the head of Brahma; so, rightly this one is the Father, isn’t he? So, is he near or far? Who is the Father? Dada Lekhraj Brahma will not be called the Father. He is the mother. Hm? (Someone said something.) Yes, the soul of Parambrahm. He will not be called Parambrahm now because if he is called Parambrahm, then in practical, in the present time, in 67 he should be the most tolerant soul in this world. Did he become? No. So, for whom did He say? The soul that holds this head, the male head, the permanent Chariot, it was said for him that this is the Father, isn’t he? He is the Father of the human world.
You all are sons, aren’t you? What is your relation with this Father? Yes, you are children. You all are souls, aren’t you? Hm? You all are souls, aren’t you? What are you? All of you wise children who understand; when the Father is wise, then how should the children also be? They will be wise only, will they not be? So, you all are souls, aren’t you? Or does any body consciousness remain? No? Hm? It means that those who are the children of that Sun of Knowledge Father all of them are children full of the light of knowledge. What do they do? They merge their light of knowledge with that of the light of the Father. They do not wish their own fame. What do they desire? The name of our Father should become famous. So, they are souls, aren’t they? Hm? Yes. Where does the soul come from? Where does the seed of the soul come from? Just as the seed of the body comes from the Father of the body, similarly, where does the seed of the soul come from? When the Father of the souls, the Supreme Soul comes and tells that children, you are not a body, you considered yourself to be a body since many births, so, when He comes and tells, then you get to know that we are souls, points of light residing in the middle of the bhrikuti (center of the forehead between the two eyebrows). You get to know, don’t you? So, it is as if He is the Father; what is the one who tells? The one who sows the seed, the one who sowed the seed of knowledge is the Father.
So, you all are souls. All means who? 500-700 crores? No. Hm? Those children who understand, those who understand from the wise Father; what kind of a Father? The one who is shown to have the third eye of wisdom, of knowledge on the path of Bhakti. Is everyone shown to have? Everyone is not shown to have. Who? Hm? Is the third eye shown on anyone? Is there any such Father? Hm? (Someone said something.) Yes, who is it? Yes, it is said for Shankar, hm, Jagatam Pitaram Vande Paarvati Parmeshwarau. They say like this, don’t they? So, He is the Father of the entire world. So, Father shows son, the soul-form son. So, what does the Father do? Hm? Whom does He reveal – Is it the numberwise souls, all the souls who get complete births, 84 births or less births? Hm? Father shows sons. (Someone said something.) Yes, which children does He reveal? He reveals the children who become souls.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2933, दिनांक 06.07.2019
VCD 2933, dated 06.07.2019
रात्रि क्लास 29.11.1967
Night Class dated 29.11.1967
VCD-2933-extracts-Bilingual
समय- 00.01-16.56
Time- 00.01-16.56
रात्रि क्लास चल रहा था – 29.11.1967. दूसरे पेज की, दूसरे पेज की अंतिम लाइनों में बात चल रही थी कि जब तुम समझाते हो उन सन्यासी, पंडित, विद्वान, आचार्यों को तो बताओ कि बाबा तो सन्मुख आकरके समझाते हैं ना? ऐसे थोड़ेही कि गीता बैठकरके लिखते हैं। जैसे धरमपिताएं ओरली बोलते हैं, वैसे बाप भी आकरके ओरली बोलते हैं। शास्त्र तो चाहे बाइबल हो, कुरान हो, गीता हो, ये तो बाद में बनाए जाते हैं ना? तो अभी जो बाप सन्मुख बैठकरके समझाते हैं तुमको क्या कहते हैं? यही कहते हैं कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। पवित्र बनो माने क्या? हँ? क्या पवित्र बनो? पवित्र बनो माने मूत-पलीती ना बनो। हँ? ये जो मूत-पलीती का धंधा है ये भ्रष्ट इन्द्रियों का धंधा छोड़ दो।
और विद्वान, पंडित, आचार्यों को समझाओ। खुद भी छोड़ो। मन से तो याद करते ही रहते हो। भले घर-घाट छोड़ा हुआ है सन्यासियों ने। तो छोड़ो। और क्या करो? और जो भी तुम्हारे फालोअर्स हैं उनको समझाओ। क्या? पवित्र बनेंगे तो पवित्र धाम में जावेंगे। पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। हम पवित्र धाम, चाहे आत्म लोक हो और जो वो आत्मा इस नई सृष्टि में, नई दुनिया में आकरके स्वर्ग में शरीर धारण करती है तो शरीर के द्वारा सुख भोगने वाली आत्मा पवित्र दुनिया में ही आवेगी ना? क्या? 500-700 करोड़ जो भी आत्माएं इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर हैं मनुष्यों की वो जब इस सृष्टि पर आती हैं तो पवित्र ही आती हैं ना? पवित्र धाम से आती हैं, और जिस दुनिया में आती हैं वहां भी पवित्र ही रहती है पहले जनम में या अपवित्र हो जाती हैं? हँ? क्राइस्ट के लिए बोला ना पहले विकार की प्रवृत्ति नहीं थी। हाँ।
तो बताया पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे जब पवित्र बनेंगे। और बुलाते भी हो इसीलिये भगवान को, पतित-पावन आओ। तो पतित-पावन को तुम बुलाते हो तो क्या समझते हो? हँ? अरे, पतित-पावन आएंगे। बुलाते हो ना? बुलाते हो तो कोई होगा ना सन्मुख तभी तो बुलाओगे? है ही नहीं तो बुलाओगे किसे? किसको बुलाते हो? वो तो भक्तिमार्ग में ऐसे ही बिना समझे बुलाते हैं। लेकिन जब समझते थे तो जिसको बुलाते थे तो वो इस सृष्टि पर था ना मौजूद? हँ? हाँ। तो बुलाते थे। पतित-पावन आओ। हँ? तो, तो सन्मुख समझाते हैं ना? हँ? कि कोई अखबार में लिखा हुआ या टीवी में दिखाया हुआ या गीता या कोई शास्त्र में लिखा हुआ तुम बैठ करके पढ़ते? नहीं। सन्मुख समझाते हैं। तो जैसे कि उनको बाप सामने महसूस होता है समझने वालों को, हँ, कि बरोबर ये मुख द्वारा बाप ये समझाय सकते हैं। जो भी धरमपिताएं आए उन्होंने मुख के द्वारा समझाया। हँ? आए तो आत्मा। आत्मलोक से आएगी ना आत्मा सोल वर्ल्ड से? तो आत्मा ही आई ना? शरीर तो नहीं उतर पड़ा? तो आत्मा को शरीर तो चाहिए ना? मुख तो चाहिए ना? आँखें चाहिए, कान चाहिए। तो ये इन्द्रियां तो शरीर में ही होती हैं।
तो बाप भी आते हैं तो मुख से बोलते हैं। मुख से सामने बरोबर तुमको महसूस होता है कि इस मुख के द्वारा बाप समझाय सकते हैं। किस मुख के द्वारा? हँ? कोई मुख होता है जिससे सुनाय सकते हैं। पूरा-पूरा समझाय नहीं सकते। जैसे माता है, बच्चे को पढ़ाती है। बेसिक नॉलेज पढ़ाती है। तो जो बेसिक नॉलेज में और जो सूरदास के, कबीरदास के, तुलसीदास के जो दोहे, कवित्त, चौपाइयां, वगैरा हैं, वो सुनाती हैं ना? तो वो रटाय देती हैं कि उनका गहरा अर्थ भी समझाती है? नहीं समझाती ना? तो वो सुनाय सकती है। गहराई से समझाय तो नहीं सकती। तो बाप भी इस सृष्टि पर आते हैं तो पहले माता के रूप में ब्रह्मा के रूप में तुमको जनम मिलता है। और फिर बाद में? टीचर के रूप में, सुप्रीम टीचर के रूप में समझाते भी हैं। तो ज़रूर मुख चाहिए कि नहीं? मुख द्वारा समझाय सकते हैं। बिना मुख के, हँ, कोई दूसरा तो समझाय ही नहीं सकते हैं। क्या मतलब? इस मुख द्वारा समझाते हैं। किस मुख द्वारा? हँ? अरे, बरोबर इस मुख द्वारा समझाते हैं। कौनसे मुख द्वारा समझाते हैं? अरे, ब्रह्मा के तो चार मुख दिखाय दिये, पांच मुख दिखाय दिये। चतुरानन कहते हैं, पंचानन कहते हैं। तो कौनसे मुख के द्वारा सुनाया और कौनसे मुख के द्वारा समझाया? इस मुख के द्वारा। इस माने एक या अनेक? एक।
तो इस मुख के द्वारा समझाय सकते हैं। और कोई दूसरे के मुख के द्वारा समझाना हो ही नहीं सकता। किस मुख के द्वारा समझाय सकते हैं? हँ? हाँ, (किसी ने कुछ कहा।) प्रवेश तो चार-पांच ब्रह्मा में करते हैं। तो किस मुख द्वारा समझाय सकते हैं? हँ? उस मुख द्वारा समझाय सकते हैं जो पूरा समझा हुआ हो। क्या समझा हुआ हो? जो भी मेरे में नॉलेज है, अखूट ज्ञान का भंडार कहा जाता है ना भगवान को, हँ, भगवान तो सूर्य, सूर्य माफिक है कि नहीं? सूर्य है कि नहीं चैतन्य? तो सूर्य है। और सूर्य में अखूट प्रकाश होता है या थोड़ा बहुत कुछ अंधेरा होता है? नहीं होता है ना? तो अखूट ज्ञान का भंडार, ज्ञान का प्रकाश जिस चैतन्य ज्ञान सूर्य में, शिव में है, वो आता है और मुख द्वारा समझाता है। ये समझाने का काम, दूसरे मुख के किसी के द्वारा नहीं हो सकता है। अभी वो तो ऐसा तो है नहीं। कौन वो? हँ? अभी वो तो ऐसा तो नहीं। अभी है? 67 की बात बताई। कौन? कौन अभी वो? हं? अरे, समझाने वाला मुख। जो गहराई से हर बात को समझाए वो मुख अभी तो है नहीं। हं? हाँ।
तो बाप बैठकरके, सबसे, सबसे बात करते रहते हैं। क्या? बातें करने के लिए सुनाना होता है या समझाना भी जरूरी होता है? बातें करने के लिए क्या होता है? हँ? हाँ, छोटे बच्चों से बात की जाती है तो बातें करेंगे ना? समझेंगे? हँ? और अम्मा समझाएगी गहराई से हर बात को? नहीं समझाएगी। तो बताया, सबसे, सबसे बात करते हैं। सबसे, सबसे दो बार क्यों कहा? माने बच्चा बुद्धियों से भी बात करते हैं। और जो सालिम बुद्धि आते हैं उनसे भी सबसे बात करते हैं। समझा? हाँ।
तो बाप का फिर ये नहीं है। क्या? हँ? क्या नहीं है? बाप का फिर ये नहीं है। ये नहीं है माने क्या नहीं है? वो समझाने वाला मुख अभी नहीं है। हाँ। 29.11.1967 की रात्रि क्लास का तीसरा पेज। हाँ, फादर शोज़ सन्स। सन शोज़ फादर कहा जाता है। क्या? बच्चा क्या करे? बाप को प्रत्यक्ष करे। हँ? और बाप बच्चे को प्रत्यक्ष करे। जैसे कहते हैं ना बच्चा चाहता है कि; क्या चाहता है? कि मेरे बाप का नाम रोशन हो। किसके बच्चे हो भाई? हँ? अरे, सूर्य के बच्चे हैं, सूर्यवंशी बच्चे हैं। तो बाप का नाम रोशन हुआ ना? हाँ। तो बच्चा बाप को प्रत्यक्ष करे और बाप क्या करता है? बच्चे को प्रत्यक्ष करे कि भई मेरा बच्चा मेरे से भी जास्ती, हँ, हाँ, शोहरत वाला बन जाए संसार में।
तो बरोबर ये फादर है ना? ये किसके लिए बोला? दादा लेखराज ब्रह्मा के लिए बोला? ये बरोबर ये फादर; ये माने कौन? हँ? ये। वो नहीं। दूर नहीं बताया। ये। किसको बताया? दाढ़ी वाले को? दादा लेखराज ब्रह्मा को बताया? अरे? ये बरोबर फादर है ना? कौन फादर? अरे? ब्रह्मा के तन में आते हैं तो अकेले आते हैं या प्रवृत्ति बन करके आते हैं? शिव बाप? हँ? अकेले आते हैं? किसके साथ आते हैं? अरे? अरे, जिसके साथ आते हैं वो आत्मा इस मनुष्य सृष्टि का बाप है या नहीं है? है। तो उसी के लिए बताया ये ही है मनुष्य सृष्टि का बाप सबको समझाने वाला। क्या? यही है सुप्रीम टीचर के रूप में प्रैक्टिकल रूप। मेरा प्रैक्टिकल रूप ये है मुख। कौनसा मुख? नज़दीक है या दूर है? हँ? ब्रह्मा के मुख में आकरके बोला ये वाक्य तो बरोबर ये फादर है ना? तो नज़दीक है या दूर है? कौन है फादर? दादा लेखराज ब्रह्मा को फादर तो नहीं कहेंगे। वो तो मां है। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, परमब्रह्म वाली आत्मा; परमब्रह्म अभी कहेंगे नहीं। क्योंकि परमब्रह्म कहें तो फिर प्रैक्टिकल में वर्तमान में सन् 67 में वो बहुत सहनशील होना चाहिए इस दुनिया की सबसे जास्ती आत्मा। बनी? नहीं। तो किसके लिए बोला? ये मुख धारण करने वाली आत्मा जो पुरुष मुख है, मुकर्रर रथ है उसके लिए बोला कि ये फादर है ना? मनुष्य सृष्टि का पिता है।
तुम सन्स हो ना सभी? तुम इस फादर के क्या हो? हाँ, बच्चे हो। सभी आत्माएं हो ना? हँ? सभी आत्माएं हो ना? क्या हो? जो भी समझने वाले बच्चे हो ना समझदार; समझदार बाप है तो बच्चे भी कैसे होने चाहिए? समझदार ही होंगे ना? तो सभी आत्माएं हो ना? कि कुछ देहभान रह जाता है? नहीं? हँ? माना जो उस ज्ञान सूर्य बाप के बच्चे हैं वो सब ज्ञान की रोशनी से भरपूर बच्चे हैं। क्या करते हैं? अपनी ज्ञान की रोशनी को बाप की रोशनी में मर्ज कर देते हैं। अपनी शोहरत नहीं चाहते। क्या चाहते हैं? हमारे बाप का नाम बाला हो जाए। तो आत्मा हुए ना? हँ? हाँ। आत्मा कहां से आती है? आत्मा का बीज आता कहां से है? जैसे देह का बीज देह के बाप से आता है, ऐसे आत्मा का बीज कहां से आता है? आत्मा के बाप सुप्रीम सोल आकरके जब बताता है कि बच्चे तुम देह नहीं हो, तुम तो अपने को देह समझे बैठे जन्म-जन्मान्तर से, तो वो आके बताता है तब पता चलता है कि हम आत्मा हैं, ज्योतिबिन्दु हैं, भृकुटि के मध्य में रहने वाली। पता चलता है ना? तो जैसे वो बाप हो गया; बताने वाला क्या हुआ? बीज डालने वाला, ज्ञान का बीज जिसने डाला वो बाप हो गया।
तो सभी आत्माएं हो। सभी माने कौन? 500-700 करोड़? नहीं। हँ? जो समझने वाले बच्चे हैं, समझू बाप से जो समझते हैं; कैसा बाप? जिसको समझ का, ज्ञान का तीसरा नेत्र भक्तिमार्ग में दिखाया जाता है। सबको दिखाया जाता है? सबको नहीं दिखाया जाता है। किसको? हँ? तीसरा नेत्र किसी को दिखाया जाता है? कोई बाप है ऐसा? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, कौन है? हाँ, शंकर के लिए कहते हैं, हँ, जगतम् पितरम वंदे पार्वती परमेश्वरौ। ऐसे कहते हैं ना? तो सारे जगत का पिता है। तो फादर शोज़ सन्, आत्मा सन को। तो जो बाप है वो क्या करता है? हँ? नंबरवार आत्माओं को इस संसार में जो भी आत्माएं पूरे जन्म लेने वाली हैं 84 जन्म या कम जन्म लेने वाली हैं, हँ, किसको प्रत्यक्ष करता है? हँ? फादर शोज़ सन्स। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, कौनसे बच्चों को प्रत्यक्ष करता है? जो आत्मा बनते हैं उन बच्चों को प्रत्यक्ष करता है।
A night class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the last lines of the second page, second page that when you explain to those Sanyasis, Pundits, scholars, Acharyas (spiritual teachers) that Baba comes face to face and explains, doesn’t He? It is not as if He sits and writes Gita. Just as the founders of religions speak orally, similarly the Father also comes and speaks orally. As regards the scriptures, be it Bible, Koran, Gita, these are penned later, aren’t they? So, now the Father who sits face to face and explains, what does He tell you? He says – Become pure, then you will become masters of the pure world. What is meant by becoming pure? Hm? How do you become pure? ‘Become pure’ means ‘do not become moot-paliti’ (dirtied by the urine of lust). Hm? Leave the occupation of moot-paliti, this occupation of unrighteous organs.
And explain to the scholars, pundits, acharyas. Leave yourself also. You keep on remembering through the mind. Although the sanyasis have left the household. So, leave. And what should you do? And explain to all your followers. What? If you become pure, then you will go to the pure abode. You will become masters of the pure world. We, the pure abode, be it the Soul World and that soul which comes to this new world and assumes a body in heaven, then the soul which enjoys pleasure through the body will come in the pure world only, will it not? What? All the 500-700 crore souls of human beings which exist on this world stage, when they come to this world, then they come in a pure form only, don’t they? They come from the pure abode and the world in which they come, do they remain pure only there also in the first birth or do they become impure? Hm? It was said for Christ, wasn’t it that there was no inclination towards lust in the beginning. Yes.
So, it was told that you will become the masters of pure world when you become pure. And you also call God only for this reason, O purifier of the sinful ones, come. So, when you call the purifier of the sinful ones, then what do you think? Hm? Arey, the purifier of the sinful ones will come. You call, don’t you? When you call, then there will be someone face to face, only then will you call, won’t you? If someone doesn’t exist at all, then whom will you call? Whom do you call? They call without understanding on the path of Bhakti. But when you used to understand, the one whom you used to call, he was present in this world, wasn’t he? Hm? Yes. So, you used to call. O purifier of the sinful ones, come. Hm? So, you explain face to face, don’t you? Hm? Or do you sit and read anything written in the newspapers or anything shown on the TV or anything written in the Gita or any scripture? No. You are explained face to face. So, just as they, those who understand experience the Father face to face that rightly the Father can explain through this mouth. All the founders of religions who came, they explained through the mouth. Hm? They came as a soul. The soul will come from the aatmalok, the Soul World, will it not? So, the soul itself came, didn’t it? The body did not descend, did it? So, the soul requires a body, doesn’t it? It requires a mouth, doesn’t it? It requires eyes, ears. So, these organs exist in the body only.
So, even when the Father comes He speaks through the mouth. You rightly feel in front of the face that the Father can explain through this mouth. Through which mouth? There is a mouth through which He can narrate. He cannot explain completely. For example, there is a mother; she teaches the child. She teaches basic knowledge. So, in the basic knowledge and she narrates the dohe, kavitt, chaupais, etc. of Soordas, Kabirdas, Tulsidas, doesn’t she? So, does she make them learn it by heart or does she also explain to them their deep meanings? She doesn’t explain, does she? So, she can narrate. She cannot explain deeply. So, when the Father also comes to this world then you first get birth [from Him] as a mother, as a Brahma. And then later? He also explains in the form of a teacher, in the form of a Supreme Teacher. So, definitely does He need a mouth or not? He can explain through the mouth. Without a mouth, hm, anyone else cannot explain at all. What does it mean? He explains through this mouth. Through which mouth? Hm? Arey, He rightly explains through this mouth. Through which mouth does He explain? Arey, Brahma is shown to have four heads, five heads. He is called Chaturanan (four-headed), Panchanan (five-headed). So, through which mouth did He narrate and through which mouth did He explain? Through this mouth. Does ‘this’ mean one or many? One.
So, He can explain through this mouth. The process of explaining cannot take place through any other mouth at all. Through which mouth can He explain? Hm? Yes, (Someone said something.) He does enter in four-five Brahmas. So, through which mouth can He explain? Hm? He can explain through that mouth which has understood completely. What should he have understood? Whatever knowledge is contained in Me; God is called the inexhaustible stock house of knowledge, isn’t He? God is like the Sun, isn’t He? Is there a Sun in living form or not? So, there is the Sun. And is there inexhaustible light in the Sun or is there a little bit of darkness also? There isn’t; is it not? So, the living Sun of Knowledge Shiv in whom the inexhaustible stock house of knowledge, the light of knowledge exists, He comes and explains through the mouth. This task of explaining cannot take place through any other mouth. Now he is not like this. Who he? Hm? Now he is not like this. Is he now? The topic of 67 was mentioned. Who? Who he now? Hm? Arey, the mouth that explains. The mouth that can explain every topic deeply doesn’t exist now. Hm? Yes.
So, the Father sits and keeps on speaking to everyone, everyone. What? In order to speak does one have to just narrate or is it necessary to explain as well? What is necessary to speak? Hm? Yes, when one talks to small children, then you will speak, will you not? Will they understand? Hm? And will the mother explain every topic deeply? She will not explain. So, it was told, He speaks to everyone, everyone. Why did He say ‘everyone, everyone’ twice? It means that He speaks to those who have a child-like intellect also. And those with mature intellects who come, He speaks to them, all of them also. Did you understand? Yes.
So, then this is not of the Father. What? Hm? What isn’t? Then this is not of the Father. ‘This isn’t’ means what isn’t? That mouth which explains isn’t present now. Yes. Third page of the night class dated 29.11.1967. Yes, Father shows sons. It is said ‘son shows Father’. What? What should the child do? He should reveal the Father. Hm? And the Father should reveal the child. For example, it is said, isn’t it that the child wants that; what does he want? That the name of my Father should become famous. Whose child are you brother? Hm? Arey, we are the children of the Sun, we are Suryavanshi children. So, the Father’s name became famous, didn’t it? Yes. So, the child should reveal the Father and what does the Father do? He should reveal the child that brother my child should gain more, yes, fame than me in the world.
So, rightly this is the Father, isn’t he? For whom was it said ‘this’? Was it said for Dada Lekhraj Brahma? This rightly, this Father; what is meant by ‘this’? Hm? This one. Not that one. It was not mentioned to be distant. This one. Who was mentioned? The one with beard? Was Dada Lekhraj Brahma mentioned? Arey? This one rightly is the Father, isn’t he? Which Father? Arey? When He comes in the body of Brahma, does He come alone or does He come in a household? Father Shiv? Hm? Does He come alone? With whom does He come? Arey? Arey, the one with whom He comes, is that soul the Father of this human world or not? He is. So, it was said for him only that this is the Father of the human world who explains to everyone. What? This is the practical form in the form of Supreme Teacher. This mouth is My practical form. Which mouth? Is it near or far? Hm? He spoke this sentence by coming in the head of Brahma; so, rightly this one is the Father, isn’t he? So, is he near or far? Who is the Father? Dada Lekhraj Brahma will not be called the Father. He is the mother. Hm? (Someone said something.) Yes, the soul of Parambrahm. He will not be called Parambrahm now because if he is called Parambrahm, then in practical, in the present time, in 67 he should be the most tolerant soul in this world. Did he become? No. So, for whom did He say? The soul that holds this head, the male head, the permanent Chariot, it was said for him that this is the Father, isn’t he? He is the Father of the human world.
You all are sons, aren’t you? What is your relation with this Father? Yes, you are children. You all are souls, aren’t you? Hm? You all are souls, aren’t you? What are you? All of you wise children who understand; when the Father is wise, then how should the children also be? They will be wise only, will they not be? So, you all are souls, aren’t you? Or does any body consciousness remain? No? Hm? It means that those who are the children of that Sun of Knowledge Father all of them are children full of the light of knowledge. What do they do? They merge their light of knowledge with that of the light of the Father. They do not wish their own fame. What do they desire? The name of our Father should become famous. So, they are souls, aren’t they? Hm? Yes. Where does the soul come from? Where does the seed of the soul come from? Just as the seed of the body comes from the Father of the body, similarly, where does the seed of the soul come from? When the Father of the souls, the Supreme Soul comes and tells that children, you are not a body, you considered yourself to be a body since many births, so, when He comes and tells, then you get to know that we are souls, points of light residing in the middle of the bhrikuti (center of the forehead between the two eyebrows). You get to know, don’t you? So, it is as if He is the Father; what is the one who tells? The one who sows the seed, the one who sowed the seed of knowledge is the Father.
So, you all are souls. All means who? 500-700 crores? No. Hm? Those children who understand, those who understand from the wise Father; what kind of a Father? The one who is shown to have the third eye of wisdom, of knowledge on the path of Bhakti. Is everyone shown to have? Everyone is not shown to have. Who? Hm? Is the third eye shown on anyone? Is there any such Father? Hm? (Someone said something.) Yes, who is it? Yes, it is said for Shankar, hm, Jagatam Pitaram Vande Paarvati Parmeshwarau. They say like this, don’t they? So, He is the Father of the entire world. So, Father shows son, the soul-form son. So, what does the Father do? Hm? Whom does He reveal – Is it the numberwise souls, all the souls who get complete births, 84 births or less births? Hm? Father shows sons. (Someone said something.) Yes, which children does He reveal? He reveals the children who become souls.
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- arjun
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2934, दिनांक 07.07.2019
VCD 2934, dated 07.07.2019
रात्रि क्लास 29.11.1967
Night class dated 29.11.1967
VCD-2934-extracts-Bilingual
समय- 00.01-14.43
Time- 00.01-14.43
रात्रि क्लास चल रहा था – 29.11.1967. तीसरे पेज के छठी-सातवीं लाइन में बात चल रही थी - सन शोज़ फादर, फादर शोज़ सन्स। तो पावरफुल कौन है? बाप पावरफुल है या बच्चे ज्यादा पावरफुल हैं? तो कौन अपना काम जल्दी पूरा करेगा? हँ? क्या काम? हँ? बच्चों को प्रत्यक्ष करने का। संसार के सामने बाप पहले बच्चों को प्रत्यक्ष करता है। फिर बच्चों का काम है सन; क्योंकि दो-चार सन्स तो मिलकरके नहीं कर पाएंगे। क्या करें? संगठित हो जाएं। माला बने। बिखरे हुए रहेंगे तो प्रत्यक्ष कर पाएंगे? नहीं कर पाएंगे। तो माला रूपी संगठन में संगठित बनेंगे, हँ, और एक स्नेह के सूत्र के धागे में एक के साथ बंधेंगे तो फिर क्या होगा? बाप को संसार के सामने प्रत्यक्ष कर सकेंगे। तो बाप कहते हैं तुम बच्चे हो ना? तुम सभी बच्चे हो, बच्चाबुद्धि हो। बच्चू, आत्मा हो ना? हाँ, आत्मा तो हो। बाबा भी कहते हैं अपन को आत्मा समझो। और सबको बैठकरके ऐसी तरह से समझाओ। क्या? कि तुम सब नंबरवार आत्मा हो।
तो आत्मा अपन को समझना और ऐसे बात करना। हँ? बाप को और बच्चे को। बाप को समझाना सहज होता है। हँ? क्यों? बाप को सहज क्यों होता है? हँ? अरे, वो मनुष्य सृष्टि का बाप ज्यादा पावरफुल हीरो पार्टधारी है ना? तो पावरफुल है तो सहज होता है। क्योंकि मुकर्रर रथ है। समझाना सहज होता है तो जिनको समझाते हैं उनको जल्दी पकड़ सकते हैं कि नहीं? हँ? नहीं? पकड़ सकते हैं। तुम बच्चों को थोड़ी मुश्किलात होती है। किस बात में? हँ? पकड़-धकड़ करने में मुश्किलात होती है। तो तभी बाबा कहते हैं क्या करो? हँ? क्या करो? बिल्कुल प्रैक्टिस करते रहो। किस बात की? हँ? पकड़-धकड़ करने की प्रैक्टिस करते रहो। आत्मा बनो या न बनो? हँ? नंबरवार आत्मा बच्चे हैं तो क्या करना चाहिए आत्माओं को? अव्वल नंबर, दोयम नंबर, ऊँचे नंबर की आत्मा बनना चाहिए माला में या नीचे नंबर का मणका बनना चाहिए? ऊँचे नंबर का बनना चाहिए। प्रैक्टिस करो। बिल्कुल मैं आत्मा हूँ। बिल्कुल माने? एकदम आत्मा। देह भान का, मन-बुद्धि में नाम-निशान न आए। शरीर नहीं हूँ। मैं आत्मा हूँ। तो जैसे कि मैं भाई को समझाता हूँ। हँ? किसको समझाता हूँ? ऐसे नहीं; क्या? इस देह के संबंधी को समझाता हूँ। नहीं। देह के संबंधियों में भाई भी होते हैं। भाई को समझाता हूँ। नहीं। किसको समझाता हूँ? मैं आत्मा मेरा बाप आत्मा तो ये जिसको समझाता हूँ वो भी? उसकी भृकुटि के मध्य में आत्मा को देखकरके समझाना है। ये नहीं उनकी आँखों में आँखें डाल दो। क्या? हाँ, बस बातें बतियाते रहो। वो वाद-विवाद करना शुरू कर दो। नहीं। भाई को समझाता हूँ। और क्या समझाता हूँ? जो बाप मुझे समझाते हैं वो ही बात समझाता हूँ। दूसरी बात मिक्स करके, अपनी मनमत मिक्स कर दूं या और मनुष्यों की मत को मिक्स कर दूं या शास्त्रों की बातों को मिक्स कर दूं, सो नहीं।
बाप मुझे समझाते हैं। क्या? कि मैं शास्त्रों का सार बताता हूँ। हँ? अरे, फसल काटी जाती है ना? तो उसको, फसल को भूसा बनाया जाता है मसल-मसल के। बनाते हैं ना? तो भूसे में सार भी है, दाना भी है और भूसा बहुत है। है कि नहीं? बहुत भूसा है। तो बाप मुझे क्या समझाते हैं? दानों की बात समझाते हैं या भूसा की बात समझाते हैं? क्या समझाते हैं? हाँ, 500-700 करोड़ तो भूसा है। उसमें से क्या, किन आत्माओं की हिस्ट्री बताते हैं? हाँ, खास-खास की हिस्ट्री बताय देते हैं। अरे, ये सृष्टि चक्र बनवाया साक्षात्कार से; हँ? झाड़ का चित्र बनवाया। तो उसमें खास-खास धरमपिताओं को दिखाया ना? हँ? हाँ।
तो बाप मुझे सार-सार आत्माओं, सार-सार आत्माओं की बात समझाते हैं। हँ? बाप क्या है? अरे, बाप बड़ा साधु है कि नहीं? साधु माने साधना करने वाला, इन्द्रियों को साधने वाला। कौनसा बाप? आत्माओं का? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। हाँ, जिसमें आत्माओं का बाप, सुप्रीम सोल, हैविनली गॉड फादर प्रवेश करते हैं वो बाप जो मुझे समझाते हैं, हँ, वो मैं भाई को; भाई माने कौन? देह के भाई को नहीं, आत्मा के भाई को। अच्छा, स्त्री चोले के रूप में बैठा है तो भी क्या समझें? ये आत्मा है; हमारा भाई है। समझा ना? तुम भाई है ना हमारा? ये बुद्धि में बैठा दो। जिसको समझाते हो, क्या बैठा दो? कि हम हैं आत्मा, तुम हो आत्मा, आपस में भाई-भाई। गीत गाके नहीं कि तबला बजाया, सारंगी बजाई, ढ़ोल मजीरा बजाया। हं? तथाकथित ब्रह्माकुमारियां करती हैं ना – हम हैं आत्मा, तुम हो आत्मा, आपस में भाई-भाई। नाचते जाते हैं, ढ़ोल-मजीरा बजाते जाते हैं। नहीं। क्या? अंदर से, हँ, ये धारणा करनी है। क्या? क्या धारणा करनी है? कि प्रैक्टिस ऐसी पक्की हो कि हम अपन को भी आत्मा समझें और जिसको समझा रहे हैं उसको भी क्या वायब्रेशन आवे? हँ? आत्मा का वायब्रेशन आवे या देह भान का वायब्रेशन आवे? हँ? और समझाते-समझाते आँख लाल-पीली करने लगे तो क्या उसको वायब्रेशन आएगा? हँ? देहभान का वायब्रेशन आएगा ना? हाँ। तो ऐसे समझाना है। कैसे? कि तुम हमारा क्या हो? आत्मा-आत्मा भाई-भाई हो।
बाप जो आत्माओं का सभी का बाप है, हँ, वो बाप बैठकरके भाइयों को समझाते हैं। हँ? किसको समझाते हैं? बाप किसको समझाते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) भाइयों को? कौनसा बाप? कौनसा बाप भाइयों को समझाते हैं? अरे, जल्दी एक अक्षर लिख दो। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) शिव बाप भाईयों को, ढ़ेर सारे भाईयों को समझाते हैं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जो 500-700 करोड़ मनुष्यों का बाप है ना, हाँ, वो आत्मिक स्थिति में स्थिर हो तो भाईयों को समझाए। भाई समझे अपन को और दूसरों को भी भाई के रूप में देखे। तो बाप जो है वो आत्माओं का सभी का बाप है। कौनसी सभी आत्माओं का? सभी आत्माओं का वो बाप बैठकरके भाइयों को समझाते हैं। भाईयों का तो इसका मतलब है कि सुप्रीम सोल नहीं समझाता है। सुप्रीम सोल किसको समझाता है पहले? एक को समझाता है या ढ़ेरों को समझाता है? एक को समझाता है। एक की बुद्धि में बात बैठती है, हँ, और फिर जो एक समझ लेता है मनुष्य सृष्टि का बाप मुकर्रर रथधारी, अर्जुन कहो, हँ, तो वो फिर सबको बैठकरके समझाता है। अरे, गीता में भी भगवान ने किसके नज़दीक बैठके सुनाया? एक के या सबके नज़दीक बैठके सुनाया? हाँ, एक के नज़दीक बैठके सुनाया।
तो सन शोज़ फादर। जो बच्चे बने होंगे वो क्या करेंगे? हँ? बाप को प्रत्यक्ष करेंगे। फादर शोज़ सन्स। जो बाप है किसको प्रत्यक्ष करेगा? हँ? बच्चों को प्रत्यक्ष। सन माने, सन्स माने बच्चे। हाँ। तो समझ में आया कौनसा फादर बच्चों को प्रत्यक्ष करेगा? अरे, फादर तो बेहद के दो हैं ना, तो बच्चों को कौनसा प्रत्यक्ष करेगा? हँ? फिर ऊपर नीचे देखने लगे। एक अक्षर लिखो। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, मनुष्य सृष्टि का जो बाप है वो फिर अनेकों बच्चों को प्रत्यक्ष करेगा। और आत्माओं का जो बाप है वो सिर्फ एक में प्रवेश करके मुकर्रर रूप से, हाँ, लंबे समय तक मुकर्रर रूप से प्रवेश करके उसको समझाता है। तो सन शोज़ फादर किसको? ब्रदर्स को। क्या? समझा? एक ब्रदर को या ब्रदर्स को? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, अनेकों ब्रदर्स हैं। आत्मा-आत्मा भाई-भाई हैं सृष्टि रूपी रंगमंच पर, हँ, पार्ट बजाने वाले हैं। हाँ, बाप आलराउंड पार्ट बजाने वाला और बच्चे नंबरवार? नंबरवार इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मनुष्य सृष्टि में आते रहते हैं ना? हँ? कलियुग के अंत में भी आएंगे कि नहीं? हँ? वो भी भाई नहीं हैं? किसके भाई? हँ? हाँ, मनुष्य सृष्टि का जो बाप है प्रजापिता उसके भाई ही तो हैं।
तो ये क्या है बच्चे? (किसी ने कुछ कहा।) तो निश्चय रखना पड़ता है। क्या? कि मैं क्या हूँ? मैं आत्मा हूँ। अच्छी तरह से। अब इसमें कोई तो डिफिकल्टी है ना? क्या डिफिकल्टी है? हँ? कि हर समय आत्मा याद रहे डिफिकल्टी क्या है? हँ? तो इतना बड़ा भारी पद मिलता है। कितना बड़ा भारी पद? हँ? डिफिकल्टी इतनी है तो भारी पद क्या मिलता है अगर डिफिकल्टी को क्रॉस कर लिया तो? लो, पद ही भूल गए। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, विश्व का मालिक बनता है। हाँ। तो बाप तो कहते हैं; क्या? मुश्किल को सहज करने वाला कौन गाया हुआ है भक्तिमार्ग में? भगवान गाया हुआ है ना? तो भगवान बाप आए हुए हैं। ऐसे नहीं समझकरके हिम्मत हार के बैठना है (कि) अरे, ये तो बड़ी ऊँची मंजिल है। क्या? इतना कौन कर पाएगा? देखेंगे कौन-कौन कर पाएंगे, तब हम भी कर लेंगे। ऐसे नहीं। क्या? जो बाप का सहयोगी बन करके हिम्मत करेंगे तो हिम्मते बच्चे मददे बाप जरूर बनता है। तो इतना भारी पद मिलता है तो जरूर तो कुछ तो होगा ना? हँ? क्या कुछ होगा? अरे, कुछ डिफिकल्टी आएगी या नहीं आएगी? हां।
A night class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the sixth, seventh line of the third page was – Son shows Father, Father shows son. So, who is powerful? Is the Father powerful or are the children more powerful? So, who will complete their task earlier? Hm? What is the task? Hm? To reveal the children. The Father first reveals the children in front of the world. Then the task of the children is, son; it is because 2-4 sons will not be able to do it together. What should we do? We should be united. A rosary should be formed. Will you be able to reveal if you are scattered? You will not be able to. So, if you unite in the rosary-like gathering, hm, and if you get bound with one in the one thread of love, then what will happen? You will be able to reveal the Father in front of the world. So, the Father says – You are children, aren’t you? You all are children; you have a child-like intellect. Child, you are a soul, aren’t you? Yes, you indeed are souls. Baba also says – Consider yourself to be a soul. And sit and explain everyone in this manner. What? That you all are numberwise souls.
So, to consider yourself to be a soul and talk like this. Hm? The Father and the children. It is easy for the Father to explain. Hm? Why? Why is it easy for the Father? Hm? Arey, that Father of the human world is a more powerful hero actor, isn’t he? So, when he is powerful, it is easy. It is because he is the permanent Chariot. It is easy to explain; so, is it easy or not to grasp for those to whom he explains? Hm? No? They can grasp. You children face a little difficulty. In which topic? Hm? You face difficulty in grasping. So, that is why Baba says – What should you do? Hm? What should you do? Keep on practicing completely. In which topic? Hm? Keep on practicing to grasp. Should you become a soul or not? Hm? When the children are numberwise, so, what should the souls do? Should you become number one, number two, higher number soul in the rosary or should you become a bead of lower number? You should become one of high number. Practice. I am completely a soul. What is meant by completely? Full soul. There shouldn’t emerge any name or trace of body consciousness in the mind and intellect. I am not a body. I am a soul. So, it is as if I explain to the brother. Hm? To whom do I explain? It is not as if; what? I explain to the relative of this body. No. Brother is also included among the relatives of the body. I explain to the brother. No. To whom do I explain? I am a soul, my Father is a soul; so, what is the one to whom I explain, too? You should explain by seeing the soul in the middle of his bhrikuti (middle of forehead between the eyebrows). It is not as if you put your eyes in his eyes. What? Yes, you just go on speaking topics. You start arguing. No. I explain to the brother. And what do I explain? I explain the same topic that the Father explains to me. By mixing another topic, if I explain the opinion of my mind or if I mix the opinion of the human beings or if I mix the topics of the scriptures, that shouldn’t happen.
The Father explains to me. What? That I narrate the essence of the scriptures. Hm? Arey, crop is cut, isn’t it? So, it, the crop is converted to hay by rubbing it. You prepare, don’t you? So, there is essence also, the grain also in the hay and there is a lot of hay. Is it there or not? There is a lot of hay. So, what does the Father explain to me? Does He explain the topic of grains or does He explain the topic of hay? What does He explain? Yes, 500-700 crores are hay. From among it, what, the history of which souls does He narrate? Yes, He narrates the history of the special ones. Arey, this world cycle was got prepared through visions; Hm? The picture of the Tree was got prepared. So, special founders of religions were shown in it, were they not? Hm? Yes.
So, the Father explains the topic of the essence form souls, the essence form souls. Hm? What is the Father? Arey, is the Father a big sage (saadhu) or not? Saadhu means the one who does saadhnaa (penance), the one who controls the organs. Which Father? Is it the one of souls? (Someone said something.) Yes. Yes, the one in whom the Father of souls, the Supreme Soul, the Heavenly God Father enters, that Father who explains to me, hm, I, to the brother; whom does the brother refer to? Not to the brother of the body, to the brother of the soul. Achcha, even if he is sitting in a female body, what should we think? This is a soul; He is our brother. You have understood, haven’t you? You are my brother, aren’t you? Make this sit in the intellect. The one to whom you explain, what should you make to sit [in his intellect]? That I am a soul, you are a soul, we are brothers. Not by singing a song that you play the tablaa, the sarangi, dhol-majeera (musical instruments). Hm? The so-called Brahmakumaris do, don’t they? I am a soul, you are a soul, we are brothers. They go on dancing; they go on playing dhol-majeera. No. What? You have to inculcate this from inside. What? What should you inculcate? That the practice should be so firm that we should consider ourselves also a soul and what vibrations should the person to whom we are explaining also get? Hm? Should he get the vibration of a soul or should he get the vibration of body consciousness? Hm? And while explaining if you turn your eyes red and yellow [in anger], then what is the vibration that he will get? Hm? He will get the vibration of body consciousness, will he not? Yes. So, you have to explain like this. How? That what are you in relation to me? You are a soul, a brother.
The Father of souls, who is everyone’s Father, hm, that Father sits and explains to the brothers. Hm? To whom does He explain? To whom does the Father explain? (Someone said something.) To the brothers? Which Father? Which Father explains to the brothers? Arey, write quickly in an alphabet. Hm? (Someone said something.) Does Father Shiv explain to the brothers, to numerous brothers? Hm? (Someone said something.) Yes, the Father of 500-700 crore human beings, yes, when he becomes constant in the soul conscious stage, then he will explain to the brothers. He should consider himself to be a brother and should see others also as a brother. So, the Father of the souls is the Father of everyone. Of which all souls? That Father of all the souls sits and explains to the brothers. To the brothers means that the Supreme Soul does not explain. To whom does the Supreme Soul explain first? Does He explain to one or does He explain to many? He explains to one. The topic sits in the intellect of one, hm, and then the one who understands, the Father of the human world, the permanent Chariot-holder, call him Arjun, then he sits and explains to everyone. Arey, even in the Gita near whom did God sit close to and narrate? Did He narrate sitting near one or many? Yes, He sat near one and explained.
So, the son shows Father. What will those who have become children do? Hm? They will reveal the Father. Father shows sons. Whom will the Father reveal? Hm? He will reveal the children. Son means, ‘sons’ means children. Yes. So, did you understand as to which Father will reveal the children? Arey, there are two unlimited fathers, aren’t they there? So, who will reveal the children? Hm? You again started looking up and down. Write one alphabet. (Someone said something.) Yes, the Father of the human world will then reveal numerous children. And the Father of the souls enters only in one in a permanent manner, yes, enters in him in a permanent manner for a long time and explains to him. So, ‘son shows Father’ whom? The brothers. What? Did you understand? One brother or many brothers? (Someone said something.) Yes, there are many brothers. There are soul form brothers on the world stage who play their parts. Yes, the Father plays allround part and children are numberwise? They keep on coming numberwise on this world stage in the human world, don’t they? Hm? Will they come in the end of the Iron Age also or not? Hm? Are they also not brothers? Whose brothers are they? Hm? Yes, they are indeed brothers of the Father of the human world, Prajapita.
So, children, what is this? (Someone said something.) So, you need to have faith. What? That what am I? I am a soul. Nicely. Well, there is some difficulty in it, isn’t it? What is the difficulty? Hm? That what is the difficulty if you want to remember the soul always? Hm? So, you get such a big, heavy post. How big, heavy? Hm? If there is so much difficulty, then what is the heavy post that you get if you cross the difficulty? Look, you forgot the post itself. (Someone said something.) Yes, he becomes the master of the world. Yes. So, the Father says; what? Who is sung as the one who makes the difficulties easy on the path of Bhakti? God is praised, isn’t He? So, God, the Father has come. You should not lose courage and sit thinking that arey, this is a very high goal. What? Who will be able to achieve that much? I will see, who all will be able to do it; then I will also do. Not like this. What? Those who become helpers of the Father and show courage, then if the children show courage, then the Father definitely becomes helper. So, when you get such a heavy post, then definitely there will be something, will it not be? Hm? What something will be there? Arey, will there be some difficulty or not? Yes.
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Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2934, दिनांक 07.07.2019
VCD 2934, dated 07.07.2019
रात्रि क्लास 29.11.1967
Night class dated 29.11.1967
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समय- 00.01-14.43
Time- 00.01-14.43
रात्रि क्लास चल रहा था – 29.11.1967. तीसरे पेज के छठी-सातवीं लाइन में बात चल रही थी - सन शोज़ फादर, फादर शोज़ सन्स। तो पावरफुल कौन है? बाप पावरफुल है या बच्चे ज्यादा पावरफुल हैं? तो कौन अपना काम जल्दी पूरा करेगा? हँ? क्या काम? हँ? बच्चों को प्रत्यक्ष करने का। संसार के सामने बाप पहले बच्चों को प्रत्यक्ष करता है। फिर बच्चों का काम है सन; क्योंकि दो-चार सन्स तो मिलकरके नहीं कर पाएंगे। क्या करें? संगठित हो जाएं। माला बने। बिखरे हुए रहेंगे तो प्रत्यक्ष कर पाएंगे? नहीं कर पाएंगे। तो माला रूपी संगठन में संगठित बनेंगे, हँ, और एक स्नेह के सूत्र के धागे में एक के साथ बंधेंगे तो फिर क्या होगा? बाप को संसार के सामने प्रत्यक्ष कर सकेंगे। तो बाप कहते हैं तुम बच्चे हो ना? तुम सभी बच्चे हो, बच्चाबुद्धि हो। बच्चू, आत्मा हो ना? हाँ, आत्मा तो हो। बाबा भी कहते हैं अपन को आत्मा समझो। और सबको बैठकरके ऐसी तरह से समझाओ। क्या? कि तुम सब नंबरवार आत्मा हो।
तो आत्मा अपन को समझना और ऐसे बात करना। हँ? बाप को और बच्चे को। बाप को समझाना सहज होता है। हँ? क्यों? बाप को सहज क्यों होता है? हँ? अरे, वो मनुष्य सृष्टि का बाप ज्यादा पावरफुल हीरो पार्टधारी है ना? तो पावरफुल है तो सहज होता है। क्योंकि मुकर्रर रथ है। समझाना सहज होता है तो जिनको समझाते हैं उनको जल्दी पकड़ सकते हैं कि नहीं? हँ? नहीं? पकड़ सकते हैं। तुम बच्चों को थोड़ी मुश्किलात होती है। किस बात में? हँ? पकड़-धकड़ करने में मुश्किलात होती है। तो तभी बाबा कहते हैं क्या करो? हँ? क्या करो? बिल्कुल प्रैक्टिस करते रहो। किस बात की? हँ? पकड़-धकड़ करने की प्रैक्टिस करते रहो। आत्मा बनो या न बनो? हँ? नंबरवार आत्मा बच्चे हैं तो क्या करना चाहिए आत्माओं को? अव्वल नंबर, दोयम नंबर, ऊँचे नंबर की आत्मा बनना चाहिए माला में या नीचे नंबर का मणका बनना चाहिए? ऊँचे नंबर का बनना चाहिए। प्रैक्टिस करो। बिल्कुल मैं आत्मा हूँ। बिल्कुल माने? एकदम आत्मा। देह भान का, मन-बुद्धि में नाम-निशान न आए। शरीर नहीं हूँ। मैं आत्मा हूँ। तो जैसे कि मैं भाई को समझाता हूँ। हँ? किसको समझाता हूँ? ऐसे नहीं; क्या? इस देह के संबंधी को समझाता हूँ। नहीं। देह के संबंधियों में भाई भी होते हैं। भाई को समझाता हूँ। नहीं। किसको समझाता हूँ? मैं आत्मा मेरा बाप आत्मा तो ये जिसको समझाता हूँ वो भी? उसकी भृकुटि के मध्य में आत्मा को देखकरके समझाना है। ये नहीं उनकी आँखों में आँखें डाल दो। क्या? हाँ, बस बातें बतियाते रहो। वो वाद-विवाद करना शुरू कर दो। नहीं। भाई को समझाता हूँ। और क्या समझाता हूँ? जो बाप मुझे समझाते हैं वो ही बात समझाता हूँ। दूसरी बात मिक्स करके, अपनी मनमत मिक्स कर दूं या और मनुष्यों की मत को मिक्स कर दूं या शास्त्रों की बातों को मिक्स कर दूं, सो नहीं।
बाप मुझे समझाते हैं। क्या? कि मैं शास्त्रों का सार बताता हूँ। हँ? अरे, फसल काटी जाती है ना? तो उसको, फसल को भूसा बनाया जाता है मसल-मसल के। बनाते हैं ना? तो भूसे में सार भी है, दाना भी है और भूसा बहुत है। है कि नहीं? बहुत भूसा है। तो बाप मुझे क्या समझाते हैं? दानों की बात समझाते हैं या भूसा की बात समझाते हैं? क्या समझाते हैं? हाँ, 500-700 करोड़ तो भूसा है। उसमें से क्या, किन आत्माओं की हिस्ट्री बताते हैं? हाँ, खास-खास की हिस्ट्री बताय देते हैं। अरे, ये सृष्टि चक्र बनवाया साक्षात्कार से; हँ? झाड़ का चित्र बनवाया। तो उसमें खास-खास धरमपिताओं को दिखाया ना? हँ? हाँ।
तो बाप मुझे सार-सार आत्माओं, सार-सार आत्माओं की बात समझाते हैं। हँ? बाप क्या है? अरे, बाप बड़ा साधु है कि नहीं? साधु माने साधना करने वाला, इन्द्रियों को साधने वाला। कौनसा बाप? आत्माओं का? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। हाँ, जिसमें आत्माओं का बाप, सुप्रीम सोल, हैविनली गॉड फादर प्रवेश करते हैं वो बाप जो मुझे समझाते हैं, हँ, वो मैं भाई को; भाई माने कौन? देह के भाई को नहीं, आत्मा के भाई को। अच्छा, स्त्री चोले के रूप में बैठा है तो भी क्या समझें? ये आत्मा है; हमारा भाई है। समझा ना? तुम भाई है ना हमारा? ये बुद्धि में बैठा दो। जिसको समझाते हो, क्या बैठा दो? कि हम हैं आत्मा, तुम हो आत्मा, आपस में भाई-भाई। गीत गाके नहीं कि तबला बजाया, सारंगी बजाई, ढ़ोल मजीरा बजाया। हं? तथाकथित ब्रह्माकुमारियां करती हैं ना – हम हैं आत्मा, तुम हो आत्मा, आपस में भाई-भाई। नाचते जाते हैं, ढ़ोल-मजीरा बजाते जाते हैं। नहीं। क्या? अंदर से, हँ, ये धारणा करनी है। क्या? क्या धारणा करनी है? कि प्रैक्टिस ऐसी पक्की हो कि हम अपन को भी आत्मा समझें और जिसको समझा रहे हैं उसको भी क्या वायब्रेशन आवे? हँ? आत्मा का वायब्रेशन आवे या देह भान का वायब्रेशन आवे? हँ? और समझाते-समझाते आँख लाल-पीली करने लगे तो क्या उसको वायब्रेशन आएगा? हँ? देहभान का वायब्रेशन आएगा ना? हाँ। तो ऐसे समझाना है। कैसे? कि तुम हमारा क्या हो? आत्मा-आत्मा भाई-भाई हो।
बाप जो आत्माओं का सभी का बाप है, हँ, वो बाप बैठकरके भाइयों को समझाते हैं। हँ? किसको समझाते हैं? बाप किसको समझाते हैं? (किसी ने कुछ कहा।) भाइयों को? कौनसा बाप? कौनसा बाप भाइयों को समझाते हैं? अरे, जल्दी एक अक्षर लिख दो। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) शिव बाप भाईयों को, ढ़ेर सारे भाईयों को समझाते हैं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, जो 500-700 करोड़ मनुष्यों का बाप है ना, हाँ, वो आत्मिक स्थिति में स्थिर हो तो भाईयों को समझाए। भाई समझे अपन को और दूसरों को भी भाई के रूप में देखे। तो बाप जो है वो आत्माओं का सभी का बाप है। कौनसी सभी आत्माओं का? सभी आत्माओं का वो बाप बैठकरके भाइयों को समझाते हैं। भाईयों का तो इसका मतलब है कि सुप्रीम सोल नहीं समझाता है। सुप्रीम सोल किसको समझाता है पहले? एक को समझाता है या ढ़ेरों को समझाता है? एक को समझाता है। एक की बुद्धि में बात बैठती है, हँ, और फिर जो एक समझ लेता है मनुष्य सृष्टि का बाप मुकर्रर रथधारी, अर्जुन कहो, हँ, तो वो फिर सबको बैठकरके समझाता है। अरे, गीता में भी भगवान ने किसके नज़दीक बैठके सुनाया? एक के या सबके नज़दीक बैठके सुनाया? हाँ, एक के नज़दीक बैठके सुनाया।
तो सन शोज़ फादर। जो बच्चे बने होंगे वो क्या करेंगे? हँ? बाप को प्रत्यक्ष करेंगे। फादर शोज़ सन्स। जो बाप है किसको प्रत्यक्ष करेगा? हँ? बच्चों को प्रत्यक्ष। सन माने, सन्स माने बच्चे। हाँ। तो समझ में आया कौनसा फादर बच्चों को प्रत्यक्ष करेगा? अरे, फादर तो बेहद के दो हैं ना, तो बच्चों को कौनसा प्रत्यक्ष करेगा? हँ? फिर ऊपर नीचे देखने लगे। एक अक्षर लिखो। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, मनुष्य सृष्टि का जो बाप है वो फिर अनेकों बच्चों को प्रत्यक्ष करेगा। और आत्माओं का जो बाप है वो सिर्फ एक में प्रवेश करके मुकर्रर रूप से, हाँ, लंबे समय तक मुकर्रर रूप से प्रवेश करके उसको समझाता है। तो सन शोज़ फादर किसको? ब्रदर्स को। क्या? समझा? एक ब्रदर को या ब्रदर्स को? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, अनेकों ब्रदर्स हैं। आत्मा-आत्मा भाई-भाई हैं सृष्टि रूपी रंगमंच पर, हँ, पार्ट बजाने वाले हैं। हाँ, बाप आलराउंड पार्ट बजाने वाला और बच्चे नंबरवार? नंबरवार इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मनुष्य सृष्टि में आते रहते हैं ना? हँ? कलियुग के अंत में भी आएंगे कि नहीं? हँ? वो भी भाई नहीं हैं? किसके भाई? हँ? हाँ, मनुष्य सृष्टि का जो बाप है प्रजापिता उसके भाई ही तो हैं।
तो ये क्या है बच्चे? (किसी ने कुछ कहा।) तो निश्चय रखना पड़ता है। क्या? कि मैं क्या हूँ? मैं आत्मा हूँ। अच्छी तरह से। अब इसमें कोई तो डिफिकल्टी है ना? क्या डिफिकल्टी है? हँ? कि हर समय आत्मा याद रहे डिफिकल्टी क्या है? हँ? तो इतना बड़ा भारी पद मिलता है। कितना बड़ा भारी पद? हँ? डिफिकल्टी इतनी है तो भारी पद क्या मिलता है अगर डिफिकल्टी को क्रॉस कर लिया तो? लो, पद ही भूल गए। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, विश्व का मालिक बनता है। हाँ। तो बाप तो कहते हैं; क्या? मुश्किल को सहज करने वाला कौन गाया हुआ है भक्तिमार्ग में? भगवान गाया हुआ है ना? तो भगवान बाप आए हुए हैं। ऐसे नहीं समझकरके हिम्मत हार के बैठना है (कि) अरे, ये तो बड़ी ऊँची मंजिल है। क्या? इतना कौन कर पाएगा? देखेंगे कौन-कौन कर पाएंगे, तब हम भी कर लेंगे। ऐसे नहीं। क्या? जो बाप का सहयोगी बन करके हिम्मत करेंगे तो हिम्मते बच्चे मददे बाप जरूर बनता है। तो इतना भारी पद मिलता है तो जरूर तो कुछ तो होगा ना? हँ? क्या कुछ होगा? अरे, कुछ डिफिकल्टी आएगी या नहीं आएगी? हां।
A night class dated 29.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the sixth, seventh line of the third page was – Son shows Father, Father shows son. So, who is powerful? Is the Father powerful or are the children more powerful? So, who will complete their task earlier? Hm? What is the task? Hm? To reveal the children. The Father first reveals the children in front of the world. Then the task of the children is, son; it is because 2-4 sons will not be able to do it together. What should we do? We should be united. A rosary should be formed. Will you be able to reveal if you are scattered? You will not be able to. So, if you unite in the rosary-like gathering, hm, and if you get bound with one in the one thread of love, then what will happen? You will be able to reveal the Father in front of the world. So, the Father says – You are children, aren’t you? You all are children; you have a child-like intellect. Child, you are a soul, aren’t you? Yes, you indeed are souls. Baba also says – Consider yourself to be a soul. And sit and explain everyone in this manner. What? That you all are numberwise souls.
So, to consider yourself to be a soul and talk like this. Hm? The Father and the children. It is easy for the Father to explain. Hm? Why? Why is it easy for the Father? Hm? Arey, that Father of the human world is a more powerful hero actor, isn’t he? So, when he is powerful, it is easy. It is because he is the permanent Chariot. It is easy to explain; so, is it easy or not to grasp for those to whom he explains? Hm? No? They can grasp. You children face a little difficulty. In which topic? Hm? You face difficulty in grasping. So, that is why Baba says – What should you do? Hm? What should you do? Keep on practicing completely. In which topic? Hm? Keep on practicing to grasp. Should you become a soul or not? Hm? When the children are numberwise, so, what should the souls do? Should you become number one, number two, higher number soul in the rosary or should you become a bead of lower number? You should become one of high number. Practice. I am completely a soul. What is meant by completely? Full soul. There shouldn’t emerge any name or trace of body consciousness in the mind and intellect. I am not a body. I am a soul. So, it is as if I explain to the brother. Hm? To whom do I explain? It is not as if; what? I explain to the relative of this body. No. Brother is also included among the relatives of the body. I explain to the brother. No. To whom do I explain? I am a soul, my Father is a soul; so, what is the one to whom I explain, too? You should explain by seeing the soul in the middle of his bhrikuti (middle of forehead between the eyebrows). It is not as if you put your eyes in his eyes. What? Yes, you just go on speaking topics. You start arguing. No. I explain to the brother. And what do I explain? I explain the same topic that the Father explains to me. By mixing another topic, if I explain the opinion of my mind or if I mix the opinion of the human beings or if I mix the topics of the scriptures, that shouldn’t happen.
The Father explains to me. What? That I narrate the essence of the scriptures. Hm? Arey, crop is cut, isn’t it? So, it, the crop is converted to hay by rubbing it. You prepare, don’t you? So, there is essence also, the grain also in the hay and there is a lot of hay. Is it there or not? There is a lot of hay. So, what does the Father explain to me? Does He explain the topic of grains or does He explain the topic of hay? What does He explain? Yes, 500-700 crores are hay. From among it, what, the history of which souls does He narrate? Yes, He narrates the history of the special ones. Arey, this world cycle was got prepared through visions; Hm? The picture of the Tree was got prepared. So, special founders of religions were shown in it, were they not? Hm? Yes.
So, the Father explains the topic of the essence form souls, the essence form souls. Hm? What is the Father? Arey, is the Father a big sage (saadhu) or not? Saadhu means the one who does saadhnaa (penance), the one who controls the organs. Which Father? Is it the one of souls? (Someone said something.) Yes. Yes, the one in whom the Father of souls, the Supreme Soul, the Heavenly God Father enters, that Father who explains to me, hm, I, to the brother; whom does the brother refer to? Not to the brother of the body, to the brother of the soul. Achcha, even if he is sitting in a female body, what should we think? This is a soul; He is our brother. You have understood, haven’t you? You are my brother, aren’t you? Make this sit in the intellect. The one to whom you explain, what should you make to sit [in his intellect]? That I am a soul, you are a soul, we are brothers. Not by singing a song that you play the tablaa, the sarangi, dhol-majeera (musical instruments). Hm? The so-called Brahmakumaris do, don’t they? I am a soul, you are a soul, we are brothers. They go on dancing; they go on playing dhol-majeera. No. What? You have to inculcate this from inside. What? What should you inculcate? That the practice should be so firm that we should consider ourselves also a soul and what vibrations should the person to whom we are explaining also get? Hm? Should he get the vibration of a soul or should he get the vibration of body consciousness? Hm? And while explaining if you turn your eyes red and yellow [in anger], then what is the vibration that he will get? Hm? He will get the vibration of body consciousness, will he not? Yes. So, you have to explain like this. How? That what are you in relation to me? You are a soul, a brother.
The Father of souls, who is everyone’s Father, hm, that Father sits and explains to the brothers. Hm? To whom does He explain? To whom does the Father explain? (Someone said something.) To the brothers? Which Father? Which Father explains to the brothers? Arey, write quickly in an alphabet. Hm? (Someone said something.) Does Father Shiv explain to the brothers, to numerous brothers? Hm? (Someone said something.) Yes, the Father of 500-700 crore human beings, yes, when he becomes constant in the soul conscious stage, then he will explain to the brothers. He should consider himself to be a brother and should see others also as a brother. So, the Father of the souls is the Father of everyone. Of which all souls? That Father of all the souls sits and explains to the brothers. To the brothers means that the Supreme Soul does not explain. To whom does the Supreme Soul explain first? Does He explain to one or does He explain to many? He explains to one. The topic sits in the intellect of one, hm, and then the one who understands, the Father of the human world, the permanent Chariot-holder, call him Arjun, then he sits and explains to everyone. Arey, even in the Gita near whom did God sit close to and narrate? Did He narrate sitting near one or many? Yes, He sat near one and explained.
So, the son shows Father. What will those who have become children do? Hm? They will reveal the Father. Father shows sons. Whom will the Father reveal? Hm? He will reveal the children. Son means, ‘sons’ means children. Yes. So, did you understand as to which Father will reveal the children? Arey, there are two unlimited fathers, aren’t they there? So, who will reveal the children? Hm? You again started looking up and down. Write one alphabet. (Someone said something.) Yes, the Father of the human world will then reveal numerous children. And the Father of the souls enters only in one in a permanent manner, yes, enters in him in a permanent manner for a long time and explains to him. So, ‘son shows Father’ whom? The brothers. What? Did you understand? One brother or many brothers? (Someone said something.) Yes, there are many brothers. There are soul form brothers on the world stage who play their parts. Yes, the Father plays allround part and children are numberwise? They keep on coming numberwise on this world stage in the human world, don’t they? Hm? Will they come in the end of the Iron Age also or not? Hm? Are they also not brothers? Whose brothers are they? Hm? Yes, they are indeed brothers of the Father of the human world, Prajapita.
So, children, what is this? (Someone said something.) So, you need to have faith. What? That what am I? I am a soul. Nicely. Well, there is some difficulty in it, isn’t it? What is the difficulty? Hm? That what is the difficulty if you want to remember the soul always? Hm? So, you get such a big, heavy post. How big, heavy? Hm? If there is so much difficulty, then what is the heavy post that you get if you cross the difficulty? Look, you forgot the post itself. (Someone said something.) Yes, he becomes the master of the world. Yes. So, the Father says; what? Who is sung as the one who makes the difficulties easy on the path of Bhakti? God is praised, isn’t He? So, God, the Father has come. You should not lose courage and sit thinking that arey, this is a very high goal. What? Who will be able to achieve that much? I will see, who all will be able to do it; then I will also do. Not like this. What? Those who become helpers of the Father and show courage, then if the children show courage, then the Father definitely becomes helper. So, when you get such a heavy post, then definitely there will be something, will it not be? Hm? What something will be there? Arey, will there be some difficulty or not? Yes.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2935, दिनांक 08.07.2019
VCD 2935, dated 08.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning Class dated 30.11.1967
VCD-2935-extracts-Bilingual
समय- 00.01-21.02
Time- 00.01-21.02
आज का प्रातः क्लास है – 30 नवम्बर, 1967. गुरुवार को रिकार्ड चला है – तुम्हें पाके हमने जहाँ पा लिया है। जमीं तो जमीं आसमां पा लिया है। हँ? गीत तो बनाया। क्या कोई ने प्रैक्टिकल अनुभaव भी किया? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) किया? अच्छा? सारी जमीन पा ली और आसमान भी पा लिया। ऐसा अनुभव किया? हँ? ये तो गीत बनाने वालों की कल्पना है। प्रैक्टिकल में तो ऐसा किसी ने अनुभव नहीं किया। किया? हँ? और किसे पाके पा लिया जहाँ? हँ? अरे? (किसी ने कुछ कहा।) शिवबाबा पा लिया? अच्छा? शिवबाबा जिसको पा लिया वो इस दुनिया में रहता है हमेशा? जमीन में रहता है? हँ? इस दुनिया को छोड़ के इस दुनिया से परे जाता है? हँ? आत्मलोक में चला जाता है? चला तो जाता है लेकिन ये प्रैक्टिकल अनुभव कराके जाता है या ऐसे ही चला जाता है? हँ? प्रैक्टिकल अनुभव कराके जाता है। अनुभव करने वाले नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं।
बोला – मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने; अनेक बच्चों ने ये गीत सुना। और अभी तो थोड़े हैं। परन्तु ये अनेकानेक बच्चे हो जाएंगे। क्योंकि इस समय में तो बच्चे बने ही हो प्रैक्टिकल में जिसको कहा जाता है। परन्तु फिर भी तो इनको प्रजापिता ब्रह्मा को जानते तो सभी हैं। भक्तिमार्ग में भले प्रजापिता नहीं कहते हैं, प्रजापति कहते हैं। वो तो ठीक है। जन्म देता है पहले तो पिता। हँ? सारी प्रजा का पिता क्योंकि जो भी मनुष्य मात्र हैं उनका जन्मदाता ब्रह्मा को ही तो मानते हैं। वो ब्रह्मा कौनसा? हँ? प्रजापिता ब्रह्मा। क्योंकि नाम ही है इनका प्रजापिता। इनका। इनका माने किनका? एक का या ज्यादा का? हँ? इनका। (किसी ने कुछ कहा।) दो का? दो प्रजापिता? सारी मनुष्य सृष्टि का पिता एक या दो-चार? एक। तो कितनी प्रजा? अरे, प्रजा तो बहुत हैं, ढ़ेर हैं क्योंकि सब धरमवाले प्रजा हैं। प्रजा का अर्थ ही है प्रकष्ट रूपेण जायते। जिनका प्रकष्ट रूप से जनम हुआ। मानसी सृष्टि से जनम हुआ ना? तो मन को कंट्रोल किया होगा। हँ? मन तो बहुत कंट्रोल से बाहर रहता है। बड़ा चंचल है। हँ? इन्द्रियां में भी इतनी चंचलता आती है लेकिन मन तो इन्द्रियों से भी बड़ा प्रबल है।
तो सब धरमवाले इनको जरूर मानेंगे। क्या? क्या मानेंगे? प्रजापिता। फिर ‘इनको’ कह दिया। ‘इनको’ क्यों कह दिया? ‘इसको’ कहना चाहिए। हँ? और ‘इसको’ भी कहें तो सन् 67 में जो बाजू में बैठा है, जिसको ‘इसको’ कहें तो वो तो टाइटलधारी है। ओरिजिनल तो नहीं है। टाइटल कबसे मिला? हँ? टाइटल भी ये तो बाद में जबसे मुरली चलाई कि ‘प्रजापिता’ एड करना चाहिए तुम बच्चों को लिखना चाहिए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय। तबसे ‘प्रजापिता’ टाइटिल हुआ। ऐसे थोड़ेही कि सन् 47 से जबसे दादा लेखराज ब्रह्मा में मुरली चलाई तबसे ही प्रजापिता ब्रह्माकुरमारी नाम था? था? नहीं था। सिर्फ ब्रह्माकुमारी नाम ही तो था। तो फिर किसके लिए कहा, हँ, इनका नाम ही है प्रजापिता? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) शिव बाप? शिव बाप प्रजापिता है? हँ? 500-700 करोड़ प्रजा का पिता है शिव बाप? हँ? अरे, इस मनुष्य सृष्टि की 500-700 करोड़ प्रजा जो है वो तो साकारी भी है और उसमें, उनमें निराकारी आत्मा भी होती है। और जो पिता होगा वो भी तो वैसा ही होना चाहिए। कैसा? आत्मा भी निराकार हो और? शरीर से भी साकार हो। ऐसे थोड़ेही कि बाप एक तरह का और बच्चा दूसरे तरह का? हँ? बाप निराकार तो बच्चा भी निराकार। बाप साकार तो बच्चा भी साकार। अगर बाप साकार निराकार का मेल, तो बच्चे भी साकार निराकार का मेल। तो शिव को थोड़ेही कहेंगे? शिव तो निराकार है और निराकार ही रहता है। हँ? वो कभी साकारी बनता है क्या? प्रवेश करता है फिर भी देहभान में आता है क्या कि ये देह मेरी है? नहीं।
तो किसके लिए कहा कि इनका नाम है प्रजापिता? इनका कहकरके इशारा किया एक तो यज्ञ का आदि का वो पुरुष जिसको पीहू कहा जाता था। हँ? वो आत्मा जिसमें पहले-पहले प्रवेश किया तो मुकर्रर रथ हो गया। मुकर्रर रथधारी आत्मा, हँ, और दूसरा सन् 47 से फिर दादा लेखराज के द्वारा मुरली चलाई तो वो भी रथ तो हुआ। परन्तु उसको प्रजापिता नहीं कहेंगे। प्रजापिता तब कहेंगे जब वो दादा लेखराज ब्रह्मा वाली आत्मा प्रजापिता में प्रवेश करके एवरलास्टिंग बीज रूप स्टेज धारण कर ले। तो दोनों को मिलाकरके क्या कहेंगे? 500-700 करोड़ उसे अपना पिता आदम, एडम मानेंगे या नहीं मानेंगे? मानेंगे। इसलिए कहा इनका नाम है प्रजापिता।
देखो, कितनी प्रजा है! प्रजा तो बहुत है। सब धरम वाले प्रजा ही तो हैं प्रजापिता की। तो जिसने रचना जिससे रचना हुई मनुष्य मात्र की जैसे बाबा समझाते हैं ना कि भई वो दुनिया में तो होते हैं सब हद के पिता। वो भी ब्रह्मा हैं। हँ? मां हैं कि नहीं? हँ? कौन? अरे, धरमपिताएं आते हैं तो कोई में प्रवेश करते हैं ना? तो जिसमें प्रवेश करते हैं वो हो गया मां। तो ब्रह्मा भी है, पिता भी है, हर धर्म का पिता। प्रजापिता। परन्तु वो सब हद के हैं। ऐसे नहीं कि कोई उन धरमपिताओं में 500-700 करोड़ का पिता हो या 500-700 करोड़ का पिता हो या 500-700 करोड़ उसे अपना बाप मानते हों क्योंकि उनका भी सिजरा बनता है धरमपिताओं का। जो सिजरा बनता है तो कोई का, क्राइस्ट का कहेंगे 200-250 करोड़ का सिजरा बना। हँ? और मुसलमानों का भी कहेंगे। लेकिन हद का कहेंगे या बेहद का? हद का ही हुआ। हां।
तो बाबा ने समझाया कि उनका भी सरनेम, हँ, सरनेम से सिजरा बनता है हरेक का। जिसका-जिसका जो सरनेम है उनका फिर सिजरा बनता है। तो वो हो गए हद के बाप। हद के प्रजापिताएं। और ये फिर है बेहद का। नाम ही है इनका प्रजापिता। माना सारी प्रजा का पिता। अभी इन बच्चों को प्रजापिता रचते हैं। परन्तु अभी लिमिटेड में हैं। हँ? कहेंगे 5000, हँ, 10000, 2000, 1000. शुरुआत से कहेंगे ना? और कोई न भी रचे। हँ? लेकिन ये तो जरूर रचेंगे। और सारी दुनिया के मनुष्य मात्र की रचना करेंगे। तो ऐसे कोई कह सकेंगे कि इनको संतान नहीं है? नहीं। इनको तो बुद्धि में आता है कि इनका संतान तो सारी दुनिया है। क्योंकि पहले-पहले ही तो ये होते हैं ना प्रजापिता ब्रह्मा? इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर इनको कहेंगे प्रजापिता ब्रह्मा। ब्रह्मा की भी औलाद। और उनका पिता भी प्रजापिता। तो उनको फिर जो मुसलमान होते हैं वो भी तो उनको नाम देते हैं ना? क्या? आदम। आदम कह देते हैं और ब्रह्मा को बीबी कह देते हैं। अब वो किसको कहते हैं? अरे, किसको तो कहते होंगे ना? जरूर जो पहले-पहले जिनसे भाई-बहन बनते हैं वो ही तो लोग होंगे ना? तो जो भी हैं किसी न किसी भाषा में एडम-ईव, आदम-हव्वा। तो ये किसके नाम पर कहते हैं? ये भी प्रजापिता ब्रह्मा, आदम, आदि देव, आदि देवी। तो ये भी तो प्रजापिता ब्रह्मा के लिए कहेंगे ना?
तो अभी समझते हो कि इनके जो हम बनते हैं और पीछे जो, जो भी नेशनलटी होगी वो सभी इनको मानेंगे बरोबर। हँ? क्योंकि एक तो हद के पिता होते हैं। दूसरा ये बेहद का पिता। तो हद और हमेशा बेहद ये दो बातें तो होती ही हैं। क्योंकि जैसे ये बेहद का सुख देने वाला है, हँ, और वो हद के बाप हैं तो हद का सुख देने वाले। तो जानते हो बच्चे कि हम जो पुरुषार्थ करते हैं सो तो वो बेहद स्वर्ग के सुख का पुरुषार्थ करते हैं। और ये जानकरके यहां आते हो। क्या जानकरके आते हो? कि यहां हम अपनी तकदीर बनाने आए हैं। तो ये जानते हो कि हम आते हैं यहाँ बेहद के बाप के पास बेहद का सुख का वर्सा पाने के लिए। और ये बात बुद्धि में भी है कि बरोबर स्वर्ग में बेहद का सुख और नरक में फिर बेहद का दुख होता है। क्योंकि बेहद दुख भी तो आऩे वाले हैं ना बच्चे? अरे, बहुत-बहुत दुख आने वाले हैं। हाय-हाय करते रहेंगे ना बच्चे? जब मरेंगे, ये सभी होगा ना? तो सबसे अंदर के हाय और क्या कर सकते हैं? हाय राम, हाय राम।
तो ये तो बच्चे समझते हैं अभी। क्योंकि बाप ने बैठकरके सारे विश्व के आदि, मध्य, अंत का राज़ सुनाया है। और आते ही संगमयुग पर हैं। हँ? जब सृष्टि का अंत होता है तो अंत में आते हैं। परन्तु ये बैठकरके किसके लिए आते हैं? हँ? यहाँ, इस दुनिया में? तुम बच्चों को, जो भी मनुष्य सृष्टि के आदि, मध्य, अंत को नहीं जानते हैं वो ही बताने के लिए आते हैं। तो बच्चे तो बैठे हैं। और सामने बैठे हैं। सुनते हैं, पुरुषार्थ भी करते हैं। अब ये तो दोनों हुए ना बच्चे? कौन? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) अरे, ऊपरवाला कहाँ से आ गया? दोनों बच्चे हुए, दोनों हुए ना मात-पिता। दोनों हुए मात-पिता। किसके? सारी मनुष्य सृष्टि के मात और पिता। तो माता ब्रह्मा और पिता प्रजापिता। तो ये मात पिता से देखो इतने बच्चे हैं।
Today’s morning class is dated 30th November, 1967. The record played on Thursday is – Tumhe paake humne jahaan pa liya hai. Zamin to zamin aasmaan pa liya hai. (By finding you we have found the entire world. Not just the land, we have found the sky as well) Hm? A song has indeed been penned. Did anyone experience in practical as well? Hm? (Someone said something.) Did you? Achcha? You achieved the entire land as well as the sky. Did you experience so? Hm? This is the imagination of the writers of the song. Nobody experienced like this in practical. Did you? Hm? And by finding whom did you find the world? Hm? Arey? (Someone said something.) Did you get ShivBaba? Achcha? The ShivBaba whom you found, does He remain in this world forever? Does He remain on land? Hm? Does He leave this world and goes beyond this world? Hm? Does He go to the Soul World? He does go, but does He go after making you experience this in practical or does He go just like that? Hm? He goes after making you experience in practical. Those who experience are numberwise as per their purusharth.
He said – The sweet, sweet spiritual children; numerous children heard this song. And now you are a few. But these children will become numerous. It is because at this time you have become children in practical which is called; But however everyone knows this one, Prajapita Brahma. On the path of Bhakti although they do not say Prajapita, they say Prajapati. That is correct. First he gives birth, so he is a Father. Hm? The Father of the entire praja (subjects) because Brahma himself is believed to be the creator of all the human beings. Who is that Brahma? Hm? Prajapita Brahma. It is because the name of these itself is Prajapita. These (inka). ‘These’ refers to whom? To one or to more? Hm? These. (Someone said something.) To two? Two Prajapita? Is the Father of the entire human world one or two-four? One. So, how many subjects? Arey, the subjects are many, numerous because the subjects belong to all the religions. The meaning of Praja itself is ‘prakasht roopen jaayte’. Those who were born in a special manner. They were born through the thought world, were they not? So, they must have controlled the mind. Hm? The mind remains out of control. It is very inconstant. Hm? So much inconstancy comes in the organs as well, yet the mind is very strong when compared to other organs.
So, people belonging to all the religions will definitely accept these. What? What will they accept? Prajapita. Again He said ‘these’ (inko). Why did He say ‘these’? He should have said ‘this one’. Hm? And even if we say ‘this one’ (isko), then the one who is sitting beside in 1967 whom we call ‘this one’, then he is a titleholder. He is not original. Since when did he get the title? Hm? Even the title was later on ever since He narrated the Murli that you should add the word Prajapita; you children should write Prajapita Brahmakumari Ishwariya Vishwavidyalay. Since then he got the title Prajapita. It is not as if from 1947 when Murlis were narrated in Dada Lekhraj Brahma, since then the name was Prajapita Brahmakumari? Was it there? It wasn’t. The name was only Brahmakumari. So, then, for whom was it said, hm, that the name of these is Prajapita only? Hm? (Someone said something.) Father Shiv? Is Father Shiv Prajapita? Hm? Is Father Shiv the Father of 500-700 crore praja? Hm? Arey, the 500-700 crore subjects of this human world are also corporeal and in that, in them there is an incorporeal soul as well. And the Father should also be like that only. How? The soul should also be incorporeal and? The body should also be corporeal. It is not as if the Father is of one kind and the child is of another kind? Hm? If the Father is incorporeal then the child should also be incorporeal. If the Father is corporeal then the child should also be corporeal. If the Father is a combination of corporeal and incorporeal, then the children should also be a combination of corporeal and incorporeal. So, will Shiv be said to be so? Shiv is incorporeal and He remains incorporeal only. Hm? Does He ever become corporeal? Even when He enters, does He come in body consciousness that this is My body? No.
So, for whom was it said that their name is Prajapita? By uttering ‘these’ (inka), a gesture was made – one is that man of the beginning of the Yagya, who used to be called Pihu. Hm? That soul in whom He entered first of all is the permanent Chariot. The soul of the permanent Chariot. Hm. And the secondly, Murli was narrated through Dada Lekhraj from 1947; so, he is also a Chariot. But he will not be called Prajapita. He will be called Prajapita when that soul of Dada Lekhraj Brahma enters in Prajapita and attains the everlasting seed-form stage. So, what will both of them together be called? Will 500-700 crores accept him as their Father, Aadam, Adam or not? They will accept. This is why it was said that their name is Prajapita.
Look, there are so many subjects (praja). Praja are many. People belonging to all the religions are subjects of Prajapita only. So, the one who created, the one who created the human beings, just as Baba explains, doesn’t He that brother in that world all are limited fathers. They are also Brahma. Hm? Are they mothers or not? Hm? Who? Arey, when the founders of religions come, then they enter in someone, don’t they? So, the one in whom He enters is the mother. So, the Father of every religion is Brahma as well as the Father. Prajapita. But all of them are limited. It is not as if someone among those founders of religions is a Father of 500-700 crores or the Father of 500-700 crores or 500-700 crores may accept him as their Father because there is a genealogical tree (sijra) of those founders of religions also. The sijraa that is formed, then in case of some, it will be said for Christ that a sijra of 200-250 crores was formed. Hm? And it will be said for the Muslims also. But will it be said to be a limited one or an unlimited one? It is a limited one only. Yes.
So, Baba explained that their surname also, hm, the genealogical tree (sijraa) of each one is formed through the surname. Whoever has whatever surname, their tree is formed. So, they are limited fathers. The limited Prajapitas. And this then is the unlimited one. The name itself of these is Prajapita. It means the Father of the entire praja (subjects). Now Prajapita creates these children. But now they are in a limited number. Hm? It will be said 5000, hm, 10000, 2000, 1000. It will be said from the beginning, will it not be? And someone may not create. Hm? But this one will definitely create. And they will create the human beings of the entire world. So, will anyone be able to say that these don’t have children? No. It comes to the intellect of these that the entire world is their progeny. It is because first of all these alone are Prajapita Brahma, aren’t they? These will be called Prajapita Brahma on this world stage. Chldren of even Brahma. And then their Father also is Prajapita. So, even the Muslims also assign a name to him, don’t they? What? Aadam. They call him Aadam and they call Brahma as Bibi. Well, whom do they call? Arey, they must be calling someone, don’t they? Definitely the ones through whom you first of all become brother and sister, they will be the same persons, will they not be? So, whoever they are, in some or the other language, Adam-Eve, Aadam-Havva. So, on whose name do they say this? This is also Prajapita Brahma, Aadam, Aadi Dev, Aadi Devi. So, this will also be said for Prajapita Brahma, will it not be?
So, now you understand that we become their children and later all the nationalities will rightly accept them. Hm? It is because one are limited fathers. Second, this one is an unlimited Father. So, there are definitely always these two topics – limited and unlimited. It is because just as this one gives you unlimited happiness, hm, and those are limited fathers; so, they give limited happiness. So, children you know that the purusharth that we make, we make purusharth for the happiness of the unlimited heaven. And you come here after knowing this. What do you know and come? That here we have come to build our fortune. So, you know that we come here to the unlimited Father to obtain the inheritance of unlimited happiness. And this topic is also in your intellect that rightly there is unlimited happiness in heaven and then unlimited sorrows in hell. It is because children, unlimited sorrows are also to come, will they not? Arey, a lot of sorrows are to come. You will keep on crying in despair, will you not children? When you die then all this will happen, will it not? So, except for crying in despair inside what can they do? O Ram! O Ram!
So, children understand this now. It is because the Father sat and narrated the secret of the beginning, middle and end of the world. And you come only in the Confluence Age. Hm? When the world ends then they come in the end. But why does He come and sit? Hm? Here in this world? He comes only to tell you children about the beginning, middle and the end of the human world which you don’t know. So, children are sitting. And they are sitting in the front. They listen as well as make purusharth. Well, both of these are children, aren’t they? Who? Hm? (Someone said something.) Arey, where did the above one come from? Both are children, both are mother and Father, aren’t they? Both are mother and Father. Whose? The mother and Father of the entire human world. So, mother is Brahma and Father is Prajapita. So, look, there are so many children from this mother and Father.
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2935, दिनांक 08.07.2019
VCD 2935, dated 08.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning Class dated 30.11.1967
VCD-2935-extracts-Bilingual
समय- 00.01-21.02
Time- 00.01-21.02
आज का प्रातः क्लास है – 30 नवम्बर, 1967. गुरुवार को रिकार्ड चला है – तुम्हें पाके हमने जहाँ पा लिया है। जमीं तो जमीं आसमां पा लिया है। हँ? गीत तो बनाया। क्या कोई ने प्रैक्टिकल अनुभaव भी किया? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) किया? अच्छा? सारी जमीन पा ली और आसमान भी पा लिया। ऐसा अनुभव किया? हँ? ये तो गीत बनाने वालों की कल्पना है। प्रैक्टिकल में तो ऐसा किसी ने अनुभव नहीं किया। किया? हँ? और किसे पाके पा लिया जहाँ? हँ? अरे? (किसी ने कुछ कहा।) शिवबाबा पा लिया? अच्छा? शिवबाबा जिसको पा लिया वो इस दुनिया में रहता है हमेशा? जमीन में रहता है? हँ? इस दुनिया को छोड़ के इस दुनिया से परे जाता है? हँ? आत्मलोक में चला जाता है? चला तो जाता है लेकिन ये प्रैक्टिकल अनुभव कराके जाता है या ऐसे ही चला जाता है? हँ? प्रैक्टिकल अनुभव कराके जाता है। अनुभव करने वाले नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं।
बोला – मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने; अनेक बच्चों ने ये गीत सुना। और अभी तो थोड़े हैं। परन्तु ये अनेकानेक बच्चे हो जाएंगे। क्योंकि इस समय में तो बच्चे बने ही हो प्रैक्टिकल में जिसको कहा जाता है। परन्तु फिर भी तो इनको प्रजापिता ब्रह्मा को जानते तो सभी हैं। भक्तिमार्ग में भले प्रजापिता नहीं कहते हैं, प्रजापति कहते हैं। वो तो ठीक है। जन्म देता है पहले तो पिता। हँ? सारी प्रजा का पिता क्योंकि जो भी मनुष्य मात्र हैं उनका जन्मदाता ब्रह्मा को ही तो मानते हैं। वो ब्रह्मा कौनसा? हँ? प्रजापिता ब्रह्मा। क्योंकि नाम ही है इनका प्रजापिता। इनका। इनका माने किनका? एक का या ज्यादा का? हँ? इनका। (किसी ने कुछ कहा।) दो का? दो प्रजापिता? सारी मनुष्य सृष्टि का पिता एक या दो-चार? एक। तो कितनी प्रजा? अरे, प्रजा तो बहुत हैं, ढ़ेर हैं क्योंकि सब धरमवाले प्रजा हैं। प्रजा का अर्थ ही है प्रकष्ट रूपेण जायते। जिनका प्रकष्ट रूप से जनम हुआ। मानसी सृष्टि से जनम हुआ ना? तो मन को कंट्रोल किया होगा। हँ? मन तो बहुत कंट्रोल से बाहर रहता है। बड़ा चंचल है। हँ? इन्द्रियां में भी इतनी चंचलता आती है लेकिन मन तो इन्द्रियों से भी बड़ा प्रबल है।
तो सब धरमवाले इनको जरूर मानेंगे। क्या? क्या मानेंगे? प्रजापिता। फिर ‘इनको’ कह दिया। ‘इनको’ क्यों कह दिया? ‘इसको’ कहना चाहिए। हँ? और ‘इसको’ भी कहें तो सन् 67 में जो बाजू में बैठा है, जिसको ‘इसको’ कहें तो वो तो टाइटलधारी है। ओरिजिनल तो नहीं है। टाइटल कबसे मिला? हँ? टाइटल भी ये तो बाद में जबसे मुरली चलाई कि ‘प्रजापिता’ एड करना चाहिए तुम बच्चों को लिखना चाहिए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय। तबसे ‘प्रजापिता’ टाइटिल हुआ। ऐसे थोड़ेही कि सन् 47 से जबसे दादा लेखराज ब्रह्मा में मुरली चलाई तबसे ही प्रजापिता ब्रह्माकुरमारी नाम था? था? नहीं था। सिर्फ ब्रह्माकुमारी नाम ही तो था। तो फिर किसके लिए कहा, हँ, इनका नाम ही है प्रजापिता? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) शिव बाप? शिव बाप प्रजापिता है? हँ? 500-700 करोड़ प्रजा का पिता है शिव बाप? हँ? अरे, इस मनुष्य सृष्टि की 500-700 करोड़ प्रजा जो है वो तो साकारी भी है और उसमें, उनमें निराकारी आत्मा भी होती है। और जो पिता होगा वो भी तो वैसा ही होना चाहिए। कैसा? आत्मा भी निराकार हो और? शरीर से भी साकार हो। ऐसे थोड़ेही कि बाप एक तरह का और बच्चा दूसरे तरह का? हँ? बाप निराकार तो बच्चा भी निराकार। बाप साकार तो बच्चा भी साकार। अगर बाप साकार निराकार का मेल, तो बच्चे भी साकार निराकार का मेल। तो शिव को थोड़ेही कहेंगे? शिव तो निराकार है और निराकार ही रहता है। हँ? वो कभी साकारी बनता है क्या? प्रवेश करता है फिर भी देहभान में आता है क्या कि ये देह मेरी है? नहीं।
तो किसके लिए कहा कि इनका नाम है प्रजापिता? इनका कहकरके इशारा किया एक तो यज्ञ का आदि का वो पुरुष जिसको पीहू कहा जाता था। हँ? वो आत्मा जिसमें पहले-पहले प्रवेश किया तो मुकर्रर रथ हो गया। मुकर्रर रथधारी आत्मा, हँ, और दूसरा सन् 47 से फिर दादा लेखराज के द्वारा मुरली चलाई तो वो भी रथ तो हुआ। परन्तु उसको प्रजापिता नहीं कहेंगे। प्रजापिता तब कहेंगे जब वो दादा लेखराज ब्रह्मा वाली आत्मा प्रजापिता में प्रवेश करके एवरलास्टिंग बीज रूप स्टेज धारण कर ले। तो दोनों को मिलाकरके क्या कहेंगे? 500-700 करोड़ उसे अपना पिता आदम, एडम मानेंगे या नहीं मानेंगे? मानेंगे। इसलिए कहा इनका नाम है प्रजापिता।
देखो, कितनी प्रजा है! प्रजा तो बहुत है। सब धरम वाले प्रजा ही तो हैं प्रजापिता की। तो जिसने रचना जिससे रचना हुई मनुष्य मात्र की जैसे बाबा समझाते हैं ना कि भई वो दुनिया में तो होते हैं सब हद के पिता। वो भी ब्रह्मा हैं। हँ? मां हैं कि नहीं? हँ? कौन? अरे, धरमपिताएं आते हैं तो कोई में प्रवेश करते हैं ना? तो जिसमें प्रवेश करते हैं वो हो गया मां। तो ब्रह्मा भी है, पिता भी है, हर धर्म का पिता। प्रजापिता। परन्तु वो सब हद के हैं। ऐसे नहीं कि कोई उन धरमपिताओं में 500-700 करोड़ का पिता हो या 500-700 करोड़ का पिता हो या 500-700 करोड़ उसे अपना बाप मानते हों क्योंकि उनका भी सिजरा बनता है धरमपिताओं का। जो सिजरा बनता है तो कोई का, क्राइस्ट का कहेंगे 200-250 करोड़ का सिजरा बना। हँ? और मुसलमानों का भी कहेंगे। लेकिन हद का कहेंगे या बेहद का? हद का ही हुआ। हां।
तो बाबा ने समझाया कि उनका भी सरनेम, हँ, सरनेम से सिजरा बनता है हरेक का। जिसका-जिसका जो सरनेम है उनका फिर सिजरा बनता है। तो वो हो गए हद के बाप। हद के प्रजापिताएं। और ये फिर है बेहद का। नाम ही है इनका प्रजापिता। माना सारी प्रजा का पिता। अभी इन बच्चों को प्रजापिता रचते हैं। परन्तु अभी लिमिटेड में हैं। हँ? कहेंगे 5000, हँ, 10000, 2000, 1000. शुरुआत से कहेंगे ना? और कोई न भी रचे। हँ? लेकिन ये तो जरूर रचेंगे। और सारी दुनिया के मनुष्य मात्र की रचना करेंगे। तो ऐसे कोई कह सकेंगे कि इनको संतान नहीं है? नहीं। इनको तो बुद्धि में आता है कि इनका संतान तो सारी दुनिया है। क्योंकि पहले-पहले ही तो ये होते हैं ना प्रजापिता ब्रह्मा? इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर इनको कहेंगे प्रजापिता ब्रह्मा। ब्रह्मा की भी औलाद। और उनका पिता भी प्रजापिता। तो उनको फिर जो मुसलमान होते हैं वो भी तो उनको नाम देते हैं ना? क्या? आदम। आदम कह देते हैं और ब्रह्मा को बीबी कह देते हैं। अब वो किसको कहते हैं? अरे, किसको तो कहते होंगे ना? जरूर जो पहले-पहले जिनसे भाई-बहन बनते हैं वो ही तो लोग होंगे ना? तो जो भी हैं किसी न किसी भाषा में एडम-ईव, आदम-हव्वा। तो ये किसके नाम पर कहते हैं? ये भी प्रजापिता ब्रह्मा, आदम, आदि देव, आदि देवी। तो ये भी तो प्रजापिता ब्रह्मा के लिए कहेंगे ना?
तो अभी समझते हो कि इनके जो हम बनते हैं और पीछे जो, जो भी नेशनलटी होगी वो सभी इनको मानेंगे बरोबर। हँ? क्योंकि एक तो हद के पिता होते हैं। दूसरा ये बेहद का पिता। तो हद और हमेशा बेहद ये दो बातें तो होती ही हैं। क्योंकि जैसे ये बेहद का सुख देने वाला है, हँ, और वो हद के बाप हैं तो हद का सुख देने वाले। तो जानते हो बच्चे कि हम जो पुरुषार्थ करते हैं सो तो वो बेहद स्वर्ग के सुख का पुरुषार्थ करते हैं। और ये जानकरके यहां आते हो। क्या जानकरके आते हो? कि यहां हम अपनी तकदीर बनाने आए हैं। तो ये जानते हो कि हम आते हैं यहाँ बेहद के बाप के पास बेहद का सुख का वर्सा पाने के लिए। और ये बात बुद्धि में भी है कि बरोबर स्वर्ग में बेहद का सुख और नरक में फिर बेहद का दुख होता है। क्योंकि बेहद दुख भी तो आऩे वाले हैं ना बच्चे? अरे, बहुत-बहुत दुख आने वाले हैं। हाय-हाय करते रहेंगे ना बच्चे? जब मरेंगे, ये सभी होगा ना? तो सबसे अंदर के हाय और क्या कर सकते हैं? हाय राम, हाय राम।
तो ये तो बच्चे समझते हैं अभी। क्योंकि बाप ने बैठकरके सारे विश्व के आदि, मध्य, अंत का राज़ सुनाया है। और आते ही संगमयुग पर हैं। हँ? जब सृष्टि का अंत होता है तो अंत में आते हैं। परन्तु ये बैठकरके किसके लिए आते हैं? हँ? यहाँ, इस दुनिया में? तुम बच्चों को, जो भी मनुष्य सृष्टि के आदि, मध्य, अंत को नहीं जानते हैं वो ही बताने के लिए आते हैं। तो बच्चे तो बैठे हैं। और सामने बैठे हैं। सुनते हैं, पुरुषार्थ भी करते हैं। अब ये तो दोनों हुए ना बच्चे? कौन? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) अरे, ऊपरवाला कहाँ से आ गया? दोनों बच्चे हुए, दोनों हुए ना मात-पिता। दोनों हुए मात-पिता। किसके? सारी मनुष्य सृष्टि के मात और पिता। तो माता ब्रह्मा और पिता प्रजापिता। तो ये मात पिता से देखो इतने बच्चे हैं।
Today’s morning class is dated 30th November, 1967. The record played on Thursday is – Tumhe paake humne jahaan pa liya hai. Zamin to zamin aasmaan pa liya hai. (By finding you we have found the entire world. Not just the land, we have found the sky as well) Hm? A song has indeed been penned. Did anyone experience in practical as well? Hm? (Someone said something.) Did you? Achcha? You achieved the entire land as well as the sky. Did you experience so? Hm? This is the imagination of the writers of the song. Nobody experienced like this in practical. Did you? Hm? And by finding whom did you find the world? Hm? Arey? (Someone said something.) Did you get ShivBaba? Achcha? The ShivBaba whom you found, does He remain in this world forever? Does He remain on land? Hm? Does He leave this world and goes beyond this world? Hm? Does He go to the Soul World? He does go, but does He go after making you experience this in practical or does He go just like that? Hm? He goes after making you experience in practical. Those who experience are numberwise as per their purusharth.
He said – The sweet, sweet spiritual children; numerous children heard this song. And now you are a few. But these children will become numerous. It is because at this time you have become children in practical which is called; But however everyone knows this one, Prajapita Brahma. On the path of Bhakti although they do not say Prajapita, they say Prajapati. That is correct. First he gives birth, so he is a Father. Hm? The Father of the entire praja (subjects) because Brahma himself is believed to be the creator of all the human beings. Who is that Brahma? Hm? Prajapita Brahma. It is because the name of these itself is Prajapita. These (inka). ‘These’ refers to whom? To one or to more? Hm? These. (Someone said something.) To two? Two Prajapita? Is the Father of the entire human world one or two-four? One. So, how many subjects? Arey, the subjects are many, numerous because the subjects belong to all the religions. The meaning of Praja itself is ‘prakasht roopen jaayte’. Those who were born in a special manner. They were born through the thought world, were they not? So, they must have controlled the mind. Hm? The mind remains out of control. It is very inconstant. Hm? So much inconstancy comes in the organs as well, yet the mind is very strong when compared to other organs.
So, people belonging to all the religions will definitely accept these. What? What will they accept? Prajapita. Again He said ‘these’ (inko). Why did He say ‘these’? He should have said ‘this one’. Hm? And even if we say ‘this one’ (isko), then the one who is sitting beside in 1967 whom we call ‘this one’, then he is a titleholder. He is not original. Since when did he get the title? Hm? Even the title was later on ever since He narrated the Murli that you should add the word Prajapita; you children should write Prajapita Brahmakumari Ishwariya Vishwavidyalay. Since then he got the title Prajapita. It is not as if from 1947 when Murlis were narrated in Dada Lekhraj Brahma, since then the name was Prajapita Brahmakumari? Was it there? It wasn’t. The name was only Brahmakumari. So, then, for whom was it said, hm, that the name of these is Prajapita only? Hm? (Someone said something.) Father Shiv? Is Father Shiv Prajapita? Hm? Is Father Shiv the Father of 500-700 crore praja? Hm? Arey, the 500-700 crore subjects of this human world are also corporeal and in that, in them there is an incorporeal soul as well. And the Father should also be like that only. How? The soul should also be incorporeal and? The body should also be corporeal. It is not as if the Father is of one kind and the child is of another kind? Hm? If the Father is incorporeal then the child should also be incorporeal. If the Father is corporeal then the child should also be corporeal. If the Father is a combination of corporeal and incorporeal, then the children should also be a combination of corporeal and incorporeal. So, will Shiv be said to be so? Shiv is incorporeal and He remains incorporeal only. Hm? Does He ever become corporeal? Even when He enters, does He come in body consciousness that this is My body? No.
So, for whom was it said that their name is Prajapita? By uttering ‘these’ (inka), a gesture was made – one is that man of the beginning of the Yagya, who used to be called Pihu. Hm? That soul in whom He entered first of all is the permanent Chariot. The soul of the permanent Chariot. Hm. And the secondly, Murli was narrated through Dada Lekhraj from 1947; so, he is also a Chariot. But he will not be called Prajapita. He will be called Prajapita when that soul of Dada Lekhraj Brahma enters in Prajapita and attains the everlasting seed-form stage. So, what will both of them together be called? Will 500-700 crores accept him as their Father, Aadam, Adam or not? They will accept. This is why it was said that their name is Prajapita.
Look, there are so many subjects (praja). Praja are many. People belonging to all the religions are subjects of Prajapita only. So, the one who created, the one who created the human beings, just as Baba explains, doesn’t He that brother in that world all are limited fathers. They are also Brahma. Hm? Are they mothers or not? Hm? Who? Arey, when the founders of religions come, then they enter in someone, don’t they? So, the one in whom He enters is the mother. So, the Father of every religion is Brahma as well as the Father. Prajapita. But all of them are limited. It is not as if someone among those founders of religions is a Father of 500-700 crores or the Father of 500-700 crores or 500-700 crores may accept him as their Father because there is a genealogical tree (sijra) of those founders of religions also. The sijraa that is formed, then in case of some, it will be said for Christ that a sijra of 200-250 crores was formed. Hm? And it will be said for the Muslims also. But will it be said to be a limited one or an unlimited one? It is a limited one only. Yes.
So, Baba explained that their surname also, hm, the genealogical tree (sijraa) of each one is formed through the surname. Whoever has whatever surname, their tree is formed. So, they are limited fathers. The limited Prajapitas. And this then is the unlimited one. The name itself of these is Prajapita. It means the Father of the entire praja (subjects). Now Prajapita creates these children. But now they are in a limited number. Hm? It will be said 5000, hm, 10000, 2000, 1000. It will be said from the beginning, will it not be? And someone may not create. Hm? But this one will definitely create. And they will create the human beings of the entire world. So, will anyone be able to say that these don’t have children? No. It comes to the intellect of these that the entire world is their progeny. It is because first of all these alone are Prajapita Brahma, aren’t they? These will be called Prajapita Brahma on this world stage. Chldren of even Brahma. And then their Father also is Prajapita. So, even the Muslims also assign a name to him, don’t they? What? Aadam. They call him Aadam and they call Brahma as Bibi. Well, whom do they call? Arey, they must be calling someone, don’t they? Definitely the ones through whom you first of all become brother and sister, they will be the same persons, will they not be? So, whoever they are, in some or the other language, Adam-Eve, Aadam-Havva. So, on whose name do they say this? This is also Prajapita Brahma, Aadam, Aadi Dev, Aadi Devi. So, this will also be said for Prajapita Brahma, will it not be?
So, now you understand that we become their children and later all the nationalities will rightly accept them. Hm? It is because one are limited fathers. Second, this one is an unlimited Father. So, there are definitely always these two topics – limited and unlimited. It is because just as this one gives you unlimited happiness, hm, and those are limited fathers; so, they give limited happiness. So, children you know that the purusharth that we make, we make purusharth for the happiness of the unlimited heaven. And you come here after knowing this. What do you know and come? That here we have come to build our fortune. So, you know that we come here to the unlimited Father to obtain the inheritance of unlimited happiness. And this topic is also in your intellect that rightly there is unlimited happiness in heaven and then unlimited sorrows in hell. It is because children, unlimited sorrows are also to come, will they not? Arey, a lot of sorrows are to come. You will keep on crying in despair, will you not children? When you die then all this will happen, will it not? So, except for crying in despair inside what can they do? O Ram! O Ram!
So, children understand this now. It is because the Father sat and narrated the secret of the beginning, middle and end of the world. And you come only in the Confluence Age. Hm? When the world ends then they come in the end. But why does He come and sit? Hm? Here in this world? He comes only to tell you children about the beginning, middle and the end of the human world which you don’t know. So, children are sitting. And they are sitting in the front. They listen as well as make purusharth. Well, both of these are children, aren’t they? Who? Hm? (Someone said something.) Arey, where did the above one come from? Both are children, both are mother and Father, aren’t they? Both are mother and Father. Whose? The mother and Father of the entire human world. So, mother is Brahma and Father is Prajapita. So, look, there are so many children from this mother and Father.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2936, दिनांक 09.07.2019
VCD 2936, dated 09.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning class dated 30.11.1967
VCD-2936-extracts-Bilingual
समय- 00.01-20.05
Time- 00.01-20.05
प्रातः क्लास चल रहा था – 30.11.1967. गुरुवार को दूसरे पेज के मध्यादि में बात चल रही थी - बच्चे समझते हैं कि हम आधा में आधा कल्प के अजामिल ज़रूर हैं। क्या मतलब? आधा में आधा कल्प? हँ? इसका क्या मतलब हुआ? आधा माने? हँ? क्या आधा? पूरा कल्प 5000 साल का। उसमें आधा माने ढ़ाई हज़ार साल। और उसका भी आधा किया। माना 1250 वर्ष माना कलियुग। क्योंकि जो बच्चे समझते हैं कि हम बच्चों को तीन हिस्सा सुख है ड्रामा में। और एक हिस्सा दुख है। तो और धरम वालों के लिए ऐसा नहीं है। क्या? उनका आधा सुख आधा दुख। इसलिए बताया आधा में आधा कल्प के अजामिल जरूर ठहरे। हिसाब ही हिसाब हुआ ना बच्चे अजामिलपने का। क्या? अजा माने बकरी। और ‘मिल’ माने मिल गए। किनके साथ मिल गए? जो मैं-3 भगवान, शिवोहम्-2। जो धरमपिताएं आए वो भी कहते हैं हम ही भगवान साकार में। इस दुनिया में दूसरा कोई साकार भगवान है ही नहीं। तो उनको बकरा-बकरियां कहेंगे। क्यों? बकरे-बकरियों में से क्या आवाज़ निकलती है? मैं-3. तो उनके साथ तुम मिल गए। हाँ। तो ये हिसाब-किताब उनके साथ संग का रंग लगेगा कि नहीं? हाँ। ये हिसाब-किताब हो गया।
क्योंकि बाप कहते हैं सबसे भक्ति भी तुम जास्ती करते हो। हँ? क्या? और धरम वालों में या औरों में जो कम कला के नारायण बनते हैं या उनके फालोअर्स बनते हैं, हँ, जो भी सतयुग में बाद वाली गद्दियों के राजा-महाराजा बनते हैं उनके और उनके फालोअर्स के मुकाबले तुम सबसे जास्ती भक्ति करते हो। और तुम्हारा ही चित्र, हँ, तुम्हारा ही चित्र बाबा ने समझाया था कि जाओ पुरी में, जगन्नाथ पुरी में। उसका वो जो गुम्बज है ऊपर का उनमें देखो ये चित्र गंदे-गंदे खड़े हैं। बड़े गंदे चित्र हैं। किस बात के? किसके साथ मिलने के? हँ? हाँ। वो व्यभिचार दोष में गिरने के गंदे-गंदे चित्र हैं क्योंकि वाम मार्ग में जब देवताएं गए। कब गए? हँ? कब गए? द्वापरयुग में, द्वैतवादी युग में गए क्योंकि वहां दो-दो धरमपिताएं, दो-दो धर्म, दो-दो राज्य, दो-दो कुल, दो-दो भाषाएं, सब कुछ द्वैतवाद शुरू हो जाता है। तो वहाँ जगन्नाथपुरी यादगार है। वहां बड़े गंदे चित्र वाममार्ग के रखे हैं। वाम मार्ग माना बायां हाथ। उल्टा रास्ता। सीधे हाथ से दान-धर्म के अच्छे काम करते हैं। बायीं भुजा से, बायें हाथ से गंदगी की सफाई करते हैं। तो देवताएं जब वाम मार्ग में गए तो ये जगन्नाथ का चित्र और उनके साथी जो भी दिखाए हैं, हँ, वो क्या है? तुम्हारा ही चित्र है बच्चों का। समझे ना?
तो जो मनुष्य कहते हैं ना कि नहीं, वहां स्वर्ग में भी विख है; तो वो बोलता – देखो, ये देवताएं हैं। हँ? तो वो देवताएं भी देखो मंदिर में, विख में जाते हैं ना? तब तो ये गंदे चित्र रखे हुए हैं ना? हँ? अरे, उनसे पूछो, वो जो गंदे चित्र रखे हुए हैं वो मंदिर के बाहर रखे हैं या अंदर रखे हैं? हँ? कहाँ रखे हैं? कोणार्क मंदिर हो, सूर्य मंदिर हो, या जगन्नाथ का मंदिर हो, उसमें वो चित्र गंदे-गंदे बाहर रखे हैं ना? निकलो बाहर। हटो। तुम यहां रहने, अंदर रहने के काबिल नहीं हो। अंदर जगन्नाथ का चित्र रखा है। हँ। तो वो ऐसे दलील देते हैं दुनियावाले कि देवताएं भी तो विख में, विख के कृत्य में जाते थे ना? वो भी तो ऐसे कर्म करते थे ना? तो अभी क्या-क्या दिखलावें? कहते हैं वो देवताएं वाम मार्ग में गए। तो देखो देवताएं वाम मार्ग में दिखलाते हैं। वाम मार्ग कहा जाता है जो पतित बनते हैं विकार में जाते हैं।
तो अभी तुम बच्चों ने अभी समझ लिया है कि बरोबर ये सब बाहरवाले सब, हँ, चिल्लाते रहते हैं। हँ? और विकार में जाते रहते हैं। हम जो यहां ब्राह्मण बने हैं, वो विकार से दूर होते हैं, बहुत दूर। क्योंकि ब्राह्मणों को; ब्रह्मा की संतान हैं ना? तो जो ब्रह्मा की संतान हैं वो उनको तो क्या कहेंगे? स्त्री पुरुष रूप में भी हैं तो भाई-बहन। एक बाप की संतान हैं ना? कौनसे ब्रह्मा की? अरे, घंटों लगाते हो। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, प्रजापिता ब्रह्मा की संतान हैं। अरे, पिता तो एक ही होगा ना? हँ? जिस ब्रह्मा के साथ प्रजापिता शब्द एड है वो पिता भी तो एक ही होगा ना? और उसके साथ जो ब्रह्मा शब्द लिखा हुआ है पीछे से प्रजापिता ब्रह्मा तो इससे साबित होता है कि वो पिता भी है और माता भी है। कैसे? हँ? मन्दिर में जाते हैं तो बोलते हैं ना तुमेव माता च पिता तुमेव। शिवलिंग के सामने कहते हैं ना? क्यों कहते हैं? वो शिवलिंग है तो एक ही। दो तो नहीं रखे हुए हैं। फिर क्यों कहते हैं, हँ, कि वो एक ही आत्मा है जो माता के रूप में भी पार्ट बजाती है सौ परसेन्ट सहनशक्ति का और फिर सामना करने की शक्ति का पार्ट भी बजाती है बाप के रूप में? तो वो माता और पिता दोनों का रूप है। क्या? मन्दिर में शिवलिंग दिया हुआ है ना?
तो तुम ब्राह्मण तो समझ गए कि हम शिवबाबा की संतान हैं। और शिवबाबा तो निराकार। निराकार कैसे ज्ञान देता है? हँ? निराकार को ज्ञान देने के लिए ब्रह्मा चाहिए ना? तो जिसमें भी प्रवेश करते हैं; पुरुष तन में ही प्रवेश करेंगे। हँ? क्यों? पुरुष तन में ही क्यों प्रवेश करते हैं? हँ? अरे, स्त्री चोले में भी प्रवेश कर जाएं। नहीं? नहीं करते? क्यों? स्त्री चोले में क्यों नहीं प्रवेश करते? हँ? अरे, कोई कारण होगा कि नहीं? अरे? वो कहता है हम नहीं बताएंगे। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) सबसे मिलना? सबसे मिलना माने? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, बच्चों से मिलना हो सके। बच्चों से मिलना हो सके? क्यों? मां बच्चों से नहीं मिलती? हँ? हाँ, मां बच्चों से मिल सकती है लेकिन मां जो है वो दुष्ट बच्चे होंगे, राक्षस संप्रदाय तो वो तो मां को भी पोल्यूट कर देंगे। हँ? हाँ। तो बताया कि बाप पुरुष तन लेते हैं। उसको क्या पोल्यूट करेंगे? हँ? संग के रंग में आएंगे तो क्या पोल्यूट करेंगे? कर सकेंगे? नहीं कर सकेंगे।
तो बताया कि मैं जिस पुरुष तन में आता हूँ उसका आते ही आते पहले नाम रख देता हूँ ब्रह्मा। क्यों? क्योंकि लक्ष्य क्या दिया हुआ है? क्या बनना है? मुझे क्या काम लेना है? हँ? मैं खुद ही परमपिता हूँ; मेरा भी कोई पिता है क्या? नहीं। तो पिता को क्या चाहिए? हँ? नई सृष्टि रचना है तो माता तो चाहिए ना? तो मुझे माता चाहिए। तो भले पुरुष तन में प्रवेश किया है लेकिन उसमें गुण, क्वालिटीज़ और शक्तियां जो हैं वो सारी माता की चाहिए। हँ? तो ये माता की शक्तियां चाहिए तो ब्रह्मा तो बनना पड़े। हँ? ब्रह्मा बने तो वो सहन कर सके। क्या सहन कर सके? हँ? क्या सहन कर सके? बच्चों की शैतानियां सहन करे? हँ? नहीं। महाकाली का रूप धारण कर ले। क्यों? क्यों? महाकाली को सपोर्ट किसका मिलता है? महाकाल का सपोर्ट मिलता है। उसी शरीर में महाकाल बैठा हुआ है। उसी शरीर में स्वभाव-संस्कार के आधार पर वो अंदर से प्यार भी भरा रहता है।
तो बताया – तुम ब्रह्मा के बच्चे हुए, प्रजापिता ब्रह्मा के। भाई भी और बहन भी। तो भाई-बहन के साथ विकार में जाना ये तो बिल्कुल क्रिमिनल असाल्ट है। हाँ। है ना बच्ची? ये नामचार बड़ा गंदा हो जाता है समाज में। क्या? अरे, इनके घर के परिवार के बच्चे तो ऐसे हैं। हँ? इसलिए ऐसे मत समझो कि कोई ऐसे गंदे काम करते हैं आपस में, हँ, तो कोई के, कोई के मन-बुद्धि में ये बात टचिंग नहीं होती, पता नहीं चलता होगा। दिल से वो कोई हट जाते हैं। भले कुछ बोलते नहीं हैं। नहीं। जैसे तुम बच्चों के जो भी छोटेपन से लेकरके कर्म करते हो, जो बाबा को सुनाते हो ना कि दस बरस में हमने ऐसे किया। हम दस बरस के थे तब हमने अपने घर-परिवार वालों के साथ ऐसे किया। 12 बरस में ऐसे किया। ऐसे होते हैं ना? तो ज़रूर ये भी तो याद रहते हैं ना कि भई फलाने समय में मैं ये बहुत गंदा काम किया। बाबा को लिखकरके देते हैं ना? बच्चे बहुत हैं जो लिखकरके देते हैं। आनेस्ट हैं ना? क्या? सच्चाई है कि नहीं? सच्चाई है। तो लिखकरके देते हैं।
बाबा कहते हैं जो वफादार बच्चे हैं, फरमानबरदार बच्चे हैं वो बाबा को आकरके सब कुछ सुनाते रहते हैं। तो बाबा समझ जाते हैं कि ये तो आनेस्ट बच्चे हैं, समझदार बच्चे हैं, फरमानबरदार हैं, वफादार हैं। बाप जो बताएंगे वो मानेंगे। हँ? वफा निभाएंगे। ये निभाएंगे और वो नहीं निभाएंगे। तो बाबा छोटेपन में हमने ये गंदा काम किया। आनेस्ट बच्चे कहते हैं बाबा हमको क्षमा करो। तो बाप कहते हैं क्षमा तो नहीं करेंगे। क्या? हाँ, क्या फिर, फिर पोतामेल देने से फायदा क्या हुआ? हँ? कोई फायदा हुआ क्षमा नहीं करेंगे तो? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) मदद करेंगे? क्या मदद करेंगे? हँ? धर्मराज की सजाएं मिलेंगी तो उसमें क्या करेंगे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, बताते हैं कि माफ नहीं पूरा होगा; आधा माफ हो जाता है। वो भी पहली बार बताते हैं तो माफ। एक बार माफ, दो बार माफ। दूसरी बार भी माफ कर देते हैं। दूसरी बार भी आधा माफ हो जावेगा। फिर अगर तीसरी बार भी वो ही गल्ती करते हैं तो फिर आधा माफ होगा? नहीं। फिर परसेन्टेज घटता जाता है।
तो बाप कहते हैं क्षमा नहीं करेंगे। हाँ, हल्का हो जाएगा। क्या? कोई के ऊपर; गधा है और वो एक क्विंटल माल ले जा सकता है। इतनी उसमें ताकत है। और उसपे दो, दो क्विंटल डाल दिया पीठ पे, तो उसको बड़ी मुश्किल हो जाती है ना? और उसमें से एक क्विंटल हटा दिया तो आराम हो जाएगा ना? तो हल्का कर देंगे। हल्का जरूर हो जाएंगे। तुम्हारा जो पाप है क्योंकि सर्जन को सच बताते हो ना? तो कोई तो भूल जाते हैं क्या? हँ? अरे, भूलते नहीं हैं। हँ? कभी भी नहीं भूलते हैं ऐसे-ऐसे जो जघन्य काम करते हैं। समझे ना? जिनको मालूम पड़ता है तो उनको तो वो कभी भी भूला नहीं जा सकता। हँ? और वो मन-बुद्धि में पिछाड़ी तक साथ रहते ही हैं। पीछे ये है ज्ञान बल से कि ज्ञान बुद्धि में बैठ गया तो फिर ऐसे-ऐसे काम कोई न करे। हँ? उसके लिए क्या करें? पुरुषार्थ करें। बाकि कोई भूल नहीं जाते हैं ऐसी चीज़ें। नहीं। वो दिल के अंदर खाती रहती है, खाती रहती है। देखो खाती है।
A morning class dated 30.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the second page on Thursday was – Children feel that we are definitely Ajamils since half of half a Kalpa. What does it mean? Half of half a Kalpa? Hm? What does it mean? What is meant by half? Hm? What half? Full Kalpa is of 5000 years. Half of it means 2500 years. And halve it further. It means 1250 years, i.e. Iron Age. It is because children understand that we children have three-fourth part happiness in the drama. And one part there is sorrows. So, for the people of other religions it is not so. What? For them half happiness and half sorrows. This is why it was told that we are definitely Ajamils since half of half a Kalpa. There is account of Ajamilhood children, isn’t it? What? Aja means goat. And ‘mil’ means ‘mixed up’. With whom did they mix up? Those [who say] I, I, I am God, I am Shiv, I am Shiv (Shivohum). The founders of religions who came, they too say that we alone are Gods in corporeal form. There is no other corporeal God at all in this world. So, they will be called he-goats and she-goats. Why? Which sound emerges from the he-goats and she-goats? Mai-3 (I, I, I) So, you mixed up with them. Yes. So, this karmic account, will you get coloured in their company or not? Yes. This is the karmic account.
It is because the Father says that it is you who do the most Bhakti also. Hm? What? Among the people of other religions or in others, who become Narayans with fewer celestial degrees or become their followers, hm, whoever becomes Raja-Maharaja of the latter thrones of the Golden Age and their followers, when compared to them you do the most Bhakti. And your picture only, hm, your picture only, Baba had explained that go to Puri, to Jagannath Puri. Look at its dome (gumbaj) above, wherein these vulgar pictures are standing. They are very vulgar pictures. In which topic? Pictures of meeting with whom? Hm? Yes. They are vulgar pictures of falling in the defect of adultery because when the deities started following the leftist path; when did they go? Hm? When did they go? They went in the Copper Age, in the dualist Age because two founders of religions, two religions, two kingdoms, two clans, two languages, dualism starts in everything. So, there is a memorial of Jagannath Puri there. Very vulgar pictures of leftist path (vaam maarg) are installed there. Vaam maarg means the left hand. The opposite path. A person performs good tasks of donation and religion through the right hand. They clean the dirt (excreta) with the left arm, left hand. So, when the deities started following the leftist path, then what are these pictures of Jagannath and his companions who have been depicted? It is your picture only children. You have understood, haven’t you?
So, the human beings who say, don’t they that no, there is poison there in heaven as well; So, he says – Look, these are deities. Hm? So, look, those deities also indulge in poison (lust) in the temples, don’t they? Only then are these vulgar pictures placed, aren’t they? Hm? Arey, ask them, as regards those vulgar pictures that have been placed, are they placed outside the temple or within it? Hm? Where are they placed? Be it the temple of Konark, be it the temple of Sun or be it the temple of Jagannath, those vulgar pictures (idols) are placed in them outside, aren’t they? Get out. Move away. You are not worthy of living here, living inside. Inside the picture of Jagannath has been placed. Hm. So, they, the people of the world give such arguments that the deities also used to indulge in poison, in the acts of poison (lust), didn’t they? They also used to perform such actions, didn’t they? So, what all should be depicted now? It is said that those deities started following the leftist path. So, look, the deities are depicted on the leftist path. Leftist path is said to be about those who become sinful, indulge in lust.
So, now you children have understood that rightly all these outsiders keep on shouting. Hm? And they keep on indulging in lust. We, who have become Brahmins, we are distant, very distant from vices. It is because the Brahmins; they are children of Brahma, aren’t they? So, those who are children of Brahma, what will they be called? Even if they are in the form of a woman and a man, they are brothers and sisters. They are children of one Father, aren’t they? Of which Brahma? Arey, you take hours. (Someone said something.) Yes, they are children of Prajapita Brahma. Arey, the Father will be only one, will he not be? Hm? The Brahma with whom the word Prajapita is added, that Father will also be only one, will he not be? And along with it the word ‘Brahma’ that has been written as a suffix, Prajapita Brahma, so it proves that he is the Father as well as the mother. How? Hm? When you go to the temples, you say, don’t you that you alone are my mother as well as Father. How? Hm? When you go to the temple, you say, don’t you that you alone are my mother as well as my Father. You say in front of the Shivling, don’t you? Why do you say? That Shivling is only one. Two are not placed. Then why do you say, hm, it is because the same soul plays the part of hundred percent tolerance in the form of a mother also and then plays the part of the power of confrontation also in the form of a Father. So, it is the form of both mother and Father. What? A Shivling has been placed in the temple, isn’t it?
So, you Brahmins have understood that we are children of ShivBaba. And ShivBaba is incorporeal. How does the incorporeal give knowledge? Hm? Incorporeal requires Brahma to give knowledge, doesn’t He? So, in whomsoever He enters, He will enter in a male body only. Hm? Why? Why does He enter into a male body only? Hm? Arey, He should enter in the female body also. No? Doesn’t He enter? Why? Why doesn’t He enter in a female body? Hm? Arey, will there be any reason or not? Arey? That person says – I will not tell. Hm? (Someone said something.) Meeting with everyone? What is meant by meeting with everyone? (Someone said something.) Yes, so that He could meet with the children. So that He could meet the children? Why? Doesn’t a mother meet the children? Hm? Yes, a mother can meet the children, but as regards the mother, if the children are wicked, if they belong to the demoniac community, they will pollute the mother as well. Hm? Yes. So, it was told that the Father adopts a male body. How will they pollute him? Hm? Can they pollute him if he gets coloured by the company? Can they? They will not be able to.
So, it was told that the male body in which I come, I name him Brahma as soon as I come. Why? It is because what the given target is? What do you have to become? What is the task that I have to extract? Hm? I am Myself the Supreme Father; Do I also have any Father? No. So, what does a Father require? Hm? If He has to create a new world, then He requires a mother, doesn’t He? So, I require a mother. So, although I have entered in a male body, yet the virtues, qualities and powers in him should be that of a mother. Hm? So, when these powers of a mother are required then he will have to become Brahma. Hm? If he becomes a Brahma then he can tolerate. What can he tolerate? Hm? What can he tolerate? Should he tolerate the mischiefs of the children? Hm? No. He should assume the form of Mahakali. Why? Why? Who support does Mahakali get? She gets the support of Mahakaal. Mahaakaal is sitting in the same body. Love is also filled inside in the same body on the basis of the nature and sanskars.
So, it was told – You are children of Brahma, Prajapita Brahma. Brother as well as sister. So, to indulge in lust with brother or sister is a completely criminal assault. Yes. It is, isn’t it daughter? The name becomes very dirty in the society. What? Arey, the children of the house, the family of this one are like this. Hm? This is why don’t think as if someone performs such dirty tasks with each other, hm, then the touching (feeling) doesn’t occur in anyone’s mind and intellect, they don’t know. They move away from their heart. Although they don’t say anything. No. For example, whatever actions you children perform from your childhood, whatever you narrate to Baba, don’t you that we did like this at the age of ten. When I was ten years old I did such and such thing with the members of my home and family. I did this at the age of 12. Such things happen, don’t they? So, definitely you also remember that brother, I performed such a dirty task at such and such time. You write and give to Baba, don’t you? There are many children who give in writing. They are honest, aren’t they? What? Is it true or not? It is true. So, they write and give.
Baba says the loyal children, the obedient children come and keep on telling everything to Baba. So, Baba understands that these are honest children, wise children, obedient, loyal. They will obey whatever the Father says. Hm? They will maintain the loyalty. These will maintain and they will not maintain. So, Baba we performed this dirty task in our childhood. Honest children say - Baba, pardon us. So, the Father says – I will not pardon you. What? Yes, then, then, is there any benefit in giving potamail (true life story)? Hm? If He doesn’t pardon then is there any benefit? Hm? (Someone said something.) Will He help? What help will He extend? Hm? When you get the punishments of Dharmaraj, then what will He do in it? Hm? (Someone said something.) Yes, He tells that you will not be pardoned completely; half of it is pardoned. That too, if you reveal for the first time then it is pardoned. It will be pardoned once, it will be pardoned twice. He pardons the second time also. Second time also half will be pardoned. Then if you commit the same mistake for the third time then will half of it be pardoned? No. Then the percentage will go on decreasing.
So, the Father says – I will not pardon you. Yes, it will become light. What? On someone; if there is a donkey and it can carry one quintal weight. It has that much strength. And if you load two, two quintals on its back, it feels very difficult, doesn’t it? And if you remove one quintal from that, it will feel relaxed, will he not? So, He will make it light. You will definitely become light. As regards your sin, it is because you reveal the truth to the surgeon, don’t you? So, some forget; what? Hm? Arey, they do not forget. Hm? They never forget such heinous tasks that they perform. You have understood, haven’t you? Those who get to know, they can never forget it. Hm? And that remains in the mind and intellect till the end. Later it is true that through the power of knowledge, if the knowledge sits in the intellect that nobody will perform such tasks. Hm? What should we do for that? We should make purusharth. But nobody forgets such things. No. It keeps on, keeps on pinching inside the heart. Look, it pinches.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2936, दिनांक 09.07.2019
VCD 2936, dated 09.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning class dated 30.11.1967
VCD-2936-extracts-Bilingual
समय- 00.01-20.05
Time- 00.01-20.05
प्रातः क्लास चल रहा था – 30.11.1967. गुरुवार को दूसरे पेज के मध्यादि में बात चल रही थी - बच्चे समझते हैं कि हम आधा में आधा कल्प के अजामिल ज़रूर हैं। क्या मतलब? आधा में आधा कल्प? हँ? इसका क्या मतलब हुआ? आधा माने? हँ? क्या आधा? पूरा कल्प 5000 साल का। उसमें आधा माने ढ़ाई हज़ार साल। और उसका भी आधा किया। माना 1250 वर्ष माना कलियुग। क्योंकि जो बच्चे समझते हैं कि हम बच्चों को तीन हिस्सा सुख है ड्रामा में। और एक हिस्सा दुख है। तो और धरम वालों के लिए ऐसा नहीं है। क्या? उनका आधा सुख आधा दुख। इसलिए बताया आधा में आधा कल्प के अजामिल जरूर ठहरे। हिसाब ही हिसाब हुआ ना बच्चे अजामिलपने का। क्या? अजा माने बकरी। और ‘मिल’ माने मिल गए। किनके साथ मिल गए? जो मैं-3 भगवान, शिवोहम्-2। जो धरमपिताएं आए वो भी कहते हैं हम ही भगवान साकार में। इस दुनिया में दूसरा कोई साकार भगवान है ही नहीं। तो उनको बकरा-बकरियां कहेंगे। क्यों? बकरे-बकरियों में से क्या आवाज़ निकलती है? मैं-3. तो उनके साथ तुम मिल गए। हाँ। तो ये हिसाब-किताब उनके साथ संग का रंग लगेगा कि नहीं? हाँ। ये हिसाब-किताब हो गया।
क्योंकि बाप कहते हैं सबसे भक्ति भी तुम जास्ती करते हो। हँ? क्या? और धरम वालों में या औरों में जो कम कला के नारायण बनते हैं या उनके फालोअर्स बनते हैं, हँ, जो भी सतयुग में बाद वाली गद्दियों के राजा-महाराजा बनते हैं उनके और उनके फालोअर्स के मुकाबले तुम सबसे जास्ती भक्ति करते हो। और तुम्हारा ही चित्र, हँ, तुम्हारा ही चित्र बाबा ने समझाया था कि जाओ पुरी में, जगन्नाथ पुरी में। उसका वो जो गुम्बज है ऊपर का उनमें देखो ये चित्र गंदे-गंदे खड़े हैं। बड़े गंदे चित्र हैं। किस बात के? किसके साथ मिलने के? हँ? हाँ। वो व्यभिचार दोष में गिरने के गंदे-गंदे चित्र हैं क्योंकि वाम मार्ग में जब देवताएं गए। कब गए? हँ? कब गए? द्वापरयुग में, द्वैतवादी युग में गए क्योंकि वहां दो-दो धरमपिताएं, दो-दो धर्म, दो-दो राज्य, दो-दो कुल, दो-दो भाषाएं, सब कुछ द्वैतवाद शुरू हो जाता है। तो वहाँ जगन्नाथपुरी यादगार है। वहां बड़े गंदे चित्र वाममार्ग के रखे हैं। वाम मार्ग माना बायां हाथ। उल्टा रास्ता। सीधे हाथ से दान-धर्म के अच्छे काम करते हैं। बायीं भुजा से, बायें हाथ से गंदगी की सफाई करते हैं। तो देवताएं जब वाम मार्ग में गए तो ये जगन्नाथ का चित्र और उनके साथी जो भी दिखाए हैं, हँ, वो क्या है? तुम्हारा ही चित्र है बच्चों का। समझे ना?
तो जो मनुष्य कहते हैं ना कि नहीं, वहां स्वर्ग में भी विख है; तो वो बोलता – देखो, ये देवताएं हैं। हँ? तो वो देवताएं भी देखो मंदिर में, विख में जाते हैं ना? तब तो ये गंदे चित्र रखे हुए हैं ना? हँ? अरे, उनसे पूछो, वो जो गंदे चित्र रखे हुए हैं वो मंदिर के बाहर रखे हैं या अंदर रखे हैं? हँ? कहाँ रखे हैं? कोणार्क मंदिर हो, सूर्य मंदिर हो, या जगन्नाथ का मंदिर हो, उसमें वो चित्र गंदे-गंदे बाहर रखे हैं ना? निकलो बाहर। हटो। तुम यहां रहने, अंदर रहने के काबिल नहीं हो। अंदर जगन्नाथ का चित्र रखा है। हँ। तो वो ऐसे दलील देते हैं दुनियावाले कि देवताएं भी तो विख में, विख के कृत्य में जाते थे ना? वो भी तो ऐसे कर्म करते थे ना? तो अभी क्या-क्या दिखलावें? कहते हैं वो देवताएं वाम मार्ग में गए। तो देखो देवताएं वाम मार्ग में दिखलाते हैं। वाम मार्ग कहा जाता है जो पतित बनते हैं विकार में जाते हैं।
तो अभी तुम बच्चों ने अभी समझ लिया है कि बरोबर ये सब बाहरवाले सब, हँ, चिल्लाते रहते हैं। हँ? और विकार में जाते रहते हैं। हम जो यहां ब्राह्मण बने हैं, वो विकार से दूर होते हैं, बहुत दूर। क्योंकि ब्राह्मणों को; ब्रह्मा की संतान हैं ना? तो जो ब्रह्मा की संतान हैं वो उनको तो क्या कहेंगे? स्त्री पुरुष रूप में भी हैं तो भाई-बहन। एक बाप की संतान हैं ना? कौनसे ब्रह्मा की? अरे, घंटों लगाते हो। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, प्रजापिता ब्रह्मा की संतान हैं। अरे, पिता तो एक ही होगा ना? हँ? जिस ब्रह्मा के साथ प्रजापिता शब्द एड है वो पिता भी तो एक ही होगा ना? और उसके साथ जो ब्रह्मा शब्द लिखा हुआ है पीछे से प्रजापिता ब्रह्मा तो इससे साबित होता है कि वो पिता भी है और माता भी है। कैसे? हँ? मन्दिर में जाते हैं तो बोलते हैं ना तुमेव माता च पिता तुमेव। शिवलिंग के सामने कहते हैं ना? क्यों कहते हैं? वो शिवलिंग है तो एक ही। दो तो नहीं रखे हुए हैं। फिर क्यों कहते हैं, हँ, कि वो एक ही आत्मा है जो माता के रूप में भी पार्ट बजाती है सौ परसेन्ट सहनशक्ति का और फिर सामना करने की शक्ति का पार्ट भी बजाती है बाप के रूप में? तो वो माता और पिता दोनों का रूप है। क्या? मन्दिर में शिवलिंग दिया हुआ है ना?
तो तुम ब्राह्मण तो समझ गए कि हम शिवबाबा की संतान हैं। और शिवबाबा तो निराकार। निराकार कैसे ज्ञान देता है? हँ? निराकार को ज्ञान देने के लिए ब्रह्मा चाहिए ना? तो जिसमें भी प्रवेश करते हैं; पुरुष तन में ही प्रवेश करेंगे। हँ? क्यों? पुरुष तन में ही क्यों प्रवेश करते हैं? हँ? अरे, स्त्री चोले में भी प्रवेश कर जाएं। नहीं? नहीं करते? क्यों? स्त्री चोले में क्यों नहीं प्रवेश करते? हँ? अरे, कोई कारण होगा कि नहीं? अरे? वो कहता है हम नहीं बताएंगे। हँ? (किसी ने कुछ कहा।) सबसे मिलना? सबसे मिलना माने? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, बच्चों से मिलना हो सके। बच्चों से मिलना हो सके? क्यों? मां बच्चों से नहीं मिलती? हँ? हाँ, मां बच्चों से मिल सकती है लेकिन मां जो है वो दुष्ट बच्चे होंगे, राक्षस संप्रदाय तो वो तो मां को भी पोल्यूट कर देंगे। हँ? हाँ। तो बताया कि बाप पुरुष तन लेते हैं। उसको क्या पोल्यूट करेंगे? हँ? संग के रंग में आएंगे तो क्या पोल्यूट करेंगे? कर सकेंगे? नहीं कर सकेंगे।
तो बताया कि मैं जिस पुरुष तन में आता हूँ उसका आते ही आते पहले नाम रख देता हूँ ब्रह्मा। क्यों? क्योंकि लक्ष्य क्या दिया हुआ है? क्या बनना है? मुझे क्या काम लेना है? हँ? मैं खुद ही परमपिता हूँ; मेरा भी कोई पिता है क्या? नहीं। तो पिता को क्या चाहिए? हँ? नई सृष्टि रचना है तो माता तो चाहिए ना? तो मुझे माता चाहिए। तो भले पुरुष तन में प्रवेश किया है लेकिन उसमें गुण, क्वालिटीज़ और शक्तियां जो हैं वो सारी माता की चाहिए। हँ? तो ये माता की शक्तियां चाहिए तो ब्रह्मा तो बनना पड़े। हँ? ब्रह्मा बने तो वो सहन कर सके। क्या सहन कर सके? हँ? क्या सहन कर सके? बच्चों की शैतानियां सहन करे? हँ? नहीं। महाकाली का रूप धारण कर ले। क्यों? क्यों? महाकाली को सपोर्ट किसका मिलता है? महाकाल का सपोर्ट मिलता है। उसी शरीर में महाकाल बैठा हुआ है। उसी शरीर में स्वभाव-संस्कार के आधार पर वो अंदर से प्यार भी भरा रहता है।
तो बताया – तुम ब्रह्मा के बच्चे हुए, प्रजापिता ब्रह्मा के। भाई भी और बहन भी। तो भाई-बहन के साथ विकार में जाना ये तो बिल्कुल क्रिमिनल असाल्ट है। हाँ। है ना बच्ची? ये नामचार बड़ा गंदा हो जाता है समाज में। क्या? अरे, इनके घर के परिवार के बच्चे तो ऐसे हैं। हँ? इसलिए ऐसे मत समझो कि कोई ऐसे गंदे काम करते हैं आपस में, हँ, तो कोई के, कोई के मन-बुद्धि में ये बात टचिंग नहीं होती, पता नहीं चलता होगा। दिल से वो कोई हट जाते हैं। भले कुछ बोलते नहीं हैं। नहीं। जैसे तुम बच्चों के जो भी छोटेपन से लेकरके कर्म करते हो, जो बाबा को सुनाते हो ना कि दस बरस में हमने ऐसे किया। हम दस बरस के थे तब हमने अपने घर-परिवार वालों के साथ ऐसे किया। 12 बरस में ऐसे किया। ऐसे होते हैं ना? तो ज़रूर ये भी तो याद रहते हैं ना कि भई फलाने समय में मैं ये बहुत गंदा काम किया। बाबा को लिखकरके देते हैं ना? बच्चे बहुत हैं जो लिखकरके देते हैं। आनेस्ट हैं ना? क्या? सच्चाई है कि नहीं? सच्चाई है। तो लिखकरके देते हैं।
बाबा कहते हैं जो वफादार बच्चे हैं, फरमानबरदार बच्चे हैं वो बाबा को आकरके सब कुछ सुनाते रहते हैं। तो बाबा समझ जाते हैं कि ये तो आनेस्ट बच्चे हैं, समझदार बच्चे हैं, फरमानबरदार हैं, वफादार हैं। बाप जो बताएंगे वो मानेंगे। हँ? वफा निभाएंगे। ये निभाएंगे और वो नहीं निभाएंगे। तो बाबा छोटेपन में हमने ये गंदा काम किया। आनेस्ट बच्चे कहते हैं बाबा हमको क्षमा करो। तो बाप कहते हैं क्षमा तो नहीं करेंगे। क्या? हाँ, क्या फिर, फिर पोतामेल देने से फायदा क्या हुआ? हँ? कोई फायदा हुआ क्षमा नहीं करेंगे तो? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) मदद करेंगे? क्या मदद करेंगे? हँ? धर्मराज की सजाएं मिलेंगी तो उसमें क्या करेंगे? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, बताते हैं कि माफ नहीं पूरा होगा; आधा माफ हो जाता है। वो भी पहली बार बताते हैं तो माफ। एक बार माफ, दो बार माफ। दूसरी बार भी माफ कर देते हैं। दूसरी बार भी आधा माफ हो जावेगा। फिर अगर तीसरी बार भी वो ही गल्ती करते हैं तो फिर आधा माफ होगा? नहीं। फिर परसेन्टेज घटता जाता है।
तो बाप कहते हैं क्षमा नहीं करेंगे। हाँ, हल्का हो जाएगा। क्या? कोई के ऊपर; गधा है और वो एक क्विंटल माल ले जा सकता है। इतनी उसमें ताकत है। और उसपे दो, दो क्विंटल डाल दिया पीठ पे, तो उसको बड़ी मुश्किल हो जाती है ना? और उसमें से एक क्विंटल हटा दिया तो आराम हो जाएगा ना? तो हल्का कर देंगे। हल्का जरूर हो जाएंगे। तुम्हारा जो पाप है क्योंकि सर्जन को सच बताते हो ना? तो कोई तो भूल जाते हैं क्या? हँ? अरे, भूलते नहीं हैं। हँ? कभी भी नहीं भूलते हैं ऐसे-ऐसे जो जघन्य काम करते हैं। समझे ना? जिनको मालूम पड़ता है तो उनको तो वो कभी भी भूला नहीं जा सकता। हँ? और वो मन-बुद्धि में पिछाड़ी तक साथ रहते ही हैं। पीछे ये है ज्ञान बल से कि ज्ञान बुद्धि में बैठ गया तो फिर ऐसे-ऐसे काम कोई न करे। हँ? उसके लिए क्या करें? पुरुषार्थ करें। बाकि कोई भूल नहीं जाते हैं ऐसी चीज़ें। नहीं। वो दिल के अंदर खाती रहती है, खाती रहती है। देखो खाती है।
A morning class dated 30.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the beginning of the middle portion of the second page on Thursday was – Children feel that we are definitely Ajamils since half of half a Kalpa. What does it mean? Half of half a Kalpa? Hm? What does it mean? What is meant by half? Hm? What half? Full Kalpa is of 5000 years. Half of it means 2500 years. And halve it further. It means 1250 years, i.e. Iron Age. It is because children understand that we children have three-fourth part happiness in the drama. And one part there is sorrows. So, for the people of other religions it is not so. What? For them half happiness and half sorrows. This is why it was told that we are definitely Ajamils since half of half a Kalpa. There is account of Ajamilhood children, isn’t it? What? Aja means goat. And ‘mil’ means ‘mixed up’. With whom did they mix up? Those [who say] I, I, I am God, I am Shiv, I am Shiv (Shivohum). The founders of religions who came, they too say that we alone are Gods in corporeal form. There is no other corporeal God at all in this world. So, they will be called he-goats and she-goats. Why? Which sound emerges from the he-goats and she-goats? Mai-3 (I, I, I) So, you mixed up with them. Yes. So, this karmic account, will you get coloured in their company or not? Yes. This is the karmic account.
It is because the Father says that it is you who do the most Bhakti also. Hm? What? Among the people of other religions or in others, who become Narayans with fewer celestial degrees or become their followers, hm, whoever becomes Raja-Maharaja of the latter thrones of the Golden Age and their followers, when compared to them you do the most Bhakti. And your picture only, hm, your picture only, Baba had explained that go to Puri, to Jagannath Puri. Look at its dome (gumbaj) above, wherein these vulgar pictures are standing. They are very vulgar pictures. In which topic? Pictures of meeting with whom? Hm? Yes. They are vulgar pictures of falling in the defect of adultery because when the deities started following the leftist path; when did they go? Hm? When did they go? They went in the Copper Age, in the dualist Age because two founders of religions, two religions, two kingdoms, two clans, two languages, dualism starts in everything. So, there is a memorial of Jagannath Puri there. Very vulgar pictures of leftist path (vaam maarg) are installed there. Vaam maarg means the left hand. The opposite path. A person performs good tasks of donation and religion through the right hand. They clean the dirt (excreta) with the left arm, left hand. So, when the deities started following the leftist path, then what are these pictures of Jagannath and his companions who have been depicted? It is your picture only children. You have understood, haven’t you?
So, the human beings who say, don’t they that no, there is poison there in heaven as well; So, he says – Look, these are deities. Hm? So, look, those deities also indulge in poison (lust) in the temples, don’t they? Only then are these vulgar pictures placed, aren’t they? Hm? Arey, ask them, as regards those vulgar pictures that have been placed, are they placed outside the temple or within it? Hm? Where are they placed? Be it the temple of Konark, be it the temple of Sun or be it the temple of Jagannath, those vulgar pictures (idols) are placed in them outside, aren’t they? Get out. Move away. You are not worthy of living here, living inside. Inside the picture of Jagannath has been placed. Hm. So, they, the people of the world give such arguments that the deities also used to indulge in poison, in the acts of poison (lust), didn’t they? They also used to perform such actions, didn’t they? So, what all should be depicted now? It is said that those deities started following the leftist path. So, look, the deities are depicted on the leftist path. Leftist path is said to be about those who become sinful, indulge in lust.
So, now you children have understood that rightly all these outsiders keep on shouting. Hm? And they keep on indulging in lust. We, who have become Brahmins, we are distant, very distant from vices. It is because the Brahmins; they are children of Brahma, aren’t they? So, those who are children of Brahma, what will they be called? Even if they are in the form of a woman and a man, they are brothers and sisters. They are children of one Father, aren’t they? Of which Brahma? Arey, you take hours. (Someone said something.) Yes, they are children of Prajapita Brahma. Arey, the Father will be only one, will he not be? Hm? The Brahma with whom the word Prajapita is added, that Father will also be only one, will he not be? And along with it the word ‘Brahma’ that has been written as a suffix, Prajapita Brahma, so it proves that he is the Father as well as the mother. How? Hm? When you go to the temples, you say, don’t you that you alone are my mother as well as Father. How? Hm? When you go to the temple, you say, don’t you that you alone are my mother as well as my Father. You say in front of the Shivling, don’t you? Why do you say? That Shivling is only one. Two are not placed. Then why do you say, hm, it is because the same soul plays the part of hundred percent tolerance in the form of a mother also and then plays the part of the power of confrontation also in the form of a Father. So, it is the form of both mother and Father. What? A Shivling has been placed in the temple, isn’t it?
So, you Brahmins have understood that we are children of ShivBaba. And ShivBaba is incorporeal. How does the incorporeal give knowledge? Hm? Incorporeal requires Brahma to give knowledge, doesn’t He? So, in whomsoever He enters, He will enter in a male body only. Hm? Why? Why does He enter into a male body only? Hm? Arey, He should enter in the female body also. No? Doesn’t He enter? Why? Why doesn’t He enter in a female body? Hm? Arey, will there be any reason or not? Arey? That person says – I will not tell. Hm? (Someone said something.) Meeting with everyone? What is meant by meeting with everyone? (Someone said something.) Yes, so that He could meet with the children. So that He could meet the children? Why? Doesn’t a mother meet the children? Hm? Yes, a mother can meet the children, but as regards the mother, if the children are wicked, if they belong to the demoniac community, they will pollute the mother as well. Hm? Yes. So, it was told that the Father adopts a male body. How will they pollute him? Hm? Can they pollute him if he gets coloured by the company? Can they? They will not be able to.
So, it was told that the male body in which I come, I name him Brahma as soon as I come. Why? It is because what the given target is? What do you have to become? What is the task that I have to extract? Hm? I am Myself the Supreme Father; Do I also have any Father? No. So, what does a Father require? Hm? If He has to create a new world, then He requires a mother, doesn’t He? So, I require a mother. So, although I have entered in a male body, yet the virtues, qualities and powers in him should be that of a mother. Hm? So, when these powers of a mother are required then he will have to become Brahma. Hm? If he becomes a Brahma then he can tolerate. What can he tolerate? Hm? What can he tolerate? Should he tolerate the mischiefs of the children? Hm? No. He should assume the form of Mahakali. Why? Why? Who support does Mahakali get? She gets the support of Mahakaal. Mahaakaal is sitting in the same body. Love is also filled inside in the same body on the basis of the nature and sanskars.
So, it was told – You are children of Brahma, Prajapita Brahma. Brother as well as sister. So, to indulge in lust with brother or sister is a completely criminal assault. Yes. It is, isn’t it daughter? The name becomes very dirty in the society. What? Arey, the children of the house, the family of this one are like this. Hm? This is why don’t think as if someone performs such dirty tasks with each other, hm, then the touching (feeling) doesn’t occur in anyone’s mind and intellect, they don’t know. They move away from their heart. Although they don’t say anything. No. For example, whatever actions you children perform from your childhood, whatever you narrate to Baba, don’t you that we did like this at the age of ten. When I was ten years old I did such and such thing with the members of my home and family. I did this at the age of 12. Such things happen, don’t they? So, definitely you also remember that brother, I performed such a dirty task at such and such time. You write and give to Baba, don’t you? There are many children who give in writing. They are honest, aren’t they? What? Is it true or not? It is true. So, they write and give.
Baba says the loyal children, the obedient children come and keep on telling everything to Baba. So, Baba understands that these are honest children, wise children, obedient, loyal. They will obey whatever the Father says. Hm? They will maintain the loyalty. These will maintain and they will not maintain. So, Baba we performed this dirty task in our childhood. Honest children say - Baba, pardon us. So, the Father says – I will not pardon you. What? Yes, then, then, is there any benefit in giving potamail (true life story)? Hm? If He doesn’t pardon then is there any benefit? Hm? (Someone said something.) Will He help? What help will He extend? Hm? When you get the punishments of Dharmaraj, then what will He do in it? Hm? (Someone said something.) Yes, He tells that you will not be pardoned completely; half of it is pardoned. That too, if you reveal for the first time then it is pardoned. It will be pardoned once, it will be pardoned twice. He pardons the second time also. Second time also half will be pardoned. Then if you commit the same mistake for the third time then will half of it be pardoned? No. Then the percentage will go on decreasing.
So, the Father says – I will not pardon you. Yes, it will become light. What? On someone; if there is a donkey and it can carry one quintal weight. It has that much strength. And if you load two, two quintals on its back, it feels very difficult, doesn’t it? And if you remove one quintal from that, it will feel relaxed, will he not? So, He will make it light. You will definitely become light. As regards your sin, it is because you reveal the truth to the surgeon, don’t you? So, some forget; what? Hm? Arey, they do not forget. Hm? They never forget such heinous tasks that they perform. You have understood, haven’t you? Those who get to know, they can never forget it. Hm? And that remains in the mind and intellect till the end. Later it is true that through the power of knowledge, if the knowledge sits in the intellect that nobody will perform such tasks. Hm? What should we do for that? We should make purusharth. But nobody forgets such things. No. It keeps on, keeps on pinching inside the heart. Look, it pinches.
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शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2937, दिनांक 10.07.2019
VCD 2937, dated 10.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning class dated 30.11.1967
VCD-2937-extracts-Bilingual
समय- 00.01-18.56
Time- 00.01-18.56
प्रातः क्लास चल रहा था – 30.11.1967. तीसरे पेज की तीसरी-चौथी लाइन में बात चल रही थी कि दुनिया तो दो ही हैं – पापात्माओं की दुनिया और पुण्यात्माओं की दुनिया। पापात्माओं की दुनिया में कौन पाप करते हैं? हँ? स्त्रीयां ज्यादा पाप करती हैं, कन्याएं-माताएं ज्यादा पाप करती हैं या पुरुष ज्यादा पाप करते हैं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। जिनको पुरुषपने की इन्द्रिय का भान है वो ही बहुत पाप करते हैं। जिनको उस इन्द्रिय का भान ही नहीं है, हँ, वो इन्द्रिय है ही नहीं मारामारी करने वाली, तो उनको भान भी कहां से होगा? तो वो कन्याएं-माताएं जो हैं उनके लिए बताया कि वो स्वरग के द्वार खोलती हैं। वो है पुण्यात्माओं की दुनिया। पुण्यात्माओं की दुनिया और पापात्माओं की दुनिया। पुण्यात्माओं की दुनिया बनाते हैं उन कन्याओं-माताओं के संगठन के द्वारा जिसके लिए शास्त्रों में गायन है 16000 कन्याएं-माताओं का संगठन रूपी माला बनाई। तो दो दुनिया हो गई। और दो दुनिया गाई जाती है। सुखधाम और? और? दुखधाम।
तो देखो जब दुख की दुनिया आती है तो कितना चिल्लाते हैं! बहुत दुखी होते हैं। हँ? कौन? पुरुष ही ज्यादा दुखी होते हैं कि कन्याएं-माताएं भी दुखी होती हैं? हँ? कन्याएं-माताएं ज्यादा दुखी होती हैं और पुरुष तो दुर्योधन-दुःशासन वृत्ति है, पुरुषों में, दुखधाम में, तो पुरुष के रूप में जब तक है आत्मा, पुरुष का चोला लिया हुआ है तो उतना नहीं रोएंगे। परन्तु सारा जीवन पुरुषों ने जो सुख लिया है वो किसके आधार पर लिया है? हँ? सुख देह के आधार पर मिलता है ना? तो पुरुषों ने सुख लिया है एंटी सेक्स कन्याओं-माताओं के थ्रू। तो सारा जीवन जहां से सुख लिया है वो याद आएगा कि नहीं आएगा? हाँ, वो अंग याद आता है। अंत मते सो गति हो जाती है। तो अगला जनम जाकरके फिर वो स्त्री चोला मिलता है। तो दुखी होते हैं कि नहीं फिर? हँ? हिसाब-किताब पूरा करेंगे कि नहीं? हाँ, हिसाब-किताब पूरा होता है।
तो देखो जब बहुत दुखी होते हैं, दुख बढ़ता ही जाता है तो पीछे याद करते हैं कि हमको आकरके इस दुख से लिबरेट करो। क्या? पीछे? पहले क्यों नहीं इतना याद करते? हँ? जो दुनिया बनती है, नई दुनिया जब भगवान ने आकरके पुरानी दुनिया को नई दुनिया बनाया तो क्यों नहीं याद करते? तो गायन है - सुख में करें न कोय। दुख में सब सुमिरन करें। गाते हैं ना? हाँ। क्या गाते हैं? क्या गाते हैं? अरे? दुख में सब सुमिरन करें, सुख में करै न कोय। जो दुख में सिमिरन करें; अब सिमिरन बिचारे कहां से करें? सिमिरन माने स्मरण। पहचानें तो स्मरण करें। हँ? अरे, रसगुल्ला खाया होगा, रसगुल्ले का संग लिया होगा जिह्व्या से तो याद आएगा। अब खाया ही नहीं, हम वो कानों से भी नहीं सुना, तो कहां से वो सुख याद आएगा? याद आएगा? नहीं याद आएगा।
तो बताया – भक्तिमार्ग में जो दुख की दुनिया है, जहाँ भागते रहते हैं भक्ति में; कभी इसके पीछे, कभी उसके पीछे। हँ? इस जनम में हिंदू बनते हैं तो मन्दिरों में भागते हैं। अगले जनम में मुसलमान बनते हैं तो मस्जिदों में भागते हैं। फिर अगले जनम में क्रिश्चियन बनते हैं तो गिरिजाघर में भागते हैं। कोई जनम में सिक्ख बन गए तो गुरुद्वारों में भागते हैं। भागाभाग-भागाभाग। तो उस जिंदगी को क्या कहा जाता है? हँ? कौनसी जिंदगी हुई? भक्ति, भक्तिमार्ग की जिंदगी।
तो भक्ति करते-करते नीचे गिरते जाते हैं। अनेकों को याद करते जाते हैं। तो याद करते हैं लास्ट में जाकरके कि हे भगवान, तू ही दुख को दूर कर सकता है। दुख हरने वाला और सुख कर्ता। दुख हर्ता, सुख कर्ता एक ही गाया हुआ है। तो वो ही आकरके लिबरेट करते हैं दुख से। बुलाते हैं हमको अपने घर ले चलो। इस दुख की दुनिया में अब दुख के सिवाय अब अंत में हमें कोई भी सुख अंशमात्र भी प्राप्त नहीं। ऐसी दुनिया भी आने वाली है। कैसी? हँ? ताबड़तोड़ विनाश होगा ना चारों तरफ दुनिया में हाहाकार होगी। तो सुख होगा या दुख होगा? अंशमात्र भी सुख अनुभव नहीं करेंगे, तो कहेंगे - हे भगवान! जिस घर में तुम सदाकाल रहते हो शांतिधाम में उस घर में हमको भी ले चलो। क्या? हमें न सुख चाहिए और न ये, ये दुख तो बिल्कुल ही नहीं चाहिए। तो पीछे कहते हैं। पीछे माने? जब दुनिया तमोप्रधान हो जाती है, दुखदायी हो जाती है तब कहते हैं। स्वर्ग की दुनिया जो मैं बनाके जाता हूँ, हँ, हैविनली गॉड फादर आते हैं ना, तो हैविन बनाके जाते हैं तो हैविनली गॉड फादर कहे जाते हैं। तो स्वर्ग में याद नहीं करते। नरक में, हां, फिर याद करते-4 अंत में तो फिर सिर्फ क्या याद करते हैं? कि बस अब हमें न सुख चाहिए, न दुख चाहिए। अंशमात्र। हम क्षणभंगुर सुख भी नहीं चाहिए। अच्छा? अपने घर ले चलो। हमें शांति चाहिए। हाँ। परन्तु बाप कहते हैं कि घर में जाकरके तो बैठना नहीं है। हँ? घर में जाके बैठना है? अरे, बाप किस बच्चे को पसन्द करते हैं? हँ? जो बच्चे बाप का धंधा करें, संभालें, दुकान संभालें, कारखाना संभालें, खेती-बाड़ी संभालें, उन बच्चों को प्यार करेंगे, हँ, या उन बच्चों को प्यार करेंगे जो घर में पड़े रहते हैं, हँ, शैतानी देते रहते हैं? उनको प्यार करेंगे? नहीं।
तो घर में जाकरके तो बैठने का नहीं है सदाकाल का। ये बात तो बच्चे अभी समझ गए हैं, हँ, कि घर में जाकरके कोई सदीव-सदीव बैठना नहीं है। हँ? पीछे तो इस दुनिया में आना जरूर है। क्या? दुनिया में चाहे कोई भी आत्माएं हों, इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने वाली, ऐसी तो एक भी नहीं है कि जो बाप के घर में चली जाए शांतिधाम, आत्मलोक में और फिर कभी वापस आए ही नहीं। वो तो बातें बनाय दी है शास्त्रकारों ने; क्या? हँ? महात्मा बुद्ध निर्वाणधाम गया, हँ, जहां वाणी का गम नहीं, वाणी होती ही नहीं क्योंकि वहां शरीर ही नहीं, इन्द्रियां ही नहीं। तो ऐसा कुछ नहीं है कि कोई सदाकाल के लिए वानप्रस्थी हो जाए, सदाकाल के लिए आत्माओं की दुनिया में, घर में ही बैठा रहे, पड़ा रहे। नहीं। आना तो पड़ेगा। अरे, आगे नहीं आओगे तो इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने के लिए बाद में तो आना ही पड़ेगा।
तो देखो, कितना समय लगता है वहां से फिर आने में। कितना समय लगता है? कितना समय लगता है? तुम बच्चों को तो ज्यादा नहीं बैठना होता है। तुम बच्चे तो बाप के आज्ञाकारी बच्चे हो ना? बाप कहते हैं सृष्टि रूपी रंगमंच पर जाकरके धंधा करो। बाप ने जो सृष्टि बनाई है उस सृष्टि में तुम ऐसे कर्म करो जो दुनिया को सुख हो। दुख? दुख न हो। हाँ। तो तुम जितना त्याग करोगे उतना तुम्हारा भी भाग्य बनेगा। और तुम्हारे त्याग से दुनिया वाले भी सुखी होंगे, दुखी होंगे? सुखी होंगे। तो बाप ने समझाया ना बच्ची जो भी दूसरे हैं सभी धर्मस्थापक वो तो इस समय में सभी पतित ही हैं। क्या? क्योंकि इस दुनिया में बाद में आते हैं कि मैं सुख की दुनिया जो रचता हूँ उसमें आते हैं? दुख की दुनिया में बाद में आते हैं ना? तो वो तो, वो भी तो सब पतित हैं ना? हाँ। जबकि नंबरवन पतित है इस दुनिया में जो नंबरवन में पहला-पहला आया, वो ही पतित है इस सृष्टि रूपी वृक्ष का बीज। वृक्ष पहले पैदा होता है, तना, टहनियां पहले पैदा होती हैं कि जड़ें पहले पैदा होती हैं कि पहले बीज होता है? पहले तो बीज बाप होता है ना? तो इस सृष्टि रूपी रंगमंच का जो जगतपिता कहा जाता है वो नंबरवन पतित है। हँ? वो इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पहले-पहले आता है सबसे पहले। वो ही अंत में आकरके सबसे जास्ती पतित बन जाता है। इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर तुम ब्राह्मण गाते हो। क्या? संगमयुग कब तक? हँ? पुरुषोत्त्म संगमयुग कब तक? पतिततम कामी कांटे में शिव साकार होते जब तक। वाह भाई। तो वो ही पतित है। तो बाकि और जो बाद में आएंगे वो पतित नहीं बनेंगे? हाँ, वो भी तो पतित होंगे ना?
ये सारी दुनिया पतित ही पतित है कलियुग के अंत में। तो सभी पुकारते हैं। क्या? किसको? उनको। उनको माने किनको? उसको क्यों नहीं कहा? हँ? अरे, वो धरमपिताएं तो समझते हैं कि एक निराकार ही है, हँ, अल्लाह माने ऊँच ते ऊँच। हँ? उन मुसलमानों से पूछो तो कहेंगे अल्लाह मियां ने जमीन बनाई, अल्लाह मियां ने आफताब, सूर्य बनाया, अल्लाह मियां ने चन्द्रमा, हँ, चन्द्रमा बनाया। बनाया? हँ? नहीं। कैसे बनाएगा जब वो निराकार है? ये सब चीज़ें तो साकार में हैं। आँखों से देखने में आती हैं कि नहीं? तो बनाएगा कैसे? साकार होगा तो साकार बनाएगा। निराकार होगा तो निराकार बनाएगा। तो निराकार वो आत्मा है सुप्रीम सोल। वो इस सृष्टि पर आता है तो हमको बताता है बच्चे तुम अपने को देह साकार समझ बैठे हो। तुम साकार देह नहीं हो। तुम देह को चलानेवाली तो, हँ, ये जैसे राजा ऊपर बैठता है ना गद्दी पे, ऐसे तुम्हारी आत्मा ये भृकुटि में बैठी हुई है। हँ? भरी पूरी कुटी है इस आत्मा की, हँ, जहाँ से ये आँखों में रोशनी निकल रही है। ये आत्मा जब तक इस शरीर में रहती है आँखों में से रोशनी निकलती है। आत्मा उड़ जाती है तो आँखें भी बटन और सारा शरीर भी, इन्द्रियां काम करती हैं? नहीं। निश्चल हो जाती हैं।
तो बताया - तुम वो ही ज्योति आत्मा हो जिसकी ज्योति आँखों से निकल रही है। और ज्योति भी कोई लंबी-चौड़ी बड़ी भारी नहीं है। हँ? कितनी है? अति सूक्ष्म ज्योति है। गीता में गाई हुई है – अणोणीयांसम्। जैसे बाप अणु से अणु है अति सूक्ष्म है, वैसे तुम आत्माएं भी अति सूक्ष्म ज्योतिबिन्दु हो। तो वो ज्योतिबिन्दु सिर्फ ज्योतिबिन्दु बनकरके कोई कार्य इस दुनिया का संपन्न नहीं कर सकती। जैसे तुम्हारी आत्मा अकेली हो, शरीर न हो तो दुनिया का कोई काम कर पाओगे? नहीं। आत्मा भी चाहिए और साकार शरीर भी चाहिए। तो सुप्रीम सोल हैविनली गॉड फादर जो ज्योतिबिन्दु है, हँ, और सदाकाल ज्योति रुप में रहता है तो उसको देह जरूर चाहिए। तो जिस देहधारी में प्रवेश करता है, हँ, उसका नाम देता है। संसार में गायन है। भारत में तो चित्र भी बनाय दिये अर्जुन के शरीर रूपी रथ में आया। वो मुकर्रर रथ है। और दूसरे धरमपिताएं भी मानते तो हैं ना आदम को, सृष्टि का आदम? आदम माने आदमी; पहला आदमी। एडम। मानते हैं ना? हाँ। तो उसमें जो इस सृष्टि का बीज रूप बाप है; बीज को बाप कहा जाता है ना? हाँ। तो उस बीज रूप बाप में उस साकार स्वरूपधारी में वो निराकार शिव ज्योति प्रवेश करती है। मुकर्रर रूप से उसी में प्रवेश करती है।
तो उनको कहा। उनको क्यों कहा उनको पुकारते हैं? एक को पुकारते हैं या उसको पुकारते हैं या उनको पुकारते हैं? पुकारा किसको जाएगा? अरे, होगा तो पुकारा जाएगा। होगा ही नहीं तो पुकारा जाएगा? और पुकारने से आएगा? जैसे ये हिन्दू लोग कितना कीर्तन करते हैं जन्म-जन्मान्तर से। आता है? नहीं आता ना? हाँ। ऐसे ही मुसलान। कितना मस्जिद में चिल्लाते हैं अल्लाहो अकबर। आता है? हँ? सालों-साल बीत गए हज़ारों साल, आया तो नहीं। नहीं। तो वो असली रूप में आता है। और तुमको बहुत दुख होता है इस दुनिया में तब तुम उसे पुकारते हो। इस दुनिया दुख की दुनिया में जब तक अंशमात्र भी, क्षणभंगुर सुख भी तुमको मिलता रहता, तो तुम उतना? उतना नहीं पुकारते। फिर जी जान लगाकरके हाथ-पांव सारे पटक-पटक के फिर तुम बुलाते हो जब तुम्हें दुख ही दुख मिलता है। सुख का अंशमात्र भी नहीं रहता है। तब तुम उनको बुलाते हो। उनको माने एक को या दो आत्माओं को? हाँ, इस सृष्टि रूपी रंगमंच का जो हीरो पार्टधारी पहला पुरुष है, पहला मनुष्य, आदमी, हँ, उसमें वो सुप्रीम सोल निराकार प्रवेश करता है। अरे, भूत-प्रेत प्रवेश कर सकते हैं, बोल सकते हैं, सुन सकते हैं, देख सकते हैं तो क्या भगवान निराकार नहीं प्रवेश कर सकता? प्रवेश कर सकता है ना? हाँ। वो गीता में लिखा हुआ है मैं प्रवेश करने योग्य हूँ।
तो दो हो गए। जिसमें प्रवेश किया वो और जिस आत्मा निराकार ने प्रवेश किया वो। माने निराकारी और साकारी दोनों का मेल हो गया। अरे, तुम बच्चे भी तो साकार शरीर; तुम आत्मा हो ना निराकार? तुम साकार शरीर धारण करते हो तब तुम सुख-दुख भोगते हो ना? कि अकेली आत्मा या अकेला शरीर सुख-दुख भोगता है? नहीं भोगता। तो बताया कि उसको तुम पुकारते हो प्रैक्टिकल में। और वो प्रैक्टिकल में होता है तब ही तुम पुकारते हो।
A morning class dated 30.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the third-fourth line of the third page was that there are two worlds only – A world of sinful souls and a world of noble souls. In the world of sinful souls who commits sins? Hm? Is it the women who commit more sins, is it the virgins and mothers who commit more sins or is it the men who commit more sins? Hm? (Someone said something.) Yes. Those who have the consciousness of the organs of manhood, they alone commit a lot of sins. Those who do not have any consciousness of that organ at all, hm, those who do not have that organ at all which indulges in violence, then how will they have its consciousness? So, it was said for those virgins and mothers that they open the gate of heaven. That is a world of noble souls. The world of noble souls and the world of sinful souls. The world of noble souls is formed through the gathering of those virgins and mothers for which it is famous in the scriptures that a gathering-like rosary of 16000 virgins and mothers was formed. So, there are two worlds. And two worlds are praised. Abode of happiness and? And? The abode of sorrows.
So, look, when the world of sorrows comes, then people shout so much! They become very sorrowful. Hm? Who? Is it the men only who become more sorrowful or do the virgins and mothers also become sorrowful? Hm? The virgins and mothers become more sorrowful and as regards the men, they have the attitude of Duryodhans and Dushasans in the abode of sorrows; so, as long as the soul is in a male form, as long as they have assumed a male dress, they will not cry so much. But the happiness that the men have enjoyed throughout the life, on whose basis have they obtained? Hm? Happiness is received on the basis of the body, isn’t it? So, the men have obtained happiness through the anti-sex virgins and mothers. So, the one from whom they have obtained happiness throughout their life, will she come to the mind or not? Yes, that organ comes to the mind. As are the thoughts in the end, so becomes the fate. So, in the next birth they get a female dress. So, do they become sorrowful or not again? Hm? Will they settle the karmic accounts or not? Yes, the karmic account is settled.
So, look, when you become very sorrowful, when the sorrows keep on increasing, then later you remember [Me] that come and liberate us from this sorrow. What? Later? Why don’t you remember so much earlier? Hm? The world that is established, the new world, when God came and transformed the old world to new world, then why don’t they remember? So it is sung – Nobody remembers in happiness. Everyone remembers in sorrows. They sing, don’t they? Yes. What do they sing? What do they sing? Arey? Everyone remembers in sorrows, nobody remembers in happiness. If they remember in sorrows; well, how can they remember? Simiran means remembrance. They will remember if they recognize. Hm? Arey, if they have eaten rasgulla, if they have tasted the company of rasgulla through the tongue, then it will come to the mind. Well, if they haven’t eaten at all, I haven’t even heard through the ears, then how will that joy come to the mind? Will it come to the mind? It will not come to the mind.
So, it was told – The world of sorrows on the path of Bhakti, where people keep on running in Bhakti; sometimes after this one, sometimes after that one. Hm? In this birth if they become Hindus, then they run among temples. In the next birth when they become Muslims, then they run among the mosques. Then, when they become Christians in the next birth, they run among the Churches. If they become Sikhs in a birth, then they run among the Gurudwaras. Running and running. So, that life is called; hm? What life is it? A life of Bhakti, path of Bhakti.
So, you keep on falling while doing Bhakti. You keep on remembering many. So, in the last you remember – O God, You alone can remove our sorrows. The one who removes the sorrows and gives happiness. Only one is praised as the remover of sorrows and giver of happiness. So, He alone comes and liberates us from sorrows. You call Me saying – Take us to our home. In this world of sorrows in the end there is not even a trace of happiness for us except sorrows. Such a world is going to arrive. Of what kind? Hm? There will be large scale destruction, will it not be there? There will be cries of despair everywhere in the world. So, will there be happiness or sorrows? When people don’t experience even a trace of happiness, then they will say – O God! The home where you live permanently, in the abode of peace, take us also to that home. What? We require neither happiness; nor do we require this sorrow at all. So, later they say. What is meant by ‘later’? When the world becomes tamopradhaan (degraded), becomes a cause for sorrows, then they say. The world of heaven that I make and go, hm, Heavenly God Father comes, doesn’t He? So, He establishes Heaven and goes, so, He is called Heavenly God Father. So, people don’t remember in heaven. In the hell, yes, then while remembering [God], what is the only thing that they remember in the end? That is it; now we require neither happiness nor sorrows. Trace. We don’t require even momentary happiness. Achcha? Take us to our home. We require peace. Yes. But the Father says that you don’t have to go and sit at home. Hm? Do you have to go and sit at home? Arey, which child does a Father like? Hm? Will he like the children who pursue, take care of the Father’s business, take care of the shop, take care of the factory, take care of the farm or will he love those children who keep on lying in the home and keep on performing mischiefs? Will he love them? No.
So, you don’t have to go and sit at home permanently. Children have now understood this topic that you don’t have to go and sit forever at home. Hm? Later you have to definitely come to this world. What? Be it any souls in the world that play a part on this world stage, there is none who could go to the Father’s home, the abode of peace, the Soul World and doesn’t return ever. The writers of the scriptures have made topics; what? Hm? Mahatma Buddha went to the abode of silence, where there is no sorrow of speech, there is no speech at all because there is no body at all, no organs at all. So, there is no such thing that someone becomes vaanprasthi (retired) forever, keeps on living in the world of, home of souls forever. No. He will have to come. Arey, if you don’t come earlier on this world stage to play your part then you will definitely have to come in the end.
So, look, how much time does it take to come from there? How much time does it take? How much time does it take? You children don’t have to sit for long [in the Soul World]. You children are obedient children of the Father, aren’t you? The Father says – Go and do your business on the world stage. In the world that the Father has created perform such actions that the world feels happy. Sorrows? It shouldn’t feel sorrowful. Yes. So, the more you sacrifice here, the greater will be your fortune. And through your sacrifice, will the people of the world also be happy or sorrowful? They will be happy. So, the Father has explained, hasn’t He daughter that all other founders of religions are sinful at this time. What? It is because do they come later on in this world or do they come in the world of happiness that I create? They come later in the world of sorrows, don’t they? So, they, they all are also sinful, aren’t they? Yes. When the number one himself is sinful, the one who had come number one, first of all in this world, when he himself is sinful, the seed of this world tree; is the tree born first, are the stem, branches born first or are the roots born first or is there the seed first? The seed Father is first, isn’t he? So, the one who is called the Father of the world of this world stage, that number one is sinful. Hm? He comes to this world stage first of all. He himself becomes the most sinful one in the end. You Brahmins sing on this world stage. What? How long is the Confluence Age? Hm? How long is the Purushottam Sangamyug? As long as Shiv is corporeal in the most sinful, lustful thorn. Wow brother! So, he himself is sinful. So, will all others who come later on not become sinful? Yes, they too will be sinful only, will they not be?
This entire world is sinful in the end of the Iron Age. So, all call [God]. What? Whom? Them (unko). ‘Unko’ refers to whom? Why didn’t He say ‘usko’ (that one)? Hm? Arey, those founders of religions think that one incorporeal alone is Allah, i.e. highest on high. Hm? If you ask those Muslims they will say – Allah Miyan made the land, Allah Miyan made the Aaftaab, the Sun, Allah Miyaan made the Moon, Chandrama. Did He make? Hm? No. How will He make when He is incorporeal? All these things are in corporeal form. Are they visible to the eyes or not? So, how will He make? If He is corporeal, He will make corporeal. If He is incorporeal, He will make incorporeal. So, that soul, the Supreme Soul is incorporeal. When He comes to this world, then He tells us – Children, you have considered yourself to be a corporeal body. You are not a corporeal body. You are the one who runs the body; hm, just as the king sits above on the throne, doesn’t he, similarly, your soul is sitting in this bhrikuti (in the middle of the forehead between the eyebrows). Hm? This is a full hut (bhari-poori kuti) of this soul from where the light is emerging from the eyes. As long as this soul resides in this body, the light emerges from the eyes. When the soul flies away, then the eyes also become a button and the entire body also; do the organs work? No. They become motionless.
So, it was told – You are the same light form soul whose light is emerging from the eyes. And the light is also not very long, wide and heavy. Hm? How much is it? It is a very subtle light. It is sung in the Gita – Anoneeyamsam. Just as the Father is minute than an atom, very subtle, similarly you souls are also very subtle points of light. So, that point of light cannot accomplish any task of this world just by being a point of light. For example, if your soul is alone, if the body is not there, then will you be able to perform any task of the world? No. the soul is also required and the corporeal body is also required. So, the Supreme Soul Heavenly God Father who is a point of light and remains forever in the light form, He definitely requires a body. So, the bodily being in which He enters, He names him, it is sung in the world; even pictures have been made in India that He came in the body-like Chariot of Arjun. His is the permanent Chariot. And other founders of religions also believe in Aadam, the Aadam of the world, don’t they? Aadam means aadmi (man), first man. Adam. They believe, don’t they? Yes. So, in him, who is the seed-form Father of this world; the seed is called the Father, isn’t it? Yes. So, that incorporeal light Shiv enters in that seed-form Father, that corporeal form. He enters in him alone in a permanent manner.
So, He said ‘unko’ (them). Why was the word ‘unko’ used saying ‘people call them’? Do they call one or do they call that one or do they call them? Who will be called? Arey, if someone exists he will be called. If someone doesn’t exist at all, then will he be called? And will he come on being called? For example, these Hindus pray so much since many births. Does He come? He doesn’t come; does He? Yes. Similar is the case with the Muslims. They shout so much in the mosques – Allaho Akbar. Does He come? Hm? Many years passed, thousands of years, He did not come. No. So, He comes in a true form. And when you feel very sorrowful in this world then you call Him. As long as you keep on getting even trace of momentary pleasure in this world, in the world of sorrows you do not call to that extent. Then you call with all your strength, bashing your hands and legs when you get only sorrows. There does not remain even a trace of happiness. Then you call them (unko). Does ‘unko’ means one or two souls? Yes, that Supreme Soul incorporeal enters in the hero actor, the first man, the first human being, man of this world stage. Arey, when ghosts and devils can enter, speak, hear, see, then can’t the incorporeal God enter? He can enter, doesn’t He? Yes. It has been written in the Gita that I am capable of entering.
So, there are two. The one in whom He entered and the incorporeal soul which entered. It means it is a combination of the incorporeal as well as the corporeal. Arey, you children also have a corporeal body; you souls are incorporeal, aren’t you? You experience happiness and sorrows when you assume a corporeal body, don’t you? Or does the soul alone or the body alone experiences happiness and sorrows? It doesn’t. So, it was told that you call them in practical. And you call Him only when He is in practical.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2937, दिनांक 10.07.2019
VCD 2937, dated 10.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning class dated 30.11.1967
VCD-2937-extracts-Bilingual
समय- 00.01-18.56
Time- 00.01-18.56
प्रातः क्लास चल रहा था – 30.11.1967. तीसरे पेज की तीसरी-चौथी लाइन में बात चल रही थी कि दुनिया तो दो ही हैं – पापात्माओं की दुनिया और पुण्यात्माओं की दुनिया। पापात्माओं की दुनिया में कौन पाप करते हैं? हँ? स्त्रीयां ज्यादा पाप करती हैं, कन्याएं-माताएं ज्यादा पाप करती हैं या पुरुष ज्यादा पाप करते हैं? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ। जिनको पुरुषपने की इन्द्रिय का भान है वो ही बहुत पाप करते हैं। जिनको उस इन्द्रिय का भान ही नहीं है, हँ, वो इन्द्रिय है ही नहीं मारामारी करने वाली, तो उनको भान भी कहां से होगा? तो वो कन्याएं-माताएं जो हैं उनके लिए बताया कि वो स्वरग के द्वार खोलती हैं। वो है पुण्यात्माओं की दुनिया। पुण्यात्माओं की दुनिया और पापात्माओं की दुनिया। पुण्यात्माओं की दुनिया बनाते हैं उन कन्याओं-माताओं के संगठन के द्वारा जिसके लिए शास्त्रों में गायन है 16000 कन्याएं-माताओं का संगठन रूपी माला बनाई। तो दो दुनिया हो गई। और दो दुनिया गाई जाती है। सुखधाम और? और? दुखधाम।
तो देखो जब दुख की दुनिया आती है तो कितना चिल्लाते हैं! बहुत दुखी होते हैं। हँ? कौन? पुरुष ही ज्यादा दुखी होते हैं कि कन्याएं-माताएं भी दुखी होती हैं? हँ? कन्याएं-माताएं ज्यादा दुखी होती हैं और पुरुष तो दुर्योधन-दुःशासन वृत्ति है, पुरुषों में, दुखधाम में, तो पुरुष के रूप में जब तक है आत्मा, पुरुष का चोला लिया हुआ है तो उतना नहीं रोएंगे। परन्तु सारा जीवन पुरुषों ने जो सुख लिया है वो किसके आधार पर लिया है? हँ? सुख देह के आधार पर मिलता है ना? तो पुरुषों ने सुख लिया है एंटी सेक्स कन्याओं-माताओं के थ्रू। तो सारा जीवन जहां से सुख लिया है वो याद आएगा कि नहीं आएगा? हाँ, वो अंग याद आता है। अंत मते सो गति हो जाती है। तो अगला जनम जाकरके फिर वो स्त्री चोला मिलता है। तो दुखी होते हैं कि नहीं फिर? हँ? हिसाब-किताब पूरा करेंगे कि नहीं? हाँ, हिसाब-किताब पूरा होता है।
तो देखो जब बहुत दुखी होते हैं, दुख बढ़ता ही जाता है तो पीछे याद करते हैं कि हमको आकरके इस दुख से लिबरेट करो। क्या? पीछे? पहले क्यों नहीं इतना याद करते? हँ? जो दुनिया बनती है, नई दुनिया जब भगवान ने आकरके पुरानी दुनिया को नई दुनिया बनाया तो क्यों नहीं याद करते? तो गायन है - सुख में करें न कोय। दुख में सब सुमिरन करें। गाते हैं ना? हाँ। क्या गाते हैं? क्या गाते हैं? अरे? दुख में सब सुमिरन करें, सुख में करै न कोय। जो दुख में सिमिरन करें; अब सिमिरन बिचारे कहां से करें? सिमिरन माने स्मरण। पहचानें तो स्मरण करें। हँ? अरे, रसगुल्ला खाया होगा, रसगुल्ले का संग लिया होगा जिह्व्या से तो याद आएगा। अब खाया ही नहीं, हम वो कानों से भी नहीं सुना, तो कहां से वो सुख याद आएगा? याद आएगा? नहीं याद आएगा।
तो बताया – भक्तिमार्ग में जो दुख की दुनिया है, जहाँ भागते रहते हैं भक्ति में; कभी इसके पीछे, कभी उसके पीछे। हँ? इस जनम में हिंदू बनते हैं तो मन्दिरों में भागते हैं। अगले जनम में मुसलमान बनते हैं तो मस्जिदों में भागते हैं। फिर अगले जनम में क्रिश्चियन बनते हैं तो गिरिजाघर में भागते हैं। कोई जनम में सिक्ख बन गए तो गुरुद्वारों में भागते हैं। भागाभाग-भागाभाग। तो उस जिंदगी को क्या कहा जाता है? हँ? कौनसी जिंदगी हुई? भक्ति, भक्तिमार्ग की जिंदगी।
तो भक्ति करते-करते नीचे गिरते जाते हैं। अनेकों को याद करते जाते हैं। तो याद करते हैं लास्ट में जाकरके कि हे भगवान, तू ही दुख को दूर कर सकता है। दुख हरने वाला और सुख कर्ता। दुख हर्ता, सुख कर्ता एक ही गाया हुआ है। तो वो ही आकरके लिबरेट करते हैं दुख से। बुलाते हैं हमको अपने घर ले चलो। इस दुख की दुनिया में अब दुख के सिवाय अब अंत में हमें कोई भी सुख अंशमात्र भी प्राप्त नहीं। ऐसी दुनिया भी आने वाली है। कैसी? हँ? ताबड़तोड़ विनाश होगा ना चारों तरफ दुनिया में हाहाकार होगी। तो सुख होगा या दुख होगा? अंशमात्र भी सुख अनुभव नहीं करेंगे, तो कहेंगे - हे भगवान! जिस घर में तुम सदाकाल रहते हो शांतिधाम में उस घर में हमको भी ले चलो। क्या? हमें न सुख चाहिए और न ये, ये दुख तो बिल्कुल ही नहीं चाहिए। तो पीछे कहते हैं। पीछे माने? जब दुनिया तमोप्रधान हो जाती है, दुखदायी हो जाती है तब कहते हैं। स्वर्ग की दुनिया जो मैं बनाके जाता हूँ, हँ, हैविनली गॉड फादर आते हैं ना, तो हैविन बनाके जाते हैं तो हैविनली गॉड फादर कहे जाते हैं। तो स्वर्ग में याद नहीं करते। नरक में, हां, फिर याद करते-4 अंत में तो फिर सिर्फ क्या याद करते हैं? कि बस अब हमें न सुख चाहिए, न दुख चाहिए। अंशमात्र। हम क्षणभंगुर सुख भी नहीं चाहिए। अच्छा? अपने घर ले चलो। हमें शांति चाहिए। हाँ। परन्तु बाप कहते हैं कि घर में जाकरके तो बैठना नहीं है। हँ? घर में जाके बैठना है? अरे, बाप किस बच्चे को पसन्द करते हैं? हँ? जो बच्चे बाप का धंधा करें, संभालें, दुकान संभालें, कारखाना संभालें, खेती-बाड़ी संभालें, उन बच्चों को प्यार करेंगे, हँ, या उन बच्चों को प्यार करेंगे जो घर में पड़े रहते हैं, हँ, शैतानी देते रहते हैं? उनको प्यार करेंगे? नहीं।
तो घर में जाकरके तो बैठने का नहीं है सदाकाल का। ये बात तो बच्चे अभी समझ गए हैं, हँ, कि घर में जाकरके कोई सदीव-सदीव बैठना नहीं है। हँ? पीछे तो इस दुनिया में आना जरूर है। क्या? दुनिया में चाहे कोई भी आत्माएं हों, इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने वाली, ऐसी तो एक भी नहीं है कि जो बाप के घर में चली जाए शांतिधाम, आत्मलोक में और फिर कभी वापस आए ही नहीं। वो तो बातें बनाय दी है शास्त्रकारों ने; क्या? हँ? महात्मा बुद्ध निर्वाणधाम गया, हँ, जहां वाणी का गम नहीं, वाणी होती ही नहीं क्योंकि वहां शरीर ही नहीं, इन्द्रियां ही नहीं। तो ऐसा कुछ नहीं है कि कोई सदाकाल के लिए वानप्रस्थी हो जाए, सदाकाल के लिए आत्माओं की दुनिया में, घर में ही बैठा रहे, पड़ा रहे। नहीं। आना तो पड़ेगा। अरे, आगे नहीं आओगे तो इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने के लिए बाद में तो आना ही पड़ेगा।
तो देखो, कितना समय लगता है वहां से फिर आने में। कितना समय लगता है? कितना समय लगता है? तुम बच्चों को तो ज्यादा नहीं बैठना होता है। तुम बच्चे तो बाप के आज्ञाकारी बच्चे हो ना? बाप कहते हैं सृष्टि रूपी रंगमंच पर जाकरके धंधा करो। बाप ने जो सृष्टि बनाई है उस सृष्टि में तुम ऐसे कर्म करो जो दुनिया को सुख हो। दुख? दुख न हो। हाँ। तो तुम जितना त्याग करोगे उतना तुम्हारा भी भाग्य बनेगा। और तुम्हारे त्याग से दुनिया वाले भी सुखी होंगे, दुखी होंगे? सुखी होंगे। तो बाप ने समझाया ना बच्ची जो भी दूसरे हैं सभी धर्मस्थापक वो तो इस समय में सभी पतित ही हैं। क्या? क्योंकि इस दुनिया में बाद में आते हैं कि मैं सुख की दुनिया जो रचता हूँ उसमें आते हैं? दुख की दुनिया में बाद में आते हैं ना? तो वो तो, वो भी तो सब पतित हैं ना? हाँ। जबकि नंबरवन पतित है इस दुनिया में जो नंबरवन में पहला-पहला आया, वो ही पतित है इस सृष्टि रूपी वृक्ष का बीज। वृक्ष पहले पैदा होता है, तना, टहनियां पहले पैदा होती हैं कि जड़ें पहले पैदा होती हैं कि पहले बीज होता है? पहले तो बीज बाप होता है ना? तो इस सृष्टि रूपी रंगमंच का जो जगतपिता कहा जाता है वो नंबरवन पतित है। हँ? वो इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पहले-पहले आता है सबसे पहले। वो ही अंत में आकरके सबसे जास्ती पतित बन जाता है। इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर तुम ब्राह्मण गाते हो। क्या? संगमयुग कब तक? हँ? पुरुषोत्त्म संगमयुग कब तक? पतिततम कामी कांटे में शिव साकार होते जब तक। वाह भाई। तो वो ही पतित है। तो बाकि और जो बाद में आएंगे वो पतित नहीं बनेंगे? हाँ, वो भी तो पतित होंगे ना?
ये सारी दुनिया पतित ही पतित है कलियुग के अंत में। तो सभी पुकारते हैं। क्या? किसको? उनको। उनको माने किनको? उसको क्यों नहीं कहा? हँ? अरे, वो धरमपिताएं तो समझते हैं कि एक निराकार ही है, हँ, अल्लाह माने ऊँच ते ऊँच। हँ? उन मुसलमानों से पूछो तो कहेंगे अल्लाह मियां ने जमीन बनाई, अल्लाह मियां ने आफताब, सूर्य बनाया, अल्लाह मियां ने चन्द्रमा, हँ, चन्द्रमा बनाया। बनाया? हँ? नहीं। कैसे बनाएगा जब वो निराकार है? ये सब चीज़ें तो साकार में हैं। आँखों से देखने में आती हैं कि नहीं? तो बनाएगा कैसे? साकार होगा तो साकार बनाएगा। निराकार होगा तो निराकार बनाएगा। तो निराकार वो आत्मा है सुप्रीम सोल। वो इस सृष्टि पर आता है तो हमको बताता है बच्चे तुम अपने को देह साकार समझ बैठे हो। तुम साकार देह नहीं हो। तुम देह को चलानेवाली तो, हँ, ये जैसे राजा ऊपर बैठता है ना गद्दी पे, ऐसे तुम्हारी आत्मा ये भृकुटि में बैठी हुई है। हँ? भरी पूरी कुटी है इस आत्मा की, हँ, जहाँ से ये आँखों में रोशनी निकल रही है। ये आत्मा जब तक इस शरीर में रहती है आँखों में से रोशनी निकलती है। आत्मा उड़ जाती है तो आँखें भी बटन और सारा शरीर भी, इन्द्रियां काम करती हैं? नहीं। निश्चल हो जाती हैं।
तो बताया - तुम वो ही ज्योति आत्मा हो जिसकी ज्योति आँखों से निकल रही है। और ज्योति भी कोई लंबी-चौड़ी बड़ी भारी नहीं है। हँ? कितनी है? अति सूक्ष्म ज्योति है। गीता में गाई हुई है – अणोणीयांसम्। जैसे बाप अणु से अणु है अति सूक्ष्म है, वैसे तुम आत्माएं भी अति सूक्ष्म ज्योतिबिन्दु हो। तो वो ज्योतिबिन्दु सिर्फ ज्योतिबिन्दु बनकरके कोई कार्य इस दुनिया का संपन्न नहीं कर सकती। जैसे तुम्हारी आत्मा अकेली हो, शरीर न हो तो दुनिया का कोई काम कर पाओगे? नहीं। आत्मा भी चाहिए और साकार शरीर भी चाहिए। तो सुप्रीम सोल हैविनली गॉड फादर जो ज्योतिबिन्दु है, हँ, और सदाकाल ज्योति रुप में रहता है तो उसको देह जरूर चाहिए। तो जिस देहधारी में प्रवेश करता है, हँ, उसका नाम देता है। संसार में गायन है। भारत में तो चित्र भी बनाय दिये अर्जुन के शरीर रूपी रथ में आया। वो मुकर्रर रथ है। और दूसरे धरमपिताएं भी मानते तो हैं ना आदम को, सृष्टि का आदम? आदम माने आदमी; पहला आदमी। एडम। मानते हैं ना? हाँ। तो उसमें जो इस सृष्टि का बीज रूप बाप है; बीज को बाप कहा जाता है ना? हाँ। तो उस बीज रूप बाप में उस साकार स्वरूपधारी में वो निराकार शिव ज्योति प्रवेश करती है। मुकर्रर रूप से उसी में प्रवेश करती है।
तो उनको कहा। उनको क्यों कहा उनको पुकारते हैं? एक को पुकारते हैं या उसको पुकारते हैं या उनको पुकारते हैं? पुकारा किसको जाएगा? अरे, होगा तो पुकारा जाएगा। होगा ही नहीं तो पुकारा जाएगा? और पुकारने से आएगा? जैसे ये हिन्दू लोग कितना कीर्तन करते हैं जन्म-जन्मान्तर से। आता है? नहीं आता ना? हाँ। ऐसे ही मुसलान। कितना मस्जिद में चिल्लाते हैं अल्लाहो अकबर। आता है? हँ? सालों-साल बीत गए हज़ारों साल, आया तो नहीं। नहीं। तो वो असली रूप में आता है। और तुमको बहुत दुख होता है इस दुनिया में तब तुम उसे पुकारते हो। इस दुनिया दुख की दुनिया में जब तक अंशमात्र भी, क्षणभंगुर सुख भी तुमको मिलता रहता, तो तुम उतना? उतना नहीं पुकारते। फिर जी जान लगाकरके हाथ-पांव सारे पटक-पटक के फिर तुम बुलाते हो जब तुम्हें दुख ही दुख मिलता है। सुख का अंशमात्र भी नहीं रहता है। तब तुम उनको बुलाते हो। उनको माने एक को या दो आत्माओं को? हाँ, इस सृष्टि रूपी रंगमंच का जो हीरो पार्टधारी पहला पुरुष है, पहला मनुष्य, आदमी, हँ, उसमें वो सुप्रीम सोल निराकार प्रवेश करता है। अरे, भूत-प्रेत प्रवेश कर सकते हैं, बोल सकते हैं, सुन सकते हैं, देख सकते हैं तो क्या भगवान निराकार नहीं प्रवेश कर सकता? प्रवेश कर सकता है ना? हाँ। वो गीता में लिखा हुआ है मैं प्रवेश करने योग्य हूँ।
तो दो हो गए। जिसमें प्रवेश किया वो और जिस आत्मा निराकार ने प्रवेश किया वो। माने निराकारी और साकारी दोनों का मेल हो गया। अरे, तुम बच्चे भी तो साकार शरीर; तुम आत्मा हो ना निराकार? तुम साकार शरीर धारण करते हो तब तुम सुख-दुख भोगते हो ना? कि अकेली आत्मा या अकेला शरीर सुख-दुख भोगता है? नहीं भोगता। तो बताया कि उसको तुम पुकारते हो प्रैक्टिकल में। और वो प्रैक्टिकल में होता है तब ही तुम पुकारते हो।
A morning class dated 30.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the third-fourth line of the third page was that there are two worlds only – A world of sinful souls and a world of noble souls. In the world of sinful souls who commits sins? Hm? Is it the women who commit more sins, is it the virgins and mothers who commit more sins or is it the men who commit more sins? Hm? (Someone said something.) Yes. Those who have the consciousness of the organs of manhood, they alone commit a lot of sins. Those who do not have any consciousness of that organ at all, hm, those who do not have that organ at all which indulges in violence, then how will they have its consciousness? So, it was said for those virgins and mothers that they open the gate of heaven. That is a world of noble souls. The world of noble souls and the world of sinful souls. The world of noble souls is formed through the gathering of those virgins and mothers for which it is famous in the scriptures that a gathering-like rosary of 16000 virgins and mothers was formed. So, there are two worlds. And two worlds are praised. Abode of happiness and? And? The abode of sorrows.
So, look, when the world of sorrows comes, then people shout so much! They become very sorrowful. Hm? Who? Is it the men only who become more sorrowful or do the virgins and mothers also become sorrowful? Hm? The virgins and mothers become more sorrowful and as regards the men, they have the attitude of Duryodhans and Dushasans in the abode of sorrows; so, as long as the soul is in a male form, as long as they have assumed a male dress, they will not cry so much. But the happiness that the men have enjoyed throughout the life, on whose basis have they obtained? Hm? Happiness is received on the basis of the body, isn’t it? So, the men have obtained happiness through the anti-sex virgins and mothers. So, the one from whom they have obtained happiness throughout their life, will she come to the mind or not? Yes, that organ comes to the mind. As are the thoughts in the end, so becomes the fate. So, in the next birth they get a female dress. So, do they become sorrowful or not again? Hm? Will they settle the karmic accounts or not? Yes, the karmic account is settled.
So, look, when you become very sorrowful, when the sorrows keep on increasing, then later you remember [Me] that come and liberate us from this sorrow. What? Later? Why don’t you remember so much earlier? Hm? The world that is established, the new world, when God came and transformed the old world to new world, then why don’t they remember? So it is sung – Nobody remembers in happiness. Everyone remembers in sorrows. They sing, don’t they? Yes. What do they sing? What do they sing? Arey? Everyone remembers in sorrows, nobody remembers in happiness. If they remember in sorrows; well, how can they remember? Simiran means remembrance. They will remember if they recognize. Hm? Arey, if they have eaten rasgulla, if they have tasted the company of rasgulla through the tongue, then it will come to the mind. Well, if they haven’t eaten at all, I haven’t even heard through the ears, then how will that joy come to the mind? Will it come to the mind? It will not come to the mind.
So, it was told – The world of sorrows on the path of Bhakti, where people keep on running in Bhakti; sometimes after this one, sometimes after that one. Hm? In this birth if they become Hindus, then they run among temples. In the next birth when they become Muslims, then they run among the mosques. Then, when they become Christians in the next birth, they run among the Churches. If they become Sikhs in a birth, then they run among the Gurudwaras. Running and running. So, that life is called; hm? What life is it? A life of Bhakti, path of Bhakti.
So, you keep on falling while doing Bhakti. You keep on remembering many. So, in the last you remember – O God, You alone can remove our sorrows. The one who removes the sorrows and gives happiness. Only one is praised as the remover of sorrows and giver of happiness. So, He alone comes and liberates us from sorrows. You call Me saying – Take us to our home. In this world of sorrows in the end there is not even a trace of happiness for us except sorrows. Such a world is going to arrive. Of what kind? Hm? There will be large scale destruction, will it not be there? There will be cries of despair everywhere in the world. So, will there be happiness or sorrows? When people don’t experience even a trace of happiness, then they will say – O God! The home where you live permanently, in the abode of peace, take us also to that home. What? We require neither happiness; nor do we require this sorrow at all. So, later they say. What is meant by ‘later’? When the world becomes tamopradhaan (degraded), becomes a cause for sorrows, then they say. The world of heaven that I make and go, hm, Heavenly God Father comes, doesn’t He? So, He establishes Heaven and goes, so, He is called Heavenly God Father. So, people don’t remember in heaven. In the hell, yes, then while remembering [God], what is the only thing that they remember in the end? That is it; now we require neither happiness nor sorrows. Trace. We don’t require even momentary happiness. Achcha? Take us to our home. We require peace. Yes. But the Father says that you don’t have to go and sit at home. Hm? Do you have to go and sit at home? Arey, which child does a Father like? Hm? Will he like the children who pursue, take care of the Father’s business, take care of the shop, take care of the factory, take care of the farm or will he love those children who keep on lying in the home and keep on performing mischiefs? Will he love them? No.
So, you don’t have to go and sit at home permanently. Children have now understood this topic that you don’t have to go and sit forever at home. Hm? Later you have to definitely come to this world. What? Be it any souls in the world that play a part on this world stage, there is none who could go to the Father’s home, the abode of peace, the Soul World and doesn’t return ever. The writers of the scriptures have made topics; what? Hm? Mahatma Buddha went to the abode of silence, where there is no sorrow of speech, there is no speech at all because there is no body at all, no organs at all. So, there is no such thing that someone becomes vaanprasthi (retired) forever, keeps on living in the world of, home of souls forever. No. He will have to come. Arey, if you don’t come earlier on this world stage to play your part then you will definitely have to come in the end.
So, look, how much time does it take to come from there? How much time does it take? How much time does it take? You children don’t have to sit for long [in the Soul World]. You children are obedient children of the Father, aren’t you? The Father says – Go and do your business on the world stage. In the world that the Father has created perform such actions that the world feels happy. Sorrows? It shouldn’t feel sorrowful. Yes. So, the more you sacrifice here, the greater will be your fortune. And through your sacrifice, will the people of the world also be happy or sorrowful? They will be happy. So, the Father has explained, hasn’t He daughter that all other founders of religions are sinful at this time. What? It is because do they come later on in this world or do they come in the world of happiness that I create? They come later in the world of sorrows, don’t they? So, they, they all are also sinful, aren’t they? Yes. When the number one himself is sinful, the one who had come number one, first of all in this world, when he himself is sinful, the seed of this world tree; is the tree born first, are the stem, branches born first or are the roots born first or is there the seed first? The seed Father is first, isn’t he? So, the one who is called the Father of the world of this world stage, that number one is sinful. Hm? He comes to this world stage first of all. He himself becomes the most sinful one in the end. You Brahmins sing on this world stage. What? How long is the Confluence Age? Hm? How long is the Purushottam Sangamyug? As long as Shiv is corporeal in the most sinful, lustful thorn. Wow brother! So, he himself is sinful. So, will all others who come later on not become sinful? Yes, they too will be sinful only, will they not be?
This entire world is sinful in the end of the Iron Age. So, all call [God]. What? Whom? Them (unko). ‘Unko’ refers to whom? Why didn’t He say ‘usko’ (that one)? Hm? Arey, those founders of religions think that one incorporeal alone is Allah, i.e. highest on high. Hm? If you ask those Muslims they will say – Allah Miyan made the land, Allah Miyan made the Aaftaab, the Sun, Allah Miyaan made the Moon, Chandrama. Did He make? Hm? No. How will He make when He is incorporeal? All these things are in corporeal form. Are they visible to the eyes or not? So, how will He make? If He is corporeal, He will make corporeal. If He is incorporeal, He will make incorporeal. So, that soul, the Supreme Soul is incorporeal. When He comes to this world, then He tells us – Children, you have considered yourself to be a corporeal body. You are not a corporeal body. You are the one who runs the body; hm, just as the king sits above on the throne, doesn’t he, similarly, your soul is sitting in this bhrikuti (in the middle of the forehead between the eyebrows). Hm? This is a full hut (bhari-poori kuti) of this soul from where the light is emerging from the eyes. As long as this soul resides in this body, the light emerges from the eyes. When the soul flies away, then the eyes also become a button and the entire body also; do the organs work? No. They become motionless.
So, it was told – You are the same light form soul whose light is emerging from the eyes. And the light is also not very long, wide and heavy. Hm? How much is it? It is a very subtle light. It is sung in the Gita – Anoneeyamsam. Just as the Father is minute than an atom, very subtle, similarly you souls are also very subtle points of light. So, that point of light cannot accomplish any task of this world just by being a point of light. For example, if your soul is alone, if the body is not there, then will you be able to perform any task of the world? No. the soul is also required and the corporeal body is also required. So, the Supreme Soul Heavenly God Father who is a point of light and remains forever in the light form, He definitely requires a body. So, the bodily being in which He enters, He names him, it is sung in the world; even pictures have been made in India that He came in the body-like Chariot of Arjun. His is the permanent Chariot. And other founders of religions also believe in Aadam, the Aadam of the world, don’t they? Aadam means aadmi (man), first man. Adam. They believe, don’t they? Yes. So, in him, who is the seed-form Father of this world; the seed is called the Father, isn’t it? Yes. So, that incorporeal light Shiv enters in that seed-form Father, that corporeal form. He enters in him alone in a permanent manner.
So, He said ‘unko’ (them). Why was the word ‘unko’ used saying ‘people call them’? Do they call one or do they call that one or do they call them? Who will be called? Arey, if someone exists he will be called. If someone doesn’t exist at all, then will he be called? And will he come on being called? For example, these Hindus pray so much since many births. Does He come? He doesn’t come; does He? Yes. Similar is the case with the Muslims. They shout so much in the mosques – Allaho Akbar. Does He come? Hm? Many years passed, thousands of years, He did not come. No. So, He comes in a true form. And when you feel very sorrowful in this world then you call Him. As long as you keep on getting even trace of momentary pleasure in this world, in the world of sorrows you do not call to that extent. Then you call with all your strength, bashing your hands and legs when you get only sorrows. There does not remain even a trace of happiness. Then you call them (unko). Does ‘unko’ means one or two souls? Yes, that Supreme Soul incorporeal enters in the hero actor, the first man, the first human being, man of this world stage. Arey, when ghosts and devils can enter, speak, hear, see, then can’t the incorporeal God enter? He can enter, doesn’t He? Yes. It has been written in the Gita that I am capable of entering.
So, there are two. The one in whom He entered and the incorporeal soul which entered. It means it is a combination of the incorporeal as well as the corporeal. Arey, you children also have a corporeal body; you souls are incorporeal, aren’t you? You experience happiness and sorrows when you assume a corporeal body, don’t you? Or does the soul alone or the body alone experiences happiness and sorrows? It doesn’t. So, it was told that you call them in practical. And you call Him only when He is in practical.
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वीसीडी 2938, दिनांक 11.07.2019
VCD 2938, dated 11.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning class dated 30.11.1967
VCD-2938-Bilingual
समय- 00.01-31.39
Time- 00.01-31.39
प्रातः क्लास चल रहा था – 30.11.1967. गुरुवार को तीसरे पेज के मध्य में बात चल रही थी कि तुम बच्चों को अच्छी तरह से मालूम हो गया कि जाना तो सबको ही है। चित्र में ही देखो – कोई-कोई सतयुग में कहां है बाबा? हँ? सतयुग में लक्ष्मी-नारायण के चित्र मिलते हैं। राधा-कृष्ण के मिलते हैं। बाबा का चित्र है क्या? सतयुग में क्या बाबा का चित्र है? नहीं। ये तो कलहयुग में है बाबा का चित्र। हँ? चैतन्य चित्र भी और फिर भक्तिमार्ग में भी। चित्र तो बनाते हैं काल्पनिक। परन्तु अर्थ तो नहीं समझते। देखो, ये झाड़ के पिछाड़ी में एकदम। तो हो गया ना बहुत जनम के अंत के भी जनम में। देखो नीचे से देखो, ऊपर में देखो। अंत में लगाय दिया है बाबा का चित्र। भई, झाड़ में देखो तो ऊपर में खड़ा है। देखने में आते हैं तुम लोगों को। तो कहाँ खड़ा है? पिछाड़ी में एकदम पिछाड़ी में खड़ा हुआ है। और फिर शुरू में बैठा है तपस्या करने। इतना सहज समझाया है। और ये समझाया किसने? रूहानी बाप ने समझाया। अरे, इसने तो नहीं समझाया ना? न इसने ये साक्षात्कार से चित्र तैयार कराए। क्योंकि ये बातें ये तो नहीं जानते थे। कौन? ब्रह्मा बाबा तो नहीं जानते थे। ये तो जवाहरी था। न कोई ऐसे है कि कोई बहुत, बहुत गुरु हैं जिन्होंने या बहुत शिष्य हैं जिनको समझाया हो। नहीं। एक ही बाप है। और वो ही बैठकरके समझाते हैं। और कोई दुनिया में जानते ही नहीं हैं ये। एक ही नॉलेजफुल बाप है। वो नॉलेज देते हैं।
और ये भी जानते हैं कि एक को ही याद करते हैं। याद करते हैं ना, हे परमपिता! आकरके हमारा दुख हरो। और तो किसको नहीं कह सकते हैं ना? कभी भी न ब्रह्मा को, न विष्णु को, क्योंकि वो तो देवता है ना? भगवान तो नहीं है ना? फिर? कोई वहां के जो मूल वतन में रहते हैं, उनको देवता थोड़ेही कहा है? आत्माओं को देवता ऐसे थोड़ेही कहा जाता है? नहीं। देवता सो भी क्या? वो, वो ही विष्णु, वो ही ब्रह्मा। हँ? ये तो उन्होंने बैठकरके चित्र बनाए हैं। नाम रखा है। हँ? जिन नामों को काम के आधार पर रखा गया है शास्त्रों में। जिनके लिए बाप बैठ समझाते हैं। और वो हैं तो यहां ना? बाकि सूक्षम वतन की तो भई कोई बात नहीं निकलती है। तुम बच्चों को साक्षात्कार हो जाते हैं। ये बाबा भी फरिश्ता बन जाते हैं। दूसरा तो कोई नहीं है ना? ये बाबा भी बरोबर फरिश्ता बन जाते हैं क्योंकि पहले तो इनको हड्डी मांस है। फरिश्ता बन जाते हैं तो फिर पीछे हड्डी-मांस तो नहीं रहता। हँ? और फिर फरिश्ता के बाद क्या बन जाते? हँ? पीछे आत्मा बन जाते। हँ।
तो ये तो बच्चे जानते हैं ना? मीठे बच्चे देखो, जो ऊपर में है सीढ़ी, सीढ़ी के एकदम ऊपर में। सो फिर नीचे में सीढ़ी में लगाया। देखो, फिर तपस्या कर रहे हैं। तो ये तो कभी चित्र ही साफ बताय देते हैं। तो ये तो अपन को कोई ब्रह्मा या भगवान नहीं कहते हैं। वो तो बाप कहते हैं ना? ब्रह्मा खुद कहते हैं आइ वॉज़ नॉट वर्थ नॉट ए पैनी। हँ? आइ वॉज़ नोट। नोट करो। आइ वॉज़ वर्थ नॉट, वर्थ ए पैनी। मेरी एक कौड़ी की भी कीमत नहीं थी। ततत्वम्। वो ही तुम। 30.11.1967 की प्रातः क्लास का चौथा पेज, चौथी लाइन। अभी आइ एम वर्थ, आइ एम गैटिंग वर्थ पाउंड। ततत्वम्। ऐसे कहेंगे ना बच्चे? अभी ऐसे ही थे। और बाबा भी ऐसे ही थे। अभी फिर बाप ज्ञान ले रहे हैं। कौनसा बाप? जो वर्थ नॉट ए पैनी थे, हँ, वो मनुष्य सृष्टि का बाप ज्ञान ले रहे हैं। और तुम बच्चे भी ज्ञान ले रहे हो।
तो अभी ये बातें कितनी सहज हैं समझने के लिए। तो ये क्यों बच्चों को बैठकरके अच्छी तरह से समझाया जाता है? क्योंकि वो आते तो हैं ना प्रदर्शनी में? उन प्रदर्शनी में कितने आते हैं? तो कभी कोई कहे, अरे, बोलो, तुम क्या बोलते हो? ये ऊपर में देखो कौन खड़ा हुआ है? ये तो एकदम झाड़ के जड़जड़ीभूत अवस्था में है। वो तो वहां पूरी जड़जड़ीभूत अवस्था है ना? तो बाप भी कहते हैं - जब इसकी जड़जड़ीभूत अवस्था हो जाती है, जब साठ के बाहर में चले जाते हैं; साठ साल के अंदर नहीं। हँ? जब वाणी से परे जाने का लायक बनते हैं तब मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। ऐसे है ना? तो देखते हो ना पिछाड़ी में है। तो जो पिछाड़ी में है सो पहले आते हैं। क्योंकि तपस्या कर रहे हो राजयोगी बनने की। ये देखो, ये भई राजयोगी तपस्या नहीं कर रहे हैं? ये, ये कैसे? जो तपस्या कर रहे हैं तो तपस्या से ही जभी वो बने ना?
तो तपस्या तो तुम भी बच्चे कर रहे हो। अब सबको तो नहीं कर सकते हैं ना? ये हो सकता है जो चित्र निकालकरके 10, 12, 20, 25 भई ये चित्र ये राजयोग सीखते हैं। सो ये जाकर बनेंगे। ताज तो तुमको भी पहनाय सकते हैं ना? अभी कौनसा ताज पहनाय सकते हैं? हँ? तुमको। हँ? जिम्मेवारी का ताज पहनाय सकते हैं। ये, ये बनाते हैं ना? तो तुम बच्चों का चित्र निकालकर ये बनाते हैं। फिर वो ताज; वो ताज देकरके, लाइट के ताज देकरके वो बनाते हैं दिखलाने के लिए। तो ये सो बनते हैं। ये माने? ये ब्राह्मण सो वो देवता बनते हैं लाइट वाले। राजयोग से ये सो बनते हैं। ऐसे तो 10-20 चित्र बनाकरके प्रदर्शनी में जाय उसमें रख सकते हैं कि ये इससे सहज राजयोग से बनते हैं। तो ऐसे ये चित्र बहुत बनाए हुए हैं ना? जो भी वहां थे दो ढ़ाई सौ उन सबका ऐसे फोटो निकाला हुआ है। कहाँ की बात बताई? हँ? ओम मंडली की, सिंध, हैदराबाद की बात बताई। ऐसे नहीं है। परन्तु कहां-कहां शुरू, शुरू तो हो गया क्योंकि ये समझाने की बात है ना? बाकि ऐसे चित्र थे। हँ? सबने निकाले थे। हँ? साधारण चित्र थे या देवताओं के लाइट वाले थे? एक तरफ में ये साधारण और दूसरे तरफ में डबल सिरताज। कौनसी एक तरफ में? हँ? कौनसी दूसरी तरफ में? हँ? अरे, सीढ़ी में नीचे साधारण बैठे हुए हैं। और ऊपर? हाँ, डबल सिरताज। डबल माना? एक तो पवित्रता का ताज। और दूसरा? हँ? हाँ, यहां जो जिम्मेवारी उठाई ना तो वो वहां उनको वो रतनजड़ित ताज मिलता है। क्योंकि बन रहे हो ना? प्रैक्टिकल में बन तो रहे हैं ना? वो बात भी तो समझते हो ना कि बन रहे हो।
और फिर बने रहेंगे वो ही जो एक्यूरेट चले जाएंगे। लाइन बिल्कुल क्लीयर ही। और मीठे बने हैं ये। क्योंकि बाप कहते हैं ना बच्ची देखो ये बीज बोया हुआ है। जब रावण आया हुआ है तो ये देह अहंकार, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ये है ना? ठीक है ना? अब ये भी जैसे बीज बोया है। हँ? ये बीज कब बोया? हँ? देवताइपने का जो बीज है वो भी अभी बोया और रावणपने का बीज वो भी अभी बोया। तो देखो बीज कितना लंबा-चौड़ा हो गया है बिल्कुल ही। सारी दुनिया इनमें सबमें ये पार्ट है। क्या? रावण के दस सिरों का ये पार्ट। बीज के ये सलें निकल पड़ी हैं। और फिर बड़े हो गए हैं। ठीक है ना? अभी फिर इनको मर्ज करना है। हँ? कि नई दुनिया में चलते रहेंगे? काम, क्रोध, लोभ, मोह को मर्ज करना है कि इमर्ज ही बने रहेंगे? नहीं। फिर तो देखो भविष्य में कभी भी ये बीज नहीं बोना है। अच्छा? नहीं बोना है? फिर द्वापरयुग में बोएंगे नहीं? बोएंगे? अच्छा? उसकी शूटिंग जब यहाँ होती है तो यहीं बोते हैं कि द्वापर में बोते हैं? हाँ। अभी संगमयुग है ना? बाप कहते हैं। तो कभी भी ये देह अहंकार का बीज नहीं बोना है। कभी भी माना? न चार युगों में बोना है। और? और यहां भी ताकीद करते हैं कि तुम बच्चों को ये बीज नहीं बोना है। यहां बोएंगे तो क्या होगा? हाँ, वो आत्मा में वो संस्कार मर्ज हो जावेंगे। फिर अपने टाइम पर इमर्ज हो जावेंगे।
तो अपन को देही समझने का है। देही माने? देह को धारण करने वाली आत्मा समझने का है। कभी भी क्रोध का, ये काम का कभी भी बीज नहीं बोना है। समझा ना? क्योंकि आधा कल्प के लिए बीज नहीं बोएंगे तो बस आधा कल्प के लिए फिर वो रावण नहीं होता है। इसलिए तुम बच्चों को समझ लेना चाहिए। वहां रावण ही नहीं है तो फिर क्या है? तो बाप बच्चों को बैठकरके हरेक बात जो न समझे हों बच्चे वो बच्चे आकरके समझ सकते हैं। बाकि समझने की एक ही बात रहती है ना? क्या? जो गहराई से समझनी है। हँ? क्या? मनमनाभव। इसमें क्या गहराई है भाई? हँ? इसमें गहराई क्या है? मेरे मन में समा जा। इन संस्कृत अक्षरों का अर्थ है मेरे मन में हो जा। क्या हो जा? जो मेरे मन में है सो तेरे मन में हो जा। अच्छा? ये कौन कह रहा है? हँ? ये किसने कहा? हँ? हँ? जो मेरे मन में है सो तेरे मन में हो जाए? (किसी ने कुछ कहा।) मुकर्रर रथधारी ने कहा? अच्छा? मुकर्रर रथधारी के अंदर शिव ने नहीं कहा? (किसी ने कुछ कहा।) शिव ने भी कहा? उसको भी मन है? फिर? हाँ, शिव ने थोड़ेही? शिव को मन थोड़ेही होता है? चंचल मन किसको होता है? हँ? मनुष्यों को होता है। तो जो मेरे मन में है, मनुष्य को ही देवता बनना है। देवता बनते हैं तो देव आत्माएं उनका मन चंचल होता है? वहां होता है मन? नहीं। तो क्या होता है? मन बुद्धि में समा जाता है, मर्ज हो जाता है। तो बुद्धि में क्या? मैं ज्योतिबिन्दु आत्मा। कहां? स्वर्ग में। हाँ।
तो फिर बाप को याद करो और बाप जो कहते हैं मुझे याद करो, तो देखो कितना सहज करके समझाते हैं। ये जो पाप हैं ना? पापात्मा बने हैं ना? अजामिल जैसे पापात्मा बने हैं। हँ? मनुष्य रहते, मनुष्यों से मिलके रहते तो भी ठीक। किससे मिल गए? अजा। भेड़-बकरियों से जाके मिल गए। तो पापात्मा बन गए। तो तुम कहेंगे - अच्छा! अजामिल जैसा पापात्मा तो यही रहा। क्योंकि सबसे पिछाड़ी में तो ये है ना? और सबसे पहले में भी, तो सबसे पिछाड़ी में भी। तो इनको ही कहा जाए सबसे जास्ती अजामिल। किनको? इसको या इनको? फिर वो ही। हँ? किनको कहा जाए सबसे जास्ती अजामिल? हँ? अरे? अरे, चार मुखों वाले ब्रह्मा को भी सबसे जास्ती अजामिल और फिर जो पंचमुखी ब्रह्मा है वो भी था या नहीं? अरे? नहीं था? हाँ, वो भी तो था। लेकिन, तो सबसे जास्ती एक को कहा जाता है या दो को कहा जाता है? हाँ, फिर? फिर इनको क्यों कह दिया? सबसे जास्ती तो, चुनाव होगा तो एक निकलेगा। ऐसे क्यों कह दिया ‘इनको’? अरे? अरे, प्रवेश करते हैं ना? हाँ, भूल जाते हो बार-बार। चौमुखी ब्रह्मा भी किसकी बुद्धि में मर्ज हो जाते? हँ? जो पंचम मुख है ना उसकी अपनी बुद्धि है कि नहीं? हाँ। वो उसमें मर्ज हो जाते।
तो इनको ही कहा जाए सबसे जास्ती अजामिल। इनको? दो मिलके एक हो जाते हैं तो कौनसे युग में कहा जाएगा सबसे जास्ती अजामिल? हँ? सतयुग में, त्रेता में, द्वापर में, कलियुग में या पुरुषोत्तम संगमयुग में ही? क्योंकि इस युग में कलियुग भी है और, और सतयुग दोनों का मेल है। तो कलियुग का अंत की शूटिंग तो उसमें सबसे जास्ती अजामिल। बहुत सी अजाओं से मिलते होंगे कि थोड़ी अजाओं से, भेड़-बकरियों से मिलते होंगे? हँ? बहुत भेड़-बकरियों से।
तो देखते हो। फिर यही अजामिल फिर देखो योग बल से कैसे वो बन जाते हैं? हँ? वो माने क्या? हँ? ढ़ेर सारी भेड़-बकरियों से यहां मिलते रहते कलियुग के अंत में या कलियुग के अंत की शूटिंग में वो वहां क्या बन जाते? एक से मिलते हैं 21 जनम कि अनेकों से मिलते रहते? हँ? अनेकों से थोड़ेही मिलते वहां? स्वर्ग में, जो नई दुनिया बाप बनाते हैं वहां, वहां राधा की दृष्टि कृष्ण में और कृष्ण की दृष्टि राधा में। जो पहले नंबर तो वो जो भी आएंगे पीढ़ी दर पीढ़ी देवात्माएं देवता के रूप में वो सब व्यभिचारी होंगी कि अव्यभिचारी? अव्यभिचारी होंगे।
अरे, बहुत ही साक्षात्कार भी करते हैं। अरे, बहुत ही ढ़ेर के ढ़ेर साक्षात्कार आगे चलके करेंगे भी। क्या? शुरुआत में भी बहुतों ने साक्षात्कार किया। हँ? कृष्ण का साक्षात्कार किया। क्योंकि कृष्ण को तो सब कोई प्यार करते हैं। दिल करके उसका साक्षात्कार करते हैं ना? 30.11.1967 की प्रातः क्लास का पांचवां पेज। तो वो तो जो नौधा भक्त होते हैं ना, हाँ, वो नौधा भक्ति जब करें, बहुत तीव्र भक्ति करें तब साक्षात्कार। ये तो ऐसे ही बैठे-बैठे, हँ, कहां चलेंगी? वैकुण्ठ में चली जाती। हाँ, चलेंगी। पहले भी चली थी, अंत में भी चलेंगी। बहुतों को साक्षात्कार होगा। पहले तो थोड़ों को और लास्ट में? बहुतों को होगा। अच्छा। शिवबाबा को याद करो। हँ? चलेंगी? चलेंगी-चलेंगी, ये ध्यान में चली जाती थी वैकुण्ठ में। और फिर वहां खेलपाल करती थी। ये करती थी। बस। और हूबहू जैसे कोई साज-वाज भी नहीं पहनते थे। न वहां पहनाते थे। तो वो साज-वाज तो उनको पीछे पहनाया है बच्चों को। कहां? भक्तिमार्ग में साज-वाज बनाय दिया ना? हाँ, नहीं तो वो तो आत्मा के अंदर की गुण-रत्नों की बात है, शक्तियों की बात है। कोई बाहर से देखने की बात है? नहीं। तो वहां भक्तिमार्ग में भी पहनाय दिया। तो अभी शूटिंग पीरियड में भी पहनाते हैं कि नहीं? हँ? हाँ, पहनाते हैं। तो वो हेर पड़ गई है टू मच की। तो तब रोज़ ध्यान में, वो साक्षात्कार में जाती थी। हँ? और कहती थी बाबा हमको वैकुण्ठ में भेजो। ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated 30.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the middle of the third page on Thursday was that you children have come to know nicely that everyone has to go. Look in the picture itself – Is there Baba in the Golden Age? Hm? Pictures of Lakshmi-Narayan are found in the Golden Age. Those of Radha-Krishna are found. Is there Baba’s picture? Is there the picture of Baba in the Golden Age? No. Baba’s picture is in the Iron Age. Hm? The living picture also and on the path of Bhakti as well. Imaginary pictures are prepared. But they do not understand the meaning. Look, this one at the fag end of the tree. So, it is the last birth of many births, isn’t it? Look, look from below, look at the top. Baba’s picture has been placed in the end. Brother, look in the tree he is standing above. He is visible to you people. So, where is he standing? He is standing at the very end. And then he is sitting in the beginning to do Tapasya. It has been explained so easily. And who has explained this? The spiritual Father has explained. Arey, this one hasn’t explained, has he? Neither did this one get the pictures prepared through visions. It is because this one didn’t know these topics. Who? Brahma Baba didn’t know. This one was a jeweller. Neither is it that he has many, many gurus or that he has many disciples who have explained. No. There is only one Father. And He Himself sits and explains. Nobody else in the world knows this at all. There is only one knowledgeful Father. He gives knowledge.
And you also know that you remember only one. You remember, don’t you? O Supreme Father! Come and remove our sorrows. You cannot tell to anyone else, can you? You can never say so to either Brahma or Vishnu because they are deities, aren’t they? They are not Gods, are they? Then? Are those who live there in the Soul World called deities? Are the souls called deities? No. Deities, that too what? The same, the same Vishnu, the same Brahma. Hm? They sat and prepared these pictures. They have been named. Hm? Those names have been coined in the scriptures on the basis of the tasks performed. The Father sits and explains about them. And they are here, aren’t they? As such, brother, no topic of the Subtle Region emerges. You children have visions. This Baba also becomes an angel. Nobody else is there; is there anyone else? This Baba also rightly becomes angel because initially this one has bones and muscles. When he becomes an angel then later he doesn’t have bones and muscles. Hm? And then what does he become after angel? Hm? Later he becomes a soul. Hm.
So, children know this, don’t they? Sweet children, look, the one who is there at the top of the Ladder; he has then been placed below in the Ladder. Look, then he is doing tapasya (penance). So, sometimes the picture itself tells clearly. So, this one doesn’t call himself Brahma or God. It is the Father who says, doesn’t He? Brahma himself says – I was not worth a penny. Hm? I was not. Note it. I was worth not, worth a penny. I was not even worth a cowrie. Tattwam. So were you. Fourth page, fourth line of the morning class dated 30.11.1967. Now I am worth, I am getting worth Pound. Tattwam (so are you). It will be said like this, isn’t it children? Now we were like this only. And Baba was also like this only. Now again we are obtaining knowledge from the Father. Which Father? The one who was worth not a penny, hm, that Father of the human world is obtaining knowledge. And you children are also obtaining knowledge.
So, now these topics are so easy to understand. So, why is this explained sitting to the children nicely? It is because they do come to the exhibition, don’t they? How many come in those exhibitions? So, if someone ever says, arey, tell them, what do you speak? Look above, who is standing? This one is at the very dilapidated condition of the tree. There is a completely dilapidated stage there, isn’t it? So, the Father also says – When this one reaches the dilapidated stage, when he goes beyond sixty, not within sixty. Hm? When he becomes worthy of going beyond speech then I enter in these. It is so, isn’t it? So, you see, don’t you that he is in the end. So, the one who is in the end comes first. It is because you are doing tapasya to become rajyogis. Look at this, brother, are these not doing tapasya? How is this, this? Those who are doing tapasya, so, they have become that only through tapasya, haven’t they?
So, you children are also doing tapasya. Well, everyone cannot do; can they? It is possible that you take out 10, 12, 20, 25 pictures, brother, these pictures, these people learn rajyog. So, they will go and become this. You can also be made to wear the crown, can’t you? Which crown can you be made to wear now? Hm? You. Hm? You can be made to wear the crown of responsibility. This, this is made, isn’t it? So, the pictures of you children are clicked and made this. Then that crown; that crown, that crown of light is given and made that to show. So, these become that. What is meant by ‘these’? These Brahmins become those deities with light. They become that through rajyog. 10-20 pictures can be made and can be kept in the exhibition that you become this through this rajyog. So, many such pictures have been prepared, haven’t they been? All those who were there 200-250, all their photos have been clicked like this. A topic of which place has been mentioned? Hm? A topic of Om Mandali, Sindh, Hyderabad was mentioned. It is not so. But at some places, it has started, begun because this is a topic to be explained, isn’t it? The pictures were like this. Hm? All of them had clicked. Hm? Were they ordinary pictures or were they of the deities with light? On the one side were these ordinary ones and on the other side the double crowned. Which one on one side? Hm? Which one on the other side? Hm? Arey, the ordinary ones are sitting in the Ladder below. And above? Yes, double crowned. What is meant by double? One is the crown of purity. And the other? Hm? Yes, the responsibility that was taken up here, wasn’t it, so then they get gem-studded crown there. It is because you are becoming, aren’t you? You are becoming in practical, aren’t you? You understand that topic also that you are becoming.
And then only those who go accurate will remain. The lineis very clear. And these have become sweet. It is because the Father says, doesn’t He that daughter, look, this seed has been sown. When Ravan has come, then this body consciousness, lust, anger, greed, attachment, exist, don’t they? It is correct, isn’t it? Well, this is also like a seed that has been sown. Hm? When was this seed sown? Hm? The seed of deity quality was also sown now and the seed of Ravana quality was also sown now. So look, the seed has become so long and wide completely. This is the part in the entire world, in everyone. What? This part of the ten heads of Ravan. These branches have emerged from the seed. And then they have become big. It is correct, isn’t it? Now these have to be merged. Hm? Or will they continue in the new world? Are lust, anger, greed, attachment to be merged or will they remain emerge? No. Then look this seed should never be sown in future. Achcha? Is it not to be sown? Will you not sow them again in the Copper Age? Will you sow? Achcha? When its shooting takes place here, then do you sow here or in the Copper Age? Yes. Now it is the Confluence Age, isn’t it? The Father says – So, you should never sow this seed of body consciousness. What is meant by never? Neither is it to be sown in the four Ages. And? And even here He cautions that you children should not sow this seed. What will happen if you sow here? Yes, that sanskar will merge in the soul. Then they will emerge at their designated time.
So, you should consider yourself to be a soul (dehi). What is meant by dehi? You should consider yourself to be a soul that assumes the body (deh). You should never sow the seed of anger, this lust. You have understood, haven’t you? It is because if you don’t sow for half a Kalpa, then that is it, then that Ravan doesn’t exist for half a Kalpa. This is why you children should understand. If Ravan himself doesn’t exist there, then what exists there? So, the Father sits and explains every such topic which the children haven’t understood, and which children can come and understand. As such there is only one topic to be understood, isn’t it? What? That which has to be understood deeply. Hm? What? Manmanaabhav. What is the depth in this brother? Hm? What is the depth in this? Merge into My mind. The meaning of these Sanskrit words is – Be in My mind. Be what? Whatever is in My mind should be in your mind. Achcha? Who is telling this? Hm? Who said this? Hm? Hm? Should whatever that exists in My mind occupy your mind? (Someone said something.) Did the permanent Chariot-holder say? Achcha? Didn’t Shiv say within the permanent Chariot holder? (Someone said something.) Did Shiv also say? Does He also have a mind? Then? Yes, did Shiv [say]? Does Shiv have a mind? Who has an inconstant mind? Hm? The human beings have. So, whatever is in My mind; it is the human beings who have to become a deity. When you become deities, then do the deity souls have an inconstant mind? Do you have a mind there? No. So, what do you have [there]? The mind merges into the intellect. So, what is in the intellect? I am a point of light soul. Where? In the heaven. Yes.
So, then remember the Father and the topic that the Father speaks that remember Me, then look, He explains in such an easy way. There are these sins, aren’t they there? You have become sinful souls, haven’t you? You have become Ajamil-like sinful souls. Hm? It would have been okay if you remained human beings, had you remained with human beings. With whom did you mix? Aja. You went and mixed-up with sheep and goats. So, you became sinful souls. So, you will say – Achcha! This one himself remained Ajamil-like sinful soul. It is because this one himself is in the end, isn’t he? And in the very beginning also and in the very end also. So, these will only be called the most Ajamils. Who? This one or these? Again the same. Hm? Who will be called the most Ajamil Hm? Arey? Arey, the four-headed Brahma will also be called the most Ajamil and then did the five-headed Brahma also exist or not? Arey? Didn’t he exist? Yes, he also existed. But, so, is one called ‘the most’ or are two called ‘the most’? Yes, then? Then why did He say ‘these’ (inko)? In case of ‘the most’, if there is an election, then one will emerge. Why did He say ‘these’? Arey? Arey, He enters, doesn’t He? Yes, you forget again and again. In whose intellect does the four-headed Brahma also merge? Hm? Does the fifth head have its intellect or not? Yes. They [the four heads] merge in it.
So, these will only be called the most Ajamils. These? When two merge into one, then in which Age will they be called the most Ajamils? Hm? In the Golden Age, in the Silver Age, in the Copper Age, in the Iron Age or in the Purushottam Sangamyug (Confluence Age) only? It is because in this Age there is the Iron Age also and, and the Golden Age also; it is a combination of both. So, during the shooting of the end of the Iron Age [these are] the most Ajamils. Do they mix-up with many Ajas or with a few Ajas, few sheep and goats? Hm? With many sheep and goats.
So, you see. Then, look how this very Ajamil then becomes that through the power of Yoga? Hm? What is meant by ‘that’? Hm? The one who keeps on mixing with numerous sheep and goats here in the end of the Iron Age or in the shooting of the end of the Iron Age, what does he become there? Does he mix with one for 21 births or does he keep on mixing with many? Hm? He doesn’t mix with many there. In heaven, in the new world that the Father establishes, there, there, Radha exchanges glances only with Krishna and Krishna exchanges glances only with Radha. Will the deity souls that come at number one or generation by generation in the form of deities, will they all be adulterous (vyabhichaari) or non-adulterous (avyabhichaari)? They will be non-adulterous.
Arey, many people have visions also. Arey, many people will have numerous visions in future also. What? In the beginning also many people had visions. Hm? They had visions of Krishna. It is because everyone loves Krishna. They give their hearts and have his visions, don’t they? Fifth page of the morning class dated 30.11.1967. So, those naudha devotees (devotees who practice nine types of Bhakti to God in Hinduism), yes, when they do naudha Bhakti, very intense Bhakti, then they have visions. These [virgins and mothers] will simply go to which place while sitting? They go to Vaikunth. Yes, they will go. They had gone in the beginning also; they will go in the end as well. Many will have visions. Initially a few and in the last? Many will have. Achcha. Remember ShivBaba. Hm? Will you go? They will go, they will go; these used to go to Vaikunth in trance. And then they used to play there. They used to do this. That is it. And exactly in the same manner, they did not used to wear any decorations also. Neither did they used to be made to wear. So, they, the children were made to wear those decorations later on. Where? Decorations were made on the path of Bhakti, were they not? Yes, otherwise, that is a topic of the virtues and gems, powers within the soul. Is it a topic to be seen externally? No. So, they were made to wear there on the path of Bhakti as well. So, are you made to wear now in the shooting period also not not? Hm? Yes, you are made to wear. So, you are habituated to go into too much. So, then they used to go into trance, in visions every day. Hm? And they used to say – Baba, send us to Vaikunth. Om Shanti. (End)
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2938, दिनांक 11.07.2019
VCD 2938, dated 11.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning class dated 30.11.1967
VCD-2938-Bilingual
समय- 00.01-31.39
Time- 00.01-31.39
प्रातः क्लास चल रहा था – 30.11.1967. गुरुवार को तीसरे पेज के मध्य में बात चल रही थी कि तुम बच्चों को अच्छी तरह से मालूम हो गया कि जाना तो सबको ही है। चित्र में ही देखो – कोई-कोई सतयुग में कहां है बाबा? हँ? सतयुग में लक्ष्मी-नारायण के चित्र मिलते हैं। राधा-कृष्ण के मिलते हैं। बाबा का चित्र है क्या? सतयुग में क्या बाबा का चित्र है? नहीं। ये तो कलहयुग में है बाबा का चित्र। हँ? चैतन्य चित्र भी और फिर भक्तिमार्ग में भी। चित्र तो बनाते हैं काल्पनिक। परन्तु अर्थ तो नहीं समझते। देखो, ये झाड़ के पिछाड़ी में एकदम। तो हो गया ना बहुत जनम के अंत के भी जनम में। देखो नीचे से देखो, ऊपर में देखो। अंत में लगाय दिया है बाबा का चित्र। भई, झाड़ में देखो तो ऊपर में खड़ा है। देखने में आते हैं तुम लोगों को। तो कहाँ खड़ा है? पिछाड़ी में एकदम पिछाड़ी में खड़ा हुआ है। और फिर शुरू में बैठा है तपस्या करने। इतना सहज समझाया है। और ये समझाया किसने? रूहानी बाप ने समझाया। अरे, इसने तो नहीं समझाया ना? न इसने ये साक्षात्कार से चित्र तैयार कराए। क्योंकि ये बातें ये तो नहीं जानते थे। कौन? ब्रह्मा बाबा तो नहीं जानते थे। ये तो जवाहरी था। न कोई ऐसे है कि कोई बहुत, बहुत गुरु हैं जिन्होंने या बहुत शिष्य हैं जिनको समझाया हो। नहीं। एक ही बाप है। और वो ही बैठकरके समझाते हैं। और कोई दुनिया में जानते ही नहीं हैं ये। एक ही नॉलेजफुल बाप है। वो नॉलेज देते हैं।
और ये भी जानते हैं कि एक को ही याद करते हैं। याद करते हैं ना, हे परमपिता! आकरके हमारा दुख हरो। और तो किसको नहीं कह सकते हैं ना? कभी भी न ब्रह्मा को, न विष्णु को, क्योंकि वो तो देवता है ना? भगवान तो नहीं है ना? फिर? कोई वहां के जो मूल वतन में रहते हैं, उनको देवता थोड़ेही कहा है? आत्माओं को देवता ऐसे थोड़ेही कहा जाता है? नहीं। देवता सो भी क्या? वो, वो ही विष्णु, वो ही ब्रह्मा। हँ? ये तो उन्होंने बैठकरके चित्र बनाए हैं। नाम रखा है। हँ? जिन नामों को काम के आधार पर रखा गया है शास्त्रों में। जिनके लिए बाप बैठ समझाते हैं। और वो हैं तो यहां ना? बाकि सूक्षम वतन की तो भई कोई बात नहीं निकलती है। तुम बच्चों को साक्षात्कार हो जाते हैं। ये बाबा भी फरिश्ता बन जाते हैं। दूसरा तो कोई नहीं है ना? ये बाबा भी बरोबर फरिश्ता बन जाते हैं क्योंकि पहले तो इनको हड्डी मांस है। फरिश्ता बन जाते हैं तो फिर पीछे हड्डी-मांस तो नहीं रहता। हँ? और फिर फरिश्ता के बाद क्या बन जाते? हँ? पीछे आत्मा बन जाते। हँ।
तो ये तो बच्चे जानते हैं ना? मीठे बच्चे देखो, जो ऊपर में है सीढ़ी, सीढ़ी के एकदम ऊपर में। सो फिर नीचे में सीढ़ी में लगाया। देखो, फिर तपस्या कर रहे हैं। तो ये तो कभी चित्र ही साफ बताय देते हैं। तो ये तो अपन को कोई ब्रह्मा या भगवान नहीं कहते हैं। वो तो बाप कहते हैं ना? ब्रह्मा खुद कहते हैं आइ वॉज़ नॉट वर्थ नॉट ए पैनी। हँ? आइ वॉज़ नोट। नोट करो। आइ वॉज़ वर्थ नॉट, वर्थ ए पैनी। मेरी एक कौड़ी की भी कीमत नहीं थी। ततत्वम्। वो ही तुम। 30.11.1967 की प्रातः क्लास का चौथा पेज, चौथी लाइन। अभी आइ एम वर्थ, आइ एम गैटिंग वर्थ पाउंड। ततत्वम्। ऐसे कहेंगे ना बच्चे? अभी ऐसे ही थे। और बाबा भी ऐसे ही थे। अभी फिर बाप ज्ञान ले रहे हैं। कौनसा बाप? जो वर्थ नॉट ए पैनी थे, हँ, वो मनुष्य सृष्टि का बाप ज्ञान ले रहे हैं। और तुम बच्चे भी ज्ञान ले रहे हो।
तो अभी ये बातें कितनी सहज हैं समझने के लिए। तो ये क्यों बच्चों को बैठकरके अच्छी तरह से समझाया जाता है? क्योंकि वो आते तो हैं ना प्रदर्शनी में? उन प्रदर्शनी में कितने आते हैं? तो कभी कोई कहे, अरे, बोलो, तुम क्या बोलते हो? ये ऊपर में देखो कौन खड़ा हुआ है? ये तो एकदम झाड़ के जड़जड़ीभूत अवस्था में है। वो तो वहां पूरी जड़जड़ीभूत अवस्था है ना? तो बाप भी कहते हैं - जब इसकी जड़जड़ीभूत अवस्था हो जाती है, जब साठ के बाहर में चले जाते हैं; साठ साल के अंदर नहीं। हँ? जब वाणी से परे जाने का लायक बनते हैं तब मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। ऐसे है ना? तो देखते हो ना पिछाड़ी में है। तो जो पिछाड़ी में है सो पहले आते हैं। क्योंकि तपस्या कर रहे हो राजयोगी बनने की। ये देखो, ये भई राजयोगी तपस्या नहीं कर रहे हैं? ये, ये कैसे? जो तपस्या कर रहे हैं तो तपस्या से ही जभी वो बने ना?
तो तपस्या तो तुम भी बच्चे कर रहे हो। अब सबको तो नहीं कर सकते हैं ना? ये हो सकता है जो चित्र निकालकरके 10, 12, 20, 25 भई ये चित्र ये राजयोग सीखते हैं। सो ये जाकर बनेंगे। ताज तो तुमको भी पहनाय सकते हैं ना? अभी कौनसा ताज पहनाय सकते हैं? हँ? तुमको। हँ? जिम्मेवारी का ताज पहनाय सकते हैं। ये, ये बनाते हैं ना? तो तुम बच्चों का चित्र निकालकर ये बनाते हैं। फिर वो ताज; वो ताज देकरके, लाइट के ताज देकरके वो बनाते हैं दिखलाने के लिए। तो ये सो बनते हैं। ये माने? ये ब्राह्मण सो वो देवता बनते हैं लाइट वाले। राजयोग से ये सो बनते हैं। ऐसे तो 10-20 चित्र बनाकरके प्रदर्शनी में जाय उसमें रख सकते हैं कि ये इससे सहज राजयोग से बनते हैं। तो ऐसे ये चित्र बहुत बनाए हुए हैं ना? जो भी वहां थे दो ढ़ाई सौ उन सबका ऐसे फोटो निकाला हुआ है। कहाँ की बात बताई? हँ? ओम मंडली की, सिंध, हैदराबाद की बात बताई। ऐसे नहीं है। परन्तु कहां-कहां शुरू, शुरू तो हो गया क्योंकि ये समझाने की बात है ना? बाकि ऐसे चित्र थे। हँ? सबने निकाले थे। हँ? साधारण चित्र थे या देवताओं के लाइट वाले थे? एक तरफ में ये साधारण और दूसरे तरफ में डबल सिरताज। कौनसी एक तरफ में? हँ? कौनसी दूसरी तरफ में? हँ? अरे, सीढ़ी में नीचे साधारण बैठे हुए हैं। और ऊपर? हाँ, डबल सिरताज। डबल माना? एक तो पवित्रता का ताज। और दूसरा? हँ? हाँ, यहां जो जिम्मेवारी उठाई ना तो वो वहां उनको वो रतनजड़ित ताज मिलता है। क्योंकि बन रहे हो ना? प्रैक्टिकल में बन तो रहे हैं ना? वो बात भी तो समझते हो ना कि बन रहे हो।
और फिर बने रहेंगे वो ही जो एक्यूरेट चले जाएंगे। लाइन बिल्कुल क्लीयर ही। और मीठे बने हैं ये। क्योंकि बाप कहते हैं ना बच्ची देखो ये बीज बोया हुआ है। जब रावण आया हुआ है तो ये देह अहंकार, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ये है ना? ठीक है ना? अब ये भी जैसे बीज बोया है। हँ? ये बीज कब बोया? हँ? देवताइपने का जो बीज है वो भी अभी बोया और रावणपने का बीज वो भी अभी बोया। तो देखो बीज कितना लंबा-चौड़ा हो गया है बिल्कुल ही। सारी दुनिया इनमें सबमें ये पार्ट है। क्या? रावण के दस सिरों का ये पार्ट। बीज के ये सलें निकल पड़ी हैं। और फिर बड़े हो गए हैं। ठीक है ना? अभी फिर इनको मर्ज करना है। हँ? कि नई दुनिया में चलते रहेंगे? काम, क्रोध, लोभ, मोह को मर्ज करना है कि इमर्ज ही बने रहेंगे? नहीं। फिर तो देखो भविष्य में कभी भी ये बीज नहीं बोना है। अच्छा? नहीं बोना है? फिर द्वापरयुग में बोएंगे नहीं? बोएंगे? अच्छा? उसकी शूटिंग जब यहाँ होती है तो यहीं बोते हैं कि द्वापर में बोते हैं? हाँ। अभी संगमयुग है ना? बाप कहते हैं। तो कभी भी ये देह अहंकार का बीज नहीं बोना है। कभी भी माना? न चार युगों में बोना है। और? और यहां भी ताकीद करते हैं कि तुम बच्चों को ये बीज नहीं बोना है। यहां बोएंगे तो क्या होगा? हाँ, वो आत्मा में वो संस्कार मर्ज हो जावेंगे। फिर अपने टाइम पर इमर्ज हो जावेंगे।
तो अपन को देही समझने का है। देही माने? देह को धारण करने वाली आत्मा समझने का है। कभी भी क्रोध का, ये काम का कभी भी बीज नहीं बोना है। समझा ना? क्योंकि आधा कल्प के लिए बीज नहीं बोएंगे तो बस आधा कल्प के लिए फिर वो रावण नहीं होता है। इसलिए तुम बच्चों को समझ लेना चाहिए। वहां रावण ही नहीं है तो फिर क्या है? तो बाप बच्चों को बैठकरके हरेक बात जो न समझे हों बच्चे वो बच्चे आकरके समझ सकते हैं। बाकि समझने की एक ही बात रहती है ना? क्या? जो गहराई से समझनी है। हँ? क्या? मनमनाभव। इसमें क्या गहराई है भाई? हँ? इसमें गहराई क्या है? मेरे मन में समा जा। इन संस्कृत अक्षरों का अर्थ है मेरे मन में हो जा। क्या हो जा? जो मेरे मन में है सो तेरे मन में हो जा। अच्छा? ये कौन कह रहा है? हँ? ये किसने कहा? हँ? हँ? जो मेरे मन में है सो तेरे मन में हो जाए? (किसी ने कुछ कहा।) मुकर्रर रथधारी ने कहा? अच्छा? मुकर्रर रथधारी के अंदर शिव ने नहीं कहा? (किसी ने कुछ कहा।) शिव ने भी कहा? उसको भी मन है? फिर? हाँ, शिव ने थोड़ेही? शिव को मन थोड़ेही होता है? चंचल मन किसको होता है? हँ? मनुष्यों को होता है। तो जो मेरे मन में है, मनुष्य को ही देवता बनना है। देवता बनते हैं तो देव आत्माएं उनका मन चंचल होता है? वहां होता है मन? नहीं। तो क्या होता है? मन बुद्धि में समा जाता है, मर्ज हो जाता है। तो बुद्धि में क्या? मैं ज्योतिबिन्दु आत्मा। कहां? स्वर्ग में। हाँ।
तो फिर बाप को याद करो और बाप जो कहते हैं मुझे याद करो, तो देखो कितना सहज करके समझाते हैं। ये जो पाप हैं ना? पापात्मा बने हैं ना? अजामिल जैसे पापात्मा बने हैं। हँ? मनुष्य रहते, मनुष्यों से मिलके रहते तो भी ठीक। किससे मिल गए? अजा। भेड़-बकरियों से जाके मिल गए। तो पापात्मा बन गए। तो तुम कहेंगे - अच्छा! अजामिल जैसा पापात्मा तो यही रहा। क्योंकि सबसे पिछाड़ी में तो ये है ना? और सबसे पहले में भी, तो सबसे पिछाड़ी में भी। तो इनको ही कहा जाए सबसे जास्ती अजामिल। किनको? इसको या इनको? फिर वो ही। हँ? किनको कहा जाए सबसे जास्ती अजामिल? हँ? अरे? अरे, चार मुखों वाले ब्रह्मा को भी सबसे जास्ती अजामिल और फिर जो पंचमुखी ब्रह्मा है वो भी था या नहीं? अरे? नहीं था? हाँ, वो भी तो था। लेकिन, तो सबसे जास्ती एक को कहा जाता है या दो को कहा जाता है? हाँ, फिर? फिर इनको क्यों कह दिया? सबसे जास्ती तो, चुनाव होगा तो एक निकलेगा। ऐसे क्यों कह दिया ‘इनको’? अरे? अरे, प्रवेश करते हैं ना? हाँ, भूल जाते हो बार-बार। चौमुखी ब्रह्मा भी किसकी बुद्धि में मर्ज हो जाते? हँ? जो पंचम मुख है ना उसकी अपनी बुद्धि है कि नहीं? हाँ। वो उसमें मर्ज हो जाते।
तो इनको ही कहा जाए सबसे जास्ती अजामिल। इनको? दो मिलके एक हो जाते हैं तो कौनसे युग में कहा जाएगा सबसे जास्ती अजामिल? हँ? सतयुग में, त्रेता में, द्वापर में, कलियुग में या पुरुषोत्तम संगमयुग में ही? क्योंकि इस युग में कलियुग भी है और, और सतयुग दोनों का मेल है। तो कलियुग का अंत की शूटिंग तो उसमें सबसे जास्ती अजामिल। बहुत सी अजाओं से मिलते होंगे कि थोड़ी अजाओं से, भेड़-बकरियों से मिलते होंगे? हँ? बहुत भेड़-बकरियों से।
तो देखते हो। फिर यही अजामिल फिर देखो योग बल से कैसे वो बन जाते हैं? हँ? वो माने क्या? हँ? ढ़ेर सारी भेड़-बकरियों से यहां मिलते रहते कलियुग के अंत में या कलियुग के अंत की शूटिंग में वो वहां क्या बन जाते? एक से मिलते हैं 21 जनम कि अनेकों से मिलते रहते? हँ? अनेकों से थोड़ेही मिलते वहां? स्वर्ग में, जो नई दुनिया बाप बनाते हैं वहां, वहां राधा की दृष्टि कृष्ण में और कृष्ण की दृष्टि राधा में। जो पहले नंबर तो वो जो भी आएंगे पीढ़ी दर पीढ़ी देवात्माएं देवता के रूप में वो सब व्यभिचारी होंगी कि अव्यभिचारी? अव्यभिचारी होंगे।
अरे, बहुत ही साक्षात्कार भी करते हैं। अरे, बहुत ही ढ़ेर के ढ़ेर साक्षात्कार आगे चलके करेंगे भी। क्या? शुरुआत में भी बहुतों ने साक्षात्कार किया। हँ? कृष्ण का साक्षात्कार किया। क्योंकि कृष्ण को तो सब कोई प्यार करते हैं। दिल करके उसका साक्षात्कार करते हैं ना? 30.11.1967 की प्रातः क्लास का पांचवां पेज। तो वो तो जो नौधा भक्त होते हैं ना, हाँ, वो नौधा भक्ति जब करें, बहुत तीव्र भक्ति करें तब साक्षात्कार। ये तो ऐसे ही बैठे-बैठे, हँ, कहां चलेंगी? वैकुण्ठ में चली जाती। हाँ, चलेंगी। पहले भी चली थी, अंत में भी चलेंगी। बहुतों को साक्षात्कार होगा। पहले तो थोड़ों को और लास्ट में? बहुतों को होगा। अच्छा। शिवबाबा को याद करो। हँ? चलेंगी? चलेंगी-चलेंगी, ये ध्यान में चली जाती थी वैकुण्ठ में। और फिर वहां खेलपाल करती थी। ये करती थी। बस। और हूबहू जैसे कोई साज-वाज भी नहीं पहनते थे। न वहां पहनाते थे। तो वो साज-वाज तो उनको पीछे पहनाया है बच्चों को। कहां? भक्तिमार्ग में साज-वाज बनाय दिया ना? हाँ, नहीं तो वो तो आत्मा के अंदर की गुण-रत्नों की बात है, शक्तियों की बात है। कोई बाहर से देखने की बात है? नहीं। तो वहां भक्तिमार्ग में भी पहनाय दिया। तो अभी शूटिंग पीरियड में भी पहनाते हैं कि नहीं? हँ? हाँ, पहनाते हैं। तो वो हेर पड़ गई है टू मच की। तो तब रोज़ ध्यान में, वो साक्षात्कार में जाती थी। हँ? और कहती थी बाबा हमको वैकुण्ठ में भेजो। ओमशान्ति। (समाप्त)
A morning class dated 30.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the middle of the third page on Thursday was that you children have come to know nicely that everyone has to go. Look in the picture itself – Is there Baba in the Golden Age? Hm? Pictures of Lakshmi-Narayan are found in the Golden Age. Those of Radha-Krishna are found. Is there Baba’s picture? Is there the picture of Baba in the Golden Age? No. Baba’s picture is in the Iron Age. Hm? The living picture also and on the path of Bhakti as well. Imaginary pictures are prepared. But they do not understand the meaning. Look, this one at the fag end of the tree. So, it is the last birth of many births, isn’t it? Look, look from below, look at the top. Baba’s picture has been placed in the end. Brother, look in the tree he is standing above. He is visible to you people. So, where is he standing? He is standing at the very end. And then he is sitting in the beginning to do Tapasya. It has been explained so easily. And who has explained this? The spiritual Father has explained. Arey, this one hasn’t explained, has he? Neither did this one get the pictures prepared through visions. It is because this one didn’t know these topics. Who? Brahma Baba didn’t know. This one was a jeweller. Neither is it that he has many, many gurus or that he has many disciples who have explained. No. There is only one Father. And He Himself sits and explains. Nobody else in the world knows this at all. There is only one knowledgeful Father. He gives knowledge.
And you also know that you remember only one. You remember, don’t you? O Supreme Father! Come and remove our sorrows. You cannot tell to anyone else, can you? You can never say so to either Brahma or Vishnu because they are deities, aren’t they? They are not Gods, are they? Then? Are those who live there in the Soul World called deities? Are the souls called deities? No. Deities, that too what? The same, the same Vishnu, the same Brahma. Hm? They sat and prepared these pictures. They have been named. Hm? Those names have been coined in the scriptures on the basis of the tasks performed. The Father sits and explains about them. And they are here, aren’t they? As such, brother, no topic of the Subtle Region emerges. You children have visions. This Baba also becomes an angel. Nobody else is there; is there anyone else? This Baba also rightly becomes angel because initially this one has bones and muscles. When he becomes an angel then later he doesn’t have bones and muscles. Hm? And then what does he become after angel? Hm? Later he becomes a soul. Hm.
So, children know this, don’t they? Sweet children, look, the one who is there at the top of the Ladder; he has then been placed below in the Ladder. Look, then he is doing tapasya (penance). So, sometimes the picture itself tells clearly. So, this one doesn’t call himself Brahma or God. It is the Father who says, doesn’t He? Brahma himself says – I was not worth a penny. Hm? I was not. Note it. I was worth not, worth a penny. I was not even worth a cowrie. Tattwam. So were you. Fourth page, fourth line of the morning class dated 30.11.1967. Now I am worth, I am getting worth Pound. Tattwam (so are you). It will be said like this, isn’t it children? Now we were like this only. And Baba was also like this only. Now again we are obtaining knowledge from the Father. Which Father? The one who was worth not a penny, hm, that Father of the human world is obtaining knowledge. And you children are also obtaining knowledge.
So, now these topics are so easy to understand. So, why is this explained sitting to the children nicely? It is because they do come to the exhibition, don’t they? How many come in those exhibitions? So, if someone ever says, arey, tell them, what do you speak? Look above, who is standing? This one is at the very dilapidated condition of the tree. There is a completely dilapidated stage there, isn’t it? So, the Father also says – When this one reaches the dilapidated stage, when he goes beyond sixty, not within sixty. Hm? When he becomes worthy of going beyond speech then I enter in these. It is so, isn’t it? So, you see, don’t you that he is in the end. So, the one who is in the end comes first. It is because you are doing tapasya to become rajyogis. Look at this, brother, are these not doing tapasya? How is this, this? Those who are doing tapasya, so, they have become that only through tapasya, haven’t they?
So, you children are also doing tapasya. Well, everyone cannot do; can they? It is possible that you take out 10, 12, 20, 25 pictures, brother, these pictures, these people learn rajyog. So, they will go and become this. You can also be made to wear the crown, can’t you? Which crown can you be made to wear now? Hm? You. Hm? You can be made to wear the crown of responsibility. This, this is made, isn’t it? So, the pictures of you children are clicked and made this. Then that crown; that crown, that crown of light is given and made that to show. So, these become that. What is meant by ‘these’? These Brahmins become those deities with light. They become that through rajyog. 10-20 pictures can be made and can be kept in the exhibition that you become this through this rajyog. So, many such pictures have been prepared, haven’t they been? All those who were there 200-250, all their photos have been clicked like this. A topic of which place has been mentioned? Hm? A topic of Om Mandali, Sindh, Hyderabad was mentioned. It is not so. But at some places, it has started, begun because this is a topic to be explained, isn’t it? The pictures were like this. Hm? All of them had clicked. Hm? Were they ordinary pictures or were they of the deities with light? On the one side were these ordinary ones and on the other side the double crowned. Which one on one side? Hm? Which one on the other side? Hm? Arey, the ordinary ones are sitting in the Ladder below. And above? Yes, double crowned. What is meant by double? One is the crown of purity. And the other? Hm? Yes, the responsibility that was taken up here, wasn’t it, so then they get gem-studded crown there. It is because you are becoming, aren’t you? You are becoming in practical, aren’t you? You understand that topic also that you are becoming.
And then only those who go accurate will remain. The lineis very clear. And these have become sweet. It is because the Father says, doesn’t He that daughter, look, this seed has been sown. When Ravan has come, then this body consciousness, lust, anger, greed, attachment, exist, don’t they? It is correct, isn’t it? Well, this is also like a seed that has been sown. Hm? When was this seed sown? Hm? The seed of deity quality was also sown now and the seed of Ravana quality was also sown now. So look, the seed has become so long and wide completely. This is the part in the entire world, in everyone. What? This part of the ten heads of Ravan. These branches have emerged from the seed. And then they have become big. It is correct, isn’t it? Now these have to be merged. Hm? Or will they continue in the new world? Are lust, anger, greed, attachment to be merged or will they remain emerge? No. Then look this seed should never be sown in future. Achcha? Is it not to be sown? Will you not sow them again in the Copper Age? Will you sow? Achcha? When its shooting takes place here, then do you sow here or in the Copper Age? Yes. Now it is the Confluence Age, isn’t it? The Father says – So, you should never sow this seed of body consciousness. What is meant by never? Neither is it to be sown in the four Ages. And? And even here He cautions that you children should not sow this seed. What will happen if you sow here? Yes, that sanskar will merge in the soul. Then they will emerge at their designated time.
So, you should consider yourself to be a soul (dehi). What is meant by dehi? You should consider yourself to be a soul that assumes the body (deh). You should never sow the seed of anger, this lust. You have understood, haven’t you? It is because if you don’t sow for half a Kalpa, then that is it, then that Ravan doesn’t exist for half a Kalpa. This is why you children should understand. If Ravan himself doesn’t exist there, then what exists there? So, the Father sits and explains every such topic which the children haven’t understood, and which children can come and understand. As such there is only one topic to be understood, isn’t it? What? That which has to be understood deeply. Hm? What? Manmanaabhav. What is the depth in this brother? Hm? What is the depth in this? Merge into My mind. The meaning of these Sanskrit words is – Be in My mind. Be what? Whatever is in My mind should be in your mind. Achcha? Who is telling this? Hm? Who said this? Hm? Hm? Should whatever that exists in My mind occupy your mind? (Someone said something.) Did the permanent Chariot-holder say? Achcha? Didn’t Shiv say within the permanent Chariot holder? (Someone said something.) Did Shiv also say? Does He also have a mind? Then? Yes, did Shiv [say]? Does Shiv have a mind? Who has an inconstant mind? Hm? The human beings have. So, whatever is in My mind; it is the human beings who have to become a deity. When you become deities, then do the deity souls have an inconstant mind? Do you have a mind there? No. So, what do you have [there]? The mind merges into the intellect. So, what is in the intellect? I am a point of light soul. Where? In the heaven. Yes.
So, then remember the Father and the topic that the Father speaks that remember Me, then look, He explains in such an easy way. There are these sins, aren’t they there? You have become sinful souls, haven’t you? You have become Ajamil-like sinful souls. Hm? It would have been okay if you remained human beings, had you remained with human beings. With whom did you mix? Aja. You went and mixed-up with sheep and goats. So, you became sinful souls. So, you will say – Achcha! This one himself remained Ajamil-like sinful soul. It is because this one himself is in the end, isn’t he? And in the very beginning also and in the very end also. So, these will only be called the most Ajamils. Who? This one or these? Again the same. Hm? Who will be called the most Ajamil Hm? Arey? Arey, the four-headed Brahma will also be called the most Ajamil and then did the five-headed Brahma also exist or not? Arey? Didn’t he exist? Yes, he also existed. But, so, is one called ‘the most’ or are two called ‘the most’? Yes, then? Then why did He say ‘these’ (inko)? In case of ‘the most’, if there is an election, then one will emerge. Why did He say ‘these’? Arey? Arey, He enters, doesn’t He? Yes, you forget again and again. In whose intellect does the four-headed Brahma also merge? Hm? Does the fifth head have its intellect or not? Yes. They [the four heads] merge in it.
So, these will only be called the most Ajamils. These? When two merge into one, then in which Age will they be called the most Ajamils? Hm? In the Golden Age, in the Silver Age, in the Copper Age, in the Iron Age or in the Purushottam Sangamyug (Confluence Age) only? It is because in this Age there is the Iron Age also and, and the Golden Age also; it is a combination of both. So, during the shooting of the end of the Iron Age [these are] the most Ajamils. Do they mix-up with many Ajas or with a few Ajas, few sheep and goats? Hm? With many sheep and goats.
So, you see. Then, look how this very Ajamil then becomes that through the power of Yoga? Hm? What is meant by ‘that’? Hm? The one who keeps on mixing with numerous sheep and goats here in the end of the Iron Age or in the shooting of the end of the Iron Age, what does he become there? Does he mix with one for 21 births or does he keep on mixing with many? Hm? He doesn’t mix with many there. In heaven, in the new world that the Father establishes, there, there, Radha exchanges glances only with Krishna and Krishna exchanges glances only with Radha. Will the deity souls that come at number one or generation by generation in the form of deities, will they all be adulterous (vyabhichaari) or non-adulterous (avyabhichaari)? They will be non-adulterous.
Arey, many people have visions also. Arey, many people will have numerous visions in future also. What? In the beginning also many people had visions. Hm? They had visions of Krishna. It is because everyone loves Krishna. They give their hearts and have his visions, don’t they? Fifth page of the morning class dated 30.11.1967. So, those naudha devotees (devotees who practice nine types of Bhakti to God in Hinduism), yes, when they do naudha Bhakti, very intense Bhakti, then they have visions. These [virgins and mothers] will simply go to which place while sitting? They go to Vaikunth. Yes, they will go. They had gone in the beginning also; they will go in the end as well. Many will have visions. Initially a few and in the last? Many will have. Achcha. Remember ShivBaba. Hm? Will you go? They will go, they will go; these used to go to Vaikunth in trance. And then they used to play there. They used to do this. That is it. And exactly in the same manner, they did not used to wear any decorations also. Neither did they used to be made to wear. So, they, the children were made to wear those decorations later on. Where? Decorations were made on the path of Bhakti, were they not? Yes, otherwise, that is a topic of the virtues and gems, powers within the soul. Is it a topic to be seen externally? No. So, they were made to wear there on the path of Bhakti as well. So, are you made to wear now in the shooting period also not not? Hm? Yes, you are made to wear. So, you are habituated to go into too much. So, then they used to go into trance, in visions every day. Hm? And they used to say – Baba, send us to Vaikunth. Om Shanti. (End)
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2939, दिनांक 12.07.2019
VCD 2939, dated 12.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning class dated 30.11.1967
VCD-2939-extracts-Bilingual
समय- 00.01-16.53
Time- 00.01-16.53
प्रातः क्लास चल रहा था – 30.11.1967. गुरुवा.र को पांचवें पेज की आठवीं, छठी लाइन में बात चल रही थी ध्यान में जाने की। बच्चियां ध्यान में जाती थी, डांस करती थी। कोई साज-वाज भी नहीं पहनाते थे। ये साज-वाज उनको पीछे पहनाया। हँ? कहाँ से टैली करना है? हँ? जब मानसी सृष्टि रची गई तो जो साक्षात्कार होते थे भक्तों को, साक्षात्कार में जब जाते थे तो वहां कोई वो साज-वाज पहनते थे क्या? कुछ भी नहीं। डांस करते थे। साज-वाज तो कुछ भी नहीं था। ये जो विष्णु को दुनियाभर का साज-वाज पहनाया हुआ है, हँ, तो ये तो पीछे की बात है। हँ? साज-वाज पहनाना माने? श्रृंगार करना। तो एक होता है स्थूल श्रृंगार। और दूसरा होता है सूक्षम श्रृंगार। सूक्षम श्रृंगार क्या होता है? सूक्ष्म ते सूक्ष्म चीज़ क्या है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) आत्मा? अच्छा? आत्मा में ऐसी क्या बात है जो सूक्षम हो जाती है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) मन-बुद्धि सूक्षम होती है? अच्छा? तो आत्मा, जब आत्मलोक में रहती है, तो वहां मन-बुद्धि होती है? तो फिर? अगर होती है तो कहेंगे हाँ, सूक्षम होती है। वहां तो मन-बुद्धि आत्मा में होती है? नहीं होती। इसका मतलब कि इस दुनिया में आते हैं तो ये मन भी स्थूल है, और, आत्मा के मुकाबले। और बुद्धि भी स्थूल है।
बताया – ये भक्तों को साज-वाज अनुभव होता था। होता तो नहीं था। पीछे उनको पहनाया दिव्य गुणों का साज। अब तो हेर पड़ गई है। टू-मच हो गई। फिर क्या हुआ? रोज ध्यान में जाने लगी। साक्षात्कार करने लगी। तब रोज आती थी - बाबा हमको वैकुण्ठ में भेजो। हँ? दुनियावाले तंग करते थे तो यहां से बुद्धि बाबा के पास भागे। बाबा हमें वैकुण्ठ में भेज दो। मजा आएगा वहां। तो श्रृंगार करके आती थी। हँ? ताज-वाज पहनकरके आती थी। कहां? साक्षात्कार में ताज-वाज पहनती थी ना? हाँ। तो इनके बहुत ही ये खेल-पाल हुए। देखो साज थे इनके पास बहुत। हँ? साज माने? तबला, हारमोनियम, ये मजीरा, वगैरा कुछ थे? हँ? तुम बच्चे जानते हो ना कितनी बच्चियां होती थी, जो बच्चियां आकरके बाबा के पास वहां से, हँ, पढ़ाकरके, आकरके, श्रृंगार करकरके कोई राधे बन जाती, कोई कृष्ण बन जाती, कोई मुरली-वुरली। हँ? वो मुरली-वुरली नहीं उठाती थी। नहीं। वो आकरके तैयार होकरके फिर बाबा के पास, बाबा, अब हम तैयार हो गए। हमको भेजो। अरे, कुछ भी नहीं। अच्छा, जाओ बच्चियों। बस। ऐसे-ऐसे करते-3 उनकी आँखें बंद हो जाती थीं। फिर जब वैकुण्ठ में जाते थे फिर आंखें खुल जाती थी। वो ही पुरानी आँखें खुल जाती थीं? वैकुण्ठ में नई आँखें होंगी कि पुरानी होंगी? वैकुण्ठ में तो नया जन्म। पहले-पहले जाएंगे जो भी वैकुण्ठ में तो नया जन्म होगा कि पुराना? नया जन्म होगा। तो इन्द्रियां भी? इन्द्रियां भी नई। तो फिर आँखें बंद होने का क्या मतलब हुआ? पहले आँखें बंद होतीं, फिर जाके साक्षात्कार करो। और मर जाता आदमी तो क्या होता है? आँखें? आंखें काम करती है? नहीं। जैसे बंद हो गईं।
तो ये जो स्थूल इन्द्रियां हैं, इन इन्द्रियों को चलाने वाला मन है और ये मन को चलाने वाली बुद्धि है, हँ, ये सब पुरानी चीज़ें वहां होंगी? हँ? क्या कहें? नहीं होंगी। बंद हो जाती थीं। माना इस स्थूल दुनिया से जैसे पांच तत्वों की दुनिया से जिनसे ये शरीर बनता है, इन्द्रियां हैं, चाहे सूक्षम इन्द्रियां हैं, अरे, चाहे कर्मेन्द्रियां हैं, वो सब खलास। यहां का यहीं। और वहां क्या जाती है? पहले तो आत्मा जाती है ना? तो कहते हैं मर गया। मर गया का मतलब क्या हुआ? सुषुप्ति में आत्मा गई सदाकाल के लिए। इस दुनिया से गई तो गई। फिर इस दुनिया में वापस आती? नहीं आती। तो जैसे आँखें बंद हो जाती थीं। फिर जब वैकुण्ठ में जाते थे; क्या? वैकुण्ठ में कि स्वर्ग में? कहां जाते थे? परमधाम से आते तो पहले कहां जाते? हँ? पहले वैकुण्ठ में आते कि पहले स्वर्ग में आ जाते? 16 कला संपूर्ण स्वर्ग? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) पहले स्वर्ग में आते? बाद में वैकुण्ठ आता? हँ? वैकुण्ठ किसे कहा जाता? हँ? वैकुण्ठ कहा जाता है विष्णुपुरी को। विष्णुपुरी में इन्द्रियों का सुख होता है? इन्द्रियों का सुख नहीं होता। कौनसा सुख होता है? हँ? मन-बुद्धि का सुख होता है। हँ? मन भी नहीं, बुद्धि का सुख। हँ? बुद्ध, प्रबुद्ध।
तो देखो, जब वैकुण्ठ में जाते थे फिर वो आँख खुल जाती थी। कौनसी आँखें? स्थूल आँखें होती हैं ना? हाँ। स्थूल आँखें कब खुलती हैं, कब बंद होती हैं? इन आँखों का, इन इन्द्रियों का कोई मुखिया है, हँ, जो इनको पहले आर्डर देता है? कौन? लिखो, एक अक्षर लिखो। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, मन। तो बताया; क्या मन सर्वोपरि हो गया? हँ? सबको आर्डर करने वाला मन ही हो गया क्या? हँ? फिर कौन? इन्द्रियों को मन आर्डर नहीं देता तो मन स्वच्छंद है? मन के ऊपर कोई नहीं क्या? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, मन भी स्वर्ग में काम नहीं करता। क्या? चंचल होता है? वहां चंचलता नहीं होती मन में। क्या होता है? एकाग्र। कहां एकाग्र? मैं आत्मा ज्योतिबिन्दु भृकुटि के मध्य में। अपन को भी आत्मा देखना, दूसरों को भी आत्मा देखना। हँ? उसको कहते हैं स्वर्ग। स्व माने आत्मा। ग माने गया। कहां गया? आत्मिक स्थिति में गया। लेकिन आत्मिक स्थिति में जब रहते हैं देवताएं क्या उनको इन्द्रियां नहीं होतीं? हँ? मन तो समझ लिया, होता तो है, लेकिन एकाग्र होता है। कहां एकाग्र होता है? हँ? हाँ। शरीर में मुख्य दो चीज़ें, दो इन्द्रियां कौनसी हैं? आँखें। दाईं आँख, बाईं आँख। तो उनके बीच में वो एकाग्र; हिलता नहीं है। तो उसको कंट्रोल करने वाला कौन? बुद्धि हुई ना? हाँ।
तो ये बुद्धि जो है वो ही काम करती है विष्णुलोक में। क्या? विष्णुलोक को कंट्रोल करने वाली कौन? बुद्धि को तीसरा नेत्र कहा जाता है। कहते हैं ना? हाँ। तो वो तीसरा नेत्र उसे कंट्रोल करता है विष्णु देव को जो विष्णु देवता चित्रों में बनाया जाता है चार भुजाओं वाला। हँ? चतुर्भुजी जो विष्णु बनाया जाता है वो चार भुजाएं जो देखने में आती हैं, चित्रकारों को बनाना होता है। लेकिन क्या वो चित्रकार जानते हैं कि उन चार भुजाओं को, चार भुजा वाले विष्णु को चलाने वाला कौन? हँ? जानते होते तो कुछ बताते। वास्तव में भुजाएं तो सहयोगी हैं, मददगार हैं ना? हाँ। तो उनको चलाने वाला कौन? वो ही जो ज्ञानेन्द्रियों के बीच में बैठा हुआ मन। और मन को भी चलाने वाली बुद्धि, तीसरा नेत्र जिसे कहते हैं, त्रिनेत्री। तो वो त्रिनेत्री जो है कौन हुआ? हँ? वैकुण्ठ को, वैकुण्ठ में विष्णु को भी चलाने वाला, विष्णु की चार भुजाओं को भी चलाने वाला और विष्णुलोक, सारे विष्णु लोक को कंट्रोल करने वाला वो कौन हुआ? जिसे कहते हैं त्रिनेत्री। कौन त्रिनेत्री? कहते हैं महादेव। तो वो महादेव जो है वो विष्णुलोक में होता है? हँ? होता नहीं? हँ? तो कंट्रोल कैसे करेगा? हँ? अरे, बुद्धि को, हँ, कोई देखने की चीज़ है मन-बुद्धि? नहीं, ये तो अव्यक्त है। तो वो तो कहीं भी है। कहीं भी माने इस सृष्टि में भी है और इस सृष्टि में वो त्रिनेत्री जो है वो आत्मलोक को भी इसी सृष्टि पर उतार लेता है। नहीं उतारता? हां।
तो बताया कि वो सर्वोपरि है इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर। और आत्मलोक में? आत्मलोक में सर्वोपरि है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) है? अच्छा? आत्मलोक में सर्वोपरि है? सबसे ऊपर? आत्मलोक में आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा सर्वोपरि नहीं है बुद्धिमानों की बुद्धि? वो नहीं सर्वोपरि? अरे? कोई जवाब नहीं? अरे, बुद्धिमानों की बुद्धि जो कहा जाता है इस सृष्टि पर बुद्धिमान जो आत्माएं हैं मनुष्यात्माएं, ऋषि-मुनियों की आत्माएं या देवात्माएं या देवताओं में भी जो सबसे बड़ा देवता महादेव कहा जाता है, हँ, त्रिनेत्री कहा जाता है। तीसरा नेत्र दिखाते हैं ना? तो उससे बड़ा कोई नहीं है क्या? कोई नहीं? महादेव से बड़ा कोई नहीं? देवता ही सबसे बड़ा होता है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, उस देवता को भी देवता बनाने वाला कौन? हँ? बनाने वाला या बनाने का रास्ता बताने वाला? हाँ, रास्ता बताता है। तो वो है सुप्रीम सोल, हैविनली गॉड फादर जिसे कहा जाता है। हैविन बनाने का रास्ता बताता है।
A morning class dated 30.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the eighth, sixth line of the fifth page on Thursday was about going into trance. Daughters used to go into trance, they used to dance. They did not used to be made to wear decorations. They were made to wear these decorations later on. Hm? With which place should you tally? Hm? When the thought-born world was created, then the visions that the devotees used to have, when they used to have visions, then did they used to wear those decorations etc.? Nothing. They used to dance. There was no decoration. The decorations from the world over that Vishnu has been made to wear, hm, this is about a latter time. Hm? What is meant by making him to wear decorations (saaj-vaaj)? To decorate. So, one is physical decoration. And the other is subtle decoration. What is subtle decoration? What is the subtlest thing? Hm? (Someone said something.) Soul? Achcha? What is such thing in the soul which becomes subtle? Hm? (Someone said something.) Is mind and intellect subtle? Achcha? So, the soul, when it lives in the Soul World, does it have mind and intellect there? So, then? If it exists, then it will be said that yes, it is subtle. Does the soul have mind and intellect there? It doesn’t exist. It means that when you come to this world, then this mind is also physical and when compared to the soul; and the intellect is also physical.
It was told – These devotees used to experience the decorations. It did not used to exist. Later they were made to wear the decorations of divine virtues. Now a habit has developed. It has become too much. Then what happened? They [the sisters/mother] started going into trance daily. They started having visions. Then they used to come every day – Baba, send us to Vaikunth. Hm? When the people of the world used to trouble, then the intellect used to run from here to Baba. Baba, send us to Vaikunth. We will enjoy there. So, they used to come decorated. Hm? They used to wear crown, etc and come. Where? They used to wear crown, etc in visions, didn’t they? Yes. So, they played a lot of games. Look, they had a lot of saaj. Hm? What is meant by saaj? Did they have tablaa (a kind of drum), harmonium, this majeera (a musical instrument), etc? Hm? You children know, don’t you that there were so many daughters, who used come to Baba from there, hm, after teaching, after coming, after getting decorated, some used to become Radha, some used to become Krishna, some with Murli (flute), etc. Hm? They did not used to hold Murli, etc. No. They used to get ready and come to Baba, [and used to say] Baba, we are ready. Send us. Arey, nothing. Achcha, go daughters. That is it. While doing like this, their eyes used to close. Then, when they used to go to Vaikunth (heaven), then their eyes used to open. Did the old eyes used to open? Will there be new eyes in heaven or the old ones? There is new birth in heaven. Whoever goes first of all to heaven, will they have a new birth or an old one? It will be a new birth. So, the organs also? The organs also new. So, then what is the meaning of the eyes getting closed? First the eyes used to close and then have visions. And what happens when a person dies? The eyes? Do the eyes work? No. It is as if they closed.
So, these physical organs; the driver of these organs is the mind and the driver of this mind is the intellect; will all these old things exist there? Hm? What should we say? They will not exist. They used to close. It means that in this physical world, in this world of the five elements with which this body is formed, be it the organs, be it the subtle organs, arey, be it the organs of action, all that will end. All that belongs to this place will [end] here itself. And what goes there? First the soul goes, doesn’t it? So, people say that he died. What is meant by ‘he died’? The soul went into sushupti (deep sleep) forever. When it went from this world, it departed. Does it come back to this world? It doesn’t come. So, it is as if the eyes close. Then, when you used to go to Vaikunth; what? To Vaikunth or to Swarg (heaven)? Where did you used to go? When you used to come from the Supreme Abode, then where do you go first? Hm? Do you come first to Vaikunth or do you come first to Swarg? Heaven perfect in 16 celestial degrees? Hm? (Someone said something.) Do you come first to heaven? Does Vaikunth come later on? Hm? What is called Vaikunth? Hm? The abode of Vishnu is called Vaikunth. Is there the pleasure of organs in the abode of Vishnu? There is no pleasure of the organs. Which pleasure exists? Hm? The pleasure of the mind and intellect exists. Hm? Not even mind, the pleasure of intellect. Hm? Buddh, Prabuddh.
So, look, when you used to go to Vaikunth, then those eyes used to open. Which eyes? There are physical eyes, aren’t they there? Yes. When do the physical eyes open, when do they close? Is there a head of these eyes, these organs, who issues order to them? Who? Write; Write one alphabet. (Someone said something.) Yes, mind. So, it was told – Is the mind highest of all? Hm? Is it the mind which issues order to everyone? Hm? Then who? If the mind does not issue order to the organs, then is the mind free? Isn’t there anyone above the mind? Hm? (Someone said something.) Yes, the mind also does not work in heaven. What? Is it inconstant? There is no inconstancy there in the mind. How is it? Focussed. Focussed where? I am a soul, a point of light in the middle of the bhrikuti. To see oneself also as a soul and to see others also as a soul. Hm? That is called Swarg (heaven). Swa means soul. Golden Age means went. Where did it go? It went into soul conscious stage. But when the deities remain in the soul conscious stage, don’t they have organs? Hm? You understood the mind, it does exist, but it is focused. Where is it focused? Hm? Yes. Which are the two main things, two organs in the body? The eyes. Right eye, left eye. So, it is focused in between them; it does not shake. So, who controls it? It is the intellect, isn’t it? Yes.
So, this intellect itself works in the abode of Vishnu. What? Who controls the abode of Vishnu? The intellect is called the third eye. It is called, isn’t it? Yes. So, that third eye controls the deity Vishnu, who is made as the four-armed one in the pictures. Hm? The four-armed Vishnu who is made, those four arms which are visible, the artists have to make it. But do those artists know as to who controls those four arms, the four-armed Vishnu? Hm? Had they known, they would have told something. Actually the arms are helpers, aren’t they? Yes. So, who controls them? The same mind which sits in the midst of the sense organs. And the controller of even the mind is the intellect, which is called the third eye, the three-eyed (trinetri). So, who is that Trinetri? Hm? Who is the one who controls the Vaikunth, Vishnu in Vaikunth, the four arms of Vishnu and who controls the abode of Vishnu, the entire abode of Vishnu? The one who is called Trinetri (the three-eyed one). Who is Trinetri? It is said – Mahadev. So, does that Mahadev exist in the abode of Vishnu? Hm? Doesn’t he exist? Hm? So, how will he control? Hm? Arey, is intellect, is the mind and intellect something to be seen? No, it is unmanifest (Avyakt). So, he is anywhere. ‘Anywhere’ means that he is in this world also and in this world that Trinetri brings down even that Soul World to this world. Doesn’t he bring it? Yes.
So, it was told that he is highest of all on this world stage. And in the Soul World? Is he highest in the Soul World? Hm? (Someone said something.) Is he? Achcha? Is he highest in the Soul World? Topmost? Isn’t the Father of souls, the Supreme Father Supreme Soul, the highest among all intellectuals highest of all in the Soul World? Is He not highest of all? Arey? Is there no reply? Arey, the one who is called the highest of all intellectuals among the intelligent souls, human souls, souls of sages and saints or the deity souls in this world; the one who is called the biggest deity, Mahadev among the deities, Trinetri. He is shown to have the third eye, isn’t he? So, isn’t anyone higher than him? Is there none? Isn’t there anyone bigger than him? Is the deity alone the biggest one? (Someone said something.) Yes, who is the one who makes that deity also a deity? Hm? Does He make or does He show the path to make? Yes, He shows the path. So, He is the Supreme Soul, who is called the Heavenly God Father. He shows the path to establish heaven.
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2939, दिनांक 12.07.2019
VCD 2939, dated 12.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning class dated 30.11.1967
VCD-2939-extracts-Bilingual
समय- 00.01-16.53
Time- 00.01-16.53
प्रातः क्लास चल रहा था – 30.11.1967. गुरुवा.र को पांचवें पेज की आठवीं, छठी लाइन में बात चल रही थी ध्यान में जाने की। बच्चियां ध्यान में जाती थी, डांस करती थी। कोई साज-वाज भी नहीं पहनाते थे। ये साज-वाज उनको पीछे पहनाया। हँ? कहाँ से टैली करना है? हँ? जब मानसी सृष्टि रची गई तो जो साक्षात्कार होते थे भक्तों को, साक्षात्कार में जब जाते थे तो वहां कोई वो साज-वाज पहनते थे क्या? कुछ भी नहीं। डांस करते थे। साज-वाज तो कुछ भी नहीं था। ये जो विष्णु को दुनियाभर का साज-वाज पहनाया हुआ है, हँ, तो ये तो पीछे की बात है। हँ? साज-वाज पहनाना माने? श्रृंगार करना। तो एक होता है स्थूल श्रृंगार। और दूसरा होता है सूक्षम श्रृंगार। सूक्षम श्रृंगार क्या होता है? सूक्ष्म ते सूक्ष्म चीज़ क्या है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) आत्मा? अच्छा? आत्मा में ऐसी क्या बात है जो सूक्षम हो जाती है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) मन-बुद्धि सूक्षम होती है? अच्छा? तो आत्मा, जब आत्मलोक में रहती है, तो वहां मन-बुद्धि होती है? तो फिर? अगर होती है तो कहेंगे हाँ, सूक्षम होती है। वहां तो मन-बुद्धि आत्मा में होती है? नहीं होती। इसका मतलब कि इस दुनिया में आते हैं तो ये मन भी स्थूल है, और, आत्मा के मुकाबले। और बुद्धि भी स्थूल है।
बताया – ये भक्तों को साज-वाज अनुभव होता था। होता तो नहीं था। पीछे उनको पहनाया दिव्य गुणों का साज। अब तो हेर पड़ गई है। टू-मच हो गई। फिर क्या हुआ? रोज ध्यान में जाने लगी। साक्षात्कार करने लगी। तब रोज आती थी - बाबा हमको वैकुण्ठ में भेजो। हँ? दुनियावाले तंग करते थे तो यहां से बुद्धि बाबा के पास भागे। बाबा हमें वैकुण्ठ में भेज दो। मजा आएगा वहां। तो श्रृंगार करके आती थी। हँ? ताज-वाज पहनकरके आती थी। कहां? साक्षात्कार में ताज-वाज पहनती थी ना? हाँ। तो इनके बहुत ही ये खेल-पाल हुए। देखो साज थे इनके पास बहुत। हँ? साज माने? तबला, हारमोनियम, ये मजीरा, वगैरा कुछ थे? हँ? तुम बच्चे जानते हो ना कितनी बच्चियां होती थी, जो बच्चियां आकरके बाबा के पास वहां से, हँ, पढ़ाकरके, आकरके, श्रृंगार करकरके कोई राधे बन जाती, कोई कृष्ण बन जाती, कोई मुरली-वुरली। हँ? वो मुरली-वुरली नहीं उठाती थी। नहीं। वो आकरके तैयार होकरके फिर बाबा के पास, बाबा, अब हम तैयार हो गए। हमको भेजो। अरे, कुछ भी नहीं। अच्छा, जाओ बच्चियों। बस। ऐसे-ऐसे करते-3 उनकी आँखें बंद हो जाती थीं। फिर जब वैकुण्ठ में जाते थे फिर आंखें खुल जाती थी। वो ही पुरानी आँखें खुल जाती थीं? वैकुण्ठ में नई आँखें होंगी कि पुरानी होंगी? वैकुण्ठ में तो नया जन्म। पहले-पहले जाएंगे जो भी वैकुण्ठ में तो नया जन्म होगा कि पुराना? नया जन्म होगा। तो इन्द्रियां भी? इन्द्रियां भी नई। तो फिर आँखें बंद होने का क्या मतलब हुआ? पहले आँखें बंद होतीं, फिर जाके साक्षात्कार करो। और मर जाता आदमी तो क्या होता है? आँखें? आंखें काम करती है? नहीं। जैसे बंद हो गईं।
तो ये जो स्थूल इन्द्रियां हैं, इन इन्द्रियों को चलाने वाला मन है और ये मन को चलाने वाली बुद्धि है, हँ, ये सब पुरानी चीज़ें वहां होंगी? हँ? क्या कहें? नहीं होंगी। बंद हो जाती थीं। माना इस स्थूल दुनिया से जैसे पांच तत्वों की दुनिया से जिनसे ये शरीर बनता है, इन्द्रियां हैं, चाहे सूक्षम इन्द्रियां हैं, अरे, चाहे कर्मेन्द्रियां हैं, वो सब खलास। यहां का यहीं। और वहां क्या जाती है? पहले तो आत्मा जाती है ना? तो कहते हैं मर गया। मर गया का मतलब क्या हुआ? सुषुप्ति में आत्मा गई सदाकाल के लिए। इस दुनिया से गई तो गई। फिर इस दुनिया में वापस आती? नहीं आती। तो जैसे आँखें बंद हो जाती थीं। फिर जब वैकुण्ठ में जाते थे; क्या? वैकुण्ठ में कि स्वर्ग में? कहां जाते थे? परमधाम से आते तो पहले कहां जाते? हँ? पहले वैकुण्ठ में आते कि पहले स्वर्ग में आ जाते? 16 कला संपूर्ण स्वर्ग? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) पहले स्वर्ग में आते? बाद में वैकुण्ठ आता? हँ? वैकुण्ठ किसे कहा जाता? हँ? वैकुण्ठ कहा जाता है विष्णुपुरी को। विष्णुपुरी में इन्द्रियों का सुख होता है? इन्द्रियों का सुख नहीं होता। कौनसा सुख होता है? हँ? मन-बुद्धि का सुख होता है। हँ? मन भी नहीं, बुद्धि का सुख। हँ? बुद्ध, प्रबुद्ध।
तो देखो, जब वैकुण्ठ में जाते थे फिर वो आँख खुल जाती थी। कौनसी आँखें? स्थूल आँखें होती हैं ना? हाँ। स्थूल आँखें कब खुलती हैं, कब बंद होती हैं? इन आँखों का, इन इन्द्रियों का कोई मुखिया है, हँ, जो इनको पहले आर्डर देता है? कौन? लिखो, एक अक्षर लिखो। (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, मन। तो बताया; क्या मन सर्वोपरि हो गया? हँ? सबको आर्डर करने वाला मन ही हो गया क्या? हँ? फिर कौन? इन्द्रियों को मन आर्डर नहीं देता तो मन स्वच्छंद है? मन के ऊपर कोई नहीं क्या? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, मन भी स्वर्ग में काम नहीं करता। क्या? चंचल होता है? वहां चंचलता नहीं होती मन में। क्या होता है? एकाग्र। कहां एकाग्र? मैं आत्मा ज्योतिबिन्दु भृकुटि के मध्य में। अपन को भी आत्मा देखना, दूसरों को भी आत्मा देखना। हँ? उसको कहते हैं स्वर्ग। स्व माने आत्मा। ग माने गया। कहां गया? आत्मिक स्थिति में गया। लेकिन आत्मिक स्थिति में जब रहते हैं देवताएं क्या उनको इन्द्रियां नहीं होतीं? हँ? मन तो समझ लिया, होता तो है, लेकिन एकाग्र होता है। कहां एकाग्र होता है? हँ? हाँ। शरीर में मुख्य दो चीज़ें, दो इन्द्रियां कौनसी हैं? आँखें। दाईं आँख, बाईं आँख। तो उनके बीच में वो एकाग्र; हिलता नहीं है। तो उसको कंट्रोल करने वाला कौन? बुद्धि हुई ना? हाँ।
तो ये बुद्धि जो है वो ही काम करती है विष्णुलोक में। क्या? विष्णुलोक को कंट्रोल करने वाली कौन? बुद्धि को तीसरा नेत्र कहा जाता है। कहते हैं ना? हाँ। तो वो तीसरा नेत्र उसे कंट्रोल करता है विष्णु देव को जो विष्णु देवता चित्रों में बनाया जाता है चार भुजाओं वाला। हँ? चतुर्भुजी जो विष्णु बनाया जाता है वो चार भुजाएं जो देखने में आती हैं, चित्रकारों को बनाना होता है। लेकिन क्या वो चित्रकार जानते हैं कि उन चार भुजाओं को, चार भुजा वाले विष्णु को चलाने वाला कौन? हँ? जानते होते तो कुछ बताते। वास्तव में भुजाएं तो सहयोगी हैं, मददगार हैं ना? हाँ। तो उनको चलाने वाला कौन? वो ही जो ज्ञानेन्द्रियों के बीच में बैठा हुआ मन। और मन को भी चलाने वाली बुद्धि, तीसरा नेत्र जिसे कहते हैं, त्रिनेत्री। तो वो त्रिनेत्री जो है कौन हुआ? हँ? वैकुण्ठ को, वैकुण्ठ में विष्णु को भी चलाने वाला, विष्णु की चार भुजाओं को भी चलाने वाला और विष्णुलोक, सारे विष्णु लोक को कंट्रोल करने वाला वो कौन हुआ? जिसे कहते हैं त्रिनेत्री। कौन त्रिनेत्री? कहते हैं महादेव। तो वो महादेव जो है वो विष्णुलोक में होता है? हँ? होता नहीं? हँ? तो कंट्रोल कैसे करेगा? हँ? अरे, बुद्धि को, हँ, कोई देखने की चीज़ है मन-बुद्धि? नहीं, ये तो अव्यक्त है। तो वो तो कहीं भी है। कहीं भी माने इस सृष्टि में भी है और इस सृष्टि में वो त्रिनेत्री जो है वो आत्मलोक को भी इसी सृष्टि पर उतार लेता है। नहीं उतारता? हां।
तो बताया कि वो सर्वोपरि है इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर। और आत्मलोक में? आत्मलोक में सर्वोपरि है? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) है? अच्छा? आत्मलोक में सर्वोपरि है? सबसे ऊपर? आत्मलोक में आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा सर्वोपरि नहीं है बुद्धिमानों की बुद्धि? वो नहीं सर्वोपरि? अरे? कोई जवाब नहीं? अरे, बुद्धिमानों की बुद्धि जो कहा जाता है इस सृष्टि पर बुद्धिमान जो आत्माएं हैं मनुष्यात्माएं, ऋषि-मुनियों की आत्माएं या देवात्माएं या देवताओं में भी जो सबसे बड़ा देवता महादेव कहा जाता है, हँ, त्रिनेत्री कहा जाता है। तीसरा नेत्र दिखाते हैं ना? तो उससे बड़ा कोई नहीं है क्या? कोई नहीं? महादेव से बड़ा कोई नहीं? देवता ही सबसे बड़ा होता है? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, उस देवता को भी देवता बनाने वाला कौन? हँ? बनाने वाला या बनाने का रास्ता बताने वाला? हाँ, रास्ता बताता है। तो वो है सुप्रीम सोल, हैविनली गॉड फादर जिसे कहा जाता है। हैविन बनाने का रास्ता बताता है।
A morning class dated 30.11.1967 was being narrated. The topic being discussed in the eighth, sixth line of the fifth page on Thursday was about going into trance. Daughters used to go into trance, they used to dance. They did not used to be made to wear decorations. They were made to wear these decorations later on. Hm? With which place should you tally? Hm? When the thought-born world was created, then the visions that the devotees used to have, when they used to have visions, then did they used to wear those decorations etc.? Nothing. They used to dance. There was no decoration. The decorations from the world over that Vishnu has been made to wear, hm, this is about a latter time. Hm? What is meant by making him to wear decorations (saaj-vaaj)? To decorate. So, one is physical decoration. And the other is subtle decoration. What is subtle decoration? What is the subtlest thing? Hm? (Someone said something.) Soul? Achcha? What is such thing in the soul which becomes subtle? Hm? (Someone said something.) Is mind and intellect subtle? Achcha? So, the soul, when it lives in the Soul World, does it have mind and intellect there? So, then? If it exists, then it will be said that yes, it is subtle. Does the soul have mind and intellect there? It doesn’t exist. It means that when you come to this world, then this mind is also physical and when compared to the soul; and the intellect is also physical.
It was told – These devotees used to experience the decorations. It did not used to exist. Later they were made to wear the decorations of divine virtues. Now a habit has developed. It has become too much. Then what happened? They [the sisters/mother] started going into trance daily. They started having visions. Then they used to come every day – Baba, send us to Vaikunth. Hm? When the people of the world used to trouble, then the intellect used to run from here to Baba. Baba, send us to Vaikunth. We will enjoy there. So, they used to come decorated. Hm? They used to wear crown, etc and come. Where? They used to wear crown, etc in visions, didn’t they? Yes. So, they played a lot of games. Look, they had a lot of saaj. Hm? What is meant by saaj? Did they have tablaa (a kind of drum), harmonium, this majeera (a musical instrument), etc? Hm? You children know, don’t you that there were so many daughters, who used come to Baba from there, hm, after teaching, after coming, after getting decorated, some used to become Radha, some used to become Krishna, some with Murli (flute), etc. Hm? They did not used to hold Murli, etc. No. They used to get ready and come to Baba, [and used to say] Baba, we are ready. Send us. Arey, nothing. Achcha, go daughters. That is it. While doing like this, their eyes used to close. Then, when they used to go to Vaikunth (heaven), then their eyes used to open. Did the old eyes used to open? Will there be new eyes in heaven or the old ones? There is new birth in heaven. Whoever goes first of all to heaven, will they have a new birth or an old one? It will be a new birth. So, the organs also? The organs also new. So, then what is the meaning of the eyes getting closed? First the eyes used to close and then have visions. And what happens when a person dies? The eyes? Do the eyes work? No. It is as if they closed.
So, these physical organs; the driver of these organs is the mind and the driver of this mind is the intellect; will all these old things exist there? Hm? What should we say? They will not exist. They used to close. It means that in this physical world, in this world of the five elements with which this body is formed, be it the organs, be it the subtle organs, arey, be it the organs of action, all that will end. All that belongs to this place will [end] here itself. And what goes there? First the soul goes, doesn’t it? So, people say that he died. What is meant by ‘he died’? The soul went into sushupti (deep sleep) forever. When it went from this world, it departed. Does it come back to this world? It doesn’t come. So, it is as if the eyes close. Then, when you used to go to Vaikunth; what? To Vaikunth or to Swarg (heaven)? Where did you used to go? When you used to come from the Supreme Abode, then where do you go first? Hm? Do you come first to Vaikunth or do you come first to Swarg? Heaven perfect in 16 celestial degrees? Hm? (Someone said something.) Do you come first to heaven? Does Vaikunth come later on? Hm? What is called Vaikunth? Hm? The abode of Vishnu is called Vaikunth. Is there the pleasure of organs in the abode of Vishnu? There is no pleasure of the organs. Which pleasure exists? Hm? The pleasure of the mind and intellect exists. Hm? Not even mind, the pleasure of intellect. Hm? Buddh, Prabuddh.
So, look, when you used to go to Vaikunth, then those eyes used to open. Which eyes? There are physical eyes, aren’t they there? Yes. When do the physical eyes open, when do they close? Is there a head of these eyes, these organs, who issues order to them? Who? Write; Write one alphabet. (Someone said something.) Yes, mind. So, it was told – Is the mind highest of all? Hm? Is it the mind which issues order to everyone? Hm? Then who? If the mind does not issue order to the organs, then is the mind free? Isn’t there anyone above the mind? Hm? (Someone said something.) Yes, the mind also does not work in heaven. What? Is it inconstant? There is no inconstancy there in the mind. How is it? Focussed. Focussed where? I am a soul, a point of light in the middle of the bhrikuti. To see oneself also as a soul and to see others also as a soul. Hm? That is called Swarg (heaven). Swa means soul. Golden Age means went. Where did it go? It went into soul conscious stage. But when the deities remain in the soul conscious stage, don’t they have organs? Hm? You understood the mind, it does exist, but it is focused. Where is it focused? Hm? Yes. Which are the two main things, two organs in the body? The eyes. Right eye, left eye. So, it is focused in between them; it does not shake. So, who controls it? It is the intellect, isn’t it? Yes.
So, this intellect itself works in the abode of Vishnu. What? Who controls the abode of Vishnu? The intellect is called the third eye. It is called, isn’t it? Yes. So, that third eye controls the deity Vishnu, who is made as the four-armed one in the pictures. Hm? The four-armed Vishnu who is made, those four arms which are visible, the artists have to make it. But do those artists know as to who controls those four arms, the four-armed Vishnu? Hm? Had they known, they would have told something. Actually the arms are helpers, aren’t they? Yes. So, who controls them? The same mind which sits in the midst of the sense organs. And the controller of even the mind is the intellect, which is called the third eye, the three-eyed (trinetri). So, who is that Trinetri? Hm? Who is the one who controls the Vaikunth, Vishnu in Vaikunth, the four arms of Vishnu and who controls the abode of Vishnu, the entire abode of Vishnu? The one who is called Trinetri (the three-eyed one). Who is Trinetri? It is said – Mahadev. So, does that Mahadev exist in the abode of Vishnu? Hm? Doesn’t he exist? Hm? So, how will he control? Hm? Arey, is intellect, is the mind and intellect something to be seen? No, it is unmanifest (Avyakt). So, he is anywhere. ‘Anywhere’ means that he is in this world also and in this world that Trinetri brings down even that Soul World to this world. Doesn’t he bring it? Yes.
So, it was told that he is highest of all on this world stage. And in the Soul World? Is he highest in the Soul World? Hm? (Someone said something.) Is he? Achcha? Is he highest in the Soul World? Topmost? Isn’t the Father of souls, the Supreme Father Supreme Soul, the highest among all intellectuals highest of all in the Soul World? Is He not highest of all? Arey? Is there no reply? Arey, the one who is called the highest of all intellectuals among the intelligent souls, human souls, souls of sages and saints or the deity souls in this world; the one who is called the biggest deity, Mahadev among the deities, Trinetri. He is shown to have the third eye, isn’t he? So, isn’t anyone higher than him? Is there none? Isn’t there anyone bigger than him? Is the deity alone the biggest one? (Someone said something.) Yes, who is the one who makes that deity also a deity? Hm? Does He make or does He show the path to make? Yes, He shows the path. So, He is the Supreme Soul, who is called the Heavenly God Father. He shows the path to establish heaven.
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Re: Extracts of PBK Murlis - as narrated to the PBKs
शिवबाबा की मुरली
ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2940, दिनांक 13.07.2019
VCD 2940, dated 13.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning class dated 30.11.1967
VCD-2940-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-20.50
Time- 00.01-20.50/b]
प्रातः क्लास चल रहा था – 30.11.1967. गुरुवार को पांचवें पेज के आदि में, मध्यादि में बात चल रही थी साक्षात्कार की। बच्चियां साक्षात्कार में जाती थी तो बस आँखें बंद हो जाती थी। बेहद में क्या अर्थ हुआ? परमधाम जाएगी आत्मा तो ये इन्द्रियां जाएंगी क्या? सूक्षम इन्द्रियां भी जाएंगी? या स्थूल जाएंगी? नहीं। कोई नहीं जाएंगी। आँखें बंद। आँखों का काम खत्म। तो आँखें बंद हो जाती थी। फिर वहां जब वैकुण्ठ में जाते थे, हँ, वहां डांस वगैरा करते थे तो क्या अंधे होके करते थे? हँ? आँखें खुल जाती थी। यहां से साक्षात्कार में गए, बंद आँखों से गए और वहां आँखें खुल जाती थी। तो यहां की आँखों में और वहां की आँखों में क्या अंतर हुआ? कुछ अंतर हुआ? यहां की इन्द्रियां तमोप्रधान और नई दुनिया में इन्द्रियां भी सतोप्रधान; आत्मा भी? आत्मा तो यहां से ही सतोप्रधान बनके जाती है। सतोप्रधान कि सत बनके जाती है? नहीं। आत्माएं जो हैं वो नंबरवार जाती हैं ना ब्रह्मलोक में। तो जो नंबरवार जाती हैं तो जैसे गर्भ में कभी-कभी दो बच्चे पैदा होते हैं ना? हाँ। तो वो आत्मा एक साथ प्रवेश करती होंगी या आगे-पीछे? आगे-पीछे प्रवेश करती हैं। ऐसे ही है। ये 500-700 करोड़ आत्माएं जो हैं परमधाम तो सब इकट्ठी ही जाएंगी। लेकिन फिर भी क्या नंबर नहीं बनेंगे? एक के पीछे एक नहीं जाएंगी? हाँ, जाएंगी।
तो फिर जाती थी। इधर से जाती थी तो आँखें यहां की यहां रही। और वहां की आँखें? सात्विक आँखें। जैसे; जैसे वो समय का चक्र है ना? तो समय की जो सुई है; जैसे रिकार्ड बजता है तो रिकार्ड में सुई जब शुरुआत में बजती है ना, तो शुरू से लेकरके अंत तक समय के अनुसार ही पार्ट क्लीयर होता है ना? कि अंतर तो पड़ेगा ना? हाँ, अंतर पड़ेगा। तो वहां सात्विक आँखें। फिर जब इस सृष्टि पर आते थे, साक्षात्कार वाले, तो आँखें खुल जाती थीं। माना यहां की आँखें और वहां की आँखें, क्या अंतर हुआ? जो आँखें होंगी वैकुण्ठ में; इन्द्रियों का सुख तो वहां होता नहीं; तो फिर? कौनसी आँख से? बुद्धि की आँख काम करती वहां या ये आँखें काम करती? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, बुद्धि का सुख मिलता है। तो बुद्धि से जो सुख भोगते हैं वो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ सुख। बाकि तो फिर इन्द्रियों का जो है वो नीचापन है। उनमें भी नंबरवार इन्द्रियां हैं। तो देखो वहां भी आँखें बंद करके थोड़ेही डांस करते? वो भी तो अच्छा नहीं है ना? तो ये कायदा ही है कि पहले आँखें यहां से जाते समय आहिस्ते-आहिस्ते बंद हो जावेंगी। फिर वैकुण्ठ में पहुंच गई फिर आँखें खुलेंगी। कौनसी आँखें खुलेंगी? बुद्धि की। हाँ। बस। पीछे डांस शुरु कर दिया। अब जितना डांस किया उतना किया। देखा। जास्ती नहीं किया। जैसे बच्चे जास्ती खेल करते हैं तो फिर उनको खेल से बुलाया जाता है ना? नहीं आते हैं तो गुस्से से बुलाया जाता है। नहीं? हाँ। अरे, तुमने बहुत खेल कर लिया। अभी आ जाओ। अरे, आओ तो। बस। गोद में लिया, आँखों पर हाथ रख दिया, बस, झटपट खुल गया। हाँ। किसने हाथ रख दिया? किसने हाथ रख दिया? अधोमुखी ब्रह्मा ने या ऊर्ध्वमुखी ब्रह्मा ने? हाँ। बस, आँखें खुल गईं।
तो इसको जादू कहेंगे ना? सब कोई कहेंगे जादू। पर जादू भी तो है ना बरोबर? और जादू भी एक हद का और एक? और एक बेहद का। हाँ। तो देखो जादू तो कहेंगे। और ये तो बेहद का फर्स्टक्लास जादू है। है ना? कोई मनुष्य को वो मीरा ने तो तपस्या की। और बहुत साधु-संतों का संग किया। अब यहां साधु-संत कहां हैं? हं? यहां तो किसको साधु तो कहना तो, हम तो कहते ये तो भक्तिमार्ग के टट्टू हैं। हँ? टट्टू? टट्टू किसे कहते हैं? वो गधे होते हैं ना? घोड़े जैसे दिखाई पड़ते हैं। जैसे सफेद घोड़ा होता है। तो गधा भी सफेद ही तो होता है। अंतर क्या है? वो वजन ढ़ोने के काम आता है। हाँ। तो ये भक्तिमार्ग के टट्टू हैं। कौन? समझा ना? कौन है भक्तिमार्ग के? ये साधु, संत, महात्माएं, हँ, ये जो भी अधोमुखी दुनिया के हैं ये सब भक्तिमार्ग के टट्टू हैं। अव्वल नंबर कौन है? अव्वल नंबर आत्मा कौन है? हँ? उन टट्टुओं में अव्वल नंबर आत्मा कौन? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, वो सबसे जास्ती वजन ढ़ोने वाला है। कितने बच्चे पैदा करता है? हँ? 500-700 करोड़ बच्चे। ब्रह्मा द्वारा ही सृष्टि रची। हँ? हाँ।
तो जो भक्तिमार्ग के टट्टू हैं; समझा ना? वो शूटिंग कहां होती है? शूटिंग तो यहां पुरुषोत्तम संगमयुग में होती है ना? तो कोई तो निमित्त बनते हैं? बनते हैं। साधु कहना; बाबा को कभी भी कोई महात्मा; अरे, महात्मा से मिलना चाहते हो? कोई आते हैं नए तो कहते हैं हमें महात्मा से मिलाओ। तो बाबा कहते – अरे, महात्मा से मिलना चाहते हो? बोलो, यहां कोई महात्मा होता नहीं है। कहां? हँ? यहां। यहां माने कहां? अरे, पुरुषोत्तम संगमयुग नाम दिया है। भले पुरुषोत्तम नाम है लेकिन संगम भी तो नाम है। संगम माने? उत्तम ही उत्तम या नीच भी? हँ? दोनों का संगम है ना? हाँ, तो यहां तो अभी; पुरुषोत्तम तो बाद में बनेंगे ना? पुरुषार्थ पूरा होगा तो पुरुषोत्तम बनेंगे। तो यहां तो अभी कोई आत्मा नहीं है ना?
अरे, पूछेंगे; अरे, आपका गुरु तो कोई होगा ना? यहां बोलो यहां तो कोई किसी का गुरु होता ही नहीं। क्या? गुरु-3, भक्तिमार्ग में करते हैं। यहां कोई किसी का गुरु नहीं होता। वहां चेला बनाते हैं, हँ, फालोअर बनाते हैं। यहां तो न चेला, न फालोअर, न गुरु, न शिष्य। यहां क्या है? बाप और? बाप और बच्चे। बस। हँ। यहां गुरु नहीं होते हैं। ये कोई गुरु है क्या? हँ? अरे, ये तो बाप है ना? हँ? अरे, बाप! हम आपके बाप से मिल सकते हैं? पूछेगा। तो कौनसा हमारा बाप है, पता है? हँ? अरे, इन सब बच्चों का सबका बाप कौन है? है ना? हाँ, शिव बाबा है सबका बाप। हँ? ऐसा कोई ने सुना हुआ? शिवबाबा तो निराकार है। तुम किससे मिलना चाहते हो? हँ? ऐसे करके भगाय देते हैं। हँ? किसको? ऐसे भगत को भगाय देते हैं। वो घड़ी-घड़ी बैठकरके लेगा। जो शिद्दत करते हैं कि हम कहते हैं तो भगाय देते हैं। क्यों? एक तो वो तो तमन्ना रहती है ना उनको; उनके पास तमन्ना। किस बात की तमन्ना? अरे, कोई आएंगे, हँ, और अच्छा, कोई आकरके अरदास रखेंगे, हँ, फलाना करेंगे। अरे, ये तो पता है, एकदम कहते हैं कि हम तो बेहद के बादशाह हैं ना? बेहद का मालिक को पैसे कौड़ी की तो कोई बात ही नहीं है। कभी ख्याल में भी नहीं आवे। समझे ना? शिवबाबा को कभी भी पैसे की बात कि कभी भी बुद्धि में नहीं आवेगा। क्योंकि वो क्या करेगा पैसा?
अच्छा, अगर फिर आओ इनके ऊपर। अभी। शिवबाबा की बात से किनके ऊपर आओ? हँ? इनके ऊपर आओ। इनके माने किनके? ब्रह्मा बाबा। हँ? ये भी जब देखते हैं मैं तो विश्व का मालिक बनने वाला, पैसा क्या करूंगा? है ना? तो ये भी ऐसे ही है। क्या? समझे बैठा है कि मैं विश्व का मालिक बनूंगा। हँ? अच्छा, जो भी दे देते हैं उनके लिए कुछ न कुछ बनाय देते हैं। हँ? क्या बनाय देते हैं? अरे, ये महल-माड़ियां बनाई थीं ना यहां रहने के लिए। तो बनाय देते हैं। क्योंकि पैसे तो काम के नहीं हैं ना? रख करके क्या करेंगे बच्ची? न शिवबाबा के काम के हैं और न ब्रह्मा बाबा के काम के हैं। अगर काम के हैं तो ये जो पैसे जहां लगाए हैं जमीन में, जायदाद में, मकान बनाने में, ये किसके लिए बनाए हैं? हँ? अरे? शिवबाबा को अपनी चिंता है कि ब्रह्मा बाबा को चिंता है किसके लिए बनाए? और किसके लिए बनाते जाते हैं? हँ? जो आने वाले बच्चे हैं उन्हीं के लिए बनाते हैं। बाप एक, दो, चार, पांच बच्चे के लिए बनाते हैं लौकिक दुनिया में। वो तो हद के बाप हैं। और ये? ये तो बेहद का बाप है ना? और यहां कितने बच्चे आएंगे? हँ? अरे, कितने बच्चे आएंगे? अरे, मन-बुद्धि से तो 500-700 करोड़ आवेंगे। लेकिन प्रैक्टिकल में कितने आवेंगे? साढ़े चार लाख। कहां आवेंगे? बाप के सन्मुख आवेंगे। तो इतने साढ़े चार लाख बच्चों के लिए रहने के लिए ठिकाना नहीं चाहिए? हँ? और बच्चों को तो बताते ही हैं तुम बच्चे जो राजधानी स्थापन करते हो बाबा की श्रीमत पर वो किसके लिए करते हो? जो राजधानी तुम्हारी नई स्थापन होगी वो दुनियावालों के लिए? किसके लिए? अपने लिए करते हो ना? तो अपने लिए करते हो तो अपना पैसा अपना मेहनत लगानी पड़ेगी [कि] नहीं? हाँ, लगानी पड़े।
तो बताना पड़ता है कितने बच्चे के लिए बनाते हो, बताओ? तो ये देखो बच्चे हैं ना? हँ? तो कोई गरीब है, कोई लखपति है। कोई-कोई पैसे देते हैं। बहुत गरीब होगा तो उसको भी तो दिल होगी न कुछ न कुछ यज्ञ सेवा में लगाए। तो वो दो पैसा देता है। तो दो पैसे, ये दो पैसे भी आते हैं ना बच्चे? बाबा हमारी ईँट लगाय देना। बाबा के जमाने में ईंटें सस्ती थी कि, हँ, ये नोट लगते थे ढ़ेर के ढ़ेर एक ईंट में? नहीं। हाँ। हमारी ईंट लगाय देना। ईंट भी, ईंट भी देखो दो आना खा जाती है ना? तो बच्चों का पैसा इकट्ठा होता है। कोई आठ आना भेज देते हैं, हँ, तो उनकी वो आठ आना में चार ईंटें उनमें लगेंगी ना? हाँ। अच्छा, कोई तो हज़ार रूपया दे देते हैं। हां, तो है तो दोनों के लिए एक ना बच्चे? हँ? देखो, एक क्या है? दोनों के लिए एक क्या है? हँ? जो साहूकार देते हैं बहुत दे देते हैं। और गरीब; (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, कि जो प्राप्ति दोनों को बरोबर है। क्योंकि वो जितना है उसमें से कितना परसेन्टेज देता है? हँ? गरीब जितना है उसमें से जितना परसेन्टेज देता है उसको उतना मिल जाएगा। दिल ही तो देखा जाता है कि पैसा देखा जाता है? हाँ। (क्रमशः)
A morning class dated 30.11.1967 was being narrated. The topic that was being discussed in the beginning, in the beginning of the middle portion of the fifth page on Thursday was of visions (saakshaatkaar). When daughters used to have visions, then that is it; their eyes used to close. What is the meaning in an unlimited sense? When the soul goes to the Supreme Abode, then will these organs go? Will the subtle organs also go? Or will the physical ones go? No. None will go. Eyes close. The task of the eyes ends. So, the eyes used to close. Then, when they used to go there to Vaikunth, when they used to dance, etc there, then did they used to do so with their eyes closed? Hm? The eyes used to open. They went into visions from here, they went with closed eyes and the eyes used to open there. So, what is the difference between the eyes of this place and the eyes of that place? Is there any difference? The organs of this place are tamopradhan (dominantly impure) and the organs also in new world are satopradhan (dominantly pure); the soul also? The soul goes in a satopradhaan form from here itself. Does it become satopradhaan or sat (pure) and go? No. The souls go to the Brahmlok (abode of Brahm) numberwise, don’t they? So, the ones which go numberwise, so, just as sometimes two children are born in the womb, aren’t they? Yes. So, do those souls enter simultaneously or sooner, later [in comparison to each other]? They enter sooner, later. It is like this only. All these 500-700 crore souls will go to the Supreme Abode together. But, will there not be numbers? Will they not go one after the other? Yes, they will go.
So, then they used to go. When they used to go from here, then the eyes of this place remain here. And the eyes of that place? The pure eyes. It is as if it is a time cycle, isn’t it? So, the needle of time, for example, when the record is played, then in the record [gramophone] when the needle plays in the beginning, then, from the beginning to the end, the part becomes clear as per the time only, doesn’t it? Or there will be a difference, will it not be there? Yes, there will be a difference. So, there are pure eyes there. Then, when they used to come to this world, those having visions, then the eyes used to open. It means that what is the difference between the eyes of this place and the eyes of that place? The eyes in Vaikunth; There is no pleasure of the organs there; so, then? Through which eyes? Do the eyes of intellect work there or do these eyes work? (Someone said something.) Yes, the pleasure of intellect is received. So, the pleasure that is enjoyed through the intellect is the most righteous pleasure. As regards that of the organs, it is lowliness. Even among them the organs are numberwise. So, look, even there do you dance with closed eyes? That too is not nice, isn’t it? So, it is the rule that initially, while going from here the eyes will close gradually. Then, once they reached Vaikunth, then the eyes will open. Which eyes will open? Those of the intellect. Yes. That is it. Later they start the dance. Well, they dance to the extent they want. You saw. They did not dance more. For example, when children play more, then they are recalled from play, aren’t they? If they don’t come, then they are called with anger. Is it not? Yes. Arey, you have played enough. Now come. Arey, do come. That is it. They take them into the lap, they place the palm on the eyes and that is it; it opens immediately. Yes. Who placed the palm? Who placed the palm? Did the downward-facing Brahma or did the upward facing Brahma? Yes. That is it; the eyes opened.
So, this will be called magic, will it not be? Everyone will call it a magic. But it is rightly a magic, isn’t it? And in case of magic also one is in a limited sense and another kind? And another kind is in an unlimited sense. Yes. So, look, it will be called a magic. And this is unlimited first class magic. Is it not? A human being, that Meera did tapasya (intense meditation). And she kept the company of many sages and saints. Well, where are sages and saints here? Hm? Here calling someone a sage, we say, these are mules (tattu) of the path of Bhakti. Hm? Tattu? What is called a Tattu? There are those donkeys, aren’t they there? They look like horses. For example, there is a white horse. So, a donkey is also white only. What is the difference? It proves useful in carrying weight. Yes. So, these are mules of the path of Bhakti. Who? You have understood, haven’t you? Who belong to the path of Bhakti? These sages, saints, all these who belong to the downward facing world, all these are mules of the path of Bhakti. Who is number one? Who is the number one soul? Hm? Who is the number one soul among those mules? Hm? (Someone said something.) Yes, he carries the maximum weight. How many children does he give birth to? Hm? 500-700 crore children. The world was created through Brahma only. Hm? Yes.
So, those who are the mules of the path of Bhakti; you have understood, haven’t you? Where does that shooting take place? The shooting takes place here in the elevated Confluence Age (Purushottam Sangamyug), doesn’t it? So, does anyone become instrumental? They become. Calling [someone] a Sadhu (sage), sometimes some people call Baba a Mahatma (saint); arey, do you want to meet the Mahatma? If any new persons come, they say – Allow us to meet the Mahatma. So, Baba says – Arey, do you want to meet the Mahatma? Tell them, there is no Mahatma here. Where? Hm? Here. ‘Here’ refers to which place? Arey, a name ‘Purushottam Sangamyug’ has been coined. Although the name is Purushottam (highest among all the souls), yet there is the name sangam (confluence) also. What is meant by sangam? Are there just highest ones or lowly ones also? Hm? It is a confluence of both, isn’t it? Yes, so, here now, you will become Purushottam later on, will you not? When your purusharth is over, then you will become Purushottam. So, here there is no soul now, is it there?
Arey, they will ask, arey, you must have some guru, don’t you? Here, tell, here nobody is anyone’s guru at all. What? Guru-3 is uttered on the path of Bhakti. Here nobody is anyone’s guru. There, they make you disciple, make you a follower. Here, there is neither disciple nor follower, neither guru nor disciple. What is there here? Father and? Father and children. That is it. Hm. There are no gurus here. Is this one a guru? Hm? Arey, this one is a Father, isn’t he? Hm? Arey, Father! Can we meet your Father? He will ask. So, do you know who our Father is? Hm? Arey, who is the Father of all these children? There is; isn’t he there? Yes, ShivBaba is everyone’s Father. Hm? Has anyone heard so? ShivBaba is incorporeal. With whom do you want to meet? Hm? They are made to run away in this manner. Hm? Who? Such devotees are made to run away. He will sit and take every moment. Those who pursue that we say, then we make them run away. Why? One thing is that they have that desire, don’t they? They have a desire. Desire of what? Arey, someone will come, hm, and achcha, someone will come and make ardaas (prayer), do such and such thing. Arey, you know; you say immediately that we are unlimited emperors, aren’t you? There is no question of paise, cowrie for unlimited masters. It shouldn’t even come in your thoughts. You have understood, haven’t you? ShivBaba will never think of money in His intellect. It is because what will He do with money?
Achcha, if you then come to these (inke). Now. Come to whose topic from ShivBaba’s topic? Hm? Come to these. ‘Inke’ refers to whom? Brahma Baba. Hm? When this one also observes that I am going to become master of the world, then what will I do with money? Is it not? So, this one is also like this only. What? He has understood that I will become the master of the world. Hm? Achcha, whatever they give, we make something or the other for them. Hm? What do we make? Arey, these palaces were built here for living, were they not? So, they are made. It is because the money is of no use, is it? What will we do by keeping it daughter? They are neither useful for ShivBaba nor for Brahma Baba. If they are useful, then wherever this money has been invested, whether it is in land, property, in building houses, for whom have they been made? Hm? Arey? Does ShivBaba worry for Himself or does Brahma Baba worry as to for whom have these been built? And for whom are they built? Hm? They are made only for the children who come. Fathers make for one, two, four, five children in the lokik world. They are limited fathers. And this one? This one is an unlimited Father, isn’t He? And how many children will come here? Hm? Arey, how many children will come? Arey, 500-700 crores will come through mind and intellect. But how many will come in practical? Four and a half lakhs. Where will they come? They will come face to face with the Father. So, isn’t accommodation required for these four and a half lakh children to stay? Hm? And children are indeed told, the capital that you children establish on Baba’s Shrimat, for whom do you establish? Will your new capital be established for the people of the world? For whom? You establish for yourself, don’t you? So, when you establish for yourself, then will you have to invest your own money, your own hard work or not? Yes, you will have to invest.
So, you have to tell that for how many children do you make (build), speak up? So, look, these children are there, aren’t they there? Hm? So, some are poor, some are lakhpati (someone owning a lakh rupees). Some give paise (smallest unit of currency in India). If someone is very poor, then he too would like to invest something or the other in Yagya seva. So, he gives two paise. So, two paise, these two paise are also received, aren’t they children? Baba, invest our one brick. In Baba’s times were the bricks cheap or did one brick used to cost many notes? No. Yes. Invest our brick. Brick also, brick also, look, it consumes two annas (a unit of currency in India equal to about six paise), doesn’t it? So, children’s money gets collected. Some send eight Annas, hm, so, in their eight Annas, four bricks will be invested, will they not be? Yes. Achcha, some give a thousand rupees. Yes, so, it is equal for both children, isn’t it? Hm? Look, what is equal? What is equal for both? Hm? The prosperous ones give a lot. And the poor; (Someone said something.) Yes, the attainment for both is equal. It is because how much percentage does he give out of whatever he possesses? Hm? Whatever a poor man possesses, if he gives whatever percentage out of it, he gets proportionately. Is the heart observed or is the money observed? Yes. (Continued)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
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ShivBaba’s Murli
वीसीडी 2940, दिनांक 13.07.2019
VCD 2940, dated 13.07.2019
प्रातः क्लास 30.11.1967
Morning class dated 30.11.1967
VCD-2940-Bilingual-Part-1
समय- 00.01-20.50
Time- 00.01-20.50/b]
प्रातः क्लास चल रहा था – 30.11.1967. गुरुवार को पांचवें पेज के आदि में, मध्यादि में बात चल रही थी साक्षात्कार की। बच्चियां साक्षात्कार में जाती थी तो बस आँखें बंद हो जाती थी। बेहद में क्या अर्थ हुआ? परमधाम जाएगी आत्मा तो ये इन्द्रियां जाएंगी क्या? सूक्षम इन्द्रियां भी जाएंगी? या स्थूल जाएंगी? नहीं। कोई नहीं जाएंगी। आँखें बंद। आँखों का काम खत्म। तो आँखें बंद हो जाती थी। फिर वहां जब वैकुण्ठ में जाते थे, हँ, वहां डांस वगैरा करते थे तो क्या अंधे होके करते थे? हँ? आँखें खुल जाती थी। यहां से साक्षात्कार में गए, बंद आँखों से गए और वहां आँखें खुल जाती थी। तो यहां की आँखों में और वहां की आँखों में क्या अंतर हुआ? कुछ अंतर हुआ? यहां की इन्द्रियां तमोप्रधान और नई दुनिया में इन्द्रियां भी सतोप्रधान; आत्मा भी? आत्मा तो यहां से ही सतोप्रधान बनके जाती है। सतोप्रधान कि सत बनके जाती है? नहीं। आत्माएं जो हैं वो नंबरवार जाती हैं ना ब्रह्मलोक में। तो जो नंबरवार जाती हैं तो जैसे गर्भ में कभी-कभी दो बच्चे पैदा होते हैं ना? हाँ। तो वो आत्मा एक साथ प्रवेश करती होंगी या आगे-पीछे? आगे-पीछे प्रवेश करती हैं। ऐसे ही है। ये 500-700 करोड़ आत्माएं जो हैं परमधाम तो सब इकट्ठी ही जाएंगी। लेकिन फिर भी क्या नंबर नहीं बनेंगे? एक के पीछे एक नहीं जाएंगी? हाँ, जाएंगी।
तो फिर जाती थी। इधर से जाती थी तो आँखें यहां की यहां रही। और वहां की आँखें? सात्विक आँखें। जैसे; जैसे वो समय का चक्र है ना? तो समय की जो सुई है; जैसे रिकार्ड बजता है तो रिकार्ड में सुई जब शुरुआत में बजती है ना, तो शुरू से लेकरके अंत तक समय के अनुसार ही पार्ट क्लीयर होता है ना? कि अंतर तो पड़ेगा ना? हाँ, अंतर पड़ेगा। तो वहां सात्विक आँखें। फिर जब इस सृष्टि पर आते थे, साक्षात्कार वाले, तो आँखें खुल जाती थीं। माना यहां की आँखें और वहां की आँखें, क्या अंतर हुआ? जो आँखें होंगी वैकुण्ठ में; इन्द्रियों का सुख तो वहां होता नहीं; तो फिर? कौनसी आँख से? बुद्धि की आँख काम करती वहां या ये आँखें काम करती? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, बुद्धि का सुख मिलता है। तो बुद्धि से जो सुख भोगते हैं वो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ सुख। बाकि तो फिर इन्द्रियों का जो है वो नीचापन है। उनमें भी नंबरवार इन्द्रियां हैं। तो देखो वहां भी आँखें बंद करके थोड़ेही डांस करते? वो भी तो अच्छा नहीं है ना? तो ये कायदा ही है कि पहले आँखें यहां से जाते समय आहिस्ते-आहिस्ते बंद हो जावेंगी। फिर वैकुण्ठ में पहुंच गई फिर आँखें खुलेंगी। कौनसी आँखें खुलेंगी? बुद्धि की। हाँ। बस। पीछे डांस शुरु कर दिया। अब जितना डांस किया उतना किया। देखा। जास्ती नहीं किया। जैसे बच्चे जास्ती खेल करते हैं तो फिर उनको खेल से बुलाया जाता है ना? नहीं आते हैं तो गुस्से से बुलाया जाता है। नहीं? हाँ। अरे, तुमने बहुत खेल कर लिया। अभी आ जाओ। अरे, आओ तो। बस। गोद में लिया, आँखों पर हाथ रख दिया, बस, झटपट खुल गया। हाँ। किसने हाथ रख दिया? किसने हाथ रख दिया? अधोमुखी ब्रह्मा ने या ऊर्ध्वमुखी ब्रह्मा ने? हाँ। बस, आँखें खुल गईं।
तो इसको जादू कहेंगे ना? सब कोई कहेंगे जादू। पर जादू भी तो है ना बरोबर? और जादू भी एक हद का और एक? और एक बेहद का। हाँ। तो देखो जादू तो कहेंगे। और ये तो बेहद का फर्स्टक्लास जादू है। है ना? कोई मनुष्य को वो मीरा ने तो तपस्या की। और बहुत साधु-संतों का संग किया। अब यहां साधु-संत कहां हैं? हं? यहां तो किसको साधु तो कहना तो, हम तो कहते ये तो भक्तिमार्ग के टट्टू हैं। हँ? टट्टू? टट्टू किसे कहते हैं? वो गधे होते हैं ना? घोड़े जैसे दिखाई पड़ते हैं। जैसे सफेद घोड़ा होता है। तो गधा भी सफेद ही तो होता है। अंतर क्या है? वो वजन ढ़ोने के काम आता है। हाँ। तो ये भक्तिमार्ग के टट्टू हैं। कौन? समझा ना? कौन है भक्तिमार्ग के? ये साधु, संत, महात्माएं, हँ, ये जो भी अधोमुखी दुनिया के हैं ये सब भक्तिमार्ग के टट्टू हैं। अव्वल नंबर कौन है? अव्वल नंबर आत्मा कौन है? हँ? उन टट्टुओं में अव्वल नंबर आत्मा कौन? हँ? (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, वो सबसे जास्ती वजन ढ़ोने वाला है। कितने बच्चे पैदा करता है? हँ? 500-700 करोड़ बच्चे। ब्रह्मा द्वारा ही सृष्टि रची। हँ? हाँ।
तो जो भक्तिमार्ग के टट्टू हैं; समझा ना? वो शूटिंग कहां होती है? शूटिंग तो यहां पुरुषोत्तम संगमयुग में होती है ना? तो कोई तो निमित्त बनते हैं? बनते हैं। साधु कहना; बाबा को कभी भी कोई महात्मा; अरे, महात्मा से मिलना चाहते हो? कोई आते हैं नए तो कहते हैं हमें महात्मा से मिलाओ। तो बाबा कहते – अरे, महात्मा से मिलना चाहते हो? बोलो, यहां कोई महात्मा होता नहीं है। कहां? हँ? यहां। यहां माने कहां? अरे, पुरुषोत्तम संगमयुग नाम दिया है। भले पुरुषोत्तम नाम है लेकिन संगम भी तो नाम है। संगम माने? उत्तम ही उत्तम या नीच भी? हँ? दोनों का संगम है ना? हाँ, तो यहां तो अभी; पुरुषोत्तम तो बाद में बनेंगे ना? पुरुषार्थ पूरा होगा तो पुरुषोत्तम बनेंगे। तो यहां तो अभी कोई आत्मा नहीं है ना?
अरे, पूछेंगे; अरे, आपका गुरु तो कोई होगा ना? यहां बोलो यहां तो कोई किसी का गुरु होता ही नहीं। क्या? गुरु-3, भक्तिमार्ग में करते हैं। यहां कोई किसी का गुरु नहीं होता। वहां चेला बनाते हैं, हँ, फालोअर बनाते हैं। यहां तो न चेला, न फालोअर, न गुरु, न शिष्य। यहां क्या है? बाप और? बाप और बच्चे। बस। हँ। यहां गुरु नहीं होते हैं। ये कोई गुरु है क्या? हँ? अरे, ये तो बाप है ना? हँ? अरे, बाप! हम आपके बाप से मिल सकते हैं? पूछेगा। तो कौनसा हमारा बाप है, पता है? हँ? अरे, इन सब बच्चों का सबका बाप कौन है? है ना? हाँ, शिव बाबा है सबका बाप। हँ? ऐसा कोई ने सुना हुआ? शिवबाबा तो निराकार है। तुम किससे मिलना चाहते हो? हँ? ऐसे करके भगाय देते हैं। हँ? किसको? ऐसे भगत को भगाय देते हैं। वो घड़ी-घड़ी बैठकरके लेगा। जो शिद्दत करते हैं कि हम कहते हैं तो भगाय देते हैं। क्यों? एक तो वो तो तमन्ना रहती है ना उनको; उनके पास तमन्ना। किस बात की तमन्ना? अरे, कोई आएंगे, हँ, और अच्छा, कोई आकरके अरदास रखेंगे, हँ, फलाना करेंगे। अरे, ये तो पता है, एकदम कहते हैं कि हम तो बेहद के बादशाह हैं ना? बेहद का मालिक को पैसे कौड़ी की तो कोई बात ही नहीं है। कभी ख्याल में भी नहीं आवे। समझे ना? शिवबाबा को कभी भी पैसे की बात कि कभी भी बुद्धि में नहीं आवेगा। क्योंकि वो क्या करेगा पैसा?
अच्छा, अगर फिर आओ इनके ऊपर। अभी। शिवबाबा की बात से किनके ऊपर आओ? हँ? इनके ऊपर आओ। इनके माने किनके? ब्रह्मा बाबा। हँ? ये भी जब देखते हैं मैं तो विश्व का मालिक बनने वाला, पैसा क्या करूंगा? है ना? तो ये भी ऐसे ही है। क्या? समझे बैठा है कि मैं विश्व का मालिक बनूंगा। हँ? अच्छा, जो भी दे देते हैं उनके लिए कुछ न कुछ बनाय देते हैं। हँ? क्या बनाय देते हैं? अरे, ये महल-माड़ियां बनाई थीं ना यहां रहने के लिए। तो बनाय देते हैं। क्योंकि पैसे तो काम के नहीं हैं ना? रख करके क्या करेंगे बच्ची? न शिवबाबा के काम के हैं और न ब्रह्मा बाबा के काम के हैं। अगर काम के हैं तो ये जो पैसे जहां लगाए हैं जमीन में, जायदाद में, मकान बनाने में, ये किसके लिए बनाए हैं? हँ? अरे? शिवबाबा को अपनी चिंता है कि ब्रह्मा बाबा को चिंता है किसके लिए बनाए? और किसके लिए बनाते जाते हैं? हँ? जो आने वाले बच्चे हैं उन्हीं के लिए बनाते हैं। बाप एक, दो, चार, पांच बच्चे के लिए बनाते हैं लौकिक दुनिया में। वो तो हद के बाप हैं। और ये? ये तो बेहद का बाप है ना? और यहां कितने बच्चे आएंगे? हँ? अरे, कितने बच्चे आएंगे? अरे, मन-बुद्धि से तो 500-700 करोड़ आवेंगे। लेकिन प्रैक्टिकल में कितने आवेंगे? साढ़े चार लाख। कहां आवेंगे? बाप के सन्मुख आवेंगे। तो इतने साढ़े चार लाख बच्चों के लिए रहने के लिए ठिकाना नहीं चाहिए? हँ? और बच्चों को तो बताते ही हैं तुम बच्चे जो राजधानी स्थापन करते हो बाबा की श्रीमत पर वो किसके लिए करते हो? जो राजधानी तुम्हारी नई स्थापन होगी वो दुनियावालों के लिए? किसके लिए? अपने लिए करते हो ना? तो अपने लिए करते हो तो अपना पैसा अपना मेहनत लगानी पड़ेगी [कि] नहीं? हाँ, लगानी पड़े।
तो बताना पड़ता है कितने बच्चे के लिए बनाते हो, बताओ? तो ये देखो बच्चे हैं ना? हँ? तो कोई गरीब है, कोई लखपति है। कोई-कोई पैसे देते हैं। बहुत गरीब होगा तो उसको भी तो दिल होगी न कुछ न कुछ यज्ञ सेवा में लगाए। तो वो दो पैसा देता है। तो दो पैसे, ये दो पैसे भी आते हैं ना बच्चे? बाबा हमारी ईँट लगाय देना। बाबा के जमाने में ईंटें सस्ती थी कि, हँ, ये नोट लगते थे ढ़ेर के ढ़ेर एक ईंट में? नहीं। हाँ। हमारी ईंट लगाय देना। ईंट भी, ईंट भी देखो दो आना खा जाती है ना? तो बच्चों का पैसा इकट्ठा होता है। कोई आठ आना भेज देते हैं, हँ, तो उनकी वो आठ आना में चार ईंटें उनमें लगेंगी ना? हाँ। अच्छा, कोई तो हज़ार रूपया दे देते हैं। हां, तो है तो दोनों के लिए एक ना बच्चे? हँ? देखो, एक क्या है? दोनों के लिए एक क्या है? हँ? जो साहूकार देते हैं बहुत दे देते हैं। और गरीब; (किसी ने कुछ कहा।) हाँ, कि जो प्राप्ति दोनों को बरोबर है। क्योंकि वो जितना है उसमें से कितना परसेन्टेज देता है? हँ? गरीब जितना है उसमें से जितना परसेन्टेज देता है उसको उतना मिल जाएगा। दिल ही तो देखा जाता है कि पैसा देखा जाता है? हाँ। (क्रमशः)
A morning class dated 30.11.1967 was being narrated. The topic that was being discussed in the beginning, in the beginning of the middle portion of the fifth page on Thursday was of visions (saakshaatkaar). When daughters used to have visions, then that is it; their eyes used to close. What is the meaning in an unlimited sense? When the soul goes to the Supreme Abode, then will these organs go? Will the subtle organs also go? Or will the physical ones go? No. None will go. Eyes close. The task of the eyes ends. So, the eyes used to close. Then, when they used to go there to Vaikunth, when they used to dance, etc there, then did they used to do so with their eyes closed? Hm? The eyes used to open. They went into visions from here, they went with closed eyes and the eyes used to open there. So, what is the difference between the eyes of this place and the eyes of that place? Is there any difference? The organs of this place are tamopradhan (dominantly impure) and the organs also in new world are satopradhan (dominantly pure); the soul also? The soul goes in a satopradhaan form from here itself. Does it become satopradhaan or sat (pure) and go? No. The souls go to the Brahmlok (abode of Brahm) numberwise, don’t they? So, the ones which go numberwise, so, just as sometimes two children are born in the womb, aren’t they? Yes. So, do those souls enter simultaneously or sooner, later [in comparison to each other]? They enter sooner, later. It is like this only. All these 500-700 crore souls will go to the Supreme Abode together. But, will there not be numbers? Will they not go one after the other? Yes, they will go.
So, then they used to go. When they used to go from here, then the eyes of this place remain here. And the eyes of that place? The pure eyes. It is as if it is a time cycle, isn’t it? So, the needle of time, for example, when the record is played, then in the record [gramophone] when the needle plays in the beginning, then, from the beginning to the end, the part becomes clear as per the time only, doesn’t it? Or there will be a difference, will it not be there? Yes, there will be a difference. So, there are pure eyes there. Then, when they used to come to this world, those having visions, then the eyes used to open. It means that what is the difference between the eyes of this place and the eyes of that place? The eyes in Vaikunth; There is no pleasure of the organs there; so, then? Through which eyes? Do the eyes of intellect work there or do these eyes work? (Someone said something.) Yes, the pleasure of intellect is received. So, the pleasure that is enjoyed through the intellect is the most righteous pleasure. As regards that of the organs, it is lowliness. Even among them the organs are numberwise. So, look, even there do you dance with closed eyes? That too is not nice, isn’t it? So, it is the rule that initially, while going from here the eyes will close gradually. Then, once they reached Vaikunth, then the eyes will open. Which eyes will open? Those of the intellect. Yes. That is it. Later they start the dance. Well, they dance to the extent they want. You saw. They did not dance more. For example, when children play more, then they are recalled from play, aren’t they? If they don’t come, then they are called with anger. Is it not? Yes. Arey, you have played enough. Now come. Arey, do come. That is it. They take them into the lap, they place the palm on the eyes and that is it; it opens immediately. Yes. Who placed the palm? Who placed the palm? Did the downward-facing Brahma or did the upward facing Brahma? Yes. That is it; the eyes opened.
So, this will be called magic, will it not be? Everyone will call it a magic. But it is rightly a magic, isn’t it? And in case of magic also one is in a limited sense and another kind? And another kind is in an unlimited sense. Yes. So, look, it will be called a magic. And this is unlimited first class magic. Is it not? A human being, that Meera did tapasya (intense meditation). And she kept the company of many sages and saints. Well, where are sages and saints here? Hm? Here calling someone a sage, we say, these are mules (tattu) of the path of Bhakti. Hm? Tattu? What is called a Tattu? There are those donkeys, aren’t they there? They look like horses. For example, there is a white horse. So, a donkey is also white only. What is the difference? It proves useful in carrying weight. Yes. So, these are mules of the path of Bhakti. Who? You have understood, haven’t you? Who belong to the path of Bhakti? These sages, saints, all these who belong to the downward facing world, all these are mules of the path of Bhakti. Who is number one? Who is the number one soul? Hm? Who is the number one soul among those mules? Hm? (Someone said something.) Yes, he carries the maximum weight. How many children does he give birth to? Hm? 500-700 crore children. The world was created through Brahma only. Hm? Yes.
So, those who are the mules of the path of Bhakti; you have understood, haven’t you? Where does that shooting take place? The shooting takes place here in the elevated Confluence Age (Purushottam Sangamyug), doesn’t it? So, does anyone become instrumental? They become. Calling [someone] a Sadhu (sage), sometimes some people call Baba a Mahatma (saint); arey, do you want to meet the Mahatma? If any new persons come, they say – Allow us to meet the Mahatma. So, Baba says – Arey, do you want to meet the Mahatma? Tell them, there is no Mahatma here. Where? Hm? Here. ‘Here’ refers to which place? Arey, a name ‘Purushottam Sangamyug’ has been coined. Although the name is Purushottam (highest among all the souls), yet there is the name sangam (confluence) also. What is meant by sangam? Are there just highest ones or lowly ones also? Hm? It is a confluence of both, isn’t it? Yes, so, here now, you will become Purushottam later on, will you not? When your purusharth is over, then you will become Purushottam. So, here there is no soul now, is it there?
Arey, they will ask, arey, you must have some guru, don’t you? Here, tell, here nobody is anyone’s guru at all. What? Guru-3 is uttered on the path of Bhakti. Here nobody is anyone’s guru. There, they make you disciple, make you a follower. Here, there is neither disciple nor follower, neither guru nor disciple. What is there here? Father and? Father and children. That is it. Hm. There are no gurus here. Is this one a guru? Hm? Arey, this one is a Father, isn’t he? Hm? Arey, Father! Can we meet your Father? He will ask. So, do you know who our Father is? Hm? Arey, who is the Father of all these children? There is; isn’t he there? Yes, ShivBaba is everyone’s Father. Hm? Has anyone heard so? ShivBaba is incorporeal. With whom do you want to meet? Hm? They are made to run away in this manner. Hm? Who? Such devotees are made to run away. He will sit and take every moment. Those who pursue that we say, then we make them run away. Why? One thing is that they have that desire, don’t they? They have a desire. Desire of what? Arey, someone will come, hm, and achcha, someone will come and make ardaas (prayer), do such and such thing. Arey, you know; you say immediately that we are unlimited emperors, aren’t you? There is no question of paise, cowrie for unlimited masters. It shouldn’t even come in your thoughts. You have understood, haven’t you? ShivBaba will never think of money in His intellect. It is because what will He do with money?
Achcha, if you then come to these (inke). Now. Come to whose topic from ShivBaba’s topic? Hm? Come to these. ‘Inke’ refers to whom? Brahma Baba. Hm? When this one also observes that I am going to become master of the world, then what will I do with money? Is it not? So, this one is also like this only. What? He has understood that I will become the master of the world. Hm? Achcha, whatever they give, we make something or the other for them. Hm? What do we make? Arey, these palaces were built here for living, were they not? So, they are made. It is because the money is of no use, is it? What will we do by keeping it daughter? They are neither useful for ShivBaba nor for Brahma Baba. If they are useful, then wherever this money has been invested, whether it is in land, property, in building houses, for whom have they been made? Hm? Arey? Does ShivBaba worry for Himself or does Brahma Baba worry as to for whom have these been built? And for whom are they built? Hm? They are made only for the children who come. Fathers make for one, two, four, five children in the lokik world. They are limited fathers. And this one? This one is an unlimited Father, isn’t He? And how many children will come here? Hm? Arey, how many children will come? Arey, 500-700 crores will come through mind and intellect. But how many will come in practical? Four and a half lakhs. Where will they come? They will come face to face with the Father. So, isn’t accommodation required for these four and a half lakh children to stay? Hm? And children are indeed told, the capital that you children establish on Baba’s Shrimat, for whom do you establish? Will your new capital be established for the people of the world? For whom? You establish for yourself, don’t you? So, when you establish for yourself, then will you have to invest your own money, your own hard work or not? Yes, you will have to invest.
So, you have to tell that for how many children do you make (build), speak up? So, look, these children are there, aren’t they there? Hm? So, some are poor, some are lakhpati (someone owning a lakh rupees). Some give paise (smallest unit of currency in India). If someone is very poor, then he too would like to invest something or the other in Yagya seva. So, he gives two paise. So, two paise, these two paise are also received, aren’t they children? Baba, invest our one brick. In Baba’s times were the bricks cheap or did one brick used to cost many notes? No. Yes. Invest our brick. Brick also, brick also, look, it consumes two annas (a unit of currency in India equal to about six paise), doesn’t it? So, children’s money gets collected. Some send eight Annas, hm, so, in their eight Annas, four bricks will be invested, will they not be? Yes. Achcha, some give a thousand rupees. Yes, so, it is equal for both children, isn’t it? Hm? Look, what is equal? What is equal for both? Hm? The prosperous ones give a lot. And the poor; (Someone said something.) Yes, the attainment for both is equal. It is because how much percentage does he give out of whatever he possesses? Hm? Whatever a poor man possesses, if he gives whatever percentage out of it, he gets proportionately. Is the heart observed or is the money observed? Yes. (Continued)
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नोटः यह केवल एक प्रारूप है। उक्त वीसीडी के संपूर्ण मूल पाठ या मूल आडियो, वीडियो के लिए www.adhyatmik-vidyalaya.com देखिये।
Note: This is just a draft. For the complete text, Audio and Video of the above VCD please visit – www.adhyatmik-vidyalaya.com
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